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Romance पिँकी...

Chutphar

Mahesh Kumar
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जैसा की आपने पढा मैने उस रात छत पर पिंकी की चूत चाट कर उसे पूरा मजा दिया था। मै तो उसे उस रात ही चोद भी लेता मगर मेरी भाभी ने काम बिगाङ दिया था। अब उसके आगे...

मेरा काम पिँकी के साथ अब बन ही गया था पर उसे चोदने का कोई अच्छा मौका नही मिल रहा था..
क्योंकि पिँकी जब मेरे घर पढने के लिये आती थी उस समय मेरे मम्मी पापा घर पर रहते थे।

मेरी मम्मी तो नही पर मेरे पापा काफी बार हमारे पास उस कमरे मे आ जाते थे। और जैसा की मेरी भाभी ने बताया पहली पहली बार उसे छत पर चोदना भी ठीक नही था।

वैसे पिँकी तो भी इन सब के लिये अब तैयार ही थी पर मुझे आगे कुछ करने से रोकने के लिये उसके पास ये अच्छे बहाने होते थे की "कोई आ जायेगा..?",
"कोई देख लेगा..?" पर उस रात के दो दिन बाद ही मेरी भाभी ने मुझे एक सुनहरा मौका दिला दिया...

आपको तो पता ही है कि मेरी मम्मी की तबियत खराब रहती है और उन्हें हर महीने डॉक्टर से दिखाने के लिये दूसरे शहर जाना होता है। उस दिन भी मम्मी के इलाज के लिये मेरे मम्मी पापा शहर गये हुए थे और घर में सिर्फ मैं और मेरी भाभी ही थे।

दोपहर को जब पिंकी पढ़ने के लिये हमारे घर आई तो उस दिन मेरी भाभी ने भी बाजार में कुछ काम होने का बहाना बना लिया और मुझे व पिंकी को अपने आप ही पढ़ाई करने के लिये बोलकर वो घर से बाहर चली गई।

भाभी के जाते ही सबसे पहले तो मैंने अब जल्दी से कमरे का दरवाजा अन्दर से बन्द किया ताकी पिँकी के पास मुझे रोकने का कोई बाहाना ना रहे...

कमरे का दरवाजा बन्द होते ही पिंकी अब थोड़ा घबरा सी गई और...
"य..य..ये दरवाजा क्यों बन्द कर दिया…?
मैं भी अपने घर जा रही हूँ…!
मुझे नहीं पढ़ना है तेरे साथ…!" उसने शरमाते व झिझकते हुए कहा और उठकर खङी हो गयी।

पिंकी की घबराहट भी जायज ही थी क्योंकि उसे पता था कि अकेले में मैं उसके साथ क्या-क्या करने वाला हूँ, पर साथ ही उसकी कही ना कही ये उसकी इच्छा भी थी‌ इसलिये वो वहाँ से जाने की इतनी अधिक भी जल्दी नही कर रही थी..

"रुक तो सही,
कहाँ जा रही है..?" वो बस अपने घर जाने के लिये अब मुड़ी ही थी कि मैंने उसे पीछे से पकड़ लिया और हौले हौले से उसके गोरे मखमली गालों को चूमने लगा…

"छोड़ मुझे…
छोड़…
छोड़… मुझे नहीं पढ़ना है तेरे साथ…"पिंकी अब ना-नुकर तो कर रही मगर मैंने उसे खींचकर बिस्तर पर गिरा लिया और...

"रुक तो सही,
कहाँ जा रही है..?" मैने फिर से उसके गालो‌ को चुमते हुवे कहा

"नहीई..
ऊऊऊ.ह्ह्ह्..त्..
तु..शरारत करता है.. मुझे नही रुकना..!" पिंकी ने अपना सिर इधर उधर हिलाकर अब मेरे चूम्बन से बचने की भी कोशिश करते हुवे कहा, मगर मैंने उसे छोड़ा नहीं...

हमारे बीच इतना कुछ हो जाने के बाद भी पिंकी काफी घबरा व शरमा रही थी। ऐसा नही था की पिँकी को मजा नही आता था, मजा तो उसे भी आता था मगर पहली पहली बार ये सब करते जो लाज शरम व झिझक रहती है उसके चलते वो घबराती थी।

पिंकी एक वो किशोरी थी जिसने इस यौवन सुख का नया नया स्वाद बस हल्का सा ही चखा था। और मैं भी तो हर बार उसको इस सुख के नये नये अनुभवों से परिचित करवा रहा था इसलिये उसका शरमाना व झिझकना जायज भी था।
 
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Chutphar

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पिंकी के गालों को चूमते हुए मैंने अब अपना हाथ भी उसकी टी-शर्ट में डाल दिया। टी-शर्ट के नीचे उसने बनियान पहन रखी थी और बनियान नीचे से उसके लोवर में दबी हुई‌ थी।

मैं अब बनियान को तो ऊपर नहीं कर सका मगर बनियान के ऊपर से ही पिंकी के नर्म मुलायम पेट को सहलाते हुए धीरे धीरे मैं उसके छोटे छोटे उरोजों की तरफ बढ़ गया...

पिंकी तो जैसे अब सिँहर ही गयी और..
"नहीं नहीं…
छोड़ ना… अ..ओय..य..
फिर कभी… आज नहीं…" वो कसमसाते हुवे कहने लगी, लेकिन मैंने उसको छोड़ा नहीं और हल्के से उसके गाल पे फिर से चूम लिया।

"हो गया अब…
प्लीज… अब बस्स..
छोड़ ना …"वो बुदबुदा रही थी लेकिन मैं कहाँ सुनने वाला था।

मेरे होंठ उसके रसीले गालों का मजा ले रहे थे। मैं पहले तो हल्के हल्के ही चूम रहा था मगर अबकी बार धीरे से… बहुत धीरे से मैंने उसके गाल पर काट भी लिया...

"नहींईई..नहीं…
प्लीज कोई देख लेगा…
निशान पड़ जाएगा तो घर वाले क्या कहेंगे…
छोड़ ना…
अब हो तो गया…
बस्सस…" पिंकी की आवाज में अब घबराहट और डर तो था लेकिन मुझे पता था उसे भी मजा आ रहा है और उसकी भी शायद अब ये इच्छा हो रही है।

मैंने उसके गालों को छोड़ा नहीं बल्कि हल्के से उसी जगह पे एक हल्का सा चुम्बन किया और… और फिर एक जोरदार चुम्बन से उसकी शरमाती लजाती पलकों को बंद कर दिया ताकी मैं अब मन भर उसकी देह का रस लूट सकूँ…

मैं अपने होंठ उसके कानों की ओर ले आया और अपनी जीभ के कोने से उसके कान में सुरसुरी सी करने लगा, मेरे होंठों ने उसकी कानो की लौ पे एक हल्की सी चुम्मी ली जिससे वो अब फिर सिहर सी गई।

तब तक मेरा हाथ की उंगलियाँ भी पिँकी की टी-शर्ट मे टहलते टहलते उसके उरोजों तक पहुँच गई, उसने टी-शर्ट के नीचे जो बनियान पहन रखी थी उसकी पतली पतली डोरीयाँ उसके यौवन शिखरों छुपाने में नाकामयाब थी।

बनियान की पतली पतली डोरीया को किनारे कर उसकी दोनों छोटी छोटी गोलाईयाँ....!
नही...नही.. गोलाईयाँ नही...! उनको गोलाईयाँ कहना तो बेईमानी होगा...

क्योंकि गोलाईयाँ तो थी ही कहा, वो तो बस माँस का हल्का सा उभार ही था जो मेरी उँगलियों को महसूस हो‌ रहा था, नही तो बिल्कुल सपाट सीना था पिँकी का।

पिँकी के खङे होने पर तो उसके सीने पर कुछ गोलाईया सी दिखाई देती थी मगर लेटने पर तो वो गोलाईया उसके सीने पर कही भी मालुम नही पङ रही थी बस उसके निप्पल ही थे जो तन‌कर सीधा खङे थे।

इसलिये मेरी उंगलियाँ अब निप्पल के बेस के पास पहुँच के ठिठक कर वही रुक गयी... मुझसे रहा नहीं जा रहा था इसलिये मैने एक ही झटके में अब पिँकी की टी-शर्ट व बनियान, दोनों को ही ऊपर खिसका दिया...

पिँकी का गोरा चिकना निर्वस्त्र सीना अब मेरे सामाने था। मगर उसके सीने को देखकर मैं अब चकित था क्योंकि पिँकी के सीने पर गोलाईयो की जगह बस हल्का उभार सा ही दिखाई दे रहा था।

पिंकी के सीधे खङा होने पर जो कुछ गोलाई सी दिखाई पङती थी, वो अब लेटे हुए में तो पिंकी के सीने मे ही कही गुम हो गयी थी।

वैसे तो पिँकी का सीना बिल्कुल सपाट था मगर उसके दुधिया सफेद रँग के कारण उसके वो छोटे छोटे कच्चे फुल से उभार भी गजब ढा रहे थे, और उसके छोट छोटे सुर्ख गुलाबी निप्पल तो ऐसे लग रहे थे जैसे की उसके सफेद सीने पर सिन्दूर से दो तिलक कर रखे हो।

"नहीं… अ्..ओय्…!
ये क्या कर रहा है…?
बस्सस. छोड़…ना…!" पिंकी ने कहा और अपनी टी-शर्ट व बनियान को फिर से सीधा करने की कोशिश लगी....मगर मैंने उसके हाथों को पकड़कर अलग कर दिया और उसके एक निप्पल को अँगुठे व उँगली के बीच दबा लिया...

मैं बारी बारी से उसके दोनो निप्पलो को अब हल्के हल्के दबा रहा था, तो कभी उन्हे गोल गोल घुमा रहा था जिससे कुछ ही देर मे उसके दोनों छोटे छोटे जोबन मारे जोश के तनकर अब पत्थर हो आये...

पिँकी के उन कच्चे जोबनो को अब इस तरह तना खाङा देख मै अपने आप ही उसके उपर झुकता चला गया और सीधा ही उसके उभार के निचले हिस्से पर एक छोटी सी चुम्मी ले ली...

मेरी अब इस छोटी सी चुम्मी से ही पिँकी का पुरा बदन अब किसी पत्ते की तरह कंपकपा गया और उसके मुँह से जोरो से...ईईई.श्श्श्श्श्..आ्आ्ह्ह्ह्... की एक सिसकारी सी निकल गयी, लेकिन मैं रुका नहीं, मेरे होंठ हल्के हल्के चुम्बन के पग धरते निप्पल के किनारे तक पहुँच गये..

मैने अब अपनी जीभ से बस निप्पल के बेस को ही छुआ था की उत्तेजना के मारे पिँकी ने अपने बदन को एकदम कड़ा कर लिया। शायद वो सोच रही थी कि अब मैं उसे गप्प कर लूंगा...

लेकिन मैं उसे तड़पाना चाहता था इसलिये मैं जीभ की लौ से उसे छू रहा था… छेड़ रहा था और कभी हल्का सा चुभला भी रहा था..

"इईईई…श्श्श्शशश्… अ्…अ्आ्आ्… ह्ह्ह्ह्… अ्..ओय्… क्.क्क्या कर रहा है्… छोड़ ना…
प्लीज… ये कैसा हो रहा है…
तु क्या क्या करता रहता है…
त्.तु… नहीं …न् नन् ..बस्स्स्…" पिंकी सिसकने लगी तो तङप के मारे उसकी देह भी अब इधर उधर होने लगी...

पिँकी की जवानी के उन कच्चे फुलो‌ को चाटने भर से ही मेरी आँखें अब आनन्द से अपने आप मुंदने लगी थीं। ऐसा लग रहा था जैसे मुझे कोई नशा सा चढता जा रहा था।

वैसे तो पिँकी अब पुरी तरह से तैयार ही थी मगर मै इस खेल के अब उसके साथ खुलकर मझे करना चाहता था इसलिये...
"ऐ सुन.. ना..,
मेरा मन इनको पीने को कर रहा है…
मेरे होंठ बहुत प्यासे हैं…" मैने उसके कान के पास अपना मुँह ले जाकर धीरे से कहा।

पिँकी उत्तेजित तो थी मगर उसे शरमा भी रही थी इसलिये...
"ले तो रहा है…
और क्या…
जल्दी से कर ले, जो करना है..
मुझे अब घर जाना है…,!" वो बस अब एक बार हल्के से बुदबुदाई‌ फिर शरम‌ के मारे गर्ना घुमाकर अपना मुँह दुसरी ओर कर लिया।

मै भी अब पिँकी की बात पुरी होने से पहले ही अपना दुसरा हाथ भी अब उसक चुँचियो पर ले आया और दोनो हाथो से उसके उभारो को कस कस के भीँचना और मसलना शुरु कर दिया..

मेरा एक हाथ उसके सीने को दबा रहा था तो दुसरा अब कस के उसके निप्पल को मसक रहा था जिससे उसके सीने पर मेरी उंगलियों के लाल लाल निशान बनते जा रहे थे।

वैसे ही पिंकी का रंग इतना गोरा था कि अगर उसे जोर से कोई छू भी ले तो निशान बन जाये… फिर मैं तो उसके सीने को जोर जोर से मसल रहा था मगर पिंकी अब चुप थी, उसकी देह से लग रहा था कि उसे भी मजा आ रहा है..!

मैंने दोनों हाथों से कस क़स के उसके जोबनो को मसलते मसलते...
"सुन ना… एक बार इन्हे चूस लूं… ?
बस एक बार इन ..चुँचियों का रस पान करा दे ना…!" मैने अब फिर उसके कान के पास अपना मुँह ले जाकर बोला जिससे पिंकी के चेहरे पर अब शरम की हल्की मुस्कान सी तैर गयी और...
"क्या बोल रहा है…
प्लीज…ऐसे नहीं…
मुझे शर्म आ रही है…" उसने शरमाते हुवे एक बार तो मेरी ओर देखा फिर अपनी आँखे बन्द करके चेहरा दुसरी ओर घुमा लिया...

मुझे मेरा सिग्नल मिल गया था, इसलिये मेरे होंठ अब सीधे उसके निप्पल पे थे। मैने पहले तो उसे हल्के से किस किया फिर मुंह में भर के हल्के हल्के चूसना शुरु कर दिया....

जबकी उसका दूसरा निप्पल अभी भी मेरी उंगलियों के बीच था जिससे पिंकी ने अब सिसककर अपने नितम्बों को बिस्तर पर रगड़ना शुरु कर दिया..

पिँकी के जोबन का रस पीते पीते मैने अपना एक हाथ अब उसकी जाँघो की ओर भी बढा दिया था मगर जैसे ही मैने अपना हाथ उसकी जांघों की ओर किया, उसने दोनों जाँघों को कस के सिकोड़ लिया...

उसने अपने हाथ से मेरे हाथ को अब हटाने की भी कोशिश की लेकिन मेरी उंगलियाँ भी कम नहीं थीं, घुटने से ऊपर एकदम जांघों के ऊपर तक… हल्के हल्के बार बार… सहलाने लगी।
 

Chutphar

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वैसे पिँकी का भी ये नखरा बस अब दिखावा ही चल रहा था। वो बस दिखावे के लिये मेरा विरोध कर रही थी नही तो दिल तो उसका भी ये सब करने को हो रहा था।

मैने अब मेरा एक हाथ जो उसकी जाँघों को प्यार से सहला रहा था, उसी से एक बार अब सीधे उसकी चुत की गुफा के पास हल्के से दबा दिया। जिससे पिंकी का ध्यान अब बंट गया और मैंने झट से अपना हाथ उसके लोवर व पैँटी के अन्दर घुसा दिया...

पिंकी ने अब मेरा हाथ पकड़ने की कोशिश तो की मगर कामयाब नहीं हो सकी तो उसने अपनी जाँघों को कैँची के जैसे कस सिकोड़ लिया।

अपनी जाँघो के भीँच के वो अपने दोनों हाथों से मेरा हाथ को भी अब वहाँ से हटाने की कोशिश में थी लेकिन ऐसा कहाँ होने वाला था..?

मैंने उसकी चुत पर अब हल्के से एक चिकोटी सी भर दी जिससे पिँकी उचक गई और उसकी जांघें जो कस के सिकुड़ी हुई थीं वो अब हल्के से खुल गयी...

अब मैं तो था ही इसी मौके के इंतज़ार में, पर पिँकी को भी शायद इस बात का अहसास हो गया था इसलिए उसने फिर से अपनी टांगों को सिकोड़ने की कोशिश की…

लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी… सेंध लग चुकी थी... और अबकी बार जो उसकी जांघें सिकुड़ी तो मेरी हथेली सीधे उसकी चुत के ऊपर थी..

"ओय.. छोड़ो ना…
वहाँ से हाथ हटा…
प्लीज… बात मान…
वहाँ नहीं …"पिंकी बङबङा रही थीं।

मै भी पिँकी को अब और खोलने की सोची और...
"क्याआआ..?
कहाँ से… हाथ हटाऊं…?
साफ साफ बोल ना…" मैंने शरारत से कहा, जिससे पिंकी का चेहरा अब शरम से गुलाबी हो गया मगर उसने कुछ कहा नही।

पिंकी की चुत‌ भी उसके उरोजों की तरह बिल्कुल सपाट व चिकनी थी जिस पर ना तो कोई उभार था और ना ही कोई बाल थे।

मैं पिंकी की चुत छेड़ रहा था, साथ में अब चुत के ऊपर के भाग को हाथ से हल्के हल्के दबाने लगा था। पिंकी की जांघों की पकड़ अब हल्की हो रही थी और मेरे हाथ का दबाव मज़बूत…

मेरा हाथ अब नीचे दबाने के साथ हल्के हल्के सहलाने भी लगा था, और वो हल्की गीली हो रही थी, उसका असर भी पूरे बदन पर दिख रहा था। पिंकी का बदन हल्के हल्के कांप रहा था, आँखें बंद थी, रह रह के वो सिसकारियाँ भर रही थी।

मेरे होंठ अब कस कस के उसके निप्पल को चूस रहे थे। जैसे बच्चा लोलीपोप को कभी चुसता है तो कभी उसे चाटता है, मै भी बिल्कुल वैसे ही पिँकी के निप्पल को कभी चाट रहा था तो, कभी चूस रहा था।

एक हाथ निप्पल को सहला रहा था, मसल रहा था और दूसरा.. उसकी चुत को अब खुल के रगड़ रहा था, अब इस तिहरे हमले का जो असर होना था वही हुआ!

उसकी जाँघों की पकड़ अब ढीली हो गई थी और बदन ने भी पूरी तरह समर्पण कर दिया था, मौके का फायदा उठा के मैंने अब एक झटके में उसके पायजामे (लोवर) व पेंटी को एक ही झटके मे नीचे खिँच दिया।

"अ्अ्अ्…आ्आ्आ्…
ओय्… ओय्… य्,.
ये क्या कर रहा है…
ऐसे नहीं… प्लीज…
नहीं… नहीं… प्लीज…"कह कर पिंकी ने उन्हें पकड़ने की कोशिश तो की मगर तब तक बहुत देर हो गयी और उसकी पेंटी व पायजामा घुटनों से नीचे पहुँच गये।

मुझे बस एक हल्की सी झलक पिंकी की चुत की मिली ही थी कि तब तक पिंकी दोनों घुटने मोड़कर दूसरी तरफ घूम गई और अपनी पेंटी व पायजामे को भी फिर से पहनने की कोशिश करने लगी..

मगर अब मैं कहाँ मानने वाला था...पिँकी की नँगी टाँगो को सहलाने के बहाने मैने पहले तो उसकी पैँटी व लोवर को निकालकर उसकी टाँगो को आजाद किया फिर एकदम से उसके घुटनो को पकङकर उसे सीधा कर लिया..

पिंकी की कुवांरी चुत की मुझे अब फिर से एक झलक मिली‌, मगर अबकी बार पिँकी ने...
"ओय्… ओय्…य्.य्.ये क्कया…"कहकर दोनों हाथों से अपनी चुत को छुपा लिया।

मेरे हाथ अब स्वतंत्र थे इसलिये मैंने अपने दोनों हाथों से पिंकी की हाथों को पकङके अब उसकी चुत पर से उठाकर अलग कर दिया जिससे पिँकी बस अब...
"नहीं…नहीं…
प्लीज… नहीं…
ओय्… ओय्..नहीं…
प्लीज.. ऐसे नही..
मुझे शरम‌ लग रही है..! " करती रह गयी और उसकी छोटी सी गोरी चिकनी मुनिया अब मेरी नजरो के सामने थी।

एकदम कच्ची और बिल्कुल ही छोटी सी चुत थी पिँकी की, मुश्किल से मेरी दो उंगलियों के जितनी, मगर एकदम सपाट व चिकनी थी। जिस पर ना तो कोई उभार था और ना ही कोई बाल थे। बस हल्के से भुरे रंग के रोवे से ही नजर आ रहे थे।

चुत की छोटी छोटी फांके भी एक दूसरे से बिल्कुल चिपकी हुई थी इसलिये चुत के अन्दर की लालिमा बस हल्की सी ही नजर आ रही थी। पिँकी की चुत को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे की उसकी जाँघों के जोड़ पर छोटा सा कट लगाकर उसमें सिन्दूरी रँग भर रखा हो...

पिंकी की जाँघो मे भी बिल्कुल भराव नही था। वो एकदम पतली पतली सी थी जिन पर बिल्कुल भी मांस नहीं था। दुधिया सफेद गोरी चिकनी जाँघो को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे दो चिकनी चिकनी लकड़ियाँ उसके बदन से जोड़ रखी हो।

मेरे ऐसे देखने से पिंकी का चेहरा शरम से बिल्कुल लाल हो गया था। इसलिये उसने अपने हाथ छुड़वाकर अब एक बार फिर से अपनी चुत को छुपाने की कोशिश की...

मगर जब कामयाब नहीं हो सकी तो उसने शरम के मारे दोनों हाथों से अपने चेहरे को छुपा लिया और..
"ओय्…अब छोड़ो ना…!
प्लीईईज… बहुत हो गया…
अब बस भी कर ना्…
प्लीईईज्… मुझे बहुत शरम लग रही है.." पिँकी ने बङबङाते हुवे कहा मगर वहाँ से उठने की या मेरा विरोध करने बिल्कुल भी कोशिश नही की।

मैने भी अब पिँकी की उस नन्ही सी मुनिया का अच्छे से दीदार करने की सोची और दोनो जाथो की‌ उँगलियो से चुत की नाजुक फाँको को थोङा फैला दिया...

फाँको के खुलते ही अब चुत के अन्दर की लालिमा नजर आने लगी और उनके बीच एक सुर्ख गुलाबी बिल्कुल बंद सा सुराख भी दिखाई दिया‌ जो की कामरश एकदम सरोबर था।

उस सुराख के ठीक ऊपर चूत का दाना भी दिख रहा था जो की किसमिश के जैसे एकदम फूला हुआ था और धीरे धीरे हिल सा रहा था। मैंने अपने अंगूठे से उसके दाने को अब हल्का सा, बिल्कुल ही हल्का सा छुआ ही था कि
"इईईई…श्श्श्शशश… अआआ…ह्ह्हहहहहह…
ओ्.ओ्.ओयगय्य्य्..."की आवाज के साथ पिंकी जोर से सिसकार उठी और उसका पूरा बदन थरथरा सा गया।

पिंकी नीचे से अब बिल्कुल नंगी थी, वो मेरा विरोध तो नहीं कर रही थी मगर दोनों हाथों से अपने चेहरे को छुपाये अब भी यही दोहरा रही थी...

"ओय… अब बस भी कर ना…
प्लीईईज… अब छोड़ भी दे…
प्लीज… बहुत हो गया…
अब बस कर… प्लीईईज…
मुझे बहुत शर्म लग रही है..." मगर आज मै कहा मानने वाला था।

कुछ देर पिंकी की उस कमसिन कुवांरी व कच्ची चुत का दीदार करने के बाद मैने अब थोड़ा सा पीछे होकर अपना सिर उसकी जाँघों के बीच घुसा दिया, जहाँ से उसकी छोटी सी चुत के कौमार्य की वो मादक सी गँध फूट रही थी..

सच मे पिँकी की कच्ची कुँवारी चुत की महक‌ कुछ ज्यादा ही तीखी और एकदम मादक थी, क्योंकि मैने जबसे पिँकी को नीचे से नँगा किया था तब से ही पुरे कमरे मे उसकी कच्ची कुँवारी चुत की एक मादक मादक सी महक फैल गयी थी और उस महक से वो पुरा कमरा ही रँगमय हो गया था।

मुझसे अब सब्र ही हो रहा था इसलिये मैने अब सीधा ही अपने प्यासे होठो को उसकी उस कच्ची कुँवारी‌ चुत के होठो से जोङ दिया...

अब जैसे ही मेरे होंठों ने पिंकी की मुनिया को छुवा वो सिहर सी गयी। उसके पैर जोर से कंपकपा गये और उसने...

"इईईई…श्श्श्शशश… अआआ…ह्ह्हहहहहह…" की एक मीठी सीत्कार भरके मेरे सिर को दोनों जाँघों के बीच कस के भीँच लिया..
 
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पिछली बार मैंने पिंकी को इस यौवनसुख का जो मजा दिया था, शायद उसे वो अभी तक भुला नहीं पाई थी। इसके आगे क्या होने वाला है यह उसे अच्छे से मालूम था इसलिये अपनी जाँघो को एक बार भीँचने के बाद उसने उन्हे खुद ही खोलकर पूरा फैला दिया।

मैने भी अब पहले तो पिंकी की मुनिया के होंठों पर हल्की सी चुम्मी की… फिर एक जोरदार चुम्बन और थोड़ी ही देर में मैं उसे कस कस के चूमना शुरु कर दिया...

चुत और गुदा वाले छेद के बीच की जगह से शुरू कर के मै एकदम ऊपर तक, कभी छोटे छोटे तो कभी कस के चुम्बन लेने लगा जिससे पिंकी किसी नागिन की तरह बल से खाने लगी।

कुछ देर चुमने के बाद मैंने अपनी जुबान को भी चालू कर दिया… उस कच्ची कली की कुँवारी चुत का क्या मस्त स्वाद था.. अन्दर से खारे कसैले अमृत का स्वाद…

मेरी लालची जीभ तो कुँवारी कच्ची चुत का रस चाटते चाटते अब अमृत कूप में भी घुस गई जिससे पिंकी..... "उह्ह्ह्ह… आहाह्ह्ह.. ओह्ह्ह्ह … नहीं .ईई ई ईइ..." करके सिसकारियाँ सी भरने लगी और मेरी जीभ के साथ उसने भी अब धीरे धीरे अपनी कमर को थिरकाना शुरु कर दिया..

पिंकी की चुत पहले ही काफी गीली हो चुकी थी मगर अब तो उसमें मानो बाढ़ सी आ गई जिससे मेरा पुरा मुँह भीग गया, मगर मैं कहाँ सब्र करने वाला था। मेरी जीभ भी तो किसी लण्ड से कम नहीं थी...

मैं अपनी जीभ को चुत के कभी अन्दर, कभी बाहर घुमाने लगा तो, कभी गोल गोल चुत के प्रवेशद्वार पर घुमाने लगा और साथ साथ मेरे होंठ कस कस के उसकी चुत की कोमल फांकों को भी चूस रहे थे जैसे कोई छोटा बच्चा रसीले आम को चूसे और उसके रस से उसका चेहरा तर बतर हो जाए लेकिन फिर भी वो बेपरवाह मजे लेता रहे, चूसता रहे… बस ऐसा ही कुछ हाल मेरा भी था।

धीरे धीर मैंने अपनी जीभ की हरकत को तेज करता जा रहा था जिससे पिंकी भी अपने कूल्हों को तेजी से हिलाने लगी और उसने उत्तेजना के मारे मेरे सिर को अपनी चुत पर बड़े ही जोर से दबा-दबा कर पागलों की तरह...
"ईईई…श्श्श्शश… अआआआ…ह्ह्ह…
ईईई…श्श्श्शश… अआआआ…ह्ह्हहहह…"करके चिल्लाना शुरु कर दिया जैसे वो मेरा समस्त मुँह ही अपनी चुत में घुसा लेगी।

पिंकी की ये तङप देखकर मुझसे रहा नहीं गया इसलिये मैंने अपनी जीभ की हरकत को और अधिक तेज कर दिया जिसका परिणाम अब ये निकला कि कुछ ही देर बाद पिंकी की दोनों जाँघों मेरे सर पर कसती चली गयी...

उसने मेरे सिर को अपनी दोनों जाँघों के बीच पूरी ताकत से दबा लिया और बड़ी ही जोर जोर से.. "इईई…श्श्श्श्… अ्आ्आ्…ह्ह्ह्…
इईईई…श्श्श्शश… अ्आ्आ्…ह्ह्ह्ह्…
इईईईई…श्श्शशश… अआआआ…हहहहह…"
चिल्लाते हुए अपनी चुत से ढेर सारा पानी मेरे चेहरे पर उगल दिया और फिर निढाल सी होकर बिस्तर पर गिर गई।

पिँकी ने अब कुछ देर तो बेसुध सी होकर ऐसे ही मेरे सिर को अपनी जांघों के बीच जकड़े रखा फिर फिर धीरे धीरे उसकी जांघें स्वतः ही खुल गई।

पिँकी‌ के मेरे सिर को छोङते ही मैंने अब उसके चेहरे की ओर देखा... वो अब बिल्कुल शांत थी और लम्बी लम्बी व गहरी सांसें ले रही‌ थी, सन्तुष्टि के भाव उसके चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रहे थे।

मैने भी अब कुछ नही किया और ऐसे ही‌ पिँकी को देखता रहा.. पर कुछ देर बाद पिंकी की जब तन्द्रा टूटी तो वो जल्दी से उठकर बिस्तर पर बैठ गयी..

उसकी नजरे अब एक बार तो मेरी नजरों से मिली फिर पिंकी के चेहरे पर लाज शरम के भाव उभर आये और उसने शरमाकर दोनों हाथों से अपने चेहरे को छुपा लिया...

पिँकी अब उठकर वहाँ से जाना चाहती थी मगर मैंने उसे फिर से दबोच लिया और उसकी गर्दन व गालों पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी।

पिंकी कसमसाने लगी और...
"ओय्… अब्…बस्सस…
बहुत हो गया… ह्हाँ…!
प्लीज… छोड़ मुझे…

अब जाने दे…" कहते हुए अपने आप को छुड़ाने का प्रयास करने लगी मगर मैं कहाँ मानने वाला था अभी तक जो सुख मैंने उसको दिया था आज उसे सूद समेत वापस भी तो लेना था...
 

Sanju@

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पिछली बार मैंने पिंकी को इस यौवनसुख का जो मजा दिया था, शायद उसे वो अभी तक भुला नहीं पाई थी। इसके आगे क्या होने वाला है यह उसे अच्छे से मालूम था इसलिये अपनी जाँघो को एक बार भीँचने के बाद उसने उन्हे खुद ही खोलकर पूरा फैला दिया।

मैने भी अब पहले तो पिंकी की मुनिया के होंठों पर हल्की सी चुम्मी की… फिर एक जोरदार चुम्बन और थोड़ी ही देर में मैं उसे कस कस के चूमना शुरु कर दिया...

चुत और गुदा वाले छेद के बीच की जगह से शुरू कर के मै एकदम ऊपर तक, कभी छोटे छोटे तो कभी कस के चुम्बन लेने लगा जिससे पिंकी किसी नागिन की तरह बल से खाने लगी।

कुछ देर चुमने के बाद मैंने अपनी जुबान को भी चालू कर दिया… उस कच्ची कली की कुँवारी चुत का क्या मस्त स्वाद था.. अन्दर से खारे कसैले अमृत का स्वाद…

मेरी लालची जीभ तो कुँवारी कच्ची चुत का रस चाटते चाटते अब अमृत कूप में भी घुस गई जिससे पिंकी..... "उह्ह्ह्ह… आहाह्ह्ह.. ओह्ह्ह्ह … नहीं .ईई ई ईइ..." करके सिसकारियाँ सी भरने लगी और मेरी जीभ के साथ उसने भी अब धीरे धीरे अपनी कमर को थिरकाना शुरु कर दिया..

पिंकी की चुत पहले ही काफी गीली हो चुकी थी मगर अब तो उसमें मानो बाढ़ सी आ गई जिससे मेरा पुरा मुँह भीग गया, मगर मैं कहाँ सब्र करने वाला था। मेरी जीभ भी तो किसी लण्ड से कम नहीं थी...

मैं अपनी जीभ को चुत के कभी अन्दर, कभी बाहर घुमाने लगा तो, कभी गोल गोल चुत के प्रवेशद्वार पर घुमाने लगा और साथ साथ मेरे होंठ कस कस के उसकी चुत की कोमल फांकों को भी चूस रहे थे जैसे कोई छोटा बच्चा रसीले आम को चूसे और उसके रस से उसका चेहरा तर बतर हो जाए लेकिन फिर भी वो बेपरवाह मजे लेता रहे, चूसता रहे… बस ऐसा ही कुछ हाल मेरा भी था।

धीरे धीर मैंने अपनी जीभ की हरकत को तेज करता जा रहा था जिससे पिंकी भी अपने कूल्हों को तेजी से हिलाने लगी और उसने उत्तेजना के मारे मेरे सिर को अपनी चुत पर बड़े ही जोर से दबा-दबा कर पागलों की तरह...
"ईईई…श्श्श्शश… अआआआ…ह्ह्ह…
ईईई…श्श्श्शश… अआआआ…ह्ह्हहहह…"करके चिल्लाना शुरु कर दिया जैसे वो मेरा समस्त मुँह ही अपनी चुत में घुसा लेगी।

पिंकी की ये तङप देखकर मुझसे रहा नहीं गया इसलिये मैंने अपनी जीभ की हरकत को और अधिक तेज कर दिया जिसका परिणाम अब ये निकला कि कुछ ही देर बाद पिंकी की दोनों जाँघों मेरे सर पर कसती चली गयी...

उसने मेरे सिर को अपनी दोनों जाँघों के बीच पूरी ताकत से दबा लिया और बड़ी ही जोर जोर से.. "इईई…श्श्श्श्… अ्आ्आ्…ह्ह्ह्…
इईईई…श्श्श्शश… अ्आ्आ्…ह्ह्ह्ह्…
इईईईई…श्श्शशश… अआआआ…हहहहह…"
चिल्लाते हुए अपनी चुत से ढेर सारा पानी मेरे चेहरे पर उगल दिया और फिर निढाल सी होकर बिस्तर पर गिर गई।

पिँकी ने अब कुछ देर तो बेसुध सी होकर ऐसे ही मेरे सिर को अपनी जांघों के बीच जकड़े रखा फिर फिर धीरे धीरे उसकी जांघें स्वतः ही खुल गई।

पिँकी‌ के मेरे सिर को छोङते ही मैंने अब उसके चेहरे की ओर देखा... वो अब बिल्कुल शांत थी और लम्बी लम्बी व गहरी सांसें ले रही‌ थी, सन्तुष्टि के भाव उसके चेहरे पर स्पष्ट नजर आ रहे थे।

मैने भी अब कुछ नही किया और ऐसे ही‌ पिँकी को देखता रहा.. पर कुछ देर बाद पिंकी की जब तन्द्रा टूटी तो वो जल्दी से उठकर बिस्तर पर बैठ गयी..

उसकी नजरे अब एक बार तो मेरी नजरों से मिली फिर पिंकी के चेहरे पर लाज शरम के भाव उभर आये और उसने शरमाकर दोनों हाथों से अपने चेहरे को छुपा लिया...

पिँकी अब उठकर वहाँ से जाना चाहती थी मगर मैंने उसे फिर से दबोच लिया और उसकी गर्दन व गालों पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी।

पिंकी कसमसाने लगी और...
"ओय्… अब्…बस्सस…
बहुत हो गया… ह्हाँ…!
प्लीज… छोड़ मुझे…

अब जाने दे…" कहते हुए अपने आप को छुड़ाने का प्रयास करने लगी मगर मैं कहाँ मानने वाला था अभी तक जो सुख मैंने उसको दिया था आज उसे सूद समेत वापस भी तो लेना था...
Amazing update
Excellent update

Aaj to kawari kali ka pura ras nichod kar hi rahoge

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मस्ती भरा काफी गरमा गरम अपडेट है। मजा रहा है कहानी में
 

sexy ritu

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misdiljpr

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वाह। क्या लिखते हो भाई। ऐसा लगता है सब कुछ आँखो के सामने ही चल रहा है। विशेषकर पिंकी पड़ कर तो मुझे मेरी girlfriend की पहली चुदाई याद आ गई।

keep it up bro! Keep rocking
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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वाह। क्या लिखते हो भाई। ऐसा लगता है सब कुछ आँखो के सामने ही चल रहा है। विशेषकर पिंकी पड़ कर तो मुझे मेरी girlfriend की पहली चुदाई याद आ गई।

keep it up bro! Keep rocking
Thanks
 
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