Gaand ka ashiq
New Member
- 33
- 100
- 18
Gajab ka update,waiting update
Jabardast update diya hai apne
Jabardast update diya hai apne
Shandaar...
Apekhsa kusum aur paban ke mahamilan ki 7 dino ki bistrit barnan ki.
बिलकुल सर, यह वाला हफ्ता बस इसी विवरण पर आधारित होगा। मेरे माईंड में इसका विवरण पहले से सजा हुआ है। उन्हें बस शब्दों में पिरोना है। कुछ तैयार है, कुछ बाकी है, काम चल रहा है।Comments ke liye jada fikar mat kijiye. Yakin maniye aaj se do teen saal bad sabhi log isi story ki pdf dhundte rahenge.
Superb mind-blowing
Nice , something new ,keeping posting
Bohot hi shandaar story hh sir
Keep it up
बहुत ही रोमांचक और मनमोहक कहानी
Jabardast update diya hai apne
Awesome updates
ढेर सारी शुभकामनाएं आप सभी प्रिय पाठकों को। मेरे जैसे तुच्छ लेखक की स्टोरी को पढ़ने के लिए और लेखनी को पसंद करने के लिए।Gajab ka update,waiting update
आप के सलाह के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।Bhai jaise aap ko theek lage ye story outstanding hai hafte mai do ya do se adhik bhi aap update de to badiya rhega baaki aapki margi
एसा करना जरुरी था। मेरे एक अदरणीय पाठक ने यह सवाल उठाया था। अगर चे, कहानी के एक क्षण में मुझे यह एहसास हो गया था। पवन और राधा का असल में एक पिता होना चाहिए। और आगे चलकर, (जो कुछ भी होनेवाला है) उसके लिए पवन का एक एसा पिता होना चाहिए जो हर लिहाज से सक्षम हो। और इस में राजकुमार चंद्रशेखर का नाम उभरकर सामने आता है।Jabardast update finally pawn jana us ka pita kon hai
भाई Babulaskar , आप एक बहुत ही अच्छे लेखक और रचनाकार हैं, शुभकामनाएं
लेखन और लेखनी का वरदान प्राप्त हर किसी लेखक को प्राप्त नहीं होता, आप इस विधा में निपुण हैं ...
मैं बहुत सी इरोटिक साइट पर लाइव रहता हूं, अच्छे पाठकों और कमेंट कि कमी कि समस्या के कारण बहुत सी कहानियों को बन्द होते और कितने ही अच्छे लेखकों को निराश/ हताश होकर गुमनामी में खोते देखा है...
आप Lovely Anand भाई साहब से प्रेरणा लेकर २० पाठकों के कमेंट आने पर ही नवीन पोस्ट दें और हताशा त्यागें ऐसी आशा है
आप को ढेर सारी शुभकामनाएं और बधाई।कुंठित मानसिकता से ग्रस्त पाठकों के कमेंट से निराश नहों और अपने मन में निर्धारित कि हुआ कथा को लिखें और पुर्ण करें
धन्यवाद
nice update..!!भाग 35
--------
2085, स्पेस शटल
-------------------
"यह एक बड़ी परेशानी है। मुझे और ज्यादा सतर्क रहना चाहिए था। भला वह लोग हैं तो किसान ही।" आलोक बड़ा चिंतित था।
"हाँ आलोक, यह चिंता की बात है। तुम्हें इस प्रॉबलम को सॉल्भ करना होगा। नहीं तो पवन कुमार अतीत के भंवर में फंस जायेंगे।" सोनिया ने आलोक को सुझाव दिया।
"सिर्फ यही नहीं सोनिया, यह बहुत ही पेचीदगियों से भरा है। हम जिस समयकाल में जाकर पवन कुमार से मिले थे, वही समय का असली रूप है। लेकिन अगर पवन अतीत में फंस गया, फिर हमारा एक्जिस्त भी एक बड़ा खतरा बन जाएगा। क्यौंकि,,,,"
"मैं तुम्हारी बात समझ रही हूँ आलोक। डोंट वरी। जरुर उस टाईम मशीन में कुछ खराबी आ गई है। जिस की वजा से यह सब कुछ हो रहा है। अब तुम समय काल में पीछे जाकर पवन कुमार से मिलकर उसे अच्छी तरह से समझा दो। और उसे वहां से बाहर निकालकर लाओ। यही सही रहेगा।"
"हाँ हाँ, वही करना पड़ेगा। मैं तैयारी करता हुँ।"
"बाई दे वे,, आलोक तुम मुझे रानी राधा की प्रेम कहानी के बारे में कुछ बताने वाले थे? कुछ पता लगा उसका?" सोनिया आलोक की चिंता दूर करना चाहती है।
"वह उसका? उतना तो अभी पता नहीं चला। ज्यादतर बातें बस उस समय काल के बारे में है। वैसे एक बात है, पवन कुमार उस समय के बड़े नामचीन और प्रसिध्य जमींदार थे। न सिर्फ उनका परिवार बड़ा था बल्कि उनकी जमींदारी की सीमा भी एक छोटे राज्य के बराबर थी। उनके दो बड़े बेटे थे। एक का नाम देव कुमार और दूसरे का नाम सुर्य कुमार था। देव कुमार रानी कुसुम का बड़ा बेटा था और सुर्य कुमार रानी पद्मलता का बेटा। उनके दोनों बड़े बेटे ने पवन कुमार की जमींदारी को और बड़ा बनाया था।
रानी राधा की प्रेम कहानी के बारे में एक देव कुमार का नाम अभी तक मैं ने पढ़ा है। लेकिन यह देव कुमार यही है, अभी पक्का नहीं बता सकता।" आलोक ने कहा।
"क्या बात करते हो? रानी राधा अपनी ही माँ की दूसरी सन्तान से प्यार प्रेम करती थी?" सोनिया की अजीब बात पे आलोक मुस्कराहट के साथ जवाब देता है।
"सोनिया अगर देखा जाये, तो कुसुम उसकी माँ जरुर थी, लेकिन सौतन भी थी। और सौतन की सन्तान उसकी भी सन्तान हुई। रानी राधा की खुबसूरती का चर्चा दूर दूर फैला हुआ था। एसे में देव कुमार एक जमींदार का बेटा है, उसे एसी खुबसूरती का सम्मान करना आता था। और वह इसी योग्य था की एक राज्य की सबसे खुबसूरत लड्की उसकी प्रेमिका या बीबी बने। फिर तो सही है ना! वैसे रानी राधा की उस वक्त तक तीन सन्तान थी। बड़ी लड्की थी। जो उसके माँ के प्रेम में भरपुर सहयोग करती थी। लेकिन उनका अंजाम क्या हुआ, यह अभी मालूम नहीं। क्या पता उस दस्तावेज में उसका विवरण होगा भी या नहीं?"
"जरुर होगा। होना चाहिए। लेकिन आलोक, मैं एक बात जानना चाहती हूँ, यह दस्तावेज लिखी किस ने? तुम्हारी बातें सुनकर लग रहा है, जिस ने भी इसे लिखा है वह या तो कुमार परिवार का कोई सदस्य होगा, या फिर उनका कोई मित्र,?"
"यह बात तुमने अच्छी पूछी। यह गाथायें दर असल दिवाकर नामी एक शक्स ने लिखी है। लेकिन अभी पढ़ने के बाद मैं नहीं जान पाया हुँ यह दिवाकर कौन हैं? शायद दस्तावेज पढ़ने में इसका खुलासा हो जाये। जो भी हो, मैं तुम्हें सारी बातों से आगाह करूँगा। अच्छा चलो, मैं अपना कुछ काम कर लूँ। मुझे टाईम ट्रवल की तैयारी करनी है।"
------------------------
------------------------
असुर नगरी, अम्रतनगर
-----------------------
"महाराज हमें माफ कर दें। हम जब तक अपना रूप बदलते वह भेडिया हम से दूर भाग गया। हमने उसका पीछा किया लेकिन वह गायब हो गया।" सेनापति सिर झुकाये दोषी की तरह खडा था।
"तुम्हारी लापरवाही की वजह से हमने उसे खो दिया। अब क्या होगा? इतना अच्छा मौका था, सब तहस नहस कर दिया। लेकिन उसका शब तो मिला होगा तुम्हें? वह भेडिया मरा हुआ मिला की नहीं?" असुर राजा हरविजय लगातार चिल्लाने लगा।
"क्षमा करे महाराज! हम ने आसपास काफी दूर तक उसकी छानबीन की है। लेकिन उसका कोई सुराग नहीं मिला। महाराज, राजकुमार चंद्रशेखर बहुत ज्ञानी थे। उन्होने राजगुरु सुकुमार के पास काफी साल तक असुर शक्तियों के बारे में शिक्षा ले रखी है। मैं ने पंडितों से भेडिया के शरीर के बारे में पूछा तो उन्होने बताया, असुर शरीर पृथ्वी लोक के मिट्टी में दफन होने के बाद वह हमारी पहुँच से निकल जाता है। राजकुमार चंद्रशेखर ने जरुर उसे मिट्टी में दफन कर दिया होगा।" सेनापति अपनी बात जाहिर करके अपनी माफी हासिल करना चाह रहा था।
"बेवकूफ, तुम्हें राजकुमार की तारिफ करने की जरुरत नहीं है। वह मैं भी जानता हुँ। और इसी लिए मुझे वह जिन्दा चाहिए। वह जरुर वापिस आयेगा अपनी कुर्सी मुझ से छीनने के लिए। अब कोई दूसरा उपाय है भी या नहीं?" महाराज ने पण्डितों की तरफ देखते हुए पूछा।
"महाराज हमें थोड़ा समय दे। हम पुस्तकादी पढकर आप को सुचित करते हैं।" एक पंडित ने डरते हुए कहा।
"एक बात बताईये पंडित महोदय! यह भेडिया जो पृथ्वी लोक में मर गया है इस से कोई प्रभाव तो नहीं पड़ेगा ना हमारे इस राज्य में?" हरविजय ने पूछा।
"महाराज, असुर राज्य में इसमें कोई डरने की बात नहीं है। मनुष्य की तरह हम भी अपने शरीर को आग में जलाते हैं। इससे वह मिट जाता है। लेकिन असुर राज्य से बाहर किसी असुर को चाहे वह पशु प्राणी हो, अगर उसे मिट्टी में दफन किया जाये तो उसके अलग अलग स्वरुप देखने को मिलते हैं। सुना है जिस मिट्टी में उसे दफन किया जाता है वह जमीन बड़ी उर्वरा हो जाती है। और एसा भी हम ने पढ़ा है पशुओं के पालन पोषण के ऊपर भी उसका प्रभाव निर्भर करता है।"
"आप की बात समझा नहीं। मतलब क्या है?"
"महाराज, इसका मतलब है, जिस असुर शरीर को मिट्टी में दफन किया गया है, वह अपनी जीवित काल में क्या चीज खाता और किस तरह से वह पैदा हुआ उसके ऊपर निर्भर करता है आगे जाकर वह जमीन क्या निकालकर देगी? हमारे राज्य के ज्यादतर भेडिया पृथ्वी लोक से लाया गया है। लेकिन यहां लाने के बाद उन्हें यहां जीवित रखने के लिये मंत्र बल से चांदी का दिल लगा दिया जाता है। एसे में अगर उस भेडिया के अन्दर चांदी का दिल हो तो उस जमीन से चांदी निकलती है।"
"हम्म, अब समझा। लेकिन कितनी मात्रा में?" महाराज ने एक सवाल और किया।
"यह तय नहीं है महाराज, कहीं ज्यादा तो कहीं कम होती है। लेकिन जब तक उसका शरीर पूरी तरह से मिट्टी में समा ना जाये उसका दिल चांदी निकालता रहेगा।" इसी बीच दरबार में उपस्थित एक असुर बोल पड़ा।
"महाराज, राज्य के भेडियों के दिल चांदी के होते हैं। लेकिन राज घराने के भेडियों के दिल सोने से बने हुए हैं।"
"क्या? सोने से?"
" जी महाराज।"
nice update..!!भाग 36
---------
अतीत काल में पवन का नया रिश्ता
---------------------
पवन और कुसुम का विवाह संपन्न हो चुका था। मन्दिर के पुरोहित ने पवन को उददेश्य करते हुए पूछा, "बेटा तुम्हारे पास बधू को पहनाने के लिए कोई हार है?"
"पंडित जी, सब कुछ जल्दी जल्दी में हो रहा है। अभी फिलहाल,,,,," सुमन देवी पवन की तरफ से बोलने लगी। लेकिन पवन को याद आता है, उसके पास एक मंगलसूत्र का हार मौजूद है। उसने सुमन देवी, जो अभी उसकी सास बन गई है, को बीच में रोक दिया।
"माँ जी, मेरे पास है मंगलसूत्र।" पवन हार को अपनी जेब से निकालता है। और कुसुम के गले में बांध देता है। यह हार पवन ने अपनी माँ को पहनाने के लिए नगर के मेले से खरीदा था।
सुमन देवी अपनी बेटी और दामाद को लाखों दुआओं और आशीर्वादों से निहारने लगी। उनकी आंखों में खुशी के आँसूं थे।
"मेरी बच्ची, मैं ने तुझ से कहा था ना, तेरे लिये दूर देश से राजकुमार आयेगा। अब देख लिया ना! तू बहुत सौभाग्यशाली है कुसुम। जा अपनी जिंदगी जी ले।" सुमन देवी अपनी बेटी को गले लगाकर जी भरकर रोती है।
"बेटा, अब यह तुम्हारी जिम्मेदारी है। मेरी कुसुम अब तुम्हारी हुई। मुझे हमेशा से तुम्हारे जैसे दामाद की चाह थी। भगवान ने मेरी मनोकामना पूरी कर दी।" सुमन देवी ने पवन को देखते हुए कहा और फिर कुसुम का हाथ पकड़कर पवन के हाथ में थमा दिया।
"बेटा, तुम दोनों कुछ देर मेले में घूमफिर लो। मैं घर जा रही हूँ। मुझे थोड़ा काम है।" सुमन देवी को घर में जाकर अपने दामाद बने पवन के लिए अच्छा खाना बनाना है। रात को अपनी बेटी कुसुम की सुहागरात की तैयारी करनी है। इसी लिये वह दोनों को मेले में घूमने के लिए छोड़कर घर पर जाना चाह रही थी।
"ठीहै माँ जी!" पवन कहता है।
"बेटी शाम से पहले घर आ जाना।" सुमन देवी चली गई।
कुसुम कुछ बोल नहीं पा रही थी। उसे अभी तक हूई घटनाक्रम से विश्वास नहीं हो रहा था, यह हकिकत है, सपना नहीं।
"क्या बात है कुसुम? मेरे ऊपर नाराज हो?" कुसुम को उसकी माँ ने एक लाल जोडे से गावँ की एक साधारण लड्की की तरह सजाया है। लेकिन कुसुम इस कपड़े में भी एक नई नवेली दुल्हन सी लग रही है।
"मैं तुम से कभी बात नहीं करूँगी। जाओ तुम" कुसुम अपनी बनावटी नाराजगी दिखाती है।
"इतना गुस्सा! अच्छा चलो बाबा, माफ कर दो। मुझ से गलती हो गई।" पवन हँसता हुआ बोला। मेले के एक तरफ दोनों एक पेड के नीचे खडे हुए थे। मेले का आज आखरी दिन है। इसी लिए शायद मेले में आज काफी भीड है।
"तुम ने मुझे बहुत परेशान किया, मैं यह भूलूँगी नहीं।" छोटी कुसुम की बातों में पवन को अभी तक बचपने से भरा महसूस होता है।
"अरे कुसुम, तू यहां है?" कुसुम ने मुडकर देखा तो यह आँचल थी, जो अपने नए दूल्हे के साथ मेले में घूम रही थी। आँचल उसके पास आई।
"कौन है रे यह लड़का?" कुसुम के कान में आँचल ने फुसफुसाकर कहा।
"और कौन होगा! मेरा दूल्हा है।"
"इससे हुई है तेरी शादी? तूने बताया नहीं चाची ने तेरे लिए यह हीरा चुन रखा था।" आँचल को पवन एक नजर में ही भा गया। उसका पति मनोहर एक अच्छा लड़का था। लेकिन मर्दांगी वाली बात नहीं थी उस के अन्दर। जो पवन जैसे लडके में हर किसी को नजर आ जाता।
"मिल तो लो! क्या पुतले जैसे खडे हो?" आँचल ने मनोहर को डांटते हुए कहा। आँचल का अंदाज देखकर पवन समझ चुका था, मौसी के आगे चंचल के बापू की कभी नहीं चल सकी। मनोहर उसकी बात पे ह्ड़बड़ाकर पवन के पास आकर बात करने लगता है।
"तुझे कुछ कहा क्या उसने?" आँचल ने पूछा।
"नहीं तो?" कुसुम ने कहा।
"फिर इत्नी उदास क्यों है? आज तेरी शादी का दिन है, थोड़ा खुश रहा कर!"
"अरे नहीं एसी बात नहीं। अचानक से सब कुछ हो गया ना, इस लिए?"
"क्यों यह लड़का तुझे पसंद नहीं आया?"
"धत्, मैं ने एसा कहा क्या! पसंद तो बहुत है। एक हफ्ता पहले हमारे घर पर रहकर गया है। अम्मा ने तब मुझ से बियाह के लिए पूछा था, तब ना ना कर रहा था। और आज आकर खुद से आगे बड़कर प्रस्ताव स्वीकार किया है। सबकुछ मुझे सताने के लिए किया है इस ने?"
"यह तो अच्छी बात है ना! तुझे एक अच्छा लड़का मिल गया। मैं तो बड़ी चिंता में थी।"
"वह सुधा कहाँ है?"
"वह बेचारी दुखी है। जानती तो है, वह रघुवंश से प्रेम करती है। लेकिन उसके घरवालों ने उसके जैठ से बियाह करवा दिया। और पता है? सुधा और रघुवंश ने चुदाई भी की है?" आँचल बड़ी उत्साह लेकर बताने लगी।
"क्या सच मे? फिर क्या होगा?"
",सुधा ने तो शादी से पहले ही कह रखा है, बियाह करेगी तो रघुवंश से ही करेगी! अब देखते हैं क्या होता है। तू यह सब छोड़, तेरे दूल्हे ने कुछ कहा क्या?"
"किस बारे में?"
"अंजान मत बन, चुदाई के बारे में? पहले सम्भोग के बारे में? तुझे किस समय करेगा की नहीं?"
"इश, तू कित्नी गंदी है। भला यह भी कोई पूछता है? क्यों मनोहर ने तुझ से पूछा है?"
"और नहीं तो क्या? बेचारा चुदाई करने के मारे मरा जा रहा है। सुबह से कान के पास लगातार कहता जा रहा है, चलो ना, चलो ना, उसका घर अभी खाली है। घरवाले मेले में घूम रहे हैं। इसी लिए वहीं लेकर जा रहा है मुझे!"
"ध्यान से?"
"अब ध्यान देकर क्या होगा? शादी से पहले ही कह रखा था, मेले के दिन चुदाई करेगा। चल मैं चलती हुँ। कहीं उसके घरवाले न आ जायें। और हाँ, अपने पति से चुदाई करके मुझे बताना, तुझे कैसा लगा!"
कुछ देर और बातचीत के बाद आँचल अपने पति को लेकर चली गई। पवन भी कुसुम का हाथ पकड़कर मेले के अन्दर लेता गया। "चलो तुम्हें मेला घुमाकर दिखाता हूँ।"
-------------------------
-------------------------
"अरे जनाब, कहाँ रह गए थे? यह कौन है?" पवन घूमता हुआ बिर्जू के ढाबे के सामने आ गया। बिर्जू ने जब उसे देखा तो पूछा।
"शादी हो गई है मेरी। बीबी है यह मेरी!" पवन ने आनन्द और गर्व महसूस करते हुए कहा। लेकिन कुसुम को शर्म आ रही थी। वह सिर नीचा किये खडी रही।
"ओ ओह, मतलब कल जो कपडा खरीदा गया है, सब बहूरानी के लिए था।"
"हाँ दोस्त, यह सब छोड़ो, आज मेरी शादी का दिन है, अपनी बहूरानी को कुछ खास पकवान खिलाओ यार। क्या खास है तुम्हारे यहां!" ढाबे में लोगों का आना जाना बना हुआ था। बिर्जू सामने खडा होकर गाहक बुलाने में ब्यस्त था।
"ओ रतन, भईया को अच्छी जगह पे बिठा।" पवन और कुसुम को बिर्जू के मालिक ने हलवा पूरी खिलाई। जो इस मेले में बिख्यात है। जब पवन दुकान से निकलने लगा तो बिर्जू बोल उठा,
"आज तो हमारा आखरी दिन। हम कल सुबह सुबह यहां से चले जायेंगे। कभी आना पुणे। वहां शहर में मालिक की दुकान है। मैं वहीं रहता हुँ।"
"हाँ दोस्त, अगर कभी पुणे गया तो तुम्हारे से जरुर मिलकर आऊँगा।"
पवन कुसुम का हाथ पकड़कर मेले में घूमने लगा। इसी बीच मेले में लोगों की भीड पिंडाल की तरफ जाने लगी। पवन ने एक आदमी से जब पूछा तो उसने बताया, "अरे जमींदार सूर्यप्रकाश सिंह जी अपने पूरे परिवार के साथ मेले में आये हुए हैं। सब लोग उन्हें देखने जा रहे हैं।"
"चलो ना कुसुम, हम भी देखकर आते हैं, मैं ने जमींदार जी के बारे में बहुत सुना है।" पवन एक प्रकार से हाथ खींचकर कुसुम को लेता गया। भविश्य से आया पवन को अतीत के सब चीजों के बारे में उत्साह था।
पिंडाल के अन्दर तीन कुर्सीयाँ लगी है, जिस पर सूर्यप्रकाश सिंह, उनकी बड़ी बीबी हेमलता और छोटी बीबी मेनका बैठी हैं। मेनका की उम्र कुसुम के बराबर लगती थी। पवन ने अपने जीवन काल में जिन लोगों के बारे में इतना सुना था, आज अतीत के इस भंवर में उन्हें देखकर पवन को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था। काफी देर तक पवन और कुसुम उस पिंडाल में लोगों के बीच खडे रहे, और फिर वहां से निकल आये।
--------------