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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २७

मैं, गुड्डी और होटल

is on Page 325, please do read, enjoy, like and comment.
 
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komaalrani

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बहुत बहुत धन्यवाद मित्र 😊🙏
स्वागत है आपका इस सूत्र पर और ढेर सारी बधाइयां इस पुरस्कार के लिए

मुझे विश्वास है इस से आपकी कथायात्रा को और बल और संबल मिलेगा और आप नयी ऊंचाइयां छुएंगे।

:congrats::congrats::congrats::congrats:
 

komaalrani

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पाठकों के कमेंट... और उन कमेंट्स को याद रखते हुए उनका कहानी में समावेश...
सचमुच विलक्षण प्रतिभा है...
:thanks: :thanks: :thanks: :thanks:
 

komaalrani

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होली में गोरी और गारी का बहुत महत्व है...
और पहली मुलाकात में हीं रीत ने जो गारियों से नवाजा है...
वो आनंद बाबू न रीत को भूल पाएंगे और न हीं इस होली को...
ससुराल की गारियाँ भूले जाने के लिए होती भी नहीं, खाना ससुराल का कितना भी स्वादिष्ट हो, बिना गारी खाना फीका रहता है जैसे बिन साली सलहज ससुराल अधूरी रहती है।
 

komaalrani

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क्या हीं डिडक्टिव रीजनिंग लगाया है...
और कैसे कन्क्लूजन पर पहुँचते हैं...
रीत ने तो चारों खाने चित कर दिया....
इन सब चीजों के लिए कॉमन सेंस जरुरी है ना कि पढ़ा लिखा होना...
आखिर चंदा भाभी ने एक नजर में भांप लिया...
और इस भाग से रीत की ऑब्जर्वेशन पावर, विश्लेषण क्षमता और पल भर में सब कुछ भांप के निष्कर्ष पर पहुँचने की शक्ति की झलक दिखती है जो आगे के भागों में साफ़ दिखेगी, इसलिए इस भाग का अधिकांश हिस्सा रीत के व्यक्तित्व के उन पहलुओं से जुड़ा है जो पहले शुरू में नहीं दिखे थे लेकिन बाद में थ्रिलर वाले हिस्से में अच्छी तरह से स्पष्ट हुए इसलिए ये सारे पार्ट रफ़ूगीरी के तौर पर जोड़े गए है।

रीत का बिंदास बनारसी बाला का भी रूप है, खुल के मस्ती लेने वाला भी और ये सब भाग उसे बैलेंस करते हैं, उसके बहुआयामी व्यक्तित्व की झलक देते हैं
 

komaalrani

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अभी आनंद बाबू की ट्रेनिंग अधूरी है....
मगज अस्त्र का इस्तेमाल और घटनाओं को समझने के लिए रीत से ट्रेनिंग लेना अनिवार्य है...
इसके बिना कोई गति नहीं....
कैसे ट्रेन से आना और गुलाब जामुन की कहानी की हवा निकाल दी .. एक मिनट के अंदर,,,
शर्लाक होम्स की तरह ऑब्जर्वेशन पावर को दिखाने के लिए उनकी मशहूर पुस्तक साइन आफ फॉर का एक कोटेशन इस में इस्तेमाल किया गया है लेकिन रीत ने ब्रेकफास्ट टेबल पर पानी वाले मामले में इस्तेमाल किया। फेलू दा और उनके जनक सत्यजीत राय भी होम्स के फैन थे।

और आनंद बाबू को भी पता चल गया की बनारसी बालाओं के सामने सरेंडर ही कर देना श्रेयस्कर होता है,
 

komaalrani

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ओह्ह्ह.. फेलू दा पर क्विज़...
यूपीएससी से ज्यादा टफ इंटरव्यू था...
और एक कारण यह भी है की रीत और आनंद बाबू की तरह मैं भी सत्यजीत राय की फैन हूँ और इसलिए इस फोरम में भी मैंने एक थ्रेड उनके नाम पर उन्हें ट्रिब्यूट के तौर पर शुरू किया था।
 

komaalrani

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" कल अब नहीं है, आनेवाला कल भी नहीं है, बस आज है, बल्कि अभी है, उसे ही मुट्ठी में बाँध लो, उसी का रस लो, यह पल बस, "
भूतनाथ की मंगल होरी, देख सिहायें ब्रज की गोरी।
धन धन नाथ अघोरी, दिगंबर मसाने में खेले होरी।
यही सब बातें आपकी कहानी को अनूठा और विशिष्ट बनाती है....

साथ में संदेश भी....
यह भाग वास्तव में सबसे अलग था और कबीर और एक टिपिकल बनारस की होरी से मैंने रीत कैसे सोचती होगी, क्या देखने का नजरिया होगा ये दिखाने की कोशिश की,

मृत्यु के बीच, जीवन

जो नहीं शेष है , जो नहीं रहेगा उनके बीच का यह पल ' जो है ' उतना ही सत्य है जितना जो नहीं है या जो नहीं रहेगा

इसलिए मैंने कबीर का वो भजन मुर्दों का गाँव भी उद्धृत किया।
 

komaalrani

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Carry0

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मोहब्बत उसीसे होती है ,जिससे हमारा मन मिल जाए,

मोहब्बत आत्माओं का मिलन है , चाह नही होती के तन मिल जाए,

मोहब्बत में कुछ पाने का नही कुछ करने का, कुछ देने का मन रहता है, ये आश ही नहीं रहती के वो मिल जाए,

हम जिससे मोहब्बत करते हैं हर दम यही कोशिश रहती है कि बस उसकी एक झलक मिल जाए,

 

Delta101

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Thanks so much, will post a long reply after the next post which most probably i will post in a day or two.

No problem, take your time with the next post. Looking forward to reading your reply.


story is, It's a hard rain, title is based on a Bob Dylan's famous song.
I've read this long ago......waiting for more pieces like this
 
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