Sanju@
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आखिर में आनंद के पीछवाडे और आगे के हथियार के सबको दर्शन हो ही गए लेकिन हथियार को दुबे भाभी संध्या रीत और गुड्डी ने रगड़ रगड़ के काला नीला कर दियास्ट्रिप टीज
मैं उन दोनों के साथ छत के बीच में आ गया जहाँ चंदा भाभी, संध्या और दूबे भाभी बैठी थी। गुड्डी और रीत मेरे दोनों ओर खड़ी थी मुझे शरारत से ताकती। दोनों के अंगूठे मेरे बर्मुडा में फँसे थे और मेरी पीठ चंदा और दूबे भाभी की ओर थी। थोड़ा सा मेरा बर्मुडा उन्होंने नीचे सरका दिया।
“अभी कुछ नहीं दिख रहा है…” संध्या भाभी चिल्लायी।
“साले को पहले निहुराओ…” दूबे भाभी ने हुकुम दिया।
मैं अपने आप झुक गया, और रीत और गुड्डी ने एक झटके में बर्मुडा एक बित्ते नीचे सीधे मेरे नितम्बों के नीचे। दूबे भाभी और चंदा भाभी की आँखें वहीं गड़ी थी। लेकिन दुष्ट रीत ने अपने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ों को ढक लिया और शरारत से बोली-
“ऐसे थोड़ी दिखाऊँगी, मुँह दिखाई लगेगी…”
“दिखाओ ना…” संध्या भाभी बोली- “अच्छा थोड़ा सा…”
रीत ने हाथ हटा दिया लेकिन गाण्ड की दरार अभी भी हथेलियों के नीचे थी।
“चल दे दूंगी। माल तो तेरा मस्त लग रहा है…” दूबे और चंदा भाभी एक साथ बोली।
रीत ने हाथ हटा दिया, और दूबे भाभी से बोली-
“चेक करके देख लीजिये एकदम कोरा है। अभी नथ भी नहीं उतरी है। सात शहर के लौंडे पीछे पड़े थे लेकिन मैं आपके लिए पटाकर ले आई।
दूबे भाभी भी। उन्होंने अपनी तर्जनी मुँह में डाली कुछ देर तक उसे थूक में लपेटा और फिर थोड़ी देर तक उसे मेरी पिछवाड़े की दरार पे रगड़ा।
मुझे कैसा-कैसा लग रहा था
चंदा भाभी ने अपने दोनों मजबूत हाथों से मेरे नितम्बों को कसकर फैलाया और दूबे भाभी ने कसकर उंगली घुसेड़ने की कोशिश की। फिर निकालकर वो बोली-
“बड़ी कसी है, इत्ती कसी तो मेरी ननदों की भी नहीं है…”
लेकिन संध्या भाभी तो कुछ और देखना चाहती थी उन्हें अभी भी विश्वास नहीं था, कहा-
" रीत आगे का तो दिखाओ। उतारकर खोल दो ना क्या?”
मैं सीधा खड़ा हो गया। रीत और गुड्डी ने एक साथ मेरा बरमुडा खींच दिया।
वो नीचे तो आया लेकिन बस मेरे तने लण्ड पे अटक गया और रीत और गुड्डी ने फिर उसे अपनी हथेलियों में छिपा लिया, बेचारी भाभियां बेचैन हो रही थी। इस स्ट्रिप शो में।
“दिखाओ ना पूरा…” सब एक साथ बोली।
और अगले झटके में बरमुडा दूर। मैं हाथ से छिपा भी नहीं सकता था। वो तो पहले ही संध्या भाभी की ब्रा में बंधा था। रीत अपने हाथ से उसे छिपा पाती, इसके पहले ही संध्या भाभी ने उसका हाथ पकड़ लिया, और जैसे स्प्रिंगदार चाकू निकलकर बाहर आ जाता है वो झट से स्प्रिंग की तरह उछलकर बाहर।
लम्बा खूब मोटा भुजंग। बीच-बीच में नीले स्पोट, धारियां।
ये उसका असली रंग नहीं था। लेकिन उसको सबसे ज्यादा रगड़ा पकड़ा था रंग लगाया था दूबे भाभी ने और ये उनके हाथ की चमकदार कालिख थी। जिसने उसे गोरे से काला बना दिया था। उसे आखिरी बार पकड़ने वाली संध्या भाभी थी इसलिए उनके हाथ का नीला रंग, उनकी उंगलियों की धारी और स्पोट के रूप में थी।
गुड्डी और रीत ने जो लाल गुलाबी रंग लगाये थे, वो दूबे भाभी की लगाई कालिख में दब गए थे। सब लोग ध्यान से देख रहे थे, खासतौर से संध्या भाभी। शायद वो अपने नए नवेले पति से कम्पेयर कर रही थी।
“अरे लाला ससुराल का रंग है वो भी बनारस का, जाकर अपनी छिनार बहना से चुसवाना तब जाकर रंग छूट पायेगा…” दूबे भाभी बोली।
“कोई फायदा नहीं…” ये चंदा भाभी थी- “अरे रंग पंचमी में तो आओगे ही फिर वही हालत हो जायेगी…”