- 22,333
- 58,185
- 259
फागुन के दिन चार भाग ३० -कौन है चुम्मन ? पृष्ठ ३४७
अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, आनंद लें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, आनंद लें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
Last edited:
Hot update komal ji. Or yahan bhi chanda bhabhi ko kuchh apne husband ka bhi jikar krna chahiye ki unke sath sex life kesi hai or wo tour me rehte hai toh chanda bhabhi kese raaten katti hai, yeh sab baten bhi anand ko chanda ke beech ho skti hझरती चांदनी
हम दोनों थके थे। एक दूसरे को कस के बाँहों में भींचे, बाहर चांदनी, पलाश और रात झर रही थी,
---
" तोहरे भैया के बियाहे में गुड्डी क महतारी पूछी थीं न गुड्डी से बियाह करोगे "
वो यादें, मेरा तन मन फागुन हो गया। बियाह तो उसी पल घड़ी हो गया था, जब उस सारंग नयनी ने भाभी के बीड़े के बाद बीड़ा मारा, सीधे मेरे सीने पे, ... जिंदगी में मिठास उसी दिन घुल गयी थी जब जनवासे में मेरे दांत देखने के बहाने पूरा बड़ा सा रसगुल्ला उसने एक बार में खिला दिया था , और उसकी वो खील बताशे वाली हंसी,...
मैं कुछ बोलता, उसके पहले भौजी ने अपनी मीठी मीठी ऊँगली मेरे होंठ पर रख दी और चुप कराते हुए पूछा,
" अबकी होलिका देवी का आशीर्वाद, तोहरे राशिफल में भी लिखा है तो का पता,... तो मान लो तोहार किस्मत,... बियाह हो ही जाए, तो दहेज में का मांगोगे। "
मेरे लिए तो उस लड़की का मिलना ही जिंदगी का सपना पूरा होना था,... जब तक मैं बस के पीछे लिखा, दुल्हन ही दहेज़ है, मैं दहेज़ के खिलाफ हूँ इत्यादि बोलता, मुंह खोलने की कोशिश करता, चंदा भाभी ने मुंह बंद करा दिया।
'" बहुत बोलते हो , सब मर्दो में यही एक बुरी आदत है बोलते ज्यादा हैं सुनते कम हैं। "
और चुप कराने के लिए अपनी दायीं चूँची भौजी ने मेरे मुंह में डाल दी बल्कि पेल दी, और बोलना शुरू कर दिया
" दहेज़ तो जरूर मांगना, और मैं बताती हूँ क्या मांगना, गुड्डी क मम्मी और दोनों उसकी छोटी बहने। और गुड्डी क महतारी ये जो टनटनाया औजार ले के घूमते हो न , कोहबर में ही दोनों अपनी बड़ी बड़ी चूँची में दबा के एक पानी निकाल देंगी, ... "
मेरी आँखों के सामने एक बार गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी की तस्वीर घूम गयी, दीर्घ स्तना, उन्नत उरोज, एकदम ब्लाउज फाड़ते, ब्लाउज के बाहर झांकते, चंदा भाभी से ही दो नंबर बड़े होंगे लेकिन वैसे ही कड़े कड़े,... सोच के फनफनाने लगता है।
लेकिन लालची मन, मैंने भाभी के दूसरे उरोज को कस के मुट्ठी से दबा दिया और जब मुंह खुला तो मन की बात कह दी, ... " और भौजी पास पड़ोसन "
" ये पूछने की बात है, कल दिन में ही पता चल जाएगा, जब पास पड़ोसन रगड़ाई करेंगी। " भौजी ने हंस के जवाब दिया।
बाहों में लिपटे-लिपटे साइड में होकर हम वैसे ही सो गए। मेरा लिंग भाभी के अन्दर ही था।
सुबह अभी नहीं हुई थी। रात का अन्धेरा बस छटा ही चाहता था।
कहीं कोई मुर्गा बोला और मेरी नींद खुल गई। हम उसी तरह से थे एक दूसरे की बाहों में लिपटे।
मेरा मुर्गा भी फिर से बोलने लगा था। मैंने भाभी को फिर से बाहों में भर लिया। बिना आँखें खोले उन्होंने अपनी टांग उठाकर मेरी टांग पे रख दी और अपने हाथ से ‘उसे’ अपने छेद पे सेट कर दिया। हम दोनों ने एक साथ पुश किया और वो अन्दर। उसी तरह साथ-साथ लेटे, साइड में। हल्के-हल्के धक्के के साथ।
पता नहीं हम कब झड़े कब सोये।
हाँ एक बात और चंदा भाभी ने बता दिया की उनकी नथ कब कैसे उतरी किसने उतारी, एक दो बार तो उन्होंने नखड़ा किया लेकिन फिर हंस के बोली,
तेरी तरह इन्तजार नहीं किया मैंने,... तेरी उस ममेरी बहन से कम उमर थी, अच्छा पहले तीन तिरबाचा भरो की अपनी छुटकी बहिनिया को चोदोगे तो बताउंगी,,.... हाँ बोलने से काम नहीं चला, उसका स्कूल का नाम ले के बताना पड़ा रंजीता को,... तीन बार तीर्बाचा भरवाया, की उस की फाड़ूंगा,... तो बात उन्होंने शुरू की। और बात पता नहीं कैसे घूम फिर के गुड्डी की मझली बहिनिया पर पहुँच गयी तो भौजी बोलीं
" अरे मंझली से भी छोटी थी, जब मेरी चिड़िया उड़नी शुरू हो गयी थी और तुझे वो क्या गुड्डी भी अभी छोटी लगती है,... "
पता नहीं कैसे मेरे मुंह से उनकी बेटी का नाम निकल गया, फिर लगा की नहीं बोलना चाहिए था पर बात तो निकल ही गयी, उन्होंने ही बोला था की उनकी बेटी भी मंझली की ही समौरिया है तो वही सोच के,...
" गुंजा से भी कच्ची उमर थी भौजी आप की "
मेर्री बात उन्होंने काट दी, उन्हें बात आगे बढ़ाने की जल्दी थी, " उससे पूरे छह महीने छोटी थी "
फिर उन्होंने हाल खुलासा बताया। एक उनके पड़ोस की बहन थीं, उसे ये दीदी बोलती थीं इनसे चार पांच साल बड़ी, ... न सगी न रिश्ते की बस मुंह बोली। पडोसी थीं लेकिन दोस्ती खूब थी, दीदी से भी उनकी भाभी से भी। गौना जाड़े में हुआ था दीदी का और गौने में ही जीजा, उन पे मोहा गए. पास के गाँव में ही शादी हुयी थी।
भौजी बोलीं बस उनके टिकोरे से ही आ रहे थे, लेकिन उनकी उस मुंहबोली दीदी वाले जीजा जब भी आते, महीने में दो चार चक्कर लग ही जाता, बस कभी पीछे से पकड़ के टिकोरे मसल देते, अपना खूंटा चूतड़ में रगड़ देते, और ये नहीं की अकेले पाके, ... दीदी होती तो उसके सामने, और वो चिढ़ातीं,
' नाप लो, पिछली बार से कुछ बड़े हुए की नहीं "
और भौजी तो और चिढ़ाती अपने नन्दोई को,
" गलती तो पाहुन की है ठीक से दबाते नहीं तो बढ़ेंगे कैसे, फिर ननद ननद में फरक करते हैं , एक का तो चोली खोल के खुल के रगड़ते मसलते हैं और दूसरी का फ्राक के ऊपर से बस हलके से नाम के लिए "
और दीदी और, बोलतीं भौजी से लेकिन उकसातीं अपने मरद को,
" भौजी सही है , आपके नन्दोई बहन बहन में फरक करते हैं मुझे भी अच्छा नहीं लगता। "
फिर तो जीजू फ्राक के अंदर हाथ डाल के कस कस के कच्ची अमिया को, .... और जान बुझ के अपना टनटनाया खूंटा मेरे पिछवाड़े कस कस के रगड़ते, भले बीच में उनका पजामा मेरी फ्राक रहती लेकिन उसका कड़ापन, मोटाई,... मेरी देह सनसना जाती गुलाबो फड़कने लगतीं, मैं पनिया जाती। ऊपर से बोलती जीजू छोड़ न , लेकिन मन कतई नहीं होता की वो छोड़ें, पहली बार आ रहे जोबन पर किसी का हाथ पड़ा था.
भौजी मेरे मन की हाल अच्छी तरह समझती थीं खुद ही उनसे खुल के बोलतीं, ...
" अरे अब नेवान कर दो बबुनी का कब तक तड़पाओगे,... फिर खुद ही दिन घड़ी तय कर देतीं, ' अरे दो महीने में फागुन लग जाएगा, बस असली पिचकारी का रंग मेरी ननद को,... "
और हुआ वही, होली के एक दिन पहले भौजी ने अपने घर बुला लिया, होली में काम तो बढ़ ही जाता है, फिर मैं सोच रही थी की जीजू तो होली के दिन आयंगे।
मैं और भौजी मिल के गुझिया बना रहे थे और भौजी ने पहले से बनी दो गुझिया खिला दी, मुझे क्या मालूम था उसमें डबल भांग की डोज पड़ी है,... बस थोड़ी देर में ही,...
और पता चला की दीदी जीजू तो सुबह ही आ गए थे, दीदी अपनी किसी सहेली के यहाँ गयीं हैं शाम तक लौटेंगी और जीजू सो रहे हैं,...
लेकिन घर में कच्ची उमर की साली हो, होली हो किस जीजू को नींद लगती है, मानुस गंध मानुस गंध करते वो उठे,...
होली रंग से शुरू हुयी अंग तक पहुंच गयी,
पहले चरर कर के फ्राक फटी फिर जाँघों के बीच की चुनमुनिया, ...
भौजी ने कस के मेरे दोनों हाथ पकड़ रखे थे, लेकिन एक बार जब जीजू का सुपाड़ा अंदर घुस गया तो उन्होंने हाथ छोड़ दिया और मुझसे बोलीं, " ननद रानी जोर जोर से चूतड़ पटको, चीखो चिल्लाओ, अब बिना चुदवाये बचत नहीं है "
लेकिन जब झिल्ली फटने का टाइम आया, तो भौजी ने अपनी बड़ी बड़ी चूँची मेरे मुंह में ठेल दी, और अपने नन्दोई से बोलीं
" अब पेलो कस के, अरे कच्ची कली है, उछले कूदेगी है है, बछिया के उछलने से का सांड़ छोड़ देता है , और रगड़ के पेलता है। "
झिल्ली फटनी थी फटी,दर्द होना था हुआ, लेकिन जीजू ने खूब हचक के चोदा। और भौजी और उन्हें चढ़ा रही थीं।
और मुझसे उठा नहीं जा रहा था, भौजी और जीजू ने मिल के किसी तरह बिठाया। हम लोग बस ऐसे बैठे ही थी की दीदी आगयीं।
बात काट के मैं बोला, " वो तो बहुत गुस्सा हुयी होंगी उन्हें अगर पता चल गया होगा "
चंदा भाभी बोलीं, एकदम बहुत गुस्सा हुईं जीजू पर बहुत चिल्लाईं और मैं भी सहम गयी।
उसके बाद भाभी खूब देर तक खिलखिलाती रही फिर बोलीं अरे हाल तो पता चलना ही था, मेरी फ्राक फटी थी, जाँघों के बीच मलाई लगी थी, लेकिन जानते हो दी गुस्सा क्यों हो रही थीं,...
उनके आने का इन्तजार क्यों नहीं किया, उनके सामने मेरी लेनी चाहिए थी और दो बातों पर वो राजी हुयी, मैं जब जीजू की ओर से बोलने लगी तो वो बोलीं,
" चलों अब मेरे सामने फिर से करो, और जैसे मैं कहूं, मेरी छोटी बहिन के साथ मजा लिया और मुझे देखने को भी नहीं मिला, ... ऐसे नहीं निहुरा के हां "
और वहीँ आँगन में निहुरा के कुतिया बना के जीजू ने फिर से मुझे दीदी और भौजी के सामने चोदा ,
और भौजी से ज्यादा दीदी मुझे चिढ़ा रही थीं,
" क्यों पूछती थीं न जीजू के साथ कैसा लगता है अब खुद देख ले,... कैसे जोर के धक्के लगते हैं,... आ रहा है न मजा "
और कभी जोर से फिर जीजू को हड़काती, " मेरी बहिनिया की अभी कच्ची अमिया है तो क्या इत्ते हलके हलके मसलोगे,... सब ताकत क्या मेरी ननदों के लिए बी बचा रखी है, ... "
लेकिन एक बात समझ लो असली मजा नयी लड़की को दूसरी चुदाई में ही आता है। मैं समझ गयी क्यों सब लड़कियां इस के चक्कर में पड़ी रहती हैं।
डेढ़ घंटे में दो बार मैं चुदी। बाद में दी ने जीजू से दूसरी शर्त बतायी, और अब ये मेरी बहन आपको रंग लगाएगी पूरे पांच कोट रंग आज भी कल भी और चुपचाप बिना उछले कूदे लगवा लीजियेगा, ...
ये बात दी ने एकदम मेरे मन की कही थी, ये बात सोच के ही मैं परेशान हो रही थी, जीजू को रंग कैसे लगाउंगी, एक तो लम्बे हैं उचक के बच जाएंगे मेरा हाथ ही नहीं पहुंचेगा, दूसरे तगड़े भी बहुत हैं पकड़ भी जकड़ने वाली, एक बार मेरी कलाई पकड़ ली,... मैं खूब खुश लेकिन लालची बचपन की,... मैंने दीदी से कहा ,
पांच कोट रंग के बाद एक बाद एक कोट पेण्ट की भी,...
" एकदम पेण्ट तो बहुत जरूरी है, एक ओर सफ़ेद , एक ओर कालिख पक्की वाली " हँसते हुए दी ने मेरी बात में और जोड़ा फिर कहा ये तेरे जीजू ही आज जा के सब पेण्ट रंग लाएंगे तेरे साथ, ... "
पर जीजू एक बदमाश, और जीजू कौन जो बदमाश न हो और साली सलहज को तो बदमाश वाले ही अच्छे लगते हैं। जितने ज्यादा बदमाश हो उत्ते ज्यादा अच्छे। जीजू बोले, " मंजूर मैं चुप चाप लगवा लूंगा लेकिन ये मेरी साली जित्ती बार रंग लगाएगी, उत्ती बार मैं उसे सफ़ेद रंग लगाऊंगा, फिर ये न भागे। ये भी चुपचाप लगवा ले "
मैं मतलब समझ रही थी , थोड़ा शर्मा गयी लेकिन मेरी और से दी बोलीं, और जीजू को हड़का लिया, ...
" कैसे कंजूस जीजू हो जो साली को सफ़ेद रंग लगाने का हिसाब रखोगे,... अरे मेरी बहन है, तेरी पिचकारी पिचका के रख देगी, लगा लेना, जित्ती बार वो रंग लगाएगी उत्ती बार, उसके दूनी बार, वो एकदम मना नहीं करेगी।
"दी और जीजू मेरी लिए एक नयी फ्राक और शलवार कुर्ता ले आये थे,... बस वही पहन के मैं घर लौटी। माँ दरवाजे पे ही मिलीं।
मुझे लगा की चंदा भाभी की माँ ने हड़काया होगा,... लेकिन भौजी बोलीं " अरे नहीं माँ देख के ही समझ गयीं बस दुलार से मुझे दुपका लिया और गाल पे चूम के बोली, अच्छा हुआ तू भी आज से हम लोगो की बिरादरी में आ गयी। जा थोड़ी देर आराम कर ले "
और हर कहानी के अंत में कहते हैं न की कहानी से क्या शिक्षा मिलती है तो चंदा भाभी ने वो शिक्षा भी दे दी।
" साली साली होती है उस की उमर नहीं रिश्ता देखा जाता है। और साली कोई जरूरी नहीं सगी हो रिश्ते जी , मुंहबोली भी ( आखिर चंदा भाभी की नथ तो मुंहबोली दीदी वाले जीजा ने उतारी थी दिन दहाड़े) दूसरी बात अगर जीजा साली को दबोचे नहीं दबाये रगड़े नहीं, मस्ती न करे तो सबसे ज्यादा साली को बुरा लगता है और जीजा साली के रिश्ते की बेइज्जती है। "
मैं ध्यान से उनकी बात सुन रहा था लेकिन उसके बाद जो बात उन्होंने बताई, वो एकदम काम की थी, ... दे
ख यार कोई चढ़ती उम्र वाली हो , गुड्डी की दोनों छोटी बहनों की उम्र की,...
बस एक बार पीछे से पकड़ के दबोच लो, कच्चे टिकोरों का खुल के रस लो,... और साथ में अपना तन्नाया खूंटा उसके छोटे छोटे चूतड़ के बीच दबाओ, जोर से एकदम खुल के रगड़ो, वो एक तो तुम्हारा इरादा समझ जायेगी, दूसरे उसकी देह में इत्ती जबरदस्त सनसनाहट मचेगी,... उसकी कसी बिल में इत्ते जोर से चींटे काटेंगे की वो खुद टाँगे खोल देगी, ... बस समझ लो उसके बाद न चोदना साली की भी बेइज्जती है और बुर रानी की भी। और जीजा साली के रिश्ते में कोई बोलता भी नहीं।
सुबह जब मेरी नींद खुली तो सूरज ऊपर तक चढ़ आया था और नींद खुली उस आवाज से।
“हे कब तक सोओगे। कल तो बहुत नखड़े दिखा रहे थे। सुबह जल्दी चलना है शापिंग पे जाना है और अब। मुझे मालूम है तुम झूठ-मूठ का। चलो मालूम है तुम कैसे उठोगे?” और मैंने अपने होंठों पे लरजते हुए किशोर होंठों का रसीला स्पर्श महसूस किया।
मैंने तब भी आँखें नहीं खोली।
“गुड मार्निंग…” मेरी चिड़िया चहकी।
मैंने भी उसे बाहों में भर लिया और कसकर किस करके बोला- “गुड मार्निंग…”
“तुम्हारे लिए चाय अपने हाथ से बनाकर लाई हूँ। बेड टी। आज तुम्हारी गुड लक है…” वो मुश्कुरा रही थी।
Vese to mene yeh story already padhi hui hai lekin jahan mujhe lgega ki kuchh or achha ho skta hai, likhta rahungaHot
Hot update komal ji. Or yahan bhi chanda bhabhi ko kuchh apne husband ka bhi jikar krna chahiye ki unke sath sex life kesi hai or wo tour me rehte hai toh chanda bhabhi kese raaten katti hai, yeh sab baten bhi anand ko chanda ke beech ho skti h
बहुत ही मजेदार और रोमांचकारी अपडेट है रीत और आनंद के बीच संवाद बहुत ही मजेदार था आनंद को खुली छूट दे दी है रीत नेरीत -भाभी नहीं, ....
हम दोनों ऐसे चिपके थे की बगल से भी नहीं दिख सकता था की हमारे हाथ क्या कर रहे हैं?
रीत दहीबड़े की प्लेट लायी थी और साथ में बैग में कुछ। गुड्डी उसे ही देख रही थी और बीच-बीच में हम लोगों को। रीत ने उसे हम लोगों को देखते हुए पकड़ लिया और मुझसे बोली-
“हे जरा सून्घों कहीं। कहीं कुछ जलने की, सुलगने की महक आ रही है…”
मैंने अबकी गुड्डी को दिखाते हुए रीत के उभार हल्के से दबा दिए और बोला- “शायद। थोड़ा-थोड़ा आ रही है…”
गुड्डी भी वो समझ रही थी की हम लोग क्या कह रहे हैं? वो बोली- “लगे रहो, लगे रहो…” और रीत की ओर मुँह करके बोली-
“हे जो सुलगने वाली चीज होती है ना मैंने पहले ही साफ सूफ कर दी है…”
तीनों हँस दिए।
“फेविकोल का जोड़ है इत्ती आसानी से नहीं छूटेगा…” रीत बोली।
“अचछा नए-नए देवरजी। अपनी भाभी को सिर्फ पकड़ा पकड़ी ही करियेगा या कुछ खिलाइए, पिलाइएगा भी?”
मैं गुड्डी का मतलब समझ गया। एक बार वो जो ड्रिंक्स मैंने बनाए थे और नत्था का गुलाब जामुन डबल डोज वाला, लेकिन वो चिड़िया इतनी आसानी से चारा घोंटने वाली नहीं थी। हम दोनों अलग हो गए।
वो मुझसे पूछने लगी- “हे आप मेरा मतलब, तुम। अभी…” उसने मुझसे बात की शुरूआत की।
मैंने कुछ बोलने की कोशिश की तो उसने रोक दिया, मैं मान गया टिपिकल गुड्डी की दी, एकदम गुड्डी जैसे, पहले पूछेगी, फिर बोलो तो बोलने नहीं देगी, अपनी ही सुनाएगी।
“ना ना वो तो मुझे मालूम है। ये चुहिया हम सबको आपके बारे में बताती रहती है…” गुड्डी की ओर इशारा करके वो बोली।
गुड्डी झेंप गई जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो।
“इस चुहिया ने मुझे आप मेरा मतलब है तुम्हारे बारे में ये…” मैं बोला।
गुड्डी जोर से चिल्लाई- “हे ये मेरी दीदी हैं। चुहिया कहें या चाहे जो लेकिन आप…”
“ओके, बाबा। मैं अपनी बात वापस लेता हूँ…” मैं बोला और फिर कहा- “ गुड्डी ने ये बोला था की। आप मेरा मतलब तुमने इंटर-कोर्स किया है…”
“इंटर-कोर्स। नहीं इंटर का कोर्स…” मुँह बनाकर रीत बोली।
गुड्डी मुश्कुरा रही थी।
“तो क्या तुमने अभी तक इंटरकोर्स नहीं किया। चचच्च…” मैं बड़े सीरियस अंदाज में बोला।
“कैसे करती। तुम तो अभी तक मिले नहीं थे…”
वो भी उसी तरह मुँह बनाकर बोली।
मैं समझ गया की ये चीज बड़ी है मस्त मस्त। मैंने मुश्कुराते हुए पूछा- “आगे का क्या प्रोग्राम है?”
“अब तुम्हारे ऐसा देवर मिल गया है। तो हो जाएगा…” खिलखिलाते हुए वो बोली।
“तुम लोग ना। सिंगल ट्रैक माइंड। बिचारे बदनाम लड़के होते हैं। अरे मेरा मतलब था की पढाई का लेकिन तुम्हारे दिमाग में तो…” चिढ़ाते हुए मैंने कहा।
कुछ खीझ से कुछ मजे लेकर मेरा कान पकड़कर वो बोली- “फिलहाल तो आगे का प्रोग्राम तुम्हारी पिटाई करने का है…”
“एकदम-एकदम। मैं भी साथ दूंगी। कहो तो डंडा वंडा ले आऊं?” गुड्डी भी उसका साथ देते बोली।
बिना मेरा कान छोड़े वो बोली- “अरे यार आगे का प्रोग्राम “बी॰काम॰, बैचलर आफ कामर्स…कर रही हूँ , सेकेण्ड ईयर है ” वो मुश्कुराकर बोली। मेरा कान अब फ्री हो गया था।
“ओके। तो आप कामरस में ग्रजुएशन करेंगी? सही है। सही है…” कहकर ऊपर से नीचे तक मैंने उसे देखा। उसके टाईट कुरते में कैद जोबन पे मेरी निगाह टिक गईं-
“सही है। सिर से पैर तक तो तुम कामरस में डूबी हो। हे मुझे भी कुछ पढ़ा देना। कामरस। आम-रस। मैं तो रसिया हूँ रस का…” मेरी निगाहें उसके उरोजों से चिपकी थीं।
वो समझ रही थी की मैं किस आम-रस की बात कर रहा हूँ। वो भी उसी अंदाज में बोली-
“अरे आम-रस चाहिए तो पेड़ पे चढ़ना पड़ता है। आम पकड़ना पड़ता है…”
“अरे मैं तो चढ़ने के लिए भी तैयार हूँ, और पकड़ने के लिए भी, बस एक बार खाली मुँह लगाने का मौका मिल जाए…” मैंने कहा।
एक जबरदस्त अंगड़ाई ली कैटरीना ने। दोनों कबूतर लगता था छलक के बाहर आ जायेंगे-
“इंतजार। उम्मीद पे दुनियां कायम है क्या पता। मिल ही जाय कभी?” वो जालिम इस अदा से बोली की मेरी जान ही निकल गई।
“हे अपनी भाभी का बात से ही पेट भरोगे…” गुड्डी ने फिर मुझे इशारा किया।
“नहीं मैं खिलाऊँगी इन्हें। सुबह से इत्ती मेहनत से दहीबड़े बनाये हैं…” रीत बोली और दहीबड़े की प्लेट के पास जाकर खड़ी हो गई।
“नहींईई…” मैं जोर से चिल्ल्लाया- “सुबह गुंजा और इसने मेहनत करके अभी तक मेरे मुँह में…”
गुड्डी बड़ी जोर से हँसी। उसकी हँसी रुक ही नहीं रही थी।
“अरे मुझे भी तो बता?” रीत बोली।
हँसते, रुकते किसी तरह गुड्डी ने उसे सुबह की ब्रेड रोल की, किस तरह उसने और गुंजा ने मिलकर मेरी ऐसी की तैसी की? सब बताया। अब के रीत हँसने की बारी थी।
भाभी वाले रिश्ते में मुझे भी कुछ अड़बड़ लग रहा था, लेकिन बोली रीत ही,
" यार, भाभी की तो शादी होनी चाहिए, कुँवारी भाभी में अटपट लगता है, और असली रिश्ता है ये जो चुहिया है जिसे तुम हरदम के लिए चूहेदानी में बंद करना चाहते हो, मेरी छोटी बहन भी है , सहेली भी, इसलिए साली, "
गुड्डी ने बात काट दी, ' सिर्फ साली नहीं, बड़ी साली, "
" अरे यार रगड़ाई करने से मतलब, ये बेचारा इस अच्छे मौके पे बनारस आया है तो रगड़ाई तो मैं करुँगी, चाहे भौजी के रिश्ते से, चाहे साली के रिश्ते से, " वो बोली,
रगड़ाई तो इनकी गूंजा ने ही सुबह सुबह शुरू कर, मिर्च वाले ब्रेड रोल से, गुड्डी हँसते हुए बोली।
“बनारस में बहुत सावधान रहने की जरूरत है…” मैं बोला।
“एकदम बनारसी ठग मशहूर होते हैं…” रीत बोली।
“पर यहां तो ठगनियां हैं। वो भी तीन-तीन। कैसे कोई बचे?” मैं बोला।
आनंद बाबू तो अपने आप को खिलाड़ी समझ रहे थे लेकिन उनका दाव तो उल्टा पड़ गया रीत तो आनंद पर भारी पड़ गई अब जमकर रगड़ाई होने वाली है आनंद की अब तो रसाला गया काम सेफागुन के दिन चार भाग ९
--
--
रीत की रीत, रीत ही जाने
1,11,995
---
“नहीं मैं खिलाऊँगी इन्हें। सुबह से इत्ती मेहनत से दहीबड़े बनाये हैं…” रीत बोली और दहीबड़े की प्लेट के पास जाकर खड़ी हो गई।
“नहींईई…” मैं जोर से चिल्ल्लाया- “सुबह गुंजा और इसने मेहनत करके अभी तक मेरे मुँह में…”
गुड्डी बड़ी जोर से हँसी। उसकी हँसी रुक ही नहीं रही थी।
“अरे मुझे भी तो बता?” रीत बोली।
हँसते, रुकते किसी तरह गुड्डी ने उसे सुबह की ब्रेड रोल की, किस तरह उसने और गुंजा ने मिलकर मेरी ऐसी की तैसी की? सब बताया। अब के रीत हँसने की बारी थी।
“बनारस में बहुत सावधान रहने की जरूरत है…” मैं बोला।
“एकदम बनारसी ठग मशहूर होते हैं…” रीत बोली।
“पर यहां तो ठगनियां हैं। वो भी तीन-तीन। कैसे कोई बचे?” मैं बोला।
“हे बचना चाहते हो क्या?” आँख नचाकर वो जालिम अदा से बोली।
“ना…” मैंने कबूल किया।
“बचकर रहना कहीं दिल विल। कोई…” वो जानते हुए भी गुड्डी की ओर ,शोख निगाहों से देख कर बोली।
मैं जाकर गुड्डी के पास खड़ा हो गया था। मैंने हाथ उसके कन्धे पे रखकर कहा-
“अब बस यही गनीमत है। अब उसका डर नहीं है। ना कोई ठग सकता है ना कोई चुरा सकता है…।”
मैंने भी बड़े अंदाज से गुड्डी की आँखों में झांकते कहा।
उस सारंग नयनी ने जैसे एक पल के लिए अपनी बड़ी कजरारी आँखें झुका के गुनाह कबूल कर लिया।
लेकिन रीत ने फिर पूछा- “क्यों क्या हुआ दिल का?”
“अरे वो पहले ही चोरी हो गया…” और अब मेरा हाथ खुलकर गुड्डी के उभारों पे था।
रीत कुछ-कुछ बात समझ रही थी लेकिन उसने छेड़ा- “चोर को सजा क्या मिलेगी?”
“अभी मुकदमा चल रहा है लेकिन आजीवन कारावास पक्का…” मैं मुश्कुराकर गुड्डी को देखते बोला-
“बस डर यही की मिर्चे वाली ब्रेड रोल…”
मेरी बात काटकर रीत बोली-
“अरे यार। ससुराल में, ये तो तुम्हारी सीधी सालियां थी। ये गनीमत मनाओ की मैं इन दोनों के साथ नहीं थी। लेकिन दहीबड़े के साथ डरने की कोई बात नहीं है। लो मैं खाकर दिखाती हूँ…”
और उसने एक छोटी सी बाईट लेकर अपनी लम्बी गोरी उंगलियों से मेरे होंठों के पास लगाया।
मेरे मुँह की क्या बिसात मना करता। मैं खा गया।
“नदीदे…” गुड्डी बोली।
“अरे यार। ऐसी सेक्सी भाभी कम साली । फागुन में कुछ दे, जहर भी दे ना तो कबूल…” मैं मुश्कुराकर बोला।
“अरे ऐसे देवर पे तो मैं बारी जाऊँ…” कहकर रीत ने अपने हाथ में लगा दहीबड़े का दही मेरे गाल पे लगा दिया और थोड़ा और प्लेट से लेकर और।
दही बड़े में मिर्च नहीं थी। लेकिन वो सबसे खतरनाक था। दूबे भाभी के दहीबड़े मशहूर थे वहाँ… उनमें टेबल पे जितनी चीजें थी, उनमें से किसी से भी ज्यादा भांग पड़ी थी। गुड्डी को ये बात मालूम थी लेकिन उस दुष्ट ने मुझे बताया नहीं।
गुड्डी बस खड़ी खी-खी कर रही थी।
मैंने रीत को गुलाब जामुन खिलाने की कोशिश की तो उसने मुँह बनाया। लेकिन मैंने समझाया- “दिल्ली से लाया हूँ…” तब वो मानी।
एक बार में पूरा ही ले लिया लेकिन साथ में मेरी उंगलियां भी काट ली और जब तक मैं सम्हलता। मेरा हाथ मोड़कर शीरा मेरा हाथ का मेरे ही गाल पे लगा दिया।
“चाट के साफ करना पड़ेगा…” मैंने उसे चैलेन्ज दिया।
“एकदम। हर जगह चाट लूँगी, घबड़ाओ मत…” हँसकर वो बोली। रीत की निगाहें टेबल पे कुछ पीने के लिए ढूँढ़ रही थी।
“ठंडाई…” मैंने आफर की।
“ना बाबा ना। चन्दा भाभी की बनायी, एक मिनट में आउट हो जाऊँगी…” फिर उसकी निगाह बियर के ग्लास पे पड़ी- “बियर। पीते हो क्या?”
मैंने मुश्कुराकर कबूल किया- “कभी कभी। अगर तुम्हारा जैसे कोई साथ देने वाला मिल जाय…”
“थोड़ी देर में। लेकिन सबको पिलाना तब मजा आएगा। खास तौर से इसे…” मुड़कर उसने गुड्डी की ओर देखा।
मैं- “एकदम। लेकिन अभी…”
गुड्डी रीत जो बैग साथ लायी थी उसे खोलकर देख रही थी और मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी।
“हे मैं चलूँ। ये बैग अन्दर देकर आती हूँ। कुछ काम वाम भी होगा। बस पांच मिनट में…” गुड्डी बैग लेकर अन्दर जाते हुए बोली।+++
" आराम से आना, दस मिनट क्या पन्दरह मिनट बीस मिनट, तबतक मैं इस अपने देवर कम छोटे जीजा कम साले का क्लास लेती हूँ, "
" एकदम दी, खूब रगड़के, बहुत बोल रहे थे न बनारस की ठगिनियाँ, अब पता चलेगा, " गुड्डी खिलखिलाते हुए जाते जाते बोली, लेकिन मेरी बात सुन के ठहर गयी,
" हे ये देवर, जीजा तक तो ठीक लेकिन साला किधर से " मैंने रीत से पूछा।
मैं देख ज्यादा रहा था, बोल कम रहा था, बड़ी बड़ी कजरारी आँखे, जिसमे शरारत नाच रही थी, धनुष ऐसी भौंहे, सुतवां नाक, भरे हुए होंठ, और निगाहें ठुड्डी की गड्ढे में जाके डूब जा रही थीं,
" स्साले, स्साले को स्साला नहीं बोलूंगी तो क्या " मुस्कराते हुए रीत मेरे पास आयी और कस के पास आयी और मेरी नाक पकड़ के हिलाके चिढ़ाते हुए बोलने लगी। गुड्डी मुझे देख के मुस्करा रही थी।
" स्साले समझ में नहीं आया न, अच्छे अच्छे बनारस में आके बनारसी बालाओं के आगे समझ खो देते हैं तो तुम क्या चीज हो। ये बताओ की तुम अपनी उस ममेरी बहन एलवल वाली छमक छल्लो को यहाँ बनारस में ला के बैठाने वाले हो न, एकदम ठीक सोच रहे हो, अरे जो चीज वो फ्री में बांटेंगी, उसके पास कोई असेट है तो उसे मॉनिटाइज कर सकती है तो करना चाहिए न, काम वही, अंदर बाहर, रगड़ घिस तो कुछ पैसा हाथ में आ जाए तो क्या बुराई और सबसे अच्छी बात अभी तक उस पे कोई जी एस टी भी नहीं, तो ये बताओ दिन रात सब बनारस वाले उस के ऊपर चढ़ेंगे उतरेंगे, उसकी तलैया में डुबकी मारेंगे, तो तुम क्या लगोगे उन सबके साले न, तो स्साले हम सब भी तो बनारस वाले हैं हम सबके भी तो स्साले, तुम साले ही लगोगे न, स्साले "
गुड्डी मुझे देख के मुस्कराती रही जैसे कह रही हो देखा, अब समझ में आया किस के पाले पड़े हो, मैंने तुमसे झूठ ही नहीं कहा था की मेरी रीत दी का दिमाग चाचा चौधरी से भी तेज चलता है, और बैग लेके चंदा भाभी के पास किचेन में।
मैं समझ गया था की बनारसी बालाओं से बहस करना बेकार है, और ये रीत उससे तो बहस के बारे में सोचना ही बेकार है।
already didThank you for your kind words. I know..you are super busy with maintaining 4 stories and responding to countless messages on these stories. Takes special skills that none of the messages escape your attention..
Hope you'll take time out and check out my story latest update as well. Thanks once again.
komaalrani
दुहरा हमला है लेकिन ये तो अभी शुरुआत हैये रीत-गुड्डी तो मोटू-पतलू की जोड़ी लग रही है.. या लॉरेल हार्डी की..
कोई किसी से कम नहीं...
आनंद और गुड्डी का रोमांस ही तो इस कहानी का मुख्य बिंदु है बाकी सब कलेवर है।बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है आनंद के साथ गुड्डी की मस्तियां चालू है
बहुत बहुत धन्यवाद, आपके सटीक कमेंट्स, कहानी को मिल रहा आपका साथ, कहानी को आगे बढ़ाने में बहुत सहायक है, एक बार फिर से आभार, पढ़ने के लिए कमेंट्स के लिए।बहुत ही मजेदार और रोमांचकारी अपडेट है
गुड्डी ने तो आनंद को ऑफर दे दिया हैकि वह अपनी साली गुंजा के साथ कुछ भी कर सकता है उसे बुरा नही लगेगा हे भगवान ऐसी घरवाली सबको देना
गुड्डी ने आनंद को उपर से नीचे तक चिकनी चमेली बना दिया है अब कुछ धमाल होने वाला है बियर की सील के साथ क्या किसी की सील खुलती है या नहीं
ये छोटे कबूतर हैं भी तो दमदार, छुटकी के, एकदम बेचैन उड़ने को, गुड्डी की सबसे छोटी बहन, मस्ती में सबसे आगे है।बहुत ही मजेदार और रोमांचकारी अपडेट है
मां बेटी ने तो मिलकर आनंद को खड़े खड़े ही नंगा कर दिया चंदा भाभी ने सही कहा था छुटकी 14 की हो गई है वह मस्ती करने में अपनी मां से कम नहीं है आज तो आनंद की नजरे कबूतरो से हट ही नहीं रही है