kirantariq
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भाग 26/2
कुछ देर के बाद चौपाल में सिर्फ वही जोडा घूमते फिरते दिखने लगे, जो भाई बहन हो। कुछ जोडा नगर की तरफ जाने के लिए नदी और चले गए। और कुछ जोडा इधर उधर घुमने लगे। राधा और पवन एक पेड के नीचे आकर बैठ गए।
"भईय्या क्या किस्मत है बताओ! जमींदार का बेटा ही जमींदार बनता है। लेकिन अब एसा आदमी भी जमींदार नवाब बन सकता है जो पैसे से अमीर हो। उनकी तो किस्मत ही बदल जायेगी।"
"एसा नहीं है राधा, शुरु से कहीं एसा था? यह तो परम्परा बनकर रह गई है। नहीं तो पहले जब कोई जमींदार बना होगा वह अपनी हुनर और काबिलियत की वजह से बना था।"
"जो भी हो भईया, काश की हमारे पास भी इतना सारा सोना होता, फिर तुम भी जमींदार बन जाते।"
"तू भी पागलों जैसी बातें करने लगी है। भला इतना सारा सोना हमारे पास कैसे आ सकता है? हमें चांदी मिल जाये वही हमारी किस्मत है। लेकिन मेरा मन कहता है, मैं तुझे और माँ को एक दिन जरुर सोने का गहना बनवाकर दूँगा। देख लेना।"
"सच में भईया! काश की वह दिन आये भईया,"
"अब यह सब छोड़, और वह बात तो जो कह रही थी। तुझे क्या चाहिए?"
"यहां नहीं भईया, चलो तुम्हें एक जगह लेकर चलती हूँ।"
दोनों भाई बहन इसी मकसद से पहाड़ के भीतर उस झरना के पास पहुँच गए, जिस का पानी बहता हुआ पवन के घर के पास से गुजरता है। ऊपर उंची चट्टानों से झरना बहकर नीचे गिर रहा था। पहाड़ के और भी हिस्से में इसी तरह की धाराएं बहती हुई गावँ में पहूँचती है।
"यहां क्यों लेकर आई मुझे? पागल कहीं की!"
"क्या भईया, तुम्हारे होते हुए भला मुझे किस बात का डर होगा। तुम उस पत्थर के पीछे खडे रहो। जब मैं बुलाऊंगी तब आना।"
"क्या पता तेरे दिमाग में क्या चल रहा है। इस तरफ वैसे भी गावँ वाले आते नहीं। वह तो हम ही पागल हैं की हमारा घर पहाड़ के नजदीक होने के कारन हम यहां आ जाते हैं। थोड़ा जल्दी कर।" पवन को कुछ समझ नहीं आ रहा था राधा उसके साथ क्या करने वाली है। वह पत्थर के पीछे जाकर खडा हो गया।
"भईया याद रहे, जब तक ना बुलाऊं , तुम बाहर मत आना।"
"ठीक है ठीक है, कहीं तू लुकाछुपी तो नहीं खेलनी वाली?"
"नहीं मेरे डरपोक भईया, अब यहीं रहो।" बोलकर राधा झरने के पास चली आती है।
वह झरने के पास एक पत्थर के ऊपर अपने साडे कपड़े उतारकर रख देती है। और बिलकुल नंगी और निर्वस्त्र होकर झरने के नीचे पानी में आ जाती है। झरने का ठंडा पानी उसके शरीर पर पडते ही राधा का शरीर और ज्यादा निखरने लगा। और फिर राधा ने पवन को आवाज दी।
"भईया अब आ जाओ।" राधा झरने के पानी में अपने शरीर को पीछे की और रखते हुए नहाने लगी। जिससे उसके मदमस्त और सुडौल चिकनी चूतड एक मूरत की तरह चमकने लगी। पवन ने जब यह द्रष्य देखा तो उसे यह एक जीता जागता सपना मालुम हुआ। उसकी आंखों पे यकीन नहीं आया की वह जो नजारा देख रहा है, वह सपना है या हकीकत।
अचानक से पवन को उसका सपना याद आ जाता है, उसकी बहन इसी तरह से झरने में नहा रही थी, और उसे अपनी तरफ बुलावा दे रही थी। पवन खुशी और आनन्द में पागल हूआ जा रहा था। वह आगे बढता गया। और जाकर अपनी बहन के पीछे पानी के पास खडा हुआ।
"राधा! यह क्या है?" वह धीरे और मध्यम आवाज में कहा। राधा ने मुडकर अपने भाई की तरफ देखा, उसके चेहरे पर प्रेम भरी मुस्कान थी। पवन की नजर ने राधा के पूरे शरीर को टटोल लिया। उसकी बहन राधा किसी अप्सरा से कम नहीं है। जैसे किसी मूर्ति बनाने वाले ने बड़ी मेहनत और लगन से इसे तराशा हो।
"तुम्हारा उपहार है भईया।" राधा ने लज्जा के साथ कहा।
राधा के एसे बोलते ही पवन मानो पागल सा हो गया, वह एकदम झट से पानी को पार करता हुआ राधा के पास पहुँचा। और राधा को अपनी बाहों में भर लिया। ऊपर से गिरते झरने के पानी में पवन पूरा भीग गया। लेकिन उसका भीगता शरीर भी इस माहोल और उत्तेजना में गरम हो गया।
भाग 27/1
पवन अपनी प्यारी बहना को एक पागल प्रेमी की तरह चूमता जा रहा था। उसका शरीर गरम और लिंग महाराज ठंडे पानी के बावजूद मजबूत तन गया। जिसे राधा बखूबी महसूस करती है। शरीर पर पहली बार किसी बलशाली पुरुष का हाथ पड़ने की वजह से राधा भी सहमी जाने लगी। वह अन्दर ही अन्दर उत्तेजना और प्रेम में फूटने लगी थी।
"आह मेरे भईया,तुम कितने अच्छे हो, अपनी बहन का राखी का उपहार अच्छा लगा!" राधा पवन के सीने में पिस्ती हुई बोली।
"बहुत पसंद लगा मेरी बहना, मुझे यही तो चाहिए था।"
"भईय्या अपना कपडा खोल दो। पूरा भीग चुका है।"
"तू ही खोल दे इसे।"
"नहीं भईया, मैं ने जिस तरह तुम्हें तुम्हारा उपहार दिया है, तुम भी मेरा उपहार खुद दोगे। तुम्हें खुद ही कपड़े खोलने पडेंगे।"
"क्या! तुझे मेरा वह चाहिए। लेकिन क्यों? आखिर मैं तुझे इतना पसंद आ गया?"
"हाँ भईया, मुझे बस तुम चाहिए! तुम बताओ तुम्हारी बहन तुम्हें कैसी लगी? तुम्हें पसंद आई?"
"हाँ मेरी बहना! मुझे बहुत पसंद आई तू। तुझे देखना है ना! ले मैं भी अपना कपडा उतार देता हूँ।" कहकर पवन ने गीला कपडा उतार कर पानी के बाहर पत्थर के ऊपर फेंक मारा। और जब पवन का फनफनाता हुआ लण्ड गुर्राने लगा, जो बिल्कुल खडा होकर अपनी शिकार के तलाश में था, उसे देखकर राधा के होश उड गए। राधा बस उस लौड़े को देखे जाने लगी।
"पसंद आया अपने भईया का हथियार! मेरा मतलब है उपहार!"
"हाँ हाँ, भईया, यह कितना बड़ा और मोटा है, हे भगवान, एसा भी होता है क्या?"
राधा शर्म और घबराहट में पवन के लण्ड को देखने लगी।
"दूर क्यों खडी है? पकड़ के देख तो सही, यह कैसा लगता है?" पवन ने दोबारा नंगी राधा को पकड़कर अपने से मिला लिया। और राधा का स्पर्श लौड़े पर पडते ही पवन के शरीर पर बिजली दौड गई।
"भईया यह कितना गरम है। हाए, कितना मोटा और प्यारा सा दिखता है। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा मर्द का लिंग इतना बड़ा भी हो सकता है।"
"तू ने मेरा लिंग देख लिया है, अब मुझे भी अपनी बुर दिखा दे। तूने तो पूरा जंगल सा बना के रखा है।" पवन बुर की झांटो पे हाथ फेरने लगा।
"तुम्हारे लिए रखा था। कहीं दूसरे की नजर ना लग जाये! सुँघके देखो ना भईया, तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा।" राधा शर्माती हूई बोली। पवन नीचे झुककर जब अपनी बहन की बुर के पास नाक लाता है तो एक अन्जानी और मदहोश कर देनेवाली सुगंध से उसका रोम रोम जाग उठा। अब पवन मारे आनन्द के झांटों पे अपना मुहं डाल देता है।
"आह भईया, अपनी बहन की बुर इतनी अच्छी लगी तुम्हें?" राधा एक हाथ से पवन का माथा पकड़े हुए थी। पवन अपने दोनों हाथों से राधा के मुलायम मस्त गांड पकड्ता हुआ राधा की चूत तक मुहं डाल चुका था। क्ंवारी चूत की महक और सुगंध से पवन ने अपना आपा खो दिया था।
"राधा तेरी बुर कितनी मस्त है। जरा अपने दोनों हाथों से इसको फैलाकर दिखा।"
"दिखाती हूँ भईया, सब तुम्हारे लिए है। अच्छी तरह से देख लो। अब इसका जिम्मा तुम्हें लेना है। यह लो, अन्दर तक देख लो भईया। इस सुराख में लण्ड डाला जाता है। तुम्हें बहुत मजा आने वाला है जब तुम अपना मुसल लण्ड अपनी बहन की इस छेद में डालोगे। भईया, चूसकर देखो ना!। अपनी जीभ चूत के अन्दर डाल दो।" राधा के कहने पे पवन वही करने लगा।
"भईय्या बहुत मजा आ रहा है। और चूसो अपनी बहन की चूत। आह अह्ह, मेरे प्यारे भईया। तुम कितने अच्छे हो। और अच्छी तरह चाटो। अन्दर तक जीभ घुसा दो।" राधा खडी खडी मझली की तडपने लगी। यह खेल कुछ देर तक चलता रहा। और फिर से दोनों शरीर एक हो गए। राधा पवन को और पवन राधा को एक प्रेमी प्रेमिका की तरह प्यार करने लगे।
"भईया मैं सिर्फ तुम्हारी बनना चाहती हूँ। तुम्हारी बीबी और पत्नी बनना चाहती हूँ। बोलो भईया करोगे ना मुझ से शादी? बनाओगे ना मुझे अपनी पत्नी?" राधा पवन की बाहों में लिपटी थी।
"इस के बाद मैं भी तुझे खो नहीं सकता राधा। लेकिन, चंचल के होते यह सब कैसे सम्भव होगा? क्या मानेगी? और लोग?" पवन अपनी चिंता जताता है।
"उसकी फिक्र तुम ना करो। अगर मेरा और तुम्हारा प्यार सच्चा है तो, हमारी शादी जरुर होगी। मैं तुम्हारी प्त्नी बनूँगी। नहीं तो, जिस तरह हुँ इसी तरह रहूँगी।"
"मेरे जीते जी, एसा नहीं होगा। मैं तुझे अपना बनाकर रहूँगा। मेरी प्यारी बहना।" दोनों पागल प्रेमी लग रहे थे।
"भईय्या, अब और ना तडपाओ अपनी बहन को। अपनी बहन को अब अपना बना लो।"
"क्या तू चुदाई करवाना चाहती है राधा?"
"हाँ मेरे भोंदू भईया, तुम्हारी बहन अपनी चूत में तुम्हारा यह लौड़ा लेना चाहती है। तभी तो तुम्हें यहां लेकर आई हुँ।" राधा शर्माती हूई बोली।
"राधा क्या तू इस के लिए तैयार है? तुझे कुछ होगा तो नहीं ना?"
"कुछ नहीं होगा भईया, हर लड्की को पहली बार थोड़ा दर्द होता है। और तुम्हारा यह काफी बड़ा है। मैं ने इतना बड़ा लण्ड आजतक नहीं देखा। सुना है, बड़े लण्ड से चुदवाने में बड़ा मजा आता है। अब देरी ना करो भईया, काफी समय जो चला है।"
"मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है आखिर तुझे करुँ तो कहाँ करुँ?"
"अच्छा यह बात है। मेरे भोंदू भईया। चलो मुझे पत्थर के उपर ले चलो।" पवन उसे गोदी मे लेकर वहां ले गया। राधा पत्थर के ऊपर पैर खोलकर पवन के सामने चूत खोलके बैठ गई। पवन खडा था। राधा की इच्छा पवन समझ गया।
"सम्भाल लेना राधा। तेरा यह पहली बार है।" पवन लपकते लण्ड को हाथ में पकड़कर राधा के चूत के आगे निशाना ठीक करता हुआ बोला।
"लेकिन आखरी बार नहीं।" राधा के चेहरे पर मुस्कान थी।
पवन का लण्ड थोड़ा सा चूत को चीरता हुआ जाते ही राधा के मुहं से दर्द की आहें निकलनी शुरु हो गई।
"आह आह आह पवन, लग रहा है, दर्द हो रहा है।"
"सम्भाल अपने आप को। अभी हो जाएगा।" पवन धीरे धीरे लण्ड को चूत के अन्दर तक पहुंचाता गया।
"भईय्या, मुझे बहुत दर्द हो रहा है।" मारे दर्द के राधा ने पवन को अपने सीने से चिपका लिया।
"कुछ नहीं होगा राधा, बस थोड़ा और।" कहकर पवन ने एक आखरी और जोरदार धक्का लगाया। लौड़ा क्ंवारी को चीरता हुआ बिल्कुल अंद्रर तक पहुँच गया।
"आह मर गई मैं। मर गई। भईया कुछ करो।" पवन ने जब नीचे निगाह डाली तो उसको डर लग गया। उसकी बहन की चूत खून से लथपथ थी। एक दो बूँद नीचे भी गिरी।
एसे में पवन के अन्दर से आवाज आई। "राधा के पेट पे अपना हाथ फेरो। उसके नाभि को सहलाओ। उसका दूध चूसो।"
पवन समझ गया यह आवाज राजकुमार की है। वह उसे निर्देश दे रहा है। और पवन के एसा करते ही कुछ ही देर में राधा शान्त हो गई।
"अब अच्छा लग रहा है?" पवन अपनी बहन को बाहों में भर रखा था।
"हम्म।" राधा ने कहा।
दोनों को अब कुछ और बताने की जरुरत नहीं हुई। पवन अपना काम करता गया। और राधा अपने पहले मिलन का भरपुर स्वाद लेती रही। और यह प्यार भरा मिलन पवन के वीर्यसेचन पर समाप्त हुआ।
Bahot behtareen shaandaar update bhaiभाग 27/2
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घर आते समय पवन और राधा दोनों एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्करा रहे थे। यह मुस्कान कुछ हासिल करने की खुशी की निशानी थी।
"भईया, हमारे इस रिश्ते का क्या नाम होगा? क्या हम छुप छुपकर इसी तरह से प्यार करेंगे? मुझे भी तुम्हारी पत्नी बनने का सौभाग्य चाहिए।"
"मैं भी तुझे अपना बनाना चाहता हुँ राधा। लेकिन फिलहाल हमें अपने इस नए रिश्ते को इसी तरह से निभाना पड़ेगा। मैं तुझे जरुर अपनी पत्नी बनाऊँगा। यह मेरा वचन है। लेकिन राधा, तबतक के लिए मुझे अपने से दूर मत होने देना। मुझे अपनी इस नई बीबी का प्यार हमेशा चाहिए। बता देगी ना मुझे?"
"हाँ मेरे पतिदेव। तुम्हारी राधा अब हमेशा के लिए तुम्हारी हुई। जब चाहो मुझे बुला लेना। लेकिन भईया, हमें थोड़ा सतर्क रहना पड़ेगा। यह बात किसी को पता नहीं होनी चाहिए।"
Bahot behtareen shaandaar update bhaiभाग 29
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"राधा, तेरा भाई इस बारिश के मौसम में क्या करने गया खेत पर?" कुसुम ने राधा से पूछा।
"माँ, अंजान मत बनो, अगर पानी में खेत डूब गया तो हम खायेंगे क्या?"
"बड़ी आई समझाने वाली, अरे मैं कह रही हुँ, इस मौसम में अगर वह बीमार हो गया तो क्या होगा?"
"कुछ नहीं होगा मेरे भाई को, तुम निश्चिंत रहो माँ, तुम तो एसे पूछ रही हो, जैसे मैं तुम्हारी ननद हुँ, और भईया तुम्हारे पति, अगर इत्नी ही फिक्र है तो जाने क्यों दिया, बान्ध के रखो उसो अपनी पल्लू में।" राधा मुस्कुराती हुई बोल्ने लगी।
"बड़ी जबान चलने लगी है तेरी, एकबार पवन की शादी हो जाने दे, फिर तेरी बारि है। बहुत जल्द तेरा बियाह करवा दूँगी। फिर देखूँगी कैसी तेरी जबान चलती है?'"
"मेरी जबान एसे ही चलती रहेगी, देख लेना। क्यौंकि मैं तुम लोगों को छोड़ के जानेवाली नहीं हुँ! पूरी जिंदगी तुम्हारे गले पडी रहूँगी।"
"हे भगवान, कहीं तू सारी जिंदगी भर क्ंवारी फिरती रहेगी?"
"क्यों, सील तुड़वाने के लिए शादी करवाना जरुरी है क्या?"
"छि: फिर तू इधर उधर मुहं मारती फिरती रहेगी? बदमाश लड्की, ज्यादा ही बिगड़ गई है तू! रुक जरा तेरे भाई को आने दे, इसी से तेरी शिकायत करूँगी।"
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"क्या बात है रे चंचल, आजकल तू बड़ी उछलती फिर रही है? हमेशा मुस्कराये जा रही है?" चंचल की माँ आँचल ने चंचल से पूछा।
"तुम्हें सब कुछ तो पता है माँ। फिर भी पूछ रही हो?"
"ओह, मतलब मेरी बेटी अभी से शादी के सपने देखने लगी है। है ना?"
"हाँ माँ, तुम्हारी बेटी अभी से शादी के सपने देख रही है। मैं सोच सोच के परेशान हो रही हुँ। माँ, तुम्हें क्या लगता है, मैं पवन की अच्छी बीबी बन पाऊँगी ना? उसे खुश तो कर पाऊँगी ना?"
"क्यों नहीं, तू जरुर कर पायेगी। मुझे पूरा यकीन है। आखिर तूने इतना कुछ सीखा है। मर्दों को किस तरह खुश किया जाता है, वह तुझे अच्छी तरह से पता है। और मुझे भी यकीन है, पवन की बीबी बनकर तू इस गावँ की सबसे खुश नसीब लड्की होगी। वह तुझे हर लिहाज से खुश रखेगा।"
"सच्ची माँ, लेकिन तुम्हें कैसे पता?"
"अरे पगली, मैं एक औरत हूँ। और एक माँ भी। एक माँ की निगाह कभी धोका नहीं खाती।"
"भगवान करे, एसा ही हो।"
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बारिश के इस मौसम में आज गुरुजी का आँगन सुनसान पड़ा था। गुरु माँ और गुरुजी दोनों अपनी कक्षा में गावँ के बारे में बातें करने में लगे थे।
"आखिर और कितना दिन हमें इस तरह रहना पड़ेगा। इतने सालों में हमने कुछ भी तो हासिल नहीं किया। अब लगता है हमें यह हवेली भी छोड़नी पड़ेगी।" गुरु माँ बड़ी चिंतित होकर गुरुजी को संबंधित कर रही थी।
"अब हम क्या कर सकते हैं बताओ! हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की। अगर हमारा लल्ला रानी मेनका को ढूँढने में कामियाब होता तो शायद हमें इतने सालों तक मेहनत करने की कोई जरुरत नहीं होती। हवेली के उस गुप्त कक्षा के बारे में केवल छोटी रानी मेनका को ही पता था। कयोंकि मुझे पूरा यकीन है, जमींदार सूर्यप्रकाश सिंह किसी पर यकीन नहीं करते थे। अपनी बड़ी बीबी हेमलता पर भी नहीं। उन्हें अपनी छोटी बीबी रानी मेनका से ज्यादा प्रेम था। शायद इसी वजह से उनहोंने रानी मेनका को वह कक्षा दिखाई थी।"
"अब क्या करेंगे हम? रानी हेमलता ने साफ साफ बता दिया है, अगर नया जमींदार आया तो हमारा यहां रहना ना रहना नए जमींदार की मर्जी पर निर्भर करेगा। फिर क्या करेंगे?" गुरु माँ परेशान थी।
"अब तुम बताओ, इस उम्र में कहाँ जायेंगे हम?"
"हम लल्ला के पास चले जायें क्या।"
"पागल हो गई हो क्या? लोगों को पता चलेगा तो हमारा अन्त बहुत बुरा होगा। देखते हैं, क्या होता है। जहाँ तक मुझे लगता है, इस गावँ में हमारा कुछ इन्तज़ाम जरुर हो जाएगा। इश्वर करे कोई अच्छा आदमी ही इस गावँ का जमींदार बने।"
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"माँ, मैं सोच रही हूँ, मैं भी अपने बाल साफ करवा लूँ।" राधा बोलती गई, पर कुसुम किसी दूसरे ख्याल में थी।
"माँ, कहाँ खो गई?"
"अरे कुछ नहीं, तू क्या कह रही थी? बाल साफ करेगी?"
"हाँ, माँ, अब यह बुर के बाल मेरे से नहीं रखा जाएगा। अब तो तुम्हारी तरह बिलकुल साफ करके रखूँगी। बिल्कुल सपाट और चिकनी चूत की तरह। क्या बोलती हो?" राधा उछलती हुई बोली।
"अच्छा हुआ तेरी सुद्बूध हो गई। भला चूत पे बाल रखने का क्या फायदा? अभी तुझे पता नहीं, लेकिन जब तेरी शादी होगी तब मालुम पड़ेगा, बुर पे बाल रखकर तूने कितनी बड़ी भूल की है?"
"एसा क्या? मुझे भी बताओ ना! शादी के बाद साफ चूत होने से क्या अच्छा होगा?" राधा अंजान बने अपनी माँ के मुहं से सुनना चाह रही थी।
"मुझ से क्यों पूछ रही है? तू तो मुझ से ज्यादा जानती है ना, खुद पता कर ले।"
"अब बता भी दो माँ। तुम नहीं बताओगी तो कौन बतायेगा? तुम तो मेरी अच्छी माँ हो, मेरी सबसे अच्छी सहेली और दोस्त।" राधा अपनी माँ कुसुम से लिपट गई।
"छोड़ हराम की! बड़ा परेशान करती है! एसे नखरे करती है जैसे मैं तेरी सचमुच की सहेली हुँ? भूल मत माँ हुँ तेरी?" कुसुम भी मासूम बनती है।
"हाँ बाबा हाँ, माँ हो, समझ गई। अब बताओ।"
"क्या होगा इस लड्की का! एसी बात भी मेरे मुहं से सुनना चाहती है। तो सुन, बुर पे बाल रखने से पति के साथ सम्भोग करते समय बाल बुर में फंस जाता है। जिस से औरत की चूत में जलन होती है। लेकिन अगर तू चूत के बाल साफ रखेगी तो मर्द का लौड़ा सीधा तेरी चूत को चीरता हूआ अन्दर तक पहुँच जाएगा। उस में ना जलन होगी और ना बाल बुर में फंसेगा, इससे चुदाई का मजा ज्यादा आता है पगली। समझी मेरी बात।"
राधा जानती थी। क्यौंकि यह हादसा उसके साथ हो चुका है। और इसी लिए वह चूत साफ रखना चाहती है। क्यौंकि पवन के साथ जो कुछ हूआ अब दोनों एक दूसरे को प्यार किए बिना रह नहीं पायेंगे। और इसी वजह से राधा बुर के बाल काटना चाह रही थी।
"ओह, एसी बात है। फिर तो जरुर साफ करुँगी। अच्छा माँ, क्या तुम भी इसी लिए हमेशा चूत साफ रखा करती हो? की पिताजी जब भी आये तो तुम्हें कोई दिक्कत ना हो।"
राधा के सवाल पे कुसुम चुप हो जाती है।
"अब तुझे अपनी बात कित्नी बार बताऊँ? तेरा बाप तो आने से रहा? अगर उसे आना होता शायद अबतक आ जाता। अब तो मुझे लगता है, मुझे बिधवा का भेस अपना लेना चाहिए। कबतक यूं लोगों से झूट कहती रहूँगी?" कुसुम दूसरे ख्यालों में डूब जाती है। राधा अपनी माँ को गले लगा लेती है।
"अरे, फिर वही! कहीं नहीं तुम बिधवा की तरह रहने लगोगी। अगर तुम्हें यकीन है तो पिताजी जरुर आयेंगे। तुम्हारा प्यार उन्हें खींच लाएगा। मुझे पूरा विश्वास है। मेरी अच्छी माँ!" राधा अपनी माँ को दिलासा देती है।
"काश की तेरी बात सच हो। अच्छा चल छोड़, मेरी वजह से तू भी दुखी होने लगी। पगली! बता क्या पूछ रही थी? आज तेरी सारी जिज्ञासा दूर किए देती हूँ।"
"यह तो बहुत अच्छी बात है माँ, मेरी अच्छी माँ, मैं पूछ रही थी की, तुम हमेशा बुर साफ क्यों रखती हो?"
"देख, मुझे बचपन से ही साफ सफाई में रहने की आदत है। तेरी नानी ने मुझे यह सब कुछ सिखाया था। लेकिन हाँ कुछ और कारणों से भी तेरी यह माँ अपनी चूत हमेशा साफ करके रखती है। तुझे पता है?, तेरी नानी मुझ से हमेशा कहा करती थी, मेरे लिये दूर देश से कोई राजकुमार आयेगा। और वह मेरा दिल जीत लेगा। मेरे साथ भी एसा ही हुआ। वास्तव में तेरा पिता एक राजकुमार की तरह मेरी जिंदगी में आया था। उसका आना भी हमेशा अचानक होता था।
मुझे आज भी याद है, तेरा पिता पहली बार जब आया, तब दो तीन दिन रुका था हमारे घर। फिर वह जैसा आया था वैसे ही चला गया। मैं भी टूट चुकी थी। और बस भगवान से प्रार्थना करती थी, किसी तरह मेरा राजकुमार लौटकर आ जाये और मुझे अपना बना ले। मैं अपना सब कुछ उसके नाम कर चुकी थी।" कुसुम के कहने के बीच राधा बोल पड़ी।
"तो बापू तुम्हें इतने अच्छे लगे? तुम्हें उनसे प्यार हो गया? और बापू को? क्या वह भी तुम से प्यार करने लगे थे?" राधा बड़ी उत्सुक दिख रही थी।
"तेरा पिता था ही इत्ना अनोखा, की देखकर ही प्यार हो जाता। और हाँ, तेरा बापू भी मुझे प्यार करने लगा था। फिर उसके कई दिनों बाद, मोह मिलन मेले के दिन तेरा पिता फिर से आया। मैं तो भगवान से प्रार्थना करने लगी थी, और जब मैं ने उसे देखा मैं खुशी के मारे रोने लगी।
तेरा पिता एक तो जवान था दूसरा आम लड़कों से उसमें काफी शक्तियां थी। वह मुझे पागलों की तरह प्यार करता था। तेरी नानी भी हमें घर में अकेली छोड़ देती ताकी हम दोनों अलग रह सकें।"
"फिर तो बापू ने तुम्हें खा लिया होगा!"
"और नहीं तो क्या? कहा ना, तेरा पिता एक बलशाली युवक था। वह जब मेरे से सम्भोग करता, मुझे पूरा थका देता था। एक एक दिन में कभी पांच बार कभी छ बार सात बार तक उसने मुझ से सम्भोग किया है।"
"क्या बात करती हो माँ? सा-----त बार? और तुम ने बरदास्त कर लिया? तुम्हारे बुर में जलन या सुझन कुछ हुआ नहीं?"
"और नहीं तो क्या? जलन तो बहुत होती थी और चूत भी सूझ जाती थी। लेकिन एक बात बताऊँ तुझे? तेरा बाप एक जादुगर था। उसका इतना बड़ा लण्ड जब मेरी चूत में घुसता, होना तो चाहिए था मुझे दर्द हो, लेकिन तेरा बाप एसा कुछ करता था जिससे मुझे मिलन करते समय बिलकुल भी दर्द नहीं होता। बस मजा और सूख मिलता। लेकिन हाँ, जब वह चुदाई खत्म होती और तेरा बाप झड़ने के बाद उठता तब बड़ी जलन होती थी चूत पे। लेकिन उसी सुझी हुई चूत पे जब तेरा पिता दोबारा लौड़ा डालता फिर से आनन्द और सूख मिलने लगता। वह बड़े यादगार दिन थे मेरे!"
"तो क्या पिताजी तुम्हें हर समय चोदा करते थे?"
"अरे पगली हाँ, कहा ना, तेरा बाप मेरा दीवाना था। उसका बस चलता तो मुझे कभी छोड़ता ही नहीं। वह तो बस मुझे हर समय किस तरह चोदेगा यही सब सोचता रहता। इस घर में एसा कोई कोना नहीं है जहाँ हमने चुदाई ना की हो। एक बात बताऊँ तुझे? बड़ी शर्म की बात है। मैं ने तेरे बाप से एक वचन लिया था। एक औरत कभी भी एसा वचन नहीं देती और ना ही लेती है। लेकिन तेरे पिता के लिए मैं ने यह वचन लिया था!"
"कैसा वचन?"
"जब तेरे बाप के साथ मेरा बियाह हुआ, उस समय तेरा पिता एक सप्ताह तक मेरे पास रुका था। उसके बाद पता नहीं कहां चला गया। मैं हर रोज उसका इन्तज़ार देखती। और फिर मेरे पेट में तेरा भाई आया। मैं गर्भवती हो गई। और देखते देखते मैं ने पवन को जनम दिया। लेकिन इस एक साल के अन्दर तेरा बाप नहीं आया। मैं ने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी। जब तेरा भाई दो महीना का था उस वक्त एक दिन अचानक तेरा बाप फिर से हाजिर हुआ।
एक साल दोनों एक दूसरे से जुदा रहकर पागल से हो गए थे। उस वक्त तेरा बाप दो सप्ताह तक मेरे पास रुका रहा। और हम ने बहुत अच्छा समय बिताया। हम प्यार में बिलकुल खो से गए। तब मैं ने महसूस किया तेरा बाप चाहे मुझे कितना भी प्यार करे, लेकिन उसका प्यार पाने के लिए मैं काफी नहीं हुँ।
एक दिन मैं ने तेरे बाप से कहा, मैं जान चुकी हूँ मैं अकेली तुम्हें शान्त नहीं कर सकती। मैं हार जाती हुँ, लेकिन तुम्हें और चाहिए। मैं सोच रही हूँ क्यों ना तुम एक शादी और कर लो! इस से तुम भी खुश रह पाओगे और मुझे भी थोड़ा आराम मिल जाएगा। नहीं तो सोचो एकबार, जब मेरी माहवारी आयेगी, तब तुम कैसे रहोगे?
मेरी बात सुनकर तेरा पिता तो एकदम चौंक गया। कहा, पागल हो गई हो क्या? जो अपने ही पति की शादी की बात कर रही हो?
मैं ने कहा, अजी, मेरी बात तो ध्यान से समझो, आज तो फिर भी ठीक है, लेकिन कल को जब मैं गर्भ से हो जाऊँगी, तब तुम बिना सम्भोग किए कैसे रह पाओगे?
तेरे पिता ने कहा, वह बाद में देखेंगे। लेकिन मैं तुम्हारे होते हुए किसी और से कैसे शादी कर सकता हुँ?
मैं ने फिर उन्हें समझाया, देखो, एसा मैं अपनी खुशी के लिए करना चाहती हूँ। अगर तुम खुश रहोगे तो मुझे भी खुश रखोगे। और मुझे हमारे लिए कई बच्चे चाहिए। तो क्या जब भी मैं पेट से हो जाऊँगी, तो क्या मेरा पति बिना सम्भोग के तकलीफ में रहेगा? एसा मैं हर्गिज नहीं होने दे सकती। तुम मुझे वचन दो, तुम दूसरी शादी करोगे। वह कोई भी हो, मैं उसे अपनी बहन मान लुंगी। हम दोनों खुशी खुशी तुम्हारे साथ रहेंगे।"
इतनी देर के बाद राधा बोल पड़ी, "तो माँ, यही वह वचन है? मतलब तुम ने पिताजी से कहा था, की उन्हें दूसरी शादी करनी पड़ेगी?"
"हाँ राधा, लेकिन एसा मैं ने इसी लिए किया था, ताकी मैं तेरे बापू को कभी खो ना दूँ। वह हमेशा मेरे पास रहे। मुझे कभी कभी लगता है, शायद तेरे पिता ने अपने गावँ जाकर दूसरा बियाह किया होगा। मैं अपने ही मन में उनसे बातें करती हूँ, अजी तुम बिलकुल फिक्र मत करो। तुम अपनी पत्नी को लेकर ही सही मेरे पास आ जाओ। या मुझे अपने पास लेकर जाओ। मैं कभी शिकायत का मौका नहीं दूँगी। तुम्हारी दो पत्नियाँ सौतन की तरह नहीं बल्कि दो बहन की रहेंगी।"
"माँ, तुम पिताजी से इतना प्यार करते थे? उन्होने तो तुम्हारे ऊपर जादू कर दिया है। भगवान करे, मेरा बाप तुम्हारे पास फिर से आ जाये। और मेरी माँ पहली की तरह हंसी खुशी जिंदगी गुजार सके। कितना अच्छा होगा ना माँ, जब पिताजी आयेंगे। फिर तो मेरी माँ फिर से माँ बनेगी। हमारे दो तीन भाई बहन और पैदा होंगे।"
"क्या पता, मैं दोबारा सुहागन की जिंदगी जी पाऊँ भी या नहीं? लेकिन मुझे भी इच्छा है मैं फिर से तेरे पिताजी से गर्भवती हो जाऊँ, और मेरे तेरे और पवन की तरह दो तीन बच्चे और हो जायें।"
"मेरी अच्छी माँ। तुम्हारा सपना जरुर पूरा होगा। देख लेना मेरी बात।"
"एक और बात है जो मैं ने तुम दोनों से छुपाया है। तेरे पिता की एक निशानी है। तेरे पिता ने मुझे एक सोने का सिक्का दिया था। वह मैं ने आजतक सम्भालकर रखा है।"
"सोने का सिक्का? कहाँ है वह?"
"रुक मैं लाती हुँ।" कुसुम ने जब वह सिक्का दिखाया तो राधा सोना देखकर बड़ी खुश हुई। इस सिक्के पे एक पत्थर का निशान बना हुआ है।
"तेरे पिता ने कहा था, एक दिन वह इस तरह के ढेर सारे सिक्के लाकर मेरी झोली में डाल देगा। मैं ने इसे आजतक संभालकर रखा है।"
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मेले का अवसर
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सूरज अपने मध्य गगन पे विराज कर रहा था। पवन को साथ लेकर सुमन देवी मेले की तरफ चलने लगी। मेले में लोगों का आना शुरु हो गया है।
पवन ने एक नया जोडा पहन लिया। मेले के रास्ते जाते हुए कुसुम अपनी नजरों से बारबार पवन को देखे जा रही थी। पवन सब कुछ समझ रहा था। लेकिन उसे इसका अन्त देखना है।
मेले के एक तरफ बड़ा सा शामियाना लगा है। जिसके अन्दर दो तीन जगह भीड लगी हुई थी।
"हमारा चौपाल यहां है।" एक भीड की तरफ दिखाते हुए सुमन देवी ने कहा। "वहां पे उंची जात और अमीर खानदानी लोगों का रिश्ता जुड्ता है। यहां आ जाओ बेटा।" कुसुम को लेकर सुमन देवी पिंडाल में चली गई।
"अरे कुसुम तू आई। हम कब से तेरा इन्तज़ार कर रहे थे।" कुसुम की उम्र की एक लड्की जो शादी के जोड़े मे थी, उसने कहा।
"आँचल तेरा बुलावा आ गया है क्या?" सुमन देवी ने कहा।
"नहीं चाची। बस थोडी देर बाद। अभी सुधा का बुलावा आयेगा। चाची, कुसुम का दूल्हा कौन है?"
"आँचल उसका दूल्हा तो मिला नहीं। यहां कोई अच्छा लड़का आया है क्या?" सुमन देवी की बात आँचल समझ जाती है। कयोंकि कुसुम चुपचाप खडी थी।
"अरी कुसुम तू चिंता मत कर। चाची, अभी अभी शहर से दो लडके का रिश्ता पक्का हुआ है। यहां बहुत अच्छे अच्छे लडके आये हैं। तुझे भी अच्छा ही दूल्हा मिलेगा।"
इत्ने में आँचल की माँ आ गई। सुमन देवी और उनमें कुछ देर बातें चली। पवन एक तरफ खडा होकर यह सब देखने लगा। लेकिन इस हालात में भी कुसुम की निगाहें पवन पर टिकी थी। मानो, वह अपनी निगाहों से पवन से यह विनती कर रही हो, मुझे अपना बना लो।'
समय बीतता गया। धीरे धीरे सब का बुलावा आता गया, और कुसुम की एक और सहेली सुधा का बुलावा आया। फिर आँचल का। दूल्हा और दुल्हन के साथ आये रिश्तेदार और घरवालों की भीड भी धीरे धीरे कम होती गई। अब पिंडाल में सिर्फ कुछ ही लोग बचे थे।
इसी बीच पवन ने ध्यान दिया, मोह मिलन मेले के इस अवसर पर यह सारा काम उनके गुरुजी अमरनाथ जी अंजाम दे रहे हैं।
भीड जब कुछ कम हूई तो, सुमन देवी आगे बढकर गुरुजी के पास चली गई।
"गुरुजी, यह है मेरी बेटी, कुसुम। आप जरा इसके लिए कोई अच्छा सा दूल्हा ढूँढ दिजीये।"
"सुमन देवी, मैं ने तुम्हें पहले ही कहा है, इस से तुम्हारी लड्की का जीवन अनर्थ हो जाएगा। प्रस्ताव देने के बाद अगर कोई स्वीकार न करे, तब भी बदनामी है। और अगर किसी ने प्रस्ताव स्वीकार किया तो तुम्हें उसे मानना ही पड़ेगा। अब तुम खुद ही सोचकर देखो।"
"नहीं, गुरुजी, मेरी बेटी का नसीब इत्ना बुरा नहीं हो सकता। आप उसका प्रस्ताव दें। जरुर कोई अच्छा लड़का उसको स्वीकार करेगा।"
"जैसी तुम्हारी मर्जी सुमन देवी। लेकिन एकबार अगर किसी ने स्वीकार कर लिया, तो तुम्हें उसे मानना ही पड़ेगा। कुछ क्षण बाद तुम्हारा बुलावा आयेगा।"
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पवन खडा खडा यह सब माजरा देखने में ब्यस्त था। वह जिस आदमी को ढूँढने में इत्नी दूर अतीत में आया है, उसका कोई नाम व निशान नहीं। हयरान व परेशान पवन सोचने में लग गया उसे अब क्या करना चाहिए। इसी बीच उसने लाला को देखा। एक काला और मोटा भद्दा सा आदमी। वह आकर भीड में शामिल हो गया। उसे देखकर सुमन देवी का चेहरा सुन्न पड गया।
"आ गया हरामजादा।" सुमन देवी ने बुदबुदाते हुए कहा।
और फिर गुरुजी अमरनाथ जी की घोषणा पवन के कानों में गुंजने लगी।
"यह सुमन देवी की पुत्री कुसुम देवी के विवाह का प्रस्ताव है। लड्की की माँ दूल्हे को दो गाये और दो बीघा जमीन देगी। कोई नेक दिल सज्जन है? जो इसका प्रस्ताव स्वीकार करे?" भीड कुछ कम थी। ज्यादतर देखनेवाले शामिल है। जिन्हें प्रस्ताव से कोई लेना देना नहीं था। और फिर भीड में से लाला बोल उठा,
"मैं तैयार हुँ प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए। और मुझे कुछ नहीं चाहिए।" कहकर लाला अपने काले काले दाँत दिखाने लगा।
पास में खडी सुमन देवी के चेहरे का रंग उड गया। कुसुम भी डरी और सहमी सिर नीचा करके खडी रही।
"मैं ने तुम्हें पहले ही कहा था सुमन देवी।" गुरुजी ने कहा
"थोड़ा प्रयास करे गुरुजी। मेरी एकमात्र पुत्री है।" सुमन देवी इल्तिजा करती है।
पवन को यह सब रोकना था। लेकिन कैसे? एक दो बार कुसुम की नजरें उससे मिली और कुसुम ने मायूस और निराश होकर अपना चहरा दूसरी तरफ फेर लिया।
"कोई और सज्जन है जो इस सुन्दर लड्की का हाथ माँगना चाहेगा? आज के समारोह में यही आखरी प्रस्ताव है।"
अब पवन समझ गया कोई कहीं से आनेवाला नहीं है। उसे ही कुछ करना पड़ेगा इसको रोकने के लिए। वह जीते जी लाला जैसे आदमी को कुसुम का पति बनते नहीं देख सकता। और ना ही अपना बाप बना सकता है।
"मैं करूँगा। मैं इस लड्की का प्रस्ताव स्वीकार करता हूँ।" पवन भीड में से बोल उठा। उसकी आवाज सुमन देवी और कुसुम के कान में पडते ही दोनों का चेहरा उम्मीदों से भर उठा। वहीं लाला गुस्से में बस पवन को देखता रह गया।
"सुमन देवी क्या तुम्हें यह प्रस्ताव स्वीकार है?"
"हाँ हाँ गुरुजी, मुझे स्वीकार है। मुझे यह लड़का बड़ा पसंद है।" सुमन देवी की हंसी और मुस्कान दोबारा चेहरे पे आना शुरु हुई।
"बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?"
"जी पवन कुमार।"
"सुमन देवी आप इन दोनों को पीछे मन्दिर में लेकर चले जायें, वहीं विवाह संपन्न होगा।"