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Romance फख्त इक ख्वाहिश

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प्यार से हड़का का मैंने उसे समझाया बीवी का भाई होने के नाते अब से वो मेरा सर है. सैकिंडली, नौकरी के साथ साथ हमारी सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियां भी तो हैं. कौन करेगा उनकी देखभाल अगर हर-वक्त हम यूं हीं रस्सकसी में उलझे रहें. मैंने उसे ऑफर किया फैमिली के साथ अयोध्या ट्रिप. बन्नू और भाभी को थोडा़ बदलाव मिलता और सर (गणेश) की ईमानदारी वाली खुजली के लिए जनकपुर... क्यूंकि नेपाल का काठमांडू वहां से नजदीक ही पड़ता.

..................


अगली सुबह केएफसी की फोटो को एक प्रादेशिक हिंदी अखबार ने शहर के पहले पेज पर जगह दे दी. खबर को देखकर पहले तो रोज़दा परेशान हुई, लेकिन फिर गणेश और भाभी के समझाने पर शांत हो गई. उधर, करण का दोस्त उज्जैन में माॅम-डैड एंड पार्टी को रिसीव कर चुका था, और नास्ता करने के बाद गणेश-भाभी और बन्नू भी निकल गये. मैड़म का बहुत मन था उन्हें रिटर्न गिफ्ट देने का, लेकिन गणेश की दलीलों के आगे उसकी एक नहीं चली.

गणेश को विदा कर हम बैकयार्ड में आ गये. आज मैडम को सीड-ट्रे में अलग-अलग प्लांट्स की सोईंग करनी थी और मुझे इसमें उसकी हैल्प. तब उसने बताया केएफसी में किसी को उसने यह बोलते सुना था ' शादी किये चार दिन हुए नहीं और मैडम इसे रेस्ट्रां ले आई '. लेकिन माॅम के साथ जब वो अक्षरधाम गई तब किसी ने कुछ रिएक्ट नहीं किया और ना ही अखबार में कोई खबर छपी.

" वैल, एक दिन मुझे किसी ने मैसिज किया था, जीप से सीधा कन्वर्टिबल और तुम्हारे झा अंकल ने तो मुंह पर ही बोला था मैं गोल्ड डिग्गर्स का मेल वर्जन हूं. एक कहावत बोली जाती है यहां, जब अंगूर हैशियत से दूर हों तो कुछ लोगों के लिए वो खट्टे हो जाते हैं. इसलिए फैसला आपने करना है रोज़दा क्यूंकि मैं तो बहुत पहले तय कर चुका हूं ऐसे गधे मेरी जिंदगी बर्बाद नहीं कर सकते " सरल शब्दों में अपनी अब तक की जिंदगी का निचोड़ मैंने मैडम के सामने रख दिया.

" समझ नहीं आ रहा समर. हैंडिल नहीं कर पा रही खुद को. जानती हू तुम मेरे साथ हो लेकिन फिर भी लगता है जैसे तुम्हारी सारी प्राब्लम्..... ", रुक रुक कर बोलते हुए रोज़दा भावुक होने लगी, " मेरी एक गलती.... प्लीज समर, निकालो मुझे इस गिल्ट और जगह से बाहर और . ‌‌....... "

बिखरे सीड्स वापस बाॅक्स में डाल कर मैंने पहले रोज़दा के हाथों को वाॅश कराने में हैल्प की, और बाॅटल से पानी पिला कर उसके साथ बैठ गया," मेरा दिल बहुत बार टूटा है रोज़दा. कभी काॅमिक्स तो कभी एक बैग लिए, लेकिन‌ तुम्हारे अलावा कोई मनाने तो दूर वापस हालचाल पूछने भी नहीं आया. इसलिए यह गिल्ट-विल्ट और मेरी नौकरी का वहम बाहर निकालो, बस इतना याद रखो बिना क्रच के आज तुम्हें तीसरा दिन है "

" दिल तो मेरा भी दुखाया है किसी ने बहुत, लेकिन अब उसे काॅमिक्स पढ़ने का उतना शौक नहीं. एनीवे, तरीका अच्छा है तुम्हारा दिलासा देने का एंड यकीन करो अच्छा फील कर रही हूं " दबी-फीकी मुस्कुराहट के अंदर अपना डर छुपाकर रोज़दा ने पहले से बेहतर दिखने की नाकाम कोशिश की.

" डैड बोलते हैं इससे पहले Better Half Bitter Half में तब्दील हो, उससे कहीं बेहतर है हार मानने की आदत डाल बीवी की जय-जयकार करना " रोज़दा के हाथों को अपने हाथों में लेकर सहलाते हुए मैंने समझाया गलतियां सबसे होती हैं, लेकिन मैं उनमें से नहीं जो गलत होने के वाबजूद अपनी गलतियां नहीं मानते.

" डैड बहुत सिंसियर हैं एंड कभी-कभी बहुत जलन होती है तुमसे. छोडो़ चलो.. माॅम-डैड, अंकल-आंटी और बाबा के रहते हुए मुझे इतना सोचना नहीं होना चाहिये " गहरी सांस लेकर रोज़दा जब इतना बोला तब उसके चेहरे और आंखों में एक अलग चमक थी.

मैडम का कांफिडेंस वापस आते देख बेफिक्री में मैंने उसे गले लगा लिया लेकिन उसके अगले ही पल मैडम झटके से मुझसे अलग होकर फुर्ती से दौड़ते हुए अंदर चली गई " हटो, गेट पर कोई है "

थोडी़ देर बाद गार्ड ने बताया हमारे कुछ पडौसी शादी की शुभकामनाएं देने के लिए मिलने आए हैं. कोई दस-बारह बुजुर्ग और अधेड़ कपल थे और हाउस-हैल्प को मैडम ने छुट्टी पर भेजा हुआ था. थैंकफुली, सिक्योरिटी स्टाफ की हैल्प से सबकी आव-भगत और चाय-नास्ता का इंतजाम कैसे भी मैनेज हो गया. जान-पहचान के दौरान मैड़म की इंट्री हुई. बिंदी, सिंदूर, कंगन और सतरंगी लहरिया साडी़ में लिपटी वो खूबसूरत विशुद्ध भारतीय नारी लग रही थी.

नीयत खराब हो रही थी मेरी और गेस्ट्स के जाने के बाद मैंने, अपनी बुरी हालत के बाबत रोज़ेन को अप्रोच किया तो कम्बख्त ने लेट होने का बहाना कर जबरन शाॅवर लेने भेज दिया. फिर बन्नू को उसके स्कूल से पिक कर, घर से भाभी को लिया और इसके कुछ देर बाद वैशाली नगर के एक फैमिली रेस्त्रां में गणेश के साथ मिलकर लंच कर रहे थे.

फिर रोज़ेन ने उन्हें बताया, हमारे पडौसियों से मुलाकात में पता लगा वो उनका बन्नू के पसंदीदा स्कूल के चेयरमैन और डाइरेक्टर निकले," अपने को बस यूनिफोर्म, कन्वेंस और ट्यूशन फी पे करना है, जिसकी फिक्र करने की आपको जरूरत नहीं. अब आप बहन मानते हो तो मैं चाहती हूं अपना बन्नू यहां पढे़ "

" यह प्लांन्ड नहीं है गणेश और मैंने रिटर्न में किसी फेवर की कमिटमेंट भी नहीं दी. बन्नू को ऐसे स्कूल की जरूरत है भाभी, तो प्लीज इसे अपने स्वाभिमान के दायरे से दूर रखकर सोचें " अपने अंतिम लफ्जों पर जोर देते हुऐ बाद में मैंने प्रैशर बढा़या तो गणेश टूट गया. और पिघलता भी क्यूं ना वो, किस बाप की हसरत नहीं होती उसके कलेजे के टुकडे़ को पढ़ने के लिए बेहतर स्कूल और माहौल देने की, और अपना बन्नू तो पढ़ने/सीखने में भी बहुत अच्छा था.

तय ये हुआ रेस्त्रां से सीधे बन्नू के नये स्कूल जाकर बाकी का पेपरवर्क पूरा करना है. उसके बाद गणेश दफ्तर और हम सब हमारे घर, क्यूंकि शाम को भाभी बेझ़ड़ की रोटी और (राजस्थानी) आलू-प्याज की सब्जी बनाना सिखाने वाली थी रोज़दा और मुझे. बाहर आने पर मौसम बारिश जैसा होने लगा था, कहीं पर भुने-भुट्टों की महक से मुझे कुछ याद आया, तब चुपके से गणेश को एसएमएस कर मैंने शाम को मैडम की पसंदीदा दावत (फ्राइड चिकेन) का इंतजाम करने के लिए रिक्वेश्ट किया.

शादी के बाद से हर रोज मेरी पहली कोशिश होती मैडम की पसंद-नापसंद का खयाल रखने की, और अब माॅम उज्जैन में थी तो सारा दारोमदार मुझपर था. दवाइयों से लेकर छोटी-छोटी अन-इंपार्टेंट बातों पर उसका बदलता मिजाज कभी भी उसकी सेहत पर भारी पड़ सकता था. जिससे बाहर निकलने या निकालने में फिर सबको थोडी़ मुश्किल तो होती. वैसे भी, जान बसने लगी थी मेरी अब उसकी खुशी में, इसलिए उसकी मुस्कुराहट को बरकरार रखना ही मेरी दूसरी जिम्मेदारी थी.

लौटते वक्त अचानक आई आंधी और बारिश ने भाभी के सुखाने डाले अचार, बडि़यां और पापड़ समेत कपडो़ं को भिगोकर उनका काम मुश्किल दिया, जिसकी वजह अब रात को आलू-प्याज की सब्जी और बेझ़ड़ की रोटी वाली दावत मजबूरन कैंसिल हो गयी, " अपन ट्राई करें? जरुरी थोडे़ ही है कि हम फेल ही हों? पसंद आया तो ठीक नहीं तो फिर बाहर से मंगा लेंगे? इंजीनियर हो सिगडी़ तो तुम जला ही लोगे, रेसिपी भाभी ने बता दी है, और बाकी का काम मैं देख लूंगी "

बुरी हालत में होने पर भी मेरी ख्वाहिशों के लिए रोज़दा का डैडीकेशन देख मैं मन ही मन ईश्वर का शुक्रिया अदा करने लगा. ड्राइव करते हुए, फ्रेम-दर-फ्रेम मैं रिफ्रेश कर रहा था उन हशीन लम्हों को जब मैडम की खूबसूरती से पहले सादगी ने मुझे उसके करीब जाने के लिए बेबस या मजबूर कर दिया. प्रकृतिप्रेमी तो अमूमन हर इंसान होता है लेकिन उसकी फितरत नेचर nourish कर उसे हमेशा के लिए सहेजने की थी. शायद इसलिए ये उसकी जिंदगी के साथ-साथ थीसिस का हिस्सा था लेकिन मेरे इश्क की गुस्ताखी उसे इस हालत में ले आई.

वो जवाब के लिए मेरी तरफ देख रही थी और मैं मशगूल था अपने बायें हाथ की उंगलियों से मैडमको सहलाते हुए यादों के आगोश में

" कहां जा रहे हो? " घर आने पर, रोज़दा को बाथरूम में दाखिल कर मैं बाहर जाने के लिए मुडा तो मैडम ने पूछा.

" काॅफी.. तुम्हें चाहिये? " बाथरूम में उसे वक्त लगता था उसे और मुझे तलब हो रही थी.

" अब काॅफी मुझसे भी अच्छी लगने लगी तुम्हें " कलाई से घडी उतार कर, बन टाइट करते रोज़दा ने नाराज टोन में शिकायत की और चेहरा धुलने लगी अपना.

इतना सुनकर मेरे कदम खुद ब खुद फ्रीज हो गये और मैं उसके बैंगल्स, वाॅच और स्लिंग बैग(फोन) को केबिनेट में रखने लगा. मुश्किल होता था उसके लिए यूं स्टूल पर बैठ तैयार होना और आज तो उसने साडी़ भी पहनी थी बिना माॅम या आंटी की हैल्प के, " साॅरी, माफ कर दो मुझे एंड जरूरी नहीं कोई आए तो तुम साडी़ ही पहनो, और माॅम के आने तक तो यह एडवेंचर बिल्कुल मत करना प्लीज "

" कमीने हो तुम. काॅम्पलीमेंट देना भी नहीं आता. फाइन, मेरे लिए भी बनाना लेकिन फुलक्रीम से " टाॅवल से चेहरा गरदन और गला पोंछते हुए उसने प्यार से मुझे हग किया और सहारा लेकर लिविंग रूम तक आई और काउच पर अपने पैर फोल्ड कर बैठ गई.

उसके इस तरह बैठने से मुझे कुछ याद आ गया, " स्मार्ट सिटीपार्क में तुम्हें स्टाॅक करने वाला मैं था. तुम अचानक से पार्क मेकोवर ड्राइव पे निकली हुई थी और मेरे भरोसे के लोग गये थे जयपुर IPL देखने, ऑप्शन नहीं था कोई दूसरा. फिर उन सिनियर सिटिजन्स को लगा कि मैं तुम्हें. एनीवे, एक अलग aura है तुम्हारी पर्सनल्टी में और मेरी तो पहचान ही बदनाम.. अच्छा हुआ जो तुम उस सोशल पुलिसिंग आईडिया के साथ मिलने आई और आज साथ हैं हम, नहीं तो हजारों ख्वाहिशों की तरह मेरी इस तमन्ना का अंजाम भी वैसा ही होता.... ताड़ता रहता तुम्हें दूर से‌ और फिर सो जाता रात को व्हिस्की के सहारे. और अब देखो, चाय पीने वाले को तुमने ट्रैंड बरिस्ता बना डाला और कंप्लेन करती हो काॅंम्पलीमेंट देना नहीं आता मुझे " काॅफी कप रोज़दा को पकडा कर मैं सिप करते हुए मशीन क्लीन करने लगा.

इस बार मैड़म की जुबान तो खामोश थी लेकिन चेहरे पर मनो-भाव तेजी से बदलने लगे, " ट्रैंड बरिस्ता तो तुम बन गये समर लेकिन परफेक्ट हसबैंड नहीं बन पाओगे. झूठ ही बोल देते गेस्ट्स के सामने तारीफ नहीं कर पाये, कम से कम तुम्हारी दलीलें सुनने की जरूरत तो नहीं पड़ती "

आंखे नचा कर चिढ़ते हुए रोज़दा ने सिखा दिया तारीफ और शिकवा कैसे करते हैं. लेकिन हम ठहरे अव्वल दर्जे कमबख्त और मौके पर चूकना हमारी किस्मत में लिखा था. जब मौका था तब तारीफ जाहिर नहीं कर पाए और अब अक्ल मिली तो मैडम चिपक गई मोबाइल पर अपने डैड से. काफी देर इंतजार करने के बाद मुझे जो बोलना था वो मैसिज कर दिया और सो गया आकर अपने हमारे कमरे में.

आंखें खुलने पर बाहर निकला तो किचिन से मस्त महक आ रही थी " व्हट द हैक.... खाना बना भी लिया तुमने? और रोटियां कैसे! " खाली सिगडी़ देखकर हैरत से मैंने रोज़दा को अपनी बाजुओं में उठा लिया " कमाल हो यार तुम, कितना खयाल रखती हो. बढी़या खुशबू आ रही है बटर और बाकी के फ्लेवर्स की "

" तंदूर(इलेक्ट्रिक) की हैं. अंधेरे में इंसेक्ट्स परेशान करते हैं इसलि..... "

उसकी जुबान को अपने होठों की गिरफ्त में लेकर इससे आगे बोलने का मैंने उसे मौका नहीं दिया, और मेरा मजा दोगुना तब हुआ जब उसने रिसिस्ट करना छोड मेरा साथ देना शुरू किया. मैड़म की साडी़ थाइज के ऊपर थी और पैर मेरी कमर के इर्द-गिर्द, और पागलों की तरह हम एक दूसरे पर प्यार के निशान छोड़ते जा रहे थे. सांसें उखड़ने से मैडम की पकड़ कमजोर हुई तो कांउंटर-टाॅप पर बिठा कर पानी पिलाने लगा. उसकी ब्रा-स्ट्रेप्स के साथ खेलना मुझे पसंद था लेकिन अब मेरे उंगली की छुअन से गरदन से गले तक रोंगटे खडे़ होने लगते और चेहरे पर घबराहट देख मैं कमजोर पड़ जाता, " रिलैक्स रोजे़न, जस्ट कैरिड अवे बट आईम कंप्लीटली कंपोज्ड नाउ "

" आईम यूअर वाइफ समर बट नेक्सट टाइम जब भी यह हो तो प्लीज रुकना मत क्यूंकि आज इससे डरने लगी तो लेबर-पेन से भी बचने की कोशिश करुंगी जो मैं बिल्कुल नहीं चाहती ", खडे होकर रोज़दा ने माथे पर किस किया और वापस मेरे हाथ अपने कंधों और बैक पर रख साडी़ ठीक करने लगी.

ब्रा-स्ट्रेप्स पर मेरी उंगलियां अब दुबारा से फिसलने लगी लेकिन मैडम की स्किन पहले जितनी रिसपोंसिव न होने से बैक को सहलाते-सहलाते नीचे हिप्स और थाइज पर जम गये, " जीरो एक्सट्रा फैट. एक्सरसाइज मैं करता हूॅं और उसका असर दिखता है तुम्हारे ऊपर. वैसे, नानवेज में सबसे ज्यादा पसंद क्या है तुम्हें? मेरा मतलब इंडियन नाॅनवेज डिश "

पलटकर रोज़दा ने मुझे धमकी भरे अंदाज में जताया वो भी मेरे जितनी ही इंडियन है और जो भी उसको पसंद है वो इंडियन-फूड की काॅपी थी " मीटबाॅल्स कोफ्ते के जैसे होता है, डोलमा-बिरियानी, रोल-काठी रोल, दलिया और पिलाफ में कोई फर्क नहीं, गोज्लमे- ब्रेड सैंडविच/कुल्चे की तरह, बोरैक-पराठा, कपुस्का-खिचडी़, बकला.. "

पुरजोर कोशिश से हांफने लगी थी वो और इसका असर से जब राउंड ब्रेस्टस भारी हुए तो मुझे थोडी़ देर पहले दी गई उसकी नसीहत याद आई, " तुम्हारे आईसक्रीम कोन चखने हैं मुझे अभी, एंड ट्रस्ट मी इस बार मुझे रहम नहीं आएगा "

कमरे में बेड पर उसे लिटा कर मैं फुर्ती से कपडे़ निकलने लगा, और रोज़ेन मुस्कुराते हुए मेरे पागलपन को देखे जा रही थी. थैंकफुली उसके चेहरे पर पहले जैसा डर मौजूद गायब था. इसकी वजह थी मुझपर उसका बढ़ता भरोसा और माॅं बनने की ख्वाहिश तो मैडम को भी थी, " मुझसे भी ज्यादा कंफ्यूज हो तुम समर बट आई डेयर कि तुमसे ये होगा नहींं इसलिए प्लीज पैंम्पर करो मुझे पहले, उससे शायद तुम्हें हैल्प मिले " हेडरेस्ट के सहारे बैठते हुए मैड़म ने असलियत बयां कर अपनी स्ट्रैटजी बताई.

पहली बार नहीं था ये जब मेरे अरमानों की हवा निकली. एक भरोसेमंद पार्टनर की तलाश में ये आदत अब सब्र में तब्दील हो चुकी थी. " पैम्पर करना नहीं आता यार मुझे. अगर आता तो..... " कुछ खयाल आने पर वापस अपना शाॅर्ट पहन रोज़दा के बराबर बैठ इरीन के टैक्ट्स दिखाने लगा. जेनोफोबिया था उसे और ये बात वो शुरु से मुझसे छुपा रही थी, " प्रोवोक करने से कुछ नहीं होगा, पहल तो तुम्हें करनी ही पडेगी मैडम, वैसे भी मैं हसबैंड हूं तुम्हारा कोई रेपिस्ट नहीं "

" बिच! इतने लूड एंड ऑबनाॅक्शियस टैक्स्ट करती है वो और तुमने मुझे बताया तक नहीं? छी.. इतनी बडी स्लट! अबसे पासवर्ड बता कर रखना. ओ गाॅड.. देखा इसीलिए माॅम मुझे उदयपुर में पढ़ाना चाहती थीं " स्क्राॅल करने के साथ-साथ रोज़दा गुस्से से तमतमा रही थी. सारे मैसिज पढ़ने के बाद उसने मोबाइल का पीछा छोडा़ मगर अभी भी उसकी धड़कनें शांत नहीं थी, " वेट, कहीं वो टेस्ट तो नहीं कर रही थी? कुज़, शी हैज लैफ्ट्ड हर फैमिली फाॅर डेनिज़ भाई. एनीवे... लेकिन उसे मजाक में भी तुम्हें ऐसे मैसेज नहीं करने चाहये थे "

" ठीक है ऑनेस्टली बताना, क्या तुम इसलिए नाराज हो इरीन मुझसे गंदे मजाक करती है? या इसलिए कि उसने तुम्हारा भरोसा तोडा?? " मैंने पूछा तो आंसू टपकने लगे रोजदा की आंखों से.

गणेश की काॅल आने पर मैं उससे बात करने लगा. पता लगा डीआईजी ने रोज़दा के केस में ओएसडी को नेपाल पुलिस की मदद से गिरफ्तार कर मीडिया कांफ्रेस में इसे पाॅलिटीकली मोटिवेटिड प्रूव कर शासन की जान सासंत में डाल दी थी. बाकी की कसर ओएसडी के इकबालिया बयान ने कर दी जिसमें उसने आरोप लगाया था एक बडे मंत्री के छुटभइये नेता पर. गणेश की नेपाल ट्रिप कैंसिल हो गया थी तो डीआईजी के सही वक्त पर एक्टिव होकर पहली बार कायल बना दिया था मुझे अपना. रोज़दा की जुबान पर एक ही रट थी, सुलह कर लूं मैं डीआईजी झा से क्यूंकि दुश्मनों के बीच मुझे सख्त जरूरत पड़ने वाली थी दोस्तों की.

" फाइन, उदयपुर जाएंगे तब मिल आएंगे. नहाने जा रहा हूं. किसी की काॅल या कोई आए तो बोल देना हैल्थक्लब गया हूं और अगले 5-6 दिन सोशल-मीडिया से दूर रहना है अपने को, उसके बाद जो मन आए करना "

छोटे बच्चे की तरह रोज़दा को समझा कर मैं शाॅवर के नीचे खुद को भिगोने लगा.
 
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" फाइन, उदयपुर जाएंगे तब मिल आएंगे. नहाने जा रहा हूं. किसी की काॅल या कोई आए तो बोल देना हैल्थक्लब गया हूं और अगले 5-6 दिन सोशल-मीडिया से दूर रहना है अपने को, उसके बाद जो मन आए करना "

छोटे बच्चे की तरह रोज़दा को समझा कर मैं शाॅवर के नीचे खुद को भिगोने लगा.


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एकेडमी जाते वक्त तो मीडिया-कर्मियों को मैंने धोखा दे दिया लेकिन लौटते वक्त वो जबरन अंदर आ गये. उनमें से कुछ लोग परिचित थे तो कुछ ओवर-एंबीशियस मगर अपनी तरफ से चाय-बिस्किट के अलावा उन्हें कुछ नहीं मिला. बाथरूम मैडम ने ओक्यूपाइड कर रखा था तो मैं दूसरे कमरे में चला गया. वैसे आज अपना प्लान गुरुग्राम जाने का था लेकिन आधी रात बाद अचानक से मैडम के बिजली की तरह टूटकर बरसने के सुखद अहसास को यूं भागदौड़ में जा़या नहीं करना चाहता था.

फाइनली, अपनी सुहागरात तो अच्छे से मनी लेकिन उस दौरान मंगलसूत्र के टूटने पर मैड़म परेशान हो गई.

माॅम ने फोन कर के पूछा तो बारिश का बहाना बना दिया लेकिन करण खास नाराज़ था, " बिलीव मी, इश्यू नौकरी का नहीं है यार, पर्सनल है. इससे ज्यादा नहीं बोलूंगा और एक्सप्लेन मी, जब तुझे बुलाना ही था तो सब को भारत-भ्रमण पर क्यूं भेजा? साला दस-दस जगह दिमाग फंसा रहता है अब, इंसान हूं भाई कोई सुपर कंप्यूटर नहीं, एक बार में सिर्फ एक काम होता है मुझसे "

" रोना बंद कर. प्लान किया था मैंने सिर्फ, मंगत तो तेरी माॅम ने सालों पहले मांग रखी थी. याद रख, हार गया तो बिल पे करना पडेगा, क्यूंकि तेरी वजह से दोस्तों से मैच लगाया था मैंने " नरम पड़ती करण की आवाज के साथ काॅल डिसकनैक्ट हो गई.

रोज़ेन को निकलने में काफी देर हो गई थी और मैं बेहाल था भूख से, फिर अचानक से मुझे रात की वो घटना याद आ गई जिससे मैडम खासा परेशान थी, " माॅम से बात हो गई हैं मेरी. इट्स नैचुरल, बैड ओमन नहीं है वो. हां अगर यह सपने में होता तब अपशगुन माना जाता. अब प्लीज जल्दी निकल आओ, और इंतजार किया तो एसिड बनने लगेगा पेट में ", दरवाजा नाॅक कर मैंने मैडम से रिक्वेस्ट किया.

और कुछ देर बाद वो ड्रैसिंगरुम से साडी़ में बाहर निकली तो मुझे अंदाजा हो गया उसे इतना वक्त क्यूं लगा, लेकिन कल की तरह इस बार उसकी तारीफ में मैंने कोई कंजूसी नहीं की. धूप नहीं थी फिर भी कपडे़ सुखाने के लिए डालकर हमने साथ में ब्रेकफास्ट किया और रात को किये प्रामिस निभाने के लिए, मिस्टर ॵज के जानकर एक ज्वैलर के आउटलेट में आ गये. थैंकफुली, मंगलसूत्र ठीक होने पर मैडम के शरीर में जान और चेहरे पर रौनक वापस आई.

मिलिंद भाई को इसके बारे में बताया तो उन्होंने सजैस्ट किया कुछ वक्त के लिए अपने वर्कप्लेस की पहुंच से दूर रोजे़न के साथ समय बिताना. इससे पहले वो इस गर्त में समाए मेरे पास दूसरा कोई ऑप्शन नहीं था. सिवाच सर से सलाह लेकर मैंने लम्बी छुट्टियों के लिए औपचारिकता पूरी की और मैडम से हल्की-फुल्की बातें कर व्हाट्स-एप पर बाबा (मिस्टर ॵज) से चैट करने लगा.

साइदा और उसके माॅम-डैड स्वीडन पहुंच चुके थे लेकिन इरीन और डेनिज रुके हुए थे अभी उदयपुर. मेरी उम्मीद से उलट मैड़म को सोलना से ज्यादा टट्वन ज्यादा पसंद था क्यूंकि यही वो जगह थी जहां उसकी माॅम ने आखिरी बार सांस ली. बहुत मुश्किल था उसको समझ पाना और उससे भी मुश्किल थी उसकी मनो-दशा. आधा दिन जैसे तैसे गुजरा फिर माॅम-डैड, अंकल-आंटी और करण फोन कर मुझे अडियल होने के लिए कोसने लगे.

आठ दिन बाद हम दोनों ने उबेश्वर हिल टाॅप तक नंगे पैर चढ़ाई की. भगवान के दर्शन‌ और प्रसाद लेकर हम ठीक वहीं आ कर बैठ गये जहां से वैली-व्यू में पूरे उदयपुर का नजारा दिखता, " आई लव दिस प्लेस, वैल इससे बेहतर जगह है तुम्हारी नजर में? " रोजे़न के साथ सैल्फी फोटो क्लिक कर मैंने उससे पूछा.

" कुछ दिन से देख रही हूं बहुत खयाल रख रहे हो मेरा!! सच में इतना खुश हो? या कोई और फैंटसी भी बाकी है तुम्हारी? " पैर फैलाते हुए कंफर्टबल होकर रोज़दा ने मेरी नीयत पर ही उंगली उठा दी, " बता देना मुझे क्यूंकि अब फिक्र नहीं है ज़ेनोफोबिया की.. वैसे भी यह कोई बीमारी नहीं सिर्फ एक अवर्जन है " और चहकते हुए उसने अपने कंधे उठा लिए.

जवाब तो नहीं दिया उसने लेकिन कुछ देर के लिए मुझे खामोश जरूर कर दिया. आईडियली उसकी परेशानियों से उसका ध्यान भटकाने से, कहीं ज्यादा उसको जरूरत थी अनकंडीशनल प्यार की. लेकिन कभी कभी अनजाने में उसकी जुबान से कुछ ऐसा निकल जाता जो बुरी तरह चीर कर रख देता मुझे. हजारों बार समझाया था उसे कि मेरी और मेरी फैमिली की हरएक फैंटसी, हमारी शादी के दिन पूरी हो गई थीं.

खैर मैडम के एक बार साॅरी बोलने से मेरी नाराजगी और उसका फितूर एक पल में नदारद हो जाता, और प्यार के पागलपन में हम भूल जाते, कि उस वक्त हम किस जगह और किस हालत में हैं, " छुट्टियां अप्रूव हो गई हैं, बताओ ना कहां जाना पसंद करोगी? " किसी के आने की आहट सुनकर नाॅर्मल दिखने की हड़बडी़ में दिल में दबी बात जुबान ने तय वक्त से पहले उगल दी.

" पालमपुर... मुझे देखना है तुम्हारा स्कूल, शिवानी दी के स्टूपिड फ्रैंड्स, न्यूगल खड्ड...... "

अपनी उंगलियां पर गिन कर तरह-तरह के चहरे बनाते हुए रोज़दा अपनी लम्बी लिस्ट सुनाने लगी तो उसे रोक कर मैंने पूछ लिया, " पालमपुर तो कभी भी जा सकती हो तुम लेकिन अपनी माॅम से नहीं मिलाओगी मुझे? "

" समर बोल तो दिया साॅरी यार तो क्यूं बोल रहे हो बाबा की तरह? " थोडी़ देर पहले जो शरारत भरी चमक रोजे़न के चेहरे पर थी अचानक से बदतर दर्द में तब्दील हो गई. थोडी देर खामोश रह कर उसने उखड़ती सांसों को काबू में किया फिर धीरे-धीरे सुबकते हुए रुक-रुक कर बोलने लगी," कुछ नहीं है सोलना में, माॅम की जान इस शहर में बसती है. कभी सोच... अम्मी के बाद इस शहर ने सबसे अच्छा गिफ्ट मुझे तुमसे मिला कर दिया है, और यह सब (एक्सीडेंट) इसलिए हुआ क्यूंकि माॅम चाहती थी तुम्हारा मेरी जिंदगी में वापस आना. वो जहां भी हैं, तुम्हें जानती हैं और बेहतर समझती हैं मुझसे, लेकिन तुम पता नहीं ये सच क्यूं नहीं समझ पा रहे " अजनबी को आते देख कर उसने अगला हिस्सा हिंदी में नहीं बोला.

उस भाई के पास मैडम का फोन था जो रास्ते में बैठने के दौरान छूट या पाॅकेट से निकल गया. रिमार्कबल बात थी उसका उदयपुर गार्जियन का मेंबर होना और फोनस्क्रीन पर कम्यूनिटी के लोगो की हैल्प से इतना जल्दी हम तक पहुंचना, " काश इतना स्विफ्ट, ईमानदार और भरोसेमंद अपना डिपार्टमेंट होता " सिर्फ थैंक्स बोलना काफी नहीं था दीपक(आगंतुक) के लिए.

" एक्टिव मेंबर्स की आइडेंटिफिकेशन के लिए बारकोड इश्यू करने का आईडिया नूतन का था और ईमानदारी से इस कम्यूनिटी को बनाने में सबसे ज्यादा मेहनत भी उस ने ही की " ठंडी आह भरकर सबको सैंडविच सर्व करते हुए रोज़दा ने खुलासा किया.

मेरा रिएक्ट करने का मन था लेकिन रोज़दा का दिल ना दुखे इसलिए चुप रहा. असल में नूतन उतनी गलत नहीं थी, उसके कांट्रिब्यूशन का क्रेडिट मैडम ने सही वक्त पर दिया होता तो आज उसे अफसोस करने की जरूरत नहीं पड़ती. खैर, सूरज चढ़ने से गर्मी लगने लगी थी. सैंडविच खत्म कर मैंने सामान उठाया और मैडम को सहारा देकर पहाडी़ से नीचे उतरने लगे. हमने आधा रास्ता तय किया होगा उतने में दीपक आ गया, उसने हमारा बैग ले लिया और मैंने मैडम को अपनी पीठ पर.

" अगर हम नूतन के घर जाते हैं, तो डिपार्टमेंटल इंक्वारी में कोई इश्यू तो नहीं होगा? " सीट बेल्ट लगाते हुए रोजे़न ने अचानक से पूछा.

होता तो कुछ नहीं लेकिन पाॅलिटिक्स से बचने के दीपक ने बीच का रास्ता सुझा दिया. अब हम नूतन और उसकी माॅम से दीपक के घर मिल रहे थे

" इंडिफरेसिस तो रहते हैं सबके बीच और गलतियां भी सबसे होती हैं. बस याद रख, हम बहन थे और हमेशा रहेंगे. बुरा वक्त चल रहा है थोडा़, इसलिए खुलकर नहीं मिल सकते पर मेरा भरोसा कर, बहुत जल्द हम घर पर भी मिला करेंगे " शार्ट नोटिस पर आने के लिए नूतन को थैंक्स बोल कर, रोज़दा ने अपनी गलती मान ली, " रही बात कम्यूनिटी की... यह सच है कि वो मेहनत है तेरी इसलिए मेरा वोट हमेशा तेरे लिए होगा लेकिन प्लीज माफ कर देना यार आज भी मेरी राय पहले जैसी है क्यूंकि कम्यूनिटी जिंदगी नहीं हो सकती अपनी "

शुरु से चुपचाप बैठी नूतन के अचानक से मुस्कुराने पर रोज़दा की मेहनत वसूल हो गई. माहौल को और आसान बनाने के लिए भुट्टे खाने के बहाने दीपक और मैं पास के उस बाजार में आ गये जहां उसके डैड का मैडीकल स्टोर था. काफी अच्छा इंसान था वो, बाकी उदयपुर गार्जियन एक्टिविस्ट्स की तरह. ऑनेस्टली मजाक नहीं था उनका यह काम और उससे भी ऊपर पूरे लीगल तरीके से भिड़ रहे थे ये सभ्य समाज को बचाने के लिए, " अफोर्ड कैसे करते हो तुम इसको? आई मीन, नेटवर्क चलाने के लिए फंडिग कहा से आती है?? "

तारीफ के पुल बांधते दीपक के लिए यह मुश्किल सवाल था मगर उसका जवाब बडा़ आसान, " ऑपरेशनल खर्चा जीरो है अपना. पर्सनल फोन-व्हीकल कम्यूनिकेशन और लाॅजिस्टिक सपोर्ट देते हैं सिर्फ मैडीकल या लीगल खर्चों के लिए थोडी़ जरूरत पडती है जो काॅट्रिब्यूशन से मैनेज हो जाता है. इससे कहीं ज्यादा अवैध वसूली तो सरकारी गुर्गे कर लेते थे हमें धमकाकर, थैंकफुली अब कम्यूनिटी हैल्प से किसी की हिम्मत नहीं पड़ती " सीना फुलाते हुऐ दीपक की आवाज़ फख्र से ऊंची हो गई.

इसी बीच रोज़दा के साथ गिले-शिकवे दूर कर नूतन उसे बाजार के पास ड्राप कर चली गई. दीपक भाई की हैल्प नीयत और जज्बे को सलाम कर मैंने उनसे दुबारा मिलने का वायदा किया और रोज़दा को लेकर वापस उसके घर आ गया. थीसिस के लिए अगले रोज उसे अपने रिसर्च-गाइड से मिलना था, वहां से लौटते हुए हम नूतन के डैड के गिफ्ट-शाॅप के स्टोर-रूम में गये, जहां गार्जियंस ऑफ उदयपुर को अपग्रेड कर नूतन‌ ने कम्यूनिटी बना डाला.

" कम्यूनिटी का तो पता नहीं लेकिन तुम सच में 'इवोल्व' हुई हो " मैडम की फेअवैल स्पीच के बाद इवोल्व लफ्ज़ पर जोर देते हुए सरगोशी से मैंने उसके कान में बोला.

इसके जवाब में रोज़दा ने मुझे एक धार्मिक ग्रंथ की वो वर्स सुना दी जिसे अक्सर अपने कलीग्स या कैडैट्स को मैं नसीहत की तरह दिया करता, "फंस गए हो तुम समर, मेरा कांम्पिटीशन अब तुमसे है " और सरगोशी में अंदाज काॅपी करते हुए मैड़म ने अपने घुटने से मुझे हिट किया.

" तो ठीक है, अभी के अभी हिसाब कर दो मेरा. तुम्हारे ड्राइवर की नौकरी छोड़ रहा हूं मैं " पाॅकेट से रिमोट-की निकाल मैंने रोज़दा के हाथ पर कर उसे प्रवोक किया तो जोर-जोर से हंसते हुए वो ऑपनली गालों पर मुझे किस करने लगी.

एक्सपैक्ट न करने से थोडी़ देर के लिए इंबैरेसिंग हो गया था मेरे लिए, लेकिन उसके प्यार और हिम्मत की इज्जत रखने के लिए, गले लगा कर मैं उसकी हौंसला अफजा़ई करने लगा, " ये पब्लिक और मेरी नौकरी, हमारे प्यार के बीच कभी नहीं आएगी रोज़दा. बारी तुम्हारी है अब मेरी लाइफ को स्टिअर करने‌ की, क्यूंकि मैं पैदा होने के बाद से ही कंफ्यूज हूं यार‌ "

" कुबूल है, लेकिन मेरे लिए कन्फ्यूज नहीं तो कन्सर्न्ड हो तुम " इतरा कर अपने डिम्पिल्स फ्लाॅंट करते हुए रोज़दा ने मिर्ची-बडा़ का एक बडा़ टुकड़ा, जबरदस्ती मेरे मुंह में डालकर, काफी देर के लिए मुंह बंद करा दिया.

इरीन की काॅल आने पर मैंने रोज़दा का ध्यान फोनस्क्रीन पर खींचा क्यूंकि मैडम के लिए वो बस्टी वेस्टनर बिच थी इसलिए मेरा उसके साथ बात करना मैडम को तनिक भी पसंद नहीं था. एक्सीडेंट के बाद आज पहली बार ड्राइव कर रही थी वो, लेकिन एडीएएस की हैल्प से. एंकल की ग्रिप कम होने से उसे थोडी़ दिक्कत होती थी, मगर शहर के रोड्स से वाकिफ होने की वजह से हमें घर पहुंचने में कोई परेशानी नहीं हुई.

शायद 10-12 दिन के आसपास हो गये थे अब उसे क्रच-स्टिक छोडे, ठीक तो उसे होना था लेकिन ये इतना जल्दी से होगा उसका अंदाजा मिलिंद भाई को भी ना था. शादी के बाद बतौर दामाद पहली बार अपने ससुराल आया था मैं + अपनी इकलौती जिम्मेदारी से फारिग होने की खुशी में करीबी दोस्तों के साथ मिस्टर ॴज ने डिनर पार्टी रखी थी, जिसमें अपने परिवार के साथ प्रशांत झा भी शामिल हुए. ओहदे में बहुत ऊंचे थे तो उन्हें पता लग गया छुट्टियां मंजूर होने का, मगर जब रोज़दा बताया हमारा ऐसा कोई प्लान नहीं है तो वो उसे समझाने लगे.

" ओएसडी की इतनी हैशियत नहीं थी एन, इसलिए अब छुट्टियां मिल ही गई हैं तो कुछ दिनों के लिए दूर रखो इसे इस गंदगी से "

दूसरा अहसान था यह प्रशांत सर का मुझपर. उनकी इस राय ने हमें फिजूल की स्ट्रैस से दूर कर, असल जिंदगी के बहुत करीब कर दिया. बेल मिलने पर ओएसडी ने अपने घर में लटककर सुसाइड कर ली और उस वक्त रोज़दा के साथ नार्दन लाइट्स की एक झलक के लिए नार्डिक देशों की खाक छान रहा था. पता नहीं लोग कश्मीर की इतनी तारीफ क्यूं करते लेकिन सही मायनों में यह वो जगह थी जो दुनिया को स्वर्ग से कनैक्ट करती.

लौटते हुए हम टेट्वन(टर्की) गये जहां रोज़ेन की माॅम को दफनाया गया था. जगह-जगह पर चेकिंग और डरे-सहमें चेहरों को देख कर कश्मीर जैसी ही वाइब्स आती थी इस जगह से. 42 दिन हो गये थे हमें इंडिया छोडे और इसका सबसे बेस्ट पार्ट था प्रेगनेंट होने के साथ रोज़दा का पहले की तरह बिना लड़खडाहट के चलना. दसकों बाद इतनी सुकून भरी जिंदगी बिता कर अब मुझे नौकरी या फ्यूचर की बिल्कुल फिक्र ना थी.
 
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Thanks Paraoh11 bro like karne ke liye. Lagta hai aapke alaawa kisi aur ko pasand nahi aa rahi apni kahaani?
 

SHOTO

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चलते चलते एकाएक अपनी जीप बीच सड़क पर बंद पड़ गई और फिर स्टार्ट होने का नाम ही नहीं ले रही थी। एक तो शराब का सुरुर और पीछे से आने वाले गाडि़यों के हार्न की आवाज़ से हाथ और दिमाग दोनों ही काम नहीं कर रहे थे। गाडी़ में धक्का लगाने के लिए जैसे ही मैं बाहर निकला तो सामने साडी़ में लिपटी बेहद सभ्य-शालीन, सुंदर और पुरकशिश शख्शियत को देखकर बुरी तरह हड़बडा़ गया।


" माफ कर...ना मैड़म, इं...जिन बंद पड़ ग...या है। बस दो मि...निट में रा..स्ता क्ली...अर हो जाएगा "


मेरे नशे में होने और लड़खडा़ कर बोलने की वजह से मुझे अंदाजा नहीं था कि उसे कुछ समझ आया होगा मगर फिर वो हुआ जिसने मुझे उसका अहसान-मंद बना दिया। जीप साइड में लगने के बाद, धक्का लगाने के लिए उनको थैंक्स बोलने ही वाला था कि वो फुर्ती से अपनी गाडी़ में बैठकर जा चुकी थी।


" ऐ बेवडे़, मरेगा क्य.... साॅरी सर!!!! पहचाना नहीं। गाड़ी खराब है क्या?? मैं हेल्प.... "


" इट़्स ओके, तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं " कड़वी मुस्कुराहट के साथ मैंने उसको जाने का इशारा किया और सिगरेट जलाने लगा।


मजा़ किरकिरा कर दिया था माधरचोद पत्रकार ने। अरसे बाद आज एक खूबसूरत चेहरा दिखा था, मगर उस हरामी की वजह से आंखों में कैद हुए उस अक्श की तस्वीर अब बहुत धुंधली पड़ चुकी थी।


सुंदर की रेहडी़ पर गोलगप्पे खाने के बाद क्या हुआ, मैं घर कब और कैसे आया मुझे कुछ याद न था। सुबह मेरी नींद खुली तो खुद कोे बिस्तर पर पाया। तैयार होने के बाद मैं नाश्ता कर रहा था तो व्हाट्स-एप पर एक लिंक ने मेरा ध्यान खींचा। ओपन करने पर पाया, ये इक वीडियो थी जिसे कल रात उस वक्त रिकार्ड किया गया था, जब इक पार्टी में, मैं नशे में झूमते हुऐ रैप कर रहा था। उस सस्ते यूट्यूबर की आत्मा की शांति के लिए दो मिनिट का मौन धारण कर अपना नाश्ता खत्म किया और माँ से पूछा कि मुझे यहां कौन लेकर आया।


" राजौरिया भाईसाब की तबियत बहुत खराब है। बार-बार बोल रहे थे समर को बुला दो तो रेणु बहन ने तेरे डैडी को भेजा था तुझे लेने "


" ....... शिवानी को ...... इंफार्म किया उसे "


" बात भी मत करना उसकी वहां, वैसे आई थी वो अपने हसबैंड के साथ। रेणु और भाईसाब दोनों ने मना कर दिया उनसे मिलने से "


अंकल से मिला तो कमजोर पड़ने लगा, आंटी ने बताया बैक-टू-बैक दो कार्डियक अरैस्ट को झेला है अंकल ने पर ग्लूकोज लेवल ज्यादा होने से डाॅक्टर आपरेट करने से बच रहे हैं। हालत बहुत दयनीय थी, देखा नहीं भी जा रहा था उन्हें।


" एक दोस्त बना है अजमेर में। कार्डियक सर्जन है, ट्राई करोगे उसे? " अंकल का हाथ सहलाते हुए मैंने पूछा।


" अगर तू जीने के लिए कोई वजह दे तो फिर मैं खुद को बचाने की कोशिश करुँ "


सोचने लगा क्या वजह दे सकता था मैं उन्हे। मुझे खामोश देख डैड अंकल को मनाने लगे मगर उनकी जिद और हठ से लग रहा कि वो अपना मन बना चुके थे। आंटी असहय थी, और मुझे अभी भी कुछ नहीं सूझ रहा था। लंच करने के बाद मैं अपने दोस्तों से मिलने निकल गया। उनके पास आज भी शिवानी की कामयाबी के अलावा कोई टापिक न था इसलिए कुछ देर तक बच्चों के साथ क्रिकेट खेलने के बाद मैं घर आ गया।


माम-डैड मोस्ट आफ द टाइम अंकल-आंटी के यहां ही रहते थे इससे आपस में मन भी लग जाता और परेशानियां भी बंट जाती। सालों की दोस्ती आज बरकरार तो थी मगर कहीं न कहीं इस दोस्ती के एक रिश्ते में ना बदल पाने की इक कसक भी थी, जो मेरे यहां आने पर अक्सर इन सबके चेहरों से झलकती।


हाथ-मुँह धुलकर मैं आंटी के साथ किचिन में चाय पीते हुऐ बात कर रहा था कि मेरा मोबाइल बजने लगा, " बोलो सुंदर "


" सर, कुछ टीवी वाले पूछताछ करने आये हैं " उधर से आवाज आई।


" टीवी वाले.....!!! "


" वीडियो दिखा रहे थे.... लगता है रात किसी ने आपकी रिकार्डिंग... "


वो डर रहा था, उसको शांत रहने का बोलकर मैंने टीवी आॅन किया और खबरें देखने लगा। एक हिंदी न्यूज चैनल पर, मेरे नशे की हालत में होने की विडियो को मेरे इदारे की नाकामी से जोड़कर मेरे ज़हनियत पर सवाल उठाए जा रहे थे। सवाल उठाने वाले भी आम-जन नहीं वो खास-लोग थे जिनको मेरी तौर-तरीकों और क्षमता से रश्क था। वैसे भी, महकमे में मेरे कद्रदानो की गिनती उंगलियों से भी कम थी और इस वीडियोे ने उन मौकापरस्तों को अपनी खीझ निकालने का एक शानदार मौका दे दिया।


" माँ, इन्फार्मेशन गेदरिंग के लिए लोगों से जुड़ने का ये तरीका मुझे बेस्ट लगा, और वैसे भी उस वक्त यूनिफोर्म में नहीं था मैं " कुछ झूठ नहीं बोला था मैंने, अपने इदारे में पैर जमाने के लिए हर वो हथकंडा़ अपनाना पड़ता, जिस से कानून और व्यवस्था में लोगों का भरोसा और खौफ दोनों ही बने रहे।


इस घटना से डैड थोडे़ नाराज लग रहे थे मगर पाजि़टिव बात यह थी, राजोरिया अंकल अजमेर चल रहे थे। उनका अंदाजा था उनके वहां होने से मेरे नशा करने की तादात में थोडी़ कमी आएगी। सोने जाने से पहले डैड मुझे बालकनी में आने को कहा, जब में वहां पहुँचा तो डैड ने व्हिस्की का ग्लास मेरे आगे कर दिया।


" हीरो सिर्फ कहानियों या फिल्मों में ही अच्छे लगते हैं समर, असल जिंदगी में सब विलेन होते हैं " मेरे कंधे को सहलाते हुऐ डैड ने पीने का सिग्नल दिया।


" इम्म्म...... आप भूल रहे हैं डैड, टीवी वाले मुझे विलेन बता रहे थे " खाली ग्लास टेबल पर रखकर मैं अपने लिए सिगरेट सुलगाने लगा।


" सीखने तो लगा है तू अब, पर मुझे अभी भी डर लगता है। शायद इसलिए कि मैं इक बाप हूँ " इक लम्बी सांस ले कर मुस्कुराते हुऐ डैड अगली डोज़ की तैयारी करने लगे।


डैडी से बातें करते-करते इक मुखबिर का मैसिज आया। उसके मुताबिक कल बेवंजा माइनिंग एरिया में कुछ बडा़ होने वाला था। काॅल करने पर उसका मोबाइल नंबर बंद आ रहा था, इसका मतलब खबर पक्की थी। एक-दो जगह फोन करने के बाद हमने एक-एक लार्ज पैग लिया और सोने चले गये।


अगला दिन मेरे लिए बहुत बदतर रहा। रात मुखबिर से मिले इनपुट को, ज्याती ईगो की वजह से मेरे सीनियर द्वारा दरकिनार कर, एक एस.डी.एम और खनन विभाग की टीम को कुर्बानी का बकरा बना दिया। बस गनीमत सिर्फ इतनी ही थी कि हमले में कोई मरा नहीं था, नहीं तो मेरे सीनियर को अपने सीनियर, सरकार और मीडिया तीनों को जवाब देना भी मुश्किल हो जाता।


दफ्तर से फारिग होने के बाद मैं राजोरिया अंकल से मिलने हाॅस्पिटल गया तो पता लगा, हमले में घायल लोगों का इलाज यहीं चल रहा था। इंसानियत और इक जिम्मेदार पद पर होने के लिहाज से उनसे मिलकर उनका हालचाल जानना मुझे वाजि़ब लगा, और जब मैं उन्हें देखने गया तो एक शख्शियत को वहां देखकर मेरी पुतलियां सिकुड़ गई। ये मोहतरमा वही थी, जिसने जीप में धक्का लगाने में उस रात मेरी मदद की थी।


किसी के चिल्लाने की अवाज सुनकर मैंने सुरक्षाकर्मी को वहां साइलेंस मेंटेंन करने का निर्देश दिया और बाकी के घायलों से मिलने लगा। उनके बयानों से मोहतरमा के नाम और काम दोनों के बारे में पता लग गया। मैडम का नाम था अपराजिता निंबालकर और वो एसडीएम ब्यावर थीं। अंदर ही अंदर में खुश हो रहा था, कि अब मेरे पास बहुत सारे रीजन्स हैं यहां बार बार चक्कर लगाने के।


अगले दिन दफ्तर जाने से पहले मैं माॅम को हाॅस्पिटल छोड़ने आया तो मुझे देखकर एक बुजुर्ग बुरी तरह भड़क गये, और पुलिस की लापरवाहियों को मेरे शराब पीने से जोड़ कर मुझे लानतें भेजने लगे। ताज्जुब की बात ये थी, उनको पता नहीं था जिनसे बात करते हुए वो मुझे गालियां सुना रहे थे, वो और कोई नहीं मेरे डैड ही हैं, और मुझे भी पता नहीं था कि वो अपराजिता मैडम के डैड हैं।


यह जानकर, अपराजिता मैडम से मिलने की मेरी सारी तैयारियां, अरमान और प्लानिंग एक झटके में हवा हो गये। उनके बारे में सोचने भर से ही मेरा दिमाग सुन्न पड़ जाता, सूझता ही नहीं था कुछ। इसलिए मेरा हाॅस्पिटल जाना बंद हो गया तो दूसरी तरफ अंकल की सर्जरी भी निबट गयी।


फिर एक दिन आंटी ने मुझे जल्दी आने के लिए कहा, वजह पूछने पर उन्होने बताया शिवानी ने वहां कोई सीन क्रिएट कर दिया था। शहर से बाहर होनी की कारण मेरा जाना संभव नहीं था, इसलिए पास की चौकी को अंकल के सेफ्टी के लिए इंफार्म कर दिया। मगर बात यहीं पर खत्म नहीं हुई थी, अगली सुबह मेरा नाम फिर सुर्खियों में था। खबर थी, ज़ायदाद की खातिर सहायक पुलिस अधीक्षक ने परिवार को बंधक बनाया।


शहर में उर्स(मेला) के लिए आज मीटिंग रखी गई थी, और इस हैडलाईन के साथ मुझे मीटिंग में जाना था। कभी कभी तो हंसी आती थी मुझे अपने नसीब पर, शर्मिंदगी से मेरा हमेशा चोली-दामन का साथ रहा। डैड का मानना था, सबका भगवान होता है, पर मेरा भगवान न जाने कब से भांग खाकर सो रहा था।


" मुबारक हो मिस्टर धर... बडे़ मशहूर होते जा रहे हैं आजकल आप "


मीटिंग में जो ना हुआ वो अपराजिता मैडम ने कांफ्रेस रुम से बाहर आकर कर दिखाया। कुछ लोगों के ठहाकों की आवाज तो कईयों की मुस्कुराहटों से छलनी मेरी रुह को उस वक्त वहां से निकलना ही बेहतर लगा। ऐसा नहीं था कि मेरे पास कोई जवाब नहीं था, बस मैं बचाता था खुद को औरों की तरह बेरहम बनने से।


" सर काफी देर से आपका फोन बज रहा है "


ड्राइवर के हिलाने पर मैं खयालों से बाहर निकला और काॅल का आन्सर किया, " जी कहिये "


" अपराजिता बोल रही हूँ मिस्टर धर, क्या हम कुछ देर बात कर सकते हैं " दूसरी तरफ से आवाज आई।


" जरूर मैम "


" वो... आप बिना जवाब दिये गये तो बाद में अहसास हुआ कि मुझे ऐसे नहीं बोलना चाहिये था "


" इट्स ओके मैम, आपने कुछ गलत नहीं कहा। शोहरत मेरे पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान है। मुझे तो इवन आप सब का थैंक्स बोलना चाहिये था "


" साॅरी... वो बस इक मजा़क था और मुझे नहीं पता था कि बाकी लोग ऐसे रिएक्ट करेंगे "


" देखिये आप बेवजह परेशान हो रही हैं, मेरा यकीन करें मुझे किसी से कोई गिला नहीं है "


" चलो मैं यकीन कर लेती हूँ पर क्या आज शाम को मिल सकते है? "


" कभी भी मिल सकती हैं आप मेरे निवास पर "


अपने दिल का गुबार तो मैं कब का निकाल चुका था फिर शाम को मिलने के खयाल से रूह दुबारा से गुलजा़र होने लगी। तभी मुझे याद आया, निवास पर तो माॅम-डैड और अंकल आंटी भी होते, डर लगने लगा, कहीं वो हमारे कैजुअल मिलने को गलत इंटरप्रेट कर मुझे इंबैरश ना कर दें। आज के दिन और शर्मिंदगी उठाना नहीं चाहता था मैं इसलिए मैंने मेसेज भेजकर किसी दूसरी जगह मिलने का निवेदन किया।


भूतिया हलवाई, अलवर गेट के पास एक बेहद व्यस्त और भीड़-भाड़ वाला इलाका, यह वो जगह थी जहां आज हम मिल रहे थे। दिमाग ठनक गया था मेरा, मगर फिर याद आया, मुहब्बत में लोगों ने सर कटाए हैं, मुझे तो वहां सिर्फ लस्सी ही पीनी थी।


" बस लस्सी खरीदने के लिए बुलाया था यहां?? "


" हां, वैसे भी आपके कहवा से तो यह बेहतर ही है... ओके मैं फिर से मजा़क कर रही थी " खनकती हंसी और दिलकश मुस्कुराहट के साथ अपराजिता मैड़म ने जवाब दिया।


" कहवा!!! " मुझे समझ नहीं आया।


" इतनी भीड़ में शराब बोला तो आप फिर से नाराज हो जाते " सरगोशी से बोलते हुए मैडम ने अपनी अकलमंदी का तअारुफ कराया।


हैरान था मैं उसकी हिम्मत पर, इतनी भीड़ में, सबके सामने मेरे जैसे बदनाम शख्श के साथ, छोटी सी दुकान के सामने खडे़ होकर लस्सी पीना। खैर, जो भी हो मेरे मन की मुराद तो पूरी हो ही रही थी। कल तक जो सपने जैसा था, सोचा नहीं था इतना जल्दी सच साबित होगा। मुलाकत के दो दिन बाद जान-पहचान, तीसरे दिन बोलचाल और फिर सीधे लस्सी, सितारे बुलंद थे आज मेरे, अब देखना यह था कल मेरे साथ क्या होता है।


करीब 26 मिनट्स का वो साथ, बहुत यादगार रहा। हालांकि पहली बारी में, बातचीत ज्याती(पर्सनल) नहीं थी मगर उनका रुख कुछ ऐसा था, जैसे बचपन से वो मेरे को जानते हों। इस मुलाकात के बाद बहुत खुश रहने लगा था मैं और शाम को नशा करना भी इस डर से छोड़ दिया, कि उनका फोन-काॅल आया और जज़्बातों में गलती से कहीं मेरी जुबान फिसल जाये तब..... मसलन ऐसे ही चीजों को बेवजह पहले से अंदाजा़ लगाना... प्लान करना और फिर से अंदाजा़ लगाना... बस ऐसे ही वक्त गुजरता था मेरा।
Great setup for the story. I really loved the way this is written. Update is very well written, it is subjective but only thing I am not enjoying is the centre alignment of the text.

Although Hindi is my mother tongue but still this story has many pure hindi words which isn't my cup of tea, these words are going above my head. It isn't major issue though.

Can't wait to read story ahead.
 
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SHOTO

I am what I am
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यह वो जगह थी जो रणकपुर से उदयपुर के बीच उस रास्ते में पड़ती, जिसको उसने मेरे साथ घूमने के लिए चुना था। अपनी बेचारी "समझ" पर हंसी आ रही थी अब मुझे, सच में गधा था मैं जिसने अपराजिता की संगत को कुछ और ही मान लिया था। उसका मेरे से मिलना और घूमना एक जरिया भी तो हो सकता था उसकी पसंदीदा शख्श के होम-टाउन और उसके आसपास की जगहों से रूबरू होने का।
Ohh fuck man. The realisation of misunderstanding the situation or even false assumption is the worst, it is so frustrating that you don't know whether to cry or laugh.
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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fountain_pen भाई, कुछ निजी कारणों से आपके आखिरी अपडेट्स को पढ़ नही पाया, और उसके बाद मैंने ये थ्रेड बहुत पीछे चला गया।

लेकिन आखिरी के २ अपडेट पढ़ कर अच्छा लगा की समर और रोजदा अपनी जिंदगी में न सिर्फ अच्छे से एडजस्ट हो गए हैं, बल्कि कई सारे मोर्चों पर जीत भी रहे हैं।

अब अगले अपडेट के इंतजार में।
 
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fountain_pen भाई, कुछ निजी कारणों से आपके आखिरी अपडेट्स को पढ़ नही पाया, और उसके बाद मैंने ये थ्रेड बहुत पीछे चला गया।

लेकिन आखिरी के २ अपडेट पढ़ कर अच्छा लगा की समर और रोजदा अपनी जिंदगी में न सिर्फ अच्छे से एडजस्ट हो गए हैं, बल्कि कई सारे मोर्चों पर जीत भी रहे हैं।

अब अगले अपडेट के इंतजार में।

Its ok bro
 
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kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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मेरी पहली कहानी में भी नही था। बहुत सी कहानी ऐसी हैं, जो कल्ट टाइप हैं, बिना सेक्स की
यश भाई (लवरबॉय) की "खामोशियां" और नैन भाई की "प्यार - गम या खुशी" इन फोरम्स की सबसे अच्छी कहानियों में गिनी जाती हैं बिना सेक्स के
प्रीतम भाई की "कोई तो रोक लो" के सेक्स सीन हटवाने के लिए पाठकों ने कहा

कहानी हो तो सेक्स का मसाला जरूरी नहीं
 
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यश भाई (लवरबॉय) की "खामोशियां" और नैन भाई की "प्यार - गम या खुशी" इन फोरम्स की सबसे अच्छी कहानियों में गिनी जाती हैं बिना सेक्स के
प्रीतम भाई की "कोई तो रोक लो" के सेक्स सीन हटवाने के लिए पाठकों ने कहा

कहानी हो तो सेक्स का मसाला जरूरी नहीं

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