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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार ----भाग १५
दूबे भाभी

1,85,204


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चंदा भाभी अन्दर गई और रीत और संध्या भाभी दोनों मुझे उकसाते, फुसफुसाते बोलीं,



" जाओ, जाओ

मैं दूबे भाभी की ओर बढ़ा।

संध्या भाभी और रीत वहीं टेबल के पास खड़ी रही, मुश्कुराती हुई। खरगोश और शेर वाली कहानी हो रही थी। जैसे गाँव वालों ने खरगोश को शेर के पास भेजा था वैसे ही मैं भी।

दूबे भाभी मंद-मंद मुश्कुरा रही थी।

उनके दोनों हाथ कमर पे थे चैलेन्ज के पोज में और भरे हुए नितम्बों पे वो बहुत आकर्षक भी लग रहे थे। उनका आँचल ब्लाउज़ को पूरी तरह ढके हुए था लेकिन 38डीडी साइज कहाँ छिपने वाली थी।

दूबे भाभी मुस्कराकर बोलीं -

“आ जाओ, तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी। बहुत दिनों से किसी कच्ची कली का भोग नहीं लगाया। मैं रीत और संध्या की तरह नहीं हूँ। उन दोनों की भाभी हूँ…”


मैं ठिठक गया। चारों ओर मैंने देखा, ना तो भाभी के हाथ में रंग था और ना ही आसपास रंग, पेंट अबीर, गुलाल कुछ भी।

मैं दूबे भाभी को अपलक देख रहा था। छलकते हुए योवन कलश की बस आप जो कल्पना करें, रस से भरपूर जिसने जीवन का हर रंग देखा हो, देह सरोवर के हर सुख में नहाई हो, कामकला के हर रस में पारंगत, 64 कलाओं में निपुण, वो ताल जिसमें डूबने के बाद निकलने का जी ना करे।

दूबे भाभी ने छेड़ते हुए कहा “क्या देख रहे हो लाला? अरे ऐसे मस्त देवर से होली के लिए मैं खास इंतजाम से आई हूँ…” और उन्होंने एक पोटली सी खोली।



ढेर सारी कालिख, खूब गाढ़ी, काजल से भी काली, चूल्हे के बर्तन के पेंदी से जो निकलती है वैसे ही। फिर दूसरे हाथ से उन्होंने कोई शीशी खोली, कडवा तेल की दो-चार बूँदें मिलाईं, और हाथ पे लगा लिया।


दूबे भाभीने मुझे चिढ़ाया -

“मायके जाकर तो अपनी बहन छिनाल के साथ मुँह काला करोगे ही। और वो भी गदहा चोदी यहाँ आकर सारे शहर के साथ मुँह काला करेगी तो मैंने सोचा की सबसे अच्छा तुम्हारे इस गोरे-गोरे लौंडिया स्टाइल मुँह के लिए ये कालिख ही है। और एक बात और इस कालिख की, कि चाहे तुमने नीचे तेल लगाया हो पेंट लगाया हो, कोई साल्ला कन्डोम वाला प्रोटेक्शन नहीं चलेगा। चाहे साबुन लगाओ चाहे बेसन चाहे जो कुछ, इसका रन्ग जल्दी नहीं उतरने वाला। जब रन्ग पन्चमी में आओगे ना अपनी चिनाल मादरचोद बहना को लेकर तभी मैं उतारूंगी इसका असर, चेहरे से लेकर गाण्ड तक…”


अब ये सुनकर तो मेरी भी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। मैं वहीं ठिठक गया।

लेकिन जिस तरह से दूबे भाभी मेरी और लपक के बढीं, मेरे बचने का कोई चान्स नहीं रहा। प्लानिंग साली गई गधी की चूत में। भाग भोसड़ी के। भाग साल्ला भाग और मैं मुड़ लिया।


लेकिन दूबे भाभी भी, आखीरकार सारी ननदें उनसे क्यों डरती थीं? मैं आगे-आगे वो पीछे-पीछे।

लेकिन भागने में मैं भी चतुर चालाक था। तभी तो दर्जा 7 से जब पहली बार पान्डे मास्टर मेरे पिछवाड़े के पीछे पड़े थे, तबसे आज तक मेरा पिछवाड़ा बचा हुआ था। मैं कन्नी काटकर बच गया।


लेकिन अगली बार जब मैंने ये चाल चली तो दूबे भाभी मेरे आगे और मेरा सारा ध्यान उनके 40+ साइज के मस्त नितम्बों के दर्शन में। क्या मस्त कटाव, कसाव, और चलते हुये जब दोनों गोलार्ध आपस में मिलते तो बस दिल की धड़कन डबल हो जाती। और एक दूसरा खतरा हो गया। सन्ध्या भाभी अचानक सामने आ गईं और मैं एक पल के लिये उनकी ओर देखने लगा।

बस ऐक्सिडेंट हो गया। मैं पकड़ा गया।


दूबे भाभी मुस्कराकर बोलीं - “साले बहनचोद, आखिर कहां जा रहे थे छिपने अपनी बहना के भोंसड़े में? अरे फागुन में ससुराल आये हो तो बिना डलवाये कैसे जाओगे सूखे सूखे? शादी के बाद दुल्हन ससुराल जाये और बिना चुदवाये बच जाये और ससुराल में कोई होली में जाये और बिना डलवाये आ जाय। सख्त नाइन्साफी है…”


अब तक मेरे गाल पे दो किशोरियों, रीत, गुड्डी और एक तरुणी, सन्ध्या भाभी की उंगलियां रस बरसा चुकी थी।

लेकिन दूबे भाभी का स्पर्श सुख कुछ अलग ही था। उन किशोरियों के स्पर्श में एक सिहरन थी, एक छुवन थी, एक चुभन थी। और सन्ध्या भाभी के छूने में जिसने जवानी का यौन सुख का नया-नया रस चखा हो उसका अहसास था।


लेकिन दूबे भाभी की रगड़ाई मसलाई में एक गजब का डामिनेन्स, एक अधिकार था जिसके आगे बस मन करता है कि बस सरेन्डर कर दो। अब जो करना हो ये करें, उनकी उंगलियां कुछ भी नहीं छोड़ रही थी, यहां तक कि मेरा मुँह खुलवा के उन्होंने दान्तों पे भी कालिख रगड़ दी। लेकिन तभी मेरी निगाह रीत पे पड़ गई, वो तेजी से कुछ इशारे कर रही थी।

सारी प्लानिंग के बाद भी मेरी हालत स्टेज पे पहली बार गये कलाकार जैसे हो रही थी, जो वहां पहुँचकर दर्शकों को देखकर सब कुछ भूल जाय और साइड से प्राम्पट प्राम्पटर इशारे करे, और उसे देखकर और डायरेक्टर के डर से उसे भूले हुये डायलाग याद आ जायें। वही हालत मेरी हो रही थी।

रीत को देखकर मुझे सब कुछ याद आ गया और मैंने एक पलटी मारी। लेकिन दूबे भाभी की पकड़ कहां बचता मैं।

हाँ हुआ वही जो हम चाहते थे। यानी अब भाभी मेरे पीछे थी।

उनके रसीले दीर्घ स्तन मेरे पीठ में भाले की नोक की तरह छेद कर रहे थे। उन्होंने अपनी दोनों टांगों के बीच मेरी टांगों को फँसा लिया था, जिससे मैं हिल डुल भी ना पाऊँ और अब उनके हाथ कालिख का दूसरा कोट मेरे गालों पे रगड़ रहे थे और साथ में अनवरत गालियां। मेरे घर में किसी को उन्होंने नहीं बख्शा।

लेकिन इसी चक्कर में वो भूल गईं इधर-उधर देखना और साइड से रीत और सन्ध्या भाभी ने एक साथ।

वो दोनों उनके चिकने गोरे-गोरे पेट पे रंग लगा रही थी, पेंट मल रही थी। लेकिन अभी भी दूबे भाभी का सारा ध्यान मेरी ओर ही लगा हुआ था जैसे कोई बहुत स्वादिष्ट मेन-कोर्स के आगे साईड डिश भूल जाय। हाँ गालियों का डायरेक्शन जरूर उन्होंने उन दोनों कि ओर मोड़ दिया था।


दूबे भाभी ने छेड़ते हुए कहा

“अरे पतुरियों, बहुत चूत में खुजली मच रही है? भूल गई पिछले साल की होली। अरे जरा इस रसगुल्ले के चिकने गाल का मजा ले लेने दे फिर बताती हूँ तुम छिनारों को। यहीं छत पे ना नंगा नचाया तो कहना…”
 
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चल गयी चाल-रीत और संध्या भौजी की
साड़ी -हरण


लेकिन ये होली पिछले साल की होली तो थी नहीं। अबकी रीत के साथ मैं था। और सन्ध्या भाभी भी ससुराल से खुलकर मजे लेकर ज्यादा बोल्ड होकर आई थी। दूबे भाभी ने वहीं गलती की जो हिन्दी फिल्मों में विलेन करता है- ज्यादा डायलाग बोलने की।


उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया की रीत और सन्ध्या भाभी, रंग लगाने के साथ साये में बन्धी उनकी साड़ी खोलने में लगे हैं। जब तक उन्हें अंदाज लगा बहुत देर हो चुकी थी। मैंने अपने चेहरे पे रगड़ रहे उनके हाथों को पकड़ लिया था। उन्होंने समझा कि मैं उन्हें कालिख लगाने से रोकने के लिये ऐसा कर रहा हूँ।

दूबे भाभी बोली- “अरे साले कालिनगन्ज के भन्डुये, (मेरे शहर की रेड लाईट ऐरिया का नाम, अकसर शादी वादी की गालियों में उसका नाम इश्तेमाल होता था,) तेरी पाँच भतारी बहन को सारे बनारस के मर्दों से चुदवाऊँ। उसमें तुम्हें शर्म नहीं लग रही है। क्या मेरा हाथ छुड़ा पाओगे। अभी तक कोई ऐसा देवर, ननद, ननदोई नहीं हुआ, जो दूबे भाभी के हाथ से छूट जाये…”

छूटना कौन चाहता था?

हाँ दूबे भाभी खुद जब उन्हें रीत और सन्ध्या की प्लानिंग का अंदाज हुआ तो मेरे चेहरे से हाथ हटाकर उन्होंने उन दोनों को रोकने की कोशिश की।

लेकिन मैं हाथ हटाने देता तब ना। मैंने और कसकर अपने चेहरे पे उनके हाथों को जकड़ लिया था। वो पूरी ताकत से अपने हाथ अब छुड़ा रही थी। लेकिन और साथ-साथ जो उन्होंने मेरे पैरों को कैन्ची की तरह अपने पैरों में फँसा रखा था, अब उन्हें खुद छुड़ाने में मुश्किल हो रही थी।

दोनों शैतानों ने मिलकर अब तक दूबे भाभी की साड़ी उनके पेटीकोट से बाहर निकाल दी थी।

सन्ध्या भाभी ने तो काही पेंट लगाकर उनके साये के अन्दर नितम्बों पे रंग भी लगाना चालू कर दिया था। लेकिन मैं जान गया था की अब थोड़ी सी देर भी बाजी पलट सकती है, इसलिये मैंने रीत को इशारा किया। और उसने एक झटके में साड़ी साये से बाहर।

और साथ ही मैंने दूबे भाभी का हाथ छोड़ दिया और पैर भी।

जैसे रस्सा कसी में एक ग्रुप अगर अचानक रस्सी छोड़ दे वाली हालत में हो गई। गिरते-गिरते वो सम्हल जरूर गईं पर इतना समय काफी था, रीत और सन्ध्या भाभी को उनकी साड़ी पे कब्जा करने के लिये।

दूबे भाभी उन दोनों की ओर लपकीं तो रीत ने साड़ी मेरी ओर उछाल दी और जब दूबे भाभी मेरी ओर आई तो मैंने साड़ी ऊपर दुछत्ती पे फेंक दी, जहां कुछ देर पहले सन्ध्या भाभी की साड़ी और ब्लाउज़ को मैंने फेंका था। वो कुछ मुश्कुराते और कुछ गुस्से में मुझे देख रही थी।

“अरे भाभी ऐसा चांदी का बदन, सोने सा जोबन। को आप मेरे ऐसे देवर से छिपाती हैं। अरे होली तो मुझे आपसे खेलनी है आपकी साड़ी से थोड़ी। फिर इत्ती महंगी साड़ी खराब होती तो भैया भी तो गुस्सा होते…”

“अरे ब्लाउज़ भी मैचिन्ग है…” सन्ध्या भाभी ने और आग लगायी।


दूबे भाभी- “मजा आयेगा तुमसे होली खेलने में। तुम्हारी तो मैं। …” वो कुछ आगे बोलती उसके पहले चंदा भाभी आ गई गुड्डी के साथ।



अब मैंने समझा गुड्डी ने पाला नहीं बदला था, वो घुसपैठिया थी। अगर वो बहाना बनाकर चंदा भाभी को . अन्दर ना ले जाती और अगर चंदा भाभी दूबे भाभी का साथ देती तो उनका साड़ी हरण करना मुश्किल था.
 
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मस्ती होली की



दूबे भाभी ने मेरे ऊपर हमला किया।

रीत और सन्ध्या ने, चन्दा भाभी पे।

लेकिन अब मैं तैयार था। मैंने भी हाथों में रंग लगा लिया। थोड़ी देर में सभी ब्रा और साये में हो गये। सन्ध्या भाभी को तो मैंने कर दिया था और रीत को चन्दा और दूबे भाभी ने मिलकर। अब दूबे भाभी की साड़ी मेरे हाथ से उतर गयी और और चन्दा भाभी का साड़ी ब्लाउज़, रीत और सन्ध्या भाभी के हाथ।

दूबे भाभी के हाथ मेरे बर्मुडा में व्यस्त थे।

दूबे भाभी बुदबुदा रही थी- “क्या चीज है राज्जा। साल्ला। इत्ता बडा तो मैंने आज तक नहीं देखा। मस्त लम्बा मोटा भी कड़ा भी…” फिर बिना बर्मुडा से हाथ निकाले मेरी ओर देखकर मुश्कुराते वो बोली-

“साले, हरामी के जने, ये गदहे जैसा कहीं गदहे या घोड़े का जना। तो नहीं है…”

गुड्डी ने चन्दा भाभी के पास से ही आवाज लगाई-

“अरे इनका वो माल। इनकी ममेरी बहन जहां रहती है ना। उस गली के बाहर। वो गदहों वाली गली के नाम से ही मशहूर है…”

सन्ध्या भाभी ने भी टुकड़ा लगाया- “अरे तो गदहा इसका मामा हुआ फिर तो…”

“तो फिर इसके मामा का असर इसपर, मतलब साले तू खानदानी पैदायशी बहनचोद है, फिर अब तक क्यों छोड़ रखा था उस साली को?” दूबे भाभी अपने अन्दाज में मुझे मुठियाते बोल रही थी।

मेरा सुपाड़ा जैसे चन्दा भाभी ने कल रात सिखाया था, मैंने खोल रखा था मोटा पहाडी आलू जैसा। दूबे भाभी के हाथ तो लण्ड के बेस पे थे लेकिन अन्गूठा। सुपाड़े को रगड़ रहा था। मेरा एक हाथ उनके ब्लाउज़ में था, गोरे गुदाज, गदराये और भरे-भरे मेरी मुट्ठी में नहीं समा पा रहे थे।

लेकिन उनका टच, एकदम मस्त।

इत्ते बड़े-बड़े होने के बाद भी एकदम कड़े-कड़े जरा भी ढिलाई नहीं और दोनों चूचियों के बीच की गहरायी भी, जैसे दो पहाड़ियों के बीच एक खूबसूरत खाईं हो। ऐसे जोबन ना सिर्फ देखने, छूने, दबाने और चूसने में मस्त होते हैं बल्की जो आज तक मैंने सिर्फ ब्लू-फिल्मों में देखा था और मेरा एक सपना था। चूची चुदाई का, दो गदराई मांसल चूचियों के बीच अपना लण्ड डालकर रगड़ने का। वो बस दूबे भाभी के उरोजों के साथ पूरा हो सकता था।

दूबे भाभी की पीठ भी अत्यन्त चिकनी थी और बीच में गहरी, केले के पत्ते कि तरह।

कामसूत्र में लिखा है कि ऐसी महिलायें अत्यन्त कामुक होती हैं। रात दिन सेक्स के बारे में ही सोचती हैं और दीर्घ लिंग के लिये कुछ भी कर सकती हैं। उन्हें सिर्फ अश्व जाति के पुरुष सन्तुष्ट कर सकते हैं, जैसा मैं था।

मेरा हाथ पीठ से सरककर नीचे चला गया, सीधे साये के अन्दर। ओह्ह… ओह्ह… क्या मस्त चूतड़ थे, खूब भरे-भरे एकदम कड़े और मांसल। उसे छूते ही मेरा जन्गबहादुर 90° डिग्री का हो गया।

दूबे भाभी समझ गई कि उनके नितम्बों ने मेरे ऊपर क्या असर किया है। सिर्फ देखकर मेरी ऐसी कि तैसी हो जाती थी उस 40+ चूतड़ को और स्पर्श से तो हालत खराब होनी ही थी।

दूबे भाभी ने एक-दो बार कसकर मेरे पूरे तन्नाये लण्ड को आगे-पीछे किया और जैसे उसी से बातें कर रही हों, बोली-

“क्यों मुन्ना, बहुत मन कर रहा है पिछवाड़े का? लगता है पिछवाड़े के बड़े रसिया हो कभी मजा लिया है गोल दरवाजे का कि नहीं?”

“तुम रंग पंचमी में तो आओगे ना?” वो फुसफुसाकर बोली।

“हाँ। अब तो आना ही पड़ेगा…” मैंने जोश में कसकर उनके निपल को पिंच करते हुये कहा।

“अरे एक-दो दिन पहले आ जाना, असली होली तो तभी होगी। पूरा खजाना लुटा दूंगी। ऊपर-नीचे, आगे-पीछे सब कुछ…”

खुश होकर मैंने इत्ते जोर से जोबन मर्दन किया की उनके ब्लाउज़ कि दो चुटपुटिया बटन चट-चट खुल गईं।

लेकिन दूबे भाभी को इसकी परवाह नहीं थी। वो मेरे खडे लण्ड के सुपाड़े को अपने अंगूठे से कसकर दबा रही थी और बोल रही थी-

“इस रसगुल्ले का तो मैं पूरा रस निचोड़ लूँगी। हाँ। लेकिन अपनी उस ममेरी बहन को साथ लाना मत भूलना…”

“नहीं भाभी…” मैं भी किसी और दुनियां में खोया हुआ था।

मेरी रंग लगी उंगली उनकी गाण्ड की दरार में थी और हल्के-हल्के आगे-पीछे हो रही थी। उनकी गाण्ड इस तरह उसे कसकर दबोचे थी कि बस अब बिना डलवाये छोड़ेगी नहीं। भाभी की भी रस सिद्ध उंगलियां, रस से भरी मेरे पी-होल पे तर्जनी के नाखून से छेड़ रही थी। मैं मारे जोश के इतना गिनगिनाया कि मैंने कचकचा के उनकी चूची और कसकर दबा दी और एक चुटपुटिया बटन और गई। भाभी इन सबसे बे-परवाह मेरे गोरे लिंग को अपने हाथ से कालिख मलकर काला भुजन्ग बनाने में लगी थी।
 
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ब्लाउज हरण -दूबे भाभी का


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लेकिन तभी मैंने दो बातें नोटिस की।

एक- उनके ब्लाउज़ कि अब सिर्फ एक चुटपुटिया बटन बची है जो बडी मुश्किल से उनके भारी उरोजों को सम्हाले है।

दूसरी- रीत ने भी यही बात नोटिस की है और मुझे उनके ब्लाउज़ की ओर इशारा कर रही है।

मैं समझ गया की वो क्या चाहती है। खतरा तो बहुत था, लेकिन रीत के लिये मैं शेरनी की मांद में घुस सकता था। आखीरकार, मुझे उसकी मांद में जो घुसना था।


और फिर खाली रीत होती तो मैं रिस्क असेसमेंट करता भी, गुड्डी भी अब मैदान में आ गयी थी और सिर्फ एक बटन के सहारे टंगे दूबे भाभी के ब्लाउज पे उसकी भी निगाह पड़ी, और उसने भी इशारा किया, गुड्डी कहती नहीं थी, हुकुम करती थी,, और मेरा भी तो मन कर रहा था। बस मैंने भी मगज अस्त्र का, जिसका इस्तेमाल रीत करती थी, किया। मैंने मुश्कुराकर हामी भरी।

मेरा एक हाथ अब पिछवाड़े से निकलकर उनके चिकने गोरे पेट पे, और वहां से रंग लगाते सीधे नीचे से ब्लाउज़ की आखिरी चुटपुटिया बटन पे। मैंने भाभी के इअर-लोब्स पे अपने होंठ हल्के से लगाये और बोला-

“भाभी क्या जादू है आपके हाथ में। अगर हाथ में ये हाल है तो। …”

मेरी बात काटकर वो कस-कसकर दबाते मसलते बोली-

“अरे साले निचोड़ के रख दूँगी, आगे से भी, पीछे से भी। समझ जाओगे की जिन्दगी का मजा क्या है? हाँ बस उसको साथ ले आना मत भूलना, वरना तड़पाकर रख दूँगी। कुछ नहीं मिलेगा…”

और इसी के साथ आखिरी बटन भी ब्लाउज़ का टूट गया, और पलक झपकते ब्लाउज़ मेरे हाथ में।

रूपा साफ्टलाइन क्वीन साइज में दो रंगे पंख वाले छटपटाते कबूतर।

“अरे साले बहनचोद अपनी बहन के भंड़ुये, गान्डू…”

दूबे भाभी गालियां तो दे रही थी लेकिन जिस तरह से मुश्कुरा रही थी मैं समझ गया की उन्होंने ज्यादा बुरा नहीं माना है और उनका रंग पंचंमी का आफर स्टैन्ड कर रहा है। सबजेक्ट टू टर्म्स ऐंड कंडीशन्स।
दूबे भाभी मेरे हाथ से ब्लाउज़ छीनने के लिये झपटीं। लेकिन चतुर चालाक रीत पहले ही छत के दूसरे कोने पे खड़ी थी और बोल रही थी- “थ्रो। थ्रो…”

उसकी बात टालने का सवाल ही नहीं था। फिर दूबे भाभी भी करीब आ गई थी।

मैंने जोर लगाकर फेंका। और रीत ने कैच कर लिया। वो कोई हमारी क्रिकेट टीम की खिलाड़ी तो थी नहीं। मैं अब दूर खड़ा होकर पकड़ा-पकड़ी देख रहा था।

रीत, वो हिरणी उसे पकड़ना आसान नहीं था। लम्बी-लम्बी टांगें, चपल फुर्तीली। लोग उसे झूठ में ही कैट नहीं कहते थे। लेकिन वो पकड़ी गई।

दूसरी ओर से चन्दा भाभी आ गईं।

लेकिन गुड्डी थी न। रीत ने उछाल के गुड्डी को फेंक दिया, और कैच करने में तो गुड्डी का मुकाबला नहीं। और त्वरित मति में भी। जबतक चंदा भाभी गुड्डी की ओर लपकतीं, ब्लाउज गुड्डी ने छज्जे पर फेंक दिया जहाँ थोड़ी देर पहले हमने दूबे भाभी की साडी फेंकी थी। आखिर साडी ब्लाउज तो साथ साथ मैचिंग मैचिंग ही अच्छे लगते हैं। और गुड्डी ने ब्लाउज हरण सफल होने की मिठाई जो मुझे फ्लाईंग किस दे के खिलाई, मैं लहालोट हो गया।

अब चन्दा भाभी और दूबे भाभी के बीच वो कातर हिरणी।

लेकिन मेरी ओर देखकर वो सारन्ग नयनी मुश्कुरायी। पहली बार होली में दूबे भाभी की साड़ी ब्लाउज़ जो उतर गई थी। ननद भाभी की होली चालू हो गई थी। ऐसी होली जिसके आगे लेस्बियन रेस्लिन्ग मात थी।

मैं दूर बैठा रस ले रहा था।
 
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रीत -चंदा भाभी-दूबे भाभी और बनारसी होली


रीत, चंदा भाभी और दूबे भाभी के बीच सैंडविच बनी हुई थी।

पीछे से दूबे भाभी ने दबोच रखा था और आगे से चंदा भाभी नंबर लगाकर बैठी थी। और तीनों ब्रा और, बल्की रीत ब्रा और अपनी ट्रेड मार्क पाजामी में, और दूबे और चंदा भाभी ब्रा और साए में। दूबे भाभी के हाथ में अभी भी कालिख का स्टाक बचा हुआ था, जिसे उन्होंने सबसे पहले रीत की गोरी नमकीन पीठ पे मला और फिर आगे हाथ डालकर उसके गोरे उभार पे ब्रा में हाथ डालकर। पीठ पे रंग लगा रहा हाथ सरक के अचानक उसकी पाजामी में, क्या कोई मर्द नितम्बों को दबाएगा, जिस तरह दूबे भाभी रीत के मस्त गुदाज रसीले नितम्बों को दबोच रही थी, पूरी ताकत से।

दबा वो रही थी मजा मुझे आ रहा था।


और पीछे से ब्रा की स्ट्रिप भी रीत की, चन्दा भाभी के लाल गुलाबी रंगों से लाल हो गई थी।

शाम को कभी-कभी जैसे बादल दिखते हैं ना उसकी पीठ वैसे ही दिख रही थी। जो थोड़ी सी जगह रंगों से बच गई थी गोरी, सफेद रूई से बादलों की तरह। दूबे भाभी के हाथ जहां-जहां पहुँचे थे वो श्याम रतनारे बादल की तरह और ब्रा की स्ट्रिप और उसके आस पास चंदा भाभी की उंगलियां जहाँ छू गई थी, वहां लाल गुलाबी जैसे कुछ सफेद बादल भी जहां सूरज की किरणें पड़ती ही लाल छटा दिखाती हैं। रंग लगने से वो और रंगीन हो गई थी।

तभी वो हुआ जो मैं तब से चाहता था जब से मैंने उसे सबसे पहले देखा था।

धींगा मस्ती में दूबे भाभी और चंदा भाभी ने मिलकर उसकी ब्रा नीचे खींच दी और रीत के दोनों उभार एक पल के लिए मुझे दिख गए। बस मैं बेहोश नहीं हुआ यही गनीमत थी।

जैसे कोई पूरी दुनियां की खूबसूरती, जवानी का नशा, जीवन का सारा रस अगर एक जगह लाकर रख दें ना कुछ ऐसा। जैसे गूंगे का गुड़ कहते हैं ना की वो खा तो ले ना लेकिन स्वाद ना बता सके, बस वही हालत मेरी हो रही थी। लेकिन मैं उस हालत से पल भर में उबर गया क्योंकी अगले ही पल दूबे भाभी के हाथों में दोनों कैद हो गए, और वो इस तरह से मसल रही थी की।

उधर दोनों गालों का रस चन्दा भाभी ले रही थी।

मुझे लगा की बिचारी मेरी मृग-नयनी कहाँ दो के साथ कित्ती परेशान होगी बिचारी। लेकिन अचानक वो पीछे मुड़ी जैसे कोई टेलीपैथी हो, और मुझे देखकर ना सिर्फ मुश्कुराई बल्की हल्की आँख भी मार दी।

मैं समझ गया की ये भी उतना ही रस ले रही है।

चंदा भाभी ने तभी एक बाल्टी रंग लेकर पीछे से उसकी पाजामी पे।

और दूबे भाभी भी क्यों पीछे रहती, उन्होंने तो पीछे से पाजामी फैलाकर उसके अन्दर।

मेरा फायदा हुआ की अब उसके सारे कटाव उभार एक साथ और रीत का ये फायदा हुआ की उसने एक झटके में अपनी ब्रा ठीक कर ली।

क्या कटाव थे।

दोनों भाभियों ने जो रंग की बाल्टियां छोड़ी थी, अन्दर और बाहर रीत की पाजामी पूरी तरह उसकी खूबसूरत जाँघों से चिपक गई। और बिलकुल ‘सब दिखता है’ वाली बात हो रही थी। पीछे का नजारा तो छोड़िये, एक पल के लिए वो आगे मुड़ी तो भरतपुर भी दिख गया। आलमोस्ट। सुधी पाठक सोच ही सकते हैं की मेरे जंगबहादुर की क्या हालत हुई होगी।लेकिन उसके आगे जो हुआ वो और खतरनाक था।



दूबे भाभी और चन्दा भाभी ने मिलकर रीत की पाजामी का नाड़ा खोल दिया लेकिन बहुत मुश्किल से।

एक तो उसने कसकर बाँध रखा था और फिर दोनों हाथों से कसकर। हार के चन्दा भाभी को उसे गुदगुदी लगानी पड़ी। वो खिलखिला के हँसी और नाड़ा दूबे भाभी के हाथ में।

मुझे लगा की अब रीत गुस्सा हो जायेगी।

लेकिन उसकी वो मुश्कुरा रही थी उसी तरह। जब पाजामी नीचे सरकी तो उस चतुर चपला ने ना जाने किस तरह पैरों को किया की वो उसके घुटने पे ही फँस गई लेकिन मुझे एक जबर्दस्त फायदा हुआ, मस्त नितम्बों के नजारे का। जो भीगे पाजामी से झलक मिल रही थी वो तो कुछ भी नहीं थी इसके आगे।

क्या नजारा था।

रीत की लेसी थांग दो इंच चौड़ी भी नहीं रही होगी और पीछे से तो बस एक मोटी रस्सी इतना दोनों नितम्बों के बीच फँसा हुआ।
प्लंप, प्रेटी, परफेक्ट, मस्त कसे कड़े,... पाजामी के ऊपर से उसे देखकर मन मचल जाता था तो अब तो वो कवच भी नहीं रहा। और उसके ऊपर लगे रंग।

दूबे भाभी की उंगलियों से लगा उनकी ट्रेड मार्क कालिख, चंदा भाभी के लाल गुलाबी चटखदार और मेरे हाथ के लगे सतरंगी रंग, मेरी उंगलियों से लगे पेंट के रंग तो दरार के अन्दर तक।

और फिर दूबे भाभी ने वो काम किया की जिसके बाद तो वो मेरी जान मांग लेती तो मैं सोने की थाली में रखकर हाजिर कर देता।

उन्होंने रीत की थांग को पीछे से हटा दिया और साथ-साथ दोनों नितम्बों को फैलाकर पिछवाड़े की वो गली दिखा दी, जिसके लिए सारा बनारस दीवाना था।

दोनों हाथ तो आगे चंदा भाभी ने पकड़ रखे थे।

मेरी ओर देखकर दूबे भाभी ने आँखों-आँखों में पूछा- “पसंद आया…”

सीने पे हाथ रखकर मैंने इशारा किया- “जान चली गई…”

फिर दूबे भाभी ने वो काम शुरू कर दिया, जिसके लिए उनकी सारी ननदें नजदीक की दूर की, रिश्ते की पड़ोस की डरती थी।

क्या कोई मर्द चोदेगा। रीत की कमर पकड़कर वो धक्के उन्होंने लगाए उस तरह से रगड़ा। रीत ने वो किया जिसके लिए मैं उसका दीवाना था, मस्ती और हिम्मत, हाजिर जवाबी और मजे लेने और देने की ताकत।

रीत बोली- “अरे भाभी, मेरी तो पाजामी आप ने सरका दी। लेकिन आप का पेटीकोट। क्या मजा आएगा…”

“ठीक तो कह रही है लड़की…” चंदा भाभी ने बोला और दूर बैठे मैंने भी सहमती में सिर हिलाया।

“अरे चूत मरानो, छिनार, तेरी तरह मैं पाजामी, जीन्स, पैंट नहीं पहनती जिसे उतारने में 10 झंझट हो। साड़ी पेटीकोट पहनो तो आम की बाग हो, अरहर और गन्ने का खेत हों बस लेटो टांग उठाओ, तैयार…”

दूबे भाभी बोली और एक झटके में पेटीकोट उठाकर कमर पे खोंस लिया।

डबल धमाका।

एक किशोरी के बाद अब एक प्रौढ़ा, एक मस्त खेली खायी भाभी का पिछवाड़ा, वो भी 40+ वाली साइज का। पीछे से दूबे भाभी। आगे से चंदा भाभी। मैंने दूर बैठकर थ्री-सम का मजा देख रहा था।

रीत रानी छिनार, मेरी ननदी छिनार, अगवाड़ा छिनार, पिछवाड़ा छिनार,

एक जाए आगे, दूसर पिछवाड़े, बचा नहीं कोऊ नौवा कहांर।


साथ में बनारसी गारी का भी मजा, दूबे भाभी और चंदा भाभी के समवेत स्वरों में।

गुड्डी और संध्या भाभी। दूर से देख रही थी। गुड्डी लगभग बची हुई थी, मेरे हाथ से निकालने के बाद से। एक तो उसके ‘वो दिन’ चल रहे थे और फिर जब मैं रीत के साथ मिलकर दूबे भाभी के चीरहरण में लगा था वो अन्दर थी, चंदा भाभी के साथ।

उसने संध्या भाभी से मिलकर कुछ बात की और राहत मिशन लान्च हुआ।

रीत को तो थोड़ी राहत मिली लेकिन अब गुड्डी फँस गई, वो भी दूबे भाभी के हाथों।

 
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komaalrani

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गुड्डी की रगड़ाई


“बहुत बची हुई थी ना। अब बताती हूँ…”

और दूबे भाभी ने एक हाथ उसकी फ्राक पे ऐसा डाला की सारी की सारी बटन टूटकर चटक के हवा में।

“नीचे की दुकान बंद है तो क्या हुआ ऊपर की तो खुली है? तुम आज बचा ले गई उसको। होली में भी अपने यार के साथ रहोगी, लेकिन याद रखना। रंगपंचमी में सूद समेत बदला लूंगी…”


दूबे भाभी ने हड़काया उनके दोनों हाथ फ्राक के अन्दर कसकर यौवन मर्दन करते हुए और जो हाथ उन्होंने बाहर निकाला तो गुड्डी की ब्रा और उन्होंने फेंका तो सीधे मेरे ऊपर।

मैंने गुड्डी को दिखाकर उसे चूम लिया।

एक बार फिर दूबे भाभी के हाथ अन्दर।

जैसे कोई जादूगर डिब्बे से हाथ बार-बार निकालता है तो हर बार अलग-अलग चीजें, कभी खरगोश, कभी कबूतर।

अबकी कबूतर बाहर आये गोरे-गोरे सफेद हाँ मेरे और दूबे भाभी के हाथ के लाल काले रंग के निशान। गुड्डी के इन कबूतरों को मैं कई बार प्यार से छू चुका था, सहला चुका था, दबा चुका था। लेकिन इस तरह पहली बार पिंजड़े से बाहर खुलकर देखने का वो भी दिन में सबके सामने ये पहला मौका था।

दूबे भाभी ने पहले तो उसे प्यार से हल्के से दबाया और फिर खुलकर कसकर रगड़ना मसलना शुरू कर दिया।

मजा गुड्डी को भी आ रहा था भले ही वो कसकर उह्ह… आह्ह… कर रही थी। उसके कबूतरों की चोंच, मस्त निपल एकदम कड़े खड़े थे। दूबे भाभी ने कसकर उसकी चूची को दबाते हुए उभार के मुझे दिखाया और एक निपल को पिंच कर दिया। मानो कह रही हों- “लोगे क्या?”

जवाब में मैंने एक फ्लाईंग किस दिया, और गुड्डी ने मुश्कुराते हुए उछलकर कैच कर लिया। मेरा बस चलता तो दूबे भाभी की जगह मैं ही।

जगह बदल तो गई थी लेकिन चंदा भाभी के साथ, अब रीत और संध्या भाभी के बीच चंदा भाभी सैंडविच बनी हुई थी। रीत ने अपनी पाजामी फिर से बाँध ली थी।

रीत रीत थी।


लेकिन चंदा भाभी भी कम नहीं थी। वो अकेले दोनों पे भारी पड़ रही थी। उन्होंने एक हाथ से संध्या भाभी के और दूसरे से रीत के उभार दबा रखे थे। लेकिन रीत चतुर, चपल चालाक थी और ये कहावत पूरे शहर में मशहूर थी की रीत से कोई जीत नहीं सकता। उसने जैसे चन्दा भाभी से बचना चाहती हो ऐसे झुकी, और जब तक वो समझें उसने ‘बिलो द बेल्ट’ हमला कर दिया, सीधे भाभी के नाड़े पे।

बिचारी चंदा भाभी ने घबड़ाकर दोनों हाथ से अपना साया पकड़ा।

रीत इत्ती आसानी से छोड़ने वाली थोड़ी थी। उसने चन्दा भाभी के साए में हाथ डाल दिया।

अब एक हाथ से वो नाड़ा पकड़े थी और दूसरे हाथ से रीत को रोकने की कोशिश कर रही थी।

“क्यों कोई खास चीज छुपा रखी है क्या भाभी, जो इस तरह इसे बचा रही हैं?” हँसकर रीत बोली।

मेरी आँखें वहीं चिपकी थी।

चंदा भाभी भी नहीं समझ पायीं की ये मात्र डाइवर्सन की ट्रिक थी। वो निचले मंजिल पे उलझी थी और संध्या भाभी के हाथ उनकी ब्रा में घुस गए। फिर तो पेंट, रंग गुलाल सब कुछ।
“आप अकेले। अरे मेरी भी तो प्यारी-प्यारी भाभी हैं देखूं ना। चोली के पीछे क्या है? जो मेरे ही नहीं भाभी के भैया लोग भी बचपन से इसपे लट्टू थे…” खिलखिलाती हुई रीत बोली।

“आ ना…” संध्या भाभी बोली।

रीत ने पीछे से घात लगाई, वो चन्दा भाभी की पीठ से चिपकी हुई थी जिससे तमाम कोशिश करके भी। वो उसको पकड़ नहीं पा रही थी। रीत के एक हाथ भाभी की अधखुली ब्रा में घुसे रगड़ घिस कर रहे थे। उसने चिढ़ाया-

“क्यों भाभी सबसे पहले किससे दबवाया था जो इत्ते मस्त गदरा गए ये जोबन…”

“अरी तू बता किससे रगड़वाती मसलवाती रहती है…” चंदा भाभी ने जवाबी बाण छोड़ा।

“अब भाभी इत्ता कहाँ कौन हिसाब रखता है? हाँ, सबसे मस्त और सबसे आखिरी में दबाने वाला। वो है…” रीत की उंगली मेरी ओर थी।

आगे से संध्या भाभी भी-

“माना भाभी की चूचियां मस्त हैं, लेकिन कब तक उसमें उलझी रहेगी? अरे जरा खजाने का भी तो मजा ले…”

कहकर संध्या भाभी ने रीत को ललकारा। पीछे का हिस्सा रीत के कब्जे में और आगे का संध्या भाभी के कब्जे में।

चंदा भाभी भी आक्रमण के मूड में आ गई और उन्होंने संध्या के साए में हाथ डाल दिया और कस-कसकर उंगली करने लगी-


“क्यों ननद रानी कैसा लगा सैयां से चुदवाना? तेरे मैके के यार ज्यादा जबरदस्त थे या ससुराल के?”

“अरे भाभी मेरे मैके के यार तो आपके भी देवर लगते हैं। उनकी नाप जोख तो होली, बिना होली आपने भी खूब की है। रहा मेरे सैयां का सवाल तो वो तो आपके नन्दोई हैं आपका हक बनता है। होली में आयंगे ही आप स्वाद चख लीजिएगा, खुद पता लग जाएगा…” संध्या भाभी हँसते हुए बोली और अचानक चीखी-

“उयी एक साथ तीन-तीन। लगता है भाभी…”

“अरे ज्यादा छिनालपन ना कर। शादी के पहले सम्हालने की बात होती है। अब तो आने दे रंगपंचमी तेरी चूत में पूरी मुट्ठी ना किया तो कहना…”

दूबे भाभी उनकी ओर देखती बोली।

“अरे सिर्फ इसकी क्यों? इसकी दोनों सहेलियों के भी तो…”


चंदा भाभी ने रीत और गुड्डी की ओर इशारा करते हुए कहा- “अब कहाँ कुँवारी बचने वाली ये दोनों…” उनकी निगाह मेरी ओर मुश्कुराती हुई टिकी थी।

“कल का सूरज निकलने के पहले दोनों चुद जानी चाहिए…” दूबे भाभी ने फरमान जारी किया, और वो भी मेरी ओर देख रही थी।

गुड्डी और रीत दोनों शैतान, एक साथ बोली- “मंजूर लेकिन करने वाले से पूछिए…”

उसी जोश में मैं भी बोला- “एकदम मंजूर…”
 
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जोश दूबे भाभी का



तब तक दूबे भाभी ने बात पकड़ ली और गुड्डी और रीत दोनों को हड़काते हुए बोला-

“सालियों, हरामिनों, होलिका माई जर गईं बुर चोदाई कह गईं। होली खेलते समय सिर्फ लण्ड, चूत, गाण्ड, चुदाई ही बोलते हैं, वरना होलिका माई तरसा देंगी। सारी जिंदगी बैगन और मोमबत्ती से काम चलाओगी। अगर किसी ने कुछ और बोला ना तो अभी गाण्ड में हाथ पेल दूंगी कुहनी तक…”

किसको गाण्ड तक हाथ डलवाना था, रीत और गुड्डी की जुबान भी दूबे भाभी वाली हो गई। रीत ने मेरी ओर आँख नचाते हुए पूछा-

“लेकिन जो इस बहनचोद की छिनार बहना आएगी। उसके साथ कौन करेगा ये काम?”

अबकी चंदा भाभी बोली- “अरे तुम दोनों क्या सिर्फ इसका लण्ड घोटने के लिए हो? तुम दोनों की तो ननद लगेगी वो, तो तुम लोग मुट्ठी करना। सालियों…”

“और क्या चुदकर तो वो भी आएगी और चोदने वाला भी वही। आखीरकार, दूबे भाभी का हुकुम है मजाक नहीं…” हँसकर गुड्डी बोली।

भंग और दारू के नशे का असर, या दूबे भाभी का हुकुम, या फिर होली की मस्ती, या सब की सब। बात अब सिर्फ बात में ही कमर के नीचे नहीं पहुँच गई थी बल्की सच में भी।

इसलिए गुड्डी कट ली।

उस बिचारी के ‘वो दिन’ चल रहे थे। वो मेरी ओर आई। मैंने उसे बगल में बैठने का इशारा किया लेकिन वो सीधे मेरी गोद में।

उधर बाजी पलट चुकी थी।

ननद भाभी के मैच में बाजी फिर भाभी के हाथ में। दूबे भाभी ने संध्या को नीचे गिरा दिया था और चंदा भाभी रीत के साथ।

“इत्ती देर से मेरी गाण्ड में उंगली करने की कोशिश कर रही थी ना अब बताती हूँ। देख क्या-क्या डालती हूँ आगे भी, पीछे भी…”

चंदा भाभी ने रीत को चैलेन्ज किया।

उनके चंगुल से बचती हँसती खिलखिलाती रीत बोली-

“नहीं भाभी, अरे मैं कहाँ उंगली करूँगी? मुझे मालूम है इसमें एक से एक मोटे लण्ड जाकर मुँह लटका के लौट आते हैं, तो बिचारी मेरी उंगली की क्या बिसात…”

लेकिन वो भी पकड़ी गई।



दूबे भाभी तो संध्या भाभी के ऊपर पूरी तरह से। कोई मर्द क्या इस तरह रगड़कर चोदेगा। दोनों टांगें उठाकर उन्होंने अपने कंधे पे इस तरह रख ली थी की वो बिचारी चाहकर भी हिल डुल नहीं सकती थी-

“ससुराल में तो बहुत मिजवाई होगी चूची ना अब जरा भाभी का भी मजा लो ना। तेरी ये चूचियां इत्ती मस्त है की नंदोई तो रोज। दीवाने होंगे इसके…” वो बोली।

“लेकिन भाभी वो मुझसे ज्यादा आपकी चूची के दीवाने हैं…” ब्रा के ऊपर से ही दूबे भाभी के जोबन का मजा लेते संध्या बोली।



“अरे ये तो बड़ी अच्छी बात है। होली मैं तो वो आयेंगे ना अदला-बदली कर लो। मेरे सैयां तुम्हारे साथ और तेरे सैंयां मेरे साथ। होली में नीचे वाले मुँह का भी स्वाद बदल जाएगा…”

और साथ ही दूबे भाभी ने अपनी चूत से इत्ती कसकर घिस्सा लगाया की संध्या भाभी की सिसकी निकल गई।

अब बिना रंगों की होली हो रही थी। लेकिन संध्या भाभी दूबे भाभी की बात का मतलब समझ गईं और नीचे से कमर उचकाते बोली-

“भाभी ये आपके मायके में होता होगा। मुझे मेरे ही भैया से चुदवाने का प्लान बना रही हैं। आपको मेरे सैयां भी मुबारक मेरे भैया भी मुबारक, एक आगे से एक पीछे से…”

तब तक शायद दूबे भाभी ने उनके पिछवाड़े भी उंगली कर दी, जिससे वो चिहुँक कर बोली- “इधर नहीं भाभी इधर नहीं…”



“अरे तो ननदोई जी ने पीछे का बाजा नहीं बजाया? इत्ते मस्त नगाड़े जैसे तेरे चूतड़ और गाण्ड नहीं मारी? बहुत नाइंसाफी है…”

दूबे भाभी बिना उंगली निकाले बोली। और उसके बाद तो जो धमाचौकड़ी मची की न जाने कित्ते आसन दूबे भाभी ने ट्राई किये।

संध्या भाभी ने थोड़ा जवाब देने की कोशिश की लेकिन सब बेकार।

रीत का मुकाबला ज्यादा बराबरी का था। भले ही उसे उतना अनुभव ना हो लेकिन वो सीखती बहुत जल्दी थी। चंदा भाभी ने उसे दबोच लिया था लेकिन वो फिसल के मछली की तरह बाहर और उसके बाद वो जो ऊपर चढ़ी तो उसने अपने दोनों पैरों को आपस में फँसा लिया। फिर चंदा भाभी लाख ऊपर-नीचे हुई लेकिन उसकी पकड़ ढीली नहीं हुई।

गुड्डी मेरी गोद में थी, और जो होली वहां ननद भाभी खेल रही थी वही हम यहाँ खेल रहे थे। गुड्डी के जो उरोज खुले हुए थे, उसे उसने फिर से फ्राक के अन्दर बंद करने की कोशिश की। लेकिन मैंने मना कर दिया।

जिस तरह ननद भाभी एक दूसरे की चूचियां मसलती उसी तरह मैं गुड्डी की।

एक बार रीत ने देखा तो उसने वहीं से थम्स-अप की साइन दी और बोली- “लगे रहो। लेकिन इत्ते धीरे। अरे जरा कसकर…”

उसके बाद तो मुझे उकसाने की जरूरत नहीं पड़ी।
 
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फागुन के दिन चार भाग १५
दूबे भाभी

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Mass

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Just one word..Wow!! Dubey Bhabhi in full form..hitting the ball out of the park!!
The "terrorizing" of Anand Babu...was at another level...with her description of कालिख
aur terrorizing ke saath mast gaali dena...ek alag level hi hai..but her sexy seduction of "showing" her pichwada....
The reference to "stage fear" was really awesome!! The way you connect the scenes with real life situations is truly awesome!! 👍👍👍

The sexy dialog baazi between Anand Babu and Dubey Bhabhi makes it clear that this is "just the begining"...Rang Panchami ke din aur bhi masti hona baaki hai.. :)

the sexy stripping of Dubey Bhabhi's blouse and with her subsequent gaalis with a smile...kya kehna...kaash sab holi aisa khel paate :)
The Sandwich of Reet between Chanda and Dubey Bhabhi..and the "enjoyment" of Anand Babu after seeing Reet's backdoor/hole was as he rightly described.."jaan chali gayi"..
Also, Guddi's ragadi was super!!
And the Final act of Dubey Bhabhi on Sandhya was the coup de grace...

and one last thing:....The sexy saree and blouse stripping (Saadi, Blouse Haran, as you aptly described it)(of Dubey Bhabhi) and "pass the saree/blouse" act was really erotic... laced with beautiful description of the act. At the end..both the saree and blouse being thrown at the same place...well...dono ko insaaf ho hi gaya... 😀😀

Truly outstanding update. 👏 👏 👏 :thumbup: :thumbup: :thumbup: 👍👍👍👍

komaalrani
 
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