थोड़ी नाराज़गी थी, क्यूंकि मेरी तरह मैडम की लाइफ भी अब प्रशासनिक द्वेष से राजनैतिक रस्साकसी का हिस्सा बन गई वो भी शादी के एन मौके पर. तो दूसरी तरफ हिम्मत भी बढ़ गई थी, कि मेरी होने वाली बीवी बुज़दिल और मानसिक तौर पर कमजोर तो बिल्कुल नहीं है.
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" साॅरी.... " कमरे दाखिल होते ही एडी को लेकर करण-शिवानी की पिलो-फाइट देख, उनसे माफी मांगते हुए मैं वापस अपने कमरे में आया तो वहां मिलिंद भैया सिमरन भाभी को अपनी गोद में लिए बैठे थे. मगर अब उन्हें ऐसे देखने वाला मैं अकेला न था, क्युंकि मेरे एक बार फिर से मुड़ने पर करण-शिवानी मेरे सामने खडे़ थे. मीन-व्हाइल मिलिंद भैया और सिमी भाभी को भी हमारे वहां होने का अहसास हो गया और उसके बाद एडी को छोड़ दें तो हम पांचों जन अपनी हालत पर शर्मिंदा थे.
ग़लती मेरी ही थी, कमरे से बाहर निकलना ही नहीं था मुझे, क्यूंकि उस वक्त होटेल का एंबिएंश ही इतना खुशनुमा था कि जहां देखो वहां सिर्फ मुहब्बत ही बरस रही थी. जिंदगी ने बहुत कम या कुछ ही मौके दिये थे कुछ पल के लिए खुद को खुदनसीब समझने के और आज का दिन उन मौकों में मुझे सबसे अव्वल लग रहा था.
" फ्री हो.... " काॅल आंसर होते ही मैंने रोज़दा से पूछा.
" बड़े बेसब्र हो रहे हो? इतन...... " इरीन के खनकते यह अल्फ़ाज़ के साथ साथ बाकी और लड़कियों की आवाज़ सुनकर या शर्म से खुद-ब-खुद मुझसे काॅल डिस-कनैक्ट हो गई.
मैडम की तरफ से काॅलबैक नहीं हुआ तो यकीन हो गया कि मोबाइल उसके कब्जे में नहीं है एल्स एक बार तो वो मुझे अप्रोच करती. खैर मेरे लाख विरोध के वाबजूद फिर से कनिश्रण का अनुष्ठान दुहराया गया लेकिन इसके बाद हुए अगले दो कार्यक्रमों ने माॅम-डैड के लिए मेरे अंदर के गुबार को गायब कर दिया. अपने गुरूर से चूर मेरे फिरंगी चाचा और मामा अब बगलें झांकने लगे थे क्यूंकि दुरीबत (मामेरा) की रस्म के लिए माॅम ने अपने असली भाई का दर्जा कटोच सर को बख्शा, और डैड ने मेरी पगडी़ बांधने का हक राजौरिया अंकल-रौशन अंकल- अनूप के डैड और वैली से आए हमारे पडौसियों को दिया.
बहुत इमोशनल लम्हे थे हमारे परिवार के लिए. माॅम-डैड और अंकल-आंटी को राहत थी कि आखिरकार मैं दूल्हा बन ही गया, शिवानी खुश थी मुझे मेरी पसंद की लड़की मिल गई जो उसकी तरह लडा़का थी, करण और अवनी बहन को राजौरिया अंकल-आंटी का पूर्ण आशीर्वाद, तो मुझे मिला एक बहुत बडा़ परिवार जो कभी मेरे सपनों में भी नहीं था. इसलिए डोपामाइन के लिए आज मुझे कोई व्हिस्की या अन्य अल्कोहाॅलिक वैवरेज़ जरूरत नहीं थी, बस आंखें खुली रखनी थी अपनी.
खैर, क्यूंकि यह शादी इंडो-टर्किश रीति-रिवाजों से होनी थी इसलिए अब मुझे गाडियों और बैंड-बाजे के काफिले के साथ मैडम को सलून(ब्यूटी पार्लर) से पिक कर होटेल लाना था, जो बहुत ही ज्यादा जोखिम भरा, मूर्खता पूर्ण और यादगार रहा. थैंक-गाॅड, गणेश ने परमीशन ले रखी थी और लोग पहले से अवगत थे, नहीं तो इस असुविधा के लिए पब्लिक से मिली गालियां कानूनी कार्यवाही और जुर्माने के साथ डबल हो जानी थी.
सीरीज ऑफ इवेंट्स के दौरान दोस्त और परिवारिजनों की चुहलबाज़ी का अनुभव करते रोजे़न और मैं 7 जन्मों तक साथ रहने की कसम कुबूल कर दांपत्य बंधन में बंध चुके थे. मेहमानों के मिलने के बाद मुझे महसूस हुआ कि माॅम-डैड वहां नहीं थे, लेकिन फिर मैडम ने बताया किसी मान्यता की वजह से माॅम का हमारे फेरों की रस्म देखना शुभ नहीं माना जाता था इसलिए डैड के साथ वो आगरा निकल गये.
बड़ा मुश्किल था मेरे लिए इसे पचा पाना, क्यूंकि जिनकी जिंदगी का आखिरी और एकमात्र मकसद अपने बेटे की शादी देखना था, वो एक छोटी सी बेवकूफाना मान्यता से डरकर अपनी ख्वाहिश भी कुर्बान कर बैठे. मन नहीं लग रहा था मेरा अब, और जल्दबाजी थी उनके सीने-गोद में सर रख कर अपनी गलतियों का पश्चाताप करने की, पर यहां एक बाप और बना था मेरा जिसकी हालत उस वक्त मुझसे इसलिए ज्यादा दयनीय थी, क्यूंकी उनकी लाड़ली और इकलौती औलाद हमेशा के लिए अब पराई हो गई.
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रजिस्ट्रार ऑफिस आगरा में पत्रकारों से पता लगा प्रदेश सरकार और डिपार्टमेंट ने मुझे अगले दिन जयपुर तलब किया है, मगर इसकी आधिकारिक सूचना मेरे पास अब तक नहीं थी. खैर हनीमून की रात मैडम अपनी नींद पूरा कर रही थी तो मैं अखिल भारतीय सेवा अधिनियम पढ़ने में मशगूल. कानून की पढ़ाई करने का भी एक अलग चार्म है, और इसका मजा तब और डबल हो जाता जब आप पर लगे आरोप फर्जी, बेबुनियाद और राजनीति से ज्यादा प्रेरित होते.
और नैक्स्ट डे सचिवालय में यह हुआ भी, क्यूंकि सरकार के आरोपपत्र पर मेरी विस्तृत दलीलों ने जाहिर कर दिया कि स्वघोषित ईमानदार शासक व प्रशासक मिलकर भी मेरी कर्तव्य-निष्ठा को खरीदने की हैसियत नहीं रखते. बाकी, वो पूर्णतः आजाद थे संविधान और अधिनियम के तहत विधिक कार्यवाही के लिए जिसका मुझे तनिक भी डर या एतराज़ नहीं था. वहां से निकलते हुए सिवाच सर बात करते हुए आंखें नहीं मिला पा रहे थे, तो मेरी फोन-स्क्रीन पर नंबर बार-बार फ़्लैश हो रहा था डीआईजी प्रशांत झा का.
मुझे चित्रकूट सब-रजिस्ट्रार ऑफिस छोड़कर सिवाच सर दफ्तर निकल गये. मैडम का पसंदीदा 11 करोडी़ बंगला मिस्टर ऑज़ ने दहेज में दिया था जिसका रजिस्ट्रेशन मेरे नाम कराने के लिए वो वहां डेनिज़ भाई के साथ पहले से मौजूद थे. इधर का काम खत्म करने के बाद अपने साथ मुझे होटेल ले गये क्यूंकि वो भी फिक्रमंद और परेशान थे हमारी जिंदगी में हाल-फिलहाल हुऐ इस बदलाव से.
" जानता हूं तुम्हारे लिए यह आसान नहीं है लेकिन अब मेसुत के ऑफर के साथ-साथ डेनिज और मेरा भी एक प्रपोजल है. हम चाहते हैं मेसुत की इडीटर डेस्क के साथ तुम हमारा फैमिली बिजनिस भी देखो, क्यूंकि ईमानदारी के लिए तो तुम्हारी इस नौकरी में कोई जगह नहीं है और बदलने वाली फितरत मुझे तुम्हारी लगती नहीं "
मिस्टर ऑज़ की तरह डेनिज़ भाई का भी यही मानना था कि राजनेताओं के प्रपंचों से बचाने के लिए एसोसिएशन (आईपीएस) में मेरा कोई माई-बाप नहीं है, और मीडिया कब पलट जाए उसका भरोसा नहीं. इसलिए मुझे नौकरी छोड़ उनका ऑफर मान लेना चाहिये, आखिरकार रोजे़न की तरह मैं भी तो माॅम-डैड की इकलौती औलाद ही था.
" आप तो स्वीडन में रहते हो भैया, तो मेरे ईमानदार होने से इतना डर क्यूं? एंड एग्रेसिव न होने का मतलब ये नहीं कि कोई कमजोर है "
डेनिज़ भाई बहस के मूड में थे मगर जब मैंने उन्हें इजिप्ट के फेरोन और मूसा(Moses) का याद दिलाया तो उनके लब खामोश हो गये. खाना खाने के बाद मैड़म और माॅम से आर्डर मिला अपार्टमेंट का सामान नये बंगले में शिफ्ट कराने के लिए, तो अब मेरा भी मन बन गया था सरकारी आवास छोड़ने का. गणेश को इस बाबत जानकारी देकर मैं होटल में ही सो गया और शाम को जब मेरी नींद खुली तो फोन पर सैकडों नोटिफिकेशंस के साथ डिपार्टमेंट में माहौल दि तरह-तरह की अफवाहों का.
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अगली सुबह नये घर में ग्रह-प्रवेश की पूजा के बाद मैडम से जब मिला तो कुछ अलग सा महसूस हुआ. पहले एक खालीपन जो था मेरी जिंदगी में, वो अब रोज़दा का साथ मिलने से गायब हो गया. मकसद मिल गया था मैडम का दीदार कर, आने वाले कल के लिए और मेहनत कर वक्त से जल्द लौटने का, जो कभी अंकल और माॅम-डैड हमारे लिए करते.
" ........ कहां खो गये? "
" मिस्ड यू... " मैडम के झिंझोड़ने पर मेरे मुंह से बस यही निकला.
" बेबी प्लान कर रहे हैं हम समर... चाहती हूं हमारे बच्चों को भी दादा-दादी, नाना-ना...... " इसके बाद रोज़दा का गला रुंध गया और वो अपनी माॅम को याद कर सिसकने लगी.
उसे चुप कराने की मैंने कोशिश नहीं की क्यूंकि इतना तो डिजर्व करती थीं उसकी माॅम. मैडम के शांत होने तक मैं उसकी गरदन और कंधों को सहलाता रहा, फिर दरवाजा नाॅक होने की आवाज़ सुनकर वो वाॅशरूम अका पाउडर रूम में चली गई. अभी का खाना रोज़दा ने बनाना था तो इरीन और साइदा उसे बुलाने आई थीं. पांच परिवारों को मिलाकर कमोबेश यहां 20-25 लोग थे और उनके खाने के बारे में सोचकर मैड़म के लिए मेरा प्यार उमड़ने लगा, लेकिन यह आखिरी पड़ाव था शादी की रीति रिवाजों का इसलिए मुझे ना चाहते हुए भी चुप बैठना पडा़.
शाम को अकादमी के नजदीकी एक बडे बैंक्वेट-हाल में रिसेप्शन था और मेरे सरप्राइज के लिए वहां State IPS Association की कुछ बडी हस्तियां भी थीं. गणेश की हालत बुरी थी, क्यूंकि जिन सवालों के जवाब की उम्मीद लोगों को मुझसे थी, मेरे करीबी होने के नाते उनका टूटा-फूटा जवाब उसे देना पड़ रहा था. खैर, फ्लेवर्ड गुड़ और आमों की बास्केट के साथ मेहमानों के विदा होने पर हम लोग भी देर रात तक घर आ गये. शादी के बंधन में बंधने से अब मैं आजा़द था अपनी बीवी से रोमांस करने, मगर सहकर्मियों और उनकी बीवियों के अनुभवों को सुनकर मैडम का ध्यान ही कहीं और था.
" मुझे लगता है ईमानदारी और कामयाबी से ज्यादा लोग तुम्हारी सादगी से जलते हैं, क्यूंकि आज जो मैंने महसूस किया उसने इतना तो साबित कर दिया कि पावर करप्ट तो करती ही है लेकिन लोगों को बांटती भी है "
" पर मैं तो आया ही था करप्ट होने के लिए " रोज़दा के मनोभावों के आगे सरेंडर कर मैंने भी अपने रोमानी रुख पर लगाम कस दी.
" बी सीरियस समर..... तुम एक्सीडेंटल ब्यूरोक्रेट हो और शायद इसीलिए आम लोग तुम्हें ज्यादा पसंद करते हैं "
" और खास लोग नापसंद.... "
मेरा जवाब सुनकर मैडम कुछ देर अल्ट्रा सीरियस मोड पे रहीं और फिर गहरी नींद में चली गई. नेक्सट सुबह देर से जागने की वजह से करण-शिवानी मुझसे मिले बिना चले गये और बाहर गार्डन में डैड के साथ गुफ्तगू करते दफ्तर के मुंशी को देखकर अंदाजा लग गया कि इंक्वारी कमैटी की अफवाह बेबुनियाद थी. सरकारी बंगला छोड़ने से इन कयासों को और हवा मिलने लगी थी इसलिए डिपार्टमेंट और सरकार चाहती थी कि मैं जल्द से जल्द वापस काम पर लग, उनकी ये परेशानी दूर करूं.
" मम्मी ने फोन कर बताया रोजे़न को उल्टियां हुई हैं. तो क्या... "
काॅल आनस्वर करने पर हालचाल पूछने के बाद शिवानी से यह सुना तो मैं बिफर गया, " हां, दो मिनिट पहले बेटी हुई है, और अभी-अभी जेटूई एडवांस्ड में टाॅप रैंक मिली है उसे और कल तक डाक्टरेट भी... "
" भगवान! मम्मी भी.. साॅरी. इतने सालों बाद आज फोन किया था तो प्लीज कुछ बोलना नहीं उ... "
" तो क्या आंटी? ओह माई गाॅड. एंड यू.….! " इसके बाद जुबां से पहले मेरा दिमाग बोलने लगा.
माॅम की फेवरेट थी वो और उनको फोन पर चटियाने की आदत भी थी, मगर जब शिवानी ने बोला कि सालों बाद उसे काॅल आई है तो जो गुस्सा कुछ मिनिट्स पहले मेरे अंदर उमड़ रहा था, उसकी जगह अब असीम खुशी ने ले ली. सेटरडे का मिलने का बोलकर मैंने काॅल डिसकनेक्ट की और सीट को रिक्लाइन कर शुक्रिया अदा करने लगा उस ईश्वरीय शक्ति का जिसने मुझे इस बुरे दौर को झेलने और उससे बाहर निकलने की ताकत बख्शी. दोपहर को पता लगा सिवाच सर ने कुकिंग समेत बाकी स्टाफ हमारे घर भेज दिया है इसलिए लंच की सेवा आज पूर्ण रूप से प्रभावित थी.
डेस्क जाॅब छूटने के बाद समन्वय के लिए मेरा बेस्ट टूल रहा काम करने के साथ-साथ अपने स्टाफ के साथ लंच या डिनर करना. नमक हलाली के साथ इसमें इज्ज़त को खोने का जोखिम भी था, इसलिए अधिकतर भ्रष्ट स्टाफ इससे बचता, और मुझे अंदाजा लग जाता कौन मेरे साथ है और कौन खिलाफ. सिवाच सर बच रहे थे मुझसे और उनका ऐसा करना मुझे एक अलग नतीजे पर पहुंचा रहा था. और हुआ भी वही, अब इंक्वारी कमेटी से लोगों का ध्यान हट गया था तो अब उसकी रिपोर्ट आने तक मुझे मेरी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया.
घर आया तब माॅम गेंहू साफ करने में आंटी की मदद कर रहीं थी और अंकल गये थे डैड और उनके किसान दोस्तों के साथ कहीं बाहर. कमरे में इंटर हुआ तो हैडफोन लगा कर मैडम साइदा से बात कर रही थी. पीठ मेरी तरफ थी इसलिए उसे तो मेरे आने का पता नहीं लगा और मैंने भी दोनों को बिना डिस्टर्ब किये शाॅवर लेना शुरू कर दिया.
" अब कहां जा रहे हो?? "
" अकेले नहीं जा रहा, आपको भी चलना है " ड्रैसिंगरूम से तैयार होकर बाहर निकलने पर रोज़दा ने पूछा तो मैंने उसे भाभी (गणेश) के निमंत्रण और फिर पुलिस एकेडमी के प्रोग्राम के बारे में याद दिलाया.
इतना सुनकर, मैड़म कुछ बोलना या मना करना चाहती थी लेकिन फिर न जाने क्या सोचकर वो बिना वक्त जाया किये तैयार होने चली गई. हम निकले ही थे कि तभी डैड की काॅल आ गई, वो चाहते थे मुझे किसी से मिलाना क्यूंकि उनके दोस्तों यहां एक रिटेल स्टोर (फार्म-प्रोडू्यूसिज) के लिए जगह तलाश रहे थे, और जहां उन्हे वो बिल्डिंग पसंद आई, उसके ओनर को 1+1 महीने के एडवांस टोकन मनी के बजाय सिर्फ मेरी वर्बल गारंटी चाहिये थी.
उन अंकल्स के फायदे के लिए मेरे लिए ये कोई बडी बात नहीं थी लेकिन पहले बिल्डिंग ओनर की मिलने की जिद और फिर आव-भगत ने हमें लेट जरूर कर दिया. गणेश के घर जाने से पहले अब हम अकादमी जा रहे थे लेकिन वहां पहुंचकर भी हमारी हालत ठीक " आसमान से गिरे मगर खजूर के पेड़ पर अटके " वाली कहावत जैसी हुई. वहां से निकलते-निकलते लगभग आधी रात होने वाली थी, और फिर गणेश के घर पहुंचकर मेरी आंखे पहले से बैठी सिवाच फैमिली से मिली तो अकादमी में चढा़ पूरा सुरूर अगले ही सेकिंड एक झटके में गायब हो गया.
" नूतन आपणे घरया है, अर थारे खिलाफ ज्कर कुछ होगा भी तो कुछ नी निकडूगा रोजे़न बेट्या, लेकिन समर थोडा भी अंदाजा नहीं था मन्ने ये लोग एक तीर तों... देख एक मौका दे दे बेट्या. अलैक्शन तो पहलां सारा खेड़ इन छोरीचोदों की गोंड मा ना बाड़ दि्दया... त म्हारा नाम भी ज्ञानचंद सिवाच नीऽह "
खीज और गुस्से से जबड़े कसने की वजह से धीमी होती सिवाच सर की आखिरी आधी बात का मतलब वहां बैठे लोगों में से सिर्फ मेरी ही समझ में आया. अपनी सहमति देने और उन्हें शांत करने के लिए मैंने काफी देर उन्हे गले लगाए रखा. भूख तो वैसे भी किसी को नहीं थी और यह दावत वो वाहिद मौका थी एक-दूसरे पर भरोसा मजबूत करने की. हालांकि इसका मुझे कोई अंदाजा नहीं था पर अच्छा लगने लगा था यह जानकर कि भ्रष्ट तंत्र के अंदर मैं अकेला ईमानदार नहीं था.