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Romance पिँकी...

Chutphar

Mahesh Kumar
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जैसा की आपने पढा मेरी भाभी ने मुझे व पिँकी को बहुत ही अच्छा मौका दिला‌ दिया था और मैने‌ भी मौके‌ का फायदा उठा पिँकी को एक बार अपने मुँह से रशखलित कर लिया था। रसखलित के बाद पिँकी अब अपने घर जाना चाहती थी थी मगर...

मैंने पिंकी को फिर से बिस्तर पर गिरा लिया, पहले तो उसके गालों को चूमा और फिर धीरे धीर होंठों पर आ गया...

पिंकी अब और भी जोर से कसमसाने लगी, उसका मुँह मैंने अपने होंठों से बन्द कर रखा था इसलिये वो अब...
"उ्उउउ… गूँगूँगूँ… ऊऊऊ…
उ्उउउ… गूँगूँगूँ… ऊऊऊ…"की आवाज करने लगी।

कुछ देर पिंकी के होंठों का रसपान करने के बाद मैंने उसके होंठों को तो छोड़ दिया और गर्दन पर से होते हुए उसके कच्चे उभारो‌ की तरफ बढ़‌ गया..

होंठों के आजाद होते ही पिंकी अब फिर से...
"ओय..छोड़…ना…
हो गया ना…
अब बस भी कर… प्लीज…
हो तो गया…
अब मान भी जा ना… प्लीज…"कहते हुए वो उठने की कोशिश करने लगी...

पिंकी का इशारा खुद की तरफ था। वो कहना चाह रही थी कि उसका काम हो गया है। मगर मैं तो अभी प्यासा ही था इसलिये..

"यार मै भी तो हुँ...!,
मेरे बारे मे भी तो कुछ सोचो..?" मैने उसकी आँखो मे देखते हुवे कहा।

नहीईइश्श्.., बस अब,
भाभी आ जायेगी..!" पिँकी ने मेरी बाँहो मे कसमसाते हुवे कहा।

"नही आयेगी..! अभी उन्हे टाईम लगेगा..
थोङी देर, बस थोङी देर तो रुक ना.. प्लीईज..!" ये कहते‌ हुवे मैं अब उसकी बगल से उठकर अपने एक हाथ व एक पैर से पिँकी को दबाकर उसके उपर आ गया..

पिँकी का नाजुक छुईमुई सा बदन मेरे भार से दब गया था इसलिये मेरे उसके उपर आते ही से ..
"ऊऊ.ह्ह्ह्..ब्.ब्.बस..अब..
जल्दी कर मुझे डर लग रहा है..
भाभी आ जायेगी..." उसने मेरे नीचे लेट लेटे ही कसमसाते हुवे कहा।

तब तक मेरे होंठ भी पिंकी के उभारो पर पहुँच गये थे इसलिये मैं उसके एक निप्पल को मुँह में भरकर गप्प कर गया, साथ ही उसके दुसरे उभार को अपनी हथेली मे दबोच लिया...

मेरे रिक्वेस्ट करने से पिँकी भी अब कुछ शाँत हो गयी थी, उपर से मैं भी बारी बारी से उसके दोनों नन्हे उभारो को भींच रहा था, मसल रहा था, तो साथ ही अपनी जीभ से भी उसके निप्पलों को चूम‌-चाट रहा था जिससे कुछ ही देर मे पिंकी की ‌साँसें अब फिर से गर्म हो गयी...
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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पिँकी मुझसे छुङाने की तो अब कोशिश नही कर रही तयी मगर अब भी यही दोहरा रही थी....

"छोड़ मुझे… अब बस भी कर… प्लीज…
भाभी आ जायेगी… जल्दी कर..
अब मान भी जा ना… प्लीज…"लेकिन मैंने अपने हाथो का जोर कम नहीं किया, मै ऐसे ही उसके दोनों उभारो को रगङता मसलता रहा...

साथ ही मेरा जो दुसरा हाथ उसके नन्हे उभारो को मसक‌ रहा था, उसे धीरे से पिंकी के मखमली पेट पर से सहलाते हुए उसकी जाँघों के जोड़ पर पहुंचा दिया...

लेकि‍न मेरा हाथ उसकी चुत को छुये उससे पहले ही पिंकी ने अपनी जाँघों को भींच कर अपनी चुत को छुपा लिया और दोनो हाथो से मेरे हाथ को पकङके..

"इइईईई..श्श्श्श्, ब्.बस्स्..अब.." पिँकी ने सिसकते हुवे कहा।

"क्या..है..? हटा ना...!" मैने उसके हाथ से अपने हाथ को छुङाते हुवे कहा और फिर से अपने हाथ को उसकी जाँघो के जोङ पर रख दिया..

पिँकी ने मेरा हाथ तो छोङ दिया था मगर अपनी जाँघो को वो अभी भी जोरो से भीँचे थी इसलिये..

"देखने तो दे..." मैने अपना हाथ उसकी जाँघो के बीच घुसाने की कोशिश करते हुवे कहा मगर पिँकी ने तो जैसे मेरी बात को सुनी ही नही, वो वैसे ही अपनी जाँघो को भीँचे लेटी रही..

"देखने तो दे..,
ओय्....
देखने दे ना एक बार.." मैने अब थोङा जबरदस्ती अपनी उंगलियाँ उसकी जाँघो के बीच घुसाते हुवे कहा जिससे पिँकी ने कुछ कहा नही बस..

"ऊऊह्ह्ह्ह्.." हल्का सा कसमसाते हुवे थोङा सा अपनी जाँघो को खोल दिया..

मैने भी अब पहले तो अपनी उंगलियाँ फिर धीरे धीरे करके पूरा हाथ ही उसकी जाँघों के बीच घुसा दिया और प्रेमरस से भीगी उसकी नन्ही सी मुनिया को अपनी हथेली मे भर लिया..

"ऊऊह्ह्ह्ह्..ब्.बस्स्..अब..
यहाँ नही..
तु जल्दी कर ले.." पिँकी ने सिसकते हुवे फिर से कहा, मगर मै रुका नही.. मैंने उसकी कच्ची कुंवारी चुत को हथेली मे भर के अब कभी सहलाना तो कभी जोर जोर मसलना शुरु कर दिया..

मेरी उंगलियाँ भी चुत की दोनों फांकों के बीच उसके प्रवेशद्वार पर अब कभी गोल गोल घूम रही थी तो कभी चुत की फांकों को सहला रही थी‌ जिससे कुछ ही देर मे पिंकी की सांसें अब गहरी व तेज होती चली गयी।

पिँकी को भी अब फिर से मजा आने लगा था इसलिये उसने अब अपनी आँखें बंद कर ली और मुँह से हल्की हल्की सिसकारियाँ सी भरने लगी।

मैं उसके चेहरे की तरफ ही देख ‌रहा था, वो अब बिल्कुल शांत सी हो गई थी, मगर जैसे जैसे मेरी उंगलियाँ उसकी नन्ही मुनिया के साथ खेल रही थी वैसे वैसे उसके चेहरे की भाव-भंगिमायें लगातार बदल रही थी।

पिंकी का चेहरा देखते देखते मेरा हाथ जो उसकी चुत पर हरकत कर रहा था वो अब रुक गया, मेरे हाथ के रुकते ही पिंकी ने भी अब थोड़ी सी आँखें खोल कर मेरी ओर देखा..

मै उसके चेहरे की ओर ही देख रहा था जिससे पिँकी की नजरें अब सीधा ही मेरी नजरों से टकराई। मेरे ऐसे देखने से पिँकी शरमा गयी थी इसलिये वो तुरन्त अपनी गर्दन घुमा अब दुसरी ओर देखने लगी और..
"बस अब..
जल्दी कर
मुझे डर लग रहा है.." उसने दुसरी ओर देखते देखते ही कहा।

मैं भी उसके उभारो को छोड़ कर अब नीचे की तरफ बढ़ गया, मैंने पहले तो उसके केले के पत्ते जैसे चिकने पेट पे चुम्बनों की बारिश की और फिर जीभ की लौ को उसकी गहरी नाभि पर गोल गोल घुमाने लगा..

मेरा एक हाथ अभी भी पिँकी की चुत पर ही था जिससे मैं अपनी बीच वाली उंगली उसके प्रवेशद्वार पर हल्के हल्के गोल गोल घुमाया फिर हल्के उसे अन्दर की ओर दबा दिया..

मैंने बस हल्के से दबाया ही था अन्दर डालने की कोशिश किये बिना, मगर उसकी चुत इतनी गीली हो चुकी थीं की मेरी उंगली का एक पौरा, बल्कि पौरे का भी आधा घुस गया और पिंकी के मुँह से...

"इईईई.श्श्श्श्श्...अ्आ्आ्.ह्ह्ह्…" की एक मिठी सित्कार फुट पङी...
 
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Chutphar

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मेरे होंठ भी अब पिंकी की नाभि से बाहर निकल के उसकी चुत के ऊपरी भाग तक आ पहुंचे थे, वो सोच रही थी कि शायद अब मैं ‘नीचे’ चुम्बन लूँगा लेकिन मैंने ऐसा नही किया…

वैसे तो वो पुरी उत्तेजित थी मगर मै उसे तरसाकर उसकी तङप देखना चाहता था। इसलिये मैने बस एक बार उसकी चुत के चारों ओर चूमा और फिर सीधा नीचे जाँघों के एकदम ऊपरी भाग पर उतर आया...

मेरी इस हरकते पर पिंकी अब सिसक सी उठी। उसे मेरे होठो की ये दुरी बर्दाश्त नही हो रही थी इसलिये उसने अब खुद ही अपने नितम्बों को खिसका कर अपनी नन्ही मुनिया को मेरे होंठों से लगा दिया..

पिँकी की इस तङप से पता चल रहा था की वो अब पुरी तरह से तैयार थी मगर फिर भी अपनी तसल्ली के लिये मैं अब उसकी चुत को जोरो से चूमने चाटने लगा..

पिँकी की चुत को चुमते चाटते मेरी मंझली उंगली भी अब तेजी से उसकी चुत की फांकों को, तो कभी उसके प्रवेशद्वार पर गोल गोल रगड़ दे रही थी... मारे मस्ती के पिंकी की तो अब हालत ही खराब हो गयी..

मस्ती मे वो अब आँखे मिचे सिसक रही थी तङप रही थी इसलिये एक पल के लिए मैंने अब उसे छोड़ा और झट से अपने सारे कपड़े उतार कर बिल्कुल नंगा हो गया।

पिंकी ने मस्ती के मारे आँखें बंद कर रखी थी मगर मेरे छोड़ने पर उसने अपनी आँखें खोल ली। उसकी नजरे अब एक बार तो मेरी नजरो से टकराई फिर मेरे नँगे बदन पर होते हुवे मेरे तन्नाये मुसल लण्ड पर आकर ठहर गयी।

पिंकी जिन्दगी मे शायद पहली बार लण्ड देख रही थी। इसलिये उसकी आँखों में अब आश्चर्य के से भाव उभर आये और वो अब बस आँखें फाङे फाङे मेरे तन्नाये मूसल लण्ड को ही देखती रह गयी..

मैने भी मौका देख पिँकी के एक हाथ को पकङ के अब मेरे लण्ड पर रखवा दिया... मगर जैसे ही उसका हाथ मेरे गर्म‌ गर्म‌ लण्ड से स्पर्श हुवा..
"ईई..ईईई..ईईईई.. श्श्
अ्.अ्.ओ्.ओ्.ओय्य्य्.. ह्ह्ट.ट्ट.." कहकर पिंकी ने ऐसे झटके से हाथ हटा लिया जैसे कोई अंगारा छू लिया हो…

लेकिन मैंने मजबूती से फिर अपने हाथ से उसके हाथ को पकड़ के रखा और अबकी बार कस के मुठी सी बंधवा दी‌‌ जिससे वो..
"ईई..ईईई..ईईईई.. श्श्
अ्.अ्.ओ्.ओ्.ओय्य्य्..
य्.य्. ऐ.ये.." कहकर अबकी बार उसने नहीं छोड़ा। पर ज्यादा भी नही, उसने कुछ देर तक तो उसे पकड़े रखा मगर मेरे उसके हाथ को छोड़ते ही पिंकी ने भी मेरे लण्ड को फिर से छोड़ दिया।

मैं भी अब पिंकी की जाँघों के बीच आ गया और फिर से उसके नन्हे कच्चे उभारो के साथ खेलने लगा। मेरा तन्नाया जोश में पागल मूसल लण्ड तो पिंकी की चुत में घुसने के लिए अब बेताब सा हो रहा था मगर मैंने घुसाया नहीं बल्कि एक हाथ से उसे पकड़ कर पिंकी की चुत पर घीसना शुरु कर दिया...

"ओय्… य्.ये… न्.,न्.नहीं…
नहीं.ईई...क्.क्.क्या कर रहा है…
य्.ये सब नहीं प्लीईईज…
नहीं… अब बस कर…" पिंकी ने घबराई सी आवाज मे अब एक बार तो कहा मगर फिर उत्तेजना के मारे अपने आप ही उसकी आँखे फिर से बंद होती चली गयी...

पिंकी की चुत काफी गीली हो रही थी और उस पर मेरा लण्ड भी अब अपने आप फिसल रहा था। मै भी उसे बस पिँकी की चुत के मुंहाने पर, तो कभी चुत के दाने पर रगड़ रहा था...

पिँकी को भी अब मजा आ रहा था...इसलिये आनन्द के मारे वो अब खुद को रोक नही सकी और उसने खुद ही अपनी टांगें फैला अपने कूल्हों को मेरे लण्ड की तर्ज पर हिलाना शुरु कर दिया...

उसके मुँह से भी अब फिर से सिसकारियाँ सी फूटने लगी थी पर मै अब कुछ देर तो ऐसे ही पिंकी की चुत को अपने लण्ड से रगड़ता रहा और फिर एक पल के लिए मैं रुक कर उसके चेहरे की तरफ देखने लगा..

पिँकी अभी भी आँखें मिचे थी और उसका चेहरा उत्तेजना से एकदम गुलाबी लग रहा था। निप्पल एकदम तन्नाये खड़े थे तो वो अपनी चुत को भी अब हौले हौले जैसे हिला सी रही थी, या फिर पता नही उत्तेजना के मारे चुत अपने आप ही हील रही थी..
 
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पिंकी को देखकर लग रहा था की वो अब विरोध करने की स्थिति में नहीं है इसलिये मैं एक पल को ठहरा… फिर उसी के साथ एक हाथ से उसकी कमर को कस के पकड़ लिया और दूसरे हाथ से अपने लण्ड को उसकी चुत के मुहाने पर रखकर पूरी ताकत से एक जोरदार धक्का लगा दिया...

अपनी नन्ही मुनिया पर आने वाले खतरे से अनजान पिँकी अभी तक बिल्कुल शाँत थी। मगर अब जैसे ही मैने धक्का मारा उसके मुँह से
"अ्अ्.आ्आ्आ्.ह्ह्ह्ह्ह्… म्मममीईईई…
अ्आ्आ्… ह्ह्ह्ह्ह् आ्ह्ह्ह्…" की एक हृदय विदारक चीख निकल गयी और मेरा औसत माप का लण्ड उस कच्ची कली की कसी हुई तंग गुफा में बिल्कुल थोड़ा सा अन्दर घुसकर अटक गया।

पिंकी ने दोनों हाथों से मेरी कमर को भी अब कस के जकङ लिया था, वो...
"अ्. ओओय्य्य्… क्क्क.क्या कर रहा‌…??
बहुत दुख रहा है…
प्लीज..छोड़ मुझे…
ओओय्य्ह्…छोड़ दे बस…"कराहते हुवे उठने का प्रयास करने लगी लेकिन मैंने उसे दबाये रखा।

सच मे पिंकी की चुत इतनी तंग व संकरी थी कि चुत की दीवारों में मेरे लण्ड का सुपाङा फंस सा गया था।‌इसलिये मैंने अब थोड़ा जोर का झटका देने की सोची...

क्योंकि एक‌‌ तो पिंकी ने दोनों हाथों से मेरी कमर को पकड़ रखा था और दूसरा मुझे पता था कि जिस तरह से उसकी चुत की दिवारो‌ ने मेरे लण्ड के सुपाङे को जकड़ा हुआ है उस अवस्था में धीरे धीरे लण्ड को अन्दर करना बहुत मुश्किल होगा।

मैंने अपनी सांस रोकी और एक जोरदार धक्का उसकी चूत पर लगा दिया… जिससे पिंकी की चुत से तो अब 'फच्चक" की एक हल्की सी आवाज़ आई, मगर पिंकी के मुँह से जोरो की...
"अ्आ्आ्… ह्ह्ह्ह्ह्.हहह…
म्म्म्ममम्मीईई ईई… अ्आ्आ्.आ्आ्..ह्ह…"की चीख ही निकल गई।

उसकी चीख ने मुझे थोड़ा डरा दिया था इसलिये मैं अब रुक गया। मैंने झुक कर देखा तो मेरा आधा लंड पिंकी की चूत में समाया हुआ था और उसकी चुत से खून का फव्वारा सा फूट रहा था।

शायद पिंकी के कौमार्य की झिल्ली के साथ साथ उसकी चुत की नाजुक फांकें भी फट गई थी, और ऐसा होता भी क्यों ना… मेरे मुसल लण्ड के सुपाड़े के समान तो उसकी सारी की सारी ही चुत थी।

मैं अब उसके चेहरे की तरफ देखने लगा, दर्द से वो दोहरी हो गई थी और उसकी आँखों से आँसू निकल आये थे। दर्द के कारण उसने मेरी कमर को इतनी मजबूती से जकड़ लिया था कि उसके नाखून अब मेरी कमर में चुभ रहे थे।

मैंने भी अब अपने लण्ड को बाहर खींच लिया मगर उसे चुत के प्रवेशद्वार पर अब भी लगाये रखा, साथ ही पिंकी को सांत्वना देने के लिये उसके चेहरे को‌ हाथ से सहलाते हुए मै उसके गालों को भी चूमने चाटने लगा जिससे पिंकी को कुछ राहत मिली और मेरी कमर पर उसकी पकड़ कुछ ढीली हो गई।

जब पिंकी का दर्द कम हो गया तो उसने अपने शरीर को भी कुछ ढीला छोड़ दिया था… और जैसे ही उसने अपने शरीर को ढीला छोड़ा, मैंने एक बार फिर से जोरदार धक्का लगा दिया…

"अ्आ्आ्… इईईई.ईईईई…
म्म्म्ममम्मीईईईई… अआआआ.. ह्ह…" कह कर पिँकी तो जैसे अब छटपटाने ही उठी। गुस्से गुस्से मे उसने अब मै जिस हाथ से उसके चेहरे को सहला रहा था उसे इतनी जोर से काट लिया कि मेरे हाथ का मांस ही नोच डाला।

मेरे हाथ में दर्द तो हो रहा था मगर वो दर्द उत्तेजना के जोश व कमसिन कुँवारी पिंकी के कौमार्य के आगे कुछ भी नहीं था‌ इसलिये मैं अब रुका नहीं और अपने लण्ड को थोड़ा सा वापस खीँचकर जल्दी से एक धक्का और लगा दिया...

इस बार मेरे लण्ड का लगभग आधे ज्यादा भाग पिंकी की चुत में समा गया था और पिँकी ने अब बस.... "आ्अ्.ह्ह्ह्ह… ममम्मम्मीईईई… ईईई… म्म्म्.." इतना बोलकर अपना सिर बिस्तर पर गिरा दिया।

मेरा ध्यान अब बरबस ही उस पर चला गया, मैंने देखा कि पिंकी की आँखें सफ़ेद होकर बाहर उबल आई थीं, उसकी सांसें जैसे अटक गई थी और वो बेहोश होने लगी थी।

मैं थोड़ा डरकर रुक गया और उसके गालों पर अपने हाथ से थपकी देने लगा… थपकी देने से पिंकी ने अपनी आँखें धीरे से खोल ली और मेरी तरफ मासूमियत से देखते हुए...
"अओय… छोड़ दे बस्स्… छोड़ दे मुझे…
मुझसे ये नहीं होगा…’ कहकर बिलखने लगी।

मुझे उस पर दया आ गई, मैंने उसे पुचकारते हुए उसके होंठों को चूमा और...
"बस मेरी जान, जो होना था वो हो चुका है,
अब तुम्हें और तकलीफ नहीं होगी..."

"नहीं… प्लीज इसे बाहर निकाल ले…
बहुत दुख रहा है…
फिर किसी दिन कर लेना…
प्लीईज बात मान…
प्प्लीईज… मैं मर जाऊँगी…" पिंकी ने टूटे हुए शब्दों में बिलखते हुए कहा।

पिंकी को देखकर मुझे उस पर तरस आ रहा था मगर यह दर्द पिंकी को कभी ना कभी तो सहन करना ही था। फर्क बस इतना था की मेरा मुसल उसकी मुनिया से कुछ ज्यादा बङा था।

एक बार तो मैंने भी सोचा कि उसकी बात मान लूँ और उसे छोड़ दूँ… फिर मेरे दिमाग में ख्याल आया कि अगर आज इसे छोड़ दिया तो फिर यह पट्ठी कभी भी मेरा लण्ड लेने को तैयार नहीं होगी, इसलिए आज इसे लण्ड का असली मज़ा देना ही होगा ताकि यह मेरी गुलाम बन जाए।
 

Chutphar

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पिंकी के हाथ अब भी मेरी कमर पर कसे हुए थे और वो दर्द से कराह रही थी। उसके मुँह से घुटी घुटी और हल्की कराहें निकल रही थी इसलिये कुछ देर तक तो बीना कोई हरकत किये मैं ऐसे ही पड़ा रहा…

फिर कुछ देर बाद जब पिंकी कुछ सामान्य हुई तो, मैंने ऐसे ही पिंकी के बदन पर लेटे लेटे अपने शरीर को धीरे धीरे आगे पीछे हिलाना शुरु कर दिया...

मेरे अब आगे पीछे होने से मेरा लण्ड ज्यादा तो नहीं बस थोड़ा सा ही उसकी चुत में अन्दर बाहर होने लगा था जिससे पिँकी अब फिर से छटपटाने लगी। मुझे रोकने के लिये वो अब मेरी कमर को भी नाखूनों से नोचने लगी थी मगर फिर भी मैं रुका नहीं..

वैसे तो मैं धक्के भी लगा सकता था मगर पिंकी की छोटी सी कुँवारी चुत पहली बार मेरे मूसल लण्ड के धक्के शायद सहन नहीं कर पाती इसलिये मैं पहले उसकी चुत में अपने लण्ड के लिये जगह बनाना चाह रहा था‌।

इससे पहले मैंने सुमन दीदी की कुवांरी चुत को भी भोगा था। मगर पिंकी की चुत सुमन दीदी के मुकाबले मे‌ बहुत ही ज्याद तंग व संकरी थी, मुझे भी अपने लण्ड के सुपारे में जलन व दर्द महसूस हो रहा था...

शायद मेरे लण्ड का सुपाङा भी काफी जगह से छिल व कट गया था। सच मे पिंकी की चुत इतनी तँग व सख्त थी कि मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे की मेरा लण्ड बहुत ही तँग व सँकरी जगह में फँस गया हो जिसे हिलाना भी मेरे लिय मुश्किल हो रहा था।

पर मै वैसे ही धीरे धीरे अपने शरीर को आगे पीछे करते हुए उसकी छोटी सी कच्ची कुंवारी चुत में अपने लण्ड के लिये जगह बनाने में जुटा रहा.. साथ ही उसे तसल्ली देने के लिये मैने अब उसके होंठों को अपने मुँह में भर लिया और बड़े ही प्यार से उन्हें धीरे धीरे चूसने लगा।

मेरे आगे पीछे होने से मेरा लण्ड तो पिंकी की चुत के अन्दर बाहर हो ही रहा था, साथ ही मेरा शरीर भी पिंकी के नँगे बदन को मसल रहा था। अब पहले तो कुछ देर पिंकी ऐसे ही छटपटाती रही।मगर फिर धीरे धीरे वो शाँत होने लगी।

शायद मेरे लण्ड ने पिँकी की चुत मे अब थोङी बहुत तो जगह बना ही ली थी इसलिये मैंन अब शरीर को थोड़ा जोर से आगे पीछे हिलाकर लण्ड को और ज्यादा चुत मे अन्दर बाहर करना शुरु कर दिया..तो साथ ही पिँकी के संवेदनशील अंगों को भी चूम-चाटकर उसे अब फिर से कामोत्तेजित करने की भी कोशिश शुर कर दी..

मेरे आगे पीछे होने पर मेरी छाती से पिंकी के नन्हे उभार तो चटनी की तरह पिस रहे ही रहे थे, साथ ही मैंने अब अपने होंठों व जीभ से भी उसके गालों को तो, कभी उसके कानो की लौ को सहलाना शुरु कर दिया‌ जिससे धीरे धीरे अब पिंकी की साँसें भी भारी होने लगी...

पिँकी के बदन में भी मुझे अब कुछ गर्मी सी महसूस हो रही थी। शायद वो भी अब फिर से उत्तेजित होने लगी थी इसलिये मेरी कमर पर भी उसकी पकड़ कुछ हल्की हो गई थी।

मैं भी अब वापस उसके होंठों पर आ गया और फिर से उन्हें धीरे धीरे चूसने लगा.. पिंकी को भी शायद अब मजा आने लगा था इसलिये उसने अपनी आँखें बन्द करके बदन को ढीला छोड़ दिया...

जितना मेरा लण्ड पिंकी की चुत में गया था, उतनी जगह तो उसने शायद चुत में अब बना ही ली थी, इसलिये मैं अब पिंकी के बदन पर से उठकर अपने हाथों के भार पर आ गया और धीरे धीरे अपनी कमर से धक्के लगाने शुरू कर दिये...

पिंकी को अब फिर से शायद कुछ पीड़ा हुई होगी इसलिये अपने बदन‌ को‌ कङा करके वो एक बार फिर से कसमसाई, उसने अपने होंठों को मुझसे छुड़वा लिया और...
"अ्आ्आ्.ह्ह्ह्ह्ह्.. अ्..अ्…ओ्य्…
दुख हो रहा है…
धीरे्…कर्…ना्… अ्आगआ्…ह्ह्हहह..
अब बस्सस कर…
अआआ… ह्ह्हहह.. दुख रहा है..!" उसने कराहते व कँपकपाती सी आवाज में कहा।.

मगर मैं बिना रुके ऐसे ही धीरे धीरे कमर से धक्के लगाता रहा और पिँकी को उत्तेजित करने के लिये उसके बदन को रगड़ते मसलते चूमता चाटता रहा जिससे कुछ देर बाद ही पिंकी फिर से शाँत हो गयी और अपने बदन को ढीला छोङ दिया...

 
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