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Romance पिँकी...

Chutphar

Mahesh Kumar
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अभी तक आपने पढा की मैने पिँकी को अपने हाथ से ही उसे काम सुख का का मझा चखा दिया था और उसे रात मे छत पर भी मिलने को‌ कहा था, अब आगे..

वैसे तो जहाँ तक मेरा अन्दाजा था पिँकी रात मे छत नही वाली थी मगर फिर भी उस रात खाना‌ खाने के बाद मैं घूमने के बहाने छत चला गया...

अब हुवा भी वैसा ही, उस रात मैने पिंकी का काफी देर तक इंतजार किया..मगर पिंकी छत पर नहीं आई। आखिरकार थक कर मैं वापस नीचे आकर सो गया।

अब अगले दिन दोपहर को भी पिंकी पढ़ने के लिये हमारे घर नहीं आई, इससे तो मेरे दिल‌ में अब कुछ शंका‌ व भय सा भी हो गया… की कहीं कल जल्दबाजी में ज्यादा आगे बढ़कर मैंने कुछ गलती तो नहीं ‌कर दी..?
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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अगली रात को भी खाना खाने के बाद मैं फिर से छत पर चला गया और ऐसे ही घूमने लगा… कुछ देर ऐसे ही छत पर टहलने के बाद मैं अब वापस जाने ही‌ लगा था कि‌ तभी‌ मुझे पिंकी के घर की तरफ‌ से सीढ़ियों पर किसी‌ के चढ़ने की आवाज‌ सुनाई दी…

आवाज सुनकर मैं अब वहीं पर रूक गया, और देखने लगा की उपर कौन आता है..? अब कुछ देर बाद ही एक‌ लङकी का साया छत पर आया और तार पर सूख रहे कपड़े एक एक कर उतारने लगा...

छत पर अन्धेरा तो था मगर कद काठी और कपड़ों के पहनावे से मैं पहचान गया‌‌ कि वो पिंकी ही है, उपर से
कपङे उतारते हुवे वो बार बार मेरी ‌तरफ‌ ही‌ देख‌ रही थी इसलिये मैं अब तुरन्त उनकी छत की ओर चला गया..

पिँकी ने भी मुझे पहचान लिया था इसलिये मुझे देख वो शायद घबरा सी ‌गयी और उसने तार पर से जल्दी जल्दी कपड़े उतारने‌ शुरु कर दिये...

पिँकी की छत के पास जाकर मै अब हमारी और उनकी छत के बीच जो दिवार बनी है उसके पास खङा हो गया और...
"आज तुम‌ पढने क्यो नही आई..?" मैने दिवार के पास खङे खङे ही पुछा।

"व्.व्. वो मै मम्मी के साथ बाजार चली गयी थी..!" उसने अब हकलाते हुवे से कहा।

तब तक पिंकी ने तार पर से सारे कपड़े उतार लिये थे और वो वापस जाने के लिये मुड़ने ही वाली‌ थी की मै अब तुरन्त वो दिवार कुदकर उनकी छत पर चला गया।

मेरे अब दिवार कुदते ही पिँकी घबरा सी गयी। वो वहाँ से भागना चाहती थी मगर तब तक मैंने उसे पीछे से पकड़कर अपनी बाहों में भर लिया और उसकी गर्दन व गालों पर चूमना शुरु कर दिया..

"इईई…श्शशश…
क्या कर रहा है…?
छोड़ मुझे…! कोई आ जायेगा तो…?" पिंकी ने अब कसमसाते हुए कहा मगर मैं कहाँ मानने वाला था।

अपने हाथ उपर लाकर मैने कपड़ों के ऊपर से ही उसकी दोनो छोटी छोटी गोलाईयो को‌ अपनी मुट्ठी में भर लिया और पीछे से उसकी गर्दन व गालों पर चूम्बनो की झङी सी लगा दी...

मेरे इस हमले से पिंकी एक तो बुरी तरह से घबरा गई थी और दूसरा उसने दोनों हाथों में कपड़े पकड़ रखे थे इसलिये वो मुझसे छुड़ाने का इतना अधिक प्रयास नहीं कर पा रही थी।

वो बस कसमसाते हुए घबराई सी आवाज में धीरे धीर...
"कोई… देख लेगा…!
क्या क…कर…रहा है…?
छोड़ मुझे…! प्ली..ईज…!" वो बस बङबङा सी रही थी।

तब तक मैने एक हाथ से उसकी गर्दन को पकङकर अपनी तरफ घुमा लिया और उसके रसीले होंठों को अपने मुँह मे‌ भरकर उसका मुँह भी अब बन्द कर दिया..

अब तो पिंकी और भी जोर से कसमसाने लगी, उसने जो कपड़े हाथों में पकड़ रखे थे उन्हें नीचे गिरा दिया‌ और मुझे हटाने के लिये हाथ पैर चलाने शुरु कर दिये..

पिंकी का मुँह तो मैने बन्द कर दिया था लेकिन मुझसे छुड़ाने का वो अब भी प्रयास कर रही थी। मैंने भी उसे घुमा कर अब दीवार के साथ लगा‌ लिया और उसे अपने शरीर के भार से दबा के अपना एक हाथ अब सीधा उसकी चुत की तरफ बढ़ा दिया...

"अअओ.. ओइईई…
वहाँ नहीं… वहाँ नहीं…
इईई… श्श्श्शशश… क..य..आ… कर‌… रहा.. है… अ..आआआ… ह्ह्हहह…" कह कर पिँकी अब बङबङाई मगर रोजाना की तरह उसने लोवर पहन रखा था जिसमें इलास्टिक लगा हुआ था‌।

अब जब तक‌ वो मेरा हाथ पकड़ती, तब तक ‌बहुत देर हो गई … और बिना कीसी तकलीफ के ही मेरा हाथ सीधा उसके लोवर व पेंटी में उतरता चला गया...

पिंकी ने अब अपनी जाँघों को भी सिकोड़ने की कोशिश की मगर मेरा एक पैर उसकी दोनों जाँघों के बीच फंसा हुआ था। इसलिये वो बस कसमसाकर रह गई और मेरा हाथ अब उसकी छोटी सी नंगी चुत पर था जो‌ की अब तक हल्की गीली हो आई थी।

एकदम‌ सपाट व बिल्कुल एक छोटी सी लकीर के रुम मे चुत थी पिँकी की, जिस पर ना‌ तो‌ कोई उभार था और ना ही कोई फुलाव था। चुत की वो लकीर भी शायद मुश्किल से मेरी आधी उँगली के जितनी ही बङी थी इसलिये मैंने उसे अब अपनी उंगलियों से ही दबा लिया..

पिंकी ने भी अब दोनों हाथों से मेरे हाथ को पकड़ लिया था और अपने लोवर से बाहर निकालने की‌ कोशिश करते हुए...
"अ्अ्ओ.. ओइईई…
क्.क्या्.क्…क्.कर… रहा है…?
ब्.ब्बस अब.. प्लीईईज....
छ्.छ्.छोड़..अ्ह्ह …!
प्ली..ईज…! कोई… देख लेगा…!"

मगर मैं कहाँ मानने वाला था, मैंने उँगलियो से ही उसकी नंगी उस छोटी सी मुनिया को रगड़ना मसलना शुरू कर दिया। जिससे पिंकी अब कसमसाते हुवे मेरे हाथ को अपने लोवर से बाहर निकालने के लिये छटपटाने सा लगी।

अभी तक मेरी उंगलियाँ पिंकी की चुत को ऊपर से ही रगड़ रही थी मगर पिंकी के छटपटाने से मेरी उंगलियाँ अब चुत की उस लकीर के बीच भी चली गई....

मैंने भी अब उँगलियों से ही उसकी चुत की छोटी छोटी फांकों को पहले तो हल्का सा फैला लिया फिर अपनी एक उँगली से उस लकीर में सहालाना शुरू कर दिया...

अब कुछ ही देर में पिँकी की‌ सांसें भी गहरी व तेज होती चली गई और मेरी उंगलियाँ भी चुतरस से गीली हो आई... पिंकी का विरोध भी अब कुछ हल्का पड़ने लगा था मगर वो अब भी डर सा रही थी।

पिँकी को भी अब मजा आ रहा था इसलिये उसने दोनों हाथों से मेरे हाथ को पकड़ तो रखा था, मगर उसे अब वो बाहर निकालने की इतना अधिक कोशिश नहीं कर रही थी...

उसे मजा तो आ रहा था मगर उसके दिल‌ मे अभी भी ये डर बना हुवा था की कही कोई हमे देख ना ले इसलिये दोनो हाथो से मेरे हाथ को पकङे पकङे वो बस...
"अ्अ्ओ.. ओइईई…
क्.क्या्.क्…क्.कर… रहा है…?
ब्.ब्बस अब.. प्लीईईज....
यहाँ छत पर ये मत कर…?
छोड़ …!

प्ली..ईज…! कोई… देख लेगा…!" वो बङबङा सा रही‌ थी।
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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वैसे तो वहाँ छत पर चारो तरफ अन्धेरा था और पिँकी के घर की बगल मे‌ कोई दुसरा घर भी नही था जिससे मुझे किसी दुसरे के देख लेने का डर नही था..

बस जो थोङा बहुत डर था वो इस बात का ही था की पिँकी के घर से कोई उपर ना आ जाये... बाकी मेरे घर की तरफ से तो मै निश्चिंत ही था, पर पिँकी कुछ ज्यादा ही डर रही थी।

पर मै अब ऐसे ही उसकी उस नन्ही परी को रगड़ता मसलता रहा जिससे कुछ ही देर में मेरा हाथ चुतरस से भीग कर तर हो गया और पिंकी का विरोध तो‌ जैसे काफूर ही हो गया..

उसके के मुँह से अब हल्की हल्की सिसकारियाँ निकलनी शुरू हो गई थी। वो झूठ मूठ में दिखाने के लिये अब...
"छ्..ओ्…ड़..अ.. म्ममुऊ… झ..ऐ…
ब्.ब्.ब्स्स्स् ह्.हो गयाआआ…
अ..आआआ… छ..ओ…ड़..अ…" कर तो रही थी मगर मेरे हाथ को अपने लोवर से अब बाहर निकालने की कोशिश नहीं कर रही थी।

मैं भी अब ये सही मौका जान धीरे से अपने‌ घुटनो‌ के बल नीचे बैठ गया। मेरा एक हाथ उसके लोवर व पैँटी मे तो था ही जिससे मैने अब नीचे बैठते ही आगे से उसके लोवर व पैँटी को पकङ के अब एक ही झटके मे नीचे खिँच लिया..

पीछे से पिँकी के कुल्हो मे पैँटी अब थोङा सा फँसी तो जरुर मगर उसके कुल्हे इतने भी भारी नही थे जो उसकी पैँटी को नीचे उतरने से रोक पाते..

पिँकी ने दोनों हाथों से अपने लोवर पेंटी को पकड़ने की कोशिश‌ भी की थी मगर तब तक वो उसके घुटनों तक उतर चुके थे इसलिये वो बस अब... "अअओ..ओइईई…
इईई… श्श्श्शशश… क..य..आ… कर‌… रहा..है…
अ.. आआआ… ह्ह्हहह…"करके चिहुँक सी पड़ी।

मेरा दिल ‌तो बहुत कर रहा था की‌ काश एक बार अब पिंकी की इस छोटी सी कच्ची कुवाँरी मुनिया के दीदार भी हो जाये। मगर अन्धेरे में कुछ साफ नहीं दिखाई दे रहा था बस उसके दुधिया सफेद गोरे रँग के कारण उसकी नंगी जांघें ही चमक रही थी।

पिँकी ने दोबारा से अपने लोवर व पेंटी को अब पहने की कोशिश करनी चाही मगर तब तक मैंने अपना सिर उसकी‌‌ दोनों जाँघों के बीच घुसा दिया और अपने प्यासे होंठों को उसकी केले के तने सी चिकनी, व नर्म मुलायम नँगी जाँघों पर टिका दिया...

मेरे तपते होंठों का अपनी नंगी जाँघों पर स्पर्श पाते ही पिंकी का पूरा बदन अब जोरो से सिहर सा गया और उसने दोनों हाथों अपने लोवर व पैँटी को छोङ मेरे सिर पर आ गये...

मुझे हटाने के लिये वो अब दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़ कर मुझे धकेलने लगी थी मगर मैंने अपने हाथ पीछे ले जाकर उसके कुल्हो को अपनी बांहों में भर लिया और धीरे धीरे उसकी जाँघों को चूमते हुए ऊपर‌ उसकी चुत की तरफ बढ़ना शुरु कर दिया..

मेरे इस तरह पिंकी की‌ नँगी जाँघो को चुमने से उसके पूरे बदन में अब सिहरन व झुरझुरी की लहर सी दौड़ने लगी जिसे मैं भी साफ महसूस कर रहा था....

पर मै रुका नही, मैने पिँकी की‌ जाँघो‌‌ को घुटनो के उपर से चुमना शुर किया था मगर जैसे ही मै इसकी आधी जाँघो तक‌ पहुँचा पिंकी के अब पैर भी अब कंपकपाना शुरू हो गये...

मैं जाँघों को अन्दर की तरफ से चूमता हुआ ऊपर बढ़ रहा था इसलिये अब थोड़ा सा और ऊपर बढ़ते ही मेरे होंठ कुछ चिपचिपे व नमकीन से होने लगे...

शायद यह पिंकी का प्रेमरस था जो उसकी गीली पेंटी के कारण उसकी जाँघों पर लग गया था या फिर उसकी चुत से रिशकर जाँघो पर बह आया था... कुछ भी हो पर इसमे फायदा मेरा ही था इसलिये मै ऐसे ही उसकी नँगी जाँघो को चुमते उपर बढता रहा..

अब जैसे जैसे मै ऊपर पिंकी की चुत की तरफ बढ़ रहा था वैसे वैसे ही मेरे होंठ भी ज्यादा गीले व चिपचिपे होने लगे तो, साथ ही पिंकी के पैरों की कंपकपाहट भी अब बढ़ने‌ लगी..

पिंकी एक कुँवारी व अनछुई किशोरी थी‌ और उसके साथ ये सब पहली‌ बार हो रहा था। ये सब उसकी बर्दाश्त के बाहर था इसलिये मुझे आगे बढ़ने से रोकने के लिये पिंकी ने अब दोनों हाथों से मेरे सिर को कस के‌ पकड़ लिया...

पर मै अब उसकी कमसिन कुंवारी चुत का स्वाद चखे बिना कहाँ मानने वाला था। पिंकी के पकड़ने के बावजूद भी मैं ऐसे ही धीरे धीरे‌ करके उसकी ‌नंगी चुत तक पहुँच ही गया...

चुत से एकदम‌ कच्ची कच्ची कचनार के जैसी मादक महक फूट रही थी। उस कच्ची कुँवारी छोटी सी चुत की मादक महक पाकर मुझसे अब रहा नहीं जा रहा इसलिये मैंने अब सीधा ही उसकी उस नन्ही सी चुत को जोर से चूम लिया..

पिंकी के मुँह से तो जैसे अब जोरो से..
"अअओ.. ओइईई… इईई… श्शशश… अह.. आआ… ह्ह्हहहहह…" की चीख ही निकल गयी और उसकी दोनो जाँघे थरथरा कर एक दुसरे से मिल‌ गयी।

पिंकी का ये पहला और बड़ा ही अनोखा व अदभुत अनुभव था इसलिये उसकी‌ ये कसमसाहट व थरथराहट वाजिब भी थी।

मैंने भी‌ पिंकी की जाँघों के साथ अब कोई जबरदस्ती नहीं की, बल्कि ऐसे ही उसकी बन्द जाँघों को व चुत के आस पास ही चूमता चाटता रहा...

साथ ही मेरे हाथ जो की पिंकी के नितम्बों को पकड़े थे उनसे मैने अब धीरे धीरे उसके नितम्बों को भी सहलाना शुरु कर दिया...

अब कुछ देर तो पिँकी मेरे चुम्बन से बचने के‌ लिये
अपनी जाँघो को भीचे ऐसे ही कसमसाती रही फिर धीरे धीरे अपने आप ही उसकी जाँघों की पकड़ हल्की हो गई और वो एक दूसरे से धीरे धीरे जुदा होने लगी।

पिंकी के पैर अब भी हल्के हल्के कंपकपां रहे थे‌ और वो कंपकपांती सी आवाज में यही दोहरा रही‌ थी...

"अ्अ्ओ.. ओइईई… इईई… श्श्श्शशश…
क्.क्..य्..आ्आ्… कर‌…रहा..है… अ..आआआ.. .ह्ह्हहहहह… छ..ओ…ड़.. अ…
छ..ओ…ड़.. अ…म्ममुऊ.. झ..ऐ…
क्क्..य..आ…क्कर‌…रहा.आ.है.अ्अ् ....
अ..आआआ… छ..ओ…ड़..अ्…"

जबकी मैने‌ उसे अब पकङा भी नही था। बस उसके नितम्बो को सहलाते हुवे उसकी चुत व दोनो जाँघो पर चुम ही रहा था..
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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मुझे अब कोई जल्दी नहीं थी इसलिये मै ऐसे ही पिंकी जाँघों को चूमता चाटता रहा… मगर हाँ, बीच बीच में मैं अपने हाथों को पिंकी के नितम्बों पर से सहलाते हुए पीछे से ही उसकी जाँघों पर जरूर ला रहा था...

और इस बार जब मेरे हाथ पिंकी की जाँघों पर आये तो मैंने उनके बीच अपना हाथ घुसाने के लिये हल्का सा, बहुत ही हल्का सा दबाव डाला ही था कि पिंकी की जांघें अपने आप ही खुलकर फिर से अलग हो गई...

अब जाँघो के‌ खुलते ही मेरा मुँह फिर से पिंकी की दोनों जाँघों के बीच आ गया और मेरे होठ सीधा उसकी नन्ही चुत पर जा लगे..

मैंने उसकी चुत को अब एक बार तो ऊपर से हल्का सा चूमा और फिर प्रेमरस सी भीगी चुत की छोटी छोटी फांकों को ऊपरी छोर से चूमता हुआ धीरे धीरे नीचे उसके प्रेमद्वार की तरफ बढ गया..

मै पिँकी की चुत को हर एक जगह, बिल्कुल ही धीरे धीरे, पग पग धरते चुमता जा रहा था जिससे पिंकी के मुँह से अब हल्की हल्की सिसकियाँ सी फुटना शुरू हो गयी, तो उसकी जाँघे भी अपने आप धीरे धीरे फैलने लगी...

जैसे जैसे मेरे होंठ चुत की कोमल फांकों को चूमते हुए नीचे उसके‌ प्रवेशद्वार की तरफ बढ़ रहे थे वैसे वैसे ही पिंकी की जांघें भी अब ज्यादा और ज्यादा फैलती जा रही थी....

.....पर थोड़ा सा नीचे बढ़ते ही मेरे होंठ चुतरस से भीगकर बिल्कुल तर हो‌ गये और मुँह का स्वाद भी एकदम खारा व नमकीन हो गया‌, क्योंकि मेरे होंठों अब चुत के अन्तिम छोर पर जा पहुँचे थे जहाँ से चुतरस का वो झरना फूट रहा था।

मैंने भी उस यौवन झरने के उद्धगम स्थल को अब अपनी जीभ निकाल कर पुरा ही चाट लिया जिससे पिंकी ने जोरो से थरथराती आवाज में...
"अ्अ्ओ.. ओह ईई… इईई… श्श्श्शश… अ..आआआ… ह्ह्हहह…" की एक‌ सिसकी सी लेकर अपनी जाँघों को जोरो से भींच‌ लिया... मगर इस बार पिँकी की जाँघे बस एक बार बन्द तो हुई फिर अपने आप ही तुरन्त खुल भी गयी।

मैंने भी अब पिंकी के उस यौवन झरने को अपनी जुबान से चाट चाटकर साफ करना शुरु कर दिया...
मगर जितना मैं अपनी जुबान से चाटकर उसे साफ कर रहा था वो उतना ही ज्यादा, और ज्यादा प्रेमरस उगल रहा था जैसे पिँकी मुत (पिशाब) रही हो..

अभी तो बस मैं पिंकी के कुवांरे खजाने की पहरेदार उन कोमल फांकों को ही ऊपर उपर से चाट रहा था अभी तो खजाने तक‌ पहुँचना बाकी था, पर मै सोच रहा था की जब उपर उपर चाटने से पिँकी की मुनिया का ये हाल था तो बाद क्या होगा..

अब ये बात मेरे दिमाग मे आते ही मैंने तुरन्त चुत की फांकों को कुरेद कर अपनी जीभ को अब सीधा चुत की दरार मे घुसा‌ दिया...चुत की दरार‌ के अन्दर का भाग वैसे तो एकदम ही सोफ्ट सोफ्ट था पर बहुत अधिक‌ गर्म‌ भी लग रहा था।

अब एक तो चुत के अन्दर का भाग पहले ही गर्म था उपर से खारे कैसेले कामरश के कारण वो इतना अधिक गर्म‌ लग रहा था जैसे मेरे उसे चाटने से मेरी‌ जीभ पर छाले पङ जायेँगे..

वैसे प्रेमरस से भीग कर चुत की दरार‌ इतनी चिकनी हो रखी थी की मेरी जीभ अब चुत की दरार मे उपर से नीचे तक अपने आप ही फिसल रही थी जिससे पिंकी की मुँह से अब सिसकारियाँ निकलनी शुरु हो गयी थी...

पिँकी की चुत को उपर से नीचे तक मैं अपनी पूरी जीभ निकाल कर चाट रहा था, जिससे मेरी जीभ ने अब प्रवेशद्वार की रक्षा करने वाली उन नाजुक कलियों को कुरेद कर अब जल्दी ही उसके प्रवेशद्वार पर भी दस्तक दे‌ दी..

पर जैसे ही मेरी‌‌ जीभ अब प्रवेशद्वार पर लगी, पिंकी ने... "अ्अ्ओ.. ओइईई… इईई…श्श्श्शशश… अ्..आ्आ्आ्… हा्ह्ह्ह्…" की एक मीठी सीत्कार सी भर कर दोनों हाथों से मेरे सिर को जोर से अपनी चुत पर दबा लिया..

मैंने भी पिंकी को अब ज्यादा नहीं तड़पाया और धीरे से अपनी जीभ को नुकीला करके सीधा ही उसकी छोटी सी चुत के संकरे द्वार में पेवस्त कर दिया...

"अ्ह्. अ्ओ्.. इईई…
उम्म… इईई… अह ..आ्आ्आ्… ह्ह्ह्…" कह कर
अब एक बार फिर से पिंकी का बदन थरथरा सा गया था, मगर इस बार उसने मुझे हटाने की कोशिश नहीं की बल्कि खुद ही मेरे सिर को अपनी चुत पर दबा लिया।

पिँकी की हालत अब उसकी तङप बया कर रही थी इसलिये मैंने भी अब धीरे धीरे अपनी जुबान को उसकी चुत की संकरी सी गुफा में घिसना शुरु कर दिया...

पिंकी की तो अब हालत ही खराब हो गयी, ये सब उसकी छोटी सी मुनिया के साथ पहली बार हो रहा था जो उसकी बर्दाश्त के बाहर था। इसलिये उसने मेरे सिर के बालों को कस कर पकड़ लिया था और जोर जोर से....

"अ्अ्ओ्..ओ्इई्ई्…
इईई…श्श्श्श्..अ..आआ आह्हह…
अब…ब…स्सस…
इईई…श्श्श्शशश… अ..आआआ…ह्ह्हहहहह…
अब…बस्सस…" कहते हुए मुझ पर कभी झुक रही थी, तो कभी सीधा दीवार के साथ तनकर खड़ी हो रही थी. मगर मुझे हटाने का प्रयास या फिर मेरा विरोध बिल्कुल भी नहीं कर रही थी।

धीरे धीरे मैंने भी अब अपनी जीभ की हरकत को थोड़ा तेज कर दिया। मेरी जीभ अब पिंकी के संकरे प्रेमद्वार को घिसने के साथ साथ कभी कभी थोड़ा सा नीचे उसकी गुदाद्वार तक भी जाने लगी थी जिससे पिंकी की सिसकारियाँ बढ़ गई और उसने भी मेरी जीभ के साथ साथ ही धीरे धीरे अपनी कमर को हिलाना शुरू कर दिया...

पिंकी की मुनिया तो प्रेमरश का अब इतना अधिक स्राव कर रही थी मानो उसमे बाढ ही आ गयी हो। उसके यौवन रस से भीगकर मेरे जीभ व होंठ अब और भी चपलता से उसकी चुत पर चलने लगे..

मेरी जीभ पिंकी के प्रेमद्वार में तो कभी चुत की फांकों के भीच चुत के ऊपरी‌ छोर से लेकर नीचे उसकी गुदाद्वार तक का सफर कर रही थी‌, साथ ही बीच बीच में मेरी जीभ चुत के उस अनारदाने को भी‌ कुरेद दे रही थी।

पिंकी अब अपनी कुँवारी मुनिया पर इस तीन तरफा मिश्रित हमले को ज्यादा देर तक बर्दाश्त नहीं कर सकी और जल्द ही उसके हाथो की पकङ मेरे सिर पर कसती चली गयी।

उसने मेरे सिर को पूरी ताकत से अपनी चुत पर दबा लिया और जोर जोर से....
"इईईई… श्श्शश अआआ…ह्हहह…
इईईई… श्श्श्शश अहा आआ… ह्ह्हहह…
इईईई…श्श्श्शश अआआ…ह्हहहह…
इईईई…श्श्शश अआआ…ह्हहहह…"करते हुए अपनी चुत से रह रह कर मेरे मुँह पर ही प्रेमरश की बौछार सी करना शुरू कर दी...

पिँकी का बदन भी अब कमान तरह तनता चला गया और वो चार पाँच किश्तों में ही अपना सार चुत रस मेरे मुँह पर उगल कर निढाल हो गयी...
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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पिंकी के सारे बदन का भार अब मेरे उपर था, इसलिये पिंकी को अपनी बांहों में थामे थामे मै धीरे से उठकर खड़ा हो गया और धीरे धीरे फिर से उसके मखमली गालों को चूमना शुरू कर दिया।

पिंकी भी अब इस मूर्छा से जागने लगी थी मगर उसका बदन अभी भी कंपकपा रहा था। धीरे धीरे मैं पिंकी के गालों पर से चूमता हुआ उसके कोमल होंठों पर आ गया मगर जैसे ही मैंने उसके होंठों को मुँह में भरा पिंकी ने अपना चेहरा घुमा लिया और मुझसे छुड़वाकर जल्दी से अपने कपड़े सही करने लगी।

पिंकी ने अपने लोवर व पेंटी को पहना ही था कि मैंने फिर से उसको पीछे से पकड़ लिया और..
"तुम्हारा तो हो गया अब मेरा भी तो कुछ कर दो…!"
मैने उसके गर्दन व गालों को चूमते हुए कहा।

"उ्.उ्.ह्ह्ह्..क्.क्क्याआ्आ्ह्ह्ह..?" पिंकी ने कसमसाते हुवे कहा।

"यही जो मैंने किया है..!" मैंने उसके गालों पर एक जोरदार चुम्बन करते हुए कहा और अपना एक हाथ फिर से उसकी लोवर में डाल दिया।

पिंकी अब जोरो से कसमसाने लगी और....
"अअओ.. ओइईई… इईई… श्श्श्शशश…
अ..आआ…हहह…
बस…छोड़…मुझे…
अ..आआआ… ह्हह… क..य..आ… कर‌…रहा.. है…
अ..आआआ… ह्ह्ह…
अब…बस्स… बहुत.. देर… हो..गई… जाने..दे… मुझे… अ..आआआ… ह्हहह…" कहते हुए मुझसे छुड़ाने की कोशिश करने लगी।

मगर मैं कहाँ रुकने वाला था, मेरा हाथ अब फिर से पिंकी की नंगी चुत पर था जो की प्रेमरस से पुरी भीगी हुई थी और उसके प्रवेशद्वार से तो अब भी हल्का सा प्रेमरस रिस ही रहा था।

पिंकी मेरा हाथ अपने लोवर से बाहर निकालने की कोशिश कर रही थी मगर मैंने उसके होंठों को अपने मुँह में भरकर उसका मुँह बन्द कर दिया और उसकी नंगी चुत को फिर से मसलना शुरु कर दिया...

अब तो पिंकी और भी जोरो से कसमसाने लगी। मुझसे छुटने के लिये वो अब अपने हाथ पैर भी चलाने लगी थी। मगर मैंने उसको फिर से दीवार से सटा लिया और धीरे धीरे उसकी चुत की फांकों को रगड़ता मसलता रहा जिससे कुछ ही देर में उसकी साँसे फिर से भारी हो आई...

पिंकी फिर से उत्तेजित होने लगी। पर मैं अब कुछ आगे करता तभी...
"कहा रह गये, आज सोना नही है क्या..?" हमारे घर की तरफ से मेरी भाभी की आवाज सुनाई दी।

भाभी की आवाज सुनते ही पिंकी अब तुरंत मुझसे छुड़वा कर अलग हो गई और जल्दी जल्दी नीचे छत पर गिरे हुए अपने कपड़े उठाने लगी।

मुझे अब कोई जल्दी नही थी इसलिये पिँकी को छोङ कर मै अब हमारे घर की छत पर आ गया और ऊपर से ही भाभी को आवाज देकर बताया की थोड़ी देर में आ रहा हूँ।

मगर भाभी को बताकर जब तक मै अब वापस पिंकी के घर की छत पर आया तब तक पिंकी कपड़े उठाकर नीचे जा चुकी थी।

सच कह रहा हूँ, उस समय मुझे अपनी भाभी पर बहुत गुस्सा आ रहा था… पर अब कर भी क्या सकता था। इसलिये मन मसोस कर मै वापस नीचे भाभी के कमरे मे आ गया।

मेरी भाभी शायद मेरा और पिँकी का खेल देखकर गयी थी इसलिये...
"क्या चल रहा है ये सब..?" अब नीचे आते ही भाभी की पुछताछ शुरु हो गयी।..

वैसे भी मेरी भाभी से कुछ छुपा नही था इसलिये मैंने भाभी को सारी बात बता दी।

" हाँ.. हाँ...मुझे पता है,अब तुम यही सब करोगे, इसलिये तो बुला लिया...! भाभी ने‌ गुस्सा सा करते हुवे कहा।

पर क्यो...?" मुझे भाभी पर गुस्सा आ रहा था इसलिये खिझते हुवे पुछा।

"ऊपर छत पर कोई देख लेगा तो क्या होगा..?
थोड़ा इन्तजार कर लो, जब मम्मी पापा शहर जायेंगे तब कर लेना ना...?" भाभी ने मुझसे शिकायत के लहजे मे कहा और मेरे होठो को अपने मुँह मे भरकर चुशना शुरु कर दिया..

भाभी मेरा और पिँकी का खेल देखकर गयी थी इसलिये उन्हे भी अब ठरक चढ आई थी। मुझे भी उत्तेजना तो चढ़ी ही थी साथ ही भाभी पर गुस्सा भी आ रहा था इसलिये उस रात मैंने सारा गुस्सा भाभी को बुरी तरह से चोद कर उतारा जिससे भाभी‌ को मजा तो आया पर सुबह तक उनकी हालत खराब हो गयी...
 
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बहुत शानदार ओर मस्त अपडेट है । पढने में मजा आ रहा है
 
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