जैसा की आपने पढा मैने उस रात छत पर पिंकी की चूत चाट कर उसे पूरा मजा दिया था। मै तो उसे उस रात ही चोद भी लेता मगर मेरी भाभी ने काम बिगाङ दिया था। अब उसके आगे...
मेरा काम पिँकी के साथ अब बन ही गया था पर उसे चोदने का कोई अच्छा मौका नही मिल रहा था..
क्योंकि पिँकी जब मेरे घर पढने के लिये आती थी उस समय मेरे मम्मी पापा घर पर रहते थे।
मेरी मम्मी तो नही पर मेरे पापा काफी बार हमारे पास उस कमरे मे आ जाते थे। और जैसा की मेरी भाभी ने बताया पहली पहली बार उसे छत पर चोदना भी ठीक नही था।
वैसे पिँकी तो भी इन सब के लिये अब तैयार ही थी पर मुझे आगे कुछ करने से रोकने के लिये उसके पास ये अच्छे बहाने होते थे की "कोई आ जायेगा..?",
"कोई देख लेगा..?" पर उस रात के दो दिन बाद ही मेरी भाभी ने मुझे एक सुनहरा मौका दिला दिया...
आपको तो पता ही है कि मेरी मम्मी की तबियत खराब रहती है और उन्हें हर महीने डॉक्टर से दिखाने के लिये दूसरे शहर जाना होता है। उस दिन भी मम्मी के इलाज के लिये मेरे मम्मी पापा शहर गये हुए थे और घर में सिर्फ मैं और मेरी भाभी ही थे।
दोपहर को जब पिंकी पढ़ने के लिये हमारे घर आई तो उस दिन मेरी भाभी ने भी बाजार में कुछ काम होने का बहाना बना लिया और मुझे व पिंकी को अपने आप ही पढ़ाई करने के लिये बोलकर वो घर से बाहर चली गई।
भाभी के जाते ही सबसे पहले तो मैंने अब जल्दी से कमरे का दरवाजा अन्दर से बन्द किया ताकी पिँकी के पास मुझे रोकने का कोई बाहाना ना रहे...
कमरे का दरवाजा बन्द होते ही पिंकी अब थोड़ा घबरा सी गई और...
"य..य..ये दरवाजा क्यों बन्द कर दिया…?
मैं भी अपने घर जा रही हूँ…!
मुझे नहीं पढ़ना है तेरे साथ…!" उसने शरमाते व झिझकते हुए कहा और उठकर खङी हो गयी।
पिंकी की घबराहट भी जायज ही थी क्योंकि उसे पता था कि अकेले में मैं उसके साथ क्या-क्या करने वाला हूँ, पर साथ ही उसकी कही ना कही ये उसकी इच्छा भी थी इसलिये वो वहाँ से जाने की इतनी अधिक भी जल्दी नही कर रही थी..
"रुक तो सही,
कहाँ जा रही है..?" वो बस अपने घर जाने के लिये अब मुड़ी ही थी कि मैंने उसे पीछे से पकड़ लिया और हौले हौले से उसके गोरे मखमली गालों को चूमने लगा…
"छोड़ मुझे…
छोड़…
छोड़… मुझे नहीं पढ़ना है तेरे साथ…"पिंकी अब ना-नुकर तो कर रही मगर मैंने उसे खींचकर बिस्तर पर गिरा लिया और...
"रुक तो सही,
कहाँ जा रही है..?" मैने फिर से उसके गालो को चुमते हुवे कहा
"नहीई..
ऊऊऊ.ह्ह्ह्..त्..
तु..शरारत करता है.. मुझे नही रुकना..!" पिंकी ने अपना सिर इधर उधर हिलाकर अब मेरे चूम्बन से बचने की भी कोशिश करते हुवे कहा, मगर मैंने उसे छोड़ा नहीं...
हमारे बीच इतना कुछ हो जाने के बाद भी पिंकी काफी घबरा व शरमा रही थी। ऐसा नही था की पिँकी को मजा नही आता था, मजा तो उसे भी आता था मगर पहली पहली बार ये सब करते जो लाज शरम व झिझक रहती है उसके चलते वो घबराती थी।
पिंकी एक वो किशोरी थी जिसने इस यौवन सुख का नया नया स्वाद बस हल्का सा ही चखा था। और मैं भी तो हर बार उसको इस सुख के नये नये अनुभवों से परिचित करवा रहा था इसलिये उसका शरमाना व झिझकना जायज भी था।
मेरा काम पिँकी के साथ अब बन ही गया था पर उसे चोदने का कोई अच्छा मौका नही मिल रहा था..
क्योंकि पिँकी जब मेरे घर पढने के लिये आती थी उस समय मेरे मम्मी पापा घर पर रहते थे।
मेरी मम्मी तो नही पर मेरे पापा काफी बार हमारे पास उस कमरे मे आ जाते थे। और जैसा की मेरी भाभी ने बताया पहली पहली बार उसे छत पर चोदना भी ठीक नही था।
वैसे पिँकी तो भी इन सब के लिये अब तैयार ही थी पर मुझे आगे कुछ करने से रोकने के लिये उसके पास ये अच्छे बहाने होते थे की "कोई आ जायेगा..?",
"कोई देख लेगा..?" पर उस रात के दो दिन बाद ही मेरी भाभी ने मुझे एक सुनहरा मौका दिला दिया...
आपको तो पता ही है कि मेरी मम्मी की तबियत खराब रहती है और उन्हें हर महीने डॉक्टर से दिखाने के लिये दूसरे शहर जाना होता है। उस दिन भी मम्मी के इलाज के लिये मेरे मम्मी पापा शहर गये हुए थे और घर में सिर्फ मैं और मेरी भाभी ही थे।
दोपहर को जब पिंकी पढ़ने के लिये हमारे घर आई तो उस दिन मेरी भाभी ने भी बाजार में कुछ काम होने का बहाना बना लिया और मुझे व पिंकी को अपने आप ही पढ़ाई करने के लिये बोलकर वो घर से बाहर चली गई।
भाभी के जाते ही सबसे पहले तो मैंने अब जल्दी से कमरे का दरवाजा अन्दर से बन्द किया ताकी पिँकी के पास मुझे रोकने का कोई बाहाना ना रहे...
कमरे का दरवाजा बन्द होते ही पिंकी अब थोड़ा घबरा सी गई और...
"य..य..ये दरवाजा क्यों बन्द कर दिया…?
मैं भी अपने घर जा रही हूँ…!
मुझे नहीं पढ़ना है तेरे साथ…!" उसने शरमाते व झिझकते हुए कहा और उठकर खङी हो गयी।
पिंकी की घबराहट भी जायज ही थी क्योंकि उसे पता था कि अकेले में मैं उसके साथ क्या-क्या करने वाला हूँ, पर साथ ही उसकी कही ना कही ये उसकी इच्छा भी थी इसलिये वो वहाँ से जाने की इतनी अधिक भी जल्दी नही कर रही थी..
"रुक तो सही,
कहाँ जा रही है..?" वो बस अपने घर जाने के लिये अब मुड़ी ही थी कि मैंने उसे पीछे से पकड़ लिया और हौले हौले से उसके गोरे मखमली गालों को चूमने लगा…
"छोड़ मुझे…
छोड़…
छोड़… मुझे नहीं पढ़ना है तेरे साथ…"पिंकी अब ना-नुकर तो कर रही मगर मैंने उसे खींचकर बिस्तर पर गिरा लिया और...
"रुक तो सही,
कहाँ जा रही है..?" मैने फिर से उसके गालो को चुमते हुवे कहा
"नहीई..
ऊऊऊ.ह्ह्ह्..त्..
तु..शरारत करता है.. मुझे नही रुकना..!" पिंकी ने अपना सिर इधर उधर हिलाकर अब मेरे चूम्बन से बचने की भी कोशिश करते हुवे कहा, मगर मैंने उसे छोड़ा नहीं...
हमारे बीच इतना कुछ हो जाने के बाद भी पिंकी काफी घबरा व शरमा रही थी। ऐसा नही था की पिँकी को मजा नही आता था, मजा तो उसे भी आता था मगर पहली पहली बार ये सब करते जो लाज शरम व झिझक रहती है उसके चलते वो घबराती थी।
पिंकी एक वो किशोरी थी जिसने इस यौवन सुख का नया नया स्वाद बस हल्का सा ही चखा था। और मैं भी तो हर बार उसको इस सुख के नये नये अनुभवों से परिचित करवा रहा था इसलिये उसका शरमाना व झिझकना जायज भी था।