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Erotica फागुन के दिन चार

Premkumar65

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फागुन के दिन चार भाग १४

संध्या भाभी
१,७४,१७४
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सामने संध्या भाभी, अपने हथेलियों में मुझे दिखाकर लाल रंग मल रही थी।

उनकी ट्रांसपरेंट सी साड़ी में उनका गोरा बदन झलक रहा था। भारी जोबन खूब लो-कट ब्लाउज़ से निकलने को बेताब थे। शायद विवाहित औरतों पे एक नए तरह का हो जोबन आ जाता है। वही हालत उनकी थी। चूतड़ भी खूब भरे-भरे।

देख कर हालत खराब हो रही थी मेरी बस मैंने सोच लिया आज कुछ भी हो जाये, और ऊपर झापर से नहीं, सीधे गपागप, गपागप, एक तो उमर में मेरी समौरिया, २२-२३ के बीच, मुझसे दो चार महीने बड़ी या छोटी, फिर शादी के बाद, जैसे कोई शेरनी आदमखोर हो जाए, उसके मुंह खून लग जाए, उस स्वाद के बाद सब भूल के, वही हालत नयी नयी शादी वाली, और संध्या भाभी को देख के लग रहा था, उनके पोर पोर से रस चू रहा था, जैसे किसी हारमोन की मादक महक आये, और आदमी बस उसी के महक में बहता, बहकता चला जाए,



और हालत संध्या भाभी की भी कम खराब नहीं थी,

साल भर भी नहीं हुए थे शादी के और शादी के बाद तो कोई दिन नागा नहीं जाता था, एक दिन भी गुलाबो को उपवास नहीं करना पड़ा, लेकिन मायके आये हफ्ते भर हो गया और, ऊपर से पांच दिन वाली छुट्टी कल खतम हुयी और उस दिन तो एकदम नहीं रहा जाता। इस चिकने पर निगाह पड़ते ही उन्होंने फैसला कर लिया था, आज छोडूंगी नहीं इस स्साले को, कुछ सोच के ऊपर वाले ने उपवास तोड़ने के लिए आहार भेजा है, थोड़ा नौसिखिया है, कुछ आगे बढ़ना होगा खुद और तब भी बात नहीं बनेगी तो सीधे ऊपर चढ़ के हुमच हुमच के, देखने से ही लम्बी रेस का घोडा लगता है, और फिर नयी उमर की नयी फसल के साथ तो और मजा आता है, स्साला चिचियाता रहेगी, मैं पेलती रहूंगी, लेकिन बिना पेले छोडूंगी नहीं।

“तुम दोनों रगड़ लो फिर मैं आती हूँ। इन्हें बनारस के ससुराल की होली का मजा चखाने…” वो मुश्कुराकर रीत और गुड्डी से बोली।



“ना, आ जाइए आप भी ना,... थ्री-इन-वन मिलेगा इनको…”
रीत और गुड्डी साथ-साथ बोली।


दूबे और चंदा भाभी बैठकर रस ले रही थी लेकिन कब तक? दूबे भाभी अपने अंदाज में बोली-

“अरे इस गंड़वे को तो एक साथ दो लेने की बचपन से आदत है। एक गाण्ड में एक मुँह में…”



“अरे इस बिचारे को क्यों दोष देती हैं, साली छिनार चुदक्कड़ इसकी मायकेवालियां। मरवाना, डलवाना, पेलवानातो इस साले बहनचोद के खून में है हरामी का जना…रंडी का छोरा “

भांग अब चंदा भाभी को भी चढ़ गई थी।



संध्या भाभी आ गई रीत और गुड्डी के साथ।

लेकिन मुझे बचने का रास्ता मिल गया।

गुड्डी ने थोड़ा हटकर उन्हें जगह दी मेरे चेहरे पे रंग मलने के लिए, वैसे भी वो दोनों शैतान अब कमर के नीचे इंटरेस्ट ज्यादा ले रही थी।

दोनों और साइड में हो गई। बस यहीं मुझे मौका मिला गया।



रंग वंग तो मेरे पास था नहीं। लेकिन संध्या भाभी की गोरी-गोरी पतली कमरिया, किसी इम्पोर्टेड कमरिया से भी ज्यादा सेक्सी रसीली थी। उनका गोरा चिकना पेट कुल्हे के भी नीचे बंधी साड़ी से साफ खुला था और मेरे दोनों हाथ बस अपने आप पहुँच गए। संध्या भाभी के हाथ तो मेरे गालों पे बिजी हो गए और इधर मेरे हाथों ने पहले तो उनकी पतली कमरिया पकड़ी और फिर चुपके से साए के अन्दर फँसी साड़ी को हल्के-हल्के निकालना शुरू कर दिया। काफी कुछ काम हो चुका था तब तक मेरी आँखें उनकी चोली फाड़ती चूचियों पे पड़ी और मेरे लालची हाथ पेट से ऊपर, लाल ब्लाउज़ की ओर।

औरत को और कुछ समझ में आये ना आये लेकिन मर्द की चाहे निगाह ही उसके उभारों की ओर पड़ती है तो वो चौकन्नी हो जाती है, और यही हुआ।

इस आपाधापी में गुड्डी और रीत की पकड़ भी कुछ हल्की हो चुकी थी।

संध्या भाभी ने मेरा हाथ रोकने की कोशिश की।

मेरे एक हाथ में उनके आँचल का छोर था। मैंने उसे पकड़ा और कसकर झटका मारकर तीनों की पकड़ से बाहर। जब तक संध्या भाभी समझती समझती, मैंने उनके चारों ओर एक चक्कर मार दिया। साये से तो साड़ी मैं पहले ही निकाल चुका था, और उनकी साड़ी मेरे हाथ में।

संध्या भाभी, सिर्फ एक छोटी सी खूब टाइट लाल चोली और कूल्हे के सहारे खूब नीचे बांधे साये में , नाभी से कम से कम एक बित्ते नीचे, बस चार अंगुल और नीचे, और भाभी की राजरानी से मुलकात हो जाती।



और मैं। बस बेहोश नहीं हुआ। क्या मस्त जोबन लग रहे थे, एकदम तने खड़े, उभार चुनौती देते। मैंने तय कर लिया इन उभारों को सिर्फ पकड़ने मसलने से नहीं चलेगा, जब तक इन्हे पकड़ के, मसलते हुए, हुमच हुमच कर, गंगा स्नान नहीं किया,एकदम अंदर तक डुबकी नहीं लगायी, तो सब बेकार। भांग का नशा तो तगड़ा होता ही है लेकिन उसके ऊपर अगर जोबन का नशा चढ़ जाए तो फिर तो कोई रोक नहीं सकता कुछ होने से।

और ऊपर से मेरी हालत संध्या भाभी भी समझ रही थीं, वो और कभी अपने जोबन उभार कर, कभी झुक के, क्लीवेज दिखा के, ललचा भी रही थीं, उकसा भी रही थीं और बता भी रही थी की वो खुद छुरी के नीचे आने के लिए तैयार हैं।

और पल भर बाद जब मैं होश में आया तो मैंने संध्या भाभी से बोला,

“भाभी इत्ती महंगी साड़ी कहीं रंग से खराब हो जाती। मैं नहीं लगाता लेकिन आपकी इन दोनों बुद्धू बहनों का तो ठिकाना नहीं था ना…” मैंने रीत और गुड्डी की ओर इशारा करके कहा।



वो दोनों दूर खड़ी खिलखिला रही थी।



“फिर होली तो भाभी से खेलनी है उनके कपड़ों से थोड़े ही…” बहुत भोलेपन से मैं बोला।


बिचारी संध्या भाभी शर्माती, लजाती और,... ब्लाउज़ साए में लजाते हुए वो बहुत खूबसूरत लग रही थी। उनके लम्बे काले घने बाल किसी तेल शम्पू के विज्ञापन लग रहे थे और पल भर के लिए वो झुकी अपने साए को थोड़ा ऊपर करने की असफल कोशिश करने तो, उनका ब्लाउज़ इत्ता ज्यादा लो-कट था की क्लीवेज तो दिखा ही, निपलों तक की झलक नजर आ गई।

मैं तो पत्थर हो गया- खासतौर पे 8” इंच तक।


साया भी इतना कसकर बंधा था की नितम्बों का कटाव, जांघ की गोलाइयां सब कुछ नजर आ रही थीं। अब तक तो मैं बिना हथियार बारूद के लड़ाई लड़ रहा, लेकिन मैंने सोचा थोड़ा रंग वंग ढूँढ़ लिया जाय। मैंने इधर-उधर निगाह दौड़ाई, कहीं कुछ नजर नहीं आया।
superb holi.
 

komaalrani

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komaalrani

Well-Known Member
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Main jaisi kahani ki kaamna kar raha tha, slow seduction or wo purana family aur alhad ehsaas aap bilkul waisa hi likhti hai

Charpai pe sona gaon ka purana eshaas dilata hai aur uske kamukta

Just Lovely Mam
Amazing superb
Welcome to the thread and thanks so much.

ekdm is kahani men aapko gaaon ki jahlak, maati ki mahak, slow seduction aur simmering romance milega bas ise aapka saath aur support chaahiye aur regaulr comment. ek baar fir se swagat
 

komaalrani

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Awesome Mam

Chanda Bhabhi ne toh Anand k anand le liye 😉
Naam hi Aanand hai to aannad to lena dena hoga hi, bahoot bahoot dhanywaad. kahaani se judne ke liye padhne ke liye aur rochak comments ke liye

Thanks again.
 

Rajizexy

punjabi doc
Supreme
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Thanks so much, your support encourages and enthuses me. you are a pillar of support.

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Didi vese mere bahut se friends👭👬 jinse mene tumari kabaliyat ki prashansa ki hai, ab tumari story par aane lage hain aur mujhe bahut acha lag rha hai.
Jese mujhe tum se itna kuch seekhne ko mil rha hai kya pta vo bhi kuch seekh lein. Matlab samundar se ek chonch bhar lein pani ki. Chidi chonch bhar le gyi, nadi na ghatyo neer. ❣️u didi.
 
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Welcome to the thread and thanks so much.

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Always here Mam
 
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Naam hi Aanand hai to aannad to lena dena hoga hi, bahoot bahoot dhanywaad. kahaani se judne ke liye padhne ke liye aur rochak comments ke liye

Thanks again.
🙏
 

komaalrani

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Didi vese mere bahut se friends👭👬 jinse mene tumari kabaliyat ki prashansa ki hai, ab tumari story par aane lage hain aur mujhe bahut acha lag rha hai.
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फागुन के दिन चार भाग २

रस बनारस का - चंदा भाभी

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तब तक वहां एक महिला आई क्या चीज थी। गुड्डी ने बताया की वो चन्दा भाभी हैं। वह भी भाभी यानी गुड्डी की मम्मी की ही उम्र की होंगी, लेकिन दीर्घ नितंबा, सीना भी 38डी से तो किसी हालत में कम नहीं होगा लेकिन एकदम कसा कड़ा। मैं तो देखता ही रह गया। मस्त माल और ऊपर से भी ब्लाउज़ भी उन्होंने एकदम लो-कट पहन रखा था।


मेरी ओर उन्होंने सवाल भरी निगाहों से देखा।

भाभी ने हँसकर कहा अरे बिन्नो के देवर, अभी आयें हैं और अभी कह रहे हैं की जायेंगे। मजाक में भाभी की भाभी सच में उनकी भाभी थी और जब भी मैं भैया की ससुराल जाता था, जिस तरह से गालियों से मेरा स्वागत होता था और मैं थोड़ा शर्माता था इसलिए और ज्यादा। लेकिन चन्दा भाभी ने और जोड़ा-

“अरे तब तो हम लोगों के डबल देवर हुए तो फिर होली में देवर ऐसे सूखे सूखे चले जाएं ससुराल से ये तो सख्त नाइंसाफी है। लेकिन देवर ही हैं बिन्नो के या कुछ और तो नहीं हैं…”

“अब ये आप इन्हीं से पूछ लो ना। वैसे तो बिन्नो कहती है की ये तो उसके देवर तो हैं हीं, उसके ननद के यार भी हैं इसलिए नन्दोई का भी तो…” भाभी को एक साथी मिल गया था।

“तो क्या बुरा है घर का माल घर में। वैसे कित्ती बड़ी है तेरी वो बहना। बिन्नो की शादी में भी तो आई थी। सारे गावं के लड़के… चौदह से उपर तो बिन्नो की शादी में ही लग रही थी, चौदह की तो हो गयी न भैया, "” चंदा भाभी ने छेड़ा।

ये सवाल मेरे से था लेकिन जवाब गुड्डी ने दिया . गुड्डी ने भी मौका देखकर पाला बदल लिया और उन लोगों के साथ हो गई। बोली

“मेरे साथ की ही है। मेरे साथ ही पिछले साल दसवां पास किया था, और चौदह की तो कब की हो गयी। " …”


“अरे तब तो एकदम लेने लायक हो गई होगी। चौदह की हो गयी मतलब चुदवाने लायक तो हो गयी, अब तो पक्की चुदवासी होगी , भैया, जल्दी ही उसका नेवान कर लो वरना जल्द ही कोई ना कोई हाथ साफ कर देगा दबवाने वबवाने तो लगी होगी। है न। हम लोगों से क्या शर्माना…”

चंदा भाभी ने मेरी रगड़ाई का लेवल बढ़ा दिया।
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लेकिन मैं शर्मा गया। मेरा चेहरा जैसे किसी ने इंगुर पोत दिया हो। और चंदा भाभी और चढ़ गईं।

“अरे तुम तो लौंडियो की तरह शर्मा रहे हो। इसका तो पैंट खोलकर देखना पड़ेगा की ये बिन्नो की ननद है या देवर…”

भाभी हँसने लगी और गुड्डी भी मुश्कुरा रही थी।


मैंने फिर वही रट लगाई-

“मैं जा रहा हूँ। सुबह आकर गुड्डी को ले जाऊँगा…”


“अरे कहाँ जा रहे हो, रुको ना और हम लोगों की पैकिंग वेकिंग हो गई है ट्रेन में अभी 3 घंटे का टाइम है और वहां रेस्टहाउस में जाकर करोगे क्या अकेले या कोई है वहां…” भाभी बोली।


“अरे कोई बहन वहन होंगी इनकी यहाँ भी। क्यों? साफ-साफ बताओ ना। अच्छा मैं समझी। दालमंडी (बनारस का उस समय का रेड लाईट एरिया जो उन लोगों के मोहल्ले के पास ही था) जा रहे हो अपनी उस बहन कम माल के लिए इंतजाम करने। तुम खुद ही कह रहे हो चौदह की कब की हो गयी . बस लाकर बैठा देना। मजा भी मिलेगा और पैसा भी।

लेकिन तुम खुद इत्ते चिकने हो होली का मौसम, ये बनारस है। किसी लौंडेबाज ने पकड़ लिया ना तो निहुरा के ठोंक देगा और फिर एक जाएगा दूसरा आएगा रात भर लाइन लगी रहेगी। सुबह आओगे तो गौने की दुल्हन की तरह टांगें फैली रहेंगी…”

चंदा भाभी अब खुलकर चालू हो गई थी।
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“और क्या हम लोग बिन्नो को क्या मुँह दिखायेंगे…” भाभी भी उन्हीं की भाषा बोल रही थी। वो उठकर किसी काम से दूसरे कमरे में गईं तो अब गुड्डी ने मोर्चा खोल लिया।

“अरे क्या एक बात की रट लगाकर बैठे हो। जाना है जाना है। तो जाओ ना। मैं भी मम्मी के साथ कानपुर जा रही हूँ। थोड़ी देर नहीं रुक सकते बहुत भाव दिखा रहे हो। सब लोग इत्ता कह रहे हैं…”

“नहीं। वैसा कुछ खास काम नहीं। मैंने सोचा की थोड़ा शौपिंग वापिंग। और कुछ खास नहीं। तुम कहती हो तो…” मैंने पैंतरा बदला।


“नहीं नहीं मेरे कहने वहने की बात नहीं है। जाना है तो जाओ। और शौपिंग तुम्हें क्या मालूम कहाँ क्या मिलता है। यहाँ से कल चलेंगे ना। दोपहर में निकलेंगे यहाँ से फिर तुम्हारे साथ सब शौपिंग करवा देंगे। अभी तो तुम्हें सैलरी भी मिल गईं होगी ना सारी जेब खाली करवा लूँगी…”

ये कहकर वो थोड़ा मुश्कुराई तो मेरी जान में जान आई।

चन्दा भाभी कभी मुझे तो कभी उसे देखती।


“ठीक है बाद में सब लोगों के जाने के बाद…” मैंने इरादा बदल दिया और धीरे से बोला।


“तुम्हें मालूम है कैसे कसकर मुट्ठी में पकड़ना चाहिए…” चन्दा भाभी ने मुश्कुराते हुए गुड्डी से कहा।

“और क्या ढीली छोड़ दूं तो पता नहीं क्या?”
गुड्डी मुस्करा के बोली।


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और मैं भी उन दोनों के साथ मुश्कुरा रहा था। तब तक भाभी आ गईं और गुड्डी ने मुझे आँख से इशारा किया। मैं खुद ही बोला- “भाभी ठीक ही है। आप लोग चली जाएंगी तभी जाऊँगा। वैसे भी वहां पहुँचने में भी टाइम लगेगा और फिर आप लोगों से कब मुलाकात होगी…”



चन्दा भाभी तो समझ ही रही थी की। और मंद-मंद मुश्कुरा रही थी। लेकिन भाभी मजाक के मूड में ही थी वो बोली-

“अरे साफ-साफ ये क्यों नहीं कहते की पिछवाड़े के खतरे का खयाल आ गया। ठीक है बचाकर रखना चाहिए। सावधानी हटी दुर्घटना घटी… पिछवाड़े तेल वेल लगा के आये थे की नहीं, अरे बनारस है तुम्हारी ससुराल भी है, फिर फटने वाली चीज कब तक बचा के रखोगे "
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भाभी , गुड्डी की मम्मी अब पूरे जोश में आ गयी थीं और उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ रहा था की उनकी बेटियां, गुड्डी और छुटकी वहीँ बैठीं हैं। दोनों मुस्करा रही थीं।


“अरे इसमें ऐसे डरने की क्या बात है देवरजी, ऐसा तो नहीं है की अब तक आपकी कुँवारी बची होगी। ऐसे चिकने नमकीन लौंडे को तो, वैसे भी ये कहा है ना की मजा मिले पैसा मिले और… कड़वा तेल की आप चिंता न करिये। अरे ये कानपुर जा रही हैं मैं तो हूँ न। पक्का दो ऊँगली की गहराई तक,... नहीं होगा तो कुप्पी लगा के, पूरे ढाई सौ ग्राम पीली सरसों का तेल,... गुड्डी साथ देगी न मेरा बस इन्हे पकड़ के निहुराना रहेगा। अब इतनी कंजूसी भी नहीं की एक पाव तेल के लिए बेचारे देवर की पिछवाड़े की चमड़ी छिले। "

चंदा भाभी तो गुड्डी की मम्मी से भी दो हाथ आगे।”

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गड्डी मैदान में आ गई मेरी ओर से- “इसलिए तो बिचारे रुक नहीं रहे थे। आप लोग भी ना…”


“बड़ा बिचारे की ओर से बोल रही हो। अरे होली में ससुराल आये हैं और बिना डलवाए गए तो नाक ना कट जायेगी। अरे हम लोग तो आज जा ही रहे हैं वरना। लेकिन आप लोग ना…” गुड्डी की मम्मी बोली।


“एकदम…” चन्दा भाभी बोली।

“आपकी ओर से भी और अपनी ओर से भी इनके तो इत्ते रिश्ते हो गए हैं। देवर भी हैं बिन्नो के नंदोई भी। और इनकी बहन आके दालमंडी में बैठेगी तो पूरे बनारस के साले भी, इसलिए डलवाने से तो बच नहीं सकते। अरे आये ही इसलिये हैं की, क्यों भैया वेसेलिन लगाकर आये हो या वरना मैं तो सूखे ही डाल दूँगी। और तू किसका साथ देगी अपनी सहेली के यार का। या…”

चन्दा भाभी अब गुड्डी से पूछ रही थी।

गुड्डी खिलखिला के हँस रही थी। और मैं उसी में खो गया था। भाभी किचेन में चली गई थी लेकिन बातचीत में शामिल थी।

“अरे ये भी कोई पूछने की बात है आप लोगों का साथ दूँगी। मैं भी तो ससुराल वाली ही हूँ कोई इनके मायके की थोड़ी। और वैसे भी शर्ट देखिये कित्ती सफेद पहनकर आये हैं इसपे गुलाबी रंग कित्ता खिलेगा। एकदम कोरी है…”
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गुड्डी ने मेरी आँख में देखते हुए जो बोला तो लगा की सौ पिचकारियां चल पड़ी

“इनकी बहन की तरह…” चंदा भाभी जोर से हँसी और मुझसे बोली,

“लेकिन डरिये मत हम लोग देवर से होली खेलते हैं उसके कपड़ों से थोड़े ही…”

तब तक भाभी की आवाज आई-

“अरे मैं थोड़ी गरम गरम पूड़ियां निकाल दे रही हूँ भैया को खिला दो ना। जब से आये हैं तुम लोग पीछे ही पड़ गई हो…”

चंदा भाभी अंदर किचेन में चली गईं लेकिन जाने के पहले गुड्डी से बोला-

“हे सुन मैंने अभी गरम गरम गुझिया बनायी है। वो वाली (और फिर उन्होंने कुछ गुड्डी के कान में कहा और वो खिलखिला के हँस पड़ी), गुंजा से पूछ लेना अलग डब्बे में रखी है। जा…


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Chanda Bhabhi ka jadu ab bhi chalu hai

Meri bhi Didi hai unke sasural jata hai toh full hasi mazak hota hai

Aapne wo sab yaad dila diya & Specially Didi

Thank U
 
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गुझिया

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तब तक भाभी की आवाज आई- “अरे मैं थोड़ी गरम गरम पूड़ियां निकाल दे रही हूँ भैया को खिला दो ना। जब से आये हैं तुम लोग पीछे ही पड़ गई हो…”

चंदा भाभी अंदर किचेन में चली गईं लेकिन जाने के पहले गुड्डी से बोला- “हे सुन मैंने अभी गरम गरम गुझिया बनायी है। वो वाली (और फिर उन्होंने कुछ गुड्डी के कान में कहा और वो खिलखिला के हँस पड़ी), गुंजा से पूछ लेना अलग डब्बे में रखी है। जा…”

वो मुझे बगल के कमरे में ले गई और उसने बैठा दिया-


“हे कहाँ जा रही हो…” मैं फुसफुसा के बोला।

“तुम ना एकदम बेसबरे हो। पागल। अभी तो खुद भागे जा रहे थे और अभी। अरे बाबा बस अभी गई अभी आई। बस यहीं बैठो।"


उसने मेरी नाक पकड़कर हिला दिया और हिरणी की तरह उछलती 9-2-11 हो गई। मेरे तो पल काटे नहीं कट रहे थे। मैं दीवाल घड़ी के सेकेंड गिन रहा था।

पूरे चार मिनट बाद वो आई। एक बड़ी सी प्लेट में गुझिया लेकर। गरम गरम ताजी और खूब बड़ी-बड़ी गदराई सी। अबकी सोफे पे वो मुझसे एकदम सटकर बैठ गई। उसकी निगाहें दरवाजे पे लगी थी।

“लो…” मैंने हाथ बढ़ाया तो उसने मेरा हाथ रोक दिया। और अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाकर बोली-

“मेरे रहते तुम्हें हाथों का इश्तेमाल करना पड़े…”
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उसका द्विअर्थी डायलाग मैं समझ तो रहा था लेकिन मैंने भी मजे लेकर कहा-

“एकदम और वैसे भी इन हाथों के पास बहुत काम है…”

और मैंने उसे बाहों में भर लिया। बिना अपने को छुड़ाये वो मुश्कुराकर बोली-

“लालची बेसबरे।“

और अपने हाथ से एक गुझिया मेरे होंठों से लगा दिया। मैंने जोर से सिर हिलाया। वो समझ गई और बोली-
"तुम ना। नहीं सुधरने वाले


और गुझिया अपने रसीले होंठों में लगाकर मेरे मुँह में डाल दिया। मैंने आधा खाने की कोशिश की लेकिन उसकी जीभ ने पूरी की पूरी मुँह में धकेल दी।

“हे आधे की नहीं होती। पूरा अन्दर लेना होता है…” मुश्कुराकर वो बोली।

मेरा मुँह भरा था लेकिन मैं बोला- “हे अपनी बार मत भूल जाना मना मत करने लगना…”

“जैसे मेरे मना करने से मान ही जाओगे और जब पूरा मेरा है तो आधा क्यों लूंगी…”
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उसकी अंगुलिया अब मेरे पैंट के बल्ज पे थी। तम्बू पूरी तरह तन गया था। मेरे हाथ भी हिम्मत करके उसके उभारों की नाप जोख कर रहे थे।

“हे एक मेरी ओर से भी खिला देना…” किचेन से चन्दा भाभी की आवाज आई।

“एकदम…” गुड्डी बोली और दूसरी गुझिया भी मेरे मुँह में थी।
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गुड्डी ने बताया की चन्दा भाभी एकदम बिंदास हैं और उसकी सहेली की तरह भी। उनके पति दुबई में रहते हैं कभी दो-तीन साल में एक बार आते हैं लेकिन पैसा बहुत है। इनकी एक लड़की है गुंजा 9वीं में पढ़ती है। गुड्डी के ही स्कूल में ही।

“हे गुड्डी खाना ले जाओ या बातों से ही इनका पेट भर दोगी…” किचेन से उसकी मम्मी की आवाज आई।

“प्लानिंग तो इसकी यही लगती है…” हँसकर मैं भी बोला।

गुड्डी जब खाना लेकर आई तो पीछे से चन्दा भाभी की आवाज आई-

“अरे पाहुन खाना खा रहे हो और वो भी सूखे सूखे। ये कैसे?”

मैं समझ गया और बोला की अरे उसके बिना तो मैं खाना शुरू भी नहीं कर सकता।

“अरे इनकी बहनों का हाल जरा सुना दो कसकर…” भाभी बोली।

“क्या नाम है इनके माल का?” चन्दा भाभी ने पूछा। बिना नाम के गारी का मजा ही क्या?
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गुड्डी मेरे पास ही बैठी थी। उसने वहीं से हुंकार लगाई-

“मेरा ही नाम है। गुड्डी…”
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“आनंद की बहना बिकी कोई लेलो…” गाना शुरू हो गया था और इधर गुड्डी मुझे अपने हाथ से खिला रही थी।



अरे आनंद की बहिनी बिके कोई ले लो। अरे रूपये में ले लो अठन्नी में ले लो,

अरे गुड्डी रानी बिके कोई ले लो अरे अठन्नी में ले लो चवन्नी में ले लो

जियरा जर जाय मुफ्त में ले लो अरे आनंद की बहिनी बिकाई कोई ले लो।
Gudiya or Anand ki ye mastiya
New Love main aaye couples ka perfect example hai special chote sehro se

Amazing Mam
 
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