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Erotica फागुन के दिन चार

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गुंजा


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" हे बहुत हो गया, अब गुंजा का टर्न, और चुपचाप रंग लगवा लो, छिनरपन मत करना वरना मैं भी छोटी बहन के साथ मैदान में आ जाउंगी "


मेरी हिम्मत जो गुड्डी की बात नहीं मानता और मैं अलग, वैसे भी गुड्डी का दिया रंग ख़तम हो गया और गुंजा की निगाहें मुझे चिढ़ा रही थीं छेड़ रही थी और मुझे दिखा दिखा के नीले, काही और बैंगनी रंग की कॉकटेल अपने हाथों पे बना रही थी, और फिर वो हाथ मेरे चेहरे पे


और अब मुझे समझ में आया, गुड्डी की बात,

अबतक तो मैं गुंजा को मैं पीछे से पकड़ के रंग लगा रहा था, मूसल चंद भी चूतड़ों के रस में डुबकी लगा रहे थे और अब तो गुंजा सामने थी,

उसके दोनों हाथ मेरे चेहरे पे बिजी, एकदम मुझसे चिपकी, अपने जोबन को मेरे सीने पे रगड़ती और उस पे जो मैंने रंग अभी पोता था वो मेरी चौड़ी छाती पे,


गुंजा की कोमल मुलायम उँगलियाँ मेरे चेहरे पे, किसी गोरी कुँवारी किशोरी की ऊँगली कहीं गलती से भी इधर उधर लग जाए तो लगता है की किसी बिच्छी ने डंक मार दिया, पूरी देह झनझना उठती है और अब मेरे गालों पे, पूरे चेहरे पे, वही बिच्छियां इधर उधर रेंग रही थी, सरसरा रही थीं, उस टीनेजर के कोमल कपोत, मुलायम सफ़ेद पंख मेरे सीने में रगड़ रहे थे और मैं उड़ रहा था,



नीले, काही और बैंगनी रंगों का खतरनाक कॉकटेल, और ऊपर से उस चतुर सुजान का हाथ,

कोई जगह नहीं बच रही थी, नाक के किनारे, कानों के पीछे, और कम से कम दो चार कोट, लेकिन ये तो रंगों का बेस था,

उसके बाद गुंजा ने डिब्बे पे डिब्बे खोलने शुरू किये, सफ़ेद वार्निश के, मुझे तो चोरी से एक मिल गया था, वो कोई दूकान लूट के लायी थी,बीसों, और वो मेरे चेहरे पे, और जो जगहें मैं सोच भी नहीं सकता था,

आँखें बंद करवा के, पलकों और भौंहो तक पे, क्या कोई कोई ब्यूटी पार्लर बाला आयी शैडो और मस्कारा लगाएगी, और गालों पर तो पता नहीं कितनी बार , लेकिन रंग तो बहाना था असली मजा तो गालों को रगड़ने मीसने का है, वार्निश के साथ उस किशोरी के हाथों के रस भी मेरे गालो पे,



पोता चेहरा जा रहा था पर होली तो पूरी देह की हो रही थी,

कभी उसके जोबन, नशीले मतवाले, बरछी ऐसे मेरे सीने में चुभ जाते, धंस जाते कभी वो जान बुझ के अपनी चूँचियों को रंगड़ देती, दबा देती, ये चढ़ती जवानी और उभरते जोबन वाली छोरियां, देखन में छोटे लगे गाह्व करे गंभीर, और जब वो इतनी नजदीक होती तो मेरे बावरे हुरियार मूसल चंद को भी अपनी गुलाबी सहेली को चुम्मा लेने का मौका मिल ही जाता

और अब मुझसे नहीं रहा गया,

मैंने कस के अपनी छोटी साली को गुंजा को दबोच लिया, कस कर मतलब, कस कर, खूब कस के, भींच के

और वो शोख चिंगारी भी लता की तरह लिपट गयी, मुझसे भी कस के, हाँ उसके हाथ दोनों अभी भी मेरे चेहरे पे वार्निश की चौथी कोट कर रहे थे पर अब उसके किशोर ३० सी उभार खुल के मेरे सीने में धंसे हुए रगड़ रहे थे, उसने अपनी दोनों लम्बी टांगों से मेरी टांगों को बाँध लिया था, नागपाश की तरह और कुछ अपनी चुनमुनिया, रस टपकाती जलेबी, मेरे बौराये खूंटे पे, खुले सुपाड़े पे रगड़ रही थी।


और मैं बस पागल नहीं हुआ,

मेरे दोनों हाथ कभी गुंजा की गोरी, खुली चिकनी पीठ पे टहलता तो कभी नीचे चक्कर लगा कर उस कमसिन के छोटे छोटे चूतड़ों को कस के दबोच लेता, आज होली के तरह तरह के रस मिले थे लेकिन ये बिना चढ़ती जवानी वाली छोटी साली से होलिका जो रस मिल रहा था वो सबसे अलग था। जितना मैं गुंजा की पीठ को कस के पकड़ के अपनी ओर खींचता उसके दूने जोर से वो अपनी कच्ची अमिया मेरी छाती में धंसाती, रगड़ती।



मेरे मन के सबसे भीतरी परत में जो बात दबी रहती है, जिसे मुझसे मेरा मन मुझसे भी बोलते सहमता है, वो गुड्डी न सिर्फ सुन लेती है बल्कि कर भी डालती है और तभी मेरा मन उसका बेखरीदा गुलाम है।

गुड्डी ने मेरे हाथों को खोला और आपने हाथों से ढेर सारा गाढ़ा ललाल रंग मेरी हथेलियों में लगा दिया,

और होली दो तरफा शुरू हो गयी, गुंजा की पीठ, कमर, पेट और सबसे ज्यादा मेरा मन जिसके लिए ललचा रहा था , जिसे ठुमका के वो चलती तो उसके मोहल्ले से स्कूल तक सारे लौंडो की पेंट टाइट हो जाती, उस किशोरी के छोटे लेकिन एकदम कसे चूतड़ , बार बार मेरे हाथ वही, और लाल रंग बीच की दरार में भी,

सफ़ेद पेण्ट की गुंजा को कोई कमी तो थी नहीं तो चेहरे के बाद, छाती, कन्धा पेट, पीठ यहाँ तक की हाथ पैर की उँगलियों के बीच और पैरों के तलुवे में भी, फिर वो गुड्डी से बोली,

" दी जरा निहराओ न इनको "


गुंजा के साथ गुड्डी और बौरा जाती है, जैसे सुबह इन दोनों ने मिल के मिर्चे वाले ब्रेड रोल खिला के मेरी बुरी हालत कर दी थी, वही हाल फिर हो रही थी, दस गुना ज्यादा, वो मुझसे बोली,

' अबे स्साले निहुर, मेरी बहन कुछ कह रही है,... हाँ चूतड़ ऊपर और उठा, टांग फैलाओ कस के जैसे, " और कस के एक हाथ मेरे पिछवाड़े,

" अरे दी साफ़ साफ़ बोलिये न, जैसे, ...कह के क्यों छोड़ दिया, "


खिलखिलाते हुए पिछवाड़े सफेद वार्निश पोतते गुंजा ने गुड्डी को उकसाया।

गुंजा की हंसी, जैसे किसी ने दर्जनों मोती जमीन पर लुढ़का

" तुही बोल दे न, तेरी बात का ज्यादा असर होगा " गुड्डी ने गुंजा को लहकाया,

भांग और बियर का असर मुझसे और गुड्डी से ज्यादा असर गुंजा पे पड़ रहा था, वो मेरे नितम्बो के बीच की दरार पे रंग रगड़ते बोली,

" जीजू जैसे, फिर एक पल के लिए रुक गयी और हंस के बोली, ..."जैसे गाँड़ मरवाने के लिए उठाते हैं, हाँ ऐसे ही " और

जो काम रीत नहीं कर पायी, नौ इंच का डिलडो बाँध के आयी थी,... पर दूबे भाभी ने बचा लिया, ये कह के की अरे छुआ के सगुन कर दो, बाकी का जब होली के बाद आएंगे, तब तो असली वाले से,...वो गुंजा ने कर दिया

,

और गुंजा की ऊँगली गप्प से पूरी की पूरी अंदर,

फिर बाहर निकली तो उसके नीचे दूसरी ऊँगली लगा के, ...वो गुड्डी से बोली

" दी जरा कस के चियारना इनकी,,,,, और जोर लगाओ न " और गुड्डी एकदम गुंजा के साथ, वो दोनों मिल जाए तो किसी की भी ऐसी की तैसी कर दें,



और गुड्डी ने एक खुश खबरी गुंजा को सुनाई,

"तेरे जीजू जब होली के बाद आएंगे तीन चार दिन के लिए तो अपने साथ अपनी ममेरी बहन को ले आएंगे, अब उनकी कोई सगी तो है नहीं तो वो सगी से भी बढ़के,..."



" वाह जीजू हों तो है ऐसे " गुंजा खुश होके बोली, पर गुड्डी ने उसे गरियाया,

" अरे स्साली, जीजू की चमची, पूरी बात तो सुन ली, अपना जो रॉकी है न, दूबे भाभी वाला, उस से गाँठ बँधवायेगी वो, "





गुंजा मुंह फुला के बोली,

" दी आप भी न ऐसे जीजू किस के होंगे, लोग साले सालियों की भी परवाह नहीं करते, ये तो राकी तक की, और वो बेचारा कितना उदास भी रहता है, खाली कातिक में मजा ले पाता था, "

" और क्या इनकी बहिनिया तो हरदम पनियाई रहती है " गुड्डी ने गुंजा की बात में बात मिलाई, लेकिन मुझे पता चला की पिछवाड़े का गुंजा गुड्डी का प्रोग्राम कुछ और भी था, रंग का,

" दी जरा और कस के " कभी गुंजा की आवाज सुनाई पड़ती,

" ये वाला भी " कभी गुड्डी की भी आवाज,

" थोड़ा सा और " गुंजा गुड्डी की सलाह मांगती,

" और क्या, इनकी बहन रॉकी का मुट्ठी इतना मोटा, जब गाँठ अंदर बनालेगा तो हंस हंस के घोंटेंगी,... तो ये थोड़ा सा और "

गुड्डी उसे और भड़काती, लेकिन मुझे खाली सुनाई पड़ रहा था, समझ में कुछ नहीं आ रहा था, क्योंकि बीच बीच में गुंजा की टीनेजर उँगलियाँ, लम्बे नाख़ून बस मेरे पागल खूंटे को कभी छू देती, कभी सहला देतीं,


और दोनों ने मिल के मुझे खड़ा कर दिया,

" क्यों मस्त लग रहे हैं न आपके मनमोहन,' गुंजा ने हँसते हुए गुड्डी से पूछ।


एकदम चांदी की मूरत, बालों तक में सफेद वार्निश और एक नहीं कई कोट,

इसलिए उसने कसम धरवाई थी की जीजू मेरे साथ बिना होली खेले, बिना मुझसे मिले वापस न जाइयेगा,


और फिर स्नैप स्नैप, मेरे मोबाइल से ही दर्जन भर फोटो, और फिर सबके मोबाईल में, गुंजा का जवाब नहीं था

" हे वो जगह क्यों छोड़ दिया " और गुड्डी ने गुंजा के कान में कुछ बोला और वो पहले तो झेंपी फिर खिलखिलाने लगी,



सच में वो आठ नौ इंच एकदम खड़ा, खूब मोटा, उस पे पेण्ट का एक टुकड़ा भी नहीं


" उस की तो अच्छी से और खास रगड़ाई करुँगी, आखिर आज रात भर मेरी दीदी के साथ मजे लेगा, मजे देगा वो "


गुंजा ने गुड्डी को छेड़ा और जब तक गुड्डी एक कस के धौल जमाती, गुंजा छटक के दूर,

" हे चल एक सेल्फी तो ले ले उस के साथ " गुड्डी ने गुंजा को चढ़ाया



" एकदम सही आइडिया तभी तो आप मेरी अच्छी वाली दी हो " गुंजा मुस्करा के बोली और ' उसे पकड़ के एक जबरदस्त सेल्फी , फिर खुले सुपाड़े पे चुम्मी लेते सेल्फी ,



गुड्डी समझ रही थी अब देह की होली का नंबर आ गया है और गुंजा को तो फरक नहीं पड़ता था लेकिन वो जानती थी की मैं किसी के सामने नहीं कर पाऊंगा,एकदम से असहज हो जाऊँगा तो एक घिसा पिटा बहाना बनाया और डांट पड़ी मुझे



लेकिन जो भी जिंदगी भर का अरेंजमेंट चाहते हैं ये पहले से जानते हैं की डांट वांट तो माना हुआ रिस्क है लेकिन उस मजे के आगे



तो अब गुड्डी अगर घंटे दो घंटे में मुझे एक बार कस के नहीं डांटती थी तो मुझे लगता है की ये सारंगनयनी, मेरी मनमोहिनी या तो नाराज है या इसकी तबियत नहीं ठीक है,

" यार तेरे चक्कर में, जल्दी बाजी के, ....अरे नहाने के बाद मैं कपडे धोना भूल गयी, और वो पांच दिन के बाद वाले कपडे, बस आती हूँ "

और वो छत से वापस, कमरे में और दरवाजा भी बंद, लेकिन दरवाजा बंद करने पहले गुंन्जा की ओर दिखा के ऊँगली से गोल बना के उसके अंदर दूसरी उंगल से अंदर बाहर कर के, चुदाई का इंटरनेशनल सिंबल दिखा के अपने मन की बात कह गयी। दरवाजा सिर्फ बंद नहीं हुआ अब्ल्कि अंदर से सिटकिनी लगने की भी आवाज आयी, फटाक।



नीचे से बाथरूम से भी कभी कस के संध्या भाभी की, तो कभी कस के रीत की सिसकोयों की आवाज आ रही थी और ये साफ़ था की नीचे हो रही कन्या क्रीड़ा कम से कम अभी एक डेढ़ घंटा और चलेगी और गुड्डी भी जल्दी बाहर नहीं निकलेगी,

मतलब छत पे मैं और वो सेकसी हॉट टीनेजर अकेली, कम से कम घंटे डेढ़ घंटे तक,
Gunja ab gun gunayegi niche se
 

Rajat1855

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सिसकियाँ और चीखें






भौजी चीख रही थीं, सुबक रही थी और इतनी जोर जोर से की बगल के बाथरूम में रीत, चंदा भाभी और दूबे भाभी तो सुन ही रहीं थीं ,

संध्या भौजी की ये चीखें पक्का ऊपर गुड्डी को भी सुनाई पड़ रही होंगी।

लेकिन आवाजें बगल के बाथरूम से भी आ रही थीं, रीत की चंदा भाभी और दूबे भाभी की और वो भी ऐसे ही तेज तेज,

जब मैं संध्या भाभी को रगड़ रगड़ के चोद रहा था वो जोर जोर से चीख रही थीं, महतारी को गरिया रही थीं बगल वाले बाथरूम से रीत की भी आवाज आ रही थी,

" चंदा भाभी प्लीज, चूसो न, झाड़ दो न, सुबह से बार बार, मेरी अच्छी भौजी, मेरी प्यारी भौजी, तोहार हाथ जोड़ रही हूँ, गोड़ पड़ रही हूँ "

और चंदा भाभी की ओर से दूबे भाभी की आवाज आयी, " अरे झाड़ तो ये देगी मेरी देवरान, लेकिन तुझको भी इसकी चूस चूस के झाड़नी पड़ेगी, "

" एकदम भौजी, मंजूर सब मंजूर " सिसकते हुए रीत की आवाज आ रही थी।


" सोच ले, जो जो चुसवाऊँगी, चटवाउंगी, सब चाटना पडेगा, जीभ अंदर डाल के, फिर अगर पीछे हटी न तो, " खिलखिलाते हुए चंदा भाभी की आवाज आयी।

" अगर पीछे हटी न तो मैं हूँ न , इसके पिछवाड़े मुट्ठी पेल दूंगी, अरे अगवाड़े की झिल्ली बचानी है लेकिन पिछवाड़े का क्या " उसी तरह हँसते हुए दूबे भाभी की आवाज सुनायी दी, और लगता है चंदा भाभी ने चूसना शुरू कर दिया था क्योंकि रीत की सिसकियाँ सुनाई दे रही थी



और फिर जब इधर संध्या भाभी झड़ रही थीं, उधर रीत के उह आह्ह की आवाज आ रही थीं वो भी झड़ रही थीं।

और अब जब मैं एक बार कस के संध्या भाभी को चोद रहा था, भौजी गरिया रही थीं, सिसक रही थीं चीख रही थीं, उधर से भी चंदा भाभी की आवाज आ रही थीं

" हाँ रीत हाँ ऐसे ही चूस, झाड़ दे मुझे मेरी ननदिया, "


लेकिन थोड़ी देर बार रीत की उन्ह आह नहीं नहीं इधर नहीं की आवाज आ रही थीं और फिर जवाब में दूबे भौजी की गरजने की

' स्साली छिनार, खोल मुँह पूरा , और चौड़ा, जीभ अंदर तक जानी चाहिए, वरना तेरी गांड का गोदाम बनेगा आज, बिना चूड़ी उतारे कोहनी तक पेलुँगी "

मैं समझ गया खेल,

चंदा भाभी अब अपने बड़े चूतड़ फैला के, पिछवाड़ा खोल के, और रीत मुंह बना रही होगी, लेकिन दूबे भभकी बात और उधर से आवाजें आना बंद हो गयीं, और मैं समझ गया अब रीत रानी चंदा भौजी के पिछवाड़े चूसुर चुसूर, गोल दरवाजे का रस चूस रही होंगी


बस ये सोच के ही इतना जोश आया मुझे की संध्या भौजी की दोनों चूँची पकड़ के मैंने वो हलब्बी धक्का मारा की उनकी भी चीख निकल पड़ी

" उययी उययी ओह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ "

चुदाई के समय लड़कियों की चीखें लड़को का जोश और बढ़ा देती हैं, और जैसे कोई पहली बार पेली जा रही बछिया को जबरदस्त सांड़ छाप लेता है, अगले दोनों पैरों से दबोच लेता है, उसी तरह अपने हाथों से संध्या भौजी को कस के दबोच के, मैं धक्के पे धक्के मार रहा था


चार पांच धक्के के बाद उनके कान में जीभ घुमाते हुए पूछा

" काहें भौजी, मजा आ रहा है "

" अरे स्साले, सपने में भी ऐसा मजा नहीं मिला जो आ जा मिल रहा है, जेके बियहबा तू वो धन्य हो जाई"


और मारे ख़ुशी के भौजी की बात सुन के मैंने उनका मालपुवा अस गाल कचकचा के काट लिया और चिढ़ाया,

" अब तोहार ननद पूछेंगी तो का बताइयेगा "

" इहे की हमारे मायके में एक नंबरी चोदू है, ओहके लगा तोहार बयाना बटा दे दिए हैं, होली के बाद आयी तो तोहरो चुदाई ऐसे ही करी /"

खिलखिलाते हुए भौजी बोलीं और इसी बात पे मैंने दूसरा गाल भी कस के काट लिया। मेरे दांत के निशान कोई रंग तो थे नहीं जो बेसन और साबुन से छूट जाते।

और दोनों जुबना मसलते हुए मेंने एक धक्का और मारा और बोला

" हमरे भौजी का हुकुम हम टाल नहीं सकते, हचक के पेलूँगा, लेकिन एक के साथ एक फ्री "

मेरा इशारा संध्या भाभी ने जो अपनी ननद की बेटी के बारे बताया था, गुड्डी की सबसे छोटी बहन के क्लास वाली, उसकी ओर था,

अब चुदाई सावन के झूले की तरह चल रही थीं, एक ओर से मैं पेंग मारता तो दूसरी ओर से वो कभी झूला धीरे धीरे तो कभी एकदम तेज , सुहागिन साल भर की ब्याहता औरतों को चोदने का यही तो मजा है, पूरा साथ देती हैं और मेरा जैसा नौसिखिया हो बढ़ बढ़ के मजे देने में हिस्सा लेती हैं। संध्या भौजी हंसती हुयी बोलीं

" अरे हमरे ननद के पहले तो वही टांग फैलाएगी, मैं जाती हूँ उनके यहाँ, चूतगंज ( संध्या भौजी अपने नन्द के मोहल्ले चेतगंज को चूतगंज ही कहती थीं ) तो उसी के साथ सोती हूँ, इतनी गर्म है, खुद मेरा हाथ पकड़ के अपनी गुच्ची पे, रात भर गुच्च गुच्च, एक पोर तो ऊँगली का आराम से घोंट लेती है और थोड़ा जोर लगाती हूँ तो दो पोर तर्जनी का,



लेकिन है अभी कोरी कुँवारी, चूँचिया भी बस एकदम कच्ची अमिया, गुड्डी की छुटकी की तरह से, लेकिन एक बात समझ लो लल्ला, ऐसी चूँचिया उठान वाली को चोदने का मजा ही अलग है। कभी नहीं छोड़ना चाहिए, बहुत पाप लगता है, फिर एक बार ओह उम्र वाली की पेल के फाड़ दोगे न तो जिन्नगी भर, "

उनकी ननद की बेटी को तो मैंने नहीं देखा था लेकिन गुड्डी की छुटकी को तो मैंने देखा ही था, मेरी खिंचाई करने में अपनी मम्मी का पूरा साथ दे रही थीं और आज सुबह जिस तरह से उसने छोटे छोटे जोबन की झलक दिखाई थीं,

बस मैंने पूरा बाहर निकाल के ऐसी ताकत से मारा की मोटा सुपाड़ा सीधे संध्या भाभी की बच्चेदानी पे लगा और वो काँप गयीं, बुर उनकी फूलने पिचकने लगी, और मैंने अपनी मन की बात उनसे कह दी, डर जो था,

" भौजी मेरा, थोड़ा, ..."

संध्या भाभी मेरे पूरे घुसे खूंटे को मस्ती से अपनी बिल को सिकोड़ के निचोड़ते बोलीं,

" थोड़ा, किसको बता रहे हो, अरे गदहे का लंड है मनई का नहीं, मनई का पांच छह इंच का होता है तोहार तो बालिश्त से भी, तोहार ममेरी बहन गदहे वाली गली में रहती हैं न तो जरूर तोहार महतारी गदहे के साथ सोई होंगी तभी, लेकिन क्या होगा बहुत होगा थोड़ा सरसो का तेल ज्यादा लगेगा, तो कौन कंजूसी, कमा तो रहे हो, और चीखेगी चिल्लायेगी, तो चीखने देना, यही चीख सोच सोच के तो खुश होगी बाद में "

बगल के बाथरूम से चंदा भाभी की सिकियाँ तेज हो गयी थीं लग रहा था रीत ने उन्हें चूस के झाड़ दिया है और वो आवाजे सुन के मैं और जोश में आ गया और संध्या भाभी भी बस भौजी के मोटे मोटे चूतड़ को पकड़ के मैंने कस के धक्के मारने शुरू कर दिया

" लो भौजी लो ,ये गदहे का लंड " मैंने जोश में बोला,

" दे, मादरचोद, दे, चोद जैसे अपनी महतारी का भोसड़ा चोदता है, देखती हूँ तेरी ताकत "

मेरी ओर मुंह कर के निहुरे निहुरे संध्या भाभी बोली और मैंने कस के उनके होंठ चूस लिए फिर कचकचा के काट लिए,

भौजी की फैली हुयी टाँगे भी अब थोड़ी सिकुड़ गयी थीं, वो प्रेम गली अब पहले से संकरी हो गयी थीं और मूसल रगड़ते, घिसटते दरेररते जा रहा था। मैंने भी तिहरा हमला कर दिया, एक हाथ भौजी की कड़ी कड़ी चूँची मसल रहा था, दूसरी चूँची मेरे होंठों के बीच और दूसरा हाथ मेरा सीधा भौजी की फूलती पिचकती क्लिट पे

धक्के भी लगातार और हर धक्का सीधे बच्चेदानी पे

ओह्ह उफ़ नहीं हाँ और और हाँ ऐसे ही संध्या भाभी बोल रही थीं, एकदम झड़ने के कगार पे और अब मैं भी नहीं रुकने वाला था, थोड़ी देर में वो झड़ने लगीं, जोर जोर से सिसक रही थीं

उईईई ओह्ह्ह नहीं उफ्फ्फ्फ़ हाँ रुक स्साले, उफ्फ्फ उईईईईई उईईई

पर मैं अबकी नहीं रुकने वाला था न स्पीड धीमे करने वाला, एक बार दो बार वो झड़ी होंगी और फिर मैं भी उनके अंदर, ढेर सारी मलाई,


एक बार मेरा झड़ना रुका तो फिर हलके हलके धीरे धीरे और फिर दुबारा बचा खुचा, डॉट बोतल में कस के लगी थीं तब भी रिस रसी के एक दो बूँद बाहर निकल कर जाँघों पे सरकती रेंगती

थोड़ी देर तक हम दोनों ऐसे ही चिपके रहे, संध्या भाभी झुकी, निहुरि और मैं चढ़ा उनके ऊपर, फिर हम दोनों बाथरूम के फ्लोर पे बैठ गए और अब जब संध्या भाभी ने देखा तो शर्मा गयीं

फिर थोड़ी देर बाद अपनी बड़ी बड़ी दीये जैसी आँखों को खोल के उन्होंने मुझे देखा और कस के दबोच के चूम लिया और बोलीं, लाला तुम जितने अनाड़ी दीखते हो उतने हो नहीं।

बगल के बाथरूम से आवजें आनी बंद हो गयी थीं, नहाने धोने और मस्ती के बाद दूबे भाभी, चंदा भाभी और रीत निकल गयी थीं लेकिन यहाँ निकलने का मन न मेरा कर रहा था न संध्या भौजी का और न हम दोनों को कोई जल्दी थीं।



बात संध्या भाभी ने ही शुरू की
Maine Phagun ke din char pahle bhi padhi hai. Aisa lagta hai ki Sammy ke saath saath aapki lekhni ki madkta badhti ja rahi hai.Bilkul purani sharab ki tarah.
 

komaalrani

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Maine Phagun ke din char pahle bhi padhi hai. Aisa lagta hai ki Sammy ke saath saath aapki lekhni ki madkta badhti ja rahi hai.Bilkul purani sharab ki tarah.
Thanks and there are many changes and additions of many scenes like the last scenes of Gunja and Sandhya Bhabhi was not there earlier. Please keep on reading, enjoying and sharing your views.
 

komaalrani

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just had a glance...wonderful update madam...will provide detail comment shortly...thanks.
Thanks, I will be waiting
 

prkin

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थ्रिलर - १

स्कूल में बम



डी॰बी॰ ने बोला- “जीरो आवर इज 20 मिनटस फ्राम नाउ…”

मुझे 15 मिनट बाद घुसना था, 17 मिनट बाद प्लान ‘दो’ शुरू हो जायेगा 20वें मिनट तक मुझे होस्टेज तक पहुँच जाना है और अगर 30 मिनट तक मैंने कोई रिस्पान्स नहीं मिला तो सीढ़ी के रास्ते से मेजर समीर के लोग और छत से खिड़की तोड़कर पुलिस के कमान्डो।


डी॰बी॰ ने पूछा- “तुम्हें कोई हेल्प सामान तो नहीं चाहिये?”

मैंने बोला- “नहीं बस थोड़ा मेक-अप, पेंट…”

गुड्डी बोली- “वो मैं कर दूंगी…”

डी॰बी॰ बोले- “कैमोफ्लाज पेंट है हमारे पास। भिजवाऊँ?”

गुड्डी बोली- “अरे मैं 5 मिनट में लड़के को लड़की बना दूं। ये क्या चीज है? आप जाइये। टाइम बहुत कम है…”

डी॰बी॰ बगल के हाल में चले गये और वहां पुलिसवाले, सिटी मजिस्ट्रेट, मेजर समीर के तेजी से बोलने की आवाजें आ रही थीं।

गुड्डी ने अपने पर्स, उर्फ जादू के पिटारे से कालिख की डिबिया जो बची खुची थी, दूबे भाभी ने उसे पकड़ा दी थी, और जो हम लोगों ने सेठजी के यहां से लिया था, निकाली और हम दोनों ने मिलकर।

4 मिनट गुजर गये थे। 11 मिनट बाकी थे।

मैंने पूछा- “तुम्हारे पास कोई चूड़ी है क्या?”

“पहनने का मन है क्या?” गुड्डी ने मुश्कुराकर पूछा और अपने बैग से हरी लाल चूड़ियां। जो उसने और रीत ने मिलकर मुझे पहनायी थी।

सब मैंने ऊपर के पाकेट में रख ली। मैंने फिर मांगा-

“चिमटी और बाल में लगाने वाला कांटा…”

“तुमको ना लड़कियों का मेक-अप लगता है बहुत पसन्द आने लगा। वैसे एकदम ए-वन माल लग रहे थे जब मैंने और रीत ने सुबह तुम्हारा मेक अप किया था। चलो घर कल से तुम्हारी भाभी के साथ मिलकर वहां इसी ड्रेस में रखेंगें…” ये कहते हुये गुड्डी ने चिमटी और कांटा निकालकर दे दिया।

7 मिनट गुजर चुके थे, सिर्फ 8 मिनट बाकी थे। निकलूं किधर से? बाहर से निकलने का सवाल ही नहीं था, इस मेक-अप में। सारा ऐड़वान्टेज खतम हो जाता। मैंने इधर-उधर देखा तो कमरे की खिड़की में छड़ थी, मुश्किल था। अटैच्ड बाथरूम। मैं आगे-आगे गुड्डी पीछे-पीछे। खिड़की में तिरछे शीशे लगे थे। मैंने एक-एक करके निकालने शुरू किये और गुड्डी ने एक-एक को सम्हाल कर रखना। जरा सी आवाज गड़बड़ कर सकती थी। 6-7 शीशे निकल गये और बाहर निकलने की जगह बन गई।

9 मिनट। सिर्फ 6 मिनट बाकी। बाहर आवाजें कुछ कम हो गई थीं, लगता है उन लोगों ने भी कुछ डिसिजन ले लिया था। गुड्डी ने खिड़की से देखकर इशारा किया। रास्ता साफ था। मैं तिरछे होकर बाथरूम की खिड़की से बाहर निकल आया।

वो दरवाजा 350 मीटर दूर था। यानी ढाई मिनट। वो तो प्लान मैंने अच्छी तरह देख लिया था, वरना दरवाजा कहीं नजर नहीं आ रहा था। सिर्फ पिक्चर के पोस्टर। तभी वो हमारी मोबाईल का ड्राईवर दिखा, उसको मैंने बोला- “तुम यहीं खड़े रहना और बस ये देखना कि दरवाजा खुला रहे…”

पास में कुछ पुलिस की एक टुकडी थी। ड्राइवर ने उन्हें हाथ से इशारा किया और वो वापस चले गये। 13 मिनट, सिर्फ दो मिनट बचे थे।



मैं एकदम दीवाल से सटकर खड़ा था, कैसे खुलेगा ये दरवाजा? कुछ पकड़ने को नहीं मिल रहा था। एक पोस्टर चिपका था। सेन्सर की तेज कैन्ची से बच निकली, कामास्त्री। हीरोईन का खुला क्लिवेज दिखाती और वहीं कुछ उभरा था। हैंडल के ऊपर ही पोस्टर चिपका दिया था। दो बार आगे, तीन बार पीछे जैसा गुड्डी ने समझाया था। सिमसिम। दरवाजा खुल गया। वो भी पूरा नहीं थोड़ा सा।



15 मिनट हो गये थे। सीढ़ी सीधी थी लेकिन अन्धेरी, जाले, जगह-जगह कचडा। थोड़ी देर में आँखें अन्धेरे की अभ्यस्त हो गई थी। मेरे पास सिर्फ 10 मिनट थे काम को अन्जाम देने के लिये।

Brilliant start with a thrilling beginning.
 

prkin

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आपरेशन शुरू



15 मिनट हो गये थे। सीढ़ी सीधी थी लेकिन अन्धेरी, जाले, जगह-जगह कचडा। थोड़ी देर में आँखें अन्धेरे की अभ्यस्त हो गई थी। मेरे पास सिर्फ 10 मिनट थे काम को अन्जाम देने के लिये।

सीढ़ी दो मिनट में पार कर ली। साथ में कितनी सीढ़ीयां है रास्ते में, कौन सी सीढ़ी टूटी है, ऊपर के हिस्से पे सीढ़ी बस बन्द थी। लेकिन अन्दर की ओर इतना कबाड़, टूटी कुर्सियां, एक्जाम की कापियों के बन्डल, रस्सी। उसे मैंने एक किनारे कर दिया। लौटते हुये बहुत कम टाइम मिलने वाला था।

क्लास के पीछे के बरामदे में भी अन्धेरा था।


मैं उस कमरे के बाहर पहुँचा और दरवाजे से कान लगाकर खड़ा हो गया। हल्की-हल्की पदचाप सुनायी दे रही थी, बहुत हल्की। मैंने दरवाजे को धक्का देने की कोशिश कि। वो बस हल्के से हिला। मैंने नीचे झुक के देखा। दरवाजे में ताला लगा था।

गुड्डी ने तो कहा था कि ये दरवाजा खुला रहता है। अब।

तब तक मैंने देखा मोबाइल का नेटवर्क चला गया। लाइट भी चली गई। अन्दर कमरें में घुप्प अन्धेरा छा गया।

लाउडस्पीकर पर जोर से चुम्मन की माँ की आवाज आने लगी- “खुदा के लिये इन लड़कियों को छोड़ दो। इन्होंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? अल्लाह तुम्हारा गुनाह माफ कर देंगें। पुलिस के साहब लोग भी। बाहर आ जाओ…”

प्लान दो शुरू हो चुका था। 17 मिनट हो गये थे। मेरे पास सिर्फ 8 मिनट थे।

मैंने गुड्डी की चिमटी निकाली और ताला खोलकर हल्के से दरवाजा खोल दिया, थोड़ा सा।

घुप्प अन्धेरा। थोड़ी देर में मेरी आँखें अन्धेरे की आदी हो गई। एक बेन्च पे तीन लड़कियां, सिकुड़ी सहमी, गुन्जा की फ्राक मैंने पहचान ली। गुन्जा बीच में थी। बेन्च के ठीक नीचे था बाम्ब। बिजली की हल्की सी रोशनी जल बुझ रही थी। कोई तार किसी लड़की से नहीं बन्धा था। दीवाल के पास एक आदमी खड़ा था जो कभी लड़कियों की ओर, कभी दरवाजे की ओर देखता।

बाहर लाउडस्पीकर पर आवाज और तेज हो गई थी। कभी चुम्मन की माँ की आवाज। कभी पुलिस की मेगाफोन पे वार्निग। उस आदमी का ध्यान अब पूरी तरह बाहर से आती आवाजों पे था।

जमीन पर क्राल करते समय मुझे ये भी सावधानी रखनी पड़ रही थी की जो एक छोटा सा पिन्जड़ा मेरे पास था, वो जमीन से ना टकराये। उसमें दो मोटे-मोटे चूहे थे।

सबसे पहले गुन्जा ने मुझे देखा। वो चीखती उसके पहले मैंने उसे चुप रहने का इशारा किया और उंगली से समझाया की बाकी दोनों लड़कियों को भी समझा दे की पहले की तरह बैठी रहें रियेक्ट ना करें।

मुझे पहले बाम्ब को समझना था।

मैं उससे बस दो फीट दूर था। एक चीज मैं तुरन्त समझ गया की इसमें कोई टाईमर डिवाइस नहीं है। ना तो घड़ी की टिक-टिक थी ना वो सर्किटरी। तो सिर्फ ये हो सकता है की किसी तार से इसे बेन्च से बान्धा हो और जैसे ही बेन्च पर से वजन झटके से कम हो। बाम्ब ऐक्टिवेट हो जाय।

बहुत मुश्किल था। मैं खिड़की से चिपक के खड़ा था। कोई डाइवर्ज़न क्रियेट करना होगा।

मैंने गुन्जा को इशारे से समझा दिया। मेरे जेब में पायल पड़ी थी, जो सुबह गुड्डी और रीत ने मुझे पहनायी थी और घर से निकलते समय भी नहीं उतारने दिया था। बाजार में पहुँचकर मैंने वो अपनी जेब में रख ली थी।

चूहे के पिंजरे से मैंने पनीर का एक टुकड़ा निकाला और पायल में लपेट के, पूरी ताकत से बाहर की ओर अधखुले दरवाजे की ओर फेंका। झन्न की आवाज हुई। दरवाजे से लड़कर पायल अधखुले दरवाजे के बाहर जा गिरी-

“झन-झन-झन…”

“कौन है?” वो आदमी चिल्लाया और बाहर दरवाजे की ओर लपका जिधर से पायल की आवाज आई थी।

इतना डायवर्ज़न काफी था। मैंने गुन्जा को पहले ही इशारा कर रखा था।

उसके दायीं ओर वाली लड़की को पहले उठकर मेरे पास आना था। वो झटके से उठकर मेरे पास आई। एक पल के लिये मेरे दिल कि धड़कन रुक सी गई थी। कहीं बाम्ब।

लेकिन कुछ नहीं हुआ।

और जब वो मेरे पास आई तो मेरे दिल की धड़कन दो पल के लिये रुक गई।

महक,... लम्बी, गोरी, सुरू के पेड़ जैसी छरहरी और सबसे बढ़कर उसकी फिगर। लेकिन अभी उसका टाईम नहीं था। मैंने उसके कान में फुसफुसाया-


“दिवाल से सटकर जाना पीछे वाले दरवाजे पे। इसके बाद गुन्जा के बगल की दूसरी लड़की को मैं उठाऊँगा। तुम दरवाजे पे उस लड़की का इंतेजार करना और पीछे वाली सीढ़ी से…”

महक को सीढ़ी का रास्ता मालूम था। उसने मुझे आँखों में अश्योर किया और दीवाल से सटे-सटे बाहर की ओर। मैं डर रहा था की जब वो दरवाजे से बाहर निकले तब कहीं कोई आवाज ना हो?

और मैंने एक चूहा छोड़ दिया।

वो आदमी दरवाजे के बाहर खड़ा था, पनीर का टुकड़ा उसके पैरों के पास, और पल भर में चूहा वहीं।

वो जोर से उछला- “चूहा…”

और महक दरवाजे के पार हो गई।

बाहर से लाउडस्पीकर की आवाजें बन्द हो गई थी और अब फायर ब्रिगेड वाले वाटर कैनन छोड़ रहे थे।

बन्द होने पर भी कुछ पानी बाहर के बरामदे में आ रहा था।

वो आदमी फिर बेचैन होकर बाहर की ओर गया और फिर पायल, पनीर का टुकड़ा और चूहा। और अबकी चूहे ने उसे काट लिया।

वो चीखा और अब दूसरी लड़की दिवार से सटकर बाहर की ओर।
Excellent Buid-up
 

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सीढी पर फायरिंग


मैं वापस दौड़ता हुआ सीढ़ी की ओर। तीनों लड़कियां सीढ़ी के पार खड़ी थी।

महक ने बोला- “चलें नीचे?”

मैंने कहा- “अभी नहीं…” और सीढ़ी का दरवाजा बन्द कर दिया।

पीछे से जोर-जोर से दरवाजा खड़खड़ाने की आवाज आ रही थी।

मैंने बोला- “ये जो कापियों का बन्डल रखा है ना उसे उठा-उठाकर यहां रखो…”

वो बोली- “मेरा नाम महक है। महक दीप…”

मैंने कहा- “मुझे मालूम है। लेकिन प्लीज जरा जल्दी…” और जल्दी-जल्दी कापियों से जो बैरीकेडिंग हो सकती थी किया।

तीसरी लड़की से मैंने रस्सी के लिये इशारा किया और उसने हाथ बढ़ाकर रस्सी पास कर दी। ऊपर की सिटकिनी से बोल्ट तक फिर एक क्रास बनाते हुये। बीच में जो भी टूटी कुर्सियां, फर्नीचर सब कुछ, कम से कम 5-6 मिनट तक इसे होल्ड करना चाहिये।

तब तक दो बार पैरों से मारने की और फिर धड़ाम की आवाज आई। जिस कमरे में इन्हें होस्टेज बनाकर रखा था, और जिसे मैंने बाहर से बन्द कर दिया था, टूटा ताला लटका कर। उसका दरवाजा टूट गया था।

मैंने तीनों से बोला- “भागो नीचे। सम्हलकर। चौथी सीढ़ी टूटी है। 11वीं के ऊपर छत नीची है…”

महक ने उतरते हुये जवाब दिया- “मालूम है मालूम है। स्कूल बंक करने का फायदा…”

दौड़ते हुये कदमों की आवाज, सीधे सीढ़ी के दरवाजे की ओर से आ रही थी। मेरा चूड़ी वाली ट्रिक फेल हो गई थी। मेरे दिमाग की बत्ती जली, जो मेरा खून गिर रहा होगा। अन्धेरे में उससे अच्छा ट्रेल क्या मिलेगा। और वही हुआ।

हमारे नीचे पहुँचने से पहले ही सीढ़ी के दरवाजे पे हमला शुरू हो गया था।

इसका मतलब कि अब दोनों साथ थे, जिसके पैर में मैंने कांटा चुभोया था उसके पैर में इतनी ताकत तो होगी नहीं।

और तब तक गोली की आवाज। गोली से वो दरवाजे का बोल्ट तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन मुझे ये डर था की कहीं वो इन लड़कियों को ना लग जाये।

मैंने बोला- “पीठ दीवाल से सटाकर चुपचाप…”

सब लाइन में खड़े हो गये। दिवाल से चिपक के और अगले ही पल अगली गोली वहीं से गुजरी जहां हम दो पल पहले थे। वो जाकर सामने वाले दरवाजे में पैबस्त हो गई। सबसे आगे गुंजा थी, पीछे वो दूसरी लड़की और सबसे अन्त में महक और मैं, एक दूसरे का हाथ पकड़े। गोली की आवाज सुनकर महक कांप गई और उसने कसकर मेरा हाथ भींच लिया और मैंने भी उसी तरह जवाब में उसका हाथ दबा दिया।

महक मुझे देखकर मुश्कुरा दी, और मैं भी मुश्कुरा दिया। अब हम लोग सीढ़ी के नीचे वाले हिस्से में थे, जहां निचले दरवाजे से छनकर रोशनी आ रही थी। मुझे देखकर महक मीठी-मीठी मुश्कुराती रही और मैं भी। इत्ती प्यारी सुन्दर कुड़ी मुश्कुराये और कोई रिस्पान्स ना दे? गुनाह है।

तब तक महक की निगाह मेरे हाथ पे पड़ी वो चीखी- “उईईई… कितना खून?”

अब मेरी नजर भी हाथ पर पड़ी। मैं इतना तो जानता था की चोट हड्डी में नहीं है वरना हाथ काम के लायक नहीं रहता। लेकिन खून लगातार बह रहा था। मेरी बांह और बायीं साईड की शर्ट खून से लाल हो गई थी। महक ने अपना सफेद दुपट्टा निकाला और एक झटके में फाड़ दिया। और आधा दुपट्टा मेरी चोट पे बांध दिया। खून अभी भी रिस रहा था लेकिन बहना बहुत कम हो गया था।

तब तक दुबारा गोली की आवाज और मैंने महक को खींचकर अपनी ओर। अचानक मैंने रियलाइज किया की मेरे हाथ उसके रूई के फाहे ऐसे उभार पे थे। मैंने झट से हाथ हटा लिया और बोला- “सारी…”

महक ने एक बार फिर मेरा हाथ खींचकर वहीं रख लिया और बोली- “किस बात की सारी? नो थैन्क नो सारी। वी आर फ्रेन्डस…”

मैंने मोबाइल की ओर देखा। सिर्फ दो मिनट बचे थे। अगर मैंने आल क्लियर ना दिया तो इसी रास्ते से मिलेट्री कमान्डो और हम लोग क्रास फायर में। नेटवर्क अभी भी गायब था। मैंने बीपर निकालकर मेसेज दिया। ये सीधे डी॰बी॰ को मिलता। सिर्फ चार सिढ़ियां बची थी। दीवाल से पीठ सटाये-सटाये। हम नीचे उतरे।

ऊपर से जो गोलियां चली थी, उससे नीचे सीढ़ी के दरवाजे में अनेक छेद हो गये थे। काफी रोशनी अंदर आ रही थी। पहली बार हम लोगों ने चैन की सांस ली, और पहली बार हम चारों ने एक दूसरे को देखा।

महक ने अपनी नीली-नीली आँखें नचाकर कहा- “आप हो कौन जी? इत्ते हैन्डसम पुलिस में तो होते नहीं। मिलेट्री में। लेकिन ना पिस्तौल ना बन्दूक…”

गुंजा आगे बढ़कर आई- “मेरे जीजू है यार। जीजू ये है। …”

“महक…” उसने खुद हाथ बढ़ाया और मैंने हाथ मिला लिया।

“मैं जैसमिन…” तीसरी लड़की बोली और अबकी मैंने हाथ बढ़ाया।

महक ने हँसकर कहा- “हे तेरे जीजू तो मेरे भी जीजू…”

जैसमिन बोली- “और मेरे भी…”

“एकदम…” गुंजा बोली- “लेकिन आपको ये कैसे पता चला की मैं यहां फँसी हूँ?”

“अरे यार सालियों को जीजा के अलावा और कहीं फँसने की इजाजत नहीं है…” मैंने कसकर महक और गुंजा को दबाते हुये कहा।

Aise samay mein bhi romance! Wah
 

prkin

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बूम --- बॉम्ब





मैं बात उन सबसे कर रहा था, लेकिन मेरी निगाह बार-बार ऊपर और नीचे के दरवाजों पे दौड़ रही थी। मुझे ये डर लग रहा था की अभी तो हम सब दिवाल से सटे खड़े हैं। लेकिन जब हम नीचे वाले दरवाजे पे खड़े होंगे अगर उस समय उन सबों ने गोली चलाई, तो हमारी पीठ उनकी ओर होगी। बहुत मुश्किल हो जायेगी। मैं इसलिये टाइम पास कर रहा था की। ऊपर से वो दोनों क्या करते हैं। मुझे एक तरकीब सूझी। कुछ रिस्क तो लेना ही था।

मैं- “तुम तीनों इसी तरह दीवार से चिपक के खड़ी रहो…” और मैं झुक के नीचे वाले दरवाजे के पास गया और ऊपर की ओर देख रहा था।

महक ने आह्ह… भरी- “काश इस निगोड़ी दीवाल की जगह ऐसे हैन्डसम जीजू के साथ सटकर खड़ा होना पड़ता…”

गुंजा बोली- “अरी सालियों वो मौका भी आयेगा। ज्यादा उतावली ना हो…”

एक मिनट तक जब कुछ नहीं हुआ तो मुझे लग गया कि कम से कम अब वो ऊपर दरवाजे के पीछे नहीं हैं। मैंने मुड़कर दरवाजे को खोलने की कोशिश की। वो नहीं खुला।-मैंने तो दरवाजा बन्द नहीं किया था। नीचे झुक के एक छेद से मैंने देखने की कोशिश की। तो देखा की बाहर एक ताला लटक रहा था।

मेरी ऊपर की सांस ऊपर, नीचे की नीचे। ये क्या हुआ? दरवाजा किसने बन्द किया? ड्राईवर को तो मैं बोलकर गया था की देखते रहने को। अब।

लड़कियां जो चुहल कर रही थी। वो मैं जानता था की चुहुल कम डर भगाने का तरीका ज्यादा है। लेकिन अब मेरे दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया था, बाहर से दरवाजा बन्द और ऊपर से ताला। जब कि तय यही हुआ था की हम लोगों को इधर से ही निकलना है।

“कौन हो सकता है वो?” मेरा दिमाग नहीं सोच पा रहा था। मुझे याद आया, अगर दिमाग काम करना बन्द कर दे तो दिल से काम लो, और दिमाग की बत्ती तुरन्त जल गई।

पहला काम- सेफ्टी फर्स्ट। स्पेशली जब साथ में तीन लड़कियां हैं।

तो खतरा किधर से आ सकता है? दरवाजे से, ऊपर से या नीचे से? इसलिये दीवाल के सहारे रहना ही ठीक होगा और डेन्जर का एक्स्पोजर कम करने के लिये। चार के बजाय दो की फाइल में, और फाइल में, एक आगे एक पीछे।

मैं महक के पास गया। और बोला- “चलो तुम कह रही थी ना की दीवाल के बजाय जीजू के तो मैं तुम्हारे आगे खड़ा हो जाता हूँ और गुंजा तुम जैसमिन के आगे…”

महक बोली- “नहीं नहीं। “मैं आपके आगे खड़ी होऊंगी…” और मेरे आगे आकर खड़ी हो गई।

मैं उसकी कमर को पकड़े था की गुन्जा बोली- “जीजू आप गलत जगह पकड़े हैं। थोड़ा और ऊपर…”

महक ने खुद मेरा हाथ पकड़कर अपने एक उभार पे रख दिया और गुंजा की ओर देखकर बोला- “अब ठीक है ना। अब तू सिर्फ जल, सुलग। इत्ते खूबसूरत सेक्सी जीजू को छिपाकर रखने की यही सजा है…”

मैं कान से उनकी बातें सुन रही था, लेकिन आँख मेरी बाहर निकलने वाले दरवाजे पे गड़ी थी। मैंने आल क्लियर सिगनल दे दिया था। इसलिये किसी हेल्प पार्टी की उम्मीद करना बेकार था। नेटवर्क जाम था और अगले आधे घंटे और जाम रहने की बात थी, इसलिये मोबाइल से भी डी॰बी॰ से बात नहीं हो सकती थी। बन्द कोई गलती से कर सकता है लेकिन ताला नहीं, तो कोई बड़ा खतरा आने के पहले। मैं खुद, खुद ही कोई रास्ता निकालना पड़ेगा।

अचानक मुझे एक ब्रेन-वेव आई- “किसी के पास ऐसा नेल कटर है। जिसमें स्क्रू ड्राइवर है?”

जैसमिन ने कहा- “मेरे पास है…”

मैंने उसे लेकर जेब में रख लिया। मैं सोच रहा था की ताले के बोल्ट के जो स्क्रू हैं उन्हें ढीले करके। जोर से धक्का देने पर ताला कैसा भी हो बोल्ट निकल आयेगा। तब तक ऊपर से सिमेंट चूना गिरने लगा। पहले हल्का-हल्का फिर तेज।

मैं जोर से चिल्लाया- “बचो। सिर सीने में, कान बंद। हाथ से भी सिर ढक लो, पार्टनर को कसकर पकड़ लो…”

तब तक जोर से। बूम हुआ। पहले ऊपर का दरवाजा और साथ में कापियां टूटे फर्नीचर। छत पर से प्लास्टर के टुकड़े। अच्छा हुआ की मैंने महक को कसकर पकड़ रखा था। शाक वेव ऊपर से ही आई। लेकिन अगले पल नीचे का दरवाजा भी टूट करके बाहर। और साथ में हम चारों भी, लुढ़कते पुढ़कते।

“भागो…” मैं जोर से चिल्लाया और हम चारों हाथ में हाथ पकड़कर, स्कूल की बिल्डिंग से दूर 200-250 मीटर बाद ही हम रुके।

सबने एक साथ खुली हवा में सांस ली। अब हम लोगों ने स्कूल की ओर देखा। ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था। जिस कमरे में ये लोग पकड़े गये थे, उसकी छत, एक दीवाल काफी कुछ गिर गई थी। सीढ़ी के ऊपर का वरान्डा भी डैमेज हुआ था। अभी भी थोडे बहुत पत्त्थर गिर रहे थे।

बाम्ब एक्स्प्लोड किसने किया? उन दोनों का क्या हुआ? मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।


तब तक फायरिंग की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा- टैक-टैक। सेल्फ लोडेड राईफल और आटोमेटिक गन्स की, 25-30 राउन्ड। सारा फायर प्रिन्सीपल आफिस की ओर केन्द्रित था। वो तो हम लोगों को मालूम था की वहां कोई नहीं हैं। स्कूल की ओर से कोई फायर नहीं हो रहा था।

तब तक मेगा फोन पर डी॰बी॰ की आवाज गुंजी- “स्टाप फायर…”

थोड़ी देर में एक पोलिस वालों की टुकडी, कुछ फोरेन्सिक वाले और एक एम्बुलेन्स अन्दर आ गई। कुछ देर बाद एक आदमी लंगड़ाते हुये और दूसरा उसके साथ जिसके कंधे पे चोट लगी थी, चारों ओर पुलिस से घिरे बाहर निकले।

स्कूल के गेट से वो निकले ही थे की धड़धड़ाती हुई 5 एस॰यू॰वी॰ और उनके आगे एक सफेद अम्बेसेडर और सबसे आगे एक सफेद मारुती जिप्सी जिसमें पीछे स्टेनगन लिये हुये। लोग बैठे थे, आकर रुकी।

Brilliant conclusion to Thriller 1.
 

Sutradhar

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सिसकियाँ और चीखें






भौजी चीख रही थीं, सुबक रही थी और इतनी जोर जोर से की बगल के बाथरूम में रीत, चंदा भाभी और दूबे भाभी तो सुन ही रहीं थीं ,

संध्या भौजी की ये चीखें पक्का ऊपर गुड्डी को भी सुनाई पड़ रही होंगी।

लेकिन आवाजें बगल के बाथरूम से भी आ रही थीं, रीत की चंदा भाभी और दूबे भाभी की और वो भी ऐसे ही तेज तेज,

जब मैं संध्या भाभी को रगड़ रगड़ के चोद रहा था वो जोर जोर से चीख रही थीं, महतारी को गरिया रही थीं बगल वाले बाथरूम से रीत की भी आवाज आ रही थी,

" चंदा भाभी प्लीज, चूसो न, झाड़ दो न, सुबह से बार बार, मेरी अच्छी भौजी, मेरी प्यारी भौजी, तोहार हाथ जोड़ रही हूँ, गोड़ पड़ रही हूँ "

और चंदा भाभी की ओर से दूबे भाभी की आवाज आयी, " अरे झाड़ तो ये देगी मेरी देवरान, लेकिन तुझको भी इसकी चूस चूस के झाड़नी पड़ेगी, "

" एकदम भौजी, मंजूर सब मंजूर " सिसकते हुए रीत की आवाज आ रही थी।


" सोच ले, जो जो चुसवाऊँगी, चटवाउंगी, सब चाटना पडेगा, जीभ अंदर डाल के, फिर अगर पीछे हटी न तो, " खिलखिलाते हुए चंदा भाभी की आवाज आयी।

" अगर पीछे हटी न तो मैं हूँ न , इसके पिछवाड़े मुट्ठी पेल दूंगी, अरे अगवाड़े की झिल्ली बचानी है लेकिन पिछवाड़े का क्या " उसी तरह हँसते हुए दूबे भाभी की आवाज सुनायी दी, और लगता है चंदा भाभी ने चूसना शुरू कर दिया था क्योंकि रीत की सिसकियाँ सुनाई दे रही थी



और फिर जब इधर संध्या भाभी झड़ रही थीं, उधर रीत के उह आह्ह की आवाज आ रही थीं वो भी झड़ रही थीं।

और अब जब मैं एक बार कस के संध्या भाभी को चोद रहा था, भौजी गरिया रही थीं, सिसक रही थीं चीख रही थीं, उधर से भी चंदा भाभी की आवाज आ रही थीं

" हाँ रीत हाँ ऐसे ही चूस, झाड़ दे मुझे मेरी ननदिया, "


लेकिन थोड़ी देर बार रीत की उन्ह आह नहीं नहीं इधर नहीं की आवाज आ रही थीं और फिर जवाब में दूबे भौजी की गरजने की

' स्साली छिनार, खोल मुँह पूरा , और चौड़ा, जीभ अंदर तक जानी चाहिए, वरना तेरी गांड का गोदाम बनेगा आज, बिना चूड़ी उतारे कोहनी तक पेलुँगी "

मैं समझ गया खेल,

चंदा भाभी अब अपने बड़े चूतड़ फैला के, पिछवाड़ा खोल के, और रीत मुंह बना रही होगी, लेकिन दूबे भभकी बात और उधर से आवाजें आना बंद हो गयीं, और मैं समझ गया अब रीत रानी चंदा भौजी के पिछवाड़े चूसुर चुसूर, गोल दरवाजे का रस चूस रही होंगी


बस ये सोच के ही इतना जोश आया मुझे की संध्या भौजी की दोनों चूँची पकड़ के मैंने वो हलब्बी धक्का मारा की उनकी भी चीख निकल पड़ी

" उययी उययी ओह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ "

चुदाई के समय लड़कियों की चीखें लड़को का जोश और बढ़ा देती हैं, और जैसे कोई पहली बार पेली जा रही बछिया को जबरदस्त सांड़ छाप लेता है, अगले दोनों पैरों से दबोच लेता है, उसी तरह अपने हाथों से संध्या भौजी को कस के दबोच के, मैं धक्के पे धक्के मार रहा था


चार पांच धक्के के बाद उनके कान में जीभ घुमाते हुए पूछा

" काहें भौजी, मजा आ रहा है "

" अरे स्साले, सपने में भी ऐसा मजा नहीं मिला जो आ जा मिल रहा है, जेके बियहबा तू वो धन्य हो जाई"


और मारे ख़ुशी के भौजी की बात सुन के मैंने उनका मालपुवा अस गाल कचकचा के काट लिया और चिढ़ाया,

" अब तोहार ननद पूछेंगी तो का बताइयेगा "

" इहे की हमारे मायके में एक नंबरी चोदू है, ओहके लगा तोहार बयाना बटा दे दिए हैं, होली के बाद आयी तो तोहरो चुदाई ऐसे ही करी /"

खिलखिलाते हुए भौजी बोलीं और इसी बात पे मैंने दूसरा गाल भी कस के काट लिया। मेरे दांत के निशान कोई रंग तो थे नहीं जो बेसन और साबुन से छूट जाते।

और दोनों जुबना मसलते हुए मेंने एक धक्का और मारा और बोला

" हमरे भौजी का हुकुम हम टाल नहीं सकते, हचक के पेलूँगा, लेकिन एक के साथ एक फ्री "

मेरा इशारा संध्या भाभी ने जो अपनी ननद की बेटी के बारे बताया था, गुड्डी की सबसे छोटी बहन के क्लास वाली, उसकी ओर था,

अब चुदाई सावन के झूले की तरह चल रही थीं, एक ओर से मैं पेंग मारता तो दूसरी ओर से वो कभी झूला धीरे धीरे तो कभी एकदम तेज , सुहागिन साल भर की ब्याहता औरतों को चोदने का यही तो मजा है, पूरा साथ देती हैं और मेरा जैसा नौसिखिया हो बढ़ बढ़ के मजे देने में हिस्सा लेती हैं। संध्या भौजी हंसती हुयी बोलीं

" अरे हमरे ननद के पहले तो वही टांग फैलाएगी, मैं जाती हूँ उनके यहाँ, चूतगंज ( संध्या भौजी अपने नन्द के मोहल्ले चेतगंज को चूतगंज ही कहती थीं ) तो उसी के साथ सोती हूँ, इतनी गर्म है, खुद मेरा हाथ पकड़ के अपनी गुच्ची पे, रात भर गुच्च गुच्च, एक पोर तो ऊँगली का आराम से घोंट लेती है और थोड़ा जोर लगाती हूँ तो दो पोर तर्जनी का,



लेकिन है अभी कोरी कुँवारी, चूँचिया भी बस एकदम कच्ची अमिया, गुड्डी की छुटकी की तरह से, लेकिन एक बात समझ लो लल्ला, ऐसी चूँचिया उठान वाली को चोदने का मजा ही अलग है। कभी नहीं छोड़ना चाहिए, बहुत पाप लगता है, फिर एक बार ओह उम्र वाली की पेल के फाड़ दोगे न तो जिन्नगी भर, "

उनकी ननद की बेटी को तो मैंने नहीं देखा था लेकिन गुड्डी की छुटकी को तो मैंने देखा ही था, मेरी खिंचाई करने में अपनी मम्मी का पूरा साथ दे रही थीं और आज सुबह जिस तरह से उसने छोटे छोटे जोबन की झलक दिखाई थीं,

बस मैंने पूरा बाहर निकाल के ऐसी ताकत से मारा की मोटा सुपाड़ा सीधे संध्या भाभी की बच्चेदानी पे लगा और वो काँप गयीं, बुर उनकी फूलने पिचकने लगी, और मैंने अपनी मन की बात उनसे कह दी, डर जो था,

" भौजी मेरा, थोड़ा, ..."

संध्या भाभी मेरे पूरे घुसे खूंटे को मस्ती से अपनी बिल को सिकोड़ के निचोड़ते बोलीं,

" थोड़ा, किसको बता रहे हो, अरे गदहे का लंड है मनई का नहीं, मनई का पांच छह इंच का होता है तोहार तो बालिश्त से भी, तोहार ममेरी बहन गदहे वाली गली में रहती हैं न तो जरूर तोहार महतारी गदहे के साथ सोई होंगी तभी, लेकिन क्या होगा बहुत होगा थोड़ा सरसो का तेल ज्यादा लगेगा, तो कौन कंजूसी, कमा तो रहे हो, और चीखेगी चिल्लायेगी, तो चीखने देना, यही चीख सोच सोच के तो खुश होगी बाद में "

बगल के बाथरूम से चंदा भाभी की सिकियाँ तेज हो गयी थीं लग रहा था रीत ने उन्हें चूस के झाड़ दिया है और वो आवाजे सुन के मैं और जोश में आ गया और संध्या भाभी भी बस भौजी के मोटे मोटे चूतड़ को पकड़ के मैंने कस के धक्के मारने शुरू कर दिया

" लो भौजी लो ,ये गदहे का लंड " मैंने जोश में बोला,

" दे, मादरचोद, दे, चोद जैसे अपनी महतारी का भोसड़ा चोदता है, देखती हूँ तेरी ताकत "

मेरी ओर मुंह कर के निहुरे निहुरे संध्या भाभी बोली और मैंने कस के उनके होंठ चूस लिए फिर कचकचा के काट लिए,

भौजी की फैली हुयी टाँगे भी अब थोड़ी सिकुड़ गयी थीं, वो प्रेम गली अब पहले से संकरी हो गयी थीं और मूसल रगड़ते, घिसटते दरेररते जा रहा था। मैंने भी तिहरा हमला कर दिया, एक हाथ भौजी की कड़ी कड़ी चूँची मसल रहा था, दूसरी चूँची मेरे होंठों के बीच और दूसरा हाथ मेरा सीधा भौजी की फूलती पिचकती क्लिट पे

धक्के भी लगातार और हर धक्का सीधे बच्चेदानी पे

ओह्ह उफ़ नहीं हाँ और और हाँ ऐसे ही संध्या भाभी बोल रही थीं, एकदम झड़ने के कगार पे और अब मैं भी नहीं रुकने वाला था, थोड़ी देर में वो झड़ने लगीं, जोर जोर से सिसक रही थीं

उईईई ओह्ह्ह नहीं उफ्फ्फ्फ़ हाँ रुक स्साले, उफ्फ्फ उईईईईई उईईई

पर मैं अबकी नहीं रुकने वाला था न स्पीड धीमे करने वाला, एक बार दो बार वो झड़ी होंगी और फिर मैं भी उनके अंदर, ढेर सारी मलाई,


एक बार मेरा झड़ना रुका तो फिर हलके हलके धीरे धीरे और फिर दुबारा बचा खुचा, डॉट बोतल में कस के लगी थीं तब भी रिस रसी के एक दो बूँद बाहर निकल कर जाँघों पे सरकती रेंगती

थोड़ी देर तक हम दोनों ऐसे ही चिपके रहे, संध्या भाभी झुकी, निहुरि और मैं चढ़ा उनके ऊपर, फिर हम दोनों बाथरूम के फ्लोर पे बैठ गए और अब जब संध्या भाभी ने देखा तो शर्मा गयीं

फिर थोड़ी देर बाद अपनी बड़ी बड़ी दीये जैसी आँखों को खोल के उन्होंने मुझे देखा और कस के दबोच के चूम लिया और बोलीं, लाला तुम जितने अनाड़ी दीखते हो उतने हो नहीं।

बगल के बाथरूम से आवजें आनी बंद हो गयी थीं, नहाने धोने और मस्ती के बाद दूबे भाभी, चंदा भाभी और रीत निकल गयी थीं लेकिन यहाँ निकलने का मन न मेरा कर रहा था न संध्या भौजी का और न हम दोनों को कोई जल्दी थीं।



बात संध्या भाभी ने ही शुरू की
वाह कोमल जी

शानदार अपडेट

कहानी का यह मोड़ तो उम्मीद से भी परे है।

सादर
 
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