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Erotica फागुन के दिन चार

motaalund

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बहुत बहुत धन्यवाद कोमल जी 🙏🙏
मेरी जो कहानियां समाप्त (पूरी) हो गई थीं, उनका थ्रेड बंद करवा दिया। एक कहानी पर वाहियात टिप्पणियां आने लगी थीं, और मेरा दोबारा वही सब स्पष्टीकरण देने का न तो मन हुआ और न ही कोई आवश्यकता महसूस हुई।
केवल श्राप कहानी का थ्रेड खुला हुआ है। इसका एक आखिरी अपडेट लिखना है।
आज कल थोड़ी व्यस्तता है, इसलिए कुछ नहीं पढ़ पा रहा हूं। आपकी कहानी पढ़ने के लिए थोड़ा समय चाहिए 🙂🙂
हर तरह के पाठक मिलेंगे...
JKG का एक पाठक तो नाम या आईडी बदल बदल कर अनर्गल पोस्ट करता रहता था...
सो ये भी सोशल मीडिया का पार्ट है...
 

motaalund

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आनंद की चचेरी बहन की नथ उतराई का मौका आनंद को मिला है और इसकी जिम्मेदारी गुड्डी को दी है अब तो गुड्डी ने भी कह दिया है कि वह पकड़ के डलवाएगी वोडका और भांग मिले रसगुल्ले का रस अंदर और बाहर मस्तियां शुरू
चचेरी नहीं ममेरी...
 

motaalund

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बहुत ही मजेदार और लाज़वाब अपडेट है रीत ने तो जबरदस्त डांस किया है आनंद बाबू ने भी धमाल कर दिया है ये सब मस्त रसीली साली, वोडका और पावर वाले रसगुल्ले का कमाल है
होली और भांग तो पर्याय बन गए हैं....
 

motaalund

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फागुन के दिन चार भाग १४

संध्या भाभी
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सामने संध्या भाभी, अपने हथेलियों में मुझे दिखाकर लाल रंग मल रही थी।

उनकी ट्रांसपरेंट सी साड़ी में उनका गोरा बदन झलक रहा था। भारी जोबन खूब लो-कट ब्लाउज़ से निकलने को बेताब थे। शायद विवाहित औरतों पे एक नए तरह का हो जोबन आ जाता है। वही हालत उनकी थी। चूतड़ भी खूब भरे-भरे।

देख कर हालत खराब हो रही थी मेरी बस मैंने सोच लिया आज कुछ भी हो जाये, और ऊपर झापर से नहीं, सीधे गपागप, गपागप, एक तो उमर में मेरी समौरिया, २२-२३ के बीच, मुझसे दो चार महीने बड़ी या छोटी, फिर शादी के बाद, जैसे कोई शेरनी आदमखोर हो जाए, उसके मुंह खून लग जाए, उस स्वाद के बाद सब भूल के, वही हालत नयी नयी शादी वाली, और संध्या भाभी को देख के लग रहा था, उनके पोर पोर से रस चू रहा था, जैसे किसी हारमोन की मादक महक आये, और आदमी बस उसी के महक में बहता, बहकता चला जाए,



और हालत संध्या भाभी की भी कम खराब नहीं थी,

साल भर भी नहीं हुए थे शादी के और शादी के बाद तो कोई दिन नागा नहीं जाता था, एक दिन भी गुलाबो को उपवास नहीं करना पड़ा, लेकिन मायके आये हफ्ते भर हो गया और, ऊपर से पांच दिन वाली छुट्टी कल खतम हुयी और उस दिन तो एकदम नहीं रहा जाता। इस चिकने पर निगाह पड़ते ही उन्होंने फैसला कर लिया था, आज छोडूंगी नहीं इस स्साले को, कुछ सोच के ऊपर वाले ने उपवास तोड़ने के लिए आहार भेजा है, थोड़ा नौसिखिया है, कुछ आगे बढ़ना होगा खुद और तब भी बात नहीं बनेगी तो सीधे ऊपर चढ़ के हुमच हुमच के, देखने से ही लम्बी रेस का घोडा लगता है, और फिर नयी उमर की नयी फसल के साथ तो और मजा आता है, स्साला चिचियाता रहेगी, मैं पेलती रहूंगी, लेकिन बिना पेले छोडूंगी नहीं।

“तुम दोनों रगड़ लो फिर मैं आती हूँ। इन्हें बनारस के ससुराल की होली का मजा चखाने…” वो मुश्कुराकर रीत और गुड्डी से बोली।



“ना, आ जाइए आप भी ना,... थ्री-इन-वन मिलेगा इनको…”
रीत और गुड्डी साथ-साथ बोली।


दूबे और चंदा भाभी बैठकर रस ले रही थी लेकिन कब तक? दूबे भाभी अपने अंदाज में बोली-

“अरे इस गंड़वे को तो एक साथ दो लेने की बचपन से आदत है। एक गाण्ड में एक मुँह में…”



“अरे इस बिचारे को क्यों दोष देती हैं, साली छिनार चुदक्कड़ इसकी मायकेवालियां। मरवाना, डलवाना, पेलवानातो इस साले बहनचोद के खून में है हरामी का जना…रंडी का छोरा “

भांग अब चंदा भाभी को भी चढ़ गई थी।



संध्या भाभी आ गई रीत और गुड्डी के साथ।

लेकिन मुझे बचने का रास्ता मिल गया।

गुड्डी ने थोड़ा हटकर उन्हें जगह दी मेरे चेहरे पे रंग मलने के लिए, वैसे भी वो दोनों शैतान अब कमर के नीचे इंटरेस्ट ज्यादा ले रही थी।

दोनों और साइड में हो गई। बस यहीं मुझे मौका मिला गया।



रंग वंग तो मेरे पास था नहीं। लेकिन संध्या भाभी की गोरी-गोरी पतली कमरिया, किसी इम्पोर्टेड कमरिया से भी ज्यादा सेक्सी रसीली थी। उनका गोरा चिकना पेट कुल्हे के भी नीचे बंधी साड़ी से साफ खुला था और मेरे दोनों हाथ बस अपने आप पहुँच गए। संध्या भाभी के हाथ तो मेरे गालों पे बिजी हो गए और इधर मेरे हाथों ने पहले तो उनकी पतली कमरिया पकड़ी और फिर चुपके से साए के अन्दर फँसी साड़ी को हल्के-हल्के निकालना शुरू कर दिया। काफी कुछ काम हो चुका था तब तक मेरी आँखें उनकी चोली फाड़ती चूचियों पे पड़ी और मेरे लालची हाथ पेट से ऊपर, लाल ब्लाउज़ की ओर।

औरत को और कुछ समझ में आये ना आये लेकिन मर्द की चाहे निगाह ही उसके उभारों की ओर पड़ती है तो वो चौकन्नी हो जाती है, और यही हुआ।

इस आपाधापी में गुड्डी और रीत की पकड़ भी कुछ हल्की हो चुकी थी।

संध्या भाभी ने मेरा हाथ रोकने की कोशिश की।

मेरे एक हाथ में उनके आँचल का छोर था। मैंने उसे पकड़ा और कसकर झटका मारकर तीनों की पकड़ से बाहर। जब तक संध्या भाभी समझती समझती, मैंने उनके चारों ओर एक चक्कर मार दिया। साये से तो साड़ी मैं पहले ही निकाल चुका था, और उनकी साड़ी मेरे हाथ में।

संध्या भाभी, सिर्फ एक छोटी सी खूब टाइट लाल चोली और कूल्हे के सहारे खूब नीचे बांधे साये में , नाभी से कम से कम एक बित्ते नीचे, बस चार अंगुल और नीचे, और भाभी की राजरानी से मुलकात हो जाती।



और मैं। बस बेहोश नहीं हुआ। क्या मस्त जोबन लग रहे थे, एकदम तने खड़े, उभार चुनौती देते। मैंने तय कर लिया इन उभारों को सिर्फ पकड़ने मसलने से नहीं चलेगा, जब तक इन्हे पकड़ के, मसलते हुए, हुमच हुमच कर, गंगा स्नान नहीं किया,एकदम अंदर तक डुबकी नहीं लगायी, तो सब बेकार। भांग का नशा तो तगड़ा होता ही है लेकिन उसके ऊपर अगर जोबन का नशा चढ़ जाए तो फिर तो कोई रोक नहीं सकता कुछ होने से।

और ऊपर से मेरी हालत संध्या भाभी भी समझ रही थीं, वो और कभी अपने जोबन उभार कर, कभी झुक के, क्लीवेज दिखा के, ललचा भी रही थीं, उकसा भी रही थीं और बता भी रही थी की वो खुद छुरी के नीचे आने के लिए तैयार हैं।

और पल भर बाद जब मैं होश में आया तो मैंने संध्या भाभी से बोला,

“भाभी इत्ती महंगी साड़ी कहीं रंग से खराब हो जाती। मैं नहीं लगाता लेकिन आपकी इन दोनों बुद्धू बहनों का तो ठिकाना नहीं था ना…” मैंने रीत और गुड्डी की ओर इशारा करके कहा।



वो दोनों दूर खड़ी खिलखिला रही थी।



“फिर होली तो भाभी से खेलनी है उनके कपड़ों से थोड़े ही…” बहुत भोलेपन से मैं बोला।


बिचारी संध्या भाभी शर्माती, लजाती और,... ब्लाउज़ साए में लजाते हुए वो बहुत खूबसूरत लग रही थी। उनके लम्बे काले घने बाल किसी तेल शम्पू के विज्ञापन लग रहे थे और पल भर के लिए वो झुकी अपने साए को थोड़ा ऊपर करने की असफल कोशिश करने तो, उनका ब्लाउज़ इत्ता ज्यादा लो-कट था की क्लीवेज तो दिखा ही, निपलों तक की झलक नजर आ गई।

मैं तो पत्थर हो गया- खासतौर पे 8” इंच तक।


साया भी इतना कसकर बंधा था की नितम्बों का कटाव, जांघ की गोलाइयां सब कुछ नजर आ रही थीं। अब तक तो मैं बिना हथियार बारूद के लड़ाई लड़ रहा, लेकिन मैंने सोचा थोड़ा रंग वंग ढूँढ़ लिया जाय। मैंने इधर-उधर निगाह दौड़ाई, कहीं कुछ नजर नहीं आया।
देख कर हालत खराब हो रही थी मेरी बस मैंने सोच लिया आज कुछ भी हो जाये, और ऊपर झापर से नहीं, सीधे गपागप, गपागप, एक तो उमर में मेरी समौरिया, २२-२३ के बीच, मुझसे दो चार महीने बड़ी या छोटी, फिर शादी के बाद, जैसे कोई शेरनी आदमखोर हो जाए, उसके मुंह खून लग जाए, उस स्वाद के बाद सब भूल के, वही हालत नयी नयी शादी वाली, और संध्या भाभी को देख के लग रहा था, उनके पोर पोर से रस चू रहा था, जैसे किसी हारमोन की मादक महक आये, और आदमी बस उसी के महक में बहता, बहकता चला जाए,
ये फेरोमोन हीं है जो दूर से हीं मादा प्रजाति के शरीर से निकल कर उस गंध को पहुँचाती है....
कुछ में ये घ्राण शक्ति बहुत तीक्ष्ण होती है...
आनंद बाबू शायद इस शक्ति से लबरेज हैं....
 

motaalund

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संध्या भाभी संग होली

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“क्या ढूँढ़ रहे हो लाला?” हँसकर दूबे भाभी ने पूछा।



“रंग वंग। कुछ मिल जाय…” मैंने दबी जुबान में कहा।



दूबे भाभी गुड्डी और चंदा भाभी से कम नहीं थीं। जैसे वो दोनों, गुड्डी और रीत मुझे चढ़ा रहीं थी, ससुराल है चढ़ने के पहले पूछने की कोई जरूरत नहीं, उसी तरह दूबे भाभी तो उन दोनों से भी एक हाथ आगे, मुझे ग्रीन सिग्नल देते, अपने अंदाज में बोलीं,

“अरे लाला तुम ना। रह गए। बिन्नो ठीक ही कहती है तुम न तुम्हें कुछ नहीं आता सिवाय गाण्ड मराने के और अपनी बहनों के लिए भंड़ुआगीरी करने के। अरे बुद्धुराम ससुराल में साली सलहज से होली खेलने के लिए रंग की जरूरत थोड़े ही पड़ती है। अरे गाल रंगों काटकर, चूची लाल करो दाब के और। …”

आगे की बात चंदा भाभी ने पूरी की- “चूत लाल कर दो चोद-चोद के…”

लेकिन साथ-साथ ही उन्होंने अपनी बड़ी-बड़ी कजरारी आँखों से इशारा भी कर दिया की रंग किधर छुपाकर रखा है उन सारंग नयनियों ने।



गुझिया के प्लेटे के ठीक पीछे पूरा खजाना। रंग की पुड़िया, डिब्बी, पेंट की ट्यूब इतनि की कई घर होली खेल लें।

और मैंने सब एक झटके में अपने कब्जे में कर लिया और फिर आराम से पक्के लाल रंग की ट्यूब खोलकर संध्या भाभी को देखते हुए अपने हाथ पे मलना शुरू कर दिया।



“ये बेईमानी है तुमने मेरी साड़ी खींच ली और खुद…” संध्या भाभी ने ताना दिया।

“अरे भाभी आप ने अभी भी ऊपर दो और नीचे दो पहन रखे हैं। मैंने तो सिर्फ दो…” हँसकर मैं बोला।

" तो उतार दो न, बिन्नो मना थोड़े ही करेंगी, तुमने साडी उतारी उन्होंने मना किया क्या, अरे कुछ भी करोगे तो मेरी ननद नहीं मना करेंगी आज "

चंदा भाभी ने मुझे चढ़ाया, आखिर संध्या भाभी उनकी ननद लगती थीं और ननद की रगड़ाई हो, खुलेआम हो ये तो हर भाभी चाहती है।

रंग अब संध्या भाभी के हाथ में भी था और मेरे भी। बस इसू यही था। कौन पहल करे?

भाभी ने पहले तो टाप से निकलती मेरी बाहों की मछलियां देखीं और फिर जो उनकी निगाह मेरे बर्मुडा पे पड़ी। तम्बू पूरी तरह तना हुआ था।

जिम्मेदार तो वही थी, बल्की उनके चोली फाड़ते गोरे गदाराए मस्त जोबन ‘सी’ बल्की ‘डी’ साइज रहे होंगे, और यहीं उन्होंने गलती कर दी।

उनका ध्यान वहीं टिका हुआ था और मैं एक झटके में उनके पीछे और मेरे दायें हाथ ने एक बार में ही उनके हाथों समेत कमर को जकड़ लिया।



अब वो बिचारी हिल-डुल नहीं सकती थी। मेरा रंग लगा बायां हाथ अभी खाली था।

लेकिन मुझे कोई जल्दी नहीं थी। मैं देख चुका था अपने तन्नाये लिंग का उनपर जादू। अपने दोनों पैरों के बीच मैंने उनके पैर फँसा दिए कैंची की तरह। अब वो हिल डुल भी नहीं सकती थी। मेरा तना मूसल अब सीधे उनके चूतड़ की दरार पे। और हल्के-हल्के मैं रगड़ने लगा। इस हालत में ना तो रीत और गुड्डी देख सकती थी, ना चन्दा और दूबे भाभी की मैं क्या कर रहा हूँ।



“क्या कर रहे हो?” संध्या भाभी फुसफुसाईं।



“वही जो ऐसी सुपर मस्त और सेक्सी भाभी के साथ होली में करना चाहिए…” मैं बोला।

“मक्खन लगाने में तो उस्ताद हो तुम…” वो मुश्कुराकर बोली फिर मेरी ओर मुड़कर मेरी आँखों में अपनी बड़ी-बड़ी काजल लगी आँखें डालकर हल्के से बोली- “और वो जो तुम पीछे से डंडा गड़ा रहे हो, वो भी होली का पार्ट है क्या?”

“एकदम। मैं आपको अपनी पिचकारी से परिचय करा रहा हूँ…” मैं भी उसी तरह धीमे से बोला।

“भगवान बचाए ऐसी पिचकारी से। ये रीत और गुड्डी को ही दिखाना…”


“अरे वो तो बच्चियां हैं। पिचकारी का मजा लेने की कला तो आपको ही आती है…” मैंने मस्का लगाया।

“जरूर बच्चियां हैं, लपलपाती रहती हैं, तुम्हीं बुद्धू हो सामने पड़ी थाली। और जरा सा जबरदस्ती करोगे तो पूरा घोंट लेंगी…” वो बोली।

मैंने गाण्ड की दारार में लिंग का दबाव और बढ़ाया और अपनी रंग से डूबी दो उंगलियां उनके चिकने गालों पे छुलाते मैं बोला-

“लेकिन भाभी मुझे तो मालपूवा ही पसंद है…”

और रंग से दो निशान मैंने उनके गोरे गाल पे बना दिया लेकिन मेरी निगाह तो उनके लो-कट ब्लाउज़ से झाँकते दोनों गोरी गोलाइयों पे टिकी थी। क्या मस्त चूचियां थी। और मेरा हाथ सरक के सीधे उनकी गर्दन पे।

“ऊप्स क्या करूँ भाभी आपके गाल ही इतने चिकने हैं की मेरा हाथ सरक गया…” मैं बोला।

वो मेरी शरारत जानती थी।

लाल ब्लाउज़ लो-कट तो था ही आलमोस्ट बैकलेश भी था। सिर्फ एक पतली सी डोरी पीछे बंधी थी और गहरा गोल कटा होने से सिर्फ दो हुक पे उन भारी गदराये जोबनों का भार। ब्रा भी लेसी जालीदार हाल्फ कप वाली।



उन्होंने रीत और गुड्डी को साथ आने की गुहार लगाई-


“हे आओ ना तुम दोनों। हम मिलकर इनकी ऐसी की तैसी करेंगे ना…” संध्या भाभी बोली।



मैं उनके पीछे खड़ा था वहीं से मैंने रीत को आँख मारी और साथ आने से बरज दिया। गुड्डी पहले से ही चन्दा भाभी के पास चली गई थी किसी काम से।

रीत मुश्कुराकर बोली- “अरे आप काफी हैं और वैसे भी मैं तो सुबह से इनकी खिंचाई कर रही हूँ। जहाँ तक गुड्डी का सवाल है वो तो अगले पूरे हफ्ते इनके साथ रहेगी। इसलिए अभी आप ही। वरना कहेंगी की हिस्सा बटाने पहुँच गई…”

और ये कहकर उसने थम्स-अप का साइन चुपके से दे दिया।

अगले ही पल मेरा हाथ फिसल के चोली के अन्दर और चटाक-चटाक दो हुक टूट गए।

क्या स्पर्श सुख था, जैसे कमल के ताजा खिले दो फूल। ब्लाउज़ बस उनके उभारों के सहारे अटका था। मेरे हाथ का रंग पूरी तरह जालीदार शीयर लेसी ब्रा से छनकर अन्दर और उनके दोनों गोरे-गोरे कबूतर लाल हो गए। उनकी ब्राउन चोंचें भी साफ-साफ दिख रही थीं। मेरे हाथ अपने आप उन मस्त रसीले जवानी के फूलों पे भींच गए। एकदम मेरी मुट्ठी के साइज के, रीत से बस थोड़े ही बड़े, एकदम कड़े-कड़े।



वो सिसकी और बोली- “क्या कर रहे हो सबके सामने?” और उन्होंने एक बार फिर मदद के लिए रीत की ओर देखा।



लेकिन रीत , वो बस मुश्कुरा दी। मदद आई लेकिन दूसरी ओर से। मेरे पीछे से। वो तो कहिये मेरी छठी इन्द्रिय ने मेरा साथ दिया।

मैंने आँख के किनारे से देखा की चंदा भाभीअन्दर से, एक बाल्टी रंग के साथ , पूरी की पूरी बाल्टी भाभी ने मेरी ओर पीछे से।

अब चंदा भाभी भी होली में शामिल हो गयी थीं।

लेकिन मैं मुड़ गया और रंग भरी बाल्टी और मेरे बीच संध्या भाभी, और सारा का सारा रंग उनके ऊपर।

पूरा गाढ़ा लाल रंग। साड़ी तो मैंने पहले ही खींचकर दुछत्ती पे फेंक दी थी। रंग सीधे साए पे और वो पूरी तरह उनकी गोरी चिकनी जाँघों, लम्बे छरहरे पैरों से चिपक गया। अब कल्पना करने की कोई जरूरत नहीं थी। सब कुछ साफ-साफ दिख रहा था। रंग पेट से बह के साए के अन्दर भी चला गया था। इसलिए जांघों के बीच वाली जगह पे भी। अन्दर रंग, बाहर रंग।



चंदा भाभी के हाथ में ताकत बहुत थी और उन्होंने पूरी जोर से रंग फेंका था। सबसे खतरनाक असर ऊपर की मंजिल पे हुआ, बचा खुचा ब्लाउज़ का आखिरी हुक भी चला गया। दोनों जोबन ब्रा को फाड़ते हुए और ब्रा भी एक तो जालीदार और दूसरी लगभग ट्रांसपैरेंट। जैसे बादल की पतली सतह को पार करके पूनम के चाँद की आभा दिखे बस वैसे ही। लेकिन उनकी गुदाज गदराई चूचियां थोड़ी बच गईं क्योंकी वो मेरे हाथों के कब्जे में थी।



“थैंक यू भाभी…” मैंने चन्दा भाभी की ओर देखकर उन्हें चिढ़ाते हुए मुश्कुराकर कहा।



“बताती हूँ तुम्हें अपनी भाभी के पीछे छिपते हो। शर्म नहीं आती…” वो हँसकर बोली।
दूबे भाभी और चंदा भाभी ने होली कैसे खेलना चाहिए इसका ज्ञान दे दिया....

“वही जो ऐसी सुपर मस्त और सेक्सी भाभी के साथ होली में करना चाहिए…” मैं बोला।

“मक्खन लगाने में तो उस्ताद हो तुम…” वो मुश्कुराकर बोली फिर मेरी ओर मुड़कर मेरी आँखों में अपनी बड़ी-बड़ी काजल लगी आँखें डालकर हल्के से बोली- “और वो जो तुम पीछे से डंडा गड़ा रहे हो, वो भी होली का पार्ट है क्या?”

पिचकारी बिना होली कैसी...
 

motaalund

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होरी देह की
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“अरे भाभी पिछवाड़े का अलग मजा है…”

ये कहते हुए मेरा एक हाथ सीधा संध्या भाभी के नितम्बों पे। उसे खींचकर मैंने उन्हें अपने साथ और सटा लिया और अब मेरा खड़ा खूंटा सीधे उनकी पीछे की दरार में, रंग से साया चिपकने से दरार भी साफ झलक रही थी।

“और क्या तेरे जैसे लौंडे, चिकने गान्डूओं से ज्याद किसको पिछवाड़े का मजा मालूम होगा…” दुबे भाभी अब खड़ी हो गई थी।

रीत बिचारी को क्या मालूम था की अगला निशाना वो ही है।

पीछे से दूबे भाभी ने उस बिचारी का हाथ पकड़ा और चंदा भाभी ने उसके उभार दबाते हुए कहा-

“अरे रानी आज होली में भी इसको छिपा रखा है। दिखाओ ना क्या है इसमें, जिसके बारे में सोच-सोचकर मेरी ननद का नाम ले लेकर, सारे बनारस के लौंडे मुट्ठ मारते हैं…”



बिचारी रीत कातर हिरनी की तरह मेरी ओर देख रही थी, लेकिन चन्दा भाभी और दूबे भाभी की पकड़ से बचना, मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था।



इधर संध्या भाभी ने भी उस उहापोह का फायदा उठाते हुए ब्रा में घुसे हुए मेरे लालची हाथों को कसकर दबोच लिया।



मैं बुद्धू तो था लेकिन इतना नहीं।

मैं समझ गया की ये अपने उरोज बचाने के लिए नहीं बल्की मेरे हाथों से उस यौवन कलश का रस लूटने के लिए उसे उसके ऊपर दबा रही हैं।


मैं कौन होता था मना करने वाला। मैं भी कसकर गदराये रसीले 34सी का मजा लूटने लगा। नुकसान सिर्फ एक हुआ की मैं रीत की मदद को नहीं जा पाया। लेकिन वो भी शायद फायदा ही हुआ।


रीत को दूबे भाभी और चंदा भाभी ने मिलकर टापलेश कर दिया था। पूरी तरह नहीं लेकिन सिर्फ अब वो ब्रा में थी और अपनी प्यारी पाजामी में। उसकी लेसी ब्रा से मैंने जो उसके जोबन पे अपनी उंगलियों के निशान छोड़े थे साफ नजर आ रहे थे। दूबे भाभी ने पहले उन निशानों की ओर देखा फिर मेरी ओर, मुश्कुराने लगी मानो कह रही हों की लाला तुम इतने सीधे नहीं जितने बनते हो।


मेरा भी एक हाथ संध्या भाभी के उभार पे था और दूसरा साए के भीतर सीधे उनके नितम्ब पे, क्या मस्त कसे-कसे चूतड़ थे। हाथ की एक उंगली अब सीधे दरार पे पहुँच गई थी। बाहर से मेरा खूंटा तो पीछे से गड़ा ही हुआ था। मैं मौके का फायदा उठाकर हल्के-हल्के जोबन और नितम्ब दोनों का रस लूट रहा था।

क्या मस्त चूतड़ थे, संध्या भाभी के, गोल गोल, एकदम कड़े पर खूब मांसल, रंग लगाने के साथ साथ मेरी उँगलियाँ कभी उन्हें सहलाती तो कभी कस के दबोच लेतीं। एक हाथ चोली के अंदर जोबन का न सिर्फ स्पर्श सुख महसूस कर रहा था बल्कि रंग भी रहा था, रगड़ भी रहा था और मसल भी रहा था।


लेकिन संध्या भाभी, रीत या गूंजा नहीं थीं, वो ब्याहता, देह सुख ले चुकी, और मुझसे बहुत आगे, भले ही मैंने उन्हें दबोच रखा था, लेकिन हाथ तो भौजी के खाली थे। एक हाथ पीछे कर के, नहीं उन्होंने बारमूडा के ऊपर से खूंटे को नहीं पकड़ा, सीधे बारमूडा के अंदर और कस के मेरे मूसलचंद को मुठियाने लगीं ( वो तो बाद में पता चला की वो एक पंथ दो काज कर रही थीं, मेरे बांस को मुठिया भी रही थीं और अपने हाथ में पहले से लगी कालिख से उसका मुंह भी काला कर रही थीं ।) क्या मस्त पकड़ थी एकदम जबरदस्त, पहले से बौराया, अब एकदम पागल हो गया , संध्या भाभी के हाथ की छुअन पाके ख़ुशी से फूल गया।

लेकिन संध्या भाभी इतने पर नहीं रुकीं, बोलीं,

" लाला, जब तक चमड़े से चमड़े की रगड़ाई न हो का देवर भाभी की होली। "

और जब तक मैं समझूं मेरे बारमूडा सरक के घुंटनों तक, मूसल चंद आजाद।

मैं क्यों पीछे रहता, मैंने भी पीछे से भाभी का साया उठा दिया, और पैंटी का कवच भी नहीं तो जंगबहादुर सीधे भौजी के नितम्बो के बीच, बस एक दो बार उन्होंने दरवाजा खटकाया होगा और संध्या भाभी ने अपनी दोनों टांगों को फैला के रास्ता खोल दिया। मेरा मस्त हथियार, बित्ते भर का एकदम तना दोनों नितम्बो के बीच। और अब भाभी ने दोनों टाँगे कस के पूरी ताकत से भींच ली।

मैं अपना भाला वापस खींचना भी चाहता तो नहीं खींच सकता था और वो कसर मसर कसर मसर कर रहे दोनों चूतड़ों के बीच, भौजी खुद ही उसे रगड़ रही थी और मेरे दोनों हाथ अब चोली के अंदर, जोबन रंग रहे थे।

" औजार तो देवर मस्त है, चलाना भी जानते हो " संध्या भाभी ने फुसफुसा के पूछा।

पीछे से कस के धक्का मारते हुए मैं बोला, " भौजी , मौका दे के तो देखिये "

"लग तो रहा है खड़े खड़े चोद दोगे, " खिलखिला के वो बोलीं, फिर जोड़ा " तू मुझे छोड़ भी दोगे न तो भी मैंने इसे नहीं छोड़ने वाली बिना पूरा अंदर लिए।"

सुपाड़ा मेरा अब भौजी की फांको पे सांकल खटका रहा था, और उसकी सहायता के लिए मेरे दोनों हाथों में से एक जोबन का लालच छोड़ साया के अंदर आगे से,

उफ़ एकदम मक्खन मलाई, दोनों फांके खूब चिपकी, और झांट का निशान तक नहीं। लेकिन मेरे हाथ में रंग लगा था और पहला काम गुलाबो को लाल करने का था और फिर दोनों फांको को हलके से फैला के, बस जरा सा स्वाद, मेरे सुपाड़े को, क्या कोई मर्द धक्का मारेगा जिस तरह संध्या भाभी ने धक्का मारा, हम दोनों की देह एकदम चिपकी

लेकिन हम दोनों को कोई देख भी नहीं रहा था, सब लोग अपने अपने काम में बिजी, रीत की रगड़ाई दूबे भाभी कर रही थी और गुड्डी का रस चंदा भाभी लूट रही थीं।

दूबे भाभी भी पीछे से रीत को पकड़े उसकी ब्रा से झांकते दोनों किशोर उभार, ब्रा उसकी भी लेसी थी। मेरी फेवरिटm पिंक लेसी, पकड़कर मुझे ऐसे दिखा रही थी मानों मुझे आफर कर रही हों।

और फिर ब्रा के ऊपर से उन्होंने रीत के निपल ऐसे अंगूठे और तर्जनी के बीच रोल करने शुरू कर दिए की कोई मर्द भी क्या करता। असर दो पल में सामने आ गया।
रीत सिसकियां भर रही थी। इंच भर के निपल एकदम खड़े हो गए थे। ब्रा के अन्दर से साफ दिख रहे थे। रीत की आँखों में भी मानो फागुन उतर आया था, गुलाबी नशा उन कजरारे नैनों में झलक रहा था।



मैं भी संध्या भाभी के साथ वहीं कस-कसकर जोबन मर्दन, और निपल की पिंचिंग। जो हाथ पीछे थे वो अब आगे गया था और पहले तो मैंने उनके गोरे-गोरे खुले पेट पे खूब रंग लगाया. मस्ती के साथ साथ मेरी और संध्या भौजी की होली भी चल रही थी। मेरे हाथ अब उनके चिकने गोरे पेट पर रंग लगा रहे थे , और खूंटा तो नितम्बो के साथ गुलाबो का भी हल्का हल्का रस ले रहा था , ऊपर से संध्या भौजी की गारियाँ और बातें,

" अरे अपनी बहिनीया के भतार, देखती हूँ आज केतना जोर है तोहरे धक्को में, अगर आज हमरे कूंवा में से पानी निकाल पाए तो मान लूंगी हो तुम गुड्डी के लायक"

यानी मेरा और गुड्डी का चक्कर इनको भी मालूम था और गुड्डी को पाने के लिए मैंने इनके कुंए से क्या पाताल में से पानी निकाल लेता। मेरी रगड़ाई और धक्को का जोर और बढ़ गया।


दुबे भाभी का एक हाथ अब रीत की ब्रा के अन्दर घुस गया था और वो कसकर उसकी किशोर चूचियां मसल रही थी और मुझे दिखाते चिढ़ाते गा रही थी-




अरे मेरी ननदी का, अरे तुम्हारी रीत का, छोट-छोट जोबन दाबे में मजा देय।

अरे मेरी ननदी का, अरे तुम्हारी रीत का, छोट-छोट जोबन दाबे में मजा देय।

अरे ननदी छिनाल चोदे में मजा देय, होली बनारस की रस लूटो राजा होली बनारस की।




पीछे से रीत को वो ऐसे धक्के लगा रही थी की मानो वो कोई मर्द हों और रीत की जमकर हचक-हचक के।



वही हरकत अब मैं सन्धा भाभी के साथ कर रहा था, ड्राई हम्पिंग।

और रीत भी कम नहीं थी। बात टालने के लिए उसने अटैक डाइवर्ट किया। मेरी ओर इशारा करके वो बोली-

“अरे भाभी। इनका जो माल है जिसको ये ले आने वाले हैं अपने साथ उसकी साईज पूछिए ना…”



मैं कुछ बोलता उसके पहले गुड्डी ही बोल पड़ी। लगता है उसने पाला बदल लिया था और भाभियों की ओर चली गई थी। कहा-

“अरे मैं बताती हूँ रीत से थोड़ा सा। बस थोड़ा सा छोटा है…”



चंदा भाभी क्यों चुप रहती। उन्होंने गुड्डी के उभार दबा दिए और बोली-

“अरे रीत को क्यों बीच में लाती है? ननद तो तेरी वो लगेगी और उसकी नथ उतरवाने और यहाँ लाने का काम भी तो तेरे जिम्मे है। बोल तुझसे बड़ा है या छोटा?”

“बस मेरे बराबर समझिये…थोड़ा उन्नीस बीस"

और गुड्डी मेरी ओर देख रही थी और मैं गुड्डी के जुबना की ओर ललचाते, सोचते यार ये हरदम के लिए मिल जाते, गुड्डी का पक्का २० था बल्कि २२।

लेकिन दिल तो मेरा गुड्डी के पास था इलसिए मेरे दिल की बात उसने तुरंत सुन ली और उलटे चंदा भाभी को मेरे पीछे लुहका दिया

" अपने देवर से पूछिए न, जब से इनके माल की कच्ची अमिया आ ही रही थी तब से देख देख के ललचा रहे हैं, और वो एक बार भी कुतरने को भी नहीं दी। एकदम सही साइज मालूम होगी इन्हे "

और गुड्डी ने जिस तरह मुझे देखा हजार रंगो की पिचकारियां छूट पड़ीं। ” वो चंदा भाभी के हाथों से अपने को छुड़ाने की असफल कोशिश करती हुई बोली।

दूबे भाभी के दोनों हाथ अब कसकर रीत की ब्रा में थे, लाल गुलाबी रंग। वो कसकर दबाते मसलते बोली मेरी और देखकर-


“अरे साइज की चिंता मत करो लाला, हफ्ते दस दिन रहेगी ना यहाँ। दबा-दबाकर हम सब। इत्ती बड़ी कर देंगे की फिर उसके इत्ते यार हो जायेंगे यहाँ दबाने मसलने वाले की वो गिनना भूल जायेगी…”

मैं समझ गया था की अब चंदा भाभी भी मैदान में आ गई हैं तो। और उधर रीत की हालत भी खराब हो रही थी। कब उसकी ब्रा अलग हो जायेगी ये पता नहीं था। चन्दा भाभी भी उसकी पीठ पे रंग लगा रही थी, बस खाली हुक खोलने की देरी थी या कहीं दुबे भाभी ही फाड़ ही न दें।

रीत और गुड्डी दोनों किशोरियां भाभियों के चंगुल में फंसी थी, होली में सालियाँ भले ही बहाना बना कर, बुद्धू बना कर अपने जीजू के चंगुल से बच जाएँ, ननदें भौजाई के चंगुल से बिना रगड़ाई के नहीं छूट सकती, और अभी तीनो ननदें फंसी थी। रीत दूबे भाभी के कब्जे में, गुड्डी चंदा भाभी के और संध्या भाभी मेरे चंगुल में, लेकिन मैं तो हरदम गुड्डी के साथ और गुड्डी रीत की छोटी मुंहबोली बहन, तो रीत का हुकुम भी नहीं टाल सकता था,



रीत ने मेरी ओर देखा, स्ट्रेटेजिक हेल्प के लिए

रीत ने मेरी आँखों में देखा और मैंने भी उसकी आँखों में। बस एक ही रास्ता था- स्ट्रेटजिक टाइम आउट।



संध्या भाभी ने भी इशारा समझ लिया। थी तो वो भी रीत और गुड्डी की टीम में यानी ननद, और उन्होंने भी मेरी ओर धक्के लगाना बंद कर दिया, पल भर में मेरा बारमूडा ऊपर, उनका पेटीकोट नीचे।



संधि प्रस्ताव मैंने ही रखा- “कुछ खा पी लें, 10-15 मिनट का ब्रेक…” मैंने दूबे भाभी से रिक्वेस्ट की।



“ठीक है लेकिन बस 5-7 मिनट…” दूबे भाभी मान गई।
" लाला, जब तक चमड़े से चमड़े की रगड़ाई न हो का देवर भाभी की होली। "
ये लाइन हीं सवा लाख की लाइन है...
 

motaalund

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स्ट्रेटेजिक टाइम आउट

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रीत ने मेरी ओर देखा, स्ट्रेटेजिक हेल्प के लिए

रीत ने मेरी आँखों में देखा और मैंने भी उसकी आँखों में। बस एक ही रास्ता था- स्ट्रेटजिक टाइम आउट।

संध्या भाभी ने भी इशारा समझ लिया। थी तो वो भी रीत और गुड्डी की टीम में यानी ननद, और उन्होंने भी मेरी ओर धक्के लगाना बंद कर दिया, पल भर में मेरा बारमूडा ऊपर, उनका पेटीकोट नीचे।

संधि प्रस्ताव मैंने ही रखा- “कुछ खा पी लें, 10-15 मिनट का ब्रेक…” मैंने दूबे भाभी से रिक्वेस्ट की।

“ठीक है लेकिन बस 5-7 मिनट…” दूबे भाभी मान गई।

रीत सीधे टेबल के पास जहां गुझिया गुलाब जामुन, दही बड़े, ठंडाई और कोल्ड ड्रिंक्स सारे स्पायिकड। वोदका, रम और जिन मिले हुए, पहुँची और पीछे-पीछे मैं।


रीत की एक लट गोरे गाल पे आ गई थी। कहीं लाल, कहीं गुलाबी रंग और थोड़ी लज्जा की ललाई उसके गाल को और लाल कर रहे थे। होंठ फड़क रहे थे कुछ कहने के लिए और बिना कहे बहुत कुछ कह रहे थे।

मैंने उसके कंधे पे हाथ रख दिया। हाफ कप ब्रा से उसके अधखुले उरोज झाँक रहे थे, जिसपे मेरे और दूबे भाभी के लगाये रंग साफ झलक रहे थे। गहरा क्लीवेज, ब्रा से निकालने को बेताब किशोर उरोज।

कुछ चिढ़ाते कुछ सीरियसली मैंने पूछा- “हे शर्मा तो नहीं रही हो?”

“शर्माऊं और तुमसे?” वो खिलखिला के हँस दी। कहीं हजार चांदी की घंटियां एक साथ बज उठी।

मेरी बेचैन बेशर्म उंगलियां, ब्रा से झांकती गोरी गुदाज गोलाइयों को सहम-सहम के छूने लगी।

मेरी निगाह गुड्डी पर पड़ गयी और हम दोनों निगाहें टकरा गयी, और उसकी मुस्कराती निगाह मुझे और उकसा रही थी, चढ़ा रही थी, चिढ़ा रही थी,

' बुद्धू लोग बुद्धू ही रहते हैं, अरे आगे बढ़ो, सिर्फ देखते ही रहोगे, ललचाते ही रहोगे तो मेरी भी नाक कटवाओगे और तुम्हारी तो खैर कितनी बार कटेगी पता नहीं, थोड़ा और आगे बढ़ो न, "


मुझे गुड्डी की एक बात याद आ गयी, जब पहली बार बहुत हिम्मत कर के उसकी देह को छुआ था एक पुरुष की तरह,


“तुम ना। कुछ लोगों की निगाहें ऐसी गन्दी घिनौनी होती हैं की चाहे मैं लाख कपड़े पहने रहूँ वो चाकू की तरह उन्हें छील देती हैं, और ऐसा खराब लगता है की बस। जवान लड़की और कुछ पहचाने ना पहचाने मर्द की निगाह जरूर पहचान लेती है। और तुम ना जिस दिन हम, मैं कोई भी कपड़े ना पहनी रहूंगी ना। तुम्हारी निगाह,... इत्ती शर्म उसमें है इत्ती चाहत है। वो खुद मुझे मालूम है, सहलाती हुई, मस्ती के खुशी के अहस्सास से ढक देगी…”


कुछ मौसम का असर कुछ गुड्डी के उकसाने का, कुछ भांग और बियर का, पर रीत अंदर चली गयी, बियर ख़तम हो गयी थी टेबल पर वाली। बाकी कमरे के अंदर चंदा भाभी के फ्रिज में रखी थी तो उसे निकालने,


और मैं गुड्डी अकेले, अब मुझसे नहीं रहा गया मैंने गुड्डी को अपनी ओर खींच लिया और हाथ सीधे गुड्डी के अधखुले जोबन पे, चंदा भाभी की रगड़ाई का असर

लेकिन असली असर था गदराये जोबन का मैंने उसे पास में खींच लिया और मेरे दो तड़पते प्यासे हाथ सीधे अब उसके उरोजों पे, और मैंने उसके कानों में बोला-


फागुन आया झूम के ऋतू बसंत के साथ,

तन मन हर्षित होंगे, मोदक दोनों हाथ।



तब तक संध्या भाभी आ गई और हम लोगों को देखकर बोलने लगी-

“अरे तोता मैना की जोड़ी, कुछ सुध-बुध है। ब्रेक किया था प्लान करने के लिए और। कैसे दूबे भाभी को…”
तबतक रीत आ गयी बियर की आधी दर्जन बोतलें एकदम चिल्ड ला के और उसने इशारे से संध्या भौजी को बुला लिया और उन तीनो के बीच गुपचुप गुपचुप,

मैंने ज्वाइन करने की कोशिश की लेकिन गुड्डी ने डांट लगा दी, " तुझे बुलाया किसी ने क्या "

और फिर हंसती मुस्कराती, रीत की ओर तारीफ़ से देखती संध्या भाभी मेरे पास आ गयीं, मैं समझ गया असली दिमाग रीत का ही है इन सबमे।रीत ने मुझे इशारा किया और मैं संध्या भाभी से बोला,


“पहले ये ड्रिंक उनको दे आइये और आप भी उनके साथ…” और एक ग्लास में मैंने रमोला स्पेशल, जिसमें रम ज्यादा कोला कम था, और वोदका मिली लिम्का के दो ग्लास और भांग वाली गुझिया उन्हें दी और बोला-

“कोई भी प्लान तभी सफल होगा अगर आप ये। …”

“एकदम…” वो बोली और प्लेट लेकर चल दी।

मैं संध्या भाभी का पिछवाड़ा देख रहा था, क्या मस्त माल लग रही थी। चंदा भाभी ने बाल्टी भर रंग मेरे ऊपर फेंकने की कोशिश की थी और मैं संध्या भाभी को आगे कर के बच गया था, सब कस सब रंग उनके कपड़ों पर, साडी तो उतर ही चुकी, रंग से भीगा साया एकदम देह से चिपका, दोनों कटे आधे तरबूज की तरह के नितंब, कसर मसर करते, और उससे ज्यादा जान मारु थे उनके पिछवाड़े की दरार, एकदम कसी, टाइट चिपकी, ललचाती बुलाती,

होली का एक मजा लड़कियों, औरतों की रंग से भीगे, देह से चिपके कपड़ों में छन छन कर छलकते जोबन और नितम्बों का रस है लेकिन संध्या भाभी के साथ तो मेरे बौराये पहलवान ने इन मस्त नितम्बों के बीच खूब रगड़ घिस, रगड़ घिस, की थी यहाँ तक की भौजी प्यासी मुनिया का चुम्मा भी ले लिए था अपने खुले सुपाड़े से, और पहले टच से ही भौजी एकदम छनछना गयीं थीं। मौका होता तो खुद पकड़ के घोंट लेती।



औरतों में पता नहीं कितनी आँखे होती हैं। संध्या भौजी को पता चल गया था की मैं उनका मस्त पिछवाड़ा निहार रहा हूँ, बस मुस्कराते हुए पलट के उन्होंने मुझे देखा, क्या जबरदस्त आँख मारी और मेरा एक बित्ते का पत्थर का हो गया। कुछ हो जाय बिना इनकी लिए मैं रहने वाला नहीं था, भले सबके सामने यहीं छत पे पटक के पेलना पड़े।

तबतक पीठ पे एक जोर का हाथ पड़ा, और कौन गुड्डी। भांग उसको भी चढ़ गयी थी। और जो उसकी आदत थी, बोलती कम थी, हड़काती ज्यादा थी,

" अबे बुद्धूराम, तेरे बस का कुछ नहीं, बस ऐसे ही ललचाते रहना। यहाँ कोई तेरी बहन महतारी तो हैं नहीं जो इसका इलाज करेंगी ( जोश में आने पर लगता था गुड्डी सच में मम्मी की सबसे बड़ी बेटी है, उसी तरह एकदम खुल के ) और गुड्डी का हाथ मेरे बारमूडा के अंदर फिर उसे सहलाते बोली,

" माना, रात में इसकी दावत मैं कराउंगी, लेकिन स्साले इसको रात तक भूखा प्यासा रखोगे क्या, न एक दो बार में घिस जाएगा, न एक बारनल खोलने से सारा पानी बाहर आ जाएगा, जितनी बार खोलोगे उतनी बार हरहरा कर, माल मस्त हैं न संध्या दी, एकदम आग लगी है बेचारी को दस दिन से भतार नहीं मिला है, करा दो भूखे को भोजन, लेकिन तू भी न, "

तबतक रीत आ गयी, थोड़ी हैरान परेशान। किसी काम में उलझी थी जब गुड्डी मुझे हड़का रही थी।

वैसे गुड्डी अगर दो चार घंटे में एकाध बार मुझे डांटे नहीं, हड़काये नहीं तो मैं परेशान हो जाता था, ये सारंग नयनी किसी बात से गुस्सा तो नहीं है, कहीं मेरा लाइफ टाइम प्लान खतरे में तो नहीं है।

रीत किसी जुगाड़ में थी। उसने मुझे बताया था वो चेस में भी अपने कालेज में नंबर वन थी और मैं समझ भी गया था की वो उन खिलाडियों में है जो बारहवीं चाल सोचती हैं। और बिना देखे उन्हें पूरा बोर्ड याद रहता है।

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स्ट्रेटेजिक टाईम आउट डिक्लेयर कराया आनंद ने..
और स्ट्रेटेजी बनाने से आनंद बाबू हीं बाहर...
लगता है जाल में फंसने वाले हैं...
चंडाल चौकड़ी ने इन्हीं को जाल बना लिया...
चंदा भाभी और दूबे भाभी का शिकार करने के लिए....
 

motaalund

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, संध्या भाभी, गुड्डी,
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मैं गुड्डी और रीत देख रहे थे। शायद मैं या रीत देते तो उन्हें शक भी होता लेकिन संध्या भाभी बाद में आई थी इसलिए वो नहीं सोच सकती थी की वो भी हमारी चांडाल चौकड़ी में जवाइन हो गईं होंगी।

रीत मुझसे बोली- “यार देखो जब तुम संध्या भाभी के साथ थे मैंने साथ दिया की नहीं? वो इत्ता बुलाती रही लेकिन मैं नहीं आई…”

“वो तो है…” मैंने मुश्कुराकर कहा।

“तो तुम भी कुछ करो यार। मेरा हम लोगों का साथ दो ना। वैसे भी तुम अब तो चंडाल चौकड़ी जवाइन ही कर चुके हो…” वो इसरार करते हुए बोली।



“करना क्या है बोल ना। जान देना है। पहाड़ तोड़ना है?” मैं बोला।

अब गुड्डी मैदान में आ गयी, थोड़ा प्यार की चाशनी और थोड़ा हुकुमनामा मिला के

“जान दें तुम्हारे दुशमन ऐसा कुछ नहीं। अरे यार हर साल होली में दूबे भाभी हम लोगों की सारी ननदों की खूब ऐसी की तैसी करती हैं, तो अबकी तुम साथ हो तो, … मैंने और रीत दी ने सोचा,..”



मैं समझ गया की मुझे ये शेरनी के सामने भेज के रहेंगी।


रीत ने फिर बात शुरू की- “यार ऐसा कुछ करो ना की। हर साल वो हम सब लोगों को टापलेश कर देती हैं पूरा। और कई बार तो सब कुछ और उसके बाद। चंदा भाभी भी उनके साथ रहती हैं कई बार तो एक दो पास पड़ोस वाली भी, लेकिन अबकी तुम साथ हो तो हिसाब जरा बराबर हो जाये। हम लोग तो साडी तक नहीं उनकी उतरवा पाते, तो कम से कम साडी ब्लाउज तो आज, बस थोड़ा सा, आज तुम साथ दो ना तो हम लोग भी दूबे भाभी की साड़ी ब्लाउज़, बहुत मजा आयेगा…”


मजा तो मुझे भी आ रहा था क्योंकि दूबे भाभी ने रमोला का पूरा ग्लास डकार लिया था। और साथ में भांग मिली गुझिया, और भांग का असर तो मेरे ऊपर भी हो रहा था।


मैं मन की आँखों से दूबे भाभी को साडी चोली विहीन देख रहा था, ३८ + के जोबन जरूर डबल डी होगी कप साइज और चूतड़ तो ४० ++ होंगे ही, लेकिन ऊपर नीचे दोनों एकदम कड़े कड़े, आइडिया तो अच्छा है, और झिलमिलाते नशे से मैं जो बाहर आया तो संध्या भौजी, जिनकी साड़ी मैंने खींच फेंकी थी और जैसे चोली में हाथ डाला तो चट चट कर के सारे बटन टूट गए, बस एक छोटा सा नन्हा मुन्ना हुक किसी तरह से, और उनकी लेसी ट्रांसपेरेंट ब्रा से मैंने कस कस के उनका जोबन रगड़ रगड़ के रंगा था सब साफ़ दिख रखा था और गीला साया देह से एकदम चिपका, उनके बड़े बड़े चूतड़ों की दरार के अंदर घुसा चिपका था।



और संध्या भौजी अपना काम अच्छी तरह से कर रही थी, रमोला का दूसरा ग्लास उन्होंने अपने हाथ से दूबे भाभी को पकड़ा दिया था।

रीत और गुड्डी की जोड़ी, जैसे गुड कॉप, बैड कॉप, कभी रीत बैड कॉप बनती तो कभी गुड्डी और अब गुड्डी बैड कॉप वाले रोल में थी, हड़का मुझे रही थी, बोल रीत से रही थी,

" दी अरे आपने एक बार बोल दिया, हिम्मत है नहीं जाएंगे दूबे भाभी के पास, हम लोगो का साथ नहीं देंगे, जा रही हूँ न मैं इनके साथ, और हफ्ते भर रहूंगी । अब इन्हे सोचना है, चलिए में चंदा भाभी के पास जरा चलती हूँ वरना वो लोग भी सोचेंगी ये तीनो मिल के क्या खिचड़ी पका रही हैं "

और गुड्डी की धमकी के आगे तो, मामला सिर्फ आज की रात की दावत का नहीं था, उसने साफ़ साफ़ इशारा कर दिया, हफ्ते भर का, भैया भाभी तो ऊपर के कमरे में सोते हैं और नीचे तो मैं और गुड्डी ही, फिर ये चंद्रमुखी अगर ज्वालामुखी हो गयी तो मैं जो जिंदगी भर के सपने संजो के बैठा हूँ सब, दूबे भाभी क्या मैं तो शेर के पिजंड़े में भी चला जाऊं,

गुड्डी चंदा भाभी के पास चली गयी और रीत को दूबे भाभी ने किसी काम से नीचे भेज दिया, कुछ लाना था।

रीत गुड्डी से बोल के गयी, बस मैं अभी गयी अभी आयी लेकिन तबतक तुम जरा, मेरे और चंदा भाभी की ओर इशारा कर के बोली।

और अब मेरी हिम्मत और बढ़ गयी, सिर्फ मैं और गुड्डी, बस गुड्डी के जाने के पहले मैंने प्लेट में रखा गुलाल उसके चेहरे पे रंग दिया और बोला-




गली-गली रंगत भरी, कली-कली सुकुमार,

छली-छली सी रह गई, भली-भली सी नार।


वो मुश्कुरा दी और मेरी सारी देह नेह के रंग से रंग गई।



तब तक संध्या भाभी विजयी मुद्रा में लौटी और हम लोगों को हड़काते हुए हल्की आवाज में बोली- “अरे तुम लोग आपस में ही होली खेलते रहोगे या जिसकी प्लानिंग करनी थी वो भी कुछ। …”

और गुड्डी चंदा भाभी के पास

गुड्डी बात चंदा भाभी से कर रही थी लेकिन बीच बीच में कनखियों से मुझे देख रही थी। उसकी एक बदमाश लट बार बार गुड्डी के गालों पे जहां मैंने अभी अभी हल्का सा गुलाल लगाया था वहीं बार बार और मेरा मन गुनगुना रहा था,




तितली जैसी मैं उड़ूँ, चढ़ा फाग का रंग,

गत आगत विस्मृत हुई, चढ़ी नेह की भंग।

रंग अबीर गुलाल से धरती हुई सतरंग,

भीगी चुनरी रंग में अंगिया हो गई तंग…”




गुड्डी चंदा भाभी और दूबे भाभी के साथ कुछ गुपचुप कर रही थी। मेरी समझ में नहीं आ रहा था की उसने गैंग बदल लिया या घुसपैठिया बनकर उधर गई है?



प्लानिंग तो हो गई लेकिन जो मेरा डर था वही हुआ।


मुझे बकरा बनाया गया।

तब तक दूबे भाभी की आवाज आई- “हे टाइम खतम…”

“बस दो मिनट…” और हिम्मत बढ़ाने के लिए संध्या भाभी ने बियर की ग्लास पकड़ाई और और मुस्करा के गुड्डी की ओर इशारा कर के बोलीं,

" तुझे कंट्रोल में रखती हैं "

" लेकिन भौजी मेरे कंट्रोल में नहीं आती "

हम दोनों बियर गटक रहे थे और भौजी ने गुरु ज्ञान दिया,

" जा तो रही है तेरे साथ, आज रात पटक के पेल देना, ये स्साला मोटा मूसल एक बार घुसेगा न बुरिया में में तो एकदम कंट्रोल में आ जायेगी "

और साथ में संध्या भौजी ने बरमूडा के ऊपर से फड़फड़ाते पंछी को पकड़ लिया मेरे। वो अब संध्या भौजी की पकड़ अच्छी तरह पहचानता था। अभी कुछ देर तो पहले उन्होंने बरमूडा के अंदर हाथ डालकर नहीं बल्कि बरमूडा नीचे सरका के उस को खुली हवा में लाके मुठिया था अपनी चुनमुनिया से मुलाकात करवाई थी, उसका चुम्मा दिलवाया था।


अब मैं फिर बौरा गया, संध्या भौजी के रंग से भीगे खुली चोली से ब्रा से झांकते जोबन एकदम मेरे सीने के पास, और मेरी हालत देख के उन्होंने रगड़ दिया अपने उभारों को मेरे सीने पे, और मेरे मुंह से निकल गया,

"पहले तो ये कहीं और पेलना चाहता है। "



वो हट गयीं और जैसे गुस्से में, बोलीं, " नहीं "



मैं एक पल के लिए घबड़ा गया लेकिन अगले पल अपनी जूठी बियर की ग्लास को मेरे मुंह में लगा के मेरा मुंह बंद किया और अपने होंठो से मेरे कानों को दुलराते, कान में बोलीं,

" तू क्या पेलेगा अपनी भौजी को, मैं पेलूँगी तुझे। रेप कर दूंगी तेरा। हाँ उसके बाद भी मेरा मन किया तो एक राउंड और लेकिन चिकने बिन चुदे तू बचेगा नहीं आज मुझसे "

" मंजूर भौजी, लेकिन गुड्डी "
भांग के नशे में क्या है, जो चीज दिमाग में एक बार घुस जाती है, आदमी वही बोलता रहता है और गुड्डी तो मेरे दिल दिमाग में हमेशा के लिए तो फिर मैंने संध्या भाभी से वही गुहार लगाई।

" चल यार बोल दूंगी, छोटी बहन है बात थोड़े टालेगी, दो इंच की चीज के लिए इतना निहोरा करवा रही है। " वो मेरे मूसलचंद को प्यार से दुलराते, सहलाते बोलीं। उन्हें मुझसे ज्यादा मेरे मूसलचंद की चिंता थी।

भांग का एक फायदा भी है की झिझक चली जाती है, दिल की बात मुंह पे आ जाती है, और मैंने संध्या भाभी से अपने मन की बात कह दी

" भौजी, गुड्डी , एक बार के लिए नहीं, हरदम के लिए, मतलब, " अब मैं हकला रहा था, थूक घोंट रहा था, हिम्मत जवाब दे गयी थी।

" ओह्ह ओह्ह तो तोता मैना की कहानी, तो जो मैंने उड़ते पड़ते सुना था सही है लेकिन सोच लो देवर जी, हाँ कहने के पहले तलवे चटवायेगी "

संध्या भौजी ने मेरी नाक पकड़ ली और छेड़ रही थीं,



" तलवे तो मैं उसके जिंदगी भर चाटूँगा भौजी, बस एक बार, " एक बार मन की बात निकलना शुरू होती है तो रुकना मुश्किल होता है,


" सिर्फ उसके या " वो हंस के बोली और मैं उनका मतलब समझ गया, और मेरे मन की आँखों में गुड्डी की मम्मी, उसकी दोनों छोटी बहने,

' सबके " खिलखिलाते हुए मैं बोला।

तबतक रीत भी आ गयी और रीत ने भी एक बियर की ग्लास उठा ली लेकिन रीत और संध्या भाभी दोनों चंदा भाभी और गुड्डी की ओर देख रही थी जैसे किसी सिग्नल का इन्तजार कर रही हों।





गुड्डी कमरे के अन्दर गई और कुछ देर में लौटकर चन्दा भाभी से कहने लगी- “एक मिनट के लिए आप आ जाइए ना मुझे नहीं मिल रहा…”



चंदा भाभी अन्दर गई और रीत और संध्या भाभी दोनों मुझे उकसाते, फुसफुसाते बोलीं,

" जाओ, जाओ"

मैं दूबे भाभी की ओर बढ़ा। संध्या भाभी और रीत वहीं टेबल के पास खड़ी रही, मुश्कुराती हुई। खरगोश और शेर वाली कहानी हो रही थी। जैसे गाँव वालों ने खरगोश को शेर के पास भेजा था वैसे ही मैं भी।

दूबे भाभी मंद-मंद मुश्कुरा रही थी।

उनके दोनों हाथ कमर पे थे चैलेन्ज के पोज में और भरे हुए नितम्बों पे वो बहुत आकर्षक भी लग रहे थे। उनका आँचल ब्लाउज़ को पूरी तरह ढके हुए था लेकिन 38डीडी साइज कहाँ छिपने वाली थी।

दूबे भाभी बोली-

“आ जाओ, तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी। बहुत दिनों से किसी कच्ची कली का भोग नहीं लगाया। मैं रीत और संध्या की तरह नहीं हूँ। उन दोनों की भाभी हूँ…”



मैं ठिठक गया। चारों ओर मैंने देखा, ना तो भाभी के हाथ में रंग था और ना ही आसपास रंग, पेंट अबीर, गुलाल कुछ भी। मैं दूबे भाभी को अपलक देख रहा था। छलकते हुए योवन कलश की बस आप जो कल्पना करें, रस से भरपूर जिसने जीवन का हर रंग देखा हो, देह सरोवर के हर सुख में नहाई हो, कामकला के हर रस में पारंगत, 64 कलाओं में निपुण, वो ताल जिसमें डूबने के बाद निकलने का जी ना करे।
लगता है शिकार के सामने बकरा या मेमना तैयार करा दिया गया...
थोड़ी मान मनुहार... थोड़ा डराना धमकाना... थोड़े नखरे...
 

motaalund

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First things first...on a lighter note....
story is Phagun..but the first line of your update is "Joru ke Ghulam"..I was wondering if the 2 stories are mixed up...but realized...you are too intelligent not to mix up the stories..

Will post my review shortly. Thanks.

komaalrani
कैरेक्टर का नाम भले एक हो...
प्लाट अलग-अलग है....
 

motaalund

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वाह संध्या रानी आ गई. और मस्ती छा गई. रंग लगाने का मौका तों संध्या भाभी को भी पूरा दिया जा रहा है. दो कवारी हसीनाओ गुड्डी और रीत के बिच संध्या भाभी. नई नई शादी वाली. मतलब ताज़ा ताज़ा खेल खा के आई है. बात तों सही है. नई दुल्हन को कौन छोड़ेगा. हार रोज गचक कर. वो गाना है ने सुबह से लेकर शाम तक.. शाम से लेकर सुबह तक मुजे प्यार करो.

पर आनंद बाबू ससुराल मे हो तुम होने वाले. शर्माना मत. और ससुराल मे तों गरियाया जाएगा ही. और तुम वैसे भी माल हो. क्या कहा डूबे भाभी ने. साला गांडु है. एक पीछे से लेगा. और एक मुँह से. अरे सब उसकी महतारी का नतीजा है. पूरा परिवार ही ऐसा है. सब की आदत है.

पर आनंद बाबू को मान ना पड़ेगा. संध्या भाभी को जकड ही लिया. खेली खाई जवान दुल्हन का रूप निखार भी बड़ा जोरो पर चढ़ता है. गदरा जाता है. ऊपर से तुम महंगी साड़ी बोल कर उतरवा दिये. संध्या रानी का कसा हुआ जोबन देखने.

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रूप निखारने के लिए डेली पाइप से सिंचाई जरुरी है...
 
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