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फागुन के दिन चार भाग - ३
फगुनाई शाम बनारस की
तेरी मम्मी - ----मम्मी
32,220
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तबतक डिप्टी एस एस आ गए, ... गाडी चलने वाली है और मैं और गुड्डी उतर पड़े। हाँ गुड्डी के कान में गुड्डी की मम्मी ने कुछ समझाया भी।
लौटते समय मैंने उसके उभारों की ओर देखा। हम स्टेशन से बाहर निकल आये थे। और मुझे देखकर मुश्कुराकर उसने दुपट्टा और ऊपर एकदम गले से चिपका लिया और मेरी ओर सरक आई ओर बोली खुश।
“एकदम…” और मैंने उसकी कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया।
----
“हटो ना। देखो ना लोग देख रहे हैं…” वो झिझक के बोली।
“अरे लोग जलते हैं जलते हैं और ललचाते भी हैं…” मैंने अपनी पकड़ और कसकर कर ली।
“किससे जलते हैं…” बिना हटे मुश्कुराकर वो बोली।
“मुझ से जलते हैं की कितनी सेक्सी, खूबसूरत, हसीन…”
मेरी बात काटकर मुश्कुराकर वो बोली- “इत्ता मस्का लगाने की कोई जरूरत नहीं…”
“और ललचाते तुम्हारे…” मैंने उसके दुपट्टे से बाहर निकले किशोर उभारों की ओर इशारा किया।
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“धत्त। दुष्ट…” और उसने अपने दुपट्टे को नीचे करने की कोशिश की पर मैंने मना कर दिया।
“तुम भी ना चलो तुम भी क्या याद करोगे। लोग तुम्हें सीधा समझते हैं…” मुश्कुराकर वो बोली ओर दुपट्टा उसने और गले से सटा लिया।
“मुझसे पूछें तो मैं बताऊँ की कैसे जलेबी ऐसे सीधे हैं…” और मुझे देखकर इतरा के मुश्कुरा दी।
“तुम्हारे मम्मी पापा तो…”
मेरी बात काटकर वो बोली- “हाँ सच में स्टेशन पे तो तुमने,…. मम्मी पापा दोनों ही ना। बहुत खुश थे। मम्मी तो एकदम निढाल थीं। बार बार यही कह रही थीं की तुम न होते,... सच में कोई तुम्हारी तारीफ करता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है…” और उसने मेरा हाथ कसकर दबा दिया।
“सच्ची?”
“सच्ची। लेकिन रिक्शा करो या ऐसे ही घर तक ले चलोगे?” वो हँसकर बोली।
चारों ओर होली का माहौल था। रंग गुलाल की दुकानें सजी थी।
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खरीदने वाले पटे पड़ रहे थे। जगह-जगह होली के गाने बज रहे थे। कहीं कहीं जोगीड़ा वाले गाने। कहीं रंग लगे कपड़े पहने।हम दोनों रिक्शे पे,....
....गलती मेरी ही थी, जैसा की हमेशा होता है। लेकिन गुड्डी अलफ़, चंद्रमुखी से ज्वालामुखी तो नहीं बनी थी लेकिन ज्यादा कसर नहीं थी,...
बात यह थी की मैंने बोल दिया था, तुम्हारी मम्मी,...
बस दुर्वासा की तरह तन गयी भृकुटि, एकदम चुप,... मैंने सोचा क्या गलत बोल दिया, ... लेकिन वो जानती थी की उसके सामने मेरी सोचने के शक्ति थोड़ी कुंद हो जाती थी और चार पांच बार सुना भी चुकी थी, ... मैं जैसे ही बोलता, मैं सोच रहा हूँ,...
तुरंत डांट पड़ती,
"क्यों सोच रहे हो, तुमसे किसी ने कहा सोचने के लिए. ... सोचोगे तो सोच में पड़े रहोगे,
चिंता मत कर चिंतामणि। मैं हूँ न सोचने के लिए, तुमसे जो कहा जैसे कहा जाए बस वैसे करो चुपचाप, और उतना तो हो नहीं पाता बड़े चले हैं सोचने।"
वो जानती थी मैं नहीं सोच पाउँगा, वो क्यों गुस्सा है इसलिए उसने मुंह फुलाए ही बोल दिया।
" ये तुम्हारी मम्मी क्या होता है, मेरी मम्मी, तेरी मम्मी,... " फिर बड़ी मुश्किल से सीधे सीधे उसने हल भी बता दिया,... " मम्मी नहीं बोल सकते हो,
--
--( मेरी आँखों के सामने गुड्डी की,.मम्मी की .. मेरा मतलब मम्मी की तस्वीर आ गयी )
--
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मैं समझ गया, बोल क्यों नहीं सकता था एक शब्द कम ही बोलना पड़ता, मैंने बोल दिया ' मम्मी ' और अपनी गलती मान के कान भी पकड़ लिया और फिर डांट पड़ गयी
" कान क्यों पकडे हो, मैं हूँ न तेरा कान पकड़ने के लिए "
लेकिन मैं सिंगल ट्रैक माइंड, मेरे मुंह से निकल गया,... सिर्फ कान ही पकड़ोगी या कुछ और भी पकड़ोगी।
बिना झझके उसने बोल दिया, " वो भी पकड़ूँगी और कान भी पकड़ूँगी और तेरी उस बहन कम माल, अपने नाम वाली से भी पकड़वाउंगी , खुश। देखो उस का नाम सुन के बांछे खिल गयीं, मम्मी उसके बारे में एकदम सही कहती हैं। "

हुआ ये था की जब हम निकले थे स्टेशन से तो गुड्डी ने कहा की मम्मी तेरी बड़ी तारीफ़ कर रही थीं,... फिर रुक के बोली,... तुम यार चाहे जैसे हो, लेकिन कोई तेरी तारीफ़ करता है तो मुझे भी अच्छा लगता है. और मैं खुश लेकिन मुझे बाद में एक बात याद आयी जब में और गुड्डी निकल रहे थे तो मेरे डिब्बे से उतरने से पहले, उन्होंने गुड्डी को बुला लिया और थोड़ी देर तक कान में कुछ खुसुर फुसुर,... और वो बात मुझे नहीं पच रही थी। बस वही बात मैंने गुड्डी से पूछ ली, तुम्हारी मम्मी डिब्बे से उतरने से पहले कान में क्या कह रही थीं।
बस वहीँ से बात शुरू हुयी, गुड्डी ने ये तो नहीं बताया, गुड्डी की मम्मी ने मेरा मतलब मम्मी ने क्या कहा था हाँ ' तुम्हारी मम्मी ' कहने पर एकदम अलफ़ जरूर हो गयी। मैं एकदम चुप हो गया, पता नहीं मुंह से क्या निकल जाए और ये सुनयना फिर से,... लेकिन
आँखों के सामने, गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी का चेहरा, और,... असल में मुझे ' ढूंढते रह जाओगे ' मैंन चेस्टर ' टाइप की महिलायें एकदम पसंद नहीं थी, दीर्घ स्तना, दीर्घ नितंबा और गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी तो, ३८ + वाली डबल डी कप साइज टाइप, लेकिन पत्थर जैसे कड़े चोली फाड़ते, और ब्लाउज भी हरदम इतना लो कट पहनती थीं की दोनों पहाड़ों के साथ बीच की घाटी भी, आलमोस्ट पूरी दिखती थी, और ब्लाइज भी ज्यादातर स्लीवेल्स और उभारों को कस के दबोचे, ... मैं अक्सर तो आँखे झुकाये रखता था या इधर उधर लेकिन कभी चोरी छुपे अगर आँख वहां चली भी गयी तो चोरी तुरंत पकड़ी जाती और उनका रिस्पांस और घातक होता, या तो आँचल लुढ़क जाता अपने आप और दोनों गोलाइयाँ साफ़ साफ़,... या कुछ देने के बहाने झुक जातीं और पूरी गहराई के साथ दोनों कंचे भी,...

मैं जानता था उन की बदमाशी, लेकिन मेरे सीधे साथे मूसलचंद को नहीं मालूम था वो खड़े होकर एकदम,... और मैं तो चोरी छिपे लेकिन वो मुस्कराते हुए सीधे वहीँ देखती, जैसे कह रही हों ललचाओ ललचाओ, और उनका चिढ़ाना छेड़ना एकदम चौथे गियर में,
आज ही मेरी निगाहों की गलती, वो किचेन से निकली थीं कुछ कहने को, लेकिन पसीने से ब्लाउज एकदम चिपक गया था, वो गोरी गुदाज गोलाइयाँ , उस टाइट झलकौवा ब्लाउज से साफ़ साफ़ दिख रही थीं बस, ललच गया मेरा मन और तुरंत उन्हें अंदाज लग गया, उन्होंने आँचल ब्लाउज से हटा के कमर में बांध लिया जैसे कह रही हों देख ले मन भर के, ...

और बहाना बनाया मेरी थाली में बचे चावल का,...गुड्डी को उन्होंने हुकुम सुनाया,...
" गुड्डी जरा किचेन से मोटका बेलनवा तो ले आना, बेलनवा से पेल के ठेल के पिछवाड़े घुसाय देंगे एक एक चावल "
गुड्डी खिस खिस हंसती रही. और गुड्डी की मम्मी, भाभी और, " एक बार मोटका बेलनवा घुसेड़ूँगी न, तो तोहार पिछवाड़वा, तोहरी अम्मा के भोंसडे से ज्यादा चौड़ा हो जाएगा, न विश्वास हो जब लौटोगे न तो उनका साया पलट के देख लेना,... सोच लो नहीं तो चावल ख़त्म करो "
मैं समझ रहा था ये उनका जवाब था मेरे मूसलचंद को ललचाने का, ...
लेकिन अगर मैं उन्हें मम्मी कहूंगा तो शायद गारी सुनने से, और उनकी इन शरारतों से बच जाऊं,... तो मैंने बहुत सोच के गुड्डी से मुस्कराते हुए बोला
" सुन यार मम्मी को मम्मी बोलने में मुझे क्या प्रॉब्लम लेकिन उनका,... "
प्राब्लम गुड्डी के साथ थी, एक तो आज तक उसने मेरी कोई बात पूरी नहीं होने दी, दूसरा वो समझ जाती थी आगे मैं क्या बोलूंगा और उसकी जबरदस्त काट होती थी उसके पास। आज भी यही हुआ,...
" सुन यार बोलना तो तुझे मम्मी ही पड़ेगा और तू ये अगर सोचता है तू गारी से बच जाएगा, मम्मी बोल के, तेरी माँ बहनो पे गदहे घोड़े नहीं चढेगे, हमारे गांव के और बनारस के मरद नहीं चढ़ेंगे और तेरी रगड़ाई नहीं होगी, तो भूल जा, वो तो और जबरदस्त होगी। कुछ लोग गारी सुनने के लिए ही बने होते हैं, रगड़े जाने के लिए बने होते हैं और तुम वही हो। तेरी किस्मत थी, मम्मी को कानपूर जाना था, और वो भी रात वाली ट्रेन से वरना तेरा रेप तय था आज. "
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गुड्डी के साथ एक चक्कर और था, कोई बात पूरी नहीं बताती थी फिर चिरौरी करो, बिनती करो तो शेष भाग पता चलता था।
पिछली बार भी मेरी चोरी पकड़ी गयी थी, गर्मी बहुत थी, सफ़ेद स्लीवेल्स ब्लाउज पसीने से चिपका और अंदर ब्रा भी नहीं,... तम्बू में बम्बू तनना ही था,

मेरे जाने के बाद उन्होंने गुड्डी से बोला,
" बहुत ललचा रहा था बेचारा "
मेरी हालत गुड्डी ने भी देख ली थी, वो मम्मी को छेड़ते बोली,
" इतना बेचारे पर तरस आ रहा है तो दे क्यों नहीं देती जो देख के ललचाता रहता है "
" आने दो अगली बार, उसके बस का तो कुछ है नहीं, मैं ही उसे रेप कर दूंगी " गुड्डी को चिढ़ाते वो बोलीं,...

और अब गुड्डी मुझे छेड़ रही थी लेकिन बच गए तुम.
पर गुड्डी अचानक सीरयस हो गयी और उसने काम की बात बोली,... स्ट्रेटेजिक थिंकिंग में गुड्डी का जवाब नहीं था,
फगुनाई शाम बनारस की
तेरी मम्मी - ----मम्मी
32,220
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तबतक डिप्टी एस एस आ गए, ... गाडी चलने वाली है और मैं और गुड्डी उतर पड़े। हाँ गुड्डी के कान में गुड्डी की मम्मी ने कुछ समझाया भी।
लौटते समय मैंने उसके उभारों की ओर देखा। हम स्टेशन से बाहर निकल आये थे। और मुझे देखकर मुश्कुराकर उसने दुपट्टा और ऊपर एकदम गले से चिपका लिया और मेरी ओर सरक आई ओर बोली खुश।
“एकदम…” और मैंने उसकी कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया।
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“हटो ना। देखो ना लोग देख रहे हैं…” वो झिझक के बोली।
“अरे लोग जलते हैं जलते हैं और ललचाते भी हैं…” मैंने अपनी पकड़ और कसकर कर ली।
“किससे जलते हैं…” बिना हटे मुश्कुराकर वो बोली।
“मुझ से जलते हैं की कितनी सेक्सी, खूबसूरत, हसीन…”
मेरी बात काटकर मुश्कुराकर वो बोली- “इत्ता मस्का लगाने की कोई जरूरत नहीं…”
“और ललचाते तुम्हारे…” मैंने उसके दुपट्टे से बाहर निकले किशोर उभारों की ओर इशारा किया।
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“धत्त। दुष्ट…” और उसने अपने दुपट्टे को नीचे करने की कोशिश की पर मैंने मना कर दिया।
“तुम भी ना चलो तुम भी क्या याद करोगे। लोग तुम्हें सीधा समझते हैं…” मुश्कुराकर वो बोली ओर दुपट्टा उसने और गले से सटा लिया।
“मुझसे पूछें तो मैं बताऊँ की कैसे जलेबी ऐसे सीधे हैं…” और मुझे देखकर इतरा के मुश्कुरा दी।
“तुम्हारे मम्मी पापा तो…”
मेरी बात काटकर वो बोली- “हाँ सच में स्टेशन पे तो तुमने,…. मम्मी पापा दोनों ही ना। बहुत खुश थे। मम्मी तो एकदम निढाल थीं। बार बार यही कह रही थीं की तुम न होते,... सच में कोई तुम्हारी तारीफ करता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है…” और उसने मेरा हाथ कसकर दबा दिया।
“सच्ची?”
“सच्ची। लेकिन रिक्शा करो या ऐसे ही घर तक ले चलोगे?” वो हँसकर बोली।
चारों ओर होली का माहौल था। रंग गुलाल की दुकानें सजी थी।
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....गलती मेरी ही थी, जैसा की हमेशा होता है। लेकिन गुड्डी अलफ़, चंद्रमुखी से ज्वालामुखी तो नहीं बनी थी लेकिन ज्यादा कसर नहीं थी,...
बात यह थी की मैंने बोल दिया था, तुम्हारी मम्मी,...
बस दुर्वासा की तरह तन गयी भृकुटि, एकदम चुप,... मैंने सोचा क्या गलत बोल दिया, ... लेकिन वो जानती थी की उसके सामने मेरी सोचने के शक्ति थोड़ी कुंद हो जाती थी और चार पांच बार सुना भी चुकी थी, ... मैं जैसे ही बोलता, मैं सोच रहा हूँ,...
तुरंत डांट पड़ती,
"क्यों सोच रहे हो, तुमसे किसी ने कहा सोचने के लिए. ... सोचोगे तो सोच में पड़े रहोगे,
चिंता मत कर चिंतामणि। मैं हूँ न सोचने के लिए, तुमसे जो कहा जैसे कहा जाए बस वैसे करो चुपचाप, और उतना तो हो नहीं पाता बड़े चले हैं सोचने।"
वो जानती थी मैं नहीं सोच पाउँगा, वो क्यों गुस्सा है इसलिए उसने मुंह फुलाए ही बोल दिया।
" ये तुम्हारी मम्मी क्या होता है, मेरी मम्मी, तेरी मम्मी,... " फिर बड़ी मुश्किल से सीधे सीधे उसने हल भी बता दिया,... " मम्मी नहीं बोल सकते हो,
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--( मेरी आँखों के सामने गुड्डी की,.मम्मी की .. मेरा मतलब मम्मी की तस्वीर आ गयी )
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लेकिन मैं सिंगल ट्रैक माइंड, मेरे मुंह से निकल गया,... सिर्फ कान ही पकड़ोगी या कुछ और भी पकड़ोगी।
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हुआ ये था की जब हम निकले थे स्टेशन से तो गुड्डी ने कहा की मम्मी तेरी बड़ी तारीफ़ कर रही थीं,... फिर रुक के बोली,... तुम यार चाहे जैसे हो, लेकिन कोई तेरी तारीफ़ करता है तो मुझे भी अच्छा लगता है. और मैं खुश लेकिन मुझे बाद में एक बात याद आयी जब में और गुड्डी निकल रहे थे तो मेरे डिब्बे से उतरने से पहले, उन्होंने गुड्डी को बुला लिया और थोड़ी देर तक कान में कुछ खुसुर फुसुर,... और वो बात मुझे नहीं पच रही थी। बस वही बात मैंने गुड्डी से पूछ ली, तुम्हारी मम्मी डिब्बे से उतरने से पहले कान में क्या कह रही थीं।
बस वहीँ से बात शुरू हुयी, गुड्डी ने ये तो नहीं बताया, गुड्डी की मम्मी ने मेरा मतलब मम्मी ने क्या कहा था हाँ ' तुम्हारी मम्मी ' कहने पर एकदम अलफ़ जरूर हो गयी। मैं एकदम चुप हो गया, पता नहीं मुंह से क्या निकल जाए और ये सुनयना फिर से,... लेकिन
आँखों के सामने, गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी का चेहरा, और,... असल में मुझे ' ढूंढते रह जाओगे ' मैंन चेस्टर ' टाइप की महिलायें एकदम पसंद नहीं थी, दीर्घ स्तना, दीर्घ नितंबा और गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी तो, ३८ + वाली डबल डी कप साइज टाइप, लेकिन पत्थर जैसे कड़े चोली फाड़ते, और ब्लाउज भी हरदम इतना लो कट पहनती थीं की दोनों पहाड़ों के साथ बीच की घाटी भी, आलमोस्ट पूरी दिखती थी, और ब्लाइज भी ज्यादातर स्लीवेल्स और उभारों को कस के दबोचे, ... मैं अक्सर तो आँखे झुकाये रखता था या इधर उधर लेकिन कभी चोरी छुपे अगर आँख वहां चली भी गयी तो चोरी तुरंत पकड़ी जाती और उनका रिस्पांस और घातक होता, या तो आँचल लुढ़क जाता अपने आप और दोनों गोलाइयाँ साफ़ साफ़,... या कुछ देने के बहाने झुक जातीं और पूरी गहराई के साथ दोनों कंचे भी,...
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आज ही मेरी निगाहों की गलती, वो किचेन से निकली थीं कुछ कहने को, लेकिन पसीने से ब्लाउज एकदम चिपक गया था, वो गोरी गुदाज गोलाइयाँ , उस टाइट झलकौवा ब्लाउज से साफ़ साफ़ दिख रही थीं बस, ललच गया मेरा मन और तुरंत उन्हें अंदाज लग गया, उन्होंने आँचल ब्लाउज से हटा के कमर में बांध लिया जैसे कह रही हों देख ले मन भर के, ...
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और बहाना बनाया मेरी थाली में बचे चावल का,...गुड्डी को उन्होंने हुकुम सुनाया,...
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गुड्डी खिस खिस हंसती रही. और गुड्डी की मम्मी, भाभी और, " एक बार मोटका बेलनवा घुसेड़ूँगी न, तो तोहार पिछवाड़वा, तोहरी अम्मा के भोंसडे से ज्यादा चौड़ा हो जाएगा, न विश्वास हो जब लौटोगे न तो उनका साया पलट के देख लेना,... सोच लो नहीं तो चावल ख़त्म करो "
मैं समझ रहा था ये उनका जवाब था मेरे मूसलचंद को ललचाने का, ...
लेकिन अगर मैं उन्हें मम्मी कहूंगा तो शायद गारी सुनने से, और उनकी इन शरारतों से बच जाऊं,... तो मैंने बहुत सोच के गुड्डी से मुस्कराते हुए बोला
" सुन यार मम्मी को मम्मी बोलने में मुझे क्या प्रॉब्लम लेकिन उनका,... "
प्राब्लम गुड्डी के साथ थी, एक तो आज तक उसने मेरी कोई बात पूरी नहीं होने दी, दूसरा वो समझ जाती थी आगे मैं क्या बोलूंगा और उसकी जबरदस्त काट होती थी उसके पास। आज भी यही हुआ,...
" सुन यार बोलना तो तुझे मम्मी ही पड़ेगा और तू ये अगर सोचता है तू गारी से बच जाएगा, मम्मी बोल के, तेरी माँ बहनो पे गदहे घोड़े नहीं चढेगे, हमारे गांव के और बनारस के मरद नहीं चढ़ेंगे और तेरी रगड़ाई नहीं होगी, तो भूल जा, वो तो और जबरदस्त होगी। कुछ लोग गारी सुनने के लिए ही बने होते हैं, रगड़े जाने के लिए बने होते हैं और तुम वही हो। तेरी किस्मत थी, मम्मी को कानपूर जाना था, और वो भी रात वाली ट्रेन से वरना तेरा रेप तय था आज. "
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पिछली बार भी मेरी चोरी पकड़ी गयी थी, गर्मी बहुत थी, सफ़ेद स्लीवेल्स ब्लाउज पसीने से चिपका और अंदर ब्रा भी नहीं,... तम्बू में बम्बू तनना ही था,
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मेरे जाने के बाद उन्होंने गुड्डी से बोला,
" बहुत ललचा रहा था बेचारा "
मेरी हालत गुड्डी ने भी देख ली थी, वो मम्मी को छेड़ते बोली,
" इतना बेचारे पर तरस आ रहा है तो दे क्यों नहीं देती जो देख के ललचाता रहता है "
" आने दो अगली बार, उसके बस का तो कुछ है नहीं, मैं ही उसे रेप कर दूंगी " गुड्डी को चिढ़ाते वो बोलीं,...
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पर गुड्डी अचानक सीरयस हो गयी और उसने काम की बात बोली,... स्ट्रेटेजिक थिंकिंग में गुड्डी का जवाब नहीं था,
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