Sanju@
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बहुत ही मस्त और मजेदार अपडेट है दुबे भाभी तो आनंद के हथियार की साइज देखकर उस पर मुग्ध हो गई है अब उसने भी संध्या भाभी की तरह आनंद को पूरा निचोड़ने की सोच ली है अब तो दुबे भाभी पर भी आनंद की मोहर लगने वाली हैमस्ती होली की
दूबे भाभी ने मेरे ऊपर हमला किया।
रीत और सन्ध्या ने, चन्दा भाभी पे।
लेकिन अब मैं तैयार था। मैंने भी हाथों में रंग लगा लिया। थोड़ी देर में सभी ब्रा और साये में हो गये। सन्ध्या भाभी को तो मैंने कर दिया था और रीत को चन्दा और दूबे भाभी ने मिलकर। अब दूबे भाभी की साड़ी मेरे हाथ से उतर गयी और और चन्दा भाभी का साड़ी ब्लाउज़, रीत और सन्ध्या भाभी के हाथ।
दूबे भाभी के हाथ मेरे बर्मुडा में व्यस्त थे।
दूबे भाभी बुदबुदा रही थी- “क्या चीज है राज्जा। साल्ला। इत्ता बडा तो मैंने आज तक नहीं देखा। मस्त लम्बा मोटा भी कड़ा भी…” फिर बिना बर्मुडा से हाथ निकाले मेरी ओर देखकर मुश्कुराते वो बोली-
“साले, हरामी के जने, ये गदहे जैसा कहीं गदहे या घोड़े का जना। तो नहीं है…”
गुड्डी ने चन्दा भाभी के पास से ही आवाज लगाई-
“अरे इनका वो माल। इनकी ममेरी बहन जहां रहती है ना। उस गली के बाहर। वो गदहों वाली गली के नाम से ही मशहूर है…”
सन्ध्या भाभी ने भी टुकड़ा लगाया- “अरे तो गदहा इसका मामा हुआ फिर तो…”
“तो फिर इसके मामा का असर इसपर, मतलब साले तू खानदानी पैदायशी बहनचोद है, फिर अब तक क्यों छोड़ रखा था उस साली को?” दूबे भाभी अपने अन्दाज में मुझे मुठियाते बोल रही थी।
मेरा सुपाड़ा जैसे चन्दा भाभी ने कल रात सिखाया था, मैंने खोल रखा था मोटा पहाडी आलू जैसा। दूबे भाभी के हाथ तो लण्ड के बेस पे थे लेकिन अन्गूठा। सुपाड़े को रगड़ रहा था। मेरा एक हाथ उनके ब्लाउज़ में था, गोरे गुदाज, गदराये और भरे-भरे मेरी मुट्ठी में नहीं समा पा रहे थे।
लेकिन उनका टच, एकदम मस्त।
इत्ते बड़े-बड़े होने के बाद भी एकदम कड़े-कड़े जरा भी ढिलाई नहीं और दोनों चूचियों के बीच की गहरायी भी, जैसे दो पहाड़ियों के बीच एक खूबसूरत खाईं हो। ऐसे जोबन ना सिर्फ देखने, छूने, दबाने और चूसने में मस्त होते हैं बल्की जो आज तक मैंने सिर्फ ब्लू-फिल्मों में देखा था और मेरा एक सपना था। चूची चुदाई का, दो गदराई मांसल चूचियों के बीच अपना लण्ड डालकर रगड़ने का। वो बस दूबे भाभी के उरोजों के साथ पूरा हो सकता था।
दूबे भाभी की पीठ भी अत्यन्त चिकनी थी और बीच में गहरी, केले के पत्ते कि तरह।
कामसूत्र में लिखा है कि ऐसी महिलायें अत्यन्त कामुक होती हैं। रात दिन सेक्स के बारे में ही सोचती हैं और दीर्घ लिंग के लिये कुछ भी कर सकती हैं। उन्हें सिर्फ अश्व जाति के पुरुष सन्तुष्ट कर सकते हैं, जैसा मैं था।
मेरा हाथ पीठ से सरककर नीचे चला गया, सीधे साये के अन्दर। ओह्ह… ओह्ह… क्या मस्त चूतड़ थे, खूब भरे-भरे एकदम कड़े और मांसल। उसे छूते ही मेरा जन्गबहादुर 90° डिग्री का हो गया।
दूबे भाभी समझ गई कि उनके नितम्बों ने मेरे ऊपर क्या असर किया है। सिर्फ देखकर मेरी ऐसी कि तैसी हो जाती थी उस 40+ चूतड़ को और स्पर्श से तो हालत खराब होनी ही थी।
दूबे भाभी ने एक-दो बार कसकर मेरे पूरे तन्नाये लण्ड को आगे-पीछे किया और जैसे उसी से बातें कर रही हों, बोली-
“क्यों मुन्ना, बहुत मन कर रहा है पिछवाड़े का? लगता है पिछवाड़े के बड़े रसिया हो कभी मजा लिया है गोल दरवाजे का कि नहीं?”
“तुम रंग पंचमी में तो आओगे ना?” वो फुसफुसाकर बोली।
“हाँ। अब तो आना ही पड़ेगा…” मैंने जोश में कसकर उनके निपल को पिंच करते हुये कहा।
“अरे एक-दो दिन पहले आ जाना, असली होली तो तभी होगी। पूरा खजाना लुटा दूंगी। ऊपर-नीचे, आगे-पीछे सब कुछ…”
खुश होकर मैंने इत्ते जोर से जोबन मर्दन किया की उनके ब्लाउज़ कि दो चुटपुटिया बटन चट-चट खुल गईं।
लेकिन दूबे भाभी को इसकी परवाह नहीं थी। वो मेरे खडे लण्ड के सुपाड़े को अपने अंगूठे से कसकर दबा रही थी और बोल रही थी-
“इस रसगुल्ले का तो मैं पूरा रस निचोड़ लूँगी। हाँ। लेकिन अपनी उस ममेरी बहन को साथ लाना मत भूलना…”
“नहीं भाभी…” मैं भी किसी और दुनियां में खोया हुआ था।
मेरी रंग लगी उंगली उनकी गाण्ड की दरार में थी और हल्के-हल्के आगे-पीछे हो रही थी। उनकी गाण्ड इस तरह उसे कसकर दबोचे थी कि बस अब बिना डलवाये छोड़ेगी नहीं। भाभी की भी रस सिद्ध उंगलियां, रस से भरी मेरे पी-होल पे तर्जनी के नाखून से छेड़ रही थी। मैं मारे जोश के इतना गिनगिनाया कि मैंने कचकचा के उनकी चूची और कसकर दबा दी और एक चुटपुटिया बटन और गई। भाभी इन सबसे बे-परवाह मेरे गोरे लिंग को अपने हाथ से कालिख मलकर काला भुजन्ग बनाने में लगी थी।