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Erotica फागुन के दिन चार

motaalund

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आपके किस्सों के मर्दाना किरदार , अक्सर औरतों मे इतने रमे होते है कि पढने पर अह्सास होता है जैसे एक स्त्री छिपी बैठी हो भीतर उनके .... और ये भाव मुझे बहुत भाता है ।

सच कहूँ तो आपकी कहानी पर आकर लगने लगता है कि जैसे लजाना , कुनमुना और दब्बू सा मिजाज औरतों का नही असल मे मर्द का ही गहना है 😂
सही भी है मर्द के आसूँ और उसकी लाज भरी मुस्कुराह्ट मे ही उसका असल चरित्र उभरता है ।
नही तो चैड-बॉय 🗿🗿 वाला झन्डा लेके घूमने वालो की कमी कहा है इस समाज मे ।
हर बार अल्फा मेल बाजी मारे .. ये तो नाइंसाफी है...
 

motaalund

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Ek baat samajh nhi aai, guddi or gunja ko nind ki goli dene ki kya jrurat thi, unhe to sab pta hi hai, wo bhi dusre kamre me sunte rehte
कहीं गुंजा अपनी महतारी को देख के हिचक ना जाए...
और गुड्डी रात की पाली का सोच के हदस न जाए...
 

motaalund

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सईया अरब गईले ना :D
सेज पर देवरा संग लडब
रजऊ अरब गईले ना

शुरु इस अपडेट की झलकियां देखी थी तो लगा ही नही कि आनन्द बाबू के साथ गुड्डी होगी ।
एरोटिका मे सस्पेंश लिखना हर किसी के वश नही
उसपे से जहा बार बार कहानी फलैश बेक मे जा रही हो , बार बार संवादो की पुर्नावृती हो रही हो तो ऐसे मे कही का ना उपर निचे हो ही जाता है ।
मगर आपकी आई(I) आई नही एआई (Al) है 😁
सूत भर भी गलती की गुंजाइश नही , ना संवादो के व्याकरण मे ना किरदारो के विशेषण मे ।


बस यही सब कारण है कि मैने कहा था आप लिखतीं नही गोंदतीं हैं :D
फ़िल्म शोले में भी बार-बार फ़्लैश बैक था...
लेकिन पिक्चर ऑल टाइम सुपर हिट है....
 

motaalund

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आप ऐसे लोकप्रिय लेखक इस थ्रेड पर आये इससे मेरा और थ्रेड दोनों का सम्मान भी बढ़ा और अपने प्रति विश्वास भी,

लेकिन उससे ज्यादा ख़ुशी हुयी हुयी आपके कमेंट को पढ़कर, बहुत कम लोग ऐसे हैं जो घटना क्रम से हट कर चरित्रों को देखते हैं, उसका अन्वेषण करते हैं और उससे भी बढ़कर उसके बारे में अपनी राय शेयर करते हैं,

आपने एकदम सही कहा मेरे कहानी के पुरुष चरित्र जैसे इसमें आंनद की प्रतिक्रिया स्त्रियों के कमेंट पर एकदम अलग सी शायद लगती है और आपकी बात से मुझे प्रेमचंद की मशहूर कहानी जुलुस की एक पंक्ति याद आ गयी, दरोगा बीरबल सिंह के संदर्भ से
" मर्द लज्जित करता है तो हमें क्रोध आता है, स्त्री लज्जित करती है तो हमें ग्लानि होती है "

मेरी कहानी से संदर्भ और प्रसंग एकदम अलग है, उस कहानी में दरोगा बीरबल सिंह को जुलुस की औरतें जली कटी सुनाती हैं ( जिसमे उनकी पत्नी भी हैं ) क्योंकि बीरबल सिंह की लाठी से वृद्ध जननायक इब्राहिम की मृत्यु हुयी थी।

यहाँ प्रसंग श्रृंगार का है, चाहे पुराने जमाने की खिचड़ी की रस्म हो या आज कल भी जूता चुराते समय, या कोहबर में सालियाँ कुछ भी कहें

दूल्हे के लिए मुस्कराकर, हंसकर, कभी लजा कर रहना ही शोभा देता है।

आनंद बाबू अपने भाई की ससुराल में हैं और चाहते हैं की वही उनकी भी ससुराल हो जाये,

एक बात और मर्द को मरदानगी, मर्द के सामने ही वो भी जब स्त्री की अस्मिता पर, जीवन पर खतरा हो तब दिखाना उचित है और इस कहने में भी कई ऐसे प्रसंग आएंगे जब कभी गुड्डी को बचाने कभी गूंजा पर आये खतरे को हटाने के लिए वो ढाल बन कर खड़े होंगे

और आपकी इस बात से भी मैं एकदम इत्तफाक रखती हूँ की हर मर्द में थोड़ा औरत और हर औरत में थोड़ा मर्द होना चाहिए
,
और आनंद बाबू ..
अपनी बहु प्रतीक्षित इच्छा को संभाले हुए..
बचपन से शर्मीले..
यही उनका प्लस प्वायंट बन गया...
 

motaalund

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दो कारण थे, पहला और ज्यादा जरूरी

आनंद बाबू को मुत्मइन करने के लिए, उनकी हिम्मत बढ़ाने और झिझक कम करने के लिए जिससे उनकी पढ़ाई चंदा भाभी की पाठशाला में ठीक से हो सके, जब उन्हें मालूम होगा की गुड्डी और गूंजा दोनों सो रही है तो उनकी धड़क भी खुलती

और फिर गुड्डी की दिन में रगड़ाई होनी थी और अगली रात फिर से रतजगा, तो बिना किसी डिस्टर्बेंस के सो ले
सटीक कारण..
 

motaalund

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:bow:
होली का राशिफल

गजब ,
आज तो भविष्य मल्लिका भी पढ ली गयी
वैसे ये सही किरदारों को कैरेकटर एक्सप्लोर कराने की निन्जा टेक्नीक 😁
आनन्द बाबू सच मे थोड़े अनाड़ी है ,
मगर ये भी समझ रहे है , अगर चासनी मे डुबेंगे नही तो किसी के मुह के रसगुल्ला बनेन्गे भी नही ।
ये इश्क का दरिया है... और डूब के जाना है...
 

motaalund

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Chanda bhabhi Role play bhi achha kr leti hai, guddi ka demo mil gya
सिर्फ गुड्डी हीं.. नहीं..
बल्कि उस जैसी पहली-पहली बार करवाने वाली हर लडकी..
जैसे गुंजा और गुड्डी नाम वाली आनंद बाबू की बहन...
 

motaalund

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आपके कमेंट की एक एक पंक्ति मेरी पूरी पोस्टों पर भारी है,

' सही किरदारों का कैरेक्टर एक्सप्लोर करने की निंजा टेक्निक'

एकदम सटीक बात कही है आपने और तीन बातें, पहली बनारस और उस के आसपास के इलाकों में ' होली साहित्य' खास होली के लिए जो छपता था उनमे ये राशिफल जरूर होते थे और घटनाक्रम बनारस का है,

दूसरी बात जो निंजा टेक्निक की बात आपने की है एकदम सही है, राशि आनंद बाबू की कर्क या कैंसर और गुड्डी की मीन कहानी में उनके व्यक्तित्व के अनुरूप है और उन का मेल भी

मैं दोनों राशियों के बारे कुछ नेट से उठायी गयी बातें जस का तस रख रही हूँ
Cancer's extremely sensual, sentimental nature can't help but come through between the sheets. Just as they lead with their heart in most other areas of life, they ideally need to feel a special connection with a partner in order to enjoy sex. In fact, the more they care and feel attached, the more turned on they'll be.

---

Cancer men find enjoyment in fulfilling your every desire, thanks to their extreme sensuality and giving nature. Yep, they’re excellent at oral. There’s a reason their sign’s symbol looks like a 69! Just know that if you want to mix things up in bed, you’ll have to explicitly tell him, since Cancers can be a bit shy if not encouraged.


और आनंद कर्क और गुड्डी मीन
Cancer men and Pisces women are highly compatible and may experience love at first sight. Both signs are water signs, and they are drawn to each other immediately and feel understood right away. They can form a warm, nourishing, and emotionally enriching bond and are often able to read each other's mind।

ये बात आनंद बाबू और गुड्डी के रिश्ते को अच्छी तरह से परिभाषित करती है, इसलिए राशिफल के जरिये दोनों के पर्सनालिटी ट्रेट्स के भी कुछ अंश की झलकी

और तीसरी बात, जो बात आनंद बाबू चाहते हुए भी नहीं कह पा रहे थे वो एक दो मीठी मीठी लाइनों में

“आपकी यह होली बहुत अच्छी भी होगी और बहुत खतरनाक भी। आप पहले ही किसी किशोरी के गुलाबी नयनों के रस रंग से भीग गए हैं। इस होली में आप इस तरह रस रंग में भीगेंगे की ना आप छुड़ा पाएंगे ना छुड़ाना चाहेंगे। वो रंग आपके जीवन को रंग से पूरे जीवन के लिए रंग देगा। हाँ जिसने की शर्म उसके फूटे करम। इसलिए। पहल कीजिये थोड़ा बेशर्म होइए उसे बेशर्म बनाइये आखिर फागुन महीना ही शर्म लिहाज छोड़ने का है…”

एक पल रुक कर मैंने गुड्डी की ओर देखा।

गुड्डी गुलाल हो रही थी। उसने अपनी बड़ी-बड़ी पलकें उठाएं और गिरा ली। हजार पिचकारियां एक साथ चल पड़ी। मैं सतरंगे रंगों में नहा उठा। मैंने उस किशोरी की ओर देखा"



एक बार फिर से कोटिश आभार, धन्यवाद पधारने का बस एक बात आपके कमेंट की कुछ लाइने अगर मैं चुरा लूँ और इस कहानी में कहीं आगे वो नजर आएं तो मेरा दोष नहीं

सुवरन को खोजत फिरें, कवि, वयभिचारी चोर
और यही बातें आपकी कहानी में झलकती है...
तो लगता है कि कहानी के पीछे काफी मेहनत की गई है...
 

motaalund

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फागुन के दिन चार भाग १३

होली का धमाल

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Holi-Bhabhi-20230320-170904.jpg

मेरे हाथ सीधे रीत के मस्त किशोर छलकते उभारों पे।

जवाब में उसने अपने गोल-गोल चूतड़ मेरे तन्नाये शेर पे रगड़ दिया। फिर तो मैंने कसकर उसके थिरकते नितम्बों के बीच की दरार पे लगाकर, रगड़ा अपना खड़ा खूंटा,

पिछवाड़े का मजा मैंने अभी नहीं लिया था, लेकिन रीत के गोल गोल नितम्ब किसी की भी ईमान खराब करने के लिए काफी थे। और मेरी साली, सलहजें सब मेरे पिछवाड़े, मेरी बहन के पिछवाड़े के पीछे पड़ी थी तो मैं क्यों छोड़ता, फिर भांग अब अच्छी तरह चढ़ गयी थी, मुझे कोई फरक नहीं पड़ता की सब लोग देख रहे हैं और जिसकी बात से फरक पड़ता था, उस ने पहले ही अपनी दीदी के लिए न सिर्फ ग्रीन सिग्नल दे रखा था, बल्कि उकसा भी रही थी।

अब मन कर रहा था की बस अब सीधी रीत की पाजामी को फाड़कर ‘वो’ अन्दर घुस जाए।

हम दोनों बावले हो रहे थे, फागुन तन से मन से छलक रहा था बस गाने के सुर ताल पे मैं और वो। मेरे दोनों हाथ उसके उभारों पे थे और। बस लग रहा था की मैं उसे हचक-हचक के चोद रहा हूँ और वो मस्त होकर चुदवा रही है। हम भूल गए थे की वहां और भी हैं।



लेकिन श्रेया घोषाल की आवाज बंद हुई और हम दोनों को लग रहा था की किसी जादुई तिलिस्म से बाहर आ गए। एक पल के लिए मुझे देखकर रीत शर्मा गई और हम दोनों ने जब सामने देखा तो दूबे भाभी, चंदा भाभी और गुड्डी तीनों मुश्कुरा रही थी।

सबसे पहले चंदा भाभी ने ताली बजाई। फिर दूबे भाभी ने और फिर गुड्डी भी शामिल हो गई।



“बहुत मस्त नाचती है ना रीत…” दूबे भाभी बोली और रीत खुश भी हुई, शर्मा भी गई। लेकिन भाभी ने मुझे देखकर कहा- “लेकिन तुम भी कम नहीं हो…”



“अरे बाकी चीजों में भी ये कम नहीं है। बस देखने के सीधे हैं…” चंदा भाभी ने मुझे छेड़ा।



लेकिन दूबे भाभी ने बात पकड़ ली-

“अच्छा तो करवा चुकी हो क्या? तुमने ले लिया रसगुल्ले का रस…” हँसकर वो बोली।

अब चंदा भाभी के झेंपने की बारी थी।

लेकिन गुड्डी ने बात बदली- “अरे इनकी वो बहना जो इनके साथ आयेंगी। वो भी बहुत सेक्सी नाचती हैं…”

“अरे उससे तो मैं मुजरा करवाऊँगी चूची उठा-उठाकर, कोठे पे बैठाऊँगी उसे तो…” दूबे भाभी बोल रही थी।

गुड्डी को तो मौका चाहिए था मुझे रगड़ने का, मुझे देख के मुस्करायी और बोली,

" अरे तभी ये कल से पूछ रहे हैं दालमंडी (बनारस का रेड लाइट एरिया) किधर है और मेरे साथ बाजार गए थे तो किसी से बात भी कर रहे थे, रात की कमाई का चवन्नी तो मेरा भी होगा।" और मैं कुछ खंडन जारी करता उसके पहले गुड्डी ने जीभ निकाल के चिढ़ा दिया और उसके बाद मोर्चा रीत ने सम्हाल लिया।

रीत, जो अब हम सबके पास बैठ चुकी थी मुझसे बोली-

“अरे ये तो बड़ी खुशी की बात है, किसी काम का शुभारंभ हो तो। कुछ मीठा जो जाय…”

और जब तक मैं सम्हलूं उस दुष्ट ने पास में रखी भांग पड़ी चन्दा भाभी द्वारा निर्मित एक गुझिया मेरे मुँह में, और दूबे भाभी से बोली-

“उससे स्ट्रिप टीज भी करवाएंगे। आज कल इसकी डिमांड ज्यादा है। क्यों?”
पता नहीं दूबे भाभी को बात पसंद नहीं आई या समझ नहीं आई? उन्होंने लाइन बदल दीं, बात फिर होली के गानों पे आ गयी वो बोली-

“आज कल ना। अरे बनारस की होली में भोजपुरिया होली जब तक ना हो। पता नहीं तुम सबन को आता भी है की नहीं?”

वो पल में रत्ती पल में माशा।



लेकिन मैं दूबे भाभी को पटा के रखना चाहता था।

मेरी यहाँ चाहे जितनी रगड़ाई हो, मेरी ममेरी बहन के ऊपर रॉकी को चढ़ाएं, लेकिन असली बात थी गुड्डी, कुछ भी हो मुझे ये बदमाश वाली लड़की चाहिए थी, वो भी लाइफ टाइम के लिए, भाभी ने आज मेरी किसी बात को मना नहीं किया तो इस बात के लिए भी नहीं, हाँ भाभी से ये बात कहने की न मैं हिम्मत जुटा पा रहा था, न ये समझ पा रहा था कैसे कहूं, पहले तो मैं नौकरी के नाम पे भाभी से टालता था, फिर ट्रेनिंग और अब ट्रेनिंग भी तीन चार महीने ही बची थी, सितंबर में तो पोस्टिंग हो जाएगी तो अब जल्दी से जल्दी, और भाभी तो मान गयी लेकिन गुड्डी के घर वाले, और मैं समझ गया था गुड्डी के घर, गुड्डी की मम्मी की हामी बहुत जरूरी है।



लेकिन इस चार घर के संयुक्त परिवार में ( गुड्डी, चंदा भाभी, दूबे भाभी -रीत और एक अभी आने वाली थीं ) मस्टराइन दूबे भाभी ही हैं, उमर में भी सबसे बड़ी और मस्ती में भी सबसे ज्यादा और उनकी हाँ में हाँ मिलाने का कोई मौका मैं छोड़ना नहीं चाहता था.

मैं दूबे भाभी की पसंद समझ गया था, मेरी भी असल में वही थी। मैंने बोला- “क्यों नहीं। अभी लगाता हूँ एक…” और मैंने चन्दा भाभी के कलेक्सन में से एक सीडी लगाई। लेकिन वो एक डुईट सांग पहले मर्द की आवाज में थी।


“हे तुम्हीं करना मुझे नहीं आता…” रीत ने धीरे से मेरे कान में फुसफुसा के कहा- “कोई फास्ट नंबर हो, फिल्मी हो, यहाँ तक की भांगड़ा हो लेकिन ये गाँव के। मैंने कभी नहीं किया…”

“अरे यार जो आज तक नहीं किया। वही काम तो मेरे साथ करना होगा न…” मैंने चिढ़ाया। मैं बोला तो धीमे से था लेकिन चन्दा भाभी ने सुन लिया।


चन्दा भाभी बोली- “अरे रीत करवा ले, करवा ले…”

रीत दुष्ट। उसने शैतान निगाहों से गुड्डी की ओर देखा।

गुड्डी भी कम नहीं थी- “अरे करवा ले यार। एक-दो बार में इनका घिस नहीं जाएगा। वैसे भी अब दूबे भाभी का हुकुम है की मुझे इनसे इनकी कजन की नथ उतरवानी है…”

तब तक गाना शुरू हो गया था।

मैंने उसे खींचते हुए बोला- “अरे यार चलो नखड़ा ना दिखाओ। शुभारम्भ। और अबकी जब तक वो समझे सम्हले, मेरे हाथ से गुझिया उसके मुँह में और गाने के साथ डांस करना शुरू कर दिया-
होली बिना भोजपुरी गाने के..
जोगीड़ा.. कबीरा के अधूरी है...
अब जो कमी भोजपुरी गाने पर डांस की रीत की होगी.. वो आनंद बाबू के कम्प्लिमेंट करेगी...
 
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