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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २७

मैं, गुड्डी और होटल

is on Page 325, please do read, enjoy, like and comment.
 
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motaalund

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रीत का दिमाग कितना तेज चलता है बिना हाथ के भी गुड्डी और उसने मिल के जबरदस्त रगड़ाई कर दी और हाथों का इस्तेमाल वहीँ किया जहाँ करना था
अंग प्रत्यंग का इस्तेमाल जानती है...
 

motaalund

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मन मन भावे, मूड़ हिलावे वाली बात, साइज देख के थोड़ी हदस गयीं हैं लेकिन मन में तो लड्डू फूट रहे हैं
मन में लड्डू फूटने के बजाय..
नीचे पिचकारी से कूटने हैं...
 

motaalund

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बाकी का तो आधा चीरहरण हुआ, ब्रा और साया में , रीत ब्रा और पजामी में लेकिन आनंद बाबू का पूरा ही चीरहरण होगा, और सब कन्याये महिलायें नयन सुख लेंगी, स्पर्श सुख तो ले ही चुकी हैं पहले।
और गुड्डी के भाग्य को सराहेंगी...
 

motaalund

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और साथ में आनंद बाबू की लड़कियों और औरतों से जो झिझक थी वो भी कपड़ों के साथ उतर गयी, अब वो भी खुल के मजे लेंगे।
इसीलिए रैगिंग में नंगा कराया जाता है...
 

motaalund

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कुछ मित्रों को शायद लग रहा होगा की यह कहानी पहले की है पढ़ी है इसलिए क्यों समय लगाए, मैं सिर्फ यही कह सकती हूँ की इसमें बहुत बदलाव है और अभी तक जिन लोगों ने पहले पढ़ा होगा और फिर पढ़ रहे हैं उन्होंने नोट भी किया, विशेष रूप से अभी तक के आये प्रसंगो में ढेर सारे फ्लैश बैक जुड़े हैं, गुड्डी, रीत और संध्या भाभी की भूमिकाओं में भी और आगे और भी होगा।

तो बस इसी अनुरोध के साथ की कहानी से जुड़े रहें नया अपडेट बस थोड़ी देर में करीब ८ हजार शब्दों का मेगा अपडेट
सचमुच ५० प्रतिशत से ऊपर अब तक के कथानक में जोड़ा गया है...
कुछ नए प्रसंग.. कुछ नए पात्र..
कुछ पात्रों के रोल में विस्तार..
और सबसे बड़ी बात मानवीय भावनाओं से ओत-प्रोत नायक-नायिका के प्रथम मिलन से लेकर आगे तक एक संपूर्ण कहानी...
जिसमें समय समय पर अन्य पात्रों ने भरपूर मनोरंजन किया..
और सबसे विशिष्ट और निराली तो रीत है...
 

motaalund

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फागुन के दिन चार - भाग १७

रसिया को नार बनाउंगी

२,०८,२४९

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मैं नंग धड़ंग छत पर खड़ा था, और मेरे चारो और वो पांचो, दो टीनेजर्स, गुड्डी और रीत और तीन भाभियाँ, संध्या भाभी, चंदा भाभी और दूबे भाभी सिर्फ देह से चिपकी रंग से लथपथ, आधी फटी खुली ब्रा और,


मेरा मुस्टंडा फड़फड़ा रहा था, खुली हवा में साँस लेकर और चारो ओर का नजारा देखकर,


लेकिन वो पांचो ऐसे बात कर रही थीं जैसे मैं हूँ ही नहीं वहां, हाँ कभी कभी चोरी चोरी चुपके चुपके एक निगाह उसे मोटे मुस्टंडे पर डाल ले रही थी, सबसे ज्यादा ललचायी संध्या भाभी लग रही थीं। रीत और गुड्डी से अलग,... वो स्वाद ले चुकी थीं तो उन्हें मजा मालूम था, लग रहा था अभी लार टपक जायेगी।

चंदा भाभी 'उसे' देख के खुश हो रही थीं, एक तो उनका शिष्य, दूसरे उनकी जो बात मैंने मानी थी। मुस्टंडे का मुंड ( सुपाड़ा ) खूब मोटा, पहाड़ी आलू ऐसा, लाल और एकदम खुला, ... कल पहली सीख उन्होंने यही दी थी। अपने हाथ से 'उसका' घूंघट खोला और बोलीं अब इसको खुला ही रखना और कारण भी समझाया, ' कायदे से रगड़ रगड़ कर घिस घिस कर ये धुस्स हो जाएगा, फिर जल्दी नहीं झड़ेगा।


दूबे भाभी कभी उस तन्नाए बौराये मुस्टंडे को देखतीं तो कभी गुड्डी को, खूब खुश, मुस्कराती,.... मानो कह रही हों ,

" बबुनी, हम लोग तो कभी कभी इसका मजा लेंगे, होली दिवाली , लेकिन तुझे तो ये मूसल रोज घोंटना पडेगा। "और मैं दूबे भाभी की ये निगाहें देख कर खुश हो रहा था। जब गुड्डी का मेरा मामला फाइनल स्टेज में पहुंचेगा, और अगर गुड्डी की मम्मी इसे दूबे भाभी की अदालत में ले गयीं तो फैसला मेरे ही हक में होगा।


लेकिन सबसे जालिम थी और कौन, मेरी साली , रीत।

मैं गुहार लगा रहा था कपडे कपडे, ऐसे बाजार कैसे जाऊँगा, गुड्डी के साथ और उसने हुकुम सुना दिया , " क्यों नहीं जा सकते , बहुत नई दुल्हन की तरह लजाते हो तो एक हाथ से आगे एक हाथ से पीछे ढक लेना और नहीं तो मेरी छोटी बहन की, गुड्डी की चिरौरी करना, हाथ पैर जोड़ना तो चड्ढी , रुमाल कुछ दिलवा देगी, ढक लेना।

लेकिन बचाने आयीं मुझे दूबे भाभी।

“नहीं ये सब नहीं हो सकता…” अब दूबे भाभी मैदान में आ गईं।

मैं जानता था की उनकी बात कोई नहीं टाल सकता।

“अरे छिनारों। आज मैंने इसे किसलिए छोड़ दिया। इसलिए ना की जब ये रंग पंचमी में आएगा तो हम सब इसकी नथ उतारेंगे। लेकिन इससे ज्यादा जरूरी बात। अगर ये लौंडेबाजों के चक्कर में पड़ गया ना तो इसकी गाण्ड का भोंसड़ा बन जाएगा। तो फिर ये क्या अपनी बहन को ले आएगा? तुम सब सालियां अपने भाइयों का ही नहीं सारे बनारस के लड़कों का घाटा करवाने पे तुली हो। कुछ तो इसके कपड़े का इंतजाम करना होगा…”

अब फैसला हो गया था। लेकिन सजा सुनाई जानी बाकी थी। होगा क्या मेरा?

जैसे मोहल्ले की भी क्रिकेट टीमें। जैसे वर्ड कप के फाइनल में टीमें मैच के पहले सिर झुका के न जाने क्या करती हैं, उसी तरह सिर मिलावन कराती हैं, बस उसी अंदाज में सारी लड़कियां महिलाये सिर झुका के। और फिर फैसला आया। रीत अधिकारिक प्रवक्ता थी।

रीत बोली- “देखिये मैं क्या चाहती थी ये तो मैंने आपको बता ही दिया था। लेकिन दूबे भाभी और सब लोगों ने ये तय किया है की मैं भी उसमें शामिल हूँ की आपको कपड़े। लेकिन लड़कों के कपड़े तो हमारे पास हैं नहीं। इसलिए लड़कियों के कपड़े। इसमें शर्माने की कोई बात नहीं है। कित्ती पिक्चरों में हीरो लड़कियों के कपड़े पहनते हैं तो। हाँ अगर आपको ना पसंद हो तो फिर तो बिना कपड़े के…”

मेरे पास कोई रास्ता बचा भी था क्या चुपचाप बात मानने के ? और अब तक मैं समझ चुका था ससुराल में, वो भी अगर बनारस की हो और साली सलहज के झुण्ड में फंस गए तो चुपचाप बात मान लेनी चाहिए, एक तो और कोई चारा भी नहीं दूसरे लांग टर्म बेनिफिट,...
गुड्डी तब तक एक बैग ले आई।

ये वही बैग था जिसे रीत सुबह अपने घर से ले आई थी और गुड्डी लेकर चंदा भाभी के पास चली गई थी। बाद में उसे ही ढूँढ़ने वो चंदा भाभी को लेकर अन्दर ले गई थी। उसमें से ढेर सारी चीजें निकाली गई श्रृंगार की।


अब मैं समझ गया की ये सब नाटक था मुझे तंग करने का। ये सब प्लानिंग पहले से थी।

मैं भी उसे उसी तरह एन्जाय करने लगा। पेटीकोट दूबे भाभी का पहनाया गया। ब्रा और चोली संध्या भाभी की।

और यह काम संध्या भाभी कर रही थीं, पेटीकोट पहनाते हुए पहले तो उन्होंने मुस्टंडे को एक प्यार से हलकी सी चपत भी लगा दी और फिर सबकी नजर बचा के मसल भी दिया कस के और जैसे उससे बोल रही हों, बोलीं,

" हे, तुझी से बोल रही हूँ, उधार नहीं रखती मैं, आज ही, जाने के पहले और यहाँ तक पूरा लूंगी, देखती हूँ की खाली बड़ा और कड़ा ही है की रगड़ता भी है " और फिर मुस्टंडे के बेस पे कस के मुट्ठी से दबा के साफ़ कर दिया, कहाँ तक लेना है, और उस मुस्टंडे ने सर हिला के हामी भी भर दी।

संध्या भाभी सुंदर तो थी ही और जवान भी, रीत से मुश्किल से साल भर बड़ी, बी ए में गयी ही थीं की शादी हो गयी, और शादी के बाद तो जवानी और भड़क जाती है, दहकता रूप, सुलगता जोबन, लेकिन अभी इस मुस्टंडे को छूने पकड़ने और देखने के बाद जो कामाग्नि दहक रही थी, जोबन जिस तरह पथराया था, निप्स टनटना रहे थे, होंठ बार बार सूख रहे थे, वो और साफ़ साफ़ कहूं तो लेने लायक लग रही थीं,और मेरा भी मन यही कर रहा था, कब मौका मिले और उन्हें पटक के,

पेटीकोट के बावजूद तम्बू में बम्बू तना हुआ था।

संध्या भाभी रीत और गुड्डी से कम नहीं छेड़ने, चिढ़ाने में आखिर सबसे बड़ी बहन लगेंगी और फिर ब्याहता, ब्रा पहनाते हुए गुड्डी से बोलीं,

" हे इसके माल की, एलवल वाली बहिनिया की भी इस साइज की है या,... "

" कहाँ भाभी, कहाँ आपका ये माल और कहाँ, उसकी तो मुझसे भी १९ है , ३२ बी " गुड्डी मुंह बिचका के बोली।

लेकिन गुड्डी से तुलना करना ही गलत था, अपनी बाकी क्लास वालियों से उसका २० नहीं २४-२५ कम से कम होगा।


" हे फोटो खींच आज तेरे वाले ने पहली बार ब्रा पहनी है " संध्या भाभी ने गुड्डी को उकसाया, और गुड्डी ने मेरे ही मोबाइल से स्नैप स्नैप।

और फिर पहले संध्या भाभी फिर रीत फिर गुड्डी ने भी मेरे पीछे बैठे के ब्रा को दबाते मसलते , फोटो , और गुड्डी चालाकी में किसी से कम थोड़े ही थी, मैं बाद में डिलीट कर देता तो उसने अपने, रीत के संध्या भाभी के और बाद में पता चला की गुंजा और अपनी मम्मी और छुटकी को भी ,

फिर चोली भी संध्या भाभी ने, खूब टाइट, लाल रंग की,

श्रृंगार का जिम्मा रीत और गुड्डी ने लिया।

मेरे दोनों हाथों में कुहनी तक भर-भर लाल हरी चूड़ियां, रीत पहना रही थी।

रीत झुक के मेरे कान में बोली- “हे बुरा तो नहीं माना?”

“अरे यार बुर वाली की बात का क्या बुरा मानना वो भी होली में…” मैं बोला और हम दोनों हँस पड़े।

वो गाने लगी और बाकी सब साथ दे रहे थे-




रसिया को नार बनाऊँगी रसिया को,

सिर पे उढ़ाय सुरंग रंग चुनरी, गले में माला पहनाऊँगी, रसिया को।

रसिया को नार बनाऊँगी रसिया को,

सिर पर धरे सुरंग रंग चुनरी, अरे सुरंग रंग चुनरी।

जोबन चोली पहनाऊँगी,

रसिया को नार बनाऊँगी, रसिया को।



गाना चल रहा था और मेरे सामने सुबह से लेकर अभी तक का सीन पिक्चर की तरह सामने घूम गया, और मैं समझ गया की पर्दे पे भले ही अभी रीत हो लेकिन इसके पीछे गुड्डी का और थोड़ा बहुत रोल चंदा भाभी का भी था।और अब संध्या भाभी भी उस में शामिल हो गयी थीं।



कल शाम को जिस तरह चंदा भाभी ने मेरे कपड़े उतरवा के गुड्डी को दिए और इस दुष्ट ने उसे रीत तक पहुँचा दिए और फिर भाभी ने गुड्डी के हाथों ही मेरा पूरा वस्त्र हरण, मेरी बनयान चड्ढी सब कुछ, वो सारंग नयनी ले गई थी।

लेकिन उससे भी बढ़कर आज सुबह जिस तरह नहाते समय इस चालाक ने शेविंग क्रीम के बदले हेयर रिमूविंग क्रीम मेरे चेहरे पे अच्छी तरह लिथड़ के मेरी मूंछ का भी,... एकदम मुझे चिकनी चमेली बना दिया।

इसका मतलब प्लान तो सुबह से ही था और रीत जिस तरह बैग में सामान ले आई थी।


अब मैं बैठा हुआ किशोरियों युवतियों के हाथों अपना जेंडर चेंज देख रहा था, और सच कहूँ तो मजे भी ले रहा था। एक अलग तरह का मजा।


गुड्डी ने चेहरे का और रीत के साथ मिलकर बाकी श्रृंगार का जिम्मा सम्हाल रखा था और कमर के नीचे का काम संध्या भाभी के कोमल-कोमल हाथों के जिम्मे। लेकिन उसके पहले साड़ी पहनाई गई। पर उसमें भी रीत ने साड़ी उसी ने लाकर दी। लेकिन बोला पहनो।

अब मैं कैसे पहनता।

और रीत चालू हो गई- “अरे वाह रे वाह। पहले साड़ी दो फिर इन्हें पहनाना सिखाओ। मायाके वालियों ने कुछ सिख विखाकर नहीं भेजा ससुराल की सिर्फ अपनी ममेरी बहन से नैन मटक्का ही करते रहे…”

चंदा भाभी भी मौका क्यों चूकती- “अरे इनकी बिचारी मायकेवालियों को क्यों बदनाम करती हो? बचपन से ही उन्हें सिर्फ खोलने की आदत है चाहे अपनी साड़ी हो या नाड़ा। तो इस बिचारे को कहाँ से सिखाती? अरे मोहल्ले वाले साड़ी बाँधने देते तब ना। साथ में जांघें फैलाना, टांगें उठाना। तो वो बिचारी बांधती भी कैसे?”


संध्या भाभी भी अब हम सबके रंग में रंग गई थी और उन्होंने सबसे पहली साड़ी के एक छोर को साए में बांधकर मुझे सिखाया।

फिर तो कुछ मैंने, कुछ उन्होंने साड़ी बंधवा ही दी।
"साडी पेटीकोट खोलना तो सब मर्दों को आता है लेकिन तुम पहले हो जो बांधना सीख गए, पर इसकी फ़ीस लगेगी "

कान में फुसफुसा के वो बोलीं। समझ तो मैं भी रहा था लेकिन मैंने भी उसी तरह धीरे से बोला, " एकदम भाभी, बस एक बार हुकुम कीजिये "


" ये " मुस्टंडे को दबा के धीरे से बोलीं और फिर जोड़ा, आज और जाने के पहले। " और फिर रीत और गुड्डी के साथ सिंगार में जुट गयीं।
दूबे भाभी काफी दूरंदेशी हैं..
ऐसे बिना कपड़ों के भेजने का खतरा मोल नहीं ले सकती...
और आनंद बाबू को होली में ससुराल आने की नई सीख भी मिल गई...

संध्या भाभी सुंदर तो थी ही और जवान भी, रीत से मुश्किल से साल भर बड़ी, बी ए में गयी ही थीं की शादी हो गयी, और शादी के बाद तो जवानी और भड़क जाती है, दहकता रूप, सुलगता जोबन, लेकिन अभी इस मुस्टंडे को छूने पकड़ने और देखने के बाद जो कामाग्नि दहक रही थी, जोबन जिस तरह पथराया था, निप्स टनटना रहे थे, होंठ बार बार सूख रहे थे, वो और साफ़ साफ़ कहूं तो लेने लायक लग रही थीं,और मेरा भी मन यही कर रहा था, कब मौका मिले और उन्हें पटक के,

एकदम सही कहा.. शादी के बाद तो जवानी की आग में और घी पड़ जाता है.. और धधक उठती है...
 

motaalund

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सोलह सिंगार,

चूड़ी, महावर


अभी रीत और गुड्डी चूड़ियां पहना रही थी हरी-हरी और लाल कंगन।

और संध्या भाभी पैर में महावर लगा रही थीं,

रीत और गुड्डी एकदम चुड़िहारिनों की तरह बैठी थी। गुड्डी ने कलाई पकड़ रखी थी और रीत चूड़ियां पहना रही थी। और जैसे चुड़िहारिने नई नवेलियों को कुँवारी लड़कियों को छेड़ती हैं वो भी बस उसी तरह वो दोनों भी। गुड्डी ने मेरी कलाई को गोल मोड़ दिया चूड़ी अन्दर करने के लिए।

रीत ने छेड़ा- “हे हमारी तुम्हारी कब?”

“अरे पकड़ा पकड़ी होय जब…” गुड्डी ने जवाब दिया।

रीत ने जब चूड़ी घुसाई तो दर्द तो हुआ लेकिन रीत की बात सुनकर वो काफूर हो गया।

“अरे उह्ह… आह्ह… कब?” रीत ने पूछा।

“आधा जाय तब…” गुड्डी ने जवाब दिया।

“अरे मजा आये कब? निक लागे कब?” रीत ने अपनी बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें नचाकर पूछा।

“अरे पूरा जाय तब…” गुड्डी भी अब पीछे रहने वाली नहीं थी, और एक चूड़ी अन्दर चली गई।

उसके बाद तो उन दोनों ने मिलकर एकदम कुहनी तक चूड़ियां पहना दी। और दोनों मिलकर अपने इस द्विअर्थी पहेली कम डायलाग पे हँस पड़ीं।



“सुहागरात का पता कैसे चलेगा। जानू?” गुड्डी ने मुझे चिढ़ाते हुए पूछा।

“अरे जब रात भर चूड़ियां चुरूर मुरुर करें और आधी सुबह तक चटक जायं…” रीत मेरे गाल पे चुटकी काटकर बोली।


“क्यों संध्या याद है ना तुम्हारी सुहागरात में,... महावर वाली बात…” चंदा भाभी ने मुश्कुराकर पूछा।

“आप भी ना भाभी। वो तो सब की सुहागरात में होता है। आप भी कहाँ की बात ले बैठीं। वो भी इन बच्चियों के सामने…” रीत और गुड्डी की ओर देखकर, मेरे पैरों में महावर लगाती वो बोली।


रीत ने उन्हें ऐसे देखा जैसे कोई गलत बात उन्होंने कह दी हो।

लेकिन बोली दूबे भाभी- “हे बच्चियां किन्हें कह रही हो? जब वो घूम-घूम के चूचियां दबवाने लगें तो ये बच्चियां नहीं रह जाती और ऊपर से मेरी ननदों की झांटे बाद में आती हैं, लण्ड पहले ढूँढ़ने लगती हैं। और वैसे भी कल के पहले इन दोनों की भी चटक-चटक के फट जायेगी। हम सब की कैटगरी में आ जायेंगी…” वो हड़का के बोली।

रीत और गुड्डी ने सहमति में सिर हिलाया।



रीत से संध्या भाभी अपनी सुहागरात के महावर का पूरा किस्सा सुनाया,

“ मेरी ननदों ने नाउन को चढ़ा दिया था। फिर उसने ये रच-रच के महावर लगाया, खूब गाढ़ा और गीला। आगले दिन सुबह जब हम दोनों कमरे से बाहर आये तो वो सब छिपकलियां मेरी ननदें पहले से तैयार बैठी थी। नाश्ता के समय पकड़ लिया उन्होंने तुम्हारे जीजू को- “हे भैया आपके माथे पे ये लाल-लाल? ये भाभी के पैर का रंग कैसे? कहीं रात भर भाभी ने आपसे पैर तो नहीं छूलवाया? ये बहुत गलत बात है…”

कोई बोली- “अरे भैया को कोई चीज चाहिए होगी इसलिए भाभी ने,... क्यों भैय्या? लेकिन भाभी ने दिया की नहीं। खूब तंग किया…”


संध्या भाभी बता भी रही थी और उस दिन की याद करके मुश्कुरा भी रही थी।

गुड्डी भी बोली- “लेकिन मेरी समझ में नहीं आया की कैसे जीजू के माथे पे आपके पैरों की महावर?”

उसकी बात काटकर संध्या भाभी मुश्कुराते हुए उसके उरोजों पे एक चिकोटी काटकर बोली-

“अरी बन्नो सब समझ में आ जाएगा। जब रात भर टांगें कंधे पे रहेंगी और रगड़-रगड़कर, ये चूची पकड़कर चोदेगा ना तो सब पता चल जाएगा की महावर का रंग कैसे माथे पे लगता है?”

रीत ने पाला बदला और संध्या की ओर हो गई- “आज जा रही है ना तू कल सुबह ही हम सब फोन करके पूछेंगे तुझसे। की रात भर टांगें उठी रही की नहीं? समझ में आया की नहीं?”

सब हो-हो करके हँसने लगी लेकिन गुड्डी शर्मा गई और मैं भी।



संध्या भाभी ने महावर के रंग की कटोरी में जाने क्या और मिलाया और मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं-

“मैं लेकिन उससे भी गाढ़ा लगा रही हूँ और चटक भी, पंद्रह दिन तक तो नहीं छूटेगा, लाख पैर पटक लेना…”


महावर के साथ उन्होंने पैरों के नाखून भी रंगे और जैसे गाँव में औरतों की विदाई होने के समय महावर के साथ पैरों पे डिजाइन बनाते हैं। वैसे डिजाइन भी बना दी। वो तो मैंने बाद में देखा।

एक पैर पे डिजाइन में उन्होंने लिखा था बहन और दूसरे पे चोद।

दूबे भाभी और चंदा भाभी बड़ी देर से चुप बैठी मजे ले रही थीं, लेकिन दूबे भाभी अपने रूप में आयी, " तो कोई लौण्डेबाज इसकी गांड माएगा तो उसके माथे पे लगेगा "

और अब सब हो हो,

लेकिन मैंने फुसफुसा के भाभी से सिफारिश की, भाभी, गुड्डी के पैर में भी लगा दीजिये न "

वो महावर ख़तम करते, उसी तरह धीरे से बोलीं,

" लगाउंगी, लगाउंगी, इससे भी चटक और गाढ़ा, जब तुम इसको हरदम के लिए बिदा करा के ले जाओगे, और अगली सुबह वीडियो काल में तेरे माथे पे वही महावर देखूंगी "

फिर वो और चंदा भाभी पैरों में पायल और बिछुए पहनाने लगी वो भी खूब घुंघरू वाले। चौड़ी सी चांदी की पायल।

चंदा भाभी गुड्डी से हँसकर बोली “अब ये मत पूछना की दुल्हन को ये क्यों पहनाते हैं?” फिर कहने लगी- “इसलिए बिन्नो की जब रात भर दुल्हन की चुदाई हो तो रुनझुन, रुनझुन। ये पायल बजे और बाहर खड़ी सारी ननद भौजाइयों को ये बात मालूम चल जाय की अब नई दुल्हन चुद रही है, "

बिछुवे बहुत ही ज्यादा घुंघरू वाले थे।
असली मनियारिन का चूड़ी पहनाने का तरीका अपना रही है रीत..
और साथ में गुड्डी भी कम नहीं...

पूरा खाका खींच रही है..
सुहागरात और उसमें होने वाले कार्यक्रमों का..
और उसके पहले की तैयारी भी..
 

motaalund

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छोटे घुंघरू वाला बिछुआ


दूबे भाभी बैठकर गाइड कर रही थी। वो मुझे चिढ़ाते हुए गाने लगी-

“अरे छोटे घुंघरू वाला छोटे घुंघरू वाला बिछुआ गजबे बना, छोटे घुंघरू वाला,

वो बिछुवा पहने आनंद की बहना, गुड्डो छिनारी, एलवल वाली (मेरी ममेरी बहन के मोहल्ले का नाम)

अरे अरवट बाजे करवट बाजे, लड़िका के दूध पियावत बाजे,

अरे यारन से चूची मिजवावत बाजे, दबवावत बाजे,

अरे छोटे घुंघरू वाला, छोटे घुंघरू वाला बिछुआ गजबे बना, छोटे घुंघरू वाला।

अरे अरवट बाजे करवट बाजे, अपने भइय्या से रोज चुदावत बाजे,


अरे छोटे घुंघरू वाला, छोटे घुंघरू वाला बिछुआ गजबे बना, छोटे घुंघरू वाला।



गुड्डी और रीत हाथ के श्रृंगार में लगी थी, नेल पालिश।

गुड्डी बोली- “क्यों ये बात सच है ले चुके हो उसकी?”


रीत ने आँख तरेरी और दूबे भाभी की ओर इशारा किया, जिन्होंने हुक्म दिया था की होली में सब ‘खुल कर’ बोले-

“अरे माना इनकी बात सीधी है, अभी तक नहीं चुदी है। तो अब चोद देंगे ऐसा क्या? बिछुवे तो बजेंगे ही उसके…” रीत ने बात पूरी की।


उसके बाद गहनों का और चेहरे के श्रृंगार का नंबर था।


संध्या भाभी ने मुझे एक करधनी पहनाई वो भी घुंघरू वाली और मुश्कुराकर रीत और गुड्डी की ओर देखकर बोला- “हे ये मत बताना की तुम्हें इसका भी मतलब नहीं मालूम है की ये कब बजती है?”

रीत की मुश्कुराहट से साफ झलक रहा था की वो चतुर सुजान है। लेकिन गुड्डी वैसी की वैसी तो संध्या भाभी ने फिर बोला-

“अरे बुद्धू। कोई जरूरी थोड़े ही सै की यही तुम्हारे ऊपर चढ़कर चोदे। अरे ऐसा बुद्धू हो तो कई बार लड़की को ही कमान अपने हाथ में लेनी होती है। और जब लड़की ऊपर होती है, तो उछल-उछलकर ऊपर-नीचे करके चोदती है। तो करधन के ही घुंघरू बोलते हैं…”

रीत मुश्कुराती हुई मेरे चेहरे का मेकप करने में बिजी थी, लाल लिपस्टिक।

और गुड्डी से बोली, हे देख हैं न खूब चूमने लायक, चूसने लायक होंठ, लौंडिया मात।

" अरे तो चूम ले न " गुड्डी खिलखिलाती हुयी बोली और रीत ने चूम लिया।

गालों पे रूज, आँख में काजल, मस्कारा, आइब्रो और साथ में कानों में झुमके, नाक में नथ, कान नाक में छेद तो था नहीं इसलिए कहीं से इन लोगों ने स्क्रू वाले झुमके और नथ का इंतजाम किया था। नथ भी बड़ी सी उसकी मोती होंठों पे। नथ गुड्डी पहना रही थी। मैं थोड़ा ना-नुकुर कर रहा था।

तब चंदा भाभी ने हड़काया- “अरे पहन लो पहन लो, वरना उतारी क्या जायेगी?”

मुश्कुराती हुई रीत ने गुड्डी को आँख मारकर बोला- “पहना दे तू लेकिन उतारूंगी मैं ही…”

तभी रीत का ध्यान मेरे ब्लाउज़ पे गया जिसके अन्दर संध्या भाभी की ब्रा थी। वो हल्के से बोली- “माल तो मस्त है लेकिन थोड़ा सा कसर है…” और वो भाग के अन्दर गई।

जब वो बाहर आई तो उसके हाथ में रंग के भरे दो गुब्बारे थे। उसने झट से मेरी ब्रा खोलकर उसके अन्दर डाल दिया और बोली- “हूँ अब मस्त माल लग रही है एकदम 34सी बल्की डी…” और मुझे खड़ा कर दिया गया था।
साजो शृंगार करके..
अब तो आनंद बाबू गुब्बारे के साथ मस्त माल लग रहे होंगे..
 

motaalund

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सिन्दूर दान, - यादों के झुरमुट से
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दूबे भाभी जो अब तक दूर से गाइड कर रही थी, पास में आई और बोली- “सही है लेकिन बस एक कसर है…” और उन्होंने अपने माथे से अठन्नी की साइज की टिकुली मेरे माथे पे लगा दी और बोला- “अब हुआ शृंगार पूरा। नहीं लेकिन एक कसर है…”



सब मुझे घेर के खड़े थे। चंदा भाभी, संध्या भाभी और रीत और गुड्डी तो एकदम सटकर अगल-बगल। किसी को कुछ समझ में नहीं आया।

दूबे भाभी- “अरी सालियों। इत्ती मस्त दुल्हन लेकिन उसकी मांग तो सूनी है। सिन्दूर कौन भरेगा?”



रीत ने गुड्डी की ओर इशारा किया तो गुड्डी ने रीत की ओर।

चंदा भाभी ने उकसाया- “अरे सोचो मत। इसकी बहन पे तो तीन-तीन एक साथ चढ़ेंगे, तुम तो दो ही हो कर दो एक साथ…”

दूबे भाभी ने हड़काया- “अरे तुम लोग बनारस की हो। लखनऊं की नहीं की जो पहले आप, पहले आप कर रही हो”


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कई बार अतीत बिन बोले वर्तमान पर छा जाता है, भांग का नशा था, सामने रीत भी गुड्डी भी,


लेकिन वो सीन चार पांच साल पहले का, भाभी की शादी में, जब ऐसे ही तो भाभी की सहेलियों भाभियों के झुरमुट में पकड़ा गया था मैं और वही सिंगार, गुड्डी नेलपॉलिश लगा रही थी अपने हाथ से मेरे हाथ को पकड़ के,

नेलपॉलिश लगाती गुड्डी की ओर देख के मैं बोला,

" कल गुड्डी का डांस बहुत अच्छा था, .... " लेकिन जो जवाब गुड्डी की मम्मी ने दिया मैं सोच नहीं सकता था,

" बियाह करोगे इससे " वो सीरियस हो के बोली,

मैंने गुड्डी की ओर देखा, बड़ी बड़ी दीये सी आँखे, नेह का तेल, प्यार की बाती, दीये जगमगा उठे लेकिन लाज ने पल भर के लिए गुड्डी की पलकों को झुका दिया, और उसी झिझक ने मेरे होंठों पर फेविकोल चिपका दिया,

लजा गया, जैसे मेरे चेहरे पर किसी ने ईंगुर पोत दिया हो एकदम पलके झुकी।

" काहें तुम्ही कह रहे हो, डांस अच्छा करती है , कल गाना भी सुन लिया होगा तुम्हारी बहिन महतारी सब का हाल, .... "

गुड्डी की मम्मी , मेरी ठुड्डी पकड़ कर चेहरा उठा के गाल सहलाते हुए आँख में आँख डाल के पूछीं।

मेरी आँखे झुकी, लाज से मेरी हालत खराब,



अब सब लोग एक साथ हँसे, भाभी ( गुड्डी की मम्मी ), विमला भाभी, रमा सब,... खिलखिला रही थी विमला भौजी बोलीं

" इतना तो लड़किया नहीं लजाती शादी की बात पे जितना भैया तुम लजा रहे हो, ... गौने क दुल्हिन झूठ "

लेकिन तब तक भाभी ( गुड्डी की मम्मी ) ने गुड्डी से पूछ लिया

" बोलो पसंद है, करा दूँ शादी। "

नेलपॉलिश तो कब की गुड्डी लगा चुकी थी, अनजाने में उसने कस के मेरा हाथ हल्के से दबा दिया लेकिन मेरी तरह से वो लजा नहीं रही थी, खुल के मुझे देख रही थी.

मजाक में गाँव में शादी के माहौल में कोई किसी को छोड़ता नहीं न रिश्ता न उम्र देखी जाती है। " बोलो, ठीक से देख लो अगर पंसद हो बस हाँ बोल दो " गुड्डी की मम्मी , गुड्डी के पीछे पड़ गयी।


अब मुझे लगता है हाँ बोल देना चाहिए था, इतना छोटा भी नहीं था, इंटर कर चुका था, आई आई टी में सेलेक्शन भी हो गया था,

मुझे अब तक याद है, गुड्डी ने एक बार आंख उठा के देखा मेरी ओर और मेरी हालत खराब,.... और उस सारंग नयनी ने पलक बंद कर ली, ये सिर्फ मैंने देखा और गुड्डी ने,...और मैं उन पलकों में बंद हो चुका था,



कैद तो उस सारंगनयनी ने पहली बार ही कर लिया था, मैं थोड़ा सा रिजर्व, लेकिन वो जनवासे में अपनी सहेलियों के साथ और दांत देखने के बहाने, रसगुल्ला खिला के चली गयी और साथ में, मुझे भी ले गयी। और जैसे वो काफी नहीं था, डांस करते समय भी जब वो गाती,

जिस तरह वो दोनों हाथों की चूड़ियां आपस में बजा के दिखा दिखा के कहती लग रहा था जैसे मुझ से ही कह रही हो,...




मेरा बनके तू जो पिया साथ चलेगा

जो भी देखेगा वो हाथ मलेगा




स्टेज के किसी कोने में वो होती लेकिन आँख उसकी बस मेरे पास,...



और उसके बाद, बस मैं मौका खोज रहा था उससे मिलने का लेकिन उसके पहले ही, बीड़ा मारने की रस्म, बादलों में बिजली सी वो भी दिखी, और भाभी का हाथ उठा, उसके साथ ही उसका भी,...



भाभी का बीड़ा तो लगा सही, लेकिन गुड्डी का एकदम सीधे मेरे सीने पर,

द्वारपूजे के बाद जब वो दिखी, तो मैंने बस इतना कहा की तुम्हारा निशाना एकदम सही लगा,



वो मुस्करायी और बस बोली की लेकिन कुछ लोग ऐसे बुद्धू होते हैं जिनका निशाना लग भी जाता है उन्हें पता नहीं चलता।

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अब भी यही बात साल रही है की उस दिन गुड्डी की मम्मी की बात, बियाह करोगे इससे, मन तो बस यही कर रहा था की ये लड़की मिल जाए, बस उसके बाद और कोई चीज नहीं मांगूंगा, लेकिन, वही झिझक,



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और अभी डेढ़ साल पहले, घर पे, पढ़ाई भी हो चुकी थी और पढ़ते हुए ही सेलेक्शन भी हो गया था, आल इंडिया सर्विस में फर्स्ट अटेम्प्ट में, रैंक भी अच्छी थी और कैडर भी होम यानि यू पी मिलना करीब तय था,



मेरी आम की चिढ जग जाहिर थी, और सिर्फ खाना नहीं पसंद है ये बात नहीं, नाम लेने से लेकर आस पास भी, और सब लोग ध्यान भी करते थे , मेरे सामने



लेकिन गुड्डी, गुड्डी थी, और मैं भी हर मौका ढूंढ़ता था उसके आस पास मंडराने का, नौवें पास कर लिया था उसने,



गरमी का सीजन था, गुड्डी, साथ में उसकी सहेली और मेरी कजिन, एक दो और अड़ोस पड़ोस की लड़कियां और मंजू, वैसे तो घर में काम करती थी, लेकिन हम लोगो के लिए भौजी ही थी, और रिश्ता निभाती भी थी, मजाक न एकदम खुल कर बल्कि देह तक पहुँच जाता था.

वो सब लोग मिल के सुतुही से कच्चे आम छील रहे थे और मैं चुपके चुपके गुड्डी की कच्ची अमिया निहार रहा था, अपनी सहेलियों से २० नहीं २२ थी, वो कुछ भी होती, दर्जनों लड़कियां खड़ी हों दिखती मुझे वही थी,

लड़कियां एक खेल खेलती थीं, जब आम की गुठली बचती थी तो उसे दो उँगलियों में पकड़ के दबाकर छोड़ती थी और वो उछलती थी, लेकिन उसके उछलने के पहले किसी लड़की का नाम लेकर पूछती थी, उसकी शादी कहाँ होगी, और जिधर वो गुठली जाती फिर सब मिल के उस लड़की को चिढ़ाती की उसकी ससुराल पूरब होगी या जिधर भी वो गुठली उछल के गिरे



मंजू ने एक गुठली पकड़ी और गुड्डी को दिखाते, चिढ़ाते, दबा के पूछा,




बिजुली रानी, बिजुली रानी, कहाँ होई,

गुड्डीया का बियाह कहाँ होई




और वो गुठली उछली, मेरी ओर और सीधे मेरे ऊपर ही गिर गयी,

मंजू जोर से खिलखिलाई, “अरे सब क गुठली तो ससुराल की ओर जाती है ये तो सीधे दूल्हे पे ही गिर गयी, गुड्डी देख लो, है लड़का पसंद, चाहे तो बियाहे के पहले एकाध बार ट्राई कर के देख लो, "

और फिर सब लड़कियां गुड्डी के पीछे, लेकिन गुड्डी से ज्यादा मैं झेंप गया, उठा लेकिन जाने के पहले एक बार गुड्डी को भर आँख देखने की लालच नहीं रोक पाया,

और फिर वो आँखे जो मुस्करायीं, गुनगुनुनाईं,


और थोड़ी देर बाद वो मिली, अकेले थे हम दोनों, वो कुछ लेने आयी थी मेरे कमरे से और मैंने हिम्मत कर के पूछ लिया,

" हे वो, वो वाली बात, सच हो जाए तो "

वो समझ रही थी मैं क्या पूछ रहा हूँ, लेकिन उसकी चिढ़ाती आँखों ने और छेड़ा मुझे, मुस्करा के बोली,

" कौन सी बात?"

" वही गुठली वाली बात, बिजुली बिजुली "

" अरे वो सब लड़कियों का खेल तमाशा, " हंस के वो बोली और बाहर जाने के लिए मुड़ी, लेकिन फिर ठिठक के रुक गयी और आलमोस्ट मुझसे सट के फुसफुसाते हुए बोली,

" और सच हो भी जाये तो मैं तुझसे डरती थोड़े ही हूँ "


कह के उसने मेरी नाक पकड़ ली, मारे ख़ुशी के मेरी बोलती बंद हो गयी लेकिन अगली बात जो नाक पकडे पकडे मेरी, बोली तो मैं एक पल के लिए हदस गया। उस सारंगनयनी ने कहा,

" लेकिन ललचाते बहुत हो "


मैं समझ गया, मेरी चोरी पकड़ी गयी, जो २४ घंटे उसकी बस उभरती हुयी कच्ची अमिया ताकता रहता था, क्या करूँ, आँखे मेरी मन की गुलाम, और मन तो जो सामने खड़ी थी उसमें उलझा,



बड़ी मुश्किल से मेरे बोल फूटे, बहुत धीमे से थूक निगलते बोल पाया , " गुस्सा,.... तुम गुस्सा हो ?"



" बुद्धू " वो बोली और खिलखिलाई, हजारों मोती फर्श पर लुढ़क गए, और नाक छोड़ के बोली,

" गुस्सा होउंगी, वो भी तुझ पे, भूल जा "

और बाहर, लेकिन दरवाजे के पास रुक के एक पल के लिए ठिठकी, मुड़ी मेरी ओर देखा और हलके से मुस्करा के बोली, " लालची "

उसी दिन शाम को पिक्चर हाल में, बताया तो था, हम सब लोग फिल्म देखने गए थे, सबसे किनारे मैं, मेरे बगल में गुड्डी और उसके बाद मेरी कजिन, और फिर बाकी लोग, पिकचर शुरू होने के थोड़ी देर बाद ही, मेरा हाथ पकड़ कर उसने अपने सीने पे, और कुछ देर बाद हलके से दबाया भी, और रात में भी, नीचे हम दोनों ही सोते थे, गरमी के दिन, तो बरामदे में चारपाइयाँ सटी, और रात में भी



नहीं बात छुआ छुववल से आगे नहीं बढ़ी, लेकिन पहल हर बार गुड्डी ही करती थी



और अभी गुड्डी ने ही पहल की, ढेर सारा सिन्दूर मेरी मांग में, भरभरा कर



संध्या भाभी ने सिंदूर की डिबिया बढ़ाई और,… सिन्दूर दान किया गुड्डी ने ही, और ढेर सारा,


उसके मन में इतनी ख़ुशी थी और उससे ज्यादा मेरे मन में,

कब ये मौका आये बदले में मैं कब मांग भरूंगा इसकी। फिर रोज सुबह उठूंगा तो इसका चेहरा देखकर और सोऊंगा तो इसका चेहरा देखकर।



कुछ मेरी नाक पे भी गिर गया। संध्या भाभी ने चिढ़ाया- “नाक पे सिन्दूर गिरने का मतलब जानते हो तुम्हारी सास बहुत खुश रहेंगी…”

चंदा भाभी ने रीत को किसी काम से किचेन में भेज दिया था, और संध्या भाभी एक बार फिर से चंदा भाभी और दूबे भाभी के साथ मिल के छत के दूसरे कोने पे अगली योजना की प्लानिंग कर रहे थे,



लेकिन अब मेरी बोलने की बारी थी, बहुत देर से मैं चुप था।





मै गुड्डी से धीरे से बोला- “अरे सिन्दूरदान हो गया तो अब सुहागरात भी तो होनी चाहिए…”

वो भी इधर उधर देख के मीठा मीठा मुस्करा के खूब धीमे से बोली, " चल तो रही हूँ न तेरे साथ, मना लेना रात भर सुहागरात, मना थोड़े ही करुँगी, कर लेना अपने मन की, मना थोड़े ही करुँगी "

मेरा चेहरा चमक गया, फिर भी मैंने जबरदस्ती मुंह बना के कहा, " सिर्फ आज " और गुड्डी जो उसकी आदत थी, नाक पकड़ के बोली,

" इसीलिए, बुद्धू पूरे हफ्ते भर का प्रोग्राम बनाया है और आज पांच दिन वाली आंटी जी की भी टाटा बाई बाई तो उसकी भी परेशानी नहीं, सिर्फ आज क्यों, जब चाहो तब "



और मेरी नाक पकडे, संध्या भाभी की ओर इशारा कर के बोली, " और रात तक इंतजार काहे करोगे, मना लो न तोहार भौजी बहुत गर्मायी हैं, अपने पिचकारी के पानी से उनकर गर्मी ठंडी कर दो, उनको भी पता चल जाये मेरे वाले के बारे में, बहुत चिढ़ाती रहती हैं, और फिर तुम्हारी साली, रीत भी तो छौंछियायी है सबेरे से ठोंक दो एक बार, अरे एक दो बार करने से मेरे टाइम का स्टॉक कम थोड़े ही हो जाएगा "
" बियाह करोगे इससे " वो सीरियस हो के बोली,

ऐसे अचानक पूछने पर आनंद बाबू होशो हवास ठिकाने लग गए होंगे...
क्या बोले .. क्या न बोलें..
लेकिन यही तो अरमान थी उनकी...
लड़कियां इस मामले में ज्यादा समझदार होती हैं...
और गुड्डी तो उन सबसे बीस नहीं बाईस है...
 
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