Premkumar65
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Wonderful writing Komal ji. No words to describe your excellence.रीत -भाभी नहीं, ....
हम दोनों ऐसे चिपके थे की बगल से भी नहीं दिख सकता था की हमारे हाथ क्या कर रहे हैं?
रीत दहीबड़े की प्लेट लायी थी और साथ में बैग में कुछ। गुड्डी उसे ही देख रही थी और बीच-बीच में हम लोगों को। रीत ने उसे हम लोगों को देखते हुए पकड़ लिया और मुझसे बोली-
“हे जरा सून्घों कहीं। कहीं कुछ जलने की, सुलगने की महक आ रही है…”
मैंने अबकी गुड्डी को दिखाते हुए रीत के उभार हल्के से दबा दिए और बोला- “शायद। थोड़ा-थोड़ा आ रही है…”
गुड्डी भी वो समझ रही थी की हम लोग क्या कह रहे हैं? वो बोली- “लगे रहो, लगे रहो…” और रीत की ओर मुँह करके बोली-
“हे जो सुलगने वाली चीज होती है ना मैंने पहले ही साफ सूफ कर दी है…”
तीनों हँस दिए।
“फेविकोल का जोड़ है इत्ती आसानी से नहीं छूटेगा…” रीत बोली।
“अचछा नए-नए देवरजी। अपनी भाभी को सिर्फ पकड़ा पकड़ी ही करियेगा या कुछ खिलाइए, पिलाइएगा भी?”
मैं गुड्डी का मतलब समझ गया। एक बार वो जो ड्रिंक्स मैंने बनाए थे और नत्था का गुलाब जामुन डबल डोज वाला, लेकिन वो चिड़िया इतनी आसानी से चारा घोंटने वाली नहीं थी। हम दोनों अलग हो गए।
वो मुझसे पूछने लगी- “हे आप मेरा मतलब, तुम। अभी…” उसने मुझसे बात की शुरूआत की।
मैंने कुछ बोलने की कोशिश की तो उसने रोक दिया, मैं मान गया टिपिकल गुड्डी की दी, एकदम गुड्डी जैसे, पहले पूछेगी, फिर बोलो तो बोलने नहीं देगी, अपनी ही सुनाएगी।
“ना ना वो तो मुझे मालूम है। ये चुहिया हम सबको आपके बारे में बताती रहती है…” गुड्डी की ओर इशारा करके वो बोली।
गुड्डी झेंप गई जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो।
“इस चुहिया ने मुझे आप मेरा मतलब है तुम्हारे बारे में ये…” मैं बोला।
गुड्डी जोर से चिल्लाई- “हे ये मेरी दीदी हैं। चुहिया कहें या चाहे जो लेकिन आप…”
“ओके, बाबा। मैं अपनी बात वापस लेता हूँ…” मैं बोला और फिर कहा- “ गुड्डी ने ये बोला था की। आप मेरा मतलब तुमने इंटर-कोर्स किया है…”
“इंटर-कोर्स। नहीं इंटर का कोर्स…” मुँह बनाकर रीत बोली।
गुड्डी मुश्कुरा रही थी।
“तो क्या तुमने अभी तक इंटरकोर्स नहीं किया। चचच्च…” मैं बड़े सीरियस अंदाज में बोला।
“कैसे करती। तुम तो अभी तक मिले नहीं थे…”
वो भी उसी तरह मुँह बनाकर बोली।
मैं समझ गया की ये चीज बड़ी है मस्त मस्त। मैंने मुश्कुराते हुए पूछा- “आगे का क्या प्रोग्राम है?”
“अब तुम्हारे ऐसा देवर मिल गया है। तो हो जाएगा…” खिलखिलाते हुए वो बोली।
“तुम लोग ना। सिंगल ट्रैक माइंड। बिचारे बदनाम लड़के होते हैं। अरे मेरा मतलब था की पढाई का लेकिन तुम्हारे दिमाग में तो…” चिढ़ाते हुए मैंने कहा।
कुछ खीझ से कुछ मजे लेकर मेरा कान पकड़कर वो बोली- “फिलहाल तो आगे का प्रोग्राम तुम्हारी पिटाई करने का है…”
“एकदम-एकदम। मैं भी साथ दूंगी। कहो तो डंडा वंडा ले आऊं?” गुड्डी भी उसका साथ देते बोली।
बिना मेरा कान छोड़े वो बोली- “अरे यार आगे का प्रोग्राम “बी॰काम॰, बैचलर आफ कामर्स…कर रही हूँ , सेकेण्ड ईयर है ” वो मुश्कुराकर बोली। मेरा कान अब फ्री हो गया था।
“ओके। तो आप कामरस में ग्रजुएशन करेंगी? सही है। सही है…” कहकर ऊपर से नीचे तक मैंने उसे देखा। उसके टाईट कुरते में कैद जोबन पे मेरी निगाह टिक गईं-
“सही है। सिर से पैर तक तो तुम कामरस में डूबी हो। हे मुझे भी कुछ पढ़ा देना। कामरस। आम-रस। मैं तो रसिया हूँ रस का…” मेरी निगाहें उसके उरोजों से चिपकी थीं।
वो समझ रही थी की मैं किस आम-रस की बात कर रहा हूँ। वो भी उसी अंदाज में बोली-
“अरे आम-रस चाहिए तो पेड़ पे चढ़ना पड़ता है। आम पकड़ना पड़ता है…”
“अरे मैं तो चढ़ने के लिए भी तैयार हूँ, और पकड़ने के लिए भी, बस एक बार खाली मुँह लगाने का मौका मिल जाए…” मैंने कहा।
एक जबरदस्त अंगड़ाई ली कैटरीना ने। दोनों कबूतर लगता था छलक के बाहर आ जायेंगे-
“इंतजार। उम्मीद पे दुनियां कायम है क्या पता। मिल ही जाय कभी?” वो जालिम इस अदा से बोली की मेरी जान ही निकल गई।
“हे अपनी भाभी का बात से ही पेट भरोगे…” गुड्डी ने फिर मुझे इशारा किया।
“नहीं मैं खिलाऊँगी इन्हें। सुबह से इत्ती मेहनत से दहीबड़े बनाये हैं…” रीत बोली और दहीबड़े की प्लेट के पास जाकर खड़ी हो गई।
“नहींईई…” मैं जोर से चिल्ल्लाया- “सुबह गुंजा और इसने मेहनत करके अभी तक मेरे मुँह में…”
गुड्डी बड़ी जोर से हँसी। उसकी हँसी रुक ही नहीं रही थी।
“अरे मुझे भी तो बता?” रीत बोली।
हँसते, रुकते किसी तरह गुड्डी ने उसे सुबह की ब्रेड रोल की, किस तरह उसने और गुंजा ने मिलकर मेरी ऐसी की तैसी की? सब बताया। अब के रीत हँसने की बारी थी।
भाभी वाले रिश्ते में मुझे भी कुछ अड़बड़ लग रहा था, लेकिन बोली रीत ही,
" यार, भाभी की तो शादी होनी चाहिए, कुँवारी भाभी में अटपट लगता है, और असली रिश्ता है ये जो चुहिया है जिसे तुम हरदम के लिए चूहेदानी में बंद करना चाहते हो, मेरी छोटी बहन भी है , सहेली भी, इसलिए साली, "
गुड्डी ने बात काट दी, ' सिर्फ साली नहीं, बड़ी साली, "
" अरे यार रगड़ाई करने से मतलब, ये बेचारा इस अच्छे मौके पे बनारस आया है तो रगड़ाई तो मैं करुँगी, चाहे भौजी के रिश्ते से, चाहे साली के रिश्ते से, " वो बोली,
रगड़ाई तो इनकी गूंजा ने ही सुबह सुबह शुरू कर, मिर्च वाले ब्रेड रोल से, गुड्डी हँसते हुए बोली।
“बनारस में बहुत सावधान रहने की जरूरत है…” मैं बोला।
“एकदम बनारसी ठग मशहूर होते हैं…” रीत बोली।
“पर यहां तो ठगनियां हैं। वो भी तीन-तीन। कैसे कोई बचे?” मैं बोला।