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फागुन के दिन चार ----भाग १५
दूबे भाभी
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![](https://i.ibb.co/nRBk7rh/Teej-Gao-desktop-wallpaper-amarapalli-dubey-amrapalli-dubey-bhojpuri-actress.jpg)
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चंदा भाभी अन्दर गई और रीत और संध्या भाभी दोनों मुझे उकसाते, फुसफुसाते बोलीं,
" जाओ, जाओ
मैं दूबे भाभी की ओर बढ़ा।
संध्या भाभी और रीत वहीं टेबल के पास खड़ी रही, मुश्कुराती हुई। खरगोश और शेर वाली कहानी हो रही थी। जैसे गाँव वालों ने खरगोश को शेर के पास भेजा था वैसे ही मैं भी।
दूबे भाभी मंद-मंद मुश्कुरा रही थी।
उनके दोनों हाथ कमर पे थे चैलेन्ज के पोज में और भरे हुए नितम्बों पे वो बहुत आकर्षक भी लग रहे थे। उनका आँचल ब्लाउज़ को पूरी तरह ढके हुए था लेकिन 38डीडी साइज कहाँ छिपने वाली थी।
दूबे भाभी मुस्कराकर बोलीं -
“आ जाओ, तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी। बहुत दिनों से किसी कच्ची कली का भोग नहीं लगाया। मैं रीत और संध्या की तरह नहीं हूँ। उन दोनों की भाभी हूँ…”
मैं ठिठक गया। चारों ओर मैंने देखा, ना तो भाभी के हाथ में रंग था और ना ही आसपास रंग, पेंट अबीर, गुलाल कुछ भी।
मैं दूबे भाभी को अपलक देख रहा था। छलकते हुए योवन कलश की बस आप जो कल्पना करें, रस से भरपूर जिसने जीवन का हर रंग देखा हो, देह सरोवर के हर सुख में नहाई हो, कामकला के हर रस में पारंगत, 64 कलाओं में निपुण, वो ताल जिसमें डूबने के बाद निकलने का जी ना करे।
दूबे भाभी ने छेड़ते हुए कहा “क्या देख रहे हो लाला? अरे ऐसे मस्त देवर से होली के लिए मैं खास इंतजाम से आई हूँ…” और उन्होंने एक पोटली सी खोली।
ढेर सारी कालिख, खूब गाढ़ी, काजल से भी काली, चूल्हे के बर्तन के पेंदी से जो निकलती है वैसे ही। फिर दूसरे हाथ से उन्होंने कोई शीशी खोली, कडवा तेल की दो-चार बूँदें मिलाईं, और हाथ पे लगा लिया।
दूबे भाभीने मुझे चिढ़ाया -
“मायके जाकर तो अपनी बहन छिनाल के साथ मुँह काला करोगे ही। और वो भी गदहा चोदी यहाँ आकर सारे शहर के साथ मुँह काला करेगी तो मैंने सोचा की सबसे अच्छा तुम्हारे इस गोरे-गोरे लौंडिया स्टाइल मुँह के लिए ये कालिख ही है। और एक बात और इस कालिख की, कि चाहे तुमने नीचे तेल लगाया हो पेंट लगाया हो, कोई साल्ला कन्डोम वाला प्रोटेक्शन नहीं चलेगा। चाहे साबुन लगाओ चाहे बेसन चाहे जो कुछ, इसका रन्ग जल्दी नहीं उतरने वाला। जब रन्ग पन्चमी में आओगे ना अपनी चिनाल मादरचोद बहना को लेकर तभी मैं उतारूंगी इसका असर, चेहरे से लेकर गाण्ड तक…”
अब ये सुनकर तो मेरी भी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। मैं वहीं ठिठक गया।
लेकिन जिस तरह से दूबे भाभी मेरी और लपक के बढीं, मेरे बचने का कोई चान्स नहीं रहा। प्लानिंग साली गई गधी की चूत में। भाग भोसड़ी के। भाग साल्ला भाग और मैं मुड़ लिया।
लेकिन दूबे भाभी भी, आखीरकार सारी ननदें उनसे क्यों डरती थीं? मैं आगे-आगे वो पीछे-पीछे।
लेकिन भागने में मैं भी चतुर चालाक था। तभी तो दर्जा 7 से जब पहली बार पान्डे मास्टर मेरे पिछवाड़े के पीछे पड़े थे, तबसे आज तक मेरा पिछवाड़ा बचा हुआ था। मैं कन्नी काटकर बच गया।
लेकिन अगली बार जब मैंने ये चाल चली तो दूबे भाभी मेरे आगे और मेरा सारा ध्यान उनके 40+ साइज के मस्त नितम्बों के दर्शन में। क्या मस्त कटाव, कसाव, और चलते हुये जब दोनों गोलार्ध आपस में मिलते तो बस दिल की धड़कन डबल हो जाती। और एक दूसरा खतरा हो गया। सन्ध्या भाभी अचानक सामने आ गईं और मैं एक पल के लिये उनकी ओर देखने लगा।
बस ऐक्सिडेंट हो गया। मैं पकड़ा गया।
दूबे भाभी मुस्कराकर बोलीं - “साले बहनचोद, आखिर कहां जा रहे थे छिपने अपनी बहना के भोंसड़े में? अरे फागुन में ससुराल आये हो तो बिना डलवाये कैसे जाओगे सूखे सूखे? शादी के बाद दुल्हन ससुराल जाये और बिना चुदवाये बच जाये और ससुराल में कोई होली में जाये और बिना डलवाये आ जाय। सख्त नाइन्साफी है…”
अब तक मेरे गाल पे दो किशोरियों, रीत, गुड्डी और एक तरुणी, सन्ध्या भाभी की उंगलियां रस बरसा चुकी थी।
लेकिन दूबे भाभी का स्पर्श सुख कुछ अलग ही था। उन किशोरियों के स्पर्श में एक सिहरन थी, एक छुवन थी, एक चुभन थी। और सन्ध्या भाभी के छूने में जिसने जवानी का यौन सुख का नया-नया रस चखा हो उसका अहसास था।
लेकिन दूबे भाभी की रगड़ाई मसलाई में एक गजब का डामिनेन्स, एक अधिकार था जिसके आगे बस मन करता है कि बस सरेन्डर कर दो। अब जो करना हो ये करें, उनकी उंगलियां कुछ भी नहीं छोड़ रही थी, यहां तक कि मेरा मुँह खुलवा के उन्होंने दान्तों पे भी कालिख रगड़ दी। लेकिन तभी मेरी निगाह रीत पे पड़ गई, वो तेजी से कुछ इशारे कर रही थी।
सारी प्लानिंग के बाद भी मेरी हालत स्टेज पे पहली बार गये कलाकार जैसे हो रही थी, जो वहां पहुँचकर दर्शकों को देखकर सब कुछ भूल जाय और साइड से प्राम्पट प्राम्पटर इशारे करे, और उसे देखकर और डायरेक्टर के डर से उसे भूले हुये डायलाग याद आ जायें। वही हालत मेरी हो रही थी।
रीत को देखकर मुझे सब कुछ याद आ गया और मैंने एक पलटी मारी। लेकिन दूबे भाभी की पकड़ कहां बचता मैं।
हाँ हुआ वही जो हम चाहते थे। यानी अब भाभी मेरे पीछे थी।
उनके रसीले दीर्घ स्तन मेरे पीठ में भाले की नोक की तरह छेद कर रहे थे। उन्होंने अपनी दोनों टांगों के बीच मेरी टांगों को फँसा लिया था, जिससे मैं हिल डुल भी ना पाऊँ और अब उनके हाथ कालिख का दूसरा कोट मेरे गालों पे रगड़ रहे थे और साथ में अनवरत गालियां। मेरे घर में किसी को उन्होंने नहीं बख्शा।
लेकिन इसी चक्कर में वो भूल गईं इधर-उधर देखना और साइड से रीत और सन्ध्या भाभी ने एक साथ।
वो दोनों उनके चिकने गोरे-गोरे पेट पे रंग लगा रही थी, पेंट मल रही थी। लेकिन अभी भी दूबे भाभी का सारा ध्यान मेरी ओर ही लगा हुआ था जैसे कोई बहुत स्वादिष्ट मेन-कोर्स के आगे साईड डिश भूल जाय। हाँ गालियों का डायरेक्शन जरूर उन्होंने उन दोनों कि ओर मोड़ दिया था।
दूबे भाभी ने छेड़ते हुए कहा
“अरे पतुरियों, बहुत चूत में खुजली मच रही है? भूल गई पिछले साल की होली। अरे जरा इस रसगुल्ले के चिकने गाल का मजा ले लेने दे फिर बताती हूँ तुम छिनारों को। यहीं छत पे ना नंगा नचाया तो कहना…”
दूबे भाभी
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मैं दूबे भाभी की ओर बढ़ा।
संध्या भाभी और रीत वहीं टेबल के पास खड़ी रही, मुश्कुराती हुई। खरगोश और शेर वाली कहानी हो रही थी। जैसे गाँव वालों ने खरगोश को शेर के पास भेजा था वैसे ही मैं भी।
दूबे भाभी मंद-मंद मुश्कुरा रही थी।
उनके दोनों हाथ कमर पे थे चैलेन्ज के पोज में और भरे हुए नितम्बों पे वो बहुत आकर्षक भी लग रहे थे। उनका आँचल ब्लाउज़ को पूरी तरह ढके हुए था लेकिन 38डीडी साइज कहाँ छिपने वाली थी।
दूबे भाभी मुस्कराकर बोलीं -
“आ जाओ, तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी। बहुत दिनों से किसी कच्ची कली का भोग नहीं लगाया। मैं रीत और संध्या की तरह नहीं हूँ। उन दोनों की भाभी हूँ…”
मैं ठिठक गया। चारों ओर मैंने देखा, ना तो भाभी के हाथ में रंग था और ना ही आसपास रंग, पेंट अबीर, गुलाल कुछ भी।
मैं दूबे भाभी को अपलक देख रहा था। छलकते हुए योवन कलश की बस आप जो कल्पना करें, रस से भरपूर जिसने जीवन का हर रंग देखा हो, देह सरोवर के हर सुख में नहाई हो, कामकला के हर रस में पारंगत, 64 कलाओं में निपुण, वो ताल जिसमें डूबने के बाद निकलने का जी ना करे।
दूबे भाभी ने छेड़ते हुए कहा “क्या देख रहे हो लाला? अरे ऐसे मस्त देवर से होली के लिए मैं खास इंतजाम से आई हूँ…” और उन्होंने एक पोटली सी खोली।
ढेर सारी कालिख, खूब गाढ़ी, काजल से भी काली, चूल्हे के बर्तन के पेंदी से जो निकलती है वैसे ही। फिर दूसरे हाथ से उन्होंने कोई शीशी खोली, कडवा तेल की दो-चार बूँदें मिलाईं, और हाथ पे लगा लिया।
दूबे भाभीने मुझे चिढ़ाया -
“मायके जाकर तो अपनी बहन छिनाल के साथ मुँह काला करोगे ही। और वो भी गदहा चोदी यहाँ आकर सारे शहर के साथ मुँह काला करेगी तो मैंने सोचा की सबसे अच्छा तुम्हारे इस गोरे-गोरे लौंडिया स्टाइल मुँह के लिए ये कालिख ही है। और एक बात और इस कालिख की, कि चाहे तुमने नीचे तेल लगाया हो पेंट लगाया हो, कोई साल्ला कन्डोम वाला प्रोटेक्शन नहीं चलेगा। चाहे साबुन लगाओ चाहे बेसन चाहे जो कुछ, इसका रन्ग जल्दी नहीं उतरने वाला। जब रन्ग पन्चमी में आओगे ना अपनी चिनाल मादरचोद बहना को लेकर तभी मैं उतारूंगी इसका असर, चेहरे से लेकर गाण्ड तक…”
अब ये सुनकर तो मेरी भी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। मैं वहीं ठिठक गया।
लेकिन जिस तरह से दूबे भाभी मेरी और लपक के बढीं, मेरे बचने का कोई चान्स नहीं रहा। प्लानिंग साली गई गधी की चूत में। भाग भोसड़ी के। भाग साल्ला भाग और मैं मुड़ लिया।
लेकिन दूबे भाभी भी, आखीरकार सारी ननदें उनसे क्यों डरती थीं? मैं आगे-आगे वो पीछे-पीछे।
लेकिन भागने में मैं भी चतुर चालाक था। तभी तो दर्जा 7 से जब पहली बार पान्डे मास्टर मेरे पिछवाड़े के पीछे पड़े थे, तबसे आज तक मेरा पिछवाड़ा बचा हुआ था। मैं कन्नी काटकर बच गया।
लेकिन अगली बार जब मैंने ये चाल चली तो दूबे भाभी मेरे आगे और मेरा सारा ध्यान उनके 40+ साइज के मस्त नितम्बों के दर्शन में। क्या मस्त कटाव, कसाव, और चलते हुये जब दोनों गोलार्ध आपस में मिलते तो बस दिल की धड़कन डबल हो जाती। और एक दूसरा खतरा हो गया। सन्ध्या भाभी अचानक सामने आ गईं और मैं एक पल के लिये उनकी ओर देखने लगा।
बस ऐक्सिडेंट हो गया। मैं पकड़ा गया।
दूबे भाभी मुस्कराकर बोलीं - “साले बहनचोद, आखिर कहां जा रहे थे छिपने अपनी बहना के भोंसड़े में? अरे फागुन में ससुराल आये हो तो बिना डलवाये कैसे जाओगे सूखे सूखे? शादी के बाद दुल्हन ससुराल जाये और बिना चुदवाये बच जाये और ससुराल में कोई होली में जाये और बिना डलवाये आ जाय। सख्त नाइन्साफी है…”
अब तक मेरे गाल पे दो किशोरियों, रीत, गुड्डी और एक तरुणी, सन्ध्या भाभी की उंगलियां रस बरसा चुकी थी।
लेकिन दूबे भाभी का स्पर्श सुख कुछ अलग ही था। उन किशोरियों के स्पर्श में एक सिहरन थी, एक छुवन थी, एक चुभन थी। और सन्ध्या भाभी के छूने में जिसने जवानी का यौन सुख का नया-नया रस चखा हो उसका अहसास था।
लेकिन दूबे भाभी की रगड़ाई मसलाई में एक गजब का डामिनेन्स, एक अधिकार था जिसके आगे बस मन करता है कि बस सरेन्डर कर दो। अब जो करना हो ये करें, उनकी उंगलियां कुछ भी नहीं छोड़ रही थी, यहां तक कि मेरा मुँह खुलवा के उन्होंने दान्तों पे भी कालिख रगड़ दी। लेकिन तभी मेरी निगाह रीत पे पड़ गई, वो तेजी से कुछ इशारे कर रही थी।
सारी प्लानिंग के बाद भी मेरी हालत स्टेज पे पहली बार गये कलाकार जैसे हो रही थी, जो वहां पहुँचकर दर्शकों को देखकर सब कुछ भूल जाय और साइड से प्राम्पट प्राम्पटर इशारे करे, और उसे देखकर और डायरेक्टर के डर से उसे भूले हुये डायलाग याद आ जायें। वही हालत मेरी हो रही थी।
रीत को देखकर मुझे सब कुछ याद आ गया और मैंने एक पलटी मारी। लेकिन दूबे भाभी की पकड़ कहां बचता मैं।
हाँ हुआ वही जो हम चाहते थे। यानी अब भाभी मेरे पीछे थी।
उनके रसीले दीर्घ स्तन मेरे पीठ में भाले की नोक की तरह छेद कर रहे थे। उन्होंने अपनी दोनों टांगों के बीच मेरी टांगों को फँसा लिया था, जिससे मैं हिल डुल भी ना पाऊँ और अब उनके हाथ कालिख का दूसरा कोट मेरे गालों पे रगड़ रहे थे और साथ में अनवरत गालियां। मेरे घर में किसी को उन्होंने नहीं बख्शा।
लेकिन इसी चक्कर में वो भूल गईं इधर-उधर देखना और साइड से रीत और सन्ध्या भाभी ने एक साथ।
वो दोनों उनके चिकने गोरे-गोरे पेट पे रंग लगा रही थी, पेंट मल रही थी। लेकिन अभी भी दूबे भाभी का सारा ध्यान मेरी ओर ही लगा हुआ था जैसे कोई बहुत स्वादिष्ट मेन-कोर्स के आगे साईड डिश भूल जाय। हाँ गालियों का डायरेक्शन जरूर उन्होंने उन दोनों कि ओर मोड़ दिया था।
दूबे भाभी ने छेड़ते हुए कहा
“अरे पतुरियों, बहुत चूत में खुजली मच रही है? भूल गई पिछले साल की होली। अरे जरा इस रसगुल्ले के चिकने गाल का मजा ले लेने दे फिर बताती हूँ तुम छिनारों को। यहीं छत पे ना नंगा नचाया तो कहना…”
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