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Erotica फागुन के दिन चार

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देवर भौजाई का फागुन




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गुड्डी मुझे देख के खुश हो रही थी, संध्या भाभी की हालत देख कर वो समझ गयी मेरी उँगलियाँ अंदर क्या ग़दर मचा रही थीं।

मैंने थोड़ी देर तक तो खूंटा गाण्ड की दरार पे रगड़ा और फिर थोड़ा सा संध्या भाभी को झुकाकर कहा- “पेल दूं भाभी। आपको अपने आप पता चल जाएगा की सैयां के संग रजैया में ज्यादा मजा आया या देवर के संग होली में?”





मुड़कर जवाब उनके होंठों ने दिया। बिना बोले सिर्फ मेरे होंटों पे एक जबर्दस्त किस्सी लेकर और फिर बोल भी दिया-

“फागुन तो देवर का होता है…”

चंदा भाभी रीत को जम के रगड़ रही थीं लेकिन मेरा और संध्या भाभी का खेल देख रही थीं, जैसे कोई पहलवान गुरु अपने चेले को पहली कुश्ती लड़ते देख रहा हो, वहीँ से वो बोलीं



" और देवर भौजाई का फागुन साल भर चलता है, खाली महीने भर का नहीं"

और मैं देवर का हक पूरी तरह अदा कर रहा था।

लण्ड का बेस तो दूबे भाभी के हाथ था, और सुपाड़ा संध्या भाभी की चूत के मुहाने पे रगड़ खा रहा था। दूबे भाभी ने पीछे से ऐसे धक्का दिया की जैसे वही चोद रही हों। लेकिन फायदा मेरा हुआ, हल्का सा सुपाड़ा भाभी की चूत में। बस इतना काफी था उन्हें पागल करने के लिए।

चूत की सारी नशें तो शुरू के हिस्से में ही रहती हैं। मैंने हल्के से कमर गोल-गोल घुमानी शुरू की और सुपाड़ा चूत की दीवाल से रगड़ने लगा।

मैंने चारों ओर देखा और कान में बोला- “भाभी। आप कह रही थी ना की गधे घोड़े ऐसा। तो अगर सुपाड़े में इत्ता मजा आ रहा है तो पूरा घोंटने में कितना आएगा। और सुपाड़ा तो बस आप लील ही जायेंगी तो फिर पूरा लण्ड भी अन्दर चला जाएगा…”

संध्या भाभी मजे से सिसक रही थी और उनकी सिसकियों से ज्यादा जिस तरह उनकी कमर पीछे की ओर पुश कर रही थी, उनकी चूत चिपक, फ़ैल रही थी, बता रही थी उन्हें कितना मजा आ रहा था,



लेकिन गुड्डी को बिलकुल मजा नहीं आ रहा था, वो एकदम रिंग साइड सीट पर थी, लेकिन वो सौ कोस दूर भी होती तो मन में उसने जो जादुई शीशा लगा रखा था, उसे मेरी एक एक बात बिना देखे पता चल जाती थी, और जो उस की आदत थी, सब के समाने उसने जोर से हड़काया,

" अरे जरा से क्या होगा, संध्या दी का, बाकी क्या अपनी उस रंडी एलवल वाली के लिए बचा रखा है, अरे मैंने बोल दिया, रीत ने बोल दिया, दूबे भाभी की मुहर लग गयी की जब लौट के उसे साथ ले के आओगे तो उस पे रॉकी को चढ़ाएंगे, तेरा जीजा बनाएंगे, उसकी मोटी गाँठ का मजा एक बार ले लेगी तो जिंदगी भर तेरे गुन जाएगी, भाई हो तो ऐसा, राखी का पैसा माफ़ कर देगी, "

एक तो संध्या भाभी की देह की गर्मी, फिर गुड्डी का हुकुमनामा,

मेरी बात और काम दोनों दूबे भाभी ने पूरी की-

“अरे जो साली ये कहे की लण्ड मोटा है उसे घोंटने में दिक्कत होगी। इसका मतलब वो रंडीपना कर रही है, पैदाइशी छिनाल है मादरचोद। उसकी चूत और गाण्ड दोनों में पूरा ठोंक देना चाहिए और ना माने तो मेरी मुट्ठी है ही। अरे इत्ते बड़े-बड़े बच्चे इसी चूत से निकलते हैं, पूरी दुनियां इसी चूत से निकलती है, ये बोलना चूत की बेइज्जती करना है…”

और ये कहते हुए उन्होंने दो उंगलियां मेरे पीछे डाल दी, और इसका खामियाजा संध्या भाभी को भुगतना पड़ा।

एक न्यूटन नाम के आदमी थे न जिन्होंने एक कानून बनाया था एवेरी एक्शन हैज, वही वाला, तो वही हुआ।

उस झटके से मेरा पूरा सुपाड़ा अब उनकी कसी मस्त चूत में था।



मेरी दो उंगलियां जो भाभी की गाण्ड का हाल चाल ले रही थी, वो भी पूरी अन्दर। गनीमत था की उनकी चूची मैंने कसकर पकड़ रखी थी, वरना इतने तगड़े झटके से वो गिर भी सकती थी। आगे से लण्ड और पीछे से मेरी उंगलियां। संध्या भाभी को अब फागुन का पूरा रस मिलना शुरू हो गया था।

सुपाड़ा घुसते समय दर्द तो उन्हें बहुत हुआ, लेकिन जैसे चंदा भाभी कह रही थी की वो बचपन की चुदक्कड रही होंगी। उन्होंने अपने दांतों से होंठों को काटकर चीख रोकने की भरपूर कोशिश की, लेकिन तब भी दर्द की चीख निकल गई और अब मजे की सिसकियां और हल्के दर्द की आवाज दोनों साथ निकल रही थी।

उनकी दर्द से हालत खराब थी और मेरी मजे से। एकदम मुलायम चूत खूब कसी, जिस तरह से कस कस के मेरे सुपाड़े को खड़े खड़े भींच रही थी, निचोड़ रही थी, दबोच रही थी, साफ़ लगा रहा था, कितनी नदीदी है, कितनी भूखी, और मैं तो उन्हें भर पेट भोजन करा देता, लेकिन छत पर खड़े खड़े सबके सामने एक कौर खिला के ही अभी, मन बस यही कह रहा था की यार जाने के पहले एक बार मन भर, जी भर के संध्या भौजी को चोद लेने का मौका मिल जाता, नयी ब्याहता औरतों पे चढ़ने का मजा ही कुछ और है,



संध्या भौजी को मजा तीन जगह से मिल रहा था, मैं कस कस के एक हाथ से उनकी बड़ी बड़ी चूँची दबा रहा था, दूसरे हाथ की दो उँगलियाँ दो पोर तक उनके पिछवाड़े घुसी, साफ़ था की उनके मरद पिछवाड़ा प्रेमी नहीं थे, ये इलाका अभी कोरा था, और बिल में घुसा मेरा मोटा सुपाड़ा। और पिछवाड़े वाली ऊँगली भी कभी गोल गोल घूमती तो कभी अंदर बाहर होती, आखिर जब मेरे पिछवाड़े थोड़ी देर पहले ही हमला हुआ था तो संध्या भाभी ने पूरी ताकत से उसे चियारा था, अभी तक फट रही है, और सुपाड़े का एक हल्का धक्का भी संध्या भाभी की चीख निकलवा रहा था।



संध्या भाभी तो खुश थी ही, लेकिन उनसे ज्यादा दो लोग और खुश थीं, एक तो गुड्डी, ख़ुशी उसके चेहरे से छलक रही थी , दूसरे चंदा भाभी, रीत की वो जम के रगड़ाई कर रही थीं, लेकिन औरतों के कितनी आंख्ने होती हैं ये उन्हें भी नहीं मालूम होता तो वो अपने चेले का और अपनी ननद का खेल देख रही थीं। और गुरुआइन से ज्यादा चेले के अच्छा करने पे किसे ख़ुशी होगी ,

लेकिन ये वो भी जानती थी और मैं भी की इस खुली छत पे, दिन दहाड़े जहाँ चार और लोग भी हैं। फिल्म का ट्रेलर तो चल सकता था लेकिन पूरी फिल्म होनी मुश्किल थी।



“मेरी तुम्हारी होली…” वो मुश्कुराकर बोली।



लेकिन उनकी बात काटकर मैं बोला-


“होगी भाभी। अभी तो आज और फिर रंगपंचमी के दो दिन पहले ही मैं आ जाऊंगा ना, तो तीन दिन की रंगपंचमी करेंगे। मैं उधार रखने में यकीन नहीं रखता खास तौर पे ऐसी सेक्सी भाभी का…”

और अपनी बात के सपोर्ट में लण्ड का एक धक्का और दिया उनकी चूत में और चूची पूरी ताकत से दबोच ली।

हामी उनकी चूत ने भी भरी मेरे लण्ड को कसकर सिकोड़ के।

गुड्डी थी न, सिर्फ रिंग साइड पे दर्शक ही नहीं रेफरी भी, संध्या भाभी की ओर से बोली,



"दी, आज नगद कल उधार, और उधार प्रेम की कैंची है। काल करे सो आज कर, बस मैं इनको साथ ले नहीं जाउंगी जब तक ये बाकी का,... "

गुड्डी का इशारा काफी था और ये तो, ...और संध्या भाभी ने चख तो लिया ही था,



लेकिन न तो संध्या भाभी बचीं न उनकी रगड़ाई रुकी,

मेरी जगह दूबे भाभी ने ले ली और एक बार फिर साया उठ गया।

मैं दूबे भाभी और संध्या भाभी के बीच सैंडविच बना हुआ था। दूबे भाभी कन्या प्रेमी थी, इसका अंदाज तो मुझे पहले ही चल गया था। दूबे भाभी ने संध्या भाभी की दूसरी चूची पकड़ ली थी और मजे ले रही थी।


मैंने धीमे से अपना लण्ड निकाला साड़ी साया ठीक किया और निकल आया।

क्या रगड़ाई की दूबे भाभी ने संध्या भाभी की, जिस प्रेम गली में पहले मेरी ऊँगली घुसी थी फिर मोटा सुपाड़ा,

वहां अब दूबे भाभी की चार चार मोटी उँगलियाँ, कभी कैंची की तरह फैला देतीं तो कभी हचक के चोद चोद के भाभी की हालत ख़राब करती, बुर तो संध्या भाभी की पहले ही लासा हो रही थी, गप्प से भौजी की उँगलियाँ घुस गयीं,

और थोड़ी देर में संध्या भाभी नीचे और दूबे भाभी ऊपर साया दोनों का कमर तक, दूबे भौजी कस कस के अपनी गर्मायी बुर संध्या भौजी की चूत से रगड़ रही थीं जब तक दोनों लोग झड़ नहीं जाएंगी मैं जानता था था हे ननद भाभी की देह की होली रुकेगी नहीं।

उधर चंदा भाभी और रीत की होली में युद्ध विराम हो चुका था।



जब मैं संध्या भाभी के साथ लगा था तब भी मैं उनकी लड़ाई का नजारा देख रहा था।

रीत से तो कोई जीत नहीं सकता ये बात स्वयं सिद्ध थी। लेकिन चंदा भाभी भी अपने जमाने की लेस्बियन रेसलिंग क्वीन रह चुकी थी। (और हिंदुस्तान में अगर “अल्टीमेट सरेंडर…” टाईप कोई प्रोग्राम हो, जिसमें लड़कियां एक दूसरे से सिर्फ कुश्ती ही नहीं लड़ती बल्की एक दूसरे की ब्रा और पैंटी को खोलकर अलग कर देती हैं और जो जिसकी चूत में जितनी हचक के उंगली करे। उसी प्वाइंट पे जीत हार होती है। आखिरी राउंड में दोनों बिना कपड़ों के ही लड़ती हैं। और अंत में इनाम के तौर पे जितने वाली की कमर में एक डिल्डो लगाया जाता है। जिससे वो हारने वाली को हचक-हचक के चोद सकती है उसकी गाण्ड मार सकती है। तो चंदा भाभी निश्चित फाइनल में पहुँचती)।



कपड़े वपड़े तो रीत और चंदा भाभी की होली में सबसे पहले खेत रहे। पहली बाजी चंदा भाभी के हाथ थी। वो ऊपर थी और अपनी गदरायी बड़ी-बड़ी 36डी चूचियों से रीत के मादक जोबन, जो अब पूरी तरह खुले थे, रगड़ रही थी। रीत के दोनों पैर भी उन्होंने फैला दिए थे। लेकिन रीत भी कम चालाक नहीं थी। उसने अपनी लम्बी टांगों से कैंची की तरह उन्हें नीचे से ही बांध लिया। अब बेचारी चंदा भाभी हिल डुल भी नहीं सकती थी और अब वो ऊपर थी।



जो ढेर सारे रंग मैंने उसके मस्त जोबन पे लगाए थे वो सब अब चंदा भाभी की चूचियों पे छटा बिखेर रहे थे।

उसने अपने दोनों हाथ चंदा भाभी के उभारों की ओर किये तो चंदा भाभी ने दोनों हाथों से उसे पकड़ने की कोशिश की और वहीं वो मात खा गईं। रीत ने एक हाथ से उनके दोनों हाथों को पकड़ लिया और उसका खाली हाथ सीधे चंदा भाभी की जांघों के बीच। पिछली कितनी होलियों का वो बदला ले रही थी जब चंदा भाभी और दूबे भाभी मिलकर होली में उसकी उंगली करती थी। और आज जब मुकाबला बराबर का था तो तो रीत की उंगली चंदा भाभी की बुर में।

लेकिन थोड़ी देर में ही जब रीत रस लेने में लीन थी तो चंदा भाभी ने अपने को अलग कर लिया और फिर।

अगला राउंड शुरू। मुकाबला बराबर का था और दोनों पहलवान एक दूसरे को पकड़े सुस्ता रहे थे।

दोनों जोड़ियां बाकी दुनिया से बेखबर, छत के एक किनारे पे जहाँ वैसे भी अभी हुयी होली का रंग बिखरा था, ना जाने कितनी बाल्टी रंग बिखरा हुआ था, रंग की पुड़िया, पेण्ट की ट्यूब, और उस बहते हुए रंगों के बीच दूबे भाभी और संध्या भाभी की जोड़ी और रीत और चंदा भाभी,



सावन भादों की बारिश में कई बार लगता है झड़ी रुक गयी है, सिर्फ पेड़ों की पत्तियों से, ओसारे से टप टप बूंदे टपकती हैं, लेकिन फिर कहीं से पास के पोखर से, बगल के गाँव की नदी से बादल घड़े भर भर के लाते हैं और एक बार फिर बारिश शुरू हो जाती है, ठीक यही बात होली में होती है, खास तौर से घर में, ननद भौजाई में, कहीं किसी ने छेड़ दिया और फिर से होली,



और देह की होली में

तो रीत और चंदा भाभी रुकी थीं, थकी थीं, लेकिन फिर बीच बीच में, और दूबे भाभी और संध्या भाभी का कन्या रस तो हर बार एक नयी ऊंचाई पे।

पांच दस मिनट का इंटरवल और फिर दुबारा
Waise trailer ke sath ek choti si film to ho hi skti thi sandhya bhabhi ke sath. Pata to sabko hai hi or dubey bhabhi ne to khudh pakad ke nishana lgaya
 

komaalrani

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:applause::applause:
वाह...वाह...
एक नए आवरण.. एक नई साज सज्जा.. एक नए कलेवर के साथ..
काफी कुछ परिमार्जित किया है इस कहानी में...
इतनी बड़ी स्टोरी में सारे प्रंसगों से तालमेल बनाते हुए कुछ नया जोड़ना ..
और पात्रों को उचित स्थान देना .. समय..वय.. और कहानी के पिछले प्रसंग...
बहुत कठिन कार्य होता है...
और आपने इस कार्य को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया है...
आपकी इस मेहनत और श्रमसाध्य योगदान को शत शत नमन...
बहुत बहुत आभार

बहुत ख़ुशी होती है आप ऐसे पुराने रससिद्ध और नियमित पाठको को कहानी पर देख कर

और इस अपडेट के बाद पहला कमेंट आपका ही, भीषण गर्मी के बाद आषाढ़ की पहली बूँद की तरह, और जो कुछ कहा आपने उसके लिए भी धन्यवाद, इस गुजारिश के साथ की इस कहानी के साथ बने रहें, जबतक कोई हुंकारी भरने वाला न हो कहानी सुनाने का मजा नहीं आता।
 

komaalrani

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Part 16 - Review comments:

First of all, apologies for the late comment...have been quite busy with too many things on my plate..hope you understand..

Coming to the update..well..the Holi play is at its peak..and all the characters Anand Babu, Dubey/Chanda/... Bhabhi et al seems to be having a ball (literally and figuratively) :)

The scene creations in each part of your update as well as the conversations happening between various players is just too awesome!!

You present some of the conversations happens as if it is just a "matter of fact"..wherein reality, they are highly erotic conversations...thats the beauty of your writing..
The trip teasing, attack and counter attack...all in one updates...absolutely super!!
Seems more fun is in the offing..in the coming updates..Look forward to it.


Overall, a wonderful and sexy update. Great going!!

👏 👏 :thumbup: :thumbup:


komaalrani
🙏🙏
 

komaalrani

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I hope I will not be late in providing my comments late for your in-progress update# 17 :)

komaalrani
करीब दस दिन हो गए इस पोस्ट को भी,:verysad:
 

komaalrani

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जी कोमल मैम

बहुत बदलाव हैं और शानदार है।

सादर
बहुत बहुत धन्यवाद और आप भी इस बधाई के असली हकदार हैं । आपने ही आगे की पोस्टों को देखते हुए रीत के रूप में बदलाव की बात कही थी और सिर्फ रीत ही नहीं, गुड्डी, संध्या भाभी, गुड्डी की मम्मी और गुड्डी को बहनों के रोल में भी बिना कथानक को बदले हुए और प्रवाह को रोके रफ़ूगीरी करनी पड़ी है और आप ऐसे रसज्ञ पाठक उसे समझ भी रहे हैं और पसंद भी कर रहे हैं

आभार
 

komaalrani

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Vaciline 😉

Mam toh es ek sabd se hi sab kuch keh deti hai
बहुत बहुत आभार कहानी पर पधारने के लिए

आप ऐसे सशक्त लेखक पढ़ें और पढ़ कर कमेंट दें इससे अच्छा कहानी का क्या सौभाग्य हो सकता है।

वेसिलीन, वो भी बड़ी शीशी
 

Mass

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करीब दस दिन हो गए इस पोस्ट को भी,:verysad:
Haan pata hai...but I was under the impression that you were on a break..and wanted to reply to your post once you return..
Now that you have returned, will post my comment. :)

Btw, aapke absence mein maine 2 updates post kar diye hai mere story ke :)
Look forward to your comments as well. Thank you.

komaalrani
 
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