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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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PhD की कुछ क्लास तो शुरू हो गई है साथ ही प्रैटिकल भी हो गया है
और अभी तो बहुत प्रक्टिकल बाकी भी है
 

komaalrani

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गुड्डी ने तो अपने साजन के साथ मजे लेकर होली खेल ली है आनंद बाबू तो गुड्डी के कबूतरो को देखकर उसमे ही खो जाते हैं गुड्डी को भी अपने कबूतरो को रगड़वाने में मजा आ रहा है होली का मजा तो तब ज्यादा आता है जब रीत जैसी साली हो । यहां तो सजनी खुद चौकीदारी करके साली के साथ होली खेलने का मौका दे रही है
यही तो गुड्डी में ख़ास बात है।
 

komaalrani

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दुबे भाभी से तो सब डर गए लेकिन आनंद ने अपनी साली और सजनी का बचाव कर लिया दुबे भाभी की बातो से लगता है वो भी बहती गंगा में डुबकी लगाने वाली है गुड्डी तो तेज निकली अपने सैया के चहरे पर पहले ही तेल लगा दिया ताकि रंग पक्का ना हो लेकिन दुबे भाभी के सामने उनकी चालाकी पकड़ी गई दुबे भाभी चिकने की अब तो मस्त रगड़ाई करने वाली है
मैंने चिढ़ाया- “हे रीत, मैंने तेरी ब्रा के अन्दर कबूतरों के पंख लाल कर दिए थे, उन्हें भी सफेद कर दूँ फिर से… क्या बात कही है आनंद ने

बेचारी रीत की तो किस्मत ही खराब है जब भी करते हैं कोई न कोई आ टपकता है
पर ऐसी साली जरूर होनी चाहिए करे तीन बार और गिने एक बार
बहुत ही शानदार लाजवाब और मजेदार अपडेट था
दूबे भाभी असली हेडमास्टरनी हैं, और उन्हें पटा के रखना बहुत जरुरी है
 

komaalrani

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कोमल जी, आप मुझको ऐसे चने के झाड़ पर न चढ़ाईए!
मामूली सा लिखने वाला हूं। कुछ कुछ लिख लेता हूं कभी कभी। इसी फोरम पर इतने सारे बढ़िया लिखने वाले उपस्थित हैं। इसलिए आपसे सीखने की बात कही!
अगर पहला ही पृष्ठ इतना बढ़िया है, तो आगे तो क्या ही होगा 🙂👌 मुझे यकीन है कि जीवन के सभी रंग देखने को मिलेंगे इस उपन्यास में।
आपकी इस कहानी से बहुत देर में जुड़ रहा हूं, इसलिए ऐसे कुसमय कमेंट्स आते रहेंगे मेरे। आप लिखती रहें। आप भी मेरी पसंदीदा लेखकों में शामिल हैं अब 🙏
यह कहना आपकी स्वभावगत विनम्रता है, मैंने आपकी कई लघु कथाएं पढ़ीं, पर उनमे रिप्लाई बंद हो गयीं थी, जैसे चरित्रहीन, और उसमें जिस तरह से आपने लोकगीत का प्रयोग किया

‘बेरिया की बेरिया मै बरिज्यो बाबा जेठ जनि रचिहो बियाह … हठी से घोडा पियासन मरिहै गोरा बदन कुम्हलाय
कहो तो मोरी बेटी छत्रछाहों कहो तो नेतवा ओहार … कहो तो मोरी बेटी सुरजू अलोपों गोरा बदन रहि जाय’


और उसके बाद का दृश्य और फिर संवाद, कितनों की आँख नहीं भर आयी होगी, कितनों के यादों के पन्ने न फड़फड़ाये होंगे, लेकिन उससे भी अद्भुत था उस गाने का दुबारा इस्तेमाल, और एकदम अलग परिस्थिति में, वही शब्द वही गाना लेकिन कितनी बेचारगी का बोध कराता है, फिर लोकल उसकी ये लाइने,

"बस, आँखें ही एक दूसरे से बातें कर रही थीं। जितना अधिक दोनों की आँखें बतिया रही थीं, उतना ही अधिक दोनों एक दूसरे की तरफ़ खिंचे चले आ रहे थे!"

और फिर,

"यह वार्तालाप, आँखों के वार्तालाप के मुक़ाबले नीरस लग रहा था।"

जो न कहा जा सके, पात्र चुप हों पर , उसे कह देना, यही तो कहानी का काम है। अगर हमारे पास कुछ कहने को नहीं तो कहानी लिखने का मतलब नहीं।

हाँ इस कहानी को पढ़ के बस मैं एक बात सोचती रही की ये बात, वेस्टर्न लाइन की है या सेन्ट्रल लाइन की और दोनों उतरे किस जगह पर, आफिस कहाँ था, बी के सी, परेल या साऊथ बॉम्बे, लेकिन बॉम्बे की लोकल मुझे हमेशा फ्रिट्ज लैंग की मशहूर पिक्चर मेट्रोपोलिस की याद दिलाती हैं जहां दो अलग अलग दुनिया है।

और फिर आज रहब यही आंगन, इन में से किसी कहानी में टिप्पणी की जगह बची नहीं थी वरना मैं वहीँ लिखती।

बस यही उम्मीद करुँगी की आप आते रहें और इस कथा यात्रा के सहयात्री बने, यह एक लम्बी यात्रा है। रस्ते में कुछ बतियाते, सुनते सुनाते रस्ता कट जाएगा।

फिर से आभार
 
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komaalrani

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बहुत ही शानदार और मजेदार अपडेट है दुबे भाभी का भी जी ललचा रहा है चिकने लौंडे को देखकर
जैसे खेले खाये मरदों का दिल मचलता है कच्ची कलियों को देख के वही हालत प्रौढ़ा औरतों की भी होती है नयी उम्र के लड़कों को देख के
 

komaalrani

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Wow wow wow 50,000 Likes complete.
Thanks so much to you and friends like you who support my threads. it is your love and affection that pushed me to this height.

Thank U Reaction GIF by Mauro Gatti
Happy Thank U GIF
 

komaalrani

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komaalrani

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Sandhya bhabhi chi maal hain.
अगला भाग संध्या भाभी के नाम
 

komaalrani

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Anand ji bahut Anand le rahe hain.
Aur saali aur sahlaj bhi unhe ghere ke maje le rahi hain
 
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