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Erotica फागुन के दिन चार

Mass

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Part 16 - Review comments:

First of all, apologies for the late comment...have been quite busy with too many things on my plate..hope you understand..

Coming to the update..well..the Holi play is at its peak..and all the characters Anand Babu, Dubey/Chanda/... Bhabhi et al seems to be having a ball (literally and figuratively) :)

The scene creations in each part of your update as well as the conversations happening between various players is just too awesome!!

You present some of the conversations happens as if it is just a "matter of fact"..wherein reality, they are highly erotic conversations...thats the beauty of your writing..
The trip teasing, attack and counter attack...all in one updates...absolutely super!!
Seems more fun is in the offing..in the coming updates..Look forward to it.


Overall, a wonderful and sexy update. Great going!!

👏 👏 :thumbup: :thumbup:


komaalrani
 
Last edited:

komaalrani

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फागुन के दिन चार - भाग १७ --रसिया को नार बनाउंगी पृष्ठ 234
पिछले पृष्ठ पर

अपडेट्स पोस्टेड, कृपया पढ़े, आनंद लें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
 

Sutradhar

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कुछ मित्रों को शायद लग रहा होगा की यह कहानी पहले की है पढ़ी है इसलिए क्यों समय लगाए, मैं सिर्फ यही कह सकती हूँ की इसमें बहुत बदलाव है और अभी तक जिन लोगों ने पहले पढ़ा होगा और फिर पढ़ रहे हैं उन्होंने नोट भी किया, विशेष रूप से अभी तक के आये प्रसंगो में ढेर सारे फ्लैश बैक जुड़े हैं, गुड्डी, रीत और संध्या भाभी की भूमिकाओं में भी और आगे और भी होगा।

तो बस इसी अनुरोध के साथ की कहानी से जुड़े रहें नया अपडेट बस थोड़ी देर में करीब ८ हजार शब्दों का मेगा अपडेट

जी कोमल मैम

बहुत बदलाव हैं और शानदार है।

सादर
 
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शलवार सूट वाली



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पता चला की क्राइसिस ये थी की रेल इन्क्वायरी से बात नहीं हो पा रही थी की गाड़ी की क्या हालत है और दो लोगों की बर्थ भी कन्फर्म नहीं हुई थी। नीचे कोई थे जिनकी एक टी टी से जान पहचान थी लेकिन उनसे बात नहीं हो पा रही थी।



मैं डरा की कहीं इन लोगों का जाने का प्रोग्राम गड़बड़ हुआ तो मेरी तो सारी प्लानिंग फेल हो जायेगी।


“अरे इत्ती सी बात भाभी आप मुझसे कहती…” मैंने हिम्मत बंधाते हुए कहा ओर एक-दो लोगों को फोन लगाया- मेरा एक बैचमेंट , वो मसूरी में मेरा रूम मेट भी था और टेनिस में पार्टनर भी उसे, रेलवे मिली थी और बनारस में ही ट्रेनिंग कर रहा था। और एक सीनियर थे हॉस्टल के वो भी रेलवे में यही थे,

“बस दस मिनट में पता चल जाएगा। भाभी आप चिंता ना करें…”

मैंने उन्हें एश्योर किया, बोल मैं भाभी, गुड्डी की मम्मी से रहा था लेकिन मेरी निगाह गुड्डी के चेहरे पर टिकी थी, वो भी परेशान लग रही थी। चार लोगों को जाना और दो की बर्थ नहीं तो कैसे, अब उसकी बहने इत्ती छोटी भी नहीं की एडजस्ट हो जाएंगी, एक बर्थ कम से कम,... और अगर कहीं उन लोगों का जाना टला लगा तो उस की भी होली पे ग्रहण लग जाएगा। वो उम्मीद से मेरी ओर देख रही थी।

मैंने एक बार फिर से मैंने फोन लगाया,

और थोड़ी देर में फोन आ गया।


“चलो मैं तो इतना घबड़ा रही थी…” चैन की साँस लेते हुए वो चली गई लेकिन साथ में गुड्डी को भी ले गईं…” चल पैकिंग जल्दी खतम कर और अपना सामान भी पैक कर ले कहीं कुछ रह ना जाय…”



मैंने जाकर भाभी को बता दिया। गुड्डी भी अपनी दोनों छोटी बहनों को तैयार होने में मदद कर रही थी।

मेरी तरह से वो भी बस यही सोच रही थी, इन लोगों के कानपुर जाने के प्रोग्राम में कोई विघ्न न पड़े, टाइम पे स्टेशन पहुँच जाए, ट्रेन में बैठें तो कल के उसके प्रोग्राम में कोई अड़चन न पड़े, दूसरे यह भी था की उसकी मम्मी के जाने के बाद मेरी रगड़ाई वो और अच्छी कर सकती थी, मम्मी के जानते बाद ये वतन चंदा भाभी के हवाले होना था और चंदा भाभी तो उसकी सहेली सी ही थीं। वैसे गुड्डी की दोनों छोटी बहने, सब उन्हें मझली और छुटकी ही कहते थे, इत्ती छोटी भी नहीं थी, एक नौवें में दूसरी आठवें में।

चन्दा भाभी भी वहीं बैठी थी।

“गाड़ी पंद्रह मिनट लेट है तो अभी चालीस मिनट है। स्टेशन पहुँचने में 20 मिनट लगेगा। तो आप लोग आराम से तैयार हो सकते हैं। “

मैंने उन्हें बताया

“नहीं हम सब लोग तैयार हैं। गब्बू जाकर रिक्शा ले आ…” पड़ोस के एक लड़के से से वो बोली।

“और रहा आपकी बर्थ का। तो पिछले स्टेशन को इन लोगों ने खबर कर दिया था। तो 19 और 21 नंबर की दो बर्थें मिल गई हैं। आप सब लोगों को वो एक केबिन में एडजस्ट भी कर देंगे। स्टेशन पे वो लोग आ जायेंगे। मैं भी साथ चलूँगा तो सब हो जाएगा…”

मैं बोल भाभी से रहा था लेकिन नजर गुड्डी के चेहरे से चिपकी थी। मैं बदलता रंग देख रहा था, अब वह एकदम खुश, अपनी सबसे छोटी बहन छुटकी को हड़का रही थी. एक नजर जैसे इतरा के उसने मुझे देखा,... फिर जब मुझे देखते पकड़ा, तो सबकी नजर बचा के जीभ निकल के चिढ़ा दी।

समझ तो वो भी रही थी की मैंने ये सब चक्कर किस लिए किया है,



“अरे भैया ये ना। बताओ अब ये सीधे स्टेशन पे मिलेंगे। अगर तुम ना होते ना। लेकिन मान गए बड़ी पावर है तुम्हारी। मैं तो सोच रही थी की,… एक बर्थ भी मिल जाती और तो बैठ के भी चले जाते, लेकिन तुम ने तो सब, जरा मैं नीचे से सबसे मिलकर आती हूँ…”

और वो नीचे चली गईं।

और अब गुड्डी खुल के मुझे देख के मुस्करायी।
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चन्दा भाभी ने गुड्डी को छेड़ते हुए कहा- “अरे असली पावर वाली तो तू है। जो इत्ते पावर वाले को अपने पावर में किये हुए हैं…”
वो शर्माई, मुस्करायी और बोली- “हाँ ऐसे सीधे जरूर हैं ये जो, …”

मैंने चंदा भाभी से कहा अच्छा भाभी चलता हूँ।

“मतलब?” गुड्डी ने घूर के पूछा।

“अरी यार 9:00 बज रहा है। इन लोगों को छोड़कर मैं रेस्टहाउस जाऊँगा। और फिर सुबह तुम्हें लेने के लिए। हाजिर…” मैंने अपना प्रोग्राम बता दिया।

“जी नहीं…” गुर्राते हुए वो बोली- “क्या करोगे तुम रेस्टहाउस जाकर। पहले आधा शहर जाओ फिर सुबह आओ, कोई जरूरत नहीं। फिर सुबह लेट हो जाओगे। कहोगे देर तक सोता रह गया। तुम कहीं नहीं जाओगे बल्की मैं भी तुहारे साथ स्टेशन चल रही हूँ। दो मिनट में तैयार होकर आई…”

और ये जा वो जा।



चंदा भाभी मुस्कराती हुए बोली- “अच्छा है तुम्हें कंट्रोल में रखती है…”
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मेरे मुँह से निकल गया लेकिन मेरे कंट्रोल में नहीं आती।

तब तक वो तैयार होकर आ भी गई। शलवार सूट में गजब की लग रही थी।



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आकर मेरे बगल में खड़ी हो गई।

“क्या मस्त लग रही हो?” मैंने हल्के से बोला।

लेकिन दोनों नें सुन लिया। गुड्डी ने घूर के देखा और चन्दा भाभी हल्के से मुश्कुरा रही थी। मुझे लगा की फिर डांट पड़ेगी। लेकिन गुड्डी ने सिर्फ अपने सीने पे दुपट्टे को हल्के से ठीक कर लिया और चंदा भाभी ने बात बदल कर गुड्डी से बोला-

“हे तू लौटते हुए मेरा कुछ सामान लेती आना, ठीक है…”

“एकदम। क्या लाना है?”

“बताती हूँ लेकिन पहले पैसा तो ले ले…”

“अरे आप भी ना। खिलखिलाती हुई, मेरी और इशारा करके वो बोली-
“ये चलता फिरता एटीएम तो है ना मेरे पास…” और मुझे हड़काते हुए उसने कहा- “हे स्टेशन चल रहे हैं कहीं भीड़ भाड़ में कोई तुम्हारी पाकेट ना मार ले, पर्स निकालकर मुझे दे दो…”
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चन्दा भाभी भी ना। मेरे बगल में खड़ी लेकिन उनका हाथ मेरा पिछवाड़ा सहला रहा था। वो अपनी एक उंगली कसकर दरार में रगड़ती बोली-

“अरे तुझे पाकेट की पड़ी है मुझे इनके सतीत्व की चिंता हैं कहीं बीच बाजार लुट गया तो। ये तो कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे…”
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गुड्डी मुस्कराती हुई मेरे पर्स में से पैसे गिन रही थी।

तभी उसने कुछ देखा और उसका चेहरा बीर बहूटी हो गया।

मैं समझ गया और घबड़ा गया की कहीं वो किशोरी बुरा ना मान जाए। जब वो कमरे से बाहर गई थी तो उसके दराज से मैंने एक उसकी फोटो निकाल ली थी, उसके स्कूल की आई कार्ड की थी, स्कूल की यूनिफार्म में। बहुत सेक्सी लग रही थी। मैं समझ गया की मेरी चोरी पकड़ी गई।

“क्यों क्या हुआ पैसा वैसा नहीं है क्या?” चन्दा भाभी ने छेड़ा।

मेरी पूरे महीने की तनखाह थी उसमें।

“हाँ कुछ खास नहीं है लेकिन ये है ना चाभी…” मेरे पर्स से कार्ड निकालकर दिखाते हुए कहा।

“अरी उससे क्या होगा पासवर्ड चाहिए…” चन्दा भाभी ने बोला।

“वो इनकी हर चीज का है मेरे पास…” ठसके से प्यार से मुझे देखकर मुश्कुराते हुए वो कमलनयनी बोली।
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उसकी बर्थ-डेट ही मेरे हर चीज का पास वर्ड थी, मेल आईडी से लेकर सारे कार्डस तक।

लेकिन चन्दा भाभी के मन में तो कुछ और था- “अरे इनके पास तो टकसाल है। टकसाल…” वो आँख नचाते बोली।

“इनके मायके वाली ना, एलवल वाली, जिसका गुण गान आप लोग खाने के समय कर रही थी…” गुड्डी कम नहीं थी।

“और क्या एक रात बैठा दें। तो जित्ता चाहें उत्ता पैसा। रात भर लाइन लगी रहेगी…” चंदा भाभी बोली।

“और अभी साथ नहीं है तो क्या एडवांस बुकिंग तो कर ही सकते हैं ना…” गुड्डी पूरे मूड में थी। फिर वो मुझे देखकर बोलने लगी।

कुछ लोगों को चोरी की आदत लग जाती है,

मैं समझ रहा था किस बारे में बात कर रही है फिर भी मैं मुस्कराकर बोला-

“भाभी ने मुझे आज समझा दिया है, अब चोरी का जमाना नहीं रहा सीधे डाका डाल देना चाहिए…”

फिर बात बदलने के लिए मैंने पूछा- “भाभी आप कह रही थी ना। बाजार से कुछ लाना है?”

“अरे तुम्ह क्या मालूम है यहाँ की बाजार के बारे में, गुड्डी तू सुन…” चंदा भाभी ने हड़का लिया

“हाँ मुझे बताइये। और वैसे भी इनके पास पैसा वैसा तो है नहीं…” हवा में मेरा पर्स लहराते गुड्डी बोली।

“वो जो एक स्पेशल पान की दुकान है ना स्टेशन से लौटते हुए पड़ेगी…”

“अरे वही जो लक्सा पे है ना। जहां एक बार आप मुझे ले गई थी ना…” गुड्डी बोली।

“वही दो जोड़ी स्पेशल पान ले लेना और अपने लिए एक मीठा पान…”
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“लेकिन मैं पान नहीं खाता। आज तक कभी नहीं खाया…” मैंने बीच में बोला।

“तुमसे कौन पूछ रहा है। बीच में जरूर बोलेंगे…” गुड्डी गुर्रायी। ये तो बाद में देखा जाएगा की कौन खाता है कौन नहीं। हाँ और क्या लाना है?”

“कल तुम इनके मायके जाओगी ना। तो एक किलो स्पेशल गुलाब जामुन नत्था के यहाँ से। बाकी तेरी मर्जी…” चंदा भाभी ने अपनी लिस्ट पूरी की
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पर्स में से गुड्डी ने मुड़ी तुड़ी एक दस की नोट निकाली और मुझे देती हुई बोली-

“रख लो जेब खर्च के लिए तुम भी समझोगे की किस दिलदार से पाला पड़ा है…”
तब तक नीचे से आवाज आई। रिक्शा आ गया। रिक्शा आ गया।

हम लोग नीचे आ गए। मैंने सोचा की गुड्डी के साथ रिक्शे पे बैठ जाऊँगा लेकिन वो दुष्ट जानबूझ के अपनी मम्मी के साथ आगे के रिक्शे पे बैठ गई ओर मुझे मुड़कर अंगूठा दिखा रही थी।

वो जान रही थी, की मेरा इरादा प्लानिंग, रिक्शे पे साथ बैठता तो कम से कम कंधे पे तो हाथ रखी लेता अगर उसके आगे नहीं बढ़ता, दस पंद्रह मिनट का अकेले का टाइम मिलता बतियाने का। लेकिन वो मुझसे ज्यादा चालाक थी, मैं जब तक प्लानिंग करता वो चाल चल देती थी। एक तो मुझे तंग करने का इन्तजार करने का , दूसरे मम्मी के साथ बैठ के रस्ते भर उनसे बतिया सकती थी.



मुझे उसकी बहनों के साथ बैठना पड़ा।



गनीमत थी की गाड़ी ज्यादा लेट नहीं थी इसलिए देर तक इंतजार नहीं करना पड़ा। बर्थ भी मिल गई और स्टेशन पे स्टाफ आ भी गया था। स्टेशन पहुँचने के पहले रास्ते में ही टीटी ने पैसेंजर से बात करके इनकी कन्फर्म बर्थ और खाली बर्थों को मिला के एक केबिन करवा दिया था, दो लोवर दो अपर एक ही केबिन में , डिप्टी स्टेशन सुपरिंटेंडेंट ने खुद उन लोगो को केबिन में पहुंचाने के बाद टी टी को भी बोल दिया। उसके पापा मम्मी इत्ते खुश थे की,… गुड्डी की मम्मी तारीफ़ से बार बार मुझे देख रही थीं।

मैं भाभी की निगाह में देख रहा था वो कितनी इम्प्रेस्ड थीं, स्टेशन के स्टाफ यूनिफार्म में, एक जी आर पी वाला भी कही से आ गया था, हम लोगो को सामान की चिंता भी नहीं करनी पड़ी स्टेशन स्टाफ ने सामन सेट कर दिया, यहाँ तक की केबिन में चारों बर्थ पे बिस्तर भी लगा था. गुड्डी के पापा के कोई परिचित मिल गए थे तो वो पास के केबिन में उनके पास चले गए थे, हम लोगों के केबिन में गुड्डी, उसकी मम्मी दोनों बहिने और मैं। दोनों उधम मचा रही थीं, तबतक डिप्टी स्टेशन सुपरिंटेंडेंट आये और बोले, " सर, इंजन चेंज होगा तो पंद्रह बीस मिनट लगेगा, आप लोग आराम से बैठिये, ट्रेन रेडी हो जायेगी तो मैं बता दूंगा। "



उन के जाते ही भाभी फिर मुझे देख के मुस्करायीं, मैंने छुटकी और मझली से कहा चलो अभी टाइम है तुम दोनों को चॉकलेट दिलवा देता हूँ,



मुझे चिप्स भी चाहिए छुटकी बोली, मंझली ने जोड़ा कॉमिक्स, पांच मिनट बाद मैं दोनों को लेकर वापस,... चॉकलेट, चिप्स, कॉमिक्स, पेप्सी



और मैंने भाभी से बोला, कानपुर में भी इन लोगो ने बोल दिया है कोई सामान उतरवाने कोई आ जाएगा और आप लोग लौटिएगा कब,...



" अभी पता नहीं हो सकता है होली के दो दिन बाद, हो सकता है तीन दिन बाद, अभी तो लौटने का रिजर्वेशन "



उनकी बात काट के मैं बोला, " अरे आप गुड्डी को बोल दीजियेगा, उसकी चिंता मत करियेगा, लौटने का रिजर्वेशन भी हो जाएगा, स्टेशन पर कोई आ भी जाएगा, मैं भी होली के चार पांच दिन बाद ही लौटूंगा, तब तक आप लोग आ जाइयेगा तो मुलाकात हो जायेगी, ... "



अब भाभी आपने रूप में आ गयीं, हंस के बोली,

" मुलाकात नहीं तोहार रगड़ाई होइ,... और कम से कम दो तीन दिन, ... हमार तोहार फगुआ उधार बा, एक इंच जगह बचेगी नहीं न अंदर न बाहर,... "

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फिर सीरियस होके बोलीं, भैया तोहार तो,... और ये बनारस में भी तोहार,... "
उनकी बात ख़तम होते ही मैं बोला, " एकदम भाभी,... अरे हो सकता है मई से ही दो तीन महीने की ट्रेनिंग बनारस में ही हो, यहाँ आफिसर्स मेस है, रेस्टहाउस,

भाभी एकदम आग, गुड्डी गुर्राने लगीं ऊपर से उसकी दोनों बहने भी कान पारे,



" एकदम नहीं, घर में रहना होगा, और खाना दोनों टाइम घर में " भाभी और गुड्डी दोनों साथ साथ बोली, और दोनों बहनों ने भी ऊपर से हामी भरी,...



सोचना भी मत कहीं और रहने को " भाभी भी बोलीं, तीन बार मुझसे हामी भरवाई और फिर जब मैंने कबूल कर लिया,... कान पकड़ा, तो भाभी अपने रंग में

" अरे दिन में ट्रेनिंग आफिस में करना, रात में मैं ट्रेनिंग दूंगी, रोज बिना नागा। "



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गुड्डी मंद मंद मुस्करा रही थी फिर बोली और खाने के साथ गारी भी रोज सुननी पड़ेगी ये भी बोल दीजिये, ...


" वो कोई कहने की बात है, बिना गारी के खाना कैसे पचेगा,... " हँसते हुए वो बोलीं फिर अपने रूप में एकदम कह मुझसे रही थी बोल गुड्डी से रही थीं


" और गारी क्या सब सही सही बोल रही थी , तुम तो जा ही रही हो इनके साथ, इनके बहन का हाल देख लेना, और जहाँ तक इनकी महतारी का हाल है , मैं अपने मन से कुछ नहीं कहती। बिन्नो की तिलक में जितने तिलकहरु गए थे, नाइ बारी कहार पंडित सब उनके पोखरा में डुबकी लगा के आये थे, कई कई बार, वही सब बता रहे थे,... "


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तबतक डिप्टी एस एस आ गए, ... गाडी चलने वाली है और मैं और गुड्डी उतर पड़े। हाँ गुड्डी के कान में भाभी ने कुछ समझाया भी।

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Shadi se pehle hi purse pe pura haq
Amazing small city love vibe aa rahi hai

Jaise chote sehro main dekha suna hai bilkul wahi Khubsurati dikhti hai aapki kahani main
 
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आने वाला कल

दवा -आई पिल -माला डी

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पर गुड्डी अचानक सीरयस हो गयी और उसने काम की बात बोली,... स्ट्रेटेजिक थिंकिंग में गुड्डी का जवाब नहीं था,

" देख यार , मैं इसलिए तुमसे मंम्मी के बारे में कह रही थीं,... मान लो तुम्हे कोई चीज चाहिए ( मैं समझ गया था अब बात बहुत सीरियस ट्रैक पर पहुँच गयी है )मतलब हरदम के लिए चाहिए ( और उसके लिए मैं कुछ भी करने को तैयार था, बस ये लड़की मिल जाए ) तो बिना मम्मी को पटाये,... उनकी हाँ तो,... इसलिए मैं कह रही थी की मम्मी को,...

पर गुड्डी के लिए देर तक सीरियस रहना बिना मुझे रगड़े रहना मुश्किल था, वो बोली

" मान लो मम्मी नाक रगड़वाएं, तलवे चटवायें तुझसे तो,... "


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" एकदम दस बार सौ बार अगर,... कुछ भी "

मैं तुरंत मान गया, अपने उस सपने को पूरा करने के लिए तो मैं कुछ भी करने को तैयार था, मिल जाए ये लड़की हरदम के लिए कैसे भी,
लेकिन गुड्डी का असर कुछ कुछ मेरे ऊपर भी हो रहा था, मैं बोला ,

" मम्मी सिर्फ तलवे ही चटवाएंगी या कुछ और,... "

अब गुड्डी चिल्लाई, पिटोगे तुम बड़ी जोर से। लेकिन मेरा पिटने का प्रोग्राम पोस्टपोन हो गया क्योंकि तब तक हमारा रिक्शा एक मेडिकल स्टोर के सामने से गुजरा ओर वो चीखी- “रोको रोको…”

“क्यों कया हुआ, कुछ दवा लेनी है क्या?” मैंने सोच में पड़ के पूछा।

“हर चीज आपको बतानी जरूरी है क्या?”

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वो आगे आगे मैं पीछे-पीछे।

“एक पैकेट माला-डी और एक पैकेट आई-पिल…”
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दूकान पर लड़कों की भीड़ थी, दवा देने वाले भी लड़के लेकिन गुड्डी को फर्क नहीं पड़ रहा था,...

मैं पीछे खड़ा उसे निहार रहा था, ... सोच रहा था उसकी जगह मैं होता तो, कंडोम लेने के लिए उसके जितने पर्यायवाची हो सकते है कंट्रासेप्टिव से लेकर फ्रेंच लेदर तक बोल डालता, ...कंडोम बोलने की हिम्मत नहीं पड़ती और, बिना लिए वापस आ जाता, और ये लड़की,...

गुड्डी की एक लट मौका पाके उसके गालों को सहला रही थी, मुझे ललचा रही थी।

और मैं ललचाता देख रहा था उस तन्वंगी, सुनयना को,... बिना पलक झपकाए,... जब वो देखती थी मुझे तो मेरी हिम्मत नहीं पड़ती थी इस तरह नदीदों की तरह उसे देखने को,... मेरी भाभी ठीक ही कहती थी, गुड्डी एकदम अपनी मम्मी पर,... मेरा मतलब मम्मी पर गयी है. उसी तरह खूब लम्बी, उसी तरह गोरा चम्पई रंग, ऊँगली लगाओ तो मैली हो जाए, बड़ी बड़ी आँखे, पास बुलाती बतियाती, और ठीक उसी जगह ठुड्डी पर तिल, और,...


एकदम मम्मी की तरह जोबन जबरदंग, अपनी क्लास की , अपनी समौरियों से कम से कम कम दो नंबर ज्यादा, और मैंने पहले ही कहा था मुझे मैनचेस्टर नहीं पसंद हैं, लड़की को लड़की लगना तो चाहिए,...

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और गुड्डी को भी मालूम था मैं उन्हें देख के कितना लिबराता हूँ,.... और वो मेरी नंजरों की चोरी पकड़ती है तो बस मेरी नजरें नीचे, ...

लेकिन गुड्डी की जिस बात ने मुझे मुझसे ही चुरा लिया था,... वो थी, कैसे कहूं,... उसकी पहल,... जो में चाहता था पर बोल भी नहीं पाता था, वो समझकर कर देती थी। पहली मुलाक़ात से ही, ... कौन इंटर में पढ़ने वाला लड़का होगा जो किसी लड़की को देख के आंख भर देखना नहीं चाहेगा, मुंह भर बतियाना नहीं चाहेगा,... लेकिन मैंने मारे झिझक के किताब की दीवाल खड़ी कर दी, पर वो जानती थी मैं क्या चाहता हूँ और दांत देखने के बहाने मुंह खुलवा के,... रसगुल्ले के साथ उसकी मीठी ऊँगली का स्वाद कभी नहीं भूलने वाला,...

बस वो स्वाद एक सपना जगाता है ,... उसी घर में ये लड़की दुल्हन बनी, कोहबर में दही गुड़ खिला रही है और उसकी बहने छेड़ रही हैं,... लेकिन मैं सपने देखने वाला और वो सपनों को जमीन पर लाने वाली,...

उसी दिन, लग उसे भी गया था, उसी दिन डांस करते हुए, जिस तरह से वो मुझे देख दिखा के लाइनों पर थिरक रही थी,




मेरा बनके तू जो पिया साथ चलेगा
जो भी देखेगा वो हाथ मलेगा



और फिर रही सही कसर बीड़ा मारते समय, एकदम मुझे ढूंढ के बीड़ा मारा था, सीधे दिल पर लगा,... और जब सब लड़कियां मुंडेर से हट भी गयीं,... वो वहीँ खड़ी रही मुझे देखते चित्रवत,... और मैं भी मंत्रबद्ध, जैसे किसी लड़की ने बीड़ा नहीं जादू की मूठ मार दी हो, हिलना डुलना बंद हो गया हो,...

फिर गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी ने गुड्डी को दिखा के , चिढ़ा के पूछा था, शादी करोगे इससे,... अचानक कोई मन की बात बोल दे, ... लाज के मारे मैं जैसे बिदाई के समय दुल्हन गठरी बनी, बस एकदम उसी तरह, ...

पर गुड्डी बिना लजाये मुझे देखती रही, नेलपॉलिश लगाती रही और अपना जवाब उसने हलके से मेरा हाथ दबा के दे दिया।

और, मुझसे ज्यादा वो जानती थी उसके उभरते हुए चूजे कितने अच्छे लगते हैं


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लेकिन वो ये भी जानती थी की ठीक से देखने की हिम्मत तो मैं कर नहीं पाता, तो छूने का सवाल ही नहीं, बस ललचा सकता हूँ। और भरे पिक्चर हाल में घर के सब लोग, उसने मेरा हाथ अपने सीने पर रख के,... अपना दिल उसने मेरे हाथ में रख दिया,... मेरा दिल तो वो रसगुल्ला खिला के ही ले गयी थी।


और आज,.... मन मेरा कितना करता है लेकिन मैं उसके आगे बढ़ नहीं पाता था लेकिन इस लड़की को न सिर्फ पता था की मेरा मन क्या करता था बल्कि उसे पूरा करने की जिम्मेदारी भी उसने अपने ऊपर ले ली थी।

मैं बस चाह सकता था, और चाह रहा था, सारे देवता पित्तर मना रहा था बनारस के अपने शहर के,... यह लड़की मिल जाये,... एक बार दो बार के लिए नहीं , हरदम के लिए, जिंदगी कितनी आसान हो जाए, गुड्डी है न, सोचेगी वो देखेगी।

और तबतक दवा की दूकान वाला लड़का सब चीजें लाके देगया, ... गुड्डी ने मुड़ के भीड़ में मुझे देखा और जैसे कुछ याद आया, उस दवा वाले से बोली,

" और वैसलीन,. की बॉटल "

" बड़ी वाली है " वो बोला, ...और गुड्डी बोली, " बड़ी वाली ही चाहिए " .

मेरे पर्स में से सौ सौ के नोट निकाल के उसने दिए और सारा सामान झोले ऐसे उसके पर्स में।

रिक्शे पे बैठकर हिम्मत करके मैंने पूछा- “ये…”


“तुम्हारी बहन के लिए है जिसका आज गुणगान हो रहा था। क्या पता होली में तुम्हारा मन उसपे मचल उठे। तुम ना बुद्धू ही हो, बुद्धू ही रहोगे…” फिर मेरे गाल पे कसकर चिकोटी काटकर वो बोली-

“तुमसे बताया तो था ना की आज मेरा लास्ट डे है। तो क्या पता। कल किसी की लाटरी निकल जाए…”

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मेरे ऊपर तो जैसे किसी ने एक बाल्टी गुलाबी रंग डाल दिया हो, हजारों पिचारियां चल पड़ी हों साथ-साथ।



मैं कुछ बोलता उसके पहले वो रिक्शे वाले से बोल रही थी- “अरे भैया बाएं बाएं। हाँ वहीं गली के सामने बस यहीं
रोक दो। चलो उतरो…”
Vaciline 😉

Mam toh es ek sabd se hi sab kuch keh deti hai
 
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गुलाब जामुन

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रिक्शे पे बैठकर मैंने उसे याद दिलाया की भाभी ने वो गुलाब जामुन के लिए भी बोला था।

“याद है मुझे गोदौलिया जाना पड़ेगा, भइया थोड़ा आगे मोड़ना…” रिक्शे वाले से वो बोली।

गुड्डी को देख के आज कुछ ज्यादा ही लालच आ रहा था, रिक्शे पर बैठकर बड़ी हिम्मत कर मैंने हाथ गुड्डी के कंधे पर रख दिया. निगाहें मेरी उसके चिकने गाल से फिसल के सीधे उभार पर आके अटक रही थी, कुरता उसका ज्यादा ही टाइट था, कड़ाव कसाव उभार सब साफ़ दिख रहा था, पर गुड्डी मुझसे भी दो हाथ आगे, ... कंधे पर रखा हाथ उसने खींच कर सीधे जोबन पे, ... और मुड़ के मुस्करा के मुझे चिढ़ाती बोली,...

" यार तेरी सब बात ठीक है लेकिन दो बातें गड़बड़ है, एक तो बुद्धू हो दूसरे लालची "

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आज मेरी भी हिम्मत बढ़ गयी थी, मुस्करा के बोला, " एकदम सही बोल रही हो, तुझे देख के मुंह में पानी आ रहा है,... "

वो कौन चुप रहने वाली थी, चिढ़ा के पूछा,... " कहाँ ऊपर वाले मुंह में या नीचे ? " फिर खुद ही जवाब भी दे दिया।

झपाक से गुड्डी ने एक चुम्मी ले ली, होंठ पर दांत भी कस के लगा दिया,... और हट के बोली,...


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" देखो ऊपर वाले मुंह के पानी का इलाज तो मैंने कर दिया और नीचे वाला पानी आज चंदा भाभी के पास गिराना "

मैं एकदम चुप, ये लड़की भी न, दूसरी कोई लड़की होती तो मुंह नोच लेती अगर उसका चाहने वाला किसी और पे आँख उठाता और यहाँ ये खुद,...

गुड्डी ने अब हाथ सीधे पैंट पे उसी जगह रख दिया और हल्के से दबा के बोली,

" अरे यार, मेरी तो आज छुट्टी है, आखिरी दिन। और तेरी बहन -महतारी कोई है नहीं यहाँ वरना मैं अपने हाथ से पकडे के तेरा ये सटाती उनके,... तो बची चंदा भाभी, ...




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तो क्या बुराई है, और कौन तेरा पम्प सूखने वाला है, चंदा भाभी को देने से ख़तम हो जाएगा। ये तो ऐसा हैंडपंप है जब चलाओ तब पानी,... कल फिर भर जाएगा। "
मुझसे न बोलते बने न चुप रहते, डर तो मुझे उसी का था, वो क्या सोचेगी, बुरा मानेगी, कोई और लड़की होती तो जलती, ... गुस्सा होती,... लेकिन किसी को दिल देने की सबसे बड़ी प्रॉब्लम ये हैं की आपका दिल जिसके पास है उसे आप से पहले आपके दिल की बात मालूम हो जाती है। गुड्डी के साथ यही होता था, मुझसे पहले मेरे दिल का बात मालूम हो जाती थी और उसे मालूम हो गयी। प्यार से मेरे गाल पे एक चपत मारती बोली,

" इसी लिए कहती हूँ , तू बुद्धू नहीं एकदम बुद्धू है। तू यही सोच रहा है न की मैं बुरा मान जाउंगी,... मैं क्यों बुरा मानूंगी, चंदा भाभी के साथ पानी गिराने में न तेरा घिस जाएगा, न कुछ कम होगा, चाहे चंदा भाभी के साथ चाहे अपनी बहन महतारी, किसी भी मायके वाली के साथ पानी गिराओ मैं नहीं बुरा मानने वाली। अच्छा ये बता, आज तक पहले पानी कभी गिरा नहीं है क्या, कित्ती बार मैंने खुद देखा है कि सुबह तुम उठते हो और पाजामा गीला। "
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( अब उस सुमुखी से कौन बताये की सपने में वही तो आती थी जो मेरा पानी,.. " लेकिन गुड्डी चालू थी,

" और जरूर नाली वाली में,... मैं मान नहीं सकती,... तो मैं तो न तेरे पाजामे से जलने वाली न नाली से,... तो चाहे चंदा भाभी चाहे अपनी बहिन महतारी किसी के साथ,... बुद्धू मौका देख के चौका मारना चाहिए और अगर चुके न तो मैं गुस्सा हो जाउंगी। "
गुड्डी को गुस्सा तो मैं कर नहीं सकता था, लेकिन आज होली की फगुनाहट ज्यादा ही चढ़ी थी तो हिम्मत कर के मैंने उसी की बात दुहरा दी,

" बहन -महतारी "

और वो जोर से खिखिलायी, समझ गयी मेरी बदमाशी, हंस के बोली, " हिम्मत है "

फिर कुछ सोच के चिढ़ा के बोली, " ललचा रहे थे न मम्मी को देख के, ... मैं देख रही थी और वो भी देख रही थीं समझ भी रही थीं अच्छी तरह से "
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वो तो मैं भी समझ गया था की मेरी बदमाशी पकड़ी गयी

गुड्डी की मम्मी दीर्घ स्तना, कठोर कुच, और ब्लाउज खूब लो कट ,... और भाभी का आँचल लुढ़क गया, उभारों से एकदम चिपका, रसोई से आ रही थीं तो हलके पसीने में भीगा,... ब्रा का ढक्क्न भी नहीं, सफ़ेद झलकौवा ब्लाउज, गहराई उभार कड़ापन सब साफ़ साफ़

,... तो बस मेरी निगाहें वहीँ चिपकी,... और उन्होंने मुझे देखते देख लिया बस बजाय आँचल ठीक करने के कमर में बाँध लिया और दोनों पहाड़ एकदम साफ़ साफ़, और मेरे पास जब वो झुकी तो कनखियों से उन्होंने तम्बू में बम्बू भी देख लिया, बस मुस्करायीं और मैं समझ गया मेरी चोरी पकड़ी गयी।

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लेकिन गुड्डी एक बार फिर खिलखिला रही थी, मेरा नाक पकड़ के हिलाते बोली,...

" ललचाने लायक चीज हो यार तो कोई भी ललचाएगा, तो मेरा बाबू भी ललच गया तो क्या, ... न ललचाते तो मम्मी भी बुरा मानतीं और मैं भी,... नहीं ललचाने पर पाप लगता है। जो चीज चाहते हो वो नहीं मिलती....मम्मी हैं ही ऐसी। "

फिर सीरियस होके बोली, " बच गए तुम, मम्मी को कानपूर जाना था, वरना खुले आम आज तेरी नथ उतरती, जरा भी नखड़ा करते न तो बस मम्मी रेप कर देतीं तेरा। "

तबतक हम लोग गुलाब जामुन की दूकान के पास पहुँच गए ओर हम रिक्शे से उतर गए।

“गुलाब जामुन एक किलो…” मैंने बोला।

“स्पेशल वाले…” मेरे कान में वो फुसफुसाई।
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“स्पेशल वाले…” मैंने फिर से दुकानदार से कहा।

“तो ऐसा बोलिए ना। लेकिन रेट डबल है…” वो बोला। “हाँ ठीक है…” फिर मैंने मुड़कर गुड्डी से पूछा- “हे एक किलो चन्दा भाभी के लिए भी ले लें क्या?”

“नेकी और पूछ पूछ…” वो मुश्कुराई।

“एक किलो और। अलग अलग पैकेट में…” मैं बोला।

पैकेट मैंने पकड़े और पैसे उसने दिए। लेकिन मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पा रहा था- “हे तुमने बताया नहीं की स्पेशल क्या? क्या खास बात है बताओ ना…”

“सब चीजें बताना जरूरी है तुमको। इसलिए तो कहती हूँ तुम्हारे अंदर दो बातें बस गड़बड़ हैं। बुद्धू हो और अनाड़ी हो। अरे पागल। होली में स्पेशल का क्या मतलब होगा, वो भी बनारस में…”



गुलाब जामुन लेके हम लोग निकले ही थे की मुझे चंदा भाभी की याद आ गयी किस तरह से डबल मीनिंग वाली खुल के बाते कर रही थी। मैंने गुड्डी से बोला

“हे सुन यार ये चन्दा भाभी ना। मुझे लगता है की लाइन मारती हैं मुझपे…”

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हँसकर वो बोली- “जैसे तुम कामदेव के अवतार हो। गनीमत मानो की मैंने थोड़ी सी लिफ्ट दे दी। वरना…” मेरे कंधे हाथ रखकर मेरे कान में बोली-

“लाइन मारती हैं तो दे दो ना। अरे यार ससुराल में आये हो तो ससुराल वालियों पे तेरा पूरा हक बनता है। वैसे तुम अपने मायके वाली से भी चक्कर चलाना चाहो तो मुझे कोई ऐतराज नहीं है…”

“लेकिन तुम। मेरा तुम्हारे सिवाय किसी और से…”

“मालूम है मुझे। बुद्धूराम तुम्हारे दिल में क्या है? यार हाथी घूमे गाँव-गाँव जिसका हाथी उसका नाम। तो रहोगे तो तुम मेरे ही। किसी से कुछ। थोड़ा बहुत। बस दिल मत दे देना…”

“वो तो मेरे पास है ही नहीं कब से तुमको दे दिया…”

“ठीक किया। तुमसे कोई चीज संभलती तो है नहीं। तो मेरी चीज है मैं संभाल के रखूंगी। तुम्हारी सब चीजें अच्छी हैं सिवाय दो बातों के…एक तो बुद्धू हो और दूसरे अनाड़ी।" वो शोख बोली।
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सामने जोगीरा चल रहा था। एक लड़का लड़कियों के कपड़े पहने और उसके साथ। रास्ता रुक गया था। वो भी रुक के देखने लगी। और मैं भी।


जोगीरा सा रा सा रा।

और साथ में सब लोग बोल रहे थे जोगीरा सारा रा।

तनी धीरे-धीरे डाला होली में। तनी धीरे-धीरे डाला होली में।



तब तक उसने हम लोगों की ओर देखा और एक नई तान छेड़ी।



“अरे कौन शहर में सूरज निकला कौन शहर में चन्दा,

अरे कौन शहर में सूरज निकला कौन शहर में चन्दा,

अरे गुलाबी दुपट्टे वाली को किसने टांग उठाकर चोदा,

जोगीरा सा रा सा रा…”


गुड्डी को लगा की शायद मुझे बुरा लगा होगा तो मेरा हाथ दबाकर बोली- “अरे चलता है यार होली है…”


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और मेरा हाथ पकड़कर आगे ले गई।
एक बुक स्टाल पे मैं रुक गया- “कोई होली स्पेशल है क्या?” मैंने पूछा।

“हौ ना। खास बनारसी होली स्पेशल अबहियें आयल कितना चाही?”

मैंने गुड्डी की ओर मुड़कर देखा उसने उंगली से चार का इशारा किया। और मैंने ले लिया। उसी के बगल में एक वाइन शाप भी थी। गुड्डी की निगाह वहीं अटकी थी।

“हे ले लूं क्या एक-दो बोतल बीयर?”

“तुम्हारी मर्जी। पीते हो क्या?”

“ना लेकिन। …”

“तो ले लो ना। तुम्हारे अन्दर यही गड़बड़ है सोचते बहुत हो। अरे जो मजा दे वो कर लेना चाहिए ऐसा टाइम कहाँ बार-बार मिलता है। घर से बाहर होली के समय…”

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मैंने दो बोतल बीयर ले ली।

रिक्शे पे मैंने पढ़ना शुरू किया। क्या मस्त चीज थी। एकदम खुली। मस्त टाईटिलें, होली के गाने और सबसे मजेदार तो राशि फल थे।

वो भी पढ़ रही थी साथ-साथ लेकिन उसने खींचकर रख दिया- “घर चल के पढेंगे…”

तब तक मुझे कुछ याद आया- “हे तुम्हारे घर में तो ताला बंद है चाभी भी मम्मी ले गईं तो हम रात को सोयेंगे कहां?”

“जहां मैं सोऊँगी…” वो मुश्कुराकर बोली।

“सच में तब तो…” मैं खुश होकर बोला।

पर मेरी बात काटकर वो बोली। इत्ती खुश होने की बात नहीं है। अरे यार एक रात की बात है। चन्दा भाभी के यहाँ। उनका घर बहुत अच्छा है। कल तो तुम्हारे साथ चल ही दूँगी…” तब तक हम लोग घर पहुँच गए थे।
Haiii raat main chanda bhabhi k yaha soyenge phir toh kaam khel ki sambhavana bahut jada hai 😉

Superb Writing Mam

My favourite Lines ⬇️
लाइन मारती हैं तो दे दो ना। अरे यार ससुराल में आये हो तो ससुराल वालियों पे तेरा पूरा हक बनता है। वैसे तुम अपने मायके वाली से भी चक्कर चलाना चाहो तो मुझे कोई ऐतराज नहीं है
 
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गुड्डी और मम्मी

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" एक बात तो मानना पडेगा तोहरी महतारी दिल की अच्छी हैं, बहुत अच्छी। एक बार हमसे नहीं बोलीं की ये क्या मान दी, बल्कि कहती थीं की जरा सा चीज के लिए , काहें किसी पण्डे का मन दुखी करें, खुश रहेंगे तो आशीर्वाद देंगे और सावन का आशीर्वाद उहो बनारस में बनारस के पण्डे का आसीर्बाद,... और सच में सब पण्डे खुस हो के गए, केतना तो इसी घर में न बिस्वास हो तो गुड्डी से पूछ लेना,... और पण्डे भी एक से एक जबरदस्त, तगड़े पहलवान, दूनो चूँची पकड़ के ऐसे धक्का लगाते थे, दूसर कौन होत तो चिथड़ा चिथड़ा, लेकिन तोहरे भाभी क सास, चूतड़ उठाय उठाय के वो धक्का मारें,... एक भी पंडा बिना खुश हुए नहीं गया और साथ में वो १०१ रूपया लेकर बाद में पैर भी छूती थीं। सब क सब अइसन आसीर्बाद दिए,... " मम्मी बोल रही थीं और वहां लग रहा था की श्वेता और छुटकी भी सांस रोक के सुन रही थीं क्योंकि उन दोनों की आवाज भी एकदम बंद थी,...



लेकिन गुड्डी ने बीच में बात काट दी, बोली मम्मी का आसीर्बाद दिए थे पंडा सब ,
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" तीन आसीर्बाद, पहला उनका जोबन हरदम टनाटन रहेगा, बड़ा भी कड़ा भी, दूसरा उनकी ताल तलैया में न पानी क कमी होगी न डुबकी मारने वालों की, और तीसरी , ... और यह कह के चुप हो गयीं जैसे इन्तजार कर रही हों की हम लोग कुछ बोले, गुड्डी भी चुप तो मैं ही बोला



" मम्मी क्या था तीसरा आसीर्बाद, "

वो बड़ी जोर से हंसी फिर बोलीं तोहरे फायदे वाली बात, वो बड़ी सीरियस होके बोलीं,


' कुल पंडा, एक दो नहीं सब के सब, आसीर्बाद दिए की जेकरे लिए मनौती है जिसको नौकरी मिली है, वो जरूर यही पोखरी में डुबकी मारेगा, एक बार नहीं बार बार,... "
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और अबकी श्वेता जो ध्यान से मेरी रगड़ाई सुन रही थी, उसकी आवाज आयी,

" और बनारस के पंडो का आसीर्बाद कभी खाली नहीं जाता "
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" अरे डेढ़ साल से ऊपर हो गया तो वही दो बात मैं कह रही थी की एक जब तोहरे भौजाई क मायके क नाऊ कहार वहां मजा ले लिए है तो तुम थोड़े छोड़े होंगे, " मम्मी बोल रही थीं


पर बीच में गुड्डी बोली,

" और अब तो तय भी हो गया की अगली बार सबके सामने, ... "

" एकदम, मम्मी बोलीं, और जल्दी से बात आगे बढ़ाई " दूसरी बात पंडो का आसीर्बाद तो तुम तो जरूर अपनी,... तो जहाँ से निकले हो उसको नहीं छोड़े, तो तुम्हारे मुझे मम्मी कहने पे तुम गरियाये नहीं जाओगे, या तेरी रगड़ाई नहीं होगी, भूल जाओ डबल गारी पड़ेगी और रगड़ाई तो, बस हफ्ता दस दिन है होली के तीन दिन बाद,... आओगे तो देखना "

छुटकी अब ताश के पीछे पड़ी थी, बोली अबकी पत्ते कौन फ़ेंटेगा,... मम्मी बोलीं, तुम दोनों नहीं मैं फेंटूंगी। और फोन रख दिया,... लेकिन फोन रखने के पहले उन्होंने धीरे से एक बात कही जो सिर्फ मैंने और गुड्डी ने सुनी,


" मम्मी बोलते हो तो बहुत अच्छा लगता है, खूब मीठा मीठा लगता है लगता है एकदम दिल से बोल रहे हो। "
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जबतक मैं जी मम्मी बोलता फोन कट गया, लेकिन गुड्डी ने जिस प्यार से मुझे देखा, ...मै मान गया उसकी यह बात भी बाकी बात की तरह सही थी,

हाँ जब तक हम लोग सीढ़ी चढ़ के ऊपर पहुंचे एक बार फिर गुड्डी का फोन बजा और बजाय खोलने के उसने मुझे पकड़ा दिया, तेरे लिए ही होगा, मम्मी का फोन है।



उन्ही का था, बड़ी मिश्री भरी आवाज एकदम छेड़ने वाली चिढ़ाने वाली, बोलीं

" मम्मी इस लिए तो नहीं कहते की दुद्धू , पीने का मन करता है अबकी आओगे न होली के बाद, पिला दूंगी "
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और जब तक मैं कुछ जबाब देता फोन कट गया था और हम लोग चंदा भाभी के घर पहुँच गए थे।



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वो मुझे चंदा भाभी के घर सीधे ले गई। वो मास्टर बेडरूम में थी। एक आलमोस्ट ट्रांसपरेंट सी साड़ी पहने वो भी एकदम बदन से चिपकी, खूब लो-कट ब्लाउज़।

उन्हें देखते ही गुड्डी चहक के बोली- “देखिये आपके देवर को बचाकर लायी हूँ इनका कौमार्य एकदम सुरक्षित है। हाँ आगे आप के हवाले वतन साथियों। मैं अभी जस्ट कपड़े बदल के आती हूँ…” और वो मुड़ गई।

“हेहे, लेकिन,... ये तो मैंने सोचा नहीं…” मेरी चमकी। मैं बोल पड़ा।


“क्या?” वो दोनों साथ-साथ बोली।

“अरे यार मैं। मैं क्या कपड़ा पहनूंगा। और सुबह ब्रश। वो भी नहीं लाया…”

“ये कौन सी परेशानी की बात है कुछ मत पहनना…” चंदा भाभी बोली।

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“सही बात है आपकी भाभी का घर है, जो वो कहें। और वैसे भी इस घर में कोई मर्द तो है नहीं। भाभी हैं, मैं हूँ. गुंजा है। तो आपको तो लड़कियों के ही कपड़े मिल सकते हैं। और मेरे और गुंजा के तो आपको आयेंगे नहीं हाँ…”

भाभी की और आँख नचाकर वो कातिल अदा से बोली, और मुड़कर बाहर चल दी।
Hole update is just amazing full hasi mazak and Sweta ka choti ki chut sehlane wala kiya hi kehna aapne phone pe sunne wala jo likha wo bahut awesome tha

Superb Writing ✍️ Mam
 
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इसे कहते हैं कत्ल भी हो जाए और खून का एक कतरा तक न बहे ।
अपने संवाद लेखन से , अपडेट के विषय वस्तु से , घटनाक्रम का परिवेश स्थापित करने मे , रोमांटिक दृश्य एवं कामुक दृश्य क्रिएट करने मे जो महारथ आप को हासिल है वह इस फोरम पर किसी का भी नही ।
इस अध्याय मे सबकुछ होकर भी कुछ नही हुआ । संध्या भाभी और आनंद के दरम्यान यौन संबंध स्थापित होकर भी सेक्स क्रीडा कार्यक्रम मुकम्मल नही हुआ ।
दो खुबसूरत औरतों का पेयर लेस्बियन रिलेशनशिप स्थापित करने मे कामयाब होकर भी रीडर्स को अधूरेपन का एहसास हुआ ।
और बड़ी बात यह थी कि यह सब कुछ किरदारों के जुबानी और उनके क्रियाकलाप से यह सबकुछ दर्शाया आपने ।
आप की जुबानी कही हुई बातें पुरे अपडेट मे नाम मात्र भर की थी । इसी से जाहिर होता है कि आप किस लेवल की लेखिका है ।

This was totally tremendous 👏

अपडेट की बात करें तो आनंद भाई साहब को नई नवेली दुल्हन बनाने मे इन औरतों और लड़कियों ने कोई कोर कसर नही छोड़ी । रसिया को वास्तव मे इन्होने नार बना डाला ।
सोलह सिंगार के हर सिंगार का इस्तेमाल आनंद पर आजमाया गया । औरत के वस्त्र , चुड़ी , महावर , पायल , बिछूए , करधनी , झूमके , नथ , टिकुली , नेल पाॅलिस की क्या बात करें , सिंदूर तक लगा दिया गया ।

मुझे एक बार डर भी लगा कि कही रीत इन्हे वास्तव मे निहूर कंपनी के जमात मे न शामिल करा दे ! डिल्डो देखकर भला कौन न भयभीत हो जाए !


बहुत बहुत खुबसूरत अपडेट कोमल जी ।
शायद इसीलिए एक महान विद्वान ने कहा था कि एक अच्छे राइटर बनने के लिए छ मंत्र है - Read , Read , Read & Write , Write , Write .
आप की अनवरत लेखनी और उन रचनाओं के तत्व इन बातों की पुष्टी करती है ।

Outstanding , Fabulous & Amazing updates.
 
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San
, संध्या भाभी-

देह की होली -जरा सी




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मैंने संध्या भाभी को पकड़ा और बिना किसी बहाने के सीधे हाथ उनके जोबन पे। एकदम परफेक्ट साइज थी उनकी ना ज्यादा छोटी ना ज्यादा बड़ी, 34सी। पहले तो मैंने थोड़ा सहलाया लेकिन फिर कसकर खुलकर रगड़ना मसलना। अब सब कुछ सबके सामने हो रहा था।

रंग वंग तो पहले ही होगया था अब तो सिर्फ देह की होली,

संध्या भाभी के जोबन एकदम कड़क थे, मेरा एक हाथ नीचे से सहलाते हुए ऊपर जाता और जहाँ निपल बस टच होता कस कस मसलना रगड़ना, दूसरा तो मेरी मुट्ठी में कैद था पहले से ही।

दोनों हाथों में लड्डू और इस रगड़ने मसलने का असर दो लोगों पर हो रहा था, एक तो संध्या भाभी पे वो ऐसी गरमा रही थीं, मचल रही थी, जाँघे अपनी आपस में रगड़ रही थी, गुड्डी की पांच दिन वाली आंटी आज जाने वाली थीं, लेकिन संध्या भाभी की कल ही चली गयीं थी वो पांच दिन वाली और उसके बाद तो जो गरमी मचती है चूत महरानी को, पांच दिन की छुट्टी और उसके पहले भी पति से दूर लेकिन सबसे बढ़कर संध्या भाभी ने जिस मोटे खूंटे को पकड़ा मसला था, कभी सपने में भी नहीं सोचा था, इतना मोटा और मस्त हो सकता है, बस मन कर रहा था वो अब अंदर घुस जाए,

और संध्या भाभी से ज्यादा अगर कोई खुश था तो वो गुड्डी,

" बुद्धूराम को कुछ अक्ल तो आयी वरना सोते जगते तो उन्हें बस एक ही चीज दिखाई पड़ती थी, गुड्डी।

और आज भी गुड्डी ने जो बोला था उन्हें संध्या भाभी के लिए उसी का असर, और सबसे बड़ी बात सब लड़कियों से तो लोग सुहागरात के बाद पूछते हैं, कैसा था मरद, मतलब कितना लम्बा, कितना मोटा, कितनी देर रगड़ा, झाड़ के झडा या ऐसे ही और फिर मन ही मन अपने यार या मरद से कम्पेयर करते हैं, या गुड्डी ने खुद ही, देख लो, कोई दूर दूर तक नहीं टिकेगा, हाँ थोड़ा झिझकता है तो गुड्डी है न, जिसकी बात वो सपने में भी नहीं टाल सकता,

दोनों जोबन कस के मसले जा रहे थे, खूंटा जबरदस्त खड़ा, भले साली सलहजों ने मिल के नारी का रूप बना दिया हो लेकिन उस नौ इंच के मोटे मूसल का क्या करतीं जिसको घोंटने के लिए सब दिवाली थी, गूंजा से लेकर दूबे भाभी तक

जरा सा निपल कस के पिंच कर दिया तो संध्या भाभी सिसक पड़ीं

“क्यों भाभी कैसा लग रहा है मेरा मसलना रगड़ना? मैं जोर से कर रहा हूँ या आपके वो करते हैं?”

मैंने निपल कसकर पिंच करते हुए पूछा। मेरे मन से अभी वो बात गई नहीं थी, उन्होंने कहीं थी की मैं तो अभी बच्चा हूँ।

रीत को चंदा भाभी ने दबोच लिया था। आखीरकार, रिश्ता उनका भी तो ननद भाभी का था।

चंदा भाभी का एक हाथ रीत की पाजामी में था और दूसरा उसके जोबन पे। वही से वो बोली-

“अरे पूरा पूछो न। इसके 10-10 यार तो सिर्फ मेरी जानकारी में मायके में थे, और ससुराल में भी देवर, नन्दोई सबने नाप जोख तो की ही होगी। सब जोड़कर बताओ न ननद रानी की चूची मिजवाने का मजा किसके साथ ज्यादा आया?”



लेकिन संध्या भाभी को बचाने आई दूबे भाभी और साथ में गुड्डी।

बचाना तो बहाना था, असली बात तो मजा लेने की थी।

दूबे भाभी ने पीछे से मुझे दबोच लिया और उनके दोनों हाथ मेरी ब्रा के ऊपर, और पीछे से वो अपनी बड़ी-बड़ी लेकिन एकदम कड़ी 38डीडी चूचियां मेरी पीठ पे रगड़ रही थी, और कमर उचका-उचका के ऐसे धक्के मार रही थी की क्या कोई मर्द चोदेगा,

और साथ में गुड्डी भी खाली और खुली जगहों पे रंग लगा रही थी। और साथ में मौका मुआयाना भी कर रही थी की मैं उसकी संध्या दी की सेवा ठीक से कर रहा हूँ की नहीं, और गरिया भी रही थी, उकसा भी रही थी, भांग का असर गुड्डी पे भी जबरदस्त था और गालियां भी उसी तरह से डबल डोज वाली,

" स्साले, तेरी उस एलवल वाली बहन की फुद्दी मारुं, अरे तेरी उस एलवल वाली, गदहे की गली वाली बहिनिया ( मेरी ममेरी बहन,, गुड्डी के क्लास की ही और उसकी पक्की सहेली, एलवल उसके मोहल्ले का नाम और जिस गली में वो रहती थी तो बाहर कुछ धोबियों का घर तो पांच छह गदहे हरदम बंधे रहते थे तो वो गली चिढ़ाने के लिए गदहे वाली गली हो गयी थी ) की तरह नहीं है मेरी दी, जो झांट आने से पहले से ही गदहों का घोंट रही है, जवान बाद में हुयी भोसंडा पहले हो गया, अरे शादी शुदा हैं तो क्या दो तीन ऊँगली से ज्यादा नहीं घोंट सकती "


अभी तो मैं ऊपर की मंजिल पे उलझा था इसी बहाने गुड्डी ने संध्या भाभी की निचली मंजिल की ओर ध्यान दिलाया,

होली में चोली के अंदर हाथ तो पास पडोसी भी डाल लेते हैं, जोबन रगड़ मसल लेते हैं लेकिन असली देवर ननदोई तो वो जो चूत रानी की सेवा करें ,

गुड्डी का इशारा काफी था, दो उँगलियाँ संध्या भाभी की चूत में।

क्या मस्त कसी चूत थी, एकदम मक्खन, रेशम की तरह चिकनी, पहले एक उंगली फिर दूसरी भी।


क्या हाट रिस्पांस था। कभी कमर उचका के आगे-पीछे करती और कभी कसकर अपनी चूत मेरी उंगलियों पे भींच लेती। मैंने अपने दोनों पैर उनके पैरों के बीच डालकर कसकर फैला दिया। एक हाथ भाभी की रसीली चूचियों को रगड़ रहा था और दूसरा चूत के मजे ले रहा था। दो उंगलियां अन्दर, अंगूठा क्लिट पे। मैं पहले तो हौले-हौले रगड़ता रहा फिर हचक-हचक के।

अब तो संध्या भाभी भी काँप रही थी खुलकर मेरा साथ दे रही थी-

“क्या करते हो?” हल्के से वो बोली।

“जो आप जैसी रसीली रंगीली भाभी के साथ करना चाहिए…”

और अबकी मैंने दोनों उंगलियां जड़ तक पेल दी। और चूत के अन्दर कैंची की तरह फैला दिया और गोल-गोल घुमाने लगा।

मजे से संध्या भाभी की हालत खराब हो रही थी।

गुड्डी खुश नहीं महा खुश। यही तो वो चाहती थी, मेरी झिझक टूटे और उसके मायकेवालियों को पता चले की कैसा है उसका बाबू, और साथ में वो बोली मुझसे ,


" जो खूंटा घोंट चुकी हो उसका ऊँगली से क्या होगा "

जो हरकत मैं संध्या भाभी के साथ कर रहा था, करीब-करीब वही दूबे भाभी मेरे साथ कर रही थी और गुड्डी भी जो अब तक हर बात पे ‘वो पांच दिन’ का जवाब दे देती थी खुलकर उनके साथ थी।

दूबे भाभी ने मेरे कपड़े उठा दिए। कपडे मतलब, अभी तो गुड्डी के मायकवालियों ने मिल के मुझे साड़ी साया पहना दिया था वो वही साड़ी साया

साड़ी का जो फायदा पुराने जमाने से औरतों को मिलता आया है वो मुझे मिल गया, उठाओ। काम करो, कराओ और पहला खतरा होते ही ढक लो।

मेरे लण्ड राज बाहर आ गए, और साथ ही मैंने भी संध्या भाभी का साया हटा दिया था और वो सीधे उनकी चूतड़ की दरार पे,

तो पिछवाड़े मेरे मूसल राज रगड़घिस्स कर रहे थे और संध्या भाभी की प्रेम गली में मेरी दोनों उँगलियाँ, कभी गोल गोल, तो कभी चम्मच की तरह मोड़ के काम सुरंग की अंदर की दिवालो पर,

कल रात चंदा भाभी की पाठशाला के नाइट स्कूल में भाभी ने सब ज्ञान दे दिया था, नर्व एंडिंग्स कहाँ होती हैं और जी प्वॉइंट कहाँ, छू के ही लड़की को पागल कैसे बनाते हैं और आज वह सब सीखा पढ़ा पाठ, संध्या भाभी के साथ ।

भाभी की चूत एक तार की चाशनी फेंक रही थी, मेरी उँगलियाँ रस से एकदम गीली, फुद्दी फुदक रही थी, कभी सिकुड़ती तो कभी फैलती, और तवा गरम समझ के उँगलियों का आखिरी हथियार भी मैंने चला दिया,

अंगूठे से क्लिट के जादुई बटन को रगड़ना,

और अब संध्या भाभी की देह एकदम ढीली पड़ गयी, मुंह से बस सिसकियाँ निकल रही थीं, आँखे आधी मुंदी और जाँघे अपने आप फैली,

गुड्डी मुझे देख के खुश हो रही थी, संध्या भाभी की हालत देख कर वो समझ गयी मेरी उँगलियाँ अंदर क्या ग़दर मचा रही थीं।

मैंने थोड़ी देर तक तो खूंटा गाण्ड की दरार पे रगड़ा और फिर थोड़ा सा संध्या भाभी को झुकाकर कहा-

“पेल दूं भाभी। आपको अपने आप पता चल जाएगा की सैयां के संग रजैया में ज्यादा मजा आया या देवर के संग होली में?”

मुड़कर जवाब उनके होंठों ने दिया। बिना बोले सिर्फ मेरे होंटों पे एक जबर्दस्त किस्सी लेकर और फिर बोल भी दिया-

“फागुन तो देवर का होता है…”

चंदा भाभी रीत को जम के रगड़ रही थीं लेकिन मेरा और संध्या भाभी का खेल देख रही थीं, जैसे कोई पहलवान गुरु अपने चेले को पहली कुश्ती लड़ते देख रहा हो, वहीँ से वो बोलीं

" और देवर भौजाई का फागुन साल भर चलता है, खाली महीने भर का नहीं"
Sandhya bhabhi ki halat to ungli me hi khrab ho gyi, hosh kho bethi.
 
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