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Romance फख्त इक ख्वाहिश

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मेरी पहली कहानी में भी नही था। बहुत सी कहानी ऐसी हैं, जो कल्ट टाइप हैं, बिना सेक्स की

yeah.... par fir tum bhi beh gaye baaki logon ki tarah :approve:
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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yeah.... par fir tum bhi beh gaye baaki logon ki tarah :approve:
नही, नेक्स्ट वाली अगर लिखी तो एकदम अलग सी होगी। नो सेक्स एट ऑल
 
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नही, नेक्स्ट वाली अगर लिखी तो एकदम अलग सी होगी। नो सेक्स एट ऑल

wo chudail waali🤔
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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abhi free hua hoon dosto compile karne ke baad agla update evening tak mil jaayega
 
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खीज और गुस्से से जबड़े कसने की वजह से धीमी होती सिवाच सर की आखिरी आधी बात का मतलब वहां बैठे लोगों में से सिर्फ मेरी ही समझ में आया. अपनी सहमति देने और उन्हें शांत करने के लिए मैंने काफी देर उन्हे गले लगाए रखा. भूख तो वैसे भी किसी को नहीं थी और यह दावत वो वाहिद मौका थी एक-दूसरे पर भरोसा मजबूत करने की. हालांकि इसका मुझे कोई अंदाजा नहीं था पर अच्छा लगने लगा था यह जानकर कि भ्रष्ट तंत्र के अंदर मैं अकेला ईमानदार नहीं था.



.........................



" क्यूं हो रहा है यह तुम्हारे साथ समर?? क्या तुम्हें अभी भी लगता है कि मैं तुम्हारा लकी-चार्म हूॅं??? " घर लौटते हुए खामोशी के बीच जब रोज़दा ने लरजते-रुंधते लफ्जों में यह बोला तो मैं अंदर तक बुरी तरह हिल गया.

पहली बार अहसास हुआ कि यह नौकरी मेरी जिंदगी पर बुरी तरह हावी होने लगी है और इससे पहले कि ये हमारे रिश्ते को और तबाह करे, मुझे इसका कोई बेहतर इलाज या तोड़ ढूंढना है. समझ नहीं आ रहा था किस तरह और कहां से इसकी शुरुआत हो तो दूसरी तरफ आधी रात से ज्यादा वक्त गुजरने से, किसी को डिस्टर्ब कर ऑपीनियन लेने का वक्त भी नहीं था. बुझे मन से गाडी़ रोक कर मैंने रोज़दा को अपने गले लगाया और उसे यकीं दिलाने लगा कि अब तक की मेरी जिंदगी में सबसे हसीन पल उसकी आमद से नसीब हुए हैं.

बेशक मेरे पास फिलहाल उसके सवालों के सारे जवाब नहीं थे लेकिन मेरे रिजाइन करने से हमारी सारी मुस्किलें उसे हल होती दिखती हैं तो अब मैं इसके लिए भी पूर्णतः तैयार था. थैंकफुली इसका असर रोजे़न पर हुआ लेकिन फिर उसे ताउम्र मेरा बुझदिल की तरह दिखना भी गवारा नहीं था. बहुत पेचीदा था उसके लिए भी डिसाइड करना मगर अब वो थोडी़ तो रिलैक्सड थी कि मैं इस मसले को उसके, मतलब परिवार के नजरिये से भी देखने लगा हूॅं.

" अब तुम घर पर ही हो तो मैं क्रच लेना छोड़ रही हूॅं, बुरा लगता है मुझे तुम्हारे साथ कमजोर दिखना. वैसे भी एक न एक दिन तो यह छूटेगा ही तो इसकी शुरुआत आज से ही क्यूं न हो? " गाडी़ स्टार्ट करने का बोल रोज़दा ने जब इतना कहा तो उसके साथ मेरा भी आत्मविश्वास दोगुना हो गया.

" थैंक यू.... फिर तो मुझे भी बार-बार तुमसे चिपकने का मौका मिला करेगा. सच में यार, तरस गया हूॅं तुम्हारे इस टेंडर, साफ्ट और हसीन बदन के दीदार को, एंड अब तो अपनी शादी.... साॅरी, तुमने तो मुझे कभी रोका ही नहीं. यकीं नहीं करोगी, पसंद तो तुम्हें डे वन से करता था मगर इस मामले में नसीब कमजोर रहा है इसलिए कोशिश ही नहीं की कभी आगे बढ़ने की "

" राय तो मेरी भी तुम्हारे लिए गलत नहीं थी लेकिन लोगों के मुंह और गूगल पर तुम्हारी न्यूज... फिर एक दिन मुझे तनवी (डीआईजी की बेटी) मिली. उसने बताया कि तुम वैसे नहीं जैसे लोग समझते हैं और तब यह भी पता लगा कि अंकल तुम्हें क्यूं इतना नापसंद... जो अब नहीं करते. ईवन आज जब डैड तुम्हारा सुनकर परेशान हो रहे थे तब उन्होंने ही समझाया था उन्हें "

डीआईजी में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं थी लेकिन रोज़दा के मुस्कुराते चेहरे पे पुरानी रौनक और आवाज में खनक लौटते देख अच्छा जरूर महसूस कर रहा था, " मुझे छत पर सोना है आज, क्या तुम आना पसंद करोगी? "

" श्योर बट प्लीज कोई एडवेंचर नहीं. एक दो दिन में यह डर निकल जाएगा, उसके बाद कभी नहीं रोकूंगी तुम्हें "

" ओके, लेकिन इंक्वारी की फिक्र मत करो. सबसेंशियल प्रूव तो कुछ है नहीं. डीआईजी झा सही जाता है तो मैटर जल्दी निबट जाएगा बाकी पूछताछ खत्म होने तक मुझे वक्त तो मिलेगा तुम्हारी क्रच स्टिक छुडा़ने का " घर आने पर मैंने सिक्योरिटी को गेट खोलने के लिए काॅल किया और कपडे़ चेंज कर, ऊपर वाले कमरे से मैट्रेसिज उठाकर खुली टेरेस पर बिछाने लग गया. मैडम को डर लग रहा था कि रात को बंदरों काट ना लें, मगर प्यार में लोग सूली चढ़ जाते हैं और उसे तो सिर्फ खुले आसमान में बस चांद-सितारों के बीच सोना ही तो था.

खैर लेटने के बाद मैं उसे अपने फेवरेट कांस्टेलेशन्स और नेबुलाज़ के बारे में दिखा और बता रहा था लेकिन मैडम का मन अभी भी कहीं और था, " पुलिस सर्विस के बाद तुम्हारी सैंकिड प्रायर्टी क्या थी? आई मीन, नौकरी जाती है तो फिर क्या करोगे? "

सवाल मुझे पसंद नहीं था लेकिन नवेली बीवी की चिंताऐं दूर करना मेरी जिम्मेदारी थी, इसलिए अपनी तरफ से मैं भी ईमारदारी से जवाब देने लगा, " मिडिल क्लास लोगों के ख्वाब तो बहुत होते हैं पर ऑप्शंस बहुत कम. अपना हिसाब भी वैसा ही था, जाना रिसर्च में था और यूएस से भाग आया, और तब डैड का कर्ज चुकाने के लिए मुझे चाहिये था पैसा. कार्पोरेट सैक्टर में पैसा तो था लेकिन उतना नहीं जिससे कर्ज और जेब दोनों भरे. इसलिए मेरी पहली पसंद बनी पुलिस सर्विसिज, इसके अलावा दूसरा आप्शन नहीं था तब मेरे पास..... "

आंखों में आंखे डाले मैडम जवाब खत्म होने का इंतजार कर रही थी, " और मेरे दूसरे सवाल का जवाब?? "

" कमीनी हो... वैल, सच बोलू तो लाॅ और रिसर्च के बीच कन्फ्यूज हूं. पुराने सीनियर मोस्ट साइंटिस्ट कम प्रोफेसर से‌ प्रपोजल भी था IAO के GROWTH प्रोजेक्ट के लिए लेकिन अब मन नहीं करता माॅम-डैड, अंकल-आंटी और तुमसे दूर जाने का. घर तुमने दिला दिया, सैलरी से बाकी जरूरतें पूरी हो जाती हैं, और इससे ज्यादा कभी ईश्वर से मैंने उम्मीद नहीं की.... "

" आई लव यू.... पूरा परिवार है तुम्हारे साथ एंड सबको बस तुम्हारी फिक्र है, तुम्हारी नौकरी की नहीं. सोच रही हूं डैड के फार्मर फ्रैंड्स के स्टार्टप में अपन भी कुछ लगा दें. उन लोगों की हैल्प हो जाएगी एंड इनकम बढ़ जाएगी अपनी ", साइड से चिपकते हुए मैडम ने अपने दिल की बात बोल ही दी.

आईडिया बुरा नहीं था. वैसे भी, मैडम की दोनों गाडियों के इंश्योरेंशिज प्रीमियम मेरी क्वाटर्ली सैलरी से भी ज्यादा था. इसलिए, अपकमिंग खर्चों के लिए अपने को एक साइड बिजनिस की जरूरत तो पड़ने वाली थी. जवाब के इंतजार और सहलाने से मिलने वाले आनंद से मैडम गहरी नींद में चली गई. अलार्म बजने में सिर्फ तीन घंटे बाकी थे, इसलिए मैंने भी अपनी आंख बंद कर सोने की कोशिश करना बेहतर समझा.


............


गर्मी महसूस होने पर आंखे खुली तो सुबह के साढे़ सात बज रहे थे और सूरज कंधों चढ़ चुका था. गायब अलार्म क्लाॅक, दोनों फोन्स, स्मार्टवाॅच और ग्लो-लाइट मैडम के केरिंग नेचर का इजहार कर रहे थे. बिस्तर समेटकर मैंने कम्पाउंड में देखा तो डैड के हाथों में भुट्टे(मक्के) का बैग और अंकल शायद सब्जियां लेकर गेट में दाखिल हो रहे थे. ब्रेकफास्ट टेबल पर पता लगा शाम को उनकी ट्रेन है उज्जैन के लिए और करण की माॅम भी साथ जा रही हैं.

" तो कितने दिनों का टूर है?? होटेल बुकिंग कंफर्म हुई है या नहीं? " अपनी क्यूरोसिटी से हटकर उनकी देखभाल इन्श्योर करने के लिए मैंने पूछा.

" करण के फ्रैंड का अपार्टमेंट है वहां, पूरन (हाउस-हैल्प) साथ जा रहा है और टैक्सी का अपन देख लेंगे "

" क्यूं नहीं.... कुछ और ख्वाहिश भी पाली है या दादू का पैसा बोल रहा है?? " बेफिक्री से डैड ने रिप्लाई किया तो मैंने भी अपने कंधे उचका दिये.

लेकिन यहीं पर मुझसे एक गलती हो गई. अंकल के एक धमाकेदार थप्पड़ से मेरे चेहरे पर कांग्रेस का चुनाव चिन्ह बना और हाथों से बेबी-कार्न सलाद बिखर कर फ्लोर की शान पर सवालिया निशान उठा रहा था. अंकल को गुस्से में तो बहुत बार देखा था, लेकिन मुझ पर तो कभी गलती से भी नहीं. मौके की नजाकत भांप कर मैंने सबसे माफी मांगी और गिरा हुआ खाना उठाने लग गया.‌

वापस टेबल पर लौटा तब अंकल ने बताया जितनी होम सिकनेस मुझे यूएस जाने पर हुई थी, उससे कहीं ज्यादा और दशकों तक डैड ने अपने दोस्त, मुहल्ले, घर-जमीन और बाप खोने पर भुगता है. गंडुन के वक्त उनकी आंखों में खुशी की बजाय इस दुख के आंसू थे कि उस मौके पर डैड के सारे अजी़ज वो खुशी बांटने के लिए उनके करीब नहीं थे. अभी भी उस दौर को बुरी तरह मिस करते थे वो लेकिन उनकी बदनसीबी इतनी है उसकी भरपाई करना किसी के बस का नहीं. इसीलिए बेचा था उन्होंने दादू की प्रापर्टी को लेकिन घर इस उम्मीद से बचाए रखा कि एक लम्हे के लिए कभी मुझे उसकी जगह की याद आए, तब महसूस हो कि घर होने के वाबजूद भी उम्र के इस पडा़व तक कितने बेघर रहे हैं वो.

" मॉम-डैड और दादू ने जो भुगता मुझे उसका थोडा़ भी अंदाजा नहीं है अंकल, बस यही महसूस किया कि उस जगह ने सिर्फ दर्द ही ज्यादा दिया है उन्हें, इसलिए कभी कनैक्ट इस्टेब्लिश नहीं कर पाया उस जगह से. अच्छा हुआ आपने बता दिया, नहीं तो मुझे हमेशा यही महसूस होता कि मेरे अलावा इनकी और यादें हैं ही नहीं. ट्रस्ट मी अंकल, इतना बुरा भी नहीं हूं मैं, बस नाराज़ था कि इतने साल बाद साथ रहने का मौका मिलने पर भी वो ना जाने क्यूं घूमने जा रहे हैं? " यह बताने की जरूरत मुझे अंकल को थी क्यूंकि अपने बेटे को माॉम-डैड इतना तो समझते ही थे.

समझ देने वाले अगर अंकल थे तो संस्कार मुझे माॅम-डैड ने ही सिखाए. खैर अभी भी वो पहले की तरह नार्मल ही थे, पता नहीं कहां से सीखा था उन्होंने मेरे सामने अपना दुख-दर्द छुपाना. कुछ देर बाद बतौर पनिशमेंट मैं गार्डन में नये प्लांट्स के लिए गड्डे खोद रहा था और बाकी लोग डिसकस कर रहे थे वहां क्या रखना है और क्या हटाना. आंटी और माॅम को पुदीना, धनिया, सीजनल सब्जियों के लिए किचिन गार्डन चाहिये था, रोज़दा को कुछ हर्बल प्लांट्स. ये फरमाइश पूरा करने के लिए डैड को मेरे जैसा पार्ट-टाइम नौकर चाहिये था और अंकल ले रहे थे सबके मजे.

एक स्टोर से सीड्स, सीडलिंग ट्रे, कुछ टूल्स, कोकोपीट और आर्गेनिक मेन्योर मंगवा कर डैड ने थोडी़ देर कसरत और कराई, फिर पसीना सुखाने लगे, " अपने अंकल की बातों को दिमाग पर मत लेना, तेरी खुशी से बढ़कर हमारे लिए कुछ नहीं. बुरे दौर में कमायी सच्ची व पक्की दोस्ती है उससे, बाकी तू बेहतर जानता है हम क्या थे और क्या हैं उसके सामने. इसलिए मुझे हर्ट किया वो माफ है मगर उसे भूल से भी कभी ठेस मत पहुंचाना, नहीं तो ईश्वर भी माफ नहीं करेगा तुझे "

" कोशिश तो करता हूं डैड, बाकी दुआ करता हूं ईश्वर से कि वो दिन कभी न दिखाए " इस टाॅपिक पर बात तो दूर सोचने मात्र से रूह कांप जाती थी मेरी. डैड के हाथों को सहला कर मैंने उन्हे यकीन दिलाया और अपने कमरे में दाखिल होते ही करण को फोन पर गालियां सुनाने लगा.

" हमें अकेला छोड़ने के लिए यह सारी प्लानिंग उस गधे ने ही बनाई है " बाथरूम के अंदर से मैंने रोजे़न‌ को कहा

" फिर तो तुम्हें थैंक्स बोलना चाहिये उन्हें "

" दिमाग खरा... वेट, वेट! तो क्या तुम!!.. " प्रथम मिलन की एक्साइटमेंट में बाथरूम से निकल आया मगर अगले ही सैकिंड मैडम ने जबरदस्ती मुझे वापस धकेल दिया.

" व्ह्ट द हैक.... डोर ओपन है... छोडो़ मुझे माॅम आ रहीं हैं ईडियट एंड क्रच नहीं है मेरे पास... ये लो टाॅवल.... हां जी माॅम "

माॅम की आवाज सुनकर मैंने उसे जाने दिया और अपनी सांसों को थाम शाॅवर के नीचे खडा़ होकर हसीन खयालों से मन को तरो-ताजा़ करने लगा. साटिन शमीज़ में उभरी दो पर्वत चोटियों को आंशिक रूप से ढंकते लम्बे सिल्की बाल, सुराहीदार गरदन, स्ट्राबरी जैसे रसीले होंठ, पतली तीखी नाक, जुगनू‌ की तरह टिमटिमाने वाली आंखे और तराशी गई आईब्रोज के ठीक बीचोबीच धड़कनें रोक देने वाली बिंदी. शावर की ठंडी फुहारों में भीगते हुए भी ऐसा लग रहा था जैसे कान सुर्ख होने लगे हैं मेरे.

महज तसव्वुर करने से दिलकश मदहोशी बढ़ने लगी थी और मुकम्मल दीदार के लिए इंतजार था बाकी. दर्दनाक होता था इस खुमार से बाहर निकलना इसलिए अरमानों को जब्ह करने की सलाहियत अपने अंदर शुमार कर ली थी. बाहर निकलने पर मैं अंकल के पास गया, बैकयार्ड में पूरन के साथ चटियाते वो भुना हुआ भुट्टा खा रहे थे.

" गधा ही रहेगा तू. कुर्ता (शार्ट-लेंथ) फुल स्लीव पहना है लेकिन पैंट हाफ. अकल का लिहाज नहीं है मगर गर्मी में अपनी चमडी़ का खयाल तो कर "

तारीफों के पुल बांध कर, अंकल बहाने से थूकने लगे तो मैं समझ गया उनका असली मतलब क्या था, " अब तो कर दो ना माफ, और समझाओ ना डैड को. इतना बडा घर है, काटने को दौडे़गा आप लोगों के जाने के बाद‌ "

" धार्मिक मामलों दखल देने का पाप नहीं करूंगा. सालों बाद हसरत पूरी हुई है और तू चाहता है इतनी उम्र में हम यहां की चौकीदारी करें? कम से कम अब तो हमें अपनी जिंदगी जी लेने दे दुष्ट? " अंकल के सख्त तल्ख लहजे ने बयां कर दिया कि बदलाव की अब गुंजाइश नहीं.

हार कर अब मैं उन्हें उनके दिये वो ट्रैवल टिप्स याद दिला रहा था जो एक समय पर मेरे बहुत काम आए. इसी बीच माॅम ने चाॅप करने के लिए कठहल सामने रख दिया. अब पूरन की नजर मुझ पर थी और मैं देख रहा था उसे, मगर फिर मुझे याद आया डैड के टूल्स के साथ रबर ग्लव्ज भी खरीदे थे मैडम ने, और थोडी देर बाद वही पूरन उसी कठहल को खुशी-खुशी छीलकर टुकडो़ं में बांट रहा था.

दोपहर खाना खाने के बाद पैकिंग में लग गये, सप्ताहभर का‌ टूर-प्रोगाम होने से सामान ज्यादा हो गया था सबका. सैर-सपाटे के नाम पर थोडी़ देर पहले पूरन सर जो छाती फुला कर फुदक रहे थे, बैग्स देखकर उनकी हालत अभी से पतली होने लगी. करण की माॅम के स्टेशन पहुंचने पर एक टैक्सी और अपनी गाडी़ से हमने उनको तसल्ली से ट्रेन में बिठा कर करण को इंफोर्म किया कि अब आगे से वापसी तक सारी जिम्मेदारी उसकी है.

" भुट्टे खाना पसंद करोगी? " स्टेडियम के बाहर ताजे भुट्टे कोयले पर भूनते देख साइड में गाडी़ रोककर मैंने रोज़दा से पूछा.

और मैडम भी शायद तैयार बैठी थी मगर भुट्टों के बजाय कुछ और खाने के, " अगर खिलाना ही है तो KFC चलो ना बहुत दिन हो गये हैं नाॅनवेज़ खाए " शिकायती लहजे में अपनी कलाइयां फोल्ड कर, साफ्टली मासूम बच्चे की तरह जब उसने रिक्वेस्ट किया तो मेरे चहरे मुस्कान दौड़ गई.

" पागल... वैसे, कुछ वेज भी मिलेगा वहां?? "

" ........"

और मैडम के हां में सर हिलाते ही मैं गाडी़ से बाहर उतर गया, " ग्रेट, जब तक मैं भुट्टा लेकर आऊं तुम एड्रेस और डिनर का मीन्यू डिसाइड करो "

भुट्टे खाने के साथ ड्राइव नहीं कर सकता था और दूसरे ऑप्शन के लिए मैडम तैयार ही नहीं हो रही थी. महसूस हो रहा था जैसे एडवेंचर्स के नाम/खौफ से ही मानो तौबा कर ली है उसने और ये मेरे लिए बडे़ सेटबैक से कम नहीं था. खामोशी के माहौल में भुट्टा शेयर करते मेरी उंगलियां अब उसकी उंगलियों से बात कर रहीं थीं, और जब नजरें मिलती तो रोजे़न और कमजोर दिखने लग जाती.

मजा नहीं आ रहा था अब भुट्टे में इसलिए ड्राइव मोड पर डाल कर मैं नैवीगेशन एप फौलो करने लगा. KFC पहुंचे तो कुछ लोग थे जो हमें पहचानते थे, मगर इसकी आदत न होने से रोज़दा बिना ऑर्डर प्लेस किये वहां से निकलने की जिद करने लगी. लोग हमें सिर्फ विश कर रहे थे मगर मैड़म को पता नहीं क्यूं इससे भी प्राब्लम थी. घर आकर मै ऑनलाइन आर्डर प्लेस करने लगा लेकिन अब उसका मन था खुद के हाथ के राज़मा-चावल खाने का.

आर्ग्यूमेंट नहीं चाहता था इसलिए टीवी पर खबरें देखने लग गया. लेकिन अब टेबल पर बार-बार बज रहे रोज़दा के फोन से मेरी फ्रस्ट्रेशन दुबारा बढ़ती जा रही थी. अच्छे से अंदाजा था उसे यह वक्त उसके डैड के बात करने का होता है, फिर भी अपनी धुन में मस्त वो किचिन में आटा लगा रही थी.

अंकल को झूठा अपडेट देकर मैंने पहले पानी पिया और गहरी सांस लेकर उस आइलैंड टेबल के दूसरी तरफ बैठ गया जहां पसीनों में तर मैडम आटा लगा रही थी, जिसमें उसके येलो ब्लाउज के गले से नीचे का हिस्सा पसीनों में भीगने से ट्रांसपेरंट होकर, अंदर की ब्रा के दर्शन तो करा रहा था लेकिन ब्रेस्ट्स के नहीं. हैरान था मैं, बीच-बीच में काम करने की वजह से मूवमेंट करने से उसकी बाॅडी का पूरा हिस्सा नाच रहा था सिवाय ब्रा में कैद उन टेनिस जैसी बाॉल्स के.

" दो एप्रॅन चाहिये आटा ढंकने के लिए, किचिन टावल्स, स्ट्रेनर और एयरटाइट कंटेनर्स भी मिसिंग है. बुंदेला, पूरन को ब्लेम नहीं कर रही लेकिन अब से तुम्हारा स्टाफ मुझे किचिन के अंदर नहीं चाहिये " उंगलियां नचाते हुए रोज़ेन ने हिदायत दी और फिर पसीने‌ सुखाते हुए अपने डैड से बात करने लगी.

मुस्किल से दो मिनिट लगी होंगी उसे बात खत्म करने में और उसके बाद हम साथ बैठकर खाना खा रहे थे. बडी़ अजीब थी लेकिन क्यूट भी. आज के दिन का बेस्ट‌ पार्ट था उसका बिना स्टिक के आटा लगा कर प्राॅपर रोटियां बनाना. तैयार बैठा था मैं आज उसके हाथ का बना जला फुंका खाना बडे़ चाव से खाने के लिए. लेकिन कमबख्त थी वो भी बहुत जालिम, नाराज़गी में होकर भी मैडम ने निराश नहीं किया मुझे.

बरतन मैंने साफ किये क्यूंकि अब माॅम-डैड बात कर रहे थे उससे. अपना काम खत्म कर मैं बैकयार्ड में टहल रहा था और थोडीं देर बाद मुझे दरवाजा खुलने और बंद होने के साथ रोज़दा की आवाज़ सुनाई दी, " गणेश भाई आए हैं, काॅफी बना रही हूं चाहिये आपको?? "

" भाभी हैं साथ?? " मेरी जुबान और दिमाग को व्हिस्की की तलब थी इसलिए मैंने पूछा‌.

" बन्नू भी है.... एंड लाइट्स ऑफ नहीं करना बाहर वाली फिर कीडे़ आते हैं अंदर " बताकर वो चली गई.

गिफ्ट्स लाए थे हमारे लिए. मिठाइयां, कई तरह की दाल से बनी बड़ियां, पापड़, खिचिए, राबुडी़, घी, अचार, दोनों के लिए ब्रांडिड पारंपरिक-आधुनिक कपडे़ और ढेर सारा लगाव. साला, कोई बहन ना होने से सच में ही साला बन बैठा था मेरा. बुरी तरह फंसा दिया था कमीने ने. हिम्मत हो नहीं रही थी मना करने की और दिल भी दुख रहा था उसकी नीयत और तरक्की देखकर.

दरअसल रिश्ते की नींव रखी गई जब होली में बिजी होने पर एहतियात के लिए रोज़दा को सर्किट-हाउस से गणेश के घर रहने भेजा. उस दौरान मैडम का गणेश के बाबूजी से परिचय हुआ था और रोज़दा के मामा के गांव का होने के नाते वो और गणेश उससे वही रिश्ता रखने लगे. बडा़ दिल बाबूजी और गणेश का निकला क्यूंकि मैडम वाकये सहित इस रिश्ते को अपने जेहन से निकाल चुकी थी.

शर्मिंदा होने से रोज़दा स्पीचलैस थी तब उसके हिस्से का का काम मुझे करना पडा़, " माफ करना आप लोग. ईश्वर की कृपा से हम पेट से भूखे नहीं हैं भाभी, बस सर उठाने जितनी इज्जत और चुटकी भर प्यार चाहिये. बाबूजी का आशीर्वाद सर आंखों पर लेकिन आगे से कभी इतना मत करना कि आज की तरह हमारा दिल दु:खे "

" थैंक यू भाई-साहब, ये तो आने से डर रहे थे. पिता जी को सुबह गांव जाना पड गया नहीं तो वो खुद ही आपसे बात कर लेते " भाभी ने बताया इंक्वारी का पता लगने से बाबूजी परेशान थे मगर रात को सिवाच सर के आगे उन्हें इसे दिखाना नहीं था.

" इट्स फाइन भाभी. रिश्तों की जरुरत है मुझे, इसलिए थैंक यू तो मुझे बोलना चाहिये " गहरी सांस लेकर रोज़दा ने वापसी की और सोफे पर सो चुके बन्नू को हमारे कमरे में सुलाने का बोलकर भाभी को बैकयार्ड में ले गई.

मैडम के हुकम की तामील कर मैं दो ग्लास, व्हिस्की और आइसक्यूब लेकर वापस गणेश के पास बैठ गया. बहुत देर खामोश बैठने के बाद कोई दो पैक गटकने पर गणेश की जुबान हिली, " ओएसडी नेपाल भाग गया है . लास्ट लौकेशन बिहार में रक्सौल थी साले की "

" छोड़ ना प्लीज. तेरी बहन‌ का घर है ये, अपना सरकारी दफ्तर नहीं जो तू नौकरी करने लगा " ग्लास रिफिल कर मैंने मसाला पीनट बाउल जबरदस्ती उसके हाथ में थमाया.

" मैं ईमानदार हूं सर वफादार नहीं. अपने जैसा मिलता है तो भरोसा बढ़ जाता है खाकी पर बाकी आपको तो पता है किनके इशारों पर काम करती है वर्दी " हताश होते हुए गणेश ने तीसरा शाॅट भी फुर्ती से उतार लिया जैसे उसके अंदर की आग सिर्फ बर्फ और व्हिस्की से ही बुझने वाली थी.

प्यार से हड़का का मैंने उसे समझाया बीवी का भाई होने के नाते अब से वो मेरा सर है. सैकिंडली, नौकरी के साथ साथ हमारी सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियां भी तो थीं. कौन करेगा उनकी देखभाल अगर हर-वक्त हम यूं हीं रस्सकसी में उलझे रहें. मैंने उसे ऑफर किया फैमिली के साथ अयोध्या ट्रिप. बन्नू और भाभी को थोडा़ बदलाव मिलता और सर (गणेश) की ईमानदारी वाली खुजली के इलाज लिए जनकपुर क्यूंकि नेपाल का काठमांडू वहां से नजदीक ही पड़ता.
 
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उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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खीज और गुस्से से जबड़े कसने की वजह से धीमी होती सिवाच सर की आखिरी आधी बात का मतलब वहां बैठे लोगों में से सिर्फ मेरी ही समझ में आया. अपनी सहमति देने और उन्हें शांत करने के लिए मैंने काफी देर उन्हे गले लगाए रखा. भूख तो वैसे भी किसी को नहीं थी और यह दावत वो वाहिद मौका थी एक-दूसरे पर भरोसा मजबूत करने की. हालांकि इसका मुझे कोई अंदाजा नहीं था पर अच्छा लगने लगा था यह जानकर कि भ्रष्ट तंत्र के अंदर मैं अकेला ईमानदार नहीं था.



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" क्यूं हो रहा है यह तुम्हारे साथ समर?? क्या तुम्हें अभी भी लगता है कि मैं तुम्हारा लकी-चार्म हूॅं??? " घर लौटते हुए खामोशी के बीच जब रोज़दा ने लरजते-रुंधते लफ्जों में यह बोला तो मैं अंदर तक बुरी तरह हिल गया.

पहली बार अहसास हुआ कि यह नौकरी मेरी जिंदगी पर बुरी तरह हावी होने लगी है और इससे पहले कि ये हमारे रिश्ते को और तबाह करे, मुझे इसका कोई बेहतर इलाज या तोड़ ढूंढना है. समझ नहीं आ रहा था किस तरह और कहां से इसकी शुरुआत हो तो दूसरी तरफ आधी रात से ज्यादा वक्त गुजरने से, किसी को डिस्टर्ब कर ऑपीनियन लेने का वक्त भी नहीं था. बुझे मन से गाडी़ रोक कर मैंने रोज़दा को अपने गले लगाया और उसे यकीं दिलाने लगा कि अब तक की मेरी जिंदगी में सबसे हसीन पल उसकी आमद से नसीब हुए हैं.

बेशक मेरे पास फिलहाल उसके सवालों के सारे जवाब नहीं थे लेकिन मेरे रिजाइन करने से हमारी सारी मुस्किलें उसे हल होती दिखती हैं तो अब मैं इसके लिए भी पूर्णतः तैयार था. थैंकफुली इसका असर रोजे़न पर हुआ लेकिन फिर उसे ताउम्र मेरा बुझदिल की तरह दिखना भी गवारा नहीं था. बहुत पेचीदा था उसके लिए भी डिसाइड करना मगर अब वो थोडी़ तो रिलैक्सड थी कि मैं इस मसले को उसके, मतलब परिवार के नजरिये से भी देखने लगा हूॅं.

" अब तुम घर पर ही हो तो मैं क्रच लेना छोड़ रही हूॅं, बुरा लगता है मुझे तुम्हारे साथ कमजोर दिखना. वैसे भी एक न एक दिन तो यह छूटेगा ही तो इसकी शुरुआत आज से ही क्यूं न हो? " गाडी़ स्टार्ट करने का बोल रोज़दा ने जब इतना कहा तो उसके साथ मेरा भी आत्मविश्वास दोगुना हो गया.

" थैंक यू.... फिर तो मुझे भी बार-बार तुमसे चिपकने का मौका मिला करेगा. सच में यार, तरस गया हूॅं तुम्हारे इस टेंडर, साफ्ट और हसीन बदन के दीदार को, एंड अब तो अपनी शादी.... साॅरी, तुमने तो मुझे कभी रोका ही नहीं. यकीं नहीं करोगी, पसंद तो तुम्हें डे वन से करता था मगर इस मामले में नसीब कमजोर रहा है इसलिए कोशिश ही नहीं की कभी आगे बढ़ने की "

" राय तो मेरी भी तुम्हारे लिए गलत नहीं थी लेकिन लोगों के मुंह और गूगल पर तुम्हारी न्यूज... फिर एक दिन मुझे तनवी (डीआईजी की बेटी) मिली. उसने बताया कि तुम वैसे नहीं जैसे लोग समझते हैं और तब यह भी पता लगा कि अंकल तुम्हें क्यूं इतना नापसंद... जो अब नहीं करते. ईवन आज जब डैड तुम्हारा सुनकर परेशान हो रहे थे तब उन्होंने ही समझाया था उन्हें "

डीआईजी में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं थी लेकिन रोज़दा के मुस्कुराते चेहरे पे पुरानी रौनक और आवाज में खनक लौटते देख अच्छा जरूर महसूस कर रहा था, " मुझे छत पर सोना है आज, क्या तुम आना पसंद करोगी? "

" श्योर बट प्लीज कोई एडवेंचर नहीं. एक दो दिन में यह डर निकल जाएगा, उसके बाद कभी नहीं रोकूंगी तुम्हें "

" ओके, लेकिन इंक्वारी की फिक्र मत करो. सबसेंशियल प्रूव तो कुछ है नहीं. डीआईजी झा सही जाता है तो मैटर जल्दी निबट जाएगा बाकी पूछताछ खत्म होने तक मुझे वक्त तो मिलेगा तुम्हारी क्रच स्टिक छुडा़ने का " घर आने पर मैंने सिक्योरिटी को गेट खोलने के लिए काॅल किया और कपडे़ चेंज कर, ऊपर वाले कमरे से मैट्रेसिज उठाकर खुली टेरेस पर बिछाने लग गया. मैडम को डर लग रहा था कि रात को बंदरों काट ना लें, मगर प्यार में लोग सूली चढ़ जाते हैं और उसे तो सिर्फ खुले आसमान में बस चांद-सितारों के बीच सोना ही तो था.

खैर लेटने के बाद मैं उसे अपने फेवरेट कांस्टेलेशन्स और नेबुलाज़ के बारे में दिखा और बता रहा था लेकिन मैडम का मन अभी भी कहीं और था, " पुलिस सर्विस के बाद तुम्हारी सैंकिड प्रायर्टी क्या थी? आई मीन, नौकरी जाती है तो फिर क्या करोगे? "

सवाल मुझे पसंद नहीं था लेकिन नवेली बीवी की चिंताऐं दूर करना मेरी जिम्मेदारी थी, इसलिए अपनी तरफ से मैं भी ईमारदारी से जवाब देने लगा, " मिडिल क्लास लोगों के ख्वाब तो बहुत होते हैं पर ऑप्शंस बहुत कम. अपना हिसाब भी वैसा ही था, जाना रिसर्च में था और यूएस से भाग आया, और तब डैड का कर्ज चुकाने के लिए मुझे चाहिये था पैसा. कार्पोरेट सैक्टर में पैसा तो था लेकिन उतना नहीं जिससे कर्ज और जेब दोनों भरे. इसलिए मेरी पहली पसंद बनी पुलिस सर्विसिज, इसके अलावा दूसरा आप्शन नहीं था तब मेरे पास..... "

आंखों में आंखे डाले मैडम जवाब खत्म होने का इंतजार कर रही थी, " और मेरे दूसरे सवाल का जवाब?? "

" कमीनी हो... वैल, सच बोलू तो लाॅ और रिसर्च के बीच कन्फ्यूज हूं. पुराने सीनियर मोस्ट साइंटिस्ट कम प्रोफेसर से‌ प्रपोजल भी था IAO के GROWTH प्रोजेक्ट के लिए लेकिन अब मन नहीं करता माॅम-डैड, अंकल-आंटी और तुमसे दूर जाने का. घर तुमने दिला दिया, सैलरी से बाकी जरूरतें पूरी हो जाती हैं, और इससे ज्यादा कभी ईश्वर से मैंने उम्मीद नहीं की.... "

" आई लव यू.... पूरा परिवार है तुम्हारे साथ एंड सबको बस तुम्हारी फिक्र है, तुम्हारी नौकरी की नहीं. सोच रही हूं डैड के फार्मर फ्रैंड्स के स्टार्टप में अपन भी कुछ लगा दें. उन लोगों की हैल्प हो जाएगी एंड इनकम बढ़ जाएगी अपनी ", साइड से चिपकते हुए मैडम ने अपने दिल की बात बोल ही दी.

आईडिया बुरा नहीं था. वैसे भी, मैडम की दोनों गाडियों के इंश्योरेंशिज प्रीमियम मेरी क्वाटर्ली सैलरी से भी ज्यादा था. इसलिए, अपकमिंग खर्चों के लिए अपने को एक साइड बिजनिस की जरूरत तो पड़ने वाली थी. जवाब के इंतजार और सहलाने से मिलने वाले आनंद से मैडम गहरी नींद में चली गई. अलार्म बजने में सिर्फ तीन घंटे बाकी थे, इसलिए मैंने भी अपनी आंख बंद कर सोने की कोशिश करना बेहतर समझा.


............


गर्मी महसूस होने पर आंखे खुली तो सुबह के साढे़ सात बज रहे थे और सूरज कंधों चढ़ चुका था. गायब अलार्म क्लाॅक, दोनों फोन्स, स्मार्टवाॅच और ग्लो-लाइट मैडम के केरिंग नेचर का इजहार कर रहे थे. बिस्तर समेटकर मैंने कम्पाउंड में देखा तो डैड के हाथों में भुट्टे(मक्के) का बैग और अंकल शायद सब्जियां लेकर गेट में दाखिल हो रहे थे. ब्रेकफास्ट टेबल पर पता लगा शाम को उनकी ट्रेन है उज्जैन के लिए और करण की माॅम भी साथ जा रही हैं.

" तो कितने दिनों का टूर है?? होटेल बुकिंग कंफर्म हुई है या नहीं? " अपनी क्यूरोसिटी से हटकर उनकी देखभाल इन्श्योर करने के लिए मैंने पूछा.

" करण के फ्रैंड का अपार्टमेंट है वहां, पूरन (हाउस-हैल्प) साथ जा रहा है और टैक्सी का अपन देख लेंगे "

" क्यूं नहीं.... कुछ और ख्वाहिश भी पाली है या दादू का पैसा बोल रहा है?? " बेफिक्री से डैड ने रिप्लाई किया तो मैंने भी अपने कंधे उचका दिये.

लेकिन यहीं पर मुझसे एक गलती हो गई. अंकल के एक धमाकेदार थप्पड़ से मेरे चेहरे पर कांग्रेस का चुनाव चिन्ह बना और हाथों से बेबी-कार्न सलाद बिखर कर फ्लोर की शान पर सवालिया निशान उठा रहा था. अंकल को गुस्से में तो बहुत बार देखा था, लेकिन मुझ पर तो कभी गलती से भी नहीं. मौके की नजाकत भांप कर मैंने सबसे माफी मांगी और गिरा हुआ खाना उठाने लग गया.‌

वापस टेबल पर लौटा तब अंकल ने बताया जितनी होम सिकनेस मुझे यूएस जाने पर हुई थी, उससे कहीं ज्यादा और दशकों तक डैड ने अपने दोस्त, मुहल्ले, घर-जमीन और बाप खोने पर भुगता है. गंडुन के वक्त उनकी आंखों में खुशी की बजाय इस दुख के आंसू थे कि उस मौके पर डैड के सारे अजी़ज वो खुशी बांटने के लिए उनके करीब नहीं थे. अभी भी उस दौर को बुरी तरह मिस करते थे वो लेकिन उनकी बदनसीबी इतनी है उसकी भरपाई करना किसी के बस का नहीं. इसीलिए बेचा था उन्होंने दादू की प्रापर्टी को लेकिन घर इस उम्मीद से बचाए रखा कि एक लम्हे के लिए कभी मुझे उसकी जगह की याद आए, तब महसूस हो कि घर होने के वाबजूद भी उम्र के इस पडा़व तक कितने बेघर रहे हैं वो.

" मॉम-डैड और दादू ने जो भुगता मुझे उसका थोडा़ भी अंदाजा नहीं है अंकल, बस यही महसूस किया कि उस जगह ने सिर्फ दर्द ही ज्यादा दिया है उन्हें, इसलिए कभी कनैक्ट इस्टेब्लिश नहीं कर पाया उस जगह से. अच्छा हुआ आपने बता दिया, नहीं तो मुझे हमेशा यही महसूस होता कि मेरे अलावा इनकी और यादें हैं ही नहीं. ट्रस्ट मी अंकल, इतना बुरा भी नहीं हूं मैं, बस नाराज़ था कि इतने साल बाद साथ रहने का मौका मिलने पर भी वो ना जाने क्यूं घूमने जा रहे हैं? " यह बताने की जरूरत मुझे अंकल को थी क्यूंकि अपने बेटे को माॉम-डैड इतना तो समझते ही थे.

समझ देने वाले अगर अंकल थे तो संस्कार मुझे माॅम-डैड ने ही सिखाए. खैर अभी भी वो पहले की तरह नार्मल ही थे, पता नहीं कहां से सीखा था उन्होंने मेरे सामने अपना दुख-दर्द छुपाना. कुछ देर बाद बतौर पनिशमेंट मैं गार्डन में नये प्लांट्स के लिए गड्डे खोद रहा था और बाकी लोग डिसकस कर रहे थे वहां क्या रखना है और क्या हटाना. आंटी और माॅम को पुदीना, धनिया, सीजनल सब्जियों के लिए किचिन गार्डन चाहिये था, रोज़दा को कुछ हर्बल प्लांट्स. ये फरमाइश पूरा करने के लिए डैड को मेरे जैसा पार्ट-टाइम नौकर चाहिये था और अंकल ले रहे थे सबके मजे.

एक स्टोर से सीड्स, सीडलिंग ट्रे, कुछ टूल्स, कोकोपीट और आर्गेनिक मेन्योर मंगवा कर डैड ने थोडी़ देर कसरत और कराई, फिर पसीना सुखाने लगे, " अपने अंकल की बातों को दिमाग पर मत लेना, तेरी खुशी से बढ़कर हमारे लिए कुछ नहीं. बुरे दौर में कमायी सच्ची व पक्की दोस्ती है उससे, बाकी तू बेहतर जानता है हम क्या थे और क्या हैं उसके सामने. इसलिए मुझे हर्ट किया वो माफ है मगर उसे भूल से भी कभी ठेस मत पहुंचाना, नहीं तो ईश्वर भी माफ नहीं करेगा तुझे "

" कोशिश तो करता हूं डैड, बाकी दुआ करता हूं ईश्वर से कि वो दिन कभी न दिखाए " इस टाॅपिक पर बात तो दूर सोचने मात्र से रूह कांप जाती थी मेरी. डैड के हाथों को सहला कर मैंने उन्हे यकीन दिलाया और अपने कमरे में दाखिल होते ही करण को फोन पर गालियां सुनाने लगा.

" हमें अकेला छोड़ने के लिए यह सारी प्लानिंग उस गधे ने ही बनाई है " बाथरूम के अंदर से मैंने रोजे़न‌ को कहा

" फिर तो तुम्हें थैंक्स बोलना चाहिये उन्हें "

" दिमाग खरा... वेट, वेट! तो क्या तुम!!.. " प्रथम मिलन की एक्साइटमेंट में बाथरूम से निकल आया मगर अगले ही सैकिंड मैडम ने जबरदस्ती मुझे वापस धकेल दिया.

" व्ह्ट द हैक.... डोर ओपन है... छोडो़ मुझे माॅम आ रहीं हैं ईडियट एंड क्रच नहीं है मेरे पास... ये लो टाॅवल.... हां जी माॅम "

माॅम की आवाज सुनकर मैंने उसे जाने दिया और अपनी सांसों को थाम शाॅवर के नीचे खडा़ होकर हसीन खयालों से मन को तरो-ताजा़ करने लगा. साटिन शमीज़ में उभरी दो पर्वत चोटियों को आंशिक रूप से ढंकते लम्बे सिल्की बाल, सुराहीदार गरदन, स्ट्राबरी जैसे रसीले होंठ, पतली तीखी नाक, जुगनू‌ की तरह टिमटिमाने वाली आंखे और तराशी गई आईब्रोज के ठीक बीचोबीच धड़कनें रोक देने वाली बिंदी. शावर की ठंडी फुहारों में भीगते हुए भी ऐसा लग रहा था जैसे कान सुर्ख होने लगे हैं मेरे.

महज तसव्वुर करने से दिलकश मदहोशी बढ़ने लगी थी और मुकम्मल दीदार के लिए इंतजार था बाकी. दर्दनाक होता था इस खुमार से बाहर निकलना इसलिए अरमानों को जब्ह करने की सलाहियत अपने अंदर शुमार कर ली थी. बाहर निकलने पर मैं अंकल के पास गया, बैकयार्ड में पूरन के साथ चटियाते वो भुना हुआ भुट्टा खा रहे थे.

" गधा ही रहेगा तू. कुर्ता (शार्ट-लेंथ) फुल स्लीव पहना है लेकिन पैंट हाफ. अकल का लिहाज नहीं है मगर गर्मी में अपनी चमडी़ का खयाल तो कर "

तारीफों के पुल बांध कर, अंकल बहाने से थूकने लगे तो मैं समझ गया उनका असली मतलब क्या था, " अब तो कर दो ना माफ, और समझाओ ना डैड को. इतना बडा घर है, काटने को दौडे़गा आप लोगों के जाने के बाद‌ "

" धार्मिक मामलों दखल देने का पाप नहीं करूंगा. सालों बाद हसरत पूरी हुई है और तू चाहता है इतनी उम्र में हम यहां की चौकीदारी करें? कम से कम अब तो हमें अपनी जिंदगी जी लेने दे दुष्ट? " अंकल के सख्त तल्ख लहजे ने बयां कर दिया कि बदलाव की अब गुंजाइश नहीं.

हार कर अब मैं उन्हें उनके दिये वो ट्रैवल टिप्स याद दिला रहा था जो एक समय पर मेरे बहुत काम आए. इसी बीच माॅम ने चाॅप करने के लिए कठहल सामने रख दिया. अब पूरन की नजर मुझ पर थी और मैं देख रहा था उसे, मगर फिर मुझे याद आया डैड के टूल्स के साथ रबर ग्लव्ज भी खरीदे थे मैडम ने, और थोडी देर बाद वही पूरन उसी कठहल को खुशी-खुशी छीलकर टुकडो़ं में बांट रहा था.

दोपहर खाना खाने के बाद पैकिंग में लग गये, सप्ताहभर का‌ टूर-प्रोगाम होने से सामान ज्यादा हो गया था सबका. सैर-सपाटे के नाम पर थोडी़ देर पहले पूरन सर जो छाती फुला कर फुदक रहे थे, बैग्स देखकर उनकी हालत अभी से पतली होने लगी. करण की माॅम के स्टेशन पहुंचने पर एक टैक्सी और अपनी गाडी़ से हमने उनको तसल्ली से ट्रेन में बिठा कर करण को इंफोर्म किया कि अब आगे से वापसी तक सारी जिम्मेदारी उसकी है.

" भुट्टे खाना पसंद करोगी? " स्टेडियम के बाहर ताजे भुट्टे कोयले पर भूनते देख साइड में गाडी़ रोककर मैंने रोज़दा से पूछा.

और मैडम भी शायद तैयार बैठी थी मगर भुट्टों के बजाय कुछ और खाने के, " अगर खिलाना ही है तो KFC चलो ना बहुत दिन हो गये हैं नाॅनवेज़ खाए " शिकायती लहजे में अपनी कलाइयां फोल्ड कर, साफ्टली मासूम बच्चे की तरह जब उसने रिक्वेस्ट किया तो मेरे चहरे मुस्कान दौड़ गई.

" पागल... वैसे, कुछ वेज भी मिलेगा वहां?? "

" ........"

और मैडम के हां में सर हिलाते ही मैं गाडी़ से बाहर उतर गया, " ग्रेट, जब तक मैं भुट्टा लेकर आऊं तुम एड्रेस और डिनर का मीन्यू डिसाइड करो "

भुट्टे खाने के साथ ड्राइव नहीं कर सकता था और दूसरे ऑप्शन के लिए मैडम तैयार ही नहीं हो रही थी. महसूस हो रहा था जैसे एडवेंचर्स के नाम/खौफ से ही मानो तौबा कर ली है उसने और ये मेरे लिए बडे़ सेटबैक से कम नहीं था. खामोशी के माहौल में भुट्टा शेयर करते मेरी उंगलियां अब उसकी उंगलियों से बात कर रहीं थीं, और जब नजरें मिलती तो रोजे़न और कमजोर दिखने लग जाती.

मजा नहीं आ रहा था अब भुट्टे में इसलिए ड्राइव मोड पर डाल कर मैं नैवीगेशन एप फौलो करने लगा. KFC पहुंचे तो कुछ लोग थे जो हमें पहचानते थे, मगर इसकी आदत न होने से रोज़दा बिना ऑर्डर प्लेस किये वहां से निकलने की जिद करने लगी. लोग हमें सिर्फ विश कर रहे थे मगर मैड़म को पता नहीं क्यूं इससे भी प्राब्लम थी. घर आकर मै ऑनलाइन आर्डर प्लेस करने लगा लेकिन अब उसका मन था खुद के हाथ के राज़मा-चावल खाने का.

आर्ग्यूमेंट नहीं चाहता था इसलिए टीवी पर खबरें देखने लग गया. लेकिन अब टेबल पर बार-बार बज रहे रोज़दा के फोन से मेरी फ्रस्ट्रेशन दुबारा बढ़ती जा रही थी. अच्छे से अंदाजा था उसे यह वक्त उसके डैड के बात करने का होता है, फिर भी अपनी धुन में मस्त वो किचिन में आटा लगा रही थी.

अंकल को झूठा अपडेट देकर मैंने पहले पानी पिया और गहरी सांस लेकर उस आइलैंड टेबल के दूसरी तरफ बैठ गया जहां पसीनों में तर मैडम आटा लगा रही थी, जिसमें उसके येलो ब्लाउज के गले से नीचे का हिस्सा पसीनों में भीगने से ट्रांसपेरंट होकर, अंदर की ब्रा के दर्शन तो करा रहा था लेकिन ब्रेस्ट्स के नहीं. हैरान था मैं, बीच-बीच में काम करने की वजह से मूवमेंट करने से उसकी बाॅडी का पूरा हिस्सा नाच रहा था सिवाय ब्रा में कैद उन टेनिस जैसी बाॉल्स के.

" दो एप्रॅन चाहिये आटा ढंकने के लिए, किचिन टावल्स, स्ट्रेनर और एयरटाइट कंटेनर्स भी मिसिंग है. बुंदेला, पूरन को ब्लेम नहीं कर रही लेकिन अब से तुम्हारा स्टाफ मुझे किचिन के अंदर नहीं चाहिये " उंगलियां नचाते हुए रोज़ेन ने हिदायत दी और फिर पसीने‌ सुखाते हुए अपने डैड से बात करने लगी.

मुस्किल से दो मिनिट लगी होंगी उसे बात खत्म करने में और उसके बाद हम साथ बैठकर खाना खा रहे थे. बडी़ अजीब थी लेकिन क्यूट भी. आज के दिन का बेस्ट‌ पार्ट था उसका बिना स्टिक के आटा लगा कर प्राॅपर रोटियां बनाना. तैयार बैठा था मैं आज उसके हाथ का बना जला फुंका खाना बडे़ चाव से खाने के लिए. लेकिन कमबख्त थी वो भी बहुत जालिम, नाराज़गी में होकर भी मैडम ने निराश नहीं किया मुझे.

बरतन मैंने साफ किये क्यूंकि अब माॅम-डैड बात कर रहे थे उससे. अपना काम खत्म कर मैं बैकयार्ड में टहल रहा था और थोडीं देर बाद मुझे दरवाजा खुलने और बंद होने के साथ रोज़दा की आवाज़ सुनाई दी, " गणेश भाई आए हैं, काॅफी बना रही हूं चाहिये आपको?? "

" भाभी हैं साथ?? " मेरी जुबान और दिमाग को व्हिस्की की तलब थी इसलिए मैंने पूछा‌.

" बन्नू भी है.... एंड लाइट्स ऑफ नहीं करना बाहर वाली फिर कीडे़ आते हैं अंदर " बताकर वो चली गई.

गिफ्ट्स लाए थे हमारे लिए. मिठाइयां, कई तरह की दाल से बनी बड़ियां, पापड़, खिचिए, राबुडी़, घी, अचार, दोनों के लिए ब्रांडिड पारंपरिक-आधुनिक कपडे़ और ढेर सारा लगाव. साला, कोई बहन ना होने से सच में ही साला बन बैठा था मेरा. बुरी तरह फंसा दिया था कमीने ने. हिम्मत हो नहीं रही थी मना करने की और दिल भी दुख रहा था उसकी नीयत और तरक्की देखकर.

दरअसल रिश्ते की नींव रखी गई जब होली में बिजी होने पर एहतियात के लिए रोज़दा को सर्किट-हाउस से गणेश के घर रहने भेजा. उस दौरान मैडम का गणेश के बाबूजी से परिचय हुआ था और रोज़दा के मामा के गांव का होने के नाते वो और गणेश उससे वही रिश्ता रखने लगे. बडा़ दिल बाबूजी और गणेश का निकला क्यूंकि मैडम वाकये सहित इस रिश्ते को अपने जेहन से निकाल चुकी थी.

शर्मिंदा होने से रोज़दा स्पीचलैस थी तब उसके हिस्से का का काम मुझे करना पडा़, " माफ करना आप लोग. ईश्वर की कृपा से हम पेट से भूखे नहीं हैं भाभी, बस सर उठाने जितनी इज्जत और चुटकी भर प्यार चाहिये. बाबूजी का आशीर्वाद सर आंखों पर लेकिन आगे से कभी इतना मत करना कि आज की तरह हमारा दिल दु:खे "

" थैंक यू भाई-साहब, ये तो आने से डर रहे थे. पिता जी को सुबह गांव जाना पड गया नहीं तो वो खुद ही आपसे बात कर लेते " भाभी ने बताया इंक्वारी का पता लगने से बाबूजी परेशान थे मगर रात को सिवाच सर के आगे उन्हें इसे दिखाना नहीं था.

" इट्स फाइन भाभी. रिश्तों की जरुरत है मुझे, इसलिए थैंक यू तो मुझे बोलना चाहिये " गहरी सांस लेकर रोज़दा ने वापसी की और सोफे पर सो चुके बन्नू को हमारे कमरे में सुलाने का बोलकर भाभी को बैकयार्ड में ले गई.

मैडम के हुकम की तामील कर मैं दो ग्लास, व्हिस्की और आइसक्यूब लेकर वापस गणेश के पास बैठ गया. बहुत देर खामोश बैठने के बाद कोई दो पैक गटकने पर गणेश की जुबान हिली, " ओएसडी नेपाल भाग गया है . लास्ट लौकेशन बिहार में रक्सौल थी साले की "

" छोड़ ना प्लीज. तेरी बहन‌ का घर है ये, अपना सरकारी दफ्तर नहीं जो तू नौकरी करने लगा " ग्लास रिफिल कर मैंने मसाला पीनट बाउल जबरदस्ती उसके हाथ में थमाया.

" मैं ईमानदार हूं सर वफादार नहीं. अपने जैसा मिलता है तो भरोसा बढ़ जाता है खाकी पर बाकी आपको तो पता है किनके इशारों पर काम करती है वर्दी " हताश होते हुए गणेश ने तीसरा शाॅट भी फुर्ती से उतार लिया जैसे उसके अंदर की आग सिर्फ बर्फ और व्हिस्की से ही बुझने वाली थी.

प्यार से हड़का का मैंने उसे समझाया बीवी का भाई होने के नाते अब से वो मेरा सर है. सैकिंडली, नौकरी के साथ साथ हमारी सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियां भी तो थीं. कौन करेगा उनकी देखभाल अगर हर-वक्त हम यूं हीं रस्सकसी में उलझे रहें. मैंने उसे ऑफर किया फैमिली के साथ अयोध्या ट्रिप. बन्नू और भाभी को थोडा़ बदलाव मिलता और सर (गणेश) की ईमानदारी वाली खुजली के इलाज लिए जनकपुर क्यूंकि नेपाल का काठमांडू वहां से नजदीक ही पड़ता.
छुट्टियों में भी काम करवा रहे हो साले से समर साहब??

बढ़िया अपडेट। समर बहुत हद तक बदल चुका है, बस अब देखते हैं enquiry क्या रंग लायेगी।
 
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छुट्टियों में भी काम करवा रहे हो साले से समर साहब??

बढ़िया अपडेट। समर बहुत हद तक बदल चुका है, बस अब देखते हैं enquiry क्या रंग लायेगी।

bahut summerize kar likh raha hoon bhai magar jaldbaazi nahi kar rha... n pow ka diff sabke beech hota hai praah baaki achcha lga ki tumhen fir se kahani pasand aane lgi h.

Quick review dene ke liye 🤗
 
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माफ करना दोस्तो 🙏

लास्ट कुछ दिनों से बाहर (लद्दाख) था तो प्रापर टाइम और कनैक्टिविटी न मिलने से अपडेट नहीं दे पाया. आज से लिखना शुरू किया है, उम्मीद है संडे शाम तक आपको अगला हिस्सा पढ़ने के लिए मिल जाए.
 
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