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Erotica फागुन के दिन चार

motaalund

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एकदम सही बात कही आपने, गाने में तो असली चीज धुन होती है, पुत्र जन्म पर गाये जाना वाला सोहर हो, या होली के गाने या सावन की कजरी। कजरी की धुन से ही सावन की बूंदो और झूले का असर महसूस होने लगता है और फागुन के गानों में होली की लगता है पिचकारी छूट रही है। और संगीत में भी सबके लिए राग, ताल अलग अलग। धमार को हम फाग से जोड़ कर ही देखते हैं।

लेकिन इन सब को अप्रिशिएट करने के लिए आप जैसा पाठक चाहिए।

जोरू का गुलाम और छुटकी दोनों में पिछले दिनों अपडेट पोस्ट कर दिया है बस अगला नंबर यही दो तीन दिन में
वीडियो से वो धुन पकड़ में आती है...
वरना तो कहानी की एक लाइन की तरह हीं... कई लोग उसे पढ़ जाते हैं...
 

motaalund

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शराब का असर शुरू हो गया है दुबे भाभी भी आनन्द से रगड़वाने के लिए तैयार है चिकने पर सबका मन आ गया है वह चाहती हैं कि आनंद गांव से गुड्डी को छोड़ने आए तो एक दो दिन रुके
दुहरा... बल्कि तिहरा नशा है...
 

motaalund

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अब तो आनंद रंगपंचमी के 3 दिन सुसराल में रुकेगा आनंद के तो मजे होने वाले हैं 5 सालिया एक सास 2 भाभी आनंद की तो पूरा का पूरा हाथ घी में है देखते हैं किस डिब्बे का ढक्कन खुलता है
रस तो सबका लेंगे...
लेकिन किस किस में चोंच मार पाते हैं...
ये तो कहानी ,में आगे हीं पता चलेगा...
 

motaalund

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पहले तो खाली आनंद की बहन का नाम लेकर ही चिढ़ाया जा रहा था लेकिन दुबे भाभी ने तो उसकी नथ उतरवाने की जिम्मेदारी वो भी आनंद से गुड्डी को दे दी है लागत है अब तो उसकी नथ जरूर उतरनेवाली हैं
गुड्डी सबकी पतंग लुटवाएगी...
 

motaalund

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yes, the keyword is

"If we ignore the views"
शायद आपके सारे अपडेट एक बार पढ़कर दुबारा कुछ दिन बाद ट्राई करते हों...
इन्हीं 5-6 अपडेट्स को अलग अलग पोस्ट करने पर शायद 5-6 गुना व्यूज बढ़ जाए...
 

motaalund

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जहाँ जहाँ हाथ का थापा लग गया वो आनंद का हो गया, अब वहां, उसका जब चाहे तब जितना चाहे उतना आंनद ले।
जैसे चाहें आनंद बाबू आनंद लें...
 

motaalund

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दूबे भाभी असली हेडमास्टरनी हैं, और उन्हें पटा के रखना बहुत जरुरी है
उनके पास अनुभव है...
और बहुत सारे गुरु ज्ञान आनंद बाबू अर्जित कर सकते हैं...
 

motaalund

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यह कहना आपकी स्वभावगत विनम्रता है, मैंने आपकी कई लघु कथाएं पढ़ीं, पर उनमे रिप्लाई बंद हो गयीं थी, जैसे चरित्रहीन, और उसमें जिस तरह से आपने लोकगीत का प्रयोग किया

‘बेरिया की बेरिया मै बरिज्यो बाबा जेठ जनि रचिहो बियाह … हठी से घोडा पियासन मरिहै गोरा बदन कुम्हलाय
कहो तो मोरी बेटी छत्रछाहों कहो तो नेतवा ओहार … कहो तो मोरी बेटी सुरजू अलोपों गोरा बदन रहि जाय’


और उसके बाद का दृश्य और फिर संवाद, कितनों की आँख नहीं भर आयी होगी, कितनों के यादों के पन्ने न फड़फड़ाये होंगे, लेकिन उससे भी अद्भुत था उस गाने का दुबारा इस्तेमाल, और एकदम अलग परिस्थिति में, वही शब्द वही गाना लेकिन कितनी बेचारगी का बोध कराता है, फिर लोकल उसकी ये लाइने,

"बस, आँखें ही एक दूसरे से बातें कर रही थीं। जितना अधिक दोनों की आँखें बतिया रही थीं, उतना ही अधिक दोनों एक दूसरे की तरफ़ खिंचे चले आ रहे थे!"

और फिर,

"यह वार्तालाप, आँखों के वार्तालाप के मुक़ाबले नीरस लग रहा था।"

जो न कहा जा सके, पात्र चुप हों पर , उसे कह देना, यही तो कहानी का काम है। अगर हमारे पास कुछ कहने को नहीं तो कहानी लिखने का मतलब नहीं।

हाँ इस कहानी को पढ़ के बस मैं एक बात सोचती रही की ये बात, वेस्टर्न लाइन की है या सेन्ट्रल लाइन की और दोनों उतरे किस जगह पर, आफिस कहाँ था, बी के सी, परेल या साऊथ बॉम्बे, लेकिन बॉम्बे की लोकल मुझे हमेशा फ्रिट्ज लैंग की मशहूर पिक्चर मेट्रोपोलिस की याद दिलाती हैं जहां दो अलग अलग दुनिया है।

और फिर आज रहब यही आंगन, इन में से किसी कहानी में टिप्पणी की जगह बची नहीं थी वरना मैं वहीँ लिखती।

बस यही उम्मीद करुँगी की आप आते रहें और इस कथा यात्रा के सहयात्री बने, यह एक लम्बी यात्रा है। रस्ते में कुछ बतियाते, सुनते सुनाते रस्ता कट जाएगा।


फिर से आभार
कई बार आँखें बहुत कुछ कह जाती हैं... जो होंठ नहीं कह पाते...
 

motaalund

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जैसे खेले खाये मरदों का दिल मचलता है कच्ची कलियों को देख के वही हालत प्रौढ़ा औरतों की भी होती है नयी उम्र के लड़कों को देख के
नए पाने का सुख...
सबको इंतजार रहता है...
 

motaalund

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घंटे दो घंटे में तो सिर्फ टीजर ही हो पायेगा, इसलिए और दूबे भाभी का आदेश तो अब आनंद को रुकना ही पड़ेगा आज होली बिफोर होली का मजा तो लौट के होली आफटर होली का आनंद
संपूर्ण मजे.. और दूबे भाभी से ज्ञान ध्यान के लिए...
शायद तीन दिन भी कम पड़ जाएं...
 
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