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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
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मैं, गुड्डी और होटल
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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट हैआपरेशन शुरू
15 मिनट हो गये थे। सीढ़ी सीधी थी लेकिन अन्धेरी, जाले, जगह-जगह कचडा। थोड़ी देर में आँखें अन्धेरे की अभ्यस्त हो गई थी। मेरे पास सिर्फ 10 मिनट थे काम को अन्जाम देने के लिये।
सीढ़ी दो मिनट में पार कर ली। साथ में कितनी सीढ़ीयां है रास्ते में, कौन सी सीढ़ी टूटी है, ऊपर के हिस्से पे सीढ़ी बस बन्द थी। लेकिन अन्दर की ओर इतना कबाड़, टूटी कुर्सियां, एक्जाम की कापियों के बन्डल, रस्सी। उसे मैंने एक किनारे कर दिया। लौटते हुये बहुत कम टाइम मिलने वाला था।
क्लास के पीछे के बरामदे में भी अन्धेरा था।
मैं उस कमरे के बाहर पहुँचा और दरवाजे से कान लगाकर खड़ा हो गया। हल्की-हल्की पदचाप सुनायी दे रही थी, बहुत हल्की। मैंने दरवाजे को धक्का देने की कोशिश कि। वो बस हल्के से हिला। मैंने नीचे झुक के देखा। दरवाजे में ताला लगा था।
गुड्डी ने तो कहा था कि ये दरवाजा खुला रहता है। अब।
तब तक मैंने देखा मोबाइल का नेटवर्क चला गया। लाइट भी चली गई। अन्दर कमरें में घुप्प अन्धेरा छा गया।
लाउडस्पीकर पर जोर से चुम्मन की माँ की आवाज आने लगी- “खुदा के लिये इन लड़कियों को छोड़ दो। इन्होंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? अल्लाह तुम्हारा गुनाह माफ कर देंगें। पुलिस के साहब लोग भी। बाहर आ जाओ…”
प्लान दो शुरू हो चुका था। 17 मिनट हो गये थे। मेरे पास सिर्फ 8 मिनट थे।
मैंने गुड्डी की चिमटी निकाली और ताला खोलकर हल्के से दरवाजा खोल दिया, थोड़ा सा।
घुप्प अन्धेरा। थोड़ी देर में मेरी आँखें अन्धेरे की आदी हो गई। एक बेन्च पे तीन लड़कियां, सिकुड़ी सहमी, गुन्जा की फ्राक मैंने पहचान ली। गुन्जा बीच में थी। बेन्च के ठीक नीचे था बाम्ब। बिजली की हल्की सी रोशनी जल बुझ रही थी। कोई तार किसी लड़की से नहीं बन्धा था। दीवाल के पास एक आदमी खड़ा था जो कभी लड़कियों की ओर, कभी दरवाजे की ओर देखता।
बाहर लाउडस्पीकर पर आवाज और तेज हो गई थी। कभी चुम्मन की माँ की आवाज। कभी पुलिस की मेगाफोन पे वार्निग। उस आदमी का ध्यान अब पूरी तरह बाहर से आती आवाजों पे था।
जमीन पर क्राल करते समय मुझे ये भी सावधानी रखनी पड़ रही थी की जो एक छोटा सा पिन्जड़ा मेरे पास था, वो जमीन से ना टकराये। उसमें दो मोटे-मोटे चूहे थे।
सबसे पहले गुन्जा ने मुझे देखा। वो चीखती उसके पहले मैंने उसे चुप रहने का इशारा किया और उंगली से समझाया की बाकी दोनों लड़कियों को भी समझा दे की पहले की तरह बैठी रहें रियेक्ट ना करें।
मुझे पहले बाम्ब को समझना था।
मैं उससे बस दो फीट दूर था। एक चीज मैं तुरन्त समझ गया की इसमें कोई टाईमर डिवाइस नहीं है। ना तो घड़ी की टिक-टिक थी ना वो सर्किटरी। तो सिर्फ ये हो सकता है की किसी तार से इसे बेन्च से बान्धा हो और जैसे ही बेन्च पर से वजन झटके से कम हो। बाम्ब ऐक्टिवेट हो जाय।
बहुत मुश्किल था। मैं खिड़की से चिपक के खड़ा था। कोई डाइवर्ज़न क्रियेट करना होगा।
मैंने गुन्जा को इशारे से समझा दिया। मेरे जेब में पायल पड़ी थी, जो सुबह गुड्डी और रीत ने मुझे पहनायी थी और घर से निकलते समय भी नहीं उतारने दिया था। बाजार में पहुँचकर मैंने वो अपनी जेब में रख ली थी।
चूहे के पिंजरे से मैंने पनीर का एक टुकड़ा निकाला और पायल में लपेट के, पूरी ताकत से बाहर की ओर अधखुले दरवाजे की ओर फेंका। झन्न की आवाज हुई। दरवाजे से लड़कर पायल अधखुले दरवाजे के बाहर जा गिरी-
“झन-झन-झन…”
“कौन है?” वो आदमी चिल्लाया और बाहर दरवाजे की ओर लपका जिधर से पायल की आवाज आई थी।
इतना डायवर्ज़न काफी था। मैंने गुन्जा को पहले ही इशारा कर रखा था।
उसके दायीं ओर वाली लड़की को पहले उठकर मेरे पास आना था। वो झटके से उठकर मेरे पास आई। एक पल के लिये मेरे दिल कि धड़कन रुक सी गई थी। कहीं बाम्ब।
लेकिन कुछ नहीं हुआ।
और जब वो मेरे पास आई तो मेरे दिल की धड़कन दो पल के लिये रुक गई।
महक,... लम्बी, गोरी, सुरू के पेड़ जैसी छरहरी और सबसे बढ़कर उसकी फिगर। लेकिन अभी उसका टाईम नहीं था। मैंने उसके कान में फुसफुसाया-
“दिवाल से सटकर जाना पीछे वाले दरवाजे पे। इसके बाद गुन्जा के बगल की दूसरी लड़की को मैं उठाऊँगा। तुम दरवाजे पे उस लड़की का इंतेजार करना और पीछे वाली सीढ़ी से…”
महक को सीढ़ी का रास्ता मालूम था। उसने मुझे आँखों में अश्योर किया और दीवाल से सटे-सटे बाहर की ओर। मैं डर रहा था की जब वो दरवाजे से बाहर निकले तब कहीं कोई आवाज ना हो?
और मैंने एक चूहा छोड़ दिया।
वो आदमी दरवाजे के बाहर खड़ा था, पनीर का टुकड़ा उसके पैरों के पास, और पल भर में चूहा वहीं।
वो जोर से उछला- “चूहा…”
और महक दरवाजे के पार हो गई।
बाहर से लाउडस्पीकर की आवाजें बन्द हो गई थी और अब फायर ब्रिगेड वाले वाटर कैनन छोड़ रहे थे।
बन्द होने पर भी कुछ पानी बाहर के बरामदे में आ रहा था।
वो आदमी फिर बेचैन होकर बाहर की ओर गया और फिर पायल, पनीर का टुकड़ा और चूहा। और अबकी चूहे ने उसे काट लिया।
वो चीखा और अब दूसरी लड़की दिवार से सटकर बाहर की ओर।
बहुत ही शानदार लाज़वाब अपडेट है तीनो लड़कियों को बचा लिया लेकिन खुद को चाकू लग गयाहोस्टेज रिज्कयूड
वो चीखा और अब दूसरी लड़की दिवार से सटकर बाहर की ओर।
चूहे हमेशा दिवार से सटकर चलते हैं और अंधेरे में देख सकते हैं। जो चूहे मैं लाया था इनके दांत बड़े तीखे होते हैं। ये बात उस आदमी को भी मालूम थी और वो दीवार के नजदीक नहीं आ सकता था। लेकिन अब मामला फँस गया।
अभी तक बेन्च पे कम से कम गुन्जा का वजन था। लेकिन उसके हटने के बाद। मैंने उसे इशारा किया, और वो एकदम बेन्च के किनारे सरक कर बैठी थी, बस जस्ट टिकी थी। दूसरे डाईवर्ज़न। काठ की हान्डी एक बार चढ़ती है, और मैं दो बार चढ़ा चुका था, और मेरे पास अब ना तो पायल बची थी ना चूहे।
वो आदमी अब और एलर्ट होकर अन्दर की ओर देख रहा था। जैसे ही वो रियलाईज करता की दो लड़कियां गायब हैं, तो मेरे लिये मुश्किलें टूट पड़ती।
क्या करूं? क्या करूं? मैं सोच रहा था। तब तक जोरदार आवाज हुई- “बूम। बूम…”
मैं समझ गया ये डमी ग्रेनेड है। धुआँ और आवाज। लेकिन उसने बरामदे में शीशा तोड़ दिया था और उसी के रास्ते वाटर कैनन का पानी।
गुंजा बस टिकी बैठी थी और अब दुबारा मौका नहीं मिलने वाला था।
मेरे इशारे के पहले ही, वो मेरी ओर कूद पड़ी। और मैं स्लिप के फील्डर की तरह पहले से तैयार। मैंने उसे कैच किया और उसी के साथ रोल करते हुये जमीन पर दरवाजे की ओर।
बाम्ब नहीं फूटा।
लेकिन एक दूसरा धमाका हो गया।
कमरे में एक दूसरा आदमी दाखिल हो गया-
“क्या हो रहा है यहां? तू नीचे जा। अब लगता है की टाईम आ गया है…”
और उसने लाइटर निकालकर जला ली। और जैसे ही लाईटर की रोशनी बेन्च की ओर पड़ी। बेन्च खाली, चिल्लाया-
“लड़कियां कहां गईं?” देख जायेंगी कहां? यहीं कहीं होगीं, ढूँढ़ जल्दी…”
मैं और गुन्जा दम साधे फर्श पे थे, और लाइटर की रोशनी हम लोगों की ओर भी आ गई। एक चाकू तेजी से। हवा में लहराता। मैं सिर्फ इतना कर सका की रोल करके मैंने गुन्जा को अपने नीचे कर लिया। पूरी तरह मेरे नीचे दबी, चारों ओर मेरी बांहें, पैर।
चाकू मेरी बांह में लगा और अबकी बार वो खरोंच नहीं थी, घाव थोड़ा गहरा था। खून तेजी से निकलने लगा।
मैंने गुंजा से बोला- “तू भाग। बाकी लड़कियां पीछे वाली सीढ़ी पे खड़ी होंगी। तू भी वहीं खड़ी होकर मेरा इंतजार करना। मैं रोकता हूँ इसको…”
हम लोग दरवाजे के पास ही थे। गुंजा सरक कर, दरवाजे के बाहर निकल गई और दौड़ती हुई सीढ़ी की ओर।
वो आदमी मेरे पास आ चुका था। लाईटर बुझ चुका था। लेकिन उस अन्धेरे में भी। उसने एक बड़ा चाकू जो निकाला, उसकी चमक साफ दिख रही थी।
वो आदमी-
“क्यों साले, किसका आशिक है तू? उस महक का। बुरचोदी, उसकी बहन तो बच गई ये नहीं बचने वाली मेरे हाथ से। या गुंजा का? अब स्वर्ग में जाकर मिलना महक से। घबड़ाना मत दो-चार महीने मजे लेकर उसे भी भेज दूंगा तेरे पास, ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा…”
और उसने चाकू ऊपर की ओर उठाया।
मैं जमीन पे गिरा था, उसके पैरों के पास।
गुड्डी से जो मैंने बाल वाला कांटा लिया था और उसने मजाक में मेरे बालों में खोंस दिया था। मेरे हाथ में था।
खच्च। खच्च। खच्च। दो बार दायें पैर में एक बार बायें पैर में।
वो आदमी लड़खड़ाकर गिर पड़ा। उठते हुये मैंने उसके दायें हाथ की मेन आर्टरी में, पूरी ताकत से कांटा चुभोया और खून छल-छल बहने लगा। निकलते-निकलते मैंने देखा कि एक मोबाइल फर्श पे गिरा है। मैंने उसे तुरन्त उठा लिया और कमरे के बाहर।
उसी समय एक आँसू गैस का शेल खिड़की तोड़ता हुआ कमरे में। 20 मिनट हो चुका था। मुझे 5 मिनट में बाहर निकलकर आल क्लियर का मेसेज देना था, वरना कमांडो अन्दर। लेकिन ज्यादा तुरन्त की समस्या ये थी। ये दोनों पीछा तो करेंगे ही कैसे उसे कम से कम 5-10 मिनट के लिये डिले किया जाय।
दरवाजा बन्द करके मैंने टूटा हुआ ताला उसमें लटका दिया- ऐडवांटेज एक मिनट।
मैंने गुड्डी से जो चूड़ियां ली थी, सीढ़ी की उल्टी डायरेक्शन में मैंने बिखरा दी और कुछ एक कमरे के सामने। अगर वो कन्फुज हुये तो- ऐडवांटेज दो मिनट।
मैं वापस दौड़ता हुआ सीढ़ी की ओर। तीनों लड़कियां सीढ़ी के पार खड़ी थी।
महक ने बोला- “चलें नीचे?”
मैंने कहा- “अभी नहीं…” और सीढ़ी का दरवाजा बन्द कर दिया।
पीछे से जोर-जोर से दरवाजा खड़खड़ाने की आवाज आ रही थी।
बहुत ही शानदार और मजेदार अपडेट था ऐसी स्थिति में भी नैन मटका और जीजा साली की मस्तियां चल रही है महक तो जीजा पर फिदा हो गई हैसीढी पर फायरिंग
मैं वापस दौड़ता हुआ सीढ़ी की ओर। तीनों लड़कियां सीढ़ी के पार खड़ी थी।
महक ने बोला- “चलें नीचे?”
मैंने कहा- “अभी नहीं…” और सीढ़ी का दरवाजा बन्द कर दिया।
पीछे से जोर-जोर से दरवाजा खड़खड़ाने की आवाज आ रही थी।
मैंने बोला- “ये जो कापियों का बन्डल रखा है ना उसे उठा-उठाकर यहां रखो…”
वो बोली- “मेरा नाम महक है। महक दीप…”
मैंने कहा- “मुझे मालूम है। लेकिन प्लीज जरा जल्दी…” और जल्दी-जल्दी कापियों से जो बैरीकेडिंग हो सकती थी किया।
तीसरी लड़की से मैंने रस्सी के लिये इशारा किया और उसने हाथ बढ़ाकर रस्सी पास कर दी। ऊपर की सिटकिनी से बोल्ट तक फिर एक क्रास बनाते हुये। बीच में जो भी टूटी कुर्सियां, फर्नीचर सब कुछ, कम से कम 5-6 मिनट तक इसे होल्ड करना चाहिये।
तब तक दो बार पैरों से मारने की और फिर धड़ाम की आवाज आई। जिस कमरे में इन्हें होस्टेज बनाकर रखा था, और जिसे मैंने बाहर से बन्द कर दिया था, टूटा ताला लटका कर। उसका दरवाजा टूट गया था।
मैंने तीनों से बोला- “भागो नीचे। सम्हलकर। चौथी सीढ़ी टूटी है। 11वीं के ऊपर छत नीची है…”
महक ने उतरते हुये जवाब दिया- “मालूम है मालूम है। स्कूल बंक करने का फायदा…”
दौड़ते हुये कदमों की आवाज, सीधे सीढ़ी के दरवाजे की ओर से आ रही थी। मेरा चूड़ी वाली ट्रिक फेल हो गई थी। मेरे दिमाग की बत्ती जली, जो मेरा खून गिर रहा होगा। अन्धेरे में उससे अच्छा ट्रेल क्या मिलेगा। और वही हुआ।
हमारे नीचे पहुँचने से पहले ही सीढ़ी के दरवाजे पे हमला शुरू हो गया था।
इसका मतलब कि अब दोनों साथ थे, जिसके पैर में मैंने कांटा चुभोया था उसके पैर में इतनी ताकत तो होगी नहीं।
और तब तक गोली की आवाज। गोली से वो दरवाजे का बोल्ट तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन मुझे ये डर था की कहीं वो इन लड़कियों को ना लग जाये।
मैंने बोला- “पीठ दीवाल से सटाकर चुपचाप…”
सब लाइन में खड़े हो गये। दिवाल से चिपक के और अगले ही पल अगली गोली वहीं से गुजरी जहां हम दो पल पहले थे। वो जाकर सामने वाले दरवाजे में पैबस्त हो गई। सबसे आगे गुंजा थी, पीछे वो दूसरी लड़की और सबसे अन्त में महक और मैं, एक दूसरे का हाथ पकड़े। गोली की आवाज सुनकर महक कांप गई और उसने कसकर मेरा हाथ भींच लिया और मैंने भी उसी तरह जवाब में उसका हाथ दबा दिया।
महक मुझे देखकर मुश्कुरा दी, और मैं भी मुश्कुरा दिया। अब हम लोग सीढ़ी के नीचे वाले हिस्से में थे, जहां निचले दरवाजे से छनकर रोशनी आ रही थी। मुझे देखकर महक मीठी-मीठी मुश्कुराती रही और मैं भी। इत्ती प्यारी सुन्दर कुड़ी मुश्कुराये और कोई रिस्पान्स ना दे? गुनाह है।
तब तक महक की निगाह मेरे हाथ पे पड़ी वो चीखी- “उईईई… कितना खून?”
अब मेरी नजर भी हाथ पर पड़ी। मैं इतना तो जानता था की चोट हड्डी में नहीं है वरना हाथ काम के लायक नहीं रहता। लेकिन खून लगातार बह रहा था। मेरी बांह और बायीं साईड की शर्ट खून से लाल हो गई थी। महक ने अपना सफेद दुपट्टा निकाला और एक झटके में फाड़ दिया। और आधा दुपट्टा मेरी चोट पे बांध दिया। खून अभी भी रिस रहा था लेकिन बहना बहुत कम हो गया था।
तब तक दुबारा गोली की आवाज और मैंने महक को खींचकर अपनी ओर। अचानक मैंने रियलाइज किया की मेरे हाथ उसके रूई के फाहे ऐसे उभार पे थे। मैंने झट से हाथ हटा लिया और बोला- “सारी…”
महक ने एक बार फिर मेरा हाथ खींचकर वहीं रख लिया और बोली- “किस बात की सारी? नो थैन्क नो सारी। वी आर फ्रेन्डस…”
मैंने मोबाइल की ओर देखा। सिर्फ दो मिनट बचे थे। अगर मैंने आल क्लियर ना दिया तो इसी रास्ते से मिलेट्री कमान्डो और हम लोग क्रास फायर में। नेटवर्क अभी भी गायब था। मैंने बीपर निकालकर मेसेज दिया। ये सीधे डी॰बी॰ को मिलता। सिर्फ चार सिढ़ियां बची थी। दीवाल से पीठ सटाये-सटाये। हम नीचे उतरे।
ऊपर से जो गोलियां चली थी, उससे नीचे सीढ़ी के दरवाजे में अनेक छेद हो गये थे। काफी रोशनी अंदर आ रही थी। पहली बार हम लोगों ने चैन की सांस ली, और पहली बार हम चारों ने एक दूसरे को देखा।
महक ने अपनी नीली-नीली आँखें नचाकर कहा- “आप हो कौन जी? इत्ते हैन्डसम पुलिस में तो होते नहीं। मिलेट्री में। लेकिन ना पिस्तौल ना बन्दूक…”
गुंजा आगे बढ़कर आई- “मेरे जीजू है यार। जीजू ये है। …”
“महक…” उसने खुद हाथ बढ़ाया और मैंने हाथ मिला लिया।
“मैं जैसमिन…” तीसरी लड़की बोली और अबकी मैंने हाथ बढ़ाया।
महक ने हँसकर कहा- “हे तेरे जीजू तो मेरे भी जीजू…”
जैसमिन बोली- “और मेरे भी…”
“एकदम…” गुंजा बोली- “लेकिन आपको ये कैसे पता चला की मैं यहां फँसी हूँ?”
“अरे यार सालियों को जीजा के अलावा और कहीं फँसने की इजाजत नहीं है…” मैंने कसकर महक और गुंजा को दबाते हुये कहा।
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट हैबूम --- बॉम्ब
मैं बात उन सबसे कर रहा था, लेकिन मेरी निगाह बार-बार ऊपर और नीचे के दरवाजों पे दौड़ रही थी। मुझे ये डर लग रहा था की अभी तो हम सब दिवाल से सटे खड़े हैं। लेकिन जब हम नीचे वाले दरवाजे पे खड़े होंगे अगर उस समय उन सबों ने गोली चलाई, तो हमारी पीठ उनकी ओर होगी। बहुत मुश्किल हो जायेगी। मैं इसलिये टाइम पास कर रहा था की। ऊपर से वो दोनों क्या करते हैं। मुझे एक तरकीब सूझी। कुछ रिस्क तो लेना ही था।
मैं- “तुम तीनों इसी तरह दीवार से चिपक के खड़ी रहो…” और मैं झुक के नीचे वाले दरवाजे के पास गया और ऊपर की ओर देख रहा था।
महक ने आह्ह… भरी- “काश इस निगोड़ी दीवाल की जगह ऐसे हैन्डसम जीजू के साथ सटकर खड़ा होना पड़ता…”
गुंजा बोली- “अरी सालियों वो मौका भी आयेगा। ज्यादा उतावली ना हो…”
एक मिनट तक जब कुछ नहीं हुआ तो मुझे लग गया कि कम से कम अब वो ऊपर दरवाजे के पीछे नहीं हैं। मैंने मुड़कर दरवाजे को खोलने की कोशिश की। वो नहीं खुला।-मैंने तो दरवाजा बन्द नहीं किया था। नीचे झुक के एक छेद से मैंने देखने की कोशिश की। तो देखा की बाहर एक ताला लटक रहा था।
मेरी ऊपर की सांस ऊपर, नीचे की नीचे। ये क्या हुआ? दरवाजा किसने बन्द किया? ड्राईवर को तो मैं बोलकर गया था की देखते रहने को। अब।
लड़कियां जो चुहल कर रही थी। वो मैं जानता था की चुहुल कम डर भगाने का तरीका ज्यादा है। लेकिन अब मेरे दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया था, बाहर से दरवाजा बन्द और ऊपर से ताला। जब कि तय यही हुआ था की हम लोगों को इधर से ही निकलना है।
“कौन हो सकता है वो?” मेरा दिमाग नहीं सोच पा रहा था। मुझे याद आया, अगर दिमाग काम करना बन्द कर दे तो दिल से काम लो, और दिमाग की बत्ती तुरन्त जल गई।
पहला काम- सेफ्टी फर्स्ट। स्पेशली जब साथ में तीन लड़कियां हैं।
तो खतरा किधर से आ सकता है? दरवाजे से, ऊपर से या नीचे से? इसलिये दीवाल के सहारे रहना ही ठीक होगा और डेन्जर का एक्स्पोजर कम करने के लिये। चार के बजाय दो की फाइल में, और फाइल में, एक आगे एक पीछे।
मैं महक के पास गया। और बोला- “चलो तुम कह रही थी ना की दीवाल के बजाय जीजू के तो मैं तुम्हारे आगे खड़ा हो जाता हूँ और गुंजा तुम जैसमिन के आगे…”
महक बोली- “नहीं नहीं। “मैं आपके आगे खड़ी होऊंगी…” और मेरे आगे आकर खड़ी हो गई।
मैं उसकी कमर को पकड़े था की गुन्जा बोली- “जीजू आप गलत जगह पकड़े हैं। थोड़ा और ऊपर…”
महक ने खुद मेरा हाथ पकड़कर अपने एक उभार पे रख दिया और गुंजा की ओर देखकर बोला- “अब ठीक है ना। अब तू सिर्फ जल, सुलग। इत्ते खूबसूरत सेक्सी जीजू को छिपाकर रखने की यही सजा है…”
मैं कान से उनकी बातें सुन रही था, लेकिन आँख मेरी बाहर निकलने वाले दरवाजे पे गड़ी थी। मैंने आल क्लियर सिगनल दे दिया था। इसलिये किसी हेल्प पार्टी की उम्मीद करना बेकार था। नेटवर्क जाम था और अगले आधे घंटे और जाम रहने की बात थी, इसलिये मोबाइल से भी डी॰बी॰ से बात नहीं हो सकती थी। बन्द कोई गलती से कर सकता है लेकिन ताला नहीं, तो कोई बड़ा खतरा आने के पहले। मैं खुद, खुद ही कोई रास्ता निकालना पड़ेगा।
अचानक मुझे एक ब्रेन-वेव आई- “किसी के पास ऐसा नेल कटर है। जिसमें स्क्रू ड्राइवर है?”
जैसमिन ने कहा- “मेरे पास है…”
मैंने उसे लेकर जेब में रख लिया। मैं सोच रहा था की ताले के बोल्ट के जो स्क्रू हैं उन्हें ढीले करके। जोर से धक्का देने पर ताला कैसा भी हो बोल्ट निकल आयेगा। तब तक ऊपर से सिमेंट चूना गिरने लगा। पहले हल्का-हल्का फिर तेज।
मैं जोर से चिल्लाया- “बचो। सिर सीने में, कान बंद। हाथ से भी सिर ढक लो, पार्टनर को कसकर पकड़ लो…”
तब तक जोर से। बूम हुआ। पहले ऊपर का दरवाजा और साथ में कापियां टूटे फर्नीचर। छत पर से प्लास्टर के टुकड़े। अच्छा हुआ की मैंने महक को कसकर पकड़ रखा था। शाक वेव ऊपर से ही आई। लेकिन अगले पल नीचे का दरवाजा भी टूट करके बाहर। और साथ में हम चारों भी, लुढ़कते पुढ़कते।
“भागो…” मैं जोर से चिल्लाया और हम चारों हाथ में हाथ पकड़कर, स्कूल की बिल्डिंग से दूर 200-250 मीटर बाद ही हम रुके।
सबने एक साथ खुली हवा में सांस ली। अब हम लोगों ने स्कूल की ओर देखा। ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था। जिस कमरे में ये लोग पकड़े गये थे, उसकी छत, एक दीवाल काफी कुछ गिर गई थी। सीढ़ी के ऊपर का वरान्डा भी डैमेज हुआ था। अभी भी थोडे बहुत पत्त्थर गिर रहे थे।
बाम्ब एक्स्प्लोड किसने किया? उन दोनों का क्या हुआ? मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
तब तक फायरिंग की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा- टैक-टैक। सेल्फ लोडेड राईफल और आटोमेटिक गन्स की, 25-30 राउन्ड। सारा फायर प्रिन्सीपल आफिस की ओर केन्द्रित था। वो तो हम लोगों को मालूम था की वहां कोई नहीं हैं। स्कूल की ओर से कोई फायर नहीं हो रहा था।
तब तक मेगा फोन पर डी॰बी॰ की आवाज गुंजी- “स्टाप फायर…”
थोड़ी देर में एक पोलिस वालों की टुकडी, कुछ फोरेन्सिक वाले और एक एम्बुलेन्स अन्दर आ गई। कुछ देर बाद एक आदमी लंगड़ाते हुये और दूसरा उसके साथ जिसके कंधे पे चोट लगी थी, चारों ओर पुलिस से घिरे बाहर निकले।
स्कूल के गेट से वो निकले ही थे की धड़धड़ाती हुई 5 एस॰यू॰वी॰ और उनके आगे एक सफेद अम्बेसेडर और सबसे आगे एक सफेद मारुती जिप्सी जिसमें पीछे स्टेनगन लिये हुये। लोग बैठे थे, आकर रुकी।
थ्रिलर २
समुद्र और बनारसी बाला -रीत
रात 11:30 अरब सागर- ‘टेरर’ एल॰पी॰जी॰ शिप के स्टर्न के ऊपर की ओर। दोनों सी किंग हेलीकाप्टर जो उनके साथ चले थे, अब टेरर शिप के स्टर्न के ऊपर पहुँच चक्कर काट रहे थे और उन्होंने अपनी उंचाई कम करनी शुरू कर दी। वो शिप से पचास मीटर ऊपर रहे होंगे, की शिप से टक-टक टक-टक, ऐंटी एयर क्राफट गन की आवाजें शुरू हो गई थी। अब कोई शक नहीं था की वो एनमी शिप था।
लेकिन वो हेलीकाप्टर और उसके चालक इस सिच्युएशन के लिए तैयार थे, उन्होंने पहले तो डक किया लेकिन फिर अचानक ऊपर उड़ गए और दोनों अलग-अलग दिशाओं में दायें बाएं ऊपर उड़ चले। ऐंटी एयर क्राफ्ट गन, लाइट गन्स की गोलियां अब भी उनका पीछा कर रही थी।
रीत और उनके साथी मार्कोस, अब एकदम शिप के पास पहुँच गए थे और शिप में चढ़ने के लिए रोप लैडर का इश्तेमाल शुरू करने वाले थे। शिप के सारे लोगों का ध्यान उन दोनों हेलीकाप्टर पर था। और उसी बीच, एक और हेलीकाप्टर ठीक शिप के बीच इतना नीचे आ गया, की लगा वो शिप पर लैण्ड कर रहा है। उसके पंखों की हवा से शिप की छोटी मोटी चीजें उड़ने लगी थी। और जब तक शिप की ऐंटी एयर क्राफ्ट गन अपना निशाना बदलते, हेलीकाप्टर की गन चालू हो गईं थी। लेकिन वो गोलियों की जगह बाम्ब्स थ्रो कर रही थी- स्मोक बाम्ब।
और उसी के साथ रीत की टीम शिप के वाल पे चढ़ चुकी थी। सबसे आगे मार्कोस का लीडर था, जिसने नेवी सील्स के साथ एक साल ट्रेनिंग की थी, कई ऐक्चुअल एंटी टेरर आपस में भाग लिया था। उसने गैस मास्क लगा लिया और उसके साथ बाकी लोगों ने भी।
सबसे पहले उसने शिप के फ्लोर पर दो स्मोक बाम्ब लुढ़का दिए और फिर पूरी ताकत से आँसू गैस के कैनिस्टर फेंके। जब तक स्मोक बाम्ब्स का धुँआ छा जाता, वो चारों शिप के अंदर थे। उधर हेलीकाप्टर के होल्ड से अब पैराट्रूपर शिप पर उतर रहे थे।
एक, दो, चार, छः और तब दायें बाएं वाले हेलीकाप्टर भी आ गए और उनसे भी शिप के दोनों साइड पर पैराट्रूपर उतर रहे थे। शिप के अंदर के लोग सब उनके मुकाबले को आ गये। लेकिन तब तक तीनों हेलीकाप्टर से स्मोक बाम्ब्स तेजी से फेंके गए और शिप पे धुँआ, कुहासा छा गया। वो पैराट्रूपर सारे डमी थे।
नार्मण्डी लैंडिंग में ब्रिटेन ने एक सीक्रेट आपरेशन लांच किया था, आपरेशन टाइटैनिक, जिसमें ये डमी पैराट्रूपर इश्तेमाल हुए थे और उन्हें रूपर्ट कहा गया था। ये भी बिलकुल उसी तरह थे लेकिन थोड़े एडवांस। एल॰पी॰जी॰ चलते असली गोली तो चला नहीं सकते थे, इसलिए उनमें गोली की आवाज रिकार्ड थी और नकली पिस्तौल फ्लैश करती थी।
कोई उन्हें छूने की या पकड़ने की कोशिश करता था तो टेजर नीडल्स निकलती थी, जिनमें 440 वोल्ट का झटका होता था। और शिप के फ्लोर से लड़ते ही स्टेन ग्रेनेडस निकलते। उसका असर ये हुआ की ढेर सारे लोग काम के काबिल नहीं रहे और रीत की टीम को काम करने का मौका मिल गया।
शिप पर बहुत कन्फ्यूजन था। पहले स्मोक बाम्ब्स, और फिर ये डमी पैराट्रूपर्स। लग रहा था चारों ओर गोलियां चल रही है और जो उनके पास आता वो शाक का शिकार हो रहा था। और गोलियों का उनपर असर हो नहीं रहा था। होता भी कैसे? वो तो डमी थे।
हाँ, डी॰आर॰डी॰ओ॰ ने उनमें रोबोटिक्स का इतना अच्छा इश्तेमाल किया था की चलने फिरने में, वो एक पैरा की तरह लगते थे। यहाँ तक की कुछ पैरा में तो उन्होंने गालियां तक रिकार्ड कर रखी थी, वो भी एक से एक बनारसी, शुद्ध। लेकिन सबसे इम्पॉर्टेंट बात थी उनकी आँखें चारों ओर थी और वो कैमरे रिकार्ड कर लाइव फीड, ऊपर हेलीकाप्टर तक भेज रहे थे, जहाँ से वो कोस्टगार्ड शिप में जा रहा था। और उसे मार्कोस टीम के कैप्टेन के पास भी एनलाइज करके भेजा जा रहा था।
रीत की टीम काम पे लग गई थी। उनके पास बस पन्दरह मिनट का टाइम था, लेकिन उन्हें 11 से 12 मिनट के बीच में शिप एवैकयूएट कर देना था। पहला शिकार रीत के ही हाथ लगा। कमांडो टीम कैप्टेन ने आगे बढ़कर एक दरवाजा था उसे सिक्योर कर दिया। चारों प्वाइंट उसके इसी॰ओ॰र थे। और उसके बाद शिप के कम्युनिकेशन और पावर केबल स्नैप कर दिए।
टीम का रियर एंड भी मार्कोस का एक कमांडो सिक्योर कर रहा था। लेकिन हमला बीच में हुआ। रीत और उसका साथी जगह लोकेट कर रहे थे, तभी एक केबिन खुला और बिजली की तेजी से किसी ने रीत पर हमला किया।
हर कमांडो के चार आँखें चार कान होते हैं, लेकिन रीत के दस थे। वो फुर्ती से पीछे हटी, उसका घुटना अटैकर के पेट में और हाथ से कराते का चाप, गरदन पे। और जब तक वो सम्हलता, रीत ने उसके माथे के पास एक नस दबा दी, जिससे उसके ब्रेन पे सीधे असर पड़ा और वो आधे घंटे से ज्यादा के लिए बेहोश हो गया।
लेकिन ये शुरुवात थी। उसके बाद दो ने और हमला किया, एक साथ। उन दोनों के हाथ में चाकू था। और वो दोनों जूडो के एक्सपर्ट थे। चाकू का पहला हमला गर्दन पर हुआ। रीत झुक गई। हमला बेकार हो गया, लेकिन उसकी कैप गिर गई और उसके लम्बे बाल नीचे तक फैल गए।
“अरे ये तो लौंडिया है…”
रीत का प्रहार
हर कमांडो के चार आँखें चार कान होते हैं, लेकिन रीत के दस थे। वो फुर्ती से पीछे हटी, उसका घुटना अटैकर के पेट में और हाथ से कराते का चाप, गरदन पे। और जब तक वो सम्हलता, रीत ने उसके माथे के पास एक नस दबा दी, जिससे उसके ब्रेन पे सीधे असर पड़ा और वो आधे घंटे से ज्यादा के लिए बेहोश हो गया।
लेकिन ये शुरुवात थी। उसके बाद दो ने और हमला किया, एक साथ। उन दोनों के हाथ में चाकू था। और वो दोनों जूडो के एक्सपर्ट थे। चाकू का पहला हमला गर्दन पर हुआ। रीत झुक गई। हमला बेकार हो गया, लेकिन उसकी कैप गिर गई और उसके लम्बे बाल नीचे तक फैल गए।
“अरे ये तो लौंडिया है…”
बस यही गलती हो गई। शब्द भेदी बाण की तरह, रीत की शब्द भेदी देह थी। बात पूरी नहीं हुई और रीत की कोहनी और पैर दोनों एक साथ चले। एक ही काफी था। उसके प्राण पखेरू उड़ाने के लिए। लेकिन पहले वाले ने फिर वार करने की कोशिश की, और अब हवा में एक खुखरी चमकी। मार्कोस कमांडो का स्पेशल हथियार। ये रीत का साथी कमांडो था और अब वो भी हमलावर ढेर हो गया।
दोनों ने आँखों ही आँखों में हाई फाइव किया और साथ-साथ काँधे के जोर से केबिन का दरवाजा तोड़ा, जिसमें से ये तीनों निकले थे। वह कंट्रोल रूम था। वहां सी॰सी॰टीवी की फीड आ रही थी। और सारे कैमरे, नाइट विजन वाले थे। यही नहीं जगह-जगह मोशन सेंसर लगे थे। जिससे स्मोक के बावजूद वो लोग देख लिए गए थे। उस आदमी ने तुरंत पिस्टल निकाल ली। लेकिन सामना रीत से था।
रीत ने दीवाल पर लगा फायर एक्स्टिंविशर उठा लिया और उसका नोजल सीधा उसके ऊपर। जब तक वो सम्हलता, उस अग्नि शामक यंत्र की पाइप उसके गले में फँस चुकी थी, फांसी के फंदे की तरह। सेकेंडो में वो अपने साथियों के पास पहुँच गया।
तब तक उसके साथी ने कंट्रोल के सारे आपरेटस तोड़ दिए और अपने बाकी साथियों को कैमरे और सेंसर की जानकारी दे दी। दो सावधानी बरतनी थी, मारपीट में। एक तो आवाज नहीं होनी चाहिए और दूसरे गोली नहीं चलनी चाहिए। अगर गोली शिप के किसी दीवाल या फर्नीचर से रियेक्ट होकर गैस के होल्ड में लगती तो एक्स्प्लोसन हो सकता था। इसलिए न तो खुद गोली चलाना था और न और ही दुश्मन को गोली चलाने देना था। हाथ, पैर, और ज्यादा से ज्यादा खुखरी। रीत ने उस जगह को ढूँढ़ लिया था जहाँ उसे एक्सप्लोसिव फिट करना था। कील, कंट्रोल रूम के ठीक नीचे से होकर गुजरती थी।
चार जगहों पर कील के पास, जहाँ स्ट्रक्चरल डिफेक्ट थे, ये लगाए जाने थे और चार जगहों पर हल के पास। हर कमांडो को दो-दो एक्सप्लोसिव लगाने थे। और यह काम अगले 7 मिनट में पूरा होना था।
तभी दो गड़बड़ियां हुईं। रीत को एक्सप्लोसिव लगाते समय टिक-टिक-टिक-टिक की आवाज सुनाई पड़ी।
किसी और के लिए ये आवाज सुनना असंभव नहीं, तो लगभग असंभव जरूर था। बनारस में योग और तंत्र की शिक्षा ने, उसकी सारी इन्द्रियों को अति संवेदित कर रखा था और विशेष रूप से किसी आपरेशन के पहले वह सबको आमंत्रित कर लेती थी। और फिर वह अकेली नहीं होती थी, उसके साथ सारे भैरव, योगिनिया और उसके पीछे, दसों महाविद्याएं रहती थी, अपने आशीर्वाद के साथ।
रीत ने फिर ध्यान केंद्रित किया और वह समझ गई यह टाइम बाम्ब की आवाज है। कंट्रोल रूम में ही वह कील के ठीक ऊपर वो एक्सप्लोसिव लगा रही थी। रीत ने गहरी सांस ली, और एक बार फिर चारों ओर देखा, और उसकी निगाह उस आदमी पर पड़ी जिसके गले में अभी अग्नि शामक यंत्र की पाइप मौत माला बनकर झूल रही थी।
लेकिन उसका हाथ टेबल के नीचे लगे एक लाल बटन पर था जिसका प्लंजर उसने दबा रखा था। और उसी के साथ एक शिप का प्लान था, जहाँ पहले से लगे बाम्ब की लोकेशन दिख रही थी। कुल 18 बाम्ब थे। और उन्हें 15 मिनट के अंदर डिटोनेट होना था, जब उसने प्लंजर दबाया था। किसी भी हालत में उन्हें डिफ्यूज या डिस्कनेक्ट नहीं किया जा सकता था।
उसने एक बार फिर टाइम बाम्ब के टाइमर को देखा, अभी बारह मिनट बचे थे। खतरा मार्कोस टीम को नहीं था, अगले 7 मिनट में उन्हें बाम्ब लगाना था और दस मिनट में वो निकल जाते। खतरा और बड़ा था।
शिप को अब सिंक 12 मिनट के पहले हो जाना था या कम से कम आधा सिंक हो जाना था। आधे टाइम बाम्ब, गैस होल्ड के ठीक नीचे लगे थे। और शिप में आग लगने से एल॰पी॰जी॰ एक्सप्लोड होते। आयल प्लेटफार्म अभी भी 30 मिनट की दूरी पर था, लेकिन 15 मिनट में ये शिप, आयल वेल के ऊपर होगा। प्रत्युपन्नमति में रीत का जवाब नहीं था। उसने टीम के बाकी मेम्बर्स को मेसेज दिया, बाम्ब्स अब 7 मिनट के बजाय 4 मिनट में लग जाने चाहिए।
अगले चार मिनट में सारे बाम्ब लग गए।
रीत, रिजक्यू
लेकिन दूसरी परेशानी हो गई, मार्कोस के टीम के कमांडर को पकड़ लिया गया। उसके मेसेंजर पर मेसेज आया।
कमांडर, स्टर्न साइड से एंट्री सिक्योर किये हुए था, और साथ ही उसे उस लोकेशन की कील और हल में बाम्ब भी लगाने थे। जब वह झुक कर दूसरा बाम्ब लगा रहा था, उसी समय पीछे से हमला हुआ। उसने बिना उठे अपनी कुहनी और एक पैर से हमला करके उस अटैंकर को न्यूट्रलाइज कर दिया। लेकिन हमला करने वाले तीन थे। दोनों ने एक साथ अपना पूरा बाडी इंतेजार उसपर डाल दिया। और एक तेज धारदार चाकू की नोक उसके गर्दन पर रख दी। वो पूछ रहते थे उसके साथ कौन है?
उन्हें क्या मालूम, उसके साथ पूरा देश था, वो हर इंसान था जो आतंक के खिलाफ है। रीत भी तेजी से उस जगह की ओर बढ़ी, लेकिन जो हुआ, वो देखकर वह सन्न रह गई।
उसके आगे के कमांडो के हाथ से बिजली की तेजी से खुखरी निकली, और उसने जिस तेजी से वो फेंकी, अगले पल जिस दुष्टात्मा ने, कमांडो कमांडर के गले पे चाकू लगा रखा था, उसका हाथ फर्श पर छटपटा रहा था, चाकू समेत। कटा हुआ अलग। और जब तक उसकी चीख निकलती, कमांडो उसके ऊपर सवार था, और उसकी गरदन उसने मरोड़ दी थी।
बाकी दोनों से निपटना रीत और कमांडो कमांडर के लिए बाएं हाथ का खेल था। एक ने जान खुखरी से गंवाई और दूसरे ने रीत की उंगलियों से। लेकिन मौत तुरंत आई, बिना आवाज, चीख पुकार के। रीत ने कमांडो कमांडर से कुछ खुसुर पुसुर की। और ये तय हुआ की बाम्ब्स लग गए हैं इसलिए दोनों मार्कोस के कमांडो तुरंत शिप से निकलकर, बाहर पहुँचकर एक्जिट प्वाइंट सिक्योर करेंगे, और इन्फ्लेटेबल बोट को रेडी रखेंगे।
उनके सपोर्ट के लिए आये हेलीकाप्टर को और कोस्ट गार्ड शिप को रेड़ी होने का अलर्ट देंगे। चार मिनट के अंदर, रीत और कमांडर वापस आएंगे, झाड़ू लगाकर। कुछ ही पलों में दोनों मार्कोस के कमांडो शिप के बाहर थे।
कमांडर ने बताया था की डमी पैराट्रूपर्स ने जो बातें रिकार्ड की हैं उनसे ये पता चला है की, शिप के कैप्टेन (असली) और कुछ सेलर्स को कहीं बंद करके रखा है। उसका प्लान ये था की बचे हुए समय में अगर वो मिल जाते हैं तो उन्हें रिस्क्यू करा सकते हैं और साथ में शिप के लाइफ बोटस को अलग कर देंगे, जिससे जब शिप सिंक हो तो टेरर वाले लोग निकल न भागे। बस एक बात का ध्यान रखना था की उनके शिप से निकलने के टाइम में कोई फेर बदल नहीं होगा। कमांडर के मेसेज देने के तुरंत बाद, रीत को एस्केप प्लेस पर पहुँच जाना होगा।
कुल चार मिनट थे उनके पास। एक ओर से रीत ने काम्बिंग शुरू की और दूसरी ओर से कमांडो कमांडर ने। लेकिन रीत के मन में कुछ और था, वो चाहती थी कुछ सबूत इकठ्ठा करना।
रीत, दुश्मन की मांद में
और एक बार जब शिप सिंक हो जाएगा, तो ये लोग लाख कहें इंटरनेशनल फोरम में, बिना किसी सबूत के कोई मानने वाला नहीं है। और दूसरी बात, इससे वो लिंक जोड़ के, जिसने ये आपरेशन आर्डर किया, जो इसको कंट्रोल और फाइनेन्स कर रहे हैं, उन तक पहुँच सकते हैं, जब तक दुशमन की मांद में घुस के न मारा तो क्या मजा।
और इस काम में करन एक्सपर्ट था। रीत और करन की जोड़ी के आगे दुश्मन नतमस्तक हो जाएं तो बात है। पहला हमला उसने कम्युनिकेशन रूम पर किया, वहां सिर्फ एक आदमी था। न उसे ज्यादा तकलीफ हुई न रीत को। रीत ने उसे बेहोश करके छोड़ दिया।
और वहां पर तो शुद्ध सोना मिला उसे, कम्युनिकेशन लाग, किससे बात हुई और सबसे बढ़कर, पिछले 12 घंटों की पूरी बातचीत वायस रिकार्डर डाटा कार्ड में थी। रीत ने उसे निकाल लिया और कैप्टेन केबिन की ओर रुख किया।पहले तो रीत को कुछ नहीं मिला। फिर कबर्ड में हाथ से फील करने पर उसे एक दीवार खोखली लगी। और फिर नाखून के सहारे उसने एक उभरी हुई जगह को उठाया तो वहां एक डायरी, लाग, चार्ट मिले। डायरी शिप के असली कैप्टेन की थी।
और तभी उसे हल्की सी हेल्प-हेल्प की आवाज सुनाई पड़ी। ध्यान देने पर पता चला लाफ्ट से, ऊपर से, आवाज आ रही थी। और जैसे ही उसने खोला, बण्डल नीचे गिरा। वो शिप का असली कैप्टेन था। हाथ, पैर आपस में बांधकर बंडल बना दिया था। मुँह पर पट्टी, लेकिन वो उसने रगड़-रगड़कर थोड़ी खोल ली थी। पल भर में रीत ने उसे आजाद कर दिया। उसने कुछ बोलने की कोशिश की तो रीत ने उसे इशारे से चुप करा दिया। उनकी आवाज सुनकर कोई भी आ सकता था। दूसरे स्मोक बाम्ब का असर कम हो रहा था। और अब हल्का-हल्का दिखाई पड़ रहा था। उन्होंने कुछ पावर केबल काटे थे पर इमरजेंसी लाइटें अभी भी जल रही थी। रीत ने कैप्टेन से लाइटों का स्विच बोर्ड पता किया और फिर दो तारों को जोड़कर उसे शार्ट कर दिया।
शिप का अंदरुनी हिस्सा एक बार फिर घुप अँधेरे में डूब गया। यहीं से पावर इंजिन रूम को भी जाता था, वहां भी पावर सप्लाई बंद हो गई।
रीत ने नाइट विजन ग्लासेस लगा रखे थे, उसने शिप कैप्टेन का हाथ पकड़ा और दोनों बाहर गलियारे में निकल पड़े। एस्केप प्वाइंट पर मिलने में सिर्फ डेढ़ मिनट का समय बचा था। थोड़ी देर में उसने मार्कोस के लीडर को देखा, उसके साथ भी तीन लोग थे। और वो आलरेडी एस्केप प्वाइंट पर लगी रोप लैडर से उतर रहे थे। दो आदमियों को मार्कोस लीडर ने नीचे उतार दिया और इशारा किया। वो इन्फलेटबल बोट अब शिप से दूर चल दी।
शिप और बाहर समुद्र घुप अँधेरे में डूबे थे।
रीत और मार्कोस कमांडर ने अब दूसरी बोट पे लैंडिंग शुरू की। सबसे पहले लीडर ने जिसे रिजक्यू कराया था वो आदमी, और फिर रीत बोट में उतरे। उतरने के बाद वो रस्सी हिला के इशारा करते और अगला आदमी उतरना शुरू करता। अब शिप के कैप्टेन और फिर मार्कोस टीम के लीडर का नंबर था।
पहली बोट अब पूरी तेजी से जा रही थी और शिप से करीब आधे किलोमीटर दूर पहुँच गई थी। उन्होंने दोनों हेलीकाप्टर को मेसेज दे दिया था की अब बजाय चार के आठ लोग हेलीकाप्टर से जाएंगे। एक हेलीकाप्टर अब पहली बोट के ऊपर मंडरा रहा था।
कोस्ट गार्ड का शिप भी किसी परिस्थिति के लिए पास आ गया था।
शिप से होने वाले किसी भी फायर के रेंज से वो बाहर थे। पहले हेलीकाप्टर ने विन्च नीची की और रोप लटका दी। मार्कोस का एक आदमी सबसे पहले चढ़ा, फिर रिजक्यू किये गए दोनों और अंत में मार्कोस का एक आदमी।
अब रीत के बोट का नंबर था। पहले हेलीकाप्टर के दूर जाने के बाद इस हेलीकाप्टर की विन्च खुली और रोप नीचे आई। सबसे पहले एल॰पी॰जी॰ शिप के कैप्टेन, फिर एक और रिजक्यू किया हुआ आदमी, रीत और सबसे अंत में मार्कोस के लीडर को चढ़ना था। कैप्टेन के चढ़ने के बाद दूसरा आदमी चढ़ा।
रीत ने घड़ी देखी। एक्सप्लोजन में अभी 6 मिनट बचे थे और शिप की सिंकिंग शुरू होने में आठ मिनट। और ये एक्स्प्लोसिव बहुत ही लो पावर थे, शिप के बाहर से पता ही नहीं चलता। जब शिप सिंक करना शुरू करता तो पता चलेगा।
रीत ने चैन की साँस ली, आपरेशन सक्सेसफुल रहा। रीत रस्सी पर चढ़ गई थी और उसके ठीक पीछे, मार्कोस का लीडर।
उन्हें जल्दी से यह जगह खाली करनी थी। तभी नीचे से मार्कोस के लीडर की चीख और चेतावनी सुनाई पड़ी।
कैप्टेन के बाद रिजक्यू किया हुआ आदमी रोप से चढ़ा था वो हेलीकाप्टर की विन्च पर से झुक कर रोप चाकू से काट रहा था। चीख सुनकर, हेलीकाप्टर के कमांडो ने, पिस्टल के शाट से उस आदमी को खत्म कर दिया।
रस्सी अभी भी झूल रही थी, लेकिन रीत मार्कोस लीडर के वजन से वह टूट गई।
मार्कोस लीडर तो इन्फलेटबल बोट के जस्ट बाहर गिरा, और वापस बोट में चढ़ गया। लेकिन रोप के झटके से रीत बोट से दो सौ मीटर दूर सीधे समुद्र में जा गिरी।
सारे अपडेट बहुत ही शानदार और लाजवाब हैरीत
मार्कोस के कमांडर ने बोट में से रैफ्ट का एक टुकड़ा फेंका और वो रीत की ओर तैर रहा था। गहरा काला अरब सागर, अँधेरे में डूबा। होली के अगले दिन का चाँद, बादलों से लुकाछिपी करते पास कुछ चांदनी कभी-कभी बरसा देता।
दुर्दांत भयावह काल की तरह पास में वो विशालकाय टेरर शिप, और समुद्र की लहरों से लड़ती, थपेड़ों से जूझती, बिंदास बनारसी बाला, सिर्फ एक लकड़ी के टुकड़े के सहारे तैरती, समुद्र की ताकत अपनी बाहों से नापती, जूझती, रीत।
उसे अहसास हो गया था, कि सबसे पहले, उसे उस टेरर शिप से दूर जाना था। जितना दूर हो सके। एक इन्फ्लेटेबल बोट उस शिप के पास भी थी, लेकिन रीत उधर नहीं जा सकती थी। पांच मिनट में शिप सिंक होना था, और जैसे ही वो सिंक होना शुरू होता, आसपास की छोटी मोटी चीजें, सब उसके साथ, समुद्र के गर्त में। गनीमत हो डी॰आर॰डी॰ओ॰ वालों का।
जो ड्रेस इस आपरेशन के लिए रीत ने पहनी थी, वो लाइफ बेल्ट की तरह थी। एक बटन दबाकर उसमें हवा भरी जा सकती थी। और इन्फ्लेट करने के बाद, रीत अब कम से कम समुद्र में डूब नहीं सकती थी। उसने अपनी हेड लाईट भी आन कर दी थी। और थोड़ी देर में वो शिप से दूसरी दिशा में जा रही थी। वह बार-बार पीछे मुड़कर उस शिप की छाया को देखती और उसकी बाँहों में दुबारा ताकत भर उठती।
और तभी उसको एक इन्फेलटेबल बोट दिखी, वही जिससे पहले चार लोग हेलीकाप्टर में चढ़े थे।किसी तरह वह उसमें चढ़ी, और एक पल के लिए उसने गहरी सांस ली। और जब उसने शिप की ओर देखा तो उसे लगा वो शिप स्टार बोर्ड साइड में, टिल्ट हो रहा है। पहले तो उसे विश्वास नहीं, हुआ फिर दुबारा देखा। अबकी टिल्ट और प्रोनाउंस्ड था।
लेकिन फिर उसे याद आया की कहीं शिप के साथ, और तुरंत उसने अपने ड्रेस में रखे दो फ्लेयर्स एक साथ जलाये और दोनों हाथों से हवा में लहराने लगी। आसमान अभी भी काला था और सूना, सिर्फ सन्नाटा।
उसके दिल की धड़कन और तेज होने लगी, कहीं आज की रात। काल रात्रि, लेकिन उसे अपने ऊपर भरोसा था और उससे भी ज्यादा काशी के कोतवाल पर, और तभी हल्की-हल्की आसमान में हेलीकाप्टर के रोटर की आवाज सुनायी देने लगी।
शिप और टिल्ट हो रहा था, और लहरे भी अब शिप की ओर, अपने रेडियो से रीत बार मेडे में डे का मेसेज दे रही थी। वो जान रही थी की बस कुछ मिनटों में उसने अगर ये बोट नहीं छोडी तो, और हेलीकाप्टर उसके बोट के ठीक ऊपर आकर रुका, विन्च नीचे आ गई थी और रोप लहरा रही थी।
उम्मीद की आखिरी किरण की तरह, उछलकर उसने रोप पकड़ ली।
रोप मार्कोस के लीडर कंट्रोल कर रहे थे। बिना नीचे देखे वो दोनों हाथों थे रस्सी पकड़, हेलीकाप्टर में पहुँच गई। और जैसे ही वो अंदर घुस रही थी, उसने नीचे देखा। सी बहुत चापी हो गया था। वह जिस बोट पर थी, समुद्र की लहरों पर गेंद की तरह उछल रही थी। शिप उसी तरह था। मार्कोस कमांडर ने बताया की उन्हें नेवल कंट्रोल ने बोला है की वो यहीं आधे घंटे तक और रहेंगे, और जब तक शिप पूरी तरह सिंक नहीं कर जाता उसे आब्जर्व करेंगे। कम्प्लीट सिंक होने के पन्दरह मिनट बाद ही वह वहां से निकलेंगे। और तब तक वो शिप के ओरिजिनल कैप्टेन को भी ब्रीफ करेंगे।
रीत उनकी बात सुन रही थी लेकिन उसकी निगाह नीचे शिप से चिपकी थी।
अब वह काफी तिरछा हो गया था। पहला आयल वेल अभी भी, शिप से 500 मीटर दूर था।
Thanks so much, your regular presence on this thread, likes and comments keep me enthused, inspired and going. Bas ye saath bana raheAwesome update Komal Ji..
I have read the story, and made some comments. But I can suggest one thing, please read the stories first at least two times of established writers like Ashok Ji ( Ashokfun) and many others, whose stories you like. read it twice, first to enjoy and second to understand why you enjoy it. Is it language, character, narration, turn of events and you can imbibe it. Secondly, develop the characters a bit more, what they think and motivation for the action. Your story is very good, fast paced, focussed and a good theme and i am sure it will be very popular. and please do increase font size to 18.dear komaalrani mam mujhe apki story bahut pasand ha maine bhi ek story likhi plz use padh kar margdarshan kare li mai acha likh rhi hu ya nahi
Wonderful update i have shared my views on your story. very erotic and esp. GIF and pictures, along with the witty dialogues and good description.Wow...what an amazing update madam...just too awesome!!
You said you believe in "slow simmering cooking"...(which is true also)...
but this is not just "slow simmering"..but a volcano waiting to erupt...reading thru' it feels as if eruption will happen any time...but thats the greatness of your story/update...
the eruption never happens but feels very much so...
the dialogs between Guddi and her husband and later on with "Mummy" was awesome.
The boldness with which she goes to the medical store and ask for i-pill and contraceptives is like a "Gen X/Z" thing...no "hesitation" at all
Wonderful update madam...
i am also trying to incorporate some of these things in my story...especially the dialogs part...(dialogs relative to my story and plot).
Outstanding!!
komaalrani
PS: Hope you find my update today ok...first sex scene update on my story...tried to make it more erotic with some dialogs thrown in Look forward to your comments and observations. Many Thanks.
And thanks for such massive praise for this part.Wow...what an amazing update madam...just too awesome!!
You said you believe in "slow simmering cooking"...(which is true also)...
but this is not just "slow simmering"..but a volcano waiting to erupt...reading thru' it feels as if eruption will happen any time...but thats the greatness of your story/update...
the eruption never happens but feels very much so...
the dialogs between Guddi and her husband and later on with "Mummy" was awesome.
The boldness with which she goes to the medical store and ask for i-pill and contraceptives is like a "Gen X/Z" thing...no "hesitation" at all
Wonderful update madam...
i am also trying to incorporate some of these things in my story...especially the dialogs part...(dialogs relative to my story and plot).
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komaalrani
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