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फागुन के दिन चार -भाग १०
रीत - म्यूजिक, मस्ती, डांस
१,२५,४१६
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अंदर से बनारस की गोरी आवाज दे रही थी, आओ न मैं म्यूजिक लगा रही हैं। मैं कौन था जो होरी में गोरी को मना करता, मैं रीत के पास.
--
रीत म्यूजिक सिस्टम की एक्सपर्ट थी। झट से उसने सेट कर दिया, और बोली- “कोई सीडी होती तो लगाकर चेक कर लेते…”
“सही कह रही हो। देखता हूँ…” मैं बोला- “कल रात मैंने देखा था…” तभी मिल गईं वहीं मेज के नीचे, और एक मैंने उसे दे दिया।
झुक के वो लगा रही थी लेकिन मेरी निगाहें उसके नितम्बों से चिपकी थी, गोल मटोल परफेक्ट। लगता था उसकी पाजामी को फाड़कर निकल जायेंगी और उसके बीच की दरार, एकदम कसी-कसी। बस मन कर रहा था की ठोंक दूं। उसी दरार में डाल दूं । क्या मस्त गाण्ड थी।
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आनंद बाबू पर बनारसी भांग का नशा चढ़ रहा था, आँखे गुलाबी हो रही थीं। गोदौलिया वाले नत्था के एक गुलाबजामुन का असर इतना होता था की भौजाइयां देवरों को खिला के अपने नन्द पर चढ़ा देती थीं और रीत के दहीबड़े में तो उसका दुगना और फिर दो दहीबड़े तो चौगुना भांग आनंद बाबू के अंदर पहुँच चुकी थी और अब धीरे धीरे उनके सर पर सोच पर चढ़ रही थी, ऊपर से रात भर की चंदा भाभी की सीख, किसी की प्यास बुझाने से न पनिहारिन का घड़ा खाली होता है न कुंवा सूखता है, और सामने खड़ी पनिहारिन की आँखे खुद उन्हें बुला रही थीं, उकसा रही थीं और उसके जोबन, उफ़,
आनंद बाबू के हाथों ने जबसे गुंजा की हवा मिठाई का स्वाद लिया था, खुद ढक्क्न उठा के कैसे दर्जा नौ वाली ने अपने आते जोबन उन्हें पकड़ा दिए थे,
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और अब रीत के उभार, ये तो और भी, जैसे सामने पहाड़ देख के पर्वतारोही के पांव आपने आप उठ जाते हैं, ऐसे मस्त जोबन देख के उनके हाथ भी खुजला रहे थे,
भांग का नशा, रीत के जोबन का नशा और रात में चंदा भाभी के जोबन को रगड़ा मसला और सुबह सुबह गुंजा ऐसी किशोरी का,… तो ये किशोरी रीत, उसके जोबन, सारी झिझक, हिचक भांग में धीरे धीरे घुल रही थी और सामने बस मस्त रीत थी, उसके गदराये जोबन, भरे भरे हिप्स थे
तब तक वो उठकर खड़ी हो गई। उसकी आँखों ने नशा झलक रहा था। झुक के उसने ग्लास उठाया और होंठों से खुद लगाकर एक बड़ी सी सिप ले ली।
क्या जोबन रसीले। बस मन कर रहा था की दबा दूं, चूस लूं और तब तक म्यूजिक चालू हो गया।
भांग का असर अब रीत पर भी पड़ रहा था, गुलाबजामुन के साथ स्प्राइट में भी तो आधी वोदका मिली थी।
अनारकली डिस्को चली,
अरे छोड़ छाड़ के अपने सलीम की गली,
अरे होए होए। छोड़ छाड़ के अपने सलीम की गली।
साथ-साथ रीत भी थिरकने लगी।
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मैं खड़ा देख रहा था।
वो मस्त नाचती थी। क्या थिरकन, लय। और जिस तरह अपने जोबन को उभारती थी। जोबन थे भी तो उसके मस्त गदराये। दुपट्टा उसने उतारकर टेबल पे रख दिया था। उसने मेरा हाथ पकड़कर खींच लिया, और बोली-
“ये दूर-दूर से क्या देख रहे हो? आओ ना…”
और साथ में टेबल से फिर वोदका मिली स्प्राईट का एक बड़ा सिप ले लिया।
साथ में मैं भी थिरकने लगा। मुझे पता भी नहीं चला कब मेरा हाथ उसके चूतड़ों पे पहुँचा। पहले तो हल्के-हल्के, फिर कसकर मैं उसके नितम्बों को सहला रहा था, रगड़ रहा था। वो भी अपने कुल्हे मटका रही थी, कमर घुमा रही थी। कभी हम दोनों पास आ जाते कभी दूर हो जाते। उसने भी मुझे पकड़ लिया था और ललचाते हुए अपने रसीले जोबन कभी मेरे सीने पे रगड़ देती, और कभी दूर हटा लेती।
मुझसे नहीं रहा गया।
मैंने उसे पास खींचकर अपना हाथ उसकी पाजामी में डाल दिया। कुछ देर तक वो लेसी पैंटी के ऊपर और फिर सीधे उसके चूतड़ पे। मेरे एक हाथ ने उसे जकड़ रखा था। दूसरा उसके नितम्बों के ऊपर सहला रहा था, मसल रहा था, उसे पकड़कर ऊपर उठा रहा था। उसने कुछ ना-नुकुर की लेकिन मेरे होंठों ने उन्हें कसकर जकड़ लिया.
रीत के टाइट कुर्ती से जिस तरह उसके जोबन फाड् रहे थे, मुझसे नहीं रहा गया, एक हाथ पजामी के अंदर उसके नितम्बों को सहला मसल रहा था और दूसरा उसके उभारों पर
डांस करते हुए रीत ने मेरे हाथ को अपने उभार पे पकड़ लिया और कस के दबा दिया, जैसे सुबह गुंजा ने मेरे झिझक समझ के खुद मेरा हाथ पकड़ के, अपने ढक्क्न के अंदर सीधे अपनी हवा मिठाई पे,
हम दोनों म्यूजिक पे थिरक रहे थे और मेरे दोनों हाथ, एक उभारों का और दूसरा नितम्बों का रस ले रहा था
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और मन में कल की गुड्डी और चंदा भाभी की बातें याद आ रही थी, गुड्डी की मम्मी मेरा मतलब मम्मी, नीचे दूबे भाभी से मिलने चली गयीं थी
और चंदा भाभी, और गुड्डी खुल के बात कर रहे थे।
चंदा भाभी ने मुझे समझाया, " अरे देवर जी, ससुराल में मांगते नहीं है सीधे ले लेते हैं, और क्या इससे बोलोगे, ' में आई कम इन मैडम " गुड्डी की ओर इशारा कर के बोली। उन्हें मेरा और गुड्डी का चक्कर पता चल गया था, फिर जोड़ा,
" जब इससे नहीं पूछोगे, तो इसकी बहन, भाभी और ससुराल में कोई भी हो, क्यों पूछोगे ? अरे कहीं गलती से पूछ लिया न तो इसी की नाक कटेगी, की इसका वाला कितना बुद्धू है "
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और शाम को बाजार में गुड्डी जब मुझे चंदा भाभी के साथ करने के लिए उकसा रही थी उसी समय उसने साफ़ साफ़ बोल दिया,
" यार, चाहे तेरी ससुराल वाले हों या मेरी, मेरी ओर से दोनों के लिए ग्रीन सिग्नल एडवांस में है, ये मत सोचना की मैं क्या सोचूंगी हाँ कुछ नहीं किया तो मैं सोचूंगी, अब तक सैकड़ों बार पजामें में नाली में गिराया होगा, अगर मेरी भाभी, मेरी बहन में दो बूँद गिरा दिया तो क्या कम हो जाएगा तेरा, हां उनको भी अंदाज लग जाएगा की मेरा वाला कैसा है। और दिल तो तेरा मेरा पास है , एक जन्म के लिए नहीं सात जन्म के लिए तो जो तेरे पास नहीं, उसका क्या खतरा, बार बार मैं बोलूंगी नहीं। "
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और मैं रीत के जोबन और नितम्ब दोनों डांस के साथ साथ कस के रगड़ मसल रहा था,
मैं भी अपने आपे में नहीं था। मुझे लगा की मैं हवा में उड़ रहा हूँ। कभी लगता की बस जो कर रहा हूँ। वही करता रहूँ। इस कैटरीना के होंठ चूसता रहूँ।
रीत भी साथ दे रही थी। उसके होंठ भी मेरे होंठ चूस रहे थे। उसकी जीभ मेरी जीभ से लड़ रही थी, और सबसे बढ़ कर वो अपना सेंटर, योनि स्थल, काम केंद्र मेरे तन्नाये हुए जंगबहादुर से खुलकर रगड़ रही थी।
हम दोनों अब अच्छी तरह से भांग के नशे में थे।
चंदा भाभी ने मुझे रात को जो ट्रेनिग दी थी। बस मैंने उसका इश्तेमाल शुरू कर दिया, मल्टिपल अटैक। एक साथ मेरे होंठ उसके होंठ चूस रहे थे, मेरा एक हाथ उसका जोबन मसल रहा था तो दूसरा उसके नितम्बों को रगड़ रहा था मेरा मोटा खूंटा सीधे उसके सेंटर पे।
रीत पिघल रही थी, सिसक रही थी।
रीत - म्यूजिक, मस्ती, डांस
१,२५,४१६
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अंदर से बनारस की गोरी आवाज दे रही थी, आओ न मैं म्यूजिक लगा रही हैं। मैं कौन था जो होरी में गोरी को मना करता, मैं रीत के पास.
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रीत म्यूजिक सिस्टम की एक्सपर्ट थी। झट से उसने सेट कर दिया, और बोली- “कोई सीडी होती तो लगाकर चेक कर लेते…”
“सही कह रही हो। देखता हूँ…” मैं बोला- “कल रात मैंने देखा था…” तभी मिल गईं वहीं मेज के नीचे, और एक मैंने उसे दे दिया।
झुक के वो लगा रही थी लेकिन मेरी निगाहें उसके नितम्बों से चिपकी थी, गोल मटोल परफेक्ट। लगता था उसकी पाजामी को फाड़कर निकल जायेंगी और उसके बीच की दरार, एकदम कसी-कसी। बस मन कर रहा था की ठोंक दूं। उसी दरार में डाल दूं । क्या मस्त गाण्ड थी।
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आनंद बाबू पर बनारसी भांग का नशा चढ़ रहा था, आँखे गुलाबी हो रही थीं। गोदौलिया वाले नत्था के एक गुलाबजामुन का असर इतना होता था की भौजाइयां देवरों को खिला के अपने नन्द पर चढ़ा देती थीं और रीत के दहीबड़े में तो उसका दुगना और फिर दो दहीबड़े तो चौगुना भांग आनंद बाबू के अंदर पहुँच चुकी थी और अब धीरे धीरे उनके सर पर सोच पर चढ़ रही थी, ऊपर से रात भर की चंदा भाभी की सीख, किसी की प्यास बुझाने से न पनिहारिन का घड़ा खाली होता है न कुंवा सूखता है, और सामने खड़ी पनिहारिन की आँखे खुद उन्हें बुला रही थीं, उकसा रही थीं और उसके जोबन, उफ़,
आनंद बाबू के हाथों ने जबसे गुंजा की हवा मिठाई का स्वाद लिया था, खुद ढक्क्न उठा के कैसे दर्जा नौ वाली ने अपने आते जोबन उन्हें पकड़ा दिए थे,
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और अब रीत के उभार, ये तो और भी, जैसे सामने पहाड़ देख के पर्वतारोही के पांव आपने आप उठ जाते हैं, ऐसे मस्त जोबन देख के उनके हाथ भी खुजला रहे थे,
भांग का नशा, रीत के जोबन का नशा और रात में चंदा भाभी के जोबन को रगड़ा मसला और सुबह सुबह गुंजा ऐसी किशोरी का,… तो ये किशोरी रीत, उसके जोबन, सारी झिझक, हिचक भांग में धीरे धीरे घुल रही थी और सामने बस मस्त रीत थी, उसके गदराये जोबन, भरे भरे हिप्स थे
तब तक वो उठकर खड़ी हो गई। उसकी आँखों ने नशा झलक रहा था। झुक के उसने ग्लास उठाया और होंठों से खुद लगाकर एक बड़ी सी सिप ले ली।
क्या जोबन रसीले। बस मन कर रहा था की दबा दूं, चूस लूं और तब तक म्यूजिक चालू हो गया।
भांग का असर अब रीत पर भी पड़ रहा था, गुलाबजामुन के साथ स्प्राइट में भी तो आधी वोदका मिली थी।
अनारकली डिस्को चली,
अरे छोड़ छाड़ के अपने सलीम की गली,
अरे होए होए। छोड़ छाड़ के अपने सलीम की गली।
साथ-साथ रीत भी थिरकने लगी।
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वो मस्त नाचती थी। क्या थिरकन, लय। और जिस तरह अपने जोबन को उभारती थी। जोबन थे भी तो उसके मस्त गदराये। दुपट्टा उसने उतारकर टेबल पे रख दिया था। उसने मेरा हाथ पकड़कर खींच लिया, और बोली-
“ये दूर-दूर से क्या देख रहे हो? आओ ना…”
और साथ में टेबल से फिर वोदका मिली स्प्राईट का एक बड़ा सिप ले लिया।
साथ में मैं भी थिरकने लगा। मुझे पता भी नहीं चला कब मेरा हाथ उसके चूतड़ों पे पहुँचा। पहले तो हल्के-हल्के, फिर कसकर मैं उसके नितम्बों को सहला रहा था, रगड़ रहा था। वो भी अपने कुल्हे मटका रही थी, कमर घुमा रही थी। कभी हम दोनों पास आ जाते कभी दूर हो जाते। उसने भी मुझे पकड़ लिया था और ललचाते हुए अपने रसीले जोबन कभी मेरे सीने पे रगड़ देती, और कभी दूर हटा लेती।
मुझसे नहीं रहा गया।
मैंने उसे पास खींचकर अपना हाथ उसकी पाजामी में डाल दिया। कुछ देर तक वो लेसी पैंटी के ऊपर और फिर सीधे उसके चूतड़ पे। मेरे एक हाथ ने उसे जकड़ रखा था। दूसरा उसके नितम्बों के ऊपर सहला रहा था, मसल रहा था, उसे पकड़कर ऊपर उठा रहा था। उसने कुछ ना-नुकुर की लेकिन मेरे होंठों ने उन्हें कसकर जकड़ लिया.
रीत के टाइट कुर्ती से जिस तरह उसके जोबन फाड् रहे थे, मुझसे नहीं रहा गया, एक हाथ पजामी के अंदर उसके नितम्बों को सहला मसल रहा था और दूसरा उसके उभारों पर
डांस करते हुए रीत ने मेरे हाथ को अपने उभार पे पकड़ लिया और कस के दबा दिया, जैसे सुबह गुंजा ने मेरे झिझक समझ के खुद मेरा हाथ पकड़ के, अपने ढक्क्न के अंदर सीधे अपनी हवा मिठाई पे,
हम दोनों म्यूजिक पे थिरक रहे थे और मेरे दोनों हाथ, एक उभारों का और दूसरा नितम्बों का रस ले रहा था
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और मन में कल की गुड्डी और चंदा भाभी की बातें याद आ रही थी, गुड्डी की मम्मी मेरा मतलब मम्मी, नीचे दूबे भाभी से मिलने चली गयीं थी
और चंदा भाभी, और गुड्डी खुल के बात कर रहे थे।
चंदा भाभी ने मुझे समझाया, " अरे देवर जी, ससुराल में मांगते नहीं है सीधे ले लेते हैं, और क्या इससे बोलोगे, ' में आई कम इन मैडम " गुड्डी की ओर इशारा कर के बोली। उन्हें मेरा और गुड्डी का चक्कर पता चल गया था, फिर जोड़ा,
" जब इससे नहीं पूछोगे, तो इसकी बहन, भाभी और ससुराल में कोई भी हो, क्यों पूछोगे ? अरे कहीं गलती से पूछ लिया न तो इसी की नाक कटेगी, की इसका वाला कितना बुद्धू है "
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मैं भी अपने आपे में नहीं था। मुझे लगा की मैं हवा में उड़ रहा हूँ। कभी लगता की बस जो कर रहा हूँ। वही करता रहूँ। इस कैटरीना के होंठ चूसता रहूँ।
रीत भी साथ दे रही थी। उसके होंठ भी मेरे होंठ चूस रहे थे। उसकी जीभ मेरी जीभ से लड़ रही थी, और सबसे बढ़ कर वो अपना सेंटर, योनि स्थल, काम केंद्र मेरे तन्नाये हुए जंगबहादुर से खुलकर रगड़ रही थी।
हम दोनों अब अच्छी तरह से भांग के नशे में थे।
चंदा भाभी ने मुझे रात को जो ट्रेनिग दी थी। बस मैंने उसका इश्तेमाल शुरू कर दिया, मल्टिपल अटैक। एक साथ मेरे होंठ उसके होंठ चूस रहे थे, मेरा एक हाथ उसका जोबन मसल रहा था तो दूसरा उसके नितम्बों को रगड़ रहा था मेरा मोटा खूंटा सीधे उसके सेंटर पे।
रीत पिघल रही थी, सिसक रही थी।
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