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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
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मैं, गुड्डी और होटल
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komal ji ap bahut achhi tarah har relation ko ubhar kar lati hain. GAZAB.फागुन के दिन चार भाग २०
संध्या भाभी
संध्या भौजी की आँखे कह रही थीं, वो कितनी प्यासी थीं, टकटकी लगाए बस वो सीढ़ी की ओर देख रही थीं बाथरूम का दरवाजा आधा खुला आधा बंद और और वो उस दरवाजे के पीछे से, सिर्फ टॉवेल लपेटे,
जब तक मैं बाथरूम के दरवाजे पर पहुंचूं, बगल के बाथरूम से रीत की हंसी और चंदा भाभी की गुहार सुनाई पड़ी, दूबे भाभी के लिए मदद के लिए,
और संध्या भाभी को धकियाती दूबे भाभी बाथरूम से बाहर निकली,
मैं समझ गया एक भौजाई के साथ एक ननद, दूबे भाभी, संध्या भौजी का रंग छुड़ा रही थीं और चंदा भाभी रीत का लेकिन रीत से पार पाना आसान था क्या तो मदद के लिए दूबे भाभी बगल के बाथरूम में
लेकिन मुझे देख के वो ठिठक गयीं और फिर हंसी की एक लहर शुरू होती और उसके रुकने के पहले दूसरी, बड़ी मुश्किल से बोल पायीं,
" गुंजा आ गयी क्या "
मैं एकदम चांदी की मूर्ति बना, सर से पैर तक सफ़ेद वारनिश ( और जहाँ नहीं थीं वो अंग छोटी सी टॉवेल में छुपा था,)
जवाब अंदर से चंदा भाभी ने दिया, " हाँ, लेकिन चली भी गयी, कोई क्लास था अभी "
दूबे भाभी चंदा भाभी वाले बाथरूम में घुसी और संध्या भाभी ने मुझे अपने बाथरूम में खींच कर दरवाजा बंद कर लिया।
और मैं बाथरूम में देख रहा था, कन्या रस की मस्ती के साथ वाकई में रंग छुड़ाने का काम भी बड़ी शिद्द्त से हुआ था। तरह तरह के देह से निकले रंग से बाथरूम का फर्श पटा था, और साथ में रंग छुड़ाने के लिए तरह तरह की सामग्री, सरसो के तेल में सना बेसन, थोड़ा सा सिरका, तरह तरह के साबुन , शैम्पू,म्वासचराइजर, कंडीशनर के साथ कपडे के साबुन तक थे।
लेकिन मैं उस वार्निश के लिए परेशान था पर संध्या भाभी छेड़ने पर जुटी थीं, बोली,
'गुंजा सच में असली छोटी साली है, सही रगड़ा है जल्दी छूटेगा नहीं "
" और मैं घर कैसे जाऊँगा, ऐसे ही, फिर बाजार भी जाना है "
रोकते रोकते भी मेरी परेशानी फुट पड़ी। और संध्या भाभी ने मुझे कस के बांहों में भर लिया और एक जबरदस्त चुम्मी।
टॉवेल उनकी, उनके जबरदस्त उभारों को बड़ी मुश्किल से ढंक पा रही थी, बस निप्स के नीचे से
" अरे मुन्ना मैं हूँ न अभी सब जगह का रंग छुड़ाउंगी और जो सफ़ेद रंग तुमने बचा के रखा है न अपनी बहिनिया के लिए वो भी निकालूंगी। "
भौजी बोली और टॉवेल के ऊपर से ही उसे रगड़ दिया।
' उस ' की हालत वैसे ही खराब थी, गुंजा ने चूस चूस के मुझे पागल कर दिया था और झड़ने का उसे मौका मिल नहीं रह था और उसके बाद इतना खुला ऑफर,
लेकिन मामला उसके आगे नहीं बढ़ा,
भौजी उस बेचारे को ऐसे छोड़ के ही बाथरूम के बाहर चली गयीं और लौटी तो उनके हाथ में एक बड़ी सी बोतल,... मैं आधी खुली आँखों से ही थोड़ा बहुत देख पा रहा था,
भौजी ने जाते जाते मुंझे शावर के नीचे खड़ा कर दिया था और सर में उसके पहले ढेर सारा शैम्पू उलट दिया था। बड़ी सी बोतल के साथ दूसरे हाथ में एक कोई छोटी सी शीशी भी थी जो संध्या भौजी ने अपने चौड़े पिछवाड़े छिपा रखा था, लेकिन उसकी तेज झार से मैं पहचान गया और ये भी की उस का रंग छुड़ाने से कोई मतलब नहीं,
हाँ अगर वो मेरे पास होता तो गुंजा का खून खच्चर हो गया होता।
लेकिन देवर कितना भी चालाक हो भौजाई की तेज आँख से बच नहीं सकता। और जोर से डांट पड़ी,
" हे बेईमानी नहीं, आँख बंद कर "
और हँसते हुए उन्होंने मेरी बदमाशी की सजा भी दे दी। टॉवेल मेरी पकड़ के खींच दी।
और जंगबहादुर सैल्यूट करते खड़े हुए, उस टीनेजर गुंजा ने जो इत्ता कस कस के अपने मीठे मीठे मुंह से कस कस के चूसा था उसका असर इतनी जल्दी नहीं ख़त्म होना था। और जब तक भौजी की ललचाती निगाह उस मोटे लम्बे खिलौने पे अटकी थी, मैंने भी उनकी टॉवल खींच दी, और मिचमिचाती आंखों से देखा की संध्या भौजी के गोरे गोरे कड़े कड़े जुबना पे जो मैंने काही और गाढ़ा नीला रंग कस कस के लगाया था वो अभी भी बचा था, आस पास के रंग भले ही धुल गए हों।
लेकिन तब तक भौजी मेरे पीछे,... और बड़ी वाली बोतल का तेल निकाल के अपने दोनों हाथों से अपने हाथों में लगा के मेरे चेहरे पे,... और क्या ताकत थी संध्या भाभी के हाथों में,
पर अब मेरी आँखे बंद थीं और वैसे भी संध्या भौजी पीछे थीं।
लेकिन देवर को भौजी को देखने के लिए आँख की जरूरत थोड़ी पड़ती है, पूरी देह आँख हो जाती है और वो भी एक्स रे आईज, जो चोली के पीछे जुबना और साये के अंदर दरार देख लेती हैं और भौजी भी देवर को ये देखते ललचाते देख लेती है।
अभी भी संध्या भौजी की उँगलियाँ वो जादुई तेल मेरे चेहरे पे रगड़ रही थीं, उनके गदराये उभार मेरी पीठ पे रगड़ रहे थे, उनके खड़े खड़े निप्स उनकी हालत भी बता रहे थे और बरछी की तरह पीठ में छेद भी कर रहे थे और रंग छुड़ाते छुड़ाते उन्होंने बताया की वो क्यों बुला रही थीं .
मामला उनका भी ननद भौजाई का था, और हर भौजाई की तरह वो भी अपने ननद का नाम बिना गाली दिए नहीं ले सकती थीं तो उन्होंने अपनी परेशानी बतानी शुरू की,
" वो चंदा बाई चूतगंज वाली का फ़ोन आया तो मैं समझ गयी हुआ सब गबड़जंग, ( मैं ये समझ गया की चंदा उनकी ननद का नाम है लेकिन चूतगंज,... फिर मेरी चमकी, मतलब वो चेतगंज में रहती होंगी और ननद हैं तो चेतगंज का चूत गंज बोलना तो,.... )।
और चेहरे पे तेल मलने के बाद संध्या भौजी मेरी छाती और पीठ पे जो वार्निश गुंजा रानी ने पोती थी उसे छुड़ा रही थीं और साथ में अपनी ननद का पात्र परिचय कराया,
उनकी ननद उनसे काफी बड़ी थीं, बारह चौदह साल बल्कि थोड़ी और ज्यादा, एक बेटी भी थी. गुड्डी की सबसे छोटी बहन छुटकी की उम्र की। लेकिन ननद तो ननद,... उनसे यह नहीं देखा गया की उनकी भौजाई मायके में मस्ती कर रही हैं तो उन्होंने बोल दिया की शाम को चेतगंज आ जाना और ये भी की संध्या भाभी के मरद आएंगे तो वो भी अपनी बहन के यहाँ ही रुकेंगे, और वो भी होली के पहले वाली शाम को।
संध्या भाभी ने छाती का रंग छुड़ाते छुड़ाते मेरे मेल टिट्स को जोर से पिंच कर दिया और जब मैं चीखा तो चिढ़ाते हुए बोलीं
" अभी थोड़ी देर पहले जो मेरी चूँची कस कस के दबा रहे थे, अपनी छुटकी बहिनिया की समझे थे क्या "
और कचकचा के मेरे गाल काट लिए तो मैंने भी उन्हें छेड़ा, " अरे भौजी ननद हैं तो ननदोई भी तो होंगे. उनसे मजा ले लीजियेगा, "
संध्या भौजी ने जोर से मुंह बिचकाया और बोलीं
" अरे वो तो, उनकी मेहरारू के आगे उनकर हिम्मत है की भर नजर देख भी लें और वो भी दो दिन के लिए बाहर गए हैं .तभी तो चंदा बाई चूत गंज वाली गर्मायी हैं, रात भर का पेला पेली का, घिस्सा घिस्सी का प्रोग्राम है तभी मोहाई हैं.उससे भी बड़ी बात है की होली के अगले दिन ही शायद हमको लौटना पड़े, इलसिए होली के बाद तो तोहसे मुलाकात हो नहीं पाती , इसलिए मैंने कहा, और वैसे भी भी मैं नौ नगद और तरह उधार वाली हूँ, तो मुझे उधार नहीं रखना था।
और तब तक भौजी के हाथ फनफनाये खड़े मूसलचंद पे और सामने आके उसे देखते बोलीं, " गनीमत थी गुंजा ने यहाँ पेण्ट नहीं लगाया "
मैं उन्हें क्या बताता की उस शोख शरारती साली ने वहां पहले खाने वाला रंग लगाया और फिर खुद खा गयी, हाँ उसकी उँगलियों के निशान अभी भी बचे थे।
संध्या भाभी ने एक सूखे तौलिये से तेल जो मेरे चेहरे पे लगाया था उसे रगड़ रगड़ के साफ़ किया और फिर दुबारा वही तेल और उसके बाद बेसन तेल लगा के रगड़ घिस और फिर मुझे शावर के नीचे,
और अब जब मैंने बाथरूम में लगे आदमकद देखा तो वार्निश पेण्ट पूरी तह साफ़ था लेकिन मेरी साली, दर्जा नौ वाली आखिर गुड्डी की ही छोटी बहन थी। असली खेल था वार्निश के नीचे जो उसने रगड़ रगड़ के चेहरे पे लाल नीला रंग लगाया था वो करीब करीब वैसे ही और संध्या भाभी ने भी हाथ खड़ा कर लिया
" छोटी साली के हाथ का रंग है थोड़ा तो दो चार दिन रहना चाहिए "
और वैसे भी लाल काही नीला रंग, उस वार्निश छुड़ाने वाले तेल से तो छूटता नहीं, लेकिन संध्या भाभी की कृपा की वार्निश अब करीब करीब साफ़ हो गयी थी, और मुझसे तो वो कभी छूटती नहीं।
Bahut khub. Chanda bhabhi aur guddi ki mummy dono ka experience ka bahut sundar varna kiya hai.शावर में मस्ती
" छोटी साली के हाथ का रंग है थोड़ा तो दो चार दिन रहना चाहिए "
और वैसे भी लाल काही नीला रंग, उस वार्निश छुड़ाने वाले तेल से तो छूटता नहीं, लेकिन संध्या भाभी की कृपा की वार्निश अब करीब करीब साफ़ हो गयी थी, और मुझसे तो वो कभी छूटती नहीं।
और अब बाकी रंगों का नंबर था
तो भौजी ने खींच के मुझे अपने साथ शावर में खड़ा कर दिया। पहले साबुन, फिर तेल मिला बेसन और फिर साबुन,
शावर में हम दोनों चिपके, देह पर घूमती, नाचती पागल करती भौजी की रसीली उँगलियाँ, साबुन लगाते कभी चिकोटी काट लेतीं तो कभी गुदगुदा देतीं और कभी कस के अपनी ओर खींच लेती। जिसने जिसने भौजाई की मीठी चिकोटियां और गुदगुदी का मजा लिया होगा उसे मालूम होगा की कामदेव के बाण भी उसके आगे फेल, और जब ये सब हो तो बेचारे मूसल चंद बौरायँगे ही, और वो अपनी प्यारी सहेली को सूंघ कर उसके दरवाजे पर जोर जोर से ठोकर मारने लगे,
और अब शावर में मजा लेना मैं भी सीख रहा था,
ऊपर से भौजाई ने मेरे हाथ में साबुन पकड़ा दिया, उनकी देह में लगाने को। बस। साबुन के झाग के साथ मेरी उंगलिया, संध्या भाभी की कभी पतली कटीली कमरिया पे तो कभी केले के पत्ते को भी शर्माने वाली चिकनी चिकनी गोरी गोरी पीठ पर, पर असली चीज जो मुझे पागल किये थी जैसे मैंने उन्हें देखा था वो थे उनके मोटे मोटे नितम्ब और एक हाथ साबुन के साथ सीधे वहीँ, दोनों नितम्बों को पकड़ के मैं उन्हें अपनी ओर खींचने लगा,
तो वो तो और खेली खायी थीं, साल भर से रोज बिना नागा जिस काई में कुदाल चल रही थी और जो दस दिन से उपवास पे थी, उसकी भूख तो उन्हें भी बेबस किये थी। बस उन्होंने भी अपने दोनों हाथों से पकड़ के मुझे अपनी ओर खींच लिया।
और शावर में ही खुल के ग्राइंडिंग होने लगी, रगड़ घिस, रगड़ घिस,
लेकिन संध्या भौजी असली उस्ताद थीं, उन्होंने खुद अपनी दोनों जाँघे फैला दी और मेरा खड़ा खिलाडी, सूंघते ढूंढते उन जाँघों के बीच, जैसे कोई मोटा भूखा चूहा, रोटी के लालच में सूंघते सूंघते अंदर घुसे और चूहेदानी का दरवाजा, खट्ट बंद हो जाए, बस एकदम उसी तरह मूषक राज भौजी की दोनों जाँघों के बीच पकडे गए, दबोचे गए और संध्या भाभी की कदली की तरह की जाँघों ने उसे कस कस के रगड़ना मसलना शुरू कर दिया।
इतना मजा तो कभी सपने में भी मुट्ठ मारने में नहीं आ सकता था। और भौजी का दुहरा हमला था, साथ में उनकी मोटी मोटी चूँचिया मेरे सीने पे रगड़ रही थीं और उनके हाथ मेरे नितम्बो को कभी दबोचते कभी उनकी लम्बी ऊँगली नितम्बो के बीच की दरार को कुरेद देती।
उंचासो पवन काम के चल रहे थे, मैंने अपने को भौजी के हवाले कर दिया था।
अब मैं सिर्फ देह था।
भौजी की जांघो के बीच रगड़ रगड़ कर मेरे मोटे मूसल की हालत खराब हो गयी थी,
और अब कमान पूरी तरह संध्या भौजी ने अपने हाथ में ले ली थी जैसे कल रात चंदा भाभी ने ले लिया था।
लेकिन चार पांच मिनट की रगड़ घिस के बाद भौजी मेरे हाथों की बेचैनी समझ गयी
और अब उनकी पीठ मेरे सीने की ओर थी और गप्पाक से मेरे दोनों हाथों ने भौजाई के जोबन को गपुच लिया, होली में सब देवर भौजाई का जोबन देख देख के ही खुस हो जाते हैं, रंग में भीगी देह से चिपकी साड़ी और गीली चोली के बीच से झांकता, ललचाता जोबन ही होली को सफल बना देता है और कोई लकी देवर और उदार भौजी हुईं तो बस चोली के ऊपर हिस्सों से रंग लगाने के बहाने, छुआ छुअल,
लेकिन यहाँ तो दोनों जोबना मेरी जमींदारी हो गए थे। कस कस के मैं मसल रहा था, मूसल राज अब गोरे गोरे मांसल नितम्बो के बीच कुण्डी खड़का रहे थे, एक बार फिर जाँघों का दरवाजा खुला, मूसल राज भौजी की दोनों मखमली जांघो के बीच गिरफ्तार, कैद बमश्क्क्त,जैसे जेल में कैदी चक्की चलाते हैं यहाँ वो खुद जाँघों की चक्की के बीच पीसे जा रहे थे
लेकिन मैंने भी रात में चंदा भाभी की पाठशाला में न सिर्फ पढ़ाई की थी बल्कि अच्छे नंबरों से पास भी हुआ था।
एक हाथ जोबन के गर्व को मसल के चूर कर रहा था और दूसरा दक्षिण दिशा में योनि के किले पर चढ़ाई करने, ....थोड़ी देर हथेली से मैंने सहलाया, फिर एक ऊँगली अंदर बाहर और अंगूठा क्लिट पे।
भौजी जबरदस्त गरमाई थीं, जिस तरह से उनकी जादुई अंगूठी, क्लिट कड़ी कड़ी हो गयी थी, एकदम साफ़ लग रहा था और जॉबन और भौजी की गुलाबो दोनों के रगड़ने मसलने का नतीजा जल्द सामने आया,
वो सिसकने लगीं, उनकी बिल शहद फेंजने लगी, एकदम गाढ़ा गाढ़ा, मीठा मीठा, ऊँगली में लगा के मैंने भौजी को चटा दिया और भौजी ने अपने होंठों से मुझे।
और भौजी समझ गयी असली खेला का टाइम आ गया,
वो शावर से बाहर निकली, मैंने शावर धीमे किया और संध्या भौजी ने निचे छुपी एक पतली शीशी निकाल ली। जब वो वार्निश निवारक तेल लायी थीं तभी और उसकी झार से ही मैंने पहचान लिया था, कोल्हु का शुद्ध देसी सरसों का तेल।
संध्या भौजी ने अपनी खूब गहरी गदोरी में कम से कम १००- १५० ग्राम कडुवा तेल , और उनकी गहरी हथेली देख के मुझे कल रात की चंदा भाभी की एक बात याद आ गयी।
चुदाई की पढ़ाई के साथ औरतों को समझने और पटाने के भी उन्होंने १०१ नुख्से बताये थे एकदम कच्ची कलियों से चार चार बच्चों की माँ तक के लिए,
और उसी में उन्होंने बताया था की जिस औरत की हथेली जितनी गहरी होती है उसकी बुर भी उतनी ही गहरी होती है और उतनी ही जबरदस्त चुदवासी, छोटे मोटे लंड से उसका मन नहीं बुझता और उस कहीं तेरे ऐसा मुस्टंडा वाला डंडा मिल जाए तो खुद पकड़ के घोंट लेगी और उसे कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए।
एक बार उसका मन भर गया तो कुछ भी करेगी और उसके आशीर्वाद का भी बड़ा असर होगा, जो किसी से न पटे, वो लौंडिया खुद ही टांग फैला देगी , अगर गहरी हथेली वाली को हचक के पेल दो तो। और हचक के पेलवाने के साथ उस औरत को गारी देने में, रगड़ने और रगड़वाने में भी बहुत मजा आता है।
संध्या भाभी की हथेली एकदम वैसे ही थी, खूब गहरी,
लेकिन मुझसे नहीं रहा गया और मैंने चंदा भाभी से पूछ ही लिया,
" भाभी और लड़को के भी साइज पता करने का कोई तरीका हैं क्या "
और वो बहुत जोर से हंसी, हंसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। किसी तरह से बोलीं,
" अबे स्साले, तुझे तो देख के ही मैं समझ गयी थी। और फिर उनकी हंसी चालू और अब जब रुकी तो चंदा भाभी बोलीं की मुझे लगा की,....
मैंने गुड्डी की मम्मी से बोला तो वो हँसते हुए बोलीं की तुम सोचती हो मुझे अंदाज नहीं था और उन्होंने तो साइज भी, मैं जानती थी बड़ा होगा लेकिन गुड्डी की मम्मी हम सबसे आगे हैं इन सब मामलों में। वो बोलीं की जब तुम भैया के बियाह में बिन्नो की शादी में आये थे तो तुम्हे छेड़ रही थीं, तभी अंदाज लगा लिया था उसी समय, ऊँगली देख के, " लेकिन ऊँगली से, कैसे, उस समय तो मैं वैसे भी, "
मेरे अचरज का ठिकाना नहीं था, जितनी बातें चंदा भाभी से सीख रहा था।
उनकी हंसी फिर चालू हो गयी, फिर किसी तरह हंसी रोक के बोलीं,
" ये सब औरतों की बातें, सब कुछ एक दिन में ही सीख लेगो क्या, लेकिन चलो बता देती हूँ , तर्जनी की लम्बाई और जिस ऊँगली में अंगूठी पहनते हैं बस उसी से, तर्जनी अंगूठी वाली ऊँगली से जितनी छोटी हो मरद का मूसल उतना ही बड़ा होता है और फिर औरत की निगाह, गुड्डी की मम्मी ने तो साइज का भी अंदाज ही लगा लिया था लेकिन पहली बार वो गलत थी, कल बताउंगी मैं उन्हें। "
" मतलब " मेरी अभी भी कुछ समझ में नहीं आया,
" अरे गुड्डी की मम्मी ने बोला था कम से कम सात साढ़े सात इंच का, ज्यादा भी हो सकता है लेकिन हँसते हुए वो ये भी बोलीं की तुम लजाते बहुत हो, गौने की दुल्हिन झूठ, और अब मैं कल बताउंगी उनको की पहली बार उनका अंदाज गलत है , पूरे बित्ते भर का है, एक दो सूत ज्यादा ही होगा। " चंदा भाभी हँसते बोली।
लेकिन संध्या भाभी की हरकत से मैं फ्लैश बैक से वापस आ गया
वैसे तो शायद अपडेट आने में दो चार दिन और लगता अभी, लेकिन आपने कहा तो मैंने अपडेट पोस्ट कर दिया है पढ़ कर लाइक भी करियेगा और कमेंट जरूर दीजियेगाIs thread par new update kab aayega