Sanju@
Well-Known Member
- 4,562
- 18,404
- 158
Awesome updateभाग 60
---------
समागम, पुनर्मिलन
--------------------
"माँ मैं नीलम के घर जा रही हूँ। तुम भईया का खाना पहुँचा देना।" राधा तैयार होकर अपनी माँ से कहती है।
"तू ही दे आती! मैं किस वक्त जाऊँ! घर पर इतना काम पड़ा है!"
"तो रहने दो अपने बेटे को भूका! चंचल मेरा इन्तज़ार कर रही है। मैं चलती हूँ।" कहकर राधा निकल गई।
कुसुम को मजबूरन खाना बांधकर खेत के पास आना पड़ा। पवन कुटिया में बैठा हुआ था। थोडी देर पहले ही आलोक उसे समययान थमाकर चला गया है।
"पवन! बेटा, मैं खाना लाई हूँ।" अपनी माँ की आवाज पे पवन चौंक जाता है। अभी वह माँ के बारे में ही तो सोच रहा था।
"हाँ हाँ, आओ ना! बैठो!" पवन ने कुसुम को बैठने के लिए जगह दी। कुसुम खाना सामने रखके बैठ गई।
"राधा नहीं आई?"
"वह अपनी सहेली के यहां गई है। वह नीलम है ना! उसके घर पे। पिछ्ले महीने को उसकी शादी हुई थी। अब मायके आई है !" कुसुम पवन की तरफ देखकर कहने लगी। पवन के पीछे पड़ी बोरियाँ कुसुम को दिख जाती है।
"ओ!"
"यह बोरियाँ क्या है? क्या है इसमें?" कुसुम पूछती है। पवन एकबार बोरियों की तरफ देखता है और फिर कुसुम की तरफ।
"अभी रुको बताता हुँ। तुम यहां बैठी रही।" पवन बोरियों के पास जाकर एक बोरी खींचकर लाता है। कुसुम समझ जाती है, बोरी में जरुर कुछ भारी भरकम कुछ रखा हुआ है।
"माँ, तुम अपना पल्लू फैला दो,,,,,हाँ,,,,गोदी में,,!" पवन के कहने पर कुसुम पसर के बैठ गई और उसने अपना गोद खोलकर अपने बेटे के सामने कर दी। उसे समझ नहीं आया पवन करना क्या चाहता है।
"यह देखो, इसमें क्या है!" पवन यह कहकर बोरी का सिरा खोलकर पूरा का पूरा कुसुम की गोदी में डाल देता है। बोरी में से हजारों सोने के सिक्के चमकते हुए कुसुम की गोद में गिरने लगे। कुसुम इस अचानक हादसे से अचंभित होकर रह गई। आधे से ज्यादा सिक्के जमीन में गिरकर मुद्रयोँ की आवाजें करने लगी।
"पवन, इतना सोने कहाँ से मिला! यह किसके हैं?" कुसुम सोने के सिक्कों से भारी मह्सूस करती हुई बोली।
"यह सब हमारे हैं। तुम्हारे हैं।" पवन ने निश्चिंत होकर कहा। वह कुसुम के पास बैठ गया।
"तुम्हें चोट लग जायेगी, अब इन्हें हटा दो।" पवन अपनी माँ की गोदी से सिक्कों को एक तरफ करके रख दिया।
"यह जो तीन बोरियाँ देख रही हो, इन में भी यही सिक्के पडे हैं। मैं इन से जमींदारी को मजबूत बनाऊँगा। गावँ में खुशहाली लाऊँगा। गावँ के लोगों को रोजगार दूँगा। तुम्हें एक अच्छी जिंदगी दूँगा।" पवन की आंखों में एक दृड़ प्रतिज्ञा की झलक थी। अपनी अतीत पत्नी और वर्तमान में माँ समान कुसुम से वह कहने लगा।
"लेकिन पवन! यह सिक्के? इतने सारे सिक्के? आये कहाँ से?" कुसुम ने पूछा।
"इसकी एक लम्बी कहानी है। मैं तुम्हें फिर कभी बताऊंगा। बस इतना जान लो, यह धन दौलत अवैध उपाय से नहीं आये। यह मेरी कोशिशों से मुझे मिला है।"
"तुम्हारे पिता कहा करते थे, वह एक दिन जमींदार बनेंगे। मुझे महारानी की तरह रखेंगे। मैं जमींदार की बीबी कहलाऊँगी। वह सपना तो सच नहीं हुआ! लेकिन तुम जमींदार बन गए हो। जमींदार की बीबी ना सही पर जमींदार की माँ बनने का सौभाग्य मिला है मुझे। मैं तुम्हारे लिए बहुत खुश हूँ पवन। भगवान करे, तुम्हारे दुश्मन भी तुम्हारा जयगान गाये। तुम एक अच्छा जमींदार बनना। गावँ में खुशहाली लाना। बस मेरी इच्छा है।" कुसुम अपने दिल की मुरादें बताने लगती है।
"जरुर करूँगा। तुम चिंता मत करो। मुझे तुम से एक बात पूछनी थी,!" पवन को अनजाने में अपनी माँ कुसुम को माँ कहकर बुलाने झिझक होने लगी थी। वह इस दूरी को मिटाना चाह रहा था।
"कौन सी बात?" कुसुम ने पलकें उंची की। कुसुम की इन्हीं सादगी पर तो पवन अपना दिल बैठा था। आलोक ने सही कहा था, समय समय के साथ उसकी माँ और ज्यादा सुन्दर हो चुकी है। काश की यह वाली उसकी बीबी होती।
"तुम्हें क्यों लगता है माँ! मैं अपने पिता जैसा दिखता हूँ? क्या मैं सचमुच उन जैसा दिखता हूँ? कुछ तो फर्क होगा। जैसे बोलना चलना फिरना?"
"हाँ पवन, तुम बिलकुल अपने पिता जैसे दिखते हो। और तुम दोनों में कुछ भी फर्क नहीं था। कभी कभी तुम्हें देखकर मुझे तुम्हारे पिता की याद आ जाती है। मैं सोचने लग जाती हूँ, मेरा पति मेरे सामने खडा है। तुम्हारे पिता से जब मेरी शादी हुई वह बिलकुल तुम जैसे दिखते थे। एकदम हुबहू। तुम मालती काकी से पूछ सकते हो। और जिसने भी तुम्हारे पिता को देखा है, उनसे मालुम कर सकते हो। काश वह दोबारा वापिस आ जाये।"
कुसुम कहकर मायुस हो गई। खुद पवन भी दिल ही दिल में घुटन महसूस करने लगा। अपनी माँ कुसुम को देखता हुआ पवन को कुसुम पर प्रेम का जुयार आने लगा। उसकी आंखें यह बता रही थी।
"पिताजी तुम से बहुत प्यार करते थे! है ना!"
"बहुत! तुम्हारे पिता जैसा पति मिलना मेरा नसीब था। लेकिन मुझे आज भी लगता है वह एक दिन जरुर लौटकर आयेगा। उसने मुझ से दो वादे किए थे। जिसके बदले मैं ने उनसे दो वादे किए।"
"कैसे वादे?"
"मेरे पति ने कहा था, उसने वादा किया था, वह एक दिन जरुर लौटकर आयेगा। वह एक अच्छा लम्हा था। तुम्हारे पति पहली बार आये और एक हफ्ता रुककर फिर एक दिन अचानक चले गए। मैं बहुत टूट चुकी थी। फिर तुम पैदा हुए। तुम्हारे होने के दो महीना बाद जब मैं ठीक हो गई थी, तुम्हारे पिता अचानक से एक दिन आ पहुंचे। मेरा पति मेरा सुहाग मेरे बच्चे बाप कितना प्यार करने वाला इन्सान था। मैं उनसे लिपटकर बहुत रोई। वह भी रोने लगे। वह एक महीना रुके थे हमारे घर। और इसी बीच एक दिन मुझ से वादा, कहा, कुसुम मैं शायद कभी भी किसी भी दिन यहां से चला जा सकता हूँ। मैं क्यों जा रहा हूँ, कहाँ जाता हूँ? समय आने पर एक दिन तुम्हें जरुर बताऊंगा। लेकिन तुम्हें मेरा इन्तज़ार करना होगा। चाहे एक महीना हो यह एक साल हो। चाहे दस साल हो, मेरा इन्तज़ार करना। मैं दोबारा जरुर लौटकर आऊँगा। यह मेरा वादा है। इसी लिए मैं पति ना होने के बावजूद आज भी अपनी माँग में सिन्दूर लगाती हूँ पवन। अपने पति के नाम की मंगलसूत्र पहनती हूँ। उसके लिए करवाचौथ ब्रत रखती हूँ। क्यौंकि मुझे यकीन है मेरा पति तुम्हारा जन्मदाता बाप एक दिन जरुर लौटकर आयेगा।" कुसुम कहती हुई उसकी आखें नम हो गई।
"और दूसरा वादा?"
"दूसरा वादा। मेरे पति ने वादा किया था वह एक दिन मेरी झोली में सोने के सिक्कों की धेड़ लगा देगा। सोने के सिक्के? सिक्के? रुको पवन। यह सिक्का दिखाना जरा!" कुसुम को कुछ याद आता है। वह पास पड़ा एक सिक्का उठाती है और उसे ध्यान से देखती है। उसकी आखें आश्चर्य से चमकने लगती है।
"रुको पवन! मैं अभी आई!" कुसुम ह्ड़बड़ाकर उठ खडी हूई। पवन कुछ समझ नहीं पाया।
"क्या हुआ माँ? तुम,,,,," पवन पीछे से कुछ बोलने लगा।
"मैं अभी आई पवन, अभी रुको।" कुसुम ने एक सिक्का अपने हाथ में लेकर घर की तरफ दौड लगाई। पवन सोच व विचार में पड गया। आखिर एसा क्या हुआ। पवन बिखरे हुए सिक्कों को समेटने लगा। कुछ ही देर बाद कुसुम हाँपती हुई आई।
"पवन? पवन? सच सच बताओ, यह सिक्का तुम्हें कहाँ मिला?" कुसुम का चेहरा बता रहा था वह किसी बात को लेकर परेशान है।
"मैं ने बताया तो है! यह हमारा है। लेकिन यह कहाँ से आया अभी मैं तुम्हें नहीं बता सकता! मैं तुम से झूट नहीं बोल सकता। लेकिन हुआ क्या है?" पवन को अब भी एहसास नहीं था।
"क्योंकि एसा ही एक सिक्का मेरे पास भी है। आज से नहीं। तुम्हारे पैदा होने से पहले। यह देखो।" कुसुम ने एक पूराना सिक्का पवन के आगे हाथ में रख दिया। एक सोने का सिक्का। जो सालों तक रहने के कारन जंग लगा हुआ था। पवन को याद आ गया, यह सिक्का उसने कुसुम को शादी वाले दिन इसी जगह पे दिया था। कुसुम ने यह सिक्का आज तक संभालकर रखा है। पवन खामोश था। लेकिन कुसुम को सच्चाई जाननी थी।
"नहीं पवन! मुझे सच्चाई पता करनी है। यह एक सुराग हो सकता है। जिससे हम तुम्हारे पिता तक पहुँच सकते हैं। उन्हें ढूंढ सकते हैं। यह कोई इत्तेफाक नहीं हो सकता। इसी तरह के दो और दो सिक्के मेरे पति ने तुम्हारी नानी को दिया था। उन्हीं सिक्कों को बेचकर हम ने इतने दिन तक गुजारा किया है। इत्ने सालों बाद मैं यह सिक्के देख रही हूँ। तुम्हारे पिता के पास इस तरह के सिक्के थे। मतलब यह सिक्का जहाँ से आया है वहिँ से हमें तुम्हारे पिता के बारे जानकारी मिल सकती है। बताओ मुझे पवन!"
कुसुम बेबसी की फुहार लगाती है। पवन को क्या कहना चाहिए, क्या करना चाहिए वह समझने में बिलकुल बेबस मह्सूस करने लगा। वह चहरे पर हाथ छुपाकर वहीं बैठ गया। आखिर कुसुम को वह किस तरह से समझा सकता है?
"मैं नहीं बता सकता माँ!" पवन ने अपनी बेबसी जाहिर की।
"नहीं पवन, तुम्हें मेरी कसम! तुम्हें,,,,,मेरे सुहाग की कसम! पवन मुझे बताओ!" कुसुम उसके पास बैठ गई। उसके हाथ पर हाथ देकर उसे समझाने लगी।
"मुझे जानना है पवन, यह सोने की मुद्राएँ तुम्हारे पास कहाँ से आये हैं?"
"मैं तुम्हें किस तरह से समझाऊँ!" पवन निगाह उठाकर कुसुम को देखता है। कुसुम बेचैन थी, परेशान थी, उत्सुक थी।
"चाहे वह बात जितनी भी कठिन हो, तुम कहो पवन!"
"पता नहीं तुम मेरा यकीन करोगी भी या नहीं! लेकिन सच तो यह है, यह सिक्का मैं ने ही तुम्हें दिया था।" पवन ने एक अतिशय आश्चर्य की बात कह डाली।
"लेकिन यह कैसे हो सकता? यह सिक्का मेरे पास तुम्हारे पैदा होने से पहले के है। मेरी शादी वाले दिन तुम्हारे बापू ने मुझे यह तोहफा दिया था।"
"हाँ मुझे पता है, शादी वाले दिन दिया था। और इसी पेड के नीचे। वह मैं था। जिसने तुम्हें यह सिक्का दिया था। कुसुम, मैं ही तुम्हारा पति हूँ।" पवन के मुहं से अब दूसरी अनहोनी बात निकली।
"क्या? क्या बात कर रहे पवन! तुम मेरे बेटे हो,,,,,"
"हाँ बेटा हुँ, तुम ने मुझे जनम दिया है, लेकिन सच्चाई यह है तुम्हारा पति मैं ही हुँ। कोई कहिँ से नहीं आनेवाला। उस मेले में मैं ने ही तुम्हारा हाथ मांगा था। तुम से शादी भी की।" पवन के साथ साथ अब कुसुम को भी सच्चाई का सामना करना है।
"मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है पवन। तुम यह सब क्या कह रहे हो, क्यों कह रहे हो?"
"मुझे पता था, तुम मेरा यकीन नहीं करोगी। लेकिन सच तो यह है कि मैं आज भी,,,,,नहीं छोड़ो उस बात को। तुम्हें यकीन करना है ना! रुको, तुम्हें अब सच्चाई दिखानी पड़ेगी। मेरा हाथ पकड़ो।" पवन ने समययान को बाहर किया।
"यह क्या चीज है?"
"अभी पता चल जाएगा। तुम्हें सच्चाई का सामना करना है? तो मेरा हाथ पकड़ लो।" कुसुम को अभी तक कुछ समझ नहीं आ रहा था। पवन ने समययान को चालू किया। दोनों को घेरके गोल दायरे में पोर्टल जैसा कुछ बनने लगा। और एक लम्हें में पवन के साथ साथ कुसुम भी वहिँ पहुँच गई। अतीत में।
-------------
पवन ने अपनी मां को वो सिक्के झोली ने डाले उनके जैसा एक सिक्का उसके पास भी था पवन उसको सच्चाई बताता है पवन कुसुम को लेकर अतीत में भी जाता है देखते हैं आगे क्या होगा