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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
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मैं, गुड्डी और होटल
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उनकी चंचलता और बोल्डनेस भी लाजवाब है..बहुत बहुत आभार, कैशोर्य के बिन बोले रोमांस की कुछ कुछ झलक यहाँ पर दिखती है। आप को अच्छा लगा, बहुत बहुत धन्यवाद, पहले पेज पर ही इंडेक्स है। मार्च के कारण आप शायद व्यस्त रहे होंगे, पर अब समय निकाल कर अब तक पोस्ट किये गए अपडेट पढ़ कर उन पर अपनी टिप्पणी कर दें तो आप हर अपडेट के साथ रह कर आनंद उठाएंगे।
मैं कोशिश करुँगी की हर सप्ताह एक अपडेट दूँ।
लेकिन असल में कड़ियल नाग पकड़ में आ गया...Thanks for such nice and evocative comments
गुंजा के दिल नहीं .. बिल पर हाथ रख के कसम खानी चाहिए थी...आप के हर कमेंट की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है। हर लिखने वाला यही चाहता है की पढ़ने वाले के पास रस की एक एक बूँद पहुँच जाए, विशेष रूप से इरोटिका लेखन में और आप के कमेंट पढ़ के लगता है प्रयास सफल रहा।
आभार।
और दोनों के बीच फंस कर भी लुत्फ उठा रहे हैं...गुड्डी और गूंजा की जोड़ी वास्तव में गजब है , दोनों सहेली हैं , राजदार है और मिल के आनंद बाबू की ऐसी की तैसी करती हैं।
आपके इस प्रयास को कोटि कोटि नमन...मैं कहानियों में और कभी यू ट्यूब के वीडियो से कम से कम यादों को जिन्दा रखने की कोशिश करती हूँ
अरमानों का पिटारा खुल जाएगा...ऐसी होली सब पाठकों की हो
दो किशोरियां एक प्रौढ़ा
मतलब आनंद बाबू सब तरफ से रगड़े जाएंगे..मैनेजमेंट स्कूल में जो कराया जाता है वो सब कराया चंदा भाभी ने
खुद की केस स्टडी समझाया की जब वो गूंजा से, गुड्डी की मझली बहिनिया से भी छोटी थीं तब ही उनके जीजा ने वह किया जो हर जीजा को छोटी साली के साथ करना चाहिए।
कुंआ और पनिहारिन का उदाहरण देकर समझाया
खुद गुड्डी या किसी भी अक्षत योनि वाली किशोरी का रोल प्ले कर के समझाया।
मोटिवेशन, इंशियेटिव सब कुछ
और रही झिझक तो वो होली में जो समर जॉब टाइप फील्ड ट्रेनिंग होती है वो भी करा देंगी, दिन दहाड़े सब के सामने स्ट्रिपटीज करा के।
आप बात- बात में हीं कहानी के प्लाट में काफी इम्प्रूवमेंट ढूंढ लेती हैं...शिष्य पहले सीख करके पारंगत हो जाए, इम्तहान में पास हो जाए, और इम्तहान तो रात में गुड्डी लेगी,
तब गुरु दक्षिणा का नंबर आएगा।
लेकिन आपने अच्छा याद दिलाया अब इसे भी रफ़ूगीरी में जोड़ना पडेगा।
ये उदहारण और साथ में आनंद बाबू से हामी भरवाना...मनोविश्लेषक जैसे मन की गाँठ समझता है, अँधेरे गलियारे में घूमता है फिर एक एक करके गांठे खोलता है एकदम उसी तरह से चंदा भाभी, आनंद बाबू के मन की गांठे खोल रही है।
दो गांठे तो बहुत कड़ी और साफ़ है, एक तो अभी छोटी है और दूसरे गुड्डी के अलावा किसी दूसरे के साथ और दोनों को सोदारहण समझाया चंदा भाभी ने , एक में खुद का उदाहरण देकर और एक में कुंवा और पनिहारिन का।
आई लव यू, बोलकर उसकी कॉपी एक जगह और बी सी सीसी ५ जगह करना निश्चित रूप से गलत है , गुड्डी को चीट करके उससे झूठ बोल के एकदम गड़बड़ ,
लेकिन जहाँ गुड्डी खुद ग्रीन सिग्नल दे रही हो, वहां भी पीछे हटना, जहाँ गुड्डी भी गलत नहीं मान रही वहां भी घबड़ाना, ये ठीक नहीं है .
दो और परेशानियां आनंद बाबू टाइप अच्छे बच्चो में होती है ( जिन की तादाद इस फोरम में कम है लेकिन असल दुनिया में मिल जाती है, ज्यादा नहीं तो भी )
एक तो अच्छे बच्चे के इमेज में कैद होना
दूसरा लोग क्या कहेंगे
और चंदा भाभी की पाठशाला ने इसका भी इलाज किया।
'अभी छोटी है' वाली झिझक और गडबड तो धीरे-धीरे हट रही है...एकदम फगुनहट है बनारस है , ससुराल है कच्ची अमिया वाली साली है , सलहज हैं उसके बाद भी शिकार न कर पाएं तो गड़बड़ है , इसलिए तो साफ़ साफ बता दिया चंदा भाभी, ने एक प्यासे की प्यास बुझाने से न कुंआ झुराता है न पनिहारिन की गगरी खाली होती है।