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Erotica फागुन के दिन चार

motaalund

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गुड्डी के मम्मी है न जगाने के लिए

लेकिन सोया शेर जब जग गया तो कोई नहीं बचेगा, गुड्डी तो खैर बचेगी ही नहीं

लेकिन शेर जागने के बाद तो सिर्फ गुफा ढूंढेगा, तो चाहे गुड्डी की मम्मी की हो या,


और शायद मन ही मन गुड्डी की मम्मी चाहती भी हों
गुफा और साथ में पीछे का गलियारा भी...
 

motaalund

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फ्लैश बैक के ये तीन पार्ट गुड्डी और आंनद बाबू के हिसाब से किया गया और बाकी पार्ट्स में भी रफ़ूगीरी,

जिससे गुड्डी और आनंद बाबू के रोमांस का बैकगॉउन्ड पता चल जाए, फिर आगे भी बार बार गुड्डी की माँ, गुड्डी के गाँव का और आम की बाग़ का जिक्र आएगा तो उसकी पूर्व पीठिका भी।

लेकिन मैंने पूरी कोशिश की,, कि इससे कहानी बोझिल न हो और कहानी का जो मुख्य रस इस भाग का एक टीनेज रोमांस वही रहे,

आपको अच्छा लगा, बहुत बहुत धन्यवाद, आभार।
नहीं..नहीं... बल्कि एक पूर्णता का अहसास हुआ है...
 

motaalund

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मन तो उनका था ही थोड़ा थोड़ा नहीं बल्कि काफी


असली चीज थी जब गुड्डी ने उन्हें चुन के अक्षत मारा था और अपनी बात उन्होंने बड़ी हिम्मत कर के विदाई के समय गुड्डी से कह ही दी थी,

भाभी का बीड़ा तो लगा सही, लेकिन उसका एकदम सीधे मेरे सीने पर और मैंने पकड़ लिया, सम्हाल कर रख लिया। बीड़ा मारने के बाद नाउन और सहेलियां, तुरंत दुल्हन को हटा लेती हैं, लेकिन वो थोड़ी देर तक वहीं और उसके साथ मेरी निगाहें भी,


द्वारपूजे के बाद जब वो दिखी, तो मैंने बस इतना कहा की तुम्हारा निशाना एकदम सही लगा,

वो मुस्करायी और बस बोली की लेकिन कुछ लोग ऐसे बुद्धू होते हैं जिनका निशाना लग भी जाता है उन्हें पता नहीं चलता।

बाद में समझा मैं उसकी बात का मतलब,...

लेकिन मैंने तय कर लिया था जाने के पहले उससे कह दूंगा अपनी बात। और वो विदाई के समय मिली,...

और मैंने वो बीड़ा अक्षत दिखाया, उसने मुस्करा के पूछा, .. अब तक सम्हाल के रखे हो, कब तक रखोगे। हिम्मत कर के जो मैंने दस बार रिहर्सल किया था बोल दिया,


"जब तुम दुबारा इसी छत से बीड़ा मारोगी तब तक,...."

वो ज्यादा समझदार थी मुझसे, बोली,... ज्यादा सपने नहीं देखने चाहिए, बाद में तकलीफ होती है।

पर आनंद बाबू से जब पूछा गया तो बजाय कुछ जवाब देने के हालत खराब हो गयी,

और मैं लजा गया, जैसे मेरे चेहरे पर किसी ने ईंगुर पोत दिया हो एकदम पलके झुकी।

बोली गुड्डी भी कुछ नहीं लेकिन नेल पालिश लगाते लगाते हाथ दबा के उसने अपनी बात कह दी। और उसने आँखे भी नीचे नहीं, वो पीछे हटने वाली नहीं थी , बल्कि आनंद बाबू को भी खींच के साथ ले चलने वाली थी।


गुड्डी और आनंद के इन्ही चित्रों को संजोने के लिए ये पार्ट आये।
कई बार कुछ न बोलकर भी बहुत कुछ कहा जा सकता है....
 

motaalund

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थैंक्स बहुत सही कहा आपने

और गुड्डी जिस वयसंधि की सीढ़ी पर खड़ी थी ' चोली छोटी होना ' सिर्फ मुहावरा नहीं था।
मुहावरा हीं नहीं बल्कि वास्तविकता और अरमान भी थे...
जो एक अलग तरह की लौ जला देती थी...
 

motaalund

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एकदम सही कहा आपने

बल्कि हांका कर के शेर को पास में लाना होगा, जो हालत आनंद बाबू की है
अब तो शिकार हीं घेरे तो आनंद बाबु का कल्याण हो...
 

motaalund

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सही कहा आपने

और रोमांस का पहला ककहरा ( और सफल दाम्पत्य जीवन का भी ) वो सीख चुके हैं,

कुछ पाना होगा तो कुछ हारना होगा, हार में ही जीत है।

शीस उतारो, भुई धरो, तब पैंठों घर माहीं।
बल्कि दोनों लोग जीतते हैं.. और दोनों लोग हीं हारते हैं...
 

motaalund

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इतने अच्छे कमेंट के बाद कुछ कहने को बचता नहीं, फिर भी

दो बातें

गोस्वामी जी का सहारा लेती हूँ,...


निज कबित्त केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका

जे पर भनिति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं।


( अपनी रचना कैसी भी हो, हर किसी को अच्छी लगती है। लेकिन दूसरें की रचना पढ़कर हर्षित होने वाले बहुत विरले ही उत्तम पुरुष हैं )

आप उन विरले लोगो में हैं, जिन्हे दूसरे की रचना अच्छी लगती है।

दूसरी बात, कथा के कथ्य पर तो बहुत लोग चर्चा कर लेते हैं, कहानी क्या कह रही है, क्या लिखा गया लेकिन उसके शिल्प पर प्रकाश डालने वाले उसके क्राफ्ट को समझने वाले और उसे कह पाने वाले भी विरले ही होते हैं , और आप उन विरले लोगों में हैं। अच्छा गाना हम सबको अच्छा लगता है लेकिन विज्ञ ही उसके सुर ताल को समझने वाले होते हैं।

आप ने जैसे गारी की बात की, उसके सामजिक सरोकार की बात की, शादी के बिसरते जा रहे रीत रिवाजो की बात की ग्रामीण माहौल में महिलाओ के बीच खुलेपन की बात की और ये वो बिल्डिंग ब्लाक है, वो ईंट गारा चूना जिनसे कहानी का यह भवन खड़ा हुआ, जो बनने के बाद दिखता तो नहीं पर कहानी को शेप देता है,

गारी अब सबसे ज्यादा विलुप्त हो रहे लोकगीतों में हैं लेकिन उसकी परम्परा में कुछ अलिखित नियम से है जो मैंने इस भाग में ध्यान देकर फॉलो किया। जैसे शादी ब्याह में जब औरते इकट्ठा होती है ( अब लेडीज संगीत ने सब संगीत गायब कर दिया ) तो पहले पांच गाने देवता के होते थे और बाद में शादी और अंत आते आते खुल के गारिया, लेकिन रस्म रिवाज की गारी में भी पहले थोड़ी हलकी ज्यादा शराफत वाली गालियां , इसलिए इसमें भी पहली गारी हलकी फुलकी है " आनंद की बहिना बिके कोई ले लो " और फिर धीरे धीरे माहौल गर्माता है , कभी गाने वालियां जोश में आ जाती हैं तो कभी सुनने वाला उकसाता है, तो कभी दोनों, ... और मिर्ची वाले पार्ट में गारी होने एक्स्ट्रीम पर पहुँचती है।

दूसरी बात खाने खाते समय जो गारी गयी जाती है, अक्सर स्त्रियां ओट में होती हैं। शादी में भात के समय के गाने में स्त्रियाँ किसी कमरे में या आस पास बैठ के बिना सामने आये, और इस कहानी में भी गुड्डी की मम्मी और चंदा भाभी किचेन में ओट में है , दूत की तरह गुड्डी है।

फ्लैश बैक के प्रसंग मैंने गुड्डी और आनंद के रोमांस के पूर्वराग को उजागर करने के लिए डाला, और इसमें एक प्रसंग था बीड़ा -अक्षत फेंकने का,... हर बार पहल गुड्डी ने ही किया, रसगुल्ला खिलाने से शुरू कर के, जो छेड़ छड़ से शुरू हुआ लेकिन धीरे धीरे परवान चढ़ा पर एक बार आनंद ने भी सायास अपनी मन की बात कहंने की कोशिश की,...

" लेकिन मैंने तय कर लिया था जाने के पहले उससे कह दूंगा अपनी बात। और वो विदाई के समय मिली,...

और मैंने वो बीड़ा अक्षत दिखाया, उसने मुस्करा के पूछा, .. अब तक सम्हाल के रखे हो, कब तक रखोगे। हिम्मत कर के जो मैंने दस बार रिहर्सल किया था बोल दिया,

"जब तुम दुबारा इसी छत से बीड़ा मारोगी तब तक,...."

वो ज्यादा समझदार थी मुझसे, बोली,... ज्यादा सपने नहीं देखने चाहिए, बाद में तकलीफ होती है।

और बात उसकी सही थी, शादी ब्याह में इस तरह की मुलाकात, दोस्ती, अक्सर कुछ दिनों में धुंधला जाती है ,और बाद में जैसे किताबों में रखे फूल कुछ बातें याद दिला देते हैं उसी तरह से, ...

लेकिन गुड्डी, गुड्डी थी।



" इसी छत " वाली बात जुडी है कहानी के पहले भाग में ही इस बात का जिक्र आता है की आनंद बाबू के भाभी की शादी गुड्डी की मम्मी के घर से हुयी थी और आगे जब गुड्डी और आनंद बाबू की शादी तय हुयी तो एक शर्त थी शादी गाँव से होगी, तीन दिन की बरात।

यानी इसी छत से अक्षत फेंकने वाली बात पूरी होगी।

इस लिए मेरे लिए कहानी लिखने में टाइम लगे लेकिन उसका शिल्प महत्वपूर्ण है और खुशी तब होती है जब कोई कथ्य के साथ उसके क्राफ्ट को भी समझता है अप्रिशिएट करता है।

एक बार फिर से आभार, नमन धन्यवाद और अनुरोध की आप इसी तरह इस कथा यात्रा में साथ देते रहेंगे।
तीन दिन बारात भी अब एकदम विलुप्त हीं हो चुकी है...
 

motaalund

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Reet ke bahoot se scenes hain 6-7 parts ke baad Reet story men aati hai aur chaa jaati hai
और उसके बाद इस तरह छा जाती है कि आतताईयों की छुट्टी कर देती है...
 
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