Premkumar65
Don't Miss the Opportunity
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Woww kya masti hai gaon ki holi me. Bachpan me kheli thi. Matti me sani hui holi ka majaa hi alag hota hai.चल गयी चाल-रीत और संध्या भौजी की
साड़ी -हरण
लेकिन ये होली पिछले साल की होली तो थी नहीं। अबकी रीत के साथ मैं था। और सन्ध्या भाभी भी ससुराल से खुलकर मजे लेकर ज्यादा बोल्ड होकर आई थी। दूबे भाभी ने वहीं गलती की जो हिन्दी फिल्मों में विलेन करता है- ज्यादा डायलाग बोलने की।
उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया की रीत और सन्ध्या भाभी, रंग लगाने के साथ साये में बन्धी उनकी साड़ी खोलने में लगे हैं। जब तक उन्हें अंदाज लगा बहुत देर हो चुकी थी। मैंने अपने चेहरे पे रगड़ रहे उनके हाथों को पकड़ लिया था। उन्होंने समझा कि मैं उन्हें कालिख लगाने से रोकने के लिये ऐसा कर रहा हूँ।
दूबे भाभी बोली- “अरे साले कालिनगन्ज के भन्डुये, (मेरे शहर की रेड लाईट ऐरिया का नाम, अकसर शादी वादी की गालियों में उसका नाम इश्तेमाल होता था,) तेरी पाँच भतारी बहन को सारे बनारस के मर्दों से चुदवाऊँ। उसमें तुम्हें शर्म नहीं लग रही है। क्या मेरा हाथ छुड़ा पाओगे। अभी तक कोई ऐसा देवर, ननद, ननदोई नहीं हुआ, जो दूबे भाभी के हाथ से छूट जाये…”
छूटना कौन चाहता था?
हाँ दूबे भाभी खुद जब उन्हें रीत और सन्ध्या की प्लानिंग का अंदाज हुआ तो मेरे चेहरे से हाथ हटाकर उन्होंने उन दोनों को रोकने की कोशिश की।
लेकिन मैं हाथ हटाने देता तब ना। मैंने और कसकर अपने चेहरे पे उनके हाथों को जकड़ लिया था। वो पूरी ताकत से अपने हाथ अब छुड़ा रही थी। लेकिन और साथ-साथ जो उन्होंने मेरे पैरों को कैन्ची की तरह अपने पैरों में फँसा रखा था, अब उन्हें खुद छुड़ाने में मुश्किल हो रही थी।
दोनों शैतानों ने मिलकर अब तक दूबे भाभी की साड़ी उनके पेटीकोट से बाहर निकाल दी थी।
सन्ध्या भाभी ने तो काही पेंट लगाकर उनके साये के अन्दर नितम्बों पे रंग भी लगाना चालू कर दिया था। लेकिन मैं जान गया था की अब थोड़ी सी देर भी बाजी पलट सकती है, इसलिये मैंने रीत को इशारा किया। और उसने एक झटके में साड़ी साये से बाहर।
और साथ ही मैंने दूबे भाभी का हाथ छोड़ दिया और पैर भी।
जैसे रस्सा कसी में एक ग्रुप अगर अचानक रस्सी छोड़ दे वाली हालत में हो गई। गिरते-गिरते वो सम्हल जरूर गईं पर इतना समय काफी था, रीत और सन्ध्या भाभी को उनकी साड़ी पे कब्जा करने के लिये।
दूबे भाभी उन दोनों की ओर लपकीं तो रीत ने साड़ी मेरी ओर उछाल दी और जब दूबे भाभी मेरी ओर आई तो मैंने साड़ी ऊपर दुछत्ती पे फेंक दी, जहां कुछ देर पहले सन्ध्या भाभी की साड़ी और ब्लाउज़ को मैंने फेंका था। वो कुछ मुश्कुराते और कुछ गुस्से में मुझे देख रही थी।
“अरे भाभी ऐसा चांदी का बदन, सोने सा जोबन। को आप मेरे ऐसे देवर से छिपाती हैं। अरे होली तो मुझे आपसे खेलनी है आपकी साड़ी से थोड़ी। फिर इत्ती महंगी साड़ी खराब होती तो भैया भी तो गुस्सा होते…”
“अरे ब्लाउज़ भी मैचिन्ग है…” सन्ध्या भाभी ने और आग लगायी।
दूबे भाभी- “मजा आयेगा तुमसे होली खेलने में। तुम्हारी तो मैं। …” वो कुछ आगे बोलती उसके पहले चंदा भाभी आ गई गुड्डी के साथ।
अब मैंने समझा गुड्डी ने पाला नहीं बदला था, वो घुसपैठिया थी। अगर वो बहाना बनाकर चंदा भाभी को . अन्दर ना ले जाती और अगर चंदा भाभी दूबे भाभी का साथ देती तो उनका साड़ी हरण करना मुश्किल था.