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Erotica फागुन के दिन चार

motaalund

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क्या बात याद दिला दी आपने

साथ साथ छुपना,... वो दो चार मिनट का स्पर्श ही, सोच सोच के देह को गिनगीना देता था।

और जो ज्यादा ' साहसी ' होते थे वो बात थोड़ा आगे भी बढ़ा लेते थे, बचपन से यौवन का वह सफर, वह पायदान,... जब चारों आँखों के खेल का ककहरा पढ़ना शुरू होता था।

इसलिए मैंने फ्लैशबैक वाले पार्ट्स डाले
और उस समय की उमंगें भी एक अलग स्तर पर होती थी...
खासकर घर-घर खेलते हुए.. दालान या फिर खेत खलिहानों में..
 

Mass

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Thanks for correcting me Madam...as I said..I was scrolling down and reading the update..but may have missed the finer points. But my observation is still true...Guddi's talk with her Mummy over phone and speaker mode..etc..it was like a volcano..
Just too good..
Glad that I am following your story :)
Thx once again..
Btw, on a lighter note..they say...lightening doesn't strike twice..true (or rare) as well..
Let's see if it happens.. I hope you understand what I meant by it :)
komaalrani
Just to clarify madam...not sure what you thought of "lightening"...
i had 2 things in mind...
1) next update of yours is also mindblowing (which is very much possible and hence true, not rare... :))
2) Once again by coincidence, we both post our next update on the same day as yesterday... :)..
and hence the lightening reference...
Lets see...1st is 100% possible...

komaalrani
 
Last edited:

motaalund

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आनंद भाई साहब तो फिर भी कम उम्र के , थोड़े शर्मीले और थोड़े नातजुर्बेकार थे , औरतों के महफिल मे बड़े बड़े सुरमाओं और होशियार लोगों की हालत पतली हो जाती है । सम्भव ही नही था गुड्डी की मां , चंदा भाभी और रमा मैडम से पार पा जाए ।
चूंकि मजाक का रिश्ता भी था इसलिए कुछ कह भी नही सकते थे और अगर कुछ कह भी देते तो शर्तिया उनकी और भी बखिया उधेड़ी जाती ।
शादी-ब्याह के अवसर पर दुल्हे का ही नही वरन देवर , पिता , चाचा , अन्य रिलेटिव सभी को लक्ष्य कर गारी दी जाती है और उन गारी की विशेषता यह है कि वो अत्यंत ही अश्लील या दिल को खुब चुभने वाली होती है । लेकिन इस की एक खुबी यह भी है कि कोई भी इसे बुरा नही मानता बल्कि लोग खुब मजे ले लेकर सुनते है ।

इस अपडेट मे आनंद के बड़े भाई के शादी का जिक्र हुआ और वहां वो सबकुछ देखने को मिला जो अमूमन हर शादी मे होता है ।

आनंद के लिए एक और भी विचित्र स्थिति उत्पन्न होने वाली है और वो है गुड्डी । मतलब माशूका का नाम भी गुड्डी और कजन बहन का नाम भी गुड्डी ।
इस नाम की वजह से साहब की क्या फजीहत होगी , यह मै अभी से अनुमान लगा सकता हूं । शायद यह फजीहत आनंद के लिए सजा न होकर मजा बन जाए !
वैसे भी दोनो गुड्डी बातचीत के मामले मे नहले पे दहला है ।
होली के अवसर पर हमारे यहां पुआ , मालपुए , गुझिया , ठंडाई ( भांग मिश्रित ) , ड्राई फ्रूट और अगर कोई मांसाहार हो तो नाॅन वेज बनाना एक परम्परा सा बन गया है । इस के वगैर होली पुरी नही लगती ।
भांग का नशा अन्य सभी नशे से काफी अलग होता है । चूँकि होली पर हमारे यहां भी ठंडाई बनता है तो मुझे इसके असर का अच्छी तरह से पता है ।

गांव की महिलाएं डबल मिनिंग्स बातें करने मे शहर वाली महिलाओं से कुछ हद तक आगे रहती है , ऐसा मै समझता हूं । शायद इसका कारण गांव का परिवेश , शादी-ब्याह के अवसर पर गाए जाने वाले गीत , औरतों का सानिध्य और उनका चंचल और बेवाक अंदाज हो सकता है ।
इस का प्रत्यक्ष एग्जाम्पल आपके इस कथानक मे भी दिखाई दे रहा है ।

गांव मे कोई लड़का अगर थोड़ा सा भी तेज हो , जुगाड़ु हो , थोड़ा-बहुत नॉलेज हो तो उसकी इज्ज़त न सिर्फ पुरुष वर्ग मे बल्कि महिलाओं के जमात मे भी बढ़ जाती है ।
ऐसा ही जुगाडु व्यक्ति हमारे आनंद साहब भी थे । थोड़ी सी कोशिश की और ट्रेन जर्नी का सफर आरामदायक हो गया । ऐसे मे भला कौन औरत प्रभावित नही होती !

सभी अपडेट एक से बढ़कर एक थे । अपडेट के बीच मे शेरो- शायरी , पुराने फिल्मी गीत , लोकगीत , मशहूर कवियों के नग्मे आप की स्टोरी की विशेष पहचान होती है।

बहुत बहुत खुबसूरत अपडेट लिखा आपने ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट कोमल जी ।
शादियों में जनवासे में वधू पक्ष की ओर से जासूस भी नियुक्त किये जाते थे...
वर पक्ष में किसका क्या नाम और रिश्ता है...
ताकि नाम के साथ गारियों से स्वागत किया जाए...
लेकिन एक बार हास्यास्पद बात ये हो गई कि दुल्हे और लड़की के भाई का नाम एक हीं था और दुल्हे के रिश्ते से दी जाने वाली गारियों में किसे दी जा रही है..
ये सुन के दोनों पक्ष मुस्कुरा रहे थे...
 

motaalund

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Very erotic update, sabhi ladies milkar pleasantly chhed rahi hain, ek mard ko.✔️✔️✔️
ससुराल में .. खास कर होली के त्योहार में...
ये एक आम दृश्य है.. लेकिन मजा तब आता है जब विभिन्न शब्दों के जोर से छेड़-छाड़ होती है...
और हर बार एक नया माहौल... नई परिस्थिति.. और शब्दों के तीर...
 

motaalund

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Thanks for remembering dear favorite but I am sorry dear, still I have not decided about writing✍️.
Not sure yet about the timing.
Missing my writing ability & readers badly.
We.. as a reader.. are also missing your master piece.
 

motaalund

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एकदम सही कहा आपने, चंदा भाभी और गुड्डी की मम्मी की जुगलबंदी, और चंदा भाभी गुड्डी की सहेली सी भी हैं तो और ज्यादा,

और उनकी गुझिया ने और ज्यादा कमाल ढा दिया।
सहेलियां और हमउम्र बहनें मिलकर तो सब पे भारी पड़ जाती हैं...
 

motaalund

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देवर वो भी किशोर, कुंवारा ससुराल में पकड़ में आ जाये, फिर मौका होली का

और जितना सीधा होगा, झिझकेगा उतना ही रगड़ा जाएगा।

आनंद बाबू शायद इसलिए मिल के रेस्टहाउस भागने के चक्कर में, लेकिन गुड्डी के चक्कर के आगे उनकी प्लानिंग फेल हो गयी. पर कभी हार में जीत होती है।
और ऊपर से अकेला..
रगड़ने वालियों की पूरी जमात...
तो दुम दबाने का प्लान सारंग नैनी ने धराशाई कर दिया...
 

motaalund

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सही कहा आपने

लेकिन ससुराल में था और इसलिए वहां उनकी कजिन के मालपुवे की याद दिलाई जा रही, चाहे चंदा भाभी हो या बनारस वाली गुड्डी

तब तक गुड्डी माल पुआ लेकर आई- “एकदम तुम्हारे बहन के गाल जैसा है…”
चन्दा भाभी वहीं से बोली- “कचकचोवा…”


और उसी मालपुवे के जरिये गुड्डी ने सब कबुल करवा लिया

“हे है ना मेरी नामवाली के गाल जैसा। कभी काटा तो होगा…”

“ना…” मैंने खाते हुए बोला।

“झूठे। चूमा चाटा तो होगा…”

“ना…”

“ये तो बहुत नाइंसाफी है। चल अबकी मैं होली में तो रहूँगी ना। उसका हाथ पैर बाँधकर सब कुछ कटवाऊँगी…”



तो मालपूवे के बहाने गुड्डी ने आनंद बाबू के होने वाले दिनों का प्लान बना दिया।
गुड्डी एकदम इंसाफ पसंद है...
 
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