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फागुन के दिन चार भाग ३० -कौन है चुम्मन ? पृष्ठ ३४७
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ससुराल का मजा ही साली सलहज का है और होने वाली सास अगर पक्की एम् आई एल ऍफ़ हो कहना ही क्या। आपके कमेंट पढ़ के कहानी का सारा रस एक दो लाइनों में आ जाता है।बहुत ही मजेदार और रोमांचकारी अपडेट है
मां बेटी ने तो मिलकर आनंद की तो बजा दी
बेचारा मां बेटी के कबूतरो को देखने में ही रह गया उधर मां बेटी ने आगे क्या करना है ये गुड्डी को बता दिया छुटकी भी अब तो गुड्डी से दो कदम आगे है आनंद को तीन साली एक सास और चंदा भाभी जैसा कड़क माल मिला है
इस हफ्ते तीनो कहानियो के अपडेट्स, थोड़ा इन्तजार मैं भी कर रही हूँ, कुछ और व्यूज मिल जाएँ कुछ और कमेंट आ जाएँBahot besabri se intjar hai.
रीत की क्लास
मेरी नाक अभी भी रीत के हाथ में थी। नाक पकडे पकडे वो बोली
" स्साले क्या बोल रहे थे तीन ठगिनियाँ, "
लेकिन मेरी निगाह रीत के खूब टाइट कमीज को फाड़ते दोनों उभारों पर थी, वाकई बड़े थे, और मेरे मुँह से निकल गया दो ठग, असल में मुझे एक दोहा याद आ गया था, दूसरी लाइन, मेरे होंठ से निकल गयी
एक पंथ दुई ठगन ते, कैसे कै बिच जाय॥
( एक रास्ता, जोबन के बीच की गहराई और दो दो ठग यानी दोनों जोबन, तो कैसे कोई बच के निकल सकता है )
मैं सोच भी नहीं सकता था, रीत के उरोज अब मेरे सीने को बेधते, जैसे दो बरछियाँ चुभ गयी हों, और रगड़ते उसने उस दोहे को पूरा कर दिया,
उठि जोबन में तुव कुचन, मों मन मार्यो धाय।
एक पंथ दुई ठगन ते, कैसे कै बिच जाय॥
और मुस्कराकर आँखों में आँखे डालकर पूछा, बचना चाहते हो, इन दो ठगों से, अपने दोनों ठगों, मेरे मतलब दोनों कबूतरों की ओर इशारा कर के पूछा
और चंदा भाभी के नाइट स्कूल और गुड्डी की इतनी झिड़कियां सुन के थोड़ा तो सुधर ही गया था, बोला, " एकदम नहीं "
मेरे गाल मींड़ते हुए वो शोख बोली,
" वो चुहिया थोड़ी बेवकूफ है, तेरा असर, वरना तेरे ऐसे चिकने लौंडे को तो पटक के रेप कर देना चाहिए , "
फिर कुछ सोच के समझाते हड़काते बोली,
" हे मेरी छोटी बहन है , पक्की सहेली है बचपन की, मैं चाहे चुहिया कहूं चाहे, तू कुछ मत कहना "
मैंने समझदारी में ना का इशारा किया
" और ये तीन ठगिनिया, " रीत की बात पूरी भी नहीं हुई थी,
" आप, मेरा मतलब तुम, गुड्डी और गुंजा। " मुस्कराते हुए मैंने कबूल किया।
" ठगे वो जाते हैं जो बने ही होते हैं ठगे जाने के लिए और खुद ठगे जाना चाहते हैं, और जो बुद्धू होते हैं उन्हें बनाना नहीं पड़ता वो होते ही वैसे हैं " मुस्कराकर रीत बोली और फिर एकदम से टोन बदलकर, स्कूल मास्टरनी की तरह से थोड़ी दूर खड़ी हो के कड़क आवाज में पूछा
" ठोस तरल और गैस सुना है , तरल क्या होता है ?
और मैंने भी क्लास के उन बच्चो की तरह जो सबसे पहले हाथ खड़ा करते हैं, तन कर बोला ( बस यस मैडम नहीं बोला ),
"तरल पदार्थ की मात्रा और आयतन नियत होता है लेकिन वह जिस पात्र में रखे जाते हैं उसका आकार ग्रहण कर लेते हैं "
" पानी सामान्यतया, रूम टेम्प्रेचर पर क्या होता है " रीत मैडम ने अगला सवाल पूछ।
" तरल " मैंने तुरंत जवाब दिया।
"नाश्ते की टेबल पर क्या कभी किसी तरल पदार्थ को प्लेट, कैसरोल में देखा है "
अब मैं समझ गया बात किधर मुड़ रही थी, लेकिन जो बात थी मैंने बोल दिया, नही।
" प्याले में क्या था ? " अगला सवाल था।
" प्याला था ही नहीं, चाय तो बाद में चंदा भाभी गरम गरम ले आयीं, " मैंने स्थिति साफ़ की।
" टेबल पर क्या था, चंदा भाभी के आने के पहले " रीत सवाल पर सवाल दागे जा रही थी।
मुझे अपनी याददश्त और ऑब्जर्वेशन पावर पर भरोसा था मैंने सब गिना दिया, प्लेट, कैसलरोल, ग्लास, जग, केतली
" ग्लास में पानी था ? " रीत ने जानकर भी पूछा, मैंने किसी तरह झुंझलाहट रोकी, और हाल बयान किया
" होता तो मैं पी न लेता, मिर्च से मुंह जला जा रहा और गुँजा ने ये स्टाइल से जग उठा के दिया ( अभी भी मुझे उसके टॉप से झांकती हवा मिठाई याद आ रही थी )
और सिर्फ दो बूँद पानी "
पानी प्लेट में था नहीं, कैसरोल में होता तो ब्रैडरोल गीले होते, ग्लास और जग में नहीं तो सिर्फ एक ही चीज बचती है। रीत ने एकदम किसी जासूसी किताब में बंद कमरे में लाश मिलने का रहस्य जैसे खोलते हुए बोला। और फिर पूछा,
चंदा भाभी को कितना समय लगा पानी देने में ?
--
" एकदम तुरंत, उन्होंने किसी से बात भी नहीं की, बस केतली उठा के ग्लास में पानी " मैंने कबूल किया ।
लेडी शर्लोक होल्म्स
" ग्लास में पानी था ? " रीत ने जानकर भी पूछा, मैंने किसी तरह झुंझलाहट रोकी, और हाल बयान किया
" होता तो मैं पी न लेता, मिर्च से मुंह जला जा रहा और गुँजा ने ये स्टाइल से जग उठा के दिया ( अभी भी मुझे गुँजा के टॉप से झांकती हवा मिठाई याद आ रही थी) और सिर्फ दो बूँद पानी "
" पानी प्लेट में था नहीं, कैसरोल में होता तो ब्रैडरोल गीले होते, ग्लास और जग में नहीं तो सिर्फ एक ही चीज बचती है। "
रीत ने एकदम किसी जासूसी किताब में बंद कमरे में लाश मिलने का रहस्य जैसे खोलते हुए बोला। और फिर पूछा, चंदा भाभी को कितना समय लगा पानी देने में?
" एकदम तुरंत, उन्होंने किसी से बात भी नहीं की, बस केतली उठा के ग्लास में पानी " मैंने कबूल किया ।
" तो गलती किस की है तेरी या मेरी दो बहनो की, ऑब्जर्वेशन , ओब्जेर्वेंट होना चाहिए पानी जग और ग्लास में नहीं है, प्लेट और कैसरोल में भी नहीं तो केतली, ऑब्जर्वेशन और एनालिसिस, एलिमेंट्री माय डियर वाट्सन "
वो एकदम लेडी शर्लाक होम्स की तरह बोली और मैं ये सेंटेंस बोलता की उसने एक नया मोर्चा खोल दिया।
" कभी जादू का शो देखा है, मजमे वाले की बात नहीं कर रही , जिसमे टिकट लगता है, स्टेज शो " रीत ने पूछ लिया,
" एकदम कितनी बार " और जबतक मैं गोगिया पाशा, पी सी सरकार जूनियर से लेकर आठ दस नाम गिनवाता रीत ने एक टेढ़ा सवाल कर दिया,
" जादू देखते थे या जादूगर के साथ की लौंडियों को, जो मटकती चमकती रहती हैं ? "
मैं क्या बोलता, पहली बार रीत से मिला था और ये बात समझ गया था की रीत के आगे बोलती बंद हो जाती है।
" बस उसी का फायदा उठा के जादूगर हाथ की सफाई दिखा देता है और ये बताओ जब तुझे मिर्ची लग रही थी, पानी पानी चिल्ला रहे थे तो किसे देख रहे थे ? "
रीत का सवाल और मैं समझ गया की इससे झूठ बोलने का कोई फायदा नहीं, वो बोलने के पहले पकड़ लेगी ।
" वो, वो गुंजा को, उसी ने ब्रेड रोल खिलाया था, " मैंने कबूल भी किया और बहाना भी बनाया और पकड़ा भी गया।
" गुंजा को या गुंजा का, "
कह के वो मुस्करायी, फिर बोली,
" अरे यार तेरा तो जीजा साली का रिश्ता है, और तुम बुद्धू टाइप जीजा हो इसलिए देख देख के ललचाते हो, देखता तो सारा मोहल्ला है, सड़क और गली के लड़के हैं,"
और फिर रीत का टोन बदल गया वो अंग्रेजी में आ गयी।
when you have eliminated the impossible, whatever remains, however improbable, must be the truth.
और तुरंत मेरे दिमाग में शर्लाक होम्स की कहानी गूंजी, साइन आफ फोर,
लेकिन रीत फिर तुरंत उस बनारसी बालाओं के रूप में वापस आ गयी जो इस धरा पर अवतरित ही होती हैं, मेरी रगड़ाई करने के लिए,
" गुड्डी तुझे सही ही बुद्धू कहती है, तो टेबल पर अगर प्लेट, कैसरोल, ग्लास और जग में पानी नहीं था तो बची केतली न, तो भले ही अजीब लगे, लेकिन देखने में क्या,... और चंदा भाभी ने देखो एक पल में, "
रीत की मुस्कराहट देख के मैंने हार भी मान ली और बात भी बदल दी,
" कई बार बुद्धू होने का फायदा भी हो जाता है, "
" एकदम तेरा तो हो गया न तीन ठगिनिया मिल गयीं, लेकिन फिर रोते क्यों हो ठगिनियों ने लूट लिया, होली है, बनारस है ससुराल है तो लुटवाने तो आये ही हो, क्या बचाने की कोशिश कर रहे हो, हाँ एक बात और ये बोल, दहीबड़ा खाने में तेरी फट क्यों रही थी, ?"
" वो असल में, सुबह वाली बात, मिर्च, " हकलाते हुए मैंने अपना डर बताया ।
" भोले बुद्धू , मिर्च से भी खतरनाक भी कोई चीज भी तो हो सकती थी उसमे, सोचो, सोचो , " आँख नचाते उस खंजननयनी ने छेड़ा,
और सोच के मेरी रूह काँप गयी, गुझिया ठंडाई से इसलिए मैं दूर था तो कहीं, फिर मैंने ये सोच के तसल्ली दी की डबल डोज वाला गुलबाजामुन मैंने रीत को खिला दिया है, भांग की दो गोलियां बल्कि गोले, बनारस का पेसल गुलाबजामुन।
लेकिन अबकी रीत ने ट्रैक बदल दिया, पूछा उसने
" शाम को मुग़ल सराय किस ट्रेन से पहुंचे, गुड्डी बोल रही थी बहुत उठापटक कर के बड़ौदा से, चलो जानेमन से मिलना है तो थोड़ी उछल कूद तो करनी ही पड़ती है, "
और मैंने अपनी पूरी वीरगाथा ट्रेनगाथा सुना दी, मुग़लसराय तो कालका से, लेकिन बड़ौदा में कोई ट्रेन बनारस के लिए सीधी थी नहीं , तो अगस्त क्रान्ति से मथुरा, फिर दस मिनट बाद ताज एक्सप्रेस मिल गयी, उस से आगरा, और फिर वहां से किसी तरह बस से टूंडला और वहां बस कालका मिल ही गयी, तो कल शाम को आ गया वरना आज सुबह ही आ पाता । "
वो बड़ी देर तक मुस्कराती रही, फिर बोली,
"देवर कम जीजू कम स्साले, फिर तुम दिल्ली कब पहुँच गए नत्था के यहाँ से गुलाब जामुन लेने,"
और मेरे गुब्बारे की हवा निकालने के बाद जोड़ा
: उस गोदौलिया वाले नत्था के गुलाबजामुन का स्वाद मैं पहचानती हूँ, अच्छे थे, लेकिन मेरे बनाये दहीबड़े में भांग की मात्रा उससे दूनी थी, चलो इस बात पर एक और दहीबड़ा हो जाए, मुंह खोलो, अरे यार इतनी देर में तो तेरी बहना अगवाड़ा पिछवाड़ा दोनों खोल देती, खोल स्साले"
और मैंने मुंह खोल दिया, सुन कौन रहा था, समझने का सवाल ही नहीं था, मैं तो सिर्फ रीत को देख रहा था, उसकी देह की सुंदरता के साथ उसकी सोचने की ताकत को,
दहीबड़ा उसने मेरे मुंह में डाल दिया, दही मेरे गाल पे पोंछ दिया, और बाकी उँगलियों में लगी दही चाटते हुए बोली,
" आब्जर्वेशन आनंद बाबू, आब्जर्व, देखते तो सब है लेकिन आब्जर्व बहुत कम लोग करते हैं "
और मैंने तुरंत आब्जर्व किया जो बहुत चालाक बन कर गुलाब जामुन मैंने रीत को खिलाया था उस की चौगुनी भांग रीत के दो दहीबड़ों से मैं उदरस्थ कर चुका हूँ और बस दस मिनट के अंदर उसका असर,...और रीत की ओर अचरज भरी निगाहों से देखता बोला
" आप, मेरा मतलब तुम तो एकदम लेडी शरलॉक होम्स हो "
" उन्हह अपनी दही लगी उंगलिया जो उसने थोड़ी चाट के साफ़ की थीं लेकिन अभी भी लगी थी, मुझे चाटने के लिए ऑफर कर दी और वो मेरे मुंह में, और वो बोली,
" मगज अस्त्र मैं तो फेलु दा की फैन हूँ। "
" सच्ची, " मैं चीखा।
रीत तो चाचा चौधरी निकली अपना दिमाग लगा कर उसकी प्रोब्लम का सॉल्यूशन चुटकी बजाते ही कर दिया गुड्डी ने सही कहा था कि आनंद बुद्धू है अगर आनंद अपना दिमाग लगाता तो अपनी साली से ठगा नही जाता लेकिन क्या करे साली के साथ मस्तियों का मजा कुछ और ही है गुंजा रीत और चंदा भाभी जैसी कड़क माल हो तो बंदा कुछ भी कर सकता हैफेलू दा *
---
" आप, मेरा मतलब तुम तो एकदम लेडी शरलॉक होम्स हो "
" उन्हह अपनी दही लगी उंगलिया जो उसने थोड़ी चाट के साफ़ की थीं लेकिन अभी भी लगी थी, मुझे चाटने के लिए ऑफर कर दी और वो मेरे मुंह में, और वो बोली,
" मगज अस्त्र मैं तो फेलु दा की फैन हूँ। "
" सच्ची, " मैं चीखा।
" तुम भी, " वो चीखी।
और हम दोनों ने हाथ नहीं मिलाया, सीधे गले और कस के फिर अलग होने के पहले, पहला सवाल उसी ने पूछा,
" नाम "
"प्रोदेश चंद्र मित्तर, मैंने फेलू दा का असली नाम बता दिया
अगला सवाल मेरा था , पता
रीत ने मुस्कराते हुए बिना एक मिनट खोये झट्ट से जवाब दे दिया, २१ रजनी सेन रोड और एक थोड़ा टेढ़ा सवाल भी दाग दिया,
पहली बार कहाँ, किस कहानी में, ये सवाल सचमुच में टेढ़ा था मुझे सोचना पड़ा और उस शोख ने १ २ ३ गिनना शुरू कर दिया, और मैंने भी मगज अस्त्र का इस्तेमाल किया और उसके ५ पहुँचने के पहले जवाब दे दिया,
" सन्देश, १९६५ और कहानी थी , फेलुदा गोयेंदागिरि या डेंजर इन दार्जिलिंग,"
और बात फिल्मों की ओर मोड़ के मैंने बोला, पहली फिल्म फेलुदा की,
सवाल ख़तम हुआ भी नहीं था की उस शोख का जवाब आ गया, सोनार केला
और अगली यहीं बनारस की जय बाबा फेलुनाथ,
मैंने वो जगह भी देखी हैं शूटिंग हुयी थी, चलो ये बता दो तो मान जाउंगी जय बाबा फेलुनाथ में उत्पल दत्त फेलु दा के एक दोस्त पे चाक़ू फेंक के डराता है , उसका नाम"
अब एक एक सीन किसे याद रहता है, मैंने सोचा और सोचा, और याद आ गया, और मैंने झट्ट से जवाब दे दिया,
"जटायु लालमोहन घोषाल और अपनी ओर से एक बात और जोड़ दी उनके बाबा ने लेकिन उनका नाम रखा था, मेरी बात पूरी भी नहीं हुयी की रीत ने बात पूरी कर दी.
" सर्बोंय गंगोपाध्याय लेकिन वो नाम इस्तेमाल नहीं करते और किताब तो जटायु के नाम से ही बिकती है "
मैं चकित रह गया, ये एक क्विज में फाइनल राउंड का क्वेशन था, और ये लड़की, सत्यजीत राय की ट्रिविया मेरी क्विजिंग का फेवरिट एरिया था और मैंने उनकी सारी कहानियां पढ़ रखी थीं, फिल्मे देख रखी थीं,
यू पी एस सी के इंटरव्यू में हॉबी में सबसे ऊपर मैंने सत्यजीत रे मूवीज एंड स्टोरीज लिखी थी और चेयरमैन भी एक एक बंगाली भद्रलोक, दो सवाल तो सोनार केला पे ही, ८० % नंबर इंटरव्यू में मिले इसलिए फर्स्ट अटेम्प्ट में ही,
लेकिन मुझे नहीं मालूम था की फेलुदा की कोई शिष्या यहाँ सिगरा, औरंगाबाद बनारस में टकरा जायेगी,
बहुत ही शानदार और मजेदार अपडेट है लगता है अब धमाल होने वाला हैभूतनाथ की मंगल होरी,
रीत का ध्यान कहीं और मुड़ गया था- “हे म्यूजिक का इंतजाम है कुछ क्या?”
“है तो नहीं। पर चंदा भाभी के कमरे में मैंने स्पीकर और प्लेयर देखा था। लगा सकते हैं। तुम्हें अच्छा लगता है?” मैंने पूछा।
“बहुत…” वो मुश्कुराकर बोली- “चल उसी से कुछ कर लेंगे…”
“और डांस?” मैंने कुछ और बात आगे बढ़ाई।
“एकदम…” उसका चेहरा खिल गया- “और खास तौर से जब तुम्हारे जैसा साथ में हो। वैसे अपने कालेज में मैं डांसिंग क्वीन थी…मजा आजयेगा, बहुत दिन से डांस नहीं किया किसी के साथ, चल यार गुड्डी तो तुझे जिंदगी भर नचाएगी, आज मैं नचाती हूँ , शुरुआत बड़ी बहन के साथ कर लो, जरा मैं भी तो ठोक बजा के देख लू , मेरी बहन ने कैसा माल पसंद किया है। "
तब तक मैंने उसका ध्यान टेबल पे रखे कोल्ड ड्रिंक्स की ओर खींचा- “हे स्प्राईट चलेगा?”
रीत ने गौर से बोतल की सील को देखा, वो बंद थी। मुश्कुराकर रीत बोली- “चलेगा…”मैंने एक ग्लास में बर्फ के दो क्यूब डाले और स्प्राईट ढालना शुरू कर दिया।
उसे कोल्ड-ड्रिंक देते हुए मैंने कहा- “स्प्राईट बुझाए प्यास। बाकी सब बकवास…”
“एकदम…” चिल्ड ग्लास उसने अपने गोरे गालों पे सहलाते हुए मेरी ओर ओर देखा,
और एक तगड़ा सिप लेकर मुझे ऑफर किया, और जबतक मैं कुछ सोचता बोलता अपने हाथों में पकडे पकडे ग्लास मेरे होंठों में
रीत को कौन मना कर सकता है, मैंने भी एक बड़ी सी सिप ले ली।
लेकिन तब तक उसे कुछ याद आया, वो बोली, यार वो चंदा भाभी के कमरे का म्यूजिक सिस्टम मेरे हाथ लगे बिना ठीक नहीं होता, उसका प्लग, कनेक्टर, सब इधर उधर, बस दो मिनट में मैं चेक कर लेती हूँ, फिर सच में मजा आ जाएगा आज होली बिफोर होली का
वो चंदा भाभी के कमरे में घुसी लेकिन दरवाजे के पास रुक के वो कमल नयनी बोली,
" कल अब नहीं है, आनेवाला कल भी नहीं है, बस आज है, बल्कि अभी है, उसे ही मुट्ठी में बाँध लो, उसी का रस लो, यह पल बस, "
और वह अंदर चली गयी और मैं सोचने लगा बल्कि कुछ देर तक तो सोचने की भी हालत में नहीं था, ये लड़की क्या बोल के चली गयी।
मैं सन्न रह गया। बात एकदम सही थी और कितनी आसानी से मुस्कराते हुए ये बोल गयी,
बीता हुआ कल, बल्कि बीता हुआ पल कहाँ बचता है, कुछ आडी तिरछी लकीरों में कुछ भूली बिसरी यादों में जिसे समय पुचारा लेकर हरदम मिटाता रहता है जिससे नयी इबारत लिखी जा सके, और उस बीते हुए पल के भी हर भोक्ता के स्मृतियों के तहखाने में वो अलग अलग तरीके से,
अभी गुड्डी रीत का बैग लेकर चंदा भाभी के पास गयी, बस वो पल गुजर गया, उसका होना, उसका अहसास,
और आनेवाला कल, जिसके बारे में अक्सर मैं, हम सब, वो,
पल भर के लिए मेरा ध्यान नीचे सड़क पर होने वाले होली की हुड़दंग की ओर चला गया, बहुत तेज शोर था, लग रहा था कोई जोगीड़ा गाने वालों की टोली,
सदा आनंद रहे यही द्वारे, कबीरा सारा रा रा ,
वो टोली बगल की किसी गली में मुड़ गयी थी,
और अचानक कबीर की याद आ गयी,
साधो, राजा मरिहें, परजा मरिहें, मरिहें बैद और रोगी
चंदा मरिहें, सूरज मरिहें, मरिहें धरती और आकास
चौदह भुवन के चौधरी मरिहें, इनहु की का आस।
और यही बात तो बोल के वो लड़की चली गयी, कल नहीं है, जो है वो आज है, अभी है। वह पल जो हमारे साथ है उस को जीना, यही जीवन है.
हम अतीत का बोझ लाद कर वर्तमान की कमर तोड़ देते हैं, कभी उसके अपराधबोध से ग्रस्त रहते हैं, कभी उन्ही पलों में जीते रहते हैं और जो पल हमारे साथ है उसे भूल जाते हैं।
जहां छत पर गुड्डी का और चंदा भाभी का घर था वो छत बहुत बड़ी थी और खुली थी, ऊँची मुंडेर से आस पास से दिखती भी नहीं थी, लेकिन अगल बगल के घरों की गलियों की आवाजें तो मुंडेर डाक के आ ही जाती थी। पड़ोस के किसी घर में किसी ने होली के गाने लगा रखे थे और अब छुन्नूलाल मिश्र की होरी आ रही थी,
खेलें मसाने में होरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी,
भूत पसाच बटोरी दिगंबर खेले मसाने में होरी।
लखि सुंदर फागुनी छटा के मन से रंग गुलाल हटा के,
चिता भस्म भर झोरी, दिगंबर खेलें मसाने में होरी।
यही बात एकदम यही बात, मृत्यु के बीच जीवन, यही तो बोल के गयी वो, कल नहीं रहा, कल का पता नहीं, लेकिन जो पल पास में है उसका रस लो, यही आनंद है आनंद बाबू। उसे जीना, उसका सुख लेना, उस पल का क्षण का अतीत को, भविष्य को भूल कर,
और यही बनारस का रस है। बनारसी मस्ती है, जीवन के हर पल को जीना, उसके रस के हर बिंदु को निचोड़ लेना,
" हे म्यूजिक सिस्टम मिल भी गया, ठीक भी हो गया, आ जाओ अंदर और स्प्राइट भी ले आना " अंदर से रीत की आवाज आयी
बगल से होरी की आखिरी लाइने बज रही थीं,
भूतनाथ की मंगल होरी, देख सिहायें ब्रज की गोरी।
धन धन नाथ अघोरी, दिगंबर मसाने में खेले होरी।
अंदर से बनारस की गोरी आवाज दे रही थी, आओ न मैं म्यूजिक लगा रही हैं। मैं कौन था जो होरी में गोरी को मना करता, मैं रीत के पास.
भांग का असर आनन्द और वोडका का रीत पर असर हो रहा है दोनो म्यूजिक पर झूम रहे हैं लेकिन छोटा वाला आनन्द भी फुल मूंड में आ गया है वह तो रीत के अंदर अपना खूंटा गाड़ने के लिए तैयार हैं रीत अपने मैदान में छोटे नवाब को जंग के लिए तैयार कर दिया है अब देखते हैं आनन्द मैदान को देखकर ढेर होता है या मैदान में एंट्री करता हैफागुन के दिन चार -भाग १०
रीत - म्यूजिक, मस्ती, डांस
१,२५,४१६
अंदर से बनारस की गोरी आवाज दे रही थी, आओ न मैं म्यूजिक लगा रही हैं। मैं कौन था जो होरी में गोरी को मना करता, मैं रीत के पास.
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रीत म्यूजिक सिस्टम की एक्सपर्ट थी। झट से उसने सेट कर दिया, और बोली- “कोई सीडी होती तो लगाकर चेक कर लेते…”
“सही कह रही हो। देखता हूँ…” मैं बोला- “कल रात मैंने देखा था…” तभी मिल गईं वहीं मेज के नीचे, और एक मैंने उसे दे दिया।
झुक के वो लगा रही थी लेकिन मेरी निगाहें उसके नितम्बों से चिपकी थी, गोल मटोल परफेक्ट। लगता था उसकी पाजामी को फाड़कर निकल जायेंगी और उसके बीच की दरार, एकदम कसी-कसी। बस मन कर रहा था की ठोंक दूं। उसी दरार में डाल दूं । क्या मस्त गाण्ड थी।
आनंद बाबू पर बनारसी भांग का नशा चढ़ रहा था, आँखे गुलाबी हो रही थीं। गोदौलिया वाले नत्था के एक गुलाबजामुन का असर इतना होता था की भौजाइयां देवरों को खिला के अपने नन्द पर चढ़ा देती थीं और रीत के दहीबड़े में तो उसका दुगना और फिर दो दहीबड़े तो चौगुना भांग आनंद बाबू के अंदर पहुँच चुकी थी और अब धीरे धीरे उनके सर पर सोच पर चढ़ रही थी, ऊपर से रात भर की चंदा भाभी की सीख, किसी की प्यास बुझाने से न पनिहारिन का घड़ा खाली होता है न कुंवा सूखता है, और सामने खड़ी पनिहारिन की आँखे खुद उन्हें बुला रही थीं, उकसा रही थीं और उसके जोबन, उफ़,
आनंद बाबू के हाथों ने जबसे गुंजा की हवा मिठाई का स्वाद लिया था, खुद ढक्क्न उठा के कैसे दर्जा नौ वाली ने अपने आते जोबन उन्हें पकड़ा दिए थे,
और अब रीत के उभार, ये तो और भी, जैसे सामने पहाड़ देख के पर्वतारोही के पांव आपने आप उठ जाते हैं, ऐसे मस्त जोबन देख के उनके हाथ भी खुजला रहे थे,
भांग का नशा, रीत के जोबन का नशा और रात में चंदा भाभी के जोबन को रगड़ा मसला और सुबह सुबह गुंजा ऐसी किशोरी का,… तो ये किशोरी रीत, उसके जोबन, सारी झिझक, हिचक भांग में धीरे धीरे घुल रही थी और सामने बस मस्त रीत थी, उसके गदराये जोबन, भरे भरे हिप्स थे
तब तक वो उठकर खड़ी हो गई। उसकी आँखों ने नशा झलक रहा था। झुक के उसने ग्लास उठाया और होंठों से खुद लगाकर एक बड़ी सी सिप ले ली।
क्या जोबन रसीले। बस मन कर रहा था की दबा दूं, चूस लूं और तब तक म्यूजिक चालू हो गया।
भांग का असर अब रीत पर भी पड़ रहा था, गुलाबजामुन के साथ स्प्राइट में भी तो आधी वोदका मिली थी।
अनारकली डिस्को चली,
अरे छोड़ छाड़ के अपने सलीम की गली,
अरे होए होए। छोड़ छाड़ के अपने सलीम की गली।
साथ-साथ रीत भी थिरकने लगी।
मैं खड़ा देख रहा था।
वो मस्त नाचती थी। क्या थिरकन, लय। और जिस तरह अपने जोबन को उभारती थी। जोबन थे भी तो उसके मस्त गदराये। दुपट्टा उसने उतारकर टेबल पे रख दिया था। उसने मेरा हाथ पकड़कर खींच लिया, और बोली-
“ये दूर-दूर से क्या देख रहे हो? आओ ना…”
और साथ में टेबल से फिर वोदका मिली स्प्राईट का एक बड़ा सिप ले लिया।
साथ में मैं भी थिरकने लगा। मुझे पता भी नहीं चला कब मेरा हाथ उसके चूतड़ों पे पहुँचा। पहले तो हल्के-हल्के, फिर कसकर मैं उसके नितम्बों को सहला रहा था, रगड़ रहा था। वो भी अपने कुल्हे मटका रही थी, कमर घुमा रही थी। कभी हम दोनों पास आ जाते कभी दूर हो जाते। उसने भी मुझे पकड़ लिया था और ललचाते हुए अपने रसीले जोबन कभी मेरे सीने पे रगड़ देती, और कभी दूर हटा लेती।
मुझसे नहीं रहा गया।
मैंने उसे पास खींचकर अपना हाथ उसकी पाजामी में डाल दिया। कुछ देर तक वो लेसी पैंटी के ऊपर और फिर सीधे उसके चूतड़ पे। मेरे एक हाथ ने उसे जकड़ रखा था। दूसरा उसके नितम्बों के ऊपर सहला रहा था, मसल रहा था, उसे पकड़कर ऊपर उठा रहा था। उसने कुछ ना-नुकुर की लेकिन मेरे होंठों ने उन्हें कसकर जकड़ लिया.
रीत के टाइट कुर्ती से जिस तरह उसके जोबन फाड् रहे थे, मुझसे नहीं रहा गया, एक हाथ पजामी के अंदर उसके नितम्बों को सहला मसल रहा था और दूसरा उसके उभारों पर
डांस करते हुए रीत ने मेरे हाथ को अपने उभार पे पकड़ लिया और कस के दबा दिया, जैसे सुबह गुंजा ने मेरे झिझक समझ के खुद मेरा हाथ पकड़ के, अपने ढक्क्न के अंदर सीधे अपनी हवा मिठाई पे,
हम दोनों म्यूजिक पे थिरक रहे थे और मेरे दोनों हाथ, एक उभारों का और दूसरा नितम्बों का रस ले रहा था
और मन में कल की गुड्डी और चंदा भाभी की बातें याद आ रही थी, गुड्डी की मम्मी मेरा मतलब मम्मी, नीचे दूबे भाभी से मिलने चली गयीं थी
और चंदा भाभी, और गुड्डी खुल के बात कर रहे थे।
चंदा भाभी ने मुझे समझाया, " अरे देवर जी, ससुराल में मांगते नहीं है सीधे ले लेते हैं, और क्या इससे बोलोगे, ' में आई कम इन मैडम " गुड्डी की ओर इशारा कर के बोली। उन्हें मेरा और गुड्डी का चक्कर पता चल गया था, फिर जोड़ा,
" जब इससे नहीं पूछोगे, तो इसकी बहन, भाभी और ससुराल में कोई भी हो, क्यों पूछोगे ? अरे कहीं गलती से पूछ लिया न तो इसी की नाक कटेगी, की इसका वाला कितना बुद्धू है "
और शाम को बाजार में गुड्डी जब मुझे चंदा भाभी के साथ करने के लिए उकसा रही थी उसी समय उसने साफ़ साफ़ बोल दिया,
" यार, चाहे तेरी ससुराल वाले हों या मेरी, मेरी ओर से दोनों के लिए ग्रीन सिग्नल एडवांस में है, ये मत सोचना की मैं क्या सोचूंगी हाँ कुछ नहीं किया तो मैं सोचूंगी, अब तक सैकड़ों बार पजामें में नाली में गिराया होगा, अगर मेरी भाभी, मेरी बहन में दो बूँद गिरा दिया तो क्या कम हो जाएगा तेरा, हां उनको भी अंदाज लग जाएगा की मेरा वाला कैसा है। और दिल तो तेरा मेरा पास है , एक जन्म के लिए नहीं सात जन्म के लिए तो जो तेरे पास नहीं, उसका क्या खतरा, बार बार मैं बोलूंगी नहीं। "
और मैं रीत के जोबन और नितम्ब दोनों डांस के साथ साथ कस के रगड़ मसल रहा था,
मैं भी अपने आपे में नहीं था। मुझे लगा की मैं हवा में उड़ रहा हूँ। कभी लगता की बस जो कर रहा हूँ। वही करता रहूँ। इस कैटरीना के होंठ चूसता रहूँ।
रीत भी साथ दे रही थी। उसके होंठ भी मेरे होंठ चूस रहे थे। उसकी जीभ मेरी जीभ से लड़ रही थी, और सबसे बढ़ कर वो अपना सेंटर, योनि स्थल, काम केंद्र मेरे तन्नाये हुए जंगबहादुर से खुलकर रगड़ रही थी।
हम दोनों अब अच्छी तरह से भांग के नशे में थे।
चंदा भाभी ने मुझे रात को जो ट्रेनिग दी थी। बस मैंने उसका इश्तेमाल शुरू कर दिया, मल्टिपल अटैक। एक साथ मेरे होंठ उसके होंठ चूस रहे थे, मेरा एक हाथ उसका जोबन मसल रहा था तो दूसरा उसके नितम्बों को रगड़ रहा था मेरा मोटा खूंटा सीधे उसके सेंटर पे।
रीत पिघल रही थी, सिसक रही थी।
आनन्द बड़ा वाला चुतिया है रीत ने अपना मैदान पूरा तैयार कर लिया था मैदान गीला भी हो गया था आनन्द ने में दरवाजा भी खोल दिया था लेकिन अपने छोटे नवाब की एंट्री नही करा पाए भाभी के द्वारा सिखाए गए lession का 10%ही use कर पायाडांस बेबी डांस ---मुझको हिप हाप सिखा दे
म्यूजिक सिस्टम पे ममता शर्मा गा रही थी।
मुझको हिप हाप सिखा दे,
बीट को टाप करा दे,
थोड़ा सा ट्रांस बजा दे,
मुझको भी चांस दिला दे।
और हम लोगों का डांस अब ग्राइंडिंग डांस में बदल गया था। बस हम लोग एक दूसरे को पकड़कर सीधे सेंटर पे सेंटर रगड़ रहे थे दोनों की आँखें बंद थी। मैंने बीच में एक-दो सिप और उसको लगवा दी। वो ना ना करती लेकिन मैं ग्लास उसके होंठों से लगाकर अन्दर।
हम लोग खुलकर ड्राय हम्पिंग कर रहे थे। वो दीवाल की ओर मुड़ी और दीवाल का सहारा लेकर, मेरे तन्नाये हथियार पे सीधे अपने भरे-भरे नितम्ब, उसकी दरार। मैं पागल हो रहा था मेरे हाथ बस उसकी कमर को सहारा दे रहे थे और मेरी कमर भी म्यूजिक की धुन पे गोल-गोल। एकदम उसके नितम्बों को रगड़ती हुई।
फिर रीत एक पल के लिए मुड़ी। उसने मुझे एक फ्लाइंग किस दिया और जब तक मैं सम्हलता मेरे सिर को पकड़कर एक कसकर किस्सी मेरे होंठी की ले ली और फिर मुड़कर दीवाल के सहारे।
अब वो अपने उभार दीवाल पे रगड़ रही थी, जोर-जोर से चूतड़ मटका रही थी। फिर वो बगल में पड़े पलंग पे पे झुक गई। म्यूजिक के साथ उसके नितम्ब और उभार दोनों मटक रहे थे। जैसे वो डागी पोज में हो।
ये वही पलंग पे था जहां कल रात मैंने चन्दा भाभी को तीन बार।
मैंने झुक के उसके उभार पकड़ लिए हल्के से और गाने के साथ हाथ फिराने लगा। साथ में मेरा खूंटा अब पाजामी के ऊपर से ही।
रीत झुकी थी और गाना बज रहा था-
होगी मशहूर अब तो, तेरी मेरी लव स्टोरी।
तेरी ब्यूटी ने मुझको, मारा डाला छोरी,
थोड़ा सा दे अटेनशन, मिटा दे मेरी टेंशन।
(मैं अब कस-कसकर उसकी चूची मसल रहा था)
आग तेरा बदन है, तेरी टच में जलन है।
तू कोई आइटम बाम्ब है, मेरा दिल भी गरम है।
और वो फिसल के मेरी बांहों से निकल गई।
और वैसे ही मुड़कर पलंग पे अब पीठ के बल हो गई। अभी भी वो धुन के साथ अपने उभार उछाल रही थी, कुल्हे मटका रही थी, मुश्कुरा रही थी। उसकी आँखों में एक दावत थी एक चैलेंज था। मैंने मुश्कुराकर उसके उभारों को टाईट कुरते के ऊपर से ही कसकर चूम लिया। मेरी दोनों टांगें उसकी पलंग से लटक रही टांगों के बीच में थी।मेरा एक हाथ उसका कुरता ऊपर सरका रहा था और दूसरा पाजामी के नाड़े पे।
गाना बज रहा था। वो लेटे-लेटे डांस कर रही थी और मैं भी।
तू कोई आइटम बाम्ब है, मेरा दिल भी गरम है।
ठंडा ठंडा कूल कर दे, ब्यूटी फूल भूल कर दे।
और मैंने एक झटके में पाजामी का नाड़ा खींचकर नीचे कर दिया।
उसने अपनी टांगें भींचने की कोशिश की पर मैंने अपने टांगें पहले ही बीच में फँसा रखी थी। मैंने उसे और फैला दिया और पाजामी एक झटके में कुल्हे के नीचे कर दिया।
क्या मस्त लेसी गुलाबी पैंटी थी।
पैंटी क्या बस थांग थी एकदम चिपकी हुई एक खूब पतली पट्टी सी। मेरा हाथ सीधे उसके अन्दर और उसकी परी के ऊपर, एकदम चिकनी मक्खन।
मैंने हल्के-हल्के सहलाना शुरू कर दिया। और दूसरा हाथ कुरते को उठाकर ऊपर कर चुका था। गुलाबी लेसी ब्रा में छुपे गोरे-गोरे कबूतरों की झलक मिल रही थी।
लेकिन जिसने मुझे पागल कर दिया वो थी उन कबूतरों के चोंच। गुलाबी, कड़े, मटर के दाने ऐसे।
कल रात भाभी ने सिखाया था। अगर एक बार परी हाथ में आकर पिघल गई तो समझो लड़की हाथ में आ गई। मेरे हथेली अब रीत की परी को प्यार से हल्के-हल्के सहला रही थी, मसल रही थी।
रीत अब चूतड़ पटक रही थी। गाने की धुन पे नहीं मेरे हाथ की धुन पे।
गाना तो बंद हो चुका था। मेरे अंगूठे ने बस हल्के से उसके क्लिट को छुआ। वो थोड़ा छिपा, थोड़ा खुला लेकिन स्पर्श पाते ही कड़ा होने लगा। दूसरा गाना चालू हो गया था-
शीला की जवानी माई नेम इस शीला। शीला। शीला की जवानी।
मुझे बस लग रहा था की मेरे नीचे कैट ही है। मेरे होंठों ने ब्रा के ऊपर से ही झांकते चोंच को पकड़ लिया और चुभलाने लगे। मेरा अंगूठा और तरजनी थांग को सरका के अब उसकी खुली परी को हल्के-हल्के मसल रहे थे।
अब मुझसे नहीं रहा गया।
मैंने के झटके में उसकी पाजामी घुटने के नीचे खींच दी और उसकी लम्बी-लम्बी गोरी टांगें मेरे कंधे पे।
मेरा जंगबहादुर भी बस उसकी जांघों पे ठोकर मार रहा था, वो खूब गीली हो रही थी। अब मुझसे नहीं रहा गया मैंने एक उंगली की टिप अन्दर घुसाने की कोशिश की। लेकिन एकदम कसी।
मेरा दूसरा हाथ अब खुलकर जोबन मर्दन कर रहा था।
रीत तो रीत है देवर भाभी के बीच अश्लीलता भरा डांस बहुत ही मजेदार था वोडका और भांग दोनो ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है अभी तक तो कोई तहलका मचा नही है देखते हैं आगे केवल पजामी ही खुलती है या कुछ और भीडांस बेबी डांस ---मुझको हिप हाप सिखा दे
म्यूजिक सिस्टम पे ममता शर्मा गा रही थी।
मुझको हिप हाप सिखा दे,
बीट को टाप करा दे,
थोड़ा सा ट्रांस बजा दे,
मुझको भी चांस दिला दे।
और हम लोगों का डांस अब ग्राइंडिंग डांस में बदल गया था। बस हम लोग एक दूसरे को पकड़कर सीधे सेंटर पे सेंटर रगड़ रहे थे दोनों की आँखें बंद थी। मैंने बीच में एक-दो सिप और उसको लगवा दी। वो ना ना करती लेकिन मैं ग्लास उसके होंठों से लगाकर अन्दर।
हम लोग खुलकर ड्राय हम्पिंग कर रहे थे। वो दीवाल की ओर मुड़ी और दीवाल का सहारा लेकर, मेरे तन्नाये हथियार पे सीधे अपने भरे-भरे नितम्ब, उसकी दरार। मैं पागल हो रहा था मेरे हाथ बस उसकी कमर को सहारा दे रहे थे और मेरी कमर भी म्यूजिक की धुन पे गोल-गोल। एकदम उसके नितम्बों को रगड़ती हुई।
फिर रीत एक पल के लिए मुड़ी। उसने मुझे एक फ्लाइंग किस दिया और जब तक मैं सम्हलता मेरे सिर को पकड़कर एक कसकर किस्सी मेरे होंठी की ले ली और फिर मुड़कर दीवाल के सहारे।
अब वो अपने उभार दीवाल पे रगड़ रही थी, जोर-जोर से चूतड़ मटका रही थी। फिर वो बगल में पड़े पलंग पे पे झुक गई। म्यूजिक के साथ उसके नितम्ब और उभार दोनों मटक रहे थे। जैसे वो डागी पोज में हो।
ये वही पलंग पे था जहां कल रात मैंने चन्दा भाभी को तीन बार।
मैंने झुक के उसके उभार पकड़ लिए हल्के से और गाने के साथ हाथ फिराने लगा। साथ में मेरा खूंटा अब पाजामी के ऊपर से ही।
रीत झुकी थी और गाना बज रहा था-
होगी मशहूर अब तो, तेरी मेरी लव स्टोरी।
तेरी ब्यूटी ने मुझको, मारा डाला छोरी,
थोड़ा सा दे अटेनशन, मिटा दे मेरी टेंशन।
(मैं अब कस-कसकर उसकी चूची मसल रहा था)
आग तेरा बदन है, तेरी टच में जलन है।
तू कोई आइटम बाम्ब है, मेरा दिल भी गरम है।
और वो फिसल के मेरी बांहों से निकल गई।
और वैसे ही मुड़कर पलंग पे अब पीठ के बल हो गई। अभी भी वो धुन के साथ अपने उभार उछाल रही थी, कुल्हे मटका रही थी, मुश्कुरा रही थी। उसकी आँखों में एक दावत थी एक चैलेंज था। मैंने मुश्कुराकर उसके उभारों को टाईट कुरते के ऊपर से ही कसकर चूम लिया। मेरी दोनों टांगें उसकी पलंग से लटक रही टांगों के बीच में थी।मेरा एक हाथ उसका कुरता ऊपर सरका रहा था और दूसरा पाजामी के नाड़े पे।
गाना बज रहा था। वो लेटे-लेटे डांस कर रही थी और मैं भी।
तू कोई आइटम बाम्ब है, मेरा दिल भी गरम है।
ठंडा ठंडा कूल कर दे, ब्यूटी फूल भूल कर दे।
और मैंने एक झटके में पाजामी का नाड़ा खींचकर नीचे कर दिया।
उसने अपनी टांगें भींचने की कोशिश की पर मैंने अपने टांगें पहले ही बीच में फँसा रखी थी। मैंने उसे और फैला दिया और पाजामी एक झटके में कुल्हे के नीचे कर दिया।
क्या मस्त लेसी गुलाबी पैंटी थी।
पैंटी क्या बस थांग थी एकदम चिपकी हुई एक खूब पतली पट्टी सी। मेरा हाथ सीधे उसके अन्दर और उसकी परी के ऊपर, एकदम चिकनी मक्खन।
मैंने हल्के-हल्के सहलाना शुरू कर दिया। और दूसरा हाथ कुरते को उठाकर ऊपर कर चुका था। गुलाबी लेसी ब्रा में छुपे गोरे-गोरे कबूतरों की झलक मिल रही थी।
लेकिन जिसने मुझे पागल कर दिया वो थी उन कबूतरों के चोंच। गुलाबी, कड़े, मटर के दाने ऐसे।
कल रात भाभी ने सिखाया था। अगर एक बार परी हाथ में आकर पिघल गई तो समझो लड़की हाथ में आ गई। मेरे हथेली अब रीत की परी को प्यार से हल्के-हल्के सहला रही थी, मसल रही थी।
रीत अब चूतड़ पटक रही थी। गाने की धुन पे नहीं मेरे हाथ की धुन पे।
गाना तो बंद हो चुका था। मेरे अंगूठे ने बस हल्के से उसके क्लिट को छुआ। वो थोड़ा छिपा, थोड़ा खुला लेकिन स्पर्श पाते ही कड़ा होने लगा। दूसरा गाना चालू हो गया था-
शीला की जवानी माई नेम इस शीला। शीला। शीला की जवानी।
मुझे बस लग रहा था की मेरे नीचे कैट ही है। मेरे होंठों ने ब्रा के ऊपर से ही झांकते चोंच को पकड़ लिया और चुभलाने लगे। मेरा अंगूठा और तरजनी थांग को सरका के अब उसकी खुली परी को हल्के-हल्के मसल रहे थे।
अब मुझसे नहीं रहा गया।
मैंने के झटके में उसकी पाजामी घुटने के नीचे खींच दी और उसकी लम्बी-लम्बी गोरी टांगें मेरे कंधे पे।
मेरा जंगबहादुर भी बस उसकी जांघों पे ठोकर मार रहा था, वो खूब गीली हो रही थी। अब मुझसे नहीं रहा गया मैंने एक उंगली की टिप अन्दर घुसाने की कोशिश की। लेकिन एकदम कसी।
मेरा दूसरा हाथ अब खुलकर जोबन मर्दन कर रहा था।