आपके कमेंट की एक एक पंक्ति मेरी पूरी पोस्टों पर भारी है,
' सही किरदारों का कैरेक्टर एक्सप्लोर करने की निंजा टेक्निक'
एकदम सटीक बात कही है आपने और तीन बातें, पहली बनारस और उस के आसपास के इलाकों में ' होली साहित्य' खास होली के लिए जो छपता था उनमे ये राशिफल जरूर होते थे और घटनाक्रम बनारस का है,
दूसरी बात जो निंजा टेक्निक की बात आपने की है एकदम सही है, राशि आनंद बाबू की कर्क या कैंसर और गुड्डी की मीन कहानी में उनके व्यक्तित्व के अनुरूप है और उन का मेल भी
मैं दोनों राशियों के बारे कुछ नेट से उठायी गयी बातें जस का तस रख रही हूँ
Cancer's extremely sensual, sentimental nature can't help but come through between the sheets. Just as they lead with their heart in most other areas of life, they ideally need to feel a special connection with a partner in order to enjoy sex. In fact, the more they care and feel attached, the more turned on they'll be.
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Cancer men find enjoyment in fulfilling your every desire, thanks to their extreme sensuality and giving nature. Yep, they’re excellent at oral. There’s a reason their sign’s symbol looks like a 69! Just know that if you want to mix things up in bed, you’ll have to explicitly tell him, since Cancers can be a bit shy if not encouraged.
और आनंद कर्क और गुड्डी मीन
Cancer men and Pisces women are highly compatible and may experience love at first sight. Both signs are water signs, and they are drawn to each other immediately and feel understood right away. They can form a warm, nourishing, and emotionally enriching bond and are often able to read each other's mind।
ये बात आनंद बाबू और गुड्डी के रिश्ते को अच्छी तरह से परिभाषित करती है, इसलिए राशिफल के जरिये दोनों के पर्सनालिटी ट्रेट्स के भी कुछ अंश की झलकी
और तीसरी बात, जो बात आनंद बाबू चाहते हुए भी नहीं कह पा रहे थे वो एक दो मीठी मीठी लाइनों में
“आपकी यह होली बहुत अच्छी भी होगी और बहुत खतरनाक भी। आप पहले ही किसी किशोरी के गुलाबी नयनों के रस रंग से भीग गए हैं। इस होली में आप इस तरह रस रंग में भीगेंगे की ना आप छुड़ा पाएंगे ना छुड़ाना चाहेंगे। वो रंग आपके जीवन को रंग से पूरे जीवन के लिए रंग देगा। हाँ जिसने की शर्म उसके फूटे करम। इसलिए। पहल कीजिये थोड़ा बेशर्म होइए उसे बेशर्म बनाइये आखिर फागुन महीना ही शर्म लिहाज छोड़ने का है…”
एक पल रुक कर मैंने गुड्डी की ओर देखा।
गुड्डी गुलाल हो रही थी। उसने अपनी बड़ी-बड़ी पलकें उठाएं और गिरा ली। हजार पिचकारियां एक साथ चल पड़ी। मैं सतरंगे रंगों में नहा उठा। मैंने उस किशोरी की ओर देखा"
एक बार फिर से कोटिश आभार, धन्यवाद पधारने का बस एक बात आपके कमेंट की कुछ लाइने अगर मैं चुरा लूँ और इस कहानी में कहीं आगे वो नजर आएं तो मेरा दोष नहीं
सुवरन को खोजत फिरें, कवि, वयभिचारी चोर