Sanju@
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गुड्डी रीत और संध्या अबकी बार दुबे भाभी की साड़ी ब्लाउज सब उतार कर टॉपलेस करना चाहती थी इसलिए आनंद को बलि का बकरा बना दिया लेकिन दुबे भाभी बहुत तेज है वह शायद उनकी चाल पहले ही समझ गई है लगता है अब अच्छे से रगड़ाई होने वाली है लेकिन किस की ????, संध्या भाभी, गुड्डी,
मैं गुड्डी और रीत देख रहे थे। शायद मैं या रीत देते तो उन्हें शक भी होता लेकिन संध्या भाभी बाद में आई थी इसलिए वो नहीं सोच सकती थी की वो भी हमारी चांडाल चौकड़ी में जवाइन हो गईं होंगी।
रीत मुझसे बोली- “यार देखो जब तुम संध्या भाभी के साथ थे मैंने साथ दिया की नहीं? वो इत्ता बुलाती रही लेकिन मैं नहीं आई…”
“वो तो है…” मैंने मुश्कुराकर कहा।
“तो तुम भी कुछ करो यार। मेरा हम लोगों का साथ दो ना। वैसे भी तुम अब तो चंडाल चौकड़ी जवाइन ही कर चुके हो…” वो इसरार करते हुए बोली।
“करना क्या है बोल ना। जान देना है। पहाड़ तोड़ना है?” मैं बोला।
अब गुड्डी मैदान में आ गयी, थोड़ा प्यार की चाशनी और थोड़ा हुकुमनामा मिला के
“जान दें तुम्हारे दुशमन ऐसा कुछ नहीं। अरे यार हर साल होली में दूबे भाभी हम लोगों की सारी ननदों की खूब ऐसी की तैसी करती हैं, तो अबकी तुम साथ हो तो, … मैंने और रीत दी ने सोचा,..”
मैं समझ गया की मुझे ये शेरनी के सामने भेज के रहेंगी।
रीत ने फिर बात शुरू की- “यार ऐसा कुछ करो ना की। हर साल वो हम सब लोगों को टापलेश कर देती हैं पूरा। और कई बार तो सब कुछ और उसके बाद। चंदा भाभी भी उनके साथ रहती हैं कई बार तो एक दो पास पड़ोस वाली भी, लेकिन अबकी तुम साथ हो तो हिसाब जरा बराबर हो जाये। हम लोग तो साडी तक नहीं उनकी उतरवा पाते, तो कम से कम साडी ब्लाउज तो आज, बस थोड़ा सा, आज तुम साथ दो ना तो हम लोग भी दूबे भाभी की साड़ी ब्लाउज़, बहुत मजा आयेगा…”
मजा तो मुझे भी आ रहा था क्योंकि दूबे भाभी ने रमोला का पूरा ग्लास डकार लिया था। और साथ में भांग मिली गुझिया, और भांग का असर तो मेरे ऊपर भी हो रहा था।
मैं मन की आँखों से दूबे भाभी को साडी चोली विहीन देख रहा था, ३८ + के जोबन जरूर डबल डी होगी कप साइज और चूतड़ तो ४० ++ होंगे ही, लेकिन ऊपर नीचे दोनों एकदम कड़े कड़े, आइडिया तो अच्छा है, और झिलमिलाते नशे से मैं जो बाहर आया तो संध्या भौजी, जिनकी साड़ी मैंने खींच फेंकी थी और जैसे चोली में हाथ डाला तो चट चट कर के सारे बटन टूट गए, बस एक छोटा सा नन्हा मुन्ना हुक किसी तरह से, और उनकी लेसी ट्रांसपेरेंट ब्रा से मैंने कस कस के उनका जोबन रगड़ रगड़ के रंगा था सब साफ़ दिख रखा था और गीला साया देह से एकदम चिपका, उनके बड़े बड़े चूतड़ों की दरार के अंदर घुसा चिपका था।
और संध्या भौजी अपना काम अच्छी तरह से कर रही थी, रमोला का दूसरा ग्लास उन्होंने अपने हाथ से दूबे भाभी को पकड़ा दिया था।
रीत और गुड्डी की जोड़ी, जैसे गुड कॉप, बैड कॉप, कभी रीत बैड कॉप बनती तो कभी गुड्डी और अब गुड्डी बैड कॉप वाले रोल में थी, हड़का मुझे रही थी, बोल रीत से रही थी,
" दी अरे आपने एक बार बोल दिया, हिम्मत है नहीं जाएंगे दूबे भाभी के पास, हम लोगो का साथ नहीं देंगे, जा रही हूँ न मैं इनके साथ, और हफ्ते भर रहूंगी । अब इन्हे सोचना है, चलिए में चंदा भाभी के पास जरा चलती हूँ वरना वो लोग भी सोचेंगी ये तीनो मिल के क्या खिचड़ी पका रही हैं "
और गुड्डी की धमकी के आगे तो, मामला सिर्फ आज की रात की दावत का नहीं था, उसने साफ़ साफ़ इशारा कर दिया, हफ्ते भर का, भैया भाभी तो ऊपर के कमरे में सोते हैं और नीचे तो मैं और गुड्डी ही, फिर ये चंद्रमुखी अगर ज्वालामुखी हो गयी तो मैं जो जिंदगी भर के सपने संजो के बैठा हूँ सब, दूबे भाभी क्या मैं तो शेर के पिजंड़े में भी चला जाऊं,
गुड्डी चंदा भाभी के पास चली गयी और रीत को दूबे भाभी ने किसी काम से नीचे भेज दिया, कुछ लाना था।
रीत गुड्डी से बोल के गयी, बस मैं अभी गयी अभी आयी लेकिन तबतक तुम जरा, मेरे और चंदा भाभी की ओर इशारा कर के बोली।
और अब मेरी हिम्मत और बढ़ गयी, सिर्फ मैं और गुड्डी, बस गुड्डी के जाने के पहले मैंने प्लेट में रखा गुलाल उसके चेहरे पे रंग दिया और बोला-
गली-गली रंगत भरी, कली-कली सुकुमार,
छली-छली सी रह गई, भली-भली सी नार।
वो मुश्कुरा दी और मेरी सारी देह नेह के रंग से रंग गई।
तब तक संध्या भाभी विजयी मुद्रा में लौटी और हम लोगों को हड़काते हुए हल्की आवाज में बोली- “अरे तुम लोग आपस में ही होली खेलते रहोगे या जिसकी प्लानिंग करनी थी वो भी कुछ। …”
और गुड्डी चंदा भाभी के पास
गुड्डी बात चंदा भाभी से कर रही थी लेकिन बीच बीच में कनखियों से मुझे देख रही थी। उसकी एक बदमाश लट बार बार गुड्डी के गालों पे जहां मैंने अभी अभी हल्का सा गुलाल लगाया था वहीं बार बार और मेरा मन गुनगुना रहा था,
तितली जैसी मैं उड़ूँ, चढ़ा फाग का रंग,
गत आगत विस्मृत हुई, चढ़ी नेह की भंग।
रंग अबीर गुलाल से धरती हुई सतरंग,
भीगी चुनरी रंग में अंगिया हो गई तंग…”
गुड्डी चंदा भाभी और दूबे भाभी के साथ कुछ गुपचुप कर रही थी। मेरी समझ में नहीं आ रहा था की उसने गैंग बदल लिया या घुसपैठिया बनकर उधर गई है?
प्लानिंग तो हो गई लेकिन जो मेरा डर था वही हुआ।
मुझे बकरा बनाया गया।
तब तक दूबे भाभी की आवाज आई- “हे टाइम खतम…”
“बस दो मिनट…” और हिम्मत बढ़ाने के लिए संध्या भाभी ने बियर की ग्लास पकड़ाई और और मुस्करा के गुड्डी की ओर इशारा कर के बोलीं,
" तुझे कंट्रोल में रखती हैं "
" लेकिन भौजी मेरे कंट्रोल में नहीं आती "
हम दोनों बियर गटक रहे थे और भौजी ने गुरु ज्ञान दिया,
" जा तो रही है तेरे साथ, आज रात पटक के पेल देना, ये स्साला मोटा मूसल एक बार घुसेगा न बुरिया में में तो एकदम कंट्रोल में आ जायेगी "
और साथ में संध्या भौजी ने बरमूडा के ऊपर से फड़फड़ाते पंछी को पकड़ लिया मेरे। वो अब संध्या भौजी की पकड़ अच्छी तरह पहचानता था। अभी कुछ देर तो पहले उन्होंने बरमूडा के अंदर हाथ डालकर नहीं बल्कि बरमूडा नीचे सरका के उस को खुली हवा में लाके मुठिया था अपनी चुनमुनिया से मुलाकात करवाई थी, उसका चुम्मा दिलवाया था।
अब मैं फिर बौरा गया, संध्या भौजी के रंग से भीगे खुली चोली से ब्रा से झांकते जोबन एकदम मेरे सीने के पास, और मेरी हालत देख के उन्होंने रगड़ दिया अपने उभारों को मेरे सीने पे, और मेरे मुंह से निकल गया,
"पहले तो ये कहीं और पेलना चाहता है। "
वो हट गयीं और जैसे गुस्से में, बोलीं, " नहीं "
मैं एक पल के लिए घबड़ा गया लेकिन अगले पल अपनी जूठी बियर की ग्लास को मेरे मुंह में लगा के मेरा मुंह बंद किया और अपने होंठो से मेरे कानों को दुलराते, कान में बोलीं,
" तू क्या पेलेगा अपनी भौजी को, मैं पेलूँगी तुझे। रेप कर दूंगी तेरा। हाँ उसके बाद भी मेरा मन किया तो एक राउंड और लेकिन चिकने बिन चुदे तू बचेगा नहीं आज मुझसे "
" मंजूर भौजी, लेकिन गुड्डी "
भांग के नशे में क्या है, जो चीज दिमाग में एक बार घुस जाती है, आदमी वही बोलता रहता है और गुड्डी तो मेरे दिल दिमाग में हमेशा के लिए तो फिर मैंने संध्या भाभी से वही गुहार लगाई।
" चल यार बोल दूंगी, छोटी बहन है बात थोड़े टालेगी, दो इंच की चीज के लिए इतना निहोरा करवा रही है। " वो मेरे मूसलचंद को प्यार से दुलराते, सहलाते बोलीं। उन्हें मुझसे ज्यादा मेरे मूसलचंद की चिंता थी।
भांग का एक फायदा भी है की झिझक चली जाती है, दिल की बात मुंह पे आ जाती है, और मैंने संध्या भाभी से अपने मन की बात कह दी
" भौजी, गुड्डी , एक बार के लिए नहीं, हरदम के लिए, मतलब, " अब मैं हकला रहा था, थूक घोंट रहा था, हिम्मत जवाब दे गयी थी।
" ओह्ह ओह्ह तो तोता मैना की कहानी, तो जो मैंने उड़ते पड़ते सुना था सही है लेकिन सोच लो देवर जी, हाँ कहने के पहले तलवे चटवायेगी "
संध्या भौजी ने मेरी नाक पकड़ ली और छेड़ रही थीं,
" तलवे तो मैं उसके जिंदगी भर चाटूँगा भौजी, बस एक बार, " एक बार मन की बात निकलना शुरू होती है तो रुकना मुश्किल होता है,
" सिर्फ उसके या " वो हंस के बोली और मैं उनका मतलब समझ गया, और मेरे मन की आँखों में गुड्डी की मम्मी, उसकी दोनों छोटी बहने,
' सबके " खिलखिलाते हुए मैं बोला।
तबतक रीत भी आ गयी और रीत ने भी एक बियर की ग्लास उठा ली लेकिन रीत और संध्या भाभी दोनों चंदा भाभी और गुड्डी की ओर देख रही थी जैसे किसी सिग्नल का इन्तजार कर रही हों।
गुड्डी कमरे के अन्दर गई और कुछ देर में लौटकर चन्दा भाभी से कहने लगी- “एक मिनट के लिए आप आ जाइए ना मुझे नहीं मिल रहा…”
चंदा भाभी अन्दर गई और रीत और संध्या भाभी दोनों मुझे उकसाते, फुसफुसाते बोलीं,
" जाओ, जाओ"
मैं दूबे भाभी की ओर बढ़ा। संध्या भाभी और रीत वहीं टेबल के पास खड़ी रही, मुश्कुराती हुई। खरगोश और शेर वाली कहानी हो रही थी। जैसे गाँव वालों ने खरगोश को शेर के पास भेजा था वैसे ही मैं भी।
दूबे भाभी मंद-मंद मुश्कुरा रही थी।
उनके दोनों हाथ कमर पे थे चैलेन्ज के पोज में और भरे हुए नितम्बों पे वो बहुत आकर्षक भी लग रहे थे। उनका आँचल ब्लाउज़ को पूरी तरह ढके हुए था लेकिन 38डीडी साइज कहाँ छिपने वाली थी।
दूबे भाभी बोली-
“आ जाओ, तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी। बहुत दिनों से किसी कच्ची कली का भोग नहीं लगाया। मैं रीत और संध्या की तरह नहीं हूँ। उन दोनों की भाभी हूँ…”
मैं ठिठक गया। चारों ओर मैंने देखा, ना तो भाभी के हाथ में रंग था और ना ही आसपास रंग, पेंट अबीर, गुलाल कुछ भी। मैं दूबे भाभी को अपलक देख रहा था। छलकते हुए योवन कलश की बस आप जो कल्पना करें, रस से भरपूर जिसने जीवन का हर रंग देखा हो, देह सरोवर के हर सुख में नहाई हो, कामकला के हर रस में पारंगत, 64 कलाओं में निपुण, वो ताल जिसमें डूबने के बाद निकलने का जी ना करे।
संध्या भाभी तो खुद चुदने के लिए तैयार है देखते हैं आनंद पहल करता है या संध्या भाभी को जबरदस्ती करनी पड़ेगी