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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २७

मैं, गुड्डी और होटल

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Premkumar65

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रीत -भाभी नहीं, ....
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हम दोनों ऐसे चिपके थे की बगल से भी नहीं दिख सकता था की हमारे हाथ क्या कर रहे हैं?


रीत दहीबड़े की प्लेट लायी थी और साथ में बैग में कुछ। गुड्डी उसे ही देख रही थी और बीच-बीच में हम लोगों को। रीत ने उसे हम लोगों को देखते हुए पकड़ लिया और मुझसे बोली-

“हे जरा सून्घों कहीं। कहीं कुछ जलने की, सुलगने की महक आ रही है…”

मैंने अबकी गुड्डी को दिखाते हुए रीत के उभार हल्के से दबा दिए और बोला- “शायद। थोड़ा-थोड़ा आ रही है…”


गुड्डी भी वो समझ रही थी की हम लोग क्या कह रहे हैं? वो बोली- “लगे रहो, लगे रहो…” और रीत की ओर मुँह करके बोली-


“हे जो सुलगने वाली चीज होती है ना मैंने पहले ही साफ सूफ कर दी है…”


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तीनों हँस दिए।

“फेविकोल का जोड़ है इत्ती आसानी से नहीं छूटेगा…” रीत बोली।

“अचछा नए-नए देवरजी। अपनी भाभी को सिर्फ पकड़ा पकड़ी ही करियेगा या कुछ खिलाइए, पिलाइएगा भी?”

मैं गुड्डी का मतलब समझ गया। एक बार वो जो ड्रिंक्स मैंने बनाए थे और नत्था का गुलाब जामुन डबल डोज वाला, लेकिन वो चिड़िया इतनी आसानी से चारा घोंटने वाली नहीं थी। हम दोनों अलग हो गए।

वो मुझसे पूछने लगी- “हे आप मेरा मतलब, तुम। अभी…” उसने मुझसे बात की शुरूआत की।


मैंने कुछ बोलने की कोशिश की तो उसने रोक दिया, मैं मान गया टिपिकल गुड्डी की दी, एकदम गुड्डी जैसे, पहले पूछेगी, फिर बोलो तो बोलने नहीं देगी, अपनी ही सुनाएगी।


“ना ना वो तो मुझे मालूम है। ये चुहिया हम सबको आपके बारे में बताती रहती है…” गुड्डी की ओर इशारा करके वो बोली।

गुड्डी झेंप गई जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो।



“इस चुहिया ने मुझे आप मेरा मतलब है तुम्हारे बारे में ये…” मैं बोला।

गुड्डी जोर से चिल्लाई- “हे ये मेरी दीदी हैं। चुहिया कहें या चाहे जो लेकिन आप…”



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“ओके, बाबा। मैं अपनी बात वापस लेता हूँ…” मैं बोला और फिर कहा- “ गुड्डी ने ये बोला था की। आप मेरा मतलब तुमने इंटर-कोर्स किया है…”

“इंटर-कोर्स। नहीं इंटर का कोर्स…” मुँह बनाकर रीत बोली।

गुड्डी मुश्कुरा रही थी।

“तो क्या तुमने अभी तक इंटरकोर्स नहीं किया। चचच्च…” मैं बड़े सीरियस अंदाज में बोला।

“कैसे करती। तुम तो अभी तक मिले नहीं थे…”

वो भी उसी तरह मुँह बनाकर बोली।
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मैं समझ गया की ये चीज बड़ी है मस्त मस्त। मैंने मुश्कुराते हुए पूछा- “आगे का क्या प्रोग्राम है?”

“अब तुम्हारे ऐसा देवर मिल गया है। तो हो जाएगा…” खिलखिलाते हुए वो बोली।

“तुम लोग ना। सिंगल ट्रैक माइंड। बिचारे बदनाम लड़के होते हैं। अरे मेरा मतलब था की पढाई का लेकिन तुम्हारे दिमाग में तो…” चिढ़ाते हुए मैंने कहा।

कुछ खीझ से कुछ मजे लेकर मेरा कान पकड़कर वो बोली- “फिलहाल तो आगे का प्रोग्राम तुम्हारी पिटाई करने का है…”

“एकदम-एकदम। मैं भी साथ दूंगी। कहो तो डंडा वंडा ले आऊं?” गुड्डी भी उसका साथ देते बोली।

बिना मेरा कान छोड़े वो बोली- “अरे यार आगे का प्रोग्राम “बी॰काम॰, बैचलर आफ कामर्स…कर रही हूँ , सेकेण्ड ईयर है ” वो मुश्कुराकर बोली। मेरा कान अब फ्री हो गया था।

“ओके। तो आप कामरस में ग्रजुएशन करेंगी? सही है। सही है…” कहकर ऊपर से नीचे तक मैंने उसे देखा। उसके टाईट कुरते में कैद जोबन पे मेरी निगाह टिक गईं-

“सही है। सिर से पैर तक तो तुम कामरस में डूबी हो। हे मुझे भी कुछ पढ़ा देना। कामरस। आम-रस। मैं तो रसिया हूँ रस का…” मेरी निगाहें उसके उरोजों से चिपकी थीं।

वो समझ रही थी की मैं किस आम-रस की बात कर रहा हूँ। वो भी उसी अंदाज में बोली-

“अरे आम-रस चाहिए तो पेड़ पे चढ़ना पड़ता है। आम पकड़ना पड़ता है…”
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“अरे मैं तो चढ़ने के लिए भी तैयार हूँ, और पकड़ने के लिए भी, बस एक बार खाली मुँह लगाने का मौका मिल जाए…” मैंने कहा।

एक जबरदस्त अंगड़ाई ली कैटरीना ने। दोनों कबूतर लगता था छलक के बाहर आ जायेंगे-

“इंतजार। उम्मीद पे दुनियां कायम है क्या पता। मिल ही जाय कभी?” वो जालिम इस अदा से बोली की मेरी जान ही निकल गई।



“हे अपनी भाभी का बात से ही पेट भरोगे…” गुड्डी ने फिर मुझे इशारा किया।

“नहीं मैं खिलाऊँगी इन्हें। सुबह से इत्ती मेहनत से दहीबड़े बनाये हैं…” रीत बोली और दहीबड़े की प्लेट के पास जाकर खड़ी हो गई।
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“नहींईई…” मैं जोर से चिल्ल्लाया- “सुबह गुंजा और इसने मेहनत करके अभी तक मेरे मुँह में…”

गुड्डी बड़ी जोर से हँसी। उसकी हँसी रुक ही नहीं रही थी।

“अरे मुझे भी तो बता?” रीत बोली।



हँसते, रुकते किसी तरह गुड्डी ने उसे सुबह की ब्रेड रोल की, किस तरह उसने और गुंजा ने मिलकर मेरी ऐसी की तैसी की? सब बताया। अब के रीत हँसने की बारी थी।

भाभी वाले रिश्ते में मुझे भी कुछ अड़बड़ लग रहा था, लेकिन बोली रीत ही,

" यार, भाभी की तो शादी होनी चाहिए, कुँवारी भाभी में अटपट लगता है, और असली रिश्ता है ये जो चुहिया है जिसे तुम हरदम के लिए चूहेदानी में बंद करना चाहते हो, मेरी छोटी बहन भी है , सहेली भी, इसलिए साली, "
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गुड्डी ने बात काट दी, ' सिर्फ साली नहीं, बड़ी साली, "

" अरे यार रगड़ाई करने से मतलब, ये बेचारा इस अच्छे मौके पे बनारस आया है तो रगड़ाई तो मैं करुँगी, चाहे भौजी के रिश्ते से, चाहे साली के रिश्ते से, " वो बोली,

रगड़ाई तो इनकी गूंजा ने ही सुबह सुबह शुरू कर, मिर्च वाले ब्रेड रोल से, गुड्डी हँसते हुए बोली।

“बनारस में बहुत सावधान रहने की जरूरत है…” मैं बोला।



“एकदम बनारसी ठग मशहूर होते हैं…” रीत बोली।




“पर यहां तो ठगनियां हैं। वो भी तीन-तीन। कैसे कोई बचे?” मैं बोला।
Wonderful writing Komal ji. No words to describe your excellence.
 

komaalrani

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रीत , म्यूजिक और डांस --

रीत का सिंगल डांस हो या आनंद साहब के साथ डूवेट डांस , सभी मे उसने ऐसा जलवा बिखेरा कि आनंद भाई साहब तो क्या हम सब रीडर्स भी चारो खाने चित्त हो गए ।
अश्लीलता की दहलीज पर पहुंची अभिसार का वादा करती हुई वह नृत्य जिसे अगर बीवियों को आता होता तो ' वो ' को कोई दो कौड़ी को न पूछता ।

इस डांस के लिए एनर्जी का काम किया वोदका के साथ साथ भांग मिश्रित दही - बड़े ने । और नशे पर चिन्गारी डाला रीत की कामुक हुस्न ने ।
रीत ने अपने देवर - कम - ननदोई - कम - जीजा की होली वास्तव मे रस की होली बना दी ।

इधर चंदा भाभी ने भी अपने देवर की मर्दानगी को मजबूती देने के लिए हर्बल और जड़ी बुटी से युक्त लड्डू बनाकर दे दी । आनंद साहब को शर्तिया इस लड्डू की जरूरत पड़नी वाली है ।

गुड्डी तो गुड्डी ही है । लेकिन हमे अलवल वाली गुड्डी का भी बेसब्री से इंतजार है । इस गुड्डी ने भी बहुत पहले से अपने मन मंदिर मे आनंद साहब को बसा रखा है ।


बहुत खुबसूरत अपडेट कोमल जी ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 

Sanju@

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झरती चांदनी


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हम दोनों थके थे। एक दूसरे को कस के बाँहों में भींचे, बाहर चांदनी, पलाश और रात झर रही थी,

---



" तोहरे भैया के बियाहे में गुड्डी क महतारी पूछी थीं न गुड्डी से बियाह करोगे "



वो यादें, मेरा तन मन फागुन हो गया। बियाह तो उसी पल घड़ी हो गया था, जब उस सारंग नयनी ने भाभी के बीड़े के बाद बीड़ा मारा, सीधे मेरे सीने पे, ... जिंदगी में मिठास उसी दिन घुल गयी थी जब जनवासे में मेरे दांत देखने के बहाने पूरा बड़ा सा रसगुल्ला उसने एक बार में खिला दिया था , और उसकी वो खील बताशे वाली हंसी,...

मैं कुछ बोलता, उसके पहले भौजी ने अपनी मीठी मीठी ऊँगली मेरे होंठ पर रख दी और चुप कराते हुए पूछा,



" अबकी होलिका देवी का आशीर्वाद, तोहरे राशिफल में भी लिखा है तो का पता,... तो मान लो तोहार किस्मत,... बियाह हो ही जाए, तो दहेज में का मांगोगे। "


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मेरे लिए तो उस लड़की का मिलना ही जिंदगी का सपना पूरा होना था,... जब तक मैं बस के पीछे लिखा, दुल्हन ही दहेज़ है, मैं दहेज़ के खिलाफ हूँ इत्यादि बोलता, मुंह खोलने की कोशिश करता, चंदा भाभी ने मुंह बंद करा दिया।

'" बहुत बोलते हो , सब मर्दो में यही एक बुरी आदत है बोलते ज्यादा हैं सुनते कम हैं। "

और चुप कराने के लिए अपनी दायीं चूँची भौजी ने मेरे मुंह में डाल दी बल्कि पेल दी, और बोलना शुरू कर दिया

" दहेज़ तो जरूर मांगना, और मैं बताती हूँ क्या मांगना, गुड्डी क मम्मी और दोनों उसकी छोटी बहने। और गुड्डी क महतारी ये जो टनटनाया औजार ले के घूमते हो न , कोहबर में ही दोनों अपनी बड़ी बड़ी चूँची में दबा के एक पानी निकाल देंगी, ... "


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मेरी आँखों के सामने एक बार गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी की तस्वीर घूम गयी, दीर्घ स्तना, उन्नत उरोज, एकदम ब्लाउज फाड़ते, ब्लाउज के बाहर झांकते, चंदा भाभी से ही दो नंबर बड़े होंगे लेकिन वैसे ही कड़े कड़े,... सोच के फनफनाने लगता है।

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लेकिन लालची मन, मैंने भाभी के दूसरे उरोज को कस के मुट्ठी से दबा दिया और जब मुंह खुला तो मन की बात कह दी, ... " और भौजी पास पड़ोसन "



" ये पूछने की बात है, कल दिन में ही पता चल जाएगा, जब पास पड़ोसन रगड़ाई करेंगी। " भौजी ने हंस के जवाब दिया।

बाहों में लिपटे-लिपटे साइड में होकर हम वैसे ही सो गए। मेरा लिंग भाभी के अन्दर ही था।


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सुबह अभी नहीं हुई थी। रात का अन्धेरा बस छटा ही चाहता था।

कहीं कोई मुर्गा बोला और मेरी नींद खुल गई। हम उसी तरह से थे एक दूसरे की बाहों में लिपटे।



मेरा मुर्गा भी फिर से बोलने लगा था। मैंने भाभी को फिर से बाहों में भर लिया। बिना आँखें खोले उन्होंने अपनी टांग उठाकर मेरी टांग पे रख दी और अपने हाथ से ‘उसे’ अपने छेद पे सेट कर दिया। हम दोनों ने एक साथ पुश किया और वो अन्दर। उसी तरह साथ-साथ लेटे, साइड में। हल्के-हल्के धक्के के साथ।



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पता नहीं हम कब झड़े कब सोये।

हाँ एक बात और चंदा भाभी ने बता दिया की उनकी नथ कब कैसे उतरी किसने उतारी, एक दो बार तो उन्होंने नखड़ा किया लेकिन फिर हंस के बोली,


तेरी तरह इन्तजार नहीं किया मैंने,... तेरी उस ममेरी बहन से कम उमर थी, अच्छा पहले तीन तिरबाचा भरो की अपनी छुटकी बहिनिया को चोदोगे तो बताउंगी,,.... हाँ बोलने से काम नहीं चला, उसका स्कूल का नाम ले के बताना पड़ा रंजीता को,... तीन बार तीर्बाचा भरवाया, की उस की फाड़ूंगा,... तो बात उन्होंने शुरू की। और बात पता नहीं कैसे घूम फिर के गुड्डी की मझली बहिनिया पर पहुँच गयी तो भौजी बोलीं



" अरे मंझली से भी छोटी थी, जब मेरी चिड़िया उड़नी शुरू हो गयी थी और तुझे वो क्या गुड्डी भी अभी छोटी लगती है,... "

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पता नहीं कैसे मेरे मुंह से उनकी बेटी का नाम निकल गया, फिर लगा की नहीं बोलना चाहिए था पर बात तो निकल ही गयी, उन्होंने ही बोला था की उनकी बेटी भी मंझली की ही समौरिया है तो वही सोच के,...



" गुंजा से भी कच्ची उमर थी भौजी आप की "
मेर्री बात उन्होंने काट दी, उन्हें बात आगे बढ़ाने की जल्दी थी, " उससे पूरे छह महीने छोटी थी "



फिर उन्होंने हाल खुलासा बताया। एक उनके पड़ोस की बहन थीं, उसे ये दीदी बोलती थीं इनसे चार पांच साल बड़ी, ... न सगी न रिश्ते की बस मुंह बोली। पडोसी थीं लेकिन दोस्ती खूब थी, दीदी से भी उनकी भाभी से भी। गौना जाड़े में हुआ था दीदी का और गौने में ही जीजा, उन पे मोहा गए. पास के गाँव में ही शादी हुयी थी।

भौजी बोलीं बस उनके टिकोरे से ही आ रहे थे, लेकिन उनकी उस मुंहबोली दीदी वाले जीजा जब भी आते, महीने में दो चार चक्कर लग ही जाता, बस कभी पीछे से पकड़ के टिकोरे मसल देते, अपना खूंटा चूतड़ में रगड़ देते, और ये नहीं की अकेले पाके, ... दीदी होती तो उसके सामने, और वो चिढ़ातीं,

' नाप लो, पिछली बार से कुछ बड़े हुए की नहीं "

और भौजी तो और चिढ़ाती अपने नन्दोई को,

" गलती तो पाहुन की है ठीक से दबाते नहीं तो बढ़ेंगे कैसे, फिर ननद ननद में फरक करते हैं , एक का तो चोली खोल के खुल के रगड़ते मसलते हैं और दूसरी का फ्राक के ऊपर से बस हलके से नाम के लिए "

और दीदी और, बोलतीं भौजी से लेकिन उकसातीं अपने मरद को,

" भौजी सही है , आपके नन्दोई बहन बहन में फरक करते हैं मुझे भी अच्छा नहीं लगता। "


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फिर तो जीजू फ्राक के अंदर हाथ डाल के कस कस के कच्ची अमिया को, .... और जान बुझ के अपना टनटनाया खूंटा मेरे पिछवाड़े कस कस के रगड़ते, भले बीच में उनका पजामा मेरी फ्राक रहती लेकिन उसका कड़ापन, मोटाई,... मेरी देह सनसना जाती गुलाबो फड़कने लगतीं, मैं पनिया जाती। ऊपर से बोलती जीजू छोड़ न , लेकिन मन कतई नहीं होता की वो छोड़ें, पहली बार आ रहे जोबन पर किसी का हाथ पड़ा था.

भौजी मेरे मन की हाल अच्छी तरह समझती थीं खुद ही उनसे खुल के बोलतीं, ...

" अरे अब नेवान कर दो बबुनी का कब तक तड़पाओगे,... फिर खुद ही दिन घड़ी तय कर देतीं, ' अरे दो महीने में फागुन लग जाएगा, बस असली पिचकारी का रंग मेरी ननद को,... "


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और हुआ वही, होली के एक दिन पहले भौजी ने अपने घर बुला लिया, होली में काम तो बढ़ ही जाता है, फिर मैं सोच रही थी की जीजू तो होली के दिन आयंगे।

मैं और भौजी मिल के गुझिया बना रहे थे और भौजी ने पहले से बनी दो गुझिया खिला दी, मुझे क्या मालूम था उसमें डबल भांग की डोज पड़ी है,... बस थोड़ी देर में ही,...

और पता चला की दीदी जीजू तो सुबह ही आ गए थे, दीदी अपनी किसी सहेली के यहाँ गयीं हैं शाम तक लौटेंगी और जीजू सो रहे हैं,...


लेकिन घर में कच्ची उमर की साली हो, होली हो किस जीजू को नींद लगती है, मानुस गंध मानुस गंध करते वो उठे,...



होली रंग से शुरू हुयी अंग तक पहुंच गयी,

पहले चरर कर के फ्राक फटी फिर जाँघों के बीच की चुनमुनिया, ...

भौजी ने कस के मेरे दोनों हाथ पकड़ रखे थे, लेकिन एक बार जब जीजू का सुपाड़ा अंदर घुस गया तो उन्होंने हाथ छोड़ दिया और मुझसे बोलीं, " ननद रानी जोर जोर से चूतड़ पटको, चीखो चिल्लाओ, अब बिना चुदवाये बचत नहीं है "


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लेकिन जब झिल्ली फटने का टाइम आया, तो भौजी ने अपनी बड़ी बड़ी चूँची मेरे मुंह में ठेल दी, और अपने नन्दोई से बोलीं
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" अब पेलो कस के, अरे कच्ची कली है, उछले कूदेगी है है, बछिया के उछलने से का सांड़ छोड़ देता है , और रगड़ के पेलता है। "

झिल्ली फटनी थी फटी,दर्द होना था हुआ, लेकिन जीजू ने खूब हचक के चोदा। और भौजी और उन्हें चढ़ा रही थीं।



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और मुझसे उठा नहीं जा रहा था, भौजी और जीजू ने मिल के किसी तरह बिठाया। हम लोग बस ऐसे बैठे ही थी की दीदी आगयीं।
बात काट के मैं बोला, " वो तो बहुत गुस्सा हुयी होंगी उन्हें अगर पता चल गया होगा "

चंदा भाभी बोलीं, एकदम बहुत गुस्सा हुईं जीजू पर बहुत चिल्लाईं और मैं भी सहम गयी।

उसके बाद भाभी खूब देर तक खिलखिलाती रही फिर बोलीं अरे हाल तो पता चलना ही था, मेरी फ्राक फटी थी, जाँघों के बीच मलाई लगी थी, लेकिन जानते हो दी गुस्सा क्यों हो रही थीं,...


उनके आने का इन्तजार क्यों नहीं किया, उनके सामने मेरी लेनी चाहिए थी और दो बातों पर वो राजी हुयी, मैं जब जीजू की ओर से बोलने लगी तो वो बोलीं,

" चलों अब मेरे सामने फिर से करो, और जैसे मैं कहूं, मेरी छोटी बहिन के साथ मजा लिया और मुझे देखने को भी नहीं मिला, ... ऐसे नहीं निहुरा के हां "

और वहीँ आँगन में निहुरा के कुतिया बना के जीजू ने फिर से मुझे दीदी और भौजी के सामने चोदा ,



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और भौजी से ज्यादा दीदी मुझे चिढ़ा रही थीं,

" क्यों पूछती थीं न जीजू के साथ कैसा लगता है अब खुद देख ले,... कैसे जोर के धक्के लगते हैं,... आ रहा है न मजा "
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और कभी जोर से फिर जीजू को हड़काती, " मेरी बहिनिया की अभी कच्ची अमिया है तो क्या इत्ते हलके हलके मसलोगे,... सब ताकत क्या मेरी ननदों के लिए बी बचा रखी है, ... "


लेकिन एक बात समझ लो असली मजा नयी लड़की को दूसरी चुदाई में ही आता है। मैं समझ गयी क्यों सब लड़कियां इस के चक्कर में पड़ी रहती हैं।


डेढ़ घंटे में दो बार मैं चुदी। बाद में दी ने जीजू से दूसरी शर्त बतायी, और अब ये मेरी बहन आपको रंग लगाएगी पूरे पांच कोट रंग आज भी कल भी और चुपचाप बिना उछले कूदे लगवा लीजियेगा, ...

ये बात दी ने एकदम मेरे मन की कही थी, ये बात सोच के ही मैं परेशान हो रही थी, जीजू को रंग कैसे लगाउंगी, एक तो लम्बे हैं उचक के बच जाएंगे मेरा हाथ ही नहीं पहुंचेगा, दूसरे तगड़े भी बहुत हैं पकड़ भी जकड़ने वाली, एक बार मेरी कलाई पकड़ ली,... मैं खूब खुश लेकिन लालची बचपन की,... मैंने दीदी से कहा ,

पांच कोट रंग के बाद एक बाद एक कोट पेण्ट की भी,...

" एकदम पेण्ट तो बहुत जरूरी है, एक ओर सफ़ेद , एक ओर कालिख पक्की वाली " हँसते हुए दी ने मेरी बात में और जोड़ा फिर कहा ये तेरे जीजू ही आज जा के सब पेण्ट रंग लाएंगे तेरे साथ, ... "


पर जीजू एक बदमाश, और जीजू कौन जो बदमाश न हो और साली सलहज को तो बदमाश वाले ही अच्छे लगते हैं। जितने ज्यादा बदमाश हो उत्ते ज्यादा अच्छे। जीजू बोले, " मंजूर मैं चुप चाप लगवा लूंगा लेकिन ये मेरी साली जित्ती बार रंग लगाएगी, उत्ती बार मैं उसे सफ़ेद रंग लगाऊंगा, फिर ये न भागे। ये भी चुपचाप लगवा ले "



मैं मतलब समझ रही थी , थोड़ा शर्मा गयी लेकिन मेरी और से दी बोलीं, और जीजू को हड़का लिया, ...

" कैसे कंजूस जीजू हो जो साली को सफ़ेद रंग लगाने का हिसाब रखोगे,... अरे मेरी बहन है, तेरी पिचकारी पिचका के रख देगी, लगा लेना, जित्ती बार वो रंग लगाएगी उत्ती बार, उसके दूनी बार, वो एकदम मना नहीं करेगी।

"दी और जीजू मेरी लिए एक नयी फ्राक और शलवार कुर्ता ले आये थे,... बस वही पहन के मैं घर लौटी। माँ दरवाजे पे ही मिलीं।


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मुझे लगा की चंदा भाभी की माँ ने हड़काया होगा,... लेकिन भौजी बोलीं " अरे नहीं माँ देख के ही समझ गयीं बस दुलार से मुझे दुपका लिया और गाल पे चूम के बोली, अच्छा हुआ तू भी आज से हम लोगो की बिरादरी में आ गयी। जा थोड़ी देर आराम कर ले "



और हर कहानी के अंत में कहते हैं न की कहानी से क्या शिक्षा मिलती है तो चंदा भाभी ने वो शिक्षा भी दे दी।

" साली साली होती है उस की उमर नहीं रिश्ता देखा जाता है। और साली कोई जरूरी नहीं सगी हो रिश्ते जी , मुंहबोली भी ( आखिर चंदा भाभी की नथ तो मुंहबोली दीदी वाले जीजा ने उतारी थी दिन दहाड़े) दूसरी बात अगर जीजा साली को दबोचे नहीं दबाये रगड़े नहीं, मस्ती न करे तो सबसे ज्यादा साली को बुरा लगता है और जीजा साली के रिश्ते की बेइज्जती है। "


मैं ध्यान से उनकी बात सुन रहा था लेकिन उसके बाद जो बात उन्होंने बताई, वो एकदम काम की थी, ... दे

ख यार कोई चढ़ती उम्र वाली हो , गुड्डी की दोनों छोटी बहनों की उम्र की,...

बस एक बार पीछे से पकड़ के दबोच लो, कच्चे टिकोरों का खुल के रस लो,... और साथ में अपना तन्नाया खूंटा उसके छोटे छोटे चूतड़ के बीच दबाओ, जोर से एकदम खुल के रगड़ो, वो एक तो तुम्हारा इरादा समझ जायेगी, दूसरे उसकी देह में इत्ती जबरदस्त सनसनाहट मचेगी,... उसकी कसी बिल में इत्ते जोर से चींटे काटेंगे की वो खुद टाँगे खोल देगी, ... बस समझ लो उसके बाद न चोदना साली की भी बेइज्जती है और बुर रानी की भी। और जीजा साली के रिश्ते में कोई बोलता भी नहीं।



सुबह जब मेरी नींद खुली तो सूरज ऊपर तक चढ़ आया था और नींद खुली उस आवाज से।



“हे कब तक सोओगे। कल तो बहुत नखड़े दिखा रहे थे। सुबह जल्दी चलना है शापिंग पे जाना है और अब। मुझे मालूम है तुम झूठ-मूठ का। चलो मालूम है तुम कैसे उठोगे?” और मैंने अपने होंठों पे लरजते हुए किशोर होंठों का रसीला स्पर्श महसूस किया।



मैंने तब भी आँखें नहीं खोली।

“गुड मार्निंग…” मेरी चिड़िया चहकी।

मैंने भी उसे बाहों में भर लिया और कसकर किस करके बोला- “गुड मार्निंग…”



“तुम्हारे लिए चाय अपने हाथ से बनाकर लाई हूँ। बेड टी। आज तुम्हारी गुड लक है…” वो मुश्कुरा रही थी।
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
चंदा भाभी ने आनंद को अपनी नथ कैसे और किसने उतारी थी वो बता दिया है साथ ही उसने गुड्डी की दोनो बहनों की नथ उतारने के लिए गुरु ज्ञान भी दे दिया है चंदा भाभी ने आनंद को चुदाई का उपदेश देकर चुदाई क्षेत्र में चुदाई करने के लिए प्रेरित कर दिया है
 

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डांस बेबी डांस ---मुझको हिप हाप सिखा दे

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म्यूजिक सिस्टम पे ममता शर्मा गा रही थी।

मुझको हिप हाप सिखा दे,

बीट को टाप करा दे,

थोड़ा सा ट्रांस बजा दे,


मुझको भी चांस दिला दे।



और हम लोगों का डांस अब ग्राइंडिंग डांस में बदल गया था। बस हम लोग एक दूसरे को पकड़कर सीधे सेंटर पे सेंटर रगड़ रहे थे दोनों की आँखें बंद थी। मैंने बीच में एक-दो सिप और उसको लगवा दी। वो ना ना करती लेकिन मैं ग्लास उसके होंठों से लगाकर अन्दर।

हम लोग खुलकर ड्राय हम्पिंग कर रहे थे। वो दीवाल की ओर मुड़ी और दीवाल का सहारा लेकर, मेरे तन्नाये हथियार पे सीधे अपने भरे-भरे नितम्ब, उसकी दरार। मैं पागल हो रहा था मेरे हाथ बस उसकी कमर को सहारा दे रहे थे और मेरी कमर भी म्यूजिक की धुन पे गोल-गोल। एकदम उसके नितम्बों को रगड़ती हुई।
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फिर रीत एक पल के लिए मुड़ी। उसने मुझे एक फ्लाइंग किस दिया और जब तक मैं सम्हलता मेरे सिर को पकड़कर एक कसकर किस्सी मेरे होंठी की ले ली और फिर मुड़कर दीवाल के सहारे।

अब वो अपने उभार दीवाल पे रगड़ रही थी, जोर-जोर से चूतड़ मटका रही थी। फिर वो बगल में पड़े पलंग पे पे झुक गई। म्यूजिक के साथ उसके नितम्ब और उभार दोनों मटक रहे थे। जैसे वो डागी पोज में हो।

ये वही पलंग पे था जहां कल रात मैंने चन्दा भाभी को तीन बार।

मैंने झुक के उसके उभार पकड़ लिए हल्के से और गाने के साथ हाथ फिराने लगा। साथ में मेरा खूंटा अब पाजामी के ऊपर से ही।

रीत झुकी थी और गाना बज रहा था-


होगी मशहूर अब तो, तेरी मेरी लव स्टोरी।

तेरी ब्यूटी ने मुझको, मारा डाला छोरी,


थोड़ा सा दे अटेनशन, मिटा दे मेरी टेंशन।

(मैं अब कस-कसकर उसकी चूची मसल रहा था)


आग तेरा बदन है, तेरी टच में जलन है।
तू कोई आइटम बाम्ब है, मेरा दिल भी गरम है।



और वो फिसल के मेरी बांहों से निकल गई।
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और वैसे ही मुड़कर पलंग पे अब पीठ के बल हो गई। अभी भी वो धुन के साथ अपने उभार उछाल रही थी, कुल्हे मटका रही थी, मुश्कुरा रही थी। उसकी आँखों में एक दावत थी एक चैलेंज था। मैंने मुश्कुराकर उसके उभारों को टाईट कुरते के ऊपर से ही कसकर चूम लिया। मेरी दोनों टांगें उसकी पलंग से लटक रही टांगों के बीच में थी।मेरा एक हाथ उसका कुरता ऊपर सरका रहा था और दूसरा पाजामी के नाड़े पे।



गाना बज रहा था। वो लेटे-लेटे डांस कर रही थी और मैं भी।



तू कोई आइटम बाम्ब है, मेरा दिल भी गरम है।

ठंडा ठंडा कूल कर दे, ब्यूटी फूल भूल कर दे।


और मैंने एक झटके में पाजामी का नाड़ा खींचकर नीचे कर दिया।

उसने अपनी टांगें भींचने की कोशिश की पर मैंने अपने टांगें पहले ही बीच में फँसा रखी थी। मैंने उसे और फैला दिया और पाजामी एक झटके में कुल्हे के नीचे कर दिया।

क्या मस्त लेसी गुलाबी पैंटी थी।


पैंटी क्या बस थांग थी एकदम चिपकी हुई एक खूब पतली पट्टी सी। मेरा हाथ सीधे उसके अन्दर और उसकी परी के ऊपर, एकदम चिकनी मक्खन।
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मैंने हल्के-हल्के सहलाना शुरू कर दिया। और दूसरा हाथ कुरते को उठाकर ऊपर कर चुका था। गुलाबी लेसी ब्रा में छुपे गोरे-गोरे कबूतरों की झलक मिल रही थी।

लेकिन जिसने मुझे पागल कर दिया वो थी उन कबूतरों के चोंच। गुलाबी, कड़े, मटर के दाने ऐसे।

कल रात भाभी ने सिखाया था। अगर एक बार परी हाथ में आकर पिघल गई तो समझो लड़की हाथ में आ गई। मेरे हथेली अब रीत की परी को प्यार से हल्के-हल्के सहला रही थी, मसल रही थी।

रीत अब चूतड़ पटक रही थी। गाने की धुन पे नहीं मेरे हाथ की धुन पे।


गाना तो बंद हो चुका था। मेरे अंगूठे ने बस हल्के से उसके क्लिट को छुआ। वो थोड़ा छिपा, थोड़ा खुला लेकिन स्पर्श पाते ही कड़ा होने लगा। दूसरा गाना चालू हो गया था-


शीला की जवानी माई नेम इस शीला। शीला। शीला की जवानी।



मुझे बस लग रहा था की मेरे नीचे कैट ही है। मेरे होंठों ने ब्रा के ऊपर से ही झांकते चोंच को पकड़ लिया और चुभलाने लगे। मेरा अंगूठा और तरजनी थांग को सरका के अब उसकी खुली परी को हल्के-हल्के मसल रहे थे।

अब मुझसे नहीं रहा गया।

मैंने के झटके में उसकी पाजामी घुटने के नीचे खींच दी और उसकी लम्बी-लम्बी गोरी टांगें मेरे कंधे पे।


मेरा जंगबहादुर भी बस उसकी जांघों पे ठोकर मार रहा था, वो खूब गीली हो रही थी। अब मुझसे नहीं रहा गया मैंने एक उंगली की टिप अन्दर घुसाने की कोशिश की। लेकिन एकदम कसी।

मेरा दूसरा हाथ अब खुलकर जोबन मर्दन कर रहा था।
Ohhh sexy happening .
 

Premkumar65

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खेलूंगी मैं रस की होली,
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रीत समझ गयी बोली, भाभी अब आगे का काम हम दोनों का, ऐसा सुन्दर सिंगार करेंगे इस दुलहिनिया का,

और चंदा भाभी किचन में, छत पर सिर्फ हम तीनो, लेकिन रीत ने गुड्डी से अपने मन का डर बताया,

" ये स्साला, जिसकी बहन पे हमारा रॉकी चढ़ेगा, ज्यादा उछल कूद करे तो, "

और उसका हल गुड्डी के पास था।

“वो जिम्मेदारी मेरी…”
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गुड्डी अधिकार पूर्वक बोली और जोर से कहा स्टैचू।

ये गेम हम पहले खेलते थे और दूसरा हिल नहीं सकता था। अब मेरी मजबूरी। गुड्डी का हुकुम। मैं सपने में भी नहीं सोच सकता था हिलने को। मैं मूर्ति बनकर खड़ा हो गया। पीछे से गुड्डी ने अपने नाजुक हाथों से मेरी कलाई पकड़ ली। कभी कच्चे धागे हथकड़ियों से भी मजबूत हो जाते हैं।


उधर रीत मुझे दिखाती हुई, हँसती हुई तरह-तरह की पेंट की ट्यूब उसने निकाली और अपनी गोरी-गोरी हथेली पे मिलाने लगी। पहले बैगनी, फिर काही, फिर स्लेटी। एक से एक गाढ़े रंग। फिर वो मेरे कान में गुनगुनाई-

“बहुत हुई अब आँख मिचौली…”

मेरे पूरे बदन में सिहरन दौड़ गई। रीत का बदन मेरी पीठ को पीछे से सहला रहा था। मेरी पूरी देह में एक सुरसुरी सी होने लगी। उसके उभार कसकर मुझे पीछे से दबा रहे थे। एक आग सी लग गई। ‘वो’ भी अब 90° डिग्री पे आ गया।

उसने फिर मेरे कान में गाया, गुनगुनाया और उसके गुलाबी रसीले होंठ मेरे इअर लोब्स से छू गए। बहुत हुई अब आँख मिचौली। जीभ की टिप कान को छेड़ रही थी। उन्चासो पवन चलने लगे। काम मेरी देह को मथ रहा था और जब उसकी मादक उंगलियां मेरे गालों पे आई। बस लग रहा था मेरे पीछे कैट ही खड़ी है।

बहुत हुई अब आँख मिचौली, खेलूंगी मैं रस की होली,

खेलूंगी मैं रस की होली, रस की होली, रस की होली।
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उसकी उंगलियां मुझे रस में भिगो रही थी। रस में घोल रही थी देह की होली, तन की होली, मन की होली। मैं सिहर रहा था भीग रहा था, बस लग रहा था कटरीना की वो प्यारी उंगलियां। पहले तो हल्के-हल्के फिर कसकर मेरा गाल रगड़ने लगी।


मैंने आँखें खोलने की कोशिश की तो बड़ी जोर से डांट पड़ी- “आँखें बंद करो ना…”

फिर तो उंगलियों ने पहले पलकों के ही ऊपर और फिर कस-कसकर गालों को मसलना, रगड़ना। हाँ वो एक ओर ही लगा रही थी और होंठों को भी बख्श दिया था। शायद उसे मेरे सवाल का अहसास हो गया था। कान में बोली-

“दूसरा गाल तेरे उसके लिए।"


दोनों हाथों का रंग एक ही गाल पे। कम से कम पांच-छ कोट और एक हाथ जो गाल से फिसला तो सीधे मेरे सीने पे। मेरे निपलों को पिंच करता हुआ।

मेरे मुँह से सिसकी निकल गई।

रीत- “अभी से सिसक रहे ही। अभी तो ढंग से शुरूआत भी नहीं हुई…”

और ये कहकर मेरे टिट्स उसने कसकर पिंच कर दिए और मुझे गुड्डी को आफर कर दिया-

“ले गुड्डी अब तेरा शिकार…” और ये कहकर उसने मेरे गाल पर से हाथ हटा लिया।

मैंने आँखें खोलकर शीशे में देखा- “उफफ्फ। ये शैतान। कौन कौन से पेंट। काही, स्लेटी। चेहरा एकदम काला सा लग रहा था और दूसरी ओर अब गुड्डी अपने हाथ में पेंट मल रही थी। एक वार्निश के डिब्बे से सीधे। सिलवर कलर का। चमकदार।


गुड्डी रीत से बोली- “हे मैंने कसकर पकड़ रखा था जब आप लगा रही थी तो अब आप का नंबर है। कसकर पकड़ियेगा जरा भी हिलने मत दीजिएगा…”
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“एकदम…” रीत ने पीछे से मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए। लेकिन वो गुड्डी से दो हाथ आगे थी। उसने हाथ पकड़कर सीधे अपनी पाजामी के सेंटर पे ‘वहीं’ लगा दिए और अपने दोनों पैरों के बीच मेरे पैरों को फँसा दिया।

गुड्डी ने अपने प्यारे हाथों से मेरे गाल पे सफेद सिल्वर कलर का पेंट लगाना शुरू कर दिया और मैं भी प्यार से लगवा रहा था। उसने पहले हल्के से फिर कस-कसकर रगड़ना शुरू कर दिया।

मैं गुड्डी के स्पर्श में डूबा था।

उधर रीत ने मेरी दोनों हथेलियों को अपनी पाजामी के अन्दर और जैसे ही मेरा हाथ ‘वहां’ पहुँचा। कसकर उसने अपनी गदराई गोरी-गोरी जांघों को भींच लिया। अब न तो मेरा हाथ छूट सकता था, और ना मैं उससे छुड़ाना चाहता था।
Mast mast update.
 

Carry0

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उसने अपना पैर हमारे पैर पे रखा, हमने समझा मूड आया,

पकड़ के अपने मजबूत हाथो से, हमने उसको नीचे लिटाया,

वो बोली mc आई है, नही करो, हमने उसे गुस्से से देखा और अपना पुरा खड़ा लंड दिखाया,

वो बोली लाओ मुंह में दो ,तुम्हे ठंडा करदूं, उसकी पैंट के बटन खोल हमने उसे उल्टा लिटाया,

उसकी पैंट और पैंटी दोनो उतार पैरो में फसा दी , उसकी गोरी गोरी गांड पर हमने अपने हाथ फिराया,

हमने अपने लंड को आज़ाद किया, और, उसके दोनो पैरो को अपने पैरो के बीच फसाया,

अपने मोटे लंबे लंड को हमने, उसकी गांड के भूरे छेद पर टिकाया,

वो कुछ समझ पाती उससे पहले हमने, एक जोर का धक्का उसकी गांड पर लगाया

वो जोर से चीखी और रोने लगी, हमने उसके दर्द की परवाह नहीं को और एक और करारा धक्का लगाया,

हमारा मोटा लंबा लंड आधा उसकी कोरी और गोरी गांड में घूस गया , ओर एक धक्के के साथ ही लंड पुरा उसकी गांड में चला गया और उसकी चूत से मूत निकल आया,

 

komaalrani

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उसने अपना पैर हमारे पैर पे रखा, हमने समझा मूड आया,

पकड़ के अपने मजबूत हाथो से, हमने उसको नीचे लिटाया,

वो बोली mc आई है, नही करो, हमने उसे गुस्से से देखा और अपना पुरा खड़ा लंड दिखाया,

वो बोली लाओ मुंह में दो ,तुम्हे ठंडा करदूं, उसकी पैंट के बटन खोल हमने उसे उल्टा लिटाया,

उसकी पैंट और पैंटी दोनो उतार पैरो में फसा दी , उसकी गोरी गोरी गांड पर हमने अपने हाथ फिराया,

हमने अपने लंड को आज़ाद किया, और, उसके दोनो पैरो को अपने पैरो के बीच फसाया,

अपने मोटे लंबे लंड को हमने, उसकी गांड के भूरे छेद पर टिकाया,

वो कुछ समझ पाती उससे पहले हमने, एक जोर का धक्का उसकी गांड पर लगाया

वो जोर से चीखी और रोने लगी, हमने उसके दर्द की परवाह नहीं को और एक और करारा धक्का लगाया,

हमारा मोटा लंबा लंड आधा उसकी कोरी और गोरी गांड में घूस गया , ओर एक धक्के के साथ ही लंड पुरा उसकी गांड में चला गया और उसकी चूत से मूत निकल आया,

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Sanju@

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भाग ७

गुड्डी- गुड मॉर्निंग


८१,२६४


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सुबह जब मेरी नींद खुली तो सूरज ऊपर तक चढ़ आया था और नींद खुली उस आवाज से।


“हे कब तक सोओगे। कल तो बहुत नखड़े दिखा रहे थे। सुबह जल्दी चलना है शापिंग पे जाना है और अब। मुझे मालूम है तुम झूठ-मूठ का। चलो मालूम है तुम कैसे उठोगे?”

और मैंने अपने होंठों पे लरजते हुए किशोर होंठों का रसीला स्पर्श महसूस किया।
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मैंने तब भी आँखें नहीं खोली।

“गुड मार्निंग…” मेरी चिड़िया चहकी।

मैंने भी उसे बाहों में भर लिया और कसकर किस करके बोला- “गुड मार्निंग…”


“तुम्हारे लिए चाय अपने हाथ से बनाकर लाई हूँ, बेड टी। आज तुम्हारी गुड लक है…” वो मुश्कुरा रही थी।

मैं उठकर बैठ गया।


“तुम ना क्या? अरे गुड मार्निग जरा अच्छे से होने दो न…” और अबकी मैंने और कसकर उसके मस्त किशोर उरोज दबा दिए।


उसकी निगाह मेरे नीचे, साड़ी कम लूंगी से थोड़ा खुले थोड़ा ढके ‘उसपे’ वो कुनमुनाने लगा था, और क्यों ना कुनमुनाए। जिसके लिए वो इत्ते दिनों से बेकरार था वो एकदम पास में बैठी थी। मेरा एक हाथ उसके उभार पे था। उसकी ओर इशारा करते हुए मैंने गुड्डी से कहा-

“हे जरा उसको भी गुड मार्निग करा दो ना। बेचारा तड़प रहा है…”



“तड़पने दो। तुमको करा दिया ना तो फिर सबको…”

वो इतरा के बोली। लेकिन निगाह उसकी निगाह अभी भी वहीं लगी थी।
‘वो’ तब तक पूरा खड़ा हो गया था।


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मैंने झटके से गुड्डी का सिर एक बार में झुका दिया और उसके होंठ कपड़े से आधे ढके आधे खुले उसके ‘सुपाड़े’ पे। मेरा हाथ कस-कसकर उसके गदराये जोबन को दबा रहा था।


उसने पहले तो एक हल्की सी फिर एक कसकर चुम्मी ली वहां पे, और बड़ी अदा से आँख नचाकर खड़ी हो गई और जैसे ‘उसी’ से बात कर रही हो बोली-

“क्यों हो गई ना गुड मार्निग। नदीदे कहीं के…”
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और फिर मुड़कर मेरा हाथ खींचते हुए बोली- “उठो ना इत्ती देर हो रही है, सब लोग नाश्ते के लिए इंतजार कर रहे हैं…”


“जानू इंतजार तो हम भी कर रहे हैं…” हल्के से फुसफुसाते हुए मैं बोला।



जोर से मुश्कुराकर वो उसी तरह फुफुसाते हुए बोली- “बेसबरे मालूम है मुझे। चल तो रही हूँ ना आज तुम्हारे साथ। बस आज की रात। थोड़ा सा ठहरो…” और फिर जोर से बोली-

“उठो ना। तुम भी। सीधे से उठते हो या…”

मैं उठकर खड़ा हो गया। लुंगी ठीक करने के बहाने मैंने उसको सुबह-सुबह पूरा दर्शन करा दिया। लेकिन खड़े होते ही मुझे कुछ याद आया-

“अरे यार मैंने मंजन तो किया नहीं…”

“तो कर लो ना की मैं वो भी कराऊँ?” वो हँसी और हवा में चांदी की हजार घंटियां बज उठी।


“और क्या अब सब कुछ तुमको करवाना पड़ेगा और मुझे करना पड़ेगा…” मुश्कुराकर मैं द्विअर्थी अंदाज में बोला।


“मारूंगी…” वो बनावटी गुस्से में बोली और एक हाथ जमा भी दिया।


“अरे तुम ना तुम्हें तो बस एक बात ही सूझती है…” मैंने मुँह बनाकर कहा-

“तुम भूल गई। कल तुम्हारे कहने पे मैं रुक गया था। तो मेरे पास ब्रश मंजन कुछ नहीं है…” फिर मैं बोला।


“अच्छा तो बड़ा अहसान जता रहे हैं। रुक गया मैं…” मुझे चिढ़ाते हुए बोली- “फायदा किसका हो रहा है? सुबह-सुबह गुड मार्निग हो गई, कल मेरे साथ घूमने को मिल गया। मंजन तो मिल जाएगा। हाँ ब्रश नहीं है तो उंगली से कर लो ना…”
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“कर तो लूं पर…” मैंने कुछ सोचते हुए कहा- “तुम्हीं ने कहा था ना। की मेरे रहते हुए अब तुम्हें अपने हाथ का इश्तेमाल करने की जरूरत नहीं है। तो…”

“वो तो मैंने…” फिर अपनी बात का असर सोचकर खुद शर्मा गई। बात बनाकर बोली-

“चल यार तू भी क्या याद करोगे। किसी बनारस वाली से पाला पड़ा था। मैं करा दूंगी तुम्हें अपनी उंगली से। लेकिन काट मत खाना तुम्हारा भरोसा नहीं…”

वो जैसे ही बाहर को मुड़ी, उसके गोल-गोल कसे नितम्ब देखकर ‘पप्पू’ 90° डिग्री में आ गया। मैंने वहां एक हल्की सी चिकोटी काटी और झुक के उसके कान में बोला-

“काटूँगा तो जरूर लेकिन उंगली नहीं…”

वो बाहर निकलते-निकलते चौखट पे रुकी और मुड़कर मेरी ओर देखकर जीभ निकालकर चिढ़ा दिया।


बाहर जाकर उसने किसी से कुछ बात की शायद गुंजा से, चंदा भाभी की लड़की। जो उससे शायद एकाध साल छोटी थी और उसी के स्कूल में पढ़ती थी। भाभी ने कल रात बताया तो था, गुड्डी की मंझली बहन से महीने डेढ़ महीने ही बड़ी है उसी के क्लास में, दोनों ने कुछ बात की फिर हल्की आवाज में हँसी।

“आइडिया ठीक है। बन्दर छाप दन्त मंजन के लिए दीदी…” ये गुंजा लग रही थी।

“मारूंगी…” गुड्डी बोली- “लेकिन बात तुम्हारी सही है…” फिर दोनों की हँसी।

मैं दरवाजे से चिपका था।

“आप तो बुरा मान गई दीदी। आखिर मेरी दीदी हैं तो मेरा तो मजाक का हक बनता है जीजू से, छोटी साली हूँ। वो भी फागुन में…” गुंजा ने छेड़ा।



लेकिन गुड्डी भी कम नहीं थी-

“मजाक का क्यों तू जो चाहे सब कर ले, करवा ले। साली का तो, वो भी फागुन में ज्यादा हक होता है,। मैं बुरा नहीं मानूंगी…” वो बोली।



थोड़ी देर में गुड्डी अन्दर आई। सच में उसके हाथ में बन्दर छाप दन्त मंजन था।


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हँसकर वो बोली- “कटखने लोगों के लिए स्पेशल मंजन…”

“पर ऊपर से नीचे तक हर जगह काटूँगा…” मैं भी उसी के अंदाज में बोला।



“काट लेना। जैसे मेरे कहने से छोड़ ही दोगे। मुझे मालूम है तुम कितने शरीफ हो। अब उठो भी बाथरूम में तो चलो…” मुझे हाथ पकड़कर बाथरूम में वो घसीटकर ले गई।

मैंने मंजन लेने के लिए हाथ फैला दिया।



बदले में जबरदस्त फटकार मिली-

“तुम ना मंगते हो। जहां देखा हाथ फैला दिया। क्या करोगे? तुम्हारे मायके वालियों का असर लगता है, आ गया है तुम्हारे ऊपर। जैसे वो सब फैलाती रहती हैं ना सबके सामने…”

ये कहते हुए गुड्डी ने अपने हाथ पे ढेर सारा लाल दन्त मंजन गिरा लिया था। वो अब जूनियर चन्दा भाभी बनती लग रही थी।



“मुँह खोलो…”

वो बोली, और मैंने पूरी बत्तीसी खोल दी। उसने अपनी उंगली पे ढेर सारा मंजन लगाकर सीधे मेरे दांतों पे और गिन के बत्तीस बार और फिर दुबारा और मंजन लगाकर और फिर तिबारा।

स्वाद कुछ अलग लग रहा था। फिर मैंने सोचा की शायद बनारस का कोई खास मंजन हो। पूरा मुँह मंजन से भरा हुआ था। मैं वाशबेसिन की ओर मुड़ा।

तब वो बोली- “रुको। आँखें बंद कर लो। मंजन मैंने करवाया तो मुँह भी मैं ही धुलवा देती हूँ…”


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अच्छे बच्चे की तरह मैंने आँखें बंद रखी और उसने मुँह धुलवा दिया। जब मैं बाहर निकला तो अचानक मुझे कुछ याद आया और मैं बोला- “हे मेरे कपड़े…”



“दे देंगे। तुम्हारी वो घटिया शर्ट पैंट मैं तो पहनने से रही और आखीरकार, किससे शर्मा रहे हो? मैंने तो तुम्हें ऐसे देख ही लिया है। चंदा भाभी ने देख ही लिया है और रहा गुंजा तो वो तो अभी बच्ची है…”

ये कहते हुए मुझे पकड़कर नाश्ते की टेबल पे वो खींच ले गई।
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है
सुबह सुबह मॉर्निंग में kiss मिल गई kiss मिलते ही खिलाड़ी आनंद के और खुद में जोश आ गया है थोड़े थोड़े गुण चंदा भाभी के गुड्डी में भी आ रहे हैं लगता है गुंजा के साथ भी जल्दी हो होली खेली जाएगी साली जो है
 

Sanju@

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गुंजा

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एकदम बच्ची नहीं लग रही थी वो।


सफेद ब्लाउज़ और नीली स्कर्ट। स्कूल यूनीफार्म में।


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मेरी आँखें बस टंगी रह गईं। चेहरा एकदम भोला-भाला, रंग गोरा चम्पई । लेकिन आँखें उसकी चुगली कर रही थी। खूब बड़ी-बड़ी, चुहल और शरारत से भरी, कजरारी, गाल भरे-भरे, एकदम चन्दा भाभी की तरह और होंठ भी, हल्के गुलाबी रसीले भरे-भरे उन्हीं की तरह। जैसे कह रहे हों- “किस मी। किस मी नाट…”

मुझे कल रात की बात याद आई जब गुड्डी ने उसका जिक्र किया था तो हँसकर मैंने पूछा था- “क्यों बी॰एच॰एम॰बी (बड़ा होकर माल बनेगी) है क्या?”

पलटकर आँख नचाकर उस शैतान ने कहा था- “जी नहीं। बी॰एच॰ काट दो, और वैसे भी मिला दूंगी…”

मेरी आँखें जब थोड़ी और नीचे उतरी तो एकदम ठहर गई, उसके उभार। उसके स्कूल की युनिफोर्म, सफेद शर्ट को जैसे फाड़ रहे हों और स्कूल टाई ठीक उनके बीच में, किसी का ध्यान ना जाना हो तो भी चला जाए। परफेक्ट किशोर उरोज। पता नहीं वो इत्ते बड़े-बड़े थे या जानबूझ के उसने शर्ट को इत्ती कसकर स्कर्ट में टाईट करके बेल्ट बाँधी थी।

मुझे चंदा भाभी की बात याद आ रही थी,... चौदह की हुयी तो चुदवासी,

और जब होली में उनके मुंहबोले पड़ोस के जीजू ने उनकी चिड़िया उड़ाई थी वो गुड्डी की मंझली बहन से भी थोड़ी छोटी, मतलब गुंजा से भी कम उम्र,

पता नहीं मैं कित्ती देर तक और बेशर्मों की तरह देखता रहता, अगर गुड्डी ने ना टोका होता-

“हे क्या देख रहे हो। गुंजा नमस्ते कर रही है…”

मैंने ध्यान हटाकर झट से उसके नमस्ते का जवाब दिया और टेबल पे बैठ गया। वो दोनों सामने बैठी थी। मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी और फिर आपस में फुसफुसा के कुछ बातें करके टीनेजर्स की तरह खिलखिला रही थी। मेरे बगल की चेयर खाली थी।

मैंने पूछा- “हे चंदा भाभी कहाँ हैं?”

“अपने देवर के लिए गरमा-गरम ब्रेड रोल बना रही हैं। किचेन में…” आँख नचाकर गुंजा बोली।

“हम लोगों के उठने से पहले से ही वो किचेन में लगी हैं…” गुड्डी ने बात में बात जोड़ी।

मैंने चैन की सांस ली। तो इसका मतलब हम लोगों का रात का धमाल इन दोनों को पता नहीं।

तब तक गुड्डी बोली-


“हे नाश्ता शुरू करिए ना। पेट में चूहे दौड़ रहे हैं हम लोगों के और वैसे भी इसे स्कूल जाना है। आज लास्ट डे है होली की छुट्टी के पहले। लेट हो गई तो मुर्गा बनना पड़ेगा…”
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“मुर्गा की मुर्गी?” हँसते हुए मैंने गुंजा को देखकर बोला। मेरा मन उससे बात करने को कर रहा था लेकिन गुड्डी से बात करने के बहाने मैंने पूछा-

“लेकिन होली की छुट्टी के पहले वाले दिन तो स्कूल में खाली धमा चौकड़ी, रंग, ऐसी वैसी टाइटिलें…”

मेरी बात काटकर गुड्डी बोली- “अरे तो इसीलिए तो जा रही है ये। आज टाइटिलें…”

उसकी बात काटकर गुंजा बीच में बोली- “अच्छा दीदी, बताऊँ आपको क्या टाइटिल मिली थी…”

गुड्डी ने उसे हड़काया “मारूंगी। और मुझसे बोली , आप नाश्ता करिए न कहाँ इसकी बात में फँस गए। अगर इसके चक्कर में पड़ गए तो…”

लेकिन मुझे तो जानना था। उसकी बात काटकर मैंने गुंजा से पूछा- “हे तुम इससे मत डरो मैं हूँ ना। बताओ गुड्डी को क्या टाइटिल मिली थी?”

हँसते हुए गुंजा बोली- “बिग बी…”

पहले तो मुझे कुछ समझ नहीं आया ‘बिग बी’ मतलब लेकिन जब मैंने गुड्डी की ओर देखा तो लाज से उसके गाल टेसू हो रहे थे, और मेरी निगाह जैसे ही उसके उभारों पे पड़ी तो एक मिनट में बात समझ में आ गई।

बिग बी, बिग बूब्स । वास्तव में उसके अपने उम्र वालियों से 20 ही थे, बल्कि पचीस ही होंगे, लेकिन मेरी निगाह बार बार गुंजा के उभारो की ओर सरक जा रही थी।
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मेरी चोरी पकड़ी गयी, उस शरीर लड़की ने छेड़ते हुए पूछा, " क्या देख रहे हैं ? "

गुड्डी को गुंजा से बदला लेने का मौका मिल गया, हँसते हुए बोली, " देखने वाली चीज हो तो कोई भी देखेगा"

बदमाश दुष्ट उस टीनेजर ने इत्ते भोलेपन से आँख नचाते हुए मुझसे पूछा, " सिर्फ देखने वाली ही चीज है या,... "


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गनीमत थी गुड्डी ने टॉपिक बदल दिय। गुड्डी ने बात बदलते हुए मुझसे कहा- “हे खाना शुरू करो ना। ये ब्रेड रोल ना गुंजा ने स्पेशली आपके लिए बनाए हैं…”

“जिसने बनाया है वो दे…” हँसकर गुंजा को घूरते हुए मैंने कहा।

मेरा द्विअर्थी डायलाग गुड्डी तुरंत समझ गई। और उसी तरह बोली- “देगी जरूर देगी। लेने की हिम्मत होनी चाहिए, क्यों गुंजा?”


“एकदम…मैं उन स्सालियों में नहीं जो देने में पीछे हटजाएँ, हां लेने में, 'आपके उनके ' की हिम्मत पर डिपेंड करता है "
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वो भी मुश्कुरा रही थी। मैं समझ गया था की सिर्फ शरीर से ही नहीं वो मन से भी बड़ी हो रही है।


'आपके उनके' के नाम पर गुड्डी गुलाल हो गयी । जोर से उसने गूंजा के जांघों पे चिकोटी काटी और बात मेरी ओर मोड़ दी,

“हे ये अपने हाथ से नहीं खाते, इनके मुँह में डालना पड़ता है अब अगर तुमने इत्ते प्यार से इनके लिए बनाया है तो। …”

“एकदम…” और उसने एक किंग साइज गरम ब्रेड रोल निकाल को मेरी ओर बढ़ाया। हाथ उठने से उसके किशोर उरोज और खुलकर। मैंने खूब बड़ा सा मुँह खोल दिया लेकिन मेरी नदीदी निगाहें उसके उरोजों से चिपकी थी।

" जीजू आ बोलिये जैसे लड्डू खाने के लिए मुंह खोलते हैं एकदम वैसा और बड़ा, हाँ ऐसे।"

मैंने मुंह खोल दिया खूब बड़ा सा, और वो ब्रेड रोल हाथ में लेके बड़ी भोली सूरत बना के गुड्डी से पूछ रही थी,

" दी, एक बार में डाल दूँ पूरा,"

“इत्ता बड़ा सा खोला है। तो डाल दे पूरा, एक बार में। इनको आदत है…” गुड्डी भी अब पूरे जोश में आ गई थी। और गूंजा को चढ़ाते हुए जोड़ा

" और क्या अपनी बार में ये छोड़ेंगे क्या, डाल दे पूरा एक साथ " गुड्डी भी उसी डबल मीनिंग डायलॉग में बोल रही थी।

" आधे तीहै में न डालने वाले को मजा न डलवाने वाली को " बुदबुदाती गुंजा ने एक बार में बड़ा सा ब्रेड रोल खूब गरम मेरे मुंह मे।
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" काट लो ऊँगली, फिर मौका नहीं मिलेगा “गुड्डी ने मुझे उकसाया, लेकिन गूंजा चपल चालाक, ब्रेड रोल मुंह में उसकी उँगलियाँ बाहर, और उलटा वो गुड्डी को चिढ़ाने लगी,

" आज रात को काटेंगे न आपको, तो कल सुबह ही फोन कर के पूछूंगी, कहाँ कहाँ काटा। "

ब्रेड रोल बहुत ही गरम, स्वाद बहुत ही अच्छा था। लेकिन अगले ही पल में शायद मिर्च का कोई टुकड़ा। और फिर एक, दो, और मेरे मुँह में आग लग गई थी। पूरा मुँह भरा हुआ था इसलिए बोल नहीं निकल रहे थे।

वो दुष्ट , गुंजा। अपने दोनों हाथों से अपना भोला चेहरा पकड़े मेरे चेहरे की ओर टुकुर-टुकुर देख रही थी।
आनंद बाबू तो गुड्डी और गुंजा से द्विअर्थी बातो के द्वारा मजा ले रहे हैं लेकिन आनंद को नही पता की अब उसकी मृग नयनी और साली उसका काटने वाली है
 
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