भाग 68
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नगर की हवेली
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एक हफ्ता गुजर गया है, जब पवन यहां से जमींदारी का इजारा हासिल करके अपना गावँ चला गया। जमींदार सूर्यप्रताप अपनी जमींदारी को सुधारने में लगे हैं, सरकार बहादुर को लगान चुकाकर उनके पास काफी धनराशि बच गई है। जिससे वह दूसरे अधूरे काम करना चाह रहे थे। उन्होने अपनी बहन हेमलता से इस बारे में बात की।
"हमारा भाग्य है बहन जो पवन जैसा धनवान शक्स हमारा मित्र बना है। उसी के बदौलत से हमारी सारी उलझनें खत्म हो गई है।"
"हाँ भईया, पवन ने अपना बडप्पन दिखाया है। नहीं तो, कोई भला क्यों इतनी धनराशि किसी को दे सकता है। हमें हमेशा पवन के साथ अच्छा समझौता रखना होगा। ताकी आगे चलकर भी वह हमारी हर तरह से सहायता कर सके।"
"हाँ बहन, तुम ने सही कहा। मैं इसी बारे में सोच रहा था। सुना है, पवन कुमार ने अभी तक विवाह नहीं किया। पर एक लड्की के साथ उसकी शादी की बात पक्की हो रखी है। मैं सोच रहा था, क्यों ना पद्मलता का विवाह पवन कुमार से कर दिया जाये! अगर वह हमारा दामाद बन जाएगा फिर हमारी हर तरह से सहायता करता रहेगा वह। और पवन जैसा लड़का मिलना भी मुश्किल है। मेरे पास पद्मलता के लिए काफी रिश्ते आये, कुछ जमींदार हैं और कुछ ब्यापारी। लेकिन वे लोग पद्मलता से उम्र में काफी बड़े हैं। मुझे लगता है पद्मलता के लिए पवन से अच्छा लड़का हमें नहीं मिलेगा। तुम क्या कहती हो?"
"आप ने मेरे दिल की बात कह दी भईया। मैं कुछ दिनों से यही बात सोच रही थी। पद्मलता की शादी की उम्र हो गई है। उसकी उम्र में मैं दो बच्चों की माँ बन गई थी। लेकिन पद्मलता अभी भी क्ंवारी है। हमारी पद्मलता के लिए पवन से अच्छा लड़का नहीं मिल पायेगा। और पवन के बारे में मैं ने भी सुना है, उसके बचपन की दोस्त से उसका विवाह होनेवाला है। लेकिन यह कोई बड़ी बात नहीं है। आप के मित्र स्वर्गीय मेरे पति ने भी दो शादियाँ की थी, लेकिन उन्होने हमेशा हम दो पत्नियों से प्यार किया है। कभी किसी के साथ अन्याय नहीं किया। पवन के लिए यह मुश्किल नहीं होगा। और जमींदारी सम्भालने के किसी राज घराने की लड्की चाहिए होगी पवन को। वह काम पद्मलता कर देगी। उसे जमींदारी की काफी सूझ बूझ है। अगर पद्मलता से पवन विवाह करता है फिर मेरे हिस्से की जमींदारी आप उसे दे देना।"
"तुम ने मेरा दिल खुश कर दिया। लेकिन क्या पद्मलता मानेगी? उसने तो कसम खाई है!"
"वह मैं सम्भाल लूंगी। उसे समझाना मेरी जिम्मेदारी है।"
"तुम ही उसे राजी कर सकती हो। उसे राजी करके मुझे सुचित करना। और हाँ, तुम्हारी देवरानी मेनका के बारे में कुछ पता चला? कोई सुराग?"
"नहीं भईया! अभी तक कुछ पता नहीं है। अब तो लगता है, वह मर चुकी होगी। नहीं तो इतने सालों तक वह छुपी नहीं रहती। डाकू के उस हमले के बाद वह एक तरह से गायब सी हो गई है। लेकिन आखिरकार जमींदारी में उसका भी हिस्सा है। अगर उसकी कोई सन्तान होती फिर वही जमींदारी का हकदार होता। सब भगवान की इच्छा है। क्या मालुम कहाँ होगी?"
"हम्म"
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राजकुमारी पद्मलता अपने कमरे के बड़े से पलंग पर पैर फैलाकर बैठी थी। एक दासी उसके पैर दबा रही थी। एक उन्नीस बीस साल की लड्की उसके कक्षा में आई और उसे नमस्कार करने लगी।
"क्या रे मधुमती! आज तू आ गई! तेरी अम्मा नहीं आई आज!" पद्मलता उससे पूछती है।
"राजकुमारी अम्मा की तबीयत थोडी खराब है। इस लिए मैं आई हुँ। अगर आप कहें तो वह कल आ जायेगी!" जवान लड्की ने कहा।
"अरे नहीं उसकी कोई जरूरत नहीं है। तू ने तो इससे पहले भी किया है ना! आ जा, अब तुम जाओ।" पद्मलता ने पैर दबाने वाली दासी को कहा। वह उठकर दरवाजा लगाकर चली गई।
"पानी गरम करो, तब तक मैं कपड़े खोलकर आती हुँ!" पद्मलता अपने कक्षा में कपड़े उतारकर रखने लगी। मधुमती नाम की लड्की कक्षा से जुडी शौचालय में चली गई।
राज परिवार में राजकुमारी का शौचालय किसी आलिशान सराये से कम नहीं था। बडा सा कमरा, जहाँ एक तरफ हगने मूतने की जगह बनी हुई थी, वहीं दूसरी तरफ नहाने के लिए बडा सा घेरा बना हुआ था। इसी में पद्मलता नहाती थी। मधुमती पानी गरम करके उस घेरे में डालने लगी। पद्मलता हमेशा साफ सफाई का ध्यान रखती है। एक राजकुमारी की यही पहचान होती है, वह हमेशा सुन्दर दिखती है। ना सिर्फ कपडों से, बल्कि अपने शरीर से भी।
"हो गया गरम?" पद्मलता शौचालय में आ गई।
"जी राजकुमारी! आईये!" मधुमती वही खडी होकर बोलने लगी।
राजकुमारी पद्मलता अपना आखरी वस्त्र भी उतार देती है और नग्न विवस्त्र होकर पानी में चली जाती है। पद्मलता की खुबसूरती से मरद तो मरद लड़कियाँ और औरतें भी ताड़ ताड़ के उसे देखने लगती थी। मधुमती ने इससे पहले भी राजकुमारी को कई बार नग्न अवस्था में देख रखा है। और फिलहाल रानी हेमलता की साफ सफाई भी वही करती है। इस लिए राज घराने की औरतों को नग्न देखना मधुमती के लिए नया नहीं था, लेकिन हर बार की तरह इस बार भी मधुमती की आंख्ँ बड़ी हो गई।
"चल आ जा, आज अच्छी तरह से मैल निकाल दे मेरा। कई दिन हो गए हैं। बाल भी बड़े हो गए हैं। इन्हें भी साफ करना है।" पद्मलता पानी में उतरकर अपने शरीर को डुबो देती है। सिर्फ उसका सिर बाहर रहा।
"आपके शरीर में मैल है कहाँ! जो इन्हें घिसना पडे! ज्यादा घिसने से आपका शरीर लाल हो जाता है।"
"मैल होने में कितना देर? चल शुरु हो जा!"
"हाँ हाँ देती राजकुमारी, इतनी जल्दी क्या है! मैं कह रही थी, पहले आप बाल साफ करवा लेती! फिर मैल घिस देती मैं!"
"हाँ तो बताना! मैं ने कब मना किया! जो कुछ है तेरे सामने है!" पद्मलता पूरी नंगी उसके सामने पानी में थी।
"ठीक है राजकुमारी! जैसा आप कहो! आप जरा ऊँचाई पे बैठ जाओ, कहिँ झांट के बाल पानी में न गिर जाये।" पद्मलता ऊपर आ गई। और दूसरे आसन में जाकर बैठ गई। मधुमती उसके सामने बैठकर पद्मलता की सुन्दर कोमल क्ंवारी गुलाबी रंग की योनिच्छद देखने लग गई। उसकी बुर पे ज्यादा बाल नहीं थे। अभी एक हफ्ता पहले ही मधुमती की माँ ने उसकी सफाई की थी। लेकिन यह पद्मलता की आदत थी। उसकी माँ हेमलता की तरह।
"अब देखती ही रहेगी? या शुरु करेगी! तू मर्द नहीं है जो तुझे चोदने को मिल जायेगी मेरी बुर। ना तेरे पास लौड़ा है।" पद्मलता उससे कहती है।
"काश होता राजकुमारी, फिर मैं ही आप की योनि पहले चोद्ती। लेकिन क्या करे, इन पैरों के बीच में सिर्फ छेद है। आप को भी लौड़ा चाहिए, मुझे भी ।" मधुमती योनि के आसपास लेप लगाने लगी।
"हम राजकुमारी है। हमारी बुर किसी एसे वैसे को चोदने को नहीं मिलेगी। जो कोई इसका हकदार होगा वह सौभाग्यशाली होगा। राजकुमारी किसी को मिलती नहीं है, उसे हासिल करना पडता है। वैसे तूने भी अब सबकुछ सीख ही लिया मधुमती! तेरी अम्मा ने इतने सालों से हमारी सेवा की है। बचपन से लेकर आजतक वही मेरी साफ सफाई का ध्यान रखती आई है। मुझे याद है, जब पहली बार मेरी योनिदेष में बाल आये थे, तेरी अम्मा ने मुझे कितना ज्ञान दिया था। और तब से लेकर आजतक उन्होने हर वक्त मेरी बुर की सफाई की है। कितना मुलायम हाथ है उनका। बुर के आसपास हाथ फेरते ही मैं कामुक हो जाती। अब तो लगे तुझी से करवाना पड़ेगा। माँ को तेरे अन्दर क्या दिखा जो उन्होने तुझे यह काम सौंपा?" पद्मलता कहना चाह रही थी अपनी माँ हेमलता के बारे में! मधुमती रानी हेमलता की बुर की देखभाल करती है।
"आप की माँ को हम जैसी लड़कियों से बुर मे हाथ दिलाना पसंद है राजकुमारी। रानी माँ जब भी नहाने जाती है मुझे भी नग्न अवस्था में जाना पडता है। वह मेरी सौंदर्य देख देखकर सेरी सेवा लेती है। कुछ पहले उनकी सफाई की है। पता है आप को? मैं ने एक आश्चर्य चीज देखी है! अगर आज्ञा हो तो बताऊँ!" मधुमती जानती थी, राज घराने की बात हवेली से बाहर किसी को कहने की इजाजत नहीं है। और यह बात उसकी माँ ने उसे काफी पहले समझा दिया था। वह कहती भी नहीं। लेकिन माँ की बात बेटी को और बेटी की बात माँ को मधुमती बताती रहती थी।
"कौनसी बात? क्या देखा तूने?" पद्मलता की आंख्ँ खुल गई। उसने मधुमती की तरफ देखा। पद्मलता के दोनो पैरों के बीच में मधुमती बैठी लेप लगा रही थी।
"इसबार जब मैं रानी माँ की झांट साफ कर रही थी, तो देखा उनकी चूत का मुहं खुला हुआ है। एसा कभी नहीं देखा। देखकर एसा मालुम होता है, रानी माँ ने किसी से,,,,,," मधुमती कहती हूई रुक गई।
"तू झूट बोल रही है! एसा कैसे हो सकता है?" पद्मलता मधुमती की बात समझ जाती है।
"सच कह रही हूँ राजकुमारी। आप किसी को कहना मत! यह सिर्फ आप को ही बता रही हूँ। एसा लग रहा था, जैसे किसी ने रानी माँ को बेरहमी से चोद रखा है। मैं ने बहुत बुर देख रखी है। और मैं चुदी हुई बुर देखकर भी समझ जाती हुँ। मैं ने आपकी माँ से मजाक में पूछा भी था। मैं ने कहा, रानी माँ, आप की बुर का मुहं तो खुल गया है। कुछ गया है या निकला है! जानती हो उन्होने क्या कहा? कहने लगी, नहीं, नहीं तो! एसा कुछ नहीं है। तू अपना काम कर। मुझे तभी शक हुआ।"
"ओह! मतलब माँ ने किसी से जरुर चुदवाया होगा! लेकिन मुझे तो एसा कोई मालुम नहीं होता। एक काम कर, तू जरा माँ पर ध्यान रखना। और हाँ यह बात तू किसी से कहना मत।" पद्मलता ने फिर अपनी आंखें बंद कर ली। वह बेझिझ्क पैर खोलकर पसरकर मधुमती के सामने पड़ी है।
"मेरा दिमाग खराब हो गया क्या जो मैं बाहर किसी को बताऊँगी? मेरी जबान बस आप के पास खुलती है। और हवेली में कोई मुझ से बात करने की हिम्मत नहीं करता। क्या बताऊँ! किससे बताऊँ! एक मेरी माँ है! उनका तो आप पूछो मत, पता नहीं कहाँ कहाँ फिरती रहती हैं! उनका काम अब मेरे जिम्मे जो आ गया। क्या पता मेरे भाग्य में क्या होगा? इसी तरह शायद पूरी जिंदगी आप की और रानी माँ की बुर साफ करती निकल जायेगी।" मधुमती अपने ही ख्याल में बड़बड़ाती रही।
"तू फिक्र मत कर, तेरे मामाजी को कहके मैं तेरी शादी करवा दूँगी। उन्होने जरुर तेरे बारे में सोचा होगा। मंत्री जी दिल के बड़े अच्छे इन्सान हैं। उन्होने तुझे और अपनी बेटी सुमित्रा के बीच कभी भेदभाव नहीं किया! तू चिंता मत कर।" पद्मलता ने उसे समझाया। बड़े मंत्री जी मधुमती के मामा हैं।
"राजकुमारी, आप से मेरी एक विनती है, जब आप की शादी होगी, आप मुझे अपने साथ ले जाना। मैं पूरी जिंदगी आपकी सेवा करूँगी। सुमित्रा तो मंत्री की लड्की है, उसे कोई भी मिल जाएगा। लेकिन मेरा विवाह पता नहीं किस से होगा! मैं आप के साथ ही रहूँगी।"
"अच्छा बाबा! ले जाऊँगी। तेरा लेप लगाना हुआ की नहीं!"
"हाँ हाँ, बस हो गया है। नीचे लगा देती हूँ। बुर पे लगा चुकी हूँ। आप जरा पैर पसर दो। पौंद के दरारों में लगा दूँ।" पद्मलता की सुन्दर सुडौल चिकोन चुत्डों के साथ उसकी हगने की स्थान एक कामुक द्रष्य का उदाहरण थी। गुलाबी मुलायम त्व्चायों से घिरी पद्मलता की गांड की सुराख एक मायाबी नगरी के मानींद थी। पद्मलता जूं ही थोडी ऊपर हुई तो उसकी गांड की दरारों में जो खिचाव पैदा हुआ, मधुमती उसे एक टुक देखनी लगी।
"राजकुमारी! मैं जब भी आपकी गांड की छेद देखती हुँ, मैं काम से पागल होने लगती हूँ। वैसे होना तो नहीं चाहिए! लेकिन आप की यह छेद आपकी बुर की छेद से भी ज्यादा आकर्षित है। इसकी अलग ही सौंदर्यता है। वैसे राजकुमारी एक बात पूछूँ! मैं ने सुना है, आप के घराने में जब किसी लड्की का विवाह होता है, सुहागरात में उसे अपनी गूदा में, मेरा मतलब है, गांड की छेद में लिंग लेना होता है? क्या यह सच है?" मधुमती ने गांड की छेद के आसपास लेप लगा चुकी थी। अब कुछ देर बाद उन्हें घिसकर बुर के बाल को उतार देना बाकी है।
"तूने सुना है यह? हाँ, वैसे भी तुझे तो पता ही चल जाता है। हाँ, यह सच है। हम राज घराने की औरत है। हमारा हर एक अंग महामुल्य है। कोई खुशकिस्मत होगा, जिसे यह अंग देखने को मिलेगा। और भोग करने को भी। चूत हर औरत देती है। क्यौंकि चूत में लौड़ा डालने का मन जिस तरह मर्द का करता है औरत का भी जी करता है उसमें लौड़ा घुसे। लेकिन गूदा में कोई औरत लौड़ा लेना नहीं चाहती। इसी लिए हमारे खानदान में यह परम्परा है, हम अपने पति को शादी की पहली रात को वह अंग उपहार देती हैं, जिसके बारे में उन्होनें सोचा भी नहीं।" पद्मलता का अंदाज स्व्भीमानी था। उसे अपने राज घराने पर गर्व था। और यह गर्व उसका अहंकार और अलंकार था।
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