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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २७

मैं, गुड्डी और होटल

is on Page 325, please do read, enjoy, like and comment.
 
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Mass

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And thanks for such massive praise for this part.

one small " Guddi and her husband", Anand Babu is not a husband, although he wishes to be one but does not know how to proceed. Secondly, he is not a traditional lover, and never said I love you to Guddi, but in a relationship a lot of things are said, without getting said. And various episodes try to portray those unsaid things. And that is why i have added a flashback, and even in this part, like he admits why he likes her.


लेकिन गुड्डी की जिस बात ने मुझे मुझसे ही चुरा लिया था,... वो थी, कैसे कहूं,... उसकी पहल,... जो में चाहता था पर बोल भी नहीं पाता था, वो समझकर कर देती थी। पहली मुलाक़ात से ही, ... कौन इंटर में पढ़ने वाला लड़का होगा जो किसी लड़की को देख के आंख भर देखना नहीं चाहेगा, मुंह भर बतियाना नहीं चाहेगा,... लेकिन मैंने मारे झिझक के किताब की दीवाल खड़ी कर दी, पर वो जानती थी मैं क्या चाहता हूँ और दांत देखने के बहाने मुंह खुलवा के,... रसगुल्ले के साथ उसकी मीठी ऊँगली का स्वाद कभी नहीं भूलने वाला,...

बस वो स्वाद एक सपना जगाता है ,... उसी घर में ये लड़की दुल्हन बनी, कोहबर में दही गुड़ खिला रही है और उसकी बहने छेड़ रही हैं,... लेकिन मैं सपने देखने वाला और वो सपनों को जमीन पर लाने वाली,...

उसी दिन, लग उसे भी गया था, उसी दिन डांस करते हुए, जिस तरह से वो मुझे देख दिखा के लाइनों पर थिरक रही थी,

मेरा बनके तू जो पिया साथ चलेगा
जो भी देखेगा वो हाथ मलेगा


और फिर रही सही कसर बीड़ा मारते समय, एकदम मुझे ढूंढ के बीड़ा मारा था, सीधे दिल पर लगा,... और जब सब लड़कियां मुंडेर से हट भी गयीं,... वो वहीँ खड़ी रही मुझे देखते चित्रवत,... और मैं भी मंत्रबद्ध, जैसे किसी लड़की ने बीड़ा नहीं जादू की मूठ मार दी हो, हिलना डुलना बंद हो गया हो,...

फिर गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी ने गुड्डी को दिखा के , चिढ़ा के पूछा था, शादी करोगे इससे,... अचानक कोई मन की बात बोल दे, ... लाज के मारे मैं जैसे बिदाई के समय दुल्हन गठरी बनी, बस एकदम उसी तरह, ...


Joy of writing * (and reading) lies in first visualizing those soft unsaid moments, and then capturing them in words .
Thanks for correcting me Madam...as I said..I was scrolling down and reading the update..but may have missed the finer points. But my observation is still true...Guddi's talk with her Mummy over phone and speaker mode..etc..it was like a volcano..
Just too good..
Glad that I am following your story :)
Thx once again..
Btw, on a lighter note..they say...lightening doesn't strike twice..true (or rare) as well..
Let's see if it happens.. I hope you understand what I meant by it :)
komaalrani
 
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motaalund

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Thanks bhai...agar start kiya to language would be Hinglish..even though I like Hindi fonts as well..but takes a lot of time. Typing in Hinglish is much easier :)
Also, unlike other writers (with exception), once I start (as of now, kab.
Pata nahi) the story, I will try to give regular updates...but will let you know once I start it..thanks.
motaalund
You may choose your language in which you are comfortable with.
I appreciate your gesture for giving regular updates.
 

motaalund

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एकदम सही कहा आपने

गुड्डी अकेले काफी है और यहाँ तो गुड्डी गूंजा दोनों

इस कहानी की कुछ झलकियां हैं ये,


कहानी पोस्ट होनी शुरू हो गयी है , पहला भाग पृष्ठ ११ और दूसरा भाग पृष्ठ १९ पर है ,

कहानी पर आपकी सम्मति की प्रतीक्षा रहेगी। बहुत बहुत आभार पढ़ने के लिए टिप्पणी के लिए
दोनों ने मिलकर हीरो की बुंड बजा दी..
लेकिन गुंजा तो सिर्फ सपनों में हीं...
 

motaalund

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इसलिए की बहुत कुछ नया नया है

दूसरे भाग में तो फ्लैश बैक वाले तीनो पार्ट नए हैं

और बाकी पार्ट्स में भी काफी इजाफ़ा है इसलिए ४ हजार शब्दों के आसपास का हिस्सा दस हजार के पार हो गया।

लेकिन मुझे लगा की ये पार्ट्स गुड्डी और आनंद के लिए थोड़े जरूरी हैं, दूसरी बात आगे भी अब उनका रिफ्रेंस आ सकताहै । शुरू में मैंने सोचा था की कुछ जोड़ूँगी नहीं लेकिन,... सोचने से क्या होता है,... पर जोड़ना रफू की तरह ही रहेगा, जोरू के गुलाम की तरह नहीं जहाँ करीब ३० -४० % नया है लेकिन वो कहानी अपूर्ण थी

और फागुन के दिन चार को जो भी पढ़ेगा, नए पाठक, पुराने

उन्हें नए का ही आनंद आएगा।

आभार, धन्यवाद
सचमुच ये पूरक अपडेट्स कहानी की निरंतरता बनाए रखने में सहायक सिद्ध हुई है.
और आनंद बाबु की छवि को गुड्डी की मम्मी की नजरों में ... सकारात्मक प्रभाव बनाने योगदान रहा है...
 

motaalund

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बहुत - बहुत आभार कोमल जी

लेकिन इसे रफू मत कहिए बल्कि ये तो गोटा, आरी - तारी या भारी काम वाली जैसा कुछ किया है आपने।

सादर
कहानी मुख्यतः वही है.. लेकिन एक नया रूप देने में भी कामयाब रहा है...
 

motaalund

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एकदम नहीं

मेरी कोई भी दो कहानियां एक जैसी नहीं है विशेष रूप से बड़ी कहानियां, जैसे जोरु का गुलाम, फागुन के दिन चार, ननद की ट्रेनिंग, मोहे रंग दे या सोलहवां सावन। विधा से ज्यादा महत्वपूर्ण है पृष्ठभूमि, कैरेक्टराइजेशन , घटनाएं कहाँ और किस समय घट रही हैं और कैरेक्टर्स का मोटिवेशन क्या है।

और लम्बी कहानियों में एक साथ कई विधायें आती हैं जैसे फागुन के दिन चार में इरोटिका है, रोमांस है, थ्रिलर है. करुण और रौद्र रस भी है।
और सबसे बढ़कर वीर रस भी है...
 

motaalund

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मुझे लगता है की कैरेक्टर्स के मोटिवेशन का भी ध्यान रखना चाहिए, इसलिए गुड्डी और आनंद के रिश्तों के शुरूआती दिन फ्लैश बैक के रूप में आये। कहानी की साइज भले बढ़ गयी, लेकिन मुझे लगा की इसे कहानी और परिपूर्ण लगेगी। मूल घटनाक्रम और चरित्र में बिना परिवर्तन किये थोड़ा बहुत रफ़ूगीरी,... इसलिए मैंने सभी मित्रों से आग्रह किया है की इसे एक नए संस्करण की तरह पढ़ें देखे।

देवदास हिंदी में अनेक बार बनी और सबका अलग आंनद था।
और इस बार भी आपने एक नए संस्करण का जलवा बिखेरा है....
 

motaalund

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मैं अपनी दो लघु कथाओ के लिंक दे रही हूँ

कैसी हैं आप कभी खुद पढ़ कर बताइयेगा

१. It’s a hard rain

When the evening is spread out against the sky
Like a patient etherized upon a table…

Dusk was dawning on the glass panes of his window, smoke rubbing its muzzle, peeping from outside, streets following like tedious argument, …every evening, it reminded him of Prufrock’s love poem, more than 12 years had gone, him occupying this cabin, but today was to be last day , last evening,

The clock on the wall reminded him, 10 minutes more, 10 minutes to move out, move out forever.

When the day started, it was like any other.


और दूसरी

लला ! फिर खेलन आइयो होरी ॥

______________________________

ये कहानी ' नेह गाथा ' है , गाँव गंवई की एक किशोरी के मन की ,


रोमांटिक ज्यादा इरोटिक थोड़ी कम ,

फागु के भीर अभीरन तें गहि, गोविंदै लै गई भीतर गोरी ।
भाय करी मन की पदमाकर, ऊपर नाय अबीर की झोरी ॥
पूर्ण .. नायिका की मनोदशा को दर्शाती कहानी...
 
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