भगवान शिव का दिन था तो दिमाग में उबेश्वर शिव मंदिर घूमने लगा. फैसला किया अब से हरेक सोमवार पैदल-पैदल नंगे पैर भगवान के दरबार में अपनी हाजिरी जरूर लगा करेगी, शायद ऐसा करने से रोज़दा का क्रच भी जल्द छूट जाए.
………………
51 थाल के बाद सभी को चाय ऑफर की गई. कश्मीरी में इसे कहवा बोलते, क्यूंकि टी-लीव्स के बजाय इसे बनाया जाता था केसर-कहवा की पत्तियों से. खुशबू तो उसकी ठीक थी लेकिन खारे और कसैले स्वाद ने मेरा चेहरा उतार दिया. मेहमानों के गूंजते ठहाकों के बीच इरीन ने बताया, यह एक टर्किश रस्म थी जिसे रोजे़न के सम्मान में मुझे पूरा खत्म कर करना है.
" शाबाश रोजे़न! पहले गालियां और अब ये जहर! बता तो दो, किस गुनाह का बदला ले रही हो? "
मुंह सडा़ते हुए मैने रोज़दा को सुनाने लगा लेकिन उसके जवाब में कुछ तो और ही छुपा हुआ था, " साॅरी, काश मैं तुम्हारी हैल्प कर पाती लेकिन तुम्हें जानना ही कहां होता है. इसलिए प्यार करते हो तो प्रूव करो "
" मतलब? "
" मतलब, यह तो बस शुरूआत है. असली मजा़ तो तब आएगा जब तुम्हें सांड से लड़ना पडे़गा "
" व्ह्ट द फ.. तुम लोग इंसान हो या ढोंग करते हो इंसान होने का?? क्या तुम्हारे डैड ने भी... फाइन, कोई इश्यू नही. अब सांड तो क्या मैं ओटोमन आर्मी से भी लड़ने के लिए तैयार हूं. देखना ये होगा कि तुम खुद को कैसे बचाओगी बुल-फाइटर से "
पहले मुझे लगा कि वो सीरियस है लेकिन फिर याद आया उंट/घोडो़ं पर चलने वाले पश्चिमी एशिया में बुल-फाइटिंग का चलन कभी रहा ही नहीं. दूसरे, अगर ऐसा होता तो मैड़म के शादीशुदा अंकल्स, डैड और बाकी के रिलेटिव्स में से एटलीस्ट कोई एक तो अपाहिज होता.
" छी... सच में बहुत कमीने हो तुम "
" और तुम होली-काउ.. " मैड़म अब थोडा़ चिढ़ने लगी तो मैं उसे और ज्यादा परेशान करने लगा.
" कुत्ते.... "
" बस यहां तक ठीक है... गधे-घोडे़ तक पहुंचोगी तो मुश्किल हो जाएगी "
इसके बाद वो मुझसे चाय के मग को छीनने की कोशिश करने लगी, लेकिन तब तक मैं उसे खत्म कर चुका था. हारकर मैडम ने अपना मोबाइल साइदा को पकडा़ दिया और इस तरह हमारे इस सीक्रेट कान्वर्सेशन का दि-एंड हो गया.
रिंग सेरेमनी से पहले एक रस्म और हुई, निसान बोह़कासी. जो एक तरह से हमारे यहां की गोद-भराई के जैसी थी. जिसमें हमें रोज़दा के लिए चाॅकलेट्स, मिठाइयां, ड्रैसिज और रोजमर्रा की जरूरतों का हर वो सामान एक बास्केट में देना होता था. उसके बाद नंबर आता था औपचारिक सगाई(निसान) का. देखा जाए तो फर्क सिर्फ बोल-चाल और पहनावे का था मगर रस्मो-रिवाज़ों का मकसद एक.
छोटी सी दो रिंग्स ने हम दोनों और हमारे परिवारों को एक कर सुख-दुख का साथी बना दिया, जिसकी आधिकारिक अंतिम मुहर हमारे पुरोहितों ने लगानी थी शादी के समारोह में अपने-अपने ईश्वर की मौजूदगी को साक्षी/गवाह मानकर.
डेनिज ने हमें उनका लोकनृत्य भी सिखाया. इसमें एक लाइन में एक दूसरे का हाथ पकड़ कर, दो कदम पीछे, और फिर चार कदम आगे आकर अपने सीधे पैर की हील को जोर से जमीन पर पटखना होता था, अपने पंजाबी भांगडा़ के धमाल की तरह. इसमें अपनी शुरुआत थोडी़ धीमी हुई लेकिन स्टेप्स और म्यूजिक बीट्स को समझने पर हमारी तरफ के लोग उनके डुबकी-डांस में, अब उन्हीं को चुनौती देने लगे. अहसास हो रहा था उस बेहतर kinship का जो अपने यहां के रिश्तों में अब बहुत कम दिखने को मिलती, लेकिन मैं बहुत खुश था रोज़दा के इस नोमैडिक कबीले का हिस्सा बनकर क्यूंकि सदियों पहले अपनी शुरुआत भी खानाबदोशों की तरह ही हुई थी.
अगली सुबह मेरे यज्ञोपवीत होने के बाद राजौरिया अंकल, डैड और गणेश बाकी सभी मेहमानों को घुमाने डल और गुलमर्ग ले गये. माॅम-आंटी के अलावा घर पर सिर्फ करण-शिवानी और मैं थे. सामान ज्यादा होने और बर्फ-बारी पड़ने से ज्यादातर मेहमानों को अब by road जाना था. लिहाजा, डाइरेक्शन मिली सबके लौटने से पहले रौशन अंकल को साथ(लोकल रिफरेंस के लिए) लेकर हमें पठानकोट तक बस/टैक्सीज का इंतजाम करना है, लेकिन करण सर की कुछ और ही प्लानिंग थी.
" आज तुझे डैड (राजौरिया अंकल) को बताना है कि तूने कभी शिवानी से प्यार नहीं किया " घर से बाहर निकलने पर करण ने पुश किया और अपने साथ अब रौशन अंकल नहीं थे.
" कम-ऑन यार.. शिवानी क्या ठीक हुई तो अब तू उसकी तरह बिहेव करने लगा? तेरा पेन समझ सकता हूॅं मेरे भाई लेकिन अंकल उस तरह नहीं सोचते ", मैंने उसे बताया अंकल मुझे इतनी आसानी से कभी disown नहीं करेंगे क्यूंकि एक अलग तलह का बांड डेवलप हो चुका था हमारे बीच, " इसलिए सब्र रख, शिवानी अब सही रास्ते पर है, तुझसे तो उन्हें कभी कोई दिक्कत नहीं रही, अप्रीशिएट तो करते हैं तुझे और ईवन तेरी माॅम के हार्ड-वर्क को, बस अपनी बेटी से ही अदावत रही उन्हें. जो वक्त साथ ही कम होगी "
" जलन होती है अब तुझसे, और अच्छा भी लगता है कि पहले जैसे dumb-ass नहीं रहा "
करण की बात में गधे का जिक्र होने पर मुझे कल रात रोज़दा और मेरे बीच हुआ टैक्स्ट एक्सचेंज याद आ गया, काॅल करने पर पता लगा वो लोग डल से अभी गुलमर्ग के लिए निकले हैं और दोपहर तक वापस आएंगे. बस का इंतजाम करने पर मुझे एक आइडिया आया, जिससे हमें मौका मिल सकता था शिवानी के लिए अंकल को मनाने का, मगर उसके लिए कुछ फेरबदल करनी पड़ती जो अपना इवेंट-प्लानर बडे आराम से कर लेता.
" माॅम-डैड की जगह मैं, तू और अंकल रुक जाते हैं ना यहां?? दो रिफिल्स में अंकल डार्लिंग हो जाते हैं, फिर कर लेना तू उनसे बात "
" यह मजाक नहीं है समर " करण फिर से उखड़ने लगा.
" कोशिश तो कर सकते हैं. जानता है, एक आयरिश कहावत है. What Whiskey will not cur... "
" एक जवाब देगा? इससे तुझे क्या मिलेगा?? " बात खत्म होने से पहले करण ने मुझे टोका.
" मोक्ष... मुक्ति. बहुत बुरा लगता है जब लोग नीयत पर उंगली उठाते हैं. देख, शिवानी डिजर्व नहीं करती अंकल की नाराज़गी और मैं लोगों की यह घटिया सोच. मुझे छूटना है इससे, लेकिन कोर्डियली, अंकल को बिना ऑफेंड किये, आफ्टरऑल बाप से बढ़कर हैं यार वो मेरे लिए "
" खामखां बेसब्र हो रहा हूॅं मैं.... लीव इट. जैसे प्लान किया था वैसे ही चलते हैं. अब ये दो दिन सब तुझे सम्हालना है, एक की शाम को तो टाइमली पहुंच जाएंगे हम. कोई इश्यू हो तो अनूप या बहना (अवनी, समर की सिस्टर) को काॅल कर लेना. बाकी, बेफिक्र रह, हो जाएगा सब अच्छे से "
क्यूं कर रहा था करण इतना, यह तो समझ से परे था मेरी, लेकिन इतना यकीन जरूर था इसके पीछे सेल्फिश मोटिव तो बिल्कुल नहीं है उसके. कद-काठी, चेहरा, इज्जत, हैशियत, हर लिहाज से सत्रह गुना बेहतर था वो मुझसे, वाबजूद इसके उसकी अप्रौच बडे़ भाई की तरह थी. बहुत दिल करता था उससे यह सवाल करने का लेकिन बड़प्पन और लगाव देखकर अगले ही पल मेरी हिम्मत पस्त हो जाती.
दोपहर बाद मेहमानों को विदा कर, शिवानी और टैडी को लेकर वो चला गया. अब घर पर राजौरिया अंकल, मिलिंद भाई-भाभी, उनकी माॅम और बच्चों को मिलाकर हम सात लोग रह गये. सब गुम थे पिछले चार दिनों की महकती यादों और खयालों में क्यूंकि इस दिन का ख्वाब सबने देखा तो जरूर था लेकिन इसके पूरा होने की उम्मीद शायद ही किसी को थी. दो वक्त मिलने पर आंटी ने मुझे दीपक करने के लिए बोला और भाभी के संग डिनर की तैयारी में लग गई.
" मिलिंद के डेल्ही वाले अपार्टमेंट को, तेरे यहां के किसी पाॅलिटीशियन का रिश्तेदार, अदालती आदेश के वाबजूद खाली नहीं कर रहा "
राजौरिया अंकल ने जब यह बताया तो मैं भाई के चेहरे की तरफ देखने लगा. कोर्ट आर्डर आने में कम से कम छह महीने या एक साल तो लगे होंगे, और वो आज भी मुझे इसके बारे में बताने से झिझ़क रहे थे. भाभी से टेनेंट की डिटेल्स, अपार्टमेंट का एड्रैस और कोर्ट आर्डर की काॅपी लेकर मैंने गणेश को मेल कर उन्हें यकीन गणेश की काबिलियत का यकीं दिलाया क्यूंकि उसे इस तरह के केस निबटाने की बडी़ खुजली होती.
खाना खाने के बाद हम ऐसे ही बातें करते रहे. मैडम ने गुरुग्राम लैंड होने पर बताया कि शादी/निकाह होने तक वो पूर्णत: शुद्ध वीगन डाइट पर रहेगी और उसके बाद भी उसकी पूरी कोशिश होगी वेगेन डाइट फौलो करने की. हालांकि, उसे ऐसा करने की जरूरत नहीं थी लेकिन फिर उसने याद दिलाया, प्यार के पागलपन में अपनी फितरत भी तो उसके Clan का हिस्सा बनने की थी.
दूरियां बरदाश्त नहीं होती थी अब हम दोनों से, अधूरा-अधूरा महसूस होता था एक दूसरे के बिना. इस तरह का कनैक्ट तो कभी अपराजिता या शिवानी के दौर में भी नहीं बना था. मिस करता था उसके साथ गुजारे गये पलों को और इंतजार था उस दिन का जब हमेशा के लिए हम परिणय सूत्र में बंधने कर, दो जिस्म एक जान होने वाले थे.
अगले दिन दोपहर तक रोज़दा उदयपुर और डैड आगरा पहुंच गये, क्यूंकि शादी की बाकी की रस्में अब राजौरिया अंकल के घर से होनी थी, इसलिए दादू के घर पर आज यह आखिरी दिन था हमारा. सोने से पहले राजौरिया अंकल सिमी भाभी (मिलिंद भाई की बीवी) की इसलिए तारीफ कर रहे थे, कि सालों भाई से दूर रहने के वाबजूद आज वो फिर से उनके साथ थीं. दरअसल, कसकता था अंकल को शिवानी और मेरा एक नहीं हो पाना, और कभी न कभी, किसी न किसी बहाने उनका यह पीडा़ झलक ही जाती, " करण बेशक एक अच्छा लड़का है समर लेकिन मैं चाह कर भी उसे तेरी जगह नहीं दे सकता. खिलाया है बेटा मैंने तुझे इन हाथों से और... छोड़ ना कलेजा फटता है याद करके....."
नाम लेना भी गवारा नहीं था उन्हें अपनी इकलौती बेटी का.और जब जब मेरी कोशिश उन्हें समझाने की होती, तब उनके दिल में शिवानी के लिए कड़वाहट कई गुना बढ़ जाती. लेकिन आज प्रिपेयर्ड था मैं पूरी तरह से और जब करण की सिंगल माल्ट व्हिस्की के दो रिफिल्स हम दोनों के गले से नीचे उतरे, अंकल मेरे लिए अपनी जान देने के लिए तैयार हो गये.
" यू नो व्हाट, इतनी नफरत क्यूं करने लगी थी शिवानी? क्यूंकि उससे पहले बेइंतहा प्यार करती वो थी मुझसे. गुनाहगार तो मैं हूॅं अंकल लेकिन आप हैं कि मानते ही नहीं " मैंने याद दिलाया कि उनके इन्हीं हाथों से मेरे साथ-साथ शिवानी की परिवरिश भी हुई थी.
" क्यूं इतनी तरफदारी करता है उसकी और अब किस बात का डर है तुझे?? "
" डर नहीं ख्वाहिश है ये मेरी, सिर्फ एक बार आप एक बाप की तरह अपनी बेटी की साइड लेकर तो देखें "
खिड़कियां बंद कर पर्दों से ढंकते हुऐ मैंने इज़हार किया अंकल को सारी कड़वाहट भुलाकर आगे बढ़ने के लिए, लेकिन हमेशा की तरह उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. उनका बिस्तर लगा कर मैं मिलिंद भाई और उर्मिला आंटी के पास आ गया, जहां सिमी भाभी अपने बच्चे को सहलाते हुए ना जाने किस बात पर धीमे धीमे सुबक रहीं थी. सुबह जल्दी निकलना था तो बिना डिस्टर्ब किऐ सोने आ गया, तो गणेश ने अगले दिन हमारे दिल्ली पंहुचने से पहले मिलिंद भाई के अपार्टमेंट का कब्जा वापस लेने की भूमिका बना दी थी.