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Erotica फागुन के दिन चार

motaalund

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गुड्डी ने तो कबाब में हड्डी का काम कर दिया नही तो आज मैदान ए जंग हो जाती वो भी नए मैदान पर नए हथियार से।गुड्डी को भी बुरा लगा गुड्डी ने हथियार को हाथ लगा कर चेक कर लिया कि हथियार अभी तक यूज नही हुआ है उसने फिर आनंद को हड़का दिया है
चंदा भाभी ने अपने देवर की मर्दांगी बनाए रखने के लिए जड़ी बूटियों से लड्डू बना दिया है अब इन लड्डूओ की जरूरत पड़ने वाली है रात में जो मेहनत की थी उसकी भरपाई के लिए एक डोज तो दे दिया है
नए मैदान पर हर बॉल पर सिक्सर...
 

motaalund

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क्या मस्त होली है दो रसीली कन्याओं के बीच हमारे आनन्द एक आगे से रगड़ रही है और दूसरी बीच से रगड़ रही है आनंद ने साली और बीवी के साथ मुंह काला और सफेद करवा ही लिया चंदा भाभी का आनंद की बहन के बारे में बाते न करे ये हो ही नहीं सकता ।आनंद ने तो आगे से पीछे से भरपूर रगड़वा लिया लेकिन उसके हाथ रीत के खजाने पर थे लेकिन बुद्धू ने कुछ नहीं किया आजकल के लौंडे ऐसा मौका मिले और ऐसे खाली छोड़ दे मुमकिन ही नही है
अभी स्टैचू की मुद्रा है...
तो गुड्डी की बात टाल नहीं सकते...
 

motaalund

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वाह कोमल जी! पढ़ना शुरू किया, लेकिन सोचा कि बिना अपनी प्रतिक्रिया लिखे, पढ़ा नहीं जा सकता।
तो यह प्रतिक्रिया पेज #1 पर जो पढ़ा, उस पर है।

बनारस… काशी एक अलग सी ही दुनिया है। दो तीन बार जाना पड़ा वहाँ - उफ़! कुछ लिख दूँगा, तो कई लोगों की भावनाएँ आहत हो जाएँगी। इसलिए न ही सही। लेकिन फिर भी… मेरी आदतें कुत्ते की पूँछ जैसी टेढ़ी ही हैं। 🤭
तो, लीजिए…

काशी धार्मिक नगरी तो है, लेकिन विधर्मी काम करने में पीछे नहीं रही है। “पौंड्रक वासुदेव” की कहानी सुने होंगे? नहीं सुने हैं, तो बताएँ - अलग से सुना दूँगा। भगवान कृष्ण उससे इतना परेशान हो गए कि उन्होंने उसके साथ साथ पूरी काशी को दण्ड स्वरुप, अपने सुदर्शन चक्र से भस्म कर दिया था। बाद में भगवान शिव ने बचाया, और इनका उद्धार किया। आज भी वही मुरहापन वहाँ के लोगों में देखने को मिलता है।

हाँ, लेकिन यह भी है कि कला, नृत्य, संगीत, भोजन, दर्शन, लेखन, कवित्त, इत्यादि में इस नगरी का सानी नहीं। फिर भी गज़ब का विरोधाभास लिए हुए है यह नगरी! शायद ‘चिराग तले अँधेरा’ वाली कहावत इसी नगरी को देख कर कही गई हो?

ख़ैर… बात अपने मुद्दे से अलग हट गई है।

“मैं” कौन है? और गुड्डी कौन? बातों से विवाहित जोड़ा लग रहे हैं, जो शायद शादी के बाद की पहली होली मनाने गुड्डी के मायके आए हैं? फाल्गुन मास आनंद और उल्लास का माह है - सर्दी कम होती है, और गर्मी धीरे धीरे शुरू होती है! एक महीना! वसंत ऋतु का पहला महीना! और शादी के बाद की पहली होली! ससुराल में! सालियों के साथ! वाह! वाह!! बहुत बढ़िया ख़ाका खींचा है आपने कहानी का। शायद इसी पर है आधारित यह उपन्यास?

यार हाथी घूमे गाँव-गाँव जिसका हाथी उसका नाम। तो रहोगे तो तुम मेरे ही। किसी से कुछ। थोड़ा बहुत। बस दिल मत दे देना…”; “वो तो मेरे पास है ही नहीं कब से तुमको दे दिया…”; “ठीक किया। तुमसे कोई चीज संभलती तो है नहीं। तो मेरी चीज है मैं संभाल के रखूंगी।” ---- बहुत बढ़िया कोमल जी, बहुत बढ़िया!

सामने जोगीरा चल रहा था” -- बाप रे! कितने वर्ष बीत गए ये शब्द सुने! वाह! “नदिया के पार” फिल्म का “जोगी जी” गाना याद आ गया! वाह!

गुंजा! पुनः, नदिया के पार वाली हिरोइन का नाम!

ओफ़्फ़! इतना द्विअर्थी संवाद! लेकिन मैंने सुना है यह - और पूरबिया लोगों के ही मुँह से! शायद उन्ही पर अच्छी भी लगती है यह / ऐसी भाषा! और ऐसी ही होली देखी भी है। मेरी चचेरी बड़ी बहन की ससुराल उसी तरफ़ है। उस दिन दीदी की ननदों ने इतनी नंगई मचाई थी, कि अगर सभ्य बना रहता, तो नंगा कर देतीं वो! एक ननद को ज़मीन पर पटक कर उस पर चढ़ बैठा, तब जा कर पीछा छोड़ा स्सालियों ने मेरा, कि ये तो मार मार कर मलीदा बना देगा! 😂

लेकिन वो पागल हो गई थी, दहक उठी थी। दिन सोने के तार से खींचते गए।” -- अद्भुत! क्या लिखा है आपने!

अब यह उपन्यास पढ़े बिना नहीं रह सकता। पूरा करना ही पड़ेगा! धीरे धीरे ही सही। और मुझको विश्वास है कि आपकी लेखनी से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा!
अपने भुगते अनुभव से आपने काफी कुछ अवधारणा बना ली है...
 

motaalund

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क्या मस्त होली है दो रसीली कन्याओं के बीच हमारे आनन्द एक आगे से रगड़ रही है और दूसरी बीच से रगड़ रही है आनंद ने साली और बीवी के साथ मुंह काला और सफेद करवा ही लिया चंदा भाभी का आनंद की बहन के बारे में बाते न करे ये हो ही नहीं सकता ।आनंद ने तो आगे से पीछे से भरपूर रगड़वा लिया लेकिन उसके हाथ रीत के खजाने पर थे लेकिन बुद्धू ने कुछ नहीं किया आजकल के लौंडे ऐसा मौका मिले और ऐसे खाली छोड़ दे मुमकिन ही नही है

रसीली साली को देखकर आनंद का दिमाग चाचा चौधरी की तरह काम कर रहा है साली के फड़फड़ा रहे कबूतरो को पकड़ कर अच्छी तरह रगड़ दिया है
सजनी दूर खड़ी इंतजार कर रही है कि उसका नंबर कब आएगा?
उसका तो रात का प्रोग्राम तय है...
 

motaalund

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वैसे तो रीत ग्रेजुएशन कर रही है लेकिन कॉमर्स में हाँ काम रस में तो वो सीधे पी एच डी करेगी
और गाइड भी करेगी...
 

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सजनी का भी नंबर आ गया साली ने कह दिया है कि उसके निशान से ज्यादा निशान होने चाहिए अब तो आनंद को साली की बात माननी पड़ेगी साली पर तो पूरा कब्जा हो गया है सजनी के खजाने में कलर का खजाना मिल गया है आनंद के तो मजे हो गए
यही तो मजा है बनारस का...
 

motaalund

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दुबे भाभी से तो सब डर गए लेकिन आनंद ने अपनी साली और सजनी का बचाव कर लिया दुबे भाभी की बातो से लगता है वो भी बहती गंगा में डुबकी लगाने वाली है गुड्डी तो तेज निकली अपने सैया के चहरे पर पहले ही तेल लगा दिया ताकि रंग पक्का ना हो लेकिन दुबे भाभी के सामने उनकी चालाकी पकड़ी गई दुबे भाभी चिकने की अब तो मस्त रगड़ाई करने वाली है
मैंने चिढ़ाया- “हे रीत, मैंने तेरी ब्रा के अन्दर कबूतरों के पंख लाल कर दिए थे, उन्हें भी सफेद कर दूँ फिर से… क्या बात कही है आनंद ने

बेचारी रीत की तो किस्मत ही खराब है जब भी करते हैं कोई न कोई आ टपकता है
पर ऐसी साली जरूर होनी चाहिए करे तीन बार और गिने एक बार
बहुत ही शानदार लाजवाब और मजेदार अपडेट था
आखिर पुराना याराना जो ठहरा...
 

motaalund

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शमशेर बहादुर सिंह की एक मशहूर कविता की पंक्तिया याद आ गयीं,

बात बोलेगी, हम नहीं।
भेद खोलेगी ,बात ही।

तो आप ऐसे मूर्धन्य, प्रखर लेखक/पाठक और रचना के बीच मैं नहीं पड़ने वाली। गुड्डी कौन है, आनंद कौन, क्या रिश्ता और भी बातें, यह कहानी खुद आप से बैठ के बतियायेगी, अभी आप ने जो पढ़ा है वो कुछ झलकियां है। आप ने यह बात एकदम सही कहा की कलेवर इसका उपन्यास का ही है, और सिर्फ बनारस ही नहीं और शहर भी इसमें घटना स्थल ही नहीं पात्र भी हैं।

इक्लेयर वाली चॉकलेट होती हैं तो बस, ऊपर हो सकता है कभी हार्ड कोर इरोटिका दिखे, कभी थ्रिलर, लेकिन अंदर छिपा हुआ रोमांस का स्वाद भी रससिद्ध पाठको को मिलता रहेगा और रोमांस वो, जो जिजीविषा भी है, संघर्ष भी और एक जिद्द भी है। लेकिन ये सब बातें कहानी खुद कहे तो ज्यादा अच्छा।

मैं और मेरी कहानी धन्य है आपके आने से इस कथा के आंगन में। बस उम्मीद करुँगी की जीवन की आपाधापी में, व्यस्तताओं में आप गुड्डी, आनंद और बाकी पात्रों का साथ देंगे, और अपनी बात कहेंगे।

हाँ, मुझसे या कहानी से सीखने की बात बस आपका बड़प्पन कह सकती हूँ।

एक बार फिर से आभार नमन।
आपके कमेंट भी उतने हीं शानदार होते हैं....
 

motaalund

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कोमल जी, आप मुझको ऐसे चने के झाड़ पर न चढ़ाईए!
मामूली सा लिखने वाला हूं। कुछ कुछ लिख लेता हूं कभी कभी। इसी फोरम पर इतने सारे बढ़िया लिखने वाले उपस्थित हैं। इसलिए आपसे सीखने की बात कही!
अगर पहला ही पृष्ठ इतना बढ़िया है, तो आगे तो क्या ही होगा 🙂👌 मुझे यकीन है कि जीवन के सभी रंग देखने को मिलेंगे इस उपन्यास में।
आपकी इस कहानी से बहुत देर में जुड़ रहा हूं, इसलिए ऐसे कुसमय कमेंट्स आते रहेंगे मेरे। आप लिखती रहें। आप भी मेरी पसंदीदा लेखकों में शामिल हैं अब 🙏
नव रंग हीं नहीं... दशावतार पिक्चर की तरह दस रोल.. बल्कि व्हाट इज माई राशि की तरह बारह रोल....
 
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motaalund

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कोमल मैम

वास्तविकता यह है कि गाने के बोल पढ़ कर, कैसे गाया जाता है या गाया जायेगा ?? इसका पता ही नहीं चलता है। विडियो से गाने के बोल सुनकर ही पता चलता है।

आपकी कहानियां केवल कहानियां ही नहीं होती अपितु हर प्रकार से ज्ञान का संवर्धन करती हैं।

पुनः हार्दिक आभार।

सादर
और डिस्क्रिप्शन ऐसा कि जैसे आस पास हीं घटित हो रहा है....
 
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