भाग 71
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राधा और चंचल जब गुरु माँ के पास चली गई, उस वक्त कुसुम भी कुटिया में पवन के पास आ गई। कुसुम को पवन मिलने के बाद रोज दोपहर दोनों यहीं आकर मिलते हैं।
एक बार के मिलन के बाद कुसुम पवन की बाहों में लिपटी पड़ी थी। कुसुम ने पूछा,
"पवन! अब तो राधा भी शादी के लायक हो गई है। उसके बारे में कुछ सोचा तुम ने?" पवन उसके सफेद गोरे दूध मसलने में ब्यस्त था। कुसुम के दूध उसके शरीर के हिसाब से कुछ बड़े मालुम होते हैं।
"हाँ सोचा है। लेकिन तुम्हें पसंद आयेगा भी नहीं पता नहीं।"
"क्या सोचा तुम ने?"
"सोचा है, मैं ही राधा से शादी करूँगा।"
"क्या? पागल हो गए हो क्या? यह कैसे सम्भव है? एक तो मैं अभी भी इस दुविधा में हुँ, मेरा पति और बेटा आखिर कौन है? तुम मेरे पति हो या मेरे बेटे? एक समय में तुम पति थे और अब मेरे बेटे हो। अब तुम सोच रहे हो राधा को भी,,,,नहीं,,,,,मैं एसा नहीं होने दूँगी।" कुसुम के स्वर में गुस्सा नहीं था। बल्कि झिझक थी।
"हाँ बाबा, समझता हूँ। तुम्हारे लिये नहीं, यह मेरे लिए भी समझना मुश्किल है। लेकिन जो कुछ है अब हमारे सामने है। मैं एक समय पर तुम्हारा पति जरुर था। लेकिन समय के गुजरने के साथ मैं ने फिर तुम्हारी कोख से जनम लिया। अब तुम मेरी माँ हो। और बीबी भी। मैं राधा के बारे में क्यों बता रहा हूँ पहले यह जान लो। फिर अपनी नाराजगी बताना।"
"एसी भी भला क्या वजह हो सकती है?"
"हाँ है। मैं नहीं चाहता मेरा अंश किसी और में चला जाये। एक लिहाज से राधा मेरी बेटी है। और मैं उसका बाप हुँ। यह बडा मजेदार है ना!"
"तुम्हें तो बस मजा सूझता है? हम औरतों से पूछो हम कितनी सहती हैं? तुम्हारा लौड़ा तो नहीं जैसे कोई डंडा हो। चूत में जाकर अत्याचार शुरु कर देता है।"
"अच्छा बाबा, मेरी माँ तुम जीती, मैं हारा।" पवन मुस्कुराने लगा।
"बहुत बदमाश हो गए हो तुम। हमेशा मुझे सताते हो।"
"अच्छा चलो, सुनो, अगर हम ने राधा का बियाह किसी और से करवाया, तो मेरा अंश किसी और के अन्दर चला जाएगा। और मैं एसा नहीं होने दे सकता! और जरा सोचो, मेरी सम्भोग शक्ति कित्नी ज्यादा है। राधा के अन्दर मेरा खून है। उसे कोई आम इन्सान खुश नहीं रख सकता। सिवाए मेरे। अब समझी मेरी माँ?" पवन ने कुसुम की नाक मदोड़ दी।
"आह! दुखता है। तो क्या तुम सच में राधा से शादी करोगे? और मैं,,,,?"
"तुम मेरे लिए सबसे खास हो। मेरी जो भी पत्नियाँ होंगी उनका स्थान हमेशा बाद होगा। तुम मेरी बड़ी बीबी बनोगी। इस राज्य की महारानी। अब तो खुश हो!" पवन ने कुसुम को एक प्यारा सा चुंबन दिया।
"आहहह, छोड़ी, मुझे फंसाने की कोशिश मत करो। महारानी बनकर मैं क्या करूँगी? क्या महारानी को चुदवाना नहीं पडता? क्या मुझे बच्चा नहीं पैदा करना? लेटना तो हमेशा मुझे तुम्हारे नीचे ही होगा! महारानी बनाऊँगा!" कुसुम पवन को चिडाती है।
"जो महारानी होती है उन्हें और ज्यादा चुदवाना पडता है। उन्हें बच्चे भी ज्यादा पैदा करने होते हैं। ताकी उनका वंश और बिबियों से ज्यादा हो। अच्छा एक बताओ, उस दिन तुम ने कहा था, तुम ने मेरे से दो वादे किये थे! वह कौन कौन से वादे थे!"
"आह! उस दिन बताई तो थी।"
"एकबार और कहो ना! मुझे ठीक से याद नहीं है।"
"बड़े बदमाश हो तुम। मैं नहीं बताती जाओ।!" कुसुम की इनसब नखरों ने पवन को छोटी कुसुम की याद दिला दी। उसने कुसुम को और छेड़ना चाहा। पवन ने अपनी एक उंगली लेकर कुसुम के पायूछेद में गुदगुदी देने लगा।
"आह्ह, क्या करते हो! बद्तमीज़! छोड़ो मुझे! आआह! उई माँ! कितना गंदा है यह इन्सान! क्या करुँ मैं इसका। अजी यहां उंगली मत करो, यहां टट्टी निकलती है। गंदी जगह है। हाय, क्या करुँ मैं अब!" कुसुम उसकी गुदगुदी में पसर जाती है।
"पहले बताओ! फिर छोडूंगा तुम्हें!"
"अच्छा बाबा बताती हुँ। अच्छा भला शैतान पति के हवाले हुई मैं? मैं ने जो दो वादे किये थे, यह पहला वादा था मैं तुम्हें शादी करने की अनुमति देती हूँ और दूसरा वादा, मैं तुम्हारे से बहुत सारे बच्चों को जनम दूँगी। अब खुश!"
"हाँ मैं यहीं सुनना चाह रहा था! मेरी अपनी जमींदारी में मैं किसी अंजान लड्की को वह सुख कैसे दे सकता हूँ जो मुझे राधा को देना चाहिए। तुम्हें और राधा को मैं एक अच्छी जिंदगी देना चाहता हूँ। लेकिन हाँ, मैं उसे भी तुम्हारी तरह ही चोदूंगा। एकदम ताकत लगाकर। जरा अपनी बेटी को देखो तो सही, कित्नी गदराई हो गई है। उसके दूध कितने बड़े हो चुके हैं और उसकी गांड! बिलकुल तुम्हारी तरह! मुझे उससे सम्भोग करके बडा मजा आयेगा।" पवन ने कुसुम को छेडते हुए कहा।
"तुम सारे मर्द एक जैसे हो। ना माँ देखते हो ना बहन! बस तुम्हें एक चूत का छेद चाहिए। जिस्के अन्दर अपना मुसल डालकर बस चुदाई कर सको। अगर वह माँ या बहन हो, फिर तुम्हारे मजे ही मजे हैं। मुझे पहले ही समझ जाना चाहिए था। तुम्हारी नजर राधा पर पहले से थी। इश! उस बेचारी का क्या हाल करोगे तुम! यह मोटा लण्ड वह बेचारी कैसे ले पायेगी? खुद हर बार मेरी सांस अटक जाती है। अच्छा तुम्हें शर्म नहीं आयेगी, इसी लौड़े से मुझे चोदोगे! फिर यही लौड़ा राधा की बुर में डालोगे?"
"अब और क्या करुँ! मेरे पास तो एक ही लिंग है। इसी में तुम सब को बट्वारा करके गुजारा करना पड़ेगा। लेकिन तुम्हें शर्म क्यों आयेगी?"
"अरे मेरे बुद्धू पतिदेव! शर्म तो आयेगी ही ना! इसी लौड़े से मुझे चोद रहे हो, यही लौड़ा बुर में जाएगा, उस में रस छोड़ेगा। उसी से तुम्हारा बच्चा ठहरेगा! और फिर यही लौड़ा राधा की बुर में डालकर उसे चोदा करोगे। उसकी बुर में बीर्य छोड़ा करोगे। कुछ तो समझा करो। दिमाग में सिर्फ बुर, चूत यही घूमता है तुम्हारा।"
"जी नहीं पत्नी महारानी! मेरे दिमाग में सिर्फ कुसुम की बुर कुसुम की चूत घूमती है। और किसी की नहीं। तुम चाहो तो मैं शादी भी ना करुँ!"
"एसा नहीं है! गुस्सा मत करो। यह मेरा वचन है। अपने लिये ना सही मेरे लिए तुम्हें शादी जरुर करनी पड़ेगी। एक बार और कहो ना, जो अभी कहा है!"
"क्या?"
"वही पत्नी,,,,"
"पत्नी महारानी?"
"हाँ, कितना प्यारा नाम दिया तुम ने मुझे!"
"ओह मेरी पत्नी महारानी, पत्नी महारानी!" पवन ने अपनी कुसुम को खुली छाती में समा लिया।
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