Bechare Anand ki toh sabne milkar maar li, wo bhi bina thook lagayeथोड़ा सा फ्लैश बैक
गुड्डी और भाभी ( गुड्डी की मम्मी )
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भाभी मेरा मतलब गुड्डी की मम्मी की टनकदार आवाज में गारी सुनते सुनते मैं एकदम फ्लैश बैक में चला गया,
भैया की शादी,.... बताया तो था इन्ही के बड़े से घर, गुड्डी की मम्मी के घर से शादी हुयी थी, तीन दिन की गाँव की बारात, आम की बाग़ में तम्बू में टिकी, ... और सब रस्म रिवाज और कोई रस्म नहीं जिसमे माँ बहीन खुल्लम खुल्ला न गरियाई जाएँ,... मैंने उसी साल इंटर का इम्तहान दिया था,... हाँ घर से मुझे समझा बुझा के भेजा गया था, गाँव की शादी है खूब गारी वारी सुननी पड़ेगी, खुल्ल्म खुल्ला मजाक होगा, एकदम बुरा मत मानना, ...
शादी के अगले दिन कलेवा होता है, ...
लड़का, सहबाला यानी मैं और दो चार कुंवारे लड़के और दूल्हे से कम उम्र के,... और न लड़के की ओर का कोई रहता न न लड़की की ओर का कोई मर्द, ... खाली साली सलहज, घर गाँव की औरतें, हाँ नाऊ जरूर साथ रहता है दूल्हे के पीछे बैठा, अंगोछा लेकर तैयार। सब साली सलहज एक एक करके कभी साथ साथ मिलती हैं, किसी ने सिन्दूर लगा दिया बाल में, किसी ने काजल, किसी ने पाउडर मुंह पे पोत दिया तो नाऊ बिना कुछ बोले अंगोछे से पोछ देता है फिर अगली साली, सलहज वही हरकत करती है और घंटो चलता है ये,....
और उसी समय भाभी, गुड्डी की मम्मी से पहला सामना हुआ।
देखा तो पहले भी था, पहचानता था, रात भर उनकी टनकदार आवाज में एक से एक गारी भी सुनी थी, मंडप में बैठ के। ढोलक बजा बजा के गारी गा रही थीं सब बरातीयो का नाम ले ले कर यहाँ तक की नाऊ, पंडित को भी नहीं छोड़ा उन्होंने, लेकिन ३० % गारियाँ मुझे ही पड़ रही थीं, एक तो सहबाला, दूल्हे का एकलौता भाई, छोटा और दूसरे थोड़ा लजाता, झिझकता भी ज्यादा था।
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लेकिन जो कहते हैं न वन टू वन वो उसी समय, एकदम पास से पहली बार देखा था और देखता रह गया. खूब भरी देह, गोरी जबरदस्त, मुंह में पान, होंठ खूब लाल, बड़े बड़े झुमके, और कोहनी तक लाल लाल चूड़ियां गोरे हाथों में, और खूब टाइट चोली कट ब्लाउज, जो नीचे से उभारों को उभारे और साइड से कस के दबोचे, और खूब लो कट, स्लीवलेस, मांसल गोरी गोलाइयाँ तो झलक ही रही थीं घाटी भी अंदर तक, और साड़ी प्याजी रंग की एकदम झलकौवा, ....
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मैं देखता रहा गया और वो भी समझ गयी थी मेरी हालत, इंटर विंटर की उमर में तो बहुत जल्द हालत खराब हो जाती है,...
लेकिन मुझे होश तब आया जब उन्होंने मेरे कायदे से कढ़े बाल हाथ लगा के बिगाड़ दिए और जोर से चिढ़ाया, उनके साथ कोई लड़की, भाभी की की कोई सहेली और एक दो औरतें और थीं और चिढ़ाते हुए बोलीं,
" तोहार महतारी बाल भी ठीक से नहीं काढ़ी, ... अइसन जल्दी थी आपन तो खूब सिंगार पटार कर के,... बारात जाए तो अपने यारों को बुलाय के चक्की चलवाएंगी अपनी, आठ दस मरद तो चढ़ ही चुके होंगे रात में,... लौट के जाना तो खोल के देखना, बुलबुल ने कितना चारा खाया, सफ़ेद परनाला बह रहा होगा "
( उस समय रिवाज था अभी गाँव में बहुत जगह, बरात में लड़कियां औरतें नहीं जाती थीं और बरात जाने के बाद घर में औरतों का राज, रात भर रतजगा, नटका, और खूब मस्ती होती थी, हाँ दूर दूर तक कोई आदमी क्या बच्चा भी नहीं रहता था )
और जब तक मैं समझूं उनकी बदमाशी, उन्होंने कंघी लेकर मेरा बाल फिर से काढ़ दिया और सीधी मांग निकाल दी, औरतों की तरह,... फिर शीशा दिखा के बोलीं ,
"अब अच्छा लग रहा हैं न, ऐसे रखा करो, अइसन गौर चिक्क्न मुंह पे यही निक लगता है,... "
और बाकायदा एक सिन्दूर की डिबिया निकाल के खूब ढेर सारा सिन्दूर मेरी मांग में भर दिया
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और थोड़ा सा नाक पे गिरा तो बोलीं,
" सास तोहार खूब प्यार दुलार करेगी तोहसे, नाक पे सिन्दूर गिरना शुभ होता है, "
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लेकिन जो बात मैं कहना चाहता था वो जो लड़की साथ में थी ( बाद में नाम पता चला रमा, भाभी की सहेली भी, मौसेरी बहन भी, भाभी से दो साल छोटी, अभी बीए में गयी थी ) उसने कह दी, कौन ननद मौका छोड़ेगी भौजाई को छेडने का , मुस्करा के मेरी आँख में आँख डाल के भाभी से, गुड्डी की मम्मी से बोली,
" भौजी, सिन्दूर दान तो हो गया अब सुहाग रात,.... "
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; " अरे ननद भी हैं ननदोई भी मना लो न, " उन्होंने अपनी ननद को छेड़ा और मुझसे पूछा
" क्यों भैया खड़ा वड़ा होता है, टनटनाता है का "
और फिर पता नहीं जान बुझ के या वैसे ही, वो झुकीं और आँचल एकदम नीचे, और उस लो कट चोली से मांसल गोलाई गदरायी, और पूरी गहरी घाटी और उससे बढ़ के कंचे के बराबर एकदम टनटनाये खड़े खड़े निपल, साफ़ दिख रहे थे,
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खड़ा तो होना था , लेकिन मैंने चड्ढी का कवच ओढ़ रखा था पैंट के नीचे पर भाभी की कुशल उँगलियाँ, कुछ देर तो उन्होंने हथेली से पैंट के ऊपर रगड़ा, और फिर अंगूठे और तर्जनी से पकड़ के चड्ढी को सिकोड़ दिया। सांप का सर बाहर, अब खाली पैंट के नीचे तो एकदम साफ़ साफ़ दिख रहा था. भाभी ने अंगूठे और तर्जनी से उसे चार पांच बार रगड़ा और वो फुफकारने लगा,
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बस उन्होंने अपनी ननद रमा को छेड़ा,
" देखो बिन्नो तुमसे सुहागरात के लिए एकदम तैयार है। तोहरी दीदी की झिल्ली तो कल खुली तू आज ही करवा लो,... "
लेकिन रमा एकदम नहीं शरमाई
और हाँ भौजी ( गुड्डी की मम्मी ) ने अपना आँचल ठीक भी नहीं किया, बस एकदम मुझसे सट के, उन्हें अपने गद्दर जोबन का असर मालूम पड़ गया था,
दोनों जोबन एकदम मेरे सीने से सटा के, अपनी बड़ी सी अठन्नी की साइज की लाल लाल टिकुली अपनी माथे से निकाल के मेरे माथे पे पे चिपका दी, और वार्निंग भी दे दी,
"खबरदार अपनी महतारी के भतार, अगर इसे उतारा कल बिदाई के पहले, सुहाग क निशानी है। "
और जोबन से खूब जोर से धक्का दिया, और हलके से बोलीं,
" अरे मालूम है मुझे इसका असर, बहुत टनटना रहा है, पहला पानी इसी में दबा के रगड़ रगड़ के निकालूंगी, फिर अंजुरी में भर के तोहिं को पिलाऊंगी , ऐसी गरमी लगेगी, सीधे अपनी महतारी के भोसड़े में जाके डुबकी मारोगे तभी गरमी शांत होगी "
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बोली तो वो हलके से थीं लेकिन रमा, उनके साथ की महिला और आस पास वाली औरतें साफ़ साफ़ सुन रही थीं मुस्करा रही थीं।
और उन्होंने जो दूसरा धक्का जोबन से मारा तो बस मैं लुढ़कते लुढ़कते बचा, और मेरे मुंह से निकल गया,...
" अरे भौजी गिर जाऊँगा,... "
" इतनी जल्दी गिर जाओगे भैया तो हमरे ननद का काम कैसे चलेगा,... "
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भाभी, गुड्डी की मम्मी के साथ वाली महिला, ने चिढ़ाया,, उसी समय पता चला की उनका नाम विमला है , वो भी गुड्डी की मम्मी की देवरानी हैं उसी पट्टी की, दो साल पहले ही गौना हुआ था।
भाभी, मेरी आँखों में काजल लगाने में बिजी थीं और अब मैं उन्हें धक्का देके बचने में, बस भाभी ने रमा की ओर देखा वो शलवार कुर्ते में दुपट्टा तीन तह में करके उभारों को छुपाये, ... एक तीर से उन्होंने दो शिकार किया, पहले तो अपनी ननद और देवरानी से बोला,
" रमा, विमला ज़रा पकड़ इन्हे, जउन गाय पहले पहले दूध देती हैं न उसका हाथ गोड़ छानना पड़ता है "
और जब तक मैं समझूं समझूं, भाभी ने मेरे दोनों हाथ पीछे कर के रमा के दुप्पटे से बाँध दिए। एक तो मेरे हाथ बंध गए, ... दूसरे रमा का दुपट्टा अब उसके कुर्ते को फाड़ते उभार साफ़ साफ़ दिख रहे थे चोंच भी।
भाभी ने एक बार फिर से काजल लगाया और आगे का काम रमा के हवाले कर दिया, वो लिपस्टिक लेके पहले से ही तैयार थी, क्या कोई ब्यूटी पार्लर वाली करेगी,... आराम से धीरे धीरे,... मेरे हाथ तो बंध ही गए थे, नाऊ दूल्हे की रक्षा करने में लगा था,...
गुड्डी भी पास खड़ी खेल तमाशा देख रही थी, खिस खिस कर रही थी, उसकी मम्मी ने मेरे जूते की ओर इशारा किया, ...
" अरे कल दूल्हे की जूते की चुराई में तोहरे भाइयों क गाँव क लड़कों क इतना फायदा होगया था, तो का पता सहबाला के जूते की चुराई में कुछ मिल जाए,...
" एकदम मम्मी " कह के वो आज्ञाकारी पुत्री चालू हो गयी, ...
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( कल रात में जब साढ़े तीन चार बजे शादी ख़तम हुयी तो कोहबर की छेंकाई में, जूता चुराई में और जूता चुराने के अभियान में यही रमा थी और साथ में गुड्डी, ... जूता वापस करने के नेग में लड़कियों ने साफ़ साफ़ कह दिया, हम पैसा वैसा नहीं लेंगे, ... बस दूल्हा आपन बहिन दे दें,...
इशारे पर मेरी कजिन थी वही एलवल वाली,
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और सबसे ज्यादा शोर रमा और गुड्डी मचा रही थीं एक एक जूते हाथ में ले के, दूल्हे अपनी बहना दो, दूल्हे अपनी बहना दो, ...
मामला अटक गया था और डेडलॉक तोडा मेरी कजिन ने ही, वही बोली, भईया हाँ कर दीजिये, दे दीजिये, देख लूंगी स्सालो को, ...
रमा ने चिढ़ाया, नाड़ा बाँध नहीं पाओगी , तीन दिन तक, एक आएगा दूसरा जाएगा,...
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लेकिन मेरी कजिन भी कम नहीं थी बोली, अरे स्सालो की बहिन ले जा रही हूँ हरदम के लिए, तो बेचारों को आंसू पोछने के लिए , मंजूर है.... तो भाभी वही कह रही थी।
हाँ उसी दिन से गुड्डी और मेरी कजिन की पक्की दोस्ती भी हो गयी ).
गुड्डी ने जूते मोज़े खोले तो विमला भाभी पैरों में जैसे गाँव में गौने जाने वाली दुल्हिन को नाउन महावर लगाती है, वो चालू हो गयीं।
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और भाभी आगे का प्लान बना रही थीं, विमला भाभी और रमा से,... मिलकर
" हे साड़ी साया तो मेरा आ जाएगा लेकिन ब्लाउज, मेरा तो ढीला होगा "
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" अरे ब्लाउज का कौन जरूरत है, बॉडी पहना देंगे, ... बबुआ क बहिन महतारी तो जोबन उघाड़े घूमती है दबवाती मिसवाती " विमला भौजी, गुड्डी की मम्मी से एकदम कम नहीं थी
और बिना उनकी बात पूरी हुए, भाभी ने मुझसे पूछ लिया, बनियान कौन नंबर की पहनते हो, ३२ की ३४ और जैसे मैंने जवाब दिया भाभी तुरंत अपनी ननद रमा से बोली,
" अरे बिन्नो ये तो तोहार साइज है बस आपन बॉडी पहराय दा "
रमा लिपस्टिक लगा चुकी थी, मेरे हाथ अब खुल गए थे लेकिन एक हाथ रमा ने पकड़ रखा था नेल पालिश लगा रही थी दूसरा हाथ गुड्डी को पकड़ा दिया था नेल पालिश लगाने के लिए। रमा बोली, एकदम भौजी, सिंगार दुल्हिन का कर दें फिर लाती हूँ, ... लेकिन दुल्हिन क सिंगार कर रहे हैं तो दुलहिन क
" काम भी करना पडेगा,...एकदम बिन्नो अब सिन्दूर दान हो गया है तो " भाभी बोलीं फिर तोप का रुख मेरी ओर मोड़ दिया,
" और यह मत कहना की डालेगा कौन, जो एक दिन सिन्दूर डालता है वही अगले दिन टांग उठा के, निहुरा के डालता है, ... एकदम गोर चिक्क्न हो, मखमल ऐसे गाल "
मेरा गाल सहला के बोली, फिर जोड़ा,
" कउनो लौंडिया से ज्यादा नमकीन हो एक बार साडी साया पहना देंगे तो कोई कह नहीं सकता है, ये बताओ गांड मरवाये हो की नहीं, अइसन चिक्क्न माल, लौण्डेबाज सब बिना गांड मारे छोड़े थोड़े होंगे, सट्ट से जाएगा। "
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मेरे मुंह से नहीं अनजाने में निकल गया फिर तो दोनों भाभियाँ, पहले विमला भाभी
" अरे बिन्नो की ससुराल में सब गंडुए है या भंडुए है गाँड़ क्या मारेंगे "
कल रात गारी गाते समय जब भी मेरा नाम आता था , यही भाभी, बाद में सब भाभियाँ,...
" बिन्नो का देवर गंडुआ है, अरे दूल्हे का भाई भंडुआ है, अपनी महतारी का भंडुआ है अपनी बहिनिया का भंडुआ है।"
और पुराने में ( गाने में, खास तौर से गारी गाने में मुख्य गाने वाली एक लाइन गाती थीं, और बाकी उसे दुहराती थीं, कई बार आधी लाइन पूरी भी करती थीं ) सिर्फ औरते ही नहीं गुड्डी और उसकी सहेलियां भी और जोर से मुझे दिखा दिखा के ,
" दूल्हे का भाई गंडुआ है , अपनी महतारी क भंडुआ है "
लेकिन भाभी, गुड्डी की मम्मी विमला भाभी की बात में बात जोड़ते बोलीं,
" अरे तोहरे महतारी क गदहन से चोदवाउ, उनके भोंसडे में हमरे गाँव क कुल लौंडे डुबकी लगाएं , ... रोज तो तोहार बहिन महतारी मोट मोट लौंड़ा घोंटती है और तोहार अभी फटी नहीं,... "
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रमा और गुड्डी नेल पालिश लगाते हुए खिस खिस कर रही थीं, मुझे देख के चिढ़ा रही थीं, तभी विमला भौजी, भाभी से बोलीं
" अरे आम का अचार वाला तेल लगा के डालियेगा, सट्ट से चला जाएगा "
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मेरी आम की चिढ वाली बात भाभी के गाँव वालों की भी मालूम हो गयी थी। बात बदलने के लिए मुझे कुछ बोलना था, बस मैंने गुड्डी की ओर देखते हुए बात बदलने की कोशिश की।
नेलपॉलिश लगाती गुड्डी की ओर देख के मैं बोला,
" कल गुड्डी का डांस बहुत अच्छा था, .... " लेकिन जो जवाब गुड्डी की मम्मी ने दिया मैं सोच नहीं सकता था,
" बियाह करोगे इससे " वो सीरियस हो के बोली,
Best part tha jab chutki sach main belan le aayiभाभी, गुड्डी और भांग की गुझिया
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भाभी और चंदा भाभी की गाने की आवाज की टनकार तेज हो रही थी और मैं यादों की झुरमुट से वापस आया,
भाभी जोर जोर से मुझे सुना के गा रही थीं साथ में चंदा भाभी
“गंगाजी तुम्हारा भला करें गंगाजी…” भाभी ने अगली गारी शुरू कर दी थी।
गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी , गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी
तोहरी बहिनी क तोहरी गुड्डी क बुरिया इनरवा जैसे पोखरवा जैसे
तोहरी अम्मा क भोंसड़ा इनरवा जैसे पोखरवा जैसे
नौ सौ गुंडा नहावा करें, मजा लूटा करें, बुर हर हर हुआ करे ,
गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी , गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी।
तोहरी बहिनी क बुरिया पतिलिया जइसन, बटुलिया जइसन
तोहरी गुड्डी क बुरिया पतिलिया जइसन, बटुलिया जइसन
तोहरी अम्मा क बुरिया पतिलिया जइसन, बटुलिया जइसन
ओहमें नौ मन चावल पका करे बुर फच फच हुआ करे
बुर फच फच हुआ करे, गंगा जी
गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी , गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी
तोहरे बहिनी क बुरिया सड़किया जइसन लाइनिया जइसन
तोहरे गुड्डी क बुरिया सड़किया जइसन लाइनिया जइसन
तोहरे अम्मा क भोंसड़ा सड़किया जइसन लाइनिया जइसन
अरे नॉ सौ गाडी चला करे बुर फट फट हुआ करे
गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी , गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी
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और एक के बाद एक नान स्टाप।
आनंद साल्ला पूछे अपनी बहना से अपनी गुड्डी से,
बहिनी तुम्हारी बिलिया में, क्या-क्या समाय,
अरे भैया तुम समाओ भाभी के सब भैया समाय
बनारस के सब यार समाय
आनंद मादरचोद पूछे अपनी अम्मा से अम्मा तोहरी बुरिया में का का समायी
अरे तोहरे भोंसडे में का का समायी , का का अमाई
भैया हमारे भोंसडे में कालीनगंज के सब भंडुए समाये, आजमगढ़ एक सब गंडुए समाये
बनारस के सब पण्डे समाये,
हाथी जाय घोड़ा जाय। ऊंट बिचारा गोता खाय। हमारी बुरिया में।
और।
हमारे अंगना में चली आनंद की बहिनी, अरे गुड्डी रानी,
गिरी पड़ी बिछलाईं जी, अरे उनकी भोंसड़ी में घुस गइ लकड़िया जी।
अरे लकड़ी निकालें चलें आनंद भैया अरे उनके गणियों में घुस गई लकड़िया जी।
हमारे अंगना में चली आनंद की अम्मा , अरे आनंद क महतारी
अरे वो तो गिरी पड़ी बिछलाईं जी,
अरे उनकी भोंसड़ी में घुस गइ लकड़िया जी।
अरे लकड़ी निकालें चलें आनंद भैया अरे उनके गांडी में घुस गई लकड़िया जी।
मैं खाना खतम कर कर चुका था लेकिन मुझे कुछ अलग सा लगा रहा था। एकदम एक मस्ती सी छाई थी और मैंने खाया भी कितना। तब तक गुड्डी आई मैंने उससे पूछा-
“हे सच बतलाना खाने में कुछ था क्या? गुझिया में। मुझे कैसे लगा रहा है…”
वो हँसने लगी कसकर- “क्यों कैसा लग रहा है?”
“बस मस्ती छा रही है। मन करता है की। तुम पास आओ तो बताऊँ। था न कुछ गुझिया में…”
“ना बाबा ना तुमसे तो दूर ही रहूंगी। और गुझिया मैंने थोड़ी बनाई थी आपकी प्यारी चंदा भाभी ने बनाई थी उन्हीं से पूछिए ना। मैंने तो सिर्फ दिया था। सच कहिये तो इत्ती देर से जो आप अपनी बहना का हाल सुन रहे थे इसलिए मस्ती छा रही है…”
मुझे चिढ़ाने में गुड्डी अपनी मम्मी से पीछे नहीं थी।
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और तब तक चन्दा भाभी आ गईं एक प्लेट में चावल लेकर।
“ये कह रहें है की गुझिया में कुछ था क्या?” गुड्डी ने मुड़कर चंदा भाभी से पूछा।
“मुझे क्या मालूम?” मुश्कुराकर वो बोली- “खाया इन्होंने खिलाया तुमने। क्यों कैसा लग रहा है?”
“एकदम मस्ती सी लग रही है कोई कंट्रोल नहीं लगता है पता नहीं क्या कर बैठूंगा। और मैंने खाया भी कितना इसलिए जरूर गुझिया में…” मैं मुश्कुराकर बोला।
“साफ-साफ क्यों नहीं कहते। अरे मान लिया रही भी हो। तो होली है ससुराल में आए हो,साल्ली सलहज। यहाँ नहीं नशा होगा तो कहाँ होगा। ये तो कंट्रोल के बाहर होने का मौका ही है…” चंदा भाभी बोलीं
और वो झुक के चावल देने लगी। उनका आँचल गिर गया। पता नहीं जानबूझ के या अनजाने में और उनके लो-कट लाल ब्लाउज़ से दोनों गदराये, गोरे गुद्दाज उभार साफ दिखने लगे।
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मेरी नीचे की सांस नीचे, ऊपर की ऊपर। लेकिन बड़ी मुश्किल से मैं बोला- नहीं भाभी नहीं।
“क्या नहीं नहीं बोल रहे हो लौंडियों की तरह। तेरा तो सच में पैंट खोलकर चेक करना पड़ेगा। अरे अभी वो दे रही थी तो लेते गए, लेते गए और अब मैं दे रही हूँ तो…”
गुड्डी खड़ी मुश्कुरा रही थी। तब तक नीचे से उसकी मम्मी की आवाज आई और वो नीचे चली गई।
चन्दा भाभी उसी तरह मुश्कुरा रही थी। उन्होंने आँचल ठीक नहीं किया। “क्या देख रहे हो…” मुश्कुराकर वो बोली।
“नहीं, हाँ, कुछ नहीं, भाभी…” मैं कुछ घबड़ाकर शर्माकर सिर नीचे झुका के बोला। फिर हिम्मत करके थूक घोंटते हुए। मैंने कहा- “भाभी। देखने की चीज हो तो आदमी देखेगा ही…”
“अच्छा चलो तुम्हारे बोल तो फूटे। लेकिन क्या सिर्फ देखने की चीज है…”
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ये कहते हुए उन्होंने अपना आँचल ठीक कर लिया। लेकिन अब तो ये और कातिल हो गया था। एक उभार साफ साड़ी से बाहर दिख रहा था और एकदम टाईट ब्लाउज़ खूब लो कटा हुआ।
मेरा वो तनतना गया था। तम्बू पूरी तरह तन गया था। किसी तरह मैं दोनों पैरों को सिकोड़ के उसे छुपाने की कोशिश कर रहा था।
लेकिन चन्दा भाभी ना। वो आकर ठीक मेरे बगल में बैठ गईं। एक उंगली से मेरे गालों को छूते हुए वो बोली-
“हाँ तो तुम क्या कह रहे थे। देखने की चीज है या। कुछ और भी। देखूं तुम्हारी छिनार मायके वालियों ने क्या सिखाया है…”
तब तक मैंने देखा की उनकी आँखें मेरे तम्बू पे गड़ी हैं।
कुछ गुझिया का असर कुछ गालियों का। हिम्मत करके मैं बोल ही गया-
“नहीं भाभी। मन तो बहुत कुछ करने का होता है है। अब ऐसी हो। तो लालच लगेगा ही ना…” अब मैं भी उनके रसीले जोबन को खुलकर देख रहा था।
“सिर्फ ललचाते रह जाओगे…”
अब वो खुलकर हँसकर बोली-
“देवरजी जरा हिम्मत करो। ससुराल में हो हिम्मत करो। ललचाते क्यों हों? मांग लो खुलकर। बल्की ले लो, एकदम अनाड़ी हो…” और फिर जैसे अपने से बोल रही हों। एक रात मेरी पकड़ में आ जाओ। ना। तो अनाड़ी से पूरा खिलाड़ी बना दूँगी"
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और ये कहते हुए उन्होंने चावल की पूरी प्लेट मेरी थाली में उड़ेल दी।
“अरे नहीं भाभी मैं इत्ता नहीं ले पाऊंगा…” मैं घबड़ाकर बोला।
“झूठे देखकर तो लगता है की…” उनकी निगाहें साफ-साफ मेरे ‘तम्बू’ पे थी।
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फिर मुश्कुराकर बोली- “पहली बार ये हो रहा है की मैं दे रही हूँ और कोई लेने से मना कर रहा है…”
“नहीं ये बात नहीं है जरा भी जगह नहीं हैं…”
वो जाने के लिए उठ गई थी लेकिन मुड़ीं और बोली-
“अच्छा जी। कोई लड़की बोलेगी और नहीं अब बस तो क्या मान जाओगे। पूरा खाना है। एक-एक दाना। और ऊपर के छेद से ना जाए ना तो मैं हूँ ना। पीछे वाले छेद से डाल दूँगी…”
तब तक दरवाजा खुला और भाभी (गुड्डी की मम्मी) और गुड्डी अंदर आ गए। भाभी भी चन्दा भाभी का साथ देती हुई बोली-
“एकदम और जायगा तो दोनों ओर से पेट में ही ना…”
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और उसी समय मुझसे गलती हो गयी, ... गलती क्या हुयी, खता किसी और की थी सज़ा मुझे मिली। बताया था न गुड्डी की मम्मी के बारे में दीर्घ स्तना, कठोर कुच, और ब्लाउज चंदा भाभी इतना लो कट तो नहीं लेकिन कम भी नहीं,... और भाभी का आँचल लुढ़क गया, उभारों से एकदम चिपका, रसोई से आ रही थीं तो हलके पसीने में भीगा,... और मैंने कहा था एम् आई एल ऍफ़ की पहली पायदान पर तो चढ़ ही गयी थीं,... तो बस मेरी निगाहें वहीँ चिपकी
और उन्होंने मुझे देखते देख लिया
बस बजाय आँचल ठीक करने के कमर में बाँध लिया और दोनों पहाड़ एकदम साफ़ साफ़, और मेरे पास जब वो झुकी तो कनखियों से उन्होंने तम्बू में बम्बू भी देख लिया, बस मुस्करायीं और वो लेवल बढ़ा दिया,
थाली में पड़े चावल का मौका मुआयना करते गुड्डी को उन्होंने हुकुम सुनाया,...
" गुड्डी जरा किचेन से मोटका बेलनवा तो ले आना, बेलनवा से पेल के ठेल के पिछवाड़े घुसाय देंगे एक एक चावल "
गुड्डी खिस खिस हंसती रही.
और गुड्डी की मम्मी, भाभी और,
" एक बार मोटका बेलनवा घुसेड़ूँगी न, तो तोहार पिछवाड़वा, तोहरी अम्मा के भोंसडे से ज्यादा चौड़ा हो जाएगा, न विश्वास हो जब लौटोगे न तो उनका साया पलट के देख लेना,... सोच लो नहीं तो चावल ख़त्म करो "
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और मैंने सर झुका के थाली में रखा चावल खाना शुरू कर दिया, लेकिन अब भाभी छोड़ने के मूड में नहीं थीं, मेरा गाल सहलाते चंदा भाभी से बोलीं,
" होली में ऐसे चिकने लौंडे की बिना लिए, नथ उतारे,... "
चंदा भाभी कौन काम थीं, साफ़ साफ़ पूछ लिया,... " अगवाड़े की पिछवाड़े "
" दोनों ओर " भाभी बोलीं, लेकिन चंदा भाभी ने जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली,... " अरे आप जाइये न निश्चिन्त होके, मैं हूँ न अच्छी तरह से नथ उतराई होगी इनकी आज। जैसे दालमंडी में इनकी बहन की होगी एकदम वैसे इनकी यहाँ "
मैं जान रहा था की अगर बोला तो मधुमखी के छत्ते में हाथ पड़ा,... इसलिए सर झुकाये बस खाना खाने में लगा था। लेकिन जंगबहादुर का क्या करें ऐसी रसीली बातें सुन के वो तो सर उठाये जा रहे थे. मैंने उनसे छुपाने के लिए एक पैर पर दूसरा पैर रखने की कोशिश की पर तब भी,... लेकिन भाभी की नजर से कोई चीज नहीं बच सकती थी, मुझसे बोली,
" ये क्या टांग पर टांग सटा के बैठे हो, तोहार बहिन महतारी तो हरदम टांग फैलाये रहती हैं, फैलाओ टांग वरना, .... गुड्डी जरा बेलनवा ले आओ "
मैंने टांग हटा दी और अब तम्बू में जबरदस्त बम्बू बित्ते भर का खड़ा, और अब तीनो मुस्करा रही थीं, भाभी और चंदा भाभी खुल के और गुड्डी मेरे पीछे खड़ी, खिस खिस,...
" जानती हो इनकी ये हालत काहें हुयी, " भाभी चंदा भाभी से पूछीं,
जानता तो मैं भी था और वो भी, उनके चोली फाड़ कड़क गद्दर जोबन जो सफ़ेद ब्लाउज से साफ़ झलक रहे थे उसी ने ये हालत की थी लेकिन देवर हो तो कौन भौजाई खींचने का मौका छोड़ देती है,
चंदा भाभी बोलीं ,
" अरे आप ने भैया को उनके अम्मा के भोंसडे की याद दिला दी, बेचारे उनको मातृभूमि की याद आ गयी और मातृभूमि के लिए लोग क्या क्या नहीं करते। "
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" गुड्डी, जरा इधर आना बेटी " दुलार से उन्होंने बुलाया और काम पे लगा दिया, ...
" यहीं रहना और अगर चावल बच गया, जितना दाना बचेगा, उतने लौंडे बनारस के इनकी बहन पे चढ़ेंगे,... वो भी फ्री। ये जिम्मेदारी तेरी हटना मत इनके पास से "
" एकदम " आज्ञाकारी बेटी की तरह गुड्डी ने सर हिलाया लेकिन क्लास में कुछ लड़कियां होती हैं न सबसे पहले हाथ उठाती हैं सवाल पूछने के लिए, गुड्डी उसी में से थी, अपनी मम्मी से बोली,...
" लेकिन मम्मी मैं गिन तो लूंगी लेकिन इनकी बहन तो यहाँ है नहीं अभी,.. "
" लेकिन ये तो हैं न यहाँ, इनकी बहन न सही यही सही " चंदा भाभी थीं न आग में घी डालनेवाली।
" और क्या इतना गोरा चिकना तो है, बहन इसकी अगवाड़े से घोंटती ये पिछवाड़े से घोंटेंगें। " भाभी ( गुड्डी की मम्मी ) ने फैसला सुना दिया फैसले का कारण भी
"हम बनारस वाले छेद छेद में भेद नहीं करते, और होली में ससुरारी आएं है वो भी बनारस तो बिना नथ उतरे,... "
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वो दोनों तो हँस ही रही थी। वो दुष्ट गुड्डी भी मुश्कुराकर उन लोगों का साथ दे रही थी।
तबतक गुड्डी की छोटी बहन आ गयी सबसे छोटी, छुटकी हाथ में बेलन लेके
" मम्मी आपने बेलन मंगाया था "
अब तो चंदा भाभी और भाभी, गुड्डी की मम्मी की हंसी रुके नहीं रुक रही थी। गुड्डी भी खिस खिस,...
किसी तरह हंसी रोक के गुड्डी की मम्मी बोली,... " हाँ गुड्डी को दे दो "
फिर उन्हें याद आया की वो आयी किस लिए थीं, एक क्राइसिस हो गयी थी छोटी सी।
पता चला की क्राइसिस ये थी की रेल इन्क्वायरी से बात नहीं हो पा रही थी की गाड़ी की क्या हालत है, कितनी लेट है लेकिन उससे भी बड़ी बात थी, बर्थ की। दो लोगों की बर्थ भी कन्फर्म नहीं हुई थी। नीचे कोई थे जिनकी एक टी टी से जान पहचान थी लेकिन उनसे बात नहीं हो पा रही थी।
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Aab aate rehna dear pure thoughts, Komal didi ki story par, bahut acha likhti hai Komal didi. Mujhe to forum ki bestAlways here Mam

Definitely Bahut acha likhti haiAab aate rehna dear pure thoughts, Komal didi ki story par, bahut acha likhti hai Komal didi. Mujhe to forum ki bestwriter lagti hai.
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Bahut badhiya update diya hai Komalji.संध्या भाभी संग होली
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“क्या ढूँढ़ रहे हो लाला?” हँसकर दूबे भाभी ने पूछा।
“रंग वंग। कुछ मिल जाय…” मैंने दबी जुबान में कहा।
दूबे भाभी गुड्डी और चंदा भाभी से कम नहीं थीं। जैसे वो दोनों, गुड्डी और रीत मुझे चढ़ा रहीं थी, ससुराल है चढ़ने के पहले पूछने की कोई जरूरत नहीं, उसी तरह दूबे भाभी तो उन दोनों से भी एक हाथ आगे, मुझे ग्रीन सिग्नल देते, अपने अंदाज में बोलीं,
“अरे लाला तुम ना। रह गए। बिन्नो ठीक ही कहती है तुम न तुम्हें कुछ नहीं आता सिवाय गाण्ड मराने के और अपनी बहनों के लिए भंड़ुआगीरी करने के। अरे बुद्धुराम ससुराल में साली सलहज से होली खेलने के लिए रंग की जरूरत थोड़े ही पड़ती है। अरे गाल रंगों काटकर, चूची लाल करो दाब के और। …”
आगे की बात चंदा भाभी ने पूरी की- “चूत लाल कर दो चोद-चोद के…”
लेकिन साथ-साथ ही उन्होंने अपनी बड़ी-बड़ी कजरारी आँखों से इशारा भी कर दिया की रंग किधर छुपाकर रखा है उन सारंग नयनियों ने।
गुझिया के प्लेटे के ठीक पीछे पूरा खजाना। रंग की पुड़िया, डिब्बी, पेंट की ट्यूब इतनि की कई घर होली खेल लें।
और मैंने सब एक झटके में अपने कब्जे में कर लिया और फिर आराम से पक्के लाल रंग की ट्यूब खोलकर संध्या भाभी को देखते हुए अपने हाथ पे मलना शुरू कर दिया।
“ये बेईमानी है तुमने मेरी साड़ी खींच ली और खुद…” संध्या भाभी ने ताना दिया।
“अरे भाभी आप ने अभी भी ऊपर दो और नीचे दो पहन रखे हैं। मैंने तो सिर्फ दो…” हँसकर मैं बोला।
" तो उतार दो न, बिन्नो मना थोड़े ही करेंगी, तुमने साडी उतारी उन्होंने मना किया क्या, अरे कुछ भी करोगे तो मेरी ननद नहीं मना करेंगी आज "
चंदा भाभी ने मुझे चढ़ाया, आखिर संध्या भाभी उनकी ननद लगती थीं और ननद की रगड़ाई हो, खुलेआम हो ये तो हर भाभी चाहती है।
रंग अब संध्या भाभी के हाथ में भी था और मेरे भी। बस इसू यही था। कौन पहल करे?
भाभी ने पहले तो टाप से निकलती मेरी बाहों की मछलियां देखीं और फिर जो उनकी निगाह मेरे बर्मुडा पे पड़ी। तम्बू पूरी तरह तना हुआ था।
जिम्मेदार तो वही थी, बल्की उनके चोली फाड़ते गोरे गदाराए मस्त जोबन ‘सी’ बल्की ‘डी’ साइज रहे होंगे, और यहीं उन्होंने गलती कर दी।
उनका ध्यान वहीं टिका हुआ था और मैं एक झटके में उनके पीछे और मेरे दायें हाथ ने एक बार में ही उनके हाथों समेत कमर को जकड़ लिया।
अब वो बिचारी हिल-डुल नहीं सकती थी। मेरा रंग लगा बायां हाथ अभी खाली था।
लेकिन मुझे कोई जल्दी नहीं थी। मैं देख चुका था अपने तन्नाये लिंग का उनपर जादू। अपने दोनों पैरों के बीच मैंने उनके पैर फँसा दिए कैंची की तरह। अब वो हिल डुल भी नहीं सकती थी। मेरा तना मूसल अब सीधे उनके चूतड़ की दरार पे। और हल्के-हल्के मैं रगड़ने लगा। इस हालत में ना तो रीत और गुड्डी देख सकती थी, ना चन्दा और दूबे भाभी की मैं क्या कर रहा हूँ।
“क्या कर रहे हो?” संध्या भाभी फुसफुसाईं।
“वही जो ऐसी सुपर मस्त और सेक्सी भाभी के साथ होली में करना चाहिए…” मैं बोला।
“मक्खन लगाने में तो उस्ताद हो तुम…” वो मुश्कुराकर बोली फिर मेरी ओर मुड़कर मेरी आँखों में अपनी बड़ी-बड़ी काजल लगी आँखें डालकर हल्के से बोली- “और वो जो तुम पीछे से डंडा गड़ा रहे हो, वो भी होली का पार्ट है क्या?”
“एकदम। मैं आपको अपनी पिचकारी से परिचय करा रहा हूँ…” मैं भी उसी तरह धीमे से बोला।
“भगवान बचाए ऐसी पिचकारी से। ये रीत और गुड्डी को ही दिखाना…”
“अरे वो तो बच्चियां हैं। पिचकारी का मजा लेने की कला तो आपको ही आती है…” मैंने मस्का लगाया।
“जरूर बच्चियां हैं, लपलपाती रहती हैं, तुम्हीं बुद्धू हो सामने पड़ी थाली। और जरा सा जबरदस्ती करोगे तो पूरा घोंट लेंगी…” वो बोली।
मैंने गाण्ड की दारार में लिंग का दबाव और बढ़ाया और अपनी रंग से डूबी दो उंगलियां उनके चिकने गालों पे छुलाते मैं बोला-
“लेकिन भाभी मुझे तो मालपूवा ही पसंद है…”
और रंग से दो निशान मैंने उनके गोरे गाल पे बना दिया लेकिन मेरी निगाह तो उनके लो-कट ब्लाउज़ से झाँकते दोनों गोरी गोलाइयों पे टिकी थी। क्या मस्त चूचियां थी। और मेरा हाथ सरक के सीधे उनकी गर्दन पे।
“ऊप्स क्या करूँ भाभी आपके गाल ही इतने चिकने हैं की मेरा हाथ सरक गया…” मैं बोला।
वो मेरी शरारत जानती थी।
लाल ब्लाउज़ लो-कट तो था ही आलमोस्ट बैकलेश भी था। सिर्फ एक पतली सी डोरी पीछे बंधी थी और गहरा गोल कटा होने से सिर्फ दो हुक पे उन भारी गदराये जोबनों का भार। ब्रा भी लेसी जालीदार हाल्फ कप वाली।
उन्होंने रीत और गुड्डी को साथ आने की गुहार लगाई-
“हे आओ ना तुम दोनों। हम मिलकर इनकी ऐसी की तैसी करेंगे ना…” संध्या भाभी बोली।
मैं उनके पीछे खड़ा था वहीं से मैंने रीत को आँख मारी और साथ आने से बरज दिया। गुड्डी पहले से ही चन्दा भाभी के पास चली गई थी किसी काम से।
रीत मुश्कुराकर बोली- “अरे आप काफी हैं और वैसे भी मैं तो सुबह से इनकी खिंचाई कर रही हूँ। जहाँ तक गुड्डी का सवाल है वो तो अगले पूरे हफ्ते इनके साथ रहेगी। इसलिए अभी आप ही। वरना कहेंगी की हिस्सा बटाने पहुँच गई…”
और ये कहकर उसने थम्स-अप का साइन चुपके से दे दिया।
अगले ही पल मेरा हाथ फिसल के चोली के अन्दर और चटाक-चटाक दो हुक टूट गए।
क्या स्पर्श सुख था, जैसे कमल के ताजा खिले दो फूल। ब्लाउज़ बस उनके उभारों के सहारे अटका था। मेरे हाथ का रंग पूरी तरह जालीदार शीयर लेसी ब्रा से छनकर अन्दर और उनके दोनों गोरे-गोरे कबूतर लाल हो गए। उनकी ब्राउन चोंचें भी साफ-साफ दिख रही थीं। मेरे हाथ अपने आप उन मस्त रसीले जवानी के फूलों पे भींच गए। एकदम मेरी मुट्ठी के साइज के, रीत से बस थोड़े ही बड़े, एकदम कड़े-कड़े।
वो सिसकी और बोली- “क्या कर रहे हो सबके सामने?” और उन्होंने एक बार फिर मदद के लिए रीत की ओर देखा।
लेकिन रीत , वो बस मुश्कुरा दी। मदद आई लेकिन दूसरी ओर से। मेरे पीछे से। वो तो कहिये मेरी छठी इन्द्रिय ने मेरा साथ दिया।
मैंने आँख के किनारे से देखा की चंदा भाभीअन्दर से, एक बाल्टी रंग के साथ , पूरी की पूरी बाल्टी भाभी ने मेरी ओर पीछे से।
अब चंदा भाभी भी होली में शामिल हो गयी थीं।
लेकिन मैं मुड़ गया और रंग भरी बाल्टी और मेरे बीच संध्या भाभी, और सारा का सारा रंग उनके ऊपर।
पूरा गाढ़ा लाल रंग। साड़ी तो मैंने पहले ही खींचकर दुछत्ती पे फेंक दी थी। रंग सीधे साए पे और वो पूरी तरह उनकी गोरी चिकनी जाँघों, लम्बे छरहरे पैरों से चिपक गया। अब कल्पना करने की कोई जरूरत नहीं थी। सब कुछ साफ-साफ दिख रहा था। रंग पेट से बह के साए के अन्दर भी चला गया था। इसलिए जांघों के बीच वाली जगह पे भी। अन्दर रंग, बाहर रंग।
चंदा भाभी के हाथ में ताकत बहुत थी और उन्होंने पूरी जोर से रंग फेंका था। सबसे खतरनाक असर ऊपर की मंजिल पे हुआ, बचा खुचा ब्लाउज़ का आखिरी हुक भी चला गया। दोनों जोबन ब्रा को फाड़ते हुए और ब्रा भी एक तो जालीदार और दूसरी लगभग ट्रांसपैरेंट। जैसे बादल की पतली सतह को पार करके पूनम के चाँद की आभा दिखे बस वैसे ही। लेकिन उनकी गुदाज गदराई चूचियां थोड़ी बच गईं क्योंकी वो मेरे हाथों के कब्जे में थी।
“थैंक यू भाभी…” मैंने चन्दा भाभी की ओर देखकर उन्हें चिढ़ाते हुए मुश्कुराकर कहा।
“बताती हूँ तुम्हें अपनी भाभी के पीछे छिपते हो। शर्म नहीं आती…” वो हँसकर बोली।
Thanks so much Aapake comment mei har kahani ki shobha badhaate hain , aabhar kitana bhi karun kam haisuperb holi.
Bahut hi khubsurat likha hai.होरी देह की
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“अरे भाभी पिछवाड़े का अलग मजा है…”
ये कहते हुए मेरा एक हाथ सीधा संध्या भाभी के नितम्बों पे। उसे खींचकर मैंने उन्हें अपने साथ और सटा लिया और अब मेरा खड़ा खूंटा सीधे उनकी पीछे की दरार में, रंग से साया चिपकने से दरार भी साफ झलक रही थी।
“और क्या तेरे जैसे लौंडे, चिकने गान्डूओं से ज्याद किसको पिछवाड़े का मजा मालूम होगा…” दुबे भाभी अब खड़ी हो गई थी।
रीत बिचारी को क्या मालूम था की अगला निशाना वो ही है।
पीछे से दूबे भाभी ने उस बिचारी का हाथ पकड़ा और चंदा भाभी ने उसके उभार दबाते हुए कहा-
“अरे रानी आज होली में भी इसको छिपा रखा है। दिखाओ ना क्या है इसमें, जिसके बारे में सोच-सोचकर मेरी ननद का नाम ले लेकर, सारे बनारस के लौंडे मुट्ठ मारते हैं…”
बिचारी रीत कातर हिरनी की तरह मेरी ओर देख रही थी, लेकिन चन्दा भाभी और दूबे भाभी की पकड़ से बचना, मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था।
इधर संध्या भाभी ने भी उस उहापोह का फायदा उठाते हुए ब्रा में घुसे हुए मेरे लालची हाथों को कसकर दबोच लिया।
मैं बुद्धू तो था लेकिन इतना नहीं।
मैं समझ गया की ये अपने उरोज बचाने के लिए नहीं बल्की मेरे हाथों से उस यौवन कलश का रस लूटने के लिए उसे उसके ऊपर दबा रही हैं।
मैं कौन होता था मना करने वाला। मैं भी कसकर गदराये रसीले 34सी का मजा लूटने लगा। नुकसान सिर्फ एक हुआ की मैं रीत की मदद को नहीं जा पाया। लेकिन वो भी शायद फायदा ही हुआ।
रीत को दूबे भाभी और चंदा भाभी ने मिलकर टापलेश कर दिया था। पूरी तरह नहीं लेकिन सिर्फ अब वो ब्रा में थी और अपनी प्यारी पाजामी में। उसकी लेसी ब्रा से मैंने जो उसके जोबन पे अपनी उंगलियों के निशान छोड़े थे साफ नजर आ रहे थे। दूबे भाभी ने पहले उन निशानों की ओर देखा फिर मेरी ओर, मुश्कुराने लगी मानो कह रही हों की लाला तुम इतने सीधे नहीं जितने बनते हो।
मेरा भी एक हाथ संध्या भाभी के उभार पे था और दूसरा साए के भीतर सीधे उनके नितम्ब पे, क्या मस्त कसे-कसे चूतड़ थे। हाथ की एक उंगली अब सीधे दरार पे पहुँच गई थी। बाहर से मेरा खूंटा तो पीछे से गड़ा ही हुआ था। मैं मौके का फायदा उठाकर हल्के-हल्के जोबन और नितम्ब दोनों का रस लूट रहा था।
क्या मस्त चूतड़ थे, संध्या भाभी के, गोल गोल, एकदम कड़े पर खूब मांसल, रंग लगाने के साथ साथ मेरी उँगलियाँ कभी उन्हें सहलाती तो कभी कस के दबोच लेतीं। एक हाथ चोली के अंदर जोबन का न सिर्फ स्पर्श सुख महसूस कर रहा था बल्कि रंग भी रहा था, रगड़ भी रहा था और मसल भी रहा था।
लेकिन संध्या भाभी, रीत या गूंजा नहीं थीं, वो ब्याहता, देह सुख ले चुकी, और मुझसे बहुत आगे, भले ही मैंने उन्हें दबोच रखा था, लेकिन हाथ तो भौजी के खाली थे। एक हाथ पीछे कर के, नहीं उन्होंने बारमूडा के ऊपर से खूंटे को नहीं पकड़ा, सीधे बारमूडा के अंदर और कस के मेरे मूसलचंद को मुठियाने लगीं ( वो तो बाद में पता चला की वो एक पंथ दो काज कर रही थीं, मेरे बांस को मुठिया भी रही थीं और अपने हाथ में पहले से लगी कालिख से उसका मुंह भी काला कर रही थीं ।) क्या मस्त पकड़ थी एकदम जबरदस्त, पहले से बौराया, अब एकदम पागल हो गया , संध्या भाभी के हाथ की छुअन पाके ख़ुशी से फूल गया।
लेकिन संध्या भाभी इतने पर नहीं रुकीं, बोलीं,
" लाला, जब तक चमड़े से चमड़े की रगड़ाई न हो का देवर भाभी की होली। "
और जब तक मैं समझूं मेरे बारमूडा सरक के घुंटनों तक, मूसल चंद आजाद।
मैं क्यों पीछे रहता, मैंने भी पीछे से भाभी का साया उठा दिया, और पैंटी का कवच भी नहीं तो जंगबहादुर सीधे भौजी के नितम्बो के बीच, बस एक दो बार उन्होंने दरवाजा खटकाया होगा और संध्या भाभी ने अपनी दोनों टांगों को फैला के रास्ता खोल दिया। मेरा मस्त हथियार, बित्ते भर का एकदम तना दोनों नितम्बो के बीच। और अब भाभी ने दोनों टाँगे कस के पूरी ताकत से भींच ली।
मैं अपना भाला वापस खींचना भी चाहता तो नहीं खींच सकता था और वो कसर मसर कसर मसर कर रहे दोनों चूतड़ों के बीच, भौजी खुद ही उसे रगड़ रही थी और मेरे दोनों हाथ अब चोली के अंदर, जोबन रंग रहे थे।
" औजार तो देवर मस्त है, चलाना भी जानते हो " संध्या भाभी ने फुसफुसा के पूछा।
पीछे से कस के धक्का मारते हुए मैं बोला, " भौजी , मौका दे के तो देखिये "
"लग तो रहा है खड़े खड़े चोद दोगे, " खिलखिला के वो बोलीं, फिर जोड़ा " तू मुझे छोड़ भी दोगे न तो भी मैंने इसे नहीं छोड़ने वाली बिना पूरा अंदर लिए।"
सुपाड़ा मेरा अब भौजी की फांको पे सांकल खटका रहा था, और उसकी सहायता के लिए मेरे दोनों हाथों में से एक जोबन का लालच छोड़ साया के अंदर आगे से,
उफ़ एकदम मक्खन मलाई, दोनों फांके खूब चिपकी, और झांट का निशान तक नहीं। लेकिन मेरे हाथ में रंग लगा था और पहला काम गुलाबो को लाल करने का था और फिर दोनों फांको को हलके से फैला के, बस जरा सा स्वाद, मेरे सुपाड़े को, क्या कोई मर्द धक्का मारेगा जिस तरह संध्या भाभी ने धक्का मारा, हम दोनों की देह एकदम चिपकी
लेकिन हम दोनों को कोई देख भी नहीं रहा था, सब लोग अपने अपने काम में बिजी, रीत की रगड़ाई दूबे भाभी कर रही थी और गुड्डी का रस चंदा भाभी लूट रही थीं।
दूबे भाभी भी पीछे से रीत को पकड़े उसकी ब्रा से झांकते दोनों किशोर उभार, ब्रा उसकी भी लेसी थी। मेरी फेवरिटm पिंक लेसी, पकड़कर मुझे ऐसे दिखा रही थी मानों मुझे आफर कर रही हों।
और फिर ब्रा के ऊपर से उन्होंने रीत के निपल ऐसे अंगूठे और तर्जनी के बीच रोल करने शुरू कर दिए की कोई मर्द भी क्या करता। असर दो पल में सामने आ गया।
रीत सिसकियां भर रही थी। इंच भर के निपल एकदम खड़े हो गए थे। ब्रा के अन्दर से साफ दिख रहे थे। रीत की आँखों में भी मानो फागुन उतर आया था, गुलाबी नशा उन कजरारे नैनों में झलक रहा था।
मैं भी संध्या भाभी के साथ वहीं कस-कसकर जोबन मर्दन, और निपल की पिंचिंग। जो हाथ पीछे थे वो अब आगे गया था और पहले तो मैंने उनके गोरे-गोरे खुले पेट पे खूब रंग लगाया. मस्ती के साथ साथ मेरी और संध्या भौजी की होली भी चल रही थी। मेरे हाथ अब उनके चिकने गोरे पेट पर रंग लगा रहे थे , और खूंटा तो नितम्बो के साथ गुलाबो का भी हल्का हल्का रस ले रहा था , ऊपर से संध्या भौजी की गारियाँ और बातें,
" अरे अपनी बहिनीया के भतार, देखती हूँ आज केतना जोर है तोहरे धक्को में, अगर आज हमरे कूंवा में से पानी निकाल पाए तो मान लूंगी हो तुम गुड्डी के लायक"
यानी मेरा और गुड्डी का चक्कर इनको भी मालूम था और गुड्डी को पाने के लिए मैंने इनके कुंए से क्या पाताल में से पानी निकाल लेता। मेरी रगड़ाई और धक्को का जोर और बढ़ गया।
दुबे भाभी का एक हाथ अब रीत की ब्रा के अन्दर घुस गया था और वो कसकर उसकी किशोर चूचियां मसल रही थी और मुझे दिखाते चिढ़ाते गा रही थी-
अरे मेरी ननदी का, अरे तुम्हारी रीत का, छोट-छोट जोबन दाबे में मजा देय।
अरे मेरी ननदी का, अरे तुम्हारी रीत का, छोट-छोट जोबन दाबे में मजा देय।
अरे ननदी छिनाल चोदे में मजा देय, होली बनारस की रस लूटो राजा होली बनारस की।
पीछे से रीत को वो ऐसे धक्के लगा रही थी की मानो वो कोई मर्द हों और रीत की जमकर हचक-हचक के।
वही हरकत अब मैं सन्धा भाभी के साथ कर रहा था, ड्राई हम्पिंग।
और रीत भी कम नहीं थी। बात टालने के लिए उसने अटैक डाइवर्ट किया। मेरी ओर इशारा करके वो बोली-
“अरे भाभी। इनका जो माल है जिसको ये ले आने वाले हैं अपने साथ उसकी साईज पूछिए ना…”
मैं कुछ बोलता उसके पहले गुड्डी ही बोल पड़ी। लगता है उसने पाला बदल लिया था और भाभियों की ओर चली गई थी। कहा-
“अरे मैं बताती हूँ रीत से थोड़ा सा। बस थोड़ा सा छोटा है…”
चंदा भाभी क्यों चुप रहती। उन्होंने गुड्डी के उभार दबा दिए और बोली-
“अरे रीत को क्यों बीच में लाती है? ननद तो तेरी वो लगेगी और उसकी नथ उतरवाने और यहाँ लाने का काम भी तो तेरे जिम्मे है। बोल तुझसे बड़ा है या छोटा?”
“बस मेरे बराबर समझिये…थोड़ा उन्नीस बीस"
और गुड्डी मेरी ओर देख रही थी और मैं गुड्डी के जुबना की ओर ललचाते, सोचते यार ये हरदम के लिए मिल जाते, गुड्डी का पक्का २० था बल्कि २२।
लेकिन दिल तो मेरा गुड्डी के पास था इलसिए मेरे दिल की बात उसने तुरंत सुन ली और उलटे चंदा भाभी को मेरे पीछे लुहका दिया
" अपने देवर से पूछिए न, जब से इनके माल की कच्ची अमिया आ ही रही थी तब से देख देख के ललचा रहे हैं, और वो एक बार भी कुतरने को भी नहीं दी। एकदम सही साइज मालूम होगी इन्हे "
और गुड्डी ने जिस तरह मुझे देखा हजार रंगो की पिचकारियां छूट पड़ीं। ” वो चंदा भाभी के हाथों से अपने को छुड़ाने की असफल कोशिश करती हुई बोली।
दूबे भाभी के दोनों हाथ अब कसकर रीत की ब्रा में थे, लाल गुलाबी रंग। वो कसकर दबाते मसलते बोली मेरी और देखकर-
“अरे साइज की चिंता मत करो लाला, हफ्ते दस दिन रहेगी ना यहाँ। दबा-दबाकर हम सब। इत्ती बड़ी कर देंगे की फिर उसके इत्ते यार हो जायेंगे यहाँ दबाने मसलने वाले की वो गिनना भूल जायेगी…”
मैं समझ गया था की अब चंदा भाभी भी मैदान में आ गई हैं तो। और उधर रीत की हालत भी खराब हो रही थी। कब उसकी ब्रा अलग हो जायेगी ये पता नहीं था। चन्दा भाभी भी उसकी पीठ पे रंग लगा रही थी, बस खाली हुक खोलने की देरी थी या कहीं दुबे भाभी ही फाड़ ही न दें।
रीत और गुड्डी दोनों किशोरियां भाभियों के चंगुल में फंसी थी, होली में सालियाँ भले ही बहाना बना कर, बुद्धू बना कर अपने जीजू के चंगुल से बच जाएँ, ननदें भौजाई के चंगुल से बिना रगड़ाई के नहीं छूट सकती, और अभी तीनो ननदें फंसी थी। रीत दूबे भाभी के कब्जे में, गुड्डी चंदा भाभी के और संध्या भाभी मेरे चंगुल में, लेकिन मैं तो हरदम गुड्डी के साथ और गुड्डी रीत की छोटी मुंहबोली बहन, तो रीत का हुकुम भी नहीं टाल सकता था,
रीत ने मेरी ओर देखा, स्ट्रेटेजिक हेल्प के लिए
रीत ने मेरी आँखों में देखा और मैंने भी उसकी आँखों में। बस एक ही रास्ता था- स्ट्रेटजिक टाइम आउट।
संध्या भाभी ने भी इशारा समझ लिया। थी तो वो भी रीत और गुड्डी की टीम में यानी ननद, और उन्होंने भी मेरी ओर धक्के लगाना बंद कर दिया, पल भर में मेरा बारमूडा ऊपर, उनका पेटीकोट नीचे।
संधि प्रस्ताव मैंने ही रखा- “कुछ खा पी लें, 10-15 मिनट का ब्रेक…” मैंने दूबे भाभी से रिक्वेस्ट की।
“ठीक है लेकिन बस 5-7 मिनट…” दूबे भाभी मान गई।
bahut khoob. bahut badhiya update.स्ट्रेटेजिक टाइम आउट
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रीत ने मेरी ओर देखा, स्ट्रेटेजिक हेल्प के लिए
रीत ने मेरी आँखों में देखा और मैंने भी उसकी आँखों में। बस एक ही रास्ता था- स्ट्रेटजिक टाइम आउट।
संध्या भाभी ने भी इशारा समझ लिया। थी तो वो भी रीत और गुड्डी की टीम में यानी ननद, और उन्होंने भी मेरी ओर धक्के लगाना बंद कर दिया, पल भर में मेरा बारमूडा ऊपर, उनका पेटीकोट नीचे।
संधि प्रस्ताव मैंने ही रखा- “कुछ खा पी लें, 10-15 मिनट का ब्रेक…” मैंने दूबे भाभी से रिक्वेस्ट की।
“ठीक है लेकिन बस 5-7 मिनट…” दूबे भाभी मान गई।
रीत सीधे टेबल के पास जहां गुझिया गुलाब जामुन, दही बड़े, ठंडाई और कोल्ड ड्रिंक्स सारे स्पायिकड। वोदका, रम और जिन मिले हुए, पहुँची और पीछे-पीछे मैं।
रीत की एक लट गोरे गाल पे आ गई थी। कहीं लाल, कहीं गुलाबी रंग और थोड़ी लज्जा की ललाई उसके गाल को और लाल कर रहे थे। होंठ फड़क रहे थे कुछ कहने के लिए और बिना कहे बहुत कुछ कह रहे थे।
मैंने उसके कंधे पे हाथ रख दिया। हाफ कप ब्रा से उसके अधखुले उरोज झाँक रहे थे, जिसपे मेरे और दूबे भाभी के लगाये रंग साफ झलक रहे थे। गहरा क्लीवेज, ब्रा से निकालने को बेताब किशोर उरोज।
कुछ चिढ़ाते कुछ सीरियसली मैंने पूछा- “हे शर्मा तो नहीं रही हो?”
“शर्माऊं और तुमसे?” वो खिलखिला के हँस दी। कहीं हजार चांदी की घंटियां एक साथ बज उठी।
मेरी बेचैन बेशर्म उंगलियां, ब्रा से झांकती गोरी गुदाज गोलाइयों को सहम-सहम के छूने लगी।
मेरी निगाह गुड्डी पर पड़ गयी और हम दोनों निगाहें टकरा गयी, और उसकी मुस्कराती निगाह मुझे और उकसा रही थी, चढ़ा रही थी, चिढ़ा रही थी,
' बुद्धू लोग बुद्धू ही रहते हैं, अरे आगे बढ़ो, सिर्फ देखते ही रहोगे, ललचाते ही रहोगे तो मेरी भी नाक कटवाओगे और तुम्हारी तो खैर कितनी बार कटेगी पता नहीं, थोड़ा और आगे बढ़ो न, "
मुझे गुड्डी की एक बात याद आ गयी, जब पहली बार बहुत हिम्मत कर के उसकी देह को छुआ था एक पुरुष की तरह,
“तुम ना। कुछ लोगों की निगाहें ऐसी गन्दी घिनौनी होती हैं की चाहे मैं लाख कपड़े पहने रहूँ वो चाकू की तरह उन्हें छील देती हैं, और ऐसा खराब लगता है की बस। जवान लड़की और कुछ पहचाने ना पहचाने मर्द की निगाह जरूर पहचान लेती है। और तुम ना जिस दिन हम, मैं कोई भी कपड़े ना पहनी रहूंगी ना। तुम्हारी निगाह,... इत्ती शर्म उसमें है इत्ती चाहत है। वो खुद मुझे मालूम है, सहलाती हुई, मस्ती के खुशी के अहस्सास से ढक देगी…”
कुछ मौसम का असर कुछ गुड्डी के उकसाने का, कुछ भांग और बियर का, पर रीत अंदर चली गयी, बियर ख़तम हो गयी थी टेबल पर वाली। बाकी कमरे के अंदर चंदा भाभी के फ्रिज में रखी थी तो उसे निकालने,
और मैं गुड्डी अकेले, अब मुझसे नहीं रहा गया मैंने गुड्डी को अपनी ओर खींच लिया और हाथ सीधे गुड्डी के अधखुले जोबन पे, चंदा भाभी की रगड़ाई का असर
लेकिन असली असर था गदराये जोबन का मैंने उसे पास में खींच लिया और मेरे दो तड़पते प्यासे हाथ सीधे अब उसके उरोजों पे, और मैंने उसके कानों में बोला-
फागुन आया झूम के ऋतू बसंत के साथ,
तन मन हर्षित होंगे, मोदक दोनों हाथ।
तब तक संध्या भाभी आ गई और हम लोगों को देखकर बोलने लगी-
“अरे तोता मैना की जोड़ी, कुछ सुध-बुध है। ब्रेक किया था प्लान करने के लिए और। कैसे दूबे भाभी को…”
तबतक रीत आ गयी बियर की आधी दर्जन बोतलें एकदम चिल्ड ला के और उसने इशारे से संध्या भौजी को बुला लिया और उन तीनो के बीच गुपचुप गुपचुप,
मैंने ज्वाइन करने की कोशिश की लेकिन गुड्डी ने डांट लगा दी, " तुझे बुलाया किसी ने क्या "
और फिर हंसती मुस्कराती, रीत की ओर तारीफ़ से देखती संध्या भाभी मेरे पास आ गयीं, मैं समझ गया असली दिमाग रीत का ही है इन सबमे।रीत ने मुझे इशारा किया और मैं संध्या भाभी से बोला,
“पहले ये ड्रिंक उनको दे आइये और आप भी उनके साथ…” और एक ग्लास में मैंने रमोला स्पेशल, जिसमें रम ज्यादा कोला कम था, और वोदका मिली लिम्का के दो ग्लास और भांग वाली गुझिया उन्हें दी और बोला-
“कोई भी प्लान तभी सफल होगा अगर आप ये। …”
“एकदम…” वो बोली और प्लेट लेकर चल दी।
मैं संध्या भाभी का पिछवाड़ा देख रहा था, क्या मस्त माल लग रही थी। चंदा भाभी ने बाल्टी भर रंग मेरे ऊपर फेंकने की कोशिश की थी और मैं संध्या भाभी को आगे कर के बच गया था, सब कस सब रंग उनके कपड़ों पर, साडी तो उतर ही चुकी, रंग से भीगा साया एकदम देह से चिपका, दोनों कटे आधे तरबूज की तरह के नितंब, कसर मसर करते, और उससे ज्यादा जान मारु थे उनके पिछवाड़े की दरार, एकदम कसी, टाइट चिपकी, ललचाती बुलाती,
होली का एक मजा लड़कियों, औरतों की रंग से भीगे, देह से चिपके कपड़ों में छन छन कर छलकते जोबन और नितम्बों का रस है लेकिन संध्या भाभी के साथ तो मेरे बौराये पहलवान ने इन मस्त नितम्बों के बीच खूब रगड़ घिस, रगड़ घिस, की थी यहाँ तक की भौजी प्यासी मुनिया का चुम्मा भी ले लिए था अपने खुले सुपाड़े से, और पहले टच से ही भौजी एकदम छनछना गयीं थीं। मौका होता तो खुद पकड़ के घोंट लेती।
औरतों में पता नहीं कितनी आँखे होती हैं। संध्या भौजी को पता चल गया था की मैं उनका मस्त पिछवाड़ा निहार रहा हूँ, बस मुस्कराते हुए पलट के उन्होंने मुझे देखा, क्या जबरदस्त आँख मारी और मेरा एक बित्ते का पत्थर का हो गया। कुछ हो जाय बिना इनकी लिए मैं रहने वाला नहीं था, भले सबके सामने यहीं छत पे पटक के पेलना पड़े।
तबतक पीठ पे एक जोर का हाथ पड़ा, और कौन गुड्डी। भांग उसको भी चढ़ गयी थी। और जो उसकी आदत थी, बोलती कम थी, हड़काती ज्यादा थी,
" अबे बुद्धूराम, तेरे बस का कुछ नहीं, बस ऐसे ही ललचाते रहना। यहाँ कोई तेरी बहन महतारी तो हैं नहीं जो इसका इलाज करेंगी ( जोश में आने पर लगता था गुड्डी सच में मम्मी की सबसे बड़ी बेटी है, उसी तरह एकदम खुल के ) और गुड्डी का हाथ मेरे बारमूडा के अंदर फिर उसे सहलाते बोली,
" माना, रात में इसकी दावत मैं कराउंगी, लेकिन स्साले इसको रात तक भूखा प्यासा रखोगे क्या, न एक दो बार में घिस जाएगा, न एक बारनल खोलने से सारा पानी बाहर आ जाएगा, जितनी बार खोलोगे उतनी बार हरहरा कर, माल मस्त हैं न संध्या दी, एकदम आग लगी है बेचारी को दस दिन से भतार नहीं मिला है, करा दो भूखे को भोजन, लेकिन तू भी न, "
तबतक रीत आ गयी, थोड़ी हैरान परेशान। किसी काम में उलझी थी जब गुड्डी मुझे हड़का रही थी।
वैसे गुड्डी अगर दो चार घंटे में एकाध बार मुझे डांटे नहीं, हड़काये नहीं तो मैं परेशान हो जाता था, ये सारंग नयनी किसी बात से गुस्सा तो नहीं है, कहीं मेरा लाइफ टाइम प्लान खतरे में तो नहीं है।
रीत किसी जुगाड़ में थी। उसने मुझे बताया था वो चेस में भी अपने कालेज में नंबर वन थी और मैं समझ भी गया था की वो उन खिलाडियों में है जो बारहवीं चाल सोचती हैं। और बिना देखे उन्हें पूरा बोर्ड याद रहता है।
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Superb update Komal ji., संध्या भाभी, गुड्डी,
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मैं गुड्डी और रीत देख रहे थे। शायद मैं या रीत देते तो उन्हें शक भी होता लेकिन संध्या भाभी बाद में आई थी इसलिए वो नहीं सोच सकती थी की वो भी हमारी चांडाल चौकड़ी में जवाइन हो गईं होंगी।
रीत मुझसे बोली- “यार देखो जब तुम संध्या भाभी के साथ थे मैंने साथ दिया की नहीं? वो इत्ता बुलाती रही लेकिन मैं नहीं आई…”
“वो तो है…” मैंने मुश्कुराकर कहा।
“तो तुम भी कुछ करो यार। मेरा हम लोगों का साथ दो ना। वैसे भी तुम अब तो चंडाल चौकड़ी जवाइन ही कर चुके हो…” वो इसरार करते हुए बोली।
“करना क्या है बोल ना। जान देना है। पहाड़ तोड़ना है?” मैं बोला।
अब गुड्डी मैदान में आ गयी, थोड़ा प्यार की चाशनी और थोड़ा हुकुमनामा मिला के
“जान दें तुम्हारे दुशमन ऐसा कुछ नहीं। अरे यार हर साल होली में दूबे भाभी हम लोगों की सारी ननदों की खूब ऐसी की तैसी करती हैं, तो अबकी तुम साथ हो तो, … मैंने और रीत दी ने सोचा,..”
मैं समझ गया की मुझे ये शेरनी के सामने भेज के रहेंगी।
रीत ने फिर बात शुरू की- “यार ऐसा कुछ करो ना की। हर साल वो हम सब लोगों को टापलेश कर देती हैं पूरा। और कई बार तो सब कुछ और उसके बाद। चंदा भाभी भी उनके साथ रहती हैं कई बार तो एक दो पास पड़ोस वाली भी, लेकिन अबकी तुम साथ हो तो हिसाब जरा बराबर हो जाये। हम लोग तो साडी तक नहीं उनकी उतरवा पाते, तो कम से कम साडी ब्लाउज तो आज, बस थोड़ा सा, आज तुम साथ दो ना तो हम लोग भी दूबे भाभी की साड़ी ब्लाउज़, बहुत मजा आयेगा…”
मजा तो मुझे भी आ रहा था क्योंकि दूबे भाभी ने रमोला का पूरा ग्लास डकार लिया था। और साथ में भांग मिली गुझिया, और भांग का असर तो मेरे ऊपर भी हो रहा था।
मैं मन की आँखों से दूबे भाभी को साडी चोली विहीन देख रहा था, ३८ + के जोबन जरूर डबल डी होगी कप साइज और चूतड़ तो ४० ++ होंगे ही, लेकिन ऊपर नीचे दोनों एकदम कड़े कड़े, आइडिया तो अच्छा है, और झिलमिलाते नशे से मैं जो बाहर आया तो संध्या भौजी, जिनकी साड़ी मैंने खींच फेंकी थी और जैसे चोली में हाथ डाला तो चट चट कर के सारे बटन टूट गए, बस एक छोटा सा नन्हा मुन्ना हुक किसी तरह से, और उनकी लेसी ट्रांसपेरेंट ब्रा से मैंने कस कस के उनका जोबन रगड़ रगड़ के रंगा था सब साफ़ दिख रखा था और गीला साया देह से एकदम चिपका, उनके बड़े बड़े चूतड़ों की दरार के अंदर घुसा चिपका था।
और संध्या भौजी अपना काम अच्छी तरह से कर रही थी, रमोला का दूसरा ग्लास उन्होंने अपने हाथ से दूबे भाभी को पकड़ा दिया था।
रीत और गुड्डी की जोड़ी, जैसे गुड कॉप, बैड कॉप, कभी रीत बैड कॉप बनती तो कभी गुड्डी और अब गुड्डी बैड कॉप वाले रोल में थी, हड़का मुझे रही थी, बोल रीत से रही थी,
" दी अरे आपने एक बार बोल दिया, हिम्मत है नहीं जाएंगे दूबे भाभी के पास, हम लोगो का साथ नहीं देंगे, जा रही हूँ न मैं इनके साथ, और हफ्ते भर रहूंगी । अब इन्हे सोचना है, चलिए में चंदा भाभी के पास जरा चलती हूँ वरना वो लोग भी सोचेंगी ये तीनो मिल के क्या खिचड़ी पका रही हैं "
और गुड्डी की धमकी के आगे तो, मामला सिर्फ आज की रात की दावत का नहीं था, उसने साफ़ साफ़ इशारा कर दिया, हफ्ते भर का, भैया भाभी तो ऊपर के कमरे में सोते हैं और नीचे तो मैं और गुड्डी ही, फिर ये चंद्रमुखी अगर ज्वालामुखी हो गयी तो मैं जो जिंदगी भर के सपने संजो के बैठा हूँ सब, दूबे भाभी क्या मैं तो शेर के पिजंड़े में भी चला जाऊं,
गुड्डी चंदा भाभी के पास चली गयी और रीत को दूबे भाभी ने किसी काम से नीचे भेज दिया, कुछ लाना था।
रीत गुड्डी से बोल के गयी, बस मैं अभी गयी अभी आयी लेकिन तबतक तुम जरा, मेरे और चंदा भाभी की ओर इशारा कर के बोली।
और अब मेरी हिम्मत और बढ़ गयी, सिर्फ मैं और गुड्डी, बस गुड्डी के जाने के पहले मैंने प्लेट में रखा गुलाल उसके चेहरे पे रंग दिया और बोला-
गली-गली रंगत भरी, कली-कली सुकुमार,
छली-छली सी रह गई, भली-भली सी नार।
वो मुश्कुरा दी और मेरी सारी देह नेह के रंग से रंग गई।
तब तक संध्या भाभी विजयी मुद्रा में लौटी और हम लोगों को हड़काते हुए हल्की आवाज में बोली- “अरे तुम लोग आपस में ही होली खेलते रहोगे या जिसकी प्लानिंग करनी थी वो भी कुछ। …”
और गुड्डी चंदा भाभी के पास
गुड्डी बात चंदा भाभी से कर रही थी लेकिन बीच बीच में कनखियों से मुझे देख रही थी। उसकी एक बदमाश लट बार बार गुड्डी के गालों पे जहां मैंने अभी अभी हल्का सा गुलाल लगाया था वहीं बार बार और मेरा मन गुनगुना रहा था,
तितली जैसी मैं उड़ूँ, चढ़ा फाग का रंग,
गत आगत विस्मृत हुई, चढ़ी नेह की भंग।
रंग अबीर गुलाल से धरती हुई सतरंग,
भीगी चुनरी रंग में अंगिया हो गई तंग…”
गुड्डी चंदा भाभी और दूबे भाभी के साथ कुछ गुपचुप कर रही थी। मेरी समझ में नहीं आ रहा था की उसने गैंग बदल लिया या घुसपैठिया बनकर उधर गई है?
प्लानिंग तो हो गई लेकिन जो मेरा डर था वही हुआ।
मुझे बकरा बनाया गया।
तब तक दूबे भाभी की आवाज आई- “हे टाइम खतम…”
“बस दो मिनट…” और हिम्मत बढ़ाने के लिए संध्या भाभी ने बियर की ग्लास पकड़ाई और और मुस्करा के गुड्डी की ओर इशारा कर के बोलीं,
" तुझे कंट्रोल में रखती हैं "
" लेकिन भौजी मेरे कंट्रोल में नहीं आती "
हम दोनों बियर गटक रहे थे और भौजी ने गुरु ज्ञान दिया,
" जा तो रही है तेरे साथ, आज रात पटक के पेल देना, ये स्साला मोटा मूसल एक बार घुसेगा न बुरिया में में तो एकदम कंट्रोल में आ जायेगी "
और साथ में संध्या भौजी ने बरमूडा के ऊपर से फड़फड़ाते पंछी को पकड़ लिया मेरे। वो अब संध्या भौजी की पकड़ अच्छी तरह पहचानता था। अभी कुछ देर तो पहले उन्होंने बरमूडा के अंदर हाथ डालकर नहीं बल्कि बरमूडा नीचे सरका के उस को खुली हवा में लाके मुठिया था अपनी चुनमुनिया से मुलाकात करवाई थी, उसका चुम्मा दिलवाया था।
अब मैं फिर बौरा गया, संध्या भौजी के रंग से भीगे खुली चोली से ब्रा से झांकते जोबन एकदम मेरे सीने के पास, और मेरी हालत देख के उन्होंने रगड़ दिया अपने उभारों को मेरे सीने पे, और मेरे मुंह से निकल गया,
"पहले तो ये कहीं और पेलना चाहता है। "
वो हट गयीं और जैसे गुस्से में, बोलीं, " नहीं "
मैं एक पल के लिए घबड़ा गया लेकिन अगले पल अपनी जूठी बियर की ग्लास को मेरे मुंह में लगा के मेरा मुंह बंद किया और अपने होंठो से मेरे कानों को दुलराते, कान में बोलीं,
" तू क्या पेलेगा अपनी भौजी को, मैं पेलूँगी तुझे। रेप कर दूंगी तेरा। हाँ उसके बाद भी मेरा मन किया तो एक राउंड और लेकिन चिकने बिन चुदे तू बचेगा नहीं आज मुझसे "
" मंजूर भौजी, लेकिन गुड्डी "
भांग के नशे में क्या है, जो चीज दिमाग में एक बार घुस जाती है, आदमी वही बोलता रहता है और गुड्डी तो मेरे दिल दिमाग में हमेशा के लिए तो फिर मैंने संध्या भाभी से वही गुहार लगाई।
" चल यार बोल दूंगी, छोटी बहन है बात थोड़े टालेगी, दो इंच की चीज के लिए इतना निहोरा करवा रही है। " वो मेरे मूसलचंद को प्यार से दुलराते, सहलाते बोलीं। उन्हें मुझसे ज्यादा मेरे मूसलचंद की चिंता थी।
भांग का एक फायदा भी है की झिझक चली जाती है, दिल की बात मुंह पे आ जाती है, और मैंने संध्या भाभी से अपने मन की बात कह दी
" भौजी, गुड्डी , एक बार के लिए नहीं, हरदम के लिए, मतलब, " अब मैं हकला रहा था, थूक घोंट रहा था, हिम्मत जवाब दे गयी थी।
" ओह्ह ओह्ह तो तोता मैना की कहानी, तो जो मैंने उड़ते पड़ते सुना था सही है लेकिन सोच लो देवर जी, हाँ कहने के पहले तलवे चटवायेगी "
संध्या भौजी ने मेरी नाक पकड़ ली और छेड़ रही थीं,
" तलवे तो मैं उसके जिंदगी भर चाटूँगा भौजी, बस एक बार, " एक बार मन की बात निकलना शुरू होती है तो रुकना मुश्किल होता है,
" सिर्फ उसके या " वो हंस के बोली और मैं उनका मतलब समझ गया, और मेरे मन की आँखों में गुड्डी की मम्मी, उसकी दोनों छोटी बहने,
' सबके " खिलखिलाते हुए मैं बोला।
तबतक रीत भी आ गयी और रीत ने भी एक बियर की ग्लास उठा ली लेकिन रीत और संध्या भाभी दोनों चंदा भाभी और गुड्डी की ओर देख रही थी जैसे किसी सिग्नल का इन्तजार कर रही हों।
गुड्डी कमरे के अन्दर गई और कुछ देर में लौटकर चन्दा भाभी से कहने लगी- “एक मिनट के लिए आप आ जाइए ना मुझे नहीं मिल रहा…”
चंदा भाभी अन्दर गई और रीत और संध्या भाभी दोनों मुझे उकसाते, फुसफुसाते बोलीं,
" जाओ, जाओ"
मैं दूबे भाभी की ओर बढ़ा। संध्या भाभी और रीत वहीं टेबल के पास खड़ी रही, मुश्कुराती हुई। खरगोश और शेर वाली कहानी हो रही थी। जैसे गाँव वालों ने खरगोश को शेर के पास भेजा था वैसे ही मैं भी।
दूबे भाभी मंद-मंद मुश्कुरा रही थी।
उनके दोनों हाथ कमर पे थे चैलेन्ज के पोज में और भरे हुए नितम्बों पे वो बहुत आकर्षक भी लग रहे थे। उनका आँचल ब्लाउज़ को पूरी तरह ढके हुए था लेकिन 38डीडी साइज कहाँ छिपने वाली थी।
दूबे भाभी बोली-
“आ जाओ, तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी। बहुत दिनों से किसी कच्ची कली का भोग नहीं लगाया। मैं रीत और संध्या की तरह नहीं हूँ। उन दोनों की भाभी हूँ…”
मैं ठिठक गया। चारों ओर मैंने देखा, ना तो भाभी के हाथ में रंग था और ना ही आसपास रंग, पेंट अबीर, गुलाल कुछ भी। मैं दूबे भाभी को अपलक देख रहा था। छलकते हुए योवन कलश की बस आप जो कल्पना करें, रस से भरपूर जिसने जीवन का हर रंग देखा हो, देह सरोवर के हर सुख में नहाई हो, कामकला के हर रस में पारंगत, 64 कलाओं में निपुण, वो ताल जिसमें डूबने के बाद निकलने का जी ना करे।
wow what a wonderful update komalji.फागुन के दिन चार ----भाग १५
दूबे भाभी
1,85,204
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चंदा भाभी अन्दर गई और रीत और संध्या भाभी दोनों मुझे उकसाते, फुसफुसाते बोलीं,
" जाओ, जाओ
मैं दूबे भाभी की ओर बढ़ा।
संध्या भाभी और रीत वहीं टेबल के पास खड़ी रही, मुश्कुराती हुई। खरगोश और शेर वाली कहानी हो रही थी। जैसे गाँव वालों ने खरगोश को शेर के पास भेजा था वैसे ही मैं भी।
दूबे भाभी मंद-मंद मुश्कुरा रही थी।
उनके दोनों हाथ कमर पे थे चैलेन्ज के पोज में और भरे हुए नितम्बों पे वो बहुत आकर्षक भी लग रहे थे। उनका आँचल ब्लाउज़ को पूरी तरह ढके हुए था लेकिन 38डीडी साइज कहाँ छिपने वाली थी।
दूबे भाभी मुस्कराकर बोलीं -
“आ जाओ, तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी। बहुत दिनों से किसी कच्ची कली का भोग नहीं लगाया। मैं रीत और संध्या की तरह नहीं हूँ। उन दोनों की भाभी हूँ…”
मैं ठिठक गया। चारों ओर मैंने देखा, ना तो भाभी के हाथ में रंग था और ना ही आसपास रंग, पेंट अबीर, गुलाल कुछ भी।
मैं दूबे भाभी को अपलक देख रहा था। छलकते हुए योवन कलश की बस आप जो कल्पना करें, रस से भरपूर जिसने जीवन का हर रंग देखा हो, देह सरोवर के हर सुख में नहाई हो, कामकला के हर रस में पारंगत, 64 कलाओं में निपुण, वो ताल जिसमें डूबने के बाद निकलने का जी ना करे।
दूबे भाभी ने छेड़ते हुए कहा “क्या देख रहे हो लाला? अरे ऐसे मस्त देवर से होली के लिए मैं खास इंतजाम से आई हूँ…” और उन्होंने एक पोटली सी खोली।
ढेर सारी कालिख, खूब गाढ़ी, काजल से भी काली, चूल्हे के बर्तन के पेंदी से जो निकलती है वैसे ही। फिर दूसरे हाथ से उन्होंने कोई शीशी खोली, कडवा तेल की दो-चार बूँदें मिलाईं, और हाथ पे लगा लिया।
दूबे भाभीने मुझे चिढ़ाया -
“मायके जाकर तो अपनी बहन छिनाल के साथ मुँह काला करोगे ही। और वो भी गदहा चोदी यहाँ आकर सारे शहर के साथ मुँह काला करेगी तो मैंने सोचा की सबसे अच्छा तुम्हारे इस गोरे-गोरे लौंडिया स्टाइल मुँह के लिए ये कालिख ही है। और एक बात और इस कालिख की, कि चाहे तुमने नीचे तेल लगाया हो पेंट लगाया हो, कोई साल्ला कन्डोम वाला प्रोटेक्शन नहीं चलेगा। चाहे साबुन लगाओ चाहे बेसन चाहे जो कुछ, इसका रन्ग जल्दी नहीं उतरने वाला। जब रन्ग पन्चमी में आओगे ना अपनी चिनाल मादरचोद बहना को लेकर तभी मैं उतारूंगी इसका असर, चेहरे से लेकर गाण्ड तक…”
अब ये सुनकर तो मेरी भी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। मैं वहीं ठिठक गया।
लेकिन जिस तरह से दूबे भाभी मेरी और लपक के बढीं, मेरे बचने का कोई चान्स नहीं रहा। प्लानिंग साली गई गधी की चूत में। भाग भोसड़ी के। भाग साल्ला भाग और मैं मुड़ लिया।
लेकिन दूबे भाभी भी, आखीरकार सारी ननदें उनसे क्यों डरती थीं? मैं आगे-आगे वो पीछे-पीछे।
लेकिन भागने में मैं भी चतुर चालाक था। तभी तो दर्जा 7 से जब पहली बार पान्डे मास्टर मेरे पिछवाड़े के पीछे पड़े थे, तबसे आज तक मेरा पिछवाड़ा बचा हुआ था। मैं कन्नी काटकर बच गया।
लेकिन अगली बार जब मैंने ये चाल चली तो दूबे भाभी मेरे आगे और मेरा सारा ध्यान उनके 40+ साइज के मस्त नितम्बों के दर्शन में। क्या मस्त कटाव, कसाव, और चलते हुये जब दोनों गोलार्ध आपस में मिलते तो बस दिल की धड़कन डबल हो जाती। और एक दूसरा खतरा हो गया। सन्ध्या भाभी अचानक सामने आ गईं और मैं एक पल के लिये उनकी ओर देखने लगा।
बस ऐक्सिडेंट हो गया। मैं पकड़ा गया।
दूबे भाभी मुस्कराकर बोलीं - “साले बहनचोद, आखिर कहां जा रहे थे छिपने अपनी बहना के भोंसड़े में? अरे फागुन में ससुराल आये हो तो बिना डलवाये कैसे जाओगे सूखे सूखे? शादी के बाद दुल्हन ससुराल जाये और बिना चुदवाये बच जाये और ससुराल में कोई होली में जाये और बिना डलवाये आ जाय। सख्त नाइन्साफी है…”
अब तक मेरे गाल पे दो किशोरियों, रीत, गुड्डी और एक तरुणी, सन्ध्या भाभी की उंगलियां रस बरसा चुकी थी।
लेकिन दूबे भाभी का स्पर्श सुख कुछ अलग ही था। उन किशोरियों के स्पर्श में एक सिहरन थी, एक छुवन थी, एक चुभन थी। और सन्ध्या भाभी के छूने में जिसने जवानी का यौन सुख का नया-नया रस चखा हो उसका अहसास था।
लेकिन दूबे भाभी की रगड़ाई मसलाई में एक गजब का डामिनेन्स, एक अधिकार था जिसके आगे बस मन करता है कि बस सरेन्डर कर दो। अब जो करना हो ये करें, उनकी उंगलियां कुछ भी नहीं छोड़ रही थी, यहां तक कि मेरा मुँह खुलवा के उन्होंने दान्तों पे भी कालिख रगड़ दी। लेकिन तभी मेरी निगाह रीत पे पड़ गई, वो तेजी से कुछ इशारे कर रही थी।
सारी प्लानिंग के बाद भी मेरी हालत स्टेज पे पहली बार गये कलाकार जैसे हो रही थी, जो वहां पहुँचकर दर्शकों को देखकर सब कुछ भूल जाय और साइड से प्राम्पट प्राम्पटर इशारे करे, और उसे देखकर और डायरेक्टर के डर से उसे भूले हुये डायलाग याद आ जायें। वही हालत मेरी हो रही थी।
रीत को देखकर मुझे सब कुछ याद आ गया और मैंने एक पलटी मारी। लेकिन दूबे भाभी की पकड़ कहां बचता मैं।
हाँ हुआ वही जो हम चाहते थे। यानी अब भाभी मेरे पीछे थी।
उनके रसीले दीर्घ स्तन मेरे पीठ में भाले की नोक की तरह छेद कर रहे थे। उन्होंने अपनी दोनों टांगों के बीच मेरी टांगों को फँसा लिया था, जिससे मैं हिल डुल भी ना पाऊँ और अब उनके हाथ कालिख का दूसरा कोट मेरे गालों पे रगड़ रहे थे और साथ में अनवरत गालियां। मेरे घर में किसी को उन्होंने नहीं बख्शा।
लेकिन इसी चक्कर में वो भूल गईं इधर-उधर देखना और साइड से रीत और सन्ध्या भाभी ने एक साथ।
वो दोनों उनके चिकने गोरे-गोरे पेट पे रंग लगा रही थी, पेंट मल रही थी। लेकिन अभी भी दूबे भाभी का सारा ध्यान मेरी ओर ही लगा हुआ था जैसे कोई बहुत स्वादिष्ट मेन-कोर्स के आगे साईड डिश भूल जाय। हाँ गालियों का डायरेक्शन जरूर उन्होंने उन दोनों कि ओर मोड़ दिया था।
दूबे भाभी ने छेड़ते हुए कहा
“अरे पतुरियों, बहुत चूत में खुजली मच रही है? भूल गई पिछले साल की होली। अरे जरा इस रसगुल्ले के चिकने गाल का मजा ले लेने दे फिर बताती हूँ तुम छिनारों को। यहीं छत पे ना नंगा नचाया तो कहना…”