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फागुन के दिन चार भाग ३० -कौन है चुम्मन ? पृष्ठ ३४७
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बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है आनंद के साथ गुड्डी की मस्तियां चालू हैफागुन के दिन चार भाग ८
चिकनी चमेली
१,०१,४००
“मतलब?” मुश्किल से पीछे मुड़कर उस तौलिये को बाँधकर मैंने पूछा।
अब खुलकर हँसती हुई उस सारंग नयनी ने कहा- “मतलब ये है की आपकी भाभी ने आदेश दिया है की आपको चिकनी चमेली बना दिया जाय। सुबह तो सिर्फ मंजन किया था ना। तो फिर…”
और हाथ पकड़कर वो मुझे चंदा भाभी के कमरे में ले आई जहां मैं रात में सोया था।
“पर मेरा तो कोई सामान ही नहीं रेजर, शेविंग का सामान। बाकी सब…” मैंने दुहराया।
“बुद्दू राम जी ये सब आपकी चिंता का विषय नहीं है, जब तक मैं हूँ आपके पास। मैं हूँ ना…” मेरे गाल कसकर पकड़कर वो दुष्ट बोली-
“अरे यार मैंने भाभी से पूछा था तो उनके पति का फ्रेश रेजर ब्रश सब कुछ हैं और साबुन वाबुन तो लड़कियों के लगाने में कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए तुम्हें…”
बाकी भाभी के ड्रेसिंग टेबल की ओर इशारा करते हुए हुए वो आँख नचाकर बोली-
“लिपस्टिक, नेल पालिश, रूज जो भी चाहिए। लेकिन ये बताओ जब मैंने तुम्हारी लुंगी खींची तो इतना छिनछिना क्यों रहे थे? क्या कभी रैगिंग में तुम्हारे कपड़े वपड़े नहीं उतरवाये गए क्या? मैंने तो सुना है की रैगिंग में बहुत कुछ होता है…”
“सही सुना है तुमने लेकिन बस मैं बच गया, हुयी तो लेकिन बहुत ज्यादा नहीं। फिर रैगिंग में कपडे उतरते तो हैं लेकिन लड़कों के सामने यहाँ तो …”
मेरी बात काटकर वो बोली- “चलो कोई बात नहीं, वो सब कसर आज पूरी हो जायेगी। दूबे भाभी, साथ में,... बस देखना…” और खींचकर उसने मुझे बाथरूम में पहुँचा दिया। और शरारत से वो बोली-
“मैं नहला दूं?”
“नहीं नहीं…” मुझे सुबह का बन्दर छाप लाल दन्त मंजन याद था।
“जाने दो यार। मेरे भी वो पांच दिन चल रहे हैं। वरना तुम्हारे मना करने का मेरे ऊपर क्या फर्क पड़ता। अभी मैं ब्रश रेजर वेजर लेकर आती हूँ…” और वो बाथरूम के बाहर निकलकर एक आलमारी खोलने लगी।
क्या मस्त बाथरूम था। हल्के गुलाबी रंग की टाइल्स, एकक बड़ा सा बाथटब, शावर, एकदम माडर्न फिटिंग्स, और जब मैंने ऊपर नजर घुमाई। इम्पोर्टेड साबुन, शैम्पू, जेल, डियो, जो आप सोच सकते हैं वो सब कुछ। टब के साथ बबल-बाथ वाले सोप। मैंने बाथटब का टैप आन कर दिया, और उसमें बबल-बाथ वाला सोप डाल दिया। थोड़ी ही देर में टब भर गया था। मैंने सोचा था अच्छे से शेव करके थोड़ी देर टब में नहाऊंगा। रात भर की थकान उतर जायेगी। और उसे बाद ठन्डे पानी से बढ़िया शावर।
हाँ वो रेजर वेजर।
वो गुड्डी की बच्ची पता नहीं कहाँ गायब हो गई। शैतान का नाम लो शैतान हाजिर। वो आ गई हांफते कांपते-
“देखो मैं तुम्हारे लिए सब चीजें ले आई…” वो बोली।
हाँ। रेजर था, वो भी नया। बिना इश्तेमाल किया। मेरी पसंद वाला ब्रश भी था। लेकिन। शेविंग क्रीम- “हे क्रीम कहाँ है? उसके बिना…” मैंने उसकी ओर देखा।
“अरे कर लो ना यार। क्या फर्क पड़ता है?” उसने मुझे फुसलाया।
“अच्छा थोड़े देर बाद आज रात ही को तो, मैं करूँगा। तुम्हारे साथ बिना क्रीम के बिना कुछ लगाए। तो पता चलेगा…” मैंने शरारत से छेड़ा।
“तुम ना हरदम एक ही बात…” कुछ मुँह फुलाकर वो बोली फिर हँसकर कहने लगी-
“अरे यार उसकी बात और है और इसकी बात और है…”
“अच्छा जी तुम्हारी मुलायम है मलमल की, और मेरे गाल हैं टाट के…” मैंने और छेड़ा।
प्यार से मेरे गालों को सहलाकर बोली- “अरे मेरे यार के गाल तो गुलाब हैं…”
और तिरछी आँख करके मुझे घूरा और बोली- “आज कस-कसकर ना रगड़ा तो कहना, इन गालों को…” और मुड़ गई।
फिर जाते-जाते बोलने लगी- “तुम ना बाबा एक ही हो। ले आती हूँ कहीं से ढूँढ़ ढांढ़ के, तुम भी क्या याद करोगे…”
फिर बाहर से उठक पटक, धड़ाक पड़ाक दराज खोलने, बंद करने की आवाजें। गुस्से में लग रही थी वो-
“मिल गई है लेकिन कम है, मैं दबा-दबाकर अपनी हथेली में निकालकर ले आऊं?” उसकी खीझी हुई आवाज आई।
अब मना करना खतरे से खाली नहीं था। मैंने मस्का लगाया- “हाँ ले आओ ले आओ। तू बहुत अच्छी हो…”
“ज्यादा मक्खन लगाने की जरूरत नहीं है…” वो बोली। थोड़ा गुस्से में अभी भी लग रही थी।
उसने हथेली में रोप कर ढेर सारी पीली-पीली क्रीम जैसी। मैंने लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो उसने झट से मना कर दिया-
“मंगते। हर जगह हाथ फैला देते हो। तुमने इधर-उधर गिरा दिया तो। फिर मैं कहाँ से ढूँढ़ कर लाऊँगी। इत्ती मुश्किल से तो। और इसके बिना तुम्हारा काम। लाओ अपने मुलायम-मुलायम हेमा मालिनी के गाल…”
और उसने चारों ओर अच्छी तरह चुपड़ दिया। जरा भी जगह नहीं बची। उसके हाथ में अभी भी थोड़ी सी क्रीम बची थी, और उसके होंठों पे शरारत भरी मुश्कान खेल रही थी।
जब तक मैं समझ पाता। उसका हाथ तौलिये के अन्दर-
“अरे यहाँ पर भी तो। यहाँ भी बाल तो बनाते होगे। क्रीम तो लगाना पड़ेगा ना। कहीं कट वट गया तो। नुकसान तो मेरा ही होगा…”
फिर वो मुझे अदा से घूरती रही।
“तुम न…” मेरे समझ में नहीं आ रहा था क्या बोलूं?
“मैं क्या?” वो अब पूरी शरारत से मुश्कुरा रही थी- “मैं बहुत बुरी हूँ ना…”
मेरी समझ में नहीं आया और मैंने बाहों में पकड़कर चुम्मी ले लिया।
वो बाथटब की ओर देख रही थी, और बोली- “साथ-साथ नहाते तो इतना मजा आता…”
“तो आओ ना…” मैंने दावत दी।
“अरे नहीं यार मेरी वो साली। वो पांच दिन वाली सहेली। ऐसे गलत समय आई है ना। वरना ये मौका मैं छोड़ती। जब हम लौटकर आयेंगे ना तो एक दिन तुम्हारे साथ जरूर नहाऊँगी। तुम्हें नहालाऊँगी भी और। धुलाऊँगी भी…”गुड्डी मुस्कराते हुए बोली।
तब तक चन्दा भाभी ने आवाज दी, और वो परी उड़ चली लेकिन उसके पहले कहा-
“हे, तुम ये तौलिया लपेटे टब में जाओगे क्या?” और खिलखिलाते हुए उसने मेरी तौलिया खींच ली और मेरा ‘वो’ 90° डिग्री पे था। जाते-जाते वो फिर ठिठक गई और ‘उसकी’ ओर देखकर, वो शैतान मुश्कुराकर पूछने लगी-
“अच्छा जब मैंने तुम्हारी लुंगी खींची थी तो तुम उसे छिपा क्यों रहे थे?”
“वो। वहां पे…” मैं हकला रहा था- “वहां पे गुंजा जो थी…”
“अच्छा जी…” वो इत्ते जोर से हँसी-
“तुम ना बुद्धू थे, बुद्धू रहोगे। गुंजा, अरे यार। वो साली तेरी साली है। उसने खुद बोला। उसकी मम्मी ने बोला, इत्ता वो आज तुम्हें छेड़ रही थी। अरे तुम्हारी जगह कोई और होता ना। तुम दिखाने से डर रहे थे। वो तो उसे अब तक हाथ में पकड़ा देता। घुसेड़ने को सोचता। और तुम ना…” मुश्कुराकर वो बोली और चल दी।
मैंने शेव करनी शुरू की। क्रीम चुनचुना रही थी, झाग भी नहीं बन रहा था। मुझे लगा शायद इम्पोर्टेड है इसीलिए। मैंने दो बार शेव बनाई रेजर काफी शार्प था। फिर गुड्डी की बात याद आ गई नीचे के बालों के बारे में। क्रीम तो उसने वहां भी खूब लिथड़ दी थी। कभी-कभी वहां के बाल मैं साफ करता ही था। मैंने कर लिया। एकदम साफ हो गए।
फिर मैं टब में जाकर बैठा। थोड़ी देर में सारी थकान, मैल सब कुछ दूर, और उसके बाद शावर शैम्पू। जब मैं तैयार होकर बाहर निकाला तो एकदम हल्का जैसे कहते हैं ना लाईट एस फेदर, बिलकुल वैसा। हाँ एक बात और जब मैंने कैबिनेट खोली तो मुझे उसमें वो बोतल दिख गई जिसमें से चन्दा भाभी ने, वही सांडे के तेल वाली। उन्होंने समझाया था, दो बार रोज इश्तेमाल से परमानेंट फायदा होता है तो मैंने बस थोड़ा सा लगा लिया। बाद में पता चला की कड़ा और खड़ा करने के साथ-साथ उसमें से एक गंध निकलती है जिसका लड़कियों पे बहुत मादक और कामुक असर होता है। मुझे अच्छा लग रहा था लेकिन साथ में कुछ परेशानी भी।
मैंने गुंजा का दिया टाप और बर्मुडा पहना और कमरे में आ गया।
बाहर गुड्डी कुछ कर रही थी। मेरी निगाह उसी पे लगी रही। क्या है उस जादूगरनी में? मैं सोच रहा था।
मेरे मन ने कहा- “सब कुछ। जो तुम चाहते हो। बल्की उससे भी बहुत ज्यादा। पकड़ लो कसकर अगर वो फिसल गई ना तो पूरी जिंदगी पछताओगे…”
भाभी ने एक बार मुझसे पूछा था- “तुम्हें कैसी लड़की पसंद है?” असल में भाभी ने कहा था तुम्हें- “कैसा माल पसंद है?”
शर्माते झिझकते, मैंने बोला- “असल में। वो वो। जो दीवाल से सटकर खड़ी है। फेस करके उसकी ओर तो तो…”
“अरे यार। तो तो क्या लगा रखी है? बोलो ना साफ साफ?” भाभी बोली।
“वो। जो दीवाल से सटकर खड़ी है। फेस करके उसकी और तो पहली चीज जो दीवाल से लगे तो वो उसकी। नाक ना हो…” मैंने बहुत मुश्किल से कहा।
“उन्ह्ह। उन्ह…” एक पल में वो समझ गई पर मुझे छेड़ते हुए कहा- “अच्छा, तो उसकी नाक छोटी हो। समझ गई मैं…” बड़ी सीरियस होकर वो बोली।
“ना ना…” मैं कैसे समझाऊँ उनको। मेरी समझ में नहीं आ रहा था।
वो हँसते-हँसते दुहरी हो गईं- “अरे साफ-साफ क्यों नहीं कहते की तुम्हें ‘बिग-बी’ पसंद है। सही तो है। मुझे भी जीरो फिगर एकदम पसंद नहीं…”
मेरी निगाह गुड्डी से चिपकी हुई थी। वो झुकी हुई थी, टेबल ठीक कर रही थी और उसके दोनों उरोज कसी-कसी फ्राक से एकदम छलकते हुए।
मेरा मन कह रहा था की बस जाकर दबोच लूं। गुंजा कह रही थी ना की गुड्डी को स्कूल में टाइटिल मिली थी ‘बिग-बी’ एकदम सही टाइटिल थी।
उसकी चोटियां भी खूब मोटी घनी और सीधे नितम्बों की दरार तक, और नितम्ब भी एकदम परफेक्ट, कसे रसीले। लम्बाई भी उसकी उम्र की लड़कियों से एक-दो इंच ज्यादा ही थी।
वो मासूम चेहरा।
लेकिन क्या शैतानी, शरारत छिपी थी उनमें। वो दो काली काली आँखें। उन्होंने ही तो लूट लिया था मुझे।
लेकिन सबसे बढ़कर उसका एटीट्युड।
दो बातें थीं, एक तो वो हक से। मुझे कोई चाहिए भी था ऐसा। शायद मैं बचपन से ज्यादा पैम्पर था इसलिए, थोड़ी डामिनेटिंग। और हक भी पूरे हक से। अगर मैं कोई चीज खाने में मना करता था तो वो जानबूझ के डाल देती थी मेरी थाली में, और मेरी मजाल जो छोडूँ। किसी भी चीज पे, और इसी के साथ उसका विश्वास। एक बार वो मुंडेर के सहारे झुकी थी, थोड़ी ज्यादा ही झुक रही थी, तो मैंने मना किया- “हे गिर जायेगी…”
वो आँख नचाकर बोली- “तुम किस मर्ज की दवा हो। बचा लेना…” उसका मानना था की वो कुछ भी करे मैं हूँ ना। और मैं कुछ भी करूँ सही ही होगा।
तभी मेरी निगाह फिर उसपे पड़ी। वो मुझे ही देख रही थी। उसने एक फ्लाईंग किस दी और मैंने भी जवाब में एक। सर हिला के उसने मुझे बुलाया। मैं जब पहुँचा तो बहुत बीजी थी वो। टेबल पे प्लेटें ढेर सारा सामान था।
टिपिकल गुड्डी, नाराज होकर वो बोली- “हे मैं यहाँ, काम के मारे मरी जा रही हूँ और वहां तुम। एसी में मजे से बैठे हो चलो। काम में हेल्प करवाओ…”
मैं- “अरे काम, वो भी तुम्हारे साथ। यही तो मैं चाहता हूँ और जब करना चाहता हूँ तो तुम कहती हो। तुम बड़े कामुक हो…” मैंने मुश्कुराकर कहा।
“वो तो तुम हो…” वो हँसी और मैं घायल हो गया। फिर उसकी शैतान आँखों ने नीचे से ऊपर तक मुझे देखना चालू कर दिया। मेरे चेहरे पे आकर उसकी आँखें रुक गईं और वो मुश्कुराने लगी।
बहुत ही मजेदार और रोमांचकारी अपडेट हैगायब, सफाचट
मैं- “अरे काम, वो भी तुम्हारे साथ। यही तो मैं चाहता हूँ और जब करना चाहता हूँ तो तुम कहती हो। तुम बड़े कामुक हो…” मैंने मुश्कुराकर कहा।
“वो तो तुम हो…” वो हँसी और मैं घायल हो गया। फिर उसकी शैतान आँखों ने नीचे से ऊपर तक मुझे देखना चालू कर दिया। मेरे चेहरे पे आकर उसकी आँखें रुक गईं और वो मुश्कुराने लगी।
उसकी एक उंगली ने मेरे गाल पे सहलाया और मैं नीचे तक सिहर गया। और फिर गाल पे एक हल्की सी चिकोटी काटकर उसने उंगली से मेरी ठुड्डी उठायी और आँख में आँख डालकर बोली- “बहुत मस्त शेव बनाया। एकदम मक्खन…”
मैं सिर्फ मुश्कुरा दिया। हाथ से गाल सहलाते एक उंगली वो मेरी नाक के ठीक नीचे ले गई। मुझे कुछ अजब सी अलग सी फीलिंग हुई। उसने बिना कुछ बोले मेरी गर्दन दीवार पे लगे शीशे की ओर मोड़ दी, और मुश्कुरा दी।
मैं चौंक गया- “हे। ये क्या?”
मेरी मूंछें साफ थी, एकदम चिकनी। वैसे मैं एक पतली सी मूंछ रखता था, लेकिन रखता जरूर था।
“अरे किस करने के लिए ज्यादा जगह। मैंने बोला था ना की तुम्हारी भाभी ने बोला है की चिकनी चमेली, तो…” वो शैतान बोली और उसने झप्प से मेरे होंठों पे एक बड़ी सी किस्सी ले ली।
“अरे वो जो तुमने क्रीम लगाई थी ना…” आँखें नचाकर, मुश्कुराकर वो बोली।
“हाँ। तो मतलब…” मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
“मतलब सीधा है, बुद्धू…” उसने मेरे गाल पे एक मीठी सी चिकोटी काटी और बोली-
“वो क्रीम चन्दा भाभी अपनी झांटें साफ करने के लिए प्रयोग करती हैं। और कभी-कभी मैं भी कर लेती हूँ। एकाध बाल शायद इसीलिए उसमें रह गया हो…”
“यानी?” अब मेरे चौंकने की बारी थी।
“अरे यानी कुछ नहीं। वो भी इम्पोर्टेड थी। यार एकदम स्पेशल और बहुत इफेक्टिव। लेकिन तुमने लगा भी तो कित्ता सारा लिया था। थोड़ी सी ही काफी होती है उसकी। मैं तो बस उंगली बराबर लगाती हूँ। लेकिन तुमने तो ढेर सारा लिथड़ लिया था। अब कम से कम पन्दरह दिन तक कोई घास फूस नहीं होगा…”
उसे लगा शायद मैं थोड़ा नाराज हूँ। लेकिन अब तो मुझे उसकी शैतानियों की आदत सी लग गई थी।
मेरे बरमुडा में हाथ डालकर अन्दर भी हाथ फिराते बोली- “अरे यहाँ भी तो एकदम चिकना हो गया है। ‘उसे’ उसने मुट्ठी में ले लिया और आगे-पीछे करते हुए छेड़ा- “हे। गुंजा का नाम लेकर 61-62 किया की नहीं?”
“छोड़ो ना यार…” मेरे जंगबहादुर की हालत खराब होती जा रही थी। वो अब पूरे जोश में आ रहा था।
गुड्डी- “पहले बताओ…” अब उसकी उंगली मेरे सुपाड़े के मुँह पे थी।
“नहीं यार। मैंने बोला ना की अब…” मेरी निगाह घड़ी पे थी, 10:00 बज रहे थे- “उन्ह 12-14 घंटे के बाद। बस अब ये तुम्हारे अन्दर घुस के 61-62 करेगा…”
गुड्डी- “तुम ना…” अब उसकी शर्माने की बारी थी। लेकिन वो कितने देर चुप रहती, बोली-
“असल में कल जब तुम्हें। वो गुंजा से मैं बात करके आ रही थी तो वो बोली की अगर इत्ते गोरे चिकने हैं तो उन्हें सिर्फ पूरा श्रृंगार कराना चाहिए…”
गुड्डी बोली- “बस एक थोड़ी सी कसर है…” तुम्हारी साली गुंजा बोली- “मूंछें हैं तो फिर। कैसे…”
गुड्डी- “मैंने सोच लिया और बोला- “चल उसका भी कुछ इंतजाम कर देंगे…” और वो खिलखिला के हँसने लगी।
मैं- “तुम दोनों ना। आने दो उसको स्कूल से…”
गुड्डी ने चिढ़ाया भी उकसाया भी, " अरे तेरी साली है, मेरी छोटी बहन, अब देख तो लिया ही है उसने बस घुसा देना, लेकिन पीछे तुम्ही रह जाते हो , मेरी बहन नहीं पीछे रहेगी, देखूंगी, आज इसका जोश, और मेरी बहन के साथ कुछ करोगे तो मुझे बुरा नहीं लगेगा हाँ कुछ नहीं करोगे तो जरूर बुरा लगेगा, इत्ती मुश्किल से तो बेचारी को एक जीजा मिला है, छोटी बहन का हक पहले होता है " और बरमूडा के ऊपर से ' उसे ' कस के दबा दिया।
और जोड़ा - “ये मत समझना बच्ची है वो, मेरी बहन, अरे यार, यहाँ बच्चे तो सिर्फ तुम हो। जानते हो मेरी क्लास में। …”
अबकी बात काटने का काम मैंने किया। मैंने उसे मक्खन लगाते हुए कहा- “अरी मेरी सोनिये मुझे मालूम है। तू अपने क्लास में सबसे प्यारी है, सबसे सेक्सी है, और सबसे पहले तेरी बिल में सेंध लगने वाली है…”
आँखें नचाते हुए उसने कसकर मेरा कान पकड़कर खींचा और बोली-
“यही तो। पता कुछ नहीं, लेकिन बोलेंगे जरूर। वैसे आधी बात तो सच है। सबसे सेक्सी और सोनी तो मैं हूँ। लेकिन मेरे प्यारे बुद्धूराम, मेरी क्लास की मेरी आधे से ज्यादा सहेलियों की बिल में सेंध लग चुकी है। सिर्फ तीन-चार बची हैं मेरे जैसी, और मेरे पल्ले तो तेरे जैसा बुद्धू पड़ गया है इसलिए। पता है और उनमें से आधे से ज्यादा किससे फँसी हैं?”
“ना…” मुझे बात सुनने से ज्यादा उसके गुलाबी गालों को देखने में मजा आ रहा था। वो इत्ती उत्तेजित लग रही थी।
“अरे यार। अपने कजिन्स से। किसी का चचेरा भाई है तो किसी का ममेरा, फुफेरा, मौसेरा। घर में किसी को शक भी नहीं होता, मौका भी मिल जाता है…”
अचानक उसकी कजारारी आँखों में एक नई चमक उभरी।
मैं समझ गया कोई शैतानी इसके दिमाग में आई है।
वो मेरे पास सट गई और बोली- “सुन ना। वो जो तेरी कजिन है ना। चलवा दूँ उससे तेरा चक्कर? अरे वही जिसका नाम लेकर कल मम्मी और चंदा भाभी तुम्हें मस्त गालियां सुना रही थी। तो उनकी बात सच करवा दो ना इस होली में। अरे यार इत्ती बुरी भी नहीं है। मस्त है। हाँ थोड़ा छोटा है, ढूँढ़ते रह जाओगे टाईप। लेकिन कुछ मेहनत करोगे तो उसका भी मस्त हो जाएगा। वैसे हम दोनों का भी फायदा है उसमें…” किसी चतुर सुजान की तरह वो बोली।
“क्या?” मुझसे बिना पूछे नहीं रहा गया।
“अरे यार कभी हम लोगों को एक साथ चिपटा-चिपटी करते देख लेगी तो कहीं गाएगी तो नहीं, अगर एक बार तुमसे खुद करवा लेगी तो। वैसे बुरी नहीं है वो…” मुश्कुराकर वो बोली।
मेरी समझ में नहीं आ रहा था की वो मजाक कर रही है या सीरियस है। मैंने बात बदलने की कोशिश की- “ये तुम कर क्या रही हो?”
और अब उल्टे मुझे डाट पड़ गई- “तुम ना। देखो तुम्हारी बातों में आकर मैं भी ना। कित्ता टाइम निकल गया। अब मुझे ही डांट पड़ेगी और समझ में भी नहीं आ रहा है। की। …” और मुझे हड़काते हुए बोली।
“बताओ न…” मैंने पूछने की कोशिश की और अबकी थोड़ा कामयाब हो गया।
“अरे यार वो तुम्हारी भाभी ना। थोड़ी देर में यहाँ दंगल शुरू होगा…”
“दंगल मतलब?” मेरी समझ में नहीं आया।
“अरे यार। तुम बात तो पूरी नहीं करने देते और बीच में। अरे यहाँ कुछ स्नैक्स वैक्स का इंतजाम करना था। दूबे भाभी ने दही बड़े बनाए हैं। अभी उनकी ननद लेकर आ रही होगी। तो मीठे के लिए आज सुबह चन्दा भाभी ने गुझिया गरम-गरम बनायी है, वैसी ही जिसे खाकर कल तुम झूम गए थे। लेकिन होली में गुझिया खाता कौन है, खा-खाकर लोग थक जाते हैं और लोगों को शक भी रहता है की कहीं उसमें। और वैसे तो उन्होंने ठंडाई भी बनायी है लेकिन उसमें भी…”
गुड्डी न, अगर पांच मिनट में दो तीन बार मुझे डांट न ले कस के उसकी बात पूरी नहीं होती थी।
“पड़ी है की नहीं उसमें?” मैंने मुश्कुराकर पूछा।
“अरे एकदम चंदा भाभी बनाए। उन्होंने मुझे कहा है की अगर नहीं चढ़ी तो वो मेरी ऐसी की तैसी कर देंगी आज। लेकिन जल्दी कोई हाथ नहीं लगाएगा ठंडाई में…”
“बात तो तेरी सही है यार। हूँ हूँ…” ऐसा करते हैं सुन- “कल वो नाथा हलवाई के यहाँ से वो गुलाब जामुन लाये थे ना…” मैंने आइडिया दिया।
“अरे वो। डबल डोज वाली ना स्पेशल। हाँ आइडिया तो तुम्हारा ठीक है। किसी को पता भी नहीं चलेगा…” वो खुश होकर बोली।
“हाँ एक बात और कितना टाइम है सबके आने में?” मैंने पूछा।
“बस दस पंद्रह मिनट…”
“अरे तो ठीक है, दो बोतल बियर कल लाये थे ना…”
“हाँ…” उसकी आँखों में चमक आ गई।
“बस पांच मिनट बाद उसे फ्रिज से निकालकर। मैं सील खोल दूंगा। और बर्फ ड़ाल के…” मैं बोला।
“सील खोलने का बहुत मन करता है तुम्हारा। अब तक कितने की खोल चुके हो?” खी खी करके वो हँसी।
“एक की तो आज खोलने वाला हूँ…” उसके गाल पे चिकोटी काटकर मैं बोला।
“धत्…” और शर्माकर वो टेसू हो गई। उसकी यही अदा जान ले लेती थी, कभी इतना शर्माती थी और कभी इत्ती बोल्ड। वो प्लेट में गुलाब जामुन लगाने लगी।
मैं बीयर की बोतल ले आया। लेकिन मुझे एक आइडिया और आया।
मैंने भाभी के कमरे में कुछ इम्पोर्टेड दारू देखी थी। मैं पीता नहीं था लेकिन अंदाज तो था ही, बैकार्डी जिसमें 80% अल्कोहल थी, वोदका कैनेबिस। जिसमें 80% अल्कोहल के साथ कनेबिस भी होती है और एक बोतल।
स्त्रह ( Stroh) ओरिजिनल औस्ट्रिया की रम जो काफी स्ट्रांग होती है। जो चंदा भाभी की अलमारी में थी वो तो ८० % थी।
मुझे भी शरारत सूझी।
मैंने दो बोतल लिम्का और स्प्राईट में बैकार्डी और वोदका, और पेप्सी और कोक में वो ८० % वाली आस्ट्रियन रम रम मिला दी और उसको इस तरह बंद कर दिया जैसे सील हों। ये बात मैंने गुड्डी को भी नहीं बतायी।
बैकार्डी व्हाइट रम होती है तो लिम्का के साथ उसकी अच्छी दोस्ती हो जाती है, वोदका भी। लिम्का और स्प्राइट के नाम पर और रमोला तो वैसे भी होली में चलता है लेकिन इस ऑस्ट्रियन रम के साथ उसका असर धमाल करने वाला होता।
7-8 ग्लास लगाकर मैंने उसमें बियर निकाल दी और गुड्डी को बोला की कोई पूछे तो बोल देना की इम्पोर्टेड कोल्ड-ड्रिंक है, मैं लाया हूँ।
वो प्लेटों में लाल, गुलाबी, नीला, रंग गुलाल अबीर रख रही थी, मुश्कुराकर बोली- “ये रंग तुम्हारे लिए नहीं हैं…”
“मुझे मालूम है मेरे ऊपर तो तुम्हारा रंग चढ़ गया है, अब किसी रंग का कोई असर नहीं होने वाला है…” हँसकर मैंने बोला।
“मारूंगी…” वो बनावटी गुस्स्से में बोली और एक हाथ में प्लेट से गुलाबी रंग लेकर मेरे गालों पे।
“अच्छा चलो डालो। आज रात को ना बताया तो। पूरी पिचकारी अन्दर कर दूंगा। और पूरा सफेद रंग…” मैं बोला।
“कर देना कौन डरता है? रात की रात को देखी जायेगी अभी तो मैं…” और दूसरे हाथ में प्लेट से लाल रंग लेकर। सीधे मेरे बार्मुडा में।
‘वहां’ रगड़-रगड़कर लगाती हुई बोली-
“बहुत रात की बात करके डरा रहे थे ना। इस पिचकारी को पिचका के रख दूंगी और एक-एक बूँद सफेद रंग निचोड़ लूँगी…” अब उसपे होली का रंग चढ़ गया था।
जो रंग उसने मेरे गाल पे लगाया था वो मैंने उसके गाल पे लगा दिया अपने गाल से उसके गाल को रगड़कर थोड़ी देर में हम लोग उभरे
यार तेरे चक्कर में मेरी ली जाएगी कस के, गुड्डी हड़बड़ाती पता नहीं कहाँ से फोन निकालती बोली,
एक बार आसपास देख के मैंने कस के उसे बाहों में भींच के एक जबरदस्त चुम्मी ले ली, और छेड़ा, मेरे रहते मेरी रूपा सोना को मेरे सिवाय और कौन लेने वाला पैदा हो गया ,
" तेरी, मम्मी जब तुम अपनी मूंछे साफ कर रहे थे उसी समय फोन आया था, मैंने पूछा भी की बता दीजिये मैं बोल दूंगी, तो हड़का लिया मुझे, हर बात तुझे बताना जरूरी है, : और वो फोन लगाने में लग गयी लेकिन मैंने गुड्डी को छेड़ा,
" हे तेरी कह के रुक क्यों गयी, क्या बोल रही थी, तेरी सास, है न "
गुड्डी खूब मीठी मुस्कान से मुस्करायी और फोन लगाते बोली, " जिस दिन हो जाएँगी न तेरी सास, सोच लेना, निहुराय के लेंगी, जो देख देख के इतना ललचाते हो, मैं देखती नहीं हूँ का, "
बहुत ही मजेदार और रोमांचकारी अपडेट हैफोन
मम्मी, छुटकी
" तेरी, ...मम्मी जब तुम अपनी मूंछे साफ कर रहे थे उसी समय फोन आया था, मैंने पूछा भी की बता दीजिये मैं बोल दूंगी, तो हड़का लिया मुझे, हर बात तुझे बताना जरूरी है, : और वो फोन लगाने में लग गयी लेकिन मैंने गुड्डी को छेड़ा,
" हे तेरी कह के रुक क्यों गयी, क्या बोल रही थी, तेरी सास, है न "
गुड्डी खूब मीठी मुस्कान से मुस्करायी और फोन लगाते बोली, " जिस दिन हो जाएँगी न तेरी सास, सोच लेना, निहुराय के लेंगी, जो देख देख के इतना ललचाते हो, मैं देखती नहीं हूँ का, "
और नंबर लग गय। और फोन गुड्डी ने मेरे हाथ में और उधर से मम्मी की आवाज, लेकिन कुछ वो बोल पातीं, मैंने पूछ लिया,
" मम्मी, पहुँच गयीं ठीक ठाक "
मेरे मम्मी बोलने पे गुड्डी जोर से मुस्करायी और पिछवाड़े कस के चुटकी काट ली, स्पीकर फोन ऑन था,
मम्मी बहुत खुस बोलीं ,
" तोहरे रहते, कौन परेशानी हो सकती है, कानपूर पहुँचने के पहले ही टीटी आगये, सब सामान, और जैसे स्टेशन आया , कम से कम चार पांच आदमी, अरे जो टोपी वोपी लगाए, मास्टर थे, गोड़ भी छुए हमारा, माता जी, माता जी, एक एक सामन उतरा गया आराम से, और वो स्टेशन मास्टर अपने कमरा में बैठाये के पहले चाय पियाये फिर, और छुटकी को अपना नंबर भी नोट कराये की जब लौटना हो या कोई काम हो तो पहले से, तो वो लोग स्टेशन के बाहर ही मिल जाएंगे। एकदम पता नहीं चला, सोच सोच के हम इतने परेशान थे, तोहार महतारी न जानी केकरे आगे टांग फैलाये होइए, केकर मलाई घोंटी होंगी, उनको भी नहीं याद होगा, लेकिन लड़िका बढ़िया निकाली हैं। "
मेरी तारीफ़ सुन के मुझसे ज्यादा गुड्डी खुश होती थी, मैं कनखियों से उसे देख रहा था,
तबतक पीछे से छुटकी की आवाज आयी दी , वीडियो काल, वीडियो काल और गुड्डी ने काल वीडियो पे शिफ्ट कर दी।
मम्मी को देखते ही मेरी हालत खराब, लगता था अभी नहा के निकली थीं, बाल खुले थोड़े भीगे, सफ़ेद देह से चिपका स्लीवलेस ब्लाउज, आर्म पिट साफ़ साफ़ दिख रही थी, गोरी गोरी कांखों में एकदम छोटे छोटे काले काल बाल जैसे रोयें बड़े हो गए, ब्लाउज साइड से भी बहुत खुला था, और ऊपर से भी लो कट, उभारों को कस के दबाये, चिपकाए हुए, औरतों के तीसरी आँख होती है। अंदाज उन्हें हो गया था की मेरी आंखे कहाँ चिपकी है, और आँचल ठीक करने के बहाने ऐसा लहराया, गिराया, की अब दोनों उभार एकदम खुल के, चोली सिर्फ उभारो के बेस तक थी,
गोरा पेट भी खुला था और गहरी नाभी साफ़ दिख रही थी।
जंगबहादुर एकदम विद्रोह को तैयार, तनतना रहे थे और बची खुची कसर पूरी हो गयी,
छुटकी की आवाज आयी मैं भी, मैं भी, और मम्मी ने हाथ से पकड़ के खींच के उसे भी मोबायल के कैमरे की रेंज में,
उसने एक छोटा सा खूब टाइट टॉप, थोड़ा घिसा हुआ पहन रखा था और कबूतर की दोनों चोंचे साफ़ साफ़ नुकीली दिख रही थीं,
वैसे तो शायद इतना नहीं लेकिन जो कल चंदा भाभी ने अर्था अर्था कर समझाया था की चौदह की हुयी तो चुदवासी, और पिछले साल होली में उन्होंने हाथ अंदर डाल के मसल के रगड़ रगड़ के गुड्डी की दोनों छोटी बहनों की कच्ची अमिया में रंग लगाया था, गुलाबो में हाथ लगाया था, दोनों फांक फैला के ऊँगली कर के हाल चाल ली थी, रगड़ने मसलने लायक भी दोनों हो गयी थी और लेने लायक भी। और उसके बाद सुबह सुबह गूंजा की हवा मिठाई की रगड़ाई,
और अब जिस तरह से छुटकी के चूजे टॉप से झांक रहे थे, मूसलचंद को पागल होना ही था,
और सबसे पहले छुटकी ने नोटिस किया, खी खी खी खी, और पहले अपनी नाक के नीचे एक ऊँगली लगा कर आँख के इशारे से मेरी मूंछ के बारे में पुछा, क्या हुआ, फिर गुड्डी से
" दी, क्या हुआ, गायब ?"
और अब मम्मी ने देखा और उन पर जो हंसी का दौरा पड़ा वो रुकने वाला नहीं था, लेकिन खुद को रोका और छुटकी को अपने बाँहों में दबोच के चुप करते हुए कहा,
" अच्छा तो लग रहा है, एकदम नमकीन, गाल चूमने लायक, बल्कि कचकचौवा, काटने लायक कचकचा कर, "
छुटकी क्यों छोड़ती, मुस्करा के बोली, सीधे मुझसे, छेड़ते हुए,
“चिकने।“
वो असल में, वो वाली क्रीम थी, मतलब जो वहां नीचे, वो वाली गलती से, वो वही, " मैं घबड़ाते हुए समझाने की कोशिश कर रहा था ।
छुटकी बदमाश तीखी निगाहों से देख के मुस्करा रही थी, लेकिन मम्मी तो मम्मी, खिलखिला के बोली,
" साफ़ साफ बोलो न झांट साफ़ करने वाली क्रीम, इतना लजात काहें हो, सब लगाते हैं, मैं, छुटकी, और झांट नीचे वाले होंठ के चारो ओर होती है और मूंछ दाढ़ी ऊपर वाले होंठ के, बाल तो बाल। लेकिन ये कम से कम पंद्रह बीस दिन का पक्का हिसाब हो गया, अरे तोहार महतारी आयी थीं , सावन में तोहिं तो छोड़ गया था, मनौती मानी थी तोहरे नौकरी के लिए, तो हम उनसे बोले की अरे झांट वांट अच्छी तरह साफ़ कर लीजिये, ये बनारस क पंडा सब, पहले तो चुसवाते हैं, फिर खुदे चाटते चूसते हैं तब पेलते है। अरे आधी बोतल क्रीम लगी, चुपड़ चुपड़ के अपने भोंसड़ा के चारो ओर, एक झांट नहीं बची।"
मम्मी बोल तो रही थीं
लेकिन मेरी निगाह छुटकी के दोनों मूंगफली के दाने ऐसे, घिसे हुए टॉप से साफ़ साफ रहे थे दोनों, बस मन कर रहा था मुंह में लेके कुतर लूँ, ऊँगली में ले के मसल दूँ, दोनों छोटे छोटे आ रहे दानों को ।
टॉप थोड़ा पुराना था, इसलिए घिसे होने के साथ टाइट भी, बस आ रहे दोनों उभारों की गोलाई, कड़ापन सब साफ़ साफ़ नजर आ रहा, बस यही सोच रहा था की अगली बार मिलेगी तो बिना दबाये मसले, रगड़े, इन दोनों को छोडूंगा नहीं, और छुटकी भी मेरे निगाह को समझ रही थी। अपने दोनों हाथों को उन चूजों के ठीक नीचे, और वो और उभर के,
ठुमक के बोली छुटकी, " अच्छा तो लग रहा है, दी और अब उसने गुड्डी को सुझाव दे दिया, ऐसे गोरे गोरे चिकने चेहरे पे, होंठों पे डार्क रेड लिपस्टिक बहुत अच्छी लगेगी,
बस, मम्मी को आइडिया मिल गया, वो चालू हो गयीं,
" हाँ छुटकी सही कह रही है एकदम, और साडी ब्लाउज के साथ, अंगिया किसकी, दूबे भाभी की तो बड़ी होगी, उनकी हमारी साइज एक है ३८, हाँ चंदा भाभी वाली एकदम फिट आएगी, ३४ पक्का इन्ही की साइज होगी। नोक वाली। "
" लेकिन ब्रा के अंदर, " गुड्डी ने अपनी परेशानी बताई,
" मैं बताऊं दी, एकदम मस्त लगेगा, गुब्बारे में रंग भरते ही हैं होली में, बस दो गुब्बारे, और हाँ थोड़ा सा फेविकोल ब्रा की टिप पे अंदर और थोड़ा सा गुब्बारों पे बस ऐसा सही चिपकेगा, थोड़ा हिलेगा डुलेगा, लेकिन बाहर नहीं निकल सकता, और हाँ, पिक्स जरूर भेजिएगा, हर स्टेप की, "
छुटकी ने चहकते हुए हल बता दिया,।
---
----
" एकदम, हम लोगो का जो बहनों वाला ग्रुप हैं न उसमे भी पोस्ट कर दूंगी, सबको मिल जाएगा,
गुड्डी की बहनों वाले ग्रुप में आधे दर्जन से ज्यादा उसकी थीं, दो ये सगी, दो मौसेरी, तीन उसकी ममेरी बहने थीं अलहाबाद में जिसने मैं एक बार मिल भी चुका था, और उसके अलावा भी।
मैं छुटकी की शरारत वाली बाते सुन तो रहा था लेकिन आँखे मेरी बस वही अटकी थीं, छुटकी और मम्मी के, कबूतरों पे,
एक कबूतर का बच्चा, अभी बस पंख फड़फड़ा रहा था और दूसरा, खूब बड़ा तगड़ा, जबरदस्त कबूतर, सफ़ेद पंखे फैलाये,
२८ सी और ३८ डी डी दोनों रसीले जुबना,
साइज अलग, शेप अलग पर स्वाद में दोनों जबरदस्त,
बस मन कर रहा था कब मिलें, कब पकड़ूँ, दबोचूँ, रगडूं, मसलु, चुसू, काटूं,
और असर सीधे जंगबहादुर पर, फनफनाया, बौराया और ऊपर से जंगबहादुर की मलकिन, गुड्डी, पहले तो बरमूडा के ऊपर से सीधे खुले सुपाड़े पर रगड़ती, सामने एक कच्ची कली के चूजों की नोकें हो और खूंटे के साथ, गुड्डी भी देख रही थी कैसे मैं नयनसुख ले रहा हूँ , बस उसने बरमूडा में हाथ डाल के औजार को पकड़ लिया और लगी मसलने, रगड़ने, बस तम्बू में बम्बू जबरदस्त, और ।
बरमूडा नौ इंच तना,
और अब गुड्डी ने बदमाशी की, मोबाइल मोड़ के सीधे मेरे तने बल्ज पर, और वो भी क्लोज अप में,
पहले मम्मी मुस्करायीं, फिर छुटकी, दोनों की निगाहें वहीँ चिपकी,
बोलीं मम्मी, " तेरी महतारी का भोंसड़ा मरवाऊ,"
छुटकी बड़ी भोली सूरत बना के मम्मी से पूछी, " लेकिन मम्मी किससे इनकी महतारी का, "
मम्मी ने मेरे खड़े खूंटे की ओर इशारा कर के छुटकी से कहा, " देख नहीं रही है, कितना बौराया है, इस से मरवाउंगी, और क्या "
फिर तोप मेरी ओर मुड़ गयी,
" अरे तोहार महतारी निहाल हो जाएंगी, फिर तोहार मौसी, बुआ, चाची, सब पे चढ़वाएंगी तोहें, "
लेकिन तब तक मंझली की आवाज आयी, " मम्मी छुटकी नाश्ता लग गया है " लेकिन मम्मी ने जाने के पहले अपनी बड़ी बेटी को काम समझा दिया, " आज सांझ रात तक तो पहुँचोगी ही, कल दिन में बात करा देना। " और फोन छुटकी को पकड़ा दिया, और
छुटकी ने फोन थोड़ा सा टिल्ट करके दोनों चोंचों का क्लोज अप एक दम पास से, और मुंह से जीभ बाहर निकला के चिढ़ाया, जबरदस्त मुझे फिर उसका भी फोन बंद हो गया।
इधर चंदा भाभी गुड्डी को आवाज दे रही थीं।
बहुत ही मजेदार और रोमांचकारी अपडेट हैफोन
मम्मी, छुटकी
" तेरी, ...मम्मी जब तुम अपनी मूंछे साफ कर रहे थे उसी समय फोन आया था, मैंने पूछा भी की बता दीजिये मैं बोल दूंगी, तो हड़का लिया मुझे, हर बात तुझे बताना जरूरी है, : और वो फोन लगाने में लग गयी लेकिन मैंने गुड्डी को छेड़ा,
" हे तेरी कह के रुक क्यों गयी, क्या बोल रही थी, तेरी सास, है न "
गुड्डी खूब मीठी मुस्कान से मुस्करायी और फोन लगाते बोली, " जिस दिन हो जाएँगी न तेरी सास, सोच लेना, निहुराय के लेंगी, जो देख देख के इतना ललचाते हो, मैं देखती नहीं हूँ का, "
और नंबर लग गय। और फोन गुड्डी ने मेरे हाथ में और उधर से मम्मी की आवाज, लेकिन कुछ वो बोल पातीं, मैंने पूछ लिया,
" मम्मी, पहुँच गयीं ठीक ठाक "
मेरे मम्मी बोलने पे गुड्डी जोर से मुस्करायी और पिछवाड़े कस के चुटकी काट ली, स्पीकर फोन ऑन था,
मम्मी बहुत खुस बोलीं ,
" तोहरे रहते, कौन परेशानी हो सकती है, कानपूर पहुँचने के पहले ही टीटी आगये, सब सामान, और जैसे स्टेशन आया , कम से कम चार पांच आदमी, अरे जो टोपी वोपी लगाए, मास्टर थे, गोड़ भी छुए हमारा, माता जी, माता जी, एक एक सामन उतरा गया आराम से, और वो स्टेशन मास्टर अपने कमरा में बैठाये के पहले चाय पियाये फिर, और छुटकी को अपना नंबर भी नोट कराये की जब लौटना हो या कोई काम हो तो पहले से, तो वो लोग स्टेशन के बाहर ही मिल जाएंगे। एकदम पता नहीं चला, सोच सोच के हम इतने परेशान थे, तोहार महतारी न जानी केकरे आगे टांग फैलाये होइए, केकर मलाई घोंटी होंगी, उनको भी नहीं याद होगा, लेकिन लड़िका बढ़िया निकाली हैं। "
मेरी तारीफ़ सुन के मुझसे ज्यादा गुड्डी खुश होती थी, मैं कनखियों से उसे देख रहा था,
तबतक पीछे से छुटकी की आवाज आयी दी , वीडियो काल, वीडियो काल और गुड्डी ने काल वीडियो पे शिफ्ट कर दी।
मम्मी को देखते ही मेरी हालत खराब, लगता था अभी नहा के निकली थीं, बाल खुले थोड़े भीगे, सफ़ेद देह से चिपका स्लीवलेस ब्लाउज, आर्म पिट साफ़ साफ़ दिख रही थी, गोरी गोरी कांखों में एकदम छोटे छोटे काले काल बाल जैसे रोयें बड़े हो गए, ब्लाउज साइड से भी बहुत खुला था, और ऊपर से भी लो कट, उभारों को कस के दबाये, चिपकाए हुए, औरतों के तीसरी आँख होती है। अंदाज उन्हें हो गया था की मेरी आंखे कहाँ चिपकी है, और आँचल ठीक करने के बहाने ऐसा लहराया, गिराया, की अब दोनों उभार एकदम खुल के, चोली सिर्फ उभारो के बेस तक थी,
गोरा पेट भी खुला था और गहरी नाभी साफ़ दिख रही थी।
जंगबहादुर एकदम विद्रोह को तैयार, तनतना रहे थे और बची खुची कसर पूरी हो गयी,
छुटकी की आवाज आयी मैं भी, मैं भी, और मम्मी ने हाथ से पकड़ के खींच के उसे भी मोबायल के कैमरे की रेंज में,
उसने एक छोटा सा खूब टाइट टॉप, थोड़ा घिसा हुआ पहन रखा था और कबूतर की दोनों चोंचे साफ़ साफ़ नुकीली दिख रही थीं,
वैसे तो शायद इतना नहीं लेकिन जो कल चंदा भाभी ने अर्था अर्था कर समझाया था की चौदह की हुयी तो चुदवासी, और पिछले साल होली में उन्होंने हाथ अंदर डाल के मसल के रगड़ रगड़ के गुड्डी की दोनों छोटी बहनों की कच्ची अमिया में रंग लगाया था, गुलाबो में हाथ लगाया था, दोनों फांक फैला के ऊँगली कर के हाल चाल ली थी, रगड़ने मसलने लायक भी दोनों हो गयी थी और लेने लायक भी। और उसके बाद सुबह सुबह गूंजा की हवा मिठाई की रगड़ाई,
और अब जिस तरह से छुटकी के चूजे टॉप से झांक रहे थे, मूसलचंद को पागल होना ही था,
और सबसे पहले छुटकी ने नोटिस किया, खी खी खी खी, और पहले अपनी नाक के नीचे एक ऊँगली लगा कर आँख के इशारे से मेरी मूंछ के बारे में पुछा, क्या हुआ, फिर गुड्डी से
" दी, क्या हुआ, गायब ?"
और अब मम्मी ने देखा और उन पर जो हंसी का दौरा पड़ा वो रुकने वाला नहीं था, लेकिन खुद को रोका और छुटकी को अपने बाँहों में दबोच के चुप करते हुए कहा,
" अच्छा तो लग रहा है, एकदम नमकीन, गाल चूमने लायक, बल्कि कचकचौवा, काटने लायक कचकचा कर, "
छुटकी क्यों छोड़ती, मुस्करा के बोली, सीधे मुझसे, छेड़ते हुए,
“चिकने।“
वो असल में, वो वाली क्रीम थी, मतलब जो वहां नीचे, वो वाली गलती से, वो वही, " मैं घबड़ाते हुए समझाने की कोशिश कर रहा था ।
छुटकी बदमाश तीखी निगाहों से देख के मुस्करा रही थी, लेकिन मम्मी तो मम्मी, खिलखिला के बोली,
" साफ़ साफ बोलो न झांट साफ़ करने वाली क्रीम, इतना लजात काहें हो, सब लगाते हैं, मैं, छुटकी, और झांट नीचे वाले होंठ के चारो ओर होती है और मूंछ दाढ़ी ऊपर वाले होंठ के, बाल तो बाल। लेकिन ये कम से कम पंद्रह बीस दिन का पक्का हिसाब हो गया, अरे तोहार महतारी आयी थीं , सावन में तोहिं तो छोड़ गया था, मनौती मानी थी तोहरे नौकरी के लिए, तो हम उनसे बोले की अरे झांट वांट अच्छी तरह साफ़ कर लीजिये, ये बनारस क पंडा सब, पहले तो चुसवाते हैं, फिर खुदे चाटते चूसते हैं तब पेलते है। अरे आधी बोतल क्रीम लगी, चुपड़ चुपड़ के अपने भोंसड़ा के चारो ओर, एक झांट नहीं बची।"
मम्मी बोल तो रही थीं
लेकिन मेरी निगाह छुटकी के दोनों मूंगफली के दाने ऐसे, घिसे हुए टॉप से साफ़ साफ रहे थे दोनों, बस मन कर रहा था मुंह में लेके कुतर लूँ, ऊँगली में ले के मसल दूँ, दोनों छोटे छोटे आ रहे दानों को ।
टॉप थोड़ा पुराना था, इसलिए घिसे होने के साथ टाइट भी, बस आ रहे दोनों उभारों की गोलाई, कड़ापन सब साफ़ साफ़ नजर आ रहा, बस यही सोच रहा था की अगली बार मिलेगी तो बिना दबाये मसले, रगड़े, इन दोनों को छोडूंगा नहीं, और छुटकी भी मेरे निगाह को समझ रही थी। अपने दोनों हाथों को उन चूजों के ठीक नीचे, और वो और उभर के,
ठुमक के बोली छुटकी, " अच्छा तो लग रहा है, दी और अब उसने गुड्डी को सुझाव दे दिया, ऐसे गोरे गोरे चिकने चेहरे पे, होंठों पे डार्क रेड लिपस्टिक बहुत अच्छी लगेगी,
बस, मम्मी को आइडिया मिल गया, वो चालू हो गयीं,
" हाँ छुटकी सही कह रही है एकदम, और साडी ब्लाउज के साथ, अंगिया किसकी, दूबे भाभी की तो बड़ी होगी, उनकी हमारी साइज एक है ३८, हाँ चंदा भाभी वाली एकदम फिट आएगी, ३४ पक्का इन्ही की साइज होगी। नोक वाली। "
" लेकिन ब्रा के अंदर, " गुड्डी ने अपनी परेशानी बताई,
" मैं बताऊं दी, एकदम मस्त लगेगा, गुब्बारे में रंग भरते ही हैं होली में, बस दो गुब्बारे, और हाँ थोड़ा सा फेविकोल ब्रा की टिप पे अंदर और थोड़ा सा गुब्बारों पे बस ऐसा सही चिपकेगा, थोड़ा हिलेगा डुलेगा, लेकिन बाहर नहीं निकल सकता, और हाँ, पिक्स जरूर भेजिएगा, हर स्टेप की, "
छुटकी ने चहकते हुए हल बता दिया,।
---
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" एकदम, हम लोगो का जो बहनों वाला ग्रुप हैं न उसमे भी पोस्ट कर दूंगी, सबको मिल जाएगा,
गुड्डी की बहनों वाले ग्रुप में आधे दर्जन से ज्यादा उसकी थीं, दो ये सगी, दो मौसेरी, तीन उसकी ममेरी बहने थीं अलहाबाद में जिसने मैं एक बार मिल भी चुका था, और उसके अलावा भी।
मैं छुटकी की शरारत वाली बाते सुन तो रहा था लेकिन आँखे मेरी बस वही अटकी थीं, छुटकी और मम्मी के, कबूतरों पे,
एक कबूतर का बच्चा, अभी बस पंख फड़फड़ा रहा था और दूसरा, खूब बड़ा तगड़ा, जबरदस्त कबूतर, सफ़ेद पंखे फैलाये,
२८ सी और ३८ डी डी दोनों रसीले जुबना,
साइज अलग, शेप अलग पर स्वाद में दोनों जबरदस्त,
बस मन कर रहा था कब मिलें, कब पकड़ूँ, दबोचूँ, रगडूं, मसलु, चुसू, काटूं,
और असर सीधे जंगबहादुर पर, फनफनाया, बौराया और ऊपर से जंगबहादुर की मलकिन, गुड्डी, पहले तो बरमूडा के ऊपर से सीधे खुले सुपाड़े पर रगड़ती, सामने एक कच्ची कली के चूजों की नोकें हो और खूंटे के साथ, गुड्डी भी देख रही थी कैसे मैं नयनसुख ले रहा हूँ , बस उसने बरमूडा में हाथ डाल के औजार को पकड़ लिया और लगी मसलने, रगड़ने, बस तम्बू में बम्बू जबरदस्त, और ।
बरमूडा नौ इंच तना,
और अब गुड्डी ने बदमाशी की, मोबाइल मोड़ के सीधे मेरे तने बल्ज पर, और वो भी क्लोज अप में,
पहले मम्मी मुस्करायीं, फिर छुटकी, दोनों की निगाहें वहीँ चिपकी,
बोलीं मम्मी, " तेरी महतारी का भोंसड़ा मरवाऊ,"
छुटकी बड़ी भोली सूरत बना के मम्मी से पूछी, " लेकिन मम्मी किससे इनकी महतारी का, "
मम्मी ने मेरे खड़े खूंटे की ओर इशारा कर के छुटकी से कहा, " देख नहीं रही है, कितना बौराया है, इस से मरवाउंगी, और क्या "
फिर तोप मेरी ओर मुड़ गयी,
" अरे तोहार महतारी निहाल हो जाएंगी, फिर तोहार मौसी, बुआ, चाची, सब पे चढ़वाएंगी तोहें, "
लेकिन तब तक मंझली की आवाज आयी, " मम्मी छुटकी नाश्ता लग गया है " लेकिन मम्मी ने जाने के पहले अपनी बड़ी बेटी को काम समझा दिया, " आज सांझ रात तक तो पहुँचोगी ही, कल दिन में बात करा देना। " और फोन छुटकी को पकड़ा दिया, और
छुटकी ने फोन थोड़ा सा टिल्ट करके दोनों चोंचों का क्लोज अप एक दम पास से, और मुंह से जीभ बाहर निकला के चिढ़ाया, जबरदस्त मुझे फिर उसका भी फोन बंद हो गया।
इधर चंदा भाभी गुड्डी को आवाज दे रही थीं।
अमेज़िंग अपडेट. रीत तो सच में निराली है. रीत का किस्सा पढ़ते वक्त एक बार तो एहसास होता है. कही वही तो लीड नहीं कर रही.फागुन के दिन चार भाग १३
होली का धमाल
1,53,642
मेरे हाथ सीधे रीत के मस्त किशोर छलकते उभारों पे।
जवाब में उसने अपने गोल-गोल चूतड़ मेरे तन्नाये शेर पे रगड़ दिया। फिर तो मैंने कसकर उसके थिरकते नितम्बों के बीच की दरार पे लगाकर, रगड़ा अपना खड़ा खूंटा,
पिछवाड़े का मजा मैंने अभी नहीं लिया था, लेकिन रीत के गोल गोल नितम्ब किसी की भी ईमान खराब करने के लिए काफी थे। और मेरी साली, सलहजें सब मेरे पिछवाड़े, मेरी बहन के पिछवाड़े के पीछे पड़ी थी तो मैं क्यों छोड़ता, फिर भांग अब अच्छी तरह चढ़ गयी थी, मुझे कोई फरक नहीं पड़ता की सब लोग देख रहे हैं और जिसकी बात से फरक पड़ता था, उस ने पहले ही अपनी दीदी के लिए न सिर्फ ग्रीन सिग्नल दे रखा था, बल्कि उकसा भी रही थी।
अब मन कर रहा था की बस अब सीधी रीत की पाजामी को फाड़कर ‘वो’ अन्दर घुस जाए।
हम दोनों बावले हो रहे थे, फागुन तन से मन से छलक रहा था बस गाने के सुर ताल पे मैं और वो। मेरे दोनों हाथ उसके उभारों पे थे और। बस लग रहा था की मैं उसे हचक-हचक के चोद रहा हूँ और वो मस्त होकर चुदवा रही है। हम भूल गए थे की वहां और भी हैं।
लेकिन श्रेया घोषाल की आवाज बंद हुई और हम दोनों को लग रहा था की किसी जादुई तिलिस्म से बाहर आ गए। एक पल के लिए मुझे देखकर रीत शर्मा गई और हम दोनों ने जब सामने देखा तो दूबे भाभी, चंदा भाभी और गुड्डी तीनों मुश्कुरा रही थी।
सबसे पहले चंदा भाभी ने ताली बजाई। फिर दूबे भाभी ने और फिर गुड्डी भी शामिल हो गई।
“बहुत मस्त नाचती है ना रीत…” दूबे भाभी बोली और रीत खुश भी हुई, शर्मा भी गई। लेकिन भाभी ने मुझे देखकर कहा- “लेकिन तुम भी कम नहीं हो…”
“अरे बाकी चीजों में भी ये कम नहीं है। बस देखने के सीधे हैं…” चंदा भाभी ने मुझे छेड़ा।
लेकिन दूबे भाभी ने बात पकड़ ली-
“अच्छा तो करवा चुकी हो क्या? तुमने ले लिया रसगुल्ले का रस…” हँसकर वो बोली।
अब चंदा भाभी के झेंपने की बारी थी।
लेकिन गुड्डी ने बात बदली- “अरे इनकी वो बहना जो इनके साथ आयेंगी। वो भी बहुत सेक्सी नाचती हैं…”
“अरे उससे तो मैं मुजरा करवाऊँगी चूची उठा-उठाकर, कोठे पे बैठाऊँगी उसे तो…” दूबे भाभी बोल रही थी।
गुड्डी को तो मौका चाहिए था मुझे रगड़ने का, मुझे देख के मुस्करायी और बोली,
" अरे तभी ये कल से पूछ रहे हैं दालमंडी (बनारस का रेड लाइट एरिया) किधर है और मेरे साथ बाजार गए थे तो किसी से बात भी कर रहे थे, रात की कमाई का चवन्नी तो मेरा भी होगा।" और मैं कुछ खंडन जारी करता उसके पहले गुड्डी ने जीभ निकाल के चिढ़ा दिया और उसके बाद मोर्चा रीत ने सम्हाल लिया।
रीत, जो अब हम सबके पास बैठ चुकी थी मुझसे बोली-
“अरे ये तो बड़ी खुशी की बात है, किसी काम का शुभारंभ हो तो। कुछ मीठा जो जाय…”
और जब तक मैं सम्हलूं उस दुष्ट ने पास में रखी भांग पड़ी चन्दा भाभी द्वारा निर्मित एक गुझिया मेरे मुँह में, और दूबे भाभी से बोली-
“उससे स्ट्रिप टीज भी करवाएंगे। आज कल इसकी डिमांड ज्यादा है। क्यों?”
पता नहीं दूबे भाभी को बात पसंद नहीं आई या समझ नहीं आई? उन्होंने लाइन बदल दीं, बात फिर होली के गानों पे आ गयी वो बोली-
“आज कल ना। अरे बनारस की होली में भोजपुरिया होली जब तक ना हो। पता नहीं तुम सबन को आता भी है की नहीं?”
वो पल में रत्ती पल में माशा।
लेकिन मैं दूबे भाभी को पटा के रखना चाहता था।
मेरी यहाँ चाहे जितनी रगड़ाई हो, मेरी ममेरी बहन के ऊपर रॉकी को चढ़ाएं, लेकिन असली बात थी गुड्डी, कुछ भी हो मुझे ये बदमाश वाली लड़की चाहिए थी, वो भी लाइफ टाइम के लिए, भाभी ने आज मेरी किसी बात को मना नहीं किया तो इस बात के लिए भी नहीं, हाँ भाभी से ये बात कहने की न मैं हिम्मत जुटा पा रहा था, न ये समझ पा रहा था कैसे कहूं, पहले तो मैं नौकरी के नाम पे भाभी से टालता था, फिर ट्रेनिंग और अब ट्रेनिंग भी तीन चार महीने ही बची थी, सितंबर में तो पोस्टिंग हो जाएगी तो अब जल्दी से जल्दी, और भाभी तो मान गयी लेकिन गुड्डी के घर वाले, और मैं समझ गया था गुड्डी के घर, गुड्डी की मम्मी की हामी बहुत जरूरी है।
लेकिन इस चार घर के संयुक्त परिवार में ( गुड्डी, चंदा भाभी, दूबे भाभी -रीत और एक अभी आने वाली थीं ) मस्टराइन दूबे भाभी ही हैं, उमर में भी सबसे बड़ी और मस्ती में भी सबसे ज्यादा और उनकी हाँ में हाँ मिलाने का कोई मौका मैं छोड़ना नहीं चाहता था.
मैं दूबे भाभी की पसंद समझ गया था, मेरी भी असल में वही थी। मैंने बोला- “क्यों नहीं। अभी लगाता हूँ एक…” और मैंने चन्दा भाभी के कलेक्सन में से एक सीडी लगाई। लेकिन वो एक डुईट सांग पहले मर्द की आवाज में थी।
“हे तुम्हीं करना मुझे नहीं आता…” रीत ने धीरे से मेरे कान में फुसफुसा के कहा- “कोई फास्ट नंबर हो, फिल्मी हो, यहाँ तक की भांगड़ा हो लेकिन ये गाँव के। मैंने कभी नहीं किया…”
“अरे यार जो आज तक नहीं किया। वही काम तो मेरे साथ करना होगा न…” मैंने चिढ़ाया। मैं बोला तो धीमे से था लेकिन चन्दा भाभी ने सुन लिया।
चन्दा भाभी बोली- “अरे रीत करवा ले, करवा ले…”
रीत दुष्ट। उसने शैतान निगाहों से गुड्डी की ओर देखा।
गुड्डी भी कम नहीं थी- “अरे करवा ले यार। एक-दो बार में इनका घिस नहीं जाएगा। वैसे भी अब दूबे भाभी का हुकुम है की मुझे इनसे इनकी कजन की नथ उतरवानी है…”
तब तक गाना शुरू हो गया था।
मैंने उसे खींचते हुए बोला- “अरे यार चलो नखड़ा ना दिखाओ। शुभारम्भ। और अबकी जब तक वो समझे सम्हले, मेरे हाथ से गुझिया उसके मुँह में और गाने के साथ डांस करना शुरू कर दिया-
शानदार अपडेट. ये अपडेट होली के अशली रंग में रंगा हुआ है.. आनंद बाबू रीत तो वो चीज है की अच्छे अच्छो की तपस्या भंग करवा दे. नाच ने में उसका जवाब नहीं. और तुम्हारी तो साली है. ऊपर से तुम्हारा हाथ उसकी चोली मे. मतलब टॉप में.होली में अब रेलम रेल होई,
महंगा अब सरसों का तेल होई,
तब तक गाना शुरू हो गया था। मैंने उसे खींचते हुए बोला- “अरे यार चलो नखड़ा ना दिखाओ। शुभारम्भ। और अबकी जब तक वो समझे सम्हले, मेरे हाथ से गुझिया उसके मुँह में और गाने के साथ डांस करना शुरू कर दिया-
-होली में अब रेलम रेल होई,
महंगा अब सरसों का तेल होई,
होली में पेलम पेल होई।
मैंने अब खुलकर कुल्हे मटका के, जंगबहादुर वैसे तन्नाये हुए थे आगे-पीछे करके।
लेकिन अब रीत भी कम नहीं थी।
उसने मुँह बिचका के जोबन उचका के, जैसे ही फिमेल वायस आई उसी तरह जवाब दिया।
कभी वो मुश्कुराती, कभी ललचाती और जब पास आता तो अदा दिखाकर एक-एक चक्कर लेकर दूर हो जाती। वो गा रही थी-
होली मैं ऐसन जो खेल होई, जबरी जो डारी तो जेल होई,
होली में जो होई उम्मी उम्मा। इ गाले पे जबरी जो लेई हो चुम्मा,
इ गाले पे जबरी जो लेई हो चुम्मा, पोलिस के डंडा से मेल होई।
जिस तरह से अदा से वो हाथ ऊपर करती, उसके उभार तनकर साफ झलक जाते और फिर अपने आप उसने जो अपने गाल पे हाथ फेरा, और पोलिस के डंडे की एक्टिंग की।
दूबे भाभी, गुड्डी और चंदा भाभी साथ गा रही थी। अगला गाना और खतरनाक था-
चोली में डलवावा साली होली में हौले, हौले,
चोली में डलवावा साली होली में हौल हौले।
गाना मेल वॉयस में था इसलिए साथ में मैं गा रहा था लेकिन रीत डांस में साथ दे रही थी, मेरा हाथ उसके टॉप के ऊपर से रेंग रहा था , जब जब लाइन आती; चोली में डलवावा,
" हे चोली में डालने की बात हो रही है, ऊपर ऊपर सहलाने की बात नहीं हो रही " चंदा भाभी ने उकसाया,
" आपके देवर ऐसे ही हैं " गुड्डी ने और आग में घी डाला और मुझे घूर के देखा, बस हाथ चोली में मेरा मतलब रीत के टॉप के अंदर, सहला मैं रीत के रहा था, लेकिन सोच आज के दिन के बारे कितना अच्छा , सुबह छोटी साली नौवे में पढ़ने वाली गूंजा ने खुद खिंच के मेरा हाथ अपने जोबन पे और अब बड़ी साली रीत वो भी सबके सामने,
लेकिन मान गया मैं रीत सच में डांसिंग क्वीन थी, हम दोनों मस्ती कर रहे थे, बदमाशी कर रहे थे लेकिन मजाल की एक स्टेप मिस हुआ हो
लेकिन सबसे खुश दूबे भाभी थीं, एकदम उनकी पसंद वाले भोजपुरी गाने और मुझे भी पसंद थे और मालूम थे,
लेकिन म्यूजिक ख़त्म होते ही रीत ने खेल कर दिया, रीत तो रीत थी उसने एक नया चैलेंज थ्रो कर दिया, अब वो खुद गा रही थी और डांस भी, जितना अच्छा नाचती थी उतनी ही मीठी आवाज, यानी अगले गाने में मुझे रिकार्ड का सहारा नहीं मिलेगा, खुद गाना पडेगा
काली चुनरी में जोबना लहर मारे रे, काली चुनरी में
लहार मारे रे हो लहर मारे रे, काली चुनरी में
और साथ में उसकी सहेली, छोटी बहन और सह -षड्यंत्रकारी, गुड्डी भी गा रही थी,
काली चुनरी में जोबना लहर मारे रे, काली चुनरी में
लहार मारे रे हो लहर मारे रे, काली चुनरी में
चंदा भाभी ने चिढ़ाया गुड्डी को,
"ले तो जा रही हो साथ में, लूटेगा लहर आज रात से,"
गुड्डी ने एक पल मुझे देखा, हम लोगों के नैन मिले और वो शर्मा गयी ।
दूबे भाभी, सुन भी रही थीं, देख भी रही थी मेरे और गुड्डी के चार आँखों का खेल और बस मुस्करा दीं लेकिन तभी उन्हें कुछ याद आ गया,
दूबे भाभी ने पूछा- “अरे वो संध्या नहीं आई?”
मुझे गुड्डी बता चुकी थी की संध्या, इन लोगों की ननद लगती थी मोहल्ले के रिश्ते में, 23-24 साल की तीन-चार महीने पहले शादी हुई थी। इनके यहाँ ये रिवाज था की होली में लड़की मायके आती है और दुल्हे को आना होता है। मंझोले कद की थी फिगर भी अच्छा था।
चन्दा भाभी बोली- “मैंने फोन तो किया था लेकिन वो बोली की उसके उनका फोन आने वाला था। बस करके आ रही है…”
“आज कल की लड़कियां ना। उनका बस चले तो अपनी चूत में मोबाइल डाल लें जब देखो तब…” दूबे भाभी अपने असली रंग में आ रही थी।
“अरे घर में तो वो अकेले ही है क्या पता सुबह से मायके के पुराने यारों की लाइन लगवाई हो…”
अभी दिन ठीक से निकला नहीं और संध्या आ गई. अरे आनंद बाबू मुबारक हो. एक और साली. और वो तो शादीशुदा है. पहले से खेली खाई. जम के खेलो होली. भड़कती जवान साली है.संध्या भाभी
दूबे भाभी ने पूछा- “अरे वो संध्या नहीं आई?”
मुझे गुड्डी बता चुकी थी की संध्या, इन लोगों की ननद लगती थी मोहल्ले के रिश्ते में, 23-24 साल की तीन-चार महीने पहले शादी हुई थी। इनके यहाँ ये रिवाज था की होली में लड़की मायके आती है और दुल्हे को आना होता है। मंझोले कद की थी फिगर भी अच्छा था।
चन्दा भाभी बोली- “मैंने फोन तो किया था लेकिन वो बोली की उसके 'उनका' फोन आने वाला था। बस करके आ रही है…”
“आज कल की लड़कियां ना। उनका बस चले तो अपनी चूत में मोबाइल डाल लें जब देखो तब…” दूबे भाभी अपने असली रंग में आ रही थी।
“अरे घर में तो वो अकेले ही है क्या पता सुबह से मायके के पुराने यारों की लाइन लगवाई हो…”चंदा भाभी अपनी ननद की खिंचाई का मौका क्यों छोड़तीं
तब तक वो आ ही गईं, मुश्कुराती खिलखिलाती, और कहा-
“मैं सुन रही थी सीढ़ी से आप लोगों की बात। अरे बोला था ना मुझे एक बार उनसे बात करके समझाना था की दो-चार घंटे मैं फोन से दूर रहूंगी। लेकिन आप लोग…”
बात वो चंदा भाभी से कर रही थी लेकिन निगाहें उसकी मुझ पे टिकी थी। गाना कब का बंद हो चुका था।
“तो क्या गलत कह रही थी? हमारी ननदे ना। झांटे बाद में आती है। बुर में खुजली पहले शुरू हो जाती है। जब तक एक-दो लण्ड का नाश्ता ना कर लें ना। ठीक से नींद नहीं खुलती। क्यों रीत। गलत कह रही हूँ?” हँसकर चन्दा भाभी बोली।
“मुझसे क्यों हुंकारी भरवा रही हैं, मैं भी तो आपकी ननद ही हूँ…” वो हँसकर बोली।
“तभी तो…” वो बोली।
लेकिन मोर्चा संध्या भाभी ने संभाला-
“एकदम सही बोल रही हैं आप लेकिन ननद भी तो आप ही लोगों की है। आप लोग भी तो रात में सैयां, दिन में देवर, कभी नंदोई। तो हम लोगों का मन भी तो करेगा ही ना…”
दूबे भाबी ने दावत दी- “ठीक है तुम्हारे वो आयेंगे ना होली में तो अदल-बदल लेते हैं। वो भी आमने-सामने तुम मेरे सैयां के साथ और मैं तुम्हारे…”
“अच्छा तो मेरे भैया से ही। ना बाबा ना…” फिर धीरे से चंदा भाभी से बोली- “ये माल मस्त लगता है इससे भिड़वा दो ना टांका…” मेरी ओर इशारा करके कहा।
मेरी निगाह भी संध्या भाभी की चोली से झांकते जोबन पे गड़ी थी। रीत ने ही पहल की और हम दोनों का परिचय करवा दिया और उनसे बोली- “अच्छा हुआ आप आ गईं, अब हम दो ननदें हैं और दो भाभियां…”
दूबे भाभी हँसकर बोली- “अरे कोई फर्क नहीं पड़ेगा चाहे तुम दो या बीस। लेकिन आज तो रगड़ाई होगी इस साले की भी और तुम सबों की भी…”
मैंने डरने की एक्टिंग करते हुआ बोला- “अरे ये तो बहुत नाइंसाफी है। मैं एक और आप पांच…”
“तो क्या हुआ? मजा भी तो आयेगा आपको, और द्रौपदी के भी तो पांच पति थे। तो आज आप द्रौपदी और हम पांडव…” रीत ने मुश्कुराकर कहा।
“एकदम दीदी…” गुड्डी क्यों मुझे खींचने में पीछे रहती, ओर हँसकर गुड्डी नेजोड़ा -
“फर्क सिर्फ यही होगा की पांडव तो बारी-बारी से। और हम कभी बारी-बारी। कभी साथ-साथ…”
दूबे भाभी बोली- “अरे काहे घबड़ाते हो। वो तुम्हारी बहन कम माल जब आएगी यहाँ। तो वो भी तो एक साथ पांच-पांच को निपटाएगी…”
रीत आँख नचाकर बोली- “बड़ी ताकत है भाई। तीन तो ठीक है लेकिन पांच। वो कैसे?”
“अरे यार एक से चुदवायेगी, एक से गाण्ड मरवाएगी, एक का मुँह में लेकर चूसेगी…” चंदा भाभी बोली।
“और बाकी दो?”
“बाकी दो लण्ड हाथ में लेकर मुठियायेगी…” दूबे भाभी ने बात पूरी की।
मैं संध्या भाभी को पटाने के चक्कर में उन्हें गुलाब जामुन, दही बड़ा और स्प्राईट जो असल में वोदका कैनाबिस ज्यादा और वो भी बाकी लोगों की हालत में आ गईं।
गुड्डी बोली “हे तुम्हें मालूम है संध्या गाती भी अच्छा है और नाचती भी। खास तौर से। लोक गीत…”
“गाइए ना भाभी…” मैं बोला तो वो झट से मान गई।
वाह इस बार तो गीत से ही दिल खुश कर दिया. आनंद बाबू तुम्हारे तो मजे ही मजे है. एक तरफ संध्या दूसरी तरफ तुम्हारी साली कैटरीना. मतलब की रीता. एक साथ दोनों के जोबन का जादू. पर दोनों ने तुम्हारी बहेना को एक भी गीत में नहीं छोड़ा. पर इस बार तो आनंद बाबू भी खिलकर गाय. अरे तुमहारे लिए तो कागा......“नकबेसर कागा ले भागा
चन्दा भाभी ने ढोल संभाली।
“नकबेसर कागा ले भागा अरे सैयां अभागा ना जागा।
अरे सैयां अभागा ना जागा…”
वो मेरी ओर इशारा करके गा रही थी।
साथ में रीत और गुड्डी भी। संध्या भाभी ने रीत के कान में कुछ पूछा और उसने फुसफुसा के बताया।
मैं समझ गया साजिश मेरे ही खिलाफ है, और संध्या उठ गई और डांस भी करने लगी-
अरे नकबेसर कागा ले भागा मेरा सैयां अभागा ना जागा, अरे आनंद साला ना जागा,
उड़ उड़ कागा चोलिया पे बैठा, आनंद की बहिना के चोलिया पे बैठा, चोलिया पे बैठा। अरे अरे,
और उन्होंने रीत को खींच लिया डांस करने के लिए और दोनों मिलकर मेरी ओर इशारे करते हुए-
अरे उड़ उड़ कागा आनंद की बहिना के, चोलिया पे बैठा। अरे जोबन के सब रस ले भागा।
और उसके बाद तो संध्या भाभी और रीत ने जो अपने जोबन उछाले, अपनी जवानी के उभार कोई आइटम गर्ल भी मात हो जाए और वो भी मुझे दिखाकर।
“अरे इस बहना के भंड़ुवे को भी खींच ना…”
संध्या भाभी ने रीत को इशारा किया और उस शैतान को तो बहाने की भी जरूरत नहीं थी।
उसने मेरा हाथ खींचकर खड़ा कर दिया। खड़ा तो मेरा वैसे भी पहले से ही था। मैं भी उनके साथ चक्कर लेने लगा। गाना संध्या भाभी और दुबे भाभी ने आगे बढ़ाया-
अरे उड़ उड़ कागा साया पे बैठा। उड़ उड़ कागा आनंद की बहिना के। साया पे,
“अरे अभी वो स्कर्ट पहनती है…” गुड्डी ने आग लगाई।
दूबे भाभी ने तुरंत करेक्शन जारी किया-
अरे उड़ उड़ कागा आनंद की बहिना के स्कर्ट पे बैठा,
लेकिन गाना आगे बढ़ता उसके पहले मैंने रीत को कसकर अपनी बाहों में खींच लिया और कसकर उसके उभारों को अपने सीने से दबा दिया और अपने तने हथियार से उसकी गोरी-गोरी जाँघों के बीच धक्के मारते हुए मैंने गाना बढ़ाया-
अरे उड़ उड़ कागा रीत के पाजामी पे बैठा, उड़ उड़ कागा रीत के पाजामी पे बैठा,
अरे बुरियो का सब रस ले भागा, अरे बुरियो का सब रस ले भागा।
चंदा भाभी और दूबे भाभी भी मेरा ही साथ देने लगे गाने में।
रीत ने उनकी ओर देखकर बुरा सा मुँह बनाया, तो चन्दा भाभी हँसकर बोली-
“अरे यार हमारी भी तो ननद हो तो गाली देने का मौका हम क्यों छोड़ें?”
मैंने फिर से उसके उभार को पकड़कर धक्का मारते हुए गाया-
“अरे उड़ उड़ कागा रीत के पाजामी पे बैठा, उड़ उड़ कागा रीत के पाजामी पे बैठा,
अरे बुरियो का सब रस ले भागा, अरे बुरियो का सब रस ले भागा।
“तुम कागा हो क्या?” रीत चिढ़ाते हुए बोली और दूर हट गई।
“एकदम तुम्हारे लिए कागा क्या सब कुछ बन सकता हूँ…” मैंने झुक के कहा। और मैं झुक के उठ भी नहीं पाया था की होली शुरू हो गई।
वाह आनंद बाबू तुम्हारे तो मज़े ही मज़े है. एक साथ दो दो. एक तो होने वाली बीवी. सजनी. अरे सजनी तो तुम्हारी अपनी. और दूसरी है साली. जो होती है आधी घरवाली. होली है तो आप पूरी समझलो.होली का हमला
पहले गुड्डी और फिर रीत दुहरा हमला।
लेकिन थोड़े ही देर में ये तिहरा हो गया, संध्या भाभी भी। रंग पेंट सब कुछ।
होली रीत और गुड्डी की गुलाबी हथेलियों में थी, उनकी नम निगाहों में थी, शहद से रसीले होंठों में थी, कौन बचता?
और बचना भी कौन चाहता था?
आगे से गुड्डी पीछे से रीत, एक ओर से छोटी सी टाईट फ्राक और दूसरी ओर से शलवार कमीज। मैंने मुड़कर रीत को देखा और कहा-
“ये अच्छी आदत सीख ली है तुमने। पीछे से वार करने की…”
“जैसे आप कभी पीछे से नहीं डालेंगे क्या?” आँख नचाकर मस्तानी अदा के साथ बोली।
डबल मीनिंग डायलाग बोलने में अब वो मेरे भी कान काट रही थी, और रीत के मस्ताने चूतड़ देखकर मन तो मेरा भी कर रहा था की पिछवाड़े का भी मजा लिए बिना उसे नहीं छोड़ने वाला मैं।
दायें गाल पे गुड्डी का हाथ और बायें गाल पे रीत का। पीठ पे रीत के जोबन रगड़ रहे थे तो सीने पे गुड्डी के किशोर उभार।
होली में जब भी मैं किशोरियों को रंग से भीगे लगभग पारदर्शक कपड़ों में देखता था, उन चिकने गालों को जिन्हें छूने की सिर्फ हसरत ही हो सकती है उसे छूने नहीं बल्की रगड़ने मसलने सबका लाइसेंस मिल जाता है और यहाँ तो बात गालों से बहुत आगे तक की थी।
रीत ने पीछे से मेरे टाप में हाथ डाल दिया और थोड़ी देर सीने पे रंग मसलने रगड़ने के बाद, सीधे मेरे टिट्स पिंच कर दिए। मेरी सिसकी निकल गई। गुड्डी ने भी आगे से हाथ डाला और दूसरा टिट उसके हाथ में।
मैंने शिकायत के अंदाज में बोला- “रंग लगा रही हो या। …”
“अच्छा नहीं लग रहा है फिर सिसकियां क्यों भर रहे थे?” रीत आँख नचाकर और कसकर पिंच करते हुए बोली।
“मन मन भावे मूड़ हिलावे…”
गुड्डी क्यों पीछे रहती। उसने अपने उभार कसकर मेरे सीने पे रगड़ दिए और एक हाथ से मेरे टाप के अन्दर, बल्की गुन्जा का जो टाप मैंने पहन रखा था उसके अन्दर, मेरे पेट पे रंग लगाने लगी।
मैं- “तुम दो-दो हो ना। इसलिए अकेले मिलो तो बताऊँ?”
“अच्छा सच बताओ। नहीं पसंद आ रहा है हम दोनों से साथ-साथ करवाना?” आपने गुलाबी होंठों को मेरे कान से छुलाते हुए दुष्ट रीत बोली।
किसे पसंद नहीं आता दो किशोरियों के बीच सैंडविच बनना। जिन रसीले जोबनों के बारे में सोच-सोचकर लोगों का खड़ा हो जाय, वो खुद सीने और पीठ पे रगड़े जा रहे हों तो।
“अरे झूठ बोल रहे हैं। उनकी बहन आएगी ना तो तीन तो मिनिमम। उससे कम में तो उसका मन ही नहीं भरेगा। एक आगे, एक पीछे, एक मुँह में…” गुड्डी बोली। वो अब चंदा भाभी का भी कान काट रही थी।
रीत अब दोनों हाथों से कस-कसकर मेरे सीने पे रगड़ रही थी ठीक वैसे ही जैसे कोई किसी लड़की के जोबन मसले। बीच-बीच में मेरे टिट भी पिंच कर लेती।
मैं- “रीत। सोच लो मेरा भी मौका आएगा। इतना कसकर दबाऊंगा, मजा लूँगा तेरे इन गदराये जोबन का न…”
“तो ले लेना ना, और छोड़ा है क्या अभी?” वो शोख बोली।
“अभी तो ब्रा के ऊपर से ही दबाया था…” मैंने धीरे से बोला।
गुड्डी की एक हाथ की उंगलियां पेट से सरक के बर्मुडा के अन्दर घुसाने की कोशिश कर रही थी। वो भी मैदान में आ गई, और बोली-
“अरे ये तो सख्त नाइंसाफी है रीत दीदी के साथ। ब्रा के ऊपर से क्यों? वैसे वो भागेंगी नहीं…”
“शैतान की नानी…” रीत बोली- “मेरी वकालत करने की जरूरत नहीं है। वैस भी पहले तो तेरी फटनी है…”
और रीत का भी एक हाथ पीछे से मेरे बर्मुडा में घुस चुका था, वैसे वो भी गुंजा की ही थी। मेरे कपड़े तो पहले ही इन दोनों दुष्टों, रीत और गुड्डी के कब्जे में चले गए थे।
गुड्डी की रंग लगी मझली उंगली सीधे मेरे तन्नाये लिंग के बेस पे। मुझे जोर का झटका जोर से लगा।
गुड्डी- “बात तो आपकी सोलहो आना सही है। मैं इसे छोड़ने वाली थोड़ी थी। लेकिन क्या करूँ ये साली मेरी सहेली गलत मौके पे आ गई…” और फिर वो मुझे उकसाने लगी-
“हे तब तक तू रीत की क्यों नहीं ले लेते, बहुत गरमा रही है ये…”
रीत ने जवाब में अपनी रंग लगी मझली उंगली बर्मुडा में सीधे मेरी गाण्ड की दरार में रगड़ दी। मैंने फिर मस्ती में सिसकी ली।
“चुटकी जो काटी तूने…” रीत ने गाया और एक बार कसकर मेरे टिट पे चुटकी काट ली, दूसरा हाथ भी सीधे पिछवाड़े पे।
“क्यों रीत मंजूर है, जो गुड्डी बोल रही है…” मैंने रीत से पूछा।
“दो बार तो बचकर निकल गई मैं…” वो हँसकर बोली और कस-कसकर रंग लगाने लगी।
“तीसरी बार नहीं बचोगी…” मैंने धमकाया।
“नहीं बचूंगी तो नहीं बचूंगी…” जिस शोख अदा से उस हसीन ने कहा की मेरी तो जान निकल गई।
लेकिन अभी सवाल मेरे बचने का था।
जैसे किसी के गर्दन पे तीखी तलवार रखी हो लेकिन वो ना कटे ना छोड़े वो हालत मेरी हो रही थी।
और सामने संध्या भाभी, अपने हथेलियों में मुझे दिखाकर लाल रंग मल रही थी। उनकी ट्रांसपरेंट सी साड़ी में उनका गोरा बदन झलक रहा था। भारी जोबन खूब लो-कट ब्लाउज़ से निकलने को बेताब थे। शायद विवाहित औरतों पे एक नए तरह का हो जोबन आ जाता है। वही हालत उनकी थी। चूतड़ भी खूब भरे-भरे।
“तुम दोनों रगड़ लो फिर मैं आती हूँ। इन्हें बनारस के ससुराल की होली का मजा चखाने…” वो मुश्कुराकर रीत और गुड्डी से बोली।
“ना आ जाइए आप भी ना थ्री-इन-वन मिलेगा इनको…” रीत और गुड्डी साथ-साथ बोली।
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होली आयी रे,...
Some chit chat, some Bollywood Holi songs, poems and a lot of masti,
मुंह भर बतकही, अँकवार भर गाने और आंगन भर मस्ती,...
खुली-बन्द
ऑंखों में आते
सतरंगी सपने अबीर के।
द्वार-द्वार गा रहा
जोगिया मौसम
पद फगुआ कबीर के
Holi is not a time to say NO but,…
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