अब जाके.. नट बोल्ट में फिक्स होगा....San
Sandhya bhabhi ki halat to ungli me hi khrab ho gyi, hosh kho bethi.
अब जाके.. नट बोल्ट में फिक्स होगा....San
Sandhya bhabhi ki halat to ungli me hi khrab ho gyi, hosh kho bethi.
संध्या भाभी ससुराल से वापस आईं हैं..Waise trailer ke sath ek choti si film to ho hi skti thi sandhya bhabhi ke sath. Pata to sabko hai hi or dubey bhabhi ne to khudh pakad ke nishana lgaya
सही बात.. समय समय दर्शन देते रहें...बहुत बहुत आभार
बहुत ख़ुशी होती है आप ऐसे पुराने रससिद्ध और नियमित पाठको को कहानी पर देख कर
और इस अपडेट के बाद पहला कमेंट आपका ही, भीषण गर्मी के बाद आषाढ़ की पहली बूँद की तरह, और जो कुछ कहा आपने उसके लिए भी धन्यवाद, इस गुजारिश के साथ की इस कहानी के साथ बने रहें, जबतक कोई हुंकारी भरने वाला न हो कहानी सुनाने का मजा नहीं आता।
सचमुच ये परिवर्धन .. प्रशंसनीय है....बहुत बहुत धन्यवाद और आप भी इस बधाई के असली हकदार हैं । आपने ही आगे की पोस्टों को देखते हुए रीत के रूप में बदलाव की बात कही थी और सिर्फ रीत ही नहीं, गुड्डी, संध्या भाभी, गुड्डी की मम्मी और गुड्डी को बहनों के रोल में भी बिना कथानक को बदले हुए और प्रवाह को रोके रफ़ूगीरी करनी पड़ी है और आप ऐसे रसज्ञ पाठक उसे समझ भी रहे हैं और पसंद भी कर रहे हैं
आभार
इंतजामात पूरे हैं...बहुत बहुत आभार कहानी पर पधारने के लिए
आप ऐसे सशक्त लेखक पढ़ें और पढ़ कर कमेंट दें इससे अच्छा कहानी का क्या सौभाग्य हो सकता है।
वेसिलीन, वो भी बड़ी शीशी
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।एकदम सही बिंदु को पकड़ा आपने,
छोटे शहरों का रोमांस, और वो रोमांस, आई लव यू बोलने वाला, फ़िल्मी गाना गाने वाला या प्रेम पत्र वाला नहीं होता बल्कि हक जमाने वाला ही होता है, और वहां देह सबंध उद्देश्य नहीं होता, हाँ हो जाता है सहज ढंग से तो अलग बात है, लेकिन साथ साथ रहना, चुप चाप देखना, कभी मौका पाके हाथ पकड़ लेना, और बिना बोले ही बहुत कुछ कह देना और लिखने वाले के लिए यही चैलेन्ज है की इन रिश्तो को जिसे कोई नाम भी नहीं दे सकते कैसे कलमबद्ध करें
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भवन मैं करत हैं, नैननु ही सब बात॥
तो बिन बोले ही इन सब चेष्टाओं के जरिये बात कहना ही लेखक के लिए चुनौती भी है और आनंद भी
और आप ऐसे सहृदय पाठक मिल जाए तो ये आनंद सौ गुना हो जाता है।
एक इंग्लिश की पत्रिका का कहना है कि..गुड्डी उदार हृदय तो है ही और वो सब पे जताना भी चाहती है , ऑनर्स प्राइड, नेबर्स एनवी
और सबसे बड़ी बात उसे अपने ऊपर भी विश्वास है और आनंद पर भी, पुनि जहाज को पंछी पुनि जहाज पर आवे।
अगर रिश्ते विश्वास पर टिके होते हैं तो कभी कभार वाले कैजुअल सेक्स संबंध उसमे दरार नहीं डाल सकते,
और आप की आशंका सही है , चंदा भाभी के साथ क्या होगा ये आप आगे के अपडेट्स में पढ़ेंगे
सचमुच इनके कमेंट्स विस्तृत और टू द प्वायंट होते हैं...मैं निशब्द हूँ।
कभी लगता है, कमेंट्स नहीं आते, व्यूज भी नहीं तो मैं सबका समय क्यों व्यर्थ कर रही हूँ , और संशय के इस झंझावात के बीच, लिखूं, न लिखूं पोस्ट करूँ न करूँ, इस उहापोह के बीच संजीवनी की तरह आपकी समीक्षा आ जाती है और प्यासे चातक सी हालत होती है मेरी।
फिर लगता है ऐसे एक कमेंट हजार के बराबर हैं और कुछ लोग तो हैं जो इन पोस्टों को पढ़ के आनन्दित हो रहे हैं। ऐसे रसज्ञ, मर्मज्ञ, सिद्धहस्त लेखक अगर समय निकाल के आ रहे हैं तो मुझे सोचने की जरूरत नहीं है , अगला भाग पोस्ट कर देना चाहिए।
आप के शब्दों के लिए कोई भी आभार कम होगा। आपने जो टिप्पणी की एकदम सारगर्भित ढंग से कहानी का खाका खींच दिया।
आभार धन्यवाद
शायद मन की मुराद पूरी हो जाए....एकदम सही कहा आपने, ठीक से ट्रेलर भी नहीं चला अभी तो अगर पूरी फिल्म चलेगी तो शायद उठने लायक नहीं रहेंगी, लेकिन चाहती संध्या भाभी भी यही हैं, उठने लायक न रहें
कोई बात नहीं, जल्दी ही मैं अगला पार्ट भी पोस्ट कर दूंगी तो,.... दोनों के साथ ही, ....मैं इन्तजार करुँगी।
उनके आने की बंधी थी, आस जब तक हमनशीं,
सुबह हो जाती थी अक्सर जानिबे - दर देखते।