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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग 16 -
गुड्डी और रीत -होली की मस्ती

१,९६, ८१४



“अरे सिर्फ इसकी क्यों? इसकी दोनों सहेलियों के भी तो…” चंदा भाभी ने रीत और गुड्डी की ओर इशारा करते हुए कहा- “अब कहाँ कुँवारी बचने वाली ये दोनों…” उनकी निगाह मेरी ओर मुश्कुराती हुई टिकी थी।

“कल का सूरज निकलने के पहले दोनों चुद जानी चाहिए…” दूबे भाभी ने फरमान जारी किया, और वो भी मेरी ओर देख रही थी।

गुड्डी और रीत दोनों शैतान, एक साथ बोली- “मंजूर लेकिन करने वाले से पूछिए…”

उसी जोश में मैं भी बोला- “एकदम मंजूर…”

थोड़ी देर बाद मैंने गुड्डी को ड्रिंक्स इंटरवल में भेजा ड्रिंक्स लेकर, बियर, ठंडाई और चारों ने जमकर पिया। लेकिन वहीं एक गलती हो गई। दूबे भाभी और चंदा भाभी ने पहले कुछ आपस में बातचीत की फिर गुड्डी और रीत से। दोनों एक साथ मेरे पास आकर खड़ी हो गईं।

मैं- “क्यों क्या हुआ?”

गुड्डी मुश्कुराते हुए बोली- “कुछ खास नहीं…” और उसने और रीत ने एक साथ मेरा टाप पकड़ लिया और एक झटके में ऊपर खींच दिया।

मैं चीखता रहा मना करता रहा लेकिन,मैं पूरी तरह टॉपलेस, सिर्फ छोटे से गूंजा के बारमूडा में

वो दोनों, रीत और गुड्डी तो कम से कम ब्रा में थीं, और वो क्यों दूबे भाभी, चंदा भाभी और संध्या भाभी भी ब्रा में सिर्फ अच्छी खासी रंगी पूरी और सबकी ब्रा में हाथ डाल के मैं जोबन सुख भी ले चुका था और कबूतरों को अच्छी तरह रंग भी चुका था,

पर मैं तो पूरी तरह टॉपलेस

तभी गुड्डी बोली- “जाने दो यार। साल्ला बहुत चीख रहा है…”


रीत बोली- “अरे यार अभी खोलने में इत्ता नखड़ा कर रहा है तो डलवाने में कित्ता करेगा? लेकिन तू कहती है तो छोड़ देती हूँ। आखीरकार, तेरा माल है…”


गुड्डी ने हँसकर जवाब दिया- “अरे नहीं यार, माल तो तुम्हारा भी है, बड़ी दी हो, पक्की सहेली, पहले तुम्ही नंबर लगा लेना लेकिन देख ना कित्ता हल्ला कर रहा है जैसे हम लोगों ने उसकी बहन की, …”

“अरे पूरा क्यों नहीं बोलती की जैसे हम लोगों ने उसकी बहन चोद दी है। लेकिन उसे तो यही चोदेगा। आखीरकार, घर का माल है उसका हक है। फिर वो नहीं चोदेगा तो कहीं न कहीं तो चुदवायेगी ही वो, तो फिर ये मेरा यार ही क्यों नहीं? चल तू बोलती है तो छोड़ देते हैं, ये भी क्या याद करेगा साल्ला की बनारस में ससुराल में किन दिलदार सालियों से पाला पड़ा था…” रीत बोली

और उन दोनों ने छोड़ दिया मेरा टाप, लेकिन ऐसे की मेरे टॉपलेस होने में कोई कसर थी, टॉप ऊपर मेरे सर में फंसा था और सीना खुला हुआ।



मेरा नहीं गुंजा का जो मैंने पहन रखा था, मेरे कपड़े तो इन दोनों ने हड़प कर लिए थे। मेरे गले तक अटका हुआ था। नुकसान ये हुआ की टाप अब मेरे चेहरे पे फँसा हुवा था और मैं कुछ देख नहीं पा रहा था। फायदा उन दोनों हिरणियों को हुआ, मेरे ऊपर कम्प्लीट कब्ज़ा।



“चल आगे से तू पीछे से मैं…” ये रीत की शहद सी आवाज थी जो मैं सोते हुए भी पहचान सकता था।


“रीत दीदी। अभी आगे का क्या फायदा? हाँ शाम के बाद बात अलग है…” मुँह बनाते हुए गुड्डी बोली।



“अरे तू भी ना,यहाँ सब उसी के लिए तड़प रहे हैं। पकड़ तो सकती है ना…” रीत ने उसे हड़काते हुए उकसाया।



और उस दुष्ट ने वही।

वो भी ऊपर से नहीं सीधे बर्मुडा के अन्दर हाथ डालकर। बारमुडा पहले से तना था, दो दो किशोरियां, उनकी चुलबुली बातें, छेड़छाड़ और शैतान उँगलियाँ, खड़ा तो होना ही था

रीत भी कोई कम नहीं थी।

उसके दोनों हाथ मेरे टिट्स पे थे और जैसे कोई किसी लड़की के चूचुक सहलाए दबाये बस उसी तरह, और साथ में उसके आलमोस्ट खुले मस्त उभार, जिनका दीदार भी मैं कर चुका था और जिसके बारे में मैं श्योर था की सिर्फ सोच कर ही जिसके ऊपर वियाग्रा की फुल डोज भी असर ना करे, उसका भी लिंग खड़ा हो जाए। मेरे पीठ के पीछे से, कभी हल्के से दबा देते, कभी रगड़ देते और आगे से गुड्डी की चूचियां, जो अभी भी पूरी तरह फ्राक से बाहर थीं।



आप सोच सकते हैं फागुन का मौसम हो और दो मस्त रीत और गुड्डी की तरह की किशोरियां।

आगे-पीछे से अपने रंग लगे, गदराये गोरे-गोरे किशोर जोबन।

जो चूचियां उठान कहते हैं न बस उस तरहकर रगड़ रही हों तो क्या हालत होगी? बस वही हालत मेरी थी। बल्की उससे भी बदतर। क्योंकि गुड्डी के कोमल, मस्त लेकिन जबर्दस्त पकड़ वाले हाथ मेरे लण्ड पे थे। कभी वो शैतान अपने अंगूठे से उसके बेस पे रगड़ देती तो कभी सुपाड़े पे और साथ में रंग लगाने के साथ-साथ उसे हल्के-हल्के मुठिया तो वो रही ही थी।



रीत की आवाज मेरे कान के पास गूंजी-

“हे पीठ पे तो तुझे रंग लगाना था ना। देख कित्ती सारी जगह बच गई है…”



गुड्डी ने अदा से जवाब दिया- “मेरी अच्छी दीदी, आप लगा दो न देखो मेरे हाथ अभी कित्ते जरूरी काम में बिजी हैं। प्लीज…”


“बिजी की बच्ची तेरी सारी ननदों की गाण्ड मारूं…” रीत बोली और पेंट लगे उसके हाथ मेरी पीठ पे बिजी हो गए।

“अरे दीदी, उसकी तो मारेंगे ही…”

खिलखिला के गुड्डी बोली और कसकर मेरे लण्ड को दबा दिया और कहा-

“जब मैं आऊँगी तो इन्होंने तो दूबे भाभी से वादा किया है की उसे, अपनी बहना को लेकर आयेंगे न रंग पंचमी में और कोई दिक्कत होगी तो इन्हीं से मरवा लेंगे। क्यों मारोगे न? आखीरकार, रीत का कहना तो तुम टालते नहीं…”


मैं क्या बोलता। एक से पार पाना मुश्किल था लेकिन यहाँ तो दोनों, बनारस के रस में रसी पगी, रसीली। लेकिन तभी मेरा बल्ब जला।

मैं हँसकर बोला- “मैं एक तुम दो-दो, लेकिन चलो। सालियों से क्या बहस करना। हाँ मेरी भी एक शर्त है। तुम दोनों लगाओ तो सही, लेकिन हाथ का इश्तेमाल नहीं करोगी…”

“तुम बहुत नखड़ा दिखाते हो। वो आएगी ना तेरी बहना। देखना एक साथ तीन-तीन चढ़ेंगे उसपे, और दो इंतेजार करेंगे, तो भी वो बुरा नहीं मानेगी और तुम दो-दो पे ही…” गुड्डी ने मुँह बनाया।

लेकिन रीत चतुर चालाक थी, बड़े भोलेपन से बोली-

“अरे चल मान जाते हैं यार घर आये मेहमान से। वरना अपने मायके जाकर रोयेंगे। चल। वैसे भी हमारे हाथों को बहुत से और भी काम हैं…ठीक है हम दोनों हाथ का इस्तेमाल नहीं करेंगे और भी बहुत हथियार हैं हमारे पास ”
मैं भूल गया था रीत के मगज अस्त्र की ताकत


गुड्डी भी समझ गई।
 
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होली -गुड्डी और रीत साथ साथ , बिना हाथ



रीत चतुर चालाक थी, बड़े भोलेपन से बोली-

“अरे चल मान जाते हैं यार घर आये मेहमान से। वरना अपने मायके जाकर रोयेंगे। चल। वैसे भी हमारे हाथों को बहुत से और भी काम हैं…ठीक है हम दोनों हाथ का इस्तेमाल नहीं करेंगे और भी बहुत हथियार हैं हमारे पास ”
मैं भूल गया था रीत के मगज अस्त्र की ताकत


गुड्डी भी समझ गई।
शुरू हो गयी हैण्ड फ्री होली.
समझा मैं भी लेकिन थोड़ी देर से।

गुड्डी के उभार पे मैंने लाल गुलाबी रंग और दूबे भाभी ने जमकर कालिख रगड़ी थी, और रीत के जोबन का रस तो हम सबने मैंने, दूबे भाभी और चंदा भाभी ने सबने रंग लगाया था। बस उन दोनों हसीनाओं ने उन उभारों को ही हाथ बनाया।

और आगे से गुड्डी और पीछे से रीत ने कस-कसकर रंग लगाना, अपनी चूचियों से शुरू कर दिया, मेरे सीने और पीठ पे।

रंग लगाने का काम दोनों किशोरियों के रंगे पुते दोनों जोबना कर रहा थे थे और तंग करने का काम दोनों के नरम मुलायम हाथ।
गुड्डी की नरम हथेलियां तो मेरे लण्ड को वैसे ही तंग कर रही थी, अब रीत भी मैदान में आ गई।

उसका एक हाथ गुड्डी के साथ आगे और दूसरा मेरे नितम्बों की दरार पे पीछे।

अब मेरा चर्म दंड दोनों के हाथ में बीच में जैसे दो ग्वालिनें मिलकर मथानी मथें, बस बिलकुल उसी तरह। एक ही काफी थी, वहां दोनों, मेरी तो जान निकल रही थी। और साथ में अब रीत की दो उंगली मेरी गाण्ड की दरार में। ऊपर-नीचे रगड़-रगड़ कर। गुड्डी का एक हाथ भी वहां पहुँच गया था वो कस-कसकर मेरे नितम्बों को दबा रही थी।
मैं बोला- “अरी सालियों वहां नहीं। अगर मैं वहां डालूँगा ना तो बहुत चिल्लाओगी तुम…”

मजा जब एक सीमा के बाहर हो जाता है तो मुश्किल हो जाती है मेरी वही हालत हो रही थी।

गुड्डी बोली- “तब की तब देखी जायेगी अभी तो हमारा मौका है। डलवाओ चुपचाप…”

रीत बोली- “हाँ जैसे ये नहीं डालने वाले और हमारे रोकने से मान जायेंगे…” और उसकी उंगली पिछवाड़े घुसने की कोशिश कर रही थी।

तभी दूबे भाभी की आवाज आई- “सालियों, छिनार तुम दोनों को भेजा क्या बोलकर था और किस काम में लग गई?”


और अबकी मेरे कुछ बोलने के पहले ही गुड्डी और रीत के हाथ मेरे टाप पे और टाप बाहर। जो उन दोनों ने फेंका तो सीधे संध्या भाभी के ऊपर, उनका दूबे भाभी और चंदा भाभी के साथ थ्री-सम खतम ही हुआ था।


“अब आयगा मजा। तुमने हम सबकी ब्रा में हाथ डालकर बहुत रगड़ा मसला था, और अब तुम पूरे टापलेश हो गए हो…”गुड्डी और रीत साथ साथ बोली। और उसके बाद तो सब की सब मेरे ऊपर। जो हुआ वो न कहा जा सकता है न कहने लायक है।



उड़त गुलाल लाल भये बादर,
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मल दे गुलाल मोहे आई होली आई रे।

चुनरी पे रंग सोहे आयो होली आई रे।

चलो सहेली, चलो सहेली।
 
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. होली -बनारसी -वो पांच
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मल दे गुलाल मोहे आई होली आई रे।

चुनरी पे रंग सोहे आयो होली आई रे।

चलो सहेली, चलो सहेली।
ये पकड़ो ये, पकड़ो इसे न छोड़ो,

अरे अरे अरे बैंया न तोड़ो,

ओये ठहर जा भाभी, अरे अरे शराबी,

क्या हो रजा गली में आ जा

होली होली गाँव की गोरी ओ नखरेवाली,

दूंगी मैं ग ली अरे साली, होली रे होली।




वो पांच मैं अकेले। मैं समझ गया निहत्थे लड़ाई में तो मैं जीत नहीं सकूँगा। दूबे भाभी की पकड़ मैं देख चुका था। अब रीत और गुड्डी के हाथ बर्मुडा से बाहर थे। लेकिन दूबे भाभी और चंदा भाभी ने आगे और संध्या भाभी ने पीछे का मोर्चा सम्हाला।


“हे संध्या जरा पकड़कर देख। बोल तेरे वाले से बड़ा है की छोटा?” चंदा भाभी ने बोला। वो नाप जोख क्या पिछली रात तीन-तीन बार अन्दर ले चुकी थी।

“अरे भाभी ये अभी बच्चा है, वो मर्द हैं…” संध्या भाभी टालते हुए बोली।

“चल पकड़ वरना तुझे लिटाकर अन्दर घुसेड़वा के पूछूंगी…” ये दूबे भाभी थी।


अब संध्या भाभी के पास कोई चारा नहीं था। दूबे भाभी ने हाथ बाहर निकाला और संध्या भाभी ने डाला। थोड़ी देर तक वो इधर-उधर करती रही।

“बोल ना?” चंदा भाभी ने पूछा।


“जिसको मिलेगा ना वो बड़ी किश्मत वाली होगी…” संध्या भाभी बुदबुदा रही थी।

मैंने गुड्डी की ओर देखा, वो मुश्कुरा रही थी और उसका चेहरा चमक रहा था। उसने मेरी आँखें चार होते ही थम्स-अप का साइन दिया।



“बोल ना कैसा लगा?” अब चंदा भाभी उनके पीछे पड़ गई थी।

संध्या भाभी ने पहले तो झिझकते-झिझकते पकड़ा था, लेकिन अब अच्छी तरह से और उनका अंगूठा भी सीधे सुपाड़े पे। मेरा लण्ड दूबे भाभी के एक्सपर्ट हाथों में मुठियाने से एकदम पागल हो गया था, खूब मोटा। और अब बिचारी संध्या भाभी लाख कोशिश कर रही थी लेकिन उनकी मुट्ठी में नहीं समां रहा था।

“बोल लेना है?” चंदा भाभी चिढ़ा रही थी- “गुड्डी से कहकर सोर्स लगवा दूँ?”


“ना बाबा ना…” संध्या भाभी ने हाथ बाहर निकाल लिया- “आदमी का है या गधे घोड़े का?”


“अरे तेरे आदमी का है या बच्चे का? अभी तो इसे बच्चा कह रही थी। हाँ एक बार ले लेगी ना तो तेरे मर्द से हो सकता है मजा ना आये…” दूबे भाभी अब मेरी ओर से बोल रही थी।


लेकिन मैं समझ गया था की यही मौका है।

अभी किसी का हाथ अन्दर नहीं था। गुड्डी किसी काम से अन्दर गई थी और रीत भी कहीं।

मैंने देख रखा था की छत के किनारे की ओर चंदा भाभी ने कई बाल्टियों में रंग और एक-दो पीतल की बड़ी लम्बी पिचकारियां भी रखी थी। लेकिन हम लोग तो हाथ पे उतर आये थे, और वहां तीन ओर से दीवार थी इसलिए जो भी हमला होगा सामने से होगा।

बस मैं उधर मुड़ लिया।

मैं सिर्फ बरमुडे में था, वो भी इत्ता छोटा की कमर से एक बित्ता ही नीचे होगा। लेकिन चंदा, दूबे भाभी और संध्या भाभी भी खाली ब्रा और सायें में। वो भी रंग में भीगने से ट्रांसपरेंट हो चुके थे।

रीत भी लेसी जालीदार ब्रा और पाजामी में और वो भी देह से चिपकी।
 
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काउंटर अटैक -आनंद बाबू का


चंदा भाभी मेरी ओर बढी, तो मैंने उन्हें बढ़ने दिया। लेकिन जब वो एकदम पास आ गई तो मैंने बाल्टी का रंग उठाकर पूरी ताकत से, सीधे उनकी रंगों में डूबी ब्रा के ऊपर। इत्ती तेज लगी की लगा ब्रा फट ही गई। फ्रंट ओपेन ब्रा रंग के धक्के से खुल गई थी, और जब तक वो उसको ठीक करती बाकी बची बाल्टी का रंग मैंने उनके साए पे सीधे उनकी बुर पे सेंटर करके।

“निशाना बहुत सही है तम्हारा…” संध्या भाभी हँस रही थी।

मैंने संध्या भाभी को दावत दी- “अरे आप पास आइये ना अपनी पर्सनल पिचकारी से सफेद रंग डालूँगा। 9 महीने तक असर रहेगा…”

“अरे इसपे डाल। ये तुम्हारी बड़ी चाहने वाली है…” कहकर उन्होंने रीत को आगे कर दिया।

मेरे तो हाथ पैर फूल गए।

उन रंग से डूबी वैसे भी लेसी जालीदार हाफ-कट ब्रा में उसके उभार छुप कम रहे थे दिख ज्यादा रहे थे। वो झुकी तो उसके निपल तक और उठी तो उसके नयन बाण।

“मैं नहीं डरती हूँ। ना इनसे ना इनकी पिचकारी से। पिचका के रख दूंगी। अपनी बाल्टी में…” हँसकर जोबन उभार के वो नटखट बोली।

वो जैसे ही पास आई मैंने पिचकारी में रंग भर लिया था, और वो जैसे ही पास आई लाल गुलाबी। छर्रर्रर। छर्रर्रर। पिचकारी की धार सीधे उसकी जालीदार ब्रा के ऊपर और अन्दर उसने हाथ से रोकने की कोशिश की तो पाजामी के सेंटर पे।



क्यों मो पे रंग की मारी पिचकारी। क्यों मो पे रंग की मारी पिचकारी।

देखो कुंवरजी दूँगी मैं गारी, दूँगी मैं गारी, भिगोई मेरी सारी

भाग सकूं मैं कैसे, भागा नहीं जात। भीगी मेरी सारी।




रीत मेरे एकदम पास आ गई थी।
लग रहा था की जैसे वो किसी पेंटिंग से सीधे उतरकर आ गई हो। बस मुगले आजम में जिस तरह मधुबाला लग रही थी- “मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे…” गाने में वैसे ही, एकदम संगमरमर की मूरत।



मुझे लग रहा था किसी ने मूठ मार दी हो, जादू कर दिया हो।

बस वैसे ही मैं खड़े का खड़ा रहा गया।

वो एकदम पास आ गई बस पिचकारी पकड़ ही लेती मेरी तो मैं जैसे सपने से जागा, और मैंने पूरी पिचकारी उसके उरोजों पे खाली कर दी। छर्रर्रर छर्रर्रर।

और उसके उरोज तो रंग से भर ही गए, पूरे खिले दो गुलाबी कमल जैसे और अब उसकी ब्रा भी उनका भार नहीं बर्दाश्त कर पायी।

हुक चटाक-चटाक करके टूट गए और जब तक वो झुक के हुक ठीक करती उसके निपल दिख गए और जब उसने सिर ऊपर किया तो पलकों के बाण चल गए। लेकिन अबकी मैंने बाकी की पिचकारी भी खाली कर दी।

उसने दोनों हाथों से रोकने की कोशिश की।

तब तक गुड्डी भी आ गई, हँसकर बोली- “अरे यार चलो ना अब सब मिलकर तुम्हारा बलात्कार नहीं करेंगे…”

“बारी-बारी से करेंगे…” संध्या भाभी को भी अब एक बार मेरा लण्ड पकड़ने के बाद स्वाद मिल गया था, वो भी बोली।
 
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स्ट्रिप टीज


मैं उन दोनों के साथ छत के बीच में आ गया जहाँ चंदा भाभी, संध्या और दूबे भाभी बैठी थी। गुड्डी और रीत मेरे दोनों ओर खड़ी थी मुझे शरारत से ताकती। दोनों के अंगूठे मेरे बर्मुडा में फँसे थे और मेरी पीठ चंदा और दूबे भाभी की ओर थी। थोड़ा सा मेरा बर्मुडा उन्होंने नीचे सरका दिया।

“अभी कुछ नहीं दिख रहा है…” संध्या भाभी चिल्लायी।

“साले को पहले निहुराओ…” दूबे भाभी ने हुकुम दिया।

मैं अपने आप झुक गया, और रीत और गुड्डी ने एक झटके में बर्मुडा एक बित्ते नीचे सीधे मेरे नितम्बों के नीचे। दूबे भाभी और चंदा भाभी की आँखें वहीं गड़ी थी। लेकिन दुष्ट रीत ने अपने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ों को ढक लिया और शरारत से बोली-

“ऐसे थोड़ी दिखाऊँगी, मुँह दिखाई लगेगी…”

“दिखाओ ना…” संध्या भाभी बोली- “अच्छा थोड़ा सा…”

रीत ने हाथ हटा दिया लेकिन गाण्ड की दरार अभी भी हथेलियों के नीचे थी।

“चल दे दूंगी। माल तो तेरा मस्त लग रहा है…” दूबे और चंदा भाभी एक साथ बोली।

रीत ने हाथ हटा दिया, और दूबे भाभी से बोली-

“चेक करके देख लीजिये एकदम कोरा है। अभी नथ भी नहीं उतरी है। सात शहर के लौंडे पीछे पड़े थे लेकिन मैं आपके लिए पटाकर ले आई।

दूबे भाभी भी। उन्होंने अपनी तर्जनी मुँह में डाली कुछ देर तक उसे थूक में लपेटा और फिर थोड़ी देर तक उसे मेरी पिछवाड़े की दरार पे रगड़ा।

मुझे कैसा-कैसा लग रहा था

चंदा भाभी ने अपने दोनों मजबूत हाथों से मेरे नितम्बों को कसकर फैलाया और दूबे भाभी ने कसकर उंगली घुसेड़ने की कोशिश की। फिर निकालकर वो बोली-


“बड़ी कसी है, इत्ती कसी तो मेरी ननदों की भी नहीं है…”

लेकिन संध्या भाभी तो कुछ और देखना चाहती थी उन्हें अभी भी विश्वास नहीं था, कहा-

" रीत आगे का तो दिखाओ। उतारकर खोल दो ना क्या?”

मैं सीधा खड़ा हो गया। रीत और गुड्डी ने एक साथ मेरा बरमुडा खींच दिया।

वो नीचे तो आया लेकिन बस मेरे तने लण्ड पे अटक गया और रीत और गुड्डी ने फिर उसे अपनी हथेलियों में छिपा लिया, बेचारी भाभियां बेचैन हो रही थी। इस स्ट्रिप शो में।

“दिखाओ ना पूरा…” सब एक साथ बोली।

और अगले झटके में बरमुडा दूर। मैं हाथ से छिपा भी नहीं सकता था। वो तो पहले ही संध्या भाभी की ब्रा में बंधा था। रीत अपने हाथ से उसे छिपा पाती, इसके पहले ही संध्या भाभी ने उसका हाथ पकड़ लिया, और जैसे स्प्रिंगदार चाकू निकलकर बाहर आ जाता है वो झट से स्प्रिंग की तरह उछलकर बाहर।

लम्बा खूब मोटा भुजंग। बीच-बीच में नीले स्पोट, धारियां।

ये उसका असली रंग नहीं था। लेकिन उसको सबसे ज्यादा रगड़ा पकड़ा था रंग लगाया था दूबे भाभी ने और ये उनके हाथ की चमकदार कालिख थी। जिसने उसे गोरे से काला बना दिया था। उसे आखिरी बार पकड़ने वाली संध्या भाभी थी इसलिए उनके हाथ का नीला रंग, उनकी उंगलियों की धारी और स्पोट के रूप में थी।

गुड्डी और रीत ने जो लाल गुलाबी रंग लगाये थे, वो दूबे भाभी की लगाई कालिख में दब गए थे। सब लोग ध्यान से देख रहे थे, खासतौर से संध्या भाभी। शायद वो अपने नए नवेले पति से कम्पेयर कर रही थी।

“अरे लाला ससुराल का रंग है वो भी बनारस का, जाकर अपनी छिनार बहना से चुसवाना तब जाकर रंग छूट पायेगा…” दूबे भाभी बोली।

“कोई फायदा नहीं…” ये चंदा भाभी थी- “अरे रंग पंचमी में तो आओगे ही फिर वही हालत हो जायेगी…”
 
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रीत


रीत ने एक अंगड़ाई ली और जैसे बोर हो रही हो। बोली-

“भाभी चलो न शो खतम। देख लिया। होली भी हो ली। अब इन्हें जाने दो। ये कल से अपने मायके जाने की रट लगाकर बैठे थे। ये तो भला हो गुड्डी और चंदा भाभी का इन्हें रोक लिया की कहीं रात में ऊँच नीच हो जाय। तो इन्हें क्या? नाक तो हमीं लोगों की कटेगी ना। और सुबह से होली का था तो चलो होली भी हो ली। इन्होंने गुझिया और दहीबड़े भी खा लिए। हम लोग भी नहा धोकर कपड़े बदले वरना, चलो न।

गुड्डी तुम भी तैयार हो जाओ, वरना ये कहेंगे की तुम्हारे कारण देर हुई। जल्दी जाओ वरना देर होने पे फिर इनके मायके में डांट पड़े. मुर्गा बना दिया जाय…”

“मैं आपके बाथरूम में नहा लूं भाभी? कपड़े मैंने पहले से ही निकालकर रख दिए हैं बस। वैसे मुझे आज थोड़ा टाइम भी लगेगा नहाने में सिर धोकर नहाना होगा…”

गुड्डी ने चंदा भाभी से पूछा।

“तो नहा लो ना। इसके पहले कभी नहाई नहीं क्या? गुंजा के साथ कित्ती बार। उसी के कमरे वाले बाथरूम में नहा लेना…” चंदा भाभी बोली।

मुझे बड़ी परेशानी हो रही थी। सब लोग ऐसे बातें कर रहे थे जैसे मैं वहां होऊं ही नहीं। मैंने पूछ ही लिया- “लेकिन मेरा क्या? मैं कैसे नहा, तैयार…”

“तो कोई आपको नहलाएगा, तेल फुलेल लगाएगा, श्रृंगार कराएगा, सोलहों श्रृंगार…” रीत तो जैसे खार खाए बैठी थी।

“अरे जहाँ सुबह नहाया था वहीं नहा लेना। ये भी कोई बात है। मेरे कमरे वाले बाथरूम में…” चंदा भाभी बोली।

“अरे इसकी क्या जरूरत है भाभी। यहीं छत पे नहा लेंगे ये। कहाँ आपका बाथरूम गन्दा होगा रंग वंग से। फिर इनका आगा भी देख लिया पीछा भी देख लिया फिर किससे ये लौंडिया की तरह शर्मा रहे हैं?” कहकर रीत ने और आग लगाई।

“नहीं वो तो ठीक है नहाना वहाना। लेकिन कपड़े। कपड़े क्या मैं। कैसे मेरे तो…” दबी आवाज में मैंने सवाल किया।

“ये कर लो बात कपड़े। किस मुँह से आप कपड़े मांग रहे हो जी? सुबह कितनी चिरौरी विनती करके गुंजा से उसकी टाप और बर्मुडा दिलवाया था, और आपने उसको भी,... आपको अपने कपड़े की पड़ी है और मैं सोच रही हूँ की किस मुँह से मैं जवाब दूंगी उस बिचारी को? कित्ता फेवरिट बर्मुडा था। क्या जरूरत थी उसे पहनकर होली खेलने की?”

गुड्डी किसी बात में रीत से पीछे रहने वाली नहीं थी।

“अरे ऐसे ही चले जाइए ना। बस आगे हाथ से थोड़ा ढक लीजियेगा। और किसी दुकान से गुड्डी से कहियेगा तो मेरी सहेली ऐसी नहीं है, चड्ढी बनयान दिलवा देगी…” रीत बोली।

“सही आइडिया है सर जी…” गुड्डी और संध्या भाभी साथ-साथ बोली।

“नहीं ये नहीं हो सकता…” चंदा भाभी बोली-

“अरे तुम सब अभी बच्ची हो तुम्हें मालूम नहीं इसी गली के कोने पे सारे बनारस के एक से एक लौंडेबाज रहते हैं और ये इत्ते चिकने हैं। बिना गाण्ड मारे सब छोड़ेंगे नहीं, इसीलिए तो इन्हें रात में नहीं जाने दिया। और अगर दिन दहाड़े तो इनकी गाण्ड शर्तिया मारी जायेगी।



रीत बोली- “भाभी आप भी ना बिना बात की बात पे परेशान। गाण्ड मारी जायेगी तो मरवा लेंगे इसमें कौन सी परेशानी की बात है? कौन सा ये गाण्ड मरवाने से गाभिन हो जायेंगे? फिर कुछ पैसा वैसा मिलेगा तो अपनी माल कम बहना के लिए लालीपाप ले लेंगे। वो साली भी मन भर चाटेगी चूसेगी, गाण्ड मारने वाले को धन्यवाद देगी…”

“नहीं ये सब नहीं हो सकता…” अब दूबे भाभी मैदान में आ गईं।

मैं जानता था की उनकी बात कोई नहीं टाल सकता।

“अरे छिनारों। आज मैंने इसे किसलिए छोड़ दिया। इसलिए ना की जब ये रंग पंचमी में आएगा तो हम सब इसकी नथ उतारेंगे। लेकिन इससे ज्यादा जरूरी बात। अगर ये लौंडेबाजों के चक्कर में पड़ गया ना तो इसकी गाण्ड का भोंसड़ा बन जाएगा। तो फिर ये क्या अपनी बहन को ले आएगा? तुम सब सालियां अपने भाइयों का ही नहीं सारे बनारस के लड़कों का घाटा करवाने पे तुली हो। कुछ तो इसके कपड़े का इंतजाम करना होगा…”

अब फैसला हो गया था। लेकिन सजा सुनाई जानी बाकी थी। होगा क्या मेरा?

जैसे मोहल्ले की भी क्रिकेट टीमेंm जैसे वर्ड कप के फाइनल में टीमें मैच के पहले सिर झुका के न जाने क्या करती हैं, उसी तरह सिर मिलावन कराती हैं, बस उसी अंदाज में सारी लड़कियां महिलाये सिर झुका के। और फिर फैसला आया। रीत अधिकारिक प्रवक्ता थी।



रीत बोली-

“देखिये मैं क्या चाहती थी ये तो मैंने आपको बता ही दिया था। लेकिन दूबे भाभी और सब लोगों ने ये तय किया है की मैं भी उसमें शामिल हूँ की आपको कपड़े,... लेकिन लड़कों के कपड़े तो हमारे पास हैं नहीं। इसलिए लड़कियों के कपड़े। इसमें शर्माने की कोई बात नहीं है। कित्ती पिक्चरों में हीरो लड़कियों के कपड़े पहनते हैं तो। हाँ अगर आपको ना पसंद हो तो फिर तो बिना कपड़े के…”
 
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punjabi doc
Supreme
45,061
46,191
304
2,240
5,537
144
गुड्डी

देह की नसेनी

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अगले दिन तो हद हो गई।



गरमी के दिन थे। भैया भाभी ऊपर सोते और हम सब नीचे की मंजिल पे।

एक दिन रात में बिजली चली गई। उमस के मारे हालत खराब थी। मैंने अपनी चारपायी बरामदे में निकाल ली। थोड़ी देर में मेरी नींद खुली तो देखा की बगल में एक और चारपाई। मेरी चारपाई से सटी। और उसपे वो सिर से पैर तक चद्दर ओढ़े। हल्की-हल्की खर्राटे की आवाजें। मैंने दूसरी ओर नजर दौड़ाई तो एक-दो और लोग थे लेकिन सब गहरी नींद में।

मैंने हिम्मत की और चारपाई के एकदम किनारे सटकर उसकी ओर करवट लेकर लेट गया और सिर से पैर तक चद्दर ओढ़े। थोड़ी देर बाद हिम्मत करके मैंने उसकी चद्दर के अंदर हाथ डाला। पहले तो उसके हाथ पे हाथ रखा और फिर सीने पे। वो टस से मस नहीं हुई। मुझे लगा की शायद गहरी नींद में है। लेकिन तभी उसके हाथ ने पकड़कर मेरा हाथ टाप के अंदर खींच लिया। पहले ब्रा के ऊपर से फिर ब्रा के अंदर।

पहली बार मैंने जवानी के उभार छुए थे। समझ में ना आये की क्या करूँ। तभी उसने टाप के ऊपर से अपने दूसरे हाथ से मेरा हाथ दबाया, फिर तो।

कभी मैं सहलाता, कभी हल्के से दबाता, कभी दबोच लेता। दो दिन बाद फिर पावर कट हुआ। अब मैं बल्की पावर कट का इंतजार करता था और उस दिन वो शलवार कुरते में थी। थोड़ी देर ऊपर का मजा लेने के बाद मैंने जब हाथ नीचे किया तो पता चला की शलवार का नाड़ा पहले से खुला था। पहली बार मैंने जब ‘वहां’ छुआ तो बता नहीं सकता कैसा लगा। बस जो कहा है ना की गूंगे का गुड बस वही। सात दिन कैसे गुजर गए पता नहीं चला।

कुछ कुछ होता है टाइप जो टीनेज में होता है बस वो शुरू हो गया था, वो टीनेज की मझधार में थी, और मेरे भी टीनेज गुजरे बहुत दिन नहीं हुए थे।



उसे देखकर मुझे कुछ कुछ होता है, मुझसे पहले उसे पता चल गया था।

चार आँखों का खेल चलता रहता था, बस देखना, मुस्कराना और बात जो जबान तक आ के रुक जाए वही हालत थीं, वो सोचती थी मैं कुछ बोलूंगा पर मैं कभी शेरो का सहारा लेता,


क्या पूछते हो शोख निगाहों का माजरा,
दो तीर थे जो मेरे जिगर में उतर गये।

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कौन लेता है अंगड़ाइयाँ,

आसमानों को नींद आती है।




और फिर वो क्या जबरदस्त अंगड़ाई लेती थी, दोनों कबूतर लगता था पिंजरा तोड़ के उड़ जाएंगे, उभार, कड़ाव, ऊंचाई,... और वो जानती थी क्या असर होता था उसका। तम्बू तन जाता था मेरा और वो बेशर्मी से देखती मुस्कराती,

कभी चिढ़ा के बोलती, होता है, होता है। कभी मैंने ज्यादा शायरी की बात करता तो मेरी नाक पकड़ के हिला के बोलती,

" मुझे शेर वेर नहीं मालूम, सर्कस में देखा था। लेकिन एक चीज मालूम है की जो बुद्धू हैं वो बुद्धू ही रहते हैं।"

और मैं उसकी आँखों में डूब जाता।


लेकिन उसे मालूम था की देह की नसेनी लगा के ही मन की गहराई में उतर सकते है, प्यार के अरुण कमल को पाने के लिए,, बिना तन के मन नहीं होता।

दिन भर तो वो खिलंदड़ी की तरह कभी हम कैरम खेलते कभी लूडो। भाभी भी साथ होती और वो मुझे छेड़ने में पूरी तरह भाभी का साथ देती। यहाँ तक की जब भाभी मेरी कजिन का नाम लगाकर खुलकर मजाक करती या गालियां सुनाती तो भी। ताश मुझे ना के बराबर आता था लेकिन वो भाभी के साथ मिलकर गर्मी की लम्बी दुपहरियों में और जब मैं कुछ गड़बड़ करता और भाभी बोलती क्यों देवरजी पढ़ाई के अलावा आपने लगता है कुछ नहीं सिखा। लगता है मुझे ही ट्रेन करना पड़ेगा वरना मेरी देवरानी आकर मुझे ही दोष देगी तो वो भी हँसकर तुरपन लगाती,

"हाँ एकदम अनाड़ी हैं।"

उस सारंग नयनी की आँखें कह देती की वो मेरे किस खेल में अनाड़ी होने की शिकायत कर रही है।

जिस दिन वो जाने वाली थी, वो ऊपर छत पर, अलगनी पर से कपड़े उतारने गई। पीछे-पीछे मैं भी चुपके से- हे हेल्प कर दूं मैं उतारने में मैंने बोला।

‘ना’ हँसकर वो बोली। फिर हँसकर डारे पर से अपनी शलवार हटाती बोली, मैं खुद उतार दूंगी।

अब मुझसे नहीं रहा गया।

मैंने उसे कसकर दबोच लिया और बोला-


हे दे दो ना बस एक बार "

और कहकर मैंने उसे किस कर लिया। ये मेरा पहला किस था। लेकिन वो मछली की तरह फिसल के निकल गई और थोड़ी दूर खड़ी होकर हँसते हुए बोलने लगी.

“ इंतजार बस थोड़ा सा इंतजार। “

एक-दो महीने पहले फिर वो मिली थी एक शादी में धानी शलवार सुइट में, जवानी की आहट एकदम तेज हो गई थी। मैंने उससे पूछा हे पिछली बार तुमने कहा था ना इंतजार तो कब तक?

बस थोड़ा सा और।हंस के वो बोली

मैं शायद उदास हो गया था। वो मेरे पास आई और मेरे चेहरे को प्यार से सहलाते हुए बोली

पक्का- बहुत जल्द और अगली बार जो तुम चाहते हो वो सब मिलेगा प्रामिस।

मेरे चेहरे पे तो वो खुशी थी की, कुछ देर बोल नहीं फूटे

मैंने फिर कहा सब कुछ।

तो वो हँसकर बोली एकदम। लेकिन तब तक बारात आ गई और वो अपनी सहेलियों के साथ बाहर।

भाभी की चिट्ठी ने मुझे वो सब याद दिला दिया और अब उसने खुद कहा है की वो होली में आना चाहती है और। उसे तो मालूम ही था की मैं बनारस होकर ही जाऊँगा। मैंने तुरंत सारी तैयारियां शुरू कर दी।



ओह्ह… कहानी तो मैंने शुरू कर दी।

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लेकिन पात्रों से तो परिचय करवाया ही नहीं। तो चलिए शुरू करते हैं।
Main jaisi kahani ki kaamna kar raha tha, slow seduction or wo purana family aur alhad ehsaas aap bilkul waisa hi likhti hai

Charpai pe sona gaon ka purana eshaas dilata hai aur uske kamukta

Just Lovely Mam
Amazing superb
 
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बनारस का रस


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कहानी में और भी लोग आयेंगे लेकिन उनकी मुलाकात हो जायेगी। तो शुरू करते हैं बात जहां छोड़ा था। यानी भाभी की चिट्ठी की बात जिसमें मुझे बनारस से गुड्डी को साथ लाना था।


तो मैंने जल्दी से जल्दी सारी तैयारी कर डाली।

पहले तो भाभी के लिए साड़ी और साथ में जैसा उन्होंने कहा था चड्ढी, बनयान, एक गुलाबी और दूसरी स्किन कलर की लेसी, और भी। फिर मैंने सोचा की कुछ चीजें बनारस से भी ले सकते हैं। बनारस के लिए कोई सीधी गाड़ी नहीं थी इसलिए अगस्त क्रान्ति से मथुरा वहां से एक दूसरी ट्रेन से आगरा वहां से बस और फिर ट्रेन से मुगलसराय और आटो से बनारस। बड़ौदा में हम लोग एक फील्ड अटैचमेंट में थे और कह सुन के एक दो दिन पहले निकलना पॉसिबल था, पर कोई सीधी गाड़ी बनारस छोड़िये मुग़लसराय की भी उस दिन की नहीं थी जिस दिन का मेरा प्रोग्राम था इसलिए इतनी उछल कूद.

वहां मैंने एक रेस्टहाउस पहले से बुक करा रखा था। सामान वहां रखकर मैं फिर से नहा धोकर फ्रेश शेव करके तैयार हुआ। क्रीम आफ्टर शेव लोशन, परफ्यूम फ्रेश प्रेस की हुई सफेद शर्ट।

आखिर मैं सिर्फ भाभी के मायके ही नहीं बल्की,...

शाम हो गई थी। मैंने सोचा की अब इस समय रात में तो हम जा नहीं सकते तो बस एक बार आज जाकर मिल लेंगे और भाभी की भाभी के घर बस बता दूंगा की मैं आ गया हूँ। गुड्डी से मिल लूंगा और कल एकदम सुबह जाकर उसके साथ घर चला जाऊँगा। बस से दो-तीन घंटे लगते थे। रास्ते, में मैंने मिठाई भी ले ली। मुझे मालूम था की गुड्डी को गुलाब जामुन बहुत पसंद हैं।

लेकिन वहां पहुँच कर तो मेरी फूँक सरक गई।

वहां सारा सामान पैक हो रहा था। भाभी की भाभी या गुड्डी की माँ (उन्हें मैं भाभी ही कहूंगा) ने बताया की रात साढ़े आठ बजे की ट्रेन से सभी लोग कानपुर जा रहे हैं। अचानक प्रोग्राम बन गया।

अब मैं उन्हें कैसे बताऊँ की भाभी ने चिठ्ठी में क्या लिखा था और मैं क्या प्लान बनाकर आया था। मैंने मन ही मन अपने को गालियां दी और प्लानिंग कर बच्चू।


गुड्डी भी तभी कहीं बाहर से आई। फ्राक में वो कैसी लग रही थी क्या बताऊँ। मुझे देखते ही उसका चेहरा खिल गया। लेकिन मेरे चेहरे पे तो बारा बजे थे। बिना मेरे पूछे वो कहने लगी की अचानक ये प्रोग्राम बन गया की सब लोग होली में कानपुर जायेंगे। इसलिए सब जल्दी-जल्दी तैयारी करनी पड़ गई लेकिन अब सब पैकिंग हो गई है। मेरा चेहरा और लटक गया था।

हम लोग बगल के कमरे में थे।

भाभी और बाकी लोग किचेन के साथ वाले कमरे में थे। गुड्डी एक बैग में अपने कपड़े पैक कर चुकी थी। वो बिना मेरी ओर देखे हल्के-हल्के बोलने लगी- जानते हो कुछ लोग बुध्धू होते हैं और हमेशा बुध्धू ही रहते हैं, है ना। वो उठकर मेरे सामने आ गई और मेरे गाल पे एक हल्की सी चिकोटी काटकर बोलने लगी-

“अरे बुध्धू। सब लोग जा रहे हैं कानपुर मैं नहीं। मैं तुम्हारे साथ ही जाऊँगी। पूरे सात दिन के लिए, होली में तुम्हारे साथ ही रहूंगी और तुम्हारी रगड़ाई करूँगी…”

मेरे चेहरे पे तो 1200 वाट की रोशनी जगमग हो गई-


“सच्ची…” मैं खुशी से फूला नहीं समा रहा था।

“सच्ची…” और उस सारंग नयनी ने इधर-उधर देखा और झट से मुझे बाहों में भरकर एक किस्सी मेरे गालों पे ले लिया और हाथ पकड़कर उधर ले गई जहां बाकी लोग थे। मेरे कान में वो बोली-

“मम्मी को पटाने में जो मेहनत लगी है उसकी पूरी फीस लूंगी तुमसे…”
“एकदम…” मैंने भी हल्के से कहा।

किचेन में भाभी होली के लिए सामान बना रही थी। मैं उनसे कहने लगा की मैं अभी चला जाऊँगा रेस्टहाउस में रुका हूँ। कल सुबह आकर गुड्डी को ले जाऊँगा।

वो बोली

अरे ये कैसे हो सकता है। अभी तो आप रुको खाना वाना खाकर जाओ। लेकिन मैं तकल्लुफ करने लगा की नहीं भाभी आप लोगों से मुलाकात तो हो ही गई। आप लोग भी बीजी हैं। थोड़ी देर में ट्रेन भी है।

तब तक वहां एक महिला आई क्या चीज थी।
गुड्डी ने बताया की वो चन्दा भाभी हैं। बह भी यानी गुड्डी की मम्मी की ही उम्र की होंगी। लेकिन दीर्घ नितंबा, सीना भी 38डी से तो किसी हालत में कम नहीं होगा लेकिन एकदम कसा कड़ा। मैं तो देखता ही रह गया। मस्त माल और ऊपर से भी ब्लाउज़ भी उन्होंने एकदम लो-कट पहन रखा था।

मेरी ओर उन्होंने सवाल भरी निगाहों से देखा।
भाभी ने हँसकर कहा अरे बिन्नो के देवर। अभी आयें हैं और अभी कह रहे हैं की जायेंगे। मजाक में भाभी की भाभी सच में उनकी भाभी थी और जब भी मैं भैया की ससुराल जाता था, जिस तरह से गालियों से मेरा स्वागत होता था और मैं थोड़ा शर्माता था इसलिए और ज्यादा।

लेकिन चन्दा भाभी ने और जोड़ा-

“अरे तब तो हम लोगों के डबल देवर हुए तो फिर होली में देवर ऐसे सूखे सूखे चले जाएं ससुराल से ये तो सख्त नाइंसाफी है। लेकिन देवर ही हैं बिन्नो के या कुछ और तो नहीं हैं…”

“अब ये आप इन्हीं से पूछ लो ना। वैसे तो बिन्नो कहती है की ये तो उसके देवर तो हैं हीं। उसके ननद के यार भी हैं इसलिए नन्दोई का भी तो…”

भाभी को एक साथी मिल गया था।

“तो क्या बुरा है घर का माल घर में। वैसे कित्ती बड़ी है तेरी वो बहना। बिन्नो की शादी में भी तो आई थी। सारे गावं के लड़के…” चंदा भाभी ने छेड़ा।

गुड्डी ने भी मौका देखकर पाला बदल लिया और उन लोगों के साथ हो गई। “मेरे साथ की ही है, पिछले साल दसवां पास किया है

“अरे तब तो एकदम लेने लायक हो गई होगी। भैया। जल्दी ही उसका नेवान कर लो वरना जल्द ही कोई ना कोई हाथ साफ कर देगा दबवाने वबवाने तो लगी होगी। है न। हम लोगों से क्या शर्माना…”

लेकिन मैं शर्मा गया। मेरा चेहरा जैसे किसी ने इंगुर पोत दिया हो। और चंदा भाभी और चढ़ गईं। “अरे तुम तो लौंडियो की तरह शर्मा रहे हो। इसका तो पैंट खोलकर देखना पड़ेगा की ये बिन्नो की ननद है या देवर…” भाभी हँसने लगी और गुड्डी भी मुश्कुरा रही थी।

मैंने फिर वही रट लगाई- “मैं जा रहा हूँ। सुबह आकर गुड्डी को ले जाऊँगा…”

“अरे कहाँ जा रहे हो, रुको ना और हम लोगों की पैकिंग वेकिंग हो गई है ट्रेन में अभी 3 घंटे का टाइम है और वहां रेस्टहाउस में जाकर करोगे क्या अकेले या कोई है वहां…” भाभी बोली।

“अरे कोई बहन वहन होंगी इनकी यहाँ भी। क्यों? साफ-साफ बताओ ना। अच्छा मैं समझी। दालमंडी (बनारस का उस समय का रेड लाईट एरिया जो उन लोगों के मोहल्ले के पास ही था) जा रहे हो अपनी उस बहन कम माल के लिए इंतजाम करने। इम्तहान तो हो ही गया है उसका। लाकर बैठा देना। मजा भी मिलेगा और पैसा भी। लेकिन तुम खुद इत्ते चिकने हो होली का मौसम, ये बनारस है। किसी लौंडेबाज ने पकड़ लिया ना तो निहुरा के ठोंक देगा और फिर एक जाएगा दूसरा आएगा रात भर लाइन लगी रहेगी। सुबह आओगे तो गौने की दुल्हन की तरह टांगें फैली रहेंगी…”



चंदा भाभी अब खुलकर चालू हो गई थी।
Awesome Mam

Chanda Bhabhi ne toh Anand k anand le liye 😉
 
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