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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
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मैं, गुड्डी और होटल
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आखिर में आनंद के पीछवाडे और आगे के हथियार के सबको दर्शन हो ही गए लेकिन हथियार को दुबे भाभी संध्या रीत और गुड्डी ने रगड़ रगड़ के काला नीला कर दियास्ट्रिप टीज
मैं उन दोनों के साथ छत के बीच में आ गया जहाँ चंदा भाभी, संध्या और दूबे भाभी बैठी थी। गुड्डी और रीत मेरे दोनों ओर खड़ी थी मुझे शरारत से ताकती। दोनों के अंगूठे मेरे बर्मुडा में फँसे थे और मेरी पीठ चंदा और दूबे भाभी की ओर थी। थोड़ा सा मेरा बर्मुडा उन्होंने नीचे सरका दिया।
“अभी कुछ नहीं दिख रहा है…” संध्या भाभी चिल्लायी।
“साले को पहले निहुराओ…” दूबे भाभी ने हुकुम दिया।
मैं अपने आप झुक गया, और रीत और गुड्डी ने एक झटके में बर्मुडा एक बित्ते नीचे सीधे मेरे नितम्बों के नीचे। दूबे भाभी और चंदा भाभी की आँखें वहीं गड़ी थी। लेकिन दुष्ट रीत ने अपने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ों को ढक लिया और शरारत से बोली-
“ऐसे थोड़ी दिखाऊँगी, मुँह दिखाई लगेगी…”
“दिखाओ ना…” संध्या भाभी बोली- “अच्छा थोड़ा सा…”
रीत ने हाथ हटा दिया लेकिन गाण्ड की दरार अभी भी हथेलियों के नीचे थी।
“चल दे दूंगी। माल तो तेरा मस्त लग रहा है…” दूबे और चंदा भाभी एक साथ बोली।
रीत ने हाथ हटा दिया, और दूबे भाभी से बोली-
“चेक करके देख लीजिये एकदम कोरा है। अभी नथ भी नहीं उतरी है। सात शहर के लौंडे पीछे पड़े थे लेकिन मैं आपके लिए पटाकर ले आई।
दूबे भाभी भी। उन्होंने अपनी तर्जनी मुँह में डाली कुछ देर तक उसे थूक में लपेटा और फिर थोड़ी देर तक उसे मेरी पिछवाड़े की दरार पे रगड़ा।
मुझे कैसा-कैसा लग रहा था
चंदा भाभी ने अपने दोनों मजबूत हाथों से मेरे नितम्बों को कसकर फैलाया और दूबे भाभी ने कसकर उंगली घुसेड़ने की कोशिश की। फिर निकालकर वो बोली-
“बड़ी कसी है, इत्ती कसी तो मेरी ननदों की भी नहीं है…”
लेकिन संध्या भाभी तो कुछ और देखना चाहती थी उन्हें अभी भी विश्वास नहीं था, कहा-
" रीत आगे का तो दिखाओ। उतारकर खोल दो ना क्या?”
मैं सीधा खड़ा हो गया। रीत और गुड्डी ने एक साथ मेरा बरमुडा खींच दिया।
वो नीचे तो आया लेकिन बस मेरे तने लण्ड पे अटक गया और रीत और गुड्डी ने फिर उसे अपनी हथेलियों में छिपा लिया, बेचारी भाभियां बेचैन हो रही थी। इस स्ट्रिप शो में।
“दिखाओ ना पूरा…” सब एक साथ बोली।
और अगले झटके में बरमुडा दूर। मैं हाथ से छिपा भी नहीं सकता था। वो तो पहले ही संध्या भाभी की ब्रा में बंधा था। रीत अपने हाथ से उसे छिपा पाती, इसके पहले ही संध्या भाभी ने उसका हाथ पकड़ लिया, और जैसे स्प्रिंगदार चाकू निकलकर बाहर आ जाता है वो झट से स्प्रिंग की तरह उछलकर बाहर।
लम्बा खूब मोटा भुजंग। बीच-बीच में नीले स्पोट, धारियां।
ये उसका असली रंग नहीं था। लेकिन उसको सबसे ज्यादा रगड़ा पकड़ा था रंग लगाया था दूबे भाभी ने और ये उनके हाथ की चमकदार कालिख थी। जिसने उसे गोरे से काला बना दिया था। उसे आखिरी बार पकड़ने वाली संध्या भाभी थी इसलिए उनके हाथ का नीला रंग, उनकी उंगलियों की धारी और स्पोट के रूप में थी।
गुड्डी और रीत ने जो लाल गुलाबी रंग लगाये थे, वो दूबे भाभी की लगाई कालिख में दब गए थे। सब लोग ध्यान से देख रहे थे, खासतौर से संध्या भाभी। शायद वो अपने नए नवेले पति से कम्पेयर कर रही थी।
“अरे लाला ससुराल का रंग है वो भी बनारस का, जाकर अपनी छिनार बहना से चुसवाना तब जाकर रंग छूट पायेगा…” दूबे भाभी बोली।
“कोई फायदा नहीं…” ये चंदा भाभी थी- “अरे रंग पंचमी में तो आओगे ही फिर वही हालत हो जायेगी…”
होली तो बहुत ही शानदार और मजेदार मना ली अपने सुसराल में आनंद ने लेकिन अभी तक दुबे भाभी आनंद का पीछा नहीं छोड़ने वाली अभी तक तो और बाकी रह गई है रगड़ाईरीत
रीत ने एक अंगड़ाई ली और जैसे बोर हो रही हो। बोली-
“भाभी चलो न शो खतम। देख लिया। होली भी हो ली। अब इन्हें जाने दो। ये कल से अपने मायके जाने की रट लगाकर बैठे थे। ये तो भला हो गुड्डी और चंदा भाभी का इन्हें रोक लिया की कहीं रात में ऊँच नीच हो जाय। तो इन्हें क्या? नाक तो हमीं लोगों की कटेगी ना। और सुबह से होली का था तो चलो होली भी हो ली। इन्होंने गुझिया और दहीबड़े भी खा लिए। हम लोग भी नहा धोकर कपड़े बदले वरना, चलो न।
गुड्डी तुम भी तैयार हो जाओ, वरना ये कहेंगे की तुम्हारे कारण देर हुई। जल्दी जाओ वरना देर होने पे फिर इनके मायके में डांट पड़े. मुर्गा बना दिया जाय…”
“मैं आपके बाथरूम में नहा लूं भाभी? कपड़े मैंने पहले से ही निकालकर रख दिए हैं बस। वैसे मुझे आज थोड़ा टाइम भी लगेगा नहाने में सिर धोकर नहाना होगा…”
गुड्डी ने चंदा भाभी से पूछा।
“तो नहा लो ना। इसके पहले कभी नहाई नहीं क्या? गुंजा के साथ कित्ती बार। उसी के कमरे वाले बाथरूम में नहा लेना…” चंदा भाभी बोली।
मुझे बड़ी परेशानी हो रही थी। सब लोग ऐसे बातें कर रहे थे जैसे मैं वहां होऊं ही नहीं। मैंने पूछ ही लिया- “लेकिन मेरा क्या? मैं कैसे नहा, तैयार…”
“तो कोई आपको नहलाएगा, तेल फुलेल लगाएगा, श्रृंगार कराएगा, सोलहों श्रृंगार…” रीत तो जैसे खार खाए बैठी थी।
“अरे जहाँ सुबह नहाया था वहीं नहा लेना। ये भी कोई बात है। मेरे कमरे वाले बाथरूम में…” चंदा भाभी बोली।
“अरे इसकी क्या जरूरत है भाभी। यहीं छत पे नहा लेंगे ये। कहाँ आपका बाथरूम गन्दा होगा रंग वंग से। फिर इनका आगा भी देख लिया पीछा भी देख लिया फिर किससे ये लौंडिया की तरह शर्मा रहे हैं?” कहकर रीत ने और आग लगाई।
“नहीं वो तो ठीक है नहाना वहाना। लेकिन कपड़े। कपड़े क्या मैं। कैसे मेरे तो…” दबी आवाज में मैंने सवाल किया।
“ये कर लो बात कपड़े। किस मुँह से आप कपड़े मांग रहे हो जी? सुबह कितनी चिरौरी विनती करके गुंजा से उसकी टाप और बर्मुडा दिलवाया था, और आपने उसको भी,... आपको अपने कपड़े की पड़ी है और मैं सोच रही हूँ की किस मुँह से मैं जवाब दूंगी उस बिचारी को? कित्ता फेवरिट बर्मुडा था। क्या जरूरत थी उसे पहनकर होली खेलने की?”
गुड्डी किसी बात में रीत से पीछे रहने वाली नहीं थी।
“अरे ऐसे ही चले जाइए ना। बस आगे हाथ से थोड़ा ढक लीजियेगा। और किसी दुकान से गुड्डी से कहियेगा तो मेरी सहेली ऐसी नहीं है, चड्ढी बनयान दिलवा देगी…” रीत बोली।
“सही आइडिया है सर जी…” गुड्डी और संध्या भाभी साथ-साथ बोली।
“नहीं ये नहीं हो सकता…” चंदा भाभी बोली-
“अरे तुम सब अभी बच्ची हो तुम्हें मालूम नहीं इसी गली के कोने पे सारे बनारस के एक से एक लौंडेबाज रहते हैं और ये इत्ते चिकने हैं। बिना गाण्ड मारे सब छोड़ेंगे नहीं, इसीलिए तो इन्हें रात में नहीं जाने दिया। और अगर दिन दहाड़े तो इनकी गाण्ड शर्तिया मारी जायेगी।
रीत बोली- “भाभी आप भी ना बिना बात की बात पे परेशान। गाण्ड मारी जायेगी तो मरवा लेंगे इसमें कौन सी परेशानी की बात है? कौन सा ये गाण्ड मरवाने से गाभिन हो जायेंगे? फिर कुछ पैसा वैसा मिलेगा तो अपनी माल कम बहना के लिए लालीपाप ले लेंगे। वो साली भी मन भर चाटेगी चूसेगी, गाण्ड मारने वाले को धन्यवाद देगी…”
“नहीं ये सब नहीं हो सकता…” अब दूबे भाभी मैदान में आ गईं।
मैं जानता था की उनकी बात कोई नहीं टाल सकता।
“अरे छिनारों। आज मैंने इसे किसलिए छोड़ दिया। इसलिए ना की जब ये रंग पंचमी में आएगा तो हम सब इसकी नथ उतारेंगे। लेकिन इससे ज्यादा जरूरी बात। अगर ये लौंडेबाजों के चक्कर में पड़ गया ना तो इसकी गाण्ड का भोंसड़ा बन जाएगा। तो फिर ये क्या अपनी बहन को ले आएगा? तुम सब सालियां अपने भाइयों का ही नहीं सारे बनारस के लड़कों का घाटा करवाने पे तुली हो। कुछ तो इसके कपड़े का इंतजाम करना होगा…”
अब फैसला हो गया था। लेकिन सजा सुनाई जानी बाकी थी। होगा क्या मेरा?
जैसे मोहल्ले की भी क्रिकेट टीमेंm जैसे वर्ड कप के फाइनल में टीमें मैच के पहले सिर झुका के न जाने क्या करती हैं, उसी तरह सिर मिलावन कराती हैं, बस उसी अंदाज में सारी लड़कियां महिलाये सिर झुका के। और फिर फैसला आया। रीत अधिकारिक प्रवक्ता थी।
रीत बोली-
“देखिये मैं क्या चाहती थी ये तो मैंने आपको बता ही दिया था। लेकिन दूबे भाभी और सब लोगों ने ये तय किया है की मैं भी उसमें शामिल हूँ की आपको कपड़े,... लेकिन लड़कों के कपड़े तो हमारे पास हैं नहीं। इसलिए लड़कियों के कपड़े। इसमें शर्माने की कोई बात नहीं है। कित्ती पिक्चरों में हीरो लड़कियों के कपड़े पहनते हैं तो। हाँ अगर आपको ना पसंद हो तो फिर तो बिना कपड़े के…”
आपने एकदम सही कहा, यह कोई यूरोप या अमेरिका नहीं है, ग्रुप सेक्स का तो कोई सवाल नहीं हैयह अध्याय भी पिछ्ले घटनाक्रम का नेक्स्ट पार्ट था । इस अध्याय मे भी आनंद साहब की रंगीन होली पांच - पांच महिलाओं के साथ जारी दिखाई गई।
रंग खेलने के बहाने थोड़ा-बहुत काम क्रीडा जारी रहा । कभी कपड़ों के ऊपर से तो कभी कपड़ों के भीतर से प्राइवेट पार्ट्स का सेंसुअल स्पर्श इन्हें मदहोशी के आलम मे ले कर गया तो वस्त्रों का चीरहरण नयनसुख का कारण बना ।
बहुत ही उम्दा लिखा है आपने कोमल जी ।
पांच - पांच जवान युवतियां , भिन्न-भिन्न उम्र , विवाहिता और अविवाहित , मैच्योर और कमसिन कलियों के साथ एक मात्र पुरुष आनंद साहब ।
इनके साथ ग्रूप सेंसुअल होली का आनंद तो उठाया जा सकता था पर ग्रूप सेक्स की संभावना नही बन सकती ।
ग्रूप सेक्स करना तराजू मे कई मेढ़क तोलने के समान के बराबर है । कभी एक मेढ़क तराजू से छिटक कर भाग जायेगा तो कभी दूसरा , तीसरा , चौथा या फिर पांचवा ।
आखिर यह कोई अमेरिकन या युरोपियन कंट्री थोड़ी न है !
दूबे भाभी , चंदा भाभी , संध्या मैडम , रीत और गुड्डी के साथ की यह इरोटिक होली आनंद साहब शायद ही कभी भूल पाए ! और शायद हम सब रीडर्स भी ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड हाॅट अपडेट कोमल जी ।
क्योंकि आनंद बाबू का साथ मिल गया और गुड्डी की शह,बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है अब तक किसी ने दुबे भाभी का चीर हरण नही किया है लेकिन इस बार दुबे भाभी का चीर हरण ओ ही गया
एकदम जैसे बड़ी उम्र के मरदों को कच्चे टिकोरे पसंद हैं, उसी तरह बड़ी उम्र की औरतें भी कोरे, बिना खेले खाये, कमसिन लड़कों को पंसद करती हैं तो दूबे भाभी को तो आनंद बाबू पसंद आ गएहोली तो बहुत ही शानदार और मजेदार मना ली अपने सुसराल में आनंद ने लेकिन अभी तक दुबे भाभी आनंद का पीछा नहीं छोड़ने वाली अभी तक तो और बाकी रह गई है रगड़ाई
बहुत बहुत आभार आपके कमेंट्स का और कहानी का साथ देने काबहुत ही मस्त और मजेदार अपडेट है दुबे भाभी तो आनंद के हथियार की साइज देखकर उस पर मुग्ध हो गई है अब उसने भी संध्या भाभी की तरह आनंद को पूरा निचोड़ने की सोच ली है अब तो दुबे भाभी पर भी आनंद की मोहर लगने वाली है
दूबे भाभी से बचना मुश्किल ही नहीं असम्भव है और रीत और संध्या भाभी भी नहीं बचाएगी,सारा प्लान उस समय फेल जाता है...
जब वाकया उम्मीद के मुताबिक ना हो....
अब तो बोस डीके भाग के भी कहाँ जाएंगे..
अब सातवें दर्जे से सीखा पांडे मास्टर से बचने का कौशल हीं काम आएगा...
अब रीत हीं कुछ करके जीत दिला सकती है...
एकदम आनंद बाबू का त्याग बलिदान व्यर्थ नहीं गया, रीत और संध्या भाभी की बरसो की इच्छा पूरी हुयीदूबे भाभी का दांव उलटा पड़ गया...
हाथ छोड़ने के बजाय छुड़ाना भारी पड़ गया...
और तिकड़ी एक-शून्य से आगे... मतलब साड़ी हरण कामयाब...
और आगे ब्लाउज का नंबर...
अब केवल पतले से साये में ऐसा गदराया बदन...
आनंद बाबू की चांदी हो गई...