• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest : पुर्व पवन : (incest, romance, fantasy)

कहानी आपको केसी लग रही है।।


  • Total voters
    102
  • Poll closed .

Babulaskar

Active Member
753
4,575
139
भाग 69

--------


तीन पहाडी गावँ के अधिवासियों में धूम मच गई। सब लोग अपने अपने घरों के सामने इन्तज़ार में थे। तीन सिपाहियों के साथ चंदन हर एक घर के सामने रुकता और हर परिवार को पांच पांच सोने के सिक्के दिए जा रहा था। गावँ ज्यादा बडा नहीं था। कुल मिलाकर सौ परिवार रहते होंगें यहां पर। पुर्व जमींदार के समय यहां की आबादी दो सौ परिवार पे शामिल थी। लेकिन जमींदार के मरने से यहां की उन्नति रुक गई। जिस कारन अब यह गावँ एक तरह से उजड़ चुका है। पवन को इसी गावँ को फिर से उन्नति की शिखर पे पहुँचाना है। इसी लिए सबसे पहले उसने सब लोगों में सोने का बट्वारा किया। ताकी उससे उनकी हालत में थोडी सुधार आये।


गावँ के लोग पवन और उसके घरवालों को दुआएं देने लगे। औरतें कुसुम को आशीर्वाद देने लगी। "तुम्हारा बेटा बहुत अच्छा जमींदार है कुसुम। भगवान करे इसके घर में सुख समृद्धि लाने वाली बीबी आये।" कहकर औरतें दुआएं दे रही थीं। यह बातें सुनकर कुसुम अपने मन में प्रशांती मह्सूस करती है। काश वह लोगों को बता सकती पवन ही उसका पति है, और वही पवन की पत्नी है। और उसके घर में वही है जिसने सुख समृद्धि लाई है।

---------
 

Babulaskar

Active Member
753
4,575
139
भाग 70

--------


राधा और चंचल गुरु माँ के पास बैठी थी। गुरु माँ उन्हें पाठ पढ़ा रही थी। पिछ्ले जमींदार और उससे पहले के जमींदार की बातें बता रही थी। राधा को यह सब सुनने का बडा शौक था। उसे जमींदार सुर्यवर्मन के बारे में जानकर बहुत आश्चर्य होती है। साथ में चंचल को भी। आज राधा गुरु माँ से इसी बारे में सवाल पूछ रही थी।


"गुरु माँ! तो क्या एक बेटा अपनी माँ से विवाह कर सकता है?" राधा के सवाल पर बुड्डी गुरु माँ के सूखे चहरे पर भी हंसी खिल जाती है।


"विवाह! यह विवाह क्या होता है! तुम बता सकती हो मुझे! चंचल तुम्हें क्या लगता है?"


"गुरु माँ, विवाह तो एक लड़का और लड्की का सामाजिक परिचय होता है।"


"हाँ, लेकिन विवाह इससे बढकर भी कुछ है। विवाह दो प्यार करने वाले दिल व जान को जोड्ता है। वैध अवैध सम्बंधो को स्वीकारता है। लेकिन अगर कोई लड़का या लड्की प्रेम में हो, उन्हें सामाजिक न्याय एनैतिक से कोई मतलब ना हो। फिर भी तो दोनों एक साथ रहने लगते हैं। जमींदार सुर्यवर्मन ने वही किया जो उनके दिल ने कहा। मैं तुम्हें एक राज की बात बताती हुँ। महाराज सुर्यवर्मन अपनी जवानी के दिनों में अपनी माँ शान्तीलता से बहुत प्रेम करने लगे थे। कम उमरी में विधवा होने के कारन रानी माँ किसी अप्सरा से कम नहीं थी। रानी माँ की खुबसूरती ने जवान राजकुमार को पागल बना दिया था। वह सोते जागते हर पल अपनी माँ के प्यार में डूबने लगे थे। यह बात उनकी माँ ने भी मह्सूस किया। रानी माँ भी धीरे धीरे सुर्यवर्मन की तरफ आकर्षित होने लगी। और दोनों माँ बेटे में एसा प्यार हुआ जो बयान नहीं किया जा सकता।

हवेली के तहखाने में एक अंजान सुरंग है, वहां वे दोनों जाकर अपने प्रेम में खो जाते। महल में या राज्य में किसी को इस बारे में भनक तक नहीं लगी। और,,,,और फिर रानी माँ शान्तीलता गर्भ से हो गई। यह कुंडली वगेरह का कोई पाठ नहीं है। ना ही कोई संयोग है। या बस दोनों का प्यार था। जो उन्हें एक दूसरे के साथ रहने और जीने का आश्रय दिया। और फिर जमींदार सूर्यप्रकाश सिंग जी पैदा हुए।" गुरु माँ कहकर खामोश हुई।


"यह तो हम ने सुना ही नहीं गुरु माँ। फिर क्या हुआ? उस तहखाने का क्या राज है? आज तक हम ने तो सुना नहीं हवेली में कोई सुरंग भी है।"


"राज्य में कोई नहीं जानता। सिवाए आज मैं ने तुम्हें बताया। और वह इस लिए क्यौंकि तुम ही अब उस हवेली के हकदार हो। किसी को पता नहीं है वहां क्या है? कोई कहता है वहां बेशुमार धनराशि मौजूद है। कोई कहता है जमींदार सूर्यप्रताप सिंह जी के पारम्परिक हथियार और अवजार रखे हैं। उस हथियार के रहते कोई कभी हार नहीं सकता। लेकिन उस सुरंग का दरवाजा कहाँ है? किस जगह से उसका द्वार खुलता है? यह बात किसी को पता नहीं है। रानी हेमलता ने जमींदार जी के मृत्यु के बाद कई साल तक उसका द्वार ढूंढने की कोशिश की, लेकिन उनके हाथों कुछ नहीं लगा। अब तो सब को यही लगने लगा है वह तहखाना एक अफसाना है। मनघडंत कहानी है। खैर छोड़ो। अगर मेरे जीवन काल में तुम लोग उस गुफा को ढूंढ निकालने में सफल रहे तो मुझे एक बार जरुर सुचित करना। मैं भी देखना चाहती हूँ आखिर वहां क्या है? लेकिन बात दर असल वह नहीं है। मुझे तुम से कुछ और कहना चाहिए।"


"क्या कहना चाहती हैं आप? किस बारे में?"


"तुम्हारे बारे में? तुम्हारी माँ कुसुम के बारे में? चंचल तुम भी ध्यान से सुन लो। जब तुम्हारी पवन से शादी होगी तभी तुम जमींदार की पत्नी कहलाओगी। लेकिन एक जमींदार की बहन और माँ होने का गर्व राधा और उसकी माँ को प्राप्त हुआ है। इस लिए इस मामले में तुम्हें अपना बडप्पन दिखाना होगा। तुम्हें हर पल अपने पति और राज्य के प्रति निष्ठा दिखानी होगी।

राधा, मैं उस दिन तुम्हारे घर एक जरुरी बात करने आई थी। लेकिन लोगों के होते हुए कह ना पाई। बात यह है कि, तुम्हारी माँ कुसुम, काफी सालो से एक सुहागन होते हुए भी विधवा की तरह जीवन बिता रही है। मैं कहना चाहती हूँ, तुम अपने भाई से अपनी माँ कुसुम का विवाह करवा दो। तुम्हारा भाई पवन तुम्हारी माँ को लेकर बहुत चिंतित हैं। वह आया था एक दिन गुरु जी के पास। उस ने पूछा था, तुम्हारे पिता के बारे में। लेकिन गुरु जी को तुम्हारे पिता के बारे कोई जानकारी नहीं है। जरा सोचो राधा, तुम्हारी माँ के पास सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है। इस लिए यही सही रहेगा।" गुरु माँ की बात पे राधा, चंचल दोनों की सांसे भारी हो गई।


"लेकिन गुरु माँ क्या यह उचित होगा! लोग क्या कहेंगे! और माँ? क्या मेरी माँ राजी होगी? और भईया? वह भी राजी होंगे क्या?" राधा ने अपनी स्थिति बताई।


"तुम क्या सोचोगी पहले यह बताओ! क्या तुम्हें यह रिश्ता मंजूर है? क्या तुम चाहोगी तुम्हारी माँ तुम्हारे भाई की बीबी बने? फिर तुम्हारे साथ भी रिश्ता बदल जाएगा! तुम अपनी माँ की ननद कहलाओगी। तुम्हारी माँ तुम्हारी भाभी समान हो जायेगी। और चंचल! तुम भी बताओ! क्या तुम इस रिश्ते से राजी हो?" गुरु माँ ने एक कठिन सवाल रख दिया उनके सामने।


"गुरु माँ, अगर मेरी राय की बात है तो इस रिश्ते से मैं सबसे ज्यादा खुश हुँगी। मुझे अपनी माँ के बारे में भाई की तरह चिंता है। और मैं कभी कभी माँ को भाई के बारे में बताती भी रहती हूँ। काश भईया से तुम्हारी शादी हुई होती। मुझे कोई आपत्ति नहीं है। अब चंचल की बात अलग है। क्या माँ को अपनी सौतन स्वीकार कर पायेगी?" राधा को यह जानकर मजा आने लगा था कभी वह अपने भईया की बीबी बनेगी। फिर तो उसकी सहेली, उसकी माँ, सब उसकी सौतन लगने लगेगी। बडा मजा आयेगा।


"मैं? मैं क्या बताऊँ गुरु माँ! आप ने खुद कहा है अभी मैं पवन की धर्मपत्नी नहीं हूँ। फिर मेरी राय का क्या मह्त्व है? लेकिन अगर मौसी की बात करे तो मैं जरुर चाहूँगी वह अपना दुखी जीवन त्याग दे। और एक सुहागन की तरह दोबारा जिंदगी शुरु करे। अगर मौसी को सौतन बनाने की बात है तो मैं किसी भी हाल में पवन की बीबी बनना चाहूँगी। यही मेरा सपना है। मुझे पता है, जमींदारों को कई शादियाँ करनी पडती है। फिर इसमें मेरी सौतन कौन बने इससे क्या फर्क पड़ता है।"


"तुम दोनों का अच्छा विचार है। समय के साथ साथ तुम दोनों मुझ से बहुत कुछ सीखा। उम्मीद है तीन पहाडी गावँ को तुम लोग पहले से ज्यादा ऊँचाई पर ले जाओगे। जुग जुग जियो मेरी बच्चियों!"

------------
 

Babulaskar

Active Member
753
4,575
139
भाग 71

---------


राधा और चंचल जब गुरु माँ के पास चली गई, उस वक्त कुसुम भी कुटिया में पवन के पास आ गई। कुसुम को पवन मिलने के बाद रोज दोपहर दोनों यहीं आकर मिलते हैं।

एक बार के मिलन के बाद कुसुम पवन की बाहों में लिपटी पड़ी थी। कुसुम ने पूछा,


"पवन! अब तो राधा भी शादी के लायक हो गई है। उसके बारे में कुछ सोचा तुम ने?" पवन उसके सफेद गोरे दूध मसलने में ब्यस्त था। कुसुम के दूध उसके शरीर के हिसाब से कुछ बड़े मालुम होते हैं।


"हाँ सोचा है। लेकिन तुम्हें पसंद आयेगा भी नहीं पता नहीं।"


"क्या सोचा तुम ने?"


"सोचा है, मैं ही राधा से शादी करूँगा।"


"क्या? पागल हो गए हो क्या? यह कैसे सम्भव है? एक तो मैं अभी भी इस दुविधा में हुँ, मेरा पति और बेटा आखिर कौन है? तुम मेरे पति हो या मेरे बेटे? एक समय में तुम पति थे और अब मेरे बेटे हो। अब तुम सोच रहे हो राधा को भी,,,,नहीं,,,,,मैं एसा नहीं होने दूँगी।" कुसुम के स्वर में गुस्सा नहीं था। बल्कि झिझक थी।


"हाँ बाबा, समझता हूँ। तुम्हारे लिये नहीं, यह मेरे लिए भी समझना मुश्किल है। लेकिन जो कुछ है अब हमारे सामने है। मैं एक समय पर तुम्हारा पति जरुर था। लेकिन समय के गुजरने के साथ मैं ने फिर तुम्हारी कोख से जनम लिया। अब तुम मेरी माँ हो। और बीबी भी। मैं राधा के बारे में क्यों बता रहा हूँ पहले यह जान लो। फिर अपनी नाराजगी बताना।"


"एसी भी भला क्या वजह हो सकती है?"


"हाँ है। मैं नहीं चाहता मेरा अंश किसी और में चला जाये। एक लिहाज से राधा मेरी बेटी है। और मैं उसका बाप हुँ। यह बडा मजेदार है ना!"


"तुम्हें तो बस मजा सूझता है? हम औरतों से पूछो हम कितनी सहती हैं? तुम्हारा लौड़ा तो नहीं जैसे कोई डंडा हो। चूत में जाकर अत्याचार शुरु कर देता है।"


"अच्छा बाबा, मेरी माँ तुम जीती, मैं हारा।" पवन मुस्कुराने लगा।


"बहुत बदमाश हो गए हो तुम। हमेशा मुझे सताते हो।"


"अच्छा चलो, सुनो, अगर हम ने राधा का बियाह किसी और से करवाया, तो मेरा अंश किसी और के अन्दर चला जाएगा। और मैं एसा नहीं होने दे सकता! और जरा सोचो, मेरी सम्भोग शक्ति कित्नी ज्यादा है। राधा के अन्दर मेरा खून है। उसे कोई आम इन्सान खुश नहीं रख सकता। सिवाए मेरे। अब समझी मेरी माँ?" पवन ने कुसुम की नाक मदोड़ दी।


"आह! दुखता है। तो क्या तुम सच में राधा से शादी करोगे? और मैं,,,,?"


"तुम मेरे लिए सबसे खास हो। मेरी जो भी पत्नियाँ होंगी उनका स्थान हमेशा बाद होगा। तुम मेरी बड़ी बीबी बनोगी। इस राज्य की महारानी। अब तो खुश हो!" पवन ने कुसुम को एक प्यारा सा चुंबन दिया।


"आहहह, छोड़ी, मुझे फंसाने की कोशिश मत करो। महारानी बनकर मैं क्या करूँगी? क्या महारानी को चुदवाना नहीं पडता? क्या मुझे बच्चा नहीं पैदा करना? लेटना तो हमेशा मुझे तुम्हारे नीचे ही होगा! महारानी बनाऊँगा!" कुसुम पवन को चिडाती है।


"जो महारानी होती है उन्हें और ज्यादा चुदवाना पडता है। उन्हें बच्चे भी ज्यादा पैदा करने होते हैं। ताकी उनका वंश और बिबियों से ज्यादा हो। अच्छा एक बताओ, उस दिन तुम ने कहा था, तुम ने मेरे से दो वादे किये थे! वह कौन कौन से वादे थे!"


"आह! उस दिन बताई तो थी।"


"एकबार और कहो ना! मुझे ठीक से याद नहीं है।"


"बड़े बदमाश हो तुम। मैं नहीं बताती जाओ।!" कुसुम की इनसब नखरों ने पवन को छोटी कुसुम की याद दिला दी। उसने कुसुम को और छेड़ना चाहा। पवन ने अपनी एक उंगली लेकर कुसुम के पायूछेद में गुदगुदी देने लगा।


"आह्ह, क्या करते हो! बद्तमीज़! छोड़ो मुझे! आआह! उई माँ! कितना गंदा है यह इन्सान! क्या करुँ मैं इसका। अजी यहां उंगली मत करो, यहां टट्टी निकलती है। गंदी जगह है। हाय, क्या करुँ मैं अब!" कुसुम उसकी गुदगुदी में पसर जाती है।


"पहले बताओ! फिर छोडूंगा तुम्हें!"


"अच्छा बाबा बताती हुँ। अच्छा भला शैतान पति के हवाले हुई मैं? मैं ने जो दो वादे किये थे, यह पहला वादा था मैं तुम्हें शादी करने की अनुमति देती हूँ और दूसरा वादा, मैं तुम्हारे से बहुत सारे बच्चों को जनम दूँगी। अब खुश!"


"हाँ मैं यहीं सुनना चाह रहा था! मेरी अपनी जमींदारी में मैं किसी अंजान लड्की को वह सुख कैसे दे सकता हूँ जो मुझे राधा को देना चाहिए। तुम्हें और राधा को मैं एक अच्छी जिंदगी देना चाहता हूँ। लेकिन हाँ, मैं उसे भी तुम्हारी तरह ही चोदूंगा। एकदम ताकत लगाकर। जरा अपनी बेटी को देखो तो सही, कित्नी गदराई हो गई है। उसके दूध कितने बड़े हो चुके हैं और उसकी गांड! बिलकुल तुम्हारी तरह! मुझे उससे सम्भोग करके बडा मजा आयेगा।" पवन ने कुसुम को छेडते हुए कहा।


"तुम सारे मर्द एक जैसे हो। ना माँ देखते हो ना बहन! बस तुम्हें एक चूत का छेद चाहिए। जिस्के अन्दर अपना मुसल डालकर बस चुदाई कर सको। अगर वह माँ या बहन हो, फिर तुम्हारे मजे ही मजे हैं। मुझे पहले ही समझ जाना चाहिए था। तुम्हारी नजर राधा पर पहले से थी। इश! उस बेचारी का क्या हाल करोगे तुम! यह मोटा लण्ड वह बेचारी कैसे ले पायेगी? खुद हर बार मेरी सांस अटक जाती है। अच्छा तुम्हें शर्म नहीं आयेगी, इसी लौड़े से मुझे चोदोगे! फिर यही लौड़ा राधा की बुर में डालोगे?"


"अब और क्या करुँ! मेरे पास तो एक ही लिंग है। इसी में तुम सब को बट्वारा करके गुजारा करना पड़ेगा। लेकिन तुम्हें शर्म क्यों आयेगी?"


"अरे मेरे बुद्धू पतिदेव! शर्म तो आयेगी ही ना! इसी लौड़े से मुझे चोद रहे हो, यही लौड़ा बुर में जाएगा, उस में रस छोड़ेगा। उसी से तुम्हारा बच्चा ठहरेगा! और फिर यही लौड़ा राधा की बुर में डालकर उसे चोदा करोगे। उसकी बुर में बीर्य छोड़ा करोगे। कुछ तो समझा करो। दिमाग में सिर्फ बुर, चूत यही घूमता है तुम्हारा।"


"जी नहीं पत्नी महारानी! मेरे दिमाग में सिर्फ कुसुम की बुर कुसुम की चूत घूमती है। और किसी की नहीं। तुम चाहो तो मैं शादी भी ना करुँ!"


"एसा नहीं है! गुस्सा मत करो। यह मेरा वचन है। अपने लिये ना सही मेरे लिए तुम्हें शादी जरुर करनी पड़ेगी। एक बार और कहो ना, जो अभी कहा है!"


"क्या?"


"वही पत्नी,,,,"


"पत्नी महारानी?"


"हाँ, कितना प्यारा नाम दिया तुम ने मुझे!"


"ओह मेरी पत्नी महारानी, पत्नी महारानी!" पवन ने अपनी कुसुम को खुली छाती में समा लिया।

------------
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
19,003
45,914
259
बाबू भाई साहब अपडेट जबर्दस्त ओर कामुक थे।
मजा आ गया। जितना भी पढो कम ही लगता है। गजब💥💥💥💯💯💯💯💯💯
 
Top