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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २७

मैं, गुड्डी और होटल

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फागुन के दिन चार भाग २०

संध्या भाभी


संध्या भौजी की आँखे कह रही थीं, वो कितनी प्यासी थीं, टकटकी लगाए बस वो सीढ़ी की ओर देख रही थीं बाथरूम का दरवाजा आधा खुला आधा बंद और और वो उस दरवाजे के पीछे से, सिर्फ टॉवेल लपेटे,

जब तक मैं बाथरूम के दरवाजे पर पहुंचूं, बगल के बाथरूम से रीत की हंसी और चंदा भाभी की गुहार सुनाई पड़ी, दूबे भाभी के लिए मदद के लिए,

और संध्या भाभी को धकियाती दूबे भाभी बाथरूम से बाहर निकली,

मैं समझ गया एक भौजाई के साथ एक ननद, दूबे भाभी, संध्या भौजी का रंग छुड़ा रही थीं और चंदा भाभी रीत का लेकिन रीत से पार पाना आसान था क्या तो मदद के लिए दूबे भाभी बगल के बाथरूम में

लेकिन मुझे देख के वो ठिठक गयीं और फिर हंसी की एक लहर शुरू होती और उसके रुकने के पहले दूसरी, बड़ी मुश्किल से बोल पायीं,

" गुंजा आ गयी क्या "


मैं एकदम चांदी की मूर्ति बना, सर से पैर तक सफ़ेद वारनिश ( और जहाँ नहीं थीं वो अंग छोटी सी टॉवेल में छुपा था,)

जवाब अंदर से चंदा भाभी ने दिया, " हाँ, लेकिन चली भी गयी, कोई क्लास था अभी "

दूबे भाभी चंदा भाभी वाले बाथरूम में घुसी और संध्या भाभी ने मुझे अपने बाथरूम में खींच कर दरवाजा बंद कर लिया।

और मैं बाथरूम में देख रहा था, कन्या रस की मस्ती के साथ वाकई में रंग छुड़ाने का काम भी बड़ी शिद्द्त से हुआ था। तरह तरह के देह से निकले रंग से बाथरूम का फर्श पटा था, और साथ में रंग छुड़ाने के लिए तरह तरह की सामग्री, सरसो के तेल में सना बेसन, थोड़ा सा सिरका, तरह तरह के साबुन , शैम्पू,म्वासचराइजर, कंडीशनर के साथ कपडे के साबुन तक थे।

लेकिन मैं उस वार्निश के लिए परेशान था पर संध्या भाभी छेड़ने पर जुटी थीं, बोली,

'गुंजा सच में असली छोटी साली है, सही रगड़ा है जल्दी छूटेगा नहीं "

" और मैं घर कैसे जाऊँगा, ऐसे ही, फिर बाजार भी जाना है "

रोकते रोकते भी मेरी परेशानी फुट पड़ी। और संध्या भाभी ने मुझे कस के बांहों में भर लिया और एक जबरदस्त चुम्मी।

टॉवेल उनकी, उनके जबरदस्त उभारों को बड़ी मुश्किल से ढंक पा रही थी, बस निप्स के नीचे से

" अरे मुन्ना मैं हूँ न अभी सब जगह का रंग छुड़ाउंगी और जो सफ़ेद रंग तुमने बचा के रखा है न अपनी बहिनिया के लिए वो भी निकालूंगी। "

भौजी बोली और टॉवेल के ऊपर से ही उसे रगड़ दिया।


' उस ' की हालत वैसे ही खराब थी, गुंजा ने चूस चूस के मुझे पागल कर दिया था और झड़ने का उसे मौका मिल नहीं रह था और उसके बाद इतना खुला ऑफर,



लेकिन मामला उसके आगे नहीं बढ़ा,

भौजी उस बेचारे को ऐसे छोड़ के ही बाथरूम के बाहर चली गयीं और लौटी तो उनके हाथ में एक बड़ी सी बोतल,... मैं आधी खुली आँखों से ही थोड़ा बहुत देख पा रहा था,

भौजी ने जाते जाते मुंझे शावर के नीचे खड़ा कर दिया था और सर में उसके पहले ढेर सारा शैम्पू उलट दिया था। बड़ी सी बोतल के साथ दूसरे हाथ में एक कोई छोटी सी शीशी भी थी जो संध्या भौजी ने अपने चौड़े पिछवाड़े छिपा रखा था, लेकिन उसकी तेज झार से मैं पहचान गया और ये भी की उस का रंग छुड़ाने से कोई मतलब नहीं,

हाँ अगर वो मेरे पास होता तो गुंजा का खून खच्चर हो गया होता।

लेकिन देवर कितना भी चालाक हो भौजाई की तेज आँख से बच नहीं सकता। और जोर से डांट पड़ी,

" हे बेईमानी नहीं, आँख बंद कर "


और हँसते हुए उन्होंने मेरी बदमाशी की सजा भी दे दी। टॉवेल मेरी पकड़ के खींच दी।

और जंगबहादुर सैल्यूट करते खड़े हुए, उस टीनेजर गुंजा ने जो इत्ता कस कस के अपने मीठे मीठे मुंह से कस कस के चूसा था उसका असर इतनी जल्दी नहीं ख़त्म होना था। और जब तक भौजी की ललचाती निगाह उस मोटे लम्बे खिलौने पे अटकी थी, मैंने भी उनकी टॉवल खींच दी, और मिचमिचाती आंखों से देखा की संध्या भौजी के गोरे गोरे कड़े कड़े जुबना पे जो मैंने काही और गाढ़ा नीला रंग कस कस के लगाया था वो अभी भी बचा था, आस पास के रंग भले ही धुल गए हों।


लेकिन तब तक भौजी मेरे पीछे,... और बड़ी वाली बोतल का तेल निकाल के अपने दोनों हाथों से अपने हाथों में लगा के मेरे चेहरे पे,... और क्या ताकत थी संध्या भाभी के हाथों में,

पर अब मेरी आँखे बंद थीं और वैसे भी संध्या भौजी पीछे थीं।

लेकिन देवर को भौजी को देखने के लिए आँख की जरूरत थोड़ी पड़ती है, पूरी देह आँख हो जाती है और वो भी एक्स रे आईज, जो चोली के पीछे जुबना और साये के अंदर दरार देख लेती हैं और भौजी भी देवर को ये देखते ललचाते देख लेती है।

अभी भी संध्या भौजी की उँगलियाँ वो जादुई तेल मेरे चेहरे पे रगड़ रही थीं, उनके गदराये उभार मेरी पीठ पे रगड़ रहे थे, उनके खड़े खड़े निप्स उनकी हालत भी बता रहे थे और बरछी की तरह पीठ में छेद भी कर रहे थे और रंग छुड़ाते छुड़ाते उन्होंने बताया की वो क्यों बुला रही थीं .


मामला उनका भी ननद भौजाई का था, और हर भौजाई की तरह वो भी अपने ननद का नाम बिना गाली दिए नहीं ले सकती थीं तो उन्होंने अपनी परेशानी बतानी शुरू की,

" वो चंदा बाई चूतगंज वाली का फ़ोन आया तो मैं समझ गयी हुआ सब गबड़जंग, ( मैं ये समझ गया की चंदा उनकी ननद का नाम है लेकिन चूतगंज,... फिर मेरी चमकी, मतलब वो चेतगंज में रहती होंगी और ननद हैं तो चेतगंज का चूत गंज बोलना तो,.... )।


और चेहरे पे तेल मलने के बाद संध्या भौजी मेरी छाती और पीठ पे जो वार्निश गुंजा रानी ने पोती थी उसे छुड़ा रही थीं और साथ में अपनी ननद का पात्र परिचय कराया,

उनकी ननद उनसे काफी बड़ी थीं, बारह चौदह साल बल्कि थोड़ी और ज्यादा, एक बेटी भी थी. गुड्डी की सबसे छोटी बहन छुटकी की उम्र की। लेकिन ननद तो ननद,... उनसे यह नहीं देखा गया की उनकी भौजाई मायके में मस्ती कर रही हैं तो उन्होंने बोल दिया की शाम को चेतगंज आ जाना और ये भी की संध्या भाभी के मरद आएंगे तो वो भी अपनी बहन के यहाँ ही रुकेंगे, और वो भी होली के पहले वाली शाम को।

संध्या भाभी ने छाती का रंग छुड़ाते छुड़ाते मेरे मेल टिट्स को जोर से पिंच कर दिया और जब मैं चीखा तो चिढ़ाते हुए बोलीं

" अभी थोड़ी देर पहले जो मेरी चूँची कस कस के दबा रहे थे, अपनी छुटकी बहिनिया की समझे थे क्या "

और कचकचा के मेरे गाल काट लिए तो मैंने भी उन्हें छेड़ा, " अरे भौजी ननद हैं तो ननदोई भी तो होंगे. उनसे मजा ले लीजियेगा, "


संध्या भौजी ने जोर से मुंह बिचकाया और बोलीं

" अरे वो तो, उनकी मेहरारू के आगे उनकर हिम्मत है की भर नजर देख भी लें और वो भी दो दिन के लिए बाहर गए हैं .तभी तो चंदा बाई चूत गंज वाली गर्मायी हैं, रात भर का पेला पेली का, घिस्सा घिस्सी का प्रोग्राम है तभी मोहाई हैं.उससे भी बड़ी बात है की होली के अगले दिन ही शायद हमको लौटना पड़े, इलसिए होली के बाद तो तोहसे मुलाकात हो नहीं पाती , इसलिए मैंने कहा, और वैसे भी भी मैं नौ नगद और तरह उधार वाली हूँ, तो मुझे उधार नहीं रखना था। "



और तब तक भौजी के हाथ फनफनाये खड़े मूसलचंद पे और सामने आके उसे देखते बोलीं, " गनीमत थी गुंजा ने यहाँ पेण्ट नहीं लगाया "

मैं उन्हें क्या बताता की उस शोख शरारती साली ने वहां पहले खाने वाला रंग लगाया और फिर खुद खा गयी,




हाँ उसकी उँगलियों के निशान अभी भी बचे थे।

संध्या भाभी ने एक सूखे तौलिये से तेल जो मेरे चेहरे पे लगाया था उसे रगड़ रगड़ के साफ़ किया और फिर दुबारा वही तेल और उसके बाद बेसन तेल लगा के रगड़ घिस और फिर मुझे शावर के नीचे,

और अब जब मैंने बाथरूम में लगे आदमकद देखा तो वार्निश पेण्ट पूरी तह साफ़ था लेकिन मेरी साली, दर्जा नौ वाली आखिर गुड्डी की ही छोटी बहन थी। असली खेल था वार्निश के नीचे जो उसने रगड़ रगड़ के चेहरे पे लाल नीला रंग लगाया था वो करीब करीब वैसे ही और संध्या भाभी ने भी हाथ खड़ा कर लिया

" छोटी साली के हाथ का रंग है थोड़ा तो दो चार दिन रहना चाहिए "

और वैसे भी लाल काही नीला रंग, उस वार्निश छुड़ाने वाले तेल से तो छूटता नहीं, लेकिन संध्या भाभी की कृपा की वार्निश अब करीब करीब साफ़ हो गयी थी, और मुझसे तो वो कभी छूटती नहीं।

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शावर में मस्ती



" छोटी साली के हाथ का रंग है थोड़ा तो दो चार दिन रहना चाहिए "

और वैसे भी लाल काही नीला रंग, उस वार्निश छुड़ाने वाले तेल से तो छूटता नहीं, लेकिन संध्या भाभी की कृपा की वार्निश अब करीब करीब साफ़ हो गयी थी, और मुझसे तो वो कभी छूटती नहीं।


और अब बाकी रंगों का नंबर था


तो भौजी ने खींच के मुझे अपने साथ शावर में खड़ा कर दिया। पहले साबुन, फिर तेल मिला बेसन और फिर साबुन,

शावर में हम दोनों चिपके, देह पर घूमती, नाचती पागल करती भौजी की रसीली उँगलियाँ, साबुन लगाते कभी चिकोटी काट लेतीं तो कभी गुदगुदा देतीं और कभी कस के अपनी ओर खींच लेती। जिसने जिसने भौजाई की मीठी चिकोटियां और गुदगुदी का मजा लिया होगा उसे मालूम होगा की कामदेव के बाण भी उसके आगे फेल, और जब ये सब हो तो बेचारे मूसल चंद बौरायँगे ही, और वो अपनी प्यारी सहेली को सूंघ कर उसके दरवाजे पर जोर जोर से ठोकर मारने लगे,



और अब शावर में मजा लेना मैं भी सीख रहा था,

ऊपर से भौजाई ने मेरे हाथ में साबुन पकड़ा दिया, उनकी देह में लगाने को। बस।




साबुन के झाग के साथ मेरी उंगलिया, संध्या भाभी की कभी पतली कटीली कमरिया पे तो कभी केले के पत्ते को भी शर्माने वाली चिकनी चिकनी गोरी गोरी पीठ पर, पर असली चीज जो मुझे पागल किये थी जैसे मैंने उन्हें देखा था वो थे उनके मोटे मोटे नितम्ब और एक हाथ साबुन के साथ सीधे वहीँ, दोनों नितम्बों को पकड़ के मैं उन्हें अपनी ओर खींचने लगा,

तो वो तो और खेली खायी थीं, साल भर से रोज बिना नागा जिस खायीं में कुदाल चल रही थी और जो दस दिन से उपवास पे थी, उसकी भूख तो उन्हें भी बेबस किये थी। बस उन्होंने भी अपने दोनों हाथों से पकड़ के मुझे अपनी ओर खींच लिया।

और शावर में ही खुल के ग्राइंडिंग होने लगी, रगड़ घिस, रगड़ घिस,

लेकिन संध्या भौजी असली उस्ताद थीं, उन्होंने खुद अपनी दोनों जाँघे फैला दी और मेरा खड़ा खिलाडी, सूंघते ढूंढते उन जाँघों के बीच, जैसे कोई मोटा भूखा चूहा, रोटी के लालच में सूंघते सूंघते अंदर घुसे और चूहेदानी का दरवाजा, खट्ट बंद हो जाए, बस एकदम उसी तरह मूषक राज भौजी की दोनों जाँघों के बीच पकडे गए, दबोचे गए और संध्या भाभी की कदली की तरह की जाँघों ने उसे कस कस के रगड़ना मसलना शुरू कर दिया।


इतना मजा तो कभी सपने में भी मुट्ठ मारने में नहीं आ सकता था। और भौजी का दुहरा हमला था, साथ में उनकी मोटी मोटी चूँचिया मेरे सीने पे रगड़ रही थीं और उनके हाथ मेरे नितम्बो को कभी दबोचते कभी उनकी लम्बी ऊँगली नितम्बो के बीच की दरार को कुरेद देती।

उंचासो पवन काम के चल रहे थे, मैंने अपने को भौजी के हवाले कर दिया था।

अब मैं सिर्फ देह था।

भौजी की जांघो के बीच रगड़ रगड़ कर मेरे मोटे मूसल की हालत खराब हो गयी थी,

और अब कमान पूरी तरह संध्या भौजी ने अपने हाथ में ले ली थी जैसे कल रात चंदा भाभी ने ले लिया था।

लेकिन चार पांच मिनट की रगड़ घिस के बाद भौजी मेरे हाथों की बेचैनी समझ गयी


और अब उनकी पीठ मेरे सीने की ओर थी और गप्पाक से मेरे दोनों हाथों ने भौजाई के जोबन को गपुच लिया, होली में सब देवर भौजाई का जोबन देख देख के ही खुस हो जाते हैं, रंग में भीगी देह से चिपकी साड़ी और गीली चोली के बीच से झांकता, ललचाता जोबन ही होली को सफल बना देता है और कोई लकी देवर और उदार भौजी हुईं तो बस चोली के ऊपर हिस्सों से रंग लगाने के बहाने, छुआ छुअल,


लेकिन यहाँ तो दोनों जोबना मेरी जमींदारी हो गए थे। कस कस के मैं मसल रहा था, मूसल राज अब गोरे गोरे मांसल नितम्बो के बीच कुण्डी खड़का रहे थे, एक बार फिर जाँघों का दरवाजा खुला, मूसल राज भौजी की दोनों मखमली जांघो के बीच गिरफ्तार, कैद बमश्क्क्त,जैसे जेल में कैदी चक्की चलाते हैं यहाँ वो खुद जाँघों की चक्की के बीच पीसे जा रहे थे


लेकिन मैंने भी रात में चंदा भाभी की पाठशाला में न सिर्फ पढ़ाई की थी बल्कि अच्छे नंबरों से पास भी हुआ था।



एक हाथ जोबन के गर्व को मसल के चूर कर रहा था और दूसरा दक्षिण दिशा में योनि के किले पर चढ़ाई करने, ....थोड़ी देर हथेली से मैंने सहलाया, फिर एक ऊँगली अंदर बाहर और अंगूठा क्लिट पे।

भौजी जबरदस्त गरमाई थीं, जिस तरह से उनकी जादुई अंगूठी, क्लिट कड़ी कड़ी हो गयी थी, एकदम साफ़ लग रहा था और जॉबन और भौजी की गुलाबो दोनों के रगड़ने मसलने का नतीजा जल्द सामने आया,

वो सिसकने लगीं, उनकी बिल शहद फेंजने लगी, एकदम गाढ़ा गाढ़ा, मीठा मीठा, ऊँगली में लगा के मैंने भौजी को चटा दिया और भौजी ने अपने होंठों से मुझे।


और भौजी समझ गयी असली खेला का टाइम आ गया,



वो शावर से बाहर निकली, मैंने शावर धीमे किया और संध्या भौजी ने निचे छुपी एक पतली शीशी निकाल ली। जब वो वार्निश निवारक तेल लायी थीं तभी और उसकी झार से ही मैंने पहचान लिया था, कोल्हु का शुद्ध देसी सरसों का तेल।

संध्या भौजी ने अपनी खूब गहरी गदोरी में कम से कम १००- १५० ग्राम कडुवा तेल , और उनकी गहरी हथेली देख के मुझे कल रात की चंदा भाभी की एक बात याद आ गयी।

चुदाई की पढ़ाई के साथ औरतों को समझने और पटाने के भी उन्होंने १०१ नुख्से बताये थे एकदम कच्ची कलियों से चार चार बच्चों की माँ तक के लिए,


और उसी में उन्होंने बताया था की जिस औरत की हथेली जितनी गहरी होती है उसकी बुर भी उतनी ही गहरी होती है और उतनी ही जबरदस्त चुदवासी, छोटे मोटे लंड से उसका मन नहीं बुझता और उस कहीं तेरे ऐसा मुस्टंडा वाला डंडा मिल जाए तो खुद पकड़ के घोंट लेगी और उसे कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए।


एक बार उसका मन भर गया तो कुछ भी करेगी और उसके आशीर्वाद का भी बड़ा असर होगा, जो किसी से न पटे, वो लौंडिया खुद ही टांग फैला देगी , अगर गहरी हथेली वाली को हचक के पेल दो तो। और हचक के पेलवाने के साथ उस औरत को गारी देने में, रगड़ने और रगड़वाने में भी बहुत मजा आता है।



संध्या भाभी की हथेली एकदम वैसे ही थी, ...खूब गहरी,

लेकिन मुझसे नहीं रहा गया और मैंने चंदा भाभी से पूछ ही लिया,

" भाभी और लड़को के भी साइज पता करने का कोई तरीका हैं क्या "
और वो बहुत जोर से हंसी, हंसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। किसी तरह से बोलीं,


" अबे स्साले, तुझे तो देख के ही मैं समझ गयी थी। और फिर उनकी हंसी चालू और अब जब रुकी तो चंदा भाभी बोलीं की मुझे लगा की,....मैंने गुड्डी की मम्मी से बोला तो वो हँसते हुए बोलीं की तुम सोचती हो मुझे अंदाज नहीं था और उन्होंने तो साइज भी, मैं जानती थी बड़ा होगा लेकिन गुड्डी की मम्मी हम सबसे आगे हैं इन सब मामलों में। वो बोलीं की जब तुम भैया के बियाह में बिन्नो की शादी में आये थे तो तुम्हे छेड़ रही थीं, तभी अंदाज लगा लिया था उसी समय, ऊँगली देख के, "





लेकिन ऊँगली से, कैसे, उस समय तो मैं वैसे भी, " मेरे अचरज का ठिकाना नहीं था, जितनी बातें चंदा भाभी से सीख रहा था।



उनकी हंसी फिर चालू हो गयी, फिर किसी तरह हंसी रोक के बोलीं,

" ये सब औरतों की बातें, सब कुछ एक दिन में ही सीख लेगो क्या, लेकिन चलो बता देती हूँ , तर्जनी की लम्बाई और जिस ऊँगली में अंगूठी पहनते हैं बस उसी से, तर्जनी अंगूठी वाली ऊँगली से जितनी छोटी हो मरद का मूसल उतना ही बड़ा होता है और फिर औरत की निगाह, गुड्डी की मम्मी ने तो साइज का भी अंदाज ही लगा लिया था लेकिन पहली बार वो गलत थी, कल बताउंगी मैं उन्हें। "

" मतलब " मेरी अभी भी कुछ समझ में नहीं आया,

" अरे गुड्डी की मम्मी ने बोला था कम से कम सात साढ़े सात इंच का, ज्यादा भी हो सकता है... लेकिन हँसते हुए वो ये भी बोलीं की तुम लजाते बहुत हो, गौने की दुल्हिन झूठ, और अब मैं कल बताउंगी उनको की पहली बार उनका अंदाज गलत है , पूरे बित्ते भर का है, एक दो सूत ज्यादा ही होगा। " चंदा भाभी हँसते बोली।




लेकिन संध्या भाभी की हरकत से मैं फ्लैश बैक से वापस आ गया
 
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घुस गया, धंस गया - संध्या भाभी








" अरे गुड्डी की मम्मी ने बोला था कम से कम सात साढ़े सात इंच का, ज्यादा भी हो सकता है लेकिन हँसते हुए वो ये भी बोलीं की तुम लजाते बहुत हो, गौने की दुल्हिन झूठ, और अब मैं कल बताउंगी उनको की पहली बार उनका अंदाज गलत है , पूरे बित्ते भर का है, एक दो सूत ज्यादा ही होगा। " चंदा भाभी हँसते बोली।



लेकिन संध्या भाभी की हरकत से मैं फ्लैश बैक से वापस आ गया,

कम से कम १०० ग्राम कडुवा तेल और अपनी दोनों हथेलियों में लगा के सीधे मेरे खूंटे के बेस से लेकर एकदम ऊपर तक चार पांच बार, तेल न सिर्फ लगाया बल्कि एकदम सुखा दिया।

मुझे लगा की सब तेल वो मोटे सुपाड़े में लगाएंगी , आखिर घुसेगा तो वही पर उन्होंने सारा हथेली का तेल बाकी चर्मदण्ड पे, और फिर उन्होंने सुपाड़े को पकड़ के सीधे बोतल से बूँद बूँद कर के, जितना उनकी दोनों हथेली पे आया था उतना सिर्फ वहीँ टपका दिया और फिर मारे बदमाशी के मेरी आँखों में शरारत से देखते हुए, चिढ़ाते छेड़ते मेरे मांसल सुपाड़े को कस के बाएं हाथ से दबा दिया और उस बेचारे की एकलौती आँख खुल गयी बस वहीँ बूँद बूँद देसी कडुआ तेल, अंदर तक टपका टपका के,


जैसे ही तेल अंदर गया, पहले सुरसुराहट फिर जोर से छरछराने लगा और भौजी खिलखिलाने लगी,

फिर सुपाड़े पे लगा तेल फैला के और सीधे बोतल से और तेल, एकदम चुपड़ के, तेल में भीगा नहीं डूबा रही थी और भौजाइयों के साथ कल से मैंने सीखा मजा तो मिलता है, ज्ञान भी और वो खास तौर से गुड्डी के बारे में, गुड्डी उनकी भी तो छोटी बहन की ही तरह से,


" समझ लो, आज रात को तो तुम मेरी छोटी बहन की लोगे जरूर, लेकिन इसी तरह से पहले कडुवा तेल,... और वो तो एकदम कोरी है, तेरा तो इतना लम्बा मोटा है, जिसका छोटी ऊँगली टाइप केंचुआ स्टाइल का होता है, कुँवारी कोरी में उसका भी बिना तेल या चिकनाई लगाया इन्ही घुसता। वैसे मुझे तो सबसे अच्छा कडुवा तेल ही लगता है, कट पिटजाए अंदर छिल जाए तो उसका भी इलाज,


लेकिन बहुत लोग नहीं इस्तेमाल करते की दाग पड़ जाएगा, तो वेस्लीन,। लेकिन अगर इस मोटे मूसल के साथ वैसलीन भी लगाना हैं न तो कम से कम आधी शीशी खर्च करना और फिर अपनी ऊँगली में लगा के वैसलीन एक ऊँगली दो पोर तक अंदर उसके बाद ही,

वैसे एक बात और अगर कभी कंडोम लगाने की जरूरत पड़े तो तेल या वैसलीन नहीं उसकी जेली अलग आती है, जेल होते है लेकिन कंडोम तो तुम कभी इस्तेमाल करना मत। अरे इतना मस्त मुसल, जब तक चमड़े की चमड़े से रगड़ाई न हो, क्या मजा और जिस लड़की को बचाना होगा वो खुद,... इतनी तो गोली आयी है, बल्कि इस्तेमाल के बाद वाली भी, चुदने के २४ घंटे के अंदर खा लो तो पेट फूलने का कोई खतरा नहीं, और अभी तो किसी दर्जा आठ वाली का भी स्कूल का बस्ता खोल के देखोगे तो सबसे ऊपर गोली रखी मिलेगी। "



भौजी तेल पानी करके मुझे तैयार कर रही थीं, लेकिन मुझे गूंजा याद आ रही थी,





मन उसका भी कर रहा था, मेरा भी बहुत, चूस के तो मैंने उसे मस्त झाड़ दिया था लेकिन पेलने की बात और होती है। पर बिना तेल या चिकनाई के मैं समझ गया था एकदम पॉसिबिल नहीं था और वहां कोई जुगाड़ था नहीं।



भौजी ने अपनी हथेली का तेल फिर अपनी फांको पे लगाया और एक हाथ से दोनों फांके फैला के सीधे शीशी उसमें घुसेड़ के उलट ली। तेल अंदर।


मैं सोच रहा था करेंगे कैसे,


लेकिन भौजी के रहते देवर को क्या परेशानी,

वो खुद एक पाईप पकड़ के निहुर गयीं और कल चंदा भाभी को मैंने कुतिया बना के एक राउंड अच्छी तरह से चोदा था तो कोई पहली बार तो था नहीं।


मैंने हलके से संध्या भौजी के मोटे मस्त चूतड़ को हलके हलके सहलाया और वो सिहर गयीं एकदम गरमा गयीं थी वो।

चारो उँगलियों से मैंने उनके निहुरे, दोनों पैरों के बीच, फांको को सहलाया, और मेरी उंगलियां भी तेल से चुपड़ गयीं, बस थोड़ी देर तेल से लगी उँगलियाँ उनकी तेल में डूबी बुरिया पे मैं रगड़ता रहा।

संध्या भौजी सिसिया रही थीं, कातिक की कुतिया की तरह गरमा रही थीं। अपनी फैली जाँघे उन्होंने और फैला ली और अब दोनों पावरोटी की तरह फूली फांके साफ़ साफ़ दिख रही थीं।


" हे करो न "

मुंह मेरी ओर कर के वो बोलीं और जैसे उन्हें लगा मैं नौसिखिया शायद छेद न ढूंढ पा रहा हूँ तो हाथ से खुद पकड़ के अपने छेद पे, सटा दिया,

नौसिखिया तो मैं था, जिंदगी में दूसरी बार, लेकिन थ्योरी में तो बहुत पढ़ा लिखा और १०० में १०० मिलते, और कल चंदा भाभी ने रात भर में प्रैक्टिकल का भी कोर्स पूरा करा दिया लकिन ये भी सिखा दिया की थोड़ा तड़पाना, और मैंने मोटे तगड़े खूंटे को भौजी की फांको पे पहले थोड़ी देर रगड़ा, वो एकदम एक तार की चाशनी से भीगा, मुझे कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ी, भौजी ने खुद ही अपनी फांको को फैला के मोटा सुपाड़ा फंसा लिया, और तेल से तो एकदम चिकना हो गया था, तो बस ,

एक धक्का पूरी ताकत से, और

गप्पाक


गप्प से भौजी की भूखी बुलबुल ने सुपाड़ा घोंट लिया, पूरा नहीं लेकिन आधा से ज्यादा ही।

जैसे मछली को तैरना नहीं सिखाना नहीं पड़ता, लड़कियों को चुदवाना नहीं सिखाना पड़ता वैसे ही लड़को को भी चोदना भी, तो मैंने भी संध्या भौजी की पतली कटीली कमरिया कस के पकड़ के ठेलना, पेलना शुरू कर दिया। एकदम सट के रगड़ता दरेरता बड़ी मुश्किल से घुस रहा था।

मान गया मैं भौजी को, काम से कम एक पाव ( २५० ग्राम ) कडुवा तेल उन्होंने लगाया था तब जा के, ....इतना अच्छा लग रहा था की,

मारे जोश के कस के मैंने संध्या भौजी की कमर पकड़ी और हचक के जितनी ताकत देह में थी सब लगा के पेल दिया और अबकी पूरा सुपाड़ा अंदर था, और भौजी मारे मस्ती के सिहर उठीं।



" उयी ईई ओह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ , हाँ हाँ ऐसे ही, ओह्ह्ह उफ्फ्फ उईईईईई " भौजी सिसक रही थीं, कस के पाइप को पकडे घोंट रही थीं।

कुछ देर तक मैं भौजी की कमर पकड़ के ऐसे ही पेलता रहा, धकेलता रहा और थोड़ी देर में आधा चर्मदण्ड अंदर, और फिर मैंने पल भर के लिए साँस ली, और जिस तरह से भौजी ने मुड़ के मुझे देखा मैं निहाल हो गया।

मुझे देखते हुए मस्ती से वो अपने भरे भरे लाल गुलाबी रसीले होंठ दांतों से काट रही थीं, आँखे आधी मुंदी हुयी और सिसक रही थीं। और मेरी ओर देख के हलके से मुस्करा दीं, ऐसी मुस्कराहट जिसमें दर्द भी हो, ख़ुशी भी हो और मस्ती भी हो।

जैसे बरसों के सूखे के बाद खेत में सावन जम कर बरस रहा हो और खेत निहाल हो गया, अंचरा फैला के एक एक बूँद बटोर रहा हो ,



भौजी के चूतड़ के साथ उनकी चूँचिया भी जबरदंग थीं आज ३० नंबर ( गुंजा ) से लेकर ३६ +++ ( दूबे भाभी ) तक का रस मिला लेकिन जो बात उस ३४ नंबर में थी, और अब मेरा एक हाथ संध्या भाभी की कमर पे था और दूसरा उनकी झुके हुए जोबन पे, और कस के मैंने निचोड़ दिया।

" उयी, उईईई नहीं ओह्ह्ह " कस के वो चीख उठीं लेकिन मरदों के लिए तो यही चीखें संगीत का काम करती हैं और ऐसी मस्त चूँची हाथ में आने के बाद कौन छोड़ता है। दबाया तो मैंने उनकी चूँची होली खेलते समय भी खूब था लेकिन अभी अलग मजा आ रहा, लंड आधा अंदर टाइट कसी कसी बुर में घुसा और साथ में जोबन का मर्दन, और मैंने दुबारा दबाते हुए और अंदर पेलना शुरू किया।



संध्या भौजी हर धक्के के साथ चीख रही थीं, सिसक रही थीं लेकिन साथ में चूतड़ भी कस के हिला रही थीं जैसे कोई सर हिला हिला के कह रहा हो और, और ,



और मैं कौन रुकने वाला था,... सुबह से कितनी बार कौर मुंह में जाते जाते बचा था और जब जा रहा था तो मैं पूरे स्वाद से मजे ले ले के खाने वाला था और मैंने धक्के मारने रोक दिए।

छह इंच से ज्यादा घुस गया था लेकिन अभी भी करीब एक तिहाई बाहर था, और ये नहीं की मैंने मजे लेना बंद कर दिया, अब मेरे दोनों हाथ भौजाई की रसीली चूँचियों को दबा रहे थे, निचोड़ रहे थे, कभी मैं निप्स को पिंच कर देता तो कभी हलके से नाख़ून गड़ा देता,

और संध्या भौजी कभी चीखतीं, कभी सिसकतीं, कभी प्यासी निगाहों से मुड़ मुड़ के मेरी ओर देखती लेकिन मैं जान बुझ के उन्हें तड़पा रहा था और कभी कभी उनकी पीठ सहला रहा था।


बस एक बार हलके से मैंने संध्या भाभी की कमर सहलाते हुए हलके से उन्हें पकड़ के अपनी ओर जरा सा खींचा और वो इशारा समझ गयीं।

एक बार फिर उन्होंने मेरी ओर मुस्करा के देखा और अब जब मैंने उन्हें हलके से उन्हें अपने औजार के ऊपर खींचा, तो मुझसे दुगने जोर से उन्होंने पीछे की ओर धक्का दिया बस दो चार धक्के देवर भाभी के बाद आलमोस्ट पूरा अंदर था।

लेकिन अब मेरा मन भी जोर जोर से कर रहा था और मैंने एक बार फिर से कमान अपने हाथ में ले ली, आलमोस्ट पूरा बाहर निकल के बस जितनी ताकत थी, उससे भी ज्यादा जोश से, दो चार धक्के, और चौथे धक्के में मेरा हथोड़ा छाप मोटा सुपाड़ा सीधे संध्या भौजी की बच्चेदानी में पूरी ताकत से, और


संध्या भाभी काँप गयी।


उनकी पूरी देह सिहर रही थी, बुर दुबडुबा रही थी, सिसक रही थीं और मैं समझ गया की अब वो बस झड़ने के कगार पे हैं और मैं रुक गया, बस हलके हलके कभी उनकी पीठ सहला रहा था, कभी झुक के चूम रहा था और संध्या भाभी शिकायत से बोलीं , बहुत हलके
 
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" करो न "



एक बार फिर उन्होंने मेरी ओर मुस्करा के देखा और अब जब मैंने उन्हें हलके से उन्हें अपने औजार के ऊपर खींचा, तो मुझसे दुगने जोर से उन्होंने पीछे की ओर धक्का दिया बस दो चार धक्के देवर भाभी के बाद आलमोस्ट पूरा अंदर था।

लेकिन अब मेरा मन भी जोर जोर से कर रहा था और मैंने एक बार फिर से कमान अपने हाथ में ले ली, आलमोस्ट पूरा बाहर निकल के बस जितनी ताकत थी, उससे भी ज्यादा जोश से, दो चार धक्के, और चौथे धक्के में मेरा हथोड़ा छाप मोटा सुपाड़ा सीधे संध्या भौजी की बच्चेदानी में पूरी ताकत से, और,....


संध्या भाभी काँप गयी। उनकी पूरी देह सिहर रही थी, बुर दुबडुबा रही थी, सिसक रही थीं और मैं समझ गया की अब वो बस झड़ने के कगार पे हैं और मैं रुक गया, बस हलके हलके कभी उनकी पीठ सहला रहा था, कभी झुक के चूम रहा था और संध्या भाभी शिकायत से बोलीं , बहुत हलके से

" करो न "


" क्या करूँ " मैंने भी उसी तरह से उन्हें चिढ़ाते हुए बोला,

वो अभी भी सिसक रही थीं, देह उनकी काँप रही थी बहुत हलके से बोलीं

" जो अभी तक कर रहे थे " लेकिन समझ गयीं मेरी बदमाशी और अपनी असलियत पे आ गयीं, असली बनारस वाली भौजाई,


" स्साले, मादरचोद , जो अपनी महतारी के साथ करते हो, उनके भोंसडे में, पेल कस कस के, ....वरना तेरी महतारी पे बनारस के सांड चढ़ाउंगी "

गुड्डी की मम्मी के बाद पहली बार किसी ने महतारी को लेकर कुछ कहा था वरना सब गालियां आग तक मेरी ममेरी बहन गुड्डी को लेकर मुझसे लेकर गदहे और रॉकी, दूबे भाभी के बुलडाग को जोड़ के सुनाई जाती थीं और उस गाली का असर हुआ,

कस कस के मैं संध्या भाभी के दोनों जोबन को पकड़ के निचोड़ने लगा और एक बार फिर से आधा लंड बाहर निकल के जो धक्का मारा, संध्या भाभी हिल गयीं, लेकिन उन्हें मजा भी जबरदस्त आया। अपनी जाँघे भी उन्होंने थोड़ी सिकोड़ ली और उसी तरह गरियाती बोलीं

" देखो बुरा मत मानना, तोहार गुड्डी के क्लास वाली बहिनिया तो अभी तक कुँवार है उसकी झिल्ली भी नहीं फटी है और वो मेरी गुड्डी अपने सामने तुझी से फड़वा के बनारस ले आएगी, तो आखिर इतना हचक हचक के चोदना कैसे सीखे हो? अपनी महतारी क भोंसड़ा मार मार के न,... वैसे मैं उनसे मिल भी चुकी हूँ, जब वो साल डेढ़ साल पहले सावन में आयी थीं, मेरी शादी के पहले, क्या मस्त चूतड़ हैं बड़े बड़े, "




बस मैं और जोश में आ गया, मेरी आँखों के सामने,....और फिर तो

क्या हचक हचक के पेलना शुरू किया, जिस तरह से उन्होंने बोला था एकदम से जोश, दोनों हाथ मेरे कस कस के भौजी के रसीले जोबन का रस निकाल रहे थे और धक्के पूरी स्पीड से चल रहे थे लेकिन संध्या भौजी और जोर से, कभी चीख रही थीं कभी गरिया रही थीं, एकदम गरमा गयीं थीं




" स्साले, मादरचोद, तेरी माँ का भोंसड़ा नहीं है जो इस तरह से पेल रहा है, तेरी माँ के भोंसडे में तो बनारस के सांड भी चढ़ जाए तो पता न चले उस भोंसड़ी वाली को, अरे जरा आराम से, ओह्ह्ह उफ्फ्फ लग रहा है यार, अरे एक मिनट रुके, ओह्ह्ह्ह रुक, रुक स्साले, तेरी माँ की, "


पता नहीं भौजी की बातों का असर था या उनकी चीखों का मैं एकदम से, कभी कस के अपने नाख़ून भौजी की चूँची में गड़ा देता, कभी झुक के निहुरि हुयी भौजी की कंधे पे, पीठ पे चूमते हुए कस के काट लेता, कभी उनका बाल पकड़ के खींच देता, मैं एकदम से आखिरी गियर में पहुँच गया था


भौजी ने पीछे मुड़ के शिकायत की निगाह से मेरी ओर देखा, उनकी आँखों में दर्द और शिकायत के साथ एक गजब की मस्ती भी

और अब मुझसे नहीं रहा गया, बस मेरे होंठ और संध्या भौजी के रसीले होंठ, लेकिन अबकी मामला चुम्मा चाटी पे नहीं छूटा .


मैं कचकचा के भौजी के होंठ अपने होंठो के बीच दबा के चूस रहा था, कस कस के काट रहा था, लंड एकदम जड़ तक घुसा था और मैं उसके बेस से भाभी की क्लिट रगड़ रहा था। भौजी ने कुछ देर के बाद जैसे मेरे होंठों ने उन के होंठों को छोड़ा, उलटे मेरे होंठों को पकड़ लिया अपने होंठों में,.... और जो मैंने काटा था वो तो कुछ नहीं इतनी जोर से वो काट रही थीं, जैसे मेरे होंठ न हो उनकी बुर में घुसा धंसा मेरा लंड हो।

क्या गर्मी क्या मस्ती थी।


बस, होंठों का जैसे खेल ख़त्म हुआ मैंने भाला आलमोस्ट बाहर निकाला, पल भर के लिए भौजी की सहली को आराम मिला लेकिन उसे क्या मालूम था की जैसे भौजी मेरी महतारी गरिया रहीं थीं वैसे ही अब उनकी गुलाबो की मैं माँ चोद देने वाला था।

एक बार फिर से मैंने दोनों हाथ से भौजी की कमर पकड़ी, ३४ के जोबन और ३६ के चूतड़ पे संध्या भाभी की २६ की कमर एकदम ही कटीली लगती थी। और क्या तूफानी धक्का मारा, बस दो चार धक्के में जब मेरे मोटे सुपाड़ी का हथोड़ा पूरी तेजी से संध्या भौजी की बच्चेदानी पे पड़ा, उन्हें दिन में तारे नजर आ गए, वो चीख पड़ी

" ओह्ह नहीं , रुक, रुक जा, ओह्ह निकाल ले, उफ्फ्फ नहीं नहीं, लगता है , उईईईईई उईईईईई "




दर्द से उनके देह सिहर रही थी लेकिन अभी तो दर्द की शुरआत थी, झुक के मैंने कचकचा के भौजी की चूँची काट ली और दांत गड़ाए रहा



भौजी सिसक रही थीं,

कुछ देर तक काटने के बाद जब दांत हटाए, तो फिर वहीँ चूसने लगा और फिर दुबारा,


होली का रंग तो भौजी छुड़ा लेंगी लेकिन ये निशान जल्दी नहीं जाने लायक और भौजी गरियाने लगीं



" अरे बहनचोद, ये क्या किया, ननद मेरी चिढ़ाएगी, बोलेगी, ....भैया नहीं थे तो किससे मायके में कटवाय के आयी हो "
 
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बेटी,... महतारी दोनों



" ओह्ह नहीं , रुक, रुक जा, ओह्ह निकाल ले, उफ्फ्फ नहीं नहीं, लगता है , उईईईईई उईईईईई "

दर्द से उनके देह सिहर रही थी लेकिन अभी तो दर्द की शुरआत थी, झुक के मैंने कचकचा के भौजी की चूँची काट ली और दांत गड़ाए रहा

भौजी सिसक रही थीं,

कुछ देर तक काटने के बाद जब दांत हटाए, तो फिर वहीँ चूसने लगा और फिर दुबारा, होली का रंग तो भौजी छुड़ा लेंगी लेकिन ये निशान जल्दी नहीं जाने लायक और भौजी गरियाने लगीं

" अरे बहनचोद, ये क्या किया, ननद मेरी चिढ़ाएगी, बोलेगी, भैया नहीं थे तो किससे मायके में कटवाय के आयी हो ?"

खूंटा एकदम जड़ तक धंसाए, मैंने भौजी को छेड़ा,


" अरे तो क्या हुआ बोल दीजियेगा, मेरे नन्दोई मिल गए थे, अब नन्दोई को कोई ना थोड़े करता है और बहुत गर्माएंगी, तो मै होली के बाद आऊंगा तो मिलवा दीजियेगा, उनको भी मोटे मूसल का मजा दे दूंगा,"

भौजी खुश नहीं महा खुश, लेकिन बोलीं,

अरे उनकी तो उमर, फिर कुछ सोच के बोलीं,

"लेकिन उसकी बेटी एकदम गरम माल है, गुड्डी की सबसे छोटी बहन, छुटकी की उमर की है, उसी के क्लास में पढ़ती है मस्त चोदने लायक, "


मेरी आँखों के सामने छुटकी तस्वीर जो सुबह वीडियो काल में देखी थी वो घूम गयी





और मारे जोश के मैंने मोटा मसल आधे से ज्यादा निकाला और हचक के चोदते हुए भौजी से बोला,

" अरे भौजी, तोहार हुकुम हो तो बेटी महतारी दोनों को एक साथ चोद दूंगा "


और अबकी नान स्टाप चुदाई, जैसे धुनिया रुई धुनता है बस थोड़ी देर में भौजी झड़ने के कगार पे पहुँच गयी लेकिन अबकी मैं रुका नहीं और रफ़्तार बढ़ी दी,

" ओह्ह उन्हह उफ़ उफ़ " भौजी की साँसे लम्बी होती गयीं, बिल दुबदुबा रही थी, और झड़ते समय उनकी प्यारी हसीना अपने बुर को कस कस के निचोड़ रही थी, झड़ते समय संध्या भौजी की हालत खराब थी। लग रहा था पूरी देह का रस किसी ने निचोड़ लिया है, सब ताकत ख़तम हो गयी है, देह एकदम ढीली पड़ती जा रही थी, आँखे बंद हो रही थी, हलकी हलकी सिसकियाँ और फिर एकदम से, उनकी देह स्थिर,....



लेकिन मैं इतनी जल्दी मैदान नहीं छोड़ने वाला था,
हाँ मैंने स्पीड कम कर दी, फिर रुक गया।



चार मिनट तक भौजी एकदम कांपती रही, फिर मुड़ के जो मेरी ओर से प्यार से देखा फिर लजा गयीं, और मैंने कस के उन्हें पकड़ के गालों से लेकर नितम्बों तक चूम लिया।




खूंटा मेरा अभी भी जड़ तक धंसा था और भौजी की बिलिया अच्छी तरह फैली कस के उसे प्यार से दबोची थी।

भौजी अभी जस्ट झड़ी थीं, इसलिए मैं धक्के नहीं लगा रहा था लेकिन मेरे होंठ, उँगलियाँ भौजी को फिर से गरमा रहे थे।


कभी उँगलियाँ उनकी रेशमी जाँघों को सहलातीं और चूतड़ पे चिकोटी काट लेतीं, तो कभी मेरे होंठ उड़ते भौंरे की तरह उनके गालों पे बैठ के रस चूस लेता तो कभी मेरी जीभ, कंधे से लेकर नितम्बो तक उनकी रीढ़ की हड्डी के ऊपर से, गहरी चिकनी पीठ पर एक गीली सी लाइन खींच देती। हाथ भी अब एक बस खुल के, कस के जुबना का रस ले रहे थे और भौजी गरमाने लगीं, हीटर की मोटी रॉड तो अंदर तक बालिश भर धंसी ही थी।

संध्या भाभी ने निहुरे निहुरे एक बार मुड़ के मेरी ओर फिर से देखा, आँखों में प्यास, उनकी मांग में भरभराता खूब गहरा सिन्दूर, माथे पर बड़ी सी बिंदी, गले में लटकता मंगल सूत्र, सुहागिन के निशान देख के एक बार मैं एकदम जोश में भर गया और कस के उस सिन्दूर को पहले चूमा, फिर बिंदी को फिर होंठों पे कस के चुम्मा लेके हलके हलके, मोटा सांप बिल से सरकते हुए धीरे धीरे, हाँ चूँची कस कस के रगड़ी जा रही थी,


लेकिन मैंने आलमोस्ट सुपाड़ा बाहर तक निकाल के रोक दिया, और भौजी की हालत ख़राब



लेकिन बेचारा मेरा मोटू भी तो कितनी बार ताल पोखरी के पास सुबह से जा के बिना डुबकी लगाए, रीत, संध्या भौजी और सबसे बढ़कर वो कोरी गुंजा, सिर्फ जरा सा सरसों के तेल न होने से बिन चुदे रह गयी, वो बेचारी तो मुझसे भी ज्यादा गर्मायी थी,

" हे डालो न " शिकायत के स्वर में भौजी की हलकी सी आवाज आयी।

" क्या डालूं, भौजी, " मैंने भी उनके कान के लोब्स को हलके से काटते पूछा।



लेकिन मैं भूल गया था की संध्या भौजी असली बनारस वाली हैं, पलट के उन्होने जवाब दिया,


" स्साले मादरचोद, जो अपनी महतारी के भोंसड़ा में डालते हो, वही, ....की उनसे भी पूछते हो, भोंसडे में डालूं की गांड में, पेल साले तेरी महतारी के भोंसडे में, " और फिर जो गालियों की गंगा बही,




भौजी को मालूम था मेरा एक्सिलरेटर कब और कैसे दबाना चाहिए, और बस उनकी महतारी की गारी का जवाब मैंने हचक के पेल के दिया और बोला,

" भौजी, आज तोहार बुर क भोंसड़ा न बना दिया तो कहना, और लौट के आऊंगा तो तोहरी ननद और ओकर बिटिया जो आप कह रही थीं गुड्डी की छुटकी बहिनिया के बराबर है उसका भी, लीजिये सम्हालिए " मैंने कस के धक्का मारते हुए बोला,

" ओह्ह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ उईईई उईईई नहीं, ओह्ह आह्ह्ह्हह रुक स्साले, एक मिनट, ओह फट जायेगी, इतना जोर से नहीं "


भौजी चीख रही थीं, सुबक रही थी और इतनी जोर जोर से की बगल के बाथरूम में रीत, चंदा भाभी और दूबे भाभी तो सुन ही रहीं थीं , संध्या भौजी की ये चीखें पक्का ऊपर गुड्डी को भी सुनाई पड़ रही होंगी।




लेकिन आवाजें बगल के बाथरूम से भी आ रही थीं, रीत की चंदा भाभी और दूबे भाभी की और वो भी ऐसे ही तेज तेज



जब मैं संध्या भाभी को रगड़ रगड़ के चोद रहा था वो जोर जोर से चीख रही थीं, महतारी को गरिया रही थीं बगल वाले बाथरूम से रीत की भी आवाज आ रही थी,
 
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सिसकियाँ और चीखें






भौजी चीख रही थीं, सुबक रही थी और इतनी जोर जोर से की बगल के बाथरूम में रीत, चंदा भाभी और दूबे भाभी तो सुन ही रहीं थीं ,

संध्या भौजी की ये चीखें पक्का ऊपर गुड्डी को भी सुनाई पड़ रही होंगी।

लेकिन आवाजें बगल के बाथरूम से भी आ रही थीं, रीत की चंदा भाभी और दूबे भाभी की और वो भी ऐसे ही तेज तेज,

जब मैं संध्या भाभी को रगड़ रगड़ के चोद रहा था वो जोर जोर से चीख रही थीं, महतारी को गरिया रही थीं बगल वाले बाथरूम से रीत की भी आवाज आ रही थी,

" चंदा भाभी प्लीज, चूसो न, झाड़ दो न, सुबह से बार बार, मेरी अच्छी भौजी, मेरी प्यारी भौजी, तोहार हाथ जोड़ रही हूँ, गोड़ पड़ रही हूँ "

और चंदा भाभी की ओर से दूबे भाभी की आवाज आयी, " अरे झाड़ तो ये देगी मेरी देवरान, लेकिन तुझको भी इसकी चूस चूस के झाड़नी पड़ेगी, "

" एकदम भौजी, मंजूर सब मंजूर " सिसकते हुए रीत की आवाज आ रही थी।


" सोच ले, जो जो चुसवाऊँगी, चटवाउंगी, सब चाटना पडेगा, जीभ अंदर डाल के, फिर अगर पीछे हटी न तो, " खिलखिलाते हुए चंदा भाभी की आवाज आयी।

" अगर पीछे हटी न तो मैं हूँ न , इसके पिछवाड़े मुट्ठी पेल दूंगी, अरे अगवाड़े की झिल्ली बचानी है लेकिन पिछवाड़े का क्या " उसी तरह हँसते हुए दूबे भाभी की आवाज सुनायी दी, और लगता है चंदा भाभी ने चूसना शुरू कर दिया था क्योंकि रीत की सिसकियाँ सुनाई दे रही थी



और फिर जब इधर संध्या भाभी झड़ रही थीं, उधर रीत के उह आह्ह की आवाज आ रही थीं वो भी झड़ रही थीं।

और अब जब मैं एक बार कस के संध्या भाभी को चोद रहा था, भौजी गरिया रही थीं, सिसक रही थीं चीख रही थीं, उधर से भी चंदा भाभी की आवाज आ रही थीं

" हाँ रीत हाँ ऐसे ही चूस, झाड़ दे मुझे मेरी ननदिया, "


लेकिन थोड़ी देर बार रीत की उन्ह आह नहीं नहीं इधर नहीं की आवाज आ रही थीं और फिर जवाब में दूबे भौजी की गरजने की

' स्साली छिनार, खोल मुँह पूरा , और चौड़ा, जीभ अंदर तक जानी चाहिए, वरना तेरी गांड का गोदाम बनेगा आज, बिना चूड़ी उतारे कोहनी तक पेलुँगी "

मैं समझ गया खेल,

चंदा भाभी अब अपने बड़े चूतड़ फैला के, पिछवाड़ा खोल के, और रीत मुंह बना रही होगी, लेकिन दूबे भभकी बात और उधर से आवाजें आना बंद हो गयीं, और मैं समझ गया अब रीत रानी चंदा भौजी के पिछवाड़े चूसुर चुसूर, गोल दरवाजे का रस चूस रही होंगी


बस ये सोच के ही इतना जोश आया मुझे की संध्या भौजी की दोनों चूँची पकड़ के मैंने वो हलब्बी धक्का मारा की उनकी भी चीख निकल पड़ी

" उययी उययी ओह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ "

चुदाई के समय लड़कियों की चीखें लड़को का जोश और बढ़ा देती हैं, और जैसे कोई पहली बार पेली जा रही बछिया को जबरदस्त सांड़ छाप लेता है, अगले दोनों पैरों से दबोच लेता है, उसी तरह अपने हाथों से संध्या भौजी को कस के दबोच के, मैं धक्के पे धक्के मार रहा था


चार पांच धक्के के बाद उनके कान में जीभ घुमाते हुए पूछा

" काहें भौजी, मजा आ रहा है "

" अरे स्साले, सपने में भी ऐसा मजा नहीं मिला जो आ जा मिल रहा है, जेके बियहबा तू वो धन्य हो जाई"


और मारे ख़ुशी के भौजी की बात सुन के मैंने उनका मालपुवा अस गाल कचकचा के काट लिया और चिढ़ाया,

" अब तोहार ननद पूछेंगी तो का बताइयेगा "

" इहे की हमारे मायके में एक नंबरी चोदू है, ओहके लगा तोहार बयाना बटा दे दिए हैं, होली के बाद आयी तो तोहरो चुदाई ऐसे ही करी /"

खिलखिलाते हुए भौजी बोलीं और इसी बात पे मैंने दूसरा गाल भी कस के काट लिया। मेरे दांत के निशान कोई रंग तो थे नहीं जो बेसन और साबुन से छूट जाते।

और दोनों जुबना मसलते हुए मेंने एक धक्का और मारा और बोला

" हमरे भौजी का हुकुम हम टाल नहीं सकते, हचक के पेलूँगा, लेकिन एक के साथ एक फ्री "

मेरा इशारा संध्या भाभी ने जो अपनी ननद की बेटी के बारे बताया था, गुड्डी की सबसे छोटी बहन के क्लास वाली, उसकी ओर था,

अब चुदाई सावन के झूले की तरह चल रही थीं, एक ओर से मैं पेंग मारता तो दूसरी ओर से वो कभी झूला धीरे धीरे तो कभी एकदम तेज , सुहागिन साल भर की ब्याहता औरतों को चोदने का यही तो मजा है, पूरा साथ देती हैं और मेरा जैसा नौसिखिया हो बढ़ बढ़ के मजे देने में हिस्सा लेती हैं। संध्या भौजी हंसती हुयी बोलीं

" अरे हमरे ननद के पहले तो वही टांग फैलाएगी, मैं जाती हूँ उनके यहाँ, चूतगंज ( संध्या भौजी अपने नन्द के मोहल्ले चेतगंज को चूतगंज ही कहती थीं ) तो उसी के साथ सोती हूँ, इतनी गर्म है, खुद मेरा हाथ पकड़ के अपनी गुच्ची पे, रात भर गुच्च गुच्च, एक पोर तो ऊँगली का आराम से घोंट लेती है और थोड़ा जोर लगाती हूँ तो दो पोर तर्जनी का,



लेकिन है अभी कोरी कुँवारी, चूँचिया भी बस एकदम कच्ची अमिया, गुड्डी की छुटकी की तरह से, लेकिन एक बात समझ लो लल्ला, ऐसी चूँचिया उठान वाली को चोदने का मजा ही अलग है। कभी नहीं छोड़ना चाहिए, बहुत पाप लगता है, फिर एक बार ओह उम्र वाली की पेल के फाड़ दोगे न तो जिन्नगी भर, "

उनकी ननद की बेटी को तो मैंने नहीं देखा था लेकिन गुड्डी की छुटकी को तो मैंने देखा ही था, मेरी खिंचाई करने में अपनी मम्मी का पूरा साथ दे रही थीं और आज सुबह जिस तरह से उसने छोटे छोटे जोबन की झलक दिखाई थीं,

बस मैंने पूरा बाहर निकाल के ऐसी ताकत से मारा की मोटा सुपाड़ा सीधे संध्या भाभी की बच्चेदानी पे लगा और वो काँप गयीं, बुर उनकी फूलने पिचकने लगी, और मैंने अपनी मन की बात उनसे कह दी, डर जो था,

" भौजी मेरा, थोड़ा, ..."

संध्या भाभी मेरे पूरे घुसे खूंटे को मस्ती से अपनी बिल को सिकोड़ के निचोड़ते बोलीं,

" थोड़ा, किसको बता रहे हो, अरे गदहे का लंड है मनई का नहीं, मनई का पांच छह इंच का होता है तोहार तो बालिश्त से भी, तोहार ममेरी बहन गदहे वाली गली में रहती हैं न तो जरूर तोहार महतारी गदहे के साथ सोई होंगी तभी, लेकिन क्या होगा बहुत होगा थोड़ा सरसो का तेल ज्यादा लगेगा, तो कौन कंजूसी, कमा तो रहे हो, और चीखेगी चिल्लायेगी, तो चीखने देना, यही चीख सोच सोच के तो खुश होगी बाद में "

बगल के बाथरूम से चंदा भाभी की सिकियाँ तेज हो गयी थीं लग रहा था रीत ने उन्हें चूस के झाड़ दिया है और वो आवाजे सुन के मैं और जोश में आ गया और संध्या भाभी भी बस भौजी के मोटे मोटे चूतड़ को पकड़ के मैंने कस के धक्के मारने शुरू कर दिया

" लो भौजी लो ,ये गदहे का लंड " मैंने जोश में बोला,

" दे, मादरचोद, दे, चोद जैसे अपनी महतारी का भोसड़ा चोदता है, देखती हूँ तेरी ताकत "

मेरी ओर मुंह कर के निहुरे निहुरे संध्या भाभी बोली और मैंने कस के उनके होंठ चूस लिए फिर कचकचा के काट लिए,

भौजी की फैली हुयी टाँगे भी अब थोड़ी सिकुड़ गयी थीं, वो प्रेम गली अब पहले से संकरी हो गयी थीं और मूसल रगड़ते, घिसटते दरेररते जा रहा था। मैंने भी तिहरा हमला कर दिया, एक हाथ भौजी की कड़ी कड़ी चूँची मसल रहा था, दूसरी चूँची मेरे होंठों के बीच और दूसरा हाथ मेरा सीधा भौजी की फूलती पिचकती क्लिट पे

धक्के भी लगातार और हर धक्का सीधे बच्चेदानी पे

ओह्ह उफ़ नहीं हाँ और और हाँ ऐसे ही संध्या भाभी बोल रही थीं, एकदम झड़ने के कगार पे और अब मैं भी नहीं रुकने वाला था, थोड़ी देर में वो झड़ने लगीं, जोर जोर से सिसक रही थीं

उईईई ओह्ह्ह नहीं उफ्फ्फ्फ़ हाँ रुक स्साले, उफ्फ्फ उईईईईई उईईई

पर मैं अबकी नहीं रुकने वाला था न स्पीड धीमे करने वाला, एक बार दो बार वो झड़ी होंगी और फिर मैं भी उनके अंदर, ढेर सारी मलाई,


एक बार मेरा झड़ना रुका तो फिर हलके हलके धीरे धीरे और फिर दुबारा बचा खुचा, डॉट बोतल में कस के लगी थीं तब भी रिस रसी के एक दो बूँद बाहर निकल कर जाँघों पे सरकती रेंगती

थोड़ी देर तक हम दोनों ऐसे ही चिपके रहे, संध्या भाभी झुकी, निहुरि और मैं चढ़ा उनके ऊपर, फिर हम दोनों बाथरूम के फ्लोर पे बैठ गए और अब जब संध्या भाभी ने देखा तो शर्मा गयीं

फिर थोड़ी देर बाद अपनी बड़ी बड़ी दीये जैसी आँखों को खोल के उन्होंने मुझे देखा और कस के दबोच के चूम लिया और बोलीं, लाला तुम जितने अनाड़ी दीखते हो उतने हो नहीं।

बगल के बाथरूम से आवजें आनी बंद हो गयी थीं, नहाने धोने और मस्ती के बाद दूबे भाभी, चंदा भाभी और रीत निकल गयी थीं लेकिन यहाँ निकलने का मन न मेरा कर रहा था न संध्या भौजी का और न हम दोनों को कोई जल्दी थीं।



बात संध्या भाभी ने ही शुरू की
 
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फागुन के दिन चार भाग २०

संध्या भाभी

संध्या भौजी की आँखे कह रही थीं, वो कितनी प्यासी थीं, टकटकी लगाए बस वो सीढ़ी की ओर देख रही थीं बाथरूम का दरवाजा आधा खुला आधा बंद और और वो उस दरवाजे के पीछे से, सिर्फ टॉवेल लपेटे,

जब तक मैं बाथरूम के दरवाजे पर पहुंचूं, बगल के बाथरूम से रीत की हंसी और चंदा भाभी की गुहार सुनाई पड़ी, दूबे भाभी के लिए मदद के लिए,

और संध्या भाभी को धकियाती दूबे भाभी बाथरूम से बाहर निकली,

मैं समझ गया एक भौजाई के साथ एक ननद, दूबे भाभी, संध्या भौजी का रंग छुड़ा रही थीं और चंदा भाभी रीत का लेकिन रीत से पार पाना आसान था क्या तो मदद के लिए दूबे भाभी बगल के बाथरूम में

लेकिन मुझे देख के वो ठिठक गयीं और फिर हंसी की एक लहर शुरू होती और उसके रुकने के पहले दूसरी, बड़ी मुश्किल से बोल पायीं,

" गुंजा आ गयी क्या "

मैं एकदम चांदी की मूर्ति बना, सर से पैर तक सफ़ेद वारनिश ( और जहाँ नहीं थीं वो अंग छोटी सी टॉवेल में छुपा था,)

जवाब अंदर से चंदा भाभी ने दिया, " हाँ, लेकिन चली भी गयी, कोई क्लास था अभी "

दूबे भाभी चंदा भाभी वाले बाथरूम में घुसी और संध्या भाभी ने मुझे अपने बाथरूम में खींच कर दरवाजा बंद कर लिया।

और मैं बाथरूम में देख रहा था, कन्या रस की मस्ती के साथ वाकई में रंग छुड़ाने का काम भी बड़ी शिद्द्त से हुआ था। तरह तरह के देह से निकले रंग से बाथरूम का फर्श पटा था, और साथ में रंग छुड़ाने के लिए तरह तरह की सामग्री, सरसो के तेल में सना बेसन, थोड़ा सा सिरका, तरह तरह के साबुन , शैम्पू,म्वासचराइजर, कंडीशनर के साथ कपडे के साबुन तक थे।

लेकिन मैं उस वार्निश के लिए परेशान था पर संध्या भाभी छेड़ने पर जुटी थीं, बोली,

'गुंजा सच में असली छोटी साली है, सही रगड़ा है जल्दी छूटेगा नहीं "

" और मैं घर कैसे जाऊँगा, ऐसे ही, फिर बाजार भी जाना है "

रोकते रोकते भी मेरी परेशानी फुट पड़ी। और संध्या भाभी ने मुझे कस के बांहों में भर लिया और एक जबरदस्त चुम्मी।

टॉवेल उनकी, उनके जबरदस्त उभारों को बड़ी मुश्किल से ढंक पा रही थी, बस निप्स के नीचे से

" अरे मुन्ना मैं हूँ न अभी सब जगह का रंग छुड़ाउंगी और जो सफ़ेद रंग तुमने बचा के रखा है न अपनी बहिनिया के लिए वो भी निकालूंगी। "

भौजी बोली और टॉवेल के ऊपर से ही उसे रगड़ दिया।

' उस ' की हालत वैसे ही खराब थी, गुंजा ने चूस चूस के मुझे पागल कर दिया था और झड़ने का उसे मौका मिल नहीं रह था और उसके बाद इतना खुला ऑफर,



लेकिन मामला उसके आगे नहीं बढ़ा,

भौजी उस बेचारे को ऐसे छोड़ के ही बाथरूम के बाहर चली गयीं और लौटी तो उनके हाथ में एक बड़ी सी बोतल,... मैं आधी खुली आँखों से ही थोड़ा बहुत देख पा रहा था,

भौजी ने जाते जाते मुंझे शावर के नीचे खड़ा कर दिया था और सर में उसके पहले ढेर सारा शैम्पू उलट दिया था। बड़ी सी बोतल के साथ दूसरे हाथ में एक कोई छोटी सी शीशी भी थी जो संध्या भौजी ने अपने चौड़े पिछवाड़े छिपा रखा था, लेकिन उसकी तेज झार से मैं पहचान गया और ये भी की उस का रंग छुड़ाने से कोई मतलब नहीं,

हाँ अगर वो मेरे पास होता तो गुंजा का खून खच्चर हो गया होता।

लेकिन देवर कितना भी चालाक हो भौजाई की तेज आँख से बच नहीं सकता। और जोर से डांट पड़ी,

" हे बेईमानी नहीं, आँख बंद कर "


और हँसते हुए उन्होंने मेरी बदमाशी की सजा भी दे दी। टॉवेल मेरी पकड़ के खींच दी।

और जंगबहादुर सैल्यूट करते खड़े हुए, उस टीनेजर गुंजा ने जो इत्ता कस कस के अपने मीठे मीठे मुंह से कस कस के चूसा था उसका असर इतनी जल्दी नहीं ख़त्म होना था। और जब तक भौजी की ललचाती निगाह उस मोटे लम्बे खिलौने पे अटकी थी, मैंने भी उनकी टॉवल खींच दी, और मिचमिचाती आंखों से देखा की संध्या भौजी के गोरे गोरे कड़े कड़े जुबना पे जो मैंने काही और गाढ़ा नीला रंग कस कस के लगाया था वो अभी भी बचा था, आस पास के रंग भले ही धुल गए हों।

लेकिन तब तक भौजी मेरे पीछे,... और बड़ी वाली बोतल का तेल निकाल के अपने दोनों हाथों से अपने हाथों में लगा के मेरे चेहरे पे,... और क्या ताकत थी संध्या भाभी के हाथों में,

पर अब मेरी आँखे बंद थीं और वैसे भी संध्या भौजी पीछे थीं।

लेकिन देवर को भौजी को देखने के लिए आँख की जरूरत थोड़ी पड़ती है, पूरी देह आँख हो जाती है और वो भी एक्स रे आईज, जो चोली के पीछे जुबना और साये के अंदर दरार देख लेती हैं और भौजी भी देवर को ये देखते ललचाते देख लेती है।

अभी भी संध्या भौजी की उँगलियाँ वो जादुई तेल मेरे चेहरे पे रगड़ रही थीं, उनके गदराये उभार मेरी पीठ पे रगड़ रहे थे, उनके खड़े खड़े निप्स उनकी हालत भी बता रहे थे और बरछी की तरह पीठ में छेद भी कर रहे थे और रंग छुड़ाते छुड़ाते उन्होंने बताया की वो क्यों बुला रही थीं .


मामला उनका भी ननद भौजाई का था, और हर भौजाई की तरह वो भी अपने ननद का नाम बिना गाली दिए नहीं ले सकती थीं तो उन्होंने अपनी परेशानी बतानी शुरू की,

" वो चंदा बाई चूतगंज वाली का फ़ोन आया तो मैं समझ गयी हुआ सब गबड़जंग, ( मैं ये समझ गया की चंदा उनकी ननद का नाम है लेकिन चूतगंज,... फिर मेरी चमकी, मतलब वो चेतगंज में रहती होंगी और ननद हैं तो चेतगंज का चूत गंज बोलना तो,.... )।

और चेहरे पे तेल मलने के बाद संध्या भौजी मेरी छाती और पीठ पे जो वार्निश गुंजा रानी ने पोती थी उसे छुड़ा रही थीं और साथ में अपनी ननद का पात्र परिचय कराया,

उनकी ननद उनसे काफी बड़ी थीं, बारह चौदह साल बल्कि थोड़ी और ज्यादा, एक बेटी भी थी. गुड्डी की सबसे छोटी बहन छुटकी की उम्र की। लेकिन ननद तो ननद,... उनसे यह नहीं देखा गया की उनकी भौजाई मायके में मस्ती कर रही हैं तो उन्होंने बोल दिया की शाम को चेतगंज आ जाना और ये भी की संध्या भाभी के मरद आएंगे तो वो भी अपनी बहन के यहाँ ही रुकेंगे, और वो भी होली के पहले वाली शाम को।

संध्या भाभी ने छाती का रंग छुड़ाते छुड़ाते मेरे मेल टिट्स को जोर से पिंच कर दिया और जब मैं चीखा तो चिढ़ाते हुए बोलीं

" अभी थोड़ी देर पहले जो मेरी चूँची कस कस के दबा रहे थे, अपनी छुटकी बहिनिया की समझे थे क्या "

और कचकचा के मेरे गाल काट लिए तो मैंने भी उन्हें छेड़ा, " अरे भौजी ननद हैं तो ननदोई भी तो होंगे. उनसे मजा ले लीजियेगा, "


संध्या भौजी ने जोर से मुंह बिचकाया और बोलीं

" अरे वो तो, उनकी मेहरारू के आगे उनकर हिम्मत है की भर नजर देख भी लें और वो भी दो दिन के लिए बाहर गए हैं .तभी तो चंदा बाई चूत गंज वाली गर्मायी हैं, रात भर का पेला पेली का, घिस्सा घिस्सी का प्रोग्राम है तभी मोहाई हैं.उससे भी बड़ी बात है की होली के अगले दिन ही शायद हमको लौटना पड़े, इलसिए होली के बाद तो तोहसे मुलाकात हो नहीं पाती , इसलिए मैंने कहा, और वैसे भी भी मैं नौ नगद और तरह उधार वाली हूँ, तो मुझे उधार नहीं रखना था।



और तब तक भौजी के हाथ फनफनाये खड़े मूसलचंद पे और सामने आके उसे देखते बोलीं, " गनीमत थी गुंजा ने यहाँ पेण्ट नहीं लगाया "

मैं उन्हें क्या बताता की उस शोख शरारती साली ने वहां पहले खाने वाला रंग लगाया और फिर खुद खा गयी, हाँ उसकी उँगलियों के निशान अभी भी बचे थे।

संध्या भाभी ने एक सूखे तौलिये से तेल जो मेरे चेहरे पे लगाया था उसे रगड़ रगड़ के साफ़ किया और फिर दुबारा वही तेल और उसके बाद बेसन तेल लगा के रगड़ घिस और फिर मुझे शावर के नीचे,

और अब जब मैंने बाथरूम में लगे आदमकद देखा तो वार्निश पेण्ट पूरी तह साफ़ था लेकिन मेरी साली, दर्जा नौ वाली आखिर गुड्डी की ही छोटी बहन थी। असली खेल था वार्निश के नीचे जो उसने रगड़ रगड़ के चेहरे पे लाल नीला रंग लगाया था वो करीब करीब वैसे ही और संध्या भाभी ने भी हाथ खड़ा कर लिया

" छोटी साली के हाथ का रंग है थोड़ा तो दो चार दिन रहना चाहिए "

और वैसे भी लाल काही नीला रंग, उस वार्निश छुड़ाने वाले तेल से तो छूटता नहीं, लेकिन संध्या भाभी की कृपा की वार्निश अब करीब करीब साफ़ हो गयी थी, और मुझसे तो वो कभी छूटती नहीं।
komal ji ap bahut achhi tarah har relation ko ubhar kar lati hain. GAZAB.
 

Premkumar65

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शावर में मस्ती


" छोटी साली के हाथ का रंग है थोड़ा तो दो चार दिन रहना चाहिए "

और वैसे भी लाल काही नीला रंग, उस वार्निश छुड़ाने वाले तेल से तो छूटता नहीं, लेकिन संध्या भाभी की कृपा की वार्निश अब करीब करीब साफ़ हो गयी थी, और मुझसे तो वो कभी छूटती नहीं।


और अब बाकी रंगों का नंबर था


तो भौजी ने खींच के मुझे अपने साथ शावर में खड़ा कर दिया। पहले साबुन, फिर तेल मिला बेसन और फिर साबुन,

शावर में हम दोनों चिपके, देह पर घूमती, नाचती पागल करती भौजी की रसीली उँगलियाँ, साबुन लगाते कभी चिकोटी काट लेतीं तो कभी गुदगुदा देतीं और कभी कस के अपनी ओर खींच लेती। जिसने जिसने भौजाई की मीठी चिकोटियां और गुदगुदी का मजा लिया होगा उसे मालूम होगा की कामदेव के बाण भी उसके आगे फेल, और जब ये सब हो तो बेचारे मूसल चंद बौरायँगे ही, और वो अपनी प्यारी सहेली को सूंघ कर उसके दरवाजे पर जोर जोर से ठोकर मारने लगे,



और अब शावर में मजा लेना मैं भी सीख रहा था,

ऊपर से भौजाई ने मेरे हाथ में साबुन पकड़ा दिया, उनकी देह में लगाने को। बस। साबुन के झाग के साथ मेरी उंगलिया, संध्या भाभी की कभी पतली कटीली कमरिया पे तो कभी केले के पत्ते को भी शर्माने वाली चिकनी चिकनी गोरी गोरी पीठ पर, पर असली चीज जो मुझे पागल किये थी जैसे मैंने उन्हें देखा था वो थे उनके मोटे मोटे नितम्ब और एक हाथ साबुन के साथ सीधे वहीँ, दोनों नितम्बों को पकड़ के मैं उन्हें अपनी ओर खींचने लगा,

तो वो तो और खेली खायी थीं, साल भर से रोज बिना नागा जिस काई में कुदाल चल रही थी और जो दस दिन से उपवास पे थी, उसकी भूख तो उन्हें भी बेबस किये थी। बस उन्होंने भी अपने दोनों हाथों से पकड़ के मुझे अपनी ओर खींच लिया।

और शावर में ही खुल के ग्राइंडिंग होने लगी, रगड़ घिस, रगड़ घिस,

लेकिन संध्या भौजी असली उस्ताद थीं, उन्होंने खुद अपनी दोनों जाँघे फैला दी और मेरा खड़ा खिलाडी, सूंघते ढूंढते उन जाँघों के बीच, जैसे कोई मोटा भूखा चूहा, रोटी के लालच में सूंघते सूंघते अंदर घुसे और चूहेदानी का दरवाजा, खट्ट बंद हो जाए, बस एकदम उसी तरह मूषक राज भौजी की दोनों जाँघों के बीच पकडे गए, दबोचे गए और संध्या भाभी की कदली की तरह की जाँघों ने उसे कस कस के रगड़ना मसलना शुरू कर दिया।

इतना मजा तो कभी सपने में भी मुट्ठ मारने में नहीं आ सकता था। और भौजी का दुहरा हमला था, साथ में उनकी मोटी मोटी चूँचिया मेरे सीने पे रगड़ रही थीं और उनके हाथ मेरे नितम्बो को कभी दबोचते कभी उनकी लम्बी ऊँगली नितम्बो के बीच की दरार को कुरेद देती।

उंचासो पवन काम के चल रहे थे, मैंने अपने को भौजी के हवाले कर दिया था।

अब मैं सिर्फ देह था।

भौजी की जांघो के बीच रगड़ रगड़ कर मेरे मोटे मूसल की हालत खराब हो गयी थी,

और अब कमान पूरी तरह संध्या भौजी ने अपने हाथ में ले ली थी जैसे कल रात चंदा भाभी ने ले लिया था।

लेकिन चार पांच मिनट की रगड़ घिस के बाद भौजी मेरे हाथों की बेचैनी समझ गयी


और अब उनकी पीठ मेरे सीने की ओर थी और गप्पाक से मेरे दोनों हाथों ने भौजाई के जोबन को गपुच लिया, होली में सब देवर भौजाई का जोबन देख देख के ही खुस हो जाते हैं, रंग में भीगी देह से चिपकी साड़ी और गीली चोली के बीच से झांकता, ललचाता जोबन ही होली को सफल बना देता है और कोई लकी देवर और उदार भौजी हुईं तो बस चोली के ऊपर हिस्सों से रंग लगाने के बहाने, छुआ छुअल,

लेकिन यहाँ तो दोनों जोबना मेरी जमींदारी हो गए थे। कस कस के मैं मसल रहा था, मूसल राज अब गोरे गोरे मांसल नितम्बो के बीच कुण्डी खड़का रहे थे, एक बार फिर जाँघों का दरवाजा खुला, मूसल राज भौजी की दोनों मखमली जांघो के बीच गिरफ्तार, कैद बमश्क्क्त,जैसे जेल में कैदी चक्की चलाते हैं यहाँ वो खुद जाँघों की चक्की के बीच पीसे जा रहे थे


लेकिन मैंने भी रात में चंदा भाभी की पाठशाला में न सिर्फ पढ़ाई की थी बल्कि अच्छे नंबरों से पास भी हुआ था।



एक हाथ जोबन के गर्व को मसल के चूर कर रहा था और दूसरा दक्षिण दिशा में योनि के किले पर चढ़ाई करने, ....थोड़ी देर हथेली से मैंने सहलाया, फिर एक ऊँगली अंदर बाहर और अंगूठा क्लिट पे।

भौजी जबरदस्त गरमाई थीं, जिस तरह से उनकी जादुई अंगूठी, क्लिट कड़ी कड़ी हो गयी थी, एकदम साफ़ लग रहा था और जॉबन और भौजी की गुलाबो दोनों के रगड़ने मसलने का नतीजा जल्द सामने आया,

वो सिसकने लगीं, उनकी बिल शहद फेंजने लगी, एकदम गाढ़ा गाढ़ा, मीठा मीठा, ऊँगली में लगा के मैंने भौजी को चटा दिया और भौजी ने अपने होंठों से मुझे।


और भौजी समझ गयी असली खेला का टाइम आ गया,



वो शावर से बाहर निकली, मैंने शावर धीमे किया और संध्या भौजी ने निचे छुपी एक पतली शीशी निकाल ली। जब वो वार्निश निवारक तेल लायी थीं तभी और उसकी झार से ही मैंने पहचान लिया था, कोल्हु का शुद्ध देसी सरसों का तेल।

संध्या भौजी ने अपनी खूब गहरी गदोरी में कम से कम १००- १५० ग्राम कडुवा तेल , और उनकी गहरी हथेली देख के मुझे कल रात की चंदा भाभी की एक बात याद आ गयी।

चुदाई की पढ़ाई के साथ औरतों को समझने और पटाने के भी उन्होंने १०१ नुख्से बताये थे एकदम कच्ची कलियों से चार चार बच्चों की माँ तक के लिए,


और उसी में उन्होंने बताया था की जिस औरत की हथेली जितनी गहरी होती है उसकी बुर भी उतनी ही गहरी होती है और उतनी ही जबरदस्त चुदवासी, छोटे मोटे लंड से उसका मन नहीं बुझता और उस कहीं तेरे ऐसा मुस्टंडा वाला डंडा मिल जाए तो खुद पकड़ के घोंट लेगी और उसे कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए।


एक बार उसका मन भर गया तो कुछ भी करेगी और उसके आशीर्वाद का भी बड़ा असर होगा, जो किसी से न पटे, वो लौंडिया खुद ही टांग फैला देगी , अगर गहरी हथेली वाली को हचक के पेल दो तो। और हचक के पेलवाने के साथ उस औरत को गारी देने में, रगड़ने और रगड़वाने में भी बहुत मजा आता है।



संध्या भाभी की हथेली एकदम वैसे ही थी, खूब गहरी,

लेकिन मुझसे नहीं रहा गया और मैंने चंदा भाभी से पूछ ही लिया,

" भाभी और लड़को के भी साइज पता करने का कोई तरीका हैं क्या "
और वो बहुत जोर से हंसी, हंसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। किसी तरह से बोलीं,


" अबे स्साले, तुझे तो देख के ही मैं समझ गयी थी। और फिर उनकी हंसी चालू और अब जब रुकी तो चंदा भाभी बोलीं की मुझे लगा की,....

मैंने गुड्डी की मम्मी से बोला तो वो हँसते हुए बोलीं की तुम सोचती हो मुझे अंदाज नहीं था और उन्होंने तो साइज भी, मैं जानती थी बड़ा होगा लेकिन गुड्डी की मम्मी हम सबसे आगे हैं इन सब मामलों में। वो बोलीं की जब तुम भैया के बियाह में बिन्नो की शादी में आये थे तो तुम्हे छेड़ रही थीं, तभी अंदाज लगा लिया था उसी समय, ऊँगली देख के, " लेकिन ऊँगली से, कैसे, उस समय तो मैं वैसे भी, "

मेरे अचरज का ठिकाना नहीं था, जितनी बातें चंदा भाभी से सीख रहा था।



उनकी हंसी फिर चालू हो गयी, फिर किसी तरह हंसी रोक के बोलीं,

" ये सब औरतों की बातें, सब कुछ एक दिन में ही सीख लेगो क्या, लेकिन चलो बता देती हूँ , तर्जनी की लम्बाई और जिस ऊँगली में अंगूठी पहनते हैं बस उसी से, तर्जनी अंगूठी वाली ऊँगली से जितनी छोटी हो मरद का मूसल उतना ही बड़ा होता है और फिर औरत की निगाह, गुड्डी की मम्मी ने तो साइज का भी अंदाज ही लगा लिया था लेकिन पहली बार वो गलत थी, कल बताउंगी मैं उन्हें। "

" मतलब " मेरी अभी भी कुछ समझ में नहीं आया,

" अरे गुड्डी की मम्मी ने बोला था कम से कम सात साढ़े सात इंच का, ज्यादा भी हो सकता है लेकिन हँसते हुए वो ये भी बोलीं की तुम लजाते बहुत हो, गौने की दुल्हिन झूठ, और अब मैं कल बताउंगी उनको की पहली बार उनका अंदाज गलत है , पूरे बित्ते भर का है, एक दो सूत ज्यादा ही होगा। " चंदा भाभी हँसते बोली।




लेकिन संध्या भाभी की हरकत से मैं फ्लैश बैक से वापस आ गया
Bahut khub. Chanda bhabhi aur guddi ki mummy dono ka experience ka bahut sundar varna kiya hai.
 

komaalrani

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Updates have been posted, please, read enjoy, like and do comment.
 
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komaalrani

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Is thread par new update kab aayega
वैसे तो शायद अपडेट आने में दो चार दिन और लगता अभी, लेकिन आपने कहा तो मैंने अपडेट पोस्ट कर दिया है पढ़ कर लाइक भी करियेगा और कमेंट जरूर दीजियेगा
 
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