- 21,441
- 54,285
- 259
Thanks so much for your regular comments and supportMast mast holi.
Thanks so much for your regular comments and supportMast mast holi.
घंटे दो घंटे में तो सिर्फ टीजर ही हो पायेगा, इसलिए और दूबे भाभी का आदेश तो अब आनंद को रुकना ही पड़ेगा आज होली बिफोर होली का मजा तो लौट के होली आफटर होली का आनंदशराब का असर शुरू हो गया है दुबे भाभी भी आनन्द से रगड़वाने के लिए तैयार है चिकने पर सबका मन आ गया है वह चाहती हैं कि आनंद गांव से गुड्डी को छोड़ने आए तो एक दो दिन रुके
एकदम सही कहा आपने और तब तक उनकी झिझक भी खुल जायेगी। आगे आगे देखिये क्या होता हैअब तो आनंद रंगपंचमी के 3 दिन सुसराल में रुकेगा आनंद के तो मजे होने वाले हैं 5 सालिया एक सास 2 भाभी आनंद की तो पूरा का पूरा हाथ घी में है देखते हैं किस डिब्बे का ढक्कन खुलता है
धन्यवाद कोमल मैम
वैसे कमेंट पर आपके कमेंट का इंतजार भी अपडेट के इंतजार जैसा ही रहता हैं।
और आप कभी निराश भी नहीं करती हैं।
सादर
Yes but the support and comments of friends like you keep me enthused.agree...i know how difficult it is..if the story does not get views inspite of you putting so much effort in each update. That's the sad part
komaalrani
यह कहना आपकी स्वभावगत विनम्रता है, मैंने आपकी कई लघु कथाएं पढ़ीं, पर उनमे रिप्लाई बंद हो गयीं थी, जैसे चरित्रहीन, और उसमें जिस तरह से आपने लोकगीत का प्रयोग किया
‘बेरिया की बेरिया मै बरिज्यो बाबा जेठ जनि रचिहो बियाह … हठी से घोडा पियासन मरिहै गोरा बदन कुम्हलाय
कहो तो मोरी बेटी छत्रछाहों कहो तो नेतवा ओहार … कहो तो मोरी बेटी सुरजू अलोपों गोरा बदन रहि जाय’
और उसके बाद का दृश्य और फिर संवाद, कितनों की आँख नहीं भर आयी होगी, कितनों के यादों के पन्ने न फड़फड़ाये होंगे, लेकिन उससे भी अद्भुत था उस गाने का दुबारा इस्तेमाल, और एकदम अलग परिस्थिति में, वही शब्द वही गाना लेकिन कितनी बेचारगी का बोध कराता है, फिर लोकल उसकी ये लाइने,
"बस, आँखें ही एक दूसरे से बातें कर रही थीं। जितना अधिक दोनों की आँखें बतिया रही थीं, उतना ही अधिक दोनों एक दूसरे की तरफ़ खिंचे चले आ रहे थे!"
और फिर,
"यह वार्तालाप, आँखों के वार्तालाप के मुक़ाबले नीरस लग रहा था।"
जो न कहा जा सके, पात्र चुप हों पर , उसे कह देना, यही तो कहानी का काम है। अगर हमारे पास कुछ कहने को नहीं तो कहानी लिखने का मतलब नहीं।
हाँ इस कहानी को पढ़ के बस मैं एक बात सोचती रही की ये बात, वेस्टर्न लाइन की है या सेन्ट्रल लाइन की और दोनों उतरे किस जगह पर, आफिस कहाँ था, बी के सी, परेल या साऊथ बॉम्बे, लेकिन बॉम्बे की लोकल मुझे हमेशा फ्रिट्ज लैंग की मशहूर पिक्चर मेट्रोपोलिस की याद दिलाती हैं जहां दो अलग अलग दुनिया है।
और फिर आज रहब यही आंगन, इन में से किसी कहानी में टिप्पणी की जगह बची नहीं थी वरना मैं वहीँ लिखती।
बस यही उम्मीद करुँगी की आप आते रहें और इस कथा यात्रा के सहयात्री बने, यह एक लम्बी यात्रा है। रस्ते में कुछ बतियाते, सुनते सुनाते रस्ता कट जाएगा।
फिर से आभार
आनंद की चचेरी बहन की नथ उतराई का मौका आनंद को मिला है और इसकी जिम्मेदारी गुड्डी को दी है अब तो गुड्डी ने भी कह दिया है कि वह पकड़ के डलवाएगी वोडका और भांग मिले रसगुल्ले का रस अंदर और बाहर मस्तियां शुरूमस्ती
“अरे यार तुम्हारी कुँवारी बहन की नथ उतरने वाली है कित्ती बड़ी खुशखबरी है। चलो इसी खुशी में मीठा हो जाए…” और चंचल रीत ने एक झटके में फिर गुलाब जामुन मेरे मुँह में।
“हे हे…” मैंने खाने से पहले कुछ नखड़ा किया। लेकिन वो कहाँ मानने वाली।
“दूबे भाभी दे रही थी तो झट से ले लिया और मैं दे रही हूँ तो। इत्ता नखड़ा। भाव बता रहे हो…” वो इस अदा से बोली की,...
“अरे नहीं यार। तुम दो और मैं ना लूं ये कैसे हो सकता है?” मैंने भी उसी अंदाज में जवाब दिया।
“अरे तो एक और लो ना…” वो बोली।
लेकिन मैंने बात मोड़ दी- “अरे गुड्डी को भी तो खिलाओ…”
और मैंने कसकर गुड्डी को पकड़ लिया और दबाकर उसका मुँह खोल दिया। भांग वाला एक गुलाब जामुन उसके मुँह के अन्दर। वो छटपटाती रही
और मैंने एक और गुलाब जामुन
लेकर कहा- “मेरे हाथ से भी तो खाओ ना। रीत का हाथ क्या ज्यादा मीठा है?”
खा तो उसने लिए लेकिन बोली-
“पहले तो मैं सोच भी रही थी लेकिन जैसे तुमने जबरदस्ती की ना। वैसे ही तुम्हारे साथ हाथ पैर पकड़कर। भले ही अपने हाथ से पकड़कर डलवाना पड़े तुम्हीं से उसकी नथ उतरवाऊँगी…”
“क्या पकड़ोगी, क्या डलवाओगी?” चन्दा भाभी ने हँसकर गुड्डी से पूछा।
बात काटने के लिए मैंने चन्दा भाभी से कहा- “भाभी, आपने गुझिया इत्ती अच्छी बनायी है, खुद तो खाइए…” और उनके न न करते हुए भी मैंने और रीत ने मिलकर उन्हें खिला ही
“अन्दर नहीं जा रहा है, तो लीजिये इसके साथ…” और मैंने बैकार्डी मिली हुई लिम्का भी चन्दा भाभी को पिला दी। सब पे असर शुरू हो गया।
रीत ने गुड्डी को भी बियर का एक ग्लास पिला ही दिया। खुद उसे तो मैं पहले ही वोदका कैनेबिस और भांग से मिले दो गुलाब जामुन खिला चुका था। रीत ने दूबे भाभी को भी बियर दे दिया था और मुझे भी।
“हाँ तो तुमने बताया नहीं। क्या पकड़ोगी, क्या डलवाओगी?” चंदा भाभी गुड्डी के पीछे पड़ गई थी।
मैंने बचाने की कोशिश की तो रीत बिच में आ गई। उसे भी चढ़ गई थी-
“अरे बोल ना गुड्डी। अरे नाम लेने में शर्म लग रही तो कैसे पकड़ोगी और कैसे डलवाओगी?” रीत ने उसे चैलेंज किया और बोली- “सुन अगर बिना उसे नथ उतरवाए ले आई ना…”
“एकदम…” गुड्डी के गोरे-गोरे गालों को सहलाते हुए दूबे भाभी ने प्यार से कहा-
“अरे बोल दे ना साफ-साफ की इसका लण्ड पकडूँगी और इसकी बहन की बुर में डलवाऊँगी…”
“अरे ये गाने वाने का इंतजाम किया है तो कुछ लगाओ ना…” चंदा भाभी ने कहा।
और दूबे भाभी भी बोली- “ये रीत बहुत अच्छा डांस करती है…”
“पता नहीं, मैंने तो देखा नहीं…” मैंने उसे चढ़ाया।
बहुत ही मजेदार और लाज़वाब अपडेट है रीत ने तो जबरदस्त डांस किया है आनंद बाबू ने भी धमाल कर दिया है ये सब मस्त रसीली साली, वोडका और पावर वाले रसगुल्ले का कमाल हैरीत - डांस--पव्वा चढ़ा के आई।
“अभी दिखाती हूँ…” वो बोली और उसने गाना लगा दिया कुछ देर में स्पीकर गूँज रहा था- “आय्यी। चिकनी चमेली, चिकनी चमेली…” और साथ में रीत शुरू हो गई-
बिच्छू मेरे नयना, वादी जहरीली आँख मारे।
कमसिन कमरिया साली की। ठुमके से लाख मारे।
सच में कैट के जोबन की कसम। रीत की बलखाती कमर के आगे कैटरीना झूठ थी।
मैंने जोर से सीने पे हाथ मारा और गिर पड़ा। बदले में रीत ने वो आँख मारी की सच में जान निकल गई। उस जालिम ने जाकर बियर की एक ग्लास उठाई, पहले तो अपने गदराये जोबन पे लगाया और फिर गाने के साथ-
आय्यीई। चिकनी चमेली चिकनी चमेली। छुप के अकेली,
पव्वा चढ़ा के आई। वो जो उसने होंठों से लगाया।
उधर रीत का डांस चल रहा था इधर गुड्डी ने बियर के बाकी ग्लास चंदा और दूबे भाभी को।
एक मैंने गुड्डी को दे दिया और और एक खुद भी। चंदा भाभी पे भंग और बियर का मिक्स चढ़ गया था। मेरे चेहरे पे हाथ फेरकर बोली-
“अरे राज्जा बनारस। तुन्हू तो चिकनी चमेली से कम ना हौउवा…”
दूबे भाभी को तो मैंने बैकर्डी के दो पेग लगवा दिए थे। ऊपर से बियर और उसके पहले डबल भांग वाले दो गुलाब जामुन। लेकिन नुकसान मेरा ही हुआ। मेरे पीछे की दरार में उंगली चलाती बोली-
“अरे राज्जा। कोइयी के कम थोड़ी है। ये बस निहुराओ। सटाओ। घुसेड़ो। बचकर रहना बनारस में लौंडे बाजों की कमी नहीं है…”
लेकिन इन सबसे अलग मेरी निगाह। मन सब कुछ तो वो हिरणी, कैटरीना, ऊप्स मेरा मतलब रीत चुरा के ले गई थी। वो दिल चुराती बांकी नजर, चिकने चिकने गोरे-गोरे गाल। रसीले होंठ।
जंगल में आज मंगल करूँगी मैं।
भूखे शेरों से खेलूंगी मैं आय्यीई। चिकनी चमेली चिकनी चमेली। छुप के अकेली।
मेरा शेर 90° डिग्री पे हो गया। मेरे हाथ का बियर का ग्लास छीन के पहले तो उसने अपने होंठों से लगाया और फिर मुझे भी खींच लिया और अपनी बलखाती कमर से एक जबरदस्त ठुमका लगाया। मैंने पकड़कर उसे अपनी बांहों में भर लिया और कसकर उसके गालों पे एक चुम्मा ले लिया।
हाय, गहरे पानी की मछली हूँ राज्जा,
घाट घाट दरिया में घूमी हूँ मैं,
तेरी नजरों की लहरों से हार के आज डूबी हूँ मैं।
बिना मेरी बाहें छुड़ाये मेरी आँखों में अपनी कातिल आँखों से देखती। वो श्रेया के साथ गाती रही और उसने भी एक चुम्मा कसकर मेरे होंठों पे।
हम दोनों डूब गए, बिना रंग के होली।
उसने कसकर अपनी जवानी के उभारों से मेरे सीने पे एक धक्का लगाया, और वो मछली फिसल के बाहों के जाल से बाहर और मुझे दिखाते हुए जो उसने अपने उभार उभारे। वैसे भी मेरी रीत के उभार कैटरीना से 20 ही होंगे उन्नीस नहीं।
आय्यीई। चिकनी चमेली चिकनी चमेली
जोबन ये मेरा कैंची है राज्जा
सारे पर्दों को काटूँगी मैं
शामें मेरी अकेली हैं आ जा संग तेरे बाटूंगी मैं।
उसके दोनों गोरे-गोरे हाथ उसके जोबन के ठीक नीचे, और जो उभारा उसने। फिर सीटी।
जवाब में दूबे भाभी ने भी सीटी मारी और बोली-
“अरे दबा दे, पकड़कर साली का मसल दे…”
जवाब में रीत ने अपनी मस्त गोरी-गोरी जांघें चौड़ी की और मेरी ओर देखकर फैलाकर एक धक्का दिया, जैसे चुदाई में मेरे धक्के का जवाब दे रही हो और अपने हाथ सीधे अपने उभारों पे करके एक किस मेरी ओर उछाल दिया।
“अरे अब तो बसंती भी राजी। मौसी भी राजी…”
ये कहकर मैंने पीछे से उसे दबोच लिया और उसके साथ डांस करने लगा। मेरे हाथ उसके उभारों के ठीक नीचे थे। दुपट्टा तो ना जाने कब का गायब हो गया था।
गुड्डी ने आँखों से इशारा किया, अरे बुद्धू ठीक ऊपर ले जा ना। सही जगह पे। साथ में चन्दा भाभी ने भी। डांस करते-करते वो बांकी हिरणी भी मुड़कर मुश्कुरा, और फिर उसने जो जोबन को झटका दिया-
तोड़कर तिजोरियों को लूट ले जरा,
हुस्न की तिल्ली से बीड़ी-चिल्लम जलाने आय्यी,
आई चिकनी,.. चिकनी,... आई,...आई।
फिर तो मेरे हाथ सीधे उसके मस्त किशोर छलकते उभारों पे।
जवाब में उसने अपने गोल-गोल चूतड़ मेरे तन्नाये शेर पे रगड़ दिया। फिर तो मैंने कसकर उसके थिरकते नितम्बों के बीच की दरार पे लगाकर। अब मन कर रहा था की बस अब सीधी इसकी पाजामी को फाड़कर ‘वो’ अन्दर घुस जाएगा।
हम दोनों बावले हो रहे थे, फागुन तन से मन से छलक रहा था बस गाने के सुर ताल पे मैं और वो। मेरे दोनों हाथ उसके उभारों पे थे और, बस लग रहा था की मैं उसे हचक-हचक के चोद रहा हूँ और वो मस्त होकर चुदवा रही है।
हम भूल गए थे की वहां और भी हैं।
लेकिन श्रेया घोषाल की आवाज बंद हुई और हम दोनों को लग रहा था की किसी जादुई तिलिस्म से बाहर आ गए।
एक पल के लिए मुझे देखकर वो शर्मा गई और हम दोनों ने जब सामने देखा तो दूबे भाभी, चंदा भाभी और गुड्डी तीनों मुश्कुरा रही थी। सबसे पहले चंदा भाभी ने ताली बजाई। फिर दूबे भाभी ने और फिर गुड्डी भी शामिल हो गई।
“बहुत मस्त नाचती है ना रीत…” दूबे भाभी बोली और वो खुश भी हुई, शर्मा भी गई। लेकिन भाभी ने मुझे देखकर कहा- “लेकिन तुम भी कम नहीं हो…”
--------////