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कहते हैं न मन मन भावे मूड हिलावे, मुट्ठी में पकड़ते ही संध्या भाभी गीली हो गयीं, उनके पति के आगे तो ये और उनकी ना ना का जवाब दूबे भाभी ने दे दियाहोली में...
कुछ समय के अंतराल पर ग्रुप बदलते रहते हैं...
अब पांचों इकट्ठा हो गई और...
आनंद बाबू द्रौपदी की तरह पांच पांच से घिर गए...
लेकिन ये क्या... जो संध्या भाभी किस्मत वाली होगी बोल रही थी... अब मना कर रही है...
“ना बाबा ना…” संध्या भाभी ने हाथ बाहर निकाल लिया- “आदमी का है या गधे घोड़े का?”
“अरे तेरे आदमी का है या बच्चे का? अभी तो इसे बच्चा कह रही थी। हाँ एक बार ले लेगी ना तो तेरे मर्द से हो सकता है मजा ना आये…” दूबे भाभी अब मेरी ओर से बोल रही थी।
और जो एक बार ले चूका होता है, तुलनात्मक अध्ययन के बाद, उसका मन और करता है, इसलिए सबसे ज्यादा गर्मायी तो संध्या भाभी ही थीं।