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Incest : पुर्व पवन : (incest, romance, fantasy)

कहानी आपको केसी लग रही है।।


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Sanju@

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भाग 60

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समागम, पुनर्मिलन

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"माँ मैं नीलम के घर जा रही हूँ। तुम भईया का खाना पहुँचा देना।" राधा तैयार होकर अपनी माँ से कहती है।


"तू ही दे आती! मैं किस वक्त जाऊँ! घर पर इतना काम पड़ा है!"


"तो रहने दो अपने बेटे को भूका! चंचल मेरा इन्तज़ार कर रही है। मैं चलती हूँ।" कहकर राधा निकल गई।

कुसुम को मजबूरन खाना बांधकर खेत के पास आना पड़ा। पवन कुटिया में बैठा हुआ था। थोडी देर पहले ही आलोक उसे समययान थमाकर चला गया है।

"पवन! बेटा, मैं खाना लाई हूँ।" अपनी माँ की आवाज पे पवन चौंक जाता है। अभी वह माँ के बारे में ही तो सोच रहा था।


"हाँ हाँ, आओ ना! बैठो!" पवन ने कुसुम को बैठने के लिए जगह दी। कुसुम खाना सामने रखके बैठ गई।

"राधा नहीं आई?"

"वह अपनी सहेली के यहां गई है। वह नीलम है ना! उसके घर पे। पिछ्ले महीने को उसकी शादी हुई थी। अब मायके आई है !" कुसुम पवन की तरफ देखकर कहने लगी। पवन के पीछे पड़ी बोरियाँ कुसुम को दिख जाती है।


"ओ!"


"यह बोरियाँ क्या है? क्या है इसमें?" कुसुम पूछती है। पवन एकबार बोरियों की तरफ देखता है और फिर कुसुम की तरफ।


"अभी रुको बताता हुँ। तुम यहां बैठी रही।" पवन बोरियों के पास जाकर एक बोरी खींचकर लाता है। कुसुम समझ जाती है, बोरी में जरुर कुछ भारी भरकम कुछ रखा हुआ है।


"माँ, तुम अपना पल्लू फैला दो,,,,,हाँ,,,,गोदी में,,!" पवन के कहने पर कुसुम पसर के बैठ गई और उसने अपना गोद खोलकर अपने बेटे के सामने कर दी। उसे समझ नहीं आया पवन करना क्या चाहता है।


"यह देखो, इसमें क्या है!" पवन यह कहकर बोरी का सिरा खोलकर पूरा का पूरा कुसुम की गोदी में डाल देता है। बोरी में से हजारों सोने के सिक्के चमकते हुए कुसुम की गोद में गिरने लगे। कुसुम इस अचानक हादसे से अचंभित होकर रह गई। आधे से ज्यादा सिक्के जमीन में गिरकर मुद्रयोँ की आवाजें करने लगी।


"पवन, इतना सोने कहाँ से मिला! यह किसके हैं?" कुसुम सोने के सिक्कों से भारी मह्सूस करती हुई बोली।


"यह सब हमारे हैं। तुम्हारे हैं।" पवन ने निश्चिंत होकर कहा। वह कुसुम के पास बैठ गया।

"तुम्हें चोट लग जायेगी, अब इन्हें हटा दो।" पवन अपनी माँ की गोदी से सिक्कों को एक तरफ करके रख दिया।

"यह जो तीन बोरियाँ देख रही हो, इन में भी यही सिक्के पडे हैं। मैं इन से जमींदारी को मजबूत बनाऊँगा। गावँ में खुशहाली लाऊँगा। गावँ के लोगों को रोजगार दूँगा। तुम्हें एक अच्छी जिंदगी दूँगा।" पवन की आंखों में एक दृड़ प्रतिज्ञा की झलक थी। अपनी अतीत पत्नी और वर्तमान में माँ समान कुसुम से वह कहने लगा।


"लेकिन पवन! यह सिक्के? इतने सारे सिक्के? आये कहाँ से?" कुसुम ने पूछा।


"इसकी एक लम्बी कहानी है। मैं तुम्हें फिर कभी बताऊंगा। बस इतना जान लो, यह धन दौलत अवैध उपाय से नहीं आये। यह मेरी कोशिशों से मुझे मिला है।"


"तुम्हारे पिता कहा करते थे, वह एक दिन जमींदार बनेंगे। मुझे महारानी की तरह रखेंगे। मैं जमींदार की बीबी कहलाऊँगी। वह सपना तो सच नहीं हुआ! लेकिन तुम जमींदार बन गए हो। जमींदार की बीबी ना सही पर जमींदार की माँ बनने का सौभाग्य मिला है मुझे। मैं तुम्हारे लिए बहुत खुश हूँ पवन। भगवान करे, तुम्हारे दुश्मन भी तुम्हारा जयगान गाये। तुम एक अच्छा जमींदार बनना। गावँ में खुशहाली लाना। बस मेरी इच्छा है।" कुसुम अपने दिल की मुरादें बताने लगती है।


"जरुर करूँगा। तुम चिंता मत करो। मुझे तुम से एक बात पूछनी थी,!" पवन को अनजाने में अपनी माँ कुसुम को माँ कहकर बुलाने झिझक होने लगी थी। वह इस दूरी को मिटाना चाह रहा था।


"कौन सी बात?" कुसुम ने पलकें उंची की। कुसुम की इन्हीं सादगी पर तो पवन अपना दिल बैठा था। आलोक ने सही कहा था, समय समय के साथ उसकी माँ और ज्यादा सुन्दर हो चुकी है। काश की यह वाली उसकी बीबी होती।


"तुम्हें क्यों लगता है माँ! मैं अपने पिता जैसा दिखता हूँ? क्या मैं सचमुच उन जैसा दिखता हूँ? कुछ तो फर्क होगा। जैसे बोलना चलना फिरना?"


"हाँ पवन, तुम बिलकुल अपने पिता जैसे दिखते हो। और तुम दोनों में कुछ भी फर्क नहीं था। कभी कभी तुम्हें देखकर मुझे तुम्हारे पिता की याद आ जाती है। मैं सोचने लग जाती हूँ, मेरा पति मेरे सामने खडा है। तुम्हारे पिता से जब मेरी शादी हुई वह बिलकुल तुम जैसे दिखते थे। एकदम हुबहू। तुम मालती काकी से पूछ सकते हो। और जिसने भी तुम्हारे पिता को देखा है, उनसे मालुम कर सकते हो। काश वह दोबारा वापिस आ जाये।"

कुसुम कहकर मायुस हो गई। खुद पवन भी दिल ही दिल में घुटन महसूस करने लगा। अपनी माँ कुसुम को देखता हुआ पवन को कुसुम पर प्रेम का जुयार आने लगा। उसकी आंखें यह बता रही थी।


"पिताजी तुम से बहुत प्यार करते थे! है ना!"


"बहुत! तुम्हारे पिता जैसा पति मिलना मेरा नसीब था। लेकिन मुझे आज भी लगता है वह एक दिन जरुर लौटकर आयेगा। उसने मुझ से दो वादे किए थे। जिसके बदले मैं ने उनसे दो वादे किए।"


"कैसे वादे?"


"मेरे पति ने कहा था, उसने वादा किया था, वह एक दिन जरुर लौटकर आयेगा। वह एक अच्छा लम्हा था। तुम्हारे पति पहली बार आये और एक हफ्ता रुककर फिर एक दिन अचानक चले गए। मैं बहुत टूट चुकी थी। फिर तुम पैदा हुए। तुम्हारे होने के दो महीना बाद जब मैं ठीक हो गई थी, तुम्हारे पिता अचानक से एक दिन आ पहुंचे। मेरा पति मेरा सुहाग मेरे बच्चे बाप कितना प्यार करने वाला इन्सान था। मैं उनसे लिपटकर बहुत रोई। वह भी रोने लगे। वह एक महीना रुके थे हमारे घर। और इसी बीच एक दिन मुझ से वादा, कहा, कुसुम मैं शायद कभी भी किसी भी दिन यहां से चला जा सकता हूँ। मैं क्यों जा रहा हूँ, कहाँ जाता हूँ? समय आने पर एक दिन तुम्हें जरुर बताऊंगा। लेकिन तुम्हें मेरा इन्तज़ार करना होगा। चाहे एक महीना हो यह एक साल हो। चाहे दस साल हो, मेरा इन्तज़ार करना। मैं दोबारा जरुर लौटकर आऊँगा। यह मेरा वादा है। इसी लिए मैं पति ना होने के बावजूद आज भी अपनी माँग में सिन्दूर लगाती हूँ पवन। अपने पति के नाम की मंगलसूत्र पहनती हूँ। उसके लिए करवाचौथ ब्रत रखती हूँ। क्यौंकि मुझे यकीन है मेरा पति तुम्हारा जन्मदाता बाप एक दिन जरुर लौटकर आयेगा।" कुसुम कहती हुई उसकी आखें नम हो गई।


"और दूसरा वादा?"


"दूसरा वादा। मेरे पति ने वादा किया था वह एक दिन मेरी झोली में सोने के सिक्कों की धेड़ लगा देगा। सोने के सिक्के? सिक्के? रुको पवन। यह सिक्का दिखाना जरा!" कुसुम को कुछ याद आता है। वह पास पड़ा एक सिक्का उठाती है और उसे ध्यान से देखती है। उसकी आखें आश्चर्य से चमकने लगती है।


"रुको पवन! मैं अभी आई!" कुसुम ह्ड़बड़ाकर उठ खडी हूई। पवन कुछ समझ नहीं पाया।


"क्या हुआ माँ? तुम,,,,," पवन पीछे से कुछ बोलने लगा।


"मैं अभी आई पवन, अभी रुको।" कुसुम ने एक सिक्का अपने हाथ में लेकर घर की तरफ दौड लगाई। पवन सोच व विचार में पड गया। आखिर एसा क्या हुआ। पवन बिखरे हुए सिक्कों को समेटने लगा। कुछ ही देर बाद कुसुम हाँपती हुई आई।


"पवन? पवन? सच सच बताओ, यह सिक्का तुम्हें कहाँ मिला?" कुसुम का चेहरा बता रहा था वह किसी बात को लेकर परेशान है।


"मैं ने बताया तो है! यह हमारा है। लेकिन यह कहाँ से आया अभी मैं तुम्हें नहीं बता सकता! मैं तुम से झूट नहीं बोल सकता। लेकिन हुआ क्या है?" पवन को अब भी एहसास नहीं था।


"क्योंकि एसा ही एक सिक्का मेरे पास भी है। आज से नहीं। तुम्हारे पैदा होने से पहले। यह देखो।" कुसुम ने एक पूराना सिक्का पवन के आगे हाथ में रख दिया। एक सोने का सिक्का। जो सालों तक रहने के कारन जंग लगा हुआ था। पवन को याद आ गया, यह सिक्का उसने कुसुम को शादी वाले दिन इसी जगह पे दिया था। कुसुम ने यह सिक्का आज तक संभालकर रखा है। पवन खामोश था। लेकिन कुसुम को सच्चाई जाननी थी।


"नहीं पवन! मुझे सच्चाई पता करनी है। यह एक सुराग हो सकता है। जिससे हम तुम्हारे पिता तक पहुँच सकते हैं। उन्हें ढूंढ सकते हैं। यह कोई इत्तेफाक नहीं हो सकता। इसी तरह के दो और दो सिक्के मेरे पति ने तुम्हारी नानी को दिया था। उन्हीं सिक्कों को बेचकर हम ने इतने दिन तक गुजारा किया है। इत्ने सालों बाद मैं यह सिक्के देख रही हूँ। तुम्हारे पिता के पास इस तरह के सिक्के थे। मतलब यह सिक्का जहाँ से आया है वहिँ से हमें तुम्हारे पिता के बारे जानकारी मिल सकती है। बताओ मुझे पवन!"

कुसुम बेबसी की फुहार लगाती है। पवन को क्या कहना चाहिए, क्या करना चाहिए वह समझने में बिलकुल बेबस मह्सूस करने लगा। वह चहरे पर हाथ छुपाकर वहीं बैठ गया। आखिर कुसुम को वह किस तरह से समझा सकता है?


"मैं नहीं बता सकता माँ!" पवन ने अपनी बेबसी जाहिर की।


"नहीं पवन, तुम्हें मेरी कसम! तुम्हें,,,,,मेरे सुहाग की कसम! पवन मुझे बताओ!" कुसुम उसके पास बैठ गई। उसके हाथ पर हाथ देकर उसे समझाने लगी।


"मुझे जानना है पवन, यह सोने की मुद्राएँ तुम्हारे पास कहाँ से आये हैं?"


"मैं तुम्हें किस तरह से समझाऊँ!" पवन निगाह उठाकर कुसुम को देखता है। कुसुम बेचैन थी, परेशान थी, उत्सुक थी।


"चाहे वह बात जितनी भी कठिन हो, तुम कहो पवन!"


"पता नहीं तुम मेरा यकीन करोगी भी या नहीं! लेकिन सच तो यह है, यह सिक्का मैं ने ही तुम्हें दिया था।" पवन ने एक अतिशय आश्चर्य की बात कह डाली।


"लेकिन यह कैसे हो सकता? यह सिक्का मेरे पास तुम्हारे पैदा होने से पहले के है। मेरी शादी वाले दिन तुम्हारे बापू ने मुझे यह तोहफा दिया था।"


"हाँ मुझे पता है, शादी वाले दिन दिया था। और इसी पेड के नीचे। वह मैं था। जिसने तुम्हें यह सिक्का दिया था। कुसुम, मैं ही तुम्हारा पति हूँ।" पवन के मुहं से अब दूसरी अनहोनी बात निकली।


"क्या? क्या बात कर रहे पवन! तुम मेरे बेटे हो,,,,,"


"हाँ बेटा हुँ, तुम ने मुझे जनम दिया है, लेकिन सच्चाई यह है तुम्हारा पति मैं ही हुँ। कोई कहिँ से नहीं आनेवाला। उस मेले में मैं ने ही तुम्हारा हाथ मांगा था। तुम से शादी भी की।" पवन के साथ साथ अब कुसुम को भी सच्चाई का सामना करना है।


"मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है पवन। तुम यह सब क्या कह रहे हो, क्यों कह रहे हो?"


"मुझे पता था, तुम मेरा यकीन नहीं करोगी। लेकिन सच तो यह है कि मैं आज भी,,,,,नहीं छोड़ो उस बात को। तुम्हें यकीन करना है ना! रुको, तुम्हें अब सच्चाई दिखानी पड़ेगी। मेरा हाथ पकड़ो।" पवन ने समययान को बाहर किया।


"यह क्या चीज है?"


"अभी पता चल जाएगा। तुम्हें सच्चाई का सामना करना है? तो मेरा हाथ पकड़ लो।" कुसुम को अभी तक कुछ समझ नहीं आ रहा था। पवन ने समययान को चालू किया। दोनों को घेरके गोल दायरे में पोर्टल जैसा कुछ बनने लगा। और एक लम्हें में पवन के साथ साथ कुसुम भी वहिँ पहुँच गई। अतीत में।

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Awesome update
पवन ने अपनी मां को वो सिक्के झोली ने डाले उनके जैसा एक सिक्का उसके पास भी था पवन उसको सच्चाई बताता है पवन कुसुम को लेकर अतीत में भी जाता है देखते हैं आगे क्या होगा
 
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Sanju@

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भाग 61

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अतीत में

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जिस कुटिया के अन्दर अब तक पवन और कुसुम दोनों बैठे हुए थे, यहां अतीत में वह अभी तक बना नहीं था। सुबह का समय था। दूर गावँ में से लोगों की आवाजें आ रही थी। यह आवाजे मेले से आ रही थी।


"पवन! यह हम कहाँ आ गये हैं!?" कुसुम के लिए यह समझ पाना मुश्किल था। कुसुम हयरानी से इधर उधर देखने लगी थी।


"खुद देख लो! हम कहाँ हो सकते हैं? तुम बताओ!"


"यह बिलकुल हमारे गाँव जैसा लग रहा है। वही पहाड़ वही खेत, दूर गावँ और वह घर? वह घर बिलकुल हमारे घर की तरह लग रहा है। यह कौनसी जगह है। और हम यहां आये हैं किस तरह? यह सब क्या था पवन? और यह यंत्र? क्या है यह?" कुसुम के हजारों सवाल थे।


"आज तुम्हें सारी सच्चाई बताऊंगा। हाँ, यह गावँ हमारा गावँ है। हुबहू नहीं। बल्कि हमारा ही गावँ है। लेकिन आज से बाईस साल पहले वाला गावँ है। हम अतीत में आये हैं। और वह तुम्हारा घर है।"


"अतीत में? लेकिन यह कैसे मुमकिन है? नहीं तुम झूट बोल रहे हो।"


"खुद देख लो। वह घर किस का हो सकता है? यह खेत किनका है? यह वही खेत है जिसे तुम्हारे कहने पर मैं ने खेती करना शुरु किया था। मैं ने इन्हें साफ किया। जानती हो आज कौनसा दिन है? आज मोह मिलन मेले का आखरी दिन है। आज तुम्हारी शादी होनेवाली है। उस दूर मेले में। यहां बैठो, मैं तुम्हें पूरी बात बताता हूँ।" कुसुम जो अबतक एक अद्भूत स्थिति में थी, पवन की हर एक बात पे उसके विश्वास करने की क्षमता कम होने लगी। वह पवन को कम देख रही थी, बस आसपास के माहोल को देखकर उसकी आंखों पर यकीन नहीं हो पा रहा था।


"लेकिन पवन, यह कैसे मुमकिन है? तुम अतीत में कैसे? मतलब हम अतीत कैसे आ सकते हैं?" कुसुम पेड के साये में बैठ गई। पवन को आज के बारे में पूरी तरह से याद है। वह इस समय मेले में जा चुका था। शादी होने में अभी काफी समय बाकी है। इसी बीच वह कुसुम को आसानी से समझा सकता है।


"मैं तुम्हें सब कुछ बताऊंगा। लेकिन तुम्हें मेरा यकीन करना होगा। हम सच में अतीत में आ गये हैं। और यह सम्भव हुआ है इसके कारण।" पवन अपने समययान यंत्र को दिखाता है। धीरे धीरे वह आलोक की आपबीती बताने लग गया। आलोक ने क्यों उसे यह यंत्र दिया है? और फिर यहां वह किस तरह से आया हुआ था वह भी कुसुम के आगे रख देता है।


"मेरा यकीन करो कुसुम, मैं तुम्हारा दुख देख नहीं पाया। जब तुम मेरी माँ थी, मैं ने सोचा इस यंत्र के सहारे मैं अपने बाप को ढूंढ कर लाऊंगा। और इसी वज़ह से अतीत में आया। लेकिन यहां आकर पता चला, तुम्हारी माँ किस दर्द से गुजर रही है। मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हो गया। मुझे जो नहीं करना था, वही गलती मेरे से हो गई। मैं तुम्हें चाहने लगा। तुम्हें प्यार करने लगा। लेकिन फिर मैं ने सोचा यह गलत है इस लिए मैं किसी को कुछ बताये बगैर चला गया था। तुम्हें सबकुछ याद होगा कुसुम!" पवन ने कुसुम का हाथ थाम लिया।


"मुझे पता है। मैं उसदिन बहुत रोई थी।" लेकिन कुसुम अब भी रोने लगी थी।


"मैं ने दूसरी बार यहां आकर देखा मोह मिलन चल रहा है। तुम मेरे से बहुत नाराज थी। मैं ने तुम्हें और तुम्हारी माँ को बहुत समझाया। वह तुम्हारी शादी ना कराये। लेकिन वह जिद पर थी। मैं ने तुम्हें अपनी मजबूरी बताई भी थी।"


"हाँ मुझे याद है। तुम ने कई बार शादी करने से मना कर दिया था। तो क्या यही मजबूरी थी। की मैं,,,मैं भविश्य में जाकर तुम्हारी माँ बनने वाली हुँ?"


"हाँ। और भला मैं कैसे तुम से शादी कर सकता था?"


"लेकिन फिर भी तुम ने किया?"


"वह सिर्फ तुम्हारे और तुम्हारी माँ के लिए। उस लाला के चुंगल से तुम्हें छुड़ाने के लिए। मैं यह सब क्यों कह रहा हूं? तुम्हें सब पता है। अभी उस मेले में हमारी शादी हो चुकी है। थोडी देर बाद तुम यहीं आकर मुझ से मिलोगी।"


"इसी लिए तुम उदास रहते थे? मेरे पूछने पर भी मुझ से कुछ नहीं कहते थे?"


"हाँ कुसुम! मैं ने एक गलती जरुर की है। लेकिन वह सिर्फ तुम्हें उस लाला से बचाने के लिए। बचपन से सुनता आया हूँ मेरा बाप मुझ जैसा दिखता था। मैं अपने बाप जैसा दिखता हूँ। लेकिन अतीत में आकर देखा तो पता चला वहां मेरे जैसा कोई नहीं है। मुझे आकर तुम्हारा हाथ थामना पड़ा। और फिर मैं तुम्हें चाहने लगा। मैं ने शादी करने के बाद फिर पीछे मुडकर नहीं देखा। मैं ने हमेशा एक अच्छे पति बनने की कोशिश की है। लेकिन आखिर मुझे अपने समय पर जाना ही था। इस लिए ना चाहते हुए भी,अपने दिल पे पत्थर रखकर मुझे लौटकर आना पड़ा। तुम्हें शायद यकीन ना हो कुसुम, लेकिन यह सब कल ही बात थी। मैं बहुत टूट चुका था। मुझे बस तुम चाहिए कुसुम। मुझे और कोई नहीं चाहिए। मैं,,,,मैं ने यह जमींदारी भी तुम्हारे लिए हासिल की है कुसुम! मैं तुम से बेशुमार प्रेम करता हूँ कुसुम।" पवन की आंखें आँसुओं से भर गई। कुसुम भी अपने खोये हुए पति को देखकर अपने आप पर विश्वास करने की कोशिश करने लगी।

दोनों काफी देर तक चुपचाप बैठे रहे। कुसुम अपने घर की तरफ देखते हुए भरी आंखों से आंसू टपकाने लगी। पवन ने उसे अपने आप को सम्भालने का समय दिया। दोपहर हो गया था।


"क्या तुम मुझे शादी में ले जा सकते हो!" कुसुम ने पवन की तरफ देखते हुए कहा।


"नहीं कुसुम! मैं मेले में नहीं जा सकता। तुम जा सकती हो। लेकिन मैं तुम्हें अकेला नहीं छोड़ सकता। यहां इस काल में मुझे लोग पहचानते हैं। लेकिन तुम्हें नहीं। मेरा एक रूप अभी उस मेले में मौजूद है। थोडी देर बाद मेरा दुसरा रूप यहीं पर आयेगा।" कुसुम अब थोडी सहज मह्सूस करने लगी।


"इसी लिए तुम घर से ज्यादा बाहर नहीं निकलते थे! है ना! ताकी लोग तुम्हें पहचान ना लें।"


"हाँ कुसुम! लेकिन इससे ज्यादा मैं तुम्हारे साथ रहना पसंद था। मैं तुम्हारे प्यार में पागल हो गया था। हमेशा दिल करता था, तुम्हें अपनी आंखों के सामने रखूँ। तुम्हारे साथ रहूँ।"


"वह मुझे पता है! तुम क्या चाहते थे?" इत्नी देर बाद आखिरकार कुसुम के चेहरे पर मुस्कान खिल गई।


"अच्छा? तो बताओ! मैं किस लिए तुम्हारे पास रहता था?"


"बेशरम!"


"वह देखो कुसुम, वह आ रहे हैं। तुम ने शायद ध्यान नहीं दिया, कुछ देर पहले तुम्हारी माँ घर पर आ गई थी।" कुसुम ने नजर लगाई, सच में पवन के साथ छोटी कुसुम चली आ रही है। कुसुम अपने आप को देख रही थी।


"यह सपना तो नहीं?"


"नहीं कुसुम! यही सच्चाई है। वह देखो कुसुम घर में चली गई। अब पवन इधर ही आयेगा। यहां से चलो कुसुम। कहिँ वह हमें देख ना लें। जल्दी करो। अगर उसने देख लिया, तो सब कुछ बर्बाद हो जाएगा।" पवन की चेतावनी पे कुसुम मारे जल्दी के उठ खडी हो गई। और दोनों वहीं कुछ दूरी पर एक पेड के नीचे छुपने लगे।


"यहां नहीं। पागल कहिँ के! वह हमें देख लेगा। उस पत्थर के पीछे चलो।" कुसुम ने पवन को कहा। दोनों बड़े से उस पत्थर के पीछे छिप गए। पथर के पीछे थोडी घास थी। जिसपर दोनों बैठ गए। यहां से झांकने पर वह दोनों बिना किसी की नजर में आये अतीत के पवन को देख पा रहे थे। भागदौड़ी में दोनों की सांसे फूलने लगी थी। और जब दोनों कुछ शान्त हुए, तो इस नादानी के खेल में दोनों एक दूसरे को देखकर हँसने लगे। फिर पवन ने मुहं पर हाथ रखते हुए कहा, चुप चुप!
भाग 62

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अतीत में पवन-पवन

छोटी कुसुम-बड़ी कुसुम

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अतीत का पवन बिचलित मन से पेड के नीचे बैठा हुआ है, जहाँ कुछ ही दूरी पर पवन और कुसुम एक दूसरे के सामने बैठे एक दूसरे को देख रहे थे।


"अब मैं सारी बात समझ पा रही हूँ। क्यों तुम मुझ से दूर जाना चाहते थे। लेकिन वह सिक्का! वह कहाँ से आया है? इतना सोना तुम्हें कहाँ से मिला!" पवन और कुसुम छोटी सी जगह पर आमने सामने बैठे हुए हैं। कुसुम अब मन ही मन में पवन को स्वीकारने लगी थी।


"उस के बारे में मैं तुम्हें फिर कभी बताऊंगा कुसुम! यह एक अलग कहानी है। मैं किसी की मदद कर रहा हूँ। जिसके बदले वह मुझे यह धनराशि देता है।"


"तुम्हारी हर एक बात उलझी हुई है। तब भी आज भी। चलो छोड़ो, तुम वहां बैठकर क्या सोच रहे थे? मेरे आने से पहले?"


"बहुत बेतुकि सोच है। कैसे बताऊँ तुम्हें! एक तो अतीत में आकर तुम्हारे प्यार में गिर जाना। यह जानते हुए भी की बाद में चलकर तुम मेरी माँ बनने वाली हो। मैं ने सोचा था, सचमुच मेरे जैसा कोई होगा जिससे तुमने शादी की होगी। लेकिन यहां आकर पता चला, वह लाला तुम्हारे पीछे पड़ा है। अब मैं कैसे उसे अपना बाप बनने दे सकता था! और तुम्हारा चेहरा देखने लायक था। किस तरह से मुझ नाराज थी। बारबार मुझे घूर रही थी। अब मैं क्या करता? बताओ। बनने देता उस लाला को तुम्हारा पति!"


"तो मैं क्या करती? मुझे क्या पता था, तुम बाद में चलकर मेरा बेटा बनने वाले हो।"


"अगर उसदिन मैं तुम से शादी ना करता तो आज ना मैं पैदा होता और ना ही तुम्हारा पति होता।"


"सच मे?"


"हाँ कुसुम, यही सच है। मैं पैदा हुआ। फिर मेरे साथ वह सब हुआ जिसके कारन मुझे अतीत में आना पड़ा। और मैं तुम्हारा पति बना। लेकिन इसमें सिर्फ मेरा कसूर नहीं है। तुम थी ही इतनी सुन्दर की मैं भूल गया तुम मेरी माँ हो। मैं तुम से प्यार कर बैठा। अब तुम बताओ कुसुम! क्या मैं ने सही किया?"


"हाँ, तुम ने सही किया था। मेरी अम्मा कहा करती थी, पवन से अच्छा लड़का तुझे नहीं मिलेगा। तू इसी से बियाह करना। और मैं ने सोच लिया था, अगर तुम्हारे साथ मेरा बियाह ना हुआ तो मैं अपनी जान दे दूँगी। लेकिन फिर तुम ने मेरा मांगा। पर तुम मुझे छोड़कर क्यों चले गये थे? मेरे साथ क्यों नहीं रहे तुम?"


"वह इस लिए कुसुम! क्योंकि मैं अतीत का नहीं हूँ। अगर मैं अतीत में ज्यादा देर रुकता फिर मेरी जिंदगी पे खतरा हो जाता।"


"यह सब कितने दिन पहले हुआ? तुम पहलीबार कब आये थे यहां?"


"यही कोई दस दिन पहले। फिर दोबारा आया! और एक हफ्ता तुम्हारे साथ रुका।"


"तो मतलब एक हफ्ता रुके रहने से तुम्हारा समय नहीं बदला?"


"नहीं कुसुम, वर्तमान में हमारा समय नहीं बदलेगा। हम जिस वक्त यहां आये थे, जब हम लौटेंगे तो वही समय होगा। समझ पा रही हो? कित्ना अजीब है यह?"


"वह चीज तुम्हें मिली क्या? जिसे तुम ढूंढ रहे हो?"


"अभी तक नहीं कुसुम! हो सकता है बाद में पता चल जाये। वह देखो कुसुम आ रही है।" छोटी कुसुम इतने में आकर उसके पास बैठ गई।

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भाग 63

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"तुम्हें याद है? हम इस समय वह दोनों क्या बात कर रहे हैं?" पवन ने पूछा।


"मुझे एक एक लम्हा याद है! मैं तुम्हारे साथ ज्यादा लम्हा गुजार नहीं पाई। इस लिए तुम्हारे साथ बिताये हुए इन्हीं लम्हों को याद करके आज भी जीती रहती हूँ। तुम बताओ तुम क्या सोच रहे थे?"


"मैं? मेरा लिए यह बडा कठिन लम्हा था। तुम्हें पत्नी स्वीकार करना। अब तक मुझे यकीन हो गया था, तुम भविश्य में अपने जिस पति के बारे में कहती रहती हो, मैं अपने बाप जैसा दिखता हूँ वह असल में मैं ही हूँ। इस लिए मैं ने भी अपने दिल को तसल्ली दी। तुम्हें बीबी मान लिया और जितना समय लम्हा तुम्हारे साथ बिताया एक पति का फर्ज निभाया। क्या तुम भी मुझ से उतना ही प्यार करती थी? जितना मैं?" पवन और कुसुम एक दूसरे से फुसफुसाकर बातें कर रहे थे।


"तुम्हें पता है।"


"लेकिन अब क्या? तुम क्या चाहती जो कुसुम!" कुसुम ने पवन की आंखों में झांककर देखा। आंखों की झलक में कुसुम के लिए बेशुमार प्यार था, और यह प्यार उसके खोये हुए पति का था।


"तूम क्या चाहते हो! तुमने कहा तुम ने जमींदारी भी मेरे लिए हासिल की?" पेड के नीचे अतीत का पवन और कुसुम अपने प्रेमगाथा संवारने का आयोजन करने लग गए थे।


"हाँ कुसुम। मैं ने जमींदारी तुम्हारे लिए हासिल की है। मैं तुम्हें जमींदारनी बनाना चाहता हूँ। तुम्हें खुशी देना चाहता हुँ, जिसका मैं ने वादा किया था। तुम्हारी झोली में मैं ने सोना उँडेल दिया है। अब यह तुम्हारे ऊपर है। तुम मुझे क्या स्वीकार करना चाहती हो? मेरे लिये यह कल की बात है जब तुम मेरी बीबी थी।"


"लेकिन लोग? घरवाले? राधा? चंचल आँचल? उनको क्या जवाब दोगे पवन? क्या वह लोग इन सब बातों पे यकीन करेंगे?" कुसुम स्वीकारना चाह रही थी, लेकिन वह दुविधा में फंस गई।


"वह तुम मुझ पर छोड़ दो। मैं तुम्हारी इज्जत पे कभी आंच नहीं आने दूँगा। बस यह बात हमेशा हमारे बीच रहेगी। मैं तुम्हारा बेटा होकर भी तुम्हारा असली पति हुँ। यह बात सिर्फ हम दोनों को मालुम होगी। मैं लोगों के सामने तुम से रस्म व रीति रिवाजों के साथ विवाह करूँगा। तुम्हें एक जमींदार की पत्नी बनाऊँगा। बताओ मुझे कुसुम? तुम अतीत की तरह मेरी बीबी बनकर रहोगी?"


कुछ देर कुसुम खामोश रही। वहीं पेड के नीचे अतीत का पवन और कुसुम एक दूसरे से प्यार जाहिर करने में जुट गए। कुसुम के सामने अतीत वर्तमान भविश्य सब कुछ घुलमिल गया। उसकी नजरों में सिर्फ और सिर्फ पवन का चहरा दिख्ने लगा। वही पवन जो आज सुबह तक उसका लड़का था, और आज इस समय वही उसका पति परमेश्वर है। कुसुम ने एकटुक पवन की तरफ देखा और फिर,,,,वह पवन से लिपट गई।

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"मेरे पवन! मैं इसी दिन का इन्तज़ार कर रही थी। मेरी माँग की सिंदूर को तुमने बचा लिया पवन। मेरे मंगलसूत्र की लाज रख ली तुम ने। मुझे यकीन था, तुम जरुर आओगे। अब मैं दोबारा तुम्हें नहीं खोना चाहती। नहीं खोना चाहती तुम्हें। मेरे पवन। मेरे पति। मेरे बच्चों के पिता। तुम्हारी कुसुम आज भी तुम उतना ही प्यार करती है जितना पहले करती थी। और हमेशा करती रहेगी।"


"मुझे माफ कर दो कुसुम। मैं ने तुम्हारा दिल दुखाया। तुम्हें बेसहारा छोड़ कर आ गया। मैं वह सारी कमियां दूर करना चाहता हूँ। तुम्हारे साथ रहकर पति धर्म निभाना चाहता हूँ। मेरी कुसुम!"


दो बिछ्डे प्रेमी एक दूसरे से गले मिले एक दूसरे के शरीर में समा जाना चाहते थे। शाम के माहोल में आसपास का वातावरण उनके प्रेम की गवाही देने लगे। घर लौटते पंछी परिंदो ने अपनी गीतों से पवन और कुसुम को बधाईयाँ देने लगी। कुसुम तन मन धन से पवन को अपना खोया हुआ पति मान चुकी है। अतीत के भंवर की सच्चाई से कोई आखिर कैसे मुहं फेर सकता है।


"तुम आज भी वैसे ही दिखते हो, जैसे पहले दिखते थे।"


"वह इस लिए क्यौंकि परसों की ही बात है जब मैं तुम्हारे पास आया था। और आज देखो मैं पैदा होकर इतना बडा बन गया हूँ।" पवन ने मांद मुस्कराया।


"और मैं बुड्डी हो गई।"


"किसने कहा तुम बुड्ढी हो गई हो। तुम पहले से बहुत जवान दिखने लगी हो। मुझे जो कुसुम मिली थी वह दुबली पतली नाजुक थी। उसे सम्भाल पाना आसान था। लेकिन यह कुसुम अपनी जवानी से मुझे घायल कर देगी। इस कुसुम के सबकुछ बड़े बड़े हैं।"


"पागल! एकदम वैसे ही रह गए तुम। छेडने की आदत गई नहीं तुम्हारी।"


"कैसे जायेगी! तुम दिन गुजरने के साथ साथ और ज्यादा खुबसूरत हो गई हो। मैं बेटा होकर भी तुम्हें देखता रहता। अब तो पति भी बन गया हूँ। अब मुझ से कौन छुड़ायेगा तुम्हें?"


"मुझे तुम से डर नहीं लगता! मुझे किसी और चीज से डर लगता था।" कुसुम का चेहरा खिल उठा। पवन को देखकर अब वह पहले जैसे शर्माने लगी। वहीं दूसरी तरफ पवन कुसुम के ऊपर चड गया था। अब बस उनका क्रिया-कलाप शुरु होने वाला है। कुसुम की शरारत भरी बात पे पवन ने कुसुम को अपनी तरफ खींच लिया।


"एक पत्नी को कभी अपने पति से नहीं डरना चाहिए। तुम सिर्फ मेरी हो कुसुम।" पवन ने कुसुम को अपने गोद में बिठा लिया।


"धीरे! पागल हो गए हो क्या? वह दोनों हमारी आवाज सुन लेंगे।" कुसुम उसकी गोद में बैठकर कसमसाने लगी।


"वह देखो, तुम्हारा मिलन शुरु हो गया है। तुम्हारे पवन ने तुम्हें आखिर अपना बना ही लिया। चड़ा लिया ना अपने ऊपर! कितनी नादान थी तुम। और बड़ी बेसब्रा भी!"


"खबरदार अगर कहा तो! मैं नहीं हूँ बेसब्रा। तुम ही उतावले हो रहे मुझे पाने के लिए।"


"अच्छा! किस ने कहा था, शादी के दिन पति पत्नी में क्या होता है? और वह चुदाई! तुम ने ही कहा था। तुम उतावली हुई थी। मुझे अपने अन्दर समाने के लिए।"


"बिलकुल नहीं। तुम ने घुसाया था।" कुसुम पवन से और ज्यादा लिपट गई।


"और तुम ने खोलकर परोस दिया था।" पवन उसके कान में दबाते हुए कहा।


"इश! आह्ह्ह्ह! तुम,,,,,तुम आज भी कितने गंदे हो।" पवन उसके गालों पे एक प्यार का चुंबन अंकित कर देता है। कुसुम इत्ने सालों बाद मरदाना स्पर्श से सिहरने लगी।


"अपनी कुसुम को दोबारा छोड़कर तो नहीं जाओगे!" कुसुम पवन का प्यार का आनन्द लेते हुए बोली।


"कभी नहीं। मैं ने अपने बच्चों को पैदा होते हुए नहीं देखा। लेकिन अब देखना चाहता हूँ।" वह कुसुम के होंठ पर केंद्र आकर्षित करता है। पवन को अपना प्यार मिल चुका था। वह कुसुम को अपनी बाहों में भरकर एक अपनापन सुखद अनुभूति मह्सूस करने लगता है।


"आहहह, मेरे पवन! तुम्हारी कुसुम ने इन सालों में बड़ी कठिनाइयों का सामना किया है। तुम ने मेरी सिंदूर की लाज रख ली। मेरे मंगलसूत्र को बचा लिया है। मेरे पति परमेश्वर! तुम्हारी कुसुम अन्दर से आज भी एक क्ंवारी लड्की समान है। मैं ने सिवाए दो बच्चों को जनम देने के कुछ नहीं किया। अब मैं एक बीबी की तरह रहना चाहती हूँ। तुम्हारे साथ घर बसाना चाहती हूँ। तुम्हारे बच्चों को फिर से जनम देना चाहती हूँ। मेरे सारे सपने पूरे करोगे ना!"

पवन उसे चूमता हुआ उसके सामने आ गया, कुसुम की साड़ी का पल्लू एक तरफ सरक गया। कुसुम ऊपर से सिर्फ ब्लाऊज में आ गई। पवन की गोद में बैठकर इन अत्याचारों से कुसुम का पेतिकोट भी पैरों को नंगा कर गया। उसने दोनों पैरों से पवन की कमर को कसके पकड़ लिया।


"तुम्हारे सारे सपने अब मेरे हुए। तुम भी मेरी हुई। तुम्हारा सबकुछ मेरा हुआ!" पवन बेतहाशा कुसुम को चूमने लगा। उसे बोस व किनार करने लगा। हाँपती कुसुम की धड़कन तेजी से धडकनें लगी। उसका सिना जोरों से ऊपर नीचे होने लगा। इतने सालों बाद किसी मर्द का स्पर्श कुसुम को पागल बना रहा था।


"हाँ पवन, मैं हमेशा तुम्हारी थी। मुझे क्या पता था, मेरी कोख से निकला बच्चा ही एक दिन मेरा पति बन बैठेगा? मैं तुम्हारी अमानत थी। तुम्हारे लिए,,,, सिर्फ तुम्हारे लिये मैं ने इत्ने सालों से अपने आप को संभाले रखा है। देख लो अपनी कुसुम को। तुम्हारी कुसुम आज भी वैसी ही है।" कुसुम की आंखे उलट गई। उसे पवन के अस्त्र का अनुभव हो गया। पवन का जानवर नीचे बहुत गुर्राने लगा था। उसे अब अपनी आश्रय चाहिए थी। वहीं अतीत के पवन और कुसुम के बीच सम्भोग क्रिया आरम्भ हो गया था। पवन ने एकबार उस तरफ देखा तो उसके शरीर में सनसनी पैदा हो गई।


"वह देखो कुसुम! तुम्हारा पवन किस बेरहमी से तुम्हें चोद रहा है।" पवन के कहने पर कुसुम नजर उठाकर देखा तो पवन वहां कुसुम की योनि भेद चुका था। उनका सम्भोग पहले चरन में पदार्पण कर चुका है। उन्हें देखकर कुसुम के पूरे शरीर में बिजली की तरंग दौड गई।


"मेरा पवन हमेशा बेरहम रहा है। उसने कभी मुझे छोड़ा नहीं। हमेशा बेरहमी के साथ किया है जो कुछ करना है। यह तुम्हारा अवजार! देखो कितना मचल रहा है।"


"यह तुम्हारे कारन मचल रहा है कुसुम! लेकिन सोच रहा हूँ पहली बार जब उस जगह तुम्हें चोदा था, तुम्हारी कोमल बुर की छेद से कितना खून बहा था। क्या आज भी वही होगा!"


"ही ही ही! एसा नहीं होता पागल! पहलीबार ही होता है।"


"जरा दिखाओ ना, अपनी वह कोमल चूत की छेद, जिससे तुम ने मुझे जनम दिया।"


"नहीं, अभी नहीं। तुम मेरी छेद देखकर हर बार पागल हो जाते हो। कितना तेज तेज धक्का मारते हो, याद है मुझे! तुम्हारा यह लौड़ा काफी देर से नीचे तडप रहा है। अब इस बेचारे को आजाद कर दो।" कुसुम ने पवन की अनुमति की परवाह नहीं की, उसने थोड़ा ऊपर उठकर खुद ही पवन की धोती सर्काके पवन का वह जाना पहचाना लण्ड बाहर निकाल लिया।


"हाए, यह तो आज भी कितना भयानक लग रहा है। उसी तरह से गुस्सा नजर आ रहा है। लगता है इसे आजाद नहीं, कैद करना पड़ेगा।"


"कर दो फिर। अब मुझ से यह दूरी बर्दाश्त नहीं होती। अपने अंद्रर समा जाने दो कुसुम। बहुत तडपा हूँ मैं।" पवन बेबस नजर आने लगा। उसने ऊपर उठी कुसुम की साड़ी खुद ही ऊपर चडाकर कर कमर में बान्ध दी। कुसुम मारे लज्जा में पवन से और ज्यादा लिपट गई। नंगी चूत की दरारों में पवन का लण्ड सांप की तरह ठोकर मारने लगा। इससे कुसुम और ज्यादा पनपनाने लगी।


"मुझे अपना बना लो पवन! मैं फिर से जीना चाहती हूँ।" दोनों बिछ्डे प्रेमी पागलों की तरह प्यार में खो गए। पवन कुसुम को, कुसुम पवन को चुंबन से हाथों से शरीर के स्पर्श से अपने प्यार का एहसास दिलाते रहे। बैठे बैठे ही दोनों के उग्र प्यार ने उन्हें बिलकुल नंगा कर दिया।
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है
पवन अपनी मां को अतीत में जो हुआ वो सब दिखा देता है दोनो छुपकर देखते हैं की केसे पवन कुसुम की चुदाई करता है कुसुम भी पवन को अपना पति के रूप में स्वीकार कर लेती है और दोनो में फिर एक बार चुदाई हो जाती है अब देखना है की आगे क्या होता है पवन उसे कैसे अपनी पत्नी बनाता है गांव में
 

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भाग 64

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उत्तेजित शरीर और पनपती चूत से कुसुम खुद भी बेहाल हो चुकी थी। पवन की गोद में बैठकर सम्भोग आसन भी उचित स्तर पर था। कुसुम की रसीली चूत को भेदने में पवन को ज्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा। खडा लौड़ा उल्टी चूत की सुराख को आसानी से भेद गया। कुसुम पवन की गोद में बैठकर उठक बैठक करने लगी। कभी कभी पवन भी नीचे से लौड़े को चूत और अन्दर तक घुसाने की कोशिश करता।


"इसी पल का मुझे बेसब्री से इन्तज़ार था। आज जाके वह इन्तज़ार खत्म हुआ।"


"अब यह कभी खत्म नहीं होगा। पूरी जिंदगी बस तुम्हें चोद्ता रहूँगा।" पवन के कडक शरीर से लिपटी कुसुम मदहोश होने लगी।


"भगवान करे तुम्हारा प्यार कभी खत्म ना हो। तुम हमेशा मुझे एसे ही सताते रहो।"


"तुम बुर आज भी उसी हाल में है, जिस तरह पिछ्ली बार इसे छोड़कर गया था। लेकिन ज्यादा दिन तक तुम्हारी चूत एसी नहीं रहने वाली। यह बहुत जल्द भोसडा होने वाली है। यहां अब मेरा बच्चा पैदा होगा। जिस तरह मैं पैदा हुआ।"


"उसी दिन का इन्तज़ार है। जब मैं दोबारा माँ बनूँगी। तुम्हारे बच्चों को जनम दूँगी। तुम ने अपना वादा निभाया है। तुम्हारी कुसुम भी अपना वादा निभाएगी।"


"कौनसा वादा!"


"क्यों भूल गए? तुम ने मुझ से दो वादे किये थे, मैं ने भी तुम से दो वादे किये थे। तुम अपना वादा पूरा किया। मुझे जमींदार की बीबी बनने का सौभाग्य दिया। मेरी झोली में दौलत का भंडार डाल दिया। अब मेरी बारि है।"


"और वह वादे कौन कौन से हैं?" पवन को इस बारे में नहीं पता था। कुसुम किस वादे की बात कर रही थी। जहाँ तक उसे पता है, कुसुम ने उसे साथ एसे किसी वादे का जिक्र नहीं किया था।


"बड़े भुलक्कड हो। क्यों भूल गए? मैं ने वादा किया था, तुम चाहो तो दूसरी शादी कर सकते हो। और मैं हमेशा अपने कोख में तुम्हारा बच्चा पालूँगी। अपनी जवानी के आखरी दिन तक तुम्हारी सन्तानों को जनम देती जाऊँगी। अब याद आया?" कुसुम की बात से पवन हतचकित हो गया। कुसुम ने एसे वादे किये थे उसके साथ? संवेदनशील बातों से पवन का शरीर और ज्यादा अकड गया। उसका लौड़ा इस नाजुक मोड़ पर लोहे जैसा सख्त बन गया।


"हाँ याद आया! सब कुछ याद है मुझे! तुम्हारी एक एक बात।" पवन झूट बोलता है। कुसुम को अपनी बाहों में लेकर पवन नीचे से उसकी पनपती चूत में लौड़ा ऊपर नीचे करने की कोशिश करता है। लेकिन उससे ज्यादा कुसुम इस काम मदद करती है।


"आअह,, कितने दिन से मैं इस सुख से वंचित थी। मुझे कितना मजा आ रहा है पवन! तुम्हारा यह अवजार वैसे का वैसा है। वह देखो, तुम्हारा वह पवन! किस तरह से मुझे चोद रहा है। तुम्हें बिलकुल भी नहीं लगा मुझे दर्द का एहसास हो सकता है।"


"कैसे होगा! तुम खुद इतनी उतावली होती है। जब तुम्हारी बुर में लौड़ा डालता, तुम खुद मुझे और जोरों से धक्का लगाने को कहते। तुम्हें याद है? तुम्हारी अम्मा ने तुम्हें समझाया था! उस दिन मैं घबरा गया था। लेकिन तुम ने उन्हें खरी खोती सुना दी। बेचारी को क्या पता, उनकी बेटी खुद चुदवाने को मरी जा रही है।"


"उनकी गलती नहीं थी! सब तुम्हारी गलती थी, मैं उस वक्त काफी दुबली पतली थी। तुम्हारे इस मोटे लण्ड को बरदास्त करना किसी क्ंवारी लड्की काम नहीं है। इस लौड़े के लिए कोई बुर चुदी औरत चाहिए। तुम जब मुझे चोद्ते कभी मेरे बारे में नहीं सोचा। बस चोद्ते गए। चोद्ते गए। उसका क्या नतिजा निकला वह तुम्हें अच्छी पता है। मैं चल भी नहीं पा रही थी। टाँगों में इतना दर्द, चूत में इतनी जलन! मेरी जगह होते तब पता चलता तुम्हें! एसे भी कोई चोद्ता है क्या?"


"मुझे तो एसे ही चोद्ना आता है बस। यह चुदाई करना भी तुम ने सिखाया था।"


"आअह, यह लौड़ा तो मेरी जान ले लेगा। काश तुम मुझे काफी पहले मिल चुके होते, इतने सालों तक चुदवा चुदवाकर मैं अपनी चूत और खुलवा लेती। तुम्हारे लिए आसान होता। मैं भी और बच्चों की माँ बन जाती।" जगह की संकीर्णता की वजह से वे दोनों लेट नहीं सकते थे। इसी कारन बैठे बैठे ही चुदाई अंजाम देते रहे। शाम का अन्धेरा छाने लग गया। इतनी देर में दोनों ने ध्यान दिया, अतीत का पवन और कुसुम की चुदाई समाप्त हो गई थी। वे दोनों पास पास लेटे सुस्ताने लगे।


"तुम्हारा वाला तो हार गया। देखो! मेरा वाला अब भी मुझे पेले जा रहा है।" कुसुम ने पवन को कहा।


"मेरी वाली तो मेरे से पहले हार गई। देखो बेचारी को! उसकी चूत से कितना खून निकला है। बेचारी ने जिंदगी में पहली बार चुदाई करवाई, वह भी मेरे जैसे लौड़े से, एसा तो होना ही था। अब भुग्तो! पसर गई बिलकुल।" पवन ने कुसुम को चिढाया।


"उसे क्या पता! जिस लडके से वह प्यार कर बैठी, उसके पास इतना महा मोटा लौड़ा होगा! लेकिन यह कुसुम की किस्मत थी, जो उसे पवन जैसा पति मिला। कुसुम बुर पवन ने फाड़ी है। कुसुम की चूत पे सिर्फ पवन का अधिकार है। पवन ही कुसुम की बुर का मालिक है।"


"हाँ कुसुम! तुम सिर्फ मेरी हो।" चुदाई समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा था। मिलन में पवन कुसुम अपने पुराने दिनों में जीने लगे। चुदाई चलती रही। और उनका प्यार गहरा होता गया।

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भाग 66

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रात काफी उतर चुकी है, धीरे धीरे आसपास और ज्यादा सन्नाटा हो गया। पेड़ों पौदों में बसने वाले छोटे मोटे कीडे मकोडे की भिनभिन आवाजों ने मधुर संगीत लगा रखी थी। पवन काफी देर तक कुसुम के ऊपर पड़ा रहा। कुसुम की मोटी मोटी टाँगें पसर गई थी, उसने अंधेरे में आंख खोलकर देखा, पवन उसे ही देखे जा रहा है।


"समय के साथ तुम और ज्यादा खुबसूरत हो गई हो कुसुम! कल की बात थी, जब मैं उस दुबली पतली कुसुम को चोद्ता था, और आज तुम मिल गई। तुम्हारा यह दूध कितना बडा हो गया है। जी करता है इन्हें खा लूँ। काश इनमें दूध होता। फिर और मजा आता।" पवन कुसुम की बड़ी बड़ी चुचियों को मसलने लगता है।


"तुम ने ही बडा बनाया है इन्हें! पहले मेरा इतना बडा नहीं था। इत्ना दूध पीकर भी चैन नहीं मिला तुम्हें! और कितना पियोगे मेरे सैंया!" कुसुम उसे चियँटी काट देती है।


"मैं ने कब पिया!"


"अच्छा, फिर मेरी चुची से किसने दूध पिया? सब भूल गए तुम!"


"ओह! मैं उसकी बात नहीं कर रहा, मैं अपने बारे में कह रहा हूँ। मुझे भी इनसे दूध पीना है। बहुत सारा। बचपन में तो बच्चे दूध पीते हैं। उसमें कहाँ मजा मिलता है बताओ!" पवन ने उस दूध पर अपना मुहं लगा दिया। और एक मरदाना स्वभाव के साथ बच्चे की तरह चुची के दाने को चूसने लगा।


"आहहह,,,,इशश,,,,, क्या करते हो, पूरा पसीना हो गया है। दबा दबाकर चोद्के भी तुम्हारा मन नहीं भरता। अब मेरे दूध के पीछे पड गए? मैं नहीं पिलाती दूध। मेरा दूध सिर्फ मेरा बच्चा पियेगा। जिसे मैं जनम दूँगी। समझे सैंया जी! बचपन में तुमने मजे ले लेकर दूध पिया है मेरा। तुम्हारे मारे राधा को ज्यादा दूध नहीं पिला पाती थी मैं। सारा दूध तुम अकेले पी जाते थे। आँचल तक मुझ पे हँसा करती थी। कहती थी, तेरा लड़का जरुर तेरा दीवाना निकलेगा! नहीं तो सूखी चुची आखिर कौन चूस्ता है?" पवन चुची चूसने में लगा था, कुसुम उसके बालों में उंगली फेरके प्यार का मजा लेने लगी।


"लेकिन मौसी तो कहती है, मैं ने उनका दूध पिया है? तुम्हारा दूध तो मैं ने छोड़ दिया था?"


"झूट! कहिँ मैं सारी बात उससे बताती रहती! पागल! तुम बचपन से ही बहुत शरारत करते थे। मेरा दूध बन्ध होने के बाद भी कई साल तक तुम सूखी चुची चूस्ते रहे। जब तक रात को दूध ना पिलाती थी तुम सोते नहीं। रात को तुम्हारे कारन ही मुझे नंगा लेटना पडता। खुद भी नंगा लेट्ते, मुझे भी लेटना पडता। तुम्हारे बचपन की कितनी बात बताऊँ मैं? कितना परेशान करते थे तुम! शायद आगे चलकर तुम्हें मेरा पति बनना था, इसी लिए यह सब हुआ!" कुसुम प्यार से पवन को चूमती है। दो होंठ आपस में कुछ देर के लिए मिल गए।


"अच्छा!! इतनी शरारत करता था मैं? मुझे तो याद ही नहीं है? हाँ, मतलब याद है, लेकिन थोड़ा थोड़ा!" पवन मुस्कुराने लगता है।


"क्या याद है तुम्हें? कौनसी बात?" कुसुम की मादक बातों से पवन के अन्दर फिर से उर्जा उतपन्न होनी शुरु हो गई थी, उसने कुसुम को अपने ऊपर चढा लिया।


"वही, जब तुम घर के पीछे शौच करने जाया करती थी, राधा भी जाती थी तुम्हारे साथ!" कुसुम पवन के ऊपर चढ़कर उसके लिपट गई। उसके बड़े बड़े मम्मे पवन के सीने से चिपक गए। उसकी मादक गांड पवन के पेट में सुर्सूरी पैदा करने लगी।


"और तुम हमारे साथ जाने की जिद करते थे। कितने बदमाश थे तुम! जब भी मैं और राधा मूतने या हगने को जाती, तुम जरुर पीछे पीछे आ जाया करते थे। राधा को बड़ी शर्म आती थी। हमें मूतता हुआ देखकर तुम्हें बडा अच्छा लगता था। वहीं चूत के साम्ने बैठ जाते थे। बदमाश कहिँ का! शर्म भी नहीं आती थी तुम्हें! चूत से पेशाब की धार निकल रही है और तुम सामने बैठकर बड़ी बड़ी आंख्ँ निकालकर देख रहे हो? और कितनी गंदी गंदी बात बोलते थे!" कुसुम यह सब बातें कहती हूई शर्मा जाती है। वह पवन से चिपक जाती है।


"क्या क्या कहता था मैं?"


"मैं नहीं बता सकती! बहुत गंदी बात है!" कुसुम अपना चहरा छुपाने की कोशिश करती है।


"बताओ ना कुसुम! तुम्हारा पवन क्या क्या कहता था? तुम्हारी वह चूत देखकर। मुझे सबकुछ याद नहीं है!"


"अब कैसे बताऊँ! आज तुम मेरी सारी लाज शरम हटा दोगे, लगता है। मैं अच्छी भली संस्कारी औरत थी। तुम ने अपना लौड़ा चूत में डालकर, मुझे यूँ बेदर्दी से चोद्कर फिर से पहले जैसा बना दिया है। मैं नहीं बताती जाओ!" कुसुम नखरा दिखाकर कहने लगी। पवन उसकी गांड पे अपना हाथ फेरता हुआ कहता है,

"मेरी कुसुम! कित्नी पगली हो तुम! अपने पति से भी शर्माती हो?"


"शर्माना पडता है पवन कुमार! नहीं तो हर औरत के अन्दर एक रांड छुपी होती है। अगर वह निकल गई ना फिर पति के लिए सम्भालना मुश्किल हो जाता है। आह आह,,आई माँआँ आँ,,,, अजी मुझे बहुत जोरों की लगी है। मूतने जाना है।" कुसुम पवन के ऊपर से उठने की कोशिश करने लगी।


"यहीं कर दो।"


"पागल हो कया? छोड़ो जरा, यहीं पास में चली जाती हुँ।"


"अरे बाबा! यहीं कर लो ना! चलो मैं पकड़कर ले जाता हूँ।"


"नहीं नहीं, मैं कर लुंगी" कुसुम चौंक जाती है।


"बिलकुल नहीं। मैं चलता हूँ चलो।" कुसुम के ना चाहते हुए भी पवन ने गोदी में उठाकर ले चलता है। और ढलान के पास जाकर गोदी में बिठाकर कहता है, लो कर लो।"


"छी: मैं नहीं कर सकती! गोदी में बैठकर पेशाब कैसे निकल पायेगा। छोड़ो मुझे!"


"करना है तो इसी तरह कर लो। बाकी तुम्हारी मर्जी।" पवन को इन सब में मजा आता है।


"बहुत गंदे हो तुम!" कहती हूई कुसुम गोद में बैठकर ही छर छर आवाज निकाल कर मूतने लग जाती है।

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बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है दोनो आपस में पहले की तरह प्यार कर रहे हैं देखते हैं वर्तमान में क्या होता है
 

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भाग 67

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रात काफी हो गई थी। पवन और कुसुम एक दूसरे के प्यार में इतना खो गए थे, की उन्हें समय का ध्यान नहीं रहा।

"अब क्या होगा पवन! तुम ने क्या सोचा है हमारे बारे में! तुम किस तरह सब को राजी करोगे? क्या लोग तुम्हें भला बुरा नहीं कहेंगे?" कुसुम उससे लिपटी पड़ी थी।


"वह मैं नें सोच लिया है। तुम उसकी चिंता ना करो। तुम्हें जमींदार की बीबी का मर्यादा प्राप्त कराना मेरी जिम्मेदारी है। फिर हम खुशी खुशी साथ रहेंगे।" पवन ने प्यार से कुसुम को और कसके अपने से मिला लिया।


"बस अब तुम पर ही भरोसा है। तुम ने हर बार मेरी लाज रखी है। अब भी रख लोगे। मुझे दूसरों के आगे कभी शर्मिंदा मत करना पवन! मैं तुम्हारी पत्नी बनकर एक एज्जत की जिंदगी जीना चाहती हूँ। मैं ने तुम्हें खोकर काफी कुछ सहा है। अब और नहीं। मुझे घर गृहस्थी बसाना है। तुम्हारे साथ। हमारे बच्चों के साथ। मुझे और कुछ नहीं चाहिए पवन।" कुसुम की आवाज भारी हो गई। उसकी आंखों से आँसूं टपक पडे।


"मेरी कुसुम! अब मैं तुम्हें अपने से जुदा नहीं करूँगा। अब हम हमेशा साथ रहेंगे। काफी समय हो गया है। चलो अब हम चलते हैं। कुछ ही देर बाद सुबह हो जायेगी।" पवन ने कुसुम का हाथ पकड़ा और वे दोनों दोबारा कपडा पहनकर अपने वर्तमान में आ गये।

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वर्तमान में

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समय वही था। दोपहर में जिस वक्त कुसुम पवन के लिए खाना लेकर आई थी। कुसुम रात को चलकर वर्तमान में जब दोपहर देखती है तो उसे बड़ी आश्चर्य होती है।


"अभी तो दोपहर है पवन! लेकिन हम वहां आधी रात गुजार कर आये हैं?"


"यही बात मैं तुम्हें समझाना चाहता था। हम चाहे अतीत में जितने दिन गुजार लें, लेकिन वर्तमान में हम उसी समय मे उपस्थित होंगे जिस समय पर हम अतीत में गए थे। मैं तुम्हारे पास एक हफ्ता गुजार कर आया था, लेकिन यहां मेरा समय नहीं बदला। अब समझी तुम? क्यों मैं बार बार कह रहा था, क्ल तक मैं क्ंवारी कुसुम के पास था।"


"हाँ, मैं अब समझ गई। तुम ने अभी तक खाना नहीं खाया! चलो मैं तुम्हें खिला देती हूँ।" पति पत्नी का यह जोडा फिर एक हो गए थे। कुसुम के मन की सारी शंकाएँ दूर हो चुकी है, अब वह अपने आप को सौभाग्यशाली मानने लगी है। वे दोनों प्यार से एक दूसरे को खाना खिलाने लगे। अपने भविश्य के सपनों के दिनों के बारे में और मधुर कल्पनाएँ करने लगे।

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भाग 68

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नगर की हवेली

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एक हफ्ता गुजर गया है, जब पवन यहां से जमींदारी का इजारा हासिल करके अपना गावँ चला गया। जमींदार सूर्यप्रताप अपनी जमींदारी को सुधारने में लगे हैं, सरकार बहादुर को लगान चुकाकर उनके पास काफी धनराशि बच गई है। जिससे वह दूसरे अधूरे काम करना चाह रहे थे। उन्होने अपनी बहन हेमलता से इस बारे में बात की।

"हमारा भाग्य है बहन जो पवन जैसा धनवान शक्स हमारा मित्र बना है। उसी के बदौलत से हमारी सारी उलझनें खत्म हो गई है।"


"हाँ भईया, पवन ने अपना बडप्पन दिखाया है। नहीं तो, कोई भला क्यों इतनी धनराशि किसी को दे सकता है। हमें हमेशा पवन के साथ अच्छा समझौता रखना होगा। ताकी आगे चलकर भी वह हमारी हर तरह से सहायता कर सके।"


"हाँ बहन, तुम ने सही कहा। मैं इसी बारे में सोच रहा था। सुना है, पवन कुमार ने अभी तक विवाह नहीं किया। पर एक लड्की के साथ उसकी शादी की बात पक्की हो रखी है। मैं सोच रहा था, क्यों ना पद्मलता का विवाह पवन कुमार से कर दिया जाये! अगर वह हमारा दामाद बन जाएगा फिर हमारी हर तरह से सहायता करता रहेगा वह। और पवन जैसा लड़का मिलना भी मुश्किल है। मेरे पास पद्मलता के लिए काफी रिश्ते आये, कुछ जमींदार हैं और कुछ ब्यापारी। लेकिन वे लोग पद्मलता से उम्र में काफी बड़े हैं। मुझे लगता है पद्मलता के लिए पवन से अच्छा लड़का हमें नहीं मिलेगा। तुम क्या कहती हो?"


"आप ने मेरे दिल की बात कह दी भईया। मैं कुछ दिनों से यही बात सोच रही थी। पद्मलता की शादी की उम्र हो गई है। उसकी उम्र में मैं दो बच्चों की माँ बन गई थी। लेकिन पद्मलता अभी भी क्ंवारी है। हमारी पद्मलता के लिए पवन से अच्छा लड़का नहीं मिल पायेगा। और पवन के बारे में मैं ने भी सुना है, उसके बचपन की दोस्त से उसका विवाह होनेवाला है। लेकिन यह कोई बड़ी बात नहीं है। आप के मित्र स्वर्गीय मेरे पति ने भी दो शादियाँ की थी, लेकिन उन्होने हमेशा हम दो पत्नियों से प्यार किया है। कभी किसी के साथ अन्याय नहीं किया। पवन के लिए यह मुश्किल नहीं होगा। और जमींदारी सम्भालने के किसी राज घराने की लड्की चाहिए होगी पवन को। वह काम पद्मलता कर देगी। उसे जमींदारी की काफी सूझ बूझ है। अगर पद्मलता से पवन विवाह करता है फिर मेरे हिस्से की जमींदारी आप उसे दे देना।"


"तुम ने मेरा दिल खुश कर दिया। लेकिन क्या पद्मलता मानेगी? उसने तो कसम खाई है!"


"वह मैं सम्भाल लूंगी। उसे समझाना मेरी जिम्मेदारी है।"


"तुम ही उसे राजी कर सकती हो। उसे राजी करके मुझे सुचित करना। और हाँ, तुम्हारी देवरानी मेनका के बारे में कुछ पता चला? कोई सुराग?"


"नहीं भईया! अभी तक कुछ पता नहीं है। अब तो लगता है, वह मर चुकी होगी। नहीं तो इतने सालों तक वह छुपी नहीं रहती। डाकू के उस हमले के बाद वह एक तरह से गायब सी हो गई है। लेकिन आखिरकार जमींदारी में उसका भी हिस्सा है। अगर उसकी कोई सन्तान होती फिर वही जमींदारी का हकदार होता। सब भगवान की इच्छा है। क्या मालुम कहाँ होगी?"


"हम्म"

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राजकुमारी पद्मलता अपने कमरे के बड़े से पलंग पर पैर फैलाकर बैठी थी। एक दासी उसके पैर दबा रही थी। एक उन्नीस बीस साल की लड्की उसके कक्षा में आई और उसे नमस्कार करने लगी।


"क्या रे मधुमती! आज तू आ गई! तेरी अम्मा नहीं आई आज!" पद्मलता उससे पूछती है।


"राजकुमारी अम्मा की तबीयत थोडी खराब है। इस लिए मैं आई हुँ। अगर आप कहें तो वह कल आ जायेगी!" जवान लड्की ने कहा।


"अरे नहीं उसकी कोई जरूरत नहीं है। तू ने तो इससे पहले भी किया है ना! आ जा, अब तुम जाओ।" पद्मलता ने पैर दबाने वाली दासी को कहा। वह उठकर दरवाजा लगाकर चली गई।


"पानी गरम करो, तब तक मैं कपड़े खोलकर आती हुँ!" पद्मलता अपने कक्षा में कपड़े उतारकर रखने लगी। मधुमती नाम की लड्की कक्षा से जुडी शौचालय में चली गई।

राज परिवार में राजकुमारी का शौचालय किसी आलिशान सराये से कम नहीं था। बडा सा कमरा, जहाँ एक तरफ हगने मूतने की जगह बनी हुई थी, वहीं दूसरी तरफ नहाने के लिए बडा सा घेरा बना हुआ था। इसी में पद्मलता नहाती थी। मधुमती पानी गरम करके उस घेरे में डालने लगी। पद्मलता हमेशा साफ सफाई का ध्यान रखती है। एक राजकुमारी की यही पहचान होती है, वह हमेशा सुन्दर दिखती है। ना सिर्फ कपडों से, बल्कि अपने शरीर से भी।


"हो गया गरम?" पद्मलता शौचालय में आ गई।


"जी राजकुमारी! आईये!" मधुमती वही खडी होकर बोलने लगी।


राजकुमारी पद्मलता अपना आखरी वस्त्र भी उतार देती है और नग्न विवस्त्र होकर पानी में चली जाती है। पद्मलता की खुबसूरती से मरद तो मरद लड़कियाँ और औरतें भी ताड़ ताड़ के उसे देखने लगती थी। मधुमती ने इससे पहले भी राजकुमारी को कई बार नग्न अवस्था में देख रखा है। और फिलहाल रानी हेमलता की साफ सफाई भी वही करती है। इस लिए राज घराने की औरतों को नग्न देखना मधुमती के लिए नया नहीं था, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी मधुमती की आंख्ँ बड़ी हो गई।


"चल आ जा, आज अच्छी तरह से मैल निकाल दे मेरा। कई दिन हो गए हैं। बाल भी बड़े हो गए हैं। इन्हें भी साफ करना है।" पद्मलता पानी में उतरकर अपने शरीर को डुबो देती है। सिर्फ उसका सिर बाहर रहा।


"आपके शरीर में मैल है कहाँ! जो इन्हें घिसना पडे! ज्यादा घिसने से आपका शरीर लाल हो जाता है।"


"मैल होने में कितना देर? चल शुरु हो जा!"


"हाँ हाँ देती राजकुमारी, इतनी जल्दी क्या है! मैं कह रही थी, पहले आप बाल साफ करवा लेती! फिर मैल घिस देती मैं!"


"हाँ तो बताना! मैं ने कब मना किया! जो कुछ है तेरे सामने है!" पद्मलता पूरी नंगी उसके सामने पानी में थी।


"ठीक है राजकुमारी! जैसा आप कहो! आप जरा ऊँचाई पे बैठ जाओ, कहिँ झांट के बाल पानी में न गिर जाये।" पद्मलता ऊपर आ गई। और दूसरे आसन में जाकर बैठ गई। मधुमती उसके सामने बैठकर पद्मलता की सुन्दर कोमल क्ंवारी गुलाबी रंग की योनिच्छद देखने लग गई। उसकी बुर पे ज्यादा बाल नहीं थे। अभी एक हफ्ता पहले ही मधुमती की माँ ने उसकी सफाई की थी। लेकिन यह पद्मलता की आदत थी। उसकी माँ हेमलता की तरह।


"अब देखती ही रहेगी? या शुरु करेगी! तू मर्द नहीं है जो तुझे चोदने को मिल जायेगी मेरी बुर। ना तेरे पास लौड़ा है।" पद्मलता उससे कहती है।


"काश होता राजकुमारी, फिर मैं ही आप की योनि पहले चोद्ती। लेकिन क्या करे, इन पैरों के बीच में सिर्फ छेद है। आप को भी लौड़ा चाहिए, मुझे भी ।" मधुमती योनि के आसपास लेप लगाने लगी।


"हम राजकुमारी है। हमारी बुर किसी एसे वैसे को चोदने को नहीं मिलेगी। जो कोई इसका हकदार होगा वह सौभाग्यशाली होगा। राजकुमारी किसी को मिलती नहीं है, उसे हासिल करना पडता है। वैसे तूने भी अब सबकुछ सीख ही लिया मधुमती! तेरी अम्मा ने इतने सालों से हमारी सेवा की है। बचपन से लेकर आजतक वही मेरी साफ सफाई का ध्यान रखती आई है। मुझे याद है, जब पहली बार मेरी योनिदेष में बाल आये थे, तेरी अम्मा ने मुझे कितना ज्ञान दिया था। और तब से लेकर आजतक उन्होने हर वक्त मेरी बुर की सफाई की है। कितना मुलायम हाथ है उनका। बुर के आसपास हाथ फेरते ही मैं कामुक हो जाती। अब तो लगे तुझी से करवाना पड़ेगा। माँ को तेरे अन्दर क्या दिखा जो उन्होने तुझे यह काम सौंपा?" पद्मलता कहना चाह रही थी अपनी माँ हेमलता के बारे में! मधुमती रानी हेमलता की बुर की देखभाल करती है।


"आप की माँ को हम जैसी लड़कियों से बुर मे हाथ दिलाना पसंद है राजकुमारी। रानी माँ जब भी नहाने जाती है मुझे भी नग्न अवस्था में जाना पडता है। वह मेरी सौंदर्य देख देखकर सेरी सेवा लेती है। कुछ पहले उनकी सफाई की है। पता है आप को? मैं ने एक आश्चर्य चीज देखी है! अगर आज्ञा हो तो बताऊँ!" मधुमती जानती थी, राज घराने की बात हवेली से बाहर किसी को कहने की इजाजत नहीं है। और यह बात उसकी माँ ने उसे काफी पहले समझा दिया था। वह कहती भी नहीं। लेकिन माँ की बात बेटी को और बेटी की बात माँ को मधुमती बताती रहती थी।


"कौनसी बात? क्या देखा तूने?" पद्मलता की आंख्ँ खुल गई। उसने मधुमती की तरफ देखा। पद्मलता के दोनो पैरों के बीच में मधुमती बैठी लेप लगा रही थी।


"इसबार जब मैं रानी माँ की झांट साफ कर रही थी, तो देखा उनकी चूत का मुहं खुला हुआ है। एसा कभी नहीं देखा। देखकर एसा मालुम होता है, रानी माँ ने किसी से,,,,,," मधुमती कहती हूई रुक गई।


"तू झूट बोल रही है! एसा कैसे हो सकता है?" पद्मलता मधुमती की बात समझ जाती है।


"सच कह रही हूँ राजकुमारी। आप किसी को कहना मत! यह सिर्फ आप को ही बता रही हूँ। एसा लग रहा था, जैसे किसी ने रानी माँ को बेरहमी से चोद रखा है। मैं ने बहुत बुर देख रखी है। और मैं चुदी हुई बुर देखकर भी समझ जाती हुँ। मैं ने आपकी माँ से मजाक में पूछा भी था। मैं ने कहा, रानी माँ, आप की बुर का मुहं तो खुल गया है। कुछ गया है या निकला है! जानती हो उन्होने क्या कहा? कहने लगी, नहीं, नहीं तो! एसा कुछ नहीं है। तू अपना काम कर। मुझे तभी शक हुआ।"


"ओह! मतलब माँ ने किसी से जरुर चुदवाया होगा! लेकिन मुझे तो एसा कोई मालुम नहीं होता। एक काम कर, तू जरा माँ पर ध्यान रखना। और हाँ यह बात तू किसी से कहना मत।" पद्मलता ने फिर अपनी आंखें बंद कर ली। वह बेझिझ्क पैर खोलकर पसरकर मधुमती के सामने पड़ी है।


"मेरा दिमाग खराब हो गया क्या जो मैं बाहर किसी को बताऊँगी? मेरी जबान बस आप के पास खुलती है। और हवेली में कोई मुझ से बात करने की हिम्मत नहीं करता। क्या बताऊँ! किससे बताऊँ! एक मेरी माँ है! उनका तो आप पूछो मत, पता नहीं कहाँ कहाँ फिरती रहती हैं! उनका काम अब मेरे जिम्मे जो आ गया। क्या पता मेरे भाग्य में क्या होगा? इसी तरह शायद पूरी जिंदगी आप की और रानी माँ की बुर साफ करती निकल जायेगी।" मधुमती अपने ही ख्याल में बड़बड़ाती रही।


"तू फिक्र मत कर, तेरे मामाजी को कहके मैं तेरी शादी करवा दूँगी। उन्होने जरुर तेरे बारे में सोचा होगा। मंत्री जी दिल के बड़े अच्छे इन्सान हैं। उन्होने तुझे और अपनी बेटी सुमित्रा के बीच कभी भेदभाव नहीं किया! तू चिंता मत कर।" पद्मलता ने उसे समझाया। बड़े मंत्री जी मधुमती के मामा हैं।


"राजकुमारी, आप से मेरी एक विनती है, जब आप की शादी होगी, आप मुझे अपने साथ ले जाना। मैं पूरी जिंदगी आपकी सेवा करूँगी। सुमित्रा तो मंत्री की लड्की है, उसे कोई भी मिल जाएगा। लेकिन मेरा विवाह पता नहीं किस से होगा! मैं आप के साथ ही रहूँगी।"


"अच्छा बाबा! ले जाऊँगी। तेरा लेप लगाना हुआ की नहीं!"


"हाँ हाँ, बस हो गया है। नीचे लगा देती हूँ। बुर पे लगा चुकी हूँ। आप जरा पैर पसर दो। पौंद के दरारों में लगा दूँ।" पद्मलता की सुन्दर सुडौल चिकोन चुत्डों के साथ उसकी हगने की स्थान एक कामुक द्रष्य का उदाहरण थी। गुलाबी मुलायम त्व्चायों से घिरी पद्मलता की गांड की सुराख एक मायाबी नगरी के मानींद थी। पद्मलता जूं ही थोडी ऊपर हुई तो उसकी गांड की दरारों में जो खिचाव पैदा हुआ, मधुमती उसे एक टुक देखनी लगी।


"राजकुमारी! मैं जब भी आपकी गांड की छेद देखती हुँ, मैं काम से पागल होने लगती हूँ। वैसे होना तो नहीं चाहिए! लेकिन आप की यह छेद आपकी बुर की छेद से भी ज्यादा आकर्षित है। इसकी अलग ही सौंदर्यता है। वैसे राजकुमारी एक बात पूछूँ! मैं ने सुना है, आप के घराने में जब किसी लड्की का विवाह होता है, सुहागरात में उसे अपनी गूदा में, मेरा मतलब है, गांड की छेद में लिंग लेना होता है? क्या यह सच है?" मधुमती ने गांड की छेद के आसपास लेप लगा चुकी थी। अब कुछ देर बाद उन्हें घिसकर बुर के बाल को उतार देना बाकी है।


"तूने सुना है यह? हाँ, वैसे भी तुझे तो पता ही चल जाता है। हाँ, यह सच है। हम राज घराने की औरत है। हमारा हर एक अंग महामुल्य है। कोई खुशकिस्मत होगा, जिसे यह अंग देखने को मिलेगा। और भोग करने को भी। चूत हर औरत देती है। क्यौंकि चूत में लौड़ा डालने का मन जिस तरह मर्द का करता है औरत का भी जी करता है उसमें लौड़ा घुसे। लेकिन गूदा में कोई औरत लौड़ा लेना नहीं चाहती। इसी लिए हमारे खानदान में यह परम्परा है, हम अपने पति को शादी की पहली रात को वह अंग उपहार देती हैं, जिसके बारे में उन्होनें सोचा भी नहीं।" पद्मलता का अंदाज स्व्भीमानी था। उसे अपने राज घराने पर गर्व था। और यह गर्व उसका अहंकार और अलंकार था।

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Game888

Hum hai rahi pyar ke
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Superb update
राजकुमारी किसी को मिलती नहीं है, उसे हासिल करना पडता है। Excellent line
 
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