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बहुत बहुत आभारबहुत ही मजेदार और लाज़वाब अपडेट है रीत ने तो जबरदस्त डांस किया है आनंद बाबू ने भी धमाल कर दिया है ये सब मस्त रसीली साली, वोडका और पावर वाले रसगुल्ले का कमाल है
बहुत बहुत आभारबहुत ही मजेदार और लाज़वाब अपडेट है रीत ने तो जबरदस्त डांस किया है आनंद बाबू ने भी धमाल कर दिया है ये सब मस्त रसीली साली, वोडका और पावर वाले रसगुल्ले का कमाल है
Thanks so much for enjoying the posts.wow awesome erotic story.....
ek dum mast....
Thanks so muchFirst things first...on a lighter note....
story is Phagun..but the first line of your update is "Joru ke Ghulam"..I was wondering if the 2 stories are mixed up...but realized...you are too intelligent not to mix up the stories..
Will post my review shortly. Thanks.
komaalrani
बहुत बहुत आभार, धन्यवादकामुक
आनंद को दुबे भाभी को पटा के रखना पड़ेगा दुबे भाभी बहुत ही काम की है दुबे भाभी तो बहुत तेज और खेली हुई खिलाड़ी है किसी की भी चालाकी तुरंत पकड़ लेती हैंफागुन के दिन चार भाग १३
होली का धमाल
1,53,642
मेरे हाथ सीधे रीत के मस्त किशोर छलकते उभारों पे।
जवाब में उसने अपने गोल-गोल चूतड़ मेरे तन्नाये शेर पे रगड़ दिया। फिर तो मैंने कसकर उसके थिरकते नितम्बों के बीच की दरार पे लगाकर, रगड़ा अपना खड़ा खूंटा,
पिछवाड़े का मजा मैंने अभी नहीं लिया था, लेकिन रीत के गोल गोल नितम्ब किसी की भी ईमान खराब करने के लिए काफी थे। और मेरी साली, सलहजें सब मेरे पिछवाड़े, मेरी बहन के पिछवाड़े के पीछे पड़ी थी तो मैं क्यों छोड़ता, फिर भांग अब अच्छी तरह चढ़ गयी थी, मुझे कोई फरक नहीं पड़ता की सब लोग देख रहे हैं और जिसकी बात से फरक पड़ता था, उस ने पहले ही अपनी दीदी के लिए न सिर्फ ग्रीन सिग्नल दे रखा था, बल्कि उकसा भी रही थी।
अब मन कर रहा था की बस अब सीधी रीत की पाजामी को फाड़कर ‘वो’ अन्दर घुस जाए।
हम दोनों बावले हो रहे थे, फागुन तन से मन से छलक रहा था बस गाने के सुर ताल पे मैं और वो। मेरे दोनों हाथ उसके उभारों पे थे और। बस लग रहा था की मैं उसे हचक-हचक के चोद रहा हूँ और वो मस्त होकर चुदवा रही है। हम भूल गए थे की वहां और भी हैं।
लेकिन श्रेया घोषाल की आवाज बंद हुई और हम दोनों को लग रहा था की किसी जादुई तिलिस्म से बाहर आ गए। एक पल के लिए मुझे देखकर रीत शर्मा गई और हम दोनों ने जब सामने देखा तो दूबे भाभी, चंदा भाभी और गुड्डी तीनों मुश्कुरा रही थी।
सबसे पहले चंदा भाभी ने ताली बजाई। फिर दूबे भाभी ने और फिर गुड्डी भी शामिल हो गई।
“बहुत मस्त नाचती है ना रीत…” दूबे भाभी बोली और रीत खुश भी हुई, शर्मा भी गई। लेकिन भाभी ने मुझे देखकर कहा- “लेकिन तुम भी कम नहीं हो…”
“अरे बाकी चीजों में भी ये कम नहीं है। बस देखने के सीधे हैं…” चंदा भाभी ने मुझे छेड़ा।
लेकिन दूबे भाभी ने बात पकड़ ली-
“अच्छा तो करवा चुकी हो क्या? तुमने ले लिया रसगुल्ले का रस…” हँसकर वो बोली।
अब चंदा भाभी के झेंपने की बारी थी।
लेकिन गुड्डी ने बात बदली- “अरे इनकी वो बहना जो इनके साथ आयेंगी। वो भी बहुत सेक्सी नाचती हैं…”
“अरे उससे तो मैं मुजरा करवाऊँगी चूची उठा-उठाकर, कोठे पे बैठाऊँगी उसे तो…” दूबे भाभी बोल रही थी।
गुड्डी को तो मौका चाहिए था मुझे रगड़ने का, मुझे देख के मुस्करायी और बोली,
" अरे तभी ये कल से पूछ रहे हैं दालमंडी (बनारस का रेड लाइट एरिया) किधर है और मेरे साथ बाजार गए थे तो किसी से बात भी कर रहे थे, रात की कमाई का चवन्नी तो मेरा भी होगा।" और मैं कुछ खंडन जारी करता उसके पहले गुड्डी ने जीभ निकाल के चिढ़ा दिया और उसके बाद मोर्चा रीत ने सम्हाल लिया।
रीत, जो अब हम सबके पास बैठ चुकी थी मुझसे बोली-
“अरे ये तो बड़ी खुशी की बात है, किसी काम का शुभारंभ हो तो। कुछ मीठा जो जाय…”
और जब तक मैं सम्हलूं उस दुष्ट ने पास में रखी भांग पड़ी चन्दा भाभी द्वारा निर्मित एक गुझिया मेरे मुँह में, और दूबे भाभी से बोली-
“उससे स्ट्रिप टीज भी करवाएंगे। आज कल इसकी डिमांड ज्यादा है। क्यों?”
पता नहीं दूबे भाभी को बात पसंद नहीं आई या समझ नहीं आई? उन्होंने लाइन बदल दीं, बात फिर होली के गानों पे आ गयी वो बोली-
“आज कल ना। अरे बनारस की होली में भोजपुरिया होली जब तक ना हो। पता नहीं तुम सबन को आता भी है की नहीं?”
वो पल में रत्ती पल में माशा।
लेकिन मैं दूबे भाभी को पटा के रखना चाहता था।
मेरी यहाँ चाहे जितनी रगड़ाई हो, मेरी ममेरी बहन के ऊपर रॉकी को चढ़ाएं, लेकिन असली बात थी गुड्डी, कुछ भी हो मुझे ये बदमाश वाली लड़की चाहिए थी, वो भी लाइफ टाइम के लिए, भाभी ने आज मेरी किसी बात को मना नहीं किया तो इस बात के लिए भी नहीं, हाँ भाभी से ये बात कहने की न मैं हिम्मत जुटा पा रहा था, न ये समझ पा रहा था कैसे कहूं, पहले तो मैं नौकरी के नाम पे भाभी से टालता था, फिर ट्रेनिंग और अब ट्रेनिंग भी तीन चार महीने ही बची थी, सितंबर में तो पोस्टिंग हो जाएगी तो अब जल्दी से जल्दी, और भाभी तो मान गयी लेकिन गुड्डी के घर वाले, और मैं समझ गया था गुड्डी के घर, गुड्डी की मम्मी की हामी बहुत जरूरी है।
लेकिन इस चार घर के संयुक्त परिवार में ( गुड्डी, चंदा भाभी, दूबे भाभी -रीत और एक अभी आने वाली थीं ) मस्टराइन दूबे भाभी ही हैं, उमर में भी सबसे बड़ी और मस्ती में भी सबसे ज्यादा और उनकी हाँ में हाँ मिलाने का कोई मौका मैं छोड़ना नहीं चाहता था.
मैं दूबे भाभी की पसंद समझ गया था, मेरी भी असल में वही थी। मैंने बोला- “क्यों नहीं। अभी लगाता हूँ एक…” और मैंने चन्दा भाभी के कलेक्सन में से एक सीडी लगाई। लेकिन वो एक डुईट सांग पहले मर्द की आवाज में थी।
“हे तुम्हीं करना मुझे नहीं आता…” रीत ने धीरे से मेरे कान में फुसफुसा के कहा- “कोई फास्ट नंबर हो, फिल्मी हो, यहाँ तक की भांगड़ा हो लेकिन ये गाँव के। मैंने कभी नहीं किया…”
“अरे यार जो आज तक नहीं किया। वही काम तो मेरे साथ करना होगा न…” मैंने चिढ़ाया। मैं बोला तो धीमे से था लेकिन चन्दा भाभी ने सुन लिया।
चन्दा भाभी बोली- “अरे रीत करवा ले, करवा ले…”
रीत दुष्ट। उसने शैतान निगाहों से गुड्डी की ओर देखा।
गुड्डी भी कम नहीं थी- “अरे करवा ले यार। एक-दो बार में इनका घिस नहीं जाएगा। वैसे भी अब दूबे भाभी का हुकुम है की मुझे इनसे इनकी कजन की नथ उतरवानी है…”
तब तक गाना शुरू हो गया था।
मैंने उसे खींचते हुए बोला- “अरे यार चलो नखड़ा ना दिखाओ। शुभारम्भ। और अबकी जब तक वो समझे सम्हले, मेरे हाथ से गुझिया उसके मुँह में और गाने के साथ डांस करना शुरू कर दिया-
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है जैसे रोमांचकारी भोजपुरी गाने वैसी ही डांस करने वाली सैक्सी क्वीन जैसे गाने डालने और डलवाने वाले वैसे ही आनंद के एक्शन मजा आ गया एक और नई नवेली हसीना की एंट्री अब तो बहुत मजा आने वाला है दुबे भाभी अपने असली रंग में आ गई हैहोली में अब रेलम रेल होई,
महंगा अब सरसों का तेल होई,
तब तक गाना शुरू हो गया था। मैंने उसे खींचते हुए बोला- “अरे यार चलो नखड़ा ना दिखाओ। शुभारम्भ। और अबकी जब तक वो समझे सम्हले, मेरे हाथ से गुझिया उसके मुँह में और गाने के साथ डांस करना शुरू कर दिया-
-होली में अब रेलम रेल होई,
महंगा अब सरसों का तेल होई,
होली में पेलम पेल होई।
मैंने अब खुलकर कुल्हे मटका के, जंगबहादुर वैसे तन्नाये हुए थे आगे-पीछे करके।
लेकिन अब रीत भी कम नहीं थी।
उसने मुँह बिचका के जोबन उचका के, जैसे ही फिमेल वायस आई उसी तरह जवाब दिया।
कभी वो मुश्कुराती, कभी ललचाती और जब पास आता तो अदा दिखाकर एक-एक चक्कर लेकर दूर हो जाती। वो गा रही थी-
होली मैं ऐसन जो खेल होई, जबरी जो डारी तो जेल होई,
होली में जो होई उम्मी उम्मा। इ गाले पे जबरी जो लेई हो चुम्मा,
इ गाले पे जबरी जो लेई हो चुम्मा, पोलिस के डंडा से मेल होई।
जिस तरह से अदा से वो हाथ ऊपर करती, उसके उभार तनकर साफ झलक जाते और फिर अपने आप उसने जो अपने गाल पे हाथ फेरा, और पोलिस के डंडे की एक्टिंग की।
दूबे भाभी, गुड्डी और चंदा भाभी साथ गा रही थी। अगला गाना और खतरनाक था-
चोली में डलवावा साली होली में हौले, हौले,
चोली में डलवावा साली होली में हौल हौले।
गाना मेल वॉयस में था इसलिए साथ में मैं गा रहा था लेकिन रीत डांस में साथ दे रही थी, मेरा हाथ उसके टॉप के ऊपर से रेंग रहा था , जब जब लाइन आती; चोली में डलवावा,
" हे चोली में डालने की बात हो रही है, ऊपर ऊपर सहलाने की बात नहीं हो रही " चंदा भाभी ने उकसाया,
" आपके देवर ऐसे ही हैं " गुड्डी ने और आग में घी डाला और मुझे घूर के देखा, बस हाथ चोली में मेरा मतलब रीत के टॉप के अंदर, सहला मैं रीत के रहा था, लेकिन सोच आज के दिन के बारे कितना अच्छा , सुबह छोटी साली नौवे में पढ़ने वाली गूंजा ने खुद खिंच के मेरा हाथ अपने जोबन पे और अब बड़ी साली रीत वो भी सबके सामने,
लेकिन मान गया मैं रीत सच में डांसिंग क्वीन थी, हम दोनों मस्ती कर रहे थे, बदमाशी कर रहे थे लेकिन मजाल की एक स्टेप मिस हुआ हो
लेकिन सबसे खुश दूबे भाभी थीं, एकदम उनकी पसंद वाले भोजपुरी गाने और मुझे भी पसंद थे और मालूम थे,
लेकिन म्यूजिक ख़त्म होते ही रीत ने खेल कर दिया, रीत तो रीत थी उसने एक नया चैलेंज थ्रो कर दिया, अब वो खुद गा रही थी और डांस भी, जितना अच्छा नाचती थी उतनी ही मीठी आवाज, यानी अगले गाने में मुझे रिकार्ड का सहारा नहीं मिलेगा, खुद गाना पडेगा
काली चुनरी में जोबना लहर मारे रे, काली चुनरी में
लहार मारे रे हो लहर मारे रे, काली चुनरी में
और साथ में उसकी सहेली, छोटी बहन और सह -षड्यंत्रकारी, गुड्डी भी गा रही थी,
काली चुनरी में जोबना लहर मारे रे, काली चुनरी में
लहार मारे रे हो लहर मारे रे, काली चुनरी में
चंदा भाभी ने चिढ़ाया गुड्डी को,
"ले तो जा रही हो साथ में, लूटेगा लहर आज रात से,"
गुड्डी ने एक पल मुझे देखा, हम लोगों के नैन मिले और वो शर्मा गयी ।
दूबे भाभी, सुन भी रही थीं, देख भी रही थी मेरे और गुड्डी के चार आँखों का खेल और बस मुस्करा दीं लेकिन तभी उन्हें कुछ याद आ गया,
दूबे भाभी ने पूछा- “अरे वो संध्या नहीं आई?”
मुझे गुड्डी बता चुकी थी की संध्या, इन लोगों की ननद लगती थी मोहल्ले के रिश्ते में, 23-24 साल की तीन-चार महीने पहले शादी हुई थी। इनके यहाँ ये रिवाज था की होली में लड़की मायके आती है और दुल्हे को आना होता है। मंझोले कद की थी फिगर भी अच्छा था।
चन्दा भाभी बोली- “मैंने फोन तो किया था लेकिन वो बोली की उसके उनका फोन आने वाला था। बस करके आ रही है…”
“आज कल की लड़कियां ना। उनका बस चले तो अपनी चूत में मोबाइल डाल लें जब देखो तब…” दूबे भाभी अपने असली रंग में आ रही थी।
“अरे घर में तो वो अकेले ही है क्या पता सुबह से मायके के पुराने यारों की लाइन लगवाई हो…”
संध्या तो मस्त माल है आते ही चंदा भाभी से आनंद से टांका भिड़ाने के लिए तैयार है गोरे चिकने लौंडे को देखकर संध्या तो फिसल गई आनंद भी संध्या के कबूतरो में खो गया है अब तो मस्त रगड़ाई होने वाली है एक द्रोपदी की वो भी दो भाभी दो साली एक सजनी से अब तो चंदा भाभी और दुबे भाभी असली मस्ती के रंग में आ गई है लगता है सजना की अदला बदली होने वाली हैसंध्या भाभी
दूबे भाभी ने पूछा- “अरे वो संध्या नहीं आई?”
मुझे गुड्डी बता चुकी थी की संध्या, इन लोगों की ननद लगती थी मोहल्ले के रिश्ते में, 23-24 साल की तीन-चार महीने पहले शादी हुई थी। इनके यहाँ ये रिवाज था की होली में लड़की मायके आती है और दुल्हे को आना होता है। मंझोले कद की थी फिगर भी अच्छा था।
चन्दा भाभी बोली- “मैंने फोन तो किया था लेकिन वो बोली की उसके 'उनका' फोन आने वाला था। बस करके आ रही है…”
“आज कल की लड़कियां ना। उनका बस चले तो अपनी चूत में मोबाइल डाल लें जब देखो तब…” दूबे भाभी अपने असली रंग में आ रही थी।
“अरे घर में तो वो अकेले ही है क्या पता सुबह से मायके के पुराने यारों की लाइन लगवाई हो…”चंदा भाभी अपनी ननद की खिंचाई का मौका क्यों छोड़तीं
तब तक वो आ ही गईं, मुश्कुराती खिलखिलाती, और कहा-
“मैं सुन रही थी सीढ़ी से आप लोगों की बात। अरे बोला था ना मुझे एक बार उनसे बात करके समझाना था की दो-चार घंटे मैं फोन से दूर रहूंगी। लेकिन आप लोग…”
बात वो चंदा भाभी से कर रही थी लेकिन निगाहें उसकी मुझ पे टिकी थी। गाना कब का बंद हो चुका था।
“तो क्या गलत कह रही थी? हमारी ननदे ना। झांटे बाद में आती है। बुर में खुजली पहले शुरू हो जाती है। जब तक एक-दो लण्ड का नाश्ता ना कर लें ना। ठीक से नींद नहीं खुलती। क्यों रीत। गलत कह रही हूँ?” हँसकर चन्दा भाभी बोली।
“मुझसे क्यों हुंकारी भरवा रही हैं, मैं भी तो आपकी ननद ही हूँ…” वो हँसकर बोली।
“तभी तो…” वो बोली।
लेकिन मोर्चा संध्या भाभी ने संभाला-
“एकदम सही बोल रही हैं आप लेकिन ननद भी तो आप ही लोगों की है। आप लोग भी तो रात में सैयां, दिन में देवर, कभी नंदोई। तो हम लोगों का मन भी तो करेगा ही ना…”
दूबे भाबी ने दावत दी- “ठीक है तुम्हारे वो आयेंगे ना होली में तो अदल-बदल लेते हैं। वो भी आमने-सामने तुम मेरे सैयां के साथ और मैं तुम्हारे…”
“अच्छा तो मेरे भैया से ही। ना बाबा ना…” फिर धीरे से चंदा भाभी से बोली- “ये माल मस्त लगता है इससे भिड़वा दो ना टांका…” मेरी ओर इशारा करके कहा।
मेरी निगाह भी संध्या भाभी की चोली से झांकते जोबन पे गड़ी थी। रीत ने ही पहल की और हम दोनों का परिचय करवा दिया और उनसे बोली- “अच्छा हुआ आप आ गईं, अब हम दो ननदें हैं और दो भाभियां…”
दूबे भाभी हँसकर बोली- “अरे कोई फर्क नहीं पड़ेगा चाहे तुम दो या बीस। लेकिन आज तो रगड़ाई होगी इस साले की भी और तुम सबों की भी…”
मैंने डरने की एक्टिंग करते हुआ बोला- “अरे ये तो बहुत नाइंसाफी है। मैं एक और आप पांच…”
“तो क्या हुआ? मजा भी तो आयेगा आपको, और द्रौपदी के भी तो पांच पति थे। तो आज आप द्रौपदी और हम पांडव…” रीत ने मुश्कुराकर कहा।
“एकदम दीदी…” गुड्डी क्यों मुझे खींचने में पीछे रहती, ओर हँसकर गुड्डी नेजोड़ा -
“फर्क सिर्फ यही होगा की पांडव तो बारी-बारी से। और हम कभी बारी-बारी। कभी साथ-साथ…”
दूबे भाभी बोली- “अरे काहे घबड़ाते हो। वो तुम्हारी बहन कम माल जब आएगी यहाँ। तो वो भी तो एक साथ पांच-पांच को निपटाएगी…”
रीत आँख नचाकर बोली- “बड़ी ताकत है भाई। तीन तो ठीक है लेकिन पांच। वो कैसे?”
“अरे यार एक से चुदवायेगी, एक से गाण्ड मरवाएगी, एक का मुँह में लेकर चूसेगी…” चंदा भाभी बोली।
“और बाकी दो?”
“बाकी दो लण्ड हाथ में लेकर मुठियायेगी…” दूबे भाभी ने बात पूरी की।
मैं संध्या भाभी को पटाने के चक्कर में उन्हें गुलाब जामुन, दही बड़ा और स्प्राईट जो असल में वोदका कैनाबिस ज्यादा और वो भी बाकी लोगों की हालत में आ गईं।
गुड्डी बोली “हे तुम्हें मालूम है संध्या गाती भी अच्छा है और नाचती भी। खास तौर से। लोक गीत…”
“गाइए ना भाभी…” मैं बोला तो वो झट से मान गई।
संध्या ने गाना तो जबरदस्त ही गाया है आनंद की बहन और आनंद का स्वागत गाने से हो रहा है अब तो आनंद बाबू भी कहा पीछे रहने वाले हैं उन्होंने भी रीत के लिए जबरदस्त गाना गा कर उड़ाने की तैयारी कर ली है“नकबेसर कागा ले भागा
चन्दा भाभी ने ढोल संभाली।
“नकबेसर कागा ले भागा अरे सैयां अभागा ना जागा।
अरे सैयां अभागा ना जागा…”
वो मेरी ओर इशारा करके गा रही थी।
साथ में रीत और गुड्डी भी। संध्या भाभी ने रीत के कान में कुछ पूछा और उसने फुसफुसा के बताया।
मैं समझ गया साजिश मेरे ही खिलाफ है, और संध्या उठ गई और डांस भी करने लगी-
अरे नकबेसर कागा ले भागा मेरा सैयां अभागा ना जागा, अरे आनंद साला ना जागा,
उड़ उड़ कागा चोलिया पे बैठा, आनंद की बहिना के चोलिया पे बैठा, चोलिया पे बैठा। अरे अरे,
और उन्होंने रीत को खींच लिया डांस करने के लिए और दोनों मिलकर मेरी ओर इशारे करते हुए-
अरे उड़ उड़ कागा आनंद की बहिना के, चोलिया पे बैठा। अरे जोबन के सब रस ले भागा।
और उसके बाद तो संध्या भाभी और रीत ने जो अपने जोबन उछाले, अपनी जवानी के उभार कोई आइटम गर्ल भी मात हो जाए और वो भी मुझे दिखाकर।
“अरे इस बहना के भंड़ुवे को भी खींच ना…”
संध्या भाभी ने रीत को इशारा किया और उस शैतान को तो बहाने की भी जरूरत नहीं थी।
उसने मेरा हाथ खींचकर खड़ा कर दिया। खड़ा तो मेरा वैसे भी पहले से ही था। मैं भी उनके साथ चक्कर लेने लगा। गाना संध्या भाभी और दुबे भाभी ने आगे बढ़ाया-
अरे उड़ उड़ कागा साया पे बैठा। उड़ उड़ कागा आनंद की बहिना के। साया पे,
“अरे अभी वो स्कर्ट पहनती है…” गुड्डी ने आग लगाई।
दूबे भाभी ने तुरंत करेक्शन जारी किया-
अरे उड़ उड़ कागा आनंद की बहिना के स्कर्ट पे बैठा,
लेकिन गाना आगे बढ़ता उसके पहले मैंने रीत को कसकर अपनी बाहों में खींच लिया और कसकर उसके उभारों को अपने सीने से दबा दिया और अपने तने हथियार से उसकी गोरी-गोरी जाँघों के बीच धक्के मारते हुए मैंने गाना बढ़ाया-
अरे उड़ उड़ कागा रीत के पाजामी पे बैठा, उड़ उड़ कागा रीत के पाजामी पे बैठा,
अरे बुरियो का सब रस ले भागा, अरे बुरियो का सब रस ले भागा।
चंदा भाभी और दूबे भाभी भी मेरा ही साथ देने लगे गाने में।
रीत ने उनकी ओर देखकर बुरा सा मुँह बनाया, तो चन्दा भाभी हँसकर बोली-
“अरे यार हमारी भी तो ननद हो तो गाली देने का मौका हम क्यों छोड़ें?”
मैंने फिर से उसके उभार को पकड़कर धक्का मारते हुए गाया-
“अरे उड़ उड़ कागा रीत के पाजामी पे बैठा, उड़ उड़ कागा रीत के पाजामी पे बैठा,
अरे बुरियो का सब रस ले भागा, अरे बुरियो का सब रस ले भागा।
“तुम कागा हो क्या?” रीत चिढ़ाते हुए बोली और दूर हट गई।
“एकदम तुम्हारे लिए कागा क्या सब कुछ बन सकता हूँ…” मैंने झुक के कहा। और मैं झुक के उठ भी नहीं पाया था की होली शुरू हो गई।
रीत और गुड्डी ने मोर्चा संभाल लिया है दोनो एक आगे से दूसरी पीछे से रगड़ रही है जब दो रसीली कन्याओ के बीच कोई फंस जाए तो वह इनको देखकर ऐसे ही निकलने की कोसिस नही करेगा वही हाल आनंद का है दो कन्याओ के बीच मजा आ रहा है रीत दो बार बच गई लेकिन वह भी तो बचना नही चाहती हैं जब ऐसा चिकना जीजा मिला है लेकिन जब भी फटने की बारी आती हैं कोई न कोई आ जाता हैहोली का हमला
पहले गुड्डी और फिर रीत दुहरा हमला।
लेकिन थोड़े ही देर में ये तिहरा हो गया, संध्या भाभी भी। रंग पेंट सब कुछ।
होली रीत और गुड्डी की गुलाबी हथेलियों में थी, उनकी नम निगाहों में थी, शहद से रसीले होंठों में थी, कौन बचता?
और बचना भी कौन चाहता था?
आगे से गुड्डी पीछे से रीत, एक ओर से छोटी सी टाईट फ्राक और दूसरी ओर से शलवार कमीज। मैंने मुड़कर रीत को देखा और कहा-
“ये अच्छी आदत सीख ली है तुमने। पीछे से वार करने की…”
“जैसे आप कभी पीछे से नहीं डालेंगे क्या?” आँख नचाकर मस्तानी अदा के साथ बोली।
डबल मीनिंग डायलाग बोलने में अब वो मेरे भी कान काट रही थी, और रीत के मस्ताने चूतड़ देखकर मन तो मेरा भी कर रहा था की पिछवाड़े का भी मजा लिए बिना उसे नहीं छोड़ने वाला मैं।
दायें गाल पे गुड्डी का हाथ और बायें गाल पे रीत का। पीठ पे रीत के जोबन रगड़ रहे थे तो सीने पे गुड्डी के किशोर उभार।
होली में जब भी मैं किशोरियों को रंग से भीगे लगभग पारदर्शक कपड़ों में देखता था, उन चिकने गालों को जिन्हें छूने की सिर्फ हसरत ही हो सकती है उसे छूने नहीं बल्की रगड़ने मसलने सबका लाइसेंस मिल जाता है और यहाँ तो बात गालों से बहुत आगे तक की थी।
रीत ने पीछे से मेरे टाप में हाथ डाल दिया और थोड़ी देर सीने पे रंग मसलने रगड़ने के बाद, सीधे मेरे टिट्स पिंच कर दिए। मेरी सिसकी निकल गई। गुड्डी ने भी आगे से हाथ डाला और दूसरा टिट उसके हाथ में।
मैंने शिकायत के अंदाज में बोला- “रंग लगा रही हो या। …”
“अच्छा नहीं लग रहा है फिर सिसकियां क्यों भर रहे थे?” रीत आँख नचाकर और कसकर पिंच करते हुए बोली।
“मन मन भावे मूड़ हिलावे…”
गुड्डी क्यों पीछे रहती। उसने अपने उभार कसकर मेरे सीने पे रगड़ दिए और एक हाथ से मेरे टाप के अन्दर, बल्की गुन्जा का जो टाप मैंने पहन रखा था उसके अन्दर, मेरे पेट पे रंग लगाने लगी।
मैं- “तुम दो-दो हो ना। इसलिए अकेले मिलो तो बताऊँ?”
“अच्छा सच बताओ। नहीं पसंद आ रहा है हम दोनों से साथ-साथ करवाना?” आपने गुलाबी होंठों को मेरे कान से छुलाते हुए दुष्ट रीत बोली।
किसे पसंद नहीं आता दो किशोरियों के बीच सैंडविच बनना। जिन रसीले जोबनों के बारे में सोच-सोचकर लोगों का खड़ा हो जाय, वो खुद सीने और पीठ पे रगड़े जा रहे हों तो।
“अरे झूठ बोल रहे हैं। उनकी बहन आएगी ना तो तीन तो मिनिमम। उससे कम में तो उसका मन ही नहीं भरेगा। एक आगे, एक पीछे, एक मुँह में…” गुड्डी बोली। वो अब चंदा भाभी का भी कान काट रही थी।
रीत अब दोनों हाथों से कस-कसकर मेरे सीने पे रगड़ रही थी ठीक वैसे ही जैसे कोई किसी लड़की के जोबन मसले। बीच-बीच में मेरे टिट भी पिंच कर लेती।
मैं- “रीत। सोच लो मेरा भी मौका आएगा। इतना कसकर दबाऊंगा, मजा लूँगा तेरे इन गदराये जोबन का न…”
“तो ले लेना ना, और छोड़ा है क्या अभी?” वो शोख बोली।
“अभी तो ब्रा के ऊपर से ही दबाया था…” मैंने धीरे से बोला।
गुड्डी की एक हाथ की उंगलियां पेट से सरक के बर्मुडा के अन्दर घुसाने की कोशिश कर रही थी। वो भी मैदान में आ गई, और बोली-
“अरे ये तो सख्त नाइंसाफी है रीत दीदी के साथ। ब्रा के ऊपर से क्यों? वैसे वो भागेंगी नहीं…”
“शैतान की नानी…” रीत बोली- “मेरी वकालत करने की जरूरत नहीं है। वैस भी पहले तो तेरी फटनी है…”
और रीत का भी एक हाथ पीछे से मेरे बर्मुडा में घुस चुका था, वैसे वो भी गुंजा की ही थी। मेरे कपड़े तो पहले ही इन दोनों दुष्टों, रीत और गुड्डी के कब्जे में चले गए थे।
गुड्डी की रंग लगी मझली उंगली सीधे मेरे तन्नाये लिंग के बेस पे। मुझे जोर का झटका जोर से लगा।
गुड्डी- “बात तो आपकी सोलहो आना सही है। मैं इसे छोड़ने वाली थोड़ी थी। लेकिन क्या करूँ ये साली मेरी सहेली गलत मौके पे आ गई…” और फिर वो मुझे उकसाने लगी-
“हे तब तक तू रीत की क्यों नहीं ले लेते, बहुत गरमा रही है ये…”
रीत ने जवाब में अपनी रंग लगी मझली उंगली बर्मुडा में सीधे मेरी गाण्ड की दरार में रगड़ दी। मैंने फिर मस्ती में सिसकी ली।
“चुटकी जो काटी तूने…” रीत ने गाया और एक बार कसकर मेरे टिट पे चुटकी काट ली, दूसरा हाथ भी सीधे पिछवाड़े पे।
“क्यों रीत मंजूर है, जो गुड्डी बोल रही है…” मैंने रीत से पूछा।
“दो बार तो बचकर निकल गई मैं…” वो हँसकर बोली और कस-कसकर रंग लगाने लगी।
“तीसरी बार नहीं बचोगी…” मैंने धमकाया।
“नहीं बचूंगी तो नहीं बचूंगी…” जिस शोख अदा से उस हसीन ने कहा की मेरी तो जान निकल गई।
लेकिन अभी सवाल मेरे बचने का था।
जैसे किसी के गर्दन पे तीखी तलवार रखी हो लेकिन वो ना कटे ना छोड़े वो हालत मेरी हो रही थी।
और सामने संध्या भाभी, अपने हथेलियों में मुझे दिखाकर लाल रंग मल रही थी। उनकी ट्रांसपरेंट सी साड़ी में उनका गोरा बदन झलक रहा था। भारी जोबन खूब लो-कट ब्लाउज़ से निकलने को बेताब थे। शायद विवाहित औरतों पे एक नए तरह का हो जोबन आ जाता है। वही हालत उनकी थी। चूतड़ भी खूब भरे-भरे।
“तुम दोनों रगड़ लो फिर मैं आती हूँ। इन्हें बनारस के ससुराल की होली का मजा चखाने…” वो मुश्कुराकर रीत और गुड्डी से बोली।
“ना आ जाइए आप भी ना थ्री-इन-वन मिलेगा इनको…” रीत और गुड्डी साथ-साथ बोली।
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सिर्फ गुड्डी हीं नहीं...बहुत ही मजेदार और रोमांचकारी अपडेट है
गुड्डी ने तो आनंद को ऑफर दे दिया हैकि वह अपनी साली गुंजा के साथ कुछ भी कर सकता है उसे बुरा नही लगेगा हे भगवान ऐसी घरवाली सबको देना
गुड्डी ने आनंद को उपर से नीचे तक चिकनी चमेली बना दिया है अब कुछ धमाल होने वाला है बियर की सील के साथ क्या किसी की सील खुलती है या नहीं