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फागुन के दिन चार भाग ३० -कौन है चुम्मन ? पृष्ठ ३४७
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I suffer from triskaidekaphobia, but I am sure it will be worse after the faux pas I committed today, while posting part 13 of this story.
I missed out on either acknowledging or commenting on the views of my friends on pages 168-170—a glaring omission. Never intended, but a lapse nonetheless. I am contrite. But no explanations. Only apologies.
तभी तो सब की मास्टरनी है, चाहे चंदा भाभी हों या संध्या या रीत दूबे भाभी के आगे सब पानी मांगती हैंदूबे भाभी के पास हर जोड़ का तोड़ है...
और नजरें ऐसी बारीक कि सारी चालाकी एक पल में पकड़ में...
एकदम और अब होली का हर रंग उनके हिसाब से उनकी इज्जाजत से ही होगादूबे भाभी ने सारा जायजा ले लिया...
लेकिन प्लानिंग तो पहले हीं......
आनंद बाबू भी तो यही चाहते हैं, गुड्डी उनके पूरे जिंदगी की आर्गनाइजर बन जाए, सुबह शाम रात हर दम और गुड्डी को भी मालूम है की उसके बिना आनंद बाबू एकदम आनंद नहीं ले सकतेगुड्डी तो आनंद बाबू के आर्गेनाइजर की तरह है...
भूले को याद दिलाना...
साली सलहज से कैसे पेश आना....
और साथ में हर मामले को सुलझा लेने का नुस्खा...
तो होली तो होके रहेगी... वो भी जबरदस्त....
बचना चाहिए भी नहींफिर से आनंद बाबू की बहना दूबे भाभी के निशाने पे..
खासकर जब रीत हो तो बचाव का कोई रास्ता नहीं...
भोज भात में सब बनारस वाले बुलाये जाएंगे और पारसी जाएंगी गुड्डी की होने वाली ननदखबर सुन के हीं मुँह मीठा हो रहा है तो...
एक्शन के बाद तो भोज-भात होगा...
और जब गुड्डी डलवाने वाली हो तो...
सबूत के साथ....
रीत सिर्फ अपनी नहीं सब बनारस वालियों की ओर से दावतनामा दे रही है और चैलेन्ज भी जिसमे गुंजा और संध्या भाभी भी शामिल हैंतोड़कर तिजोरियों को लूट ले जरा,
हुस्न की तिल्ली से बीड़ी-चिल्लम जलाने आय्यी,
आई चिकनी,.. चिकनी,... आई,...आई।
तिजोरी टूटेगी भी... और लुट भी जाएगी...
और एक बार जब बीड़ी सुलग गई हुस्न की गुलाबी चिकनी चमेली सफेद धुआं पर धुआं छोड़ेगी...
इस गुलामी के लिए ही तो लोग जान देने को तैयार रहते हैंगुलामी कबूल करने से पहले हीं गुलामी...
होली हो बनारस हो तब भी शर्म लाज बची रह जाएजबरदस्त क्या नशीला अपडेटेड है. माझा ही आ गया.
पर ये गुड्डी की लाइन. जो एक ही लाइन मे कमुख्ता और शारारत के साथ साथ अपने प्यार का भी इज़हार कर रही है.
वैसे ही तुम्हारे साथ हाथ पैर पकड़कर। भले ही अपने हाथ से पकड़कर डलवाना पड़े तुम्हीं से उसकी नथ उतरवाऊँगी…”
माझा ही आ गया. रीत का भी जवाब नहीं. साली हो तो ऐसी. मौके पर चौका भी तुरंत माझा ही आ गया.
अरे आनंद बाबू तुम्हारी बहनिया की नथ उतराई की मिठाई बट रही है. वाह रीत वाह.
अब तो गुड्डी रानी के मुँह से पूरा बुलवाके ही मानेगी. क्या डलवाएगी.
माझा आ गया.
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एकदम सही कहा, गुड्डी ने भी ग्रीन सिंगल दे दिया हैअमेज़िंग... रीत ने तो माहोल ही गरमा दिया. मेने तो पहले ही कहा था साली हो तो रीत जैसी. देखा अपने जीजा नादौई के लिए कैसे चिकनी चमेली बन कर ठुमका लगाई है. जोबन का जादू कैसे चलाई है.
. अरे आनंद बाबू तुम्हारी वाली ने तो पहले ही छूट दे रखी है. फिर देर किस बात की. भौजी भी तो बोल रही है. पकड़ के मसल दो. माझा ही आ गया.
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