Shetan
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वाह आनंद बाबू नसीब वाले हो जो बनारस की होली खेल रहे हो. तभि तो कन्या रस और नारी रस का संगम दिख रहा है. मन मोह लेने वाला नजारा दिख रहा है. रीत जिस से तुम प्रीत लगाने की कोसिस कर रहे हो. तुमने दबोच मशला लेकिन नजारा तो अशली भाभियों ने दिखाया.रीत -चंदा भाभी-दूबे भाभी और बनारसी होली
रीत, चंदा भाभी और दूबे भाभी के बीच सैंडविच बनी हुई थी।
पीछे से दूबे भाभी ने दबोच रखा था और आगे से चंदा भाभी नंबर लगाकर बैठी थी। और तीनों ब्रा और, बल्की रीत ब्रा और अपनी ट्रेड मार्क पाजामी में, और दूबे और चंदा भाभी ब्रा और साए में। दूबे भाभी के हाथ में अभी भी कालिख का स्टाक बचा हुआ था, जिसे उन्होंने सबसे पहले रीत की गोरी नमकीन पीठ पे मला और फिर आगे हाथ डालकर उसके गोरे उभार पे ब्रा में हाथ डालकर। पीठ पे रंग लगा रहा हाथ सरक के अचानक उसकी पाजामी में, क्या कोई मर्द नितम्बों को दबाएगा, जिस तरह दूबे भाभी रीत के मस्त गुदाज रसीले नितम्बों को दबोच रही थी, पूरी ताकत से।
दबा वो रही थी मजा मुझे आ रहा था।
और पीछे से ब्रा की स्ट्रिप भी रीत की, चन्दा भाभी के लाल गुलाबी रंगों से लाल हो गई थी।
शाम को कभी-कभी जैसे बादल दिखते हैं ना उसकी पीठ वैसे ही दिख रही थी। जो थोड़ी सी जगह रंगों से बच गई थी गोरी, सफेद रूई से बादलों की तरह। दूबे भाभी के हाथ जहां-जहां पहुँचे थे वो श्याम रतनारे बादल की तरह और ब्रा की स्ट्रिप और उसके आस पास चंदा भाभी की उंगलियां जहाँ छू गई थी, वहां लाल गुलाबी जैसे कुछ सफेद बादल भी जहां सूरज की किरणें पड़ती ही लाल छटा दिखाती हैं। रंग लगने से वो और रंगीन हो गई थी।
तभी वो हुआ जो मैं तब से चाहता था जब से मैंने उसे सबसे पहले देखा था।
धींगा मस्ती में दूबे भाभी और चंदा भाभी ने मिलकर उसकी ब्रा नीचे खींच दी और रीत के दोनों उभार एक पल के लिए मुझे दिख गए। बस मैं बेहोश नहीं हुआ यही गनीमत थी।
जैसे कोई पूरी दुनियां की खूबसूरती, जवानी का नशा, जीवन का सारा रस अगर एक जगह लाकर रख दें ना कुछ ऐसा। जैसे गूंगे का गुड़ कहते हैं ना की वो खा तो ले ना लेकिन स्वाद ना बता सके, बस वही हालत मेरी हो रही थी। लेकिन मैं उस हालत से पल भर में उबर गया क्योंकी अगले ही पल दूबे भाभी के हाथों में दोनों कैद हो गए, और वो इस तरह से मसल रही थी की।
उधर दोनों गालों का रस चन्दा भाभी ले रही थी।
मुझे लगा की बिचारी मेरी मृग-नयनी कहाँ दो के साथ कित्ती परेशान होगी बिचारी। लेकिन अचानक वो पीछे मुड़ी जैसे कोई टेलीपैथी हो, और मुझे देखकर ना सिर्फ मुश्कुराई बल्की हल्की आँख भी मार दी।
मैं समझ गया की ये भी उतना ही रस ले रही है।
चंदा भाभी ने तभी एक बाल्टी रंग लेकर पीछे से उसकी पाजामी पे।
और दूबे भाभी भी क्यों पीछे रहती, उन्होंने तो पीछे से पाजामी फैलाकर उसके अन्दर।
मेरा फायदा हुआ की अब उसके सारे कटाव उभार एक साथ और रीत का ये फायदा हुआ की उसने एक झटके में अपनी ब्रा ठीक कर ली।
क्या कटाव थे।
दोनों भाभियों ने जो रंग की बाल्टियां छोड़ी थी, अन्दर और बाहर रीत की पाजामी पूरी तरह उसकी खूबसूरत जाँघों से चिपक गई। और बिलकुल ‘सब दिखता है’ वाली बात हो रही थी। पीछे का नजारा तो छोड़िये, एक पल के लिए वो आगे मुड़ी तो भरतपुर भी दिख गया। आलमोस्ट। सुधी पाठक सोच ही सकते हैं की मेरे जंगबहादुर की क्या हालत हुई होगी।लेकिन उसके आगे जो हुआ वो और खतरनाक था।
दूबे भाभी और चन्दा भाभी ने मिलकर रीत की पाजामी का नाड़ा खोल दिया लेकिन बहुत मुश्किल से।
एक तो उसने कसकर बाँध रखा था और फिर दोनों हाथों से कसकर। हार के चन्दा भाभी को उसे गुदगुदी लगानी पड़ी। वो खिलखिला के हँसी और नाड़ा दूबे भाभी के हाथ में।
मुझे लगा की अब रीत गुस्सा हो जायेगी।
लेकिन उसकी वो मुश्कुरा रही थी उसी तरह। जब पाजामी नीचे सरकी तो उस चतुर चपला ने ना जाने किस तरह पैरों को किया की वो उसके घुटने पे ही फँस गई लेकिन मुझे एक जबर्दस्त फायदा हुआ, मस्त नितम्बों के नजारे का। जो भीगे पाजामी से झलक मिल रही थी वो तो कुछ भी नहीं थी इसके आगे।
क्या नजारा था।
रीत की लेसी थांग दो इंच चौड़ी भी नहीं रही होगी और पीछे से तो बस एक मोटी रस्सी इतना दोनों नितम्बों के बीच फँसा हुआ।
प्लंप, प्रेटी, परफेक्ट, मस्त कसे कड़े,... पाजामी के ऊपर से उसे देखकर मन मचल जाता था तो अब तो वो कवच भी नहीं रहा। और उसके ऊपर लगे रंग।
दूबे भाभी की उंगलियों से लगा उनकी ट्रेड मार्क कालिख, चंदा भाभी के लाल गुलाबी चटखदार और मेरे हाथ के लगे सतरंगी रंग, मेरी उंगलियों से लगे पेंट के रंग तो दरार के अन्दर तक।
और फिर दूबे भाभी ने वो काम किया की जिसके बाद तो वो मेरी जान मांग लेती तो मैं सोने की थाली में रखकर हाजिर कर देता।
उन्होंने रीत की थांग को पीछे से हटा दिया और साथ-साथ दोनों नितम्बों को फैलाकर पिछवाड़े की वो गली दिखा दी, जिसके लिए सारा बनारस दीवाना था।
दोनों हाथ तो आगे चंदा भाभी ने पकड़ रखे थे।
मेरी ओर देखकर दूबे भाभी ने आँखों-आँखों में पूछा- “पसंद आया…”
सीने पे हाथ रखकर मैंने इशारा किया- “जान चली गई…”
फिर दूबे भाभी ने वो काम शुरू कर दिया, जिसके लिए उनकी सारी ननदें नजदीक की दूर की, रिश्ते की पड़ोस की डरती थी।
क्या कोई मर्द चोदेगा। रीत की कमर पकड़कर वो धक्के उन्होंने लगाए उस तरह से रगड़ा। रीत ने वो किया जिसके लिए मैं उसका दीवाना था, मस्ती और हिम्मत, हाजिर जवाबी और मजे लेने और देने की ताकत।
रीत बोली- “अरे भाभी, मेरी तो पाजामी आप ने सरका दी। लेकिन आप का पेटीकोट। क्या मजा आएगा…”
“ठीक तो कह रही है लड़की…” चंदा भाभी ने बोला और दूर बैठे मैंने भी सहमती में सिर हिलाया।
“अरे चूत मरानो, छिनार, तेरी तरह मैं पाजामी, जीन्स, पैंट नहीं पहनती जिसे उतारने में 10 झंझट हो। साड़ी पेटीकोट पहनो तो आम की बाग हो, अरहर और गन्ने का खेत हों बस लेटो टांग उठाओ, तैयार…”
दूबे भाभी बोली और एक झटके में पेटीकोट उठाकर कमर पे खोंस लिया।
डबल धमाका।
एक किशोरी के बाद अब एक प्रौढ़ा, एक मस्त खेली खायी भाभी का पिछवाड़ा, वो भी 40+ वाली साइज का। पीछे से दूबे भाभी। आगे से चंदा भाभी। मैंने दूर बैठकर थ्री-सम का मजा देख रहा था।
रीत रानी छिनार, मेरी ननदी छिनार, अगवाड़ा छिनार, पिछवाड़ा छिनार,
एक जाए आगे, दूसर पिछवाड़े, बचा नहीं कोऊ नौवा कहांर।
साथ में बनारसी गारी का भी मजा, दूबे भाभी और चंदा भाभी के समवेत स्वरों में।
गुड्डी और संध्या भाभी। दूर से देख रही थी। गुड्डी लगभग बची हुई थी, मेरे हाथ से निकालने के बाद से। एक तो उसके ‘वो दिन’ चल रहे थे और फिर जब मैं रीत के साथ मिलकर दूबे भाभी के चीरहरण में लगा था वो अन्दर थी, चंदा भाभी के साथ।
उसने संध्या भाभी से मिलकर कुछ बात की और राहत मिशन लान्च हुआ।
रीत को तो थोड़ी राहत मिली लेकिन अब गुड्डी फँस गई, वो भी दूबे भाभी के हाथों।
तुम्हे जोबन की झलक दिखलाई, भरतपुर और प्रेम गली भी दिखाई. जिसे देख कर तुम्हे नशा हो गया. पिछवादा खोल कर दिखलाया. पसंद आया. आखिर रीत साली है तुम्हारी.
थ्रीसम नारी रस सेंडविच कमुख्ता से भी परे था. अब तो समझो की नांदिया छिनार हो या देवर नथ तो सिर्फ भाभी ही उतरती है.
और साथ मै भाभियों के नशीले जोबन के नजरे. प्रेटीकोट साया. भाभी कोई रीत के जैसे थोड़ी ना जींस वगेरा पहनती है.
गारी का तड़का जबरदस्त था. थोड़ी और गरिया डालो गीत के साथ मे रसिया हु. इनकी.
और अब तुम्हारी वाली की बारी.