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Erotica फागुन के दिन चार

motaalund

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, संध्या भाभी-

देह की होली -जरा सी




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मैंने संध्या भाभी को पकड़ा और बिना किसी बहाने के सीधे हाथ उनके जोबन पे। एकदम परफेक्ट साइज थी उनकी ना ज्यादा छोटी ना ज्यादा बड़ी, 34सी। पहले तो मैंने थोड़ा सहलाया लेकिन फिर कसकर खुलकर रगड़ना मसलना। अब सब कुछ सबके सामने हो रहा था।

रंग वंग तो पहले ही होगया था अब तो सिर्फ देह की होली,

संध्या भाभी के जोबन एकदम कड़क थे, मेरा एक हाथ नीचे से सहलाते हुए ऊपर जाता और जहाँ निपल बस टच होता कस कस मसलना रगड़ना, दूसरा तो मेरी मुट्ठी में कैद था पहले से ही।

दोनों हाथों में लड्डू और इस रगड़ने मसलने का असर दो लोगों पर हो रहा था, एक तो संध्या भाभी पे वो ऐसी गरमा रही थीं, मचल रही थी, जाँघे अपनी आपस में रगड़ रही थी, गुड्डी की पांच दिन वाली आंटी आज जाने वाली थीं, लेकिन संध्या भाभी की कल ही चली गयीं थी वो पांच दिन वाली और उसके बाद तो जो गरमी मचती है चूत महरानी को, पांच दिन की छुट्टी और उसके पहले भी पति से दूर लेकिन सबसे बढ़कर संध्या भाभी ने जिस मोटे खूंटे को पकड़ा मसला था, कभी सपने में भी नहीं सोचा था, इतना मोटा और मस्त हो सकता है, बस मन कर रहा था वो अब अंदर घुस जाए,

और संध्या भाभी से ज्यादा अगर कोई खुश था तो वो गुड्डी,

" बुद्धूराम को कुछ अक्ल तो आयी वरना सोते जगते तो उन्हें बस एक ही चीज दिखाई पड़ती थी, गुड्डी।

और आज भी गुड्डी ने जो बोला था उन्हें संध्या भाभी के लिए उसी का असर, और सबसे बड़ी बात सब लड़कियों से तो लोग सुहागरात के बाद पूछते हैं, कैसा था मरद, मतलब कितना लम्बा, कितना मोटा, कितनी देर रगड़ा, झाड़ के झडा या ऐसे ही और फिर मन ही मन अपने यार या मरद से कम्पेयर करते हैं, या गुड्डी ने खुद ही, देख लो, कोई दूर दूर तक नहीं टिकेगा, हाँ थोड़ा झिझकता है तो गुड्डी है न, जिसकी बात वो सपने में भी नहीं टाल सकता,

दोनों जोबन कस के मसले जा रहे थे, खूंटा जबरदस्त खड़ा, भले साली सलहजों ने मिल के नारी का रूप बना दिया हो लेकिन उस नौ इंच के मोटे मूसल का क्या करतीं जिसको घोंटने के लिए सब दिवाली थी, गूंजा से लेकर दूबे भाभी तक

जरा सा निपल कस के पिंच कर दिया तो संध्या भाभी सिसक पड़ीं

“क्यों भाभी कैसा लग रहा है मेरा मसलना रगड़ना? मैं जोर से कर रहा हूँ या आपके वो करते हैं?”

मैंने निपल कसकर पिंच करते हुए पूछा। मेरे मन से अभी वो बात गई नहीं थी, उन्होंने कहीं थी की मैं तो अभी बच्चा हूँ।

रीत को चंदा भाभी ने दबोच लिया था। आखीरकार, रिश्ता उनका भी तो ननद भाभी का था।

चंदा भाभी का एक हाथ रीत की पाजामी में था और दूसरा उसके जोबन पे। वही से वो बोली-

“अरे पूरा पूछो न। इसके 10-10 यार तो सिर्फ मेरी जानकारी में मायके में थे, और ससुराल में भी देवर, नन्दोई सबने नाप जोख तो की ही होगी। सब जोड़कर बताओ न ननद रानी की चूची मिजवाने का मजा किसके साथ ज्यादा आया?”



लेकिन संध्या भाभी को बचाने आई दूबे भाभी और साथ में गुड्डी।

बचाना तो बहाना था, असली बात तो मजा लेने की थी।

दूबे भाभी ने पीछे से मुझे दबोच लिया और उनके दोनों हाथ मेरी ब्रा के ऊपर, और पीछे से वो अपनी बड़ी-बड़ी लेकिन एकदम कड़ी 38डीडी चूचियां मेरी पीठ पे रगड़ रही थी, और कमर उचका-उचका के ऐसे धक्के मार रही थी की क्या कोई मर्द चोदेगा,

और साथ में गुड्डी भी खाली और खुली जगहों पे रंग लगा रही थी। और साथ में मौका मुआयाना भी कर रही थी की मैं उसकी संध्या दी की सेवा ठीक से कर रहा हूँ की नहीं, और गरिया भी रही थी, उकसा भी रही थी, भांग का असर गुड्डी पे भी जबरदस्त था और गालियां भी उसी तरह से डबल डोज वाली,

" स्साले, तेरी उस एलवल वाली बहन की फुद्दी मारुं, अरे तेरी उस एलवल वाली, गदहे की गली वाली बहिनिया ( मेरी ममेरी बहन,, गुड्डी के क्लास की ही और उसकी पक्की सहेली, एलवल उसके मोहल्ले का नाम और जिस गली में वो रहती थी तो बाहर कुछ धोबियों का घर तो पांच छह गदहे हरदम बंधे रहते थे तो वो गली चिढ़ाने के लिए गदहे वाली गली हो गयी थी ) की तरह नहीं है मेरी दी, जो झांट आने से पहले से ही गदहों का घोंट रही है, जवान बाद में हुयी भोसंडा पहले हो गया, अरे शादी शुदा हैं तो क्या दो तीन ऊँगली से ज्यादा नहीं घोंट सकती "


अभी तो मैं ऊपर की मंजिल पे उलझा था इसी बहाने गुड्डी ने संध्या भाभी की निचली मंजिल की ओर ध्यान दिलाया,

होली में चोली के अंदर हाथ तो पास पडोसी भी डाल लेते हैं, जोबन रगड़ मसल लेते हैं लेकिन असली देवर ननदोई तो वो जो चूत रानी की सेवा करें ,

गुड्डी का इशारा काफी था, दो उँगलियाँ संध्या भाभी की चूत में।

क्या मस्त कसी चूत थी, एकदम मक्खन, रेशम की तरह चिकनी, पहले एक उंगली फिर दूसरी भी।


क्या हाट रिस्पांस था। कभी कमर उचका के आगे-पीछे करती और कभी कसकर अपनी चूत मेरी उंगलियों पे भींच लेती। मैंने अपने दोनों पैर उनके पैरों के बीच डालकर कसकर फैला दिया। एक हाथ भाभी की रसीली चूचियों को रगड़ रहा था और दूसरा चूत के मजे ले रहा था। दो उंगलियां अन्दर, अंगूठा क्लिट पे। मैं पहले तो हौले-हौले रगड़ता रहा फिर हचक-हचक के।

अब तो संध्या भाभी भी काँप रही थी खुलकर मेरा साथ दे रही थी-

“क्या करते हो?” हल्के से वो बोली।

“जो आप जैसी रसीली रंगीली भाभी के साथ करना चाहिए…”

और अबकी मैंने दोनों उंगलियां जड़ तक पेल दी। और चूत के अन्दर कैंची की तरह फैला दिया और गोल-गोल घुमाने लगा।

मजे से संध्या भाभी की हालत खराब हो रही थी।

गुड्डी खुश नहीं महा खुश। यही तो वो चाहती थी, मेरी झिझक टूटे और उसके मायकेवालियों को पता चले की कैसा है उसका बाबू, और साथ में वो बोली मुझसे ,


" जो खूंटा घोंट चुकी हो उसका ऊँगली से क्या होगा "

जो हरकत मैं संध्या भाभी के साथ कर रहा था, करीब-करीब वही दूबे भाभी मेरे साथ कर रही थी और गुड्डी भी जो अब तक हर बात पे ‘वो पांच दिन’ का जवाब दे देती थी खुलकर उनके साथ थी।

दूबे भाभी ने मेरे कपड़े उठा दिए। कपडे मतलब, अभी तो गुड्डी के मायकवालियों ने मिल के मुझे साड़ी साया पहना दिया था वो वही साड़ी साया

साड़ी का जो फायदा पुराने जमाने से औरतों को मिलता आया है वो मुझे मिल गया, उठाओ। काम करो, कराओ और पहला खतरा होते ही ढक लो।

मेरे लण्ड राज बाहर आ गए, और साथ ही मैंने भी संध्या भाभी का साया हटा दिया था और वो सीधे उनकी चूतड़ की दरार पे,

तो पिछवाड़े मेरे मूसल राज रगड़घिस्स कर रहे थे और संध्या भाभी की प्रेम गली में मेरी दोनों उँगलियाँ, कभी गोल गोल, तो कभी चम्मच की तरह मोड़ के काम सुरंग की अंदर की दिवालो पर,

कल रात चंदा भाभी की पाठशाला के नाइट स्कूल में भाभी ने सब ज्ञान दे दिया था, नर्व एंडिंग्स कहाँ होती हैं और जी प्वॉइंट कहाँ, छू के ही लड़की को पागल कैसे बनाते हैं और आज वह सब सीखा पढ़ा पाठ, संध्या भाभी के साथ ।

भाभी की चूत एक तार की चाशनी फेंक रही थी, मेरी उँगलियाँ रस से एकदम गीली, फुद्दी फुदक रही थी, कभी सिकुड़ती तो कभी फैलती, और तवा गरम समझ के उँगलियों का आखिरी हथियार भी मैंने चला दिया,

अंगूठे से क्लिट के जादुई बटन को रगड़ना,

और अब संध्या भाभी की देह एकदम ढीली पड़ गयी, मुंह से बस सिसकियाँ निकल रही थीं, आँखे आधी मुंदी और जाँघे अपने आप फैली,

गुड्डी मुझे देख के खुश हो रही थी, संध्या भाभी की हालत देख कर वो समझ गयी मेरी उँगलियाँ अंदर क्या ग़दर मचा रही थीं।

मैंने थोड़ी देर तक तो खूंटा गाण्ड की दरार पे रगड़ा और फिर थोड़ा सा संध्या भाभी को झुकाकर कहा-

“पेल दूं भाभी। आपको अपने आप पता चल जाएगा की सैयां के संग रजैया में ज्यादा मजा आया या देवर के संग होली में?”

मुड़कर जवाब उनके होंठों ने दिया। बिना बोले सिर्फ मेरे होंटों पे एक जबर्दस्त किस्सी लेकर और फिर बोल भी दिया-

“फागुन तो देवर का होता है…”

चंदा भाभी रीत को जम के रगड़ रही थीं लेकिन मेरा और संध्या भाभी का खेल देख रही थीं, जैसे कोई पहलवान गुरु अपने चेले को पहली कुश्ती लड़ते देख रहा हो, वहीँ से वो बोलीं

" और देवर भौजाई का फागुन साल भर चलता है, खाली महीने भर का नहीं"
संध्या भाभी पर होली का मौका और दस्तूर दोनों लागू हो रहा है...
तो आनंद को भी अपनी हिचक दूर करके..
थोड़ा साइड में ले जाके..
और गुड्डी भी खुश होगी कि जो संध्या भाभी अपने वाले का साइज घमंड से बता रही थी..
अब जा के पता चलेगा कि गुड्डी के प्रारब्ध में क्या है..
 

motaalund

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देवर भौजाई का फागुन




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गुड्डी मुझे देख के खुश हो रही थी, संध्या भाभी की हालत देख कर वो समझ गयी मेरी उँगलियाँ अंदर क्या ग़दर मचा रही थीं।

मैंने थोड़ी देर तक तो खूंटा गाण्ड की दरार पे रगड़ा और फिर थोड़ा सा संध्या भाभी को झुकाकर कहा- “पेल दूं भाभी। आपको अपने आप पता चल जाएगा की सैयां के संग रजैया में ज्यादा मजा आया या देवर के संग होली में?”





मुड़कर जवाब उनके होंठों ने दिया। बिना बोले सिर्फ मेरे होंटों पे एक जबर्दस्त किस्सी लेकर और फिर बोल भी दिया-

“फागुन तो देवर का होता है…”

चंदा भाभी रीत को जम के रगड़ रही थीं लेकिन मेरा और संध्या भाभी का खेल देख रही थीं, जैसे कोई पहलवान गुरु अपने चेले को पहली कुश्ती लड़ते देख रहा हो, वहीँ से वो बोलीं



" और देवर भौजाई का फागुन साल भर चलता है, खाली महीने भर का नहीं"

और मैं देवर का हक पूरी तरह अदा कर रहा था।

लण्ड का बेस तो दूबे भाभी के हाथ था, और सुपाड़ा संध्या भाभी की चूत के मुहाने पे रगड़ खा रहा था। दूबे भाभी ने पीछे से ऐसे धक्का दिया की जैसे वही चोद रही हों। लेकिन फायदा मेरा हुआ, हल्का सा सुपाड़ा भाभी की चूत में। बस इतना काफी था उन्हें पागल करने के लिए।

चूत की सारी नशें तो शुरू के हिस्से में ही रहती हैं। मैंने हल्के से कमर गोल-गोल घुमानी शुरू की और सुपाड़ा चूत की दीवाल से रगड़ने लगा।

मैंने चारों ओर देखा और कान में बोला- “भाभी। आप कह रही थी ना की गधे घोड़े ऐसा। तो अगर सुपाड़े में इत्ता मजा आ रहा है तो पूरा घोंटने में कितना आएगा। और सुपाड़ा तो बस आप लील ही जायेंगी तो फिर पूरा लण्ड भी अन्दर चला जाएगा…”

संध्या भाभी मजे से सिसक रही थी और उनकी सिसकियों से ज्यादा जिस तरह उनकी कमर पीछे की ओर पुश कर रही थी, उनकी चूत चिपक, फ़ैल रही थी, बता रही थी उन्हें कितना मजा आ रहा था,



लेकिन गुड्डी को बिलकुल मजा नहीं आ रहा था, वो एकदम रिंग साइड सीट पर थी, लेकिन वो सौ कोस दूर भी होती तो मन में उसने जो जादुई शीशा लगा रखा था, उसे मेरी एक एक बात बिना देखे पता चल जाती थी, और जो उस की आदत थी, सब के समाने उसने जोर से हड़काया,

" अरे जरा से क्या होगा, संध्या दी का, बाकी क्या अपनी उस रंडी एलवल वाली के लिए बचा रखा है, अरे मैंने बोल दिया, रीत ने बोल दिया, दूबे भाभी की मुहर लग गयी की जब लौट के उसे साथ ले के आओगे तो उस पे रॉकी को चढ़ाएंगे, तेरा जीजा बनाएंगे, उसकी मोटी गाँठ का मजा एक बार ले लेगी तो जिंदगी भर तेरे गुन जाएगी, भाई हो तो ऐसा, राखी का पैसा माफ़ कर देगी, "

एक तो संध्या भाभी की देह की गर्मी, फिर गुड्डी का हुकुमनामा,

मेरी बात और काम दोनों दूबे भाभी ने पूरी की-

“अरे जो साली ये कहे की लण्ड मोटा है उसे घोंटने में दिक्कत होगी। इसका मतलब वो रंडीपना कर रही है, पैदाइशी छिनाल है मादरचोद। उसकी चूत और गाण्ड दोनों में पूरा ठोंक देना चाहिए और ना माने तो मेरी मुट्ठी है ही। अरे इत्ते बड़े-बड़े बच्चे इसी चूत से निकलते हैं, पूरी दुनियां इसी चूत से निकलती है, ये बोलना चूत की बेइज्जती करना है…”

और ये कहते हुए उन्होंने दो उंगलियां मेरे पीछे डाल दी, और इसका खामियाजा संध्या भाभी को भुगतना पड़ा।

एक न्यूटन नाम के आदमी थे न जिन्होंने एक कानून बनाया था एवेरी एक्शन हैज, वही वाला, तो वही हुआ।

उस झटके से मेरा पूरा सुपाड़ा अब उनकी कसी मस्त चूत में था।



मेरी दो उंगलियां जो भाभी की गाण्ड का हाल चाल ले रही थी, वो भी पूरी अन्दर। गनीमत था की उनकी चूची मैंने कसकर पकड़ रखी थी, वरना इतने तगड़े झटके से वो गिर भी सकती थी। आगे से लण्ड और पीछे से मेरी उंगलियां। संध्या भाभी को अब फागुन का पूरा रस मिलना शुरू हो गया था।

सुपाड़ा घुसते समय दर्द तो उन्हें बहुत हुआ, लेकिन जैसे चंदा भाभी कह रही थी की वो बचपन की चुदक्कड रही होंगी। उन्होंने अपने दांतों से होंठों को काटकर चीख रोकने की भरपूर कोशिश की, लेकिन तब भी दर्द की चीख निकल गई और अब मजे की सिसकियां और हल्के दर्द की आवाज दोनों साथ निकल रही थी।

उनकी दर्द से हालत खराब थी और मेरी मजे से। एकदम मुलायम चूत खूब कसी, जिस तरह से कस कस के मेरे सुपाड़े को खड़े खड़े भींच रही थी, निचोड़ रही थी, दबोच रही थी, साफ़ लगा रहा था, कितनी नदीदी है, कितनी भूखी, और मैं तो उन्हें भर पेट भोजन करा देता, लेकिन छत पर खड़े खड़े सबके सामने एक कौर खिला के ही अभी, मन बस यही कह रहा था की यार जाने के पहले एक बार मन भर, जी भर के संध्या भौजी को चोद लेने का मौका मिल जाता, नयी ब्याहता औरतों पे चढ़ने का मजा ही कुछ और है,



संध्या भौजी को मजा तीन जगह से मिल रहा था, मैं कस कस के एक हाथ से उनकी बड़ी बड़ी चूँची दबा रहा था, दूसरे हाथ की दो उँगलियाँ दो पोर तक उनके पिछवाड़े घुसी, साफ़ था की उनके मरद पिछवाड़ा प्रेमी नहीं थे, ये इलाका अभी कोरा था, और बिल में घुसा मेरा मोटा सुपाड़ा। और पिछवाड़े वाली ऊँगली भी कभी गोल गोल घूमती तो कभी अंदर बाहर होती, आखिर जब मेरे पिछवाड़े थोड़ी देर पहले ही हमला हुआ था तो संध्या भाभी ने पूरी ताकत से उसे चियारा था, अभी तक फट रही है, और सुपाड़े का एक हल्का धक्का भी संध्या भाभी की चीख निकलवा रहा था।



संध्या भाभी तो खुश थी ही, लेकिन उनसे ज्यादा दो लोग और खुश थीं, एक तो गुड्डी, ख़ुशी उसके चेहरे से छलक रही थी , दूसरे चंदा भाभी, रीत की वो जम के रगड़ाई कर रही थीं, लेकिन औरतों के कितनी आंख्ने होती हैं ये उन्हें भी नहीं मालूम होता तो वो अपने चेले का और अपनी ननद का खेल देख रही थीं। और गुरुआइन से ज्यादा चेले के अच्छा करने पे किसे ख़ुशी होगी ,

लेकिन ये वो भी जानती थी और मैं भी की इस खुली छत पे, दिन दहाड़े जहाँ चार और लोग भी हैं। फिल्म का ट्रेलर तो चल सकता था लेकिन पूरी फिल्म होनी मुश्किल थी।



“मेरी तुम्हारी होली…” वो मुश्कुराकर बोली।



लेकिन उनकी बात काटकर मैं बोला-


“होगी भाभी। अभी तो आज और फिर रंगपंचमी के दो दिन पहले ही मैं आ जाऊंगा ना, तो तीन दिन की रंगपंचमी करेंगे। मैं उधार रखने में यकीन नहीं रखता खास तौर पे ऐसी सेक्सी भाभी का…”

और अपनी बात के सपोर्ट में लण्ड का एक धक्का और दिया उनकी चूत में और चूची पूरी ताकत से दबोच ली।

हामी उनकी चूत ने भी भरी मेरे लण्ड को कसकर सिकोड़ के।

गुड्डी थी न, सिर्फ रिंग साइड पे दर्शक ही नहीं रेफरी भी, संध्या भाभी की ओर से बोली,



"दी, आज नगद कल उधार, और उधार प्रेम की कैंची है। काल करे सो आज कर, बस मैं इनको साथ ले नहीं जाउंगी जब तक ये बाकी का,... "

गुड्डी का इशारा काफी था और ये तो, ...और संध्या भाभी ने चख तो लिया ही था,



लेकिन न तो संध्या भाभी बचीं न उनकी रगड़ाई रुकी,

मेरी जगह दूबे भाभी ने ले ली और एक बार फिर साया उठ गया।

मैं दूबे भाभी और संध्या भाभी के बीच सैंडविच बना हुआ था। दूबे भाभी कन्या प्रेमी थी, इसका अंदाज तो मुझे पहले ही चल गया था। दूबे भाभी ने संध्या भाभी की दूसरी चूची पकड़ ली थी और मजे ले रही थी।


मैंने धीमे से अपना लण्ड निकाला साड़ी साया ठीक किया और निकल आया।

क्या रगड़ाई की दूबे भाभी ने संध्या भाभी की, जिस प्रेम गली में पहले मेरी ऊँगली घुसी थी फिर मोटा सुपाड़ा,

वहां अब दूबे भाभी की चार चार मोटी उँगलियाँ, कभी कैंची की तरह फैला देतीं तो कभी हचक के चोद चोद के भाभी की हालत ख़राब करती, बुर तो संध्या भाभी की पहले ही लासा हो रही थी, गप्प से भौजी की उँगलियाँ घुस गयीं,

और थोड़ी देर में संध्या भाभी नीचे और दूबे भाभी ऊपर साया दोनों का कमर तक, दूबे भौजी कस कस के अपनी गर्मायी बुर संध्या भौजी की चूत से रगड़ रही थीं जब तक दोनों लोग झड़ नहीं जाएंगी मैं जानता था था हे ननद भाभी की देह की होली रुकेगी नहीं।

उधर चंदा भाभी और रीत की होली में युद्ध विराम हो चुका था।



जब मैं संध्या भाभी के साथ लगा था तब भी मैं उनकी लड़ाई का नजारा देख रहा था।

रीत से तो कोई जीत नहीं सकता ये बात स्वयं सिद्ध थी। लेकिन चंदा भाभी भी अपने जमाने की लेस्बियन रेसलिंग क्वीन रह चुकी थी। (और हिंदुस्तान में अगर “अल्टीमेट सरेंडर…” टाईप कोई प्रोग्राम हो, जिसमें लड़कियां एक दूसरे से सिर्फ कुश्ती ही नहीं लड़ती बल्की एक दूसरे की ब्रा और पैंटी को खोलकर अलग कर देती हैं और जो जिसकी चूत में जितनी हचक के उंगली करे। उसी प्वाइंट पे जीत हार होती है। आखिरी राउंड में दोनों बिना कपड़ों के ही लड़ती हैं। और अंत में इनाम के तौर पे जितने वाली की कमर में एक डिल्डो लगाया जाता है। जिससे वो हारने वाली को हचक-हचक के चोद सकती है उसकी गाण्ड मार सकती है। तो चंदा भाभी निश्चित फाइनल में पहुँचती)।



कपड़े वपड़े तो रीत और चंदा भाभी की होली में सबसे पहले खेत रहे। पहली बाजी चंदा भाभी के हाथ थी। वो ऊपर थी और अपनी गदरायी बड़ी-बड़ी 36डी चूचियों से रीत के मादक जोबन, जो अब पूरी तरह खुले थे, रगड़ रही थी। रीत के दोनों पैर भी उन्होंने फैला दिए थे। लेकिन रीत भी कम चालाक नहीं थी। उसने अपनी लम्बी टांगों से कैंची की तरह उन्हें नीचे से ही बांध लिया। अब बेचारी चंदा भाभी हिल डुल भी नहीं सकती थी और अब वो ऊपर थी।



जो ढेर सारे रंग मैंने उसके मस्त जोबन पे लगाए थे वो सब अब चंदा भाभी की चूचियों पे छटा बिखेर रहे थे।

उसने अपने दोनों हाथ चंदा भाभी के उभारों की ओर किये तो चंदा भाभी ने दोनों हाथों से उसे पकड़ने की कोशिश की और वहीं वो मात खा गईं। रीत ने एक हाथ से उनके दोनों हाथों को पकड़ लिया और उसका खाली हाथ सीधे चंदा भाभी की जांघों के बीच। पिछली कितनी होलियों का वो बदला ले रही थी जब चंदा भाभी और दूबे भाभी मिलकर होली में उसकी उंगली करती थी। और आज जब मुकाबला बराबर का था तो तो रीत की उंगली चंदा भाभी की बुर में।

लेकिन थोड़ी देर में ही जब रीत रस लेने में लीन थी तो चंदा भाभी ने अपने को अलग कर लिया और फिर।

अगला राउंड शुरू। मुकाबला बराबर का था और दोनों पहलवान एक दूसरे को पकड़े सुस्ता रहे थे।

दोनों जोड़ियां बाकी दुनिया से बेखबर, छत के एक किनारे पे जहाँ वैसे भी अभी हुयी होली का रंग बिखरा था, ना जाने कितनी बाल्टी रंग बिखरा हुआ था, रंग की पुड़िया, पेण्ट की ट्यूब, और उस बहते हुए रंगों के बीच दूबे भाभी और संध्या भाभी की जोड़ी और रीत और चंदा भाभी,



सावन भादों की बारिश में कई बार लगता है झड़ी रुक गयी है, सिर्फ पेड़ों की पत्तियों से, ओसारे से टप टप बूंदे टपकती हैं, लेकिन फिर कहीं से पास के पोखर से, बगल के गाँव की नदी से बादल घड़े भर भर के लाते हैं और एक बार फिर बारिश शुरू हो जाती है, ठीक यही बात होली में होती है, खास तौर से घर में, ननद भौजाई में, कहीं किसी ने छेड़ दिया और फिर से होली,



और देह की होली में

तो रीत और चंदा भाभी रुकी थीं, थकी थीं, लेकिन फिर बीच बीच में, और दूबे भाभी और संध्या भाभी का कन्या रस तो हर बार एक नयी ऊंचाई पे।

पांच दस मिनट का इंटरवल और फिर दुबारा
" अरे जरा से क्या होगा, संध्या दी का, अरे मैंने बोल दिया, रीत ने बोल दिया, दूबे भाभी की मुहर लग गयी

ये सबसे सही बात बोली गुड्डी ने..
अब होली का धूम धड़ाका हो हीं जाना चाहिए..
 

motaalund

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गुड्डी - मन जिसका तन उसका




छत के दूसरे कोने पे गुड्डी बैठी थी, जिस कमरे में कल मैं और चंदा भाभी, उस की चौखट पे .

गुड्डी भी एक प्लेट में गुझिया लेकर (अब हम सब भूल चुके थे की उसमें भांग पड़ी थी) गपक रही थी-जैसे लोहे के कण बिना बुलाये चुंबक से जा चिपकते हैं मेरी हालत वही थी, गुड्डी के लिए। बड़ौदा से यहाँ आने के लिए तीन बार मैंने ट्रेन बदली, बस किया और फिर टेम्पो में बैठकर,

तो अभी जैसे ही मैं दूबे भाभी और संध्या भाभी की सैंडविच से निकला सीधे गुड्डी को सूंघता हुआ,


और दूबे भाभी और संध्या भाभी की जोड़ी और चंदा भाभी और रीत अपने में इतने मस्त थे की उन्हें फरक नहीं पड़ने वाला था की मैं और गुड्डी कहाँ है, क्या कर रहे है। जहाँ गुड्डी बैठी थी, वहां से छत का वो कोना जहाँ लेडीज रेसलिंग चल रही थी, दिखता तो था, लेकिन मुश्किल से।

मैं गुड्डी के बगल में बैठ गया और उस से चिपक के लिबराते बोलने लगा,

“हे, मुझे भी दे ना…”

पहले तो उसने चिढ़ाया, "नदीदे, मंगते, तेरी माँ बहने जैसे टांग फैला देती हैं पहला मौका पाते ही, वैसे ही तू हाथ फैला देते, ...मुझे भी दो "

फिर प्लेट के बची हुयी एकमात्र फूली फूली बड़ी सी गुझिया एक बार में गपक गयी, जैसे ठूंस ठूंस के मुंह में घुसाया हो, गाल एकदम फूले, फिर बड़ी रोमांटिक अदा में बोली

“ले लो तुम्हारे लिए तो सब कुछ हाजिर है…” उसने प्लेट बढ़ाई।

प्लेट एकदम खाली थी,



लेकिन मैंने उसका सिर पकड़कर पहले तो उसके होंठों को चूमा और फिर मुँह में जीभ डालकर उसकी खायी कुचली मुख रस में घुली गुझिया लेकर खा गया-

“ये ज्यादा रसीली नशीली है…”

मेरा एक हाथ अपने आप गुड्डी के खुले उरोजों की ओर चला गया। इन्हीं ने तो मुझे जवान होने का अहसास दिलाया था शर्म गायब की थी। वो मेरी मुट्ठी में थे।

गुड्डी को फर्क नहीं पड़ रहा था, चंदा भाभी ने उसकी फ्राक के ऊपरी हिस्से को तो चीथड़े चीथड़े कर दिया था और फ्रंट ओपन ब्रा को खोल के पहले तो कबूतरों को आजाद किया फिर रंगड़ा मसला, रंग, पेण्ट संब लगाया, लेकिन असली बात ये थी की मुझे फर्क नहीं पड़ रहा था।

खुली छत पर जहाँ चार लोग और भी थे मैं खुल के गुड्डी का जोबन रस ले रहा था।



मुझे चंदा भाभी की कल रात की बात याद आयी,

" कल तुझे और तेरी जाने आलम को यहीं कपडे फाड़ के नंगे नचाउंगी न सबके सामने तो तेरी झिझक निकल जायेगी, और तू भी जब सबके सामने उसको चूमेगा, मसलेगा, और उसके भी कपडे उतरेंगे, तो,... "

बस भाभी की बात याद आते ही मैंने गुड्डी को चूम लिया, सीधे गाल पे, और उसे खींच के अपनी गोद में बिठाने की कोशिश की, लेकिन वह मछली की तरह फिसल गयी, मैं उदास होने की सोचूं उसके पहले उसे पता चल जाता था,

खड़े खड़े प्यार से बोली,

" अरे आ रही हूँ जानू, एक तो तेरे ऐसा चोर मुंह में से मेरी गुझिया लूट ले गया, दूसरे बस,..."

गुझिया का स्टॉक सामने टेबल पर था और बियर की बॉटल्स का चंदा भाभी के कमरे में, प्लेट भर के गुझिया ( डबल डोज भांग वाली तो सभी थीं ) और दो बॉटल बियर की और लौटी तो धम्म से सीधे मेरी गोद में बैठ गयी। और दो बार एडजस्ट होने की ऐसी कोशिश की , कि गुड्डी के छोटे छोटे चूतड़ों से मेरे जंगबहादुर अच्छी तरह रगड़ गए और फनफनाने लगे। लेकिन जैसे मैंने गुझिया पर हाथ मारने कि कोशिश कि, जोर से एक पड़ी मेरे हाथ पे, और डांट भी,


' बिना तेरे हाथ लगाए काम नहीं होगा, देती हूँ न, लेकिन तुझे तो अभी भी हाथ वाली आदत है बचपन की "

मैं समझ रहा था वो किस ' हाथ वाली आदत " कि बात कर रही थी।

एक गुझिया गुड्डी ने उठायी जैसा मुझे पूरी उम्मीद थी आधा उसने खुद खा ली और आधी मेरी ओर बढ़ाई, मैंने खूब बड़ा सा मुंह खोला और

वो वाला भी गुड्डी के मुंह में।



मेरे हाथ में गुझिया नहीं आयी लेकिन और ज्यादा स्वादिष्ट चीजें आ गयी,

फ्रंट ओपन ब्रा खुलने में कितना टाइम लगता है, चुटपुट चुटपुट, और आज पहली बार दिन दहाड़े, दोनों कच्चे टिकोरे, खुली छत पे, मेरी मुट्ठी में, न रंग का बहाना, न टॉप के ऊपर से छूना सहलाना, सीधे चमड़ी से चमड़ी, मेरी हथेली कि तो आज बनारस में किस्मत खुल गयी थी, जोबन का रस तो आज मैंने सबका लूटा था,...


गूंजा ऐसी जस्ट टीन से लेकर दूबे भाभी ऐसी पक्की खेली खायी असली एम् आई एल ऍफ़ तक, और खुल के लूटा था लेकिन कभी कपड़ों कि छाँव में तो कभी रंग के बहाने

पर जिसके बारे में मैं सोते जागते सोचता था, वो मेरी गोद में दिन में खुली छत पे होगी, और उसके खुले उभार मेरी मुट्ठी में होंगे और ऐसा भी नहीं छत पे हम दोनों अकेले, लेकिन कुछ देर रगड़ने मसलने के बाद गुड्डी मेरी गोद से उठ गयी, और मेरा सर खींच के अपनी गोद में ले लिया। मैं अधलेटा सा उस सारंग नयनी, बनारस वाली कि गोद में सर रखे, उसकी बड़ी बड़ी आँखों को देखता, उसमे तिर रहे अपने सपनो को देखता,

कुछ तो है इस लड़की कि आँखों में एक बार आँख मिलने पर बोलती तो बंद होती ही है, सोचना भी बंद हो जाता है,


गुड्डी ने कस के एक हाथ से मेरे दोनों गालों को दबाया, चिरैया कि चोंच ऐसा मेरा मुंह खुल गया,

और जो गुझिया बड़े देर से वो चुभला रही थी, मुंह में रखे कूच रही थी, टुकड़े टुकड़े हो कर, गुझिया कम गुड्डी का मुख रस ज्यादा, उसमें लिसड़ा लिथड़ा, खूब गीला, बड़ी देर तक, गुड्डी अपने मुंह से उसके मुंह में, और फिर अंत में एक जबरदस्त चुम्मा,


" मुझे मालूम है तुझे क्या क्या नहीं पसंद है, सब ऐसे ही खाना पडेगा, मेरे सामने छिनरपन नहीं चलेगा, "

अपने होंठ उठा के वो खंजन नयन बोली,


मैं जान रहा था उसका उसका इशारा किधर है, लेकिन मैंने जिंदगी से वादा किया था, ये लड़की मिल जाए एक बार, एक बार के लिए नहीं, हरदम के लिए, फिर तो चलेगी इसकी, इसकी १०० बात मंजूर। लेकिन आँखे पैदायशी लालची, उसकी फ्रंट ओपन ब्रा अभी भी ओपन थी और आँखे बेशर्म सीधे वहीँ



जितनी मेरी आँखे बेशरम उतनी गुड्डी की उँगलियाँ,... शोख,... शरारती


वो जानबूझ के बिच्छी की तरह उन कातिल उभारों पर डोल रही थीं, कभी बस जुबना को और उभार देतीं तो कभी टनटनाये निपल को अंगूठे और ऊँगली के बीच पकड़ के पिंच कर देतीं,

जितने गुड्डी के निपल टनटना रहे थे उसने मेरे जंगबहादुर फनफना रहे थे, और गुड्डी उस बेचारे की बेसबरी देख के मुस्करा रही थी, फिर खुद झुक के वो निपल एकदम मेरे होंठों के पास, लेकिन जैसे मैंने सर ऊपर किया, उभार और दूर,

गुड्डी तड़पाती तो थी लेकिन इतना भी नहीं, दो चार बार के बाद, जैसे कोई फलों से लदी डाली खुद झुके, वो झुकी, निप्स उसने रगड़ा मेरे होंठों पे और जैसे ही मेरे होंठ खुले, वो अंदर

चुसूर चुसूर मैं मस्त हो कर चूस रहा था और अब दूसरा जोबन मेरे हाथ में,

और गुड्डी का एक हाथ मेरे सर को प्यार से सहला रहा था, और उँगलियाँ जैसे मेरे उलझे बालों को सुलझा रही हों, उनमे कंघी कर रही हो, मेरी आँखे सजनी की आँखों में डूबी, मेरे मुंह को तो उसने अपने उभार से बंद कर रखा था, लेकिन टीनेजर के होंठ तो खाली थे, वो बोली,

" मैं कह रही थी न संध्या दी बहुत गर्मायी है, अच्छा ट्रेलर दिखया तूने, लेकिन यहाँ से आज चलने के पहले उनका काम कर के जाना,"

बीच बीच में गुड्डी बियर की भी घूँट लगाती और असर अच्छा खासा हो गया था, बोली वो,...

" हचक के पेलना अपनी संध्या भाभी को, उन्हें भी पता चले लौंड़ा होता क्या है "



और गुड्डी ने राज खोला, साल भर मुश्किल से हुआ था, संध्या भाभी शादी के बाद बिदा हो के और अगले दिन सुबह, फोन पर सब भौजाइयां मोहल्ले की, और गुड्डी ऐसी जवान होती लड़कियां भी कान पारे, किसी ने स्पीकर फोन भी ऑन कर दिया था, सवाल सब वही , कितनी बार, कितना मोटा, कितनी देर तक, और संध्या भाभी विस्तार से, वो सब भाभियाँ भी जिनका मर्द पहले दिन ही बाहर पानी निकाल चूका हो या उन्ह कर के सो गया हो वो सब भी, खूब बढ़ा चढ़ा के, तो संध्या भाभी ने बोला

"बोलने लायक नहीं हैं बहुत रगड़ी गयी हैं, सुबह दो ननदें समझिये टांग के ले आयीं उन्हें। :

चंदा भाभी ने चिढ़ाया भी, बोलने लायक नहीं मतलब, क्या पहले दिन ही नन्दोई जी ने चमचम भी चुसवा दिया, अरे था कितना बड़ा,

और संध्या भाभी बड़े गर्व से बोलीं, अरे बहुत बड़ा है, नापा तो नहीं लेकिन ६ इंच तो होगा ही, या आसपास,

गुड्डी उस समय दसवें में थी और छह सात महीने पहले उसकी मेरे जंगबहादुर से दोस्ती हो चुकी थी, ज्यादा नहीं लेकिन हाथ उनसे मिला चुकी थी। उसे मालूम था इतना तो उसके यार का सोते समय, और जागने पर बित्ते से बड़ा ही,

और अबकी जब आयीं तब से अपने पति के औजार का गुणगान,

" फाड़ के रख देना, अपनी संध्या भौजी की चूत " गुड्डी हँसते बोली।

"एकदम, " मैं बोला, गुड्डी के उभार मेरे मुंह से बाहर हो गए थे लेकिन उसकी बात का जवाब भी देना जरूरी था, गुड्डी जो बियर की बॉटल पी रही थी उसी से टप टप अपने उभारों से गिराते हुए मेरे होंठों के बीच,

और मैं होंठों की ओक बना के पी रहा था, बियर में अचानक अल्कोहल कॉन्टेंट ४० % से बढ़कर ८० % हो गया था, जोबन का नशा,

" तेरी उँगलियों ने ही उनकी हालत खराब कर दी थी, जब पूरा मोटू घुसेगा तो पता चलेगा, " हँसते हुए गुड्डी बोली

और मेरी उँगलियाँ लेके सीधे मुंह में,


और मेरी चमकी दो उँगलियाँ तो संध्या भाभी की प्रेम गली की सैर करके आयी थीं, लेकिन दो ने पिछवाड़े भी डुबकी लगाई थी, मैंने ऊँगली हटाने की कोशिश की, और बोला भी, ..अरे ये ऊँगली संध्या भाभी के

मेरी बात काट के वो हड़काते हुए बोली,

" ऊँगली किसकी है, ...मेरी मर्जी, मुझे मालूम है "




मन जिसका तन उसका,



मैं थोड़ा ज्यादा ही रोमांटिक होने लगा, एक गुझिया और खाने को मिली, उसी तरह से पहले गुड्डी के मुँह में फिर उसके मुख रस से भीगी



बात मैंने कुछ सात जन्मों टाइप करने की कोशिश की तो जोर से डांट पड़ गयी,

" सुन यार अब सात जन्म में तो जो होना था होगा लेकिन आठवें जन्म में मैं पक्का लड़का बनूँगी और तुम लड़की, ...और तेरी झांट आने से पहले तेरी चूत का भोंसड़ा न बना दिया तो कहना, और सिर्फ तेरी ही ऐसी की ऐसी की तैसी नहीं करुँगी, तेरी माँ, बहन, सहेलियां सब की, पेलूँगी पहले पूछूँगी बाद में, ये नहीं की तेरी तरह आधे टाइम सिर्फ सोचने में, "



लेकिन तब तक हम दोनों का ध्यान रीत की सिसकियों ने खींच लिया, रीत तेज थी, स्मार्ट थी, लेकिन चंदा भाभी भी पुरानी खिलाड़ी

दोनों 69 की पोज में और चंदा भाभी ने आराम से रीत की गुलाबी फांको को फैलाया और कस के अपनी जीभ पेल दी,

गुड्डी, मैंने कहा न, कहने से ज्यादा करने में विश्वास करती थी और आज इस होली की मस्ती के बाद तो जरा भी झिझक नहीं बची थी। वो बात तो मुंह से कर रही थी लेकिन उसकी नरम हथेलियां जंगबहादुर की मालिश कर रही थीं, उनको तो गुड्डी ने कब का बाहर कर दिया, और वो टनटनाये और अब हाथ की जगह मुंह ने लिया,



पहले दो चार चुम्मी, फिर चुसम चुसाईं, सिर्फ सुपाड़े की, कभी जीभ की टिप पेशाब का छेद कुरेदती तो कभी गप्प से सब अंदर

लेकिन गुड्डी स्मार्ट जैसे ही रीत झड़ी,

गुड्डी ने मेरे औजार को कपड़ों के अंदर और हम दोनों अच्छे बच्चों की तरह प्लेट से गुझिया खा रहे थे



रीत और चंदा भाभी हम दोनों को देख रही थीं, मुस्करा रही थीं।
मेरा एक हाथ अपने आप गुड्डी के खुले उरोजों की ओर चला गया। इन्हीं ने तो मुझे जवान होने का अहसास दिलाया था शर्म गायब की थी। वो मेरी मुट्ठी में थे।

अब धीरे-धीरे आनंद बाबू खुल रहे हैं...
गुड्डी तो खुल के दावत दे रही है...
अब पहल तो आनंद बाबू को हीं करनी पड़ेगी...
 

motaalund

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:applause::applause:
वाह...वाह...
एक नए आवरण.. एक नई साज सज्जा.. एक नए कलेवर के साथ..
काफी कुछ परिमार्जित किया है इस कहानी में...
इतनी बड़ी स्टोरी में सारे प्रंसगों से तालमेल बनाते हुए कुछ नया जोड़ना ..
और पात्रों को उचित स्थान देना .. समय..वय.. और कहानी के पिछले प्रसंग...
बहुत कठिन कार्य होता है...
और आपने इस कार्य को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया है...
आपकी इस मेहनत और श्रमसाध्य योगदान को शत शत नमन...
और सबसे बड़ी बात.. बिल्कुल मौलिक कहानी...
 

motaalund

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Part 16 - Review comments:

First of all, apologies for the late comment...have been quite busy with too many things on my plate..hope you understand..

Coming to the update..well..the Holi play is at its peak..and all the characters Anand Babu, Dubey/Chanda/... Bhabhi et al seems to be having a ball (literally and figuratively) :)

The scene creations in each part of your update as well as the conversations happening between various players is just too awesome!!

You present some of the conversations happens as if it is just a "matter of fact"..wherein reality, they are highly erotic conversations...thats the beauty of your writing..
The trip teasing, attack and counter attack...all in one updates...absolutely super!!
Seems more fun is in the offing..in the coming updates..Look forward to it.


Overall, a wonderful and sexy update. Great going!!

👏 👏 :thumbup: :thumbup:


komaalrani
True.. a complete holi entertainer...
 

motaalund

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Haiii raat main chanda bhabhi k yaha soyenge phir toh kaam khel ki sambhavana bahut jada hai 😉

Superb Writing Mam

My favourite Lines ⬇️
लाइन मारती हैं तो दे दो ना। अरे यार ससुराल में आये हो तो ससुराल वालियों पे तेरा पूरा हक बनता है। वैसे तुम अपने मायके वाली से भी चक्कर चलाना चाहो तो मुझे कोई ऐतराज नहीं है
गुड्डी जानती है कि घटने वाली चीज नहीं है...
 

motaalund

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इसे कहते हैं कत्ल भी हो जाए और खून का एक कतरा तक न बहे ।
अपने संवाद लेखन से , अपडेट के विषय वस्तु से , घटनाक्रम का परिवेश स्थापित करने मे , रोमांटिक दृश्य एवं कामुक दृश्य क्रिएट करने मे जो महारथ आप को हासिल है वह इस फोरम पर किसी का भी नही ।
इस अध्याय मे सबकुछ होकर भी कुछ नही हुआ । संध्या भाभी और आनंद के दरम्यान यौन संबंध स्थापित होकर भी सेक्स क्रीडा कार्यक्रम मुकम्मल नही हुआ ।
दो खुबसूरत औरतों का पेयर लेस्बियन रिलेशनशिप स्थापित करने मे कामयाब होकर भी रीडर्स को अधूरेपन का एहसास हुआ ।
और बड़ी बात यह थी कि यह सब कुछ किरदारों के जुबानी और उनके क्रियाकलाप से यह सबकुछ दर्शाया आपने ।
आप की जुबानी कही हुई बातें पुरे अपडेट मे नाम मात्र भर की थी । इसी से जाहिर होता है कि आप किस लेवल की लेखिका है ।

This was totally tremendous 👏

अपडेट की बात करें तो आनंद भाई साहब को नई नवेली दुल्हन बनाने मे इन औरतों और लड़कियों ने कोई कोर कसर नही छोड़ी । रसिया को वास्तव मे इन्होने नार बना डाला ।
सोलह सिंगार के हर सिंगार का इस्तेमाल आनंद पर आजमाया गया । औरत के वस्त्र , चुड़ी , महावर , पायल , बिछूए , करधनी , झूमके , नथ , टिकुली , नेल पाॅलिस की क्या बात करें , सिंदूर तक लगा दिया गया ।

मुझे एक बार डर भी लगा कि कही रीत इन्हे वास्तव मे निहूर कंपनी के जमात मे न शामिल करा दे ! डिल्डो देखकर भला कौन न भयभीत हो जाए !


बहुत बहुत खुबसूरत अपडेट कोमल जी ।
शायद इसीलिए एक महान विद्वान ने कहा था कि एक अच्छे राइटर बनने के लिए छ मंत्र है - Read , Read , Read & Write , Write , Write .
आप की अनवरत लेखनी और उन रचनाओं के तत्व इन बातों की पुष्टी करती है ।

Outstanding , Fabulous & Amazing updates.
सही कहा..
चुदी भी नहीं... और झड़ने का मजा ले लिया...
 
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