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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार - भाग १७

रसिया को नार बनाउंगी

२,०८,२४९

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मैं नंग धड़ंग छत पर खड़ा था, और मेरे चारो और वो पांचो, दो टीनेजर्स, गुड्डी और रीत और तीन भाभियाँ, संध्या भाभी, चंदा भाभी और दूबे भाभी सिर्फ देह से चिपकी रंग से लथपथ, आधी फटी खुली ब्रा और,


मेरा मुस्टंडा फड़फड़ा रहा था, खुली हवा में साँस लेकर और चारो ओर का नजारा देखकर,


लेकिन वो पांचो ऐसे बात कर रही थीं जैसे मैं हूँ ही नहीं वहां, हाँ कभी कभी चोरी चोरी चुपके चुपके एक निगाह उसे मोटे मुस्टंडे पर डाल ले रही थी, सबसे ज्यादा ललचायी संध्या भाभी लग रही थीं। रीत और गुड्डी से अलग,... वो स्वाद ले चुकी थीं तो उन्हें मजा मालूम था, लग रहा था अभी लार टपक जायेगी।

चंदा भाभी 'उसे' देख के खुश हो रही थीं, एक तो उनका शिष्य, दूसरे उनकी जो बात मैंने मानी थी। मुस्टंडे का मुंड ( सुपाड़ा ) खूब मोटा, पहाड़ी आलू ऐसा, लाल और एकदम खुला, ... कल पहली सीख उन्होंने यही दी थी। अपने हाथ से 'उसका' घूंघट खोला और बोलीं अब इसको खुला ही रखना और कारण भी समझाया, ' कायदे से रगड़ रगड़ कर घिस घिस कर ये धुस्स हो जाएगा, फिर जल्दी नहीं झड़ेगा।


दूबे भाभी कभी उस तन्नाए बौराये मुस्टंडे को देखतीं तो कभी गुड्डी को, खूब खुश, मुस्कराती,.... मानो कह रही हों ,

" बबुनी, हम लोग तो कभी कभी इसका मजा लेंगे, होली दिवाली , लेकिन तुझे तो ये मूसल रोज घोंटना पडेगा। "और मैं दूबे भाभी की ये निगाहें देख कर खुश हो रहा था। जब गुड्डी का मेरा मामला फाइनल स्टेज में पहुंचेगा, और अगर गुड्डी की मम्मी इसे दूबे भाभी की अदालत में ले गयीं तो फैसला मेरे ही हक में होगा।


लेकिन सबसे जालिम थी और कौन, मेरी साली , रीत।

मैं गुहार लगा रहा था कपडे कपडे, ऐसे बाजार कैसे जाऊँगा, गुड्डी के साथ और उसने हुकुम सुना दिया , " क्यों नहीं जा सकते , बहुत नई दुल्हन की तरह लजाते हो तो एक हाथ से आगे एक हाथ से पीछे ढक लेना और नहीं तो मेरी छोटी बहन की, गुड्डी की चिरौरी करना, हाथ पैर जोड़ना तो चड्ढी , रुमाल कुछ दिलवा देगी, ढक लेना।

लेकिन बचाने आयीं मुझे दूबे भाभी।

“नहीं ये सब नहीं हो सकता…” अब दूबे भाभी मैदान में आ गईं।

मैं जानता था की उनकी बात कोई नहीं टाल सकता।

“अरे छिनारों। आज मैंने इसे किसलिए छोड़ दिया। इसलिए ना की जब ये रंग पंचमी में आएगा तो हम सब इसकी नथ उतारेंगे। लेकिन इससे ज्यादा जरूरी बात। अगर ये लौंडेबाजों के चक्कर में पड़ गया ना तो इसकी गाण्ड का भोंसड़ा बन जाएगा। तो फिर ये क्या अपनी बहन को ले आएगा? तुम सब सालियां अपने भाइयों का ही नहीं सारे बनारस के लड़कों का घाटा करवाने पे तुली हो। कुछ तो इसके कपड़े का इंतजाम करना होगा…”

अब फैसला हो गया था। लेकिन सजा सुनाई जानी बाकी थी। होगा क्या मेरा?

जैसे मोहल्ले की भी क्रिकेट टीमें। जैसे वर्ड कप के फाइनल में टीमें मैच के पहले सिर झुका के न जाने क्या करती हैं, उसी तरह सिर मिलावन कराती हैं, बस उसी अंदाज में सारी लड़कियां महिलाये सिर झुका के। और फिर फैसला आया। रीत अधिकारिक प्रवक्ता थी।

रीत बोली- “देखिये मैं क्या चाहती थी ये तो मैंने आपको बता ही दिया था। लेकिन दूबे भाभी और सब लोगों ने ये तय किया है की मैं भी उसमें शामिल हूँ की आपको कपड़े। लेकिन लड़कों के कपड़े तो हमारे पास हैं नहीं। इसलिए लड़कियों के कपड़े। इसमें शर्माने की कोई बात नहीं है। कित्ती पिक्चरों में हीरो लड़कियों के कपड़े पहनते हैं तो। हाँ अगर आपको ना पसंद हो तो फिर तो बिना कपड़े के…”

मेरे पास कोई रास्ता बचा भी था क्या चुपचाप बात मानने के ? और अब तक मैं समझ चुका था ससुराल में, वो भी अगर बनारस की हो और साली सलहज के झुण्ड में फंस गए तो चुपचाप बात मान लेनी चाहिए, एक तो और कोई चारा भी नहीं दूसरे लांग टर्म बेनिफिट,...
गुड्डी तब तक एक बैग ले आई।

ये वही बैग था जिसे रीत सुबह अपने घर से ले आई थी और गुड्डी लेकर चंदा भाभी के पास चली गई थी। बाद में उसे ही ढूँढ़ने वो चंदा भाभी को लेकर अन्दर ले गई थी। उसमें से ढेर सारी चीजें निकाली गई श्रृंगार की।


अब मैं समझ गया की ये सब नाटक था मुझे तंग करने का। ये सब प्लानिंग पहले से थी।

मैं भी उसे उसी तरह एन्जाय करने लगा। पेटीकोट दूबे भाभी का पहनाया गया। ब्रा और चोली संध्या भाभी की।

और यह काम संध्या भाभी कर रही थीं, पेटीकोट पहनाते हुए पहले तो उन्होंने मुस्टंडे को एक प्यार से हलकी सी चपत भी लगा दी और फिर सबकी नजर बचा के मसल भी दिया कस के और जैसे उससे बोल रही हों, बोलीं,

" हे, तुझी से बोल रही हूँ, उधार नहीं रखती मैं, आज ही, जाने के पहले और यहाँ तक पूरा लूंगी, देखती हूँ की खाली बड़ा और कड़ा ही है की रगड़ता भी है " और फिर मुस्टंडे के बेस पे कस के मुट्ठी से दबा के साफ़ कर दिया, कहाँ तक लेना है, और उस मुस्टंडे ने सर हिला के हामी भी भर दी।

संध्या भाभी सुंदर तो थी ही और जवान भी, रीत से मुश्किल से साल भर बड़ी, बी ए में गयी ही थीं की शादी हो गयी, और शादी के बाद तो जवानी और भड़क जाती है, दहकता रूप, सुलगता जोबन, लेकिन अभी इस मुस्टंडे को छूने पकड़ने और देखने के बाद जो कामाग्नि दहक रही थी, जोबन जिस तरह पथराया था, निप्स टनटना रहे थे, होंठ बार बार सूख रहे थे, वो और साफ़ साफ़ कहूं तो लेने लायक लग रही थीं,और मेरा भी मन यही कर रहा था, कब मौका मिले और उन्हें पटक के,

पेटीकोट के बावजूद तम्बू में बम्बू तना हुआ था।

संध्या भाभी रीत और गुड्डी से कम नहीं छेड़ने, चिढ़ाने में आखिर सबसे बड़ी बहन लगेंगी और फिर ब्याहता, ब्रा पहनाते हुए गुड्डी से बोलीं,

" हे इसके माल की, एलवल वाली बहिनिया की भी इस साइज की है या,... "

" कहाँ भाभी, कहाँ आपका ये माल और कहाँ, उसकी तो मुझसे भी १९ है , ३२ बी " गुड्डी मुंह बिचका के बोली।

लेकिन गुड्डी से तुलना करना ही गलत था, अपनी बाकी क्लास वालियों से उसका २० नहीं २४-२५ कम से कम होगा।


" हे फोटो खींच आज तेरे वाले ने पहली बार ब्रा पहनी है " संध्या भाभी ने गुड्डी को उकसाया, और गुड्डी ने मेरे ही मोबाइल से स्नैप स्नैप।

और फिर पहले संध्या भाभी फिर रीत फिर गुड्डी ने भी मेरे पीछे बैठे के ब्रा को दबाते मसलते , फोटो , और गुड्डी चालाकी में किसी से कम थोड़े ही थी, मैं बाद में डिलीट कर देता तो उसने अपने, रीत के संध्या भाभी के और बाद में पता चला की गुंजा और अपनी मम्मी और छुटकी को भी ,

फिर चोली भी संध्या भाभी ने, खूब टाइट, लाल रंग की,

श्रृंगार का जिम्मा रीत और गुड्डी ने लिया।

मेरे दोनों हाथों में कुहनी तक भर-भर लाल हरी चूड़ियां, रीत पहना रही थी।

रीत झुक के मेरे कान में बोली- “हे बुरा तो नहीं माना?”

“अरे यार बुर वाली की बात का क्या बुरा मानना वो भी होली में…” मैं बोला और हम दोनों हँस पड़े।

वो गाने लगी और बाकी सब साथ दे रहे थे-




रसिया को नार बनाऊँगी रसिया को,

सिर पे उढ़ाय सुरंग रंग चुनरी, गले में माला पहनाऊँगी, रसिया को।

रसिया को नार बनाऊँगी रसिया को,

सिर पर धरे सुरंग रंग चुनरी, अरे सुरंग रंग चुनरी।

जोबन चोली पहनाऊँगी,

रसिया को नार बनाऊँगी, रसिया को।



गाना चल रहा था और मेरे सामने सुबह से लेकर अभी तक का सीन पिक्चर की तरह सामने घूम गया, और मैं समझ गया की पर्दे पे भले ही अभी रीत हो लेकिन इसके पीछे गुड्डी का और थोड़ा बहुत रोल चंदा भाभी का भी था।और अब संध्या भाभी भी उस में शामिल हो गयी थीं।



कल शाम को जिस तरह चंदा भाभी ने मेरे कपड़े उतरवा के गुड्डी को दिए और इस दुष्ट ने उसे रीत तक पहुँचा दिए और फिर भाभी ने गुड्डी के हाथों ही मेरा पूरा वस्त्र हरण, मेरी बनयान चड्ढी सब कुछ, वो सारंग नयनी ले गई थी।

लेकिन उससे भी बढ़कर आज सुबह जिस तरह नहाते समय इस चालाक ने शेविंग क्रीम के बदले हेयर रिमूविंग क्रीम मेरे चेहरे पे अच्छी तरह लिथड़ के मेरी मूंछ का भी,... एकदम मुझे चिकनी चमेली बना दिया।

इसका मतलब प्लान तो सुबह से ही था और रीत जिस तरह बैग में सामान ले आई थी।

अब मैं बैठा हुआ किशोरियों युवतियों के हाथों अपना जेंडर चेंज देख रहा था, और सच कहूँ तो मजे भी ले रहा था। एक अलग तरह का मजा।


गुड्डी ने चेहरे का और रीत के साथ मिलकर बाकी श्रृंगार का जिम्मा सम्हाल रखा था और कमर के नीचे का काम संध्या भाभी के कोमल-कोमल हाथों के जिम्मे। लेकिन उसके पहले साड़ी पहनाई गई। पर उसमें भी रीत ने साड़ी उसी ने लाकर दी। लेकिन बोला पहनो।

अब मैं कैसे पहनता।

और रीत चालू हो गई- “अरे वाह रे वाह। पहले साड़ी दो फिर इन्हें पहनाना सिखाओ। मायाके वालियों ने कुछ सिख विखाकर नहीं भेजा ससुराल की सिर्फ अपनी ममेरी बहन से नैन मटक्का ही करते रहे…”

चंदा भाभी भी मौका क्यों चूकती- “अरे इनकी बिचारी मायकेवालियों को क्यों बदनाम करती हो? बचपन से ही उन्हें सिर्फ खोलने की आदत है चाहे अपनी साड़ी हो या नाड़ा। तो इस बिचारे को कहाँ से सिखाती? अरे मोहल्ले वाले साड़ी बाँधने देते तब ना। साथ में जांघें फैलाना, टांगें उठाना। तो वो बिचारी बांधती भी कैसे?”


संध्या भाभी भी अब हम सबके रंग में रंग गई थी और उन्होंने सबसे पहली साड़ी के एक छोर को साए में बांधकर मुझे सिखाया।

फिर तो कुछ मैंने, कुछ उन्होंने साड़ी बंधवा ही दी।
"साडी पेटीकोट खोलना तो सब मर्दों को आता है लेकिन तुम पहले हो जो बांधना सीख गए, पर इसकी फ़ीस लगेगी "

कान में फुसफुसा के वो बोलीं। समझ तो मैं भी रहा था लेकिन मैंने भी उसी तरह धीरे से बोला, " एकदम भाभी, बस एक बार हुकुम कीजिये "


" ये " मुस्टंडे को दबा के धीरे से बोलीं और फिर जोड़ा, आज और जाने के पहले। " और फिर रीत और गुड्डी के साथ सिंगार में जुट गयीं।
 
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सोलह सिंगार,

चूड़ी, महावर


अभी रीत और गुड्डी चूड़ियां पहना रही थी हरी-हरी और लाल कंगन।

और संध्या भाभी पैर में महावर लगा रही थीं,

रीत और गुड्डी एकदम चुड़िहारिनों की तरह बैठी थी। गुड्डी ने कलाई पकड़ रखी थी और रीत चूड़ियां पहना रही थी। और जैसे चुड़िहारिने नई नवेलियों को कुँवारी लड़कियों को छेड़ती हैं वो भी बस उसी तरह वो दोनों भी। गुड्डी ने मेरी कलाई को गोल मोड़ दिया चूड़ी अन्दर करने के लिए।

रीत ने छेड़ा- “हे हमारी तुम्हारी कब?”

“अरे पकड़ा पकड़ी होय जब…” गुड्डी ने जवाब दिया।

रीत ने जब चूड़ी घुसाई तो दर्द तो हुआ लेकिन रीत की बात सुनकर वो काफूर हो गया।

“अरे उह्ह… आह्ह… कब?” रीत ने पूछा।

“आधा जाय तब…” गुड्डी ने जवाब दिया।

“अरे मजा आये कब? निक लागे कब?” रीत ने अपनी बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें नचाकर पूछा।

“अरे पूरा जाय तब…” गुड्डी भी अब पीछे रहने वाली नहीं थी, और एक चूड़ी अन्दर चली गई।

उसके बाद तो उन दोनों ने मिलकर एकदम कुहनी तक चूड़ियां पहना दी। और दोनों मिलकर अपने इस द्विअर्थी पहेली कम डायलाग पे हँस पड़ीं।



“सुहागरात का पता कैसे चलेगा। जानू?” गुड्डी ने मुझे चिढ़ाते हुए पूछा।

“अरे जब रात भर चूड़ियां चुरूर मुरुर करें और आधी सुबह तक चटक जायं…” रीत मेरे गाल पे चुटकी काटकर बोली।


“क्यों संध्या याद है ना तुम्हारी सुहागरात में,... महावर वाली बात…” चंदा भाभी ने मुश्कुराकर पूछा।

“आप भी ना भाभी। वो तो सब की सुहागरात में होता है। आप भी कहाँ की बात ले बैठीं। वो भी इन बच्चियों के सामने…” रीत और गुड्डी की ओर देखकर, मेरे पैरों में महावर लगाती वो बोली।


रीत ने उन्हें ऐसे देखा जैसे कोई गलत बात उन्होंने कह दी हो।

लेकिन बोली दूबे भाभी- “हे बच्चियां किन्हें कह रही हो? जब वो घूम-घूम के चूचियां दबवाने लगें तो ये बच्चियां नहीं रह जाती और ऊपर से मेरी ननदों की झांटे बाद में आती हैं, लण्ड पहले ढूँढ़ने लगती हैं। और वैसे भी कल के पहले इन दोनों की भी चटक-चटक के फट जायेगी। हम सब की कैटगरी में आ जायेंगी…” वो हड़का के बोली।

रीत और गुड्डी ने सहमति में सिर हिलाया।



रीत से संध्या भाभी अपनी सुहागरात के महावर का पूरा किस्सा सुनाया,

“ मेरी ननदों ने नाउन को चढ़ा दिया था। फिर उसने ये रच-रच के महावर लगाया, खूब गाढ़ा और गीला। आगले दिन सुबह जब हम दोनों कमरे से बाहर आये तो वो सब छिपकलियां मेरी ननदें पहले से तैयार बैठी थी। नाश्ता के समय पकड़ लिया उन्होंने तुम्हारे जीजू को- “हे भैया आपके माथे पे ये लाल-लाल? ये भाभी के पैर का रंग कैसे? कहीं रात भर भाभी ने आपसे पैर तो नहीं छूलवाया? ये बहुत गलत बात है…”

कोई बोली- “अरे भैया को कोई चीज चाहिए होगी इसलिए भाभी ने,... क्यों भैय्या? लेकिन भाभी ने दिया की नहीं। खूब तंग किया…”


संध्या भाभी बता भी रही थी और उस दिन की याद करके मुश्कुरा भी रही थी।

गुड्डी भी बोली- “लेकिन मेरी समझ में नहीं आया की कैसे जीजू के माथे पे आपके पैरों की महावर?”

उसकी बात काटकर संध्या भाभी मुश्कुराते हुए उसके उरोजों पे एक चिकोटी काटकर बोली-

“अरी बन्नो सब समझ में आ जाएगा। जब रात भर टांगें कंधे पे रहेंगी और रगड़-रगड़कर, ये चूची पकड़कर चोदेगा ना तो सब पता चल जाएगा की महावर का रंग कैसे माथे पे लगता है?”

रीत ने पाला बदला और संध्या की ओर हो गई- “आज जा रही है ना तू कल सुबह ही हम सब फोन करके पूछेंगे तुझसे। की रात भर टांगें उठी रही की नहीं? समझ में आया की नहीं?”

सब हो-हो करके हँसने लगी लेकिन गुड्डी शर्मा गई और मैं भी।



संध्या भाभी ने महावर के रंग की कटोरी में जाने क्या और मिलाया और मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं-

“मैं लेकिन उससे भी गाढ़ा लगा रही हूँ और चटक भी, पंद्रह दिन तक तो नहीं छूटेगा, लाख पैर पटक लेना…”


महावर के साथ उन्होंने पैरों के नाखून भी रंगे और जैसे गाँव में औरतों की विदाई होने के समय महावर के साथ पैरों पे डिजाइन बनाते हैं। वैसे डिजाइन भी बना दी। वो तो मैंने बाद में देखा।

एक पैर पे डिजाइन में उन्होंने लिखा था बहन और दूसरे पे चोद।

दूबे भाभी और चंदा भाभी बड़ी देर से चुप बैठी मजे ले रही थीं, लेकिन दूबे भाभी अपने रूप में आयी, " तो कोई लौण्डेबाज इसकी गांड माएगा तो उसके माथे पे लगेगा "

और अब सब हो हो,

लेकिन मैंने फुसफुसा के भाभी से सिफारिश की, भाभी, गुड्डी के पैर में भी लगा दीजिये न "

वो महावर ख़तम करते, उसी तरह धीरे से बोलीं,

" लगाउंगी, लगाउंगी, इससे भी चटक और गाढ़ा, जब तुम इसको हरदम के लिए बिदा करा के ले जाओगे, और अगली सुबह वीडियो काल में तेरे माथे पे वही महावर देखूंगी "

फिर वो और चंदा भाभी पैरों में पायल और बिछुए पहनाने लगी वो भी खूब घुंघरू वाले। चौड़ी सी चांदी की पायल।

चंदा भाभी गुड्डी से हँसकर बोली “अब ये मत पूछना की दुल्हन को ये क्यों पहनाते हैं?” फिर कहने लगी- “इसलिए बिन्नो की जब रात भर दुल्हन की चुदाई हो तो रुनझुन, रुनझुन। ये पायल बजे और बाहर खड़ी सारी ननद भौजाइयों को ये बात मालूम चल जाय की अब नई दुल्हन चुद रही है, "

बिछुवे बहुत ही ज्यादा घुंघरू वाले थे।
 
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छोटे घुंघरू वाला बिछुआ


दूबे भाभी बैठकर गाइड कर रही थी। वो मुझे चिढ़ाते हुए गाने लगी-

“अरे छोटे घुंघरू वाला छोटे घुंघरू वाला बिछुआ गजबे बना, छोटे घुंघरू वाला,

वो बिछुवा पहने आनंद की बहना, गुड्डो छिनारी, एलवल वाली (मेरी ममेरी बहन के मोहल्ले का नाम)

अरे अरवट बाजे करवट बाजे, लड़िका के दूध पियावत बाजे,

अरे यारन से चूची मिजवावत बाजे, दबवावत बाजे,

अरे छोटे घुंघरू वाला, छोटे घुंघरू वाला बिछुआ गजबे बना, छोटे घुंघरू वाला।

अरे अरवट बाजे करवट बाजे, अपने भइय्या से रोज चुदावत बाजे,

अरे छोटे घुंघरू वाला, छोटे घुंघरू वाला बिछुआ गजबे बना, छोटे घुंघरू वाला।



गुड्डी और रीत हाथ के श्रृंगार में लगी थी, नेल पालिश।

गुड्डी बोली- “क्यों ये बात सच है ले चुके हो उसकी?”


रीत ने आँख तरेरी और दूबे भाभी की ओर इशारा किया, जिन्होंने हुक्म दिया था की होली में सब ‘खुल कर’ बोले-

“अरे माना इनकी बात सीधी है, अभी तक नहीं चुदी है। तो अब चोद देंगे ऐसा क्या? बिछुवे तो बजेंगे ही उसके…” रीत ने बात पूरी की।


उसके बाद गहनों का और चेहरे के श्रृंगार का नंबर था।

संध्या भाभी ने मुझे एक करधनी पहनाई वो भी घुंघरू वाली और मुश्कुराकर रीत और गुड्डी की ओर देखकर बोला- “हे ये मत बताना की तुम्हें इसका भी मतलब नहीं मालूम है की ये कब बजती है?”

रीत की मुश्कुराहट से साफ झलक रहा था की वो चतुर सुजान है। लेकिन गुड्डी वैसी की वैसी तो संध्या भाभी ने फिर बोला-

“अरे बुद्धू। कोई जरूरी थोड़े ही सै की यही तुम्हारे ऊपर चढ़कर चोदे। अरे ऐसा बुद्धू हो तो कई बार लड़की को ही कमान अपने हाथ में लेनी होती है। और जब लड़की ऊपर होती है, तो उछल-उछलकर ऊपर-नीचे करके चोदती है। तो करधन के ही घुंघरू बोलते हैं…”

रीत मुश्कुराती हुई मेरे चेहरे का मेकप करने में बिजी थी, लाल लिपस्टिक।

और गुड्डी से बोली, हे देख हैं न खूब चूमने लायक, चूसने लायक होंठ, लौंडिया मात।

" अरे तो चूम ले न " गुड्डी खिलखिलाती हुयी बोली और रीत ने चूम लिया।

गालों पे रूज, आँख में काजल, मस्कारा, आइब्रो और साथ में कानों में झुमके, नाक में नथ, कान नाक में छेद तो था नहीं इसलिए कहीं से इन लोगों ने स्क्रू वाले झुमके और नथ का इंतजाम किया था। नथ भी बड़ी सी उसकी मोती होंठों पे। नथ गुड्डी पहना रही थी। मैं थोड़ा ना-नुकुर कर रहा था।

तब चंदा भाभी ने हड़काया- “अरे पहन लो पहन लो, वरना उतारी क्या जायेगी?”

मुश्कुराती हुई रीत ने गुड्डी को आँख मारकर बोला- “पहना दे तू लेकिन उतारूंगी मैं ही…”

तभी रीत का ध्यान मेरे ब्लाउज़ पे गया जिसके अन्दर संध्या भाभी की ब्रा थी। वो हल्के से बोली- “माल तो मस्त है लेकिन थोड़ा सा कसर है…” और वो भाग के अन्दर गई।

जब वो बाहर आई तो उसके हाथ में रंग के भरे दो गुब्बारे थे। उसने झट से मेरी ब्रा खोलकर उसके अन्दर डाल दिया और बोली- “हूँ अब मस्त माल लग रही है एकदम 34सी बल्की डी…” और मुझे खड़ा कर दिया गया था।
 
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सिन्दूर दान, - यादों के झुरमुट से
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दूबे भाभी जो अब तक दूर से गाइड कर रही थी, पास में आई और बोली- “सही है लेकिन बस एक कसर है…” और उन्होंने अपने माथे से अठन्नी की साइज की टिकुली मेरे माथे पे लगा दी और बोला- “अब हुआ शृंगार पूरा। नहीं लेकिन एक कसर है…”



सब मुझे घेर के खड़े थे। चंदा भाभी, संध्या भाभी और रीत और गुड्डी तो एकदम सटकर अगल-बगल। किसी को कुछ समझ में नहीं आया।

दूबे भाभी- “अरी सालियों। इत्ती मस्त दुल्हन लेकिन उसकी मांग तो सूनी है। सिन्दूर कौन भरेगा?”



रीत ने गुड्डी की ओर इशारा किया तो गुड्डी ने रीत की ओर।

चंदा भाभी ने उकसाया- “अरे सोचो मत। इसकी बहन पे तो तीन-तीन एक साथ चढ़ेंगे, तुम तो दो ही हो कर दो एक साथ…”

दूबे भाभी ने हड़काया- “अरे तुम लोग बनारस की हो। लखनऊं की नहीं की जो पहले आप, पहले आप कर रही हो”


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कई बार अतीत बिन बोले वर्तमान पर छा जाता है, भांग का नशा था, सामने रीत भी गुड्डी भी,


लेकिन वो सीन चार पांच साल पहले का, भाभी की शादी में, जब ऐसे ही तो भाभी की सहेलियों भाभियों के झुरमुट में पकड़ा गया था मैं और वही सिंगार, गुड्डी नेलपॉलिश लगा रही थी अपने हाथ से मेरे हाथ को पकड़ के,

नेलपॉलिश लगाती गुड्डी की ओर देख के मैं बोला,

" कल गुड्डी का डांस बहुत अच्छा था, .... " लेकिन जो जवाब गुड्डी की मम्मी ने दिया मैं सोच नहीं सकता था,

" बियाह करोगे इससे " वो सीरियस हो के बोली,

मैंने गुड्डी की ओर देखा, बड़ी बड़ी दीये सी आँखे, नेह का तेल, प्यार की बाती, दीये जगमगा उठे लेकिन लाज ने पल भर के लिए गुड्डी की पलकों को झुका दिया, और उसी झिझक ने मेरे होंठों पर फेविकोल चिपका दिया,

लजा गया, जैसे मेरे चेहरे पर किसी ने ईंगुर पोत दिया हो एकदम पलके झुकी।

" काहें तुम्ही कह रहे हो, डांस अच्छा करती है , कल गाना भी सुन लिया होगा तुम्हारी बहिन महतारी सब का हाल, .... "

गुड्डी की मम्मी , मेरी ठुड्डी पकड़ कर चेहरा उठा के गाल सहलाते हुए आँख में आँख डाल के पूछीं।

मेरी आँखे झुकी, लाज से मेरी हालत खराब,



अब सब लोग एक साथ हँसे, भाभी ( गुड्डी की मम्मी ), विमला भाभी, रमा सब,... खिलखिला रही थी विमला भौजी बोलीं

" इतना तो लड़किया नहीं लजाती शादी की बात पे जितना भैया तुम लजा रहे हो, ... गौने क दुल्हिन झूठ "

लेकिन तब तक भाभी ( गुड्डी की मम्मी ) ने गुड्डी से पूछ लिया

" बोलो पसंद है, करा दूँ शादी। "

नेलपॉलिश तो कब की गुड्डी लगा चुकी थी, अनजाने में उसने कस के मेरा हाथ हल्के से दबा दिया लेकिन मेरी तरह से वो लजा नहीं रही थी, खुल के मुझे देख रही थी.

मजाक में गाँव में शादी के माहौल में कोई किसी को छोड़ता नहीं न रिश्ता न उम्र देखी जाती है। " बोलो, ठीक से देख लो अगर पंसद हो बस हाँ बोल दो " गुड्डी की मम्मी , गुड्डी के पीछे पड़ गयी।


अब मुझे लगता है हाँ बोल देना चाहिए था, इतना छोटा भी नहीं था, इंटर कर चुका था, आई आई टी में सेलेक्शन भी हो गया था,

मुझे अब तक याद है, गुड्डी ने एक बार आंख उठा के देखा मेरी ओर और मेरी हालत खराब,.... और उस सारंग नयनी ने पलक बंद कर ली, ये सिर्फ मैंने देखा और गुड्डी ने,...और मैं उन पलकों में बंद हो चुका था,



कैद तो उस सारंगनयनी ने पहली बार ही कर लिया था, मैं थोड़ा सा रिजर्व, लेकिन वो जनवासे में अपनी सहेलियों के साथ और दांत देखने के बहाने, रसगुल्ला खिला के चली गयी और साथ में, मुझे भी ले गयी। और जैसे वो काफी नहीं था, डांस करते समय भी जब वो गाती,

जिस तरह वो दोनों हाथों की चूड़ियां आपस में बजा के दिखा दिखा के कहती लग रहा था जैसे मुझ से ही कह रही हो,...




मेरा बनके तू जो पिया साथ चलेगा

जो भी देखेगा वो हाथ मलेगा



स्टेज के किसी कोने में वो होती लेकिन आँख उसकी बस मेरे पास,...



और उसके बाद, बस मैं मौका खोज रहा था उससे मिलने का लेकिन उसके पहले ही, बीड़ा मारने की रस्म, बादलों में बिजली सी वो भी दिखी, और भाभी का हाथ उठा, उसके साथ ही उसका भी,...



भाभी का बीड़ा तो लगा सही, लेकिन गुड्डी का एकदम सीधे मेरे सीने पर,

द्वारपूजे के बाद जब वो दिखी, तो मैंने बस इतना कहा की तुम्हारा निशाना एकदम सही लगा,



वो मुस्करायी और बस बोली की लेकिन कुछ लोग ऐसे बुद्धू होते हैं जिनका निशाना लग भी जाता है उन्हें पता नहीं चलता।

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अब भी यही बात साल रही है की उस दिन गुड्डी की मम्मी की बात, बियाह करोगे इससे, मन तो बस यही कर रहा था की ये लड़की मिल जाए, बस उसके बाद और कोई चीज नहीं मांगूंगा, लेकिन, वही झिझक,



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और अभी डेढ़ साल पहले, घर पे, पढ़ाई भी हो चुकी थी और पढ़ते हुए ही सेलेक्शन भी हो गया था, आल इंडिया सर्विस में फर्स्ट अटेम्प्ट में, रैंक भी अच्छी थी और कैडर भी होम यानि यू पी मिलना करीब तय था,



मेरी आम की चिढ जग जाहिर थी, और सिर्फ खाना नहीं पसंद है ये बात नहीं, नाम लेने से लेकर आस पास भी, और सब लोग ध्यान भी करते थे , मेरे सामने



लेकिन गुड्डी, गुड्डी थी, और मैं भी हर मौका ढूंढ़ता था उसके आस पास मंडराने का, नौवें पास कर लिया था उसने,



गरमी का सीजन था, गुड्डी, साथ में उसकी सहेली और मेरी कजिन, एक दो और अड़ोस पड़ोस की लड़कियां और मंजू, वैसे तो घर में काम करती थी, लेकिन हम लोगो के लिए भौजी ही थी, और रिश्ता निभाती भी थी, मजाक न एकदम खुल कर बल्कि देह तक पहुँच जाता था.

वो सब लोग मिल के सुतुही से कच्चे आम छील रहे थे और मैं चुपके चुपके गुड्डी की कच्ची अमिया निहार रहा था, अपनी सहेलियों से २० नहीं २२ थी, वो कुछ भी होती, दर्जनों लड़कियां खड़ी हों दिखती मुझे वही थी,

लड़कियां एक खेल खेलती थीं, जब आम की गुठली बचती थी तो उसे दो उँगलियों में पकड़ के दबाकर छोड़ती थी और वो उछलती थी, लेकिन उसके उछलने के पहले किसी लड़की का नाम लेकर पूछती थी, उसकी शादी कहाँ होगी, और जिधर वो गुठली जाती फिर सब मिल के उस लड़की को चिढ़ाती की उसकी ससुराल पूरब होगी या जिधर भी वो गुठली उछल के गिरे



मंजू ने एक गुठली पकड़ी और गुड्डी को दिखाते, चिढ़ाते, दबा के पूछा,




बिजुली रानी, बिजुली रानी, कहाँ होई,

गुड्डीया का बियाह कहाँ होई



और वो गुठली उछली, मेरी ओर और सीधे मेरे ऊपर ही गिर गयी,

मंजू जोर से खिलखिलाई, “अरे सब क गुठली तो ससुराल की ओर जाती है ये तो सीधे दूल्हे पे ही गिर गयी, गुड्डी देख लो, है लड़का पसंद, चाहे तो बियाहे के पहले एकाध बार ट्राई कर के देख लो, "

और फिर सब लड़कियां गुड्डी के पीछे, लेकिन गुड्डी से ज्यादा मैं झेंप गया, उठा लेकिन जाने के पहले एक बार गुड्डी को भर आँख देखने की लालच नहीं रोक पाया,

और फिर वो आँखे जो मुस्करायीं, गुनगुनुनाईं,


और थोड़ी देर बाद वो मिली, अकेले थे हम दोनों, वो कुछ लेने आयी थी मेरे कमरे से और मैंने हिम्मत कर के पूछ लिया,

" हे वो, वो वाली बात, सच हो जाए तो "

वो समझ रही थी मैं क्या पूछ रहा हूँ, लेकिन उसकी चिढ़ाती आँखों ने और छेड़ा मुझे, मुस्करा के बोली,

" कौन सी बात?"

" वही गुठली वाली बात, बिजुली बिजुली "

" अरे वो सब लड़कियों का खेल तमाशा, " हंस के वो बोली और बाहर जाने के लिए मुड़ी, लेकिन फिर ठिठक के रुक गयी और आलमोस्ट मुझसे सट के फुसफुसाते हुए बोली,

" और सच हो भी जाये तो मैं तुझसे डरती थोड़े ही हूँ "

कह के उसने मेरी नाक पकड़ ली, मारे ख़ुशी के मेरी बोलती बंद हो गयी लेकिन अगली बात जो नाक पकडे पकडे मेरी, बोली तो मैं एक पल के लिए हदस गया। उस सारंगनयनी ने कहा,

" लेकिन ललचाते बहुत हो "


मैं समझ गया, मेरी चोरी पकड़ी गयी, जो २४ घंटे उसकी बस उभरती हुयी कच्ची अमिया ताकता रहता था, क्या करूँ, आँखे मेरी मन की गुलाम, और मन तो जो सामने खड़ी थी उसमें उलझा,



बड़ी मुश्किल से मेरे बोल फूटे, बहुत धीमे से थूक निगलते बोल पाया , " गुस्सा,.... तुम गुस्सा हो ?"



" बुद्धू " वो बोली और खिलखिलाई, हजारों मोती फर्श पर लुढ़क गए, और नाक छोड़ के बोली,

" गुस्सा होउंगी, वो भी तुझ पे, भूल जा "

और बाहर, लेकिन दरवाजे के पास रुक के एक पल के लिए ठिठकी, मुड़ी मेरी ओर देखा और हलके से मुस्करा के बोली, " लालची "

उसी दिन शाम को पिक्चर हाल में, बताया तो था, हम सब लोग फिल्म देखने गए थे, सबसे किनारे मैं, मेरे बगल में गुड्डी और उसके बाद मेरी कजिन, और फिर बाकी लोग, पिकचर शुरू होने के थोड़ी देर बाद ही, मेरा हाथ पकड़ कर उसने अपने सीने पे, और कुछ देर बाद हलके से दबाया भी, और रात में भी, नीचे हम दोनों ही सोते थे, गरमी के दिन, तो बरामदे में चारपाइयाँ सटी, और रात में भी



नहीं बात छुआ छुववल से आगे नहीं बढ़ी, लेकिन पहल हर बार गुड्डी ही करती थी



और अभी गुड्डी ने ही पहल की, ढेर सारा सिन्दूर मेरी मांग में, भरभरा कर



संध्या भाभी ने सिंदूर की डिबिया बढ़ाई और,… सिन्दूर दान किया गुड्डी ने ही, और ढेर सारा,


उसके मन में इतनी ख़ुशी थी और उससे ज्यादा मेरे मन में,

कब ये मौका आये बदले में मैं कब मांग भरूंगा इसकी। फिर रोज सुबह उठूंगा तो इसका चेहरा देखकर और सोऊंगा तो इसका चेहरा देखकर।



कुछ मेरी नाक पे भी गिर गया। संध्या भाभी ने चिढ़ाया- “नाक पे सिन्दूर गिरने का मतलब जानते हो तुम्हारी सास बहुत खुश रहेंगी…”

चंदा भाभी ने रीत को किसी काम से किचेन में भेज दिया था, और संध्या भाभी एक बार फिर से चंदा भाभी और दूबे भाभी के साथ मिल के छत के दूसरे कोने पे अगली योजना की प्लानिंग कर रहे थे,



लेकिन अब मेरी बोलने की बारी थी, बहुत देर से मैं चुप था।





मै गुड्डी से धीरे से बोला- “अरे सिन्दूरदान हो गया तो अब सुहागरात भी तो होनी चाहिए…”

वो भी इधर उधर देख के मीठा मीठा मुस्करा के खूब धीमे से बोली, " चल तो रही हूँ न तेरे साथ, मना लेना रात भर सुहागरात, मना थोड़े ही करुँगी, कर लेना अपने मन की, मना थोड़े ही करुँगी "

मेरा चेहरा चमक गया, फिर भी मैंने जबरदस्ती मुंह बना के कहा, " सिर्फ आज " और गुड्डी जो उसकी आदत थी, नाक पकड़ के बोली,

" इसीलिए, बुद्धू पूरे हफ्ते भर का प्रोग्राम बनाया है और आज पांच दिन वाली आंटी जी की भी टाटा बाई बाई तो उसकी भी परेशानी नहीं, सिर्फ आज क्यों, जब चाहो तब "



और मेरी नाक पकडे, संध्या भाभी की ओर इशारा कर के बोली, " और रात तक इंतजार काहे करोगे, मना लो न तोहार भौजी बहुत गर्मायी हैं, अपने पिचकारी के पानी से उनकर गर्मी ठंडी कर दो, उनको भी पता चल जाये मेरे वाले के बारे में, बहुत चिढ़ाती रहती हैं, और फिर तुम्हारी साली, रीत भी तो छौंछियायी है सबेरे से ठोंक दो एक बार, अरे एक दो बार करने से मेरे टाइम का स्टॉक कम थोड़े ही हो जाएगा "
 
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सुहाग रात - बच गया पिछवाड़ा



मै गुड्डी से धीरे से बोला- “अरे सिन्दूरदान हो गया तो अब सुहागरात भी तो होनी चाहिए…”

वो भी इधर उधर देख के मीठा मीठा मुस्करा के खूब धीमे से बोली,

" चल तो रही हूँ न तेरे साथ, मना लेना रात भर सुहागरात, मना थोड़े ही करुँगी, कर लेना अपने मन की, "

मेरा चेहरा चमक गया, फिर भी मैंने जबरदस्ती मुंह बना के कहा, " सिर्फ आज " और गुड्डी जो उसकी आदत थी, नाक पकड़ के बोली,

" इसीलिए, बुद्धू पूरे हफ्ते भर का प्रोग्राम बनाया है और आज पांच दिन वाली आंटी जी की भी टाटा बाई बाई तो उसकी भी परेशानी नहीं, सिर्फ आज क्यों, जब चाहो तब "



और मेरी नाक पकडे, संध्या भाभी की ओर इशारा कर के बोली,

" और रात तक इंतजार काहे करोगे, मना लो न तोहार भौजी बहुत गर्मायी हैं, अपने पिचकारी के पानी से उनकर गर्मी ठंडी कर दो, उनको भी पता चल जाये मेरे वाले के बारे में, बहुत चिढ़ाती रहती हैं, और फिर तुम्हारी साली, रीत भी तो छौंछियायी है सबेरे से ठोंक दो एक बार, अरे एक दो बार करने से मेरे टाइम का स्टॉक कम थोड़े ही हो जाएगा

लेकिन तब तक भाभियों का ध्यान हमारी ओर मुड़ गया और दूबे भाभी बोलीं

" हे तोता मैना क्या गुपचुप हो रहा है "



संध्या भाभी ने गुड्डी की ओर से जवाब दिया, " अरे यही पूछ रहे होंगे न की सिन्दूर दान हो गया तो अब सुहागरात "

चंदा भाभी बोली- “बड़ी छिनार दुल्हन है, जबरदस्त खुजली इसकी चूत में मची है…”

लेकिन रीत बढ़कर आगे आई और हँसकर मेरा मुँह उठाकर बोली- “अरे जरूर मनाई जायेगी। और वो भी अभी…”

गुड्डी इस काम में पीछे हट गई थी ये कहकर की उसके वो दिन चल रहे हैं।

“लेकिन कैसे आवश्यक सामग्री है तुम्हारे पास?” मैंने भी हँसकर सवाल दागा।



“एकदम…”

और जो बैग वो सुबह अपने साथ लायी थी उसमें से एक मोटा लम्बा डिल्डो निकाला। गुलाबी एकदम मेरी साइज के बराबर रहा होगा। स्ट्रैप आन। जिसे लड़कियां पहनकर एक दूसरे के साथ या लड़कों के साथ।

और जवाब उसकी ओर से खिलखिलाती, गुड्डी ने दिया, वो युद्धस्थल से थोड़ी दूर आराम से बैठ कर मेरी दुरगति देख रही थी।

" अरे यही लाने तो आपकी साली गयी थी, अभी जो चंदा भाभी के किचन में, पसंद आया न "

" अरे नहीं यार काम पूरा नहीं हुआ, " रीत ने गुड्डी की ओर देखकर बड़े उदास मुंह से जवाब दिया,

" क्यों, "

एक साथ संध्या भाभी और गुड्डी ने पूछा, मतलब मेरे पिछवाड़े पर आसन्न हमले की प्लानिंग में में ये तीनो शामिल थी, जिनके लिए जान हथेली पर लेकर मैं दूबे भाभी के पास, मेरी सहायता से इन तीनों ने बनारस की होली के इतिहास में पहली बार दूबे भाभी का चीर हरण किया, साड़ी ब्लाउज दोनों, सच में ये दुनिया विश्वास करने लायक नहीं, लेकिन उसके बाद रीत ने जो जवाब दिया सच में मेरा दिल दहल गया,



" असल में मैं किचेन में बहुत देर तक मिर्चे वाला पुराना अचार ढूंढ रही थी, सोच रही थी उसका तेल लगा के तो अच्छी तरह से परपरायेगा, याद रहेगी ससुराल की, .....लेकिन मिला नहीं तो, "

गुड्डी ने भी थोड़ा उदास सा मुंह बना लिया, फिर बोली," तो क्या हुआ, दी सूखे मार लीजिये, ये कौन जेब में वैसलीन की शीशी लेकर घूमते हैं। "

मेरे मन में तो आया, की बोलूं, कल मेरे सामने दवा की दूकान से माला डी और आई पिल की गोली के साथ बड़ी सी वैसलीन जेली की शीशी गुड्डी ने खरीदी थी, तो क्या मुंह में लगाने के लिए।

तब तक दूबे भाभी का कमान जारी हुआ- “निहुराओ साली को…”

चंदा और संध्या भाभी ने मिलकर मुझे झुका दिया और साड़ी साया सब मेरी कमर पे।

दूबे भाभी बोली- “अरे क्या मस्त चिकने चूतड़ हैं नाम तो लिखो साले का…”

और फिर एक बार संध्या भाभी और गुड्डी, एक ने मेरे एक चूतड़ पे गाँ लिखा और दूसरे ने दूसरे पे डू। वो भी काली प्रिंटर इंक से, खूब बड़े-बड़े। वो भी संध्या भाभी के महावर की तरह 15 दिन से पहले छूटने वाला नहीं था।

मुझे अपने नितम्बों पे एक प्यार भरे हाथ की सहलाहट मालूम हुई।

आँख बंद करके भी मैं रीत के स्पर्श को पहचान सकता था, और दो लोग मिलकर मेरे नितम्बों को कसकर फैला रहे थे। चंदा भाभी और संध्या भाभी।

फिर दरार पे एक उंगली, और उसके बाद डिल्डो का दबाव, पहले हल्का फिर थोड़ा तेज।

गुड्डी मेरे सामने एक बार फिर से बैठी थी, थोड़ी दूर पे, और हम लोगों का नैन मटक्का कोई नहीं देख पा रहा था , बाकी सब लोग मेरे पिछवाड़े के पीछे पड़े थे, रीत तो नौ इंच की तलवार बांधे, मेरे पिछवाड़े सटाये, संध्या भाभी दोनों हाथों से मेरे नितम्बो की चियारे, चंदा भाभी उन दोनों को चढाती, और दूबे ओवरआल कंट्रोल में,

ये कहूं की दर्द नहीं हो रहा था तो गलत होगा, जिस तरह से रीत प्रेस कर रही थी और संध्या भाभी पूरी ताकत से फैलाये थीं,

लेकिन जब सामने गुड्डी बैठी हो, उसकी कजरारी, रतनारी आँखे, मीठी मीठी मुस्कान, और हम दोनों बिन बोले बतिया रहे थे, (ये तरीका एक बार इश्क हो जाए तभी पता चलता है,) फिर दर्द कहाँ पता चलता है.

रीत ने और जोर लगाया, कभी वो गोल गोल घुमाती तो कभी पुश करती, लेकिन न कोई चिकनाई न रीत को पिछवाड़े के हमले की प्रैक्टिस, चंदा भाभी से वो शोख बोली,

" ये जो गुड्डी का माल है न, स्साले इसके मायके वाले सब के सब या तो जनखे हैं या गंडुए, ये भी स्साला चिकना कोरा है, इसकी बहन भी कोरी है, कोई मारने के चक्कर में नहीं पड़ा "

संध्या भाभी का ललचाता हाथ, अब मेरे लटके खूंटे पे एक बार फिर पहुँच गया था, और उसे छूते सहलाते वो बोलीं,

" देख यार जनखे वाली बात तो मैं नहीं मान सकती, हाँ गंडुआ और भंडुआ दोनों बात सही है "

चंदा भाभी ने और जोड़ा, " यार रीत, फायदा तो इसके ससुराल वालों का बनारस वालों का ही होगा न अगर ये कोरा है और इसकी बहिनिया भी कोरी है "

रीत ने एक बार फिर जोर लगाने की कोशिश की।



तभी दूबे भाभी की आवाज अमृत की तरह मेरे कानों में पड़ी वो रीत से बोल रही थी-

“जाने दे यार सगुन तो तुमने कर दिया ना। अभी रंग पंचमी में तो ये आयेंगे ना। तो फिर इनकी बहन और इनको साथ-साथ घोंटायेंगे। अभी कहीं फट फटा गई तो अपने मायके में जाकर सबको दिखाएंगे…”रीत ने भी उसे हटा लिया और कसकर एक हाथ मेरे चूतर पे जमाते हुए, हँसकर बोली- “बच गई आज तेरी…”



रीत से तो बच गई लेकिन भाभियों से तो बचने का तो सवाल ही नहीं था, और उनकी उंगलियों से,

उसके बाद तो वो होली शुरू हुई।

गालियां गाने और अब भले मेरी ड्रेस बदली हुई थी लेकिन था तो वही। और एक बार फिर से होली जबर्दस्त शुरू हो गई थी। गाने, गालियां, रंग, अबीर, रगड़ना, मसलना सब कुछ जो सोच सकते हैं वो भी और जो नहीं सोच सकते हैं वो भी।
 
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, संध्या भाभी-

देह की होली -जरा सी



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मैंने संध्या भाभी को पकड़ा और बिना किसी बहाने के सीधे हाथ उनके जोबन पे। एकदम परफेक्ट साइज थी उनकी ना ज्यादा छोटी ना ज्यादा बड़ी, 34सी। पहले तो मैंने थोड़ा सहलाया लेकिन फिर कसकर खुलकर रगड़ना मसलना। अब सब कुछ सबके सामने हो रहा था।

रंग वंग तो पहले ही होगया था अब तो सिर्फ देह की होली,

संध्या भाभी के जोबन एकदम कड़क थे, मेरा एक हाथ नीचे से सहलाते हुए ऊपर जाता और जहाँ निपल बस टच होता कस कस मसलना रगड़ना, दूसरा तो मेरी मुट्ठी में कैद था पहले से ही।

दोनों हाथों में लड्डू और इस रगड़ने मसलने का असर दो लोगों पर हो रहा था, एक तो संध्या भाभी पे वो ऐसी गरमा रही थीं, मचल रही थी, जाँघे अपनी आपस में रगड़ रही थी, गुड्डी की पांच दिन वाली आंटी आज जाने वाली थीं, लेकिन संध्या भाभी की कल ही चली गयीं थी वो पांच दिन वाली और उसके बाद तो जो गरमी मचती है चूत महरानी को, पांच दिन की छुट्टी और उसके पहले भी पति से दूर लेकिन सबसे बढ़कर संध्या भाभी ने जिस मोटे खूंटे को पकड़ा मसला था, कभी सपने में भी नहीं सोचा था, इतना मोटा और मस्त हो सकता है, बस मन कर रहा था वो अब अंदर घुस जाए,

और संध्या भाभी से ज्यादा अगर कोई खुश था तो वो गुड्डी,

" बुद्धूराम को कुछ अक्ल तो आयी वरना सोते जगते तो उन्हें बस एक ही चीज दिखाई पड़ती थी, गुड्डी।

और आज भी गुड्डी ने जो बोला था उन्हें संध्या भाभी के लिए उसी का असर, और सबसे बड़ी बात सब लड़कियों से तो लोग सुहागरात के बाद पूछते हैं, कैसा था मरद, मतलब कितना लम्बा, कितना मोटा, कितनी देर रगड़ा, झाड़ के झडा या ऐसे ही और फिर मन ही मन अपने यार या मरद से कम्पेयर करते हैं, या गुड्डी ने खुद ही, देख लो, कोई दूर दूर तक नहीं टिकेगा, हाँ थोड़ा झिझकता है तो गुड्डी है न, जिसकी बात वो सपने में भी नहीं टाल सकता,

दोनों जोबन कस के मसले जा रहे थे, खूंटा जबरदस्त खड़ा, भले साली सलहजों ने मिल के नारी का रूप बना दिया हो लेकिन उस नौ इंच के मोटे मूसल का क्या करतीं जिसको घोंटने के लिए सब दिवाली थी, गूंजा से लेकर दूबे भाभी तक

जरा सा निपल कस के पिंच कर दिया तो संध्या भाभी सिसक पड़ीं

“क्यों भाभी कैसा लग रहा है मेरा मसलना रगड़ना? मैं जोर से कर रहा हूँ या आपके वो करते हैं?”

मैंने निपल कसकर पिंच करते हुए पूछा। मेरे मन से अभी वो बात गई नहीं थी, उन्होंने कहीं थी की मैं तो अभी बच्चा हूँ।

रीत को चंदा भाभी ने दबोच लिया था। आखीरकार, रिश्ता उनका भी तो ननद भाभी का था।

चंदा भाभी का एक हाथ रीत की पाजामी में था और दूसरा उसके जोबन पे। वही से वो बोली-

“अरे पूरा पूछो न। इसके 10-10 यार तो सिर्फ मेरी जानकारी में मायके में थे, और ससुराल में भी देवर, नन्दोई सबने नाप जोख तो की ही होगी। सब जोड़कर बताओ न ननद रानी की चूची मिजवाने का मजा किसके साथ ज्यादा आया?”



लेकिन संध्या भाभी को बचाने आई दूबे भाभी और साथ में गुड्डी।

बचाना तो बहाना था, असली बात तो मजा लेने की थी।

दूबे भाभी ने पीछे से मुझे दबोच लिया और उनके दोनों हाथ मेरी ब्रा के ऊपर, और पीछे से वो अपनी बड़ी-बड़ी लेकिन एकदम कड़ी 38डीडी चूचियां मेरी पीठ पे रगड़ रही थी, और कमर उचका-उचका के ऐसे धक्के मार रही थी की क्या कोई मर्द चोदेगा,

और साथ में गुड्डी भी खाली और खुली जगहों पे रंग लगा रही थी। और साथ में मौका मुआयाना भी कर रही थी की मैं उसकी संध्या दी की सेवा ठीक से कर रहा हूँ की नहीं, और गरिया भी रही थी, उकसा भी रही थी, भांग का असर गुड्डी पे भी जबरदस्त था और गालियां भी उसी तरह से डबल डोज वाली,

" स्साले, तेरी उस एलवल वाली बहन की फुद्दी मारुं, अरे तेरी उस एलवल वाली, गदहे की गली वाली बहिनिया ( मेरी ममेरी बहन,, गुड्डी के क्लास की ही और उसकी पक्की सहेली, एलवल उसके मोहल्ले का नाम और जिस गली में वो रहती थी तो बाहर कुछ धोबियों का घर तो पांच छह गदहे हरदम बंधे रहते थे तो वो गली चिढ़ाने के लिए गदहे वाली गली हो गयी थी ) की तरह नहीं है मेरी दी, जो झांट आने से पहले से ही गदहों का घोंट रही है, जवान बाद में हुयी भोसंडा पहले हो गया, अरे शादी शुदा हैं तो क्या दो तीन ऊँगली से ज्यादा नहीं घोंट सकती "


अभी तो मैं ऊपर की मंजिल पे उलझा था इसी बहाने गुड्डी ने संध्या भाभी की निचली मंजिल की ओर ध्यान दिलाया,

होली में चोली के अंदर हाथ तो पास पडोसी भी डाल लेते हैं, जोबन रगड़ मसल लेते हैं लेकिन असली देवर ननदोई तो वो जो चूत रानी की सेवा करें ,

गुड्डी का इशारा काफी था, दो उँगलियाँ संध्या भाभी की चूत में।

क्या मस्त कसी चूत थी, एकदम मक्खन, रेशम की तरह चिकनी, पहले एक उंगली फिर दूसरी भी।

क्या हाट रिस्पांस था। कभी कमर उचका के आगे-पीछे करती और कभी कसकर अपनी चूत मेरी उंगलियों पे भींच लेती। मैंने अपने दोनों पैर उनके पैरों के बीच डालकर कसकर फैला दिया। एक हाथ भाभी की रसीली चूचियों को रगड़ रहा था और दूसरा चूत के मजे ले रहा था। दो उंगलियां अन्दर, अंगूठा क्लिट पे। मैं पहले तो हौले-हौले रगड़ता रहा फिर हचक-हचक के।

अब तो संध्या भाभी भी काँप रही थी खुलकर मेरा साथ दे रही थी-

“क्या करते हो?” हल्के से वो बोली।

“जो आप जैसी रसीली रंगीली भाभी के साथ करना चाहिए…”

और अबकी मैंने दोनों उंगलियां जड़ तक पेल दी। और चूत के अन्दर कैंची की तरह फैला दिया और गोल-गोल घुमाने लगा।

मजे से संध्या भाभी की हालत खराब हो रही थी।

गुड्डी खुश नहीं महा खुश। यही तो वो चाहती थी, मेरी झिझक टूटे और उसके मायकेवालियों को पता चले की कैसा है उसका बाबू, और साथ में वो बोली मुझसे ,

" जो खूंटा घोंट चुकी हो उसका ऊँगली से क्या होगा "

जो हरकत मैं संध्या भाभी के साथ कर रहा था, करीब-करीब वही दूबे भाभी मेरे साथ कर रही थी और गुड्डी भी जो अब तक हर बात पे ‘वो पांच दिन’ का जवाब दे देती थी खुलकर उनके साथ थी।

दूबे भाभी ने मेरे कपड़े उठा दिए। कपडे मतलब, अभी तो गुड्डी के मायकवालियों ने मिल के मुझे साड़ी साया पहना दिया था वो वही साड़ी साया

साड़ी का जो फायदा पुराने जमाने से औरतों को मिलता आया है वो मुझे मिल गया, उठाओ। काम करो, कराओ और पहला खतरा होते ही ढक लो।

मेरे लण्ड राज बाहर आ गए, और साथ ही मैंने भी संध्या भाभी का साया हटा दिया था और वो सीधे उनकी चूतड़ की दरार पे,

तो पिछवाड़े मेरे मूसल राज रगड़घिस्स कर रहे थे और संध्या भाभी की प्रेम गली में मेरी दोनों उँगलियाँ, कभी गोल गोल, तो कभी चम्मच की तरह मोड़ के काम सुरंग की अंदर की दिवालो पर,

कल रात चंदा भाभी की पाठशाला के नाइट स्कूल में भाभी ने सब ज्ञान दे दिया था, नर्व एंडिंग्स कहाँ होती हैं और जी प्वॉइंट कहाँ, छू के ही लड़की को पागल कैसे बनाते हैं और आज वह सब सीखा पढ़ा पाठ, संध्या भाभी के साथ ।

भाभी की चूत एक तार की चाशनी फेंक रही थी, मेरी उँगलियाँ रस से एकदम गीली, फुद्दी फुदक रही थी, कभी सिकुड़ती तो कभी फैलती, और तवा गरम समझ के उँगलियों का आखिरी हथियार भी मैंने चला दिया,

अंगूठे से क्लिट के जादुई बटन को रगड़ना,

और अब संध्या भाभी की देह एकदम ढीली पड़ गयी, मुंह से बस सिसकियाँ निकल रही थीं, आँखे आधी मुंदी और जाँघे अपने आप फैली,

गुड्डी मुझे देख के खुश हो रही थी, संध्या भाभी की हालत देख कर वो समझ गयी मेरी उँगलियाँ अंदर क्या ग़दर मचा रही थीं।

मैंने थोड़ी देर तक तो खूंटा गाण्ड की दरार पे रगड़ा और फिर थोड़ा सा संध्या भाभी को झुकाकर कहा-

“पेल दूं भाभी। आपको अपने आप पता चल जाएगा की सैयां के संग रजैया में ज्यादा मजा आया या देवर के संग होली में?”

मुड़कर जवाब उनके होंठों ने दिया। बिना बोले सिर्फ मेरे होंटों पे एक जबर्दस्त किस्सी लेकर और फिर बोल भी दिया-

“फागुन तो देवर का होता है…”

चंदा भाभी रीत को जम के रगड़ रही थीं लेकिन मेरा और संध्या भाभी का खेल देख रही थीं, जैसे कोई पहलवान गुरु अपने चेले को पहली कुश्ती लड़ते देख रहा हो, वहीँ से वो बोलीं

" और देवर भौजाई का फागुन साल भर चलता है, खाली महीने भर का नहीं"
 
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देवर भौजाई का फागुन




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गुड्डी मुझे देख के खुश हो रही थी, संध्या भाभी की हालत देख कर वो समझ गयी मेरी उँगलियाँ अंदर क्या ग़दर मचा रही थीं।

मैंने थोड़ी देर तक तो खूंटा गाण्ड की दरार पे रगड़ा और फिर थोड़ा सा संध्या भाभी को झुकाकर कहा- “पेल दूं भाभी। आपको अपने आप पता चल जाएगा की सैयां के संग रजैया में ज्यादा मजा आया या देवर के संग होली में?”





मुड़कर जवाब उनके होंठों ने दिया। बिना बोले सिर्फ मेरे होंटों पे एक जबर्दस्त किस्सी लेकर और फिर बोल भी दिया-

“फागुन तो देवर का होता है…”

चंदा भाभी रीत को जम के रगड़ रही थीं लेकिन मेरा और संध्या भाभी का खेल देख रही थीं, जैसे कोई पहलवान गुरु अपने चेले को पहली कुश्ती लड़ते देख रहा हो, वहीँ से वो बोलीं



" और देवर भौजाई का फागुन साल भर चलता है, खाली महीने भर का नहीं"

और मैं देवर का हक पूरी तरह अदा कर रहा था।

लण्ड का बेस तो दूबे भाभी के हाथ था, और सुपाड़ा संध्या भाभी की चूत के मुहाने पे रगड़ खा रहा था। दूबे भाभी ने पीछे से ऐसे धक्का दिया की जैसे वही चोद रही हों। लेकिन फायदा मेरा हुआ, हल्का सा सुपाड़ा भाभी की चूत में। बस इतना काफी था उन्हें पागल करने के लिए।

चूत की सारी नशें तो शुरू के हिस्से में ही रहती हैं। मैंने हल्के से कमर गोल-गोल घुमानी शुरू की और सुपाड़ा चूत की दीवाल से रगड़ने लगा।

मैंने चारों ओर देखा और कान में बोला- “भाभी। आप कह रही थी ना की गधे घोड़े ऐसा। तो अगर सुपाड़े में इत्ता मजा आ रहा है तो पूरा घोंटने में कितना आएगा। और सुपाड़ा तो बस आप लील ही जायेंगी तो फिर पूरा लण्ड भी अन्दर चला जाएगा…”

संध्या भाभी मजे से सिसक रही थी और उनकी सिसकियों से ज्यादा जिस तरह उनकी कमर पीछे की ओर पुश कर रही थी, उनकी चूत चिपक, फ़ैल रही थी, बता रही थी उन्हें कितना मजा आ रहा था,



लेकिन गुड्डी को बिलकुल मजा नहीं आ रहा था, वो एकदम रिंग साइड सीट पर थी, लेकिन वो सौ कोस दूर भी होती तो मन में उसने जो जादुई शीशा लगा रखा था, उसे मेरी एक एक बात बिना देखे पता चल जाती थी, और जो उस की आदत थी, सब के समाने उसने जोर से हड़काया,

" अरे जरा से क्या होगा, संध्या दी का, बाकी क्या अपनी उस रंडी एलवल वाली के लिए बचा रखा है, अरे मैंने बोल दिया, रीत ने बोल दिया, दूबे भाभी की मुहर लग गयी की जब लौट के उसे साथ ले के आओगे तो उस पे रॉकी को चढ़ाएंगे, तेरा जीजा बनाएंगे, उसकी मोटी गाँठ का मजा एक बार ले लेगी तो जिंदगी भर तेरे गुन जाएगी, भाई हो तो ऐसा, राखी का पैसा माफ़ कर देगी, "

एक तो संध्या भाभी की देह की गर्मी, फिर गुड्डी का हुकुमनामा,

मेरी बात और काम दोनों दूबे भाभी ने पूरी की-

“अरे जो साली ये कहे की लण्ड मोटा है उसे घोंटने में दिक्कत होगी। इसका मतलब वो रंडीपना कर रही है, पैदाइशी छिनाल है मादरचोद। उसकी चूत और गाण्ड दोनों में पूरा ठोंक देना चाहिए और ना माने तो मेरी मुट्ठी है ही। अरे इत्ते बड़े-बड़े बच्चे इसी चूत से निकलते हैं, पूरी दुनियां इसी चूत से निकलती है, ये बोलना चूत की बेइज्जती करना है…”

और ये कहते हुए उन्होंने दो उंगलियां मेरे पीछे डाल दी, और इसका खामियाजा संध्या भाभी को भुगतना पड़ा।

एक न्यूटन नाम के आदमी थे न जिन्होंने एक कानून बनाया था एवेरी एक्शन हैज, वही वाला, तो वही हुआ।

उस झटके से मेरा पूरा सुपाड़ा अब उनकी कसी मस्त चूत में था।



मेरी दो उंगलियां जो भाभी की गाण्ड का हाल चाल ले रही थी, वो भी पूरी अन्दर। गनीमत था की उनकी चूची मैंने कसकर पकड़ रखी थी, वरना इतने तगड़े झटके से वो गिर भी सकती थी। आगे से लण्ड और पीछे से मेरी उंगलियां। संध्या भाभी को अब फागुन का पूरा रस मिलना शुरू हो गया था।

सुपाड़ा घुसते समय दर्द तो उन्हें बहुत हुआ, लेकिन जैसे चंदा भाभी कह रही थी की वो बचपन की चुदक्कड रही होंगी। उन्होंने अपने दांतों से होंठों को काटकर चीख रोकने की भरपूर कोशिश की, लेकिन तब भी दर्द की चीख निकल गई और अब मजे की सिसकियां और हल्के दर्द की आवाज दोनों साथ निकल रही थी।

उनकी दर्द से हालत खराब थी और मेरी मजे से। एकदम मुलायम चूत खूब कसी, जिस तरह से कस कस के मेरे सुपाड़े को खड़े खड़े भींच रही थी, निचोड़ रही थी, दबोच रही थी, साफ़ लगा रहा था, कितनी नदीदी है, कितनी भूखी, और मैं तो उन्हें भर पेट भोजन करा देता, लेकिन छत पर खड़े खड़े सबके सामने एक कौर खिला के ही अभी, मन बस यही कह रहा था की यार जाने के पहले एक बार मन भर, जी भर के संध्या भौजी को चोद लेने का मौका मिल जाता, नयी ब्याहता औरतों पे चढ़ने का मजा ही कुछ और है,



संध्या भौजी को मजा तीन जगह से मिल रहा था, मैं कस कस के एक हाथ से उनकी बड़ी बड़ी चूँची दबा रहा था, दूसरे हाथ की दो उँगलियाँ दो पोर तक उनके पिछवाड़े घुसी, साफ़ था की उनके मरद पिछवाड़ा प्रेमी नहीं थे, ये इलाका अभी कोरा था, और बिल में घुसा मेरा मोटा सुपाड़ा। और पिछवाड़े वाली ऊँगली भी कभी गोल गोल घूमती तो कभी अंदर बाहर होती, आखिर जब मेरे पिछवाड़े थोड़ी देर पहले ही हमला हुआ था तो संध्या भाभी ने पूरी ताकत से उसे चियारा था, अभी तक फट रही है, और सुपाड़े का एक हल्का धक्का भी संध्या भाभी की चीख निकलवा रहा था।



संध्या भाभी तो खुश थी ही, लेकिन उनसे ज्यादा दो लोग और खुश थीं, एक तो गुड्डी, ख़ुशी उसके चेहरे से छलक रही थी , दूसरे चंदा भाभी, रीत की वो जम के रगड़ाई कर रही थीं, लेकिन औरतों के कितनी आंख्ने होती हैं ये उन्हें भी नहीं मालूम होता तो वो अपने चेले का और अपनी ननद का खेल देख रही थीं। और गुरुआइन से ज्यादा चेले के अच्छा करने पे किसे ख़ुशी होगी ,

लेकिन ये वो भी जानती थी और मैं भी की इस खुली छत पे, दिन दहाड़े जहाँ चार और लोग भी हैं। फिल्म का ट्रेलर तो चल सकता था लेकिन पूरी फिल्म होनी मुश्किल थी।



“मेरी तुम्हारी होली…” वो मुश्कुराकर बोली।



लेकिन उनकी बात काटकर मैं बोला-

“होगी भाभी। अभी तो आज और फिर रंगपंचमी के दो दिन पहले ही मैं आ जाऊंगा ना, तो तीन दिन की रंगपंचमी करेंगे। मैं उधार रखने में यकीन नहीं रखता खास तौर पे ऐसी सेक्सी भाभी का…”

और अपनी बात के सपोर्ट में लण्ड का एक धक्का और दिया उनकी चूत में और चूची पूरी ताकत से दबोच ली।

हामी उनकी चूत ने भी भरी मेरे लण्ड को कसकर सिकोड़ के।

गुड्डी थी न, सिर्फ रिंग साइड पे दर्शक ही नहीं रेफरी भी, संध्या भाभी की ओर से बोली,



"दी, आज नगद कल उधार, और उधार प्रेम की कैंची है। काल करे सो आज कर, बस मैं इनको साथ ले नहीं जाउंगी जब तक ये बाकी का,... "

गुड्डी का इशारा काफी था और ये तो, ...और संध्या भाभी ने चख तो लिया ही था,



लेकिन न तो संध्या भाभी बचीं न उनकी रगड़ाई रुकी,

मेरी जगह दूबे भाभी ने ले ली और एक बार फिर साया उठ गया।

मैं दूबे भाभी और संध्या भाभी के बीच सैंडविच बना हुआ था। दूबे भाभी कन्या प्रेमी थी, इसका अंदाज तो मुझे पहले ही चल गया था। दूबे भाभी ने संध्या भाभी की दूसरी चूची पकड़ ली थी और मजे ले रही थी।


मैंने धीमे से अपना लण्ड निकाला साड़ी साया ठीक किया और निकल आया।

क्या रगड़ाई की दूबे भाभी ने संध्या भाभी की, जिस प्रेम गली में पहले मेरी ऊँगली घुसी थी फिर मोटा सुपाड़ा,

वहां अब दूबे भाभी की चार चार मोटी उँगलियाँ, कभी कैंची की तरह फैला देतीं तो कभी हचक के चोद चोद के भाभी की हालत ख़राब करती, बुर तो संध्या भाभी की पहले ही लासा हो रही थी, गप्प से भौजी की उँगलियाँ घुस गयीं,

और थोड़ी देर में संध्या भाभी नीचे और दूबे भाभी ऊपर साया दोनों का कमर तक, दूबे भौजी कस कस के अपनी गर्मायी बुर संध्या भौजी की चूत से रगड़ रही थीं जब तक दोनों लोग झड़ नहीं जाएंगी मैं जानता था था हे ननद भाभी की देह की होली रुकेगी नहीं।

उधर चंदा भाभी और रीत की होली में युद्ध विराम हो चुका था।



जब मैं संध्या भाभी के साथ लगा था तब भी मैं उनकी लड़ाई का नजारा देख रहा था।

रीत से तो कोई जीत नहीं सकता ये बात स्वयं सिद्ध थी। लेकिन चंदा भाभी भी अपने जमाने की लेस्बियन रेसलिंग क्वीन रह चुकी थी। (और हिंदुस्तान में अगर “अल्टीमेट सरेंडर…” टाईप कोई प्रोग्राम हो, जिसमें लड़कियां एक दूसरे से सिर्फ कुश्ती ही नहीं लड़ती बल्की एक दूसरे की ब्रा और पैंटी को खोलकर अलग कर देती हैं और जो जिसकी चूत में जितनी हचक के उंगली करे। उसी प्वाइंट पे जीत हार होती है। आखिरी राउंड में दोनों बिना कपड़ों के ही लड़ती हैं। और अंत में इनाम के तौर पे जितने वाली की कमर में एक डिल्डो लगाया जाता है। जिससे वो हारने वाली को हचक-हचक के चोद सकती है उसकी गाण्ड मार सकती है। तो चंदा भाभी निश्चित फाइनल में पहुँचती)।



कपड़े वपड़े तो रीत और चंदा भाभी की होली में सबसे पहले खेत रहे। पहली बाजी चंदा भाभी के हाथ थी। वो ऊपर थी और अपनी गदरायी बड़ी-बड़ी 36डी चूचियों से रीत के मादक जोबन, जो अब पूरी तरह खुले थे, रगड़ रही थी। रीत के दोनों पैर भी उन्होंने फैला दिए थे। लेकिन रीत भी कम चालाक नहीं थी। उसने अपनी लम्बी टांगों से कैंची की तरह उन्हें नीचे से ही बांध लिया। अब बेचारी चंदा भाभी हिल डुल भी नहीं सकती थी और अब वो ऊपर थी।



जो ढेर सारे रंग मैंने उसके मस्त जोबन पे लगाए थे वो सब अब चंदा भाभी की चूचियों पे छटा बिखेर रहे थे।

उसने अपने दोनों हाथ चंदा भाभी के उभारों की ओर किये तो चंदा भाभी ने दोनों हाथों से उसे पकड़ने की कोशिश की और वहीं वो मात खा गईं। रीत ने एक हाथ से उनके दोनों हाथों को पकड़ लिया और उसका खाली हाथ सीधे चंदा भाभी की जांघों के बीच। पिछली कितनी होलियों का वो बदला ले रही थी जब चंदा भाभी और दूबे भाभी मिलकर होली में उसकी उंगली करती थी। और आज जब मुकाबला बराबर का था तो तो रीत की उंगली चंदा भाभी की बुर में।

लेकिन थोड़ी देर में ही जब रीत रस लेने में लीन थी तो चंदा भाभी ने अपने को अलग कर लिया और फिर।

अगला राउंड शुरू। मुकाबला बराबर का था और दोनों पहलवान एक दूसरे को पकड़े सुस्ता रहे थे।

दोनों जोड़ियां बाकी दुनिया से बेखबर, छत के एक किनारे पे जहाँ वैसे भी अभी हुयी होली का रंग बिखरा था, ना जाने कितनी बाल्टी रंग बिखरा हुआ था, रंग की पुड़िया, पेण्ट की ट्यूब, और उस बहते हुए रंगों के बीच दूबे भाभी और संध्या भाभी की जोड़ी और रीत और चंदा भाभी,



सावन भादों की बारिश में कई बार लगता है झड़ी रुक गयी है, सिर्फ पेड़ों की पत्तियों से, ओसारे से टप टप बूंदे टपकती हैं, लेकिन फिर कहीं से पास के पोखर से, बगल के गाँव की नदी से बादल घड़े भर भर के लाते हैं और एक बार फिर बारिश शुरू हो जाती है, ठीक यही बात होली में होती है, खास तौर से घर में, ननद भौजाई में, कहीं किसी ने छेड़ दिया और फिर से होली,



और देह की होली में

तो रीत और चंदा भाभी रुकी थीं, थकी थीं, लेकिन फिर बीच बीच में, और दूबे भाभी और संध्या भाभी का कन्या रस तो हर बार एक नयी ऊंचाई पे।

पांच दस मिनट का इंटरवल और फिर दुबारा
 
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गुड्डी - मन जिसका तन उसका




छत के दूसरे कोने पे गुड्डी बैठी थी, जिस कमरे में कल मैं और चंदा भाभी, उस की चौखट पे .

गुड्डी भी एक प्लेट में गुझिया लेकर (अब हम सब भूल चुके थे की उसमें भांग पड़ी थी) गपक रही थी-जैसे लोहे के कण बिना बुलाये चुंबक से जा चिपकते हैं मेरी हालत वही थी, गुड्डी के लिए। बड़ौदा से यहाँ आने के लिए तीन बार मैंने ट्रेन बदली, बस किया और फिर टेम्पो में बैठकर,

तो अभी जैसे ही मैं दूबे भाभी और संध्या भाभी की सैंडविच से निकला सीधे गुड्डी को सूंघता हुआ,


और दूबे भाभी और संध्या भाभी की जोड़ी और चंदा भाभी और रीत अपने में इतने मस्त थे की उन्हें फरक नहीं पड़ने वाला था की मैं और गुड्डी कहाँ है, क्या कर रहे है। जहाँ गुड्डी बैठी थी, वहां से छत का वो कोना जहाँ लेडीज रेसलिंग चल रही थी, दिखता तो था, लेकिन मुश्किल से।

मैं गुड्डी के बगल में बैठ गया और उस से चिपक के लिबराते बोलने लगा,

“हे, मुझे भी दे ना…”

पहले तो उसने चिढ़ाया, "नदीदे, मंगते, तेरी माँ बहने जैसे टांग फैला देती हैं पहला मौका पाते ही, वैसे ही तू हाथ फैला देते, ...मुझे भी दो "

फिर प्लेट के बची हुयी एकमात्र फूली फूली बड़ी सी गुझिया एक बार में गपक गयी, जैसे ठूंस ठूंस के मुंह में घुसाया हो, गाल एकदम फूले, फिर बड़ी रोमांटिक अदा में बोली

“ले लो तुम्हारे लिए तो सब कुछ हाजिर है…” उसने प्लेट बढ़ाई।

प्लेट एकदम खाली थी,



लेकिन मैंने उसका सिर पकड़कर पहले तो उसके होंठों को चूमा और फिर मुँह में जीभ डालकर उसकी खायी कुचली मुख रस में घुली गुझिया लेकर खा गया-

“ये ज्यादा रसीली नशीली है…”

मेरा एक हाथ अपने आप गुड्डी के खुले उरोजों की ओर चला गया। इन्हीं ने तो मुझे जवान होने का अहसास दिलाया था शर्म गायब की थी। वो मेरी मुट्ठी में थे।

गुड्डी को फर्क नहीं पड़ रहा था, चंदा भाभी ने उसकी फ्राक के ऊपरी हिस्से को तो चीथड़े चीथड़े कर दिया था और फ्रंट ओपन ब्रा को खोल के पहले तो कबूतरों को आजाद किया फिर रंगड़ा मसला, रंग, पेण्ट संब लगाया, लेकिन असली बात ये थी की मुझे फर्क नहीं पड़ रहा था।

खुली छत पर जहाँ चार लोग और भी थे मैं खुल के गुड्डी का जोबन रस ले रहा था।



मुझे चंदा भाभी की कल रात की बात याद आयी,

" कल तुझे और तेरी जाने आलम को यहीं कपडे फाड़ के नंगे नचाउंगी न सबके सामने तो तेरी झिझक निकल जायेगी, और तू भी जब सबके सामने उसको चूमेगा, मसलेगा, और उसके भी कपडे उतरेंगे, तो,... "

बस भाभी की बात याद आते ही मैंने गुड्डी को चूम लिया, सीधे गाल पे, और उसे खींच के अपनी गोद में बिठाने की कोशिश की, लेकिन वह मछली की तरह फिसल गयी, मैं उदास होने की सोचूं उसके पहले उसे पता चल जाता था,

खड़े खड़े प्यार से बोली,

" अरे आ रही हूँ जानू, एक तो तेरे ऐसा चोर मुंह में से मेरी गुझिया लूट ले गया, दूसरे बस,..."

गुझिया का स्टॉक सामने टेबल पर था और बियर की बॉटल्स का चंदा भाभी के कमरे में, प्लेट भर के गुझिया ( डबल डोज भांग वाली तो सभी थीं ) और दो बॉटल बियर की और लौटी तो धम्म से सीधे मेरी गोद में बैठ गयी। और दो बार एडजस्ट होने की ऐसी कोशिश की , कि गुड्डी के छोटे छोटे चूतड़ों से मेरे जंगबहादुर अच्छी तरह रगड़ गए और फनफनाने लगे। लेकिन जैसे मैंने गुझिया पर हाथ मारने कि कोशिश कि, जोर से एक पड़ी मेरे हाथ पे, और डांट भी,


' बिना तेरे हाथ लगाए काम नहीं होगा, देती हूँ न, लेकिन तुझे तो अभी भी हाथ वाली आदत है बचपन की "

मैं समझ रहा था वो किस ' हाथ वाली आदत " कि बात कर रही थी।

एक गुझिया गुड्डी ने उठायी जैसा मुझे पूरी उम्मीद थी आधा उसने खुद खा ली और आधी मेरी ओर बढ़ाई, मैंने खूब बड़ा सा मुंह खोला और

वो वाला भी गुड्डी के मुंह में।



मेरे हाथ में गुझिया नहीं आयी लेकिन और ज्यादा स्वादिष्ट चीजें आ गयी,

फ्रंट ओपन ब्रा खुलने में कितना टाइम लगता है, चुटपुट चुटपुट, और आज पहली बार दिन दहाड़े, दोनों कच्चे टिकोरे, खुली छत पे, मेरी मुट्ठी में, न रंग का बहाना, न टॉप के ऊपर से छूना सहलाना, सीधे चमड़ी से चमड़ी, मेरी हथेली कि तो आज बनारस में किस्मत खुल गयी थी, जोबन का रस तो आज मैंने सबका लूटा था,...


गूंजा ऐसी जस्ट टीन से लेकर दूबे भाभी ऐसी पक्की खेली खायी असली एम् आई एल ऍफ़ तक, और खुल के लूटा था लेकिन कभी कपड़ों कि छाँव में तो कभी रंग के बहाने

पर जिसके बारे में मैं सोते जागते सोचता था, वो मेरी गोद में दिन में खुली छत पे होगी, और उसके खुले उभार मेरी मुट्ठी में होंगे और ऐसा भी नहीं छत पे हम दोनों अकेले, लेकिन कुछ देर रगड़ने मसलने के बाद गुड्डी मेरी गोद से उठ गयी, और मेरा सर खींच के अपनी गोद में ले लिया। मैं अधलेटा सा उस सारंग नयनी, बनारस वाली कि गोद में सर रखे, उसकी बड़ी बड़ी आँखों को देखता, उसमे तिर रहे अपने सपनो को देखता,

कुछ तो है इस लड़की कि आँखों में एक बार आँख मिलने पर बोलती तो बंद होती ही है, सोचना भी बंद हो जाता है,


गुड्डी ने कस के एक हाथ से मेरे दोनों गालों को दबाया, चिरैया कि चोंच ऐसा मेरा मुंह खुल गया,

और जो गुझिया बड़े देर से वो चुभला रही थी, मुंह में रखे कूच रही थी, टुकड़े टुकड़े हो कर, गुझिया कम गुड्डी का मुख रस ज्यादा, उसमें लिसड़ा लिथड़ा, खूब गीला, बड़ी देर तक, गुड्डी अपने मुंह से उसके मुंह में, और फिर अंत में एक जबरदस्त चुम्मा,


" मुझे मालूम है तुझे क्या क्या नहीं पसंद है, सब ऐसे ही खाना पडेगा, मेरे सामने छिनरपन नहीं चलेगा, "

अपने होंठ उठा के वो खंजन नयन बोली,


मैं जान रहा था उसका उसका इशारा किधर है, लेकिन मैंने जिंदगी से वादा किया था, ये लड़की मिल जाए एक बार, एक बार के लिए नहीं, हरदम के लिए, फिर तो चलेगी इसकी, इसकी १०० बात मंजूर। लेकिन आँखे पैदायशी लालची, उसकी फ्रंट ओपन ब्रा अभी भी ओपन थी और आँखे बेशर्म सीधे वहीँ



जितनी मेरी आँखे बेशरम उतनी गुड्डी की उँगलियाँ,... शोख,... शरारती


वो जानबूझ के बिच्छी की तरह उन कातिल उभारों पर डोल रही थीं, कभी बस जुबना को और उभार देतीं तो कभी टनटनाये निपल को अंगूठे और ऊँगली के बीच पकड़ के पिंच कर देतीं,

जितने गुड्डी के निपल टनटना रहे थे उसने मेरे जंगबहादुर फनफना रहे थे, और गुड्डी उस बेचारे की बेसबरी देख के मुस्करा रही थी, फिर खुद झुक के वो निपल एकदम मेरे होंठों के पास, लेकिन जैसे मैंने सर ऊपर किया, उभार और दूर,

गुड्डी तड़पाती तो थी लेकिन इतना भी नहीं, दो चार बार के बाद, जैसे कोई फलों से लदी डाली खुद झुके, वो झुकी, निप्स उसने रगड़ा मेरे होंठों पे और जैसे ही मेरे होंठ खुले, वो अंदर

चुसूर चुसूर मैं मस्त हो कर चूस रहा था और अब दूसरा जोबन मेरे हाथ में,

और गुड्डी का एक हाथ मेरे सर को प्यार से सहला रहा था, और उँगलियाँ जैसे मेरे उलझे बालों को सुलझा रही हों, उनमे कंघी कर रही हो, मेरी आँखे सजनी की आँखों में डूबी, मेरे मुंह को तो उसने अपने उभार से बंद कर रखा था, लेकिन टीनेजर के होंठ तो खाली थे, वो बोली,

" मैं कह रही थी न संध्या दी बहुत गर्मायी है, अच्छा ट्रेलर दिखया तूने, लेकिन यहाँ से आज चलने के पहले उनका काम कर के जाना,"

बीच बीच में गुड्डी बियर की भी घूँट लगाती और असर अच्छा खासा हो गया था, बोली वो,...

" हचक के पेलना अपनी संध्या भाभी को, उन्हें भी पता चले लौंड़ा होता क्या है "



और गुड्डी ने राज खोला, साल भर मुश्किल से हुआ था, संध्या भाभी शादी के बाद बिदा हो के और अगले दिन सुबह, फोन पर सब भौजाइयां मोहल्ले की, और गुड्डी ऐसी जवान होती लड़कियां भी कान पारे, किसी ने स्पीकर फोन भी ऑन कर दिया था, सवाल सब वही , कितनी बार, कितना मोटा, कितनी देर तक, और संध्या भाभी विस्तार से, वो सब भाभियाँ भी जिनका मर्द पहले दिन ही बाहर पानी निकाल चूका हो या उन्ह कर के सो गया हो वो सब भी, खूब बढ़ा चढ़ा के, तो संध्या भाभी ने बोला

"बोलने लायक नहीं हैं बहुत रगड़ी गयी हैं, सुबह दो ननदें समझिये टांग के ले आयीं उन्हें। :

चंदा भाभी ने चिढ़ाया भी, बोलने लायक नहीं मतलब, क्या पहले दिन ही नन्दोई जी ने चमचम भी चुसवा दिया, अरे था कितना बड़ा,

और संध्या भाभी बड़े गर्व से बोलीं, अरे बहुत बड़ा है, नापा तो नहीं लेकिन ६ इंच तो होगा ही, या आसपास,

गुड्डी उस समय दसवें में थी और छह सात महीने पहले उसकी मेरे जंगबहादुर से दोस्ती हो चुकी थी, ज्यादा नहीं लेकिन हाथ उनसे मिला चुकी थी। उसे मालूम था इतना तो उसके यार का सोते समय, और जागने पर बित्ते से बड़ा ही,

और अबकी जब आयीं तब से अपने पति के औजार का गुणगान,

" फाड़ के रख देना, अपनी संध्या भौजी की चूत " गुड्डी हँसते बोली।

"एकदम, " मैं बोला, गुड्डी के उभार मेरे मुंह से बाहर हो गए थे लेकिन उसकी बात का जवाब भी देना जरूरी था, गुड्डी जो बियर की बॉटल पी रही थी उसी से टप टप अपने उभारों से गिराते हुए मेरे होंठों के बीच,

और मैं होंठों की ओक बना के पी रहा था, बियर में अचानक अल्कोहल कॉन्टेंट ४० % से बढ़कर ८० % हो गया था, जोबन का नशा,

" तेरी उँगलियों ने ही उनकी हालत खराब कर दी थी, जब पूरा मोटू घुसेगा तो पता चलेगा, " हँसते हुए गुड्डी बोली

और मेरी उँगलियाँ लेके सीधे मुंह में,


और मेरी चमकी दो उँगलियाँ तो संध्या भाभी की प्रेम गली की सैर करके आयी थीं, लेकिन दो ने पिछवाड़े भी डुबकी लगाई थी, मैंने ऊँगली हटाने की कोशिश की, और बोला भी, ..अरे ये ऊँगली संध्या भाभी के

मेरी बात काट के वो हड़काते हुए बोली,

" ऊँगली किसकी है, ...मेरी मर्जी, मुझे मालूम है "




मन जिसका तन उसका,



मैं थोड़ा ज्यादा ही रोमांटिक होने लगा, एक गुझिया और खाने को मिली, उसी तरह से पहले गुड्डी के मुँह में फिर उसके मुख रस से भीगी



बात मैंने कुछ सात जन्मों टाइप करने की कोशिश की तो जोर से डांट पड़ गयी,

" सुन यार अब सात जन्म में तो जो होना था होगा लेकिन आठवें जन्म में मैं पक्का लड़का बनूँगी और तुम लड़की, ...और तेरी झांट आने से पहले तेरी चूत का भोंसड़ा न बना दिया तो कहना, और सिर्फ तेरी ही ऐसी की ऐसी की तैसी नहीं करुँगी, तेरी माँ, बहन, सहेलियां सब की, पेलूँगी पहले पूछूँगी बाद में, ये नहीं की तेरी तरह आधे टाइम सिर्फ सोचने में, "



लेकिन तब तक हम दोनों का ध्यान रीत की सिसकियों ने खींच लिया, रीत तेज थी, स्मार्ट थी, लेकिन चंदा भाभी भी पुरानी खिलाड़ी

दोनों 69 की पोज में और चंदा भाभी ने आराम से रीत की गुलाबी फांको को फैलाया और कस के अपनी जीभ पेल दी,

गुड्डी, मैंने कहा न, कहने से ज्यादा करने में विश्वास करती थी और आज इस होली की मस्ती के बाद तो जरा भी झिझक नहीं बची थी। वो बात तो मुंह से कर रही थी लेकिन उसकी नरम हथेलियां जंगबहादुर की मालिश कर रही थीं, उनको तो गुड्डी ने कब का बाहर कर दिया, और वो टनटनाये और अब हाथ की जगह मुंह ने लिया,



पहले दो चार चुम्मी, फिर चुसम चुसाईं, सिर्फ सुपाड़े की, कभी जीभ की टिप पेशाब का छेद कुरेदती तो कभी गप्प से सब अंदर

लेकिन गुड्डी स्मार्ट जैसे ही रीत झड़ी,

गुड्डी ने मेरे औजार को कपड़ों के अंदर और हम दोनों अच्छे बच्चों की तरह प्लेट से गुझिया खा रहे थे



रीत और चंदा भाभी हम दोनों को देख रही थीं, मुस्करा रही थीं।
 
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फागुन के दिन चार भाग 16 -
गुड्डी और रीत -होली की मस्ती

१,९६, ८१४



“अरे सिर्फ इसकी क्यों? इसकी दोनों सहेलियों के भी तो…” चंदा भाभी ने रीत और गुड्डी की ओर इशारा करते हुए कहा- “अब कहाँ कुँवारी बचने वाली ये दोनों…” उनकी निगाह मेरी ओर मुश्कुराती हुई टिकी थी।

“कल का सूरज निकलने के पहले दोनों चुद जानी चाहिए…” दूबे भाभी ने फरमान जारी किया, और वो भी मेरी ओर देख रही थी।

गुड्डी और रीत दोनों शैतान, एक साथ बोली- “मंजूर लेकिन करने वाले से पूछिए…”

उसी जोश में मैं भी बोला- “एकदम मंजूर…”

थोड़ी देर बाद मैंने गुड्डी को ड्रिंक्स इंटरवल में भेजा ड्रिंक्स लेकर, बियर, ठंडाई और चारों ने जमकर पिया। लेकिन वहीं एक गलती हो गई। दूबे भाभी और चंदा भाभी ने पहले कुछ आपस में बातचीत की फिर गुड्डी और रीत से। दोनों एक साथ मेरे पास आकर खड़ी हो गईं।

मैं- “क्यों क्या हुआ?”

गुड्डी मुश्कुराते हुए बोली- “कुछ खास नहीं…” और उसने और रीत ने एक साथ मेरा टाप पकड़ लिया और एक झटके में ऊपर खींच दिया।

मैं चीखता रहा मना करता रहा लेकिन,मैं पूरी तरह टॉपलेस, सिर्फ छोटे से गूंजा के बारमूडा में

वो दोनों, रीत और गुड्डी तो कम से कम ब्रा में थीं, और वो क्यों दूबे भाभी, चंदा भाभी और संध्या भाभी भी ब्रा में सिर्फ अच्छी खासी रंगी पूरी और सबकी ब्रा में हाथ डाल के मैं जोबन सुख भी ले चुका था और कबूतरों को अच्छी तरह रंग भी चुका था,

पर मैं तो पूरी तरह टॉपलेस

तभी गुड्डी बोली- “जाने दो यार। साल्ला बहुत चीख रहा है…”


रीत बोली- “अरे यार अभी खोलने में इत्ता नखड़ा कर रहा है तो डलवाने में कित्ता करेगा? लेकिन तू कहती है तो छोड़ देती हूँ। आखीरकार, तेरा माल है…”


गुड्डी ने हँसकर जवाब दिया- “अरे नहीं यार, माल तो तुम्हारा भी है, बड़ी दी हो, पक्की सहेली, पहले तुम्ही नंबर लगा लेना लेकिन देख ना कित्ता हल्ला कर रहा है जैसे हम लोगों ने उसकी बहन की, …”

“अरे पूरा क्यों नहीं बोलती की जैसे हम लोगों ने उसकी बहन चोद दी है। लेकिन उसे तो यही चोदेगा। आखीरकार, घर का माल है उसका हक है। फिर वो नहीं चोदेगा तो कहीं न कहीं तो चुदवायेगी ही वो, तो फिर ये मेरा यार ही क्यों नहीं? चल तू बोलती है तो छोड़ देते हैं, ये भी क्या याद करेगा साल्ला की बनारस में ससुराल में किन दिलदार सालियों से पाला पड़ा था…” रीत बोली

और उन दोनों ने छोड़ दिया मेरा टाप, लेकिन ऐसे की मेरे टॉपलेस होने में कोई कसर थी, टॉप ऊपर मेरे सर में फंसा था और सीना खुला हुआ।



मेरा नहीं गुंजा का जो मैंने पहन रखा था, मेरे कपड़े तो इन दोनों ने हड़प कर लिए थे। मेरे गले तक अटका हुआ था। नुकसान ये हुआ की टाप अब मेरे चेहरे पे फँसा हुवा था और मैं कुछ देख नहीं पा रहा था। फायदा उन दोनों हिरणियों को हुआ, मेरे ऊपर कम्प्लीट कब्ज़ा।



“चल आगे से तू पीछे से मैं…” ये रीत की शहद सी आवाज थी जो मैं सोते हुए भी पहचान सकता था।


“रीत दीदी। अभी आगे का क्या फायदा? हाँ शाम के बाद बात अलग है…” मुँह बनाते हुए गुड्डी बोली।



“अरे तू भी ना,यहाँ सब उसी के लिए तड़प रहे हैं। पकड़ तो सकती है ना…” रीत ने उसे हड़काते हुए उकसाया।



और उस दुष्ट ने वही।


वो भी ऊपर से नहीं सीधे बर्मुडा के अन्दर हाथ डालकर। बारमुडा पहले से तना था, दो दो किशोरियां, उनकी चुलबुली बातें, छेड़छाड़ और शैतान उँगलियाँ, खड़ा तो होना ही था

रीत भी कोई कम नहीं थी।

उसके दोनों हाथ मेरे टिट्स पे थे और जैसे कोई किसी लड़की के चूचुक सहलाए दबाये बस उसी तरह, और साथ में उसके आलमोस्ट खुले मस्त उभार, जिनका दीदार भी मैं कर चुका था और जिसके बारे में मैं श्योर था की सिर्फ सोच कर ही जिसके ऊपर वियाग्रा की फुल डोज भी असर ना करे, उसका भी लिंग खड़ा हो जाए। मेरे पीठ के पीछे से, कभी हल्के से दबा देते, कभी रगड़ देते और आगे से गुड्डी की चूचियां, जो अभी भी पूरी तरह फ्राक से बाहर थीं।



आप सोच सकते हैं फागुन का मौसम हो और दो मस्त रीत और गुड्डी की तरह की किशोरियां।

आगे-पीछे से अपने रंग लगे, गदराये गोरे-गोरे किशोर जोबन।

जो चूचियां उठान कहते हैं न बस उस तरहकर रगड़ रही हों तो क्या हालत होगी? बस वही हालत मेरी थी। बल्की उससे भी बदतर। क्योंकि गुड्डी के कोमल, मस्त लेकिन जबर्दस्त पकड़ वाले हाथ मेरे लण्ड पे थे। कभी वो शैतान अपने अंगूठे से उसके बेस पे रगड़ देती तो कभी सुपाड़े पे और साथ में रंग लगाने के साथ-साथ उसे हल्के-हल्के मुठिया तो वो रही ही थी।



रीत की आवाज मेरे कान के पास गूंजी-

“हे पीठ पे तो तुझे रंग लगाना था ना। देख कित्ती सारी जगह बच गई है…”



गुड्डी ने अदा से जवाब दिया- “मेरी अच्छी दीदी, आप लगा दो न देखो मेरे हाथ अभी कित्ते जरूरी काम में बिजी हैं। प्लीज…”


“बिजी की बच्ची तेरी सारी ननदों की गाण्ड मारूं…” रीत बोली और पेंट लगे उसके हाथ मेरी पीठ पे बिजी हो गए।

“अरे दीदी, उसकी तो मारेंगे ही…”

खिलखिला के गुड्डी बोली और कसकर मेरे लण्ड को दबा दिया और कहा-

“जब मैं आऊँगी तो इन्होंने तो दूबे भाभी से वादा किया है की उसे, अपनी बहना को लेकर आयेंगे न रंग पंचमी में और कोई दिक्कत होगी तो इन्हीं से मरवा लेंगे। क्यों मारोगे न? आखीरकार, रीत का कहना तो तुम टालते नहीं…”


मैं क्या बोलता। एक से पार पाना मुश्किल था लेकिन यहाँ तो दोनों, बनारस के रस में रसी पगी, रसीली। लेकिन तभी मेरा बल्ब जला।

मैं हँसकर बोला- “मैं एक तुम दो-दो, लेकिन चलो। सालियों से क्या बहस करना। हाँ मेरी भी एक शर्त है। तुम दोनों लगाओ तो सही, लेकिन हाथ का इश्तेमाल नहीं करोगी…”

“तुम बहुत नखड़ा दिखाते हो। वो आएगी ना तेरी बहना। देखना एक साथ तीन-तीन चढ़ेंगे उसपे, और दो इंतेजार करेंगे, तो भी वो बुरा नहीं मानेगी और तुम दो-दो पे ही…” गुड्डी ने मुँह बनाया।

लेकिन रीत चतुर चालाक थी, बड़े भोलेपन से बोली-

“अरे चल मान जाते हैं यार घर आये मेहमान से। वरना अपने मायके जाकर रोयेंगे। चल। वैसे भी हमारे हाथों को बहुत से और भी काम हैं…ठीक है हम दोनों हाथ का इस्तेमाल नहीं करेंगे और भी बहुत हथियार हैं हमारे पास ”
मैं भूल गया था रीत के मगज अस्त्र की ताकत


गुड्डी भी समझ गई।
:applause::applause:
वाह...वाह...
एक नए आवरण.. एक नई साज सज्जा.. एक नए कलेवर के साथ..
काफी कुछ परिमार्जित किया है इस कहानी में...
इतनी बड़ी स्टोरी में सारे प्रंसगों से तालमेल बनाते हुए कुछ नया जोड़ना ..
और पात्रों को उचित स्थान देना .. समय..वय.. और कहानी के पिछले प्रसंग...
बहुत कठिन कार्य होता है...
और आपने इस कार्य को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया है...
आपकी इस मेहनत और श्रमसाध्य योगदान को शत शत नमन...
 
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